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Full text of "Aakhyaanakamand-ikosha"

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आयायंश्रीनेमिचन्द्रसरिग्रथितः 


आख्यानकम्मणिकोश!ः 


श्रीमदाम्रदेवसरिसन्टब्धया बृस्‍््या समलड्डतः । 


संशोधकः सम्पादकश्व 


मुनिषुण्यविजयः 
(जिनागमरहस्यवेदि-जैनाचार्यश्रीमद्विजयानन्द्सूरिवर( प्रसिद्धनामश्रीआत्मारामजीमहा राज )रिष्यरत्न-प्रा चीनजैनभाण्डागारोद्वारक- 
प्रवतेकश्रीकान्तिविजयान्तेवासिनां श्रीजेन-आत्मानन्दग्रन्थमालासम्पादकानां मुनिवरश्रीचतुरविजयानां विनेय: ] 


प्रकाशिका 


प्राहृत ग्रन्थ परिषद्‌, 
वाराणसी - ५ 


विक्रमसंचत्‌ २०१८ ईस्‍्वीसन १९६२ 


मूल पृष्ठ १ से ३६८ 
सन्मति मुद्रणालय 
दुर्गाकुण्ड 
याराणसी-५ 





प्रत्तावना परिशिष्ट आदि 
अयन्ति दलाल 

बसंत प्रिम्टोंग प्रेस 
घीकांटा, भेलाभाईकी थाडी 
अहभमदाबाद-१ 





वयावृद्ध साध्वीजी श्री रत्नश्रीजी 


गंथसमप्पणं 
दुह्ओ जीए पूत्तो देहेणं चेत्र तह य धम्मेणं । 
नामेण पृण्णविजओं अहये सगसहिवारिसिओ ॥ १॥ 
रयणत्तयइद्धाए समणीरयणेसु पत्तछेहाए । 
तेसीशवरिसाए तीए करकमलकोसगब्भम्मि । 
किची धम्पुवयारं सुमरंतो किचि रागजुओ ॥ ३॥ 
किंची बालयभाव अणुहबमाणों य किंचि निरवेक्खो । 
सावेक्खो वि य किंची किची किंची तहा बहुहा ॥ ४१॥ 
अक्खाणयमणिकोसं अप्पेऊणं अणप्पमोयजुओ । 
अप्पाणंदणिमग्गो कयत्थय किचि मन्नेमि ॥ ५॥ 
ते जयउ जए जणणीपयं पयासं पयामपयरिसओ । 
जस्स पहाव॑ च इमे महपुरिसा पायडंति फुडं ॥ ६ ॥-- 
धम्मजणणि त्ति काउं महतरिये जाइणि न पम्हुदो । 
सिरिहरिभदो स्री पए पए नामगाहेणं ॥ ७॥ 
देहजणणीएं वच्छछय कछेऊझण गेहवासम्मि । 
जा जणणी ताव ठिओ सिरिवीरों चरमतित्थयरो ॥ ८॥ 


(9 


222. 


गओथसमपेण 


मैं देह और घमेसे जिनका पुत्र हे, उन श्रमणीसंघर्म चमकती हुई, 
त्रिरत्नॉसे समृद्ध ८३ वर्षीया श्रमणी रत्नश्री के करकमलछोंमे, उनके द्वारा कृत 
घर्मोपकारका कुछ स्मरण, पुत्रसुक्भ माताके प्रति कुछ राग, बारूमावका कुछ 
अनुभव, एवं सापेक्ष-निरपेक्षमावर्मे दोलायमान द्ोोता हुआ, न जाने किस- 
किस भावका अनुभव करता हुआ अत्यन्त हर्षाविष्ट व आत्मानंदर्म निमम्म 
हो कर ६७ वर्षीय पुण्यविजय इस आख्यानकमणिकोशको अपेण करके 
कुछ क्ृतार्थताका अनुभव करता हूं । 

अपनी घमजननी होनेके कारण आचाय हरिभद्र पद पद पर याकिनी 
महत्तराको याद करते थे । भगवान्‌ महावीरने देहजननीके वात्सल्यकी 
यादमें जब तक जननी जीती रही गद्स्थभावको नही छोडा । इस प्रकार 
ईसे मदहापुरुषोंने जिस जननीपदके प्रभावको प्रकाशित किया है वह जननी- 
पद अत्यंत प्रकषके साथ प्रकाशित हो कर विजयी हो । 


शिराट7७ ७.६ 


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अ्न्यालुक्रमः 


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प्रस्तावना ( सम्पादकीय ) 
[्रिएठतेचटप्रंणा : 97 एी. ?, आबा 


सदृत्तिकस्य आख्यानकम्णिकोशस्य विषयानुक्रमः 
मद्धलमभिधेयादिप्ररूपण् च | 


दानादिधरमोपदेश: । 


१, बुद्धिवणनाधिकारः । 


औत्पत्तिक्यादिबुद्धि-तद्रिषयकद्शन्तानां च निर्देश: । 


« ओत्पत्तिकीबुद्धिविषये भरतदृष्टान्तः । 


सपत्नीमातृसमाचारकरण-शिप्रावालुकोजयिनीनिर्माण-एकस्तम्भप्रासादकरणा-5र्धमासान्तरैकमान- 
मेषप्रेषण-तिलमा नतैलप्रेषण-मृतहस्तिमरणानिवेदनायनेकप्रस ज्ञैमय॑ भरताभिधाननटपुत्ररोहकस्या - 
ख्यानकम्‌ । 


२. वैनयिकीबुद्धिविषये नेमित्तिकार्यानकम । 


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हस्तिपदमात्रदरनेन काणाक्षिहस्तिन्यारूद्धपुत्रग्भवतीसघधवनारीनिरूपक॑ जलूमतघटमेदनिमित्तेन 
मातृ-पुत्रसमागमफलप्ररूपक॑ विनीतभावासादितशिक्षस्य नेमित्तिकशिष्यस्याख्यानकम्‌ । 


कर्मजबुद्धिविषये कषेकारू्यानकम । 
प्माकारखातनिश्नखात्रकलाप्रशंसाश्रवणप्रमुद्तिस्य चौरस्य, तथा चौरनिर्देशानुसारेण ब्रीहिक्षे- 
पणविस्मापितचौरस्य कषेकस्याख्यानकम्‌ । अन्र चतुर्विशतिधान्यनामानि निर्दिष्टानि। 


पारिणामिक्रीबुद्धिविषयेडभयार्यानकम्‌ । 

राजगृहवणैन स्कन्धावारवर्णने च । 

प्रसेनजिद्राज्ञो राज्याहकुमारपरीक्षा । 

स्वापमानशड्डितस्य श्रेणिकस्य ग्ृहत्याग: । 

सुनन्दा-भ्रेणिकयो विवाह: गर्भाधान॑ च । 

श्रेणिकस्य राज्याभिषेक:, अभयकुमारजन्म च | 

अभयकुमा रबुद्धिरज्ञितश्रेणिककारितः सुननन्‍्दाया: नगरप्रवेश: । 
बवीरजिनसमवसरणं देशना च । 

कृतराजगृहरोधस्याभयकुमारुद्िग्रपश्चक्षुन्धस्य चण्डप्रथोतस्य स्वनगरगमनम्‌ । 
चण्डप्रयोतप्रेषितक्ृतकपटश्राविकारूपगणिका कृतमभयकुमारापहरणम्‌ । 


९-१७ 


९-१० 
१० 
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१२ 
१३ 

१३-१४ 
१४ 
१५ 


रे] 


सवृत्तिकस्य आख्यानकर्मणिको शस्य 
अभयकुमारबुद्धिरक्षितचण्डप्रयोतकृतमुदयनापद्रणम्‌ । उदयनसकाशे चण्डप्रथोतपुत्र्या वासव- 
दत्ताया: सद्भीतशाखाभ्यासः । 


उदयनकृतं॑ बासवदत्ताया अपहरणम्‌ । 
चण्डप्रथोतमुक्तमहीतवणिग्वेषामयकुमा रकृत चण्डप्रयोतस्यापहरणम्‌ । 


२.” दानस्वरूपाधिकारः । 


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दानोपदेशों दानविषयककथानकनामनिरूपणं च । 


धनाख्यानकम्‌ । 


सार्थ॑वर्णना वनवर्षावणेना च । 
सार्थस्थितमुनिगणासारणाविषये धनसार्थवाहस्य परितापः, मुनिभ्यो घृतदानम्‌, बोधिप्रातिश । 


कृतपृण्यकाख्यानकम्‌ । ह 
मुनिदानप्रभावत उपाजितपुण्यस्य गोपालस्यानन्तरभवे श्रेष्ठिगृद्दे कृतपुण्यनामत्वेन जन्म | 
कृतपुण्यस्य वसनन्‍्तसेनागणिकामन्दिरगमनं जननी-जनकयोमरण सर्वद्रव्यक्षयानन्तरमकाकृतं गृह- 
निष्कासन च । 

कृतपुण्यस्याथोंपाजनाय प्रस्थानम्‌ । महिमाभिधानश्रेष्ठिपल्या कारितः कृतपुण्यस्यापहारः, विध- 
वस्नुषाचतुष्कस्वीकाराथ महिमाम्यर्थितेन तेन तत्र बसनं च। 

कृतपुण्यसमुत्पादितस्नुषापुत्रया महिमया कृतं कृतपुण्यस्य गृहनिष्कासने स्वगृहगमनं च। महिमा- 
स्‍्नुषामो दकान्तः:स्थापितनजलकान्तमणिप्रभावसेचनकगजमो चनप्रसज्ञतः  श्रेणिकराजपुत्रि-कृत- 
पुण्ययोविंवाह: । अभयकुमारबुद्ध्या चतसू गामपि सपुत्राणां महिमास्नुषाणां कृतपुण्यगृहागमनम्‌ । 


द्रोणार्यानकम्‌ । 

मुनिदानप्रभावतों द्रोणकमेकरस्थानन्तरभवे दुष्प्रसहराज्ञः पुत्रत्वेन जन्म, कुरुचन्द्रनामकरण च। 
केसरा-वसन्तदेवयोः स्नेहसम्बन्ध: । अन्यस्मै दत्ताया: केसराया हुम्नोत्सवं ज्ञात्वाउध्त्मघातो- 
थतस्य वसन्तदेवस्य कामपालकृता रक्षा | केसरा-वसन्तदेवयो: कामदेवमन्दिरे पाणिपग्रहण 
पलायन च । 

पलायितयोमदिरा-कामपालयोगैजपुरगतकेसरा-वसन्तदेवाभ्यां सह मेछापकः । 
शान्तिजिनसमवसरणं कुरुचन्द्र-वसन्तदेव-कामपाल-केसरा-मदिरागां प्रत्रज्याग्रहण च । 
शालिभद्राख्यानकम्‌ । 

सम्नमकगोपालस्य मुनिदानप्रभावतो5नन्तरभवे. राजगृहस्थगोमद्र श्रेष्ठिजायामद्राकुक्षावुत्पननस्य 
शालिभद्रनामकरणं गोभद्रश्रेष्ठिपल्नत्व च्‌ । 

गोमद्रदेवेन प्रत्यह शालिभद्राय विविधभोगर्द्धिसमपेणम्‌ । भद्वाकृतं कृम्बलूस्नक्रय्ण च। 
अ्रणिकस्यथ शालिभद्रप्रासादगमन शालिभद्रस्य खेदथ । 

धमेघोष॑भुनिदेशना भदा-शाल्मिद्रयोरासक्ति-विरक्तिप्रतिपादकः संवादश्ष । 


१५ 
१५--१६ 
१६ 
१७-४९ 
१७ 
१७-२० 
१८ 
१९ 
२००२४ 
२० 


२१ 


२२ 


२३-२४ 
२४०३० 
' २५ 


२६-२९ 
२९ 
२९--३ ० 


३०-३५ 


३०७० 
३१ 
श्र 
शै३ 


डे. 


विषयानुक्रम: । 


धन्यस्य वैराग्य:, वद्धेमानजिनसमवसरणम्‌ , वीरजिनस्तुतिः, धन्य-शालिभद्यो: प्रत्रज्याग्रहण च। 
धन्य-शालिभद्रयोरनशनप्रतिपत्तिदेवलोकगमन भद्राविलापश् । 


८ चक्रचराख्यानकम्‌ । 

प्रतिगहभिक्षाटनशीलस्य लूब्धसुरमिघृत-गुडयुक्तसक्तुपिण्डयुगलस्य मोजनसमयागतमासोपवासि- 
मुनिप्रतिकामितैकसक्तुपिण्डस्य मुनिप्रतिकाभनानन्तरगृहान्तःपतितहिरण्यपृष्टिप्राप्तद्े बक्रचराख्य- 
दिजस्याख्यानकम्‌ । 

१०, चन्दनायाख्यानकर्म । 
कौशाम्ब्यां धनावहश्रेष्ठिना वसुमत्या मूल्येन क्रयणम्‌ , पुत्रिलेन पाठनम्‌, चन्दनानामकरणं च। 
चन्दनोपरिकुशह्लितग्रा धनावहभायेया मूलया कृतश्वन्दनाया अपवरकश्षेप:, वद्रमानजिनपारणकं च। 
दिव्यबृष्टिः, चन्दनाया: प्रव्रज्या निर्वाण च। 

११. मूलदेवार्यानकम्‌ । 
नागरिककथनकुपितकुसुमशेखरनपापमानितस्य मूलदेवस्थ नगरत्याग:, वामनरूपकरणम्‌, उजञ- 
यिनीगतस्य च देवदत्तागणिकापरिचयश्व । 
देवदत्ताकृतं अचछ-मूलदेवयो: स्नेहपरीक्षणम्‌ । 
अचलापमानितमूलदेवस्योजयिनीत्याग:, सुद्रड(निधृेणशर्म)ब्राह्मणद्धितीयस्य मूलदेवस्याटवीस- 
मुलछ्न च | 
मूलदेवस्य मासोपवासिमुनिभक्तदानरज्लितदेवतासकाशाद वरप्राप्तिः, दैवज्ञपुत्रीपरिणयनम्‌ , 
चौर्यापराधादिष्वधशिक्षस्यापि बेनातटनगरराम्यप्रातिश्व । 
देवदत्ताया बेनातटे आनयनम्‌ । पयन्ते मूलदेवस्य देवकोकगमन च । 
मुनिभ्यो5्मनोज्ञाशना दिप्रतिलाभने दुःखप्रचुरसंसारश्रमणविषयकनागश्रयाख्यानकसूचा । 

१२, नागश्रीक्राह्मण्याख्यानकम्‌ । 
गृहागतमासोपवासिधमरुचिमुनये नागश्रिया कटुविषतुम्बिदानम्‌ , विषतुम्बिपरिष्ठापनभाविज्ौवव- 
धविमषेणजातकारुण्यस्य धर्मरुचिमुने्विषतुम्बिभक्षण विषावेगपीडासम्यक्सहनं देवछो कगमने च। 
ऋषिधातिन्या नागश्निया लोकनिन्दा षोडशरोगोत्पत्ति,, अनेकशो नरक-तियंग्गतिगमनानन्तरं 
चम्पानगरीवास्तव्यसागरदत्तश्रष्ठिभार्याभद्रा कुक्षिसम्भवः, जन्म, सुकुमालिकानामकरणं सागरकेण 
सह विवाहथ । 
सुकुमालिकास्पशजनितदाहसागरककृतः सुकुमालिकापरित्याग: । पुनःपरिणीताया: सुकुमादि 
कायास्तथेव स्पशजनितदादेन द्रमकेण परिहरणम्‌ । 
सुकुमालिकाया: प्रत्रन्याग्रहणं तपथ्चरणं सनिदानमरण देवलोक गमन च। ततो द्रौपदीमवविज्ञापनम्‌ । 

शीलमाहात्म्यवणनाधिकारः । 


शील्माहात्य शीलविषयकारूयानकनामनिरूपणं व । 


[ हे 
३७ 
३५ 
३६ 


३५६ 
३६-३८ 
३६ 
३७ 
३८ 


२८-४३ 


३९ 


8१ 


8२ 
७३ 
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४३-४६ 


४२-४४ 


५ 
७६ 


बंदे--६७ 
४५६ 


१३. 


१४. 


१५, 


१६. 


सदृत्तिकस्य आख्यानकमणिकोदास्य 


दवदन्तीजन्म, स्वयंबरमण्डपवण्णेन च । 

दवदन्त्या: स्वयंवरणम्‌ , युद्धवर्णनम्‌ , युद्धो पशामनम्‌ , नलकुमार-दवदन्त्योर्बिवाहथ । 
दवदन्तीसहितस्य नलकुमारस्य कोशलानगरीप्रवेश:, प्रवेशोत्सवबर्णनम्‌, नलपितृप्रत्रण्या, रुघु- 
श्रातृकुब्बरेण सह धृतरमणे नलस्य पराजयथ्थ । 

यतपराजितराज्यस्य सपत्नीकस्य नलस्य कोशलपरित्याग: । 

बनमध्ये प्रसुप्तां दवदन्ती विहायैकाकिनों नलस्य प्रयाणं सुप्तविबुद्धाया - दवदत्त्या नलादरीने 
विलापथ । ह 

समुत्तीणेश्वापद-राक्षसादिभयाया दवदन्त्या ऋतुपरणेराजमवने5वस्थानम्‌ । 

दवदन्त्या: पितृगृहगमनम्‌ । पितृदेवग्रदत्तगुटिकाप्रभावतो नरूस्य रूपपरावेतः, हुण्डिकनाम- 
धारिणो नलस्य दधिपणेराजभवने सूदत्वेनावस्थानम्‌ , ज्ञातवृत्तान्तेन भीमरथराज्ञाउलीकस्वयंवर- 
मण्डपच्छझनामन्त्रितस्य सहुण्डिकसूदस्य निषधराज्ञ: कुण्डिनपुरागमनं च । ु 

नलस्य मूलरूपेण प्रकटीमवन राज्यप्राप्तिथ जिनसेनसूरिदेशनाश्रुतपूवभवयोनल-दबदन्त्यो: 
प्रत्रज्या प्रहणं देवहोकगमन च । 

सीताख्यानकम्‌ । 

रामचन्द्रादीनां वनवास:, सीतापहरणं च । 

रावणपराजयः, रामचन्द्रादीनामयोध्याउठ»गमने च | 

लोकापवादभीतरामचन्द्रपरित्यक्ताया: सीताया: स्वकौयपितृस्वसृजवज्जजह्नगृहावस्थानम्‌ , पुत्रयुग- 
लोत्पत्ति,, पुनरयोध्या5»गमने च । 

स्वशुद्धच्यण॑ सीताया अम्मिप्रवेश:, प्रश्रज्या देवलोकगमन च । 

रोहिण्याख्यानकम्‌ । 

रोहिणीनामकस्वपत्नीप्रेरितस्य धनावहश्रेष्ठिनो धनाजेनाथ सिंहलूद्वीपगगमनम्‌ । रोहिणीरूपमोहित- 
नन्दराज्ञो कामपीडा | 

अनुरक्त-विरक्तनारीपरीक्षा । रागान्धनन्दनृपस्य प्रच्छन्ने रोहिणीगृहगमनम्‌ । रोहिणीकृतशीलोप- 
देशप्रतिबुद्धनन्दराज्ञः पश्चात्तापो रोहिणीपुरतः क्षमाप्रार्थना च | क्रमेण धनावहश्रेष्ठच्यागमनम्‌ , 
पुत्रोत्पत्ति;, रोहिण्या देवलोकगमन च | 


सुभद्राख्यानकम्‌ । 
सुभद्रा-बुद्धदासयोविंवाह: । 
सुभद्राया उपरि मिथ्यादुश्वरितकलद्भारोप:, देवकृतसानिध्यात्‌ शुद्धिवंणेवादश । 


तपोमाहात्म्थवर्णनाधिकार; । 


तपोविषयकोपदेश: तपोविषयकाझू्यानकनामनिरूपण च । 


४६-५६ 
- ३७ 


36 


४३९ 


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५९०५ रे 


५४ 


५५-५६ 
५७-६१ 


५७ 
५८ 


५९ 
६०-४६ ₹ 
६१-६५ 


६१-६२ 
६२-६५ 


६५-६७ 
६५ 


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६८-८० 
६८ 


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विषयानुक्रम: । 


१७. परीर॑चरितार्यानकम्‌ । 
वरद्रैमानजिनविविधतपथरणसूचामात्रम्‌ । 

१८, विसल्लाख्यानकम्‌ । 
पृण्यवसुनामकश्त्यापहताया: प्रज्ञपिदेव्यरण्यप्रक्षिताया थानद्भसरारा जकुमा या दष्करतपो 5नुष्ठानम्‌ , 
तपःप्रभावादेवलोकगमनम्‌ , ततश्च्युताया विसक्वानामकराजकन्याभवनिद्रीनं च । 

१९. शोर्याख्यानकम्‌ । 
गर्भाषान-जन्मानन्तरमृतजनक-जननीकस्य दुगेतकुरूपब्राह्मणपुत्रस्य मुन्युपदेशेनात्मघातोपरमः 
प्रत्रज्या ग्रहण च। प्रत्रण्यानन्तरं नन्दिषेणमुनिनामकस्य तस्यानेकविधतपश्चरणमद्दादिश्रुताध्ययन च। 
वैयाइत््यकरणनिश्चलस्य नन्दिषेणमुनेर्देवलोके सौधर्मेन्द्रक्ता प्रशंसा, तदश्रदधानकृतश्रमणरूप- 
सुरद्दयकृतं वेयावृत्यकरणविषये नन्दिषेणमुनिपरीक्षणम्‌ , इन्द्रप्रशंसायाथातथ्यानुभवत्पकटरूपदेव- 
युगलकृता नन्दिषेणमुने: स्तवना च। अन्‍न्ते नन्दिषेणमुनेर्निदानकरणम्‌ , देवलोकगमनम्‌ , 
ततश्व॒युतस्य शौयपुरे>धकरृष्णि-सुमद्राराश्योवेसुदेवनामकपुत्रत्वेनोत्पत्तिश्ष । 
गतजन्मकृतनिदानफललब्धातिशयरूपरद्द्धिवसुदेवदशैनमुग्धनगरनारीणां विद्वलता । स्व समुद्र 
विजयबुद्धिनिवारितनिगेमं ज्ञात्वा वसुदेवस्य गृहत्याग: । 

२०-२१, रुक्मिणी-मध्वाख्यानके । 

गृहागतमासोपवासिमुनिनिर्भव्सनाकरणानन्तरमहाव्याधिग्रस्ताया: स्वजनपरित्यक्ताया रक्ष्मीमत्या 
अम्रिप्रवेग:, ततो गदेमी-सूकरीमवानन्तरं मगुकच्छे नाविकपुज्रिल्वेनोत्पन्नायास्तस्या रृक्ष्मीमतीमव- 
निभत्सितमुनिदशनम्‌ , प्रतिबोध:, श्रावकग्रहावस्थानम्‌ , उम्रतपश्चरणम्‌ , चैत्यादिपयुपासना 
च । ततः सा देवलोकगमनानन्तरं वराडदेशाधिपभेसहराज-यशोमतीराश्यो रूक्मिणीनाम्नी पुत्री 
जाता । सत्यभाभाया नारदर्षि प्रत्यविनयः । ह 
नारदोत्तेजितकृष्णकृत रुक्मिणीहरणम्‌ । 
रुक्मि-जरासन्धाभ्यां बलदेवस्य युद्धं जयश्र । कृष्ण-बलदेव-रुक्मिणीनां द्वारिका55गमनम्‌ । 
रुक्मिणीकुक्षिजन्मानन्तरं पूवभववैरिदेवापह्तस्य प्रथुम्नस्य कारूसंवराभिधानविद्याधरराजयृद्दे पुत्र- 
व्वेनावस्थानम्‌ , पुत्रहरणदुःखिताया रुक्मिण्या विलापश्च । 
घूमकेतुवैरानुबन्धर्यापिका प्रयुन्नपूवभवकथा ( मधुकथा ) । 
प्रयुश्न प्रति कामाभ्यथनाभन्नानन्तरं कपटपृत्कत्रीराज्ञकथनकुपितकारूसंवरविद्याधरेण सह प्रथ्ु- 
प्तस्य युद्ध जयश्व । 
प्रयुश्नस्य द्वारिकागमन शाम्बजन्म च । 

भआावनास्वरूपवर्णनाधिकारः । 
भावनोपदेशकारस्यानकनामनिरूप गम्‌ । 

२२. द्रमकाझियानकम्‌ । 


आनन्दकेलिमग्रोय्यानगतजनसम्मर्देडलब्धभिक्षस्यात एवं त॑ जनसमूहं हन्तुं वैभारपवतशिलाखन- 
नव्यापृतस्य तब्छिलाग्राप्तमृत्योद्रमकस्याशुभाध्यवसायतो नरकंगतिनिवेदकमाज्यानकम्‌ । 


[५ 
६८ 


६८-६९ 


६९--७१ 


६९ 


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७१०८० 


७२ 
७३ 
७४ 


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७६-७७ 


3८ 
७९--८ ० 
< १-९७ 

८१ 

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६ ] 


२३. 


२७४. 


सवृत्तिकस्य आरूयानकमणिकोशस्य 


भरताख्यानकम्‌ ( अपश्रेशभाषायामर ) । 
अयोध्यावणेनम्‌ , ऋषभजिनकेवलज्ञान च | 
अष्टनवतेमेरतश्रातृगां प्रत्रज्या । 

बाहुब्िं प्रति भरतस्य दूतप्रेषणम्‌ । 
भरत-बाहुबल्युद्धवणेनम्‌ । 

बाहुबलेनिर्वेद: प्रत॒॒ज्या केवलज्ञानम्‌, भरतस्य केवलज्ञानं च । 
इलापुत्राख्यानकम । 

इलापुत्रस्य जन्म, यौवनप्राप्तिश्व । 

शरद्रणेनम्‌ । इलापुत्रस्य नटपृत््यामनुरागः । 

इलापृत्रस्य गृहत्याग:, नटकढाभ्यासश्व । 
वेशाग्रस्थितस्येलापुत्रस्य केवलज्ञानम्‌, पूृवेभवकथा च । 


सम्धक्तव्ववणनाधिकारः । 


२५, 


सम्यक्त्वफलकथन तद्दििषयक्रकथानकनामनिरूपणं च । 
सुलसाख्यानकम्‌ । 
वीरजिनसमवसरणम्‌ । अम्बडपरित्राजककृता सुलसायाः: सम्यक्त्वपरीक्षा । 


जिनबिम्बद्शानफलाधिकारः । 


२६, 


२७, 


जिनबिम्बदशनफलबिषयकाख्यानकनामनिरूपणम्‌ । 

शय्यम्भवभद्टाख्यानकम्‌ । 

प्रभवसूरिकृतों जिनबिम्बदशनमूलकः शब्यम्भवप्रतिबोध:, शब्यम्भवप्रत्रग्या, मनकप्रत्रज्या, दश- 
बैकालिकसूत्रचना च । 

आद्रेककुमाराख्यानकम्‌ । 

आद्रकनप-श्रेणिकनपयोरमयकुमारा-55६ककुमा रयोश्व॒ परस्परमुपहारप्रेषणम्‌ , अमयकुमारम्रेषित- 
जिनबिम्बावलोकनेनादकुमारस्य जातिस्मरणं च | 

श्रीमत्या कृतं बालक्रीडायामाद्रकमुनिवरणम्‌ । 

भम्नत्रतस्यादकमुनेगेहवासः पुन: प्रत्नज्याग्रहणं च। 
आद्रेकमुनिकृतपश्चशतसामन्तप्रतिबोध-गोशालकजय-हस्तितापसग्रतिबोधा: । 


जिनपूजाफलयणेनाधिकारः । 


२८, 


जिनपूजाफलूख्यापकाख्यानकनामनिरूपणम्‌ 

दीपकशिखाखू्यानकम्‌ । 

पूवेभवदीपपूजोपार्जितपुण्यस्य दीपशिखस्य जन्म यौवनग्राप्तिश्व । 

बीणाविज्ञानेन गान्धवंदत्तया, सपेविषोत्तारकमन्त्रविधानैपुण्येन लीलावत्या, ख्रीरत्नाकपणमन्त्रसा- 
धककापालिकनिरासेन अवन्तिन्या, मन्त्रविधाप्रयोगदशनेन कामछतया च सह दीपशिखस्य 
विवाह:, स्वनगरागमनम्‌ , राज्यपालनम्‌ , प्रत्रज्याग्रहणम्‌ , देवहोकगमन थे । 


<१-९० 
८१--८२ 
८३े 

८४9 
८४-९० 
९७० 
९१-९५ 
९१ 
९१-९२ 
९३ 
५९५४-९५ 
९७-९७ 
९५५ 
९५-९७ 
९६-९७ 
९७-१०३ 
९७ 
९५९७-९९ 


९९-१० ३ 


९९--१ ०० 
१०१ 
१०२ 
१०३ 

१०४-१ ३१ 
१०४ 

१०७-७ 
१०४ 


१०५--७ 


विषयानुक्रम: । 


२५९, नवपृष्पकारूयानकम । 
पृष्पपूजाकरणावाप्तपुण्यस्याशोकमालछाका रस्यानन्तरमवे राजपुत्रत्वेन जातस्य पुण्योदयशुभफल- 
प्ररूपकमाख्यानकम्‌ । 

३०. पग्मोत्तराख्यानकम्‌ । 


पुष्पपूजो पार्जितपुण्यबन्धरुयापक: पप्मोत्तरस्य पूवेमवः । पत्मोक्तरस्थ जन्म । 
पद्मोत्तर्य परिणयनम्‌ , देवगुप्तराज्ञा सह युद्धे जयः, ऐन्द्रजालिककृता श्यकारीन्द्र जारूप्रयोग- 
प्रेश्षणम्‌, सम्यवत्वाबातिश्व । 

३१. दु्गेना्याख्यानकम्‌ । 
समवसरणगच्छन्तृपादिजनगणावलोकनोदभूतर्जिनमक्त्या जिनपूजार्थगृह्दीतपुष्पाया: समवसरणं 
प्रति गच्छन्त्या जिनवन्दन-पूजाध्यवसायाया मार्गे मृतायास्ततो देवलं प्राताया दुगैनाया आख्यानकम। 

जिनवन्दनफलाधिकारः । 
जिनवन्दनफलसूचकाख्यानकनामसूचनम्‌ । 

३२. बकुलाख्यानकम्‌ । 
सपत्नीकस्य बकुछामिधानमालाकारस्थ जिनमन्दिरक्ृ॒तश्राद्वपू जाप्रकर्षाबलो कनोद मूतजिनवन्दत- 
पूजाभावस्य जिनवन्दनादिप्रभावतः पुण्यानुबन्धर्यापक्रमास्यानकमिद प्रसिद्धरत्नचूडकथापूर्ब- 
भवरूपमास्यानकमू । 

३३. सेदुवकारूियानकस । 
वद्भेमानजिनसमवसरणं अ्रेणिककृता वर्द्धमानजिनस्तुतिश् । 
कुष्ठिरूपधारिदेवस्याबिनियं प्रति श्रणिकस्य रोषः, कुषप्ठिपुरुष देव ज्ञात्वा भगवतो5पग्रे तदिषया 
पृष्छा च्‌ । 
भगवत्कथितकुष्ठिदेवपूवभवे--राजलब्धवरस्य सेदुवकस्य प्रत्यहं राज्ञा सह भोजन दीनारप्रातिथ, 
अजीयदाहारदोषोदभूतकुष्ठरोगस्य तस्य स्वजनकृतोपेक्षा, स्वपरिवारसद्क्रामितरो गस्‍्य गृ :स्याग:, 
अज्ञातवनस्पतिमावितजलपानेन नीरोगत्व॑ च, अत्याहारभक्षणेन सेदुवकस्य मरणम्‌, ततो दर्दु- 
रभवः, जिनवन्दनभावोपार्जितपुण्यकमेणस्तस्य दर्दुस्‍स्थ देवलोकगमने च । 
देवविकुर्विते मत्स्यग्राहकमुनि-गुर्विणीसाध्वीप्रसब्े श्रणिकस्य जिनशासनभक्ति: । कपिला5दान- 
कालसौकरिकहिंसा5निवायेत्व॑ च । 

३४. नन्दाख्यानकम्‌ । 
जिनवन्दनोपात्तपुण्यप्रभावदारिद्रययनाशनकथावस्तुमयं नन्दाभिधानश्रेष्टिन आर्यानकम्‌ । 

« साधुवन्दनफलवर्णनाधिकारः । 
साधुवन्दनफलविषयकाख्यानकनामकथनम्‌ | 

३५, हर्याख्यानकम्‌ । 
नेमिजिनस्य हरिमुदिश्य सुगुरुवन्दन-फलविषयको विस्तृत उपदेश:, सुगुरुवन्दनकरणेन हरिणः 
ध्ायिकसम्यस्ल्वप्रातिश् । 


[ ७ 


१०७०-०८ 
१०८-१३ 
१०८-९ 
१०९--१२ 


११३ 


११३-२० 
११३ 
११४ 


११७४-२० 
११४-१५ 


१३१९-१६ 


११६-१ ८ 


१११९-२० 
१९० 


१२१-२३ 
१२१ 
१२१-२३ 


८ ] 


सवृत्तिकस्य आख्यानकमणिकोरास्य 


११, सामायिकफलवर्णनाधिकारः । 


अव्यक्तसामायिकफलविषयकाख्यानकना मकथनम्‌ । 


१२. 


१३. 


३६. सम्पतिराजाख्यानकम्‌ । 
अतिशयज्ञान्यायंसुहस्तिदत्ताहारभोजनानन्तरं मृतस्याव्यक्ततामायिकवतो भिक्षोः कुणालपूत्र- 
सम्प्रतिववेन जन्म । सम्प्रते राज्यावाप्तिजातिस्मरणादि च । 

जिनागमश्रवणफलाधिकारः । 

जिनागमश्रवगफलविषयकाख्यानकनामनिरूपणम्‌ । 

३७. चिलातीपुत्राख्यानकम्‌ । 
क्षु्ुकमुनिवादपराजितस्य यज्ञदिन्नस्य गृद्दीतप्रत्रज्यस्थ जातिमददोषदूषितप्रत्रज्यासेवनम्‌ , ततो 
मृतस्य देवलोकगमनम्‌ , तत“च्युतस्थ चिलातीनामदासीपुक्र्वेन जन्म च | श्रेष्ठिपुत्यपहरण- 
हत्याकारिणश्विलातीपुत्रस्य मुनिग्रतिबोधेन प्रत्रज्याग्रहण देवकोकगमन च । 

३८. रौहिणेयकथानकम्‌ । 
बद्गेमानजिनोपदेशश्रवणविषये पितृनिषेधितस्य पिहितकणद्विकान्नलिप्रयोगगच्छतो रौहिणेयतस्कर- 
स्येकपादरुम्कण्टकनिष्कासनाथोंद्घटितेककणैस्थानिष्छतोडपि वद्धैामानजिनदेशनागतदेवस्वरूप- 
निदशकवाक्यश्रवणम्‌ । विद्युत्क्तिकरणसिद्धस्य रौहिणेयस्य राजगृहनगरमोषणम्‌ । 
अभयकुमारबुद्धिप्रपश्ननिग्रहणानन्तरसमारोपितदेवभावस्य रौहिणेयर्य. वद्धेमानजिनदेशना- 
श्रतैकवाक्यो पयोगेन बन्धनमुक्ति:, प्रत्रज्याग्रहणम्‌ , देवलोकगमने च । 

नमस्कारपरावलेनफलाधिकारः । 
नमस्कारप्रभावनिदशेका रूपा नकनामनिरूपणम्‌ । 

३९, गोकथानकम ( संस्कृतभमाषायाम्‌ ) । 
राम-लक्ष्मण-रावणानां धनदत्त-वसुदत्त-श्रीकान्तादिपूर्वमवनिदरीकमारूयानकम्‌ । 
धनदत्तजीवपड्डू जा स्यकुमारोक्तनमस्कारमन्त्रश्रवणानन्तरमृतवृषभस्य तन्नगरठपसुतदृषभध्व जकुमा- 
रत्वेन जन्म । नमस्कारमाहात्म्यवणैनम्‌ । 
वृषभध्वजस्य जातिस्मरणम्‌ । पड़्ुजास्य-वृषभ-ध्वजयोमेलापकः, देवकोकगमन च। राम- 
लक्ष्मण-सीता-सुग्रीव-रावणानां पूवेभवनामज्ञापनम्‌ । 

४०. पड्काख्यानकम्‌ । 
नारीयाचनाकतृपुत्रशिष्यस्य पितृस्थविरगष्छनिष्कासितस्य महिष्त्वेनोत्पत्ति:, देवत्वप्राप्तपितृजीब- 
दत्तनमस्कारस्मृतपूवंभवस्य च तस्य देवलोकगमन च । 

४१, फण्याख्यानकम्‌ । 


पार्शजिनश्रावितनमस्कारस्य कमठाग्रम्वलदम्रिदग्धसपेस्य देवगतिगमननिद्रीकमारूयानकम । 


१२६३-२७ 
१२३ 
१२३-२५ 


१२५ 
११२६-२७ 


१२७०-२९ 


१२७ 


१५२८-२९ 
१३०-४६ 

१३० 
१३०-३४ 


१३१-२३२ 
१३३-३४ 


१३७४-३५ 


१३५ 


१७. 


१५, 


४२, 


रे ठ्ठ्‌ है 


विषयानुक्रमः । 


सोमप्रभार्यानकम्‌ (अपस्रेशभाषायाम्‌ ) । 

वसन्तवर्णनम्‌ । एकान्दोलकजातस्पद्ेयोः कामरति-कामपताकामिधानगगिकयोर्नागरिककृतन्या- 
यदत्तरुक्षदीना रदातृस्वप्रेमिधनेश्वरावातजयायाः कामरत्या: सकाशात्‌ कामपताका-तप्म्रेमिसोम- 
दत्तयो: पराभवः । 

द्रब्योपाजेनव्य्रसोमदत्तकृतनिष्फलप्रयत्नानेकप्रसज्ञवणैनम्‌ । 

निर्दोषस्यापि शल्यधिरोपितस्य विद्याधररक्षितस्य सोमदत्तस्थ नमस्कारमन्त्रप्रभावतो5नन्तरभवे 
देवत्वेनोत्पत्ति: । 


सुदशनाख्यानकम । 

सुदरीनस्य पूवेभवः । वर्षावणैनम । 

सुद्शन प्रति कपिछाया निष्फला कामप्रौथना । 

अभयाराश्या: कपिलापुरतः सुदशनशीलभद्भकरणप्रतिज्ञा, कायोत्सगैस्थितसुदरीनस्याभया- 
प्रसादानयन च । ह 

शीले निश्चलस्य सुदशनस्योपरि अभयाकृतो मिथ्यारोपः, राज्ञा कृतः सुदरीनवधदण्डादेशश । 
देवकृत: सुदशनवणवादः । सुदरीनस्य प्रव्रज्या केवलज्ञानं मोक्षण् । 


स्वाध्यायाधिकारः । 


४४. 


स्वाध्यायफलनिदशेकाख्यानकनिरूपणम्‌ । 

यवसाध्वाख्यानकम्‌ । 

यवराजषिंपठितयवक्षेत्रारघश्कोक्त-क्रीडत्कुमारोक्त-कुम्भकारोक्तगा थात्रय॑स्वाध्यायप्रभावख्यापक्क 
सुप्रसिद्रमाख्यानकम्‌ । 


नियमविधानफलाधिकारः । 


छे५, 


४६९, 


४3७, 


नियमफलनिदशकाख्यानकनामनिरूपणम । 


दामझकारूयानकम्‌ । 

देमन्तवणेनम्‌ । 

दामनकस्य जीवदयानियमपालनतत्परधीवररूपपूर्वभववर्णनम्‌ । 
मुनिकथनान्यथाकरणमतिसमुद्रदत्तश्रेष्ठिस:। दामन्नकाभिधस्वदासमारणप्रयोगवैयध्यम्‌ । दामनन- 
कस्य समुद्रदत्तसवरर्द्धिस्वामित्वं सुखपरम्परा च। 

ब्राह्मण्याख्यानकम्‌ । 

वसुमतीनामत्राक्षण्या मांसभक्षण-रात्रिभोजननियमढाभनिदशेकमाख्यानकम्‌ । 
चण्डचूडारू्यानकम्‌ ( पराकृतगधबद्धम्‌ ) । 
कुम्भकारखल्लिदरीनानन्तरभोजनकरणविषयकनियमप्रभावप्राप्तर्दें: चण्ड्चूडनामकुलपुत्रस्याख्या- 
नकम्‌ । 


[९ 
१३५०-४० 


१३६ 
१३७७-४० 


१४० 
१७४०-४९ 
(१४२०--४ रै 

१४२ 


१४३ 
१४७४ 
१७४५-४६ 
१४६९-४७ 
१४६ 
१७४६-४७ 


१४८-६० 
१४८ 
१४८-५१ 
१७४८ 
१४८--४९ 


१४९--५ १ 
१५७१-५३ 


१५३-५७ 


१० ] 


१६. 


१७, 


सदृत्तिकस्य आख्यानकमणिकोशस्य 


४८. गिरिदम्बाख्यानकम्‌ । 


७९, 


गिरिनामनटस्थ ग्रन्थिवन्धनच्छोटनमात्रनियमपालनछाभप्ररूपकं शत्रुज्याधिष्टातृकपर्दियक्षपूर्वेमव- 
कृथारूपमाख्यानकम्‌ । 

राजहंसाख्यानकम्‌ । 

मथ-मांसत्यागनियमोपा्जितसुकृतयोः कर्मकर-तद्भाययोरनन्तरभवे राजहंसराजकुमार-देइणीराज- 
कुमारीत्वेन जन्म । सकृन्रियमभन्भनकरण-कारापणबद्धदुष्कृतफलोदयेन द्योरपि रोगग्रस्तता, पुनः 
नियमपालनसुकृतो दयेन सुखपरम्परा च। 

स्वपुण्यप्राधान्यविषयकमपीदमाख्या नकम्‌ । 


मिथ्यादुष्कूतदानफलाधिकारः । 


५०, 


५१, 


५२, 


मिथ्यादुष्क्रदानफलनिदशकारूयानकनामनिरूपणम्‌ । 

क्षपकार्यानकम्‌ । 

मासोपवासिक्षपणकप्रमादमारितभेकीक्षामणाथक्षुद्षकनिवेदनप्रकुपितस्य क्षुद्ंकमारणोच्वतस्य मासो- 
पवासिक्षपणकस्य स्तम्भास्फलनेन मृत्युराशीविषसपेजातावुत्पत्तिश्व । 
अहिदंशमृतस्वकुमारमोहकुपितारिमदननृपसकाशग्रतिसपेशिरो दीना रलाभप्रेरितगारुडि कमा यैमा ण- 
स्योत्पन्नजातिस्मरणस्य क्षपणकजीवसपेस्य सम्यगाराधनाम्ृतस्य अरिमिदुनरा जपुत्रनागदत्तामि- 
धानल्वेन जन्म, प्रत्रज्याग्रहणम्‌, तपःकरणविषये स्वाशक्तिनिन्द्या तपस्विभक्त्या केंवलज्ञानं च। 
चण्डरुद्राख्यानकम्‌ । 

अतिकोपनचण्डरुद्राचायेपुर:प्रेत्॒ज्था म्रहणा लीको पहासकुवद् यस्यकेलिप्रियस्य.. नवपरिणीत श्रेप्ठिपुत्र- 
स्यातिक्रोधिचण्डरुद्राचायकृ्त प्रत्ाजनम्‌ । रात्रावेव स्थानान्तरगमनाथ सूरिमुत्पाट्य ब्रजतो 
सम्यग्भावसोढगुरुताडनस्य नवदीक्षितमुने: केवलज्ञानम्‌ , मिथ्यादुष्कृतदानानन्तरं गुरोश्वापि । 
प्रसक्नचन्द्रार्यानकम्‌ । 

ग्रीष्मषवणेना । क्‍ल्कलचीरिसंक्षितकथा । प्रसनचन्द्रस्य प्रव्ज्याप्रहणम्‌ । 
राजसेवकद्विकविवाद्प्रकुपितमनसः प्रसलनचन्द्राजपेंयुद्धसंस्म्भाष्यवसाय:, पुनर्मिथ्यादुःकृतभाव- 
वर्धितशुभ-शुभतरपरिणामस्य केवलज्ञानं च | 


बिनयफलवचर्णनाधिकारः । 


५३, 


५४, 


विनयफलनिदशकाख्यानकनामनिरूपणम्‌ । 

चित्रप्रिययक्षाख्यानकम्‌ । 
प्रतिवर्षकचित्रकारमारकचित्रप्रिययक्षपार्यप्राप्तवरस्थानुष्टदशनमात्रेण मृगावतीचित्रनिर्मातुलित्रकर- 
पुत्रस्याख्यानकम | 

वनवासियक्षाख्यानकम्‌ । 


राज-सधार्मिकजन-वनवासियक्षाणां प्रति विनयकरणादवाप्तसमृद्धेवगिज आरुयानकम्‌ । 


१५४-५५ 


१ ९५५... ६ 6 


१६१-६६ 
१६१ 
१६१-६३ 


१६१ 


१६१-६ ३ 
१६३-६४७ 


१६७४-६६ 
१६४-६५ 


१६५-६६ 
१६६६-६८ 
१६६ 
१६७ 


१६८ 


विषयानुक्रम: । 


१८. प्रवर्धनोन्नत्यधिकारः । 


प्रवचनोन्नतिकरणनिदशकारुयानकनामनिरूपणम । 

५५, किष्णुकुमाराख्यानकम्‌ । 
पद्मोत्तर-विष्णुकुमारयो: प्रत्र्या, नमुचिमन्त्रिण: श्रमणप्रद्वेष:, विष्णुकुमारमुनिपादचम्पितनमुचि- 
मन्त्रिणो मृत्युश्च । 

५६, वज़स्वाम्याझ्यानकम्‌ । 

वज़स्वामिकृतप्रवचनोन्नतिप्रसड्ननिदरीकमार्यानकम्‌ । 

सिद्धसेनारख्यानकम्‌ । 

वृद्धवादिसूरिकृतो वादोपस्थितस्य सिद्धसेनस्य पराजयः, प्रत्रश्यानन्तरं संस्कृतमाषासिद्धान्तपरा- 

वर्तननिवेदनलब्धसद्ददत्तप्रायश्विततनिवेहणा च । 


मलवाधाख्यानकम्‌ । 

बुद्धानन्दवादविनिर्जितजिनानन्दसूरिशिष्यमछवादिकथानकमिदं नयचक्रग्रन्थोत्पत्तिप्रसद्ध सन्दरीर्क 
बुद्गानन्दपराभवप्रसन्नान्वित चास्ति । 

समिताख्यानकम्‌ । 
पादलेपप्रयोगनदीसत्तरण-चूणैक्षेपप्रयोगनदीकूछद्यमिलनरूपजलूस्थलीकरणप्रयोग-त्रह्मद्वीपिक श्रम- 
णशाखोद्मनिदशकमाख्यानकम्‌ । 

आयेखपुटार्यानकम्‌ । 

अन्तरिक्षपात्र-शिलादिचालन-देवकुलिकाचालनादिचमत्कारिप्र योगसन्दशकमास्यानकम्‌ । 


५७, 


५८, 


५९, 


६०, 


१९, जिनधर्मीराधनोपदेशाधिकारः । 


२०. 


जिनधर्माराधनफलनिदशकाख्यानकनामनिरूपणम्‌ । 
६१. जोत्कारमित्रार्यानकम्‌ । 
संसारिजीव-कतान्त-देह-स्वजन-जिनधर्मवास्तविकस्वरूपनिदरीकमारुयानकमिदम्‌ । 
नरजन्मरक्षाधिकारः । 
नरजन्मसाफल्या-5साफल्यनिदशकाख्यानकनामनिरूपणम्‌ । 
६२, वणिकपुत्रत्रयाड्यानकरम्‌ । 
पितृलब्धलक्षरुक्षद्रव्यस्य धनबृद्धि-रक्षा-ययकतुवेणिक्पुत्रत्रिकस्यार्यानकमिद नरभवसाफल्या-5- 
साफल्योपनयरूपम्‌ । 


२१, उत्तमजनसंसर्गिगुणबणनाधिकारः । 


उत्तमजनसंसगेगुणनिरूपकाख्यानकनामनिरूपणम्‌ । 


६३. प्रभाकराख्यानकम्‌ । 
कुसंसगेजनितदुःख-सुसंसगजनितसुखप्रसन्नान्वितं आाह्मणपुत्रप्रमाकराख्यानकम्‌ । 


[ ११ 


१६६८-७५ 
१६८ 
१६८८-७० 


१६९--७० 
१७००-७१ 


१७१-७२ 


१७१--७२ 


१७२-७४ 


१७४ 


१७४७-७५ 


१५७५-७७ 
१७५--७६ 
१७६-७७ 


१७७३-७८ 
१७७ 


१७७-७८ 


१७७८-८२ 
१७८ 
१७९-८ १ 


१२ ] 


सबृत्तिकस्य आख्यानक्मणिकोशस्य 


६४. वरशुकाख्यानकम । १८१-८२ 


मुन्याश्रम-मिछपल्लौस्थितिकोदरजातशुकद यसौ जन्य-दौजैन्यनिवेद कमा इ्यान कम्‌॒। 


६५, कम्बल-सबलाख्यानकम्‌ । १८२ 
धर्मिप्ठश्रेष्ठिसम्पर्कातधमसंस्कारयो:._ कम्बल-सबलामिधानयो बे लौवदेयोर्देव्वप्राप्तिप्रर्यापकमा- 
ख्यानकम्‌ । 

२२. इन्द्रियवदायर्तिप्राणिदुःखवर्णनाधिकारः । १८३-८८ 
इन्द्रियदमनविश्वासोपकोशायूहगततपरूयाख्यानकसूचनम्‌ । १८३ 

६६, उपकोशाशहगततपस्वथ्याख्यानकम्‌ । १८३-८४ 
स्थूलभद्रमहृष्स्परद्धॉकारिणस्तपस्विनो मानसिकपतन-समुत्थानविषयकमाल्‍्यानकम्‌ । 
इन्द्रियपारवश्यदु:खनिदशैकारूया नकनामनिरूपणम्‌ । १८४ 

६७. भद्राख्यानकम्‌ । १८४ 
श्रोत्रेन्द्रियविषयमुग्धभद्राभिधानश्रेष्ठिनीम रणनिदरीकमार्यानकम्‌ । 

६८. नृपसुताख्यानकम्‌ । १८५ 
यत्तदस्वाप्राणप्रकृत्यवाप्तमरणस्य गन्धप्रियराजकुमारस्याख्यानकम्‌ । 

६९. नरादाख्यानम्‌ । १८५-८६ 
नरमांसभक्षणन्यसनदोषपदश्रष्टस्य वनस्थमुनिमारणोध्वतस्य मुनिप्रभावकुण्ठितशक्तिमुन्युपदेश श्रव- 
णमांसभक्षणत्यागिन: सोदासद॒पस्याख्यानकम्‌ । 

७०. सुकुमारिकाख्यानकम्‌ । १८६-८७ 
सुकुमारिकाराज्ञीस्पशमौर्ध्यदोषराज्यप्रश्रस्य जितशन्रुराज्ः पह्पुरुषासक्तसुकुमारिकाकृतगन्ना- 
प्रवाहक्षेप इत्येवमादिस्पशनेन्द्रियासक्तिजनितदु:खग्राप्तिप्रसहनिरूपकमाल्‍्यानकमिदम्‌ । 

२३. व्यसनद्ालजनकयुयवत्यविश्वासवर्णनाधिकारः । १८८-२१८ 
नायेविश्वासविषयकाख्यानकनामनिरूपणम्‌ । १८८ 

७१. नृपुरपण्डिताख्यानकम्‌ ॥ ' १८८-९१ 
स्ञानाथ गत्ताया नू पुरपण्डिताया अन्यपुरुषासक्ति: | अन्यपुरुषसाद सुप्तया श्रसुरद्ष्टया 
नू पुरपण्डितया यक्षपुरः कपटयुक्तिसमासादितशुद्धशीलवादया श्रसुरोपहासा-3वर्णवादकारणम्‌ । १८८०-९० 
विगतनिद्रस्थ नू पुरपण्डिताश्रसुरस्य॒राज्ञोञत्तःपुररक्षकपदनियुक्तिः, मेण्ठासक्तराज्ञीदुश्वरित- 
ज्ञानानन्तरं चिरं स्वपनं च। प्राप्तदण्डयो राज्ञी-मेण्ठयो राज्यप्रदेशबहिर्निंगेम: । राश्याशौरासक्ति: । 
राश्यारोपितचौर्यापराधस्य मेण्ठस्य शल्यधघिरोपण श्राद्धदत्तनमस्कारप्रभावतो देवगतिगमन च । 
चौरकृतं राशीसवेस्वह्रणम्‌, मेण्ठजीवदेवकृतो राज्ञीप्रतिबोधश्व । १९०-९१ 

७२. दत्तकदुहितार्यानकम्‌ । १९१-९३ 


विक्रमराजपृष्टविटासक्तनारोकथितं कृत्रिममरण-ज्वलनप्रत्यायितननकादिलोकाया अनुरक्तनरसहि- 
ताया दत्तकश्रेष्ठिदुह्दिताया स्वपितृगृहावासख्यापकमाख्यानकम्‌ । 


विषयानुक्रम: । [ १३ 


७३. भावदिकार्यानकम्‌ । १९३-२१८ 
अषप्ठिपुश्नीदेहवणना । १९३-९५ 
राजसभायां नारीविषयकसंवादे मन्त्रिपुन्रसागरकृतो भानुश्रेष्टिपराभव:, सुरेन्द्रनामश्रेष्ठिपुत्रा सक्त- 
या5पि स्वपितृजयाथे भानुश्रेष्ठिपुल्या भावश्किया सागरेण सह परिगयनम्‌ । १९५४ 
प्रदत्तप्रासादतछावासैकाकिनीभावश्किकालनिगमनार्थप्रार्थितश्रसुरक्ृत: सखीद यसहवा सस्वीका र: । 
सखीवेषधारिपूर्वानुरागिसुरेन्द्रदतेन सह भावष्टिकायाः प्रासादतले प्रच्छन्तो रतिविलासः । १९४३-९५ 
भावश्किया अन्यपुरुषल्मारोपशुद्धचथ सुरप्रिययक्षमन्दिरे रात्रिनिगमनार्थभवस्थानम्‌ । १९५ 


मारणोथ्वतसुरप्रिययक्षपुरतो विक्रमवधनिमित्तसुवर्गपुरुषसिद्धिसाधकमैरवानन्दकापालिकवधावाप्त- 
सुवर्णपुरुषसिद्धि-वसुधाउन णीकरणादिकथावस्तुमय॑ विक्रमराजकथानक॑ कथयित्वा भावश्किया 
कृत रात्रीप्रथमप्रहरयापनम्‌ । १९७५--९७ 
पुनर्मारणोथवतसुरप्रिययक्षपुरतो&न्तगैतचातुयप्रयो गपरिणीत अ्रेष्टिपुत्रेजिनदत्तकथानकं अलीकमा- 
रीकलड्डुदूषितधा रिणीराज्ञौस्वामित्वप्राप्तवणिक्पुत्रकुथानकं कथयित्वा भावश्किया कृतं रात्रीद्वितीय- 
प्रहरयापनम्‌ । १९३--२० ० 
पुनर्मारणोद्यतसुरप्रिययक्षपुरतो5न्तगैतबुद्धिरक्षितस्व कुटुम्बज्ञानगभैना ममन्त्रिकथधानक मृतकवाणी- 
निष्फलीकरणार्थ देशान्तरगमन-पाषाणपुत्तलिकामुग्धामरदत्तनामराजकुमा ररक्षानिमित्तमित्राणन्द - 
नाममन्त्रिपुत्रप्रयत्नरत्नमञ़्रीरा जकुमार्यानयन--भवितव्यता5प्रतीकारादिक था वस्तुप्ररूपक म म रद्त्त-- 


मित्राणन्दकथानकं कथयित्वा भावट्टिकया ऋृत॑ रात्रीतृतीयप्रहरयापनम्‌ । २००-१ ० 
पुनर्मारणोद्यतसुरप्रिययक्षपुरतोडपश्चंशभाषानिबद्ध॑  चारुदत्तकथानकं क्थयित्वा भावश्टिकया कृत॑ 
रात्रीचतुर्थप्रहरयापनम्‌ , आत्मरक्षा च । २११०-११ 


चारुदत्तकथानकप्रसब्नास्त्वित्थम्‌- श्रेष्ठिपुत्रचारुदत्तस्यागमन्दिरपवेतगमनम्‌ । चारुदत्तकृतं दृक्षो- 
त्कीलिता5मितगतिनामविद्याधरस्य बन्धच्छोटनौषध्यादिना रक्षणम्‌ । आसादितजीबितामितगति- 


विद्याधरकथितोन्यपुरुषा सक्तस्वपत्नी जनितमरणान्तकष्टर्यापकः स्ववृत्तान्त: । २११-१२ 
मित्रवतीनामकमातुलपुत्या सह चारुदत्तस्य विवाह: । चारुदत्तस्य बसन्तसेनागणिकामन्दि- 
रावस्थानम्‌ । २१२ 


अपहृृतसवेस्वस्य वसनन्‍्तसेनाया अकया कृत॑ बहिर्निष्काशनं स्वगृह्मगमनं च । अकिश्वनस्य 
चारुदत्तस्य मातुलदत्तसाहाण्येन तूलन्यवसायकरणम्‌ , अग्न्युपद्रवतुलनारशाजनितधनहानिग्रस- 
रृथ्व । पुनर्मातुछदत्तसाहाब्येन चारुदत्तस्य यवनद्वीपगमनम्‌, उपात्तबहुद्व्यस्यागच्छतस्तस्य 
वायूत्पातेन समुद्रमध्ये प्रवहणभन्न शव । उत्तीणेसमुद्रस्य परित्ाजकक्॒तो रसकूपक्षेप: रसपानार्था- 
गतगोधापुच्छलप्नचारुद्त्तस्य कूपवहिरनिंगेमश् । २१३ 
मार्गमीलितमातुलमित्ररुद्रदत्तेन सह चारुदत्तस्य सुवर्णभूमिं प्रति प्रस्थानम्‌ । मार्गे रुद्रदत्तमा- 
रिताजस्थ चारुदत्तकृत ध्मेश्रावणम्‌ | सुवगभूमिंगमनाय भारण्डपक्षिल्म्चारुदत्तस्थान्तरिक्षे 
भारण्डपक्षिणो भैण्डनेन समुद्रपतनं समुद्रोत्तरणं च । २१४ 


१४ ] 


सबृत्तिकस्य आख्यानकमणिकोशस्य 


पर्वतोपरिगतचारुदत्तकृतं चारणमुनिवन्दनम्‌ | पृवपरिचितामितगरतिविदाघरत्वेन चारणमुनिना 
स्वपरिचयकथनम्‌ , जयसेना-मनोरमापरिणयन-राज्याभिषेक्‌-पुत्रयुगल-पुत्रीसमुद्भव-समरपितपुत्ररा- 
श्यामितगतिप्रव्रज्याग्रहणादिदोतकस्वद्तत्तान्तकथन च। अमितगतिपुत्रयोस्तत्र बन्दनार्थमा गमनम्‌ । 
चारणमुनि-चारुदत्त-विद्याधरपुरतो विमानोत्तरितदेवकृत चारुदत्तस्थ प्रथर्म प्रणमनम्‌ । मुर्नि 
विहाय चारुदत्त प्रणमन्त देवे प्रति विधाधरयुगलनिर्दिष्टमविनयसूचनम्‌ | अनन्तराजभवे5न्तसमये 
घमैदानोपकारकचारुदत्तवन्दनविषये देवकृत समाधानम्‌ । विद्याधरप्रदत्तवैभवस्य चारुदत्तस्य 
स्वगृहगमनं परिजनमेलापकः सुखोपभोगश्व । 

चारुदत्तकथानकं कथयित्र्यां भावड्टिकायां रात्रीचतुर्थप्रहरगमनाद अकिश्चित्करसुरप्रिययक्षस्य 
तिरोभाव:, भावद्िकायाः शौलविषये नगरजनकृत: साधुवादश्व । सापराधजनमारकसुरप्रियय- 
क्षमरतेभावश्िकाकथनाद नागरिकजनैरुत्थापनम्‌ । अन्ते भावद्िकायाः प्रत्रम्याग्रहणम्‌ । 


२४. रागाह्यनर्थपरम्परावणनाधिकारः । 


७७. 


७५, 


७६, 


३. 


०, 


७९, 


<०, 


रागायनर्थपरम्परा प्ररूपकास्यानकनामनिरूपणम्‌ । 

वणिक्पत्न्याख्यानकम । 

देवरानुरक्ताया पतिहन्त्रया वणिक्पल्या आख्यानकम्‌ । 

नन्‍्दनाविकाख्यानकंस्‌ । 
प्रतिभवोपद्वुतधमेरुचिमुनितेजोलेश्या दग्धनन्दुना विक-यूह को किल-हंस-सीह-बटुकभवजी वस्य॒जात- 
जातिस्मरणस्य वाराणसीनपश्य धर्मप्राप्तिप्रद्यापकमास्यानकम्‌ । 

चण्डहडाख्यानकम्‌ । 

क्षेत्रधान्यभक्षकबलीवर्दमा रणावाप्तसवस्वापद्दा रदण्डस्यातिक्रोधनस्थ. चण्डहडनाम्न: कषेकस्या- 
ख्यानकम्‌ । 

चित्र-सम्भूताख्यानकम्‌ । 
गोपालमवमुनिभावकृतजातिमदबद्धनीचगोत्रकर्मणोर्मातन्नपुत्रयोशथ्वित्र-सम्भूतयो: 
दिद्योतकमाख्यानकम्‌ । 

मायादित्यकथानकम्‌ । 
सरलूस्वभावसुजनशिरोमणिथाणुनामनिज मित्रवश्चकस्य शठस्वभावल्या तमायादित्यापरना म्नो गन्ना- 
दित्यस्य मायागप्रपश्चजनितदुःखपरम्परादियोतकर्माख्यानकम्‌ । 

लोभनन्धारूयानकम्‌ । 

भूमिगतसुवर्णेकुशक्रयणलुब्धस्य मृत्युदण्डमाप्नुवतो वणिज आख्यानकम्‌ | 
नकुलवणिगारूयानकम्‌ । 

द्रव्ययुक्तनकुलप्रहणलोभात्‌_ कृतपरस्परवधसड्टल्पाभ्यां पशथ्चाजातसद बुद्धिम्यां सहोदराभ्यां 
बणिक्पुत्राभ्यां कृतः सद्रव्यनकुलस्य जले प्रद्षेप: । भाहारा्थक्रौततन्नकुलगिलकमत्स्यया 
सद्रव्यनकुललुब्धया तद्भगिन्या स्वमातुर्मारणाजातवैराग्ययोस्तयोवणिक्पुत्रयो: प्रत्रग्याग्रहणम्‌ । 


प्रत्रज्या ग्रहणा - 


२१५ 


२१६६-१७ 


२१७--१८ 
२१८-२६ 
२१८ 
२१९ 


२१९-२० 


२२०-२१ 


२२१-२२ 


२२२०-२५ 


२२५ 


२२७५-२६ 


२५. 


२६९. 


विषयानुक्रमः । 
क्षान्तिगुणवर्णनाधिकार; । 


क्षान्तिकामनिद्शीकार्यानकनामनिरूपणम्‌ । 

( एतदधिकारनिर्दिष्टानि त्रीण्यपि क्षुक्रकमुनि-नन्दिषेण-चण्डरुद्रशिष्याड्यानकानि प्राकप्रतिपादितानि ) । 

जीवद्यारुणवर्णनाधिकारः । 
जीवदयालाभनिदशकाणए्यानकनामनिरूपणम । 

८१, भ्रादुसुताख्यानकम्‌ । 
तस्करापह्वतस्यावन्तीनृपसूदकारक्रीतस्य मारणान्तिकदण्डेष्प्यहिंसकस्य समासादितराजप्रसादस्य 
वणिक्पुत्रस्यास्यानकम्‌ । 

८२, गुणम(व)त्याख्यानकम्‌ । 
धननामकस्वपतिमरणानन्तरं थावरनामकनिजकिड्भरासक्ताया थावरमारकनिजपुत्रहन्त्या गुणमती- 
नामकस्वस्नुषाखड्गप्रहारमृताया: सम्पदानामघनश्रेष्टिपल्या आख्यानकम्‌ । . 

८३. मेघाख्यानकम्‌ । 
मेघकुमारस्य जन्म । 
प्रेघकुमा रस्याष्टकन्यामिः सह विवाहः, वीरजिनसमवसरणं च । 
नरजन्मदौलेम्य-श्रमणधम-गृहस्थधरम॑विषया वीरजिनदेशना । 
प्रत्रज्याग्रहणी बतमेघकुमा र-तजजननीधारिण्यो: संवाद: । मेघकुमा रस्य प्रत्रज्याग्रहणम्‌ । 
निगेम-प्रवेशमार्गलब्धावकाशग्रसुप्तस्य मेघकुमारमुनेगैच्छदागच्उत्साधुपादस्परीनिमित्तो मानसिक: 
छ्वेशः: । ज्ञातमेघकुमारमनोभावश्रीवद्धेमानजिनकथितहस्व्यादिभवदृत्तान्तश्रवणेनोपशान्तमनसो 
मेघकुमारमुने्जातिस्मरण संयमाराधना देवलोकगमन च । 


२७. धमममप्रियत्वादिगणवर्णनाधिकारः । 


२८, 


प्रियरर्मादिगुणस्फातिनिरूपकाख्यानकनामनिरूपणम्‌ । 

८४. कामदेवाख्यानकम् । 
सुरविहितानेकोपसगैनिश्चठमनस: कामदेवश्रावकस्थ ब्रतनियमपालनविषयमाख्यानकम्‌ । 

८५, सागरचन्द्राख्यानकम्‌ । ह 
सागरचन्द्रकृतनारदमुनिनिवेर्णितकमलामेलाहरण-नभःसेनसा गरच-द्युद्ध-नभ:से नक्ता रिष्ट ने मिदेशना 
प्रतिबुद्धप्रतिमास्थितसागरदत्तमरणान्तोपसगैकरण-सागरचन्द्रदेवगतिगमनादिग्ररूपकमास्यानकम्‌ । 

धमममर्मश्षजनप्रतियोधनगुणवणनाधिकारः । 
निश्चितधर्मबुद्धिलाभनिदशेकार्यानकनामनिरूपणम्‌ । 

«६, पादावलूम्बारख्यानकम्‌ । 

'सकुंडछ वा वयण न व त्ति! इत्येतत्समस्यापादपूर्तिकरणे धर्मपरीक्षाविषयकरमासख्यानकम्‌ । 

८७. रत्नजिकोटयारूयानकम । 
अभयकुमारकृतगृह्दौतप्रत्रम्यभिक्षाचरापमानकतैलो कप्रतिबोघरूपमा रूया न कम्‌ । 


[१५ 
२२६ 


२२७-३८ 
२२७ 
२२२७-२८ 


२२८ 


२२८-३८ 
२३१ 
२३२ 
२३३ 

२३४-३५ 


२२३६-२३ ८ 
२३८८-४१ 

२३८ 
२३८-४० 


२४४०-४१ 
२४४१-४३ 
२४ १ 


२७४१-४२ 


२४३ 


१६ ] 


सबृत्तिकस्य आख्यानकमणिको शब्य 


८८, माँसक्रयारूयानकम्‌ । 


अल्प-बहुमूल्यवस्तुविवादे मांसस्य महाधेत्व॑ वदतो5भयकुमारस्थ प्रतिवाद), कृत्रिमग्लानश्रेणि- 
कोपचारार्थमनुष्यमांसस्यालाभे मांसमहापैत्वप्रतिपादनादरेणाभयकुमारकृतो जीवदयोपदेशश । 


२९. 'ावद्वाल्यानालोचनदोषाधिकारः । 


८९, 


९०, 


९१, 


९२, 


अनालोचितभावशल्यदोषप्ररूपकाख्यानकनामनिरूपणम्‌ । 

मात्‌-छुतारू्यानकम्‌ । 

तत्र शूलाव्यपरोपिता त्वम्‌ !, हस्तौ ते कर्तितौ ?” इति दुर्बाक्य जल्पतो5नुक्रमेण पुत्न-मात्रोरना- 
लोचितशल्ययोद्वितीयभवे शूलाव्यपरोपण-हस्तकर्तनदुःखावेदकमार्यानकम्‌ । 


मरुकारूयानकम्‌ । 
मत्स्यभक्षणजातग्लान्यस्य वैचस्याग्रे आहारकथनलजयाअ्यथाकथनप्रकुपितरोगस्य पुनः सद्भूत- 
कथनोपशान्तव्याधेस्तपस्विन आख्यानकम्‌ । 


ऋषिदत्ताकथानकम्‌ । 

सुन्दरपाणिनामनृपपुत्रीरक्मिणीपाणिग्रहणाथ गच्छतो हैमरथनृपपुत्रकनकरथस्य मार्गे*रिदमनराज्ञा 
सह युद्ध जयश्व । 

तपोबनस्थितेन ऋषिदत्तापित्रा कनकरथकुमारपुरतः स्ववृत्तान्तनिवेदनम्‌, ऋषिदत्ता-कनकरथयो- 
विवाह थ । 

परिणीतामृषिदत्तां प्रति तत्पितुर्ितशिक्षोपदेश: । 
रुक्मिण॑प्रेषितप्रत्राजिकाविकुर्वितमारीदोषकलूड्डप्रातवधदण्डाया दयालुपाणमुक्ताया ऋषिदत्ताया 
निजेनीमूतजनकतपोवनागमनम्‌ । 

रुक्मिणीपरिणयनाथे गच्छत: कंनकरथस्य ऋषिकुमाररूपधारिण्या ऋषिदततया सह तपोवने 
मेलापकः । 

ऋषिकुमा ररूपया ऋषिदत्तया सह कनकरथस्य प्रयाणम्‌ , रुक्मिणी-कनकरथयोर्विवाहश्व । 
रुक्मिणीकशथितप्रत्राजिकाप्रेषण-ऋषिदत्तामारीकलक्ञा दिवित्तान्तश्रवणेन व्यथितस्य कनकरथस्याप्नि- 
प्रवेशहठ:, ऋषिदत्ताप्रकटीमवर्न च । 

ऋषिदत्ता-रक्मिणीसहितस्थ कनकरथस्य स्वनगरागमनम्‌ । 

कूनकरथस्य॒रा|ज्याभिषेकः, हेमरथस्य प्रत्रज्याग्रहणम्‌, ऋषिदत्तापुत्रसिहरथजन्म-वर्धापन- 
कादि च। 

ऋषिदत्ता-कनकरथयोः परलोकचिन्ता, संसारश्रमण-मोक्षस्वरूपविषयको भद्रयशोगणघरो पदेशा: 
ऋषिदत्तापूवेभवकथनम्‌ , ऋषिदत्ता-कनकरथप्रत्रण्या च । 

मक्षिकामछाख्यानकम्‌ । 

महयुद्धानन्तरं स्वगुरुसकाशे शरौरपीडाकथना-5कंथनप्राप्तजय-पराजययोः फलहिंयमछ-मक्षिका- 
मल॒योराख्यानकम्‌ । 


२४४३ 
२४३ 
२७४४-६२ 


२४४ 
२७४४-४५ 


२४५ 


२७४५-६१ 
२४६--४ ७ 


२४८--५ ० 
२५१ 


२५२--५ ३ 


२५४ 
२५५ 


२५६ 
२५७ 


२५८ 


२५९-६ १ 
२६१०-६२ 


विषयानुक्रमः | 


३०. मोहालेस्इलकुगतिपालद्शकाधिकारः । 


११. 


३२. 


९३, 


९७. 


९७५, 


९६, 


मोहातंग्रतकुगतिगमनप्ररूपकाल्‍्यानकनामनिरूपणम्‌ । 

तापसश्रेष्टधारू्यानकम्‌ । 

मोहवरशार्तगृतस्य॒तापसश्रेष्ठिनः स्वगृहपा थैजातसूकरभव-स्वगृहान्त न तसर्पमवानन्तरं स्वस्नुपा- 
पुत्रत्वेन जन्म, जातिस्मरणज्ञानम्‌, मूकभावावलम्बनम्‌, मुनिप्रतिबोधितानां सर्वेषां सम्यक्त्व- 
प्राप्तिश्व । 

सागरदत्ताख्यानकम्‌ । 

सपुत्रसागरदत्तश्रेष्ठिना धनरक्षाथ सुव्णमुद्रा झतकलदास्य स्मशान भूगभैस्थापनम्‌ । जीवन्मृतपरीक्षा्थ 
धनलिप्साठग्ममृतकापटिककरण-नाशाच्छेद: । मूनिहितद्र्यसागरदत्तगमनानन्तरं कार्पटिकस्य 
तद्धनेन महरद्विकत्व॑ राजमान च। कार्पटिककृतनगरभो जनावगतस्वद्वव्यनारेन सागरदत्तेन राज्ञो 
निवेदनम्‌ । निर्दोषकापटिककण-नाशाच्छेदापराधा प्रत्यासादितनिजद्रव्यस्थ सागरदत्तस्य धन- 
मोहमृतस्य नरकगतिगमनम्‌ । 

नन्दश्रेष्टथारुयानकम्‌ । 

शिथिलीमभूतसम्यक्त्व-नन्दानामकसुन्द्रतमवापीका रकस्य नन्दश्रेष्ठिनो मरणानन्तरं स्वनिर्मितवाप्यां 
दर्दुस्‍्त्वेनोत्पत्ति,, वाप्यागतजनग्रशंसाश्रवगोत्पन्नजातिस्मरणस्य तस्य वीरजिनवन्दनाथ गमनम्‌ , 
श्रेणिकाश्रपादप्रहारासन्नमरणस्य समाधिमरणेन प्राप्तददुराइडदेवमवरस्याख्यानकम्‌ । 
ललिताइजनन्याख्यानकम्‌ । 
ललिताज्ननामप्रत्रजितपुत्रस्नेहमोहातेशता या: 
एयानकम्‌ । 


अप्िन्या: कुगतिगमन-बहुभवश्रमणनिवेदकमा- 


घर्मसछुकरतावणनाधिकारः । 


९७, 


९८, 


प्रथमवयस्तपश्चरणविषयक्रास्यानकनामनिरूपणम्‌ । 
ढण्दहणकुमाराख्यानकम्‌ । 
अलाभपरीषहजेतृदण्ढणकुमारप्रत्रज्या-केवलज्ञानोत्पत्तिनिविद कमार्या नकम्‌ । 
जम्ब्वाख्यानकम्‌ । 

जम्बूस्वामिजीवनप्रसब्निर्देशमात्रज्ञापकमाख्यानकम्‌ । 


धर्मविषयकुलप्राधान्यनिवारकाधिकारः । 


९९, 


कुलप्राधान्यनिषेधविषयकाख्यानकनामनिरूपणम्‌ । 

हरिकेश्याख्यानक्रम्‌ । 

नमुचिमन्त्रिजन्मनि साधुपरितापकरण-तद्विषयकपश्चात्तापप्रत्रज्या-मानसिकजातिमदादिवृत्तान्तगर्म: 
हरिकेशिमुनेः पूवे मवः । 

पूवभवजातिमदकरणबद्धकर्मोंदयाद्‌ मातज्नजातिसमुद्धतस्यातिकदूपस्थ हरिकेशबलस्य विरागः 
प्रत्रज्या ग्रहण च | 


[ १७ 


२९६२-६७ 
२६२ 
२६२-६३ 


२६३३-६४ 


२६४-६५ 


२६५-६७ 


२६८८-७० 
२६८ 
२६८-६९ 


२६९७० 
२७०--७१ 

२७० 
२७०-७१ 


२७० 


२७१ 


१८ ] 


सबृत्तिकस्य आख्यानकमणिकोशस्य 


३६४. पए्काकिविहारदोषबर्णनाधिकारः । 


१००, 


१०१, 


एकाकिविहारदोपप्रूपकाल्‍्यानकनामनिरूपणम्‌ । 

अरहह्मकारुयानकम्‌ । 

सबका येचिन्तकसाधुपितृमरणानन्तरं गोचरचर्यागतारहनकमुने: काचितोषितमतृका5उमन्त्रणाम्य- 
र्थनया तदगृहावस्थानम्‌ । अरहन्नकस्य साध्वीमातुः पुत्रादशने विकलचित्तता, नगरमध्ये श्रमर्ण 
प्रछापक्ष । स्वजननीदुरवस्थादशनविरक्तस्यारहलकस्य पुनततग्रहण देवलोकगमने च । 
कूलवालाख्यानकम्‌ । 

गुरुचोदनाप्रकुपितगण्डशैलमारकशिष्यस्य “नारीनिमित्तपतन'रूपस्वगुरुशापशप्तस्यैकाकिनोऋण्य- 
वास: । एकाकिनस्तपस्विनस्तस्य तपःप्रभावाद नदीदेवताकृत नदीकूलपरावतनम्‌ , कूलवाल- 
कमुनिनाम्ना लोकप्रसिद्धिश्च । वैशालीरोधकाशोकचन्द्रन॒पप्रेषितया छम्मश्राविकया मागधिकाग- 
णिकया कृतः कूलवालकमुनेत्रतभद्ढः । 


३४. साधुद्शनमहागुणबणनाधिकारः । 


१०२, 


१०३, 


३५, 


२१०४, 


१०७. 


साधुदशनमहागुणनिदशकारख्यानकनामनिरूपणम्‌ । 

तस्करारू्यानकम्‌ । 

कायोत्सगेस्थितमुनिदशनप्रभाषिता-5प्रभाविततस्करयोमेरणानन्तरं साधुदशनप्रभावतः श्रेष्ठिपुन्र- 
त्वेनोत्पत्तिनिदशेकमार्यानकम्‌ । 

भगुपुरोहितपुत्रयुगलार्यानकम्‌ । 

चित्र-सम्मूतपूृवभवसहचरयोर्देवभवानन्तरं अष्ठिपुत््॒येन जातयोव॑यस्यचतुष्केण सह मैत्री । 
पण्णामपि उसुयारनगरजातानां आध्याद दयोसेप-राज्ञीत्वेनोत्पत्ति,, द्योरंगु-यशानामकपुरोहित- 
दम्पतीलेनोत्पत्ति:, शेषदयोश्व पुरोह्वितपुत्रत्वेनोत्पत्ति: । साधुद्रीनप्रतिबुद्धस्य पुरोह्दितपुत्रयुगलस्य 
शेषचतुर्भि: सह प्रत्रज्याग्रहणम्‌ । 


अवचद्यप्राप्तव्यप्राप्त्यधिकारः । 


पूर्वाजितकर्म नुरूपप्राप्तिविषयकाख्यानकनामनिरूपणम्‌ | 

करकण्ड्वाख्यानकम्‌ । 

राजकुलजातस्यापि करकण्डोराजन्माद मातज्नगृहावस्थानं काश्ननपुराधिपत्वं च | स्वपित्रा साथ 
युद्धौकणोथतस्य करकण्डोस्तजननीसाध्व्या पितृ-पुत्रसम्बन्धज्ञापने युद्धोपरमः, तत्पितृप्रत॒श्या च। 
सुपुष्टवृषभस्य कालान्तरे दौबेल्य दृष्टा करकण्डोबैंराग्यं प्रत्रग्याग्रहर्ण च । 
नमिराजाख्यानकम्‌ । 

युगबाहुनामकस्वश्रातृजायामदनरेखारूपमुग्चेन मणिरथराज्ञा कृतो युगबाहुवबधः, आसन्नमरणं 
युगबाहु प्रति मदनरेखया कृतो धर्मोपदेशः । शीलरक्षाथै गुर्विग्या मदनरेखायाः प्रच्छन्नतया 
पलायनम्‌ , अरण्ये पुत्रजन्म च। 


२७२१-७४ 
२७१ 
२७२ 


२७२ 
२७२-७४ 


२७४-७६ 
२७४३-७५ 
२७५ 


२७५-७६ 


२७६-८ पे 


२७६ 
२७७-७८ 


२७८८-८४ 


२३८--८ ७० 


१०६. 


विषयानुक्रमः । 


मणिप्रभविदाधरकृत मदनरेखाया अपहरणम्‌, मणिचूडमुन्युपदेशाद मणिप्रभस्य मदनरेखाध्षमा- 
प्रार्थनापुरत्सरोडकार्यो परमथ । 

मदनरेखायाः प्रत्रज्याग्रहणम्‌ । नमि-चन्द्रयशसोयुद्धनिवारणाथ मदनरेखाप्ताभ्वीकृत हयोः सहो- 
दरत्वपरिज्ञापनम्‌ । 

दाहज्वरपीडितनमिराज्ञ: शुभाध्यवसायबृद्धचनन्तरं प्रत्रज्याग्रहणम्‌ । ब्राह्मणरूपधा रिसौधरमेन्द्र- 
नमिराज्ञो-राग-विरागनिरूपकः संवाद: । 

बन्धुदत्ताख्यानक्म्‌ । 

पितृसवंद्ध्धिकारलो छपेन सहोदरमारणसड्डल्पमनसा कुटिछुस्वभावेन वसुदत्तेन कृता स्वम्येष्ठ- 
भ्रातृबन्चुदत्तस्य पुरतो देशाटनाथं सहगमनग्रेरणा, द्योभ्शरात्रोः प्रयाण च । 

मार्ग वसुदत्तकथितों भायोंद्विम्रकुलपुत्रकदष्टान्तः । 
बसुदत्तप्रस्तुतचक्षुद्॑यपगपूवेकर्थर्मा->धमविषयकविचारे बन्धुदत्तस्य पराभवः, बन्घुदत्तचक्षुःपीलन 
कृत्वा एकाकिन बन्धुदत्त विमुच्य वसुदत्तस्य स्वनगरगप्रयाणं च। 

रात्रौ चक्षूरोगपीडितर्सिहलद्वीपराजकुमारीस्वरूपकथन-चक्षूरोगनिर्णाशकौषधिविषयकं वृक्षोपरिस्थित- 
पक्षिवार्तालापं श्रुतव्वा तददक्षाधःस्थस्य कृतोपचारस्य बन्धुदत्तस्य पुनश्च्षुष्मत्तम्‌ । 
भारुण्डपक्षिसाहास्यप्रातसिहलद्वीपेन बन्धुदत्तेन कृतो राजकुमार श्वक्षूरोगोपशमः, सिंहलूदीपरा- 
जकुमारी-बन्घुदत्तयोविंवाह:, कालान्तरागतवसुदत्तस्य बन्धुदत्तमारणाथ पुनः कृतकपटप्रपश्चस्य 
नाशः, राज्ञः सत्यवृत्तान्तज्ञानं च । 


३६. सम्पद्धिपदोः समतावणनाधिकार; । 


१०७. 


सम्पद्विपत्समभावविषयकनरविक्रमारूयानकनिर्देश: । 

नरबिक्रमाज्यानकम्‌ । 

नरसिहराज्ञः पुत्रप्राप्य्य चिन्ता, मन्त्रिगणामिप्रायाद घोरशिवनामककापालिकस्याम्रे पुत्रप्राप्ति- 
प्रार्थना च | उत्तरसाधकनरसिंहराजमारगोद्यतस्य घोरशिवस्य नरसिहराजकृतो वधः । 

घो रशिवकापालिकवधतुष्टया देवतया नरसिंहाय पुत्रप्राप्तिवरप्रदानम्‌ । 

नरविक्रमस्य जन्म, यौवनप्राप्तिश्चष । कालमेघनामकस्तजनकमछजेतृवरणकृतप्रतिज्ञाया देवसेन- 
नृपदुहितु: शीलवत्यास्तत्प्रतिज्ञाप्रकनरविक्रमेण सह विवाहः । 

पतिगृह गच्छन्ती शीलवतों प्रति पितुहितशिक्षा, शीलवतीसहितस्य नरविक्रमस्य स्व॒नगरप्रवेश- 
वर्णन च | 

सभायेस्य नरविक्रमस्य मित्रे: सह प्रदेलिकाविषयका विदरद्गोष्टी, पुत्रदयजन्म च। 
जीवद्नजेन्द्रवशीकरणादेशभद्जाद्‌ युवतीरक्षणा्थ गजेन्द्रघातिनः पिन्रवमानितस्य सपरिवारस्य नर- 
विक्रमस्य नगरत्याग: । 

स्यन्दनपुरे पाटछकनाममालाकारगृहस्थितयो: सपुत्रयोनेरविक्रम-शीलवत्योर्मालाकारव्यवसा य- 
क्रणम्‌ । 


२८०-८ है 


२८२-८ है 


२८२३-८५ 
२८५०-८९ 


२८५ 
२८७५-८६ 


२८६ 


२८७ 


२२८८-८९ 
२८९-३० ४ 
२८९ 
२८९-३०४ 


२८९-९२ 
२९२ 


२९२-९ ७ 


२९४-९५ 
२९६--९ ८ 


२९८ 


२९९ 


२० ] 


सबृत्तिकस्य आर्यानकमणिकोशस्य 


देहिलनाम्ना पोतवणिजा कृत शीलव॒त्या अपहरणम्‌ , शीलवत्यन्वेषणाय गष्छतः स्थापितकुल- 
दगैकैकपुत्रस्य नरविक्रमस्य नदीप्रेण वहने च । 

अपुत्रस्य कीर्तिधमराज्ञो मरणे पत्नदिव्यप्रयोगे कृते नरविक्रमस्य जयवर्धननगराधिपतित्वम । 
समन्तभद्रमुनिदेशना । नरविक्रमपुत्रयुगल-शीलंबतीनां मेलापको राज्यसुखोपभोगण । अन्ते 
नरविक्रमस्य देवकोकगमनम्‌ । 


३७, देवनिवारणा5द्वाक्यताधिकारः । 


१०८. 


१०९. 


११०. 


दैवाप्रतिकारित्वनिदरीकाख्यानकनामनिरूपणम्‌ । 

द्विजसुतारख्यानकम्‌ । 

वराहमिहिर-भद्रत्राह्ो जेन्म, वराहस्य साविश््या सह विवाहः, भद्रबाहो: प्रत्ण्याग्रहणम्‌ , वराह- 
मिहिरक्वत निमित्तज्ञानविपर्यासतः तत्समयजातपुत्रराज्यात्तरसड्क्रमणं च | 
जातद्वितीयपुत्रवर्धापनायामनागत॑ भद्गबाहुँ प्रति वराहस्य द्वेषः, पुत्रमरणकथनावितथवादिनों 
भद्रबाहोवराहं प्रत्युपदेश:, भद्वबाहु प्रति वराहस्यादरश्व । 

जन्मानन्तरं राज्यान्तरसद्क्रामितस्य प्रभाकरनाम्नो वराहप्रथमपुत्रस्य पाटलिपुत्रागमनम्‌ , आका- 
शमत्स्यपतननिमित्तकथने पुत्रपराभूतस्य वराहस्याप्निप्रवेशारम्भोपरमौ च । 


कुकुटार्यानकम्‌ । 

मारणोयतयमभीतस्य शक्रगरुत्मच्छरणगतस्य रक्षणोबतशक्रादेशाद देवेमेरुगुहायां सुष्ठुरक्षितस्यापि 
कुक्कुटस्य बिडालान्मरणख्यापक॑ लोकिकाह्यानकमिदम्‌ । 

यादवारू्यानकम्‌ । 

द्वारिकाव्णनम्‌, नेमिजिनसमवसरणम्‌, सपरिवारस्य कृष्णस्य धर्मोपदेशश्रवर्ण च । 
द्वारिकानारा-स्वमरणविषयकृतकृष्णप्र श्नोत्तरे द्वीपायनाद द्वारिकानाशों जराकुमाराच तव' इति 
नेमिजिनकथनम्‌ । भ्रातृवधपापरक्षाथे जराकुमारस्य कौशाम्बवनवासः । 

द्वारिका रक्षार्थनगरबहि:क्षितमदिरापानमत्तशाम्बादिकुमारकदर्थितद्ीपा यनकृत॑ द्वारिकानादानिदा- 
नम्‌ , कृष्ण-बलभद्रकृता विफला द्वीपायनक्षमापना, द्वीपायनस्याप्निकरुमारदेवत्वेनोपपातश्व । 
पुर्नर्नेमिजिनस्य समवसरणं धर्मदेशना च । 

शाम्बादिकुमार-रुक्मिण्या दिदेवीनां प्रव्रज्याग्रहणम्‌ , द्वीपायनजीवदेवकृतो द्वारिकादाहश् । 
द्वारिकादाहोदइत्तयोहरि-हलिनो: पाण्डुमथुरां गच्छतो्हस्तिनापुरपरिसरे बुभुक्षितं कृष्ण 
मुक्त्वा5पहा रप्रहणार्थनगरप्रविष्टबल्मद्रकृतो धा्तराष्ट्रसेनिकपरामबः । ततोग्रे कौशाम्बवने तृषित 
कृष्ण मुकक्‍्वा बलमभद्रस्य जलानयनाथ गमनम्‌, प्रसुप्तस्य कृष्णस्य वामपादे दरिणश्रान्त्या 
जराकुमारकृतो बाणक्षेपश्च । 

स्ववाणविद्ध भ्रातरं कृष्णं ज्ञात्वा जराकुमारस्य परिताप:, कृष्णादेशाद जराकुमारस्य पाण्डुमथुरां 
प्रति क्षिप्रे प्रयाणम्‌ , कृष्णमरणं च । 


३०७ 
३००-१ 


३०१-४ 
३०४-२१ 
३०४ 
३०४-८ 
३०४-५ 


३०६-७ 


३०७ 


३०८-११ 


३११-२१ 
३११-१४ 


३१४ 
३११४-१६ 


३१६ 
३१७ 


३१८-१९ 


३१५९-२० 


विषयानुक्रम: । 


कृष्ण मृतं दृष्ठा बलमद्वस्य विछापोन्मादों । सिद्धार्थसारथिदेवप्रतिबुद्धस्थ बलभद्रस्य प्रत्रज्याग्रह- 
ण-देवकोकगमनसूचनम्‌ । 


१८, नछुरूतरोदनादिनेरर्थक्याधिकारः । 


१११. 


११२. 


११३. 


मृतरोदननेरथक्यविषयकाख्यानकनामनिरूपणम्‌ । 

भरताख्यानकम्‌ । 

ऋषभजिननिर्वाणशोक ग्रस्तमहत्स्वररोदकभरत- सौधमेंन्द्ररुदननैरथैक्यज्ञापकमा र्यानकम्‌ । 
सगराख्यानकम । 

पिन्रद्धिविलसत्षष्टिसह स्सगर चक्रिपुत्रपृ थ्वीत्रमणा-5ष्टा पदूपरिखाखनन-ज्वलनदेवकृ तदह न आह्य गकृ- 
तपश्सिहसपुत्रमरणयुक्तिपूवेकनिवेदनप्रसन्नप्ररूपक॑ रोदननेरथंक्यज्यापकमाख्यानकम्‌ । 
पद्माख्यानकम । 

राम-लक्ष्मणगाढ भ्रातृस्नेह निवेदकशक्रवचना श्रद्धानदेवमा याविकुर्विता सद्राममरणक थन श्रवणा नन्तर 
मृतलक्ष्मणस्नेहवशरामकृतलूक्ष्मणकलेवरो दहनराम सा रथि जीवदे वकृतरा म प्रतिबोध - रामप्रत्रज्या-नि- 
वॉणप्रसज्ञग्भ रोदननेरथक््यप्ररूपकमारुयानकम्‌ । 


४९. बन्घुकृत्रिमस्नेहत्वाधिकारः । 


११४. 


११५. 


११६. 


बन्चुजनशत्रुभवनविषयकारू्यानकनामनिरूपणम्‌ । 


रविकान्ताखज्यानकम्‌ । 

चित्रनामामात्येन प्रतिबोधाथ प्रदेशिराज्ञ: केशिगणधरव्याख्यानपर्षदि नयनम्‌ । 
जीवास्तित्व-परमवास्तित्व-सद्भर्मप्रतिपत्तिविषयका प्रदेशिराज-केशिगणधरयो:ः प्रश्नोत्तररूपा चर्चा, 
प्रतिबुद्धप्रदेशिराज्ञो गृहिधमेस्वीकारश् । 

भोगविलासकाह्निण्या रविकरान्ताराश्या धम्मरतश्रदेशिराज्ञ उपवासपारणके विषमिश्राद्यारदानम्‌ , 
समभावम्तप्रदेशिराज्ञो देवहोकगमन च । 

चुलन्याख्यानकम्‌ । 

ब्रह्मराजावसानानन्तरकुमार-राज्यरक्षकत्रह्मराजमित्रदीपराज्ञो ब्रह्मराजपत्यां चुलन्यामासक्ति:, 
दीधेराजस्नेहान्तरायभूतनिजपुत्रमारणव्यवसितचुलनीकपटकलनपटुना अद्यराजमन्त्रिणा धनुर्नान्ना 
कृता ब्रह्मदत्तरक्षा च । ह 
कोणिकाख्यानकम्‌ । 
सेणगनामककुरूपमन्त्रिपुत्रपरिहासादिकतृसुमड्नलनामकराजपुत्ररा ज्यावाप्ति-ससेणमता पसदीक्षा - मा- 
सोपवासान्तरैकदिनिभोजिसेणगगतापसो परिभक्तिमत्सुमज्नलरा जकृता55हा र ग्रहणप्रार्थ ना-55हा रप्रहणा - 
र्थागमनसमयातीवग्लानीभूतसुमच्नलराजानुचरखिंसितसे गगतापसकृतसुमद्भल्वधनिदा न क रण- छुम - 
छलसेगगव्यन्तरदेवल्ोकोत्पत्तिड्या पिका कोणिक-श्रेणिकपू्वभवकथा । 
सुमज्नलराजजीवस्यश्रेणिकल्वेनोत्पत्ति: । अ्रेणिकराज्ञीचेछणाया: सेणगतापसजीवगर्ममुद्दहन्त्या: 
अणिकमांसभक्षणदोहदस्य धीधनाभयकुमारमन्त्रिकृता सान्तवना । सेगगतापसजीवस्य श्रेणिक- 


(२१ 


३२०-२ १ 
३२११-२६ 
३२१-२२ 

३२२ 


३२२-२५ 


३२५-२६ 


२३२६-४४ 

३२६ 
३२६-२९ 
३२३६-२७ 


३२७-२ ८ 
३३२८-२९ 


३२९-३१ 


३२९-३१ 
३३१-३४ 


३३१-३२ 


२२ ] 


११७. 


११८, 


सवृत्तिकस्य आरुयानकमणिकोशस्य 


चेक॒णापुत्रकोणिकत्वेन जन्म । श्रेणिकमांसमक्षणदोहदनिमित्तखिनया चेहणया कृतः कोणिकस्य 
जन्मानन्तरमशोकवाटिकायां परिक्षेप: । पुत्रवत्सलश्रेणिकस्य चेल्लणां प्रत्युपालम्मः कोणिकपरिपा- 
लन॑ च। चेहणासकाशादानन्‍न्मानुमूतनि्ममत्व श्रेणिककृतं मन्वानेन कोशिकेन कृतः श्रेणिकस्य 
कारागृहक्षेप: । चेल्लणाज्ञातसद्भावमुदभूतपितृमक्ति कोशिकं स्वप्रतिं धावन्तं दृष्टा 'मारणार्थमेष 
आगच्छति' इति शक्लितमनसः श्रेणिकस्य विषभक्षणं मरणं च। श्रेणिककोणिकयोनेनरकगमनम्‌ । 


शह्वाख्यानकम्‌ । 


शह्वराज्ञो दत्तकवणिक्पुत्रसकाशात्‌ कछावतीचित्रफलकदरनम्‌। दत्तवर्णितशब्भरा जगुणा कृष्टविजय- 
भूपतिना स्वपृत््या: कलावत्याः श्डपुरे प्रेषणम्‌। शह्वराज-कलावत्योबिंवाह: । 


गुविंगीकलावतीनयनार्थागतविजय भूपतिपुरुषाणां शह्बपुरागमनम्‌ , दत्तगृहावस्थानम्‌ , प्रथमदृष्ट- 
कलावत्ये जयसेनकुमारादिप्रदत्तप्राध्ततसमपेणं च । 


निजश्नातृजयसेनग्रेषितकटकयुगलावछो कनजातहर्षाया भ्रात॒स्नेहगभमनामग्राह॑ प्रलपन्त्या: कला- 
बत्या उपरि कुशह्डलितेन शह्डराज्ञा गशुर्विण्या: कलावत्या: कृतमरण्यप्रेषणम्‌ , असहायाया: 
कलावत्याः शह्बराजप्रेषितचाण्डालनारीमिः कृतो बाहुच्छेदः, प्रसूतपुत्राये कलावत्ये तच्छीलपरि- 
तुष्टसिन्धुदेन्या नूतनबाहुयुगलदानं च । 

सपुत्राया: कलावत्यास्तापसाश्रम्रेडवस्थानम्‌ । ज्ञातसद्भावस्य शचह्वराज्ञ: परितापो मरणप्रतिज्ञा 
च | अमिततेजआचायैदेशना, अमिततेजआचार्यकथनावगतकलावतीमेलापकेन शह्डराज्ञा कारिते 
कूलावत्यन्वेषण च। कलावत्या: पुनरागमनम्‌ । क्रमेण पुत्राय राज्य दत््वा द्योः प्रत्रज्याग्रहर्ण 
देवको क्रगमनं च । 


कनककेत्वाख्यानकम्‌ । 
“चिरराज्यसुखोपभोगनिमित्तं जातपुत्रमारककनककेतुनपराज्ञीपग्मावतीविज्ञतस्यपोष्टिलानामकर्व- 
पत्नीजातपुत्रीपरावतनकरणरक्षितकनकध्वजनामकराजकुमा रस्थतेतलिसुतनामकमन्त्रिणों मरणान- 


न्तरदेवत्वेनोत्पनेन पोटिाजीवदेवेन कृतो देवमायाग्रभावात्‌ कनकध्वजकृतापमानानेकप्रकारा- 
त्मघातरक्षणादिश्रसब्लानन्तरधर्मप्रतिबोधः ।” इत्येतत्कथावस्तुमयमाख्यानकम्‌ । 


४०. धन-धान्यादिविषयकशोकापार्थकताधिकारः । 


११९. 


शोकपरित्याग-धर्मकर्तम्यप्रतिपादनम्‌ । 
शोककरणानिष्टफलप्ररूपकाख्यानक्रनामनिरूपगम्‌ । 


साविश्याख्यानकम्‌ । 


भगुज्ाह्मण-सा वित्रीब्राक्मणीयुगलसम्मूतपुत्रससकमध्यात्‌ पत्चदिनाम्यन्तरंप्रतिदिनैकैकपुत्रमरण- 
क्रमेण पश्चपुत्रमरणात्‌ पुत्रशोकविहलां निवंज्ां प्रलुपन्ती सावित्री प्रति श्रीवीरजिनकृतः प्रतिबोध:, 
भगु-सावित्री-तत्सारथीनां प्रत्रम्याग्रहणम्‌, भगिनीतृतीयशेषपुत्रद्ययस्य गृह्धर्मप्रतिप्रत्तिथ । 


३३२--३४ 
३२३४-४३ 


३२३५-३७ 


रै३७ 


३३८-३९ 


३४७०-७४ रे 


३७४३-४४ 


३१४४-०० 
३४४७ 
३४४-४५ 


३०५ 


१२०, 


१२१, 


१२२. 


विषयासुक्रमः । 


मन्त््याख्यानकम्‌ । 

अन्योन्यातीवस्निग्धभानुमन्त्रि-तत्पत्नीस रस्वतीयुगलस्नेहपरीक्षार्थचन्द्रसेनराजज्ञापितमन्त्रिकृत्रिममर- 
णोदन्तश्रवणानन्तरमतां सरस्वती ज्ञात्वा सदुःखचन्द्रसेननृपविहितक्षमापनापूर्वकप्रार्थितमानुमन्त्रिणो 
मरणव्यवसायोपरमः । भानुमन्त्रिणः सरस्वत्यस्थां प्रत्यहं॑ पूजाकरणम्‌ । अनेकवर्षव्यतिक्रमे 
सरस्वत्यस्थिविसजनाथे गद्जातीरमुपागतं रुदन्तं भानुमन्त्रिण दृष्ठा विहरणाथ सखीभिः साथ तत्ना- 
गताया वाराणसीराजपुत्र्या: प्ृष्छा । ज्ञातभानुदत्तान्ताया राजपुत्र्या: पूथैभवसरस्वतीजीवाया 
जातिस्मरणम्‌ । ततो भानुमन्त्रि-वाराणसीराजपुश्रयोविवाह:, राज्यसुखोपभोग:, अन्ते चारण- 
श्रमणप्रतिबोधितयो: पुत्रनिहितराज्ययोद्दयो: प्रत्रश्याप्रहणं देवलोकगमन च । 
कुलानन्दार्यानकम्‌ । 

“अतीवस्नेहमुग्धत्वात्‌ सपदष्टत्रिभुवनतिलकानामराज्ञीगृतकवाहकस्यारण्यवासिन:ः कुछानन्दामि- 
धानराज्ञों म्रतपुरुषशबवाहिन्यास्तत्रैवारण्यस्थिताया नार्या: सकाशाद विदग्धनर्कारापितः प्रति- 
बोधः । ” इत्येततकथावस्तुमयमाख्यानकम्‌ | 

जिनमतभावितानां संसारासारताविज्ञानां मानसिकशोकस्याप्यकरणताप्रतिपादनम्‌ , तद्विषयक- 
भव्यकुटुम्बाब्यानकनिर्देशशव । 

भव्यकुदुम्बाख्यानकम्‌ । 
सुन्दरनामककषक-मनोरमानामककपषेकपत्नी-मनो रथनामक पुत्र-सूमिका ना मकस्नुषात्म कस्य॒स्वयू- 


द्वादिकर्मा5प्रमादिनो5पि निर्मोहत्वादनासक्तत्वाच् “भन्यकुदुम्ब'इतिस्यातनाम्न: कपककुटुम्बस्या- 
नासक्तिप्रसज्नसन्दरक रूपकरूपमाख्यानकमिदम्‌ । 


४१. विवेकिजनस्वकृतकर्मोंद्योपनलद॒ुःखाधिसहनाधिकारः । 


१२३. 


१२७, 


१२५. 


सम्यग्दुःखसहनविषयकाख्यानकनामनिर्देश: । 

पार्थ्राख्यानकम्‌ । 
पाश्चेकुमारजन्मयुवावस्थाप्राप्तिकढतापसारब्धपश्चा प्रितपोज्वलूत्सपनमस्का र श्रावग-पा अै कुमा रप्रत- 
ज्या-ध्यानस्थपाश्रे जिनोपयप्रिकुमारदेवत्वोत्पन्नकढतापसकृतो पसग-ना गराजत्वोत्पल्स पै जी वदे वकृ तो 
पसगैरक्षादिप्रसज्ञमयं संक्षित पाश्वजिना्यानकमिदम्‌ । 

वीराख्यानकम्‌ । 

श्रीवीरवर््धमानस्वामिनो दीक्षानन्तरं जघन्य-मध्यमोत्कृष्टोपसर्गाधिसहनप्रसज्नसूचामात्रमाख्यानकम । 
गजसुकुमालार्यानकम्‌ । 

समरूपमुनिषट्कप्रतिला भनानन्तरं नेमिजिन प्रति देवक्या मुनिषट्कविषयिकों पृष्छा। नेमि- 
जिनात्‌ त॑ मुनिषद्क स्वपुत्रपट्कमेव विज्ञाय देवक्या: परिदेवनम्‌ । वासुदेवाराधितदेवदत्तवर- 
प्रभावाद गजसुकुमारूस्य जन्म । गजसुकुमारुस्य प्रत्रज्या-कायोत्सग्गावस्थान-निर्वाणगमनानि, 


सोमशर्मणः शिरःस्फोट्श । 


( २३ 
३४५०-४७ 


३४५-४ ७ 
३४७७-४८ 


३४९ 
३४९०-५० 


३१५१-६८ 
३५१ 
३५१-५२ 


३५२ 


३७५२-५४ 


३७५३-५४ 


२४9 ] 
१२६. 


१२७, 


सबृत्तिकस्य आख्यानकमणिकोशस्य 


मेतायाख्यानकम्‌ । 
दीपज्वलनपयैन्तनियमकायोत्सगैस्थितस्य दंश-मसफोपसगपीडितस्य चन्द्रावतंसकनृप्रस्य कायो- 
त्सगैपारणानन्तरं मृत्यु: । राज्यश्रीमनिच्छतो5पि मुनिचन्द्रस्य स्वजनाशुपरोषेन राज्यामिषेकः । 


स्वपुत्रराग्याप्राप्यसन्तुष्टप्मावतीदेवीकृतविषपरिभावितमो दकप्रसड्ञतो मुनिचन्द्रराज्ः प्रत्रम्या- 


प्रहणम्‌ । मुनिचन्द्रसहितस्य गुरोरत्रे उन्नयिन्यागतसाधुकथित उजयिनीनृपकुमार-पुरोहितपुत्र- 
कृतश्रमणविटम्बनावत्तान्तः । निजश्चातृपुत्रदुश्चेष्टित विज्ञाय लब्धगुर्वाज्स्य मुनिचन्द्रमुनेरुज्ययि- 
नीगमनम्‌ । मुनिचन्द्रमुनिक्ृतो राजपुत्र-पुरोहितपुत्राज्ञभद्ग: | मुनिचन्द्रमुन्युपालम्भितस्य सागर- 
चन्द्रत॒पस्य क्षमाप्रार्थना बाल्युगलाज्भसमीकरणप्रार्थना च । 

शुभभावमप्रत्रज्या ग्रहण बिना बाल्युगलाइसमीकरण न करिष्ये” इति मुनिचन्द्रमुनिनिशयाद्‌ 
द्रयोर्बालयोः प्रत्॒ज्याग्रहणम्‌, नवरं जातिमदादिदोषकल॒षितभावस्य पुरोहितपुत्रस्य प्रत्रज्यासेव- 
नम्‌, अन्ते दयोदेवलोकगमनम्‌ । जातिमददोषकर्मोदयेन पुरोहितपुत्रजीबदेवस्य मातद्भगहे 
जन्म । मातज्निन्याः श्रेष्ठिन्या सह स्नेहसम्बन्धेन श्रेष्ठिन्याश्व निन्दुत्वात्‌ श्रेष्ठिनीजातमतपुत्रीस्थाने 
मातप्लिनीकृत समकालजातनिजपुत्रपरावतनम्‌ । मात्भपुत्रस्य अ्रेष्ठिपुत्रत्वेन प्रसिद्धि,, वर्धापन- 
कादि, मेतायेनामाभिधानकरणं च । 

स्वप्रतिबोधनार्थपूवप्रा थितरा जपुत्रजीवदेवकृतं तारुण्यमावजुषो मेतायस्यानेकथा स्वप्नेषु प्रतिबोध- 
नम्‌ । मेतायेस्य धर्मानभिमुखतां विज्ञाय विवाहसमये मातन्नसकाशाद देवकृतोडपत्यपरावर्तन- 
प्रच्छन्षमेद:, मूलपित्रा चाण्डालेनापकर्षितस्य मेतायेस्य मातद्भगृहावस्थानं च। चाण्डाल्यृहस्थि- 
तस्य मेतायस्य प्रकटीमूतराजपुत्रजीवदेवकृतं स्वरूपदरीनम्‌ । मेतायेस्य देवपुरतः स्वसंसारा- 
सक्तिकथनम्‌ , द्वादशवषेपश्चात्‌ प्रतिबोधनाथ विज्ञापनम्‌ , चाण्डालपुत्ररूपनिजावर्णवा दनिरासा थे 
प्रार्थना च । 

देवप्रदत्तर्नोत्सूजन्मेष-वैभा रगिरिरथमागनिर्माण-राजगृहूसमीप समुद्रा नयनादि प्रयोगनिमित्तजु द्वीकृ- 
ताय मेतार्याय श्रेणिककृत कन्यादानम्‌ | नव(९)पत्नीमिविलसतो मेतायैस्य द्वादशवर्षातिक्रमे 
देवकृतः प्रतिबोध:, मेतायेनवपत्नाप्रार्थितद्वितीयद्वादशवर्षसमयानन्तरं देवप्रतिबोधितस्य सपत्नीक- 
स्य मेतायस्य प्रत्रज्याग्रहणं च । 

क्रौश्वपक्षिगिलितसुवणैयवान्वेषकसुव्णेकारपृष्टस्य क्रौद्वजीवोपरिंदयालोरजल्पतो मेतायेमुने: सुवर्ण- 
कारकृतो मारणान्तिकोपसगग:, मेतायैमुनेः केवलज्ञानं सिद्धिगमनम्‌ , ज्ञातसद्भावस्य श्रेणिकभीतस्य 
सकुटिम्बस्य सुवर्णकारस्य प्रत्नज्याग्रहणं च । 


सनत्कुमाराख्यानकम्‌ । 


सनत्कुमारस्य जन्म, मन्त्रिपुत्रमद्देन्दर्सिहिन सह विदाभ्यासः सख्यं च । प्राप्रयोवनस्य सनत्कु- 
मारस्य दुःशिक्षिताश्रकृतोडपहार: । सनत्कुमारान्वेषणाओ निर्गतस्य सुबहुसमयं प्येटतों महेन्द्र- 
सिंहस्य सपत्नीकेन सनत्कुमारेण सह मेलापकः । 

मद्देन्द्रसिहपुरतो बकुलमतोकथितसनत्कुमारबत्तान्ते - दुःशिक्षिताश्वापह्मतस्यारण्यमध्ये मूर्ठितस्य 


३५७४-६२ 


३२५५ 


३५६--५ ८ 


३५९ 


३६० 


२९०--६ रे 


३६२ 
३६२०-६७ 


विषयानुक्रमः । 
सनत्कुमारस्य सप्तच्छदवक्षाधिष्ठात॒यक्षेन मानससरोनीरसिश्वनेन स्वस्थीकरणम्‌ , सनत्कुमारविज्ञत- 
यक्षसाहाय्यात्‌ सनत्कुमारस्य मानससरोगमन तत्न स्नानकरणं च, तथा सनत्कुमारकृतो5्सिता- 
क्षयक्षपराजय:, सनत्कुमारस्य विद्याधराधिपत्व च | 
बकुलमताीपुरतो महेन्द्रसिहकथित॑ सामुद्रिकशात्रगतं नरर॒क्षणशाख्रम्‌ । 
सनत्कुमारस्य स्वनगरागमनम्‌ , राज्याभिषेकः, चक्रवर्तित्व॑ च । इन्द्रकृतसनत्कुमाररूपप्रशंसा - 
5भ्रदर्धवेवयुगछेन कृतब्राह्मणरूपेण कृता स्नानोथ्तस्य सनत्कुमारस्य रूपप्रशंसा | निजरूपप्रश- 
सागर्वितसनत्कुमारादिष्टआराह्मणरूपदेवयुगलस्य वजायलझ्तसडक्रान्तरोगसनत्कुमारबरूप्यदरीने 
खेद: । सनत्कुमारस्यापि रोगग्रस्तस्वशरीरावछोकनेन संविम्नस्य प्रव्रज्याग्रहणम । अतितपस्विन 
सनत्कुमारराजर्षे: पारणकदिनलूब्धतथाविधाहारदोष्तो<्नेकव्याधिग्रस्तता, कतिपयन्याधीनां सामा- 
न्यलक्षणनिरूपणं च । 
चिकित्सानिरीहभावसम्यक्प्रकाररोगपीडासहनेन सनत्कुमारराजर्षेरनेकलब्धिप्राप्ति: । इन्द्रकृतां 
सनत्कुमारचिकित्सानिरीहभावप्रशंसां श्र॒त्वाउश्रद्धानस्य कृतशबरबवै्रूपस्य पूर्वागतदेवयुगलूस्य 
सनत्कुमारमुनिचिकित्साकरणे निष्फल आयास:। शबररूपदेवयुगलरूपुरतः सनत्कुमारराजर्पेद्रैन्य- 
भावव्याधिचिकित्साविषयिकी प्ररूपणा, द्रव्यव्याधिचैकित्स्ये स्वढब्धिनिदरीन च । 
प्रकटरूपदेवयुगलक्ता सनत्कुमारराजर्षिस्तवना, अन्ते सनत्कुमारराजर्षे देवलोकगमन च । 
आख्यानकमणिकोशपठनादिफलरूप: शाख्रोपसंहार । 


टीकाकारप्रशस्तिः । 

प्रथम परिशिष्टम , ( विशेषनाज्ामलुक्रमः ) । 

द्वितीय ,, (९ विशेषनाज्ञां विभागशो5्लुक्रमः ) । 

तृतीय »+. (९ प्रसिद्धाभसिद्धदेश्या-डपसिद्धभाकृतशब्दानामनुक्रमः ) । 
चतुथय॑ ,, ( भाकुताख्यानकान्तगेताप श्रंशपद्यसहुपप्रह: ) । 

पशञ्चम॑ ,, ( वर्णकसहूग्रहः ) । 

ष्‌् / ( स्तुति-वन्दनाः )। 

सप्तम ,, (९ सुभाषितगाथालुक्रमः ) । 

अष्टम।ं ,, (९ कक्तिरूपपधांशालुक्रमः ) । 

शुद्धिपत्रकम्‌ । 


[ २५ 


३६३ 
३२६२-९५ 


३५५ 


३६७ 


३६८ 


३६९-७० 
३७१-८ ४७ 
३८५-९२ 
३९३-९७ 
३९८-९९ 
९०० 
०० 
७४०१-१२ 
७४१३-१५ 
७४१६-२२ 


प्रस्तावना 


जन -००कर पे पक )कत+>न+नन-- 


प्रतिपरिचय 


आख्यानकमणिकोर सद्त्ति की केवल दो ही हस्तलिखित प्रतियाँ उपलब्ध हैं-एक शान्तिनाथ जैन ज्ञान भण्डार, 
खंभात की ताडपत्र पर लिखी हुई, जिसे हमने प्रस्तुत सम्पादन में “खं० ” संज्ञा दी है और दूसरी प्रति जो कागज पर लिखी 
हुई है, यह विजापुर (गुजरात) में स्थित रंगविमंलजी महाराज के संग्रह को है जिसे हमने “२०१ संज्ञा दी है । 
“ख्” संब्क प्रति 
श्री शान्तिनाथ जैन ज्ञान भण्डार, खंभात के सूचिपत्र में प्रस्तुत प्रति का क्रमाइ २३३ है। पत्र संख्या 9८ ३, स्थिति 
और लिपि सुन्दर और इस की रुम्बाई ३०.२ और चौडाई २.२ इंच प्रमाण है। प्रति के अन्त में लिखानेवाले की प्रशस्ति 
है किन्तु इस में छेखन संवत्‌ नहीं है। फिर भो तपागच्छ के आधाचाय जगच्चन्द्रसूरि के उपदेश से उन्हीं के कुठुम्ब के 
व्यक्ति द्वारा लिखाई गई होने के कारण इस का लेखनसमय विक्रम की तेरहवीं शती का अन्त भाग होना चाहिये। लिपि 
का मोड भी तेरहवीं शती के प्रांत भाग ही लगता है । ग्रन्थ लिखानेवाले की प्रशस्ति इस प्रकार है-- 
प्राग्वाटवंशतिलको5जनि पूर्णदेवस्तस्यात्मजात्नय इह प्रथिता बभू वुः । द 
दुर्वारमारकरिकुम्भविभेद सिहस्तत्रादिम: सलखणो5मिधया बभूव ॥ १ ॥ 
द्वितीयको5मूद्‌ बरदेवनामा, तृतीयको5भूज्जिनदेवसंक्ञ: । सोञन्येथ्ुरादत्तनिनेन्द्रदीक्षां निर्वागसौरुयाय मनीषिमुख्य:॥ २॥ 
अज्ञानध्वान्तसूयेः सरभसविलसचज्नसंवेगरद्नक्षोणी क्रोधादियोधप्रतिहतिसभटो ज्ञातनिःशेषशासत्र: । 
निर्वेदाम्मोधिमम्ो भविककुव॒ुयोदबोधनाधानचन्द्र: कालेनाउडचायवयेः स समजनि जगब्न्द्र इत्याख्यया हि ॥३१॥ 
वरदेवस्य सज्जज्ञे वाल्हेविरिति गेहिनी । या5भूत्‌ सदा जिनेन्द्रांहिकमछासेवनेडलिती ॥ ४ ॥ 
पुत्नास्तयो: साढलनामधेया-5रिसिहरह्त्याहय-बज़सिंहाः । विवेकपात्री सहजू च पुत्री कुशीरूसंसगैतरोलवित्री || ५॥ 
साढलस्य प्रिया जज्ञे राणुरिति महासती । पुत्रास्तु पतन्च तत्राथो धीणाझ्यः शुद्धधर्मथी: ॥ ६ ॥ 
द्वितीय: क्षेमसिहार्यो, मीमसिंहस्तृतीयकः । देवसिंहामिधस्तुयों, रुपुर्महणसिंहकः ॥ ७ ॥ 
क्षेमसिंहामिधो देवसिंहश भवभीरुकः । श्रीजगश्चन्द्रस्रीणां पार्थे जतमशिश्रियत्‌ ॥ ८ ॥ 
घीणाकस्य कडूर्नाम पत्नी मोढामिषः सुतः । अन्येयः सुगुरो्वाक्य धीणाकः श्र॒तवानिति ॥ ९ ॥ 
भोगास्तुज्ञतरद्भभज्नभिदुरा: सन्ध्याश्नरागश्रमौपम्या श्रीनेलिनीदरस्थितपयोलोर खलु प्राणितम्‌ । 
तारुण्यं तरुणीकटाक्षतरलं प्रेमा तडित्सन्निभो ज्ञातैव क्षणिक सम॑ विदधतां धमै जना: ! सुस्थिरस्‌ ॥ १० ॥ 
सज्ज्ञानयुक्तो नियतढृषो5पि भवेन्महानन्दपदप्रदायी । तत्रापि च स्वा-5न्यविबोधकारीत्याहु: श्रुतज्ञानमिह्दोत्तमं हि॥ ११॥ 
तथ कालमतिमान्थदोषतः पुस्तकेषु भुवनेकवत्सलैः | पूर्वैसूरिभिरथो निवेशितं तद्‌ बरं भवति तस्य लेखनम्‌ ॥ १२॥ 
एवं निशम्य तेन न्यायोपार्जितधनेन धन्येन । आख्यानकमणिकोशस्य मुस्तको5यं व्यधायि मुदा ॥ १३॥ 


२] प्रस्तावना 


यावद्ारुणदु:खलक्षजलद्प्रध्वंसचण्डानिलो रागद्रेषमदान्धसिन्धुरदरिः स्वर्गापवर्गप्रदः । 
अज्ञानदुमपावको विजयते श्रीजैनराजागमस्तावनन्दतु पुस्तकोडयमनिश वावध्यमानों बुषैः ॥ १४ ॥ 
॥ मंगल महाश्री: ॥ छ॥ 


उपरोक्त प्रशस्ति का भावाथे इस प्रकार है-- 


प्राग्वाट ( पोरवाड ) वंश में तिलक के समान पूर्णदेव नामके श्रेष्ठी के सलखग, वरदेव और जिनदेव नामक तीन 
पुत्र थे । जिनमें से तीसरे पुत्र जिनदेव ने संसार को छोड़कर दीक्षा ग्रहण की और स्व शाल्नों में पारंगत होने के बाद वे 
क्रमशः आचाये बने। इनका नाम जगच्न्द्रसूरि प्रसिद्ध हुआ। (यह बुहदगच्छीय आचार्य दीर्ध कार तक आचाम्ल तुप करते 
रहे जिससे इनका उपनाम “तपा” पडा और उनकी शिष्यपरम्परा तपागच्छीय नाम से प्रसिद्ध हुई ।) पूणेदेब अ्रेष्ठी के द्वितीय 
पुत्र ब्रदेव की वाल्देवी ( वल्ठभदेवी->वक॒हण्वी->व्राल्देवी ) नामक पत्नी से सादर, अरिसिंह और वज़सिंह नामके तीन पुत्र 
तथा सहजू नामकी एक पुत्री, इस प्रकार चार सन्‍्तानें हुई थीं। ब्रदेव के प्रथम पुत्र साढल को राणू नामकौ पत्नी से 
घींणाक, क्षेमर्सिह भीमसींह, देवसिंह और महणसिह नामके पांच पुत्र हुए थे । उनमें से क्षेमसिह्‌ और देवसिंह ने जगशन्द्र 
सूरि के पास प्रत्रज्या ग्रहण की थी। साढल के प्रथमपुत्र धीणाक कौ कड्ट नामक पत्नी से मोढ नामका पुत्र हुआ था। एक 
दिन धीणाक ने “ भोग, छरक््मी, आायुष्य, यौवन और प्रेम श्षणिक है, श्रुतज्ञान का प्राधान्य है और शात्रों को कंठस्थ 
रखना कठिन होमे से पुस्तकलेखन आवश्यक धम है” ऐसा गुरु का उपदेश सुनकर अपने न्यायोपार्जित द्रव्य से यह 
आख्यानकमणिकोश नामक ग्रन्थ लिखवाया । जब तक दारुण दुःख, राग-द्वेष और अज्ञान का नाश करनेवाले तथा स्वर्गा- 
थवर्ग देनेवाले जैनागम विद्यमान हैं तब तक विद्वानों द्वारा पढ़ा जाता हुआ यह ग्रन्थ शोभा देता रहे । 

उपरोक्त प्रशस्ति से यह सिद्ध होता है कि इस खं०” संज्ञक प्रति का छेखन खचे देने वाले जगश्न्द्रसूरि के गृहस्था- 
श्रम के भाई बरदेवके पौत्र धीणाक हैं। आचाये जगचन्द्र के गृहस्थावास का नाम, वंश, पिता का नाम आदि की जानकारी 
केवल इसी प्रशस्ति में मिछती है । अतः यह प्रशस्ति ऐतिहासिक दृष्टि से विशेष महत्त्वपृूणे मानी जा सकती है । 

प्रस्तुत ग्रन्थ के संपादन में इस “खं०” प्रतिको प्राधान्य दिग्रा गया है । 
5३० ? संज्ञक पति 

यह प्रति विक्रम की सतरहवीं सदी में कागजपर लिखी गईं है । वर्षों पहले इस प्रति को विजापुर से मंगवाकर इसका 
* खे० ” संज्ञक प्रति के साथ मिछान कर इसे वापस भेज दिया था। उस समय इसका परिचय लिखना रह गया । भब इसका 
यूरा परिचय लिखने के लिए प्रति को पुनः विजापुर से तत्काह छाना कठिन है । सामान्यतः जैनपरम्परा की १७ वीं सदी की 
जो हजारों प्रतियाँ उपलब्ध हैं, यह भी उसी प्रकार की है| प्रस्तुत संपादन में इस प्रति से सात स्थानों पर झुद्ध और उपयोगी 
पाठ मिले हैं' । जिन्हें मूल में ही रखा है। इसके अतिरिक्त टिप्पणी में इसके पाठभेद मी दे दिये हैं। इन पाठभेदों की 
संख्या प्रमाण में अल्प है। 'खं०” संज्ञक प्रति के झुद्ध एवं प्राचीन होने पर भी “२०? स॑ज्ञक प्रति के कारण ग्रन्थ के संशोधन 
में विशेष अनुकूलता इसलिये रही कि कहीं कहीं 'खं०” प्रति के पत्र जीणे होकर दोनों छोरसे कट गये हैं। ऐसे त्रुटित स्थलों 
की पूर्ति इस प्रतिके आधार से की गई है । 


१. पृ. ३५ टि. १, पृ. ३७ टि. १, पृ. १०० टि. १, पृ. १३१ टि. १, ६ २२३ टि. ३, ए. २२९ टि. १ और 
यू, २६९ टि १ ॥ 


प्रतिपरिंचय और परिशिष्टपरिचय [ ह 

संशोधन 
उपरोक्त दो प्रतियों के आधार से संपादन करते हुए जहाँ कहीं दोनों के पाठ अशुद्ध थे उन के स्थान पर हमने मूल 
में स्वकल्पित शुद्ध पाठ रख दिये हैं और उन पाठों पर टिप्पणी का अंक देकर नीचे टिप्पणी में दोनों प्रतियों के संकेत दिये 


हैं । अर्थात्‌ जिस टिप्पणी में 'खं०” और “०? दोनों संकेत मुद्रित हों वहाँ मूल में छपा हुआ पाठ को संपादक द्वारा 
कल्पित है ऐसा समझना । इस प्रकार के स्थल कुल ग्यारह हैं । 


जहाँ टिप्पणी में प्रतिसंकेत के स्थान में 'प्रतौ' शब्द लिखा हो वहाँ भी मूल पाठ संपादक का ही समझ्नना चाहिये 
और 'प्रतौ” का अर्थ 'खं०” और “रं०” समझना चाहिए । “०? संज्ञक प्रति के मिलने के पहले हमारे सामने केवल 'खं०” 
संज्ञक ही प्रति थी अतः: उसी के आधार से पाठसंशोधन करते समय “प्रतो” ऐसा लिखा गया था । बाद में ९०” संज्ञुक 
प्रति के मिलने पर भी 'प्रतौ” संकेत कायम रक्‍्खा गया है । ऐसे केवल चार स्थल हैं । ऊपर बताये गये ग्यारह स्थल और 
ये चार-इस प्रकार कुछ १५ स्थलों में हमने स्वयं पाठ को शुद्ध कर के मूल में दिया है और दोनों प्रतियों के पाठ 
नीचे टिप्पणी में निर्दिष्ट किये हैं । 


इसके अलावा अपनी भोर से जोड़े गये मूल पाठों को [ ] इस प्रकार के कोष्ठक में रखा है। जहाँ कहीं 
अशुद्ध पाठ मिले हैं उन्हें उसी तरह रखकर हमने अपनो ओर से कल्पित शुद्ध पाठ को ( ) इक प्रकार के कोष्ठक 
में रखा है । 
के 
परिशिष्टपरियय 


प्रथम परिशिष्ट ( प्र. ३२७१ से ३८४ ) 

इस ग्रन्थ में आये हुए विशेषनामों का परिचय अकारादि क्रम से प्रष्ठांकों के साथ दे दिया है । 
द्वितीय परिशिष्ट ( 7. ३८५ से ३९२ ) 

यहाँ प्रथम परिशिष्ट में आये हुए विशेष नामों को कुछ अठासी विभागों में विभक्त कर के उन विभागों को अका- 
रादि क्रम से दे कर प्रत्येक बिभाग में समाविष्ट विशेष नामों की सूची अक्रारादि क्रम से दी गई है । 
दृतीय परिशिष्ट (५. ३९३ से ३९७ ) 

प्रसिद्र और अग्रसिद्ध जो कोई देश्य शब्द इस ग्रन्थ में मिले हैं वे सब (दे०) संकेत कर के दे दिये गये हैं। आ०» 
श्री देमचन्द्राचायेकृत देशीनाममाला में जो राब्द नहीं आये हैं उन्हें # इस प्रकार के चिद्दों से चिह्नित किया है। उनके 


अर्थ और प्रष्ठाह्ु भी दे दिये हैं। इसके अतिरिक्त 'पाइभसदमहण्णवो' में जो प्राकृत शब्द नहीं हैं उन शब्दों का संग्रह भौ 
यहाँ किया गया है। उनका अथे और पृष्ठाडु भी दिया है । 


१, पृ०१७ टि. १, पृ०१०० टि. २, पए०१०१ टि. २, ए०१०६ टि. १, ए०१०६ टि. २, प०१२२ टि. १, ०१२३ टि. १, 
पू०१२३ टि, २, पू०१६७ टि. १, ए०१८१ दि, ३, और ४०२२६ टि. १ ॥ 


२. पृ. ११३ टि, १, पृ. २२८ टि. १, पू, २५५ टि. २, पृ. ३५३ टि. १ ॥ 


$ ] प्रस्तावना 


चतुर्थ परिशिष्ट (3. ३९८ से ३९९) 

प्रस्तुत प्रन्थ में आई हुई तीन अपभ्रंश कथाओं के सिवाय प्राकृत कथानकों में जो भो अपश्रंश पथ आये हैं 
उनका संग्रह इस परिशिष्ट में किया गया हैं। इस परिशिष्ट में निम्न अपन्नंश पद्म छूट गये हैं- प्र. 2८१ पद्ांक १, 
ै. १३६७-३८ प. ८, १. १३६ प. २-३ | 
पंचम परिशिष्ठ (प्‌. ४००) 

यहाँ ग्रन्थान्तगत ऋतुवणन, तथा नग, नगर, युद्ध, अनुरक्त-विरक्तनारी, युवती, नगरप्रवेश, साथ, स्कंधाबार आदि 
वणनों का निर्देश पत्राह्ों के साथ कर दिया है। 
बष्ठु परिशिष्ट (प्‌. ४००) 

तीथैकरादि की स्तुतिओं का निर्देश इसमें किया गया है । 
सप्तम परिशिष्ट (प. ४०१ से ४१२) 

इस प्रन्थ में से चुनकर कुछ ३८३ सुभाषित पथ्यों का उनके विषयों की सूचना के साथ स्थलनिर्देश करके इस 
यरिशिष्ट में संग्रह किया गया है। 
अष्ठम परिशिष्ट (१. ४१३ से ४१५) 

प्रस्तुत ग्रन्थ में से लोकोक्तियों, सिद्धवाक्य जेसी कहावतों के १२२ पद्मांशों का संग्रह प्रस्तुत परिशिष्ट में किया गया 
है। इनमें निम्न ५ जोड लेना चाहिए १- 'पोरिसविहवा जम्हा द॒इवं पि छलंति सप्पुरिसा ।' प्र. १५० गा. ६१। २- 
“विजाजुयाणमहवा जणाण सब्वत्य कछ्लाणं ।' पृ. १३९ गा. २। ३- “अम्मापिऊणमहवा हिंययमवच्चे हिय॑ चेव ।” पृ. १७९ 
गा. ५। ४- एगुयरसंभवा वि हु न हुति कश्या वि समसीछा !!” पर. २६५ गा. ३ । ५- 'सीलरयणे विणद्ठे न सुंदर 
उमयलोगे वि ।' पृ. २९४ गा. १७५ | 

अभ्यासौ पाठकों को इन पद्मांशों में से छोगों द्वारा बोडी जाती कुछ उक्तियों का परिचय मिलेगा । 


ओः 
शुद्धिपत्रक (7. ०४१६ से ४२२) 
दृष्टिदोष और प्रमाद से मुद्रण में रहे हुए कुछ अशुद्ध पाठों का शुद्धिपत्रक दे दिया गया है। शुद्धिपत्रक के छपे 
जाने के बाद भी जो अशुद्धियाँ हमारे देखने में आईं उन्हें भी यहाँ टिप्पणी में दे दिया गया है' । 








१. 
प्राइ गाथाइु अशुद शुद्ध पत्राइ गायादु अशुद्ध शुद्ध पत्राइु गाथाइु अशुद्ध छुद्ध 
४६ पक्ति-३२ देसस्त  देससस्‍्स & २१ कुमारी कुमरी २६२ १२ कुणासु कुणसु 
१७३ ३१ विजयवाइ' विजियवाइ”' २४४ प,. ७ ऋषिदत्ता ऋषिदत्ता २६३ शीषषेके भावशल्शा- मोहाततंमृत- 
६ २2३ जयाणणदो जिणाणदो ».. » < “मत्स्यमढ़ मत्त्य- नालोचन- कुगतिपात- 
१७६ १ निसेस निस्सेस" (मक्षिका, मह! दोषाधि. द्दकाधि 
२०१ २७७ तुद तुद्द २४६ २२ पसशमणों पसन्नमणों २७५ १५ ताणअ ताण अ 
९०२ ३२६ कहिजझई  कहिजर २४८ ७3७ सणिय- सणिय- २८८ १०५ निवेशवं॑ निवेशय॑ 
१०६ ४७५३ गरूय. गरुयो महामह मदोमुह २९ ३ १३७ कमलमेहों कालमेद्दो 


१२३ '. ५४ संपई संपइ २५२ २४७ लक लबक" ३२८ ५१ पभरिंड. भारिएऊं 


परिशिष्टपरिचय और आख्यानकमणिकोरशा मूलप्रन्थ (५ 


आख्यानकमणिकोश मूल 


मूल प्रन्थ की रचना प्राकृत भाषा में केवल बावन गाथा में आर्या छंद में हुई है। इस में 9१ अधिकार हैं। प्रत्येक 
अधिकार के प्रतिपाद्य विषय के साधक आख्यानकों के कथानायक अथवा नायिका का नाममात्र का कथन उन उन अधिकार 
की मूल गाथा में किया है। इस से यह सूचित होता है कि ये कथाएँ अन्य कथाग्रन्थोंमें और कर्णोपकण पर्याप्तमात्रामें 
प्रसिद्ध थीं। कोष के रचयिताने केवल उन उन कथाओं को विविध विषयों के साथ संबद्ध करके उन कथाओं का विषयदृष्टिसे 
वर्गीकरणमात्र किया है। एक यह भी प्रयोजन है कि ग्रन्थ छोटा होनेसे स्मृति के ऊपर विशेष भार नहीं पडता और विषयकी 
इश्टिसे तत्ततकथाओं का वर्गीकरण श्रमणों को याद रखना पत्र हो जाता है। टीकाकारने उन सूचित कथाओं का विवरण 
अपनी काव्यात्मक शैडीमें किया है। 


मूल प्रन्थ के 2१ अधिकारों में कुछ १४६आख्यानकों का निर्देश ग्रन्थकार ने किया है। उनमें से १९ आख्यानक 
ग्रन्थगत अन्यान्य आख्यानकों में आजाने से बृत्ति में केवल १२७ अख्यानकों का ही क्रमाइ दिया हुआ है। शेष १९ 
आख्यानकों का नामोछेख करके कृत्तिकार ने उन्हें किन आख्यानको में से लिये जाय इसका सूचन भर किया है। उन 
१९ सूचित आख्यानों का विवरण इस प्रकार है--- 


सूचित आख्यान कहां ! 
१ धन्यकाख्यानक ( पृ. २० )। दवदन्त्याख्यानकमें (आख्यानकक्रमाइु “१३ ) । 
२ मनोरमारूयानक (प्र. ६५ )। सुदशेनाख्यानकमें (आ. क्र. 9३) | 
३ वीरमत्याख्यानक (पृ. ७१)। दवदन्त्याख्यानकमें (आ. क्र. १३)। 
४9 श्रेणिकाख्यानक (प्र. ९५)। सेडुवकाख्यानकमें (आ. क्र. ३३)। 
५ मिण्ठाख्यानक (पर. १३५)। नूपुरपण्डिताख्यानकमें (आ. क्र. ७१) । 
६ मृगावत्याख्यानक (पृ. १६४ )। चित्रप्रियाख्यानकर्में (आ. क्र. ५३ ) | 
७ माथुराख्यानक (पृ. १८५) | भावश्किरुयानक (आ. क्र. ७३) अन्तगैतजिनदत्ताख्यानकमें । 
८ क्षुल्ककमुन्याख्यानक (प्र. २२६) । क्षपषकाज्यानकमें (आ. क्र. ५० ) । 
९ नन्दिषेणाख्यानक (पृ. २२६)। शौर्याख्यानकमें (भा. क्र. १९)। 
१० चण्डरुद्रशिष्याख्यानक्र (पर. २२६)। चण्डरुद्राख्यानकमें (आ. क्र. ५१ )। 
११ दामन्काख्यानक (पृ. २३८ )। दामनकारुयानकमें (आ. क्र. ४५ )। 
१२ चन्द्रावतंसकाख्यानक (पृ. २४१)। मेतार्याख्यानकर्में (भा. क्र. १२६)। 
१३ नन्दिषेणाख्यानक (प्र. २७१)। शौयारूयानकमें (आ. क्र. १९)। 
२२६ पं. १५ ॥१४॥  ॥॥ .. २५३ २४९ सुसरय” ससुरय'. ३२६९६ * प्रयसेण पयतेण 
२४० ८ कमछामेला कमलामे-. २५५ ३२२ तवाणु भा तवाणुभा ३५१  शीर्षके पतनदुःख” 'पनतदुःख 
र्सा छास' २६१ १० 'सुश्त सुन्नत्त ३७० २० रमणीया रमणोयाः 
५ १६ कसलां कमला शत १५ निब्बाहं॑ निब्वाहं 


१. यथ्पि मुद्रणमं अतिमगाथाका क्रमांक ५३ है डिन्तु ३२४ कमांकवाली (प० २२६ ] मूलगाथा मूलप्रन्थकी नहीं अपि तु 
टीकाका र रचित है । 


* ] प्रस्तावना 


१४ चारुदत्तास्यानक् (१. २८५)। भावश्किरुयानक (आ. क्र. ७३) अन्तर्गत चारुदत्ताख्यानकमें। 

१५ मित्राणन्दाख्यानक् (प. ३२१)। भावश्टिकारख्यानक (आ. क्र. ७३) अन्तर्गत अमरदत्तमित्राणन्दा- 
ख्यानकमें । 

१६ रामाख्यानक (पृ. ३२५)। यादबाख्यानकमें (आ. क्र. ११०)। 

१७ भरताख्यानक (पृ. ३४३).। भरताख्यानकमें (आ. क्र. २३)। 

१८ श्रमण्याख्यानक (पर. ३४७)। अह्दन्नकाख्यानकमें (आ. क्र. १००)। 

१९ रामाख्यानक (पृ. ३४७) | यादवाख्यानकमें (आ. क्र. ११०)। 


ग्रन्थके 9१ अधिकारों के नाम तथा आख्यानकों के नाम और प्रत्येक आख्यानकों के कथाप्रसंगों का विस्तृत 
विषयानुक्रम दिया गया है। अतः जिज्ञासु पाठक विषयानुक्रम देख लें ऐसा अनुरोध है। 


आख्यानकमणिकोश्न मूल के कर्ता श्री नेमिचन्द्र्रि 


आचाये नेमिचन्द्रसूरि जैन खेताम्बर परम्पराके सुविख्यात विशाल बृहदगच्छ के आचाय हैं। उनका समय विक्रम 
का बारहवाँ शतक सुनिश्चित है। उनकी छोटी बडी पांच रचनाओं में से प्रस्तुत आर्यानकमणिकोश और आत्मबोधकुलक 
को छोड अन्य तीन रचनाओं में उनकी परिचायक प्रशस्ति मिछतती है। उन में भी “ र्नचूडकथा ” नामक कृति की प्रशस्ति 
में उनका परिचय शेष दो कृतियाँ उत्तराध्ययनवृत्ति और महावीरचरियं की अपेक्षा अधिक स्पष्ट है। इस प्रशस्ति के 
आधार से एवं आख्यानकमणिकोशबृत्ति की प्रशस्ति के आधार से और आख्यानकमणिकोश के बृत्तिकार आम्रदेवसूरि के 
शिष्य नेमिचन्द्रसरिकृते प्राकृतमाषानिबद्ध 'अनन्तनाथचरित्र” ( अप्रकाशित ) की प्रशस्ति के आधार से प्रस्तुत आचाये 
नेमिचद्धतूरि के पूवेवर्ती आचायों का क्रम इस प्रकार है--- 


बहदगष्छ में ( प्रा. वइगच्छ, वडगच्छ ) हुए देवसूरि ( विहारुक ) के पैड्रधर नेमिचन्द्रसूरि के पहधर उद्योतनसूरि के शिष्य 
आम्रदेवोपाध्याय के शिष्य नेमिचन्द्रसूरि प्रस्तुत मूल ग्रन्थ के कर्ता है। इन नेमिचन्द्रसूरि के दीक्षागुरु आम्रदेवोपाध्याय थे । 
और उन्हें आनन्दसूरि के मुख्य पह्धर के रूप में स्थापित किये गये थे । 


इस का स्पष्टीकरण इस प्रकार है -- 
उपरोक्त उद्योतनसूरि के समकालीन सगच्छीय पांच आचाये थे। १ यशोदेवसूरि २ ग्रथ्ुश्नसूरि ३ मानदेवसूरि 

४ देवसूरि और ५ अजितदेवसूरि | इन पांच नामों में से प्रथण चार के नाम आख्यानकमणिकोषकारकृत “रतनचूडकथा” 
नामक ग्रन्थ की प्रशस्ति में मिलते हैं । पाचवाँ नाम आख्यानकमणिकोशदबृत्ति की प्रशस्ति में तथा इृत्तिकार आम्रदेवसूरि के 
शिष्य नेमिचन्द्रसूरिकृत अनन्तनाथचरित की प्रशस्ति में मिलता है। ये पांचों आचाये उद्योतनसूरि के समकालमें विधमान थे 

१. यह प्रन्थ विजयकुमुदसूरि द्वारा सम्पादित होकर श्रकाशित हो चुका है ॥ 

२, प्रवचमसारोद्धार (प्रकाशित ) के कर्ता ये ही नेमिचन्द्रयूरि हैं॥ 

३. देवसूरि सतत उद्यतविद्दारी होने से उनके पोछे विदह्ाशक ऐसा विशेषण लगाया जाता था | इतना ही नहीं किन्तु उनको 
दिध्यपर म्परा में भी कितनेक साधु को विहारुक कहा जाने छगा था ॥ 


४. यहाँ पद्थर के रूप में बताये गये आचाये अपने पूर्व भाचाये के द्वारा दीक्षित थे या नहीं यद जानने के किए कोई 
साधन उपलब्ध नहीं है ॥ 


आख्यानकमणिकोशम्‌लछ के कर्ता नेमिचन्द्रसूरि [७ 


ऐसा हमारा निथ्वय नही किन्तु अनुमान मात्र है। पांचवे आचाये अजितदेवसूरि के पश्घर आनन्दसूरि के तीन पशुंधर आचारये 
दो गये हैं। एक नेमिचन्द्रसूरि (आम्रदेवोपाध्याय के शिष्य और इस प्रन्थ के मूलकर्ता) दूसरे प्रयोतनसूरि और तीसरे 
जिनचन्द्रसूरि ( आर्यानकमणिकोश के बृत्तिकार आम्रदेवसूरि के गुरु) । 


मूलकार नेमिचन्द्रसरि ने अपने किसी शिष्य का उल्लेख नहीं किया ऐसी अवस्था में इस विषय में विशेष कहना कठिन है। 
किन्तु उनके रतनचूडकथानामक ग्रन्थ की प्रशस्ति में प्रथम प्रति के छेखक रूपसे प्रयुन्नसूरि के धर्मपौत्र यशोदेवगणि का नाम 
मिलता है। ये यशोदेवसूरि आ० म० को० वृत्तिकार आम्रदेवसूरि के तीसरे शिष्य हैं। और आम्रदेवसूरि ने अपने 
पहघर के रूप में स्थापित आचार्यों में इनका चौथा नाम 'है। यथपि उन्होंने उत्तराध्ययनवृत्ति की प्रतिलिपि करने में 
सहायक रूपसे सर्वदेवगणि का उल्लेख क्रिया है तथापि सर्वदेवगणि उनके शिष्य थे ऐसा फलित करना कठिन है । 
आ० म० कोषकार नेमिचन्द्रसूरि के बडे गुरुख्ाता का नाम मुनिचन्द्रसूरि था एसा उलेख स्वयं उन्होंने उत्तराध्ययनसूत्रवृत्ति 
की प्रशस्ति में और महावीरचरियं की प्रशस्ति में किया है । 
प्रस्तुत मूल ग्रन्थ की रचना उन्होंने गंणीपद्वी के मिलन के पूव की थी । अतणव अन्त्य गाथा में ग्रन्थकार का नाम 
देविंद' लिखा है । इंस अन्त्य गाथा की वृत्ति में वृत्तिकार आम्रदेवसूरि ने यह स्पष्टीकरण किया है । 


नेमिचन्द्र सूरि की छोटी बडी पांच रचनाएँ हैं--- 


१. आख्यानकमणिकोश मूल गाथा ५२, २. आत्मबोधकुलक अथवा धर्मोपदेशकुलक॑ गाथा २२, ३. उत्तराध्ययन- 
बृत्ति छोकसंख्या १२०००, ४. र्नचूडकथा “छोकसंख्याँ ३०८१ और ५. महावीरचरिय छोकसंख्या ३००० । 


उक्त पांच कृतियों के अतिरिक्त अन्य कोई कृति उन्होंने नहीं की, उनकी रचनाओं को आ. म. कोश के दृत्तिकार 
आम्रदेवसूरि अपनी प्रशस्ति में और आम्रदेवसूरि के शिष्य नेमिचन्द्रसूरि भी अपनी अनन्तनाथचरित की प्रशस्ति में गिनाते 
हैं। किन्तु ये दोनों आचाये “आत्मबोधकुलक' का उछेख नहीं करते। संभवतः मात्र बाइस आर्यछेंद में रची गई यह लघुतम 
कृति उनकी दृष्टि में साधारण सी रही हो अत एवं दोनोने उसे उल्लेख योग्य न समझा हो। आख्यानकमणिकोरा की 
अन्त्यगाथा का उत्तराद्ध और आत्मबोधकुलक को अन्त्यगाथा का उत्तराद्ध को देखते हुए ऐसा फलित होता है कि दोनों के 
कर्ता एक ही होने चाहिये । इसीलिए हमने इस रुघुकृति को भी उनकी कृतिओं में शामिल किया है । 


उपरोक्त पांच कृतियों में से पहली दो प्राकृत भाषा में आर्याहन्द्‌ में हैं। इनकी रचना उन्होंने सामान्य मुनिअवस्था 
में विक्रम संवत्‌ ११२९ के पहले की है । इसी लिए. उनकी अन्त्य गाथा में 'देविंद! पद मिलता है। तीसरी कृति उत्तरा- 
ध्ययन सूत्र वृत्ति की रचना उन्होंने गणी पद प्राप्त करने बाद संवत ११२९ में को है इसलिए उन्होंने अपना नाम अन्त में 
देबंद्रगणि! दिया है । इस उत्तराध्ययन सूत्र की ताडपतन्नीय एवं कागज पर लिखी गई अनेक प्रतियों की प्रशस्ति में इनका 
भ्रशस्ति का उपयोगी अंश आम्नदेवसूरि के परिचय मेँ दे दिया गया है ॥। 


२. संधवी पाडा जैमन ज्ञान भंडार-पाटण में प्रस्तुत कुछक की दो हस्तप्रतें हैं । उनमें इस कृति के अलग अलग नाम मिलते 
हैं। देखो-पत्तनश्थ जन शान भण्डार सूचि ( ओरिएम्टल इन्ह्टीटयूटू वढोदरा द्वारा प्रकाशित ) ए० ६५ याँ तथा ११४ वाँ ॥ 
'. पाटण संघवी पाडे की ताडपन्नीय प्रति सें २३५०० शोक प्रमाण है ।। 
७. अक्खाणयमणिको्स एयं जो पठइ कुणई जहजोगं। देविंद्साहुमदियं अइरा सो रद्द भपवर्ग । (आख्यानकमणिकोश) 
ता मा कुणसु कसाए इंदियवसगों व सा तुम होस। देखिद्साइुमहियं सिधसोकर्ख जेण पायिद्धिसि॥ (आत्मबोधकुलक) 


८ | प्रस्तावना 


नाम देवेन्द्रगणि और नेमिचन्द्रसूरि भी मिलता 'हैं। संभव है कि आचायेपदवी के बाद स्वायत्त प्रतिओं में और नई लिखी 
जानेवाली प्रतिओं में उन्होंने स्व्य अपना नाम नेमिचन्द्रसूरि लिखवाया हो या उनके शिष्योंने भक्तिवश ऐसा किया हो। 
उत्तराध्ययनसूत्रवृत्ति आचायेश्री विजयोमंगसूरि द्वारा संपादित हो चुकी है । इस कृत्ति में मूल सूत्र की व्याख्या तो 
संस्कृत में है किन्तु तदन्तगेत कथाओं की रचना प्राकृत भाषा में है। 'रनचूडकथा”' नामक गद्यपद्ात्मक प्राकृत भाषा का ग्रन्थ 
उन्होंने गणीपद्‌ की प्राप्ति के बाद ही लिखा है । उत्तराध्ययन वृत्ति की तरह ही इस ग्रन्थ की भो देविदगणी (देवेन्द्रगणी) 
और नेमिचंदसूरि (नेमिचन्द्रसूरि) इन दो नामों का उल्लेख करनेबाली ताडपत्रीय प्रतियां मिल्तो हैं । देखो, बिजयकुमुदसूरि 
सम्पादित' (श्री तपागच्छ जैन संघ-खंभात-द्वारा प्रकाशित) प्रस्तुत ग्रन्थ (रयणचूडरायचर्रियं) की प्रशस्ति के प्रत्यन्तर । 
इस संपादन में अनुपयुक्त खेतरवसी पाडा पाटग-भण्डार की ताडपन्रीय प्रति में ग्रन्थकार का नाम नेमिचन्द्रसूरि लिखा हुआ 
है। महावीरचरित्र गद्यपयात्मक प्राकृत भाषा में रचना है। इसका रचनासंवत्‌ ११७१ है। यहं ग्रन्थ भी हमारे पूथ्य गुरुवये 
मुनिश्री चतुरविजयजी द्वारा सम्पादित हो कर आत्मानंदसभा, भावनगर द्वारा प्रकाशित हो चुका है। उपर बताई गई पांच 
कृतियों में से दो कृतियाँ गणिपद के पूष और दो कृतियाँ गणिपद के बाद और एक कृति आचाय पद के बाद की रचना है 
इसके अतिरिक्त देवन्द्रसाधु-देवेन्द्रगगी-नेमिचन्द्रसूरि के विषय में विशेष जानकारी हमें उपलब्ध नही है। मूल ग्रन्थकार की 
पूर्वापर श्रमणपरम्परा में से कुछ अन्य जानकारी भी मिलने की संभावना है । परन्तु हम यहां इतने से संतुष्ट हो जाते हैं । 


आख्यानकमणिकोशहत्ति 


प्रस्तुत वृत्ति का छोक प्रमाण, रचनास्थल, रचनासंवत्‌ और उस समय के शासक राजा आदि का परिचय आगे 
वृत्तिकार के परिचय में दिये गये परिचयप्रशस्ति के सारांशसे जान लेना चाहिए । 


मूल गाथा की वृत्ति संस्कृत भाषा में है | ग्रन्थ गत १२७ आखझ्यानकों में से १४७, १७, २३, ३९, ४२, ६४, 
१०९, १२१, १२२, और १२४ ये दस आख्यानकों को छोड़ शोष ११७ आख्यानकों ( ७३ वाँ भावश्किारख्यानक में 
अवान्तर कथा के रूप में आनेवाला चारुदत्तचरिउ को छोड ) की रचना प्राकृत भाषा में है । इस में से प्राकृतगथ में रचा 
हुआ ४७ वाँ चंड्चूडाख्यान और प्राकृत भाषा में उपेन्द्रवज़ा छंद में रचा हुआ १२३ क्रमाडूवाला पार्श्राख्यान के अति- 
रिक्त रोष ११५ आख्यानकों की रचना प्राकृत भाषा के आर्या छंद में है। कहीं कहीं अन्य छंदों के भी प्रयोग हैं परन्तु वह 
बहुत कम मात्रा में है। साथ ही प्रत्येक अधिकार के अंत में उन अधिकारों के विषयधोतक एक एक वसन्ततिलका छंद भी 


१. देवेन्द्रगणिल्षेमामुद्धतवान्‌ बृक्तिकां तदिनेयः । गुरुसोदयश्रीमन्सुनिचन्द्राचार्यवचनेन ॥  केंटॉंग ऑफ पामलीफ मेन्युस्कीप्ट्स 
इन द शान्तिनाथ जैन अण्डार केंबे” ओरीयेन्टल इन्स्टोट्यूट-वडोदरा द्वारा प्रकाशित पए० ११३, ११४ । श्रों नेमिचन्द्रसूरिरुद्धतवान 
यूकिकां तद्विनियः ।- वही पए० ११९ । संघवी पाड़ा भण्डार-पाटण के क्रमाझु ३६३ में तथा संघ भण्डार पाटण के क्रमाछु ५२ में 
नेमिचन्द्रसूरि नाम है जब कि संघवी पाडा भण्डार-पाटण क्रमाइ ३८७ तथा तपागश्छ भण्डार पाटण क्रमाछु ११ में देवेन्द्रगणणि नाम 
मिलता है। ये सभौ प्रतियाँ ताडपत्र पर लिखी हुई है ॥ 


२. प्रस्तावना के छेखक ने पग्रन्थकार नेमिचन्द्रसूरि को सड॒कश्तिक आशख्यानकमणिकोश के कर्ता बताया है । यह ठीक नहीं कारण 
नेमिचन्द्सुरिने तो केवल ५२ गाथावाला मूल ग्रन्थ ही रचा है। साथ ही इसी प्रस्तावना के डेखकने नेमिचन्द्रीय महावीरचरित्र क 
रचनासंवत्‌ ११४० बताया है । यह भी ठीक नहीं उसका रचनासंवत्‌ ११४१ है । उनका यह कहना भी ठीक नहीं कि उनमें 
उपलब्ध प्रतिओं के अतिरिक्त उस ग्रन्थ की अन्य कहीं भी प्रति नहीं मिलती । क्यों कि खेतरवर्सी पाडा जैन शान भण्डार-पाटण ईे 
इस की ताडपत्रीय श्रति सं. १२०९ में लिखी हुई मिलती है । देखो पत्तनस्थ जेन भाण्डागारीय ग्रन्यसूची ओरियेन्टल इन्स्टीट्यूट 
वडोदरा द्वारा प्रकाशित पृ. २८९-९० ॥ 


आख्यानकमणिकोशबृत्ति (९ 


संस्कृत भाषा में दिये हैं । इसके अतिरिक्त बृत्तिकार का मंगल और उनकी प्रशस्ति संस्क्रत के विविध छंदो में है। इस 
प्रकार वृत्ति की भाषा संस्कृत प्राकृत और अपन्नंश होते हुए भी ग्रन्थ का बडा हिस्सा प्राकृत में ही रचा हुआ है। 

उपरोक्त प्राकृतेतर भाषानिबद्ध दस आख्यानकों में से १३, १७ और १२४ वें आखयानकों कौ रचना संस्कृत गद्य 
में है। शेष सात में से ३९, ६४, और १०९ क्रमांक वाले आख्यानक संस्कृत के अनुष्टुप्‌ छेद में है। १२२ वाँ भब्य- 
कुठ्ुम्बाख्यानक “प्रबोधिनी” नामक छँद में है प्रवोधिनी का परिचय आचाये हेमचन्द्रीय छंदोनुशासन में मिलता है। इस छंद 
को जयकोर्ति ने 'विबोधिता' कहा है। दृत्तरत्नाकर में इसके वियोगिनी, अपरवक्‍त्र, मुरुठी, ललिता और शिखामणी ऐसे 
पांच नाम मिलते हैं। और उन्दःकौस्तुभ में इसका 'सुन्दरा” नाम आया है। यह छंद मात्रावत्त और वैवृत्त जाति का 
है। शेष तीन में से २३ और ४२ क्रमाडुवाले दा आख्यानक अपक्ष॑श में हैं (इस के उपरान्त ७३ वाँ भावश्किाख्यान में 
अवान्तरकथा के रूप में आया हुआ चारुदत्तचरिंड की रचना भी अपम्रंश में है। इस प्रकार इस ग्रन्थ के तीन आख्यानक 
अपश्रंश में है)। १२१ क्रमाहु वाला कुछानन्दास्यानक आर्या छंद में है। इसकी ५० गाथाएँ है। प्रत्येक गाथा का पूर्वारद 
संस्कृत में और उत्तराद्ध प्राकृत में है। अतः इस की भाषा संस्कृत-प्राकृत है । 


२० वाँ रुक्मिण्याख्यानक और २१ वाँ मध्वाख्यानक की एक ही कथा है। अतः आख्यानकों की संख्या १२७ 
होते हुए भी आख्यानक १२६ ही है। 

१० वें क्रमाइवाला चन्दना्याख्यानक तथा ६५ वां कंबलसंबलाख्यानक इन दो को दृत्तिकारने नेमिचन्द्रमूरिकृत 
महावीरचरित में से अक्षरशः गुरु के बहुमानार्थ लिया है। यह बात वृत्तिकारने आख्पानकों के अन्त में की है। ३२ वें 
क्रमाइुवाला बकुलाख्यानक की विशेष घटना जानने के लिए वृत्तिकारने नेमिचन्द्रसूरि कृत 'रलचूडकथा' को देखने का निर्देश 
दिया है। इसके अतिरिक्त १९ आख्यानकों के अन्त में उन आख्यानकों के अन्तगेत की गई कथाओं के विषय में विशेष 
जानकारी के लिए प्रंथान्तर को देखने का निर्देश दिया है इससे और इस ग्रन्थ की सुभाषित गाथाओं में से कुछ गाथाएँ 
प्राचीन ग्रन्थों की या मौखिक परम्परा की होगी'-एसा भी अनुमान होता है अतः यह ग्रन्थ एतदविषयंक पूर्व साहित्य के 
असर से अछूता नहीं है । 

वृत्तिकारने जिन १९ आख्यानकों के अंत में कथा के विशेष विवरण के लिये ग्रन्थांतरों को देखने की सिफारिश की 
है-वहू इस प्रकार है-आख्यानकक्रमांक १४ और ११३ वें के अंत में रामचरित देखने का निर्देश है। यहां संभवतः 
विमलसूरिकृत पठमचरिय अभिग्रेत है। १९, २०-२१ और ११० वें आख्यानक की कथा हरिवंश नामक ग्रन्थ में देखने 
का निर्देश है। यह हरिवंरा ग्रन्थ भी विमलसूरि का होना चाहिये | आज यह ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है किन्तु इसका उल्लेख 
दाक्षिण्यचिह्न उद्योतनसूरिकृत कुबलयमाला के प्रारंभ में कविवर्णन में मिलता है। ५६ वां आख्यानक् आवश्यक में, ६६ वां 
आवश्यकविवरण में, ११२ वाँ उत्तराध्ययन में, ३६ वाँ निशीथ में, /७ और १२४ वें आरुयानक को क्रमशः 'मूलावश्यक- 
गत सत्तार्विशतिभवनिवद्ध वीरचरित' एवं “वीरबृहचरित' में देखने का निर्देश किया है। संभव है, यह दोनों वीरचरित आवश्यक- 
गत अभिप्रेत हो । ४७६, ५३, ७१ और १०१ क्रमाझूवाले चार आख्यानकों को 'प्रन्थान्तरों' में तथा ७७, ९८, ९९ 
और ११५ क्रमाझू वाले चार आखूयानकों को क्रमशः समय, सिद्धान्त (गा. १७ में) और श्रुत में देखलेने का निर्देश है । 


सुल्सकल्षाणु में ग्रन्थान्तराबतारितपाठ्योतक “भणियं च' इस प्रकार की उत्थानिका के साथ अत्रतरित की हैं । मूलशुद्धिटीका का 
रचनाससय वि से ११४४ का है। जब कि श्रस्तुत बृक्ति की रचना ११९० की है , जिस प्रकार ये दश गाथाएँ देवचन्द्रसूरि से 
पूवे की निश्चित होती है बसे ही अन्य गायाएँ भो पूर्व प्रवाद से चली आती द्वों तो यह असंभव नहीं ॥ 


१० ] प्रस्तावना 


उक्त १९, और क्रमांक ३२ वाँ इन २० आख्यानकों के अतिरिक्त शेष १०६ आखूयानकों में भी कुछ आख्यानक 
ऐसे हैं जिनमें प्रतिपाथ विषय के प्रसंग को छोडकर शेष प्रसंगों का विवरण संक्षिप्त है। 


प्रभ्थणत १२७ आख्यानकों में से कुछ आख्यानक प्रचलित जैन परम्परा के ढंग से, कुछ कुक्कुटाब्यानक (१०९) 
जैसे अनैन परम्परा के पौराणिक ढंग से और कुछ लौकिक इृश्टान्तों का अनुकरण करते हुए लिखे गये हैं। इन सभी आख्या- 
नकों में सांप्रदायिक संस्कार का प्रभाव देखा जाता है । 


रोहिण्याख्यानक (१५) की कथावस्तु, ननन्‍्दोपाख्यान नामक लघुरचना के प्राचीन प्रवाह की घोतक है । अन्य लेखकों 
के जिन नन्‍्दोपाख्यानों को हमने देखा' है वे प्रस्तुत ग्रत्थ से अर्वाचीन ही माछ्म होते हैं । फिर भी इस कथा का प्रवाह 
प्रस्तुत ग्रन्थ से भी प्राचीन होगा ही । अभयाख्यानक (४) में चण्डप्रयोत राजा अपनी पुत्री वासवदत्ता को संगीत सिखाने 
के लिये उदयन को कहता है (गा. २२९ से २३६), यह घटना आवश्यकचूर्णि में भी मिलती है। इसी तरह की कथा 
बिल्हण कवि के विषय में भौ मिलती है, यह कथा बहुत समय बाद की है। इसमें नायक बिल्हण को अंधा और नायिका 
को कोढी बताया है जब कि यहाँ नायक को कोढी और नायिका को कानी बताई है । बाकी दानों ही रचनाओं में राजा 
अपनी पुत्री को विद्याभ्यास सिखाना चाहता है किन्तु गुरु और शिष्या के मुखदशन से ये एक दूसरों में आसक्त न हो जाय 
इसलिए प्रत्येक को अन्य के विकलांग होने की बात कहकर एक दूसरे का मुखदशन वम्ये बताकर दोनों के बीच पर्दा 
डालर दिया जाता है किन्तु बाद में भेद खुल जाता है । दानों परस्पर प्रेम करने लग जाते हैं और बाद में विवाह भी हो 
जाता है। इस तरह के अनेक पू्वप्रवाह ेखक को मिले होंगे | प्रत्येक आर्यानक कौ कथावस्तु को अन्यान्य साहित्य के 
साथ तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाय तो अनेक बातें जानने को मिल सकती हैं। समयाभाव से हम इस सामग्री से पाठकों 
को वंचित रख रहे हैं, यह हमारी मजबूरी है । 


प्रस्तुत रचना का समय गुजरात के इतिहास का सुवर्ण युग था। इस युग में गौजेरवीरों, राजनीतिज्ञों, महाजनों और 
कलागुरुओं ने अपने-अपने क्षेत्र में सिद्धियाँ प्राप्त की थीं। इस बात के सेंकडों प्रमाण आज विद्यमान हैं। इसी प्रकार 
गुजरेश्वर जयसिंहदेव के विद्या्रेम से विशेष प्रोत्साहित होकर जैन-अजैन विद्वानोने सैकड़ों मौलिक रचनाएँ देकर जगत्‌ को 
चिरऋणी कर दिया है | ऐसे अजोड सारस्वत युगमें जैन श्रमणोंने उद्युक्त हो कर तत्जज्ञान, योग, काब्यशात्र, व्याकरण आदि 
विविध विषयों के उच्चकोटि के ग्रन्थों का निर्माण किया है| इतना ही नहीं आम प्रजा के जीवनस्तर को धार्मिक, नेतिक 
और परोपकारी बनाने की दृष्टि से उपदेशात्मक एवं धर्मकथात्मक सैकडों ग्रन्थों का निर्माण किया है। संस्कृत के सिवाय 
प्राकृत, अपभ्रश एवं गुजराती भाषा में ग्रन्थों का निर्माण होने से उस साहित्य का महत्त्व और भी बढ़ गया है। 


प्रस्तुत ग्रन्थ का अधिकांश प्राकृत में ही है | इनमें तोन कथानकों की रचना अपश्रश में की है। ग्राकृत कथानकों 
में भी कहीं वर्णेन के रूप में और कहीं सुभाषितों के रूप में अपभ्रंश का प्रयोग किया है (देखो परिशिष्ट 9 था)। 
प्रस्तुत ग्रन्थ में प्राकृत भाषा का कोश बनाने में उपयोगी अगप्रसिद्ध देश्य शब्द और प्राकृत शब्द भी ठीक-ठीक प्रमाण में 
मिले हैं (देखो परिशिष्ट ३)। इस दृष्टि से भाषाशात्र के अभ्यासियों के लिए यह ग्रन्थ कम मद्दत्व का नहीं है । 


काव्यशास्र के अभ्यासियों के लिए भी इस ग्रन्थ में प्रयुक्त विरोधाभासालंकार, गृहीतमुक्तपदालंकार, श्लेषालंकार 
भादि अलंकार, वणेक (देखो परिशिष्ट ५ बाँ) संवाद और प्रदेलिका आदि ज्ञातब्य सामग्री अवश्य उपलब्ध होगी । 


१. ननन्‍्दोपाण्यान की जेन-अजेन इहृतियां संस्कृत, | ब्राचीन गुजराती एवं राजस्थानी भाषा में पिलती हैं।। 


आख्यानकमणिकोशाबूत्ति और बृत्तिकार आम्रदेवसूरि [११ 


अहिंसा, सत्य, दान, तपथ्चरण आदि उपदेशात्मक और प्रेरणात्मक सामग्री भी इस में पर्याप्त मात्रा में है। साथ ही 
विविध विषयों की सुभाषित गाथाएँ और सुक्त, ग्रन्थ और प्रन्थकार के गौरव में चार चाँद लगा देते हैं (देखो परिशिष्ट 
७--और ८ बाँ)। 

संस्कृत-प्राकृत और अपभश्रंश की गद्-पध्ध रचनाओं में वृत्तिकार की सिद्धहस्तता सिद्ध है ही तथापि १२१ वें 
कुलानन्दास्यानक (जिसका पूर्वाद्वे संस्कृत में और उत्तराद्र प्राकृत में है) तो उनकी वैविध्यप्रियता और सिद्धकवित्त् 
का परिचायक है । 

प्रस्तुत रचना में संस्क्रतरूप वज्रस्वामि के स्थानपर वैरसामि ऐसा प्रयोग संस्कृत भाषा के बीच किया है। (देखो 
' वैरस्वाम्याख्यानक ” पृ. १७०-१७१) | तथा “मुद्नत्यश्रृण्यजल मणकशृतिविधौ पश्य सेज्जेमदो5पि ” ( प्रृ. ३२१ पद्य 
३३४ वाँ ) इस संस्कृत पद्च में मणक और सेज्जभव इन दो प्राकृत के रूढ नामों का प्रयोग किया है। पृ. 9७८ गाथा 
५९ में आये हुए “अब्मि्ट ” शब्द में विभक्ति का लोप हुआ है! | प्रृ. १४० गाथा ३, पृ. १४१ गा. २७ में आये 
हुए “अरिहदासी' शब्द में द्विर्भाव हुआ है । 

प्रस्तुत वृत्तिगत कथानकों में कई स्थान पर गाथाओंका प्रथम चरण, चतुर्थ चरण और उत्तराद्र ( तीसरा और चौथा 
चरण ) ध्रुवषदात्मक मिलता है। यह पद्धति महाभारत पुराण आदि संस्कृत ग्रन्थों में, तथा उत्तराध्ययन सूत्र आदि प्राकृत 
आगमों में एवं चरित्र ग्रन्थों में आम तौर पर अपनाई गई है। 

किसी भी संप्रदायगत कथा साहित्य में उस की परम्परागत मान्यता का असर प्रत्यक्ष या परोक्ष में होना स्वाभाविक 
ही है यानी उस-उस संप्रदाय के देव, गुरु, धर्म विषयक शुद्ध मान्यता को समझाने वाला भाव कथावस्तु में आता ही है । 
फिर भी इस महान ग्रन्थ में से कथासाहित्य के विविध पहलुओं की दिग्दशेक विविध सामग्री अभ्यासियों को अवश्य प्राप्त 
होगी, यह निर्विवाद है । 
आखयानक्मणिकोश के हृत्तिकार आम्रदेवद्धरि 

आम्रदेवसूरि ने ग्रन्थ प्रशस्ति के १ से १३ पद्यों में अपने गच्छ तथा पूवेवर्ती आचाये देवसूरि, अजितसूरि, आनन्दसूरि 
और इस ग्रन्थ के कर्ता नेमिचन्द्रसूरि के संबन्ध में विशेष जानकारी न दे कर केवल उनके नामों का ही स्मरण किया है। 
इस से इन आचायों का पारस्परिक क्या सबनन्‍्ध था यह भी स्पष्ट नहीं होता । यहाँ केवल मूलकार की अन्य रचनाओं का 
उल्लेख मात्र है । खुद बृत्तिकार के संब्रन्‍ध में भी इतना ही जाना जासकृता है कि वे मूलकार नेमिचन्द्रसूरि के गुरुभाई 
जिनचन्द्रसूरि के शिष्य तथा श्रीचन्द्रसूरि के बडे गुरुभाई थे। बृत्तिकार के नेमिचन्द्र, गुणाकर और पार्देव नामक तीन 
शिष्य थे। जो प्रस्तुत रचना में लेखन आदि में सहायक थे ( प्रशस्ति पच्य ३०--३ १ )। इतना होने पर भी बवृत्तिकार के 
शिष्य नेमिचन्द्रचित प्राकृतभाषानिबद्ध अनन्तनाथचरित ( अप्रकाशित ) की प्रशस्ति में उपरिनिर्दिष्ट आचारयों का क्रम इस 
प्रकार है-- 


क+--ककनक ४७०६५७०-००+ अज+. +अज- अ+ 





१-२. यहाँ केबल उदाहरणस्थरूप ही स्थल बताया है । और अन्य उद्‌वृत्तस्वर संधी आदि प्रयोग भी प्रस्तुत भ्रन्थ में 
मिलते हैं ॥ दे. देखो पू २६९-२७० गा. १९ से २८॥ ७४. देखो पृ ५० था १०५ से १०८, पू ११५ गा. १९-२४, 
पृ, २३३ गा. १४४-४९, पू, २६९-७० गा. १९-२८, पूं. २७२ गा, १८-२२ और पृ, २६७ गा. १५३-६० ॥ ५, देखो 
पृ. १९ गा. ४५-५२, पृ, ६५-६६ गा. २९-३२, ऐप. ९६ गा, ३०-३२, पृ. १२५ गा. ५४-५७, पं, १६३ गा. २३-२५, 
पृ, १९३ गा ५०-५१, पृ. २०७ गां ४७७२-७७, पू, २०८-९ गा. ५३६-३८, एप. २२०४-२५ गा. ९१-९७, और पृ. ३३१ 
या. ६९-७१ ॥ ह 

६. विकम संवत्‌ १२१६ में वद्धेमानपुर में रचे गये इस बरिश्रप्रन्थ की सं, १४९४ में कागज पर छिखी गई एकमात्र प्रति 
हमें मिली है ॥ । 


१२ ] प्रस्तावना 
बृहद्वच्छीय देवसूरिके बंशमे 
| 
अजितदेवसूरि 


| 
आनन्दसूरि (पद्धर ) 


बजा ऑअंचिितथ---+--++++++3++>«+ 7४५ चना ७+>+ट-ब>ज>ज+ 4 >+।. + -++“/“+ -“७+०++-++-+२२३2६8०२२२+०++/++.ह४ ४७ वन>-++>+>नन>न 


| | 
१ नेमिचन्द्रसूरि (पह्धर ) २ प्रयोतनसूरि ( पहुघर ) ३ जिनचन्द्रसूरि ( पश्घर ) 


(आ०म० को० मूलकार ) । 
की सा का ७० 559 आम लक आज फल 2 नम & 
१ आम्रदेवसूरि (शिष्य ) २ श्रीचन्द्रसूरि ( शिष्य ) 


(आ०म०को० वृत्तिकार ) । 
। हरिभद्रसूरि (शिष्य ) 


बी आस 9 इक जि नल लग आह गज 2 2] 


| | | | । | 
१ हरिभिद्रसृ, २ विजयसेनसू. ३ नेमिचन्द्रसू, ४ यशोदेवर्सू, ५ गुणाकर ६ पार्श्देव 
(मुख्यपद्टधर ) (शिष्य-पहश्घर ) (शिष्य-पह्धर ) (शि०-प० ) (शिष्य ) (शिष्य ) 
| 
समन्तभद्गवसूरि 





नीयत» 3 नल स- ८4 नशन3+ नम 


उपर लिखित पट्टयंत्र जिस अनन्तनाथचरित की प्रशस्ति से लिया गया है उस प्रशस्ति की उपयोगी आद्य १८ गाथाएं 
और ४८ वीं गाथा वाचकों की अनुकूलता के लिए दे रहा हं-- 
अत्थि समुन्नयसाहो सब्बुत्तमपत्तविरइयच्छाओ । सुकइजुओ बहुसठणो सिरिवडगच्छो वरतरु व्व ॥ १॥ 
सुमणसमुर्णिद्ससेवियकमो नायनिहियमणवित्ती । तम्मि पहू उपन्नो गुरु व्व सिरिदेवद्धूरि त्ति ॥ २ ॥ 
तस्स5लयम्मि जाओ निग्गंथसिरोमणो सुवित्तो वि । सिरिअजियदेवद्चूरी कयंतबुद्धी वि कार॒णिओ ॥ ३॥ 
तो संजाया आणंदस्रिणो जणियजणमणाणंदा । तत्तो य तिनि जाया मुणीसरा भुवणविक्खाया ॥ 9 ॥ 
सिरिनेमिचंदसरी पढमो तेसि न केवछाणं पि । अवराण वि समयसहस्सदेसयाणं मुर्णिदाणं ॥ ५ ॥ 
जेण लहुवीरचरियं रइय तह उत्तरज्ञयणवित्ती । अक्खाणयमणिक्रोसो य रयणचूडो य छलियपओ ॥ < ॥ 
बीओ बीयसमुग्गयचंदकलानिकलंकतणुजट्टी । सिरिपज्जोयणद्वरी तिव्वतवचरणकरणरओ ॥ ७ ॥ 
तइ्या य अमयरसवरिससरिससदेसणाजणाणंदा । ज्ञिणचंदस्तरिपहुणो ससहरकरसरिसजसपसरा ॥ ८ ॥ 
सच्छत्त-गुरुत्त-गहीरयाहिं लीलाए जेहि निञ्नेणिया | फलिहमणि-गयणवित्थर-दुद्धोदहिणो गुरुतरा वि ॥ ९ ॥ 
तो तेहिं दुलि विहिया निययपए सूरिणो भुवणग(म )हिया। सरछा विहूसिरचित्ता समुन्नया दंतिदंत व्व ॥ १०॥ 
१. इन अजितदेवसूरि के पूर्वाचायों की परम्परा का क्रम आगे मूलकार नेमिचन्द्रयूरि के परिचय में दे दिया है ॥ 
२. ये हरिभद्रवूरि आम्रदेवसूरि के गृुदभाई श्रीचन्द्रसूरि के शिष्य है ॥। 
३. अनन्तनाथचरित के कर्ता ॥ 
४-५, इन दो आचायोने आ० नेमिचन्द्रीय अनन्तनाथचरित का संशोधन किया ॥ 


आख्यानकमणिकोशबृत्तिकार आम्रदेवसूरि (१३ 


सिरिअम्मएवसरी पढमों तेसि समस्सिरीभवर्ण । गुरुरयणरोहणगिरी सरस्सईवासवरकमल ॥ ११ ॥ 

जो अक्खाणयमणिफोसवित्तिवियरणकयत्थकयछोओ । सब्वोदारजणाणं चूडार्यणत्तमुब्बहइ ॥ १२ ॥ 
तह बीओ सिरिसिरिचंदस्धरिनामो मुणीसरो संतो । संतोसपरो स-परोवयारकरणेक्मणवित्ती ॥ १३॥ 
सिरिअम्म एवस्रीहि नियपए सूरिणो कया चठरो | हरिमदृसूरिनामों सिग्घकई पढमओ तेसि॥ १४ ॥ 
सिरिविजयसेणम्वरी बीओ ससितेयकित्तिभरभूरी । एगंतरोववासी तका-5लंकार-समयन्नू ॥ १५॥ 
उद्दामदेसणज्झुणिपडिबोहियसन्वथव्वविसरस्स । तस्स कणिट्टो सिरिनेमिचेदसूरी वि मंदमई ॥ १६ ॥ 
ताण तुरीओ जसदेवद्धरिनामो मुणीसरो महमं । लक्खण-छंदा-5छंकार-तक-साहित्त-समयन्नू ॥ १७ ॥ 
सिरिविजयसेणमुणिवद॒पयम्मि सिरिनेमिचंदस्रीहिं। ठविओो समेतमहाभिहाणसूरी गुणावासो ॥ १८ ॥ 


संसोहिय॑ च ससमय-परसमयन्नूदिं विउसतिलएहिं । जसदेवस्ध रिमुणिवइई-समंतमदाभिहाणेहिं ॥ 9८ ॥ 
बृत्तिकार आम्रदेवद्धरिने अपने तीन शिष्यों का नामोछ्ेख तो प्रस्तुत वृत्ति की प्रशस्ति म॑ं किया है। इनके अछावा 


जिन दो अपर शरिष्यों का उल्लेख अनन्तनाथचरित की प्रशस्तिम (गा. १५, १७) मिलता है वे हैं- यशोदेवसूरि और विजय- 
सेनसूरि। विजयसेनसूरि को उनके सब शिष्यों में प्रधान कह्टे गयें है । 


वृत्तिकार ने पांच शिष्यों में से तीन शिष्यों को अपने पट्टधधर के रूपमें स्थापित किये थे। किन्तु मुझ्य पद्रथर के स्थान 
पर अपने गुरुभाई श्रीचन्द्रसूरि के शिष्य आशुकवि हरिभद्रसूरि को स्थापित किये थे (देखो अनन्तच० प्र० गा. १४वीं )। 
इन आशुकवि हरिभद्रसूरि ने २० तीथेकरों के चरित्र की रचना की थी जिनमें नेमिनाथचरिड अपश्रेश में और मछिनाथचरिय 
तथा चंदप्पहचरियं प्राकृत में है । रोष अनुपलब्ध चरित्रों की भाषा का पता नहीं । आम्रदेवसूरि के द्वारा आख्यानकमणिकोशा- 
वृत्ति के अतिरिक्त अन्य किसी ग्रन्थ के रचे जाने का उछेख कहीं पर भी नहीं मिलता । स्वयं आम्रदेवसूरि के शिष्य नेमि- 
चन्द्रसूरि ने भी अपने अनन्तनाथचरित में आम्रदेवसूरि की केवल एक ही कृति आ० म० कोशशजत्ति का उल्लेख किया है 
( देखो अनन्तनाथच० प्रशस्ति गा. १२ वी*)। 


वृत्तिकार आम्रदेवसूरि ने अपने नहीं किन्तु अपने गुरुभाई श्रीचन्द्रसूरि के प्रकाण्ड विद्वान्‌ शिष्य हरिभद्रसूरि को अपने 
प्रधान पटूटधर के रूप में स्थापित किये इस बात का उल्लेख आम्रदेवसूरि के शिष्य नेमिचन्द्रसूरि ने अपने अनन्तनाथचरित 
की प्रशस्ति गा. १४ में किया है। इससे पूरे समुदायगत शिष्यमंडल्ी में से योग्यता देख कर तेजस्वी शिष्य को योग्य 
स्थान देने की आम्रदेवसूरि की विवेकशृत्ति साबित होती है तथा यह भी सिद्ध होता है कि उन्होंने अपने गच्छाधिपतित्व 
को सार्थक किया था | साथ ही नेमिचन्द्रसूरि में पाण्डित्य होते हुए भी वे गुरु के निणेय का बहुमान करते थे, विनीत थे 
और प्रतिभासंपन्न व्यक्ति के प्रति भक्तिसंपन्न भी थे-यह भी सिद्ध होता है। 


१, “ चउवीसइजिणपुंगवसुचरियरयणाभिरामसिंगारों । एसो विणेयदेसो जाओ हरिभहसूरि सि ॥ ”' 
दरिभद्रसूरिक्षत चंदष्पह्चचरियं (अप्रकाशित ) को प्रशस्तिगत गाया। 
“ विरश्यबहुप्पबंधो गुरुपयसरणोवलद्धसुदछेसों । एसो विणेयदेसो जाओ दरिभदसूरि सि ॥ “ 
--हरिभद्रस्‌रिकृत मल्लिनाहचरिय ( अप्रकाशित ) की प्रशस्तिगत इस गाथा से भी इनकी अनेक रचनाओं का प्रमाण मिलता है ॥ 
२, नेमिनाहवरिउ की ताडपश्नीय प्रति जेसलमेर के जिनभद्रसूरिज्ञानसंडार में है । अपर दूसरी विक्रम की सोलहवी €ाती में लिखी 
गई कागज की प्रति श्रीछालभाई दलपतभाई भारतीयसंस्कृतिविद्यामन्दिर, अहमदाबाद में है ॥ 


जिन ज चल 


१४ ] प्रस्तावना 


मुनिचन्द्रसूरि का उछिख आ. म. को. मूलकार नेमिचन्द्रसूरि ने अपने तीन ग्रन्थों में किया है किन्तु आ. म. को. के 
वृत्तिकार आम्रदेवसूरि ने तथा आम्रदेवसूरि के शिष्य नेमचन्द्रसूरि ने उनका उलछलेख नहीं किया । इस से यह अनुमान होता है कि 
बृहदगच्छीय समुदाय में विद्यमान गुरु-शिष्य-पट्टधर आदि की संख्या बहुत बडी थी । अत एव तत्ततू ग्रन्थकारों को अपनी 
परंपरा के उल्लेख में एक मर्यादा स्वीकृत करनी पडती थी। बृहृद्गच्छीय रत्नप्रभसूरि अपने नेमिनाहचरियं (प्राकृत, अप्रकाशित, 
रचनासं. १२३०) में एवं उपदेशमाढाशृत्ति (रचनासं. १२३८) में मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य वादिदेवसूरि के शिष्य के रूप 
में अपनी परम्परा बताते हैं। उक्त दोनों प्रशस्ति में वादिदेवसूरि के शिष्य भदेश्वरसूरि का पहधर के रूप में उनका उल्लेख है 
और वादिदेवसूरि के शिष्य विजयसेनसूरि का वादिदेवसूरि के गृहस्थावस्था के भाई के रूप में उछिख है । और इनके सिवाय 
बृहदगच्छीय अन्य आचार्यों का कोई परिचय नहीं मिलता । प्रस्तुत प्रस्तावना में आये हुए आचार्यों के नाम जैसे ही नाम 
अन्य कई प्रन्थों की प्रशस्तिओं म॑ आते हैं, इनमें से कौन भिन्न और कौन अभिन्न है यह---पद्टावलियों, प्रकाशित और 
अप्रकाशित ग्रन्थप्रशास्तियों, प्रबन्धों, रासों, एवं लेखसंग्रहों से खोज करने पर जाना जा सकता दहै। परंतु समयाभाव के 
कारण यह निणेय करना अभी संभव नहीं । 


प्रन्थकार आचार्यों के एवं उन के गच्छ, कुछ और समुदाय का पूरे परिचय के लिए क्रमबद्ध इतिहास तैयार किया 
जाय तो लेखकों, शोधकों की हमेशा की परेशानी दूर हो सकती है। इस सम्बन्ध में श्री मोहनलाल दलिचन्द देसाईने अथक 
परिश्रम कर के "जैन साहित्यनो संक्षिप इतिहास” नामक ग्रन्थ वर्षों पहले तैयार किया था किन्तु श्री देसाई को मिली हुई 
सामग्री अपूणे थी, उनके बाद प्राप्त सामग्रौ का समग्र रूप से अध्ययन कर के इतिद्दासग्रन्थ तैयार किया जाय तो एक महत्त्व- 
पूणे कार्य द्वोगा । श्री देसाई के बाद अल्पाधिक प्रमाण में एतद्विषयक प्रयत्न हुए हैं और हो रहे हैं परंतु सन्तोषजनक सामग्री 
वाले प्रन्थ की अपेक्षा बनी ही रही है। 


विक्रमसंवत्‌ ११९० में गुजे रेश्वर जयसिंहदेव के सुराज्य में धवलक्षक (धोलका-गुजरात ) नगर में ( प्रशस्तिपथ 
३२) मूलकार नेमिचन्द्रसूरि के आदेश से, शिष्य की और उद्योतन नामक श्रेष्ठी की भक्तियुक्त प्रार्थना से यशोनाग श्रेष्ठी 
की वसति में प्रारब्ध और अच्छुप्तनामक श्रेष्ठी की वसति में (प्र. प. ३३) समाप्त की गई आख्यानक्मणिकोश की वृत्ति 
केवल सवा नौ मास की अवधि में आम्रदेवसूरि ने रची है। ग्रन्थ का छोक प्रमाण १४००० है (प्र. प्र. ३४) । इतने 
कम समय में इस महान ग्रन्थ की रचना उनकी असाधारण प्रतिभा एवं पांडित्य की थोतक है । 


प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना के लिए प्राथेना करने वाले उद्योतन श्रेष्ठी के पूवजों का वणन इस प्रकार है-- 


मेदपाट (मेवाड ) प्रदेश में मारावल्ली गांव के अहुक नामक श्रेष्टी किसी कारणवश अपना घर छोड़कर आबू कौ 
तलहूटी के कासहूद नामक गांव में आकर रहे थे । अकक श्रेष्ठीन कासहृद में पौषधशाहा बनवाई । उन्हें सिद्धनाग नाम- 
का पुत्र था । सिद्धनाग को कासहृद गांव अनुकूल न होने के कारण सो धवलक्कक (धोलका) नामक नगर में आकर 
रहने लगा । घवलक्कक में मोढचेत्यगृह नामक जिनमंदिर में सिद्धनाग ने सीमंधघरजिन कौ मनोहर प्रतिमा बनवाकर स्थापित 
की । सिद्धनाग को बृद्धावस्था में उद्योतन नामका पुत्र हुआ। उसने आम्रदेवसूरि को प्रस्तुत बृत्ति की रचना के लिए 
प्राथना की थी ( प्रशस्ति पद्च १४ से २१) प्रशस्ति के १४ वे पथ में “यो मेदपाटाथ्युषितो5पि धीमान्‌ ” इस प्रकार 
का विशेषण अल्क श्रेष्ठी को दिया है। यह मेवाड प्रदेश के अधिकांश छोगों में बुद्धि का तत्व कम होने की तत्कालीन 
लोकमान्यता का सूचक है। 


आख्यानकमणिकोशबूत्तिकार आम्रदेवसूरि तथा इृत्तिप्रशस्तिसारांश [ १५ 


प्रस्तुत प्रन्थ का मुद्रणकार्य वाराणसी में हुआ है। प्राथमिक प्रूफ बाचन श्री पं. कपिलदेवजीने एवं अन्तिम प्रूफ 
वाचन भारतीय दहानों के गैभीर अभ्यासी श्री पं. दल्सुखभाई मालवणिया, ने कर के हमारा बोझ हलका किया है। अतः उन्हें 
घन्यवाद देता हूँ। इस प्रस्तावना का हिन्दी अनुवाद श्री रूपेन्द्र कुमारने किया है | वे भी हमारे धन्यवाद के पात्र हैं । 


चेत्रकृष्ण १ ता. २१-३-६२ निवेदक 
छुनसावाडा, मोटी पोल के सामने मुनिश्री पृण्यविजयजी की आज्ञानुसार 
जैन उपाश्रय, « विद्ृज्जनविनेय 


अहमदाबाद पे, अप्रताल मोहनलाल, भोजक 


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एफ & ४६पते९१५,० (पॉए्डी पं5007ए ० एवं, पगरां3 $ ७909 १&707507४८९१, 59 5८, हू, पथ्ातांवुर्पं ॥॥ फ्ां3 ठ्॑धेल्था 
890ए7 0०6 (06७ २४६5930]828८8790, ०६ 509200ए9,! ००79056९0 ॥9 959 &. 7. 


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एड८8 ज0 45 ]4९०८ ए९००ए७ 83 एंगह )१३०७, 77६8०५००००४॥८०,२ 07009, & इ९/एथा, ४79 हिंद्वा008079, & ए९०7ए एटा 
प्राश्लाभ्ाई, 4॥6 5009 ० 5द9॥008073% 43 ए९/ए एछफ्परोबा ग. ]॥6० बुभा8 ॥0९४प७ 804 59९००] २६३४४ 06४॥॥86 
जशांपा 6 ॥6 ० 5409॥2897%2 शए९7९ ०07790560. वा ०प7 8८८००घ४६, ५९ 92080९  ०2९८ज्र०९७३॥ (९ गरा०0(8९/ भात ध' 
50॥ हिद0038079 ( 99. 33-84) 48 70(०ए७०६ए, 70 उढ्यांघतड गाल ० धा6 त90696० ७९४प्ल्शा बताएं बाते 
एआहडंंद 5९ 5प्राहु ॥ धाीढ€ 5०९४४ 97 >९६६३०४ जाप 8 5078-50एप९१८,. [॥6 ग्रा०0.0९० 0 $5]0099973 ६८९३ 
(0 एशडप6त6 गला 8ता ॥07 (एंड 6 हि 6 8 प0गट बाते (6 50 ॥80093 ० धा6 हथव500496४$ 0 ज़070फ 
76980768 &॥0 ॥6. 


6 ४९७४४ पिधीढए धाए2838563 6९ १6४7४००८ए ० हांशंगह हां5 (० 6 छ0दए एछए 7€शिपाह ८0 2०००0पाए३ 
०83 एागायांध एथ॥60. (ब093509793, एथ्ावथाद्व0एढ, 6. ठांढ् गप्ा गे पी ठतव6० ० ( गाते ७ एणाशाए0737ए 
0) 04०9, थ्याते ० ऐैपि40९2९9,५ 3. एागाट6 णी0 एछ33 3 थी, [४06 7224 765प्(5 ० हांपंगहु पा१०आ/2०९ 
0004 ६0 7०8 26 ॥0507४९व 9७ए धी8 ४09 ० ०076 ६४०४7. 


॥स्‍७ फ्रााव ३0क्राटद78 4॥7507080658 ४6 876४४॥९55 04 धरा6 ए/ए:प९ 0 (785६४ ज्ञांपी 50763 ० ० फैश॥३०फएथाधप 
(क्‍92ए४290270, वृष९९॥ 07 डंंग8 2२३)३ ), जाई (वृष्टशा ० रिव्वा)3 ), रिणाएं, ज्ञाँलि ० 3 गरल्ादात्रा ० 78०॥79५(79, 
(97व0'भा5, एा६6 ० 5प्र0श5$॥व% भाते 5प्रा0त3, एशॉं४2 ० 3 ६7906 


बरग6 0 ट9. ्रीप५7४९९५७ 6 गराढाप$ 0 7289० 00 एल्शथाट९, जंग €ऋगाए6९3 ० 3पञी ए73०0063 0 
हभादजा4, ४5394, 52वा (५३४पर०९९० ), शाध्यार्ा ( 0॥ा9;शाएं गा 3 छाल्संग्पड एच ), रिपाटणांगा धा० वृए०९॥ 
० २४६5घ१९ए०, 2४0 )६80॥7, ( एि2वैफ्णागब था 3 एाल्संत्पड णांएतीा ).,. 6 ३2९०००प्ा३ ० ४३5०१९९३, रिपटधायांएाो बात 
2780एणप्णा4 पाए ०6४ एणराएथश९त ज्ञांप्रा 036 (06 ५४३5ए०१९८ए०ीाए0तत] 04 5078॥2906559. 


वएढ6 णि ढाभफुश' ग्रीप5ए7४९९४ छिी5एथ०ाद, 6 ग्राशा।& 327१6 फल्ागयतव 0765 3८0075, शो] 5007063 6 
फाथ्याथोर8, उिध्याग4 एथोधाग१एथाएं शाते वीह्एए79,. 6 डांंजा ता०एटा प्रीपषएथा९०5 थार प्रथोप९ ० उाहा। #थंगा 
(87श:0ए७ ), 4. €. भिंध 9 6 ऐश जांगलए6९5 ० वुक्कंगरेंआ॥, 50763 0 शिछ्यरोी८३ शाते 50]854 ४/6 7९(९४९१ ६०. 
5956, ज्ञां6 0 रि३फरी० िद6०  पाढ एशथंहा रण शिष्य ४. रिभव्ुंग्शा0% 75 ०» एट०ए १०ए०८९०१ गा0त्ज़ढः 0 
57009. &॥6 5 76ए९१ (० जा पा७ 5पाद्ाइ8988४04 ४270१ (06 5भा2प६ ६7895 ६०.९ 


वृपा€ 5९एशाए) ०0, ॥00एफ5 6 ग्रार्त॑5 0० 58९९ंाह आ0 34078 धा6 9386 04 2 गत्8 07 ४6 वैए०३ ता 
599एथभा0०॥387०, (6 एछपज़ो ० द/ए०9 शब्३९० थावे प्राढ ग्रीढि ० डतगत्परगद्वा/३, 76 50ए7 ण॑ 27क्‍7ग:१८पयद्वा& 
भातठे 80899, प।९ 507 ० 56708 4$ |0जा शा. भंव8 280075.९ 53एएशाए॥3ए३ 45 (6 शि005 अप॑07 ० 
97925828एथए507887079. 7 


4... ४85880]8४20877090 754 वण्वांशा एपपए7९, 927 & &, सबछ्गतांवुणए,, एफस्‍ाओल्त ॥ ॒रकढा5&]8 उधंप॥ ७7४ 008755, 500089प7 
(4949 8. 0. ) 
2, (०गाए%7० ६8979५9०४8 8000008६ 70 &980064४20589720227809 ( 7(7२. ) ० ]66र7280४, ए7. 64 8. 
3... $दव998078 8 7९७ालत ६० 70 5050६708980075, 0. 3, &30 5७७ 7(7९०ए., 97. 55 ६६ 
4, 00४892४7७ 8००070६४ ०0 १७8506९५४७ $50 एफस्‍देधापए0५ 06 सलब्त॥9979, ०8, एफ्र 07. 2. ऐे, ए9890४७ &50 $70 ६४0७ ऐर8६5 ८पक्कां, 
त्ठो 9. 404, २०. 4, 9. 343, 2080 8९९ ६6 8&८००घ४६ 6 ैद१९२९४ ॥7 06 [४8 06 7067४४७४७०:8 ०09 ६५7०७ 0६६8760॥78787&- 
84078, 8250 7 छ?,, 99. 7॥ £ 
5, 50फ्रक्षाह्ववै8880९7७.. ( 2 688770089798 520 ९०१., 8ठघ्रा०7०४ए, ॥98-20) 9. 9. 455; 5&ए3फए897६7/2४80६४७ ( 5.8870009892 35&076, 
807089, ।98 ), 9. 54 
6. 50(एए४घ२४प 8७888, 600 ७0099897&78, 808 )ै7एए४४ ०7० 4( 
8०6७ 8080, 7२४४9 070३ २०. 7, 9. 360, २०. 77, 9. 235, 589ए2प/०४8ए७ 3 ऐशल//०त ० | एरब०9 5धंाध्रंप्व7३ॉ3 700008 
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3 हातेथाढा' (थाह8०१ | ब्शााह ी0जम2०5 बाते हुअतभाव$--74584873 ), ?8070(0879, & इशएथा ० & ४९३-विपंगह 
प्राशलाभा (प्रथ्परांपबांरकेटकायाबय ),.. थाते फऐपाइगबादेय,  थावे 96 ]860ए एक. दिद्वएथात ( एुद्धा।&70, 70067 
साप्ट्रापावे० ॥ ए. ?,), थाो। ० ज्ो0य ठबागल्ते प्रद्यां3 >ए ज़णारफांशह (6 उध2-ं798०. 


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पगर6 गांधग ७9: एएशॉं5९3 पी 80०00 7९5०३ 077९१ फएए एै०ठकुछ' 8008700 ० एी6 वुं॥३ ॥79386० ४ 
ल्शथ्यठ्रांगे ज०579, 776 गा३ए९९ हए6९3 ४076४ ० 89099, ०» एद्वोद्वोष्ड।0, 9607ए४)८७, &» एा/ह)70909! &॥0 )२०७॥०७, 
& एंदा प्रात ($6ञ्ग ), 77 ए॥6 5६07 ० छड:०० (9. 44, ए. 24), 70 3 320 शीश फिशिील' 8०८०पा 04 
ग४020002 870 वीं ए७)०ए९१३ वर2६85प्शात9य शाते 00638 प्रा8फ 7926 वोेधाए्शा) 70०7 रि8५०४७०४०७१०३ ( 7२०६४०८४०७ ) 
एज0९00ा ३९९॥३ ६0 926 8 एशटाश॥0606 0 808 €थ0767 ए०7<, २०४४४४०३४०१०-१)९७४॥६, 


लड़ (0 गु3 45 6 एछां0प५5 वुध्यंघ० प्राण, 6 (९३०४९४, णाी0 शा०्पात 9९७ १007 3200760, एपाध 06 00688॥06 
६० पा 55000 45 व087४८९०१ ग। (6 शाप लाए, ॥ पा 8०८०णा६ए 67 भमींड४, 3, 6. ४६४५१९०९३ 77989. 


वृफ़6 रेरएलाफ 09, 46४)$ क्षाँगी इ्ादजार8 थाते 5 8०00 टॉल्ट5 रफशा पात्पष्ठी] ए7282८066९१ ज्ञांधर0प 
चा0जांए& 7 9 पि। त6€था$ड, ग्मांड 8 ग0507४९१ 07 6 50097 0० 597ए9, (6 'ै्पाएथा 7पो९श',, ज्ञी)0 ए25 
$07॥ 0 #फएाडह8 2794 हएशभव0507 0 2368052., ॥6 ४097 ४0ए8 पीर 507फा20, ०0०ए०(६९९ ६० ]थ्रा॥३ थिंध 9४ 
778 5प॥250, 877४7860 उभंग॥% रि&009फ5055, ॥९09९१ ]्ा॥29. 70778 हणा।ह॥ ५० #7द77० 9705,2 3800 287९0 
६6 7767078708 ह 95 8020९ ६0 हए९ थाव३5ड ६0 उुध्ा)3 70705 07 पीशंा' 5098. ( फ्ंए85$ कज्रंदाी ६6 70775 
6०0०घी6 ९४६ ज्रांध्रण०ए0 शातिगांएड पालंए एप्रो5 ०0 ००0०४), 7॥35 श०ज3 (०४ ४3 38९, (6 770775 9700209 
०००१ 70६ ह९: 5एणीलिंशा। 70094 ६0 ॥ए९ ०0. ॥6 इ$क्चा2 ३०००७ ३3 2एशग्०७ ॥ (6 €थ०१ 8727:909- 
छ0599०% 2१० (फण्जां, ९3060 ४ ऐैण्ां एपण्जथएव]०१०)ी), पग्मॉ$ 2८८००णा पिपाछश' शौी0०स5$ ०: एए5)० ए95 7906 
जागयव 92९०४४५४७ शा3 80९०-॥0०९॥67 टाभ्याह20 3 6४९९ 7 9 जशञावतशा 0706 0 88078, #ि0एद))8 ज35 ॥॥ ९5एढ९ 7 
(७287॥008779-ए059% ( इटांशाल्ड ० ग्रापआंट, ंग्रहाह ), ॥॥65९ ९१0४5 3००७ &एप७०)०, 85008 &70 52797'2(, 
70693 77 थ्रालंशा उुद्यं33 ६९३४३, 5९९७ ६0 926 शिएए इशॉंब०ॉ८ ॥06४४/फ४ 50प7८63 2॥0 0९5९7ए७ 40 96 ४;॥€(४९४९० ६० 
9 8 50077 ० था हैिप्ा'फथा ए्रपोढए5, जी 35 65७०टांगीए 4776765078 4$ (6 ४6 ० 70067" ० $%7797०0 
2ए6७॥ 70 ६7९ 208५, (9. 84, पए. 27,42 ), 506 जछ33 दा0ज़ा 35 3674965777, 4., ९., 3६764६4877, 7]6 88॥06 $8 
830 47थ2४०)6 रा ९७ ३०८0प ० छषपादाबंत्परगदए8 हांप्णा थी एाध्णयरगंतरां$ड एु४४ ०ा 06ए९०0785808 
(8४६४४४७४7087%-8॥4593.% ॥॥6 0७8४, >>. 428, ए. 670, 59५७ परी पिच ेविशानंंणा 8०070 एपा6 0 
52992 789 796 7680 (07 “ राआ॥540 ”, ]., ९, (06 रा5009855078., (0एए॥00७8)ए ४४3 5९७०४ ६0 0० 2 76(/070006 
$0 २58004-८७४ए४ ज्रगगांटाी 8९3 507975(753 8&८८०एणा(, 


वप्न्‍र०७ जएलीपि वाए, 4625 ज़ांगी ऐशाली(ड ० वैल्था)।ह 6 ६९१०ांा३ 0 (6 उ॒भा)4 ७०7075 (888798 ) 
टाोइाए0079,९ ६06 507 ० 8 पराब्यंत-5९एथशाए 0 2» परधालाथां 08760 एऐी2॥9, थाते रिक्ष्याव709४2८०,९ 9 ह९३६ (6६ 
2697 रिह]2६709, 276 82वत 00 ॥४ए९ ए70065 गा 5प८) ६९००रा।83 ०0 ५॥6 ]79, 


|. 6 8४09 ० & कु ००णरणांहह 0 ऐं6० &55०70०ए जी०० कैशावेएसान 35 97०३०ॉ४ंघ६३, &7त (४० इंगवृणएए ०06 87०98 800५९ (४७ 
००7, ७९०, &76 ए९१]-]८00णग्र ६0 उक्कंप६ 385ए80८8 . 0९780प76०, 870 ६0 6 ९5५८४ ०7 ऐेक्योइए78,  57७0॥28 &00 20898, . 8०6 
&080 09806827758-9॥8 0६ १७८४०ए/2/०080०६879७ ( ०००००४९१ 47 ॥82 & .. 70. ), 99. 489 [(, 


2. 0६ क्यंफ धं5 ७० ४०09।०४ - उदिण्णजोहाउलसिद्धसेणो स पत्थियो णिज्जियसक्तुसेणो । समंततो साहुसुदृष्पयारे अकासि अंधे 
दमिले य घोरे ॥ ३२८९ ॥ 776 एणणए., 98३०० ०॥ ९छगॉ० 00७४४ ०7 73 ४८७०, 8:9:०9 - से सम्प्रतिनामा पार्थिवः अन्ध्रान्‌ 


दरविडान्‌ चदाब्दादू महाराष्ट्र-कुड़कादीन प्रत्यन्तदेशान्‌ धोरान प्रत्यपायबहुलान्‌ समन्‍्ततः साधुसुखप्रचारान्‌ साधूनां सुखधिहरणान्‌ 
भ्रकाषीत्‌ इतवान्‌ । - खाभ्धःशएबडाधछ भाप फशजपात्त & 808898, ४०, ता, छ9. 97-92, 480०, '्रा॥08 0कए. ४०. 77 9. 
28-43. 

3, 57 ए०घ४४४४8808  ( ८६६४४ए%४0298 ) 808$98 ज्ञापा 80 5808040878-४६५७ ० एऐ)्रथाणबतर (9णफ)! ० 007600798567 ), 
97 347 ह 6. &छ067 & 8फएणछप्राइ7ए 0६ धर6 8४0०7 0 एछप्ाएड9, 36०, ह. 0०. वु॥79, 76 08 &ए0टांथाट इातां& 88 0096६ 6० 970 पुषंए&७ 
(६7008, 9. 390; [/0 8004768४ एछाशंठ्य ० 6 8009, 7.७७, 3. 0., 0608789708) 8&88898, 99, 44 [६ 

4. 5०७ ६80, 587870824780070 ((0एफ, 07 06एटएत7४/8 0७०ए8ए६8०088-0088ए8७, ०09. ०४६, ), 97. 279 8. &50 8००, 2.598ए78८8.- 
प्र 0 पझ््ठं०92978, 4. 97. 27 8; 0०75., 79, 486 ॥., 7२३६५३४०४७४४77&)८७)350०, | ,8. 

$ #780 ४ 7788$8088808 9 077४७८०087078, 0 लिशा३8०७7078, 987२७ 9 प्रए७शथ))57888078 08898 8700 शाप, प८त08७, 2« 


5िए्घ्माबार ० 2चाए, 5 


छा था पांएल्शाता ९०, 8 80, 8 8790 ( 9०09089०%-०800 ॥॥ 0प्र|वबां ), & 50406, ०06९ ऐै0(03 ( ॥98(0- 
छ3028, .6., :४6९०6४ 0 €९फ्ोशा5 ), "९ पराढटोआाए 5प्रतेधाईभा8! बाते 06 फाद्ा993 50737०9727०0॥98 876 3७४० (० 
78५०९ ए9707060 9७४ ९००णाएंपड (7श॥शएश्याड, प्रापएढए॥ह8 ) (0९ ४ए० ८६78 ( ४७7837479 ) 78॥078. 


रिुथबांट्ते प्राएंदांाहु 7 6 8007० प्राधाए73,. शोांटा। 60णरा(भं।5 008०३७४7८९७ ६० ]7०,  500052, 20०६7५७, 
छए9फ%ए६9५9०% थ॥९ 98000, 76३०5 77  श्यांग्रागबधंणा 6 ७0 ढॉट5 0 920 6९९१5 थातवे ए650४($ थ। 3पएढएजंणा ६० 
कछ०00॥79 ॥6, ऐै8४०-४३0॥0,  छी0. जछ5$ थी6 अं०ए३-ंदताह एण॑ ४ए४एणा० 72९06 एलयॉशयला: 8 ८60 383 था 
गपड 070 थे थी6 077०७ छाए. वा6 5007 6 ऐीं3 रैं४ए० ( 8४३३३ 07879ए7 70 3076 ९००९१ ]08६ 
300९6 ) ) 38 706768४008.. 53 807 45 टथ्योी९त ७४/१0380॥93, ज़़ांदा एढयंपरते5 एप ० 6 507ए 0 हद्वाबटद८व7५४०७ 
शावे "गवेत0048, 47098, 6 व4ए९0९० ० ४३ए० ज़45$ वायफ़ांइ06ते ता था पाव९०४ए०0पा१ ८९ ( जावेजा।49- 
एादागाहर% ) 0 77०080, 9|॥ छाहाथ्ज३9, 06. गांगरांडछा, 2८०0वं8 ६० ०० ६65६४ (97. 746 ल्‍.) थ्ातवे एफ 
छधाव089903, ॥6ए 0०700067, ३०८०६ ६४० (6९ छू)्न॥४४०)।००-०॥३६३५३ भाव (तएंं, शांशा 8ए6 प6 50079. 706 
छादा:॥ए40०059998 ९5 ॥67 ठ09004 (छ920६०8]००३707%8, ००. ०४६., ४०), ह, 99. 359 ॥. 850055 55 ॥, ),* 


वृंफढ गया टए., ९॥ए495568 06 ग7एए0एथव०९ थाते एशाटी3 ० 005९ए३706 0 ए०जण५3 ९९९८. +5४०9253 
र्छे शैद्ागाथशा।98, 2» गिधाश्याथा (वाफबा9एपा58 ), ०» उिभागाोा। ॥3079, ७०7००१8०४१०७, 2» एैेपी897072829, (0407, & 
एछ0992 9ए ९850९, रह] 28758 300 ६छपा08, 8 ए0०0१-९८५६४९४, ९ ८६९०१, ॥6 #$ंद०९०७॥४ ०एए, ॥९(०५ ६० ६॥6 
0९९१३ 04 ए2९६ह३ा॥६ ए2थए407 670 0768 ्रांडठ6९१3 थातवे * 207€७३४075 * ( परा(॥फ६40$ ८८% ), 776 68९0035 ए९(९७'९० 
0० 276 (0356 ०] 3 ३8०2८४ प्राण, एगातृेभ्रापत79, 3 प्रात ९87 ॥700९१, (0७९९॥ फै।श३ए४५ ० 7९३०६६०४ा 
0 छ83 8 ०07(९7702ए ० शैगिद्वजा4, भात फ्िगरह 279858778097074 ० 70६0॥99779,  06 ध056 ४6 5(0068 
| खीहदपथी भाते 078537280220% 6 जहट्ी-दाएजा 0 बुधा2 एथशा०्रां०० ॥0९४:६ए7९. 


086 76५६ ब5ाएद्वा8 45 0९ए०0९१ ६0 5६0765. ००प८ 7%2९0८९७ ० ४॥399, ३, ९., 329०॥76, ००ए(३९५ 260 
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( &०770]9 ) उ३४०००-०३४३ भाव शांग्रोाब३, शिएथंहप ण शांज््रो्ठॉपएए४८४03, 3 जि 98, थाटंशार शि005 900 
(०७३९० रढोद्ेणो8 ॥70 86809, ) प्राप5६ 93ए6९ ए९शा॥ ॥ ज़€5 0 700 फदाहइणे भाव 45 7€(९०७0 ६० ॥ ६॥6 7704 9]8005.! 


वृ॥6 धारा -ठए३ 45 0०म ९00756 ॥0प6॥ (९७॥००. ह२०४॥००४७०० (२०४०००७०ए४० ) $ 930 40९7076९0 ४४ फैठ( 
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१ए०० भाव ए9॥६02द८-४४०४002९ ( एछइएथ-58009 ) ॥/० फा०्मेक्रए प्राएध्रांट॥), परशाछए 286 ए९९7९१ ६० ॥ उुभां॥8 
००४7० ह/8॥॥09) 2०९०7708, ७एप 7 5 कल्प; ६0० 4७॥४५ धोशा), ध्रथा$80ए४79० ( ए. 88) 0०7 70$ ००70९5६, 
0फो6 एड (0 थार (0०7 था 78)870 ॥62709 ). 

छा 6 5009 ० #797294 ॥ा7त दी0/गेप्थोट्प्राद2/9, गा थी तुड्औा)4 एछाडांणा3, ज6 गिते 76९०० ६0 3009ए2 07 
570748॥28-0९$3. ॥.००'धं)8 (०0 ध6 8० ४9६ 809099० जश३5 वंसांाह ३2६ रिदव[ं3ऊ६7॥०8 ॥ छिग्ब्वा' शाप (9५0 दै7072८६ 
ए783 | 6 पाते 04 0०8९७॥, 7 5 30ऐए520]6 ६० (एफ (0 022(९ 70 श्ञाॉधा 5076 48200 4 ४९ 8297 ० छ०78), 
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एए4एशोदा'8, 6 परा९टाभआप5 एश९6 डंहाए जात, ग॥66 ज़षा8 250 6 ए८४०६-३६४4५ ( ए05प0प९०५ ), ०फुणए 
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ब०ए०१, 35 ए/0०भ०0ए धा6ढ 86० 35 एछगअ|भ्ंर भं॥66 पार गाोटांतेशार ग्राााधरंणाढत ॥. ४९ ॥6 ० 509॥9509 7)एद्042 
766९75 ६० ५6 ६९॥7ए06 ० रै्ाद्वट६08 ७६४ एा.]भां॥, 2९८८०7काह (० वुधंग० ६7385075., ॥॥6 2॥(6#द्वादद्ा६-0०६0८476 0६ 
एछ)]|भ॑वर 38 प्रथापणालते ० 9. 497, ४६ 84. छ्छा6 6 8९5635९0 07 ४6 9007 ००ए० 5६9५ 20१ ए005 96०७०१७० 0«॥9 
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37. 00 तणाव&ःतपि धांगह ००९०, (3९ छएझ35 700 |79 पा6€ ठप 6 एु]धथां।, ग्री€ णशार्ा था एठहुणांड थाते &7०॥35 8४ 
एछ]]भांव प्रा७707606 |7 ४5 ०07065६ 45 ९5७९८ 700०फ0709ए., ॥॥686 ए४€९०१०९४ 876 7९ैध९' ९४०६६९7७४६८९१ ॥07 
गघा९'राए एछ06006 35 ज्ञा] 968 0फ0०5 7० 6 ए९छ'शा6063 (0 इद्रे/ए60848॥#48-8#6 8476 ( ए]]४2ा॥7 ) ॥ (6 2600/46॥- 
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0 ६8780092ए०॥०७ 7775, 99. 24| [६ 

866 ]. ०, ७78, ०9. ०६४., 77. 325-326. 

966 ४880, २९. 7२, ए९. 773 0087, ?7९-लछला8९0750 50007 77049, ए. 3. 

छा 80000708 ०एॉ & ४९३४९ दाह छाते वृष०७73 ०७६०., शांप्री ए७छा०ा८ट९ड (707 वठ_&028४ (&7070७) 80पस्‍70205, 566, उठ. ९. व&ां798, 
०9. ०७६., 77. 3726-400. 

6. 566, ॥ैं. ०. वुछ॥०, ०7. ०६., 7: 394. 


७ ७ ० है। 7४ 


4 (63४८४०४० ० (रत ढ€० ॥ ८९, 


#रा०ाश' इचटीा ऐ९डपरापि 06०50 ००००5 ० 9. 9, 5 ४४6 0 ६५०६४) ( २६]०४॥॥9 ). 900 36४८०७७०- 
६003 7९77700 06986€ ० 8439.7 ररिह्व|०87१093 5 83७0 ६0 ॥2ए४6 ४2॥ ज्र(6 #/#दर/|्वा/6 (009०७, 0 ) शॉप 2 709 
४९४१6 40, ॥#67९ ए83 जा रिद्वों98[79, 3 70७ ० जश्6 धग76९5 ( 3९ए७73, 0९ण००३, १6एथ्टपो& ) जांपी हापंगह अपर 
४8]25985 ०॥ (0०98. व धीढल लए जछशषश6 शोदाा3 ( हबहाओद्रं5,. 70500ए765 ) 35 230 एञा56 70 एां0प5 टंधट९॥5 
(१49474/728० ), 7.,80९5 400:60 ॥९ 09775९]5 04 गरशदः उ९्ह्ांणा$ एणा द्रीशीा' ॥शी९०ा०ा5 ॥ पार एपा० शाह 
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ए०जछ९१ 2६ ज्रीं3 (९९६. मां शावाप्र-टभा)ए (#ंबहबशदेशव/4 ), जरांधी 708 शा9ए एण ९९एछाभ7९३ वैभ्एणंण३ह गंगहग्रह €ण॑०ैशा 
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09#प्र/659वरक्द्ल्‍कब कह 426, 386९, औै/8छ७9,. ४. 5., इषेचरित-एक सांस्कृतिक अध्ययन, 77. 45, ।26, 205. 
2. ९. &98०, 'जादा पश्ाबरांदिदका३-ंव्पगादा& लापएलड ग्रीं8 टए जऊ्रांध्ा ग्र्णोए ए०उ3१6१4 ए77८०७३--वी इज्जेतो वत्यंचडेहि नरनाहमंदिरं 


विधव३ । उब्मिगतोरणमोशसियचउक्ककलियं कलाकुसलों ॥ 46८&४., 9. 295. ५. 203. 


3. छा 7084०4798/%9, 8००, 887४५०)», ४. 5., हर्षचरित-एक सांस्कृतिक अध्ययन, 77. 9, 2॥, 23, 266, 
4... 566 2 678७७], ५. 5., ०7. ०६., 77. 8+, 92, 64 208, 284. 2050 366 #६ए०, 9. 347, २५. 8-| ॥07 2४०प्रा७ 29000जछ070॥9 
5७8०४ए7चधंणा एा॑ १३5७00)08 99 798 , 


5... 2१80 ८<ब्लोाल्ते दअप्रणवहुबदं॥ट८2494 07 बकम्ए4#49%४22426, 9. 66, २, 6. ठै0 बहद7#-६ै#व०ढ्/ां॥र४#ढ 5 गराध्यप्ंणाण्त, छए. 32, ५. 63, 





॥6 [२०५४ एथ००० 0५ /ी८५, 


ब्रहबशबा।बकबशब्कादा4 ( 9. 286, -2 ).? ैशाईंगा 0 घी गशा स३5 250 08॥९0 ३8288 ( 347482#796., 0. 244.9; 
838, 3-4; 42,87 ), #दरृएवक्षक्ष ०. शावशबद्ा?4 ( 444,88 ), 90एर७।7९३ पा मंदी ग्राश्टोभरआ पते जे 90०9] 
०णजाीवांआहड ॥6 (6 54#/4#प्रशाई/7435446 0 5द9॥28079 ( 3, ए. 38 ), & ए९४ए४पणि 065८7ए00॥ 0 ४35 9७थो80० 
0 5ि4॥0॥8072 $5 हांएशा (34. 35 4),. धशांगरंणड ॥:6 ४6 रढ€९5५धं॥ शंणद्रा&, 7: ॥80 एथ0प5 हाब्र//ववएदे/4645 6 
हशा॥5, #ाठणावे ६ ं्र 6 607ए०एत6 ( #4775474#676 ) २2४5 8 /0९3-ह70५6 (शद्रह484श6ै4# ), & 08 3867-श८! 
॥ शंटा जाला छू ०0०ाए्गोर्ते 79 प्राल्लाशांटते ०0राप्रएथशारर ता 005 (॥द्राव/ब॥/बण्दो।8242॥४॥7747940745#74# 
#वण्वाबच्दशंक्र 34.37), वरगांड धल्ए एशी। एड5९त 0 इंढ्राब-बशबं०49ब-क्रावब ( ]॥8-६008- 0705 ) ० ४5$4009075 
20 ऐ3$ जञांए९3, िए85 250 ॥86 डंगो' #6474/275 गा ऐश! 8०70१6९705 ( 284,298 ), 


ह एंड 92206 ९९०९९ फज 879॥279० 765९॥960 & ९९6५४] भांणदवा3, 7: ॥80 ४९००४ व्लोगर85 ० 


९2870698 ज्ञाव 58705 0 ए९४75 शैशाहाह ॥0 पौढा, ग्रांएरण5, [जगिश्वगह ०2०5, >९०पपंपि उद्धवअब्॥/7 945 
($द्ाइ984297#48 ), 000 #6//404/ 42845 07 8९73, €(८. 


१2808 ४दै78708 | ए848८65 थाते पर॥3075 45 7€शि।लत ६0 ० $९ए९/४) 00९8४078-८, ह2०0॥80॥790608ए६॥948- 
92५२०॥९०७. 580९५०70 40 ( 400.48 );  9#02यददेएघ॥95४९९६079॥2872)9 74554 ए ००005 ए शा. (४४७०॥४ए०७४8(९७९३- 
78798ए27(॥7 5 ,... ...७((08 (62, 20-22 ), राणा, (6 ज्ाह 0 फेोशाइएश8 5769 श७$ 5९९७, 7०9 'दंा३ ७02, 
( ४870078 07) आंएंगणह 7 पी गाबरै4पद्धा0॥02 0० ला ठा4एशेग्एा55893. हाह रिथ03 800 शाभाातप्राढ१ 6/ 
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(809258॥३6, दुप€९ा] 67 शैगेटधाबवीाए१]2% ० वरभेध०एपा9, आप गा 6 ॥2((8एद्व/848 ( 0 शैश' प०08०९ ) ज्ञात ॥6९० 
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।. ९0. नीओ य॑ वहुमाणं नियधवलहरे तओ सेट्टी (9, ॥45, ५. ॥59). 

2. "0+--जाव निहुयं निरिक्ख॒ह ता पेर्छइ मत्ततारणतलम्मि । खंभम्मि मत्तवारणमागलियं मिंठपरिकलियं ॥ ७१ ॥ 
रगणीए अंधयारे हत्थी मिंठेण चोइओ संतो । उड़ढं काऊण कर उत्तारइ रामत्रप्ती ॥ ७२॥ 
«००००००००००० ००००० ००००००००» मेछादइ करिकराओ सट्ठाणे ॥ 3५ ॥--३४४६ए., 9. ॥90. 

9... एर०ए & 80फ्रोपडड 49 8798४ 0670९एप८टा उछाल ४0 १६8३8४४१8(६ [07 ऐति3 070, ैणांथ--फा।शरपा3 त003 (9० 88&7॥0, 870 

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ए970]००९पंप&€ 807 & शथ।।!. प्ालम्ब 8 850 €डफ्ोधांधल्त 88 * 8 26 67 3 76086 70070 ध6 ॥0786 04& उांदोा प्रा&8. ऐैठपांठ- 
प्रव898, 5:.-0298. एस्‍0४०7०%, (0509, 956 ०१. ), 9. 777. ! 


4. ८+.--कप्रलमयरंदगोरिं मत्तालंगे इमं ण जइ रमसि । प्म्मणियाउलरण्णे महयरमिच्चु व्व ता वर॑ भम्तिं ॥ 
5... 4्वाद्षा8-0४दक्रश, 4 05708, ९. 77. प्रल्ा8०शा0त78 47 छां5 0ण्ा 8058 क्ा्7:०5-मत्तेः प्रमादिभिरालम्न्यते मत्तालम्बः ॥१॥ 


अपाभ्रीयतेइपाश्रयः ॥२॥ प्रसता प्रीबाउश्न प्रप्नीवः ......॥३॥ मत्तान वारयति भत्तबारणस्तन्न ॥॥४॥ 7708 8088 ज्ष०प्राव 8009 ६॥७०६ 
मत्तवारण 88 80 &7007(९९ए७४७॥ 9&70 988 700फ78 ६० 00 हक्राँंफ़ि 88 ०७४७०ए४७७४४६ 48 7५६. 





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डहड़यां, 03९760 ६० ०6 60, एछ38 ऐए९शारशारते जोपिा एत-5श709) ए25९९ (#बह/६८426484 ), ०९59065 9 एथाशात 
उबाबणबशदातब गा ग्रीं3 )6०८, थाते टणीगीपा ग्रधर ( ऋबउ३2४496ढ१% ) णा कांड 44०6, घि७ जग३5५ शत (॥70प९॥ ४० 
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छपग]र ४९ 77९१28९८ए०) 9९704, एा०ण्पश्ो0पां भा ॥श'बरपार, छ९ 0 उ९शिशा०९5५ 0 ८६८८4/६  ८0प्रह//4, 
ट्बां्#ाकाव, 24 (क्‍77.4] ), #६/#2ब#% 84 0 #66८९॥६, ९९९, 35 व7790790॥0 ए9]80९५ ॥ टांध68 07" ई0जछ75% शी2ट6० 96076 
९०९०६४९०१, प्शढ 2/कद्कादाह्वाव्र-(ब०८ब१4 2. ए]भांत ॥5 ब्रेएट809 ॥र०९१ 8007९. 6४ ए?६४० ॥ खेठाव] 0प][ंभाव एू35 8 
एॉ2०९ ०2९१ मा हुब्ाब)ब-(व८4/4, (३४९८श० ॥8 परछप्र्ोेष्र €हएॉभं)९0 35 टव्र/ए/४६ छए66 ॥2709ए7 70805 760 !, ७प६ ॥( 
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(४०७१ ( चांदनी चीक ) 3६ 069, श६7९९ए-टआ0ज्ञ४ ४: &608990 ) 45 ६॥6 5९ 35 (६/४$#4, 9 ]प्रा०(वंणा ० प्रा 
70903,7? (४#झाब ( (4 %%४/%#8 ) ०णेव 926 3 5एए गिएाह छिप ताहटाींगा$, व ०0पोत ॥9ए९ एसशा ॥7 ०09०॥ 
एप प्रागगतृ०92 2४0 ढ7/055-70205, ॥#6 6 (/25/4/#8006 ( ७4#/क#व॥#०6 ) ४ छिशाभ35, एप 40 3 >९६६९४ ६0 44:९० 
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007९5 04 ए/प्रट९5, पराधाभ्योटभा85 थाते 660 हारथश॑ गाथा 876 76907९9 ६0 ॥28ए९ 5९९१ 805एं८ं०75७ १7/02॥5 00 
८०१८९ए॑०म. 96४९ ४९ 7्राप्टाए/शहत एफ 2 ९0933 6 ए९०़रो6 टग्ोटत ऊंँण्१4##ब/द|#4/45,.. 0 9९८प्रींक्ा' 00५९० 3 
शा 704९0., एंडपरभ्ोर बल 5९थाह डपदाी ठ86श॥3 ]80९8 ९१ 3 (700 ( ए058४9ए 2६४ 076 शाते ० धाशए 8०0767६5 ), 
जता छगड 2269 34ह484#6#6, 905$%ए, ६0० थाध्प्रा& (6 305छांटां०03 ए९४पोौ ० 5पथ। 072४75 (०.६. 229. 85 ), 
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॥ 8९ए९४) (5 €६०,, 8 छा॥0655 0 एईब्वोलएणा 5९६०४९१ छः )9४०४70 ७9 ६९४४४ ॥ां5 एाणीण०ा०७ 40 ए9शा708 07 
+06 जाए ( 97. 204-09 ), 870000श' कग॥66९55 ६00४ एथा ा #478#07474-€0०$/४ 0 गला गपैशातव शाते 207770560 
९7569 ॥॥ शक ( 970. 296-297 ), छ0547०2०४०४(६४४४6, 06 02प5६8॥06/ 07 छ8/द्व70 ( 0 ए०७७५ 8 2#४/7752# 8 ), ए४०७5 
डी6फ्रश' व ग्राशाए 85 ० ज्रणाशा भाव छ383 दा0ज़) 35 3580०76त95 ॥ 6 टए, 76 ज्ञाा00 8९८८०णा: ०0 धो 
]9809ए9 ( ए7ए. 299 4 ) 8 णि 6 गालंवशाई5 डश0जाएए 67 ९0९ए९77९5३, 00007658 €६८,, )०७४]॥९76९ 70 ६07656  5007765 
00 २९ ९076 2८7055 879 रैब०003 07 ९0प्ट४०ा7 ० श्याब्वोढ्5 07 ०7 पीशा' 7९९१०70, 89994 45 2700९" हरदा 
]809 ज्ञातआ0 ०06 7णा वश' ज्ञा06 7 प्रञं९55 शा6 ॥6/ 50॥ 540॥8078 छ35 3]]0960 ६० 59०४० फ्रांड5 णी धार | 
[पदएा९३४ 200 एौ287765, ॥.2463 ज्शां 0पा शांत 73)65 | टई४एको5 गा परतेष्द्धा॥5 ०0प7806 प€ 29, 7( 5९९7४ 
पा ज्ञांतेठज-7शाभ्र986 ए३४ ह९ए९गोए ॥0 ए73८056व गा (06 पएएथ' ९०९०७५७५९३७ 0 (धी6 302००९ए 270 ६४९ प्रणपाह 
उ्रांते०?ज़टत १2९7४ 06 *+ परढाटा॥र ( शग० ॥९०४ गेल प्रट-8पथशातव०व ) ॥)868 ६0 9९९5९ ४४७५७ 270 ९978 (० 
€7]09 ज00ए एो225पा65 ज्ञांपि 9 ]0767/ ( 0०7. 792-993 ). 


7.,80653 जछ0ध्याएए०व ग्राबहुर5 0 औ[बविा/विशबर/ए4/2 0 &4#4००७६४ 0 ०ेशोतर रपष्केभा63 6 पाला दागंट6 07 
छ075॥976९0 वग्र8863 ० मझव्कावब्टएब 385 एटशी) 35 64877 0 07भ) ९णाणएट्क ॥9997655 ( 45,586 ) 9>९५७४0९8 
एा2९एंलांग& पं0॥85 76 एपयह 70056 ( #7प्र?६ ), एशशआर्थयंत।ह 0 93885063 €९, ( ए7०/484 ) भाते 5०76 7960 
7065 जञांध्रि ५5९ ७ 5९०४8शापाय ( ॥6 ), 70005 ( #ऋड्ांद् ), टीभा॥3 भाते चाट्शा ४073 ( #42/74 ), 79809) 096/0॥75 
(%6६४/7/4५ ) ९५०, ( 97. 49 [.). 


].. गया प्राहए 06 607787७व  क्ञाप्रो & शाया87 9833286 | 6 छऋपर॥&2ए2४:5)8 08 00ए7०८8४० (5णहवए 5०7०४), 99. ।29 /#. 7६ 
जा] ७७ 82८९0 8४ पाल &ोाछप , ऊघत0फज़53 7007 ४)९४ छवर2४]9४2803)8.. 


5०लंडी टश०त73 बाते ल्थशारथों 22, 7॥ ६०, 2] 


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€(०, ) एल्सांएव प्रथा ( 409-40, एए. 44-73 ), 7 शा] 96 ४९९ पी आअ पतरए 0 “एछोदइ्ए३  064 9 “टांध'& ? ७४2५ 
86॥0 88 870 €55९॥9) छशेक्षाशा ऊएा  एथंग॥तग३ह 370 ॥ 409 39976८०५॥०7- 


ए्शञशल ज्ञटरएा6 ए/0655०079 एशथा।श5 ( ८7749474 ). ह6 8०07 0 3 एथं7(€7ए 70०7 &05द070 80९३ ६० 55:९44 
67 ९शायंतरह ६6 2 0 एशेागपरा३ ( द//457#/व640॥88774% ), 60 39508९(08 ए285 3 (7774/7894-/6#/४6 ( 0(॥९7ए56 





।. ०-आउजो लोकभाषायां खंधाउजपखाउजौ | मताः पद्मउजश्वेति स्वस्वनामानुसारिण: ॥ -सज्जीतोपनिषत्सारोद्धार 
(७. 0. 8०763 ), ०४7. 4. ५. 92. 
2. 77४6 प्राढ8078 0 ऐ3 १९75९ 33 700 20687. 3४ 48 3॥6प0६ ६० ६8४९ छछ6ऑ 800 ]॒ाश्ोह्शं। 88 #॥/4-००4/)65,.. #50 ॥47#640 38- 
70०; ०6७७7. ॥४ 38 ]०७४४ डे०५४ (08८ तूरसंघाओ 8 ४6 ४26 चोघडियां 80 एकुपो४7 . 2%8787839079.  &९ 6880 /7077 ५6 #8० 0[ 
* एलशात्न28, [॥6 ७४०0० ०009०८ 4720068 एछा9०४ ॥॥० हरणाई ०६०., इ0शाभा ण 0472, ताए्या (छाथा) धात 80 09, ैए पिंथात 
ञए ह. ए. 708882 |रप07ण3 26 ध३४ 7) खेठापा 6णुंधनर 8 80९ 06 0008 णे०च-ए996 ्ा0०जप 88 छिल्य& 73 80प66त0 ४७४४ 
एश्यं।08 ०॥ ०थाशंए ९४४४० ०008४8४075..0 8९९०8 ७८४८ ६० ६2८९ पं3 88 & छ2०प०९ 0 चोघडियाँ 5007१0०0 7 ६० छाया, 


70000, €रथ्यंतड 800 7007870६ 07 ह&0९8 0 ए8क्‍8063 बात (६९70968 त्काएड ऐथा३06 एथय00, 7796 ए78000७ ण&8 ए०४8॥097 
४४०0४ 006. 


35८पॉफपाल, त/688 थाते 0ाफ्रथाढला3 लट, 7 /दफए, 23 


ह70ण7 35 3४74/27796-96/7582, ॥7 (6 5७॥6 5६07ए गज उुध्यं)8 एऐशा०फाट ॥0९7४८एप7९ ) णछ056 ॥788० ए७5 ६0 ७७ 
एथ४7(९१ ९एशए १९2४४ शातवे &६ (76 ७790 ० ज़्ांतधा पाल ,ध३४० ा6त धार एथांएाल, कांड 2ब्रदद्धा/वबद्ा/वडेद 6 
&ि8प5द770 एथां03 (6 ६8॥98-$(४प९ शा छुपा ०0075 ( #4ए//बरण्द्#82४7%-१67,9 ), 090 006 2007(36९ए जला 
ए9]68568 (06 9०८३० 0 हाशा5 (6 70पराह 748॥ 9 ए0०ा शंदा शाब०6३ जय ६0 एाआ 8 एण0/2४ ० 8 ए९श$ड0ा 
€पछा 4 ॥6 5665 ०ग्रोए़ 8 एथा 0 (6 909ए 0० पा०८ एटा50॥7. दित85 90 एक्‍िछंए 0ज्ञा7 9९प्रा४-६9९7४०५ ४00 ६॥5 
ए0०प्राह प्रथा ज5 ४९० थाए0०एटतवे 35 076 ० पाढ एथं॥(९७. 0 पा6  0ए॒४ब४१्द 0 धााईइ 4०:29 0 
5ि2ए$द्ेगफओा, ॥॥6 ह/0पात 607 एथं।प85 ( एक) इपाव९०९३ ९६८९०, ) 9०७5 0ए060 ॥00 3९ए९४७३) 5९०(०४५ जशातंटाो छ९ा/€ 
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दद्ावणवो, अटऔशव ( गरवएप्ा३ ), #ैेबाेलर्बद#व, 74542 ९०, 376 7९(९:९०१ ६०, 


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7889, ०४४७शं)ह 8 7707४९9 श्ञांप्री) परंत्रा (498. 59-64 ) 

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पहुडशाएएाबा शी 2१899, ०006008 एक7005 ०00704९3 607 ३6 (54477  #4%68496547#79767॥) थया4 ज्ञात 
पराप65, >प्री5 870 68768 ४ (83 607 ५४०७६४७॥६8ए9प78 (६० ढथाा। प्राणाथ्प (6/880०4/24%4/494०0). 36076 8६8४४7६ ४6 
धा70प7663 ज्ञांप्र ऐश) 0 97फा ( €803490 2464880 ) 8४ ४6९ ए007 थ70 पा ९६६५5 ( #42/46/5&6 ) ९६८. 
( श्ञ0 क्ञ]30९08 (० &९८९००7स्‍ए४१ए४ ४०६ ) जञ0 ॥80 7४0 9ल्‍९४॥3 (६6 ४0०5 ए/0फएॉंशंणा३ड 07 06 ]0प्राप्र०प ( 3६#8/047678, 
९87९९ंशए, 4004 ) |72पकाह 009, #ए4/6. ( #4749%6/76,.. वशगड॥ह ४९5३९) ), लेत्फांगहु ९८०. जग] ७९ 5०एए़ांध्वे 
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3॥ 8प5790८ट0075 089४ 870 प्रठप', जष्थाार ज्(6 07653 800 ॥980ए796 ए९णि]60 6 #0४96# वक्‍त ह4/6 (/4४#/#/4# दमन 
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5(प067(5., 67 एगञ|प्रदस० ० ७१०5३ ०0णत१ 700 €९१ शो 6 धाढ्य, मल, धालएटा076, 8तए7865 & ४एएतेशाई (०5807 ) 
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(6 ८०0णए5९ णाए पए ६० धार शाते 04 ४6 ]2876 ६709 ज्ञग्रांटी (९४ 5६४४, प०:० (06 0९४7०5८ 84ृ५४7९., ॥476 ज्ञांत0म९० 
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7०५ »/6 साख (92.]9, ७]. २४२ ), दीयड (८ हीब३, 0/3८755९0 9७7 597065879, 07, ०४६. ) तेबालय (05,.45, ८. 
60]. जांजभ५ ), राह्यडि (30.7; 308.4]4; 359.28, 0णएुं. २६३, १३, ५१९५ ) राढि, 300 राड़ि (285.2 ), टिल्छाणि ( 87.637 
0प. 84 ), नणंदा (090870/”8 880४, 65,388, 06णुं. नक[६), सासुरय ( श्वसुरगह, 52.76, 60. खास३ ) सिक्किरि ( ८5७त 
8.2], 5९८, प्राचीन फागु संग्रह, ७0, 97 8. ]. $27068%27०9, 9. 288 ), पारि (56.828, 50]. ५३ टोप्परिया (479.29 ), 
तलियातोरण (6&87]38703 ०६ 68ए९३3 वैषाहु 095 90075, 33.64, 386,67 ).? ॥| ड्यूदा र४शाए23, ९89०९ं४॥ए धा086 0 
६६८८ 0ा2एंंता * 876 ०006९४९१ 07 फद्चां०प४ ज्ञ0ण7३5 6 थीं3 38९, 70 ग्राहु०0 7९० 5९00875 ऐ० 7ीएते 0ए४ ढए 





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[ तृप०९ ०गए ७ श्छि 70897८९5--लाक्षारसेन केना55पि कार्पासः किमु रज्यते ! | (7.79 ); मरणे वि महासत्ता न उणों मार्ण 
परिहरंति । ( 39.95 ) त॑ मत्यि कि पि विसमं ज न ख्रह्यवइ विद्दी एसो । ( 283,268 ) अत्यवणम्मिधि रविणों किरणा उड्ढं खिय 
फुरंति । (27.64] ); ते नत्यि एत्यथ कल्लाणं तवाओ ज॑ं न जायए । (55.38 ); दीवयसिद व्व महिला रद्धप्ससरा भय देइ । 
(94.29 ); सर्व॑ सर्वे प्रतिष्ठितम ( 3863.36 ); रागंधनयणजुयला कज़ाउडकज़ाई न नियंति । ( 97.87 ); परदेसो वि सदेसो 
सत्ताहियपुन्नंताणं । ( 306.45 ); अम्रयकिरणनिम्मलकुछे मसीकुच्चओ मए दिल्नो ( 340.204 ); रुद्दिरिण धोइयं नहि सुज्ञह रुहिरारुणं 
बत्य | (84.242 ) बोढ़ं_ गयपल्लाणं कुमार कि रासहो तरइ १ । (856.57 ); मज्झ पं नियगेहे जीवउ दीवालियं लक्खे । 
( 889.4 ); दक्‍्खारसों न महुरिजइ सक्कराएं। ( 300.337 ); ज॑ चिंतिउं न सक्का न यावि सहिउं न वा कहिडे । ( 300.355 ); 
वक्का हु कौलिया वकबेहस्स । ( 285.24 )। पडठ घय सूयमज्झम्मि । ( 246.33 ); वालविणिवायमेत्त पि मित्त न भयं... । 
( 75.24 ); मश्सुदवियलों अन्न मणम्मि अन्ने कुणइई कज (50.68 ); कि वा छालीए मुद्दे कुंमंई माई (४. !. मायई )? । 
(54 ॥76 6); भभिरतुंबमरयाण अन्‍न्तरे अंगुली मज्म । (43.9] ); अध्मई पि सिक्खिज्जा सिक्खिय न निरत्थयं ॥ 
( 47,44 ) हुयहु धरह ने बारह । (87.5 ); नारी चलंतिया मारी | (42.55 ); हत्थत्थकंकणाण कि कर्ज दप्पणेणचहथा । 
( 6.53 ); दुषियायं होइ परे न दुमाया एस पसिद्धी जणे पयडा | (]8.]); न गामसामियाओ लब्भह मंडलसामित्त । 
( 90.8 ); ता तीए मुद्दे छारो दायव्वों कि वियप्पेण । (9.26 ); खज्जन्ती परिवद्धर कंडू । ( 6.7 ); जूयवसणम्मि गिद्धा कि 
दुक्‍्खं जं॑ म पावन्ति। ( 49.00 ); उबर्रि तबेइ सूरो हेड्ठा घरणी । (5.46 ); नत्यि भयं जग्गमाणस्स । (5.53 ); ता भज् 
मुद्दे भवइ छारो । ( 37.26 ) ससएण व खोढेण अशेण वड़वाडओ रुद्धो। (40.7] ) पालबचुकों मक्कडो व्य वेलक्खमावन्नो । ( 84,99 ) 
खौरे खल खंडपक्खेवों । ( 355.3 ) ९६८. 


(0०७6७४०५०७) 75(04(5(6९, 


887२2004. छएछ8६७ ३४१ २, 5प्त&छ 
0-9-3984. 


श्रीनेमिचन्द्रसूरिविरचितः 


आख्यानकमणिको शः 
शक्रीआम्रदेवसरिनि्मितया बक््या समेतः 


॥ जयन्तु वीतरागाः ॥ 


श्रीनेमिचन्द्रसरिविरचितः 
आख्यानकमणिकोशः 


श्रीआम्रदेवसरिनिर्मितया वृत्या समेतः । 
[ १, चतुविधबुद्धिवर्णनाधिकारः । ] 


॥ नमः स्वज्ञाय ॥ 


स्वर्नाथभीतघनभूधरसेव्यमूर्तिकोवण्यधामबहुधीवरलब्धमध्य: । 
आख्यानकाख्यमणिकोशमहाघरूपो जीयाद युगादिजिननायकनीरनाथः ॥१॥ 
सिद्धार्थपाथिववरान्वयलब्धजन्मा निर्मिथ्यौवीरवलूयान्वितरम्यमूर्ति 
रागादिशतन्रुगुरुविक्रमवण्येवर्णा जीयाज्जगत्रयजयासमवेश्म वीरः ॥ २ ॥ 


राकाशशाइकरनिमलकीर्तिभाजो ज्ञानादिरलचयरोहणशेलकल्पा: । 
शषा अपि प्रणतकल्पितकल्पवृक्षा जीयासुरानतसुरप्रभवो जिनेन्द्रा:॥ ३ ॥ 


श्रीगौतममुनिमुख्या: श्रतजलधिविचारपारगतवचसः । सुग्रहीतनामधेया जयन्तु गणधारिणः स्व ॥ ४ ॥ 

यस्याः प्रसादमासाद्य सद्यः सज्ञायते पुमान्‌। पारगामी श्रुताम्भोधे: स्तौम्यहं तां सरस्वतीम्‌ ॥ ५ ॥ 

अस्माहशा अपि विशिष्टविवेकशून्या येषां प्रसादमधिगम्य मनीषिमान्या: । 

जाता: परोपकरणप्रकृतिप्रवीणास्तानप्यचिन्त्यमहसः स्वगुरून्‌ प्रणोमि || ६ ॥ 

इत्थं कृतनमस्कारो ध्वस्तविन्नविनायकः । विधास्ये विधिना55रब्घं समीहितमहं सुखम्‌ || ७ ॥ 

इहानन्तजन्म-जरा-मरणप्रवाहपयःपूरपूरिते इष्टवियोगा्निष्टसम्प्रयोगव्यसनशतकल्लोलमालासमाकुले हष-विषादाद्नेक- 
प्रकारपाणिपरिणामपरम्परारड्गत्तर्झे शारीर-मानसानेककटुकदुःखदुष्टश्वापदसमाकीर्ण भुवनत्रयसन्तापसम्पादनपरिष्ठप्रकृतिप्रज्वलन्मद्‌- 
नवडवानले अनन्तभवश्रमणनिमित्तदुरन्तकपायमहापाततालकछुशालये अनुपलब्धपरपारसंसारपारावारे निमज्जता भव्यजन्तुना कणधारा- 
दिसमग्रसामग्रीक॑ यानपात्रमिव जलधिजलमध्यपतितरलमिवातिदुलमं लब्ध्वा श्रीसवेज्ञ प्रणितथमोन्वितं मनुजजन्म परोपकारे यतितव्यम्‌ 
स चोपकारो यद्यपि द्वव्यादिभेदमिन्नत्वेनानेकप्रकारः, तथापि जिनवचनोपदेशेन भावोपकारेणोपक्तव्यम्‌, तस्यैकान्तिका55त्यन्तिक- 
रूपत्वाद इतरस्य चानेकान्तिका5नात्यन्तिकस्वरूपत्वात्‌ । जिनवचनोपदेशोड प्युपरदेष्टव्यमेदाद्‌ अनेकप्रकार: । अतो धमकथारूपोपदेशे- 
नेव भव्यानामुपकतंव्यम्‌, तेषामज्ञातथमंस्वरूपाणां धमतत्त्वप्रकाशनेन तस्य महोपका रित्वाद्‌ । अतो भव्यान्‌ उपचिकीषु: श्रीमन्नेमिचन्द्र- 
सूरिधमकथास्वरूपमाख्यानकमणिकोशमेकचत्वा रिंशद्धिकारसमन्वितं विरचितवान्‌ , तस्य विवरणं प्रस्तूबते । तस्य चा55दावेव 
मड्लाउभिधेय-प्रयोजनप्रतिपादिकेयं गाथा-- 


नमिऊण जिणं वीर॑ सुरमहिय॑ केवलिं पवरवार्णि | 
अक्खाणयमणिकोसं भव्वजणविबोहयं वोच्छे ॥ १ ॥ 


१, निर्मण्य वीर २० | २. नौम्यहँ रं० । 


२ आखश्यानकमणिकोशे 


अस्या व्याख्या--'नमिऊण”” नत्वा जिन! रागादिजेतृत्वाद्‌ जिनः तम्‌ वीर” चरमतीर्थाधिपतिम्‌, 'सुरमहितं' सुरैः- 
देवेम॑हित:-पूजितो यस्तम्‌, 'केवलिनं' केवलं-केवलज्ञानं तद्‌ विद्यते यस्यासों केवली तम्‌, 'प्रवरवाणीक' प्रवरा-समस्तवचनगुण- 
समन्वितत्वेन निर्दोषा वाणी-भारती यस्‍््य स प्रवरवाणीकस्तम्‌ । प्राकृतत्वात्‌ सूत्रेडन्यथानिर्देश: । 'आख्यानकमणिकोशम! आ-मरयांदया 
ख्यायन्ते-परहितनिरतेभेव्यावबोधाय कथ्यन्ते इत्याख्यानकानि-धर्मकथा:, तान्येव संसारदौर्गत्यापहारकत्वेन मणय:--रत्नानि आख्यानक- 
मणय: तेषों कोष:ः-भाण्डागारस्तम्‌ । “भव्यजनविबोधक! भव्याः-मुक्तिगमनयोम्या जन्तवस्तेषां जनः [समूह |स्तस्य विदोधक॑- 
विशिष्टतत्त्वा[व]गमहेतुम्‌ । “बोच्छ” ति वक्ष्ये इति गाथासमासार्थ: ॥ अवयवाथंस्वयम्‌-- 

इह भगवतो वीरस्य जिनादिविशेषणचतुष्टयेन यथासह्ुथ अपायापगम-पूजा-ज्ञान-चचो[ रूपाः ) चत्वारो5तिशयाः 
प्रतिपादिता द्रृष्टव्या: | तथा “नमिऊण”'मित्यनेन शिष्टसमयपरिपालनाय विन्नविनायकोपशान्त्यथ चेष्टदेवतानमस्कृतिमाह । तथाहि 
शिष्टा: कचिदभीए्ट वस्तुनि प्रवतमानास्सन्तोअमीष्टदेवतानमस्क्ृतिपुरस्सरमेव प्रवतेन्ते, अयमप्याचार्यों नहि न शिष्ट इत्यतः 
शिष्टसमयपरिपालनाय । तथा श्रेयांसि बहुविन्नानि भवन्तीति। उक्त च-- 


“श्रेयांसि बहुविन्नानि भवन्ति महतामपि | अभश्रेयसि प्रवृत्तानां क्रापि यान्ति बिनायकाः ॥ १ ॥” 

इृदं च प्रकरणं सम्यग्दशनहेतुत्वात्‌ श्रेयोभूतं वरतते, अतो विन्नविनायकोपशान्तये | सिद्धा चेयमिष्टदेवतास्तुतिः विन्न- 
विनायकोपशान्तिहेतुत्वेन | यतः-- 

पुंसस्तस्यां प्रवृत्तस्य श्रेयसों जन्मकर्मण: | तेन न्यत्कृतसामथ्या: क्षीयन्ते विश्नदेतवः ॥ १ ॥ 

क्षीणेषु विप्नबीजेषु जायते निरुपद्रवा | श्रोतृव्यास्यानविषयव्यापारद्धिपरम्परा || २ ॥ इति। 

तथाउमिधेयशून्येडपि न प्रवर्तन्ते प्रेक्षावन्तः | यतः-- 

काकदन्तपरीक्षादी वाच्यवैकल्यतो यथा | प्रवर्तत न मेधावी तद्गत्‌ शाख्रेडपि भाव्यताम ॥ १ ॥ 

ततश्व॒ “आख्यानकमणिकोशम्‌' इत्यनेनाभिधेयं प्रतिपादितम्‌ , आख्यानकानामेवामिधास्यमानत्वात्‌ । 'भव्यजनविबोध- 
कम्‌' इत्यनेन प्रयोजनमाचप्टे, यतस्तद्रहितेडपि प्रेक्षावन्तो न प्रवर्तन्ते । तदुक्तम्‌-- 

“'सर्वेस्येव हि शाख्रस्थ कर्मणो वाडपि कस्यचित्‌ । यावत्‌ प्रयोजन नोकतं तावत्‌ तत्‌ केन गृद्मताम्‌ १ ॥ १ ॥” 

[ श्लोकवातिक १.१२ |] 
तथा-- “सिद्धार्थ सिद्धसम्बन्धं श्रोतुं श्रोता प्रवतेते । शाखादौो तेन वक्तव्य: सम्बन्धः सप्रयोजनः ॥ १ ॥” 
[ इलोकवातिक १.१७ ] 

प्रयोजन तु कु: श्रोतुश्चानन्तर-परम्परमेदमिन्नम्‌ | तत्रानन्तरं शास्रकतुं: सत्त्वानुग्रह:, परम्परं तु मुक्तिपदप्राप्तिः । 
भणितं च-- 

“सम्यक तत्त्वोपदेशेन यः सत्त्वानामनुग्रहम्‌ । करोति तत्त्वशून्यानां स प्राप्नोत्यचिराच्छिवम्‌ ॥ १ ॥” इति। 
श्रोतुरप्यनन्तरं तत्त्वावगमः, परम्परं तु तस्यापि मुक्तिरेव। अभाणि च-- 

“सम्यक्‌ तत्त्वपरिज्ञानाद्‌ विरक्ता भवतो जनाः | क्रियाशक्त्या ब्मविध्नेन गच्छन्ति परमां गतिम्‌ ॥ १ ॥” इति। 
सम्बन्धस्तुपायोपेयादिलक्षण: सामथ्यलम्यः | तथाहि---इदं शाखमुपायः, वस्तुतत्त्वावगमश्चोपेयमिति ॥ १ ॥ 

अधुना प्रतिज्ञातमनुलियते-- 


लद॒धूण नरत्ताईं साम्ग्गी मोक्खसाहणे धम्मे । 

दाणाइए पवित्ती कायव्वा बुद्धिमंतेहिं॥ २॥ 
अस्या व्याख्या--लब्ध्वा' अवाप्य “नरत्वारदि' मनुजजन्मा5<यक्षेत्रादिलाभरूपां सामग्री मुक्तिसाधक्रगुणकलापम्‌ । 
'मोक्षसाधने' मोक्षं-मुक्ति साधयति-करोतीति मोक्षसाधनस्तत्र, एतच्च धमस्य विशेषणम्‌। पुनरपि किंविशिष्टे ? 'दानादिके' दान- 


बुद्धिवणनाधिकारे भरताख्यानकम्‌ | 


शील-तपोभावनास्वरुपे [ धर्म ] 'प्रवृत्ति:” प्रवर्तन 'कतेब्या' विधेया “बुद्धिमद्धिः” बुद्धिः--मतिविंधते येषां ते बुद्धिमन्तस्तैः । अंन्र 
च सामग्रयन्तगंतत्वेन पुनर्बुद्धेरपादानं धमंसाधनगुणकलापमध्ये बुद्धें: प्राधान्यस्यापनार्थम्‌ । भणितं च--- 
“श्रिय: प्रसूते तनुते विवेक॑ यशांसि धत्ते विपदों निहन्ति । संस्कारयोगाश्व पर पुनीते शुद्धा हि बुद्धि: किल कामधेनुः ॥१॥” 
तथा-- 
“हेयमुवाएयं वा न जाणई विमलबुद्धिपरिहीणो । न य धम्माइपरिक्खं बुद्धी ता सब्बगुणहेऊ ॥ १ ॥” 
किश्च-- 
“बुद्धिजुओ आलोवइ", धम्मद्वाणं उवाहिपरिसुद्धं | जोगत्तमप्पणो वि य, अणुबंध॑ चेव जत्तेणं ॥१॥ 
आढवह सम्ममेसो तहा जहा लाघवं न पावेइ । पावेह य गुरुगत्तं 'इह-परलोए सुही होइ ॥२॥” 
[ उपदेशपद गा० १६७, १७१ ] ॥७8॥२॥ 
बुद्धिभेदानाह--- 
उप्पत्तिय वेणइया कम्मय परिणामिया चउद् बुद्धी। 
भरह-निमित्तिय-करिसग-अभयाईनायओ नेया ॥३॥ 
व्याख्या--उत्पत्ति:-उत्पाद: सेव प्रयोजनमस्या: सा तथा । उक्त च-- 
“पुव्बमद्ट्ठमसुयमवेहय तक्खणविसुद्धगहियत्था । अव्वाहयफलजोगा बुद्धी उप्पत्तिया नाम ॥१॥ 
[ नन्‍्दी ० गा० ६० ] इति। 
““वेणइय'त्ति विनयः-गुरुशुश्रृषादि: तेन निबृत्ता वैनयिकी | भणितं च-- 
भरनिव्थरणसमत्था तिबग्गसुत्तत्थगहियपेयालाँ' | उभओलोगफलवई विणयसमुत्था हवह बुद्धी ॥१॥ 
[ नन्‍्दी ० गा० ६४ ] 
“क्षम्मय''त्ति कमे-कृष्यादिकम्‌ | कमंणो जाता कमंजा | कथितं च-- 
“'उबओगदिट्वसारा कम्मपसंगपरिधोलणबिसाला । साहुकारफलवती कम्मसमुत्था हवह बुद्धी ॥ १॥” 
[ नन्दी ० गा० ६७ ] 
“'परिणामिय''त्ति परिणाम:-बुद्धिपूवक सदसद्वस्तुविवेचनं वयोविषाको वा तेन निवृेत्ता पारिणामिकी | अभिहितं च-- 
“अणुमाण-हेउ-दिद्ठतंसाहिया वयविवक्षपरिणामा | हिय-निस्सेसफलवई बुद्धी परिणामिया नाम ॥१॥ 
[ नन्दी ० गा० ६९ ] 
“चउह बुद्धि''त्ति 'चतुधा' चतुर्मि: प्रकारेश्वतु:ःसह्लया बुद्धि” मतिरिति ! आह च-- 
“उप्पत्तिया वेणइया कम्मया पारिणामिया । बुद्धी चउव्बिहा वुत्ता पंचमा नोवलूब्भइ ॥ १॥ 
[ नन्दी० गा० ५९ ] त्ति 
उत्तराधेना55सां यथासडुयेन दृष्टान्तानाह-भरतश्र-भरतनटपुत्रो रोहकः फलहेतृपचारात्‌ | नेमित्तिकौ च-निमित्तेन 
चरतस्तथाविधसिद्धपुत्री, कषकश्व-कृषति सस्यार्थ भूमिमिति कषकः--हलधरः, अभयश्व-श्रेणिकराजसुतः प्रतीत एवं, भरत-नेमित्तिक- 


शीत >केननननिन-न-ननमक-कनन+ अनिनन-म-न- जलने 


१, आलोचयति। २. आ्रारमते | ३. पराभवम्‌ | ४. उपदेशपदे “रोहिणिवशणिएशण दिद्वंतो” इत्युत्तराद्ोत्तिरांशः। ४. पेयालं-प्रमारं 


सारो वा। ६. लिब्नाद्‌ लिब्लिशानम्‌, स्वार्थानुमानमत्र शातव्यम्‌ । अ्नुमानप्रतिपादक॑ वचः हेतु, परार्थानुमानमित्यथं: । दृष्टान्त--उदाहरणम्‌ । 
बयोविपाके परिणामः-पुष्टता यस्‍्याः सा वयोविषाकपरिणामा ॥ 


४ आख्या नकमरणिकोशे 


कषकाउभया: । ते आदियेंषां 'तथाविधधूतंन्यंसितचिभिटिकापणितग्रामीणविसंवादच्छेतु्यृतकारादीनां ते तथोक्ता:। त एव ज्ञातानि- 
दृष्टन्तास्तेभ्यो 'ज्ञेया' ज्ञातव्येति गाथासमासार्थ: ॥ ३ ॥ व्यासार्थस्तु आख्यानकेभ्थो ज्ञेयः । 


ततन्र तावद्‌ भरतशातं प्रथममाख्यायते । तथथा-- 


मालवमंडलवसुहाविलासिणीवयण-नयणलबच्छि व्व | कामियणकामपूरणसज्जा उज्जेणि नयरि त्ति॥१॥ 
विलसिरपयसंचारा कलहंसयसदसोहिया जत्थ । अंतो विलयामाला रेहइ बाहिं च सिप्पनई ॥ २॥ 
अच्छरसोहाइन्ना अणिमिसविरइहयविल[सरमणीया । अमराउरि व्व परिहाविरयाए बहुलहरिवासा ॥ ३ ॥ 
विहिया णुव्वयचेट्टो जत्थ य गोवो व्व सावयसमूहो । पत्नवणिज्जो तंबोलिओ व्व हलिओ व्व सहलमई ॥ 9 ॥ 
सुत्तत्थगहणपवणो पवयणमायारुई सुगीयत्थो । मुणिजणमुत्तिसमाणो वियरइ वेसाजणो जत्थ ॥ ५ ॥ 

मंति व्व करणरुइरों गुरुचरणरुई सुसीवम्गो व्व | सेसो व्व खमाहारो साहुजणो जत्थ संवसइ ॥ ६॥ 
नेगमसंगहववहाररिउसुया सदसमभिरूढा य। एवंभूया वणिणो जम्मि पुरे जिणमयसमाणा ॥ ७ ॥ 
सामन्रदव्वसमवायसंजुओ गुणविसेसकुसलमई । सुहकम्मो जत्थ जणो निवसइ सिवसमयसारिच्छो ॥ < ॥ 
अह एक्को खिय दोसो नयरीए तीए गुणसमिद्धाएं । जं पयईए कडिला बाला सीसेण वुब्भंति ॥ ९॥ 

तत्थ नियरूवनिज्जियपुरंदरो दरियरायनिदलणो । समरंगणजियसत्तू जियसत्तू नाम नरनाहो ॥ १० ॥ 
निवसइ पयइपहाणो सम्मयकविलो य लड्धमाहप्पो । सप्पुरिसवन्नवाई सकक्‍खं संखागमसमाणो || ११ ॥ 
आजलहिवेलपसरियपयंडमाहप्पकलियनियदंडो । दरियरिउसमरजयसिरिकरेणुआलाणभुयदंडो। । १२॥ 
पणमंतसयलमहिवालमउलिमालामिलंतकमकमलो । कमकमलाजुवइ विलासविविहसंभोगदुल्ललिओ ॥ १३॥ 
अह तीए पुरवरीए पद्चासन्ने समत्यि वित्थिन्नों । नामेण सिलागामो गामो धण-धन्नपरिकलिओ ॥ १४ ॥ 
तत्थडत्थि नडो नाडयवियवखणों भरहनामओ महइम॑। नियबुद्धिल्द्धसोहो रोहों नामेण तस्स सुओ ॥ १५॥ 
तस्स य सवक्षिमाया न वहइ सम्म॑ ति भणइ तो एसो । त॑ नियपायाण मए पणामियत्वा न संदेहो || १६ ॥ 
अह अन्नया य निम्मलनिसाए उद्धित्तु रोहओ भणइ | नियछायं अवलोइय परपुरिसों एस जाइ त्ति | १७॥ 
निसुणित्तु तयं भरहो निद्दं चइउं समुट्ठिउं भणइ । रे कत्थ गओ पुरिसो ? आह इमो एस एस त्ति॥ १८ ॥ 
निउणं निरिक्खिओ वि हु परपुरिसो नो कहिं पि भरहेण । दिद्लो ताहे जाओ मंद्सिणेही नियपियाए ॥ १९ ॥ 
अह अन्नया य तीए पयंपिओ रोहओ जहा वच्छ ! | अहय॑ तुह पयपयणा नियपियरं पत्तियावेसु ॥ २० ॥ 
एवं होउ त्ति पयंपिऊण रयणीए रोहएण तहा । जा विहियं ता भरहेण पुच्छिओ कत्थ परपुरिसो ! ॥ २१ ॥ 
दंसेह निययछायं ताय ! इमो तयणु भणइ भरहो वि । वच्छ ! तइ्या वि एसो परपुरिसो ? आह सो एवं ॥ २२॥ 
चिंतेह तओ भरहों बालाणं पेच्छ केरिसुल्लावा ? | इय मुणिय तहेव पुणो दहयाए उवरिमणुरत्तो ॥ २३ ॥ 
तद्विसाओ सा वि हु सविसेसं कुणइ तस्स पडिवर््ति । अह अन्नया य भरहों गओ सपुत्तों तमुज्जेणि ॥ २४ ॥ 


१. एतदुदाइरणं यथा--कश्चिद्‌ ग्रामेयकः चिभेटिका आनयन्‌ प्रतोलीद्वारे केनचिद्‌ धूत्तनागरिक्रेण प्रोक्त--यद्येताः सर्वा श्रपि 
निमेटिका भक्षयामि ततः किं मे प्रयच्छुसि ! ग्रामेयकः प्राइ--योडनेन प्रतोलीद्वारेण मोदको न निर्भच्छ॒ति त॑ प्रयच्छामि । बढ द्वाभ्यामपि ससाक्तिकं 
पणितम्‌ । ततो नागरिकेण सर्वा श्रपि चिभंटिका मनागू मनाग्‌ भक्षयित्वा ग्रामेयकाय प्रोक्तम-देहि मे यथाप्रतिज्ञातं मोदकम्‌ | ग्रामेयकः 
प्राह--न मे चिभंटिका भक्तिताः | नागरिकः प्राह-चेन्न प्रत्येषि तहिं प्रत्ययाथ विक्रगाय चिर्भटिका विस्तारय चतुष्पये | तेन तथाकृतम्‌ | ततो लोकः 
चिभंटिका निरीक्ष्य प्राहइ--भक्षितास्त्वदीयाः सर्वा श्रपि चिभंटिकाः तत्‌ कथ्॑ ग्रह्वीम: !। ततः क्षुब्धो ग्रामेयकः विनयनमप्नीभूय नागरिकधूर्त्ताय 
रूपकमेक॑ प्रयच्छुति । नागरिको नेच्छुति | ततो द्वे रूपके यावत्‌ शतमपि रूपकाणां दातु प्रवृत्त: तथापि नेच्छुति | ततोइपरेण कृपालुना नागरिक- 
धूर्तेन तस्मै बुद्धि: दत्ता । ततस्तद्वलेन तेन मोदकमेकमादाय त॑ प्रतिद्वन्द्िनारारिकधूत्तमाकार्य स्वसाक्षिसमक्॑ स मोदक इन्द्रकीलकेउस्थाप्यत्‌ । 
भणितश्र मोदकः--याहि मोदक । स न प्रयाति | ततस्तेन साज्षिणोडघिकृत्य प्रोक्तम--एप यथाप्रतिशातो मोदकः यः प्रतोह्लीद्वारेण न नि्गच्छति 
तस्मादहं मुतकलः | एतथ साक्षिमिस्यैश्व नागरिकैः प्रतिपन्नमिति जितः प्रतिदवन्द्दी धू्तेः ॥ 


तथाहि- 


बुद्धिवणनाधिकारे भरताल्यानकम ५ 


काऊण तत्थ कयविकयाह नियगाममणुपयट्टो सो | जा सिप्पसरिसमीवे समागओ ताव भरहेण ॥| २५ ॥ 
भणियं रोहय ! पुडिया वीसरिया मज्झ हड्टमज्ञम्मि | चिट्ठ तुमं जाव अहं गिण्हित्ता पडिनियत्तेमि | २६ ॥ 
इय भणिय गए भरहे बालत्तणओ य रोहएण तओ । सिप्पसरिवाहुयोए विणिम्मिया तेण उज्जेणी ॥ २७ ॥ 
एत्थंतरम्मि राया बलरेणुभएण अग्गए होउं । तुरयारूढो जा एइ तत्थ रोहेण ता रुद्धो ॥ २८ ॥ 

है आसवार ! पुरओ उज्जेणीहड्टमग्गमज्झेण । जियसत्तुरायराउलमुल्लंघिय किह णु वच्चिहिसि ? ॥ २९ ॥ 
ता विम्हइओ राया त॑ पुच्छह भद्द ! कत्थ उज्जेणी ? | अह रोहओ वि वालुयविणिम्मियं तस्स दंसेह ॥३०॥ 


इह ताव हड्ठमग्गो इह राउलमेत्थ हत्थिसालाओ । इह पासाया इह मंदुराओ तो त॑ निएऊण ॥ ३१॥ 

तस्स मइविहवरंजियहियओ हियए विचितए राया । एस मम मंतिमंडरूसिरोमणित्तस्स जोगो त्ति ॥ ३२॥ 
परिभाविऊण एवं पुच्छइ त॑ बच्छ ! कत्थ वत्थव्वो ? ! कस्स सुओ ? साहद भरहसुओ हं सिलागामे | ३३ ॥ 

तस्स वरबुद्धिविहवं परिभावेती गओ निवो नयरिं | सो वि समागयपिडणा समत्रिओ निययगामम्मि ॥ ३४ ॥ 
अन्नदिणे नरनाहो बुद्धिपरिक्वणकए समाइसइ । पासायमेगथंभं एगसिलाए कुणह मज्झं | ३५ ॥ 

तो गामीणा सब्बे मिलिया परिसाए मंतिउं छूगा । बुद्धिमपेच्छंताणं भोयणवेला अइक्कंता || ३६ ॥ 

तो रोहएण भणिओ वच्चामों ताय ! भोयणनिमित्त | आह पिया विय त॑ वच्छ ! सुत्यिओ भणइ सो वि तओ ॥३७॥ 


. तुम्हाणं कि दुक्‍्खं ! भरहों अक्खेइ खुददयाएसं | सो भणइ ताव भुंजह अहय॑ पच्छा भल्स्सामि ॥ ३८ ॥ 


तो भोयणावसाणे चउपासं रोहओ खणावेइ | एगसिलाए मज्झे थंभत्थूमं विहेऊअण ॥ ३९ ॥ 

इय एगर्थंभभवण्ण कारित्ता राइणो निवेइंति | आगंतुं नरनाहो हरिसियहियओ पलोएड || ४० ॥ 

अह विम्हिओ नरिंदों पुच्छइ नणु कस्स एरिसा बुद्धी | तो रोहयस्स बुद्धि ते वि हु साहेंति गामीणा ॥ 9१ ॥ 
अह अन्नया य राया मेंढं पेसिय भणावए एवं । जह एसो मासद्धं धरियव्वो एगमाणेण | ४२ ॥ 

तो रोहएण मेंढो बाढं जवसाइचारिओ संतो । जा जायइ अहियबलो ता दंसिज्जइ विरूयस्स || ४३ ॥ 

धरिउ' जहुत्तदिवसे तं मिंढ॑ं पहमद्विसबलकलियं । *उवर्णिति य नरबइणो रोहयबुद्धि पयासंता | ४४ ॥ 
तब्बुद्धिपगरिसेणं पमोयपरिपूरिओ पुहइपालो । अवरं खुद्दाएसेण पेसिउं कुक्कुडं भणइ ॥ ४५ ॥ 

जह जुज्झावह एयं असहाय॑ रोहएण तो भणियं । दप्पणपडिबिंबेणं जुज्ञावह तंबचूडं ति ॥ ४६ ॥ 

काऊण तय॑ रज्नो निवेहए पुच्छियम्मि मइविहवे । साहेंति ते वि जह रोहयस्स तो रंजिओ राया ॥ ४७ ॥ 

अबरं च पेसिऊ्णं तिलभरिण सगडए भणइ राया । तिलमाणेणं तेल्ल दायव्बं मज्म तुब्मेहि ॥ ४८ ॥ 
उत्ताणदप्पणेणं तिले गहेऊण रोहओ तेल्लं । तेणेव दप्पणेणं पेसइ रायस्स पासम्मि | ४९ ॥ 

आइसह पुहइपालो पेसह वलिऊण वालुयावरहं | जुन्नवरहं समप्पह पडिछंदकए भणइ रोहो | ५० ॥ 

अह संपेसइ राया मयपायं करिवरं भणावइ य । निश्च॑ पि गयपवित्ती कहियव्वा मरणपरिहीणा ॥ ५१ ॥ 

ते वि पहवासरं पि हु कहेंति रायस्स हत्थिवुत्तंत । अह अन्नया गइंदे मए भणावह भरहपुत्तो ॥ ५२ ॥ 

देव ! गइदो न चरइ न चलइ नो ससइ न वि य नीससइ । न पियह न नियइ नवरं चिट्दह निच्चे्रसंठाणो ॥५३॥ 
तो पुहइबईद पमणह रे रे ! कि करिवरो मओ ? तयणु। जंपंति ते वि सामी एवं वज्जरइ नो अम्हे || ५४ ॥ 
भूओ भणियं पेसवह कूवयं महुर॒पाणियं निययं । तेहुत्तं मत्तो देव ! कृवओ पामरत्तणओं ॥ ५५ ॥ 

अम्द्ओ तओ त॑ पेससु नायरयकूवियं निययं । जेणा55गच्छट्ट तम्मम्गलम्गओ सामिय ! सयण्हों ॥ ५६ ॥ 
अवरमकंडे वणसंडमेत्थ पुव्वाए त॑ पि पच्छिमओ । कायबव्बं तेण तयं पि गाममुच्चालिकण कय॑ || ५७ ॥ 


१, जोगु त्ति ३०। २. भाविंतो २० | ३. उवशेति रं० | ४. तिललुं २० । 


अवरं च--- 


आख्यानकमणिकोशे 


अग्गि सूरं च विणा वि पायसं सिज्ञवेह पट्टविए । खुद्दाएसो उक्कुरंडियाए निप्फाइया खीरी ॥ ५८ ॥ 
सब्वत्थ वि केण कयं ? ति रोहओ उत्तरम्मि वत्तव्वे | रंजियहियओ वाहरइ अन्नया एउ मह पासे ॥ ५९ ॥ 
'पब्बवुनं ( ? ) दिणराई छाउण्हे छत्तनह पहुम्मग्गे । जाणचलणे तहा ण्हाणमइलगो अन्नहा5डगच्छे || ६० ॥ 
अमवासासंधीण सूरत्थमणम्मि सुद्धसंझाए | सिरउवरिधरियचालणयछत्तओ गंडधाराए ॥ ६१ ॥ 
ऊरणयारूढतणू करफंसविवज्जवारिकयण्हाणों | कोमारमट्टियकरों रायदुवारम्मि संपत्तो ॥ ६२ ॥ 
मणिकणयमित्तिपसर तकिरणउज्जोयमाणद्सिवलए । असरिसपोरिसनिज्वियपडिभड सुहडेहिं संकिन्ने || ६३ ॥ 
फलिहसिलायलनिम्मियनाणाविहरयणकंतिविच्छुरिए । सीहासणे निविद्वम्मि तम्मि जियसत्तुनरनाहे ॥ ६४ ॥ 
नियमइविहवविणिज्वियसुरगुरुमाह प्पबुद्धिविहवेसु । निस्सेसमंतिवग्गेसुभओपासे निविट्ठेंसु ॥ ६५ ॥ 
तरवारिमिन्नद्रियारिगयघडालद्धनिम्मलजसेण । धवलियभुवणब्भंतरनिरंतरासेसठाणेसु | ६६ ॥ 
केऊर-मउड-कुंडलमऊहकयअमररायचावेसु । घोलिरनिम्मलमुत्तियहारविरायतकंठेसु | ६७ ॥ 
सेवासमयवियक्खणलक्खणपडिपुन्नपवरदेहेसु । पुरओ य पुहइपालेसु जहरिह सन्निविद्लेसु || ६८ ॥ 
'उद्दंडदंडकोदंडकलियकरसुहडकोडिसंकिन्ने । निम्सेसरायउअव्णीयतुरय-सिंधुरसमाइन्ने ॥ ६९ ॥ 
करकलियदंडपहरणपयंडपडिहारसूहयपवेसो । पविसह रायत्थाणे थिमियपयारों निवाणाए | ७० ॥ 

अह ऊसियकरदंसियकुमारमट्टियपहिट्टनरनाहों । आसणदाणावसरम्मि पढियआसीसथुदवाओ ॥ ७१ ॥ 
गंधव्व-मुर वसद्दो मा सुब्वउ तुह नरिंद ! भवणम्मि । चंकम्मंतविलासिणिखलंतपयनेउररबेण || ७२ ॥ 


परमगओ पउरहओं परमोहयतुरय-रहवरपयारों | विरुसिरसयणविपत्ती रिउसरिसो जयसु त॑ देव ! ॥ ७३ ॥ 

तत्तो संझ्ासमए विसज्जियासेसराय-अत्थाणो । राया निउत्तपाहरियरोहओ सेज्जमारुहह ॥ ७४ ॥ 

मम्गपरिस्समभावाओ निब्भरं रोहओ सुयह जाव । ताव अइकते जामिणोए पढमम्मि पहरम्मि | ७५ ॥ 

जग्गसि रोहय ? जग्गामि सामि ! ता कि न देसि पडिवयणं ? । पभणइ कि पि हु चिंतामि देव ! कि तं॑ ?ति सो आह ॥७३॥ 
अह्याउयरे परिवट्टुलओ किल लिंडियाओ को कुणइ १ । राया556 भव्वमेयं ममावि चिता इमा आसि ॥ ७७॥ 
पुच्छियमिमिणा रोहय ! जइ जाणसि ता कहेसु ता कत्तो ? | संवट्टगवायाविद्धजढरजलणाओ ता देव ! ॥ ७८ ॥ 
बीए जामे जग्गाविओ वि जंपदइ्ट तमेव मणचितं । कि तं ? ति पुच्छिएउसत्थपत्त-अग्गाण कि दीहं ? ॥ ७९॥ 
तुल्लाणि देव ! तइयम्मि पुच्छिओं चिंतयामि त॑ं कि ? ति। खाडहिलारेहाणं सुकिल-कालाण का बहुया ? || ८० ॥ 
अन्‍्ने सरीर-पुच्छाण कि गुरुं ? उत्तरं दुबे तुल्ला । रयणीए चरिमजामे सुत्तो नो देह पडिवयणं || ८१ ॥ 

तो कंबियाए छित्तो भणियं सुत्तो न व ? त्ति तेणुत्त । जग्गामि राय ! इयरह पाहरिओ केरिसो अहयं १॥ ८२ ॥ 
नवरं महई चिता संजाया ता कहं पयंपेमि । सा केरिस ? त्ति रुसिऊण जंपियं तुज्म पंच पिया ॥ ८३ ॥ 

कयर ? त्ति राय-वेसमण-रयग-चंडाल-विच्चुया देव ! | कहमिव ? नरवर ! भवओ लक्खणजोगाओ एएसि ॥ ८9 ॥ 
सिट्टाणमवणमसयाणुसासणं पणइपोसणं जं ते । खत्तेण रक्खणमओ नज्ञसि त॑ रायपुत्तो त्ति।। ८५ ॥ 
अलयाउरिसरिसपुरों नलकूबररूवसरिसकुमरपिया । अदरिद्दं कुणसि जणं पणयमओ वेसमणतणओ ॥ ८६ ॥ 

अवहरसि धणमसेसं महावराहाण दंडकरणेणं । वत्थाण मं व जओ तओ तुम॑ रयगजाओ सि ॥ ८७॥ 

पयईए दुद्धरिसो जं रिउवग्गस्स निग्गहं कुणसि | चंडालकीबसरिसो त॑ नित्र ! चंडालपुत्तो त्ति॥ ८८॥ 

जं॑ जग्गियं सुयंतं कंबीए पामरों व्व मममेवं । तोतेण तुयसि गलिमिव नायमओ विच्चुयर्स सुओ ॥ ८९ ॥ 
तम्मइविणिच्छयत्थं रहम्मि विणएण पुच्छिया जणणी । एएसिमुवरि तीए कहिओ सब्वेसिमहिलासो ॥ ९० ॥ 

राया रइबीएणं धणओ तप्पडिमपूयफंसेणं । दोहलगभक्खणे विच्चुओ वि सेसाण दंसणओ ॥ ९१ ॥ 


१. पव्वदुन रं० | २. भडपसरेहिं २० । ३. उद्ंडकंड रं०। ४. नतृपासया | 


बुद्धिवणनाधिकारे मैमित्तिकाल्यानकम्‌ 


तप्पभिइ पक्खवाओ रज्नो तम्मि महं समुप्पन्नी | संठाविओ य समत्वेसिमुवरि मंती महगुणेण ॥ ९२ ॥ 
रन्नो मइविरहेणं जाणि असज्ञाणि रायकज्जाणि । सब्वाणि ताणि सिद्धाणि निउणबुद्धी[(ए] तम्मिलणे ॥९३॥ 
जओ भणियं-- 
“पूयप्फलेहि न हु केवलेहिं नरनाह ! कीरए राओ | जा न मिलिया तह चिय निश्च॑ सच्चुन्नया पत्ता ॥९४॥” 
अबरं च- 
एगं हणेज्ज नो वा हणेज्ज मुक्को धणुद्धरेणमिसू्‌ । बुद्धिमया पुण बुद्धी रट्ं पि हणेज्ज निस्सिद्ठा ॥ ९५ ॥ 
चिंतामणि व्व रयणाणमुवरि मंतीणमुत्तमगुणेहिं । जियसत्तुरायरज्जे विरायएु रोहओ मंती ॥ ९६ ॥ 
अह सो राया मंतिम्मि तन्मि संजायगरुयविस्संभो । निक्खित्तरज्जभारों सुहाइमुवभुंजह विसंकी | ९७ ॥ 
तं कि पि जए पुन्नेहि माणुसं मिलइ गुणमणिमहम्धं । अइवाहिज्जइ जम्मो वि जस्स सहिज्जणण सुहं ॥ ९८ ॥ 
एवं लोमसपणियाइणसु जूइयरमाइणो णेगे । पत्थु यबु द्वीप नरा विन्‍्नेया समयकुसलेहिं ॥ ९९ ॥ 
॥ भरताख्यानक समाप्तम ॥ १ ॥ 
इदानीं नेमिक्तिकाल्यानकम्‌ | तश्चेदम-- 
कम्वि तहाविहरूयम्मि सन्निवेसम्मि सुत्थवासम्मि | कस्स वि य सिद्धनामस्स नंदणा दोन्नि जगयपिया ॥ १ ॥ 
ते कि पि तेण सुत्ताइ पाढिया परमिमो पिचितेइ । जह कि पि निमित्तमिमे जाणंति तओ भवे लठट्ठं || २ ॥ 
तो नेमित्तियसत्थन्नुयस्स कस्स वि समप्पिया पिउणा । सिक्‍खंति नवरमगस्स सिक्खियं परिणमह सम्मं ॥ ३ ॥ 
बीयस्स पुणो न तहा अविणयभावा अह5न्नदिवसम्मि । कट्टाणमाणणत्थं पट्ठविया ते अरन्नम्मि || 9 ॥ 
जंतेहिं तेहिं मग्गे दिल्लाणि पयाणि हत्थिरूयस्स | एगेण भणियमेसी भायर ! हत्थी गओ पेच्छ ॥ ५ ॥ 
बीएण भणियमेसा हत्थिणिया काइयाए विज्नाया । अन्न॑ं काणा एग़म्मि चेव पासम्मि चरणाओ ॥ ६ ॥ 
अन्न च उबरि इत्थी य अइृहवा कह णु नज्जएु एयं ? | रुकखम्मि रत्तद्सियाविदगणाओ य नुणियमिमं ॥ ७ ॥ 
अवरं च तीए गब्भो तत्थ वि से दारओ कहमिम पि। नज्जइ ? सरीराचिता दाहिणपयधरणिखुप्पणओ ॥ ८ ॥ 
ते जाव तयणुमग्गेण जंति तप्पन्चयत्थमभिउत्ता | ता सरतीरे सब्बं सच्चवियं तेहिं जह भणियं ॥ ९ ॥ 
एत्थंतरम्मि छायाए वीसमंताणमागया एगा । थेरी तेसि समीवे सिरसंठियनीरभरियघडा ॥ १० ॥ 
दट ठरण पुत्तसमवयसमन्निए सुयसिणेहसंभमओ । देसंतरत्थपुत्तप्पउत्तिपुच्छापवन्नाए ॥ ११ ॥ 
भग्गो घडओ नीरं मिलियं नीरस्स सा उ सवियक्का । जाव5च्छइ [त]त्थमणा थेरी ता भणियमेगेणं | १२ ॥ 
जद तज्जाए तज्ञायमिद वओ सच्चयं निमित्तस्स | ता भटद्द ! तुज्ञ सुओ मओ मुहा कि विसाएण ? ॥ १३॥ 
बीएण भणियं मिलिया न होइ एसा निमित्तगयवाणी । ता जीव३इ तुज्ञ सुओ भद्दे ! गंतुं गिहे पेच्छ ॥ १४ ॥ 
दद्ठण तयं खणमेगमागया वच्छरूयगसणाहा । परिहाविऊण आणंदिऊण तुदट्ठा गया सगिहं ॥ १५॥ 
भणियं च भाउणा कह णु भाय ! विवरीयमेरिसं जाय॑ १ । तज्जाए तज्जायं सच्च मिणं मणियमियरेण ॥| १६ ॥ 
नीर॑ नीरे मिलियिं मट्टीए मिम्मओ घडो मिलिओ । मायाए मिलइ पुत्तो एस जओ उज्जुओ मग्गो || १७॥ 
मा कुणसु तं विसाय॑ गुरुविसए मा पओसमुव्वहसु । गुरुणो वि जोग्गयाए कुणंति जीवे गुणाहाणं ॥ १८ ॥ 


यत उक्तमू-- 
“अयोग्यस्य गुणाधानं विधातुं नेव पाते । लाक्षारसेन केनापि कर्पास: किमु रज्यते ॥ १९ ॥” 
तेण वि य विणयपुव्व॑ तहा समाराहिओ गुरू कह वि। जह नाणभायणं सो संजाओ गुरुपसायाओ ॥ २० ॥ 
एमेव अत्थसत्थाइएहिं जो कोइ नज्जइ पयत्थो | सो सब्बो वि हु मरिसठ विणयसमुत्थाए बुद्धोण ॥ २१॥ 


॥ नैमिक्तिकाख्यानक समाप्तम॥ २ ॥ 
१, बाण । 


द् आखश्यानकमणिकोरे 


इतदानीं कषंकाल्यानकमारभ्यते। तश्ेदम-- 

अत्थि विसालविसप्पियसप्पायारं महंतरज्नं वा | कुंडलवलयं नयरं सखाइय॑ चाहवंद्रं व ॥ १ ॥ 
साहसिओ कूरमणो लोहियपाणी पमूयलोहिल्लो । परदव्वहरणचित्तो एगो चोरों वस॒ह तत्थ ॥ २॥ 
सिंगारपिओ सिंगारसासणों मुणियसरससिंगारों | सिंगारसत्थपाढी सिंगारं चेव सदृहह ॥। ३ ॥ 

तथाहि--- 
लवणरसो व्व रसाणं पवरों चिंतामणि व्व रयणाणं । कप्पतरु व्व तरूणं सब्वेसि रसाण सिंगारो ॥ ४ ॥ 
साहसियवओ सूरो रयणीए चोरिऊकण परदव्वं | विलुसइ देइ जहिच्छं परलोयावायनिरवेब्खों | ५ ॥ 

भणह य-- 
“अप्पणिया माया चेव होइ साहसघधणाण वीराण । पुहद व्व वीरभोज्जा लच्छी महिला य परकीया || ६ ॥” 
अह अन्नया य तेणं इसरपासायभित्तिभायम्मि । पठमागारं खत्त खणिड नीसारियं दव्वं | ७॥ 
रायाई पडरजणों पभायसमए समागओ तत्थ । उत्ताणियनयणजुओ पेच्छइ खत्तं पयंपद य।॥ ८ ॥ 
सिंगारो चिय एगो सब्वेसु सिरोमणीयद रसेसु । जं गुणरोरों चोरो पठमागारं खणइ खत्तं ॥ ९॥ 

तथा च केनचिदहमकारि-- 
“रस: श्रृड्धार एवेकस्तं च बद्धुं यदि क्षम: । अहं वा काल्दिासो वा प्रोच्यन्तां यद्यमत्सरः || १० ॥” 


तहा-- 
चोरस्स साहसमहो5हो ! सिंगारप्पियत्तमप्युवं | जं एरिसम्मि दुग्गे खत्तं दिण्णं सविज्नाणं ॥ ११ ॥ 
सो वि हु चोरो जणवायजाणणत्थं निगृहियायारो । हरिसिज्जंतो हियए निसुणंतो नियगुणपसंसं ॥ १२ ॥ 
एहाओ कयबलिकम्मो पयडुब्भडविहियफारसिंगारो । विम्हह्यजणसमूहे समुत्नओ नियइ नियखत्त ॥ १३॥ 
इओ य-- 


चउवीसभेयभिन्नस्स सस्समस्स[स्स] संभवणभूमी । भूमिवलुयप्पसिद्धों धन्न उरगनामगों गोमो ॥ १४ ॥ 

तत्थउत्थि सत्थपयरोहिणीपिओ परमसस्सबहुवसहो । परिकल्यिहलो बलभद्दसरिसगो करिसगो एगो ॥ १५॥ 
चउवीसं पुण धन्नाणि एयाणि--- 

धन्नाइ चउत्वीसं जब-गो हुम-वीहि-सालि-सट्टीया | कोहव-अणुया-कंगू रालग-तिल-मुग्ग-मासा य ॥ १६ ॥ 

अयसि-हिरिमित्थ-तिउडग-निप्फाव-सिलिंद-रायमासा य | इच्छू मसूर तुबरी कुलत्थ तह धन्नग-कलाया || १७॥ 

पत्थावं नाऊणं सब्वाणेयाणि ववह धन्नाणि | निदिणइ लुणह गाहइ गिहम्मि पहसारए सम्मं ॥| १८ ॥ 

केण वि पओयणेणं संपत्तो तम्मि चेव पत्थावे | गामाओ करिसगो सो सलहिज्जंतं सुणिय चोरं ॥ १९॥ 

भणह य भो भो ! कि सिक्खियस्स किर दुक्‍्करं ? जमेएण | आजम्मं चिय खणियं खत्तं चिय पावकम्मेण || २० ॥ 

सोऊणमत्तणो तं परिभवजणयं विरुद्धवयणं से । चिंतइ चोरों एसो विणासियव्वों मए पावो ॥ २१ ॥ 

अह सो कम्मि वि विजणम्मि हक्षिओ कीस निंदिओ हं ति। तुमए ? ता पुरिसो होसु संपयं मरसि तुममिण्हि ॥ २२ ॥ 

आयड्डिय असिधेणुं भेसावइ जाव तेण ता भणियं । मा पहरसु होसु थिरो भद्द ! तुम पेच्छ मह चेट्टं ॥| २३ ॥ 

पडय॑ पत्थरिऊण मुद्ठि भरिऊण वीहियाणं च। भणियमिमे कि समुद्दे परम्मुहे बंडगुलंतरओ || २४ ॥ 

अंगुलदुगमंतरण काऊण खिवामि ? तह कए तुट्टो । तेणुत्तं मदद! जणो सब्बो वि हु कुणइ अब्भत्यं ॥ २५ ॥ 

हेरत्रिया|इिया] वि हु हिरन्नकाई मुणंति जं वत्थुं । कम्मयबुद्धीए तयं विछसियमिसओं ववइसंति ॥ २६ ॥ 


॥ कर्षकाख्यानकं समाप्तम ॥ ३॥ . 


१, सार्थपतिः। २. कऋषयः | 


[ १६. मिथ्यादुष्कृदानफलाधिकारः ] 


नियममालिन्ये च मिथ्यादुष्कृतं दातव्यमित्यनेन सम्बन्धेना<ड्यातं मिथ्यादुष्कृतं व्याख्यातुकाम आह-- 


खमगा य चंडरुद्दो मिगावई तह पसश्रचंदो य । 
सम्म॑ मिच्छाउकडदाणफले हुंति आहरणा ॥२०॥ 


व्याख्या-- 'क्षपकाश्च” प्रतीता एवं, “चण्डरुद्र:ः समयप्रसिद्ध: सूरिः, “ मृगावती” शतानिकनृपतिभायां, 'तथा' तेन प्रकारेण 
'प्रसन्नचन्द्रश्च' पोतनपु राधिपति:, 'सम्यग? भावसारं “मिथ्यादुष्क्ृतदानफले” स्वदोषप्रतिपत्तिवितरणगुणे 'भवन्ति” जायन्ते “आहरण”! 
त्ति दृष्टान्ता इत्यक्षराथें: ॥२१॥ भावाथस्त्वाख्यानकेभ्यो3वसेय: । तानि चामूनि । 


तन्न तायत ज्षप[ का]ख्या नकमाण्यायते तच्चेदम्‌-- 


जओ-- 


त॑ जहा--- 


अत्थि तहाविहगच्छे करुणारसपूरियम्मि विच्छिन्ने । जलहिम्मि व खमगरिसी परमपहावों वरमणि व्व ॥१॥ 
सो भुंजइ मास केसरि व्व कया वि पारणगदिवसे । भिक्‍्खट्ठाए पविट्टो खमगरिसी खुद्डुएण सम॑ ॥२॥ 
मच्छियपमाणमंडुकियाहिं पच्छाइयम्मि मग्गम्मि | खमरिसिणा अक्कंता कमेण मंडुक्किया एगा ॥३॥ 
भणिओ य खुड्डुएणं खमग ! तए पेच्छ मारिया एसा । कहियव्वा य गुरूणं चारित्तायारसोहिकए ।|४॥ 

तं सो सो रुट्टो इमाओ पाविट्ठ | केण वहियाओ । दंसइ लछोएणं मारियाओ तो चिंतियमिमेण ॥५॥ 
आवस्सयवेलाए पसंतहिययस्स संभराविस्सं । ता पारावड एसो छुहियस्स न एस पत्थावो ।|६॥। 


नासइ खंती परिगलइ पोरिसं लहु पलायइ विवेगो । सिक्‍खा वि ठाइ न मणे छुहामिभूयाण जीवाणं ॥७॥ 

किर किमसंगयमिमिणा चुक-क्खलियम्मि चोइओ जमिमो १ । परमिह दुजओ कोवो गुणट्वियाण वि महासत्तु ॥८॥॥ 
कट्टं करंति समरे मरंति जलणं धरंति सीसेण । न उणो जिणन्ति कोव॑ पावमिणं धम्मवणदहणं ॥९॥॥ 

पढउ सुयं घरड वयं कुणउ तवं चरउ बंभचेराई । तह वि तयं सब्बं पि हु निरत्थयं कोववसगस्स ॥१०॥ 

जहइ जलूइ जलूउ लोए कुसत्थपवणाहओ कसायग्गी । तं॑ चोज्ज जं॑ जिणवयणवारिसित्तो वि पज्जलइ ॥११॥ 

तो सो अणुसयवसओ तहेव भुत्तो वियालवेलाए। सुमरावियम्मि कोवेण पजलिओ खुड्डयस्सुवररिं ॥१२॥ 

मिलियाण मज्ञयारे विगोविओ अहमणेण पावेण । ता मारेमि सयमहं खुडुयमेयं ति चिंतेउं ॥१३॥ 

गहिऊण खेलमल्लगमसुहज्ञाणो पहाविओ जाव | तावा55बवडिओ खंभे विम्हरियसओ मओ खमओ ॥१४॥ 

जाओ कुलम्मि  मइलियवयाण दिद्वीविसाण सप्पाण । कुगईए संपत्तो दीणमुहो चिंतिउ' रूग्गो ॥१५॥ 


रे जीव ! कसायहुयासणेण दड्ढे चरित्तघरसारे । ममिहिसि भवकंतारे दीणमुहो दुक्खिओ य तुम ॥१६॥ 
तो जायजाइसरणो रयणीए दयावरो परियडेति | मा रविकरसंपक्का दिणम्मि दिट्टी वहउ जीवे ॥|१७॥ 
एत्तो य वसंतपुरे कुमरो अरिमद्णस्स नरवइणों । तइया भुयंगदट्ठी मुक्की सहस त्ति पाणेहिं ॥१८॥ 
राया वि सुयसिणेहा कुबिओ सप्पाण ते विणासेउ' । जो दंसइ सप्पसिरं दीणारं देइ तस्स तओ ॥१९॥ 
संजाए सप्पखए वणम्मि रयणीए संचरंताणं । घसणीउ नियइ एगी गारुडिओ तेसि वहणत्थं ॥२०॥ 
मेल्लेइ ओसहीओ बिलेसु तो तेसि गंधमसहंता । निग्गच्छंति वराया सो ते मारेइ दविणकए ॥२१॥ 
ग्रन्थाअम्‌ू--६० ०० ॥ 
सो वि हु खमगभुयंगो ओसहिगंधेण विहुरियसरीरों | बिलमज्भम्मि य चिट्ठिउमचयंतो चितए एवं ॥२२॥ 





१. मृगापतिः २० । २. विस्मृतपश्चात्तापः । ३. मयलिय० रं०। 


२३ 


१६२ 


आख्यानकमणिकोशे 


एस वराओ को वि हु मुहेण जह नीहरामि ता मरिही । मह दिद्वीविसदोसा इय करुणापरिगओ घणिय॑ं ॥२३॥ 
निग्गच्छट पुच्छेणं जत्तियमेत्तं च निस्सरइ बाहिं । तत्तियमेत्त छिंद्इ गारुडिओ सो उ चितेहइ ॥२४॥। 

रे जीव ! सुइविवज्जिय निहीण ! निब्भग्गसेहर ! अणज्ज !। संपयमवि मा कुप्पसु अणुभूयं कोवफलमेयं ।२५॥ 
जह संतियाए किर चोइओ तया तेण समणरूवेण । ता तस्सोवरि कुवियस्स तुज्क कि कस्स संजाय॑ १ ॥२६॥ 
त॑ तारिससुगुरूणं विजोजिओ धम्मबंधवाणं पि | तह तारिससंजमगिरिवराजो पडिऊण खडहडि ओ ॥२७॥ 
तारिससामग्गीए तइ्या एयस्स तारिसो कोवो । इण्हि पुण एस खमा अहो ! हु कम्माण कुडिछत्तं ॥२८॥ 
इय सो वेरग्गगओ बिसहंतो वेयणं तमइदुसहं । मणुयाउं निव्वत्तह सुकुलुप्पत्ति च खमगाही ॥२९॥ 

अह नागदेवयाए सुमिणम्मि नेविहयं नरवइस्स । विरमसु नागवहाओ तुह पुत्तो होहिहो राया ॥३०॥ 

सो मरिउ' खमगजिओ संजाओ तस्स राइणो पुत्तो । झस-कुलिस-चक्कलंछणलंछियसुहविग्गहावयवो ॥|३१॥ 
विहिय॑ वद्धावणयं सुयजन्ममहसवम्मि नरबइणा । दिल्ञ' च देवयाए नाम॑ से नागदत्तो त्ति ॥३२॥ 

अह देहोवचएणं कलाकलावेण विद्धिमणुपत्तो । सबलजणनयणसुहओ ससि व्व पयइंण सोमतण ॥३३॥ 

सुहओ पुव्वाभासी पुध्वमवब्भासओ य नायपिओ । देव-गुरुपूयणरओ पच्चक्खो पसमधम्मो व्व ॥३४॥ 
संसारियसुहविमुहो रज्जसिरीसंगमस्स निरवेक्खो | कारागारगओ विव निव्वेयाओ वसइ गेहे ॥३५॥ 

अह अज्नया कया वि हु गुणवंताणं गुरूण पासम्मि | मोयाविऊण पियरं निक्खंतो जायसंवेगो ॥२६॥ 
पंचसमिओ तिगुत्तो दसविहमुणिचक्कवालकिरियाए। सययं चिय उबउत्तो वेयावच्चे विसेसेण ॥३७॥ 

अह तम्मि चेव गच्छे खमगा चत्तारि चरणसंपन्ना | मास-दुमास-तिमासिय-चउमासतवोविसेसरया ॥३८॥ 
अममत्ता निस्संगा कट्ठाणुद्नाणप्रोसियसरीरा । खुड्डगसाह तेसिं विसिसओ कुणइ बहुमाणं ॥३२५९॥ 

सो उण तिरिक्खजोणीसमागमा सययमेव य छुह्दाल । भुंजइ पइक्‍्खणं चिय विसुद्धमाहारमांणगेउ' ॥४०॥ 
वहइ य मणम्मि खेयं धिसि धिसि मम देह-जीवियव्वाण । पढमपरीसहभीओ जो5हमसत्तो तबं काउ' ॥४३१॥ 
एुए महाणुभावा पेच्छह सरिसे वि माणुसत्तम्मि | दुक्करतवचरणरया खर्वेति पोराणयं कम्म॑ ॥४२॥ 

अह अन्नया पभाए भरिउं दोसीणकूरद॒हियस्स । नियपडिगहयं पत्तो आलोएउं गुरुसयासे ॥४३॥ 

साहवो तो चियत्तेण, निमंतेज्ज जहक्कमं । जइ तत्थ कोई इच्छेज्ञा, तेहिं सद्धिं तु भुंजएण ॥० 2॥ 

इय वयणमणुसरंतेण तेसि सब्बेसि दंसियो कमसो । निच्छूढं सन्बेहि वि पडिग्गहे कोववसगेहिं ॥४४५॥ 

सो उण तहेव भुत्तो पवित्तमेयं मणम्मि चिंतंतो । मणयं पि हु न पउट्टो अहो ! हु से पसमपगरिसिया ॥४६॥ 
चित पसंतहियओ नडिओड5हमणेण निश्चमुयरेण । एएसि खेलमल्लयमवि सत्तो न हु समप्पें ॥४७॥ 

अह अन्नया य खुदडुयपसमगुणावज्जियाए ते खमए । मोत्तृण देवयाए गंतृर्ण वंदिओ खुड्डो ॥2८॥ 

निग्गच्छंती वत्थंचरम्मि धरिऊकण मच्छर वसेण । चउमासियखमगेणं भणिया सामरिसवयणेण ॥४०९।। 
कडपूयणि ! पावे ! पावपडलपच्छन्ननिम्मलविवेण ! । गुण-दोसवियारविसेससुन्नहियए ! हयपयावे ! ॥५०॥ 
मोत्तण5म्हे खबगे दुकरतवचरणसोसियसरीरे । एयं तिकालभोईं वंद्सि कह खुड्डयं लहुयं ? ॥५१॥ 

तीए बुत्तं भो दव्वखवग ! वंदामि भावखवगमहं । तेणुत्तं कहमेव॑ जंपसि पावे ! पदुद्ठमणे ! १ ॥५२॥ 

एयस्स अप्पणो वि य विसेसमिण्हि पि पासिह॒ह पयड्ड । इय वोत्तुणं खबगं सद्ठाणं देवया पत्ता ॥५३॥ 

एवं खुद्डुयमुणिणो निरवज्ञाहारभोहणो सययं । 3वसंतमणस्स द॒ढं वेयावच्चम्मि निरयस्स ॥५४॥ 
गुणपक्खवायबहुमाणवसणिणो गुरुकुछे वसंतस्स । उल्लसियजीवविरियस्स खबगसेढ़िं पवन्नस्स ॥५५॥ 
सुकज्काणहुयासणविसेसनिदड्घाइकम्मस्स । छोयालोयपयासं उप्पन्न॑ केवलं नाणं ॥५६॥ 

केवलमहिमं काउ' खुद्डुयमुणिणो सुरेहि भत्तीए | रइयम्मि कणयकमले उदबदविट्ठे खुडुयमुणिम्मि ॥५७॥ 
आगमन्तृणं भणिया ते खबगा देवयाए सामरिसं | पेच्छह खुड्डुयमुणिणो अप्पाणस्साबि य विसेसं ॥५८॥ 


१६. मिथ्यादुष्कृतदानफलाधिकारे चण्डरुद्ाव्यानकम्‌ १६३ 


एवं ते भणिया देवयाए तह कहवि सम्ममाउद्दा । जह अप्पाणं निंदि्‌उमाढत्ता पसमरसबसया ॥५९॥ 
धिसि धिसि अम्हाणं कोवसत्तुतसयाण कट्टनिरयाणं । जेहिमिमं पि न नाय॑ गुरूवएसं सुणंतेहिं ॥६०॥ 
निरवज्ञाहाराणं साहणं निश्वमेव उववासो । कोहंधाणं तु तवो वि निप्फलो कासकुसुमं व्व ॥६१॥ 
इय तेसिं पि हु सम्म॑ मिच्छाउकडपुरस्सरं हियए । सुहभावणावसेणं संजाय॑ केवलन्नाणं ॥६२॥ 
॥ क्षपकाख्यानक समाप्तम्‌ ॥५०॥ 

इदानीं चण्ड रुद्राख्यानकं व्याख्यायते । तश्ेद्म--- 
उज्जेणीए पुरीए सूरी बहुगुणगर्णेह परियरिओ । नामेण चण्डरुद्दो रुद्दो व्व सिवासयसणाहो ॥१॥ 
सब्भावेण सकोवो त्ति निययसिस्साण भमिन्नवसहीए । चिद्वह तन्रिस्साए सज्कायपरो महासत्तो ॥२॥ 
अह अज्नय। य एगो विलसिरसिज्ञारसुंद्ससरीरों । नवपरिणीओ बहुमित्तसंजुओ इच्भवणियसुओ ॥३॥ 
साहुसयासं पत्तो परिहासेणं भणंति से मित्ता | भयवं भवउब्विग्गोडमिवंछए एस पत्वज्ज ॥३॥ 
नाउ परिहासमिमेसि साहुणोडव॒गणिऊण तब्वयर्ण । सज्कायप्पभिददेयं वावारं काउमारद्धा ॥५॥ 
ते वि हु पुणो पुणो वि य परिहासेणं तहा पयंपंति | दुस्सिक्खियाणमोसहमिमेसि सूरि त्ति चिंतेउ' ॥६॥ 
भणियं मुणीहि गुरुणो दिक्खं वियरंति इय पयंपेउ' । भिन्नट्टाणम्मि ठिओ सूरी वि य दंसिओ तेसिं ॥७॥ 
केलीकिलत्तणेणं ते सब्बे सूरिणो समीवम्मि । संपत्ता परिहासेण पणमिउ' तत्थ उबविद्वा ॥८॥ 
भणियं च तेहिं भयवं ! भवभमणुव्विग्म्माणसो धणियं। अम्ह वयंसो एसो पन्वज्ज गेण्हिउ' महइ ॥९॥ 
एयत्थमेव सब्वंगसुंदरं विरहऊण सिंगारं । तुम्ह कमकमलजुयलं दुहसयदलणं समझ्लीणो ।॥॥१०॥ 
ता काऊण पसाय॑ दिक्‍्खादाणेण<5णुग्गहह एयं। इय निसुणिऊण सिरिचंडरुद्दसूरी वि कोववसा ॥११॥ 
चितेह पेच्छ पावा मामवि कहमुवहसंति ता एए | दुग्विलसियफलमिए्ह भुंजंतु विचितिउ' भणइ ॥१२॥ 
जह एवं ता भूईं दुयं समप्पेह सूरिणा भणिए | उवर्णति तय॑ ते वि हु कुओ वि ठाणाओ आणेउ' ॥१३॥ 
तयणंतरं सकोवेण सूरिणा भिउडिभीमभालेण । पेच्छंताण वि ताणं सिरम्मि निप्फाइओ छोओ ॥१४॥ 
ते वि हु विलक्खवयणा नियनियठाणेसु पडिगया मित्ता । तत्तो य इब्भपुत्तो कयंजली सुद्धपरिणामो ॥१५॥ 
पणमियतप्पयपउमो पयंपए पहु | पयच्छ पव्वज्ज | सम्म॑ चिय परिणमिओ परिहासो वि हु इमो मज्क ॥१६॥ 
तो इब्भकुलुब्भूओ सम्मं पव्वाविओ मुर्णिदेण | पुणरवि गुरूण चरणे पणमित्तु पयंपए एवं ॥१७॥ 
भयवं ! बहुसयणो हं मामे धम्मंतराइयं होउ | ता वच्चामों अन्नत्थ कत्थद भणइ तो सूरी ॥१८॥ 
जद एवं पडिलेहसु मग्गं इच्छेति जंपिकण गओ । सुविणीओ सुविणेओ मग्गं पडिलेहिउं पत्तो ॥१९॥ 
तत्तो निसाए सूरी गंतुमसत्तो पयं पि एगागी । वुड्नत्ततेण नवसिक्खगस्स खंधे भुयं काउ' ॥२०॥ 
संचलिओ खलियम्मि वि पयम्मि पयइप्पभूयकोवत्ता | तं॑ निब्भच्छिय ताडइ सिरम्मि दंडप्पहारेण ॥२१॥ 
सो वि हु महाणुभावो चित्तब्भंतरभवंतसुहभावो । चिंतइ मए किह एस पाडिओ एरिसे वसणे ? ॥२२॥ 
एयस्स महासत्तस्स साहुसज्ञायजुत्तचित्तस्स | जणयंतेणमसोक्खं अहह ! मए पावमायरियं ॥२३॥ 
नियसयलसाहुसामायारीपरिपाल्णेक् चित्तस्स । जणयंतेणमसोक्खं अहह ! मए पावमायरियं ॥२४॥ 
बहुद्विसजराजज्जरियविहुरगत्तस्स भुवणचि(मि?)त्तस्स । जणयंतेणमसोक्खं अहह ! मए पावमायरियं ॥२५॥ 
एरिसपरिणामवसुल्लसंतसुविसुद्धसुककाणस्स । नवमुणिवरस्स विमलं संजाय॑ केवलन्नाणं ॥२६॥ 
तप्पभिई सो तह कहवि नेह जह से न होह पयखलणा । तेणुत्त त॑ संपह कह सम्मं नेसि मं भद्द | १ ॥२७॥ 
अइसयभावाओ अहं सम्म॑ पासामि भणइ सो भयवं !। पडिवाइ अपडिवाइ ? त्ति भणइ सूरी कहसु एयं ॥२८॥ 
तेणुत्तमपडिवाई गुरू वि संवेगमागओ देइ । सम्म॑ मिच्छाउक्कडमेत्तो सूरुग्ममणसमए ॥२९॥ 





२, वाइ य गुरू २० । 


१६७ 


आश्यानकमणिकोशे 


सो चंडरुद्रसूरी नियइ सय॑ चेव निययसीसस्स । दृढदंडताडणुब्भूयरुहिरधारारुणं सीस ॥३०॥ 

तयणंतरं विचितह सूरी संजायगरु यवेरगगो । अहह ! महापावमिणं मए कय॑ कोववसगेण ॥३१॥ 
अज्जदिणदिक्खियस्स वि अन्ञाणस्स वि य बालयस्सावि । अन्नायविवेयस्स वि अहो ! खमा पेच्छ ए्यस्स ॥३२॥ 
बहुद्णिपव्वइ्यस्स वि सिद्धंतसमुहृपत्ततीरस्स । तित्थप्पह/वगस्स वि मह पुण एयारिसो कोबो ॥३३॥ 

बालो वि वरं एसो जो एयारिसखमाए परिकलिओ । न उणो अहय॑ परिणयवओ वि कोवंधनयणजु ओ ॥३४॥ 
ता एयस्स मए जं किंपि हु मणदुक्कडं कय इण्हि । त॑ होउ भावसारं मह मिच्छादुक्कडं विहिणा ॥३५॥ 

तस्स वि हिययब्मंतरभवंतसुहभावणाओ संजायं । पयडियलोगा-5लोगं केवलनाणं मुणिदस्स ॥३६॥ 
केवलिपरियायं पालिऊण पडिबोहिऊण भवियजणं | ते दो वि खवियकम्मा संपत्ता सासय॑ ठाणं ॥३७॥ 


॥ चण्ड रुद्रा व्यानकं समाप्तम्‌ ॥५१॥ 


अधुना मसगापत्याख्यानकस्यावसर: | तश्यचित्रध्रिययक्षाख्यानके वच्यते इत्यत्र नोच्यते। क्रमप्राप्त तु 


प्रसन्नचंद्राख्यानकमारभ्यते । तश्चेद्मू-- 


कजलल-बल ली लन+>+ 5 


अत्थि समुन्नयपव्ववपओहराए रसावरवहूए । हाररयणं व गुणरयणपोयणं पोयण्ण नयरं ॥१॥ 

तत्था55सि सोमचंदो चंदो व्व सुहायरो सुहो राया । त॑ सासंतो वि हु नवरमत्तिजणगो न लोयाणं ॥२॥ 
तस्सा55सि ससहरस्सेव रोहिणी रोहिणी व सुहवच्छा । सीलाइगुणालंकारधारिणी धारिणी भज्जा ॥३॥ 
तीए पसन्नमुत्ती पसन्नचंदो सुओ पसन्नमुहो । पणइयणबंधुकइरववणवियस|वणपसन्नकरों ॥9॥ 

एवं तेसि चउरंगवरूसमग्गं समिद्धरज्वसिर्रि | पालंताणं वच्च॑ति वासरा सुत्यहिययाणं ॥५॥ 

अह समयणमसमवसंतलच्छिसमलंकियं जय॑ सुहियं । दट्ठुं अचयंतो दुज्जणो व्व गिम्हो समणुपत्तो ॥६॥ 
मन्ने रविरहतुरया वि तरणिकरताविया परिस्संता । तुरियं गंतुमसत्ता तेण तहिं दीहरा दियहा ॥७॥ 

जम्मि य रविकरतविया जलासया सुहरसा वि संजाया | खलसंगे सुयणा इव असेवणिज्ञा य सुसिया य ॥८॥ 
सो चेव रवी ते चेव रविकरा जम्मि संतवंति जणं । मित्तो वि तबह भुवणं अहवा विगुणेसु दियहेसु ॥९॥ 
वीरीरवेहिं गायह वणराई जम्मि -गिम्हनवनिवह । उदयं पत्तो संतावगो वि सेविज्जइ [ज]यम्मि ॥१०॥ 
जम्मि य मयणाहियदुसहतावलयाझुडुकियसरीरा । पहिया जडहयहियया जोयंति पंवालियावयणं ॥११॥ 
एवंविहम्मि गिम्हे सीयलवायायणोवविद्वाएं | नियपिययमस्स दूरं परूढपणयाए देवीए ॥१२॥ 

चिहुरे विउरंतीए दिट्वं तम्मज्फूसंठियं पलियं | ससहरसियनियकंतीकलावचवलियदिसावलयं ॥१३॥ 

वुत्त तीए पहसियमुहीए दुओ समागओ देव ! | जा जोयइ तरलरूच्छो तीए हसिऊण तो भणियं ॥१४॥ 
देव ! न माणुसरूव॑ दूयमहं संप्य निवेयेमि । किंतु पलियं पि दूय॑ विउसा वन्नंति जेणुत्त ॥१५॥ 

उज्ञझसु विसए परिहरसु दुह्नण ठवसु नियमणं धम्मे । ठाऊण कन्नमूले इट्टं सिट्टं व पलिएण ॥१६॥ 

त॑ सो साममुही जाओ राया पियाए पुण भणिओ । भावं अमुणंतीए लज्जसि पलिएण कि देव ! ॥१७॥ 
सो भणइ मज्ञझ लज्जा न एस अज्ज वि य हरिसठाणमिणं । किंतु मए निययाणं मज्जाया रूंधिया देवि | ॥१८॥ 
जम्हा अदिद्वपलिया पृुच्विल्ला पंव्वइ सु महपुरिसा । अहयं पुण एमेव य विसयासत्तों गिहम्मि टिओ ॥१९॥ 
ता संपइ मुयसु मम त॑ पुण रज्जं सुयं च पालेसु | तीए भणियं एयं न भवद सामिय | जुयंते वि ॥ २०॥ 
तो अहिसिचिय रज्जे पसन्नचंदं गया य वणवासे । तीए गब्भी आसी पच्छन्नो तो सुओ जाओ ॥२१॥ 
ठईंओ य वक्कलेहिं वककलचीरि त्ति से कयं नाम॑ । अणुचियसामग्गीए देवी मरिउः सुरेसु गया ॥२२॥ 
वणमहिसीरूवेणं पायइ नेहेण दुद्धमागंतुं। जाओ य अट्ठवरिसो कमेण सो तावसवणम्मि ॥२३॥ 


१, भलक्िय रं० । २, प्रपाइ5लिका55पतनम्‌ । प्रत्नालिकावदनम्‌ । ३. पव्वयंसु रं०। 


१६. मिथ्मादुष्छतदानफलाधिकारे प्रसचन्दाण्यानकम्‌ १६४ 


एत्तो पसन्नचंदों संजाओ पयडसासणो राया । नाय॑ च जहा भ्राया चिट्ठर मह जणयपासम्मि ॥२४॥ 
तस्सा55णयणनिमित्त कुमरीओ तस्समाणरूवाओ । पदच्चह॒यनरेहिं सम॑ मोयगसंबलयकलियाओ ।॥|२५॥। 

पेसइ जम्हा बालो हीरइ सुव्बत्तमन्न-पाणेहिं । मोयगपुंजे विरयन्ति ताणि रुक्खाण छायासु ॥२६॥ 

सो विहु वकलचीरी गिण्हइ ते मोयगे तरुतलाओ । रुक्खाणमिमाणि फलाणि मुणिय संजायविस्संभो ॥२७॥ 
एवं कुमरो मोयगछोभाओ तासि सविहमन्लियद । जम्हा पसू वि घिप्पइ लोमेणं कि पुण मणुस्सो ? ॥२८॥ 
ताउ वि दरिसावेंतस्स दिंति विस्संभयंति वयणेहिं । दूरे जा आणीओ ता दिद्ठों तावसो इंतो ॥२९॥। 
आरुहिऊणं जाणेम्ु ताणि नद्ठाणि तस्स सावभया | सो ऊण न तेसि मिलिओ न यावि जणयस्स वणमज्झे ॥३०।। 
दिट्ठो रहिएण सभारिएण देसंतराओ वलिएण | भणिउमभिवायए ताय ! तेण विहिओ पणामो से ॥३१॥ 
तावसकुमरो कोबेस भमह ता मा विणस्सउ कहिंपि | इय संजायदएणं रहम्मि आरोविओ रहिणा ॥३२॥ 
दिन्ना य तस्स संबरलुयमोयगा तेण जंपियमिमाणि । रुक्खप्फलाणि पोयणतवोवणे पत्तपुन्चाणि ॥३३॥ 

पत्ताणि पोयणपुरे भणिओ गिण्हाहि उडवयं किंपि । ओयारियं रहाओ मुक्को रहिएण पुरबाहिं ॥३४॥ 

सो वि पविट्टी गणियागिहम्मि तीए निमित्तसंवाया । धरिओडणिच्छंतो विहु नहसोहणपंिह कारबिओ ॥३५॥ 
दिल्ला से नियबूया वत्थालंकारभूसियसरीरों । सकरूत्तो पल्‍्लंके निवेसिओ सा य तुद्ठमणा ॥३६॥ 

जा चिट्ठृद निव्भरसरसगीयपेक्खणयबिहियवक्खेवा । पुरिसेहिं ता कहिओ रज्नो कुमरस्स वुत्तंतो ॥३७॥ 

त॑ सोउं दुहियमणो गयनिद्दो जाव चिट्गए राया | ता निसुणइ गिज्ज॑तं गणियागेहम्मि तं गेयं ॥३८॥ 

को एस मए दुहियम्मि सुत्यथिओं पुरबरे महापावों ? ) जोयावियम्मि रज्ञा कहिओ गणियाए वुत्तंतो ॥३९॥ 
रुट्ेण वाहरिया तीयुत्त सुणसु देव ! परमत्थं । मह अत्थि पिया दुहिया सा सुहिया किर कहं होही ? ॥४०॥ 
एयत्थं च सुवयणो पुदट्ठी नेमित्तिओं मए एगो । तेगुत्त तावसरुवधारिपुरिसो अमुगदिवसे ।|७१॥ 

जो आगच्छइ त॑ तस्स देखु ता होहिही इमा सुहिया । तं॑ मज्क अज्ज जाय॑ नेमित्तियवयणमवियप्पं ॥४२॥ 
हरिसाऊरियहिययाए विहियमेयं अयाणमाणीए | मह उबरि देवपाया सकोवणा हुंतु मा तम्हा ॥४३॥ 

त॑ं सोऊर्ण रज्ना सो वि हु कद्या वि होज्ज इय मुणिउं । ते पुरिसा पट्टविया तेहिं वि सो पच्चभिन्नाओ ॥४४॥ 
आणीओ निवपासे एसो चिय तुह सहोयरो देव !। विहिय॑ वद्धावणयं गणियाधुया य आणीया ॥४५॥ 
रज्जसिस्मिणुहवंताण ताण वच्च॑ंति जाव दिवसाणि | ता सो तावसजणओ वक्कलचोरीविओगम्मि ॥|9६॥ 
सोएण नयणनीलीरोएणं नवरमंधघभो जाओ । नाऊणमिमं राया सपरियणो तत्थ संपत्तो ॥०७॥। 

पणओ पिडठणो तेण वि सायरमाभासिओ य बच्छ ! तुम । कुसली पालसु रज्ज धम्मपरो खत्तनाएणं ॥४८॥ 
वक्कऊचीरी पणमइ भयव ! तुह पायपठममिइ सो । हरिसविसप्पियहियओ उच्छंगम्मी निवेसेउं ॥७९॥ 
नियकरयलेहिं कुमरं परामुसंतस्स सुहियहिययरस । हरिसंसूहि सम॑ चिय नद्ठा नीली निरुषबनयणो ॥५०॥ 
पासइ सव्व॑ं जणओ इय तेसिं हरिसमुव्वहंताणं । वक्कछचीरी उडवेसु भंडयं पुव्वविहिणा उ ॥५१॥ 

जा पडिलेहइ मुणिपायकेसरीपत्तयप्पयारेण । ता जायजाइसरणो जाओ पत्तेयबुद्धमुणी ॥५२॥ 

संपत्तववगसेढी सुहपरिणामेण केवली जाओ । कहिओ तेसि धम्मों पडिवन्ना जिणवरमयं ते ॥५३॥ 

नीया य वीरपासे सम्मं पव्वाविया जिणिंदेण । अह कइया वि हु वीरो समागओ पोयणपुरम्मि ॥५०॥ 

राया पसन्नचंदो रज्जे अभिसिचिऊण नियकुमरं । पव्वइओ वीरेणं सह पत्तो रायगिहनयरे ॥५५॥ 
नयर-समोसरणाणं आयावइ अंतरम्मि स महप्पा | सेणियराया वि जिणिंदवंदणत्थं विणिक्खंतो ॥५६॥ 
सुम्मुह-दुम्मुहनामा रन्नो दो सेवगा रयभएणण । अग्गे गच्छंतेणं भणियं सुमुहेण मित्त ! इमो ॥५७॥ 

राया पसन्नचंदो कयपुन्नो उज्झिऊण रज्जसिरिं। आयावइ निस्संगो बीएणुत्त कहं मित्त ! ॥५८॥ 

पावइ एस पसंसं ? जो बालू नियसुयं ठविय रज्जे । निक्खंतो सो संपइ सीवालेहिं पराभूओ ॥५९॥ 


श्द्रेदे आश्यानकमणिकोश 


इय कक्षकडुयवयणायज्नणसंजायरोसरत्तच्छो । चिंतह मइ जीवंते को मम पुत्तं पराभवह १ ॥६०॥ 
हिययब्भं[त] रविप्फुरियरोसपारद्धसमरभूमिए । सत्तहिं सम॑ कूस-सत्ति-सेल्ू-वावल्ल्सत्थेहि ॥६१॥ 
जुज्झंतस्स पहुत्तो सेणियराया पयाहिणं काउ' | त॑ वंदिऊग य गओ सुमरंतो तस्स गुणनियरं ॥६२॥ 
वंदित्तु जिणं पुच्छइ जंसमयं वंदिओ मए भयवं | । राया पसन्नचंदो तंसमयं कुणइ जइ काल ॥६३॥ 
ता जाइ कहिं ? भणियं जिणेण सत्तमर्मा६ महाराय ! । तुण्हिक्को जाव ठिओ तो तेण पसन्नचन्देण ॥६४॥ 
मुक्केस पहरणेसुं पहाणसत्तम्मि विसहमायाए । जाव पसारइ हत्थं तब्बहणत्थं सिरत्ताणे |६५॥ 
ता पेच्छइ निययसिरं विलुत्तकेसं तओ महासत्ती । पदच्चागयसंवेगो चितिउमेवं समाठत्तो ॥६६॥ 
रे जीव ! कत्थ समरो ? कत्थ तुम संजमं समभिरूढ़ो ? | अप्पाणं मोत्तणं अणज्ज ! तं पत्थिओ कत्थ ? ॥६७॥ 
चारित्तरायसुहडत्तमस्सिओ त॑ पहाय निययपहुं। मिलिओ सि मूढ ! पडिवक्खमोहरायस्स सेन्नम्मि ॥६८॥ 
एरिसमुहेण रंजिहसि निच्छिय॑ त॑ चरित्तनिवइ्ममुं । पाविहसि जयपडायं सिवपुररज्ज च मन्ने हं ? ॥६९॥ 
भयवइवयणं सुहयं तमेगमेगस्स णं ति सुमरंतो । कत्थ तुम ? कत्थ सुओ ? कि मूढमणो परिब्ममसि १ ॥७०॥ 
इय पदच्चागयभावो पुणो वि त॑ कहवि भ्राणमारूढो । सम्म॑ मिच्छाउक्कडदाणपुरस्सरमिमों भयवं ! ॥७१॥ 
जह खबगसेढिमारुहिय घाइकम्मक्खवएण खणमज्झे । जाणियसव्वपयत्थं संपत्तो केवलन्नाणं |७२॥ 
देवेहिं कया महिमा पहयाओ दुदुहीओ त॑ दट ठुं। सेणियनिवेण पुट्ठं भयवं ! कि एस सुरविसरो ? ॥७३॥ 
जाय॑ पसन्नचंदस्स केवल कहमिमं ? ति सब्वो वि। रन्नो मणवावारों निवेइओ वीरनाहेण ॥७४॥ 
॥ प्रसन्नचन्द्राख्यानक समाप्तम ॥५२॥ 
' मिच्छाउक्कडदाणा जह एएसि महाणुभावाणं । जाय॑ केवलनाणं तह अन्नस्स वि य होइ तय॑ ॥१॥ 
वेरानुबन्धमभिहन्ति महन्ति[--]स्य, दातारमज्जिनमनज्जजितां मतेडस्मिन्‌ । 
निःशेषकर्मशमक जनक च शुद्धेमिथ्येति दुष्क्ृतपदानुगमो मनन्ति ॥१॥ 
॥ इति श्रीमदाप्नदेवसूरिविरचितवृक्तावास्यानकमणिकोशे सम्यम्मिथ्यादुष्कृतदानफलवर्णनः षोडशो5थिकारः 
समात्तः ॥१६॥ 


&6<-८&७2८०७ 


[ १७, विनयफलवणेनाधिकारः ] 


उक्तो मिथ्यादुष्कृताधिकार:। साम्प्रतं मिथ्यादुप्कृतशुद्धन विनयो विधेय इत्यनेन सम्बन्धेना$डयातं विनयाधिकारं 
व्याख्यातुकाम आह-- 


विणएण कज्असिद्धी सिज्कंति सुरा वि विणयकरणेण । 
जह चित्तपिओ जक्खो जहेब वणवासिणो जक्खा ॥२२॥ 
ब्याख्या--'विनयेन' औचित्यप्रतिपत्तिलक्षणेन 'का्यसिद्धि:” प्रयोजननिष्पत्तिभेवतीति शेष: । 'सिध्यन्ति' वशीभवन्ति सुरा 
अपि आसतां मनुष्यादयः 'विनयकरणेन' भक्तिसम्पादनेन । अन्न दृष्टान्तावाह--यथा' येन प्रकारेण “चित्रप्रिय:” दयितचित्रकर्मो 
“यक्ष:' देवविशेषः, यथैव “वनवासिनः' उद्यानवसतयो “यक्षा:” सुरविशेषा [इ]ति गाथाक्षरार्थ: ॥२२॥ भावाथस्त्वाख्यानकाभ्या- 
मवसेय: । ते चामू । 


१७, विनयफलवणणनाधिकारे सित्रप्रिययक्षास्यानकम १६७ 


तत्र तायत्‌ चित्रप्रिययक्षाय्यानकमाख्यायते । तश्े 
अत्थि महायणकिज्जंतरायमाणं विरायमाणं पि। सम्गसिरीए अलब्भं पि पुरवरं नाम साकेयं ॥१॥ 
तस्तुत्तरदिसिभाए रम्मुज्ञाणे [4] सुरपिओ जक्खो । सो चित्तपिओ जत्तं काउं चित्तियह बरिसंते ॥२॥ 
चित्तयर् पुण मारह एवमविहिए जणं पि मारेह | मयवसगस्स5हव सुरप्पियस्स जुज्बह इम॑ चेव ॥३॥ 
चित्तयरा तस्स भया सब्बे रूगा पलाइउं बद्धा । संकलिगाए जस्सेह नामगं सो वि चिंतेइ ॥9॥ 
कोसंबीओ चित्तयरदारओ चित्तसिक्खणनिमित्तं । तत्थाउडयाओ विद्धाए एगपुत्ताए गेहम्मि ॥५॥ 
तीए सुयस्स नाम॑ समागय॑ सा वि रोविउं रूगगा । आगंतुगेण वुत्तं अम्मो ! कि रुयसि ? तीयुत्त ॥६॥ 
जहवत्तं तेणुत्तं अंब ! अहं चेव चित्तहस्सामि । तीए वि हु संलत्त कि बच्छ! तुम मह न पुत्तो ? ॥७॥ 
सच्चमिमं तह वि मए कायव्बमिमं ति निच्छयं काउं | कयण्हाणो सुइभूओ सियवत्थो बंभवयधारी ॥८॥ 
काऊणं छट्ठतवं पवित्तवन्नेहि विणयपुव्वमिमो | तह कहवि चित्तिओं खामिओ य जह तस्स सो तुट्टो ॥«॥ 
वरसु वरं देमि तयं तुट्टो हं तुज्म किपि मणरुइयं । तेणुत्तं जइ एवं जणस्स मा मारणं कुणसु ॥१०॥ 
जायमिमं अन्न पि हु भणसु महाभाग ! मह समाहिकए । तेणुत्तं दुपय-चउप्पंयस्स पासामि ज॑ देसं ॥११॥ 
तस्साणुसारओ च्िय लिहेज्ज सेसं पि एस होज्ज वरो । पडिवन्ने तेणमिमो संपत्तो अक्खयसरीरों ॥१२॥ 
रायाईणं कहिओ सब्वो वि हु जक्खबइयरो तेण । त॑ सोडं तुद्ठेणं सलाहिओ पूइओ एसो ॥१३॥ 
नियनयरे संपत्तो इओ सयाणायराइणा तत्थ । चिक्तेउं चित्तसभा पारद्धा तयणु सब्वेसि ॥१४॥ 
चित्तयराण सेमाए विभइज्जंतेसु भूमिभाएसु । अंतेउरस्स पासे भूभाओ तेण संपत्तो ॥१५॥ 
तेणं मियावईए पायंगुट्टी कहिंपि सच्चविओं । तो तयणुसारओ चखिय रूव॑ देवीए निम्मवियं ॥१६॥ 
जाव संवार्‌इ चक्खुं ता पडिओ उरूयम्मि मसिबिंद्‌ | फुसिओ वि पुणो पढडिओ एवं दो तिन्नि वाराओ ॥१७॥ 
पडियम्मि तम्मि नाय॑ एवं विय नुणमेत्थ भवियव्वं | निप्पन्नम्मि य चित्ते जाव निवो नियइ चित्तसहं ॥१८॥ 
ता तम्मि तहा दिट्टे मम पत्ती धरिसिया अणेणं त्ति। जा बज्ञो आणत्तो ता मिलिया चित्तयरसेणी ॥१९॥ 
देवेस वरगुणेणं अदिट्ठमवि रूवयं लिह॒इ सब्बं | अवयवदरिसणओ चिय ता पसिऊणं मुयसु एयं ॥२०॥ 
खुज्जाए अंगुट्टो जवरणंतरियाए दंसिओ तत्तो । तीए रूवे निम्मावियम्मि से पचओ जाओ ॥२१॥ 
अंगुलिअंगुद्ठपुडं तहा वि छिंदाविऊण वेरवसा । मुक्को रन्‍ना तेण वि पुणरवि आराहिओ जक्खो ॥२२॥ 
वामकरेण वि चित्तिहसि तेण दिल्ने वरम्मि अमरिसओ । लिहिऊण चित्तफलए मियावई दंसिया तेण ॥२३॥ 
पज्जोयस्स निवइणों तेण वि दूओ सयाणियनिवस्स । जह पेसविओ नयरी य रोहिया जह य खोभेणं ॥२४॥ 
रायम्मि मयम्मि जहा कारिय सुत्थत्तणं विसंवश्या । संभरियं तीए जहा सिरिवीरजिणिंदपायाणं ॥२५॥ 
वीरम्मि समोसरिए जह पव्वइया जहा य सविमाणा । अवयरिया चंद-रवी जह तत्थ ठिया अणाभोगा ॥२६॥ 
वेलाइकमभीया जह पत्ता चंदणाए पयमूर्ल । जह संतियाए सा चोयणाए तीए वि सिक्खविया ॥२७॥ 
तारिसकुलजायाए तारिसगुरुदिक्खियाए तुह जुत्त | एगागिणीए ठाउ' एत्तियवारं पमायवसा ॥२८॥ 
जह एवं सिक्खविया तीए चलणेसु निवडिया संती । जह निदिउमारद्धा अप्पाणं गुरुपमायवसा ॥२९॥ 
रे जीव ! किमुच्चरियं अज्ब वि तुह गुरुगुणाए गुरुणीए | पडिचोइयस्स ? एवं बुज्मसु जइ अत्थि चेयन्नं ॥३०॥ 
त॑ कत्थ गओ सुज्कसि ? कत्थ गओ निव्वुईं तुमं लहसि १ | दंससि तं कस्स मुहं काऊणं एरिसपमायं ? ॥३१॥ 
इय पसमामयसित्ताए तीए नियगरुयदोसपडिवत्ति । मंसंतीए तइया सो को वि सुहो समुल्लसिओ ॥३२॥ 
परिणामों अप्पुब्वो जेणारूढाए खबगसेढीए । पयडियजीवा-3जीवं उप्पन्नं केवल नाणं ॥३३॥ 
रयणीए सप्पदंसणपमिई जह पुच्छियं तहा सब्बं । गंथंतराओ नेय॑ एत्थ न भणियं पसिद्धं ति ॥३४॥ 
॥ चित्रध्रिययक्षाब्यानकं समाप्तम ॥५३॥ 
१. प्यय-अपयस्स पासामि खं० २० । २. समवाये इत्यर्थः । 


शष्प आंश्यानकंणिकोशे 


इदानीं वनवासियक्ञाख्यानकमारभ्यते । तथ्यथा-- 
अत्थि तहाविहधम्मियजणा उले महइ सब्निवेसम्मि । विंज्को व्व गुरुपमाणो पाल्यिसावयवओ सड़ो ॥१॥ 
अह अन्नया य सम्मेयसेलसिहरम्मि तित्थजत्ताए | सत्थेण सम॑ं चलिओ जा पत्तो तस्समीवम्मि ॥२॥ 
एगम्मि सन्निवेसे बाहि आवासियम्मि सत्थम्मि | जक्खाययणस्स वणे पलासतरुणो समतलूम्मि ॥३॥ 
नियद तहाबिहलोयाण पूयणिज्ञाओडहिट्टिययणाओ । निक्खयकीलयरूवाओ जक्खपडिमाओ णेगाओ ॥५॥ 
ताण य मज्झे पासह पलासपोयं निहाणकयसूय । अन्नस्स कहिस्समिमं मज्क वयाइक्रमो जम्हा ॥५॥ 
तत्तो य गाममज्झे सावयगिहपडिमवंदणनिमित्त । जाब पविट्टो ता नियइ सावगं दुग्गयं एगं ॥६॥ 
परमच्चंतविणीयं तस्स गिहे वंदिऊण जिणबिंबं | जाव5च्छइ ता तेणं साहम्मियविणयकरणेणं ॥॥ 
रंजियचित्तो साहइ निहांणसंबद्धवइयरं तस्स | तेण वि य दीहदरिसित्तणेण रन्नो तयं कहिय॑ ॥८॥ 
रत्ना वि तस्स रिजुया-विणयाइगुणेण रंजियमणेण । अणुजाणियं निहाणं गिन्हसु सब्बं पि तुह दिन्न॑ ॥९॥ 
तेण वि सुइभूएणं विणएणा55वज्जिऊण ते जक्खे । सुमुहुत्ते सब्बं पि हु वसीकययं दविणजायं त॑ ॥१०॥ 
जिणभवणाइसु सत्तसु खेत्तेसुं वइय निशच्चमेध तय॑ । पज्जंते सुगईए पत्तो काऊण धम्ममिमों ॥११॥ 
जह एयाणं जाओ इह-परलोयाण साहओ विणओ । तह अन्नस्स वि जायइ ता जद्यव्बं इमम्मि सया ॥१२॥ 
॥ वनवासियज्ञाख्यानकं समाप्तम्‌ ॥५४॥ 
प्राणप्रियो विनयवानिह लोक एवं, सर्वेज्शासनमिदं विनयात्‌ प्रवृत्तम । 
कुवेन्ति तीर्थपतयोडपि यदेनमेवं, सद्धमेकल्पतरुमूलमुशन्ति सन्‍्तः ॥१॥ 
॥ इति श्रीमदाप्नदेवसूरिधिरचितवृक्तावाख्यानकमणिकोशे विनयफलवर्णनो नाम सप्ततशो5धिकार: समाप्तः ॥१७॥ 


मर 8 ८५02, मा 


[ १८. प्रवचनोन्नत्यधिकारः ] 


व्याख्यातः सामान्येन विनयः | साम्पतं प्रभावनारूपं विशेषविनयमभिधित्सुराह-- 
मोक्‍्खसुहबीयभूयं सत्तीए पवयणुन्नह कुज्जा । 
विण्हुमृुणि-वह्र-सिरिसिद्ध-मन्न-समिय-5ज़ख उड व्व ॥२३॥ 


व्यास्या--'मोक्षसुखबीजमूत॑' निवोणशर्मेककारणं “शक्तौ' साम्थ्यें सति प्रवचनोन्नतिं तीर्थप्रभावनां 'कुयोंद” विदध्यात्‌ | 

दृष्टान्तानाह-विष्णुश्च-विष्णुकुमारों राजपुत्रः वेरश्च-वैरस्वामी (श्रीसिद्धश्व] श्रीसिद्धसेनदिवाकरों [मल्लइच] मल्लवादी समितश्च 
वैरस्वामिगुरुः आयेखपुटश्च-समयप्रसिद्धो विद्यासिद्धः ते तथोक्ता:, ते इब तद्गद्‌ इत्यक्षराथं: ॥२३॥ 
भावार्थ स्त्वाब्यानकगम्य: । तानि चामूनि। तत्र तावद्‌ विष्णुकुमाराख्यानकमारभ्यते | तश्चेंद्म-- 

हत्थिणउरम्मि नयरे दुब्बन्नजुओ सुबन्नजुत्तो वि। अट्टावयपरिकलिओ आवयरहिओ वि जत्थ जणो ॥१॥ 

मणपवणजबणवाहो बाणासणमुणकिणाभरणबाहो । पउमुत्तरनरनाहो तत्थ5त्यि महाबल्सणाहो ॥२॥ 

समुवज्जियगुणमाला जाला नामेण आसि से देवी । अन्नोन्ननेहसाराण ताण काछो अइक्कम३ ॥३१॥ 

केसरिसुविणयसिट्टो विण्हुकुमारो त्ति ताण पढमसुओ । बीओ य चउद्ससुमिणसूइओ सिरिमहापउमों ॥०॥ 

तत्थ निरीहो जेट्टो रज्वसिरिं इेहण पुण कणिट्टो । जुवरायपए रज्ना तो अहिसित्तो महापउमो ॥५॥ 


२२ 


१८. प्रवचनोन्नत्यधिकारे विष्णुकुमाराख्यानकम्‌ १६८- 


एत्तो य अवंतीए पुरीए सिरिधिम्मनामओ राया । सब्भावेग पउट्ठी मंती नामेण नमुई्दे से ॥६॥ 
सिरिमुणिसुव्ववजिणनाहसंतिओ सुव्वयाभिदह्दों सूरी । समवसरिओ पुरीए उज्जाणे सुमुणिपरियरिओ ॥७॥ 
सह नमुइमंतिणा नरबई गओ सूरिवंदणनिमित्त । पणमिउमुवविट्टे तम्मि रायपञ्ब॑तकोयम्मि ॥८॥ 

सह सूरिणा वितंडावाओ पारंभिओ अमश्चेण | अवहीरिओ मुर्गिदिण मोणमालंब्रिय खमाए ॥९% 

एसो हु बलीवद॒प्पाओ सूरी न याणए किंपि | इय तेणुत्ते नियगुरुपरभवं असहमाणण ॥१०॥ 

एगेण विणेणणं नर्रिदपज्जन्तपठरपच्चक़्खं । विहिओ निरुत्तरो सो महापओओसं गओ तयणु ॥११॥ 
मुणिमारणाय रयगणीए आगओ कड्डिऊण करवारु | धरिओ तहेव पावो सासणदेवीए थंभेउ' ॥१२॥ 

दिट्ठो तहट्विओ सो गोसे रज्ना सपठरलागेण । त॑ दट ठुं बहुमाणी जाओ साहूसु छोगस्स ॥१३॥ 

मुक्को य देवयाए करुणाए तत्थ लोयलज्जन्तो । हत्थिणउरम्मि गंतुं अल्लीणो निवमहापउमं ॥|१४॥ 

तेण कओ मंतिपए अह5ल्नया सीहबऊूनिवो तस्स । नियदुग्गबलूसमेओ लूडइ निस्सेसमवि देसं ॥१५!। 

सो निययबुद्धिपगरिसपभावओ नमुइमंतिणा बद्धो । तुट्टेण वगे दिल्लो रज्ना तेण वि भणियमेयं ॥१६॥ 
चिट्ठठ तुम्ह सयासे जायम्मि पओयणे गहिस्सामि | अह अन्नया य जालादेवीए दविणजाएण ॥१७॥ 
कारवियं रहरयणं जिणस्स बंभस्स पुण सबत्तीए | रूच्छीनामाएु तओ जाओ। दोण्ह वि विसंवाओ ॥१८॥ 
पढम॑ रहजत्ताए तो पउमुत्तरनिवेण पडिसिद्धा । दोन्द्र वि रहा महापउमजुबनिवों तयणु रयणीए ॥१९॥ 
जणणोअवमाणं मन्निऊकण सो एगगो वि नीहरिओ । वीवाहिंतो नर-खयर-रायकन्नाओं परिभमिओं ॥२०॥ 
सयलं पि चक्षिरिद्धि आसाएऊण हृत्थिणपुरम्मि | जाओ पयडपयावा छक्खंडवई महापउमो ॥२१॥ 

जो रज्ना पडिसिद्धो जणणीए रहवरो तया आसि । सो गरुयविभूदेए नियनयरे भामिओ तेण ॥२२॥ 

एवं सो चक्कवई पुन्नपभावेण परममाहप्पं | पत्तो अहृडन्नया तत्य आगओ  सुब्बओ सूरी ॥२३॥ 
राय-महापउमेहि रज्जनिमित्तं पयंपिओ विण्हू | विसयपिवासाविरणण तेण परिवज्िए रज्जे ॥२४॥ 
अहिसित्तो सुमुहुत्ते पउमुत्तरराइणा महापउमो | पव्वदओ य सर्विण््र राया सूरीण पासम्मि ॥२५॥ 
कयचारुतवच्चरणो राया सिद्धि गओ निहयकम्मो । जाओ विण्हुकुमारों वि सयलसिद्धंततत्तविऊ ॥२६॥ 
आगासगमप्पभिईओ तस्स जायाओ असमलड्भीओ । विहरेंइ महासत्तो उबसंतों सो महीवीढे ॥|२७॥ 

अह अन्नया य हत्थिणउरम्मि विहियम्मि वरिसयालम्मि | सिरिसुव्वयसूरीह वहुमुणिपरिवारकलिएहिं ॥२८॥ 
दिद्ठा य अन्नया नमुइमंतिणा ते पओसजुत्तेण । पुव्वपराजयसंभरणमच्छरप्फुन्नहियणण |॥२९॥। 

एसो समओ नियवेरसाहणे इय विचिंतयंतेण । चक्की कयप्पणामेण नियवरं मग्गिओं तेण ।|३०॥ 
वेउत्तविहाणेगं देव ! महाजन्नमायरिस्समहं । ता मज्झ केत्तियाणि वि दिणाणि रज्ज पयच्छेहि ॥३१॥ 
अंतेउरे पविट्टी नरेसरो तस्स रज्वमप्पेड | अलियकयजन्नदिवखों संपत्तो जन्नवाडम्मि ॥३२॥ 

पासंडिणी सपडरा वद्धावणए समागया तस्स | नवरं न गया समणा तो वाहरिऊण तेणुत्ता ॥३३॥। 
बद्धाविउं न पत्ता तुब्भे मं जन्नदिक्खियं एत्थ | ता चयह संपयं मे देस तो जंपए सूरी ॥३४॥ 
पंचप्पयारसज्कायकरणवरक्खित्त वित्त वित्तीहिं । परिहरियसयलसावज्जलोयतत्तीहिं अम्हेहि ।!३५॥ 
बद्धाविओ न तं॑ नरवरिंद ! न हु किंपि कारणं अन्न | ता मा कोव॑ कुण अम्हमुबरि इय जंपिओ तेहिं ॥३६॥ 
खुटठुयरं कुबिओ सो पयंपण सत्तद्विसपज्जंते । जो चिट्ठिही स नियमेण मारियव्वो मए पावो ॥३७॥ 

गंतुं नयरुज्ञाणम्मि सूरिणो सह समग्गसंघेण । आलोचिउं पयत्ता किह उवसमिही इमो मंती ॥|३८॥ 

ता एगेण विणेएण पभणियं ए्‌इ कहवि जह एत्थ । विण्हुकुमारमुणी ता उवसमइ न अजन्नहा एसो ॥|३९॥ 
सो पुण अंगामंदिर्सेले ता भगइ मुणिवरों अवरो । आगासगमणसत्ती विज्जइ मह न उण आगमणे ॥॥४०॥ 
जइ एवं ता सो वि हु तमिहा55णेहीद पणिओ गुरुणा । इय भणिए उप्पदओ तमालदलूसामर्ं गयणं ॥४१॥ 


१७० आद्यानकमणिकोशे 


दष्ट ण तयं संघस्स कारणं किंपि होहिही गुरुयं । जं पाउसे वि साहू समेह इय चिंतयंतस्स ।|४२॥ 
विण्हुकुमारस्स मुणी समागओ पणमिऊण तच्चरणे । कहिओ सब्बों वि हु नमुइमंतिणो वइयरों तस्स ।।४३॥ 
तो विण्हुकुमारमुणी त॑ घेत्तः नहयलेण संपत्तो । पणमियगुरुकमकमलो समागओ नमुइअत्थाणे ॥४४॥ 
सामंत-मंति-मंडलिय-पउरपज्जंतरायलोएण । नमुइविहृणेण महीमिलंतभालेण पणओ सो ॥४४॥ 
तो तेणुत्तो मंती नरिंद ! विर्यम्मि वरिसयालम्मि । गच्छिस्सामो अन्नत्थ सहसु ता कश्बयदिणाणि ॥४६॥ 
त॑ सोउं घयसित्तो व्व पावओ [पावओं] नमुइमंती । पमणइ जद भणियदिणाणमुबरि तुम्हाणमेगं पि ॥४७॥ 
पेच्छिस्सामि समग्गं पि दंसणं ता तहा हणिस्सामि । न जहा तुम्हाणं कोइ कत्थद दीसई भुवणे ॥४८॥ 
एयारिसं निसामिय चित्तब्भंतरसमुच्छलियकोवो | पगलंतसेयजालो मिउडीभीसावणनिडालो ॥ ४९॥ 
दुष्पेच्छरत्तनेत्तो खलंतजीहाबविणिस्सरियवयणो । फुरफुरियहोट्टजुयलो एवं भणिउं समादत्तो ॥५०॥ 
अहो ! प्रकृतिसाद॒श्यं श्लेष्मणो दुजेनस्य च । मधुरैः कोपमायाति, कटुकेरुपशाम्यति ॥५१॥ 
जइ वि हु एवं तह वि हु वियरसु तिण्हं पयाण मह ठाणं । तेणावि अवन्नाएं भणियं गिण्हसु पए तिन्नि ॥५२॥ 
तो वेउव्वियल्द्धीए वद्धिओ लक्खजोयणपमाणो । विकरालकालकाओ भयंकरो तिहुयणस्सावि ॥५३॥ 
दटटुं महाभयंकरकरालरूवं महापमाणं तं। नर-अमरा-5सुर-खेयरनियरा भयकंपिरा जाया ॥५४॥ 
गरुयप्पमाणपव्वयनिटठुरपयदद्दरे कए तेण । विस्संभरा सगिरिनियरकंदरा कंपिउ' रूगा ॥५५॥ 

' झल्लज्मलिया सब्बे वि सायरा खडहडंति पायारा । इय असमंजसरूबं तिजयं सब्बं पि संजायं ॥५६॥ 
दाउ' सिरम्मि पाय॑ पायाले घत्तिओ नमुइमंती । साहुवियंभियमेरिसममचनाहेण नाऊग ॥५७॥ 
पट्टवियाओ सिंगारियाओ अमरीओ कोवसमणट्ठा । ठाऊण ताओ मुणिसवणजुयलूसबविहम्मि मिउवयणा ॥५८॥ 
मुणिउवसमसंबद्धं गेयं ग।यंति महुरसद्देग । तह अमर-चारणा वि हु पारद्धा उवसम॑ पढिउ ॥५९॥ 
कुव्बंति संतिकम्म विप्पा तह सावया वि भयभीया । जाया जिणेसराणं न्हवण-5च्वणकरणतल्लिच्छा ॥६०॥ 
मुणिणो उवसमरसपूरियाइं वयणाणि भणिउमादत्ता । सह चक्किणा जणो से छग्गो चलणेसु सब्बो वि ॥६१॥ 
तो उबसंतो स मुणी उवसमरसगब्भवयणसवर्णण । जिणपवयणस्स जाया समुन्नई तप्पभावेण ॥६२॥ 
तद्ियहाओ जाओ जयम्मि स मुणी तिविक्रमडभिहाणो । उप्पाडिउः कमेण य केवलनाणं गओ सिद्धि ॥ ६३ ॥ 
चक्की वि महापउमो भारहखेत्तं समग्गमवि भोत्तु । कयपव्वज्जो संजायकेवलो सिवपुरिं पत्तो ॥६४॥ 


॥ विष्णुकुमाराख्यानक समाप्तम्‌ ॥५५॥ 
अधुना वैरस्वाम्याख्यानकमाल्यायते । तद्यथा-- 


इह जइया किल भयवं गोयमसामी जिणे(ण]5णुन्नाओ । अट्ठावयमारूढो नीसेसपमायरहिओ वि ॥१॥ 
आयासगमणलद्धी वि परिमिमो खेयरहियगइगमणो । पुट्टी वेसमणेणं रयणीए महातबस्सिगुणो ॥२॥ 

जह जाए संदेहम्मि तस्स कुवियप्पविडडणनिमित्तं । पुंडरिय-कंडरीयाण तणयमज्कयणमकरहिंसु ॥ २॥ 
पढ्यमसेसं पि हु जेण तप्परीवारगुज्ञगेण ठयं । तुंबबणसनिवेसे सो जाओ वहरसामिम्रुणी ॥०॥ 

तत्तो गब्भत्थस्स वि जणओ मोयाबिऊण पव्बवशइओ । जह सो बालो दिलन्नो तइया जणणीए जणयस्प ॥५॥ 
जह य विवाए जाए जित्तं संघेग तम्मि पत्थावे | जह पत्नइओ निइमइगुणग जह रंजिओ सुमुरू ॥६॥ 
जह गुज्मएहिं बालो निमंतिओं जह य गणहरपयम्मि । नियगुरुणा संठविओं जाओ आएज्जवयणो य ॥७॥ 
जह तस्स रूय-लायन्न-कंति-सोहग्गणुणकलावेण । हयहिययाए धुयाए सेट्टिणो पत्थिओ भयवं ॥८॥ 
वेउन्बियलद्धीए कुसुमपुरे रंजिओ जहा राया । जह ओराला जस-कित्ति-बन्न-सद्दा य से जाया ॥९॥ 
किंच हुयासणगेहाओ कुंभमाणेण कुसुमनियरेण । मुणमणिरोहणगिरिणा पभावणा जह कया तत्थ ॥१०॥ 
पुन्वदिसाओ उत्तरपहम्मि पत्तेण महइ दुब्मिक्खे । पडविज्ञाए य जहा संघो नित्थारिओो तेण ॥११॥ 


१८, प्रवचनोक्नत्यधिकारे गैरस्वास्यास्यानकम्‌ १७१ 
सिरिवीरजिणेसरतित्थनाहतित्थं पभावयंतेण । विहरंतेण पमूयं काल॑ कलिकलुसमहणेण ॥१२॥ 
पच्छिमवयम्मि कहया वि तस्स सिंभाहियम्मि संजाए । सुंठीए विम्हरण अणसणमाराहियं तेण ॥१३॥ 
नियपरिवारजुणणं जहा रहावत्तपव्वयवरम्मि | आवस्सयाओ नेय॑ सब्बं पि हु वित्थरेण तहां॥१४॥ 
॥ वैरस्वाम्याख्यानकं सड़ क्षेपत: समाप्तमिति ॥५६॥ 


अधुना [क्रम]प्राप्त श्लीसद्धसेनाख्यानकमाख्यायते । तश्चेद्मू-- 


तहाहि-- 


उज्जेणीए पुरीए सूरी सिद्धंतपपारगों आसि । नामेण विद्धवाई तिरोमणी विउसवग्गस्स ॥१॥ 
नियविउसत्तवसेणं तहा महागरुयगव्वयाए इमो । विहियपहलन्नों नज्जह सब्वत्थ इमेण पढिएण ॥२॥ 

मदगो: श्रड्जं शक्रयश्टिप्रमाणं, शीतो वहिमारुत: स्थेययुक्त: । 

यद्वा यस्मे रोचते यन्न किश्विद्‌ , वृद्धो वादी भाषते कः किमाह ? ॥३॥ 

सोऊणेरिसगत्वं बंभणवंसुब्भवों गुरुमरह्टो | सिरिसिद्धसेणनामो परियरिओ निययछत्तेहिं ॥9॥ 

वायं दाउ पत्तों सद्धि सो विद्धवाइसूरीहिं। सह बंभणेहिं कलह को काही ? इय विचितेउ' ॥५॥ 

सूरी चलिओ कम्मि वि गामे जा ताव सिद्धसेणो वि। नट्टी त्ति विचितिय कत्ति धाइओ तस्स पढ्टीए ॥६॥ 
गच्छंतो संपत्तो सूरी सिग्घयर बड़ुयवग्गेण । भणिओ य कहिं वच्चसि नट्ठटों सेवडय ! तमियारणि १ ॥७॥ 
भणिया य सूरिणा ते नाहं नट्टी कुओ वि हु भएण । एवं जंपंताणं संपत्तो सिद्धसेणो वि ॥८॥ 

भणह य निययपइलन्न॑ं पालसु वियरसु मए सम॑ वाय॑ं | जंपह सूरी नयरीए वियरिमोी विउसपन्चक्खं ॥९॥ 
तेणुत्त एतल्थेव य आह मुर्णिदो न संति इह सब्भा । सो जंपड एमेव य वियरसु सूरी वि पडिभणह ॥१०॥ 
एए वि ताव गोवाल-हलहरा हुंतु इह सहावयिणों । तेणाणुमन्निण ते वाहरिया सूरिणा सब्बे ॥११॥ 

जो हारिही स सिसस्‍्सो होही इयरस्स सिद्धसेणेण | विहिया इमा पहनना पतच्चक्खं हलहराईणं ॥१२॥ 

तुह चेव पुव्वपवखों होठ त्ति प्यंपिण मुणिदेण | सो सक्कयवाणीए विप्पो जंपेउमारद्धों ॥१३॥ 

नत्थि जए सब्वन्भू पमाणपंचगपवत्तणाभावा | गयणारविंदमिव ता अभावमाणरस विसओ सो ॥१४॥ 


पच्चक्खपमाणेणं समब्बन्नु ता न दीसए लोए | लिंगाभावाओ तहा अणुमाणेणाबि तह चेव ॥१५।! 

उबमाणेण वि तत्तुल्लडदंसगाओ न सो भवे गज्क्ो | गम्मइ न आगमेण वि विरोहओ तेसिमन्नोन्नं ॥१६॥ 
अत्थावत्तीए वि हु दूरं गम्मई न सो भुवणभाणू । जम्हा तेण विणा वि हु सब्बे अत्ये पसिज्ञंति ॥१७॥ 
तम्हा अभावविसओ सब्बन्नू मुयह तम्मि पडिबंधं । धम्मा-5घधम्मवियारों वेयाओ गम्मए सब्वो ॥१८॥ 
कत्तारदोसर हिए अपोरुसेएु सया वि किल वेए | गयणं व सब्वतुल्ले सइ कि सब्बन्नुकप्पणया ? ॥१९॥ 

इय सब्वन्नुनिसेहप्पहाणमेयं सुणित्तु दियवयणं । हलहरसहाए उचियं पभणइ सिरिविद्धवाई वि ॥२०॥ 

धम्मु सामिउ सयलसत्ताहं, विणु धम्मि नाहिं घहें +> 3 २४६४२०७२४०३७३३४ कर हेड डक कक डक आतंक ३३४ | १ | 

$2 0 कं पं 5 कक धणु धन्नु धम्मह पसाणण । धम्मक्खरबाहिरिण घधिसि, धिरत्थु कि तेण जाएण ? ॥२॥ 
धरणिहिं भारु करंतेण, पयपूरणपुरिसिण । किउ संसारि भमंतेण, धम्मु सुमित्त न जेण ॥३॥ 

इय पढिऊं पुद्ठा मु णिवइणा हलहरा सहावइणों । मज्कमिमस्स य पढ़िए भव्वमभव्व॑ भणह तुब्मे ॥२१॥ 
तेहुत्तं तुह पढिए सुइजुयममएण सिंचियं अम्ह । एयस्स संतियं पुण न कि पि अम्हे सुहावेइ ॥२२॥ 

ता क्िंपि भणियमिमिणा न बुद्धमम्हेंहि तत्तमेयस्स । सूरी वि भणइ निसुणह जं भणियमिमेण तस्सत्थं ॥२३॥ 
जंपियमणेण तुम्हाण देवहरयम्मि नत्थि अरहंतो | ते बिंति अत्थि अम्हेहिं पणमिओ संपय्य चेव ॥२४॥ 

जह एरिसं पयंपद्ट पिया वि अलिओ इमस्स ता नृणं । इय जंपिऊण विप्पं घेत्तं बाहाहिं ते बिति ॥२५॥ 


१, श्लेष्माधो श्लेष्मरोगे । 


१७२ आख्यानकमणिकोशे 


आगच्छसु जह तुज्ञ वि दंसेमो जिणहरम्मि अरहंतं । सब्बेहिं तओ दिल्लो जयवाओ मुणिवरिंदस्स ॥२६॥ 
विप्पेण वि निययपइन्नपालणुज्जुत्तमाणसेण तओ | भणियमहं तुम्हार्ं सिस्सो ता देह मे दिक्खं ॥२७॥ 
तो दिक्खिओ] मुर्णिदेण सिद्धसेणो पसत्थदिवसम्मि | जाओ य सयलसिद्धंतपारगामी महासत्तो ॥२८॥ 
बहुगुणगणपरिकलिओ ठविओ सो नियपयम्मि सूरीहिं | विहरइ वीरजिणेस्रविसिद्ठतित्थं पमावंतो ॥२९॥ 
उज्जेणीए पुरीण कमेण पत्तो महीए बिहरंतो । निमुणइ जणाववायं पाययसिद्धंतविसयम्मि ॥३०॥ 

मेलेऊर्ण संघं कयंजली मुणिवई भणइ एवं । जइ आएसे संघो मह वियरइ विरहयपसाओं ॥३१॥ 

सिद्धंतं सब्व॑ पि हु करेमि भासाए सकयाए अहं । सोऊण तय॑ संघो वि एबमुल्लविउमारद्धो ॥३२॥ 

दूरे ता भणियव्वं एसा चिंता वि जुज्जइ न तुम्ह । जम्हा चिंतियमेत्ते वि जायए गरुयपच्छित्त ॥३३॥ 

तो सिद्धसेणसूरी पयंपण मज्ञ चरिमपच्छित्त | संपइ संपन्नमिमं पुण न हु मह बट्ढए इण्हि ॥३४॥ 

ता काऊण पसाय॑ संधो मह देउ चरिमपच्छित्त | तस्स5ब्भासाओं जेण मज्क संजायए सुद्धी ॥३५॥ 

त॑ पुण बारसवासप्पमाणमञ्त्तलिंगधारीहिं । पायच्छित्तं किज्इ संजाए एरिसे पावे ॥३६॥ 

अणुजाणिओं समाणो संघेणं सिद्धसेणमुणिनाहो । अव्वत्तलिंगधारी होउ' त॑ चरिउमारद्धों ॥३७॥ 

चितह य महीवीढे परिव्ममंतो पसंत-थिरचित्तो | ते धन्ना मुणिवसभा सलाहणिज्ा तिहुयगम्मि ॥३८॥ 
जाय॑ चुकक्खलियं न जेसि कश्या वि एरिससरूवं | अक्खंडचरणपणिमसुंदरा ते जयंतु जए ॥३९॥ 

इय एरिससुहमावणपडिहयपावस्स तस्स वरिसाणि | बारस जाव अईयाणि ताव पत्तो अवंतीए ॥५०॥ 

सो तत्थ कुइंगेसरदेवस्स मढम्मि संठिओ मइमं | संथुणइ न त॑ देवं इय नाउ' नयरिलोएण ॥४१॥ 
विन्नत्तं नरवइणो देव ! कुडंगेसरस्स देवस्स । चिट्ठ् मढम्मि अव्वत्तलिंगिओं थुणइ न हु देवं ॥४२॥ 

त॑ सोउ' नरनाहों संपत्तों तत्थ तं पयंपेइ | को सि तुम ? सो वि हु भणइ घम्मिओ हमिह संपत्तो |।४३॥ 
तो भणइ निवो कि न हु देवमिमं थुणसि ? भणइ पुण सो वि। एस न सहिउं सकह मज्क थुईं भणंइ तयणु निवो ॥9४॥ 
एयं चिय पेच्छामी कुणसु थुईं कोउयं जओ अम्ह । इह होउ अम्ह दंसगपमावणा इय विचितेउं ॥४५॥ 
तेणुत्तमिमं गोसे कायव्वं तयणु बीयदिवसम्मि । निवपज्ज॑तो छोगो संपत्तों तम्मि देवउले ॥४०६॥ 

तो सिद्धसेणसूरी सुइभूओ सुमरिऊण जिणनाहं। बत्तीसाहिं बत्तीसियाहि थोउः समारद्धे। ॥०७॥ 
ओहिन्नाणेण वियाणिकण जिणपवयणुन्नइनिमित्त । सासणदेवी जिणसासणस्स भत्ता समणुपत्ता ॥|9८॥ 
एत्थंतरम्मि सिरकमलमज्कृभागाओ तस्स देवस्स । पासजिणेसरपडिमा सहसा निम्सरिउमारद्धा ॥9९॥ 
उबसंत-कंतरूबा अंते बत्तीसियाण सव्बाण | नीहरिया सब्बा वि हु सच्चविया राय-लोएहिं ॥५०॥ 

दटट्रण पवयणुन्नइमेरिसमच्छरियमूयमच्चत्थं । पडिबुद्धा पडरजणों तित्थस्स पभावणा जाया ॥५१॥ 


॥ श्रीसिद्सेनाख्यानक समाप्तम्‌ ॥५७॥ 

इदानीं मन्नवाद्याख्यानकं कथ्यते | यथा-- 
सरस“्पवालकलिए अमियावासे महाअरत्ने व । रयणायरे व्व भरुयच्छपट्टणे निवसए सूरी ॥१॥ 
नामेण जिणाणंदो बुद्धाणंदाभिहाणभिक्खू वि । निवपज्जतो वाओ परोप्परं तेहिं पारद्धों ॥२॥ 
जो हार्‌इ सो नियमा नयरं परिहरद् विरइया तेहिं | दोहिं वि इमा पइन्ना संजाए तयणु वायम्मि ॥३॥ 
भवियव्वयावसेणं विणिज्जिओ भिक्खुणा मुणिवरिंदों | नीहरिऊण ससंघो समागओ बवलहिनयरीए ॥४॥ 
पव्वइया सूरिससा दुल्लहएवी सम॑ तिहिं सुर्णहिं। अजियजस-जक्ख-मन्लाभिहेहिं [सुविमुद्धबुद्धीहिं ॥५॥ 
समहिज्जियसुत्तत्था तिन्नि वि जायां विसेसओ मल्लो । मोत्तणं पुव्वगयं तह नयचक्क समग्गं पि ॥६॥ 
बारसअर॒यपमाणं रहइयं पुव्वाओ त॑ समुद्धरियं । अरयाणं पत्तेयं पारंभे तह य पजञ्जंते ॥»॥ 
कीरइ जिणाण पूया महापयत्तेण इयरहा विग्घं | संजायइ वबखाणे पढणम्मि य सयलसंघस्स ॥८॥ 


१८. प्रययनोन्नत्यधिकारे मक्नवाद्याख्यानकम १७३ 


सूरीहिं तीए अज्ञाए अप्पिओ पोत्थयाण भंडारो । अह अन्नया य विहरिउकामेष्टि पयंपिओ मल्लो ॥९॥ 
नयचक्कपोत्थयमिणं न वाइयव्बं ति विहरिया गुरुणो । अह् निग्गयाणु अज्ञाए तीए केणावि कज्जेण ॥१०॥ 
इह पोत्थयम्मि कि चिट्द ? त्ति संजायकोउहल्लेण । मल्लेण तयं घेत्तण छोडियं तयणु से पत्तं ॥११॥ 

पढ़मं कलिऊण करम्मि वाइओ तम्मि आइमसिलोगो । निस्सेससत्यथभावस्स साहगो महुरवाणीए ॥१२॥ 
विधि-नियमभद्जवृत्तिव्यतिरिक्तत्वादनथंकवचोबत्‌ । जैनादन्यच्छासनमन्‌ृतं भवतीति वेधम्यंम ॥१३॥ 

जा सम्म परिभावद तस्सऊत्थं ताव दवयाए तयं । अविहि त्ति चितिऊर्ण सपत्तमवि पोत्थयं हरियं ॥१४॥ 
तमपेच्छंतो संतो जा संजाओ विलक्खवयणों सो । ता आगयाए अज्चाए पुच्छिओ कि विसन्नो सि ? ॥१५॥ 
तेण बि पोत्थयहरणं कहियं तीए वि सयलमंघस्स । त॑ सोउं साममुहो संघो सब्वी वि संजाओ ॥१६॥ 
विसमम्मि पविसियव्वं न मए नयचक्रपोत्थएण विणा । रुकखा य भक्खियव्वा केवलछया भोयणे वल्ला ॥१७॥ 
भणिओं संघेणेसा बाहिज्जसि केवलेहिं वल्लेहि | ता देहरक्खणकए गिण्हसु तं॑ किंपि बिगई थि ॥१८॥ 
संघाएसं बहुमन्निकण सो वल्ल-घय-गुडाहारों । गंतृण संडिओ गुरुगुहाए गिरिदुग्गसेलस्स || १९॥ 

तत्थ ट्वियस्स वि मल्लस्स मुणिवरा दिंति भत्त-पाणाई । तम्मइपरिक्खणत्थं अहडज्नया देवयाए इमं ॥|२०॥ 
भणियं रयणीए के मिट्ठा ? वल्ल त्ति जंपियं तेण। पुणरवि पज्जन्ते तीए जंपियं छण्ह मासाणं ॥२१॥ 

केण ? त्ति घय-गुडेणं [ति] जंपिए मल्लचेललएण तओ । तस्सेवंमइपगरिसरंजियहिययाए देवीए |॥|२२॥ 
भणियं जं किपि मणप्पियं तयं मल्ल ! मग्गसु इयाणि | तुह तुद्ठा हं तो मल्लचेल्लणणं इमं भणिया ॥२३॥ 
नयचक्रपोत्थयं मे वियरसु ता देवयाए सो भणिआओ । पढमसिलागाओ च्िय होही त॑ तारिसं तुज्ञ ॥२४०॥ 
तो देवयाणुभावेण विरइयं तेण तत्थ नयचक्क॑ | संघेण वि वलहीए पवेसिओ सो विभूईण ॥२५॥ 

गुरुणी वि विहरिउणं समागया नायसयलबुत्तंता । अजियजस-जक्ख-मल्ला गुणगणजुत्त त्ति तेहिं तओ ॥२६॥ 
संठविया सरिपए जाया परवाइवारणमहंदा । अह अन्नया य सिरिमल्लसूरिणा सुमरियं एयं ॥२७॥ 

जह भिक्खुबद्धदासेण वायमुद्दाण सूरिणी विजिया | भरुयच्छाओ संघेण संगया तयण नीहरिया ॥२८॥ 
निययगुरूणडवमाणं संघस्स पराभवं॑ च नाऊणं | मल्लमुर्णिदों भरुयच्छपट्टणे ऋत्ति संपत्तो ॥२९॥ 
कयतारिसप्पइन्नेण तेण सह भिवखुणा समारद्धो | निवपज्जंतो वाओ बहुविउससहाए पदच्चक्‍्खं ॥३०॥ 
एयस्स गुरू वि मए विणिज्विओं विजयबाइविंदो वि। ता एयम्मि दुह्दा वि हु बाले किर मज्क का गणणा ? ॥३१॥ 
इय भणिउमग्गवाओं समप्पिओ मभिवखुणा मुर्णिदस्स । सो वि हु सुमरिय सासणदवबिमुबन्नसिउमा रद्धो ॥३२॥ 
सियवायसारजिणमयगम-हेउ-भंग-पवरजुत्ती्ि । काऊणमुबन्नासं धरिओ छद्दिवसपञ्जंते ॥३३॥ 

भणियं च तेणमणुबइ दूसेयव्वं तए इमं गोसे । तो बुद्धदासभिक्खू नियठाणगओ तमिस्साए ॥३४॥ 
दीवयमुज्जालेऊण करयले कलिय सेडियं सुब्भं । जमुवन्नसियं मल्डेण त॑ं लिहेउः समारद्धो ॥३२५॥ 
परिभावणाए मढमज्मिमाए भित्तीए ता न से किंपि। सम्म॑ संभरद तओ धसक्किओं हिययमज्भम्मि ॥३६॥ 
निवपज्ब॑तसहाए भणियव्वं किह मए पभायम्मि ? | एवमयज्ञवसाणेण सो गओ ज्ञत्ति पंचत्तं ||३७॥ 
मिलियम्मि विडसवग्गे बीयदिणे जा न एड सो भिवखू । हक्कारणाय ता तस्स राइणा पेसिया पुरिसा ॥३८॥ 
ते तत्थ गया भिकक्‍खू नियंति भित्तीसमीबमुबबिट्ठं | उत्ताणियनयणजुयं सेडियपाणि विगयपाणं ॥३९॥ 

गंतृण तर्हिं रत्नो साहियमह भणइ नरबई एवं । जह कहियमिमेहिं तहा चितंतो सो भमएण मओ ॥४०॥ 

तो तेण हारियं तयणु राइणा मन्लवाइणो दिन्नं। जयपत्तं संजाया संघरस पभावणा महई ||४१॥ 
निस्सारिउमारद्धं रत्ना भिक्खुण दंसणं सयलं । तो मल्लवाइणा सो निवारिओ जायकरुणेण ॥४२॥ 

सूरी बि जयाणंदो निवेण निस्सेससंघसंजुत्तो | पच्चाणीओ गंतृण सम्मुहं गुरुविभुईर ॥०३॥ 


१, वायविंदो रं० । 


१७७ आख्यानकमणिकोशे 


विहिया पभूयकालं पभावणा मल्लवाइसूरीहिं । निन्नासिया य सब्बे वि तेण परवाइणों बहुसो ॥०४॥ 
सवणोयरसुहसद्देसणाए पडिबोहिऊण भवियजणं । सिरिमल्लवाइसूरी मरिकण गओ अमरलोए ॥४५॥ 


॥ मल्लाख्यानक॑ समाप्तम्‌ ॥५८॥ 
अचधुना समिताख्यानकमारभ्यते । तच्यथा-- 


कन्ना-वेन्नाण नईणमन्तरे तावसासमों एगो । बंभद्वीवियसाहाण तावसाणं समत्यि तओ ॥१॥ 

कुलवइणा तरुमूलाण मेलणे जाणिओ कहवि जोगो । त॑ पयतलेसु दाऊण तावसा उत्तरंति नईं ॥२॥ 

तेसिं पभावणा सावयाणमोहावणा धुवं जाया । दट्ठ णमइसयं त॑ तेसिं भत्ति कुणश लोओ ॥३॥ 

तम्मि य समए सिरिवदरसामिणो माउला य समियज्ञा । विहरंति जोगसिद्धा तो तेसि निवेइए भणियं ॥४॥ 

पायतललेववसओ एयं न उणो तवाणुभावेणं । तो सावगेण विउणा एगेण निमंतिया गेहे ॥५॥ 
तेसिमणिच्छंताण वि पाए पदखालिऊण भोयविया । गच्छंति चडयरेणं बुड्ुंति नदेणु ताव जले ॥६॥ 

तो तत्थ अज्जसमिएहिं जोगसिद्धेहि जोगचप्पुडियं | खिविउ वुत्तं विन्‍ने ! परकूलं गंतुमिच्छामि ॥७॥ 

ताव य दो तीए तडा मिलिया जोगप्पभावओ जाया । सासणपभावणा तावसा य सब्वे वि पडिबुद्धा ॥८॥ 
पव्वइया गुरुपासे संजाया बंभदीविया साहा । जम्हा उ बंभदीवियतवोवणाओ इमे जाया ॥<॥ 


॥ सामिताख्यानकं समाप्तम्‌ ॥५६॥ 
इदानीमायखपुटाल्यानक व्याख्यायते । तश्चेद्म्‌ू-- 


सिरिअज्जखडउडसूरी विज्ञासिद्धों सुसाहपरियरिओ । बिहरंतो संपत्तो भरुयच्छपुरम्मि कह्या वि ॥१॥ 
तस्सडत्थि भाइणेजो खुडडुमुणी कुणइ तस्स सुस्सूसं । सोउं परिवत्तंते गुरुणो विज्ञाओ अणुदिवसं ॥२॥ 
पढियाओ कन्नाहेडएण विज्ञाओ पढियसिद्धाओ । ताओ जओ तो तस्स वि चितियमेत्ताओं विफुरंति ॥३॥ 
गुडसत्थाओ अह अन्नया य मुणिजुयलमागयं तत्थ । पणमिय गुरुकमकमल्ं कयंजली जंपए एवं ॥9॥ 

भंते ! अकिरियवाई गुडसत्थपुरे समागओ भिक्‍खू । देवाइधम्मतत्तं नत्थित्ति पयंपमाणो सो ॥५॥ 

विजिओ संतो साहूहिं गुरुपओसं गओ मरेऊण । वडुकरामिहाणो जाओ तत्थेव सो जक्खो ॥६॥ 
पुव्वपराभवमवलोइऊण नाणेण आसुरुत्तो सो । उबसग्गइ साहुजणं संपइ तुम्हे पमाणं ति ॥७॥ 

मोत्त सभाइणेज्जं गच्छं तत्थेव अज्जखडउडपह । सद्धि मुणिजुयलेणं पत्तो गुडसत्थयं गाम॑ ॥८॥ 

अवलंबिउं उवाणहजुयल वड्ुुकरस्स जक्खस्स । कन्नेसुं तप्पुरओ सुत्तो पावरिय सियपडयं ॥९॥ 

देवच्एण दिद्ठो सिट्टो य सपउरनरवरिंदस्स । त॑ं सोऊण सकोवों सपरियणो नरबई पत्तो ॥१०॥ 
नियजक्खस्स अवन्नं दट्ठुं उद्ाविओं स नरबइणा । न वि उद्धइ गरुएहिं वि सद्देर्दि पयंपिओ बहुसो ॥११॥ 
सुहडेहिमेगदेसा कुओ वि पडयम्मि तम्मि अवणीए | तेहि अह्ोभागो से दिद्लो सपउरनरिंदेहिं ॥१२॥ 
जत्तो जत्तो पडयं अवणेड ते तयं पलायंति | तत्थ य तत्थ य मुणिणो पुयप्पएसं निरूवंति ॥१३॥ 

दुटट्रण तय॑ भूवेण पभणियं रे ! बिभीसिया एसा । ता सिम्घं परिताडह कर-कस-दंडप्पहारहिं ॥१४॥ 
तह॒विहिए मुणिवइणा तसि पहारा निवावरोहम्मि । संकामिया सविज्जाबलेण तत्थेत्थ रूग्गंति ॥१५॥ 

नाउं महल्लएहिं कहियं रज्नो निवो वि त॑ सोउं | चितेइ को वि एसो महप्पमावों महासत्तो ॥१६॥ 
उच्छलियबहलकोबो जाव न म॑ हणइ पठरपरिकलियं । खामेमि ताव इय चितिऊकण पणओ निवो तम्स ॥१७॥ 
भणइ य महापसायं काउं मह खमह एगमवराहं । जम्हा करुणारसिया भवंति पणएसु सप्पुरिसा ॥१८॥ 

त॑ निश्ुणिऊण सूरी समुद्ठिउं चल्लिओ तओ जत्ति । वद्भुकरजक्खो वि हु संचलिओ तयणुमग्गेण ॥१९॥ 
अवराणि वि चामुंडाइयाणि सब्वाणि देवरूवाणि | सूरिपहम्मि पयट्टाणि खडहडंताणि समकालं ॥२०॥ 


१८, प्रवचनोतन्नत्यधिकारे भायखपुटाल्यानकम्‌ १७५ 


जक्खाययणदुवारे बहुपुरिससएहिं चालणिज्ञाओ | वाहरियाओ मुर्णिदेण दोन्नि पाहाणदोणीओ ॥२१॥ 

ताओ वि हु चल्याओ एरिसमच्छरियमइसयं दटठुं। रायाइनयरलो ओ पयपणओं पभणए एवं ॥२२॥ 

मुंचसु भयवं जक्खं मुक्की य स भयवया सपरिवारों । निययद्वाणम्मि गओ ताओ पुण दो वि दोणीओ ॥२३॥ 
धरियाओ हड्टमज्कम्मि थंभिउ' पभणियं च सूरीहिं। जो कोइ मज्झ तुल्लो सो नेउ इमाओ नियठाणे ॥२४॥ 
गुडसत्थपुरे अज्ज वि तहेव चिट्ंति ताओ तत्थेव | तदियहाओ जाओ जक्खो जिणसासणे भत्तो ॥२५॥ 
पडिबुद्धो पउरजणो महई जिणपवयणुन्नरई जाया | साहुक्कारइ सव्वो वि सासणं वीरनाहस्स ॥२६॥ 

एत्तो चिय भरुयच्छे भोयणगिद्धों स भाइणेज्जमुणी । जाओ बुद्धों विज्वप्पमावओ तस्स पत्ताणि ॥२७॥ 
गयणंगणेण गच्छंति अशुदिणं नियउवासयगिहेसु | भोयणभरियाणि पुणो तह चेव य पडिनियत्तंति ॥२८॥ 
अहिवासिया समाणी टोप्परिया पवरआसणनिविद्ठा । समन्वेसि पत्ताणं पुरओ सा एइ गच्छह य ॥२९॥ 
एयारिसमच्छरियं पेच्छिय बुद्धाण दंसणे लोगो । आउट्टो संजाया संघस्सोहावणा गरुई ॥३०॥ 

जाणाबिओ समाणो संघेण समागओ मुणिवरिंदों | ताणडंत्रि उवासगाणं गिहेसु पत्ताणि पत्ताणि ॥३१॥ 

तेहिं वि पूयापुव्व॑ भत्तिब्भरनिब्भरेहिं भरियाणि | उप्पद्याणि नहंगणमग्गेणं जाव सब्वाणि ॥३२॥ 

ता मुणिवइवेउव्वियसिलाए अध्भिष्टिकण भग्गाणि । नायं च भाइणेज्जेण मह गुरू आगओ एव्थ ॥३३॥ 

तो भयभीओ नह्टो बुद्धविहारम्मि सूरिणो वि गया । भिक्‍खूहि जंपिया एह नमह बुद्धस्स कमकमल ॥३४॥ 
सुरीहि जंपियं एहि बुद्ध ! वंदाहि मज्क कमजुयलं | तो बुद्धदेवपडिमा विणिग्गया तेसि पणया य ॥३२५॥ 
चिट्नइ महरिहथूभोी विहारदारे पयंपिओ सो वि । वंदाहि त॑ं पि तो सो वि निवडिओ सूरिचलणेसु ॥३२६॥ 
पुणरवि भणिओ बिद्ठसु अद्धघोवणओ तहेव सो थकक्‍कों । तत्थ नियंठाणामियणामेण गओ गुरुपसिद्धि ॥३७॥ 
दट्टरूण तमच्छरियं विम्हयउप्फुल्ललोयणो लोगो । जिणसासणाणुरत्तो पयंपिउं एवमारद्धों ॥३८॥ 

त॑ जयउ वीरसासणमेरिसअइसयसहस्ससकिन्नं । जत्थ अजंगमदेवा वि सूरिचरणेडमिवंदंति ॥३९॥ 

सव्वो वि जणो जिणपवयणम्मि जाओ सुभत्तिथिरचित्तो | जिणसासणस्स जाया समुन्नई भुवणमज्ञझम्मि ॥४०॥ 


॥ आयखपुटाख्यानक॑ समाप्तम ॥६०॥ 


एएहिं जहा विहिया सत्तीए पवयणुन्नर्‌ असमा । कायव्वा अन्‍्नेहिं वि तहेव् सप्पुरिसरयणेहिं ॥१॥ 
सेद्धान्तिकप्रमुखसत्पुरुषप्रभावेरष्टाभिरप्यपरतीर्थमतं निरस्य । 
श्रीसवं विद्यवचनोन्नतिमह्लिमान्यो धन्य: स कोडपि कुरुते शिवशमंब्रीजम्‌ ॥२॥ 


॥ इति श्रीमदाप्नदेवसूरिविरचितवृत्तावासख्यानकमणिकोशे प्रवचनोन्नतिवणनो नामाष्टादशो 5घिकारः ॥१८॥ 
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[ १९, जिनधर्माराधनोपदेशाधिकारः ] 
उक्त प्रवचनोन्नतिकारणम्‌, एतच्च परमं धमंसवस्वम्‌ । एतत्करणशक्त्यभावेडपि स्वजनादिमोहं विहाय धर्म एबं विधेय हत्यु- 
पदेशमभिधातुकाम आह--- 


सयणे धण असारे मोह मोत्तण कुणइ जिणधम्म॑ । 
ज॑ परभवाणुगामी सो चिय जोहारमित्तो व्व ॥२४॥ 


१७द आश्यानकमणिकोशे, 


व्याख्या--स्वजने' माता-पित्रादो 'धने च' गणिमादी 'असारे' परमाथंसारशुन्ये “मोहं' मूढतां 'मुक्त्वा' त्यक्त्वा [कुरुत] 
विधत्त 'जिनधम' सर्वविद्धणितमनुप्ठानम्‌ ॥ कारणमाह--“यद' यस्मात्‌ कारणात्‌ 'परभवानुगामी' परलोकानुयायी 'स एव जिनधर्मे 
एवं | किंवत्‌ ? 'जोककारमित्रवत्‌' मित्रतृतयमिव इत्यक्षराथे: ॥२४॥ भावार्थस्वाख्यानकादवसेय: । तच्चेदम-- 


निसेससुहयवसुहाविलासिणीकुसु मसेहरसमाणं । सप्पुरिसरयणजलही रयणउरं नाम पुरमत्थि ॥१॥ 

तम्मि पुरे अरिवारणवियारणो रयणसारनरनाहों । परिहरियइयरनरवइकमलाकुलबालियागेहं ॥२॥ 
उप्पत्तियाइचउविहमइविहवालंकिओं महामंती । तस्स्त्थि बुद्धिसारों सारेयरनायपरमत्थो ॥३॥ 

सो अज्नया विचितइ राया मित्तो न होइ कइया वि । किंतु मह पुव्वपुन्नप्पमावओ वह मित्तत्त ॥४॥ 

अह कहवि देव्वपरिणइवसेण रूसिज्ज मज्ञ नरनाहो । तदियहवसणतरणाय किंपि विरएमि मित्तमह ॥५॥ 
इय चिंतऊण तत्तों महंतसामंतवंससंभूयं । विरए् गरुयनवनेहनिब्भरं किंपि वरमित्त ॥६॥ 
आभरण-वत्थ-मोयण-सयणा-55सण-जाणवाहणाईयं । नियदेहनिव्विसेसस्स तस्स वियरेइ अणुदियहं ॥७॥ 
अबरो वि तेण वीवाह-विद्धि-वद्धावणाइपन्वेसु । विहिओ मित्तो आभरण-वत्थदाणेहि सबिवेण ॥८॥ 

अबरं च रायमग्गे उत्तमवंसुब्भवो महासुहडो । जोहारमेत्तसज्ञा संजाया तेण सह मेत्ती ॥९॥ 

अह अन्नया अयंडे बाढं कुवियं नरेसरं नाउं | चिंतेह महामंती भयकंपिरमाणसी एवं ॥१०॥ 

नुणं न एत्थ वासो मह होही राइणा बविरुद्धेण | ता बच्चामि विएसं तत्थ कहं जामि असहाओ १ ॥११॥ 
पर मज्ञझ परममित्तों विज्ञइ नवनेहनिव्भरों पढमो । सन्निज्ञणं तो तस्स जामि रज्जंतरं अन्नं ॥१२॥ 

इय चिंतिऊण मंती जाइ तओ पढममेत्तगेहम्मि। उद्धित्त सो वि समुह्ं सयणा-55सणदाण-विणयाईं ॥१३॥ 
विरइत्तु तो पयंपद्ट मह गेहमलंकियं तए मित्त ! | कज्जेण केण ? भणिए भणइ तओ बुद्धिसारो वि ॥१४॥ 
मह कम्मपरिणईए विणाडवराहेण रुद्ठओ राया । ता तुह साहिज्जेणं बच्चामी अन्नदेसम्मि ॥१५॥ 

इय निसुणिउं पयंपइ जह रुट्टो तुज्ञ नरवई मित्त !। एक्क॑ पि पय॑ गंतुं ता न खमी सामि ! साहेज्जे ॥१६॥ 
आयन्निऊण एवं मंती चितेइ जायवेरुगो । एक्रपए चझ्विय जाया उबयारा निप्फला किह णु ? ॥१७॥ 
विच्छायमुहो गच्छइ मंती बीयम्मि मित्तगेहम्मि | सो वि समुद्ठिय समुहं पयंपए. भणमु कि कर्ज ? ॥१८॥ 
मंती वि कह सब्वं पयंपए सो वि मित्त ! न समत्थों । नियपुत्त-कलत्ताइं परिहरिउं तुज्ञ कज्जम्मि ॥१९॥ 
किंतु पुरीए परिसरे तं अब्भडवंचियं नियत्तेमि | देसंतरम्मि गंतुं तुमए सद्धि न सक्कमि ॥२०॥ 

तो त॑ पमणइ मंती सच्चयमाहाणयं कय तुमए। तक्केण मक्खिउं मक्खियाहिं खावेसि तुममेवं ॥२१॥ 

चिंतेइ इमे सम्माणदाणपरिओसघणसिणेहा वि | जद न सहाया जाया ता कि जोहारमेत्तण ? ॥२२॥ 

तह वि परिपुच्छियव्वो त्ति चितिउः जाइ संसइयहियओ । जोहारमेत्तमवण साहइ सब्बं पि वुत्ततं ॥२३॥ 
सो भणइ मद जियंते निदलियासेसदुक्ख संदोहे । वालविणिवायमेत्तं पि मित्त ! न भय॑ तुह जयम्मि ॥२४॥ 
ता साहसु नियकर्ज इय भणिए भणइ बुद्धिसारों वि। गिण्हित्तु सारदव्बं बच्चामो अन्नदेसम्मि ||२५॥॥ 
भरिऊण सारदविणस्स रहवरं रयंणिपढमपहरम्मि । नीहरिओ नयराओ त॑ सन्नद्ध पुरो काउं ॥२६॥ 

पत्तो य अवरदेसंतरम्मि तद्देंसनयरनरनाहो । जाणित्तु बुद्धिसारं समागयं सम्मुहो एड ॥२७॥ 

नाऊण बुद्धिकलहंसकेलिलीलाविलासकमलसरं । सो वि नियमंतिमंडलसिरोमणित्त निवेसइ ॥२८॥ 


इदानीमन्तरड्रभावना--- 


मंती संसारिजिओ बुद्धीविन्नाणसंपयावसहों | पयईए वल्लहस॒हो दुह्मीरू गुणनिवासगिहं ॥२९॥ 
जमसरिसो पुहह्वई सइसुत्यियजणअतक्कियागमणो । सच्छंदचरणसीलो करुणारहिओ य सब्बस्स ॥३०॥ 
अकयन्नुयानिवासो विन्‍्नेओ पढममंतिमित्तममो । उवयारगुणअगेज्ञो नेओ देहो खलयणो व्व ॥३१॥ 


२०. नरजन्मरक्षाफलाधिकारे वणिकपुश्नश्रयाख्यानकम १७७ 

भणिय॑ च-- 

तहलालियस्स तहपालियस्स तहसुरहिगंधमहियस्स । खलदेह ! तुज्झ जुत्त ? पय॑ पि नो देसि गंतव्वे ॥३२॥ 

जह सो पढमो मित्तो सरणं मंतिस्स आवद्गयस्स । मणयं पि न संजाओ देहो वि तहेव जीवस्स ॥३३॥ 

जह सो बीओ मित्तो नियकज्जपरायणों सुहेकरसो । मंतिस्स न साहेज्ज॑ दुहियस्स तहाविहमकासी ॥३४॥ 

तह सयणा विज्लेया कित्तिमनेहा सकज्जतल्लिच्छा । परमत्थेण न किंचि वि जियस्स जंतस्स साहेज्जे ॥३५॥ 
भणियं च-- 

बंधवा सुहिणो सठ्वे पिय-माइ-पुत्त-मायरा । पिदहवणाओ नियत्तंति दाऊणं सलिलंजलि ॥३६॥ 

अब्भुक्खंति य त॑ गेहूं पियम्मि वि मए जणे | हिद्ठा तेणडज्ियं दुव्वं, तहेव विलसंति य ॥३७॥ 

अत्थोवज्जणहेऊहि, पावकम्मेहिं पेरिओ । एकओ चेव सो जाइ, दुग्गई दुह्भायणं ॥३८॥ 

जोहारमित्तमेत्ती मंतिसद्दाओ जहा तइयमित्तो । तह अप्पपयत्तकओं वि होइ जीवस्स ज्ञिणधम्मो ॥३९॥ 
भणिय॑ च-- 

थेवं थेवं धम्मं करेह जइ ता बहुं न सकेह । पेच्छह महानईओ बिंदू्हिं समुद्भूयाओ ॥४०॥ 
तहा-- 

इहलोइयम्मि कज्जे सव्वारंभेण जह जणो तणइ । तह जद लक्खंसेण वि परलोण ता सुही होइ ॥9१॥ 

थ्रेवोवयारविहिओ वि मंतिणा जह इमो तइयमित्तो । सरणं जाओ जीवस्स परभव तह इमो धम्मो ॥४२॥ 

॥ योत्कारमित्राख्यानकं समाप्तम ॥६१॥ 
सवव धनं सनिधनं स्वजनादयोडपि प्रायो भूशं स्वभरणं प्रतिबद्धकक्षा: | 
मोहं विहाय तदमीषु जिनेन्द्रधम जोत्कारमित्रमिव जन्मिहितं कुरुप्वम्‌ ॥१॥ 
॥ इति श्री मदाप्नदेव्सूरिविरचितवृत्तावाख्यानकमणिकोशे जोत्कारमित्रनिदशनजिनधमंबर्णन 
एकोनविशो <5घिकारः समाप्त: ॥२१॥ 


कान रच 


[ २०. नरजन्मरक्षाधिकारः ] 


अनन्तरं जोत्कारमित्रनिदशनेन धर्मा व्यावर्णित: । साम्प्रतमेतत्कारणसामग्रीप्रधानतरमूलघनकल्पनरत्वप्राप्तावपि निजयोग्यतानु- 
रूपेण धमफलं प्राप्यते इत्येतद्मिधित्सुराह-- 
लद्धुं केह नरत्तं सग्गसुहं नरसुहं व अज़िंति । 
हारिंति केह त॑ पि हु हृह नाय॑ वणियपुत्तेहिं ॥२५॥ 
व्याख्या--लब्ध्वा' अवाप्य 'केचिद' जीवा: “नरत्वं' मनुप्यत्वं 'स्वगंसुखं' देवलोकशर्म 'नरसुखं' मनुजसुखं वा “अर्ज- 
यन्ति' विढपन्ति 'हारयन्ति' नाशयन्ति 'केडपि! निर्भाग्या: 'तद॒पि' नरत्वम्‌ । हु: इति पादपूरणे । 'इह' अस्मित्नर्थ 'ज्ञात' दृशन्तः 
'बणिकपुत्रे? वाणिजकतनयेरित्यक्षराथं: ॥२५॥ 
गा थस्त्वाख्यानकगम्य: तख्चेदम्‌-- 
रमणीयमहा[वणसंडमंडिए सरवरेहिं संकिन्ने | अंतो बहि च चच्चर-चउक्क-चउमुह-तिगविभत्ते ॥१॥ 
नयरम्मि वसंतपुरे नायरयजणाण गोरवद्भाणं । निवसइ सुहृवबहरणो नयसारों नाम पुरसेट्टी ।२॥ 
२३ 


श्ज्८ आख्यानकमणिकोशे 


अह अन्नया य को किर कुडडंबपयसमुचिओ महं होही १ । इय चिताए तिण्हं पुत्ताण परिक्खणनिमित्तं ॥३॥ 
नियसयणबंधुपमुहं नायरयजणं निमंतिउं गेहे । भोयाविऊण विहिणा तस्स समक्खं भणइ सेट्टी ॥४॥ 
एएसि मह सुयाणं तिण्हं पि हु को कुड्डुंबययजोगो १ । त॑ चेव विसेसेणं जाणसि जोगो त्ति तेणुत्तं ॥५॥ 
इय एवं ता तुम्हं समक्खमेए अहं परिक्खेमि | इय भणिडं वाहरिया तिन्नि वि ते पउरपच्चक्खं ॥६।। 
पत्तेयं पत्तेय लक्ष्खं दाऊण दविणजायस्स । ववहारत्थं देसेसु पेसिया तस्समक्खमिमे ॥७॥ 
तो तेसिं पुत्ताणं चितियमेगेणमम्हमेस पिया | पाएण दीहदरिसी धम्मपिओ सुइसमायारो ॥८॥ 
पाणच्ए वि अम्हाणमुवरि न कय। वि चिंतइ विरूवं | केणावि कारणेणं ता नूणं एत्थ भवियव्वं ॥९॥ 
इय परिभाविय तहियं तह कहवि हु नियमईए ववहरियं | जह विढविऊण कोडी वरिसंते पूरिया तेण ॥१०॥ 
बीएण चितियमिम मम पिडणो विज्ञणु पमूयधण्ं । ता कि किलेसजाले पाडेमि मुहाए अप्पाणं १ ॥११॥ 
जह सब्वं पि य विलसामि ता गओ कह मुहं पयंसिस्सं १ तम्हा मूलं रक्खिय सेसं भक्‍्खेमि कि बहुणा १ ॥१२॥ 
तहृणणमजोगत्ता विगष्पियं नियमणम्मि मह जणओ । वुड्धत्तणदोसेहिं संपह कोडीकओ जम्हा ॥१३॥ 
तिट्ठा लज्ञानासो भयबाहुल्ल विरूवभासित्तं | पाणण मणुस्साणं दोसा जायंति वुड्त्ते ॥१४॥ 
अन्नह कहमम्हे पट्टवेह देसंतरम्मि सह विहवे ? | इय परिभाविय सब्वं वरिसंते भक्खियं दव्वं ॥१५॥ 
संपत्ता सब्वे वि हु नियर्साम]ए वन्नियस्सरूवा ते | पुणरवि तहेव विहिऊण सेट्टिणा भोयणाईयं ॥१६॥ 
सयणाईण समबखं पढमों संठाविओ कुडुंबपएण । बीओ भंडारपए तहओ किसिमाइकज्जेमु ॥१७॥ 
मज्झत्थेणं जणणण नियसुया जह इमे जणसमक्खं | सकयाणुरूवपयवीए ठाविया बुद्धिमंतेण ॥१८॥ 
तह चेव धम्मविसए जीवे ठावेइ कम्मपरिणामी । सकयाणुरूवसरिसे पयम्मि भणियं च जेणमिमं ॥१९॥ 
जहा य तिजन्नि वणिया मूल घेत्तण निमाया | एगो त्थ लभए लाभ॑ एगो मूलेण आगओ ॥२०॥ 
एगो मूल पि हारित्ता आगओ तत्थ वाणिओं | ववहारे उवमा एसा एवं गम वियाणइ ॥२१॥ 
माणुसत्तं भवे मूल लाभो देवगई भवे | मूलच्छेणण जीवाणं नरय तिरिक्खत्तणं भवे ॥२२॥ 
॥ वणिकपुत्रत्नया ख्यानक॑ समाप्तम ॥६२॥ 
लब्ध्वा शुभ मनुजजन्म नरो3जेयन्ति, स्वःशर्म केचन नरप्रभवं खुखं वा । 
निबुद्धयरतदपि केचन हारयन्ति, ज्ञातं वणिक्तनयसत्रयमाहुरत्र ॥१॥ 


॥ इति श्रीमदाप्नदेवसूरिविरचितवृत्तावाख्यानकमणिकोशे मूलधनकट्पनरजन्मव्यवद्दारसातादिप्रतिपादको 
विशतितमो.<घिकार: समाप्त: ॥२०॥ 


6-७. ७9 
[ २१. उत्तमजनसंसर्गिगुणवर्णनाधिकारः ] 


लोकव्यवहारज्ञातेन धमंव्यवहारलाभादिकममिहितम्‌ । लाभश्रोत्तमजनसंसर्गांदू भवतीत्युत्तमसंसर्गिविधेयतामाह-- 
उत्तमजणसंसग्गी परमगुणाणं निबंधर्ण होह । 
एत्थ पहाकर-वरसुय-कंबलसबला उदाहरण ॥२६॥ 
_व्यख्या-- उत्तमजन्रसंसर्गि:' प्रधनजनसम्बन्धः 'परमगुणानां'[ सर्वोत्कृष्टगुणानां ] निबन्धनं' कारणं 'भवति' जायते “अत्र' 
अस्मित्नर्थ प्रभाकरश्व-ब्राह्मणपुत्र: वरशुको च--गिरिशुक-पुष्पशुक्ौ कम्बल-सबलौ च--श्रावकवत्सतरो ते तथोक्ताः 'डदाहरणं/ 
इृष्टान्ता इति गाथावयवा्थ: ॥२६॥ भावाथस्त्वाख्यानकगम्यः | तानि चामूनि । 


२१. उक्तमजनसंसर्गिगुणवर्णनाधिकारे प्रभाकराख्यानकम्‌ १७९ 


तत्न तायत्‌ प्रभाकराण्यानकमास्यायते । तश्चेदमू-- 


सोवागावाणगमंडले व्व विलसंतमत्तमायंगे । नयरम्मि धरणितिलण दिवायरों वसइ द्यिपवरों ॥१॥ 
चउदसविज्ञाठाणाण पारओ रायपउरजणपुज्जो । विज्ञाजुयाणमहवा जणाण सब्वत्थ कल्लाणं ॥|२॥ 

तस्स य एगो पुत्तो पहाकरों सो य तारिसपिया वि । विज्ञावियलोउजोगाण हंत ! कि कुणउ सामग्गी ? ॥३॥ 
जूयं रमेह धाउ' धमेइ वेसं समेह पयदण | न कुणइ सिक्रखं खल्‍ली पय्देण जमोसहं नत्यि ॥९॥ 

तह वि हु सो जणएणं निरंतरं सिकखविज्जइ हियत्थं | अम्मा-पिऊगमहवा हिययमवच्चे हिय॑ चेव ॥॥५।। 

भणिओ वेयमहिज्जसु इृहईं पि हु जेण गोरवट्टाणं । होहिसि वच्छ ! निराय॑ विडसाणं सेवणिज्जों सि ॥६॥ 

एवं भणिओ पभणइ को पढिऊर्ण दिवं गओ ताय ? | होही ज॑ भवियव्वं विणा वि पाढे णमवरं च ||७॥ 
बुभुक्षितैव्योकरणं न भुज्यते, पिपासितैः काव्यरसो न पीयते । 

न च्छन्दसा केनचिदुद॒धृतं कुलं, हिरण्यमेवाजय निप्फला: कला: ॥८॥ 

पुणरवि भणिओ जह वि हु बहुयं न पढसि तहा वि मह वयणा । गिण्हसु सिलोगमेगं बुज्क तयत्थं च सो य इमो ॥<॥ 
उत्तमे: सह साह्त्यं, पण्डिते: सह सड्कथा । अलुब्धे: सह मित्रत्वं, कुवोणों नावसीदति ॥१०॥ 

एवं वसणासत्तस्स जणयलब्छि च विलसमाणस्स । वच्चंति वासरा तस्स वेयकिरियाविउत्तस्स ॥११॥ 

अह अज्नया य जणओ तिहुयेणसाहारणेण रोएण | अच्चंतं अभिमूओ सो य पमत्तो रमइ जूय॑ ॥१२॥ 

वाहरिओ वि हु जृूएण छोहिओ भणइ एस एमि त्ति। एवं पयपंतम्स वि पंचत्तं पाविओं जणओ ॥१३॥ 

उद्दसु भो ! तुज् पिया मउ त्ति ता कुए्सु तस्स मयकिच्च | पभणइ निम्धिणकम्मो संपयमवि सो अजोगत्ता ॥१४॥ 
भो भो ! त॑ मह पियरं अणेण मग्गेण नीहरावेह | समगं चिय लोएणं जेणं वच्चामि पेयवणे ॥|१५॥ 
एवमजोगत्तगओ<वही रिओ सो मयम्मि पियरम्मि । निंदिज्जइ लव्छी वि हु सम॑ं गया जणयपुन्नेहिं ॥|१६॥ 
एवमणेणं न कय॑ पिउवयणं न वि य सिद्दलोयर्स । जाओ दुह्मण भायणमच्चंतमिमो जओ भणियं ॥१७॥ 
विदुरेष्यमपायमात्मना, परतः श्रद्दधतेडथवा बुधा: । न परोपहितं न च म्वतः, प्रमिमीतेडनुभवाहते5ल्पधीः ॥१८॥ 
तत्तो अनिव्वहंतो नयराओ निग्गजों सरइ पिउणो । तह वि अजोगत्तणओ न कुणइ पिड्वयणसदृहणं ॥।१९॥ 
चिंतइ य सिलोगमहं कि उत्तमसंगयाइकारविओ ? । को किर दोसो ? नीएहिं ताव नीयं परिकखामि ||२०॥ 

तो दिद्वपच्चओ हं गरुएहिं सम॑ तमायरिस्सामि | इय परिभाविय नीयं ठक्कुरमेसी समल्‍लीणो ॥|२१॥ 

विहिया य चोडदासी भज्जा तेणं तहा बरो मित्तो । तइओ तस्सेव य ठक्कुरस्स खट्टिक्रमायंगो ॥|२२॥ 

अह अन्नया य रज्ना वाहरिओ ठक्कुरो सम॑ तेण । पत्तो पहाकरों वि हु सो उण पंडियपिओ राया ॥२३॥ 
वत्था-55सणप्पयाणा पहदियहं भरण-पोसणं वह । पंडिच्चरंजियमणो पंचण्हं पंडियसयाणं ।॥२४॥। 

जाए समाणसील-व्वसणेसुं सुक्वमिइ विवायम्मि | कहमवि य दइवजोगा कस्स वि न पयद्वए एयं ॥२५॥ 

कइया वि हु पिउपासे तेणं त॑ पढियमासि विप्पेण | ता तेण तेसि पुरओ पढियमसेस पि त॑ च इमं ॥२६॥ 

मृगाः मृगे: सज्ञमनुत्रजन्ति, गावश्च गोभिस्तुरगास्तु रहे: । मुर्खाश्च मुर्खें: सुधिय: सुधीभि:, समानशील-व्यसनेषु सर्यम्‌ ॥२७॥ 
तो तुद्ठेंणं रज्ना दिन्नं गामसयसंजुयं नयरं । तेण वि भणियं मह ठक्कुरस्स जीवणमिमं देहि ॥२८॥ 

तो तस्स पभावेणं जाओ सो पंवरलरूच्छिविच्छड्डो । तुरय-रह-जाण-वाहणसोहाभवर्ण जओ भणियं ॥२९॥ 

सोहेइ सुहावेह य उवभुंजंतो लवो वि लच्छीए । देवी सरस्सई पुण असमत्ता क॑ न विनडेइं ? ॥३०॥ 
ओलग्गिऊण निवइं पत्थावे ते गया पसायपुरं । अह कम्मि वि अवराहे रुद्ठ ण॑ तेण मायंगो ॥३१॥ 

सो वज्को आणत्तो मरणाओ मोइओ दियवरेण । एगं खमह5वराहं सामि ! वरायस्स एयर्स ॥३२॥ 

तीए वि हु दासीए गब्भपभावाओ दोहलो जाओ । सुयसरिसनिद्धट्रकुरमऊरपोयस्स मंसम्मि ॥३३॥ 





कीज+. “४७००: 


१, पउर० २०। २. भसमग्गा रं० । 


१८० आखश्यानकणिकोशे 


तेण वि तं॑ रक्खेउ' विहन्नमवरस्स मंसमेईए । एवं कयाणि तेणं महोवयाराणि सब्बाणि ॥३४॥ 

भोयणसमए संभरइ ठक्कुरों तं मयूरमनियंतो । गविसावइ सब्वत्तो जा कत्थ वि सो न उबलद्धो ॥३२५॥ 
दीणाराणं गंठीए संठियं दंसिऊणमद्ठसयं । घोसावइ नियनयरे पडहयमेसो मयूरकए ॥३६॥ 

जो कहइ मयूरसुद् सो अभयं लहइ तह य दीणारे । पच्छा नाए काहीं दुसहं सारीरियं दंडं ॥३७॥ 

इय सोऊरणं तीए दासीए चितियं कयग्घाए | मह अन्‍्नो वि हु होही भत्ता गिण्हामि ता दव्बं ॥३८॥ 

इय परिभाविय छित्तो पडहो पावाए जंपियमिमीए । मह सामि ! समुप्पन्नो दोहलओ मंसबिसयम्मि ॥३९॥ 
एएणमवरमंसं दाउमसत्तेण निहयमणण । बवारंतीए वराओ मंसकणए मारिओ मोरो ॥४०॥ 

तेण वि अपरिक्खियकारएणण निग्धिणसिरोमणिसमेण । तस्सेव अप्पणो खट्टिगस्‍्स वज्को समुवणीओ ॥४१॥ 
तेणुत्त भद्द ! मए तुम पि मरणाओ मोइओ आसि | ता मुयसु मम एत्तो वि जामि, देसंतरं दूरे ॥४२॥ 
तेणुत्त जुत्तमिमं परमेसो मित्त ? ठक्कुरो दुद्ढों | तुमए पुण अवरद्धं गरुयं ता कह मुयामि अहं ? ॥४३॥ 
“चिंतियमिमेण दटुं माहप्पमिमाण ताण सब्बाण । उत्तममिन्हि सेवे थि द्वी ! नीयस्स पयईएण ॥|४४॥। 
उबयरियं ज॑ त॑ं पि हु एगपए ख्िय कहं पि हु पलाणं ? । जइ वा नीयस्स कयं छारे हुणियं जओ भणियं ॥४५॥ 
उवयारसहस्सेण बि तिन्नि न घेप्पंति तिहुयणे सयले । वेसा अविवेयपह दुज्जणलोीओ तह चेव ॥|४६॥ 

सो वि हु समप्पिकणं मऊरमाभासियं नियं सामिं | मणयं सलज्जहिययं सत्यि त्ति भणित्तु निकखंतो ॥४७॥ 
गच्छंतो संपत्ता रयणउरं तत्थ रयणरहराया । तस्स सुओ कणगरही त॑ पासिय भणइ दियपुत्तो ॥४८॥ 

अहयं माहणपुत्तो तुमं पि गुणगेह ! रायपुत्तो सि। जइ भणसि तुज्झ पासे अच्छामि अहं कुमारों वि ॥४९॥ 
इमिणा पुरोहिययण पओयणं मह पुरा भवद तम्हा । सम्माणदाणपुव्वयमहमेयं संगहिस्सामि ॥५०॥। 
परिभाविऊणमेयं पभणह त॑ भद्द ! मज्क पासम्मि । अच्छसु त॑ मह मित्तों तुह सव्ण्महं भलिस्सामि ॥५१॥ 


भणियं च-- 
पाऊण पाणिय॑ सरवराओ पिट्टि न देह सिहिडिभो । होही जाण कलाओ पयइ चिय साहए ताण ॥५२॥। 


इय सो सहरिसमच्छइ पेच्छइ तत्थ य पहाणसेट्ठिसुयं | अणुदिणमेव मणोरहनामं त॑ कुणइ नियमित्त ॥|५३॥। 
अवरा वि पिंडवासे गुणगेहं नाम निग्गया वेसा । नामेण रहविछासा संगहिया सा वि घरवासे ॥५४॥ 
एवं सो तिहि वि सम॑ परोप्परं बह्डमाणपणयगुणो । चिट्ठइ निव्वुबहियओ सुमरंतोी जणयहियवयणं ।॥॥५५॥ 
अह अजन्नया य हेडाउडेंहिं दसंतराओ दो तुरया । सब्बंगलक्खणजुया समप्पिया पुहइवाल्स्स ॥५६॥ 
आछरूढा तेसु कुमार-माहणा जाव वाहिउं रूगा । कड्डंताण वि ताणं ते चलिया काणणाभिमुहं ॥५७॥ 
नायमिमे जह विवरीयसिक्खगा तयणु आंबलीहेट्टा | गच्छंतेण दिएणं गहियं आंबलूगतिगमेयं ||४८॥ 
गुरुणो रुकबखाओ तय॑ं नाणाइतिगं व पुन्नव॑तेण | भवतण्हाहरणखमं परिणामसुहं च संपत्त ॥५९॥ 
तो खित्ता दुहजणयं भवकंतारं व राग-दोसेहिं । अवसेहिं तेहिं तुरएहमाणुसं निज्जल्मरन्नं ॥६०॥ 
तो कणगरहकुमारों बाढ़ तण्हाए पीडिओ संतो । भणइ कुओ वि हु आणेहि पाणियं जंति मह पाणा ॥६१॥ 
धीरो होसु त्ति पयंपिअण जा तग्मि जोयइ जल सो । ताव न पत्तं कहमवि ता दिन्न॑ं आंबलगमंगं ॥६२॥ 
आसायइ जाव तय॑ ता अमयकला वियंभिया कंठे । एवं बीय॑ तइयं तो पत्तो चेयणं कुमरो ॥६३॥ 

है मणयं वीसत्थमणा तम्मि अरज्नम्मि जाव चिट्ंति | ता भोयण-पाणजुयं संपत्तं रायसेन्नमवि ॥६४॥ 

जओ-- 

आवदगओ वि नित्थरद आवयं तरइ जलहिपडिओ वि। रणसंकडे वि जीवइ जीवो अणुकूलकम्मवसा ॥२१५॥ 
संपत्ता नियनयरे कमेण नियनियपएसु संठविया । जणयाइएहिं सब्बे संपत्ता सगुणमाहप्पं ॥६६॥ 
इय सब्बाण वि तेसिं सिणेहसाराणमइव्यद कालो | जम्हा पवद्ुमाणा परिणामसुहा सुयणमेत्ती ॥६७॥ 


नर कब न लिनणा शत दि जा" क्‍४-न++ 7" 


१, ०यमिमिणा दटटु रं० | 


२१, उत्तमज नसंसर्गियुणबर्णनाधिकारे थरशुकाल्यानकम्‌ श्८र्‌ 


अह कइया वि पुरोहियजायाए तीए रइविलासाए | गब्भाणुभावजणिओ संजाओ दोहलो अहमो ॥६८॥ 
रायसुयं कीलंतं दट् णं पंचवरिसदेसीयं | जाणइ मणम्मि एसा जह मंसमिमस्स भकक्‍्खेमि ॥६९॥ 
त॑ साहिउमचयंती संजाया दुब्बलंगिया अहियं । पुट्टे अविसिट्ट पि हु कहियं कह कहवि तं॑ पहणो ॥३०॥ 
तेणुत्त किमसंगयमहामयं सुयणु ! पूरयिस्सामि | कीस किसोयरि ! न कहियमेत्तियकालं विणा कज्ज ॥७१॥ 
कुमर गोविय दिल्ल' मंसमिमए सुसाउरसमवरं । तो सा पूरियवंछा सुह्ेण तं॑ गब्भमुब्बहद ।।७२॥। 
साराबिओ कुमारों भोयणसमयम्मि जाव नरबइणा । कत्थ विय तो न लड्»ो नयरम्मि गवेसिओं वेसो ॥७३॥ 
त॑ वहयरमायन्निय गणिया धणियं घसक्किया हियए । दुहिया दुक्षियकरम्म॑ निंदिउमप्पाणयं रूमगा ॥७४।। 
बलि किज्जउ मह जम्मो कि न मया अकहिऊण पावमिमं ? | कि जीविया करिस्सं भक्खिय त॑ पुत्तनररयणं ॥७५॥ 
ता पुच्छिडं मणोरहसे ट्विम॒वायं करेमि क्िंपि अहं ? । जा नरबहपासाओं मह पहणो न भवई अणत्थों ॥७६॥ 
तो गंतृणं गुज्झ॑ निवेइयं सेट्रिणो अणेणावि | पेच्छ विरूवं केरिसमावडियमिमं ? ति चिंतेडं ॥७७॥ 
धीरा होसु समग्गं सुत्थमहं काहमिइ पयंपंतोी । जाव न वच्चह ता सिम्धमेव गंतं निवसयास ॥७८।। 
भणियं सुदुक्खमेईए देव ! पावं मए कय॑ एयं | ता मरिससु पसिऊर्ण अबराहं मज्क पावाए ॥७९॥। 
इय जाव पायवडिया मरिसावह ताब सेट्टिणा भणियं । मह गेहम्मि रमंतो दर्दरपडिओ मओ कुमरों ॥८०॥ 
एवं खमावंताणं द॒ुण्ह वि निवई समागओ विप्पो । पभणह जइ सच्चमिमं मह दोसा ता मओ कुमरों ॥८१॥ 
नियगरुययाए सामिय ! मह दोसावणयणत्यमेयाणि । भुल्ल।हराणि बोल्लंति देव ! ता कुणसु ज॑ जुत्त ॥८२॥ 
ता जायपन्चओ सो सब्वेहिं खमाविओ पयत्तेण | पमणइ जह एवमिमं तो खमियं तुह मए मित्त ! ॥८३॥ 
जेणेस मज्क भवओ लाभो रज्जाइओ निरवसेसो | कि बहुणा ? मम संपइ पविद्ठमामलूयमेगमिमं ।|८४॥ 
इय वबयणं सोऊर्ण पुरोहिओ नियमणे विचितेद । सब्बेसि गरुयत्त विसिसओ राइणों जेण ॥८५॥ 
सो तारिसगुणभवण्ण देवकुमारोवमों सुओ पढमो । आमलगमल्लपरिकप्पणाए गणिओ गुणड्रेण ॥८६॥ 
ता सब्बहा वि सुहयं संपह मह परिणयं जणयवयणं | एवं मणयं सत्थाणि जाव जायाणि सच्चाणि ॥८७॥ 
तो विन्नतो बीए दिणम्मि विप्पेणमज्ज संपरिजणो | घरभोयणकरणेणं सपसाओ होउ मह देवो ॥८८॥ 
तहविहिए विहिपुव्व॑ भोयावेडं सपरियणं रायं । भुत्तत्तरे य तत्थ वि वीसंताणं सुसत्थाणं ॥<९॥ 
केऊर-कडय-कुंडल-महरिहहर-5द्धहारमाईहिं । आहरिऊण कुमार रज्नो अंके निवेसेइ ॥९०॥ 
त॑ पासिऊण राया लज्जाए अहोमुहो ठिओ जाव । ता भणियं पहु ! किमय॑ हरिसद्वाणे वि हु विसाओ ॥९१॥ 
हरिसट्वाणं मह मित्त ! केरिसं ? जस्स मोल्लमवि नत्यि | तं आमलगं मोहाउमहियमहम्मेण जेण मए ॥९२॥ 
तो तेण जणयवयणं संसम्गिगयं पयासियं सब्बं । तं सोउं सब्वो वि हु रायाई रंजिओ छोओ ॥९३॥ 
भोत्तणं रज्सिर्रि उत्तमसंसम्गिजायबहुमाणा । संपत्ता सब्बे वि हु गुणबहुमाणेण सुगईएण ॥९४॥७॥ 

॥ प्रभाकराख्यानक समाप्तम्‌ ॥६३॥ 
इृदानीं वरशुकाख्यानकमाख्यायते । तद्यथा-- 
अस्ति काचिदरण्यानी विस्कूजे्खड्गभीषणा । सिंहनादकृतोत्कम्पा दुर्गा सडग्रामभूरिव ॥१॥ 
सट्ठटितशुद्धवंशा विराजिगुणसड्गता । फलाब्यविस्फुरदूबाणा धनुयष्टिरिवासमा ॥२॥ युग्मम्‌ ॥ 
तस्यां समुन्नमच्छाखे साधाविव तरो क्वचित्‌ | एका शुकी सदाकारा समास्ते भठृसड्गता ॥३॥ 
अन्यदासौ स्वके नीडे सुषुवे कीरयुग्मकम्‌ । सल्लक्षणं लसंत्पक्षं सीतेव तनयद्वयम ॥४॥ 
जगृहे तापसेनेकस्तयोमिल्लेन चापरः । स्वक स्वकं समाचार तौ ताभ्यां शिक्षितौ शुक्रौ ॥५॥ 
अथापहत्य तत्रौद्वेरशवेना55नायि भूपतिः । त॑ दृष्ठा लात लातेति न्‍्यगादीद्‌ मिल्लकीरकः ॥६॥ 


१, पुच्छियं २० । २. निःश्रेणीपतितः २० । ३. सपउरजणो खं० २ं० । 


१८२ आखश्यानकमणिकोशे 


नंष्ठा राजा ततः स्थानाद्‌ गतो यावत्‌ तपोवनम्‌ । तावत्‌ तत्र शुको5वादीदेतैत मुनिपुञ्षवा: ! ॥७॥ 
खिन्नो5तिथि: समायातो विधत्तातिथ्यमञ्जसा । ततो राजा तकच्छुत्वा तदन्तिकमशिश्रियत्‌ ॥<॥ 
अथो राज्ञा शुकः पष्टस्त्वत्समोउड्न्यो मयेक्षित: | परमन्तरं महद्‌ विद्यो न हेतुं सोडभ्यधाच्छुकः ॥९॥ 
माताउप्येका पिताउप्येकी मम तस्य च पक्षिण: । अहं मुनिभिरानीतः स च नीतो गवाशने: ॥१०॥ 
गवाशनानां स गिरः श्रणोति, अहं तु राजन! मुनिपुज्ञवानाम्‌। प्रत्यक्षमेतद्‌ मवताउपि दृष्ट, संसगंजा दोष-गुणा भवन्ति॥ ११॥ 
॥ वरशुकाख्यानक समाप्तम ॥६४॥ 
अधुना कम्बल-सबलाख्यानकं व्याख्यायते | तच्यथा-- 
अत्थि महुरापुरीए पासजिणेसरपवित्तियधराए । नामेणं जिणदासो जिणदासी साविया तस्स ॥१॥ 
सो य केरिसो १-- 
जीवाइपयत्थविऊ जिणपवयणरागरत्तमिज-उट्टी । धम्माओ न चालिज्जइ देवेहिं जक्ख-रक्खेहिं ॥२॥ 
पंचरहिं अणुव्वएहिं गुणव्वएहिं च तिहि वि परिसुद्धो । बहुबीय-5णंतकाइय-कम्मादाणाण वि नियत्तो ॥३॥ 
सामइयमुभयसंझं चीवंदण-पूयणं च तिकाल । अट्ठमि-चउद्सीसु य चउव्विहं पोसहं कुणइ ॥४॥ 
असण पाएं पत्तं उबस्सयं सयणमासणं वत्थं । ओसहमाई वियरइ अतिहीणं संविभागम्मि ॥५॥ 
पढ़इ सुणेइ गुणेह य एगग्गो क्ायए नमोक्कारं | तव-नियम-भावणाइसु सावगकिदश्वेसु उवउत्तो ॥६॥ 
तेहिं पच्चक्खायं जाजीयं चउपयस्स सब्वस्स । गिण्हंति दहियमाइय निश्च॑ गोउलियहत्थाओ ॥७॥ 
जाया पिणेबुद्धी परोप्परं तेसिमित-जंताणं । गोउलियविवाहम्मि य कयाइ सोहा कया तेहिं ॥८॥ 
वत्था55भरणाईहिं तेहिं य तुट्ठेंहिं तस्स सडृस्स | उवणीया सियवन्ना गोणजुवाणा दुबे परमा ॥९॥ 
सो भणइ मज्क नियमो परिग्गहे चउपयस्स काउ जे । ताणि पुणो तस्स गिहे बंधित्तु गयाणि सद्ठाणं ॥१०॥ 
सो विय सड्ो चितइ बाहिं मुक्का इमे उ लोगेहि | वाहिज्जंति चरंति य अफासुयं हरियमाईयं ॥११॥ 
तो ते गिहट्टियाणं फासुयचारीए गल्यिमुदए्णं । खाणेण य सो तेसिं करेइ सब्ब॑ पि अक्खुणं ॥१२॥ 
अट्टमि-चउद्दसीसुं उववासं करिय धम्मसत्थाईं | वाएइ तेसि पुरओ ते सन्नी ताणि सोऊणं ॥१३॥ 
भदयचित्ता जाया जहिविसं सावगों न जेमेइ । तद्दिवसं सुहभावा आहारं ते वि वज्जंति ॥१४॥ 
सडस्स तेसु जाओ बहुमाणो समहिओ सिणेही य । उवसंतप्पा एए भवियचित्त त्ति नाऊणं ॥१५॥ 
भंडीरमणे जत्ता जाया नीया य ते अपुच्छाए | सावगमित्तेण तहिं जोएत्ता नियफिरिकाए ॥१६॥ 
अन्नस्स एरिसो नत्यि एवं सिंगारमुव्बहंतेण । अन्नन्नेहि य सद्धि धवाडिया ते य वसहेहिं ॥१७॥ 
ते य बलिद्दा छिन्ना सड्गिहे तेण आणिउ' बद्धा | न चरंति ते य उदयं पियंति अइविहुस्सब्बंगा ॥१८॥ 
विन्नायवइयरेणं सड्डं ण य खिज्जिउ' बहुपयारं । भत्तं पच्चक्खाविय दिल्ञो तेसिं नमोक्कारो ॥१९॥ 
तो मरिउ सुहभावा नागकुमारा महिड्डिया जाया । उत्तमजणसंसग्गी एवंगुणकारिया होइ ॥२०॥ 
उत्तमगुणसंसग्गी जह एएसि गुणावहा जाया। तह अन्नस्स वि जायइ ता एड्रेए कुणह जत्तं ॥२३॥ 
॥ कम्बल-सबलाख्यानक समाप्तम ॥९०॥ 
कंबल-सबलकहाणयमेयं बीय॑ तु चंदणज्ञाए | कविविरइयमेव मए गुरुषहुमाणाओ लिहियमिमं ॥२४॥। 
वेदमध्यमावहति धमंमर्ति विधत्ते, सद्योगतां प्रथयति प्रशमं करोति । 
कीर्ति च शुअशरदअरुचिं तनोति, साझ्जत्यमु त्तमजनेस्तदतः कुरुष्वम्‌ ॥१॥ 
॥इति श्रीमवाप्नदेवसूरिविरचिवृश्तावधाख्यानकमणिकोशे उक्तमजनसंसर्मिगुणबर्णन 
एकविशतितमो5घिकारः समाप्त: ॥२१॥ 


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आय व न न 


१, एतदाख्यानकमणिकोशकतृभ्रीनेमिचन्द्रयूरिविरचिते प्राकृतमहावीरचरित्रे इत्यर्थः । 


[ २२. इन्द्रियवशवत्तिप्राणिदुःखवर्णनाधिकारः ] 
कुसंसर्गि-सुसंसर्गिवशाद्‌ दोष-गुणावभिहितौ । कुसंसर्गिदोषश्वेन्द्रियवशगानां भवतीत्यतो गुणस्थितैरपि तद्विश्वासो न 


विधेय इत्यमुमथमभिधित्सुराह -- 


वीससियव्यं न य इंदिएसु तव-नियमसुद्ठिएहिं पि । 
जद उवकोसगिहगओ महातवस्सी वि संखुदिओ ॥२७॥ 


व्याख्या --'विश्वसितत्य' विश्वास: कतेव्यः “न च' नैव 'इन्द्रियेपु' इन्द्रिय विषये[षु] तपो-नियमसुस्थितैरपि आस्तामपरे: 


इत्यपेरथः अत्रार्थ | दृष्टान्ताना(न्तमा)ह--'यत्‌' यस्मात्‌ कारणाद 'उपकोश गृहे' कोशाल्घुभगिनिवेश्मनि 'गतः” स्थितः 'महातपस्व्यपि' 
विक्रृष्टतपश्चरणशो षितो 5पि 'संक्षुभित:” धमोत्‌ सखलित इत्यक्षराथ: ॥२७॥ 
भावार्थस्ववाख्यानकगम्य: । तच्चेदम्‌--- 


तथा-- 


किच-- 


अवबरं च-- 


नंदंतयम्मि नवमम्मि वष्ठमाणम्मि नंदनिवइम्मि | कप्पयवंसपभूए सयडाले मंतिणि मयम्मि ॥१॥ 

तह पव्चइयम्मि पवित्त-थूलभद्दम्मि थूलभद्दम्मि | संभुयविजयपासम्मि तम्मि गच्छम्मि खमगतिगं ॥२॥ 

एगो सिंहगुहाए सप्पबिले मंडुकासणे तइओ । चउमासियम्मि नियमे एएहिं तिहिं वि पडिवन्ने ॥३॥ 
विरपरिचियाए सरसाए गाढपेमाणुरायरत्ताए | सिंगारकोवियाए रूवाइगुणेहिं अहियाए ॥४॥ 

कोसावेसाए गिहे करणजयद्ठाए निन्चभुत्तीण | विहियपइन्ने सिरिथूलभद्दसाहुम्मि पञ्जंते ॥५॥ 

गुरुपडिवर्त्ति दट्ुं समच्छरो बीयवरिसयारूम्मि | सीहगुहाइत्तमुणी आगच्छह वेसमवर्णम्मि ॥६॥ 

तीए भइणी भणिया तह खोहसु जह न होइ वयभंगो । तीए कडक्‍्खविक्खेवमोहिओ जाव सो खुहिओ ॥७॥ 


उप्पयठ गयणमग्गे रुंजउ कसिणत्तणं पयासेउ । तह वि हु गोब्जरईैडो' न पावए भमरचरियाईं ॥८॥ 


अहो ! का काकानामहमहमिका हंसविहगे: ?, सहामष: सिंहैरिह हि कतमो जम्बुकतुकाम्‌ ? । 

बत ! स्पधो कीहक्‌ कथय कमले: सेवलतते: १, सहा5सूया सद्भिः खछु खलजनस्यापि कतमा ? ॥९॥ 
तीए जहा पेसविओ कंबलरयणस्स जायणनिमित्तं । पाउसकाले नेपालविसयनरनाहपासम्मि ॥१०॥ 

तं॑ जह कंबलरयणं समप्पियं तीए जह नियंतस्स । खित्तं असुइद्गाणे सोयंतो तं च सिक्खविओ ॥११॥ 
भयवं ! त॑ सुइदेहो सीलालंकारभूसिओ सययं । मह असुहसरीरवसा तुम पि एयारिसो होसि ॥१२॥ 
ता त॑ एयं सोयसि न उगो गुणरयणरुइरमप्पाणं | ता इयगए वि भयवं संभरसु पवित्तनियपयविं ॥१३॥ 


सीलु सुनिम्मठु दीहकाहु तरुणत्तणि पालिउ, भांण-5ज्कयणिहिं पावपंक्रु तवचरणिहिं खालिउ। 

इय हालाहलविससरिच्छ विसयास निवारहिं, उज्जलवन्नु सुबन्नु धम्विउ म॑ फुकईं हारहि ॥१४॥ 
अब्भसिड वीरपइन्नाण वरु, आवज्जिउ मुणिगुणहं गणु | ता संपह उवसमि धरहि मणु, आवइ तुरिउं जर-मरणु ॥१५॥ 
ता मुणसु भो महायस ! इंदियवसगस्स अत्तवियलूस्स | सिरिथूलभददमुणिणा का तुह सह तेण समसीसी ? ॥१६॥ 
पेच्छसु मह भइणीए सोहग्गखणीए रहवियड्वाए | पयडियमयणवियाराए पहदिणं दिद्पइनो सो ॥|१७॥ 
वाओलीए मंदरगिरि व्व निकंपकाणथिरचित्तो । तिलतुसमेत्तं पि हु नेय चालिओ अहह ! स महप्पा ॥१८॥ 
त॑ पुण मए वि अदिद्वगुणसरूवाए बोहिओ एवं । ता पुरिसाणं पच्चक्खमंतरं दीसए गरुयं ॥१९॥ 


३१, ०रकीडो २० । 


श्प्छ आखश्यानकर्मणिकोशे 


समरे मरंति जलणे बिसंति निवइंति गिरिसिस्गाओ । जे उण करणाणि जिणंति तिहुयणे ते जणा बिरला ॥२०॥ 
जम्हा-- 

जाण रमणियणभमुहाधणुनिग्गययसियकडक्खभन्लीहिं । सीलकवयं न भिन्‍ने नमो नमो ताण वीराणं ॥२१॥ 

ता भद्द ! संपर्य पि हु सुगुरुसयासम्मि वच्च दुच्चरियं | आलोइऊण सम्मं संजमभारं समुन्बहसु ॥२२॥ 

इय तीए सिक्खविओ भट्टपइन्नो विलकखवयणों सो । अणुसासिओ सगुरुणा पयडियसल्लो वयं चरह ॥२३॥ 

तह सब्बं नेयव्वं आवस्सगविवरणाओ वित्थरओं । इह गंथगोरवभया वित्थरओ नो मए भणियं ॥२४॥ 

॥ उपकोशागरहगततपस्व्याख्या नक॑ समापु्तम ॥६६॥ 
स्थान्मति:ः--इन्द्रियाणां समीहितपूरणेन सुखितस्य पूर्वदोषासम्भव इति एतदपि नास्ति, यत आह--- 
जो होह इंदियवसो सुहमप्पं तस्स दुक्खमहबहुय॑ । 
भद्दा-माहुर-निवसुय-न राय-सुकुभालियाणं व ॥२८॥ 
अस्या व्याख्या--'यः” मूढ़: प्राणी 'भवति” जायते इन्द्रियवश:' करणपरतन्त्रः 'सुखं' शर्म “अल्प स्तोक॑ “तस्य! 

इन्द्रियवशगस्य 'दुःखं' तद्विपरीतं “अतिबहुक' प्रभूतम्‌ | दृष्टान्तानाह-भद्रा च-श्रेष्ठिभायों माथुरश्च-मथुराभवों वणिक्तनय: नृपसुतश्र 
राजपुत्रों गन्धप्रियकुमार: नरादश्व--नरमांसभक्षकों नृपः सुकुमारिका च-नृपभार्या तास्तथोक्तास्तासामिव इत्यक्षराथें: ॥२८॥ भावाथ- 
स्वाख्यानकेभ्योडवसेय: । तानि चामूनि | 
तत्रापि तावत्‌ क्रमागतं भद्गाब्यानकमभिधीयते । तश्चेदम-- 

आसीह वसंतपुरे छंदम्मि व पवरजइसमाइन्ने । नरगणकलिए बहुवित्तसंजुएण पयपहाणम्मि ॥१॥ 

अणुसरियविबुहमग्गो पुत्वाभासी पहाणसत्तिजुओ | धणनाम सत्थवाहों निवसइ अणुहरियद्विसयरों ॥२॥ 

पयददए बुद्धिजुया सुपच्चया सुस्सरा य गुणकलिया । तस्स य भद्दा भज्जा सुपया वायरणवित्ति व्व ॥३॥ 

अह्द अन्नया य धणओ भद्दं मोत्तण निययगेहम्मि । अत्थोवज्जणकर्ज संचलिओं अवरदेसम्मि ॥४॥ 

तद्दासीओ अन्नम्मि वासरे हड्टमज्कयारम्मि | कज्जेण गया केणवि उस्सूराओं पडिनियत्ता ॥५॥ 

अंबाडियाहिं ताहिं भणियं मा कुप्प सामिणि ! तमज्ज । जेण निमित्तेण ठिया इत्तियवेलं तयं सुणसु ॥६॥ 

नामेण पृष्फचूलो महुरसरो मुणियगीयविज्ञाणो । नियगीयपरवसीकयअसेसपुरनारि-नरनियरों ॥७॥ 

सो गायंतो दिट्टों कलकंठो विरहिविहियउक्कंठो । तग्गीयपरवसाणं जाया अम्हाण वेल,त्ति ॥८॥ 

त॑ निुणिऊण तत्तो पभणइ भद्दा कया वि अम्हं पि। दरिसेयव्वों त्ति पयंपियम्मि त॑ं ताहि पडिवन्नं ॥९॥ 

अह अन्नदिणे कत्थइ पारद्धा देउले महाजत्ता । नियदासीहिं समेया समागया तत्थ भद्दा वि ॥१०॥ 

एत्तो य पुप्फचूलो सयलं रयर्णि पि गाइउं खिन्नो | देवउलपिट्टिभाए चिट्ह जा निब्भरं सुत्तो ॥११॥ 

कुणमाणाए पयाहिणमेसो भद्दाए दंसिओ ताहिं | सो एस पृष्फचूलो सामिणि ! गंधव्विओ खुयहइ ॥१२॥ 

द्टू ण तं विरूव॑ कसिणं उद्दंतुरं कविलकेस । पभणइ भद्दा जस्सेरिसा5अगिई को गुणों तस्स १ ॥१३॥ 

इय एवं जंपंती उब्विग्गा तम्मि सा विरूवम्मि । निट्टीविऊण तत्तो तद्वाणाओं गया सगिहं ॥१४॥ 

पच्छा तप्पुरिसे््टि निवेइए तीए वहयरे तस्स | तो सो कुबविओ विरइय धणचरियं गीयबंधेण ॥१५॥ 

जह भद्दाए नियगिहं भलाविउं परियणेण सह चलिओ । जह अवरदेसनरवइपसायदाणेण लद्धजसो ॥१६॥ 

विढवित्तु मूरिद॒व्वं नियदेसं पह जहा पडिनियत्तो । जह नियगेद्दे पविसह तह गायह महुरमेसा वि ॥१७॥॥ 

पियविरहजलणजालाकरालिया हरियहिययवावारा । तग्गीयसवणविवसा जाणइ किर एड मह भत्ता ॥१८॥ 

पविसइ गिहम्मि ता जामि सम्मुहा इय विगप्पियं तरसा | उवरिमतलाओ मेज्लइ विवसा सब्बंगमत्ताणं ॥|१९॥ 

ताव सहस त्ति पडिया मुक्का पाणेहिं पुप्फचूलो वि । तज्जीवियं व घेत्तु' नह्ठों अन्नत्थ चोरो व्व ॥२०॥ 

॥ भद्राख्या नरक समाप्तम्‌ ॥६७॥ 


२२. इन्द्रिययशवर्शिप्राणिदु:खबणनाधिकारे नरादाख्यानकम्‌ १८५ 


अधुना माथुराण्यानकस्यावसरः, तच्य भावद्टिकाल्यानके भणिष्यते। अतः क्रमप्राप्त नुपसुताल्यानकमारभ्यते। 


यथा--< 


नयरम्मि वसंतपुरे नवसंतपुरे रणंगणेकरसो । आसि नरसीहराया रायायवसियजसप्पसरों ॥१॥ 

तस्सा55सि पढमकुमरों जणियं भुवणम्मि जेण अच्छरियं । जणमेगमुहं काउं नियगुणगहणे बहुमुहं पि ॥२॥ 
सव्व॒त्थ वत्थुजायं जं जं॑ पेच्छइ स जिग्घए त॑ पि। इट्टा-डणिट्रंसु सथा राय-विराए कुणइ कमसो ॥३॥ 
नाऊण<चासत्ति सिम्धंतो गुरुषणेण सिक्खविओ | एवं अहृप्पसंगो न जुज्जए वच्छ ! तुम्हाणं ॥9॥ 

मा कुणसु दुगुंठझमसोहणम्मि मा सोहणम्मि अणुरायं । जम्हा दुन्निविजीवाण कारणं कम्मबंधस्स ॥५॥ 
अवरं च सुगंध पि हु कप्ूराई सरीरसंत्ग्गा । जायइ दुगंधरूवं ता जुजइ न इह अणुराओं ॥६॥ 
खरमडयगंधवासिय नलाइवरसुरहिवत्थुसंजोगा | जायह सुरहिसर्वं त॑ पि न विडसा दुगुंछंति ॥७॥ 

ता पोगालपरिणामम्मि एरिसे वच्छ ! होसु मज्ञत्थो । मा होठ [तुह] अणत्थो कहया वि असोहणग्घाण ॥<८॥ 
एवमणुसासिओ वि हु गुरूहिं न हु मुय॒द्द गंधवसणण सो । भमइ य जिग्बंतो परिमलबद्व वत्यूणि सव्बत्थ ॥९॥ 
तो सब्बत्थ वि जाय॑ नाम॑ गंधप्पिओ त्ति कुमरस्स | कुणइ य आरुहिऊणं बहुसो वि हु गरुषनाबाए ॥१०॥ 
मणहरसलिलंदोलणकेलिं कल्लोलिणीए गंतुण | समवयवयंसविलसिर विलासिणीवग्गपरियरिओ ॥११॥ 

अह से सवक्िजणणी तं॑ विलसंतं विलोइउं पावा । चितहइ रज्ज होही इमस्स न हु मज्क पृत्तस्प ॥१२॥ 

ता मारिज्वउ एसो त्ति चितिउं लहुपुडे विस बद्धं । उस्सिंधियमेत्तेण वि मरणं संपञ्जए जेण ॥१३॥ 

तो त॑ समुग्गयम्मि मंजूसासत्तगस्स मज्कम्मि | त॑ं पि हु पक्खिविऊर्ण पवाहिया उबरिमे तिम्बे ॥१४॥ 
तत्तो तरंगिणीए तरमाणी दिद्ठिगोयरं पत्ता | कुमरस्स तओ तेणं त॑ विप्तमुस्सिधियं घेत्त ॥१५॥ 
गुरुविसमाहप्पेणं खणेण कुमरों परव्वसो जाओ । तत्तों विसभीएहिं व मुक्को पा्णहिं सहस त्ति ॥१६॥ 


॥ उृपसुताख्यानक॑ समाप्तम ॥६८॥ 


अधचुना नरादाख्यानक व्याख्यायते | तथ्था-- 


२४७ 


अत्थि सुसीमा नयरी नयरी संकुणइ काबि जीए सम॑ । सययं सुत्यियजणया जणयाइजणाण कयपूया ॥१॥ 
जो न पडिवन्नराओ गुणेसु पत्तिय स भन्नह नराओ । पायडअवन्नराओ तं राया रक्खइ नराओ ॥२॥ 

जम्हा उ सो नरं माणुसं ति अत्तित्ति भक््खइ निसंसो । तेण नराय॑ त॑ वज्रंति अन्ने उ सोदासं ॥३॥ 

सो पयईए वसणी विसेसओ मंसलोलुयाकलिओ । मंसं च सूययारप्पमायओ केण वि हिय॑ से ॥9॥ 

तेण वि भयभीएणं माणुसमंसं सुसंभियं काउं । परिवेसियमस्सा55साइयम्मि पुट्टो कुओ एयं ? ॥५॥ 

तेण वि निब्बंधेणं निवेइए तम्मि चेव नरमंसे | रसलछोलयाए लुद्धो एगेगं माणुसं हणइ ॥॥६॥ 

तस्स भएणं सब्बो नायरलीओ पलाइड रूगो । संकलियाए नि4रद्धों माणुसमेगं समप्पेइ ॥७॥ 

एवं वच्चर कालो कयाइ पररेहिं मंतियं एयं । एसो रक्खसपयई ता णेण न कज्जमम्हाणं ॥८॥ 

रज्जे निवेसिऊण तस्स सुयं सम्मएण सब्बेसि । अडवीए पक्खित्तो सो मत्तो मज्जपाणेणं ॥९॥ 

तत्थ विसेसाहारेण धम्मरहिओ धिईँ अलभमाणों । पंथे माणुसमेगं मारह परिचत्तमज्जञ!'ओ |।१०॥ 

अह अन्नया य तेणं भुक्खिय-तिसिएण साहुणो दिद्ठा । उद्धाइओ य ते वि हु भक्खिउकामो दुरायारों ॥११॥ 
तो ते घेत्त सागारमणसणं ठन्ति काउसग्गम्मि | न तरइ उग्गहभूमिं तेतिमइक्कमिउमहममई ।।१२॥ 

तत्तो विलक्रखवयणों पडिब्रोहकए मुणीहिमालबिओ । भो भी सुणसु महायस ! पंचिदियजियवहसमुत्यं ॥१३॥ 
मंसं विसिट्वलोयाण गरहियं गरुयपावसंजणयं । सामन्नेगं सब्ब॑ माणुसमंसं विसेसेणं ॥|१४॥ 


श्प्द आश्यानकमणिकोशे 


यतः-- 
स्व मांस परमांसेन यो वधयितुमिच्छति । वृद्धि न लभते सोडपि यत्र यत्रोपपथ्चते ॥ १५॥ 
आयु:क्षयो भवति तस्य दरिद्वता च, नेवान्यजन्मनि भवेत्‌ कुल-जातिलाभ: । 
मांसाशिनो हतमतेविंफलकियस्य, स्याज्नीचकर्मकरणोदरप्‌*णं च ॥१६॥ 

तथा-- 


मां स भक्षयिताअमुत्र यस्य मांसमिहादम्यहम्‌ । एतन्मांसस्थ मांसत्वं प्रददन्ति मनीषिण: ॥।१७॥।। 
त॑ सोऊण नराओ पडिबुद्धों कुगइगमणजायभओ । सह मंसभक्खणाओ विणियत्तो जायधम्मरुद्दे ॥|१८॥ 
॥ नरादाख्यानकं समाप्तम ॥६६॥ 


इदानीं सुकुमारिकालख्यानकं व्याख्यायते । तथ्य था-- 


चंपापुरीए राया जियसत्त सत्तुसमरसंहारों | सरयरयणियरकंता कंता सुकुमालिया तस्स ॥१।। 
तो तीए कमलकोमलसरीरफासेण मोहिओ अहियं | अणवरयसुरयवाबारहरियहियओ महाराया ।॥।२॥ 
अवमन्निय अवरोहणरमणीनियरो विभुक्ककरिकीलो । परिचत्तवरत्थांणो दूरीकयमंतिपउरजणो ॥३॥ 
अगणियजणाववाओ परिहरियहिओवएससंघाओ । अवगन्नियगुरुवयणो अवहत्थियसत्थपरमत्थो ।|४॥ 
अगुणियकलाकलाबवो अदिन्नबंधुयणदंसणालावो । परिचत्तधम्मकम्मो अवमाणियमित्त-पुत्तगणो ॥५।। 
अकलियनियबलमाणो अजणियबंदियणदाणसम्माणो | अन्नायसत्तुमंडलवावारों अकयकायव्वों ॥६॥ 
कि बहुणा भणिएणं ? तख्चित्तो तम्मओ व्य संजाओ । तप्फासलालसो सो निग्गच्छइ नावरोहाओ ॥७॥ 
राया मयणमहागहगहिओ त्ति असेससत्तसंघाओ । चंपेइ चउप्पासं तद्देसं विहियसन्नाहों ॥८॥ 
खत्ते खणंति चोरा धाडि पाडिति चरडचक्काणि | बंदंति बंदियगणा वणियजणं दविणलुद्धमणा ॥९॥ 
तोडंति जुयइ कन्‍ने जूयारा कणयकुंडलनिमित्त' । गंठिच्छेया गंठिं छिद्वित्ता कत्ति नासंति ॥१०॥ 
सेवंति पारदारियनियरा निस्संकमेव पररमर्णि | कि बहुणा ? सब्वा वि हु नयरी असमंजसा जाया ॥११॥ 
न य कोइ सुहं निद्दं पाव न कोइ सोक्खेण । एगागी न य कोइ वि नयरीमज्कम्मि परिभमह ॥१२॥ 
पेयवर्ण व सुभीम॑ पुरिं पलोएड विमलमइमंती । चितइ अहो ! विणट्टं रज्ज ता कीरठ किमेत्थ ? ॥१३॥ 
परिहरइ विसयवसणं न निब्री सुइरं पि पमणिभो वि मया । ता दिज्जउ रायसिरी कुमरस्स विचितिउ' एवं ॥१७॥ 
पमणइ तो एगंते कुमरं मंती जहा महाराया । नीइनिवारियविसयासत्तों हारेइ रज्जसिरिं ॥१५॥ 
तुम्हारिसा वि जइ किर निययकुलक्कमसमागयं छरच्छि | समुविक्खंति तओ सा गिण्हेयव्वा रिऊहिं सुहं ॥१६॥ 
तो निव्वासिय पियरं कुमार ! समलंकरेसु रायसिरिं। जेण तुह पायपायवछायाए सुहं वसह लोगो ॥१७॥ 
ज॑ भणइ महामंती करेमि तं॑ पभणिए कुमारेण । मंती पहिट्ठहियओ महापसाय॑ पयंपेइ ॥॥१८॥ 
तत्तो अप्पायत्ता कुमरेण कया समग्गसामंता । राया वि तीए जुत्तो जोगजुयं पाइओ महरं ॥१९॥ 
तो मयमत्तो सुत्तो उप्पाडित्ता निउत्तपुरिसेहिं | देवीए जुओ मुक्को पल्लंकठिओ महारजन्ने ॥२०॥ 
रुरु-रोज्ञ-सीह-सम्बर-सदुदूलविमु क्घो रवोंकारे । बद्ध॑ं च तस्स वत्थे पत्तं एवं लिहेऊण ॥|२१॥ 

सणासत्तो त्ति तुमं कलिऊणं सयलनयरलोएण । मुक्को देवीए सम॑ एयम्मि महाअरजन्नम्मि ||२२॥ 
ता एये नाऊणं न हु वलियव्व॑ तएु इओहुत्त | ** 7 7 ******** य नाउं कुण जहाजुत्त ॥२३॥ 
मयरामयपज्जंते पच्चागयजीविओ व्व नरनाहो । उवलद्धचेयणो सो पेच्छइ घोरं महाअडर्वि ॥२४॥ 
कि इंदियालमेयं इय चितंतेण पत्तयं दिट्ट । उच्छोडिऊकण वायइ अबगयतत्तो तओ राया ॥२४५॥ 
जंपइ य पिए ! चत्तो त्ति अहममच्चेण दुद्डचित्तेण | ता मज्म रायरूच्छी को गिण्हइ मह जियंते वि ? ॥२६॥ 


२२. इन्द्रिययशवर्शिप्राणिदुःखवबणनाधिकारे सुकुमालिकालख्यानकम्‌ श्प७ 


इय जंपिऊण आबद्धभीमभिउडीए भासुरनिडालो । आयडियकरवालो समुद्टिओ जाबव तो देवी ॥२७॥ 
जंपइ न जुत्तमेयं नरिंद ! चउरंगबलबत्रिहणेण । तो भणइ पुहइपालोा कि कायब्ब पिए | इण्हि ? ॥२८॥ 
सेवेमि न किंपि निव॑ जम्हा सब्वेहि सेविओ अहयं । न हु उत्तमाण सेवाविडंबणा जुज्जइ कया वि ॥२९॥ 
ता गच्छामो कत्थइ इय भणिउं जाबव अडविमज्ञम्मि । गच्छम्ति तओ देवी सुकुमालत्तेण परिसंता ॥३०॥ 
जाया अईव तिसिया तो राया सिसिरतरुतले मोत्तु' | नीरनिरिक्खणकरज्जे भमिओ सब्वत्थ न हु लद्धं ॥३१॥ 
तो नियभुयदंडसिरं छित्तु छुरियाण तस्स कीलालं । अच्छीकाउं त॑ मूलियाए पाएइ पुडयगयं ॥॥३२॥ 

तत्तो छुहियाएु इमाएु अवरमाहारमलूहमाणों सो | नियऊरुमं सखं डाईं छिंदिं भुंजिऊण दबे ॥३३॥ 
संरोहिऊण ऊरूवणंपि संरोहणीए मूलीएण । तो ससमंसछलेणं नियमंसं देइ देवीएण ॥३४॥ 

पत्ताइं तओ गंगातरंगिणीतीरपवरनयरम्मि । ता देवीआभरणेहिं नरवई कुणइ बांणिज्ज ॥३५॥ 

अह अन्नदिणे देवी पुहइबइ भणइ अज्जउत्त ! अहं । तइया सहियणकलगीयवेणुवीणाविणोएहिं ॥३६॥ 

न मुणंती गच्छंतं पि काल्मेगागिणी कहं इण्हि । चिट्ठामि ? क्िंपि ता कुण विशोयणत्थं मह सहाय॑ ।॥३७॥। 
तो तीए विणोयक्रणु ठविओ पंगू निवेण नियभवणे । कागलिगेयं गायइ किन्नरसद्देण सो तत्थ ॥३८॥ 
कह य कामकहाओ बहुप्पयारं तओ इमा तम्मि | गाढमणुरायरत्ता भत्तारं मारिउं मह॒इ ॥३९॥ 
उज्जाणीए राया गंगाए गओ अहडल्नदिवसम्मि । ता झत्ति तीए खित्तो वीसत्थो वारिमज्कम्मि ॥००॥ 

तो भुयदंडेहिं तरंतणण लद्ध॑ तरंडयं॑ तेण । तरिउ' तरंगिणीनियडमागओ कस्स वि पुरस्स ॥9१॥ 

तो परिसंतो सुत्तो महल्लकंकेल्लिस्क्खछायाए । न दुह्ा वि तस्स छाया ओसरइ खणं पि पुन्नेंहि ॥०२॥ 
एत्थंतरे अपुत्तो पुह्इवद तम्मि पुरवरम्मि मओ । अदिवासिओ तुरंगो मंतीहिं विसिद्ठमंतेहिं ॥४9३॥ 

तो तिय-चउक्क-चच्र-रच्छामुह-चउमुद्दे परिब्भमिउ' । पत्तो नरिंद्पासे उद्धुइ पिष्टि चड॒इ राया ।॥9४॥। 

तो मंतिमंडलेसरसामंतप्पमिइपउरलोएहिं । पणमिज्जंतो पत्तो रायउरुं तत्थ अहिसित्ता ॥४५॥ 
पुग्विल्लरायपट्टे जाओ अइडग्गसासण राया । सुकुमालिया वि एत्तो भक्खिय निस्सेसनिवदविणं ॥४६॥ 
तत्तो चोल्लयखित्त पंगुं काऊण निययसीसम्मि । भिक्‍खं परिवब्ममंती जणेण पुच्छिज्जए एवं ॥9७॥ 

कि तुज् पई पंगू ? सा जंपइ देवबंभणाईहिं । मह दिल्नो भत्तारो परिणीओ तो मझ एसो ॥४८॥ 

सील परिपालंती सेवेमि इम पि इय पयंपेइ । एवं परिब्भमंती पत्ता जियसत्तुनयरम्मि ||४९॥ 

पडिमंदिरं पि भिक्‍खं भमेइ गायइ य पंगुणा सद्धि । रायस्स तओ कहिय॑ केण वि एयारिससरूवं ||५०॥ 
त॑ हकारिय पुच्छइ जवणीमज्झट्टिओ महाराया । असरिसरूबजुयाए तुह कि एयारिसो भत्ता ? ॥५१॥ 

सा जंपइ देव ! अहं पहव्वया तो इमेण दइएण । पालेमि निययसी्लं भणियमिणं तो नरिदेण ॥५२॥ 
बाह्टो रुधिरमापीतमूरुमांसं च भक्षितम्‌ | गड्जायां प्लाबितो भतो साधु साधु पतिब्रते ! ॥५३॥ 

सोउ' नरिंदवयणं नाया हं राइण त्ति लज्जाएं। जाया अहोमुही सा तो भणियं मंतिबग्गेण ॥५४॥ 

सामि ! किमेयं १ अम्हाण कोउयं कहसु भणइ तो राया । अल्मेदए कहाए पावाए मंतिणो वि पुणो ॥५५४५॥ 
पभरणंति अकहणीयं जइ नो ता कहसु देव ! सुपसायं । कहइ तओ नरनाहो वुत्तंतं तीए ताण पुरो ॥५६॥ 
त॑ सोऊणममच्चा भणंति पावाए पेच्छ जं विहिय॑ । विबुहजणनिंदणिज्ज उवहसणिज्ज अमित्ताण ॥५७॥ 
परिहरिय पुरिसरयण्ं अहिणववरकुसुमबाणअभिरूवं । रायं कि अणुरत्ता पावा पंगुम्मि गुणहीणे ? ॥५८॥ 
अहह ! अहो ! अविवेओ अहह ! महापावपरिणई गरुया । जं गरुयकुलुप्पन्ना वि कुणइ एयारिसमजुत्त ॥५९॥ 
दंडो नारीण विसज्जणं ति मंतीहिं नीहमणुसरिउं । देसस्स समग्गस्स वि पावा निद्धाडिया तेहिं ॥६०॥ 


॥ खुकुमालिकाख्यानकं समाप्तम्‌ ॥७०॥ 


श्ध्प आख्यानकमणिकोशे 


जह एणएटिमसज्झं इंदियवसगेहिं पावियं दुक्खं | तह अन्नो वि हु पावह ता तेसि निग्गहं कुणह ॥१॥ 
रम्यं यदक्षजसुखं परिक्ल्प्यन्ति, मूढास्तकद्‌ व्यसन-विप्नशतोपगूढम्‌ । 
कृपोपरूदबटपादपपादल ममर्त्योपलब्धमधुबिन्दुसमानमल्यम्‌ ।।२॥ 


॥इति भ्रीमदाप्नदेवसूरियिरचितवृत्तायास्यानकमणिकोशे इन्द्रियवशप्राणिदुःख- 
वर्णनो द्वाविशतितमो5घिकार: समाप्तम ॥२२॥ 


6-७ तट 


[ २३. व्यसनशतजनक्युवत्यविश्वासवर्णनाधिकारः ] 


इन्द्रियवशगस्य सुखमल्पमित्युक्तम्‌ । तद्वश्यता च प्रायः प्राणिनों युवतिभ्यो भवति, ताश्व दुःखहेतुत्वाद्‌ विश्वासस्थानमेव 

न भवन्तीत्येतदाह-- 
जुवईसु न वीसासो कायव्वों पयहकुडिलहिययासु । 
नेउरवंडिय-दत्तयदुहिया-भावद्टियासुं व ॥२६॥ 

अस्या व्याख्या--'युवतिषु' महेलासु “न! नेव “विश्वास:” हृदयसमपंणं 'कतेव्य:” विधेय: | कीहशीषु 'प्रकृत्या” स्वभावेन 
'कुटिलहृदयासु' वक्रचित्तासु। दृष्टान्तानाह--नृपुरपण्डिता च-श्रेष्ठिबधू: दत्तकदुहिता च--दत्तकश्रेष्ठितता भावट्टिका च 
श्रेष्ठिसुतैव ताम्तथोक्‍्ता: तास्विवेत्यक्षराथ: ॥२९॥ भावार्थश्वासामप्याख्यानकगम्यः: | तानि चामूनि । 
तन्न क्रमाप्राप्तं तावद्‌ नूपुरपण्डिताख्यानकमारभ्यते । तश्चेद्मू-- 

नामेण वसंतपुरं नयर॑ सुपसिद्धमत्थि जम्मि सया | लयपरिकलिओ वि हु अल्यसंजुओ गाइणीसत्थो ॥१॥ 

तम्मि य असंखसंखो पउरगओ णेगपवरबलभद्दों । उवहसियपउमनाहो जियसत्तु नाम नरनाहों ॥२॥ 

परिवसइ देवदत्तो सेट्टी तम्मि उ विसिद्ठगुणजुत्तो । सोहर्ग-रूय-लायन्नगुणनिही तरस पवरसुया ॥३॥ 

अवरोी कुमारनंदी निवसह मइविहवलद्धमाहप्पो | रूवेण पंचबाणो तस्स सुओ पंचनंदि त्ति ॥३॥ 

परिणीया सा तेणं महाविभूईए नेहसारण । तीएु सह विसयसोवर्ख उबवभुंजइ निशच्चमणुरत्तो ॥५॥ 

भह अन्नया कयाई ण्हाणत्थं सा गया नईं कहवि । मज्जंति त॑ दटठुं अह एगो चितए तरुणों ॥६॥ 

सो चिय जयम्मि धन्नो जो एयाए सपक्खगुणकलिओ । अहरदलव्यणकमले छप्पयलीलं समुव्वह३ ॥७॥ 

सो चिय जयम्मि जाओ गुणकलिओ निम्मलो वि सो चेव । जो एयाए विलसइ बिउले हारो व्व थणवद्दे ॥८॥ 

एवं विचितयंतो निब्भरअणुरायरंजिओं अहिय॑ | तीसे अणुरायपरिक्खणत्थमेसो इमं पढइ ॥९॥ 

सुण्हायं ते पुच्छइ एस नई मत्तवारणकरोरु !। एए य नईरुकखा अहं च पाएसु ते पडिओ ॥१०॥ 

त॑ सोऊणं गाह वलंतसकडक्खचक्खुबाणहिं | चिघंती त॑ तरुणं वियद्वयाए इमं पढइ ॥११॥ 

सुभगा हुंतु नइओ चिरं च जीवंतु जे नईरुक्खा । सुण्हायपुच्छगाणं घत्तीहामी पियं काउ' ॥१२॥ 

तब्भावं नाऊणं तग्गेहाईण जाणणनिमित्त | तीए सह आगयाणं डिंभाण फलाणि सो दाउ' ॥१३॥ 

पुच्छइ गेहाईयं ताणि वि साहंति सुद्धभावा उ । तं॑ सब्ब॑ तप्पुरओ तत्तो सो चिंतए एवं ॥१४॥ 

तब्बिरहजलणजालाकरालकवल्ज्जिमाणमच्चत्थं । कह निव्ववेमि तीए संगमसलिलेण अत्ताणं ? ॥१५॥ 

इय संगोवायमिमो चितंतो अहियमुबयरेऊर्ण । पेसइ पुव्वपरिशच्चियपव्वाइ तीए गेहम्मि ॥१६॥ 

सा तत्थ गया डिद्रा इंती भिसयाइवावडकरम्गा | काऊण तप्पणामं दाऊर्ण आसणं तत्तो ॥१७॥ 

पुच्छइ भगवह ! कि दिद्ठटमेत्थमच्छरियमसरिसं किंपि ? | सा भणइ दिद्ठमामं वच्छे ! एल्थेव नयरम्मि || १८॥ 

दहु आह कहसु भयवह ! अच्छरियं मज्क जं तए ढिट्ठं | पव्वाशयाए भणियं सुदंसणो नाम सेट्टिसुओ ॥१९॥ 


२३. व्यसनशतजनकयुवत्यविश्वासवर्ण नाधिकारे नृपुरपण्डिताख्यानकम्‌ श्प्& 


नयजुत्तमहियमसरिसमच्छरियसरू[अन्थागम्‌ ७० ००]वमइकलाकुसलं । पावेहि तयं वच्छे ! दुहत्थमणुरत्तभत्तारं ॥२०॥ 
तप्पट्टवियं नाउं अही ! छह ल्‍लो तहा वि छक्कन्नं | मा होउ रहस्समिमं ता पव्वाई पवंचेमि ॥२१॥ 

इय चिंतेउः थालीतलूधोयणवावडाए तो तीए । पंचंगुलीचवेडाए सा हया पिट्ठटिदेसम्मि ॥२२॥ 

पभणइ पावे ! बइणीहोउं एवंविह पयंपंती। कुल्वहुकलंककारिणि ! न लज्जिया निययवेसस्स ॥२३॥ 

सा वि विलक्खा जाया पट्टिपहारं इमस्स दरिसंती | पभणइ न पुत्त ! जोग्गा तुह सा सीलेण दुवियद्ला ॥२४॥ 
चिंतइ सुदंसणो वि हु अहो ! छहल्‍्डत्तमसरिसं तीसे । जं वंचिया वराई पव्वाई नियपवंचेण ॥२४५॥ 

मह संकेओ दिल्लो कसिगाए पंचमीए रयणीए | ठाणं पुणो न कहियं ता पुणरवि तत्थ पेसेमि ॥२६॥ 

इय चितिऊण पभणइ पव्वाईं ठाणजाणणनिमित्त | जइ सीलवई तह वि हु गतृणं मणसु इगवारं ॥२७॥ 

सा गंतुं तं पमण३ सुमहुरवयणेहिं चितए सा वि। कि एसा पट्ठविया पुणा वियडढेण इह तेण ? ॥२८॥ 

हुं नाय॑ संकेयद्वाणं न मए पयासियं किंपि | इणिंह पि ता पयासेमि चितिउ' भणइ सा रुसिउ' ॥२९॥ 

आ पावे ! निल्‍्लज्जे ! त॑ भगामणोरहे ! दुरायारे ! | निऋ्भच्छिया वि एवं समागया पुणरवि किमत्थं ? ॥३०॥ 
निब्भमच्छिऊण एवं निट॒टुरवयणेहिमद्धचंदेण | गाढं गलत्थिऊणं असोगवणियाए दारेण ॥३१॥ 

निम्सारिया समाणी साहइ सब्वं पि तस्स सो भणइ । जइ एवं ता अम्मो ! निन्नेहाण न मह कर्ज ॥३२॥ 

अह सो संकेयदिणे पत्तो रय्णाए अद्भुरत्तम्मि । | भत्तारं रंजेउ सा वि य विविहष्पयारेहिं ॥३३॥ 

सुत्त मोत्त' पत्ता असोगवरणियाए बिडसमीवम्मि | तेण सह विसयसोक्खं उवभुंजइ विविहभंगेहिं ॥३४॥ 
अइसुरयगुरुपरिस्समखिन्नाइं दो वि जाव सुत्ताइ । ताव तहिं संपत्तों ससुरों ससरीरचिताए ॥३५॥ 

जारेण सम॑ पेच्छइ निययवहुं निद्परवसं तत्थ | तो सो चिंतइ हियए सुत्ता एसा न मह पुत्तो ॥३६॥ 

जाए पभायसमण न हु एसा मन्निहि त्ति तो घेत्त | साहिन्नाणनिमित्त चरणाओ नेउरं जाइ ॥३७॥ 

घेप्पंतं त॑ दूं भयभीया उद्दवित्त तं पुरिसं | साहेइ तयं सब्ब॑ मणइ जहा जाहि तुममिण्हि ॥३८॥ 

समए मह साहेज्ज॑ कायव्वं बुद्धिपगगरिसेण तएु | तम्मि गए सा सणियं गंतुं भत्तारसेज्ञाएण ॥३९॥ 

निसियह खणंतरेणं उद्बावेकण पभणए कंतं । अह पिययम ! में घम्मो असोगवणियाए ता जामो ॥४०॥ 
परमत्थमजाणंतो तीए सम॑ सोविओ गओ तत्थ । सुत्तं जाणित्तु तयं उद्घावित्ता भणइ एवं ॥४१॥ 

कि एस कुलायारो तुम्हाणं ? जेण निययवहुयाए । नियपइणा सह सुत्ताए नेउरं गिण्हए ससुरो ॥४२॥ 

सो पभणइ वीसत्था सुयसु पिए ! अप्पिही पभायम्मि | सा भणइ संपयं वचिय मग्गसु मह नेउरं नाह ! ॥०३॥ 
ताओ न चेव दूरे न गमिस्सइ तं कहिंपि तेणुत्ते । पभणइ सा वि हु एवं महाक़लंको इमो होही ॥|४४॥ 

मइ साहीणम्मि पिए ! वयणिज्ल तुज्कडबुज्ञ को कुणइ ?। सा भणइ पिय ! विवागं प॒रभायसमयम्मि जाणिहिसि ॥०४५॥ 
एवं जंपंताईं सुत्ताईं जाव तत्थ खण्मेगं | ताव पभाया रयणी परिगलिओ तारयानियरों ॥9६॥ 

जाए पभायसमए नियपुत्त संठवित्तु एगंते । सेट्ठी साहइ सब्बं निसाए वुत्तंतमाह सुओ ॥५७॥ 

ताय ! अहं सो सुत्तो न हु अन्नो पुण वि पभणए सेट्टी । पुत्त ! तुम गेहंते नियपल्रुकम्मि पामुत्तो ॥४८॥ 

तो पंचनंदिणा पुण वि य भणियं ताय ! तुम्ह विद्धत्ता । नयणा नयंति न तहा न हु ते लक्खिओं अहय॑ ॥४९॥ 
एवं पुणो वि भणिओ जाब न पत्तियइ कहवि त॑ं जणओ । ता भिउडिभंगभासुरवयणो भणिडं समाढत्तो ॥५०॥ 
भुल्लो सि ताय ! तं॑ नियवहुए सुत्ताए मज्मपासम्मि | अलियमिणं जंपंतो न लज्जिओ निययपलियाणं ॥५१॥ 
एयं ज॑पंताणं पिय-पुत्ताणं समागया वहुया । जइ एवं ता सुद्धा गिण्हिस्सं अन्न-पाणमहं ॥५२॥ 

मिलिओ य सयणवग्गो तीए सब्बो वि मलिणमुहछाओ । ससुरकुछेणं सद्धि समागओ पउरपुरछोगो ॥५३॥ 

सा भणइ ताय ! साहसु सुज्ञवणं मज्क अइदुसज्ञझं पि। ससुरो न जाव जंपइ ता भणियं पउरलोएण ॥५४॥ 


१, महघम्मो रं० । 


१६० 


आख्यानकमणिकोशे 


अत्थेत्थ सच्चचाई जकखो नयरम्मि पसरियपयावों । तज्बंधामज्झेणं निग्गच्छठ जइ इमा सुद्धा ॥९५॥ 

तत्तो सा सुइभूया जक्खाययणम्मि जाव संचलिया । जाओ अलियगहिल्‍्लो विडपुरिसो जाणिउं ताव ॥५६॥ 
गायंतो पलवंतो नच्ंतो डिंभपरिवुडों संतो । धूलीधूसरगत्तो आलिगंतो सयललोयं ॥५७॥ 

तम्मि पएसे पत्तो सा गच्छट जत्थ पठरपरियरिया | सहसा आलिंगंतो तीए निब्भच्छिओ बाढं ॥५८॥ 

आ पाव ! कहं छित्ता पुणो वि ण्हाइत्त आगया भवणे । जक्खस्स पउरपश्चक्खमेरिसं भणिउमादत्ता ॥५९॥ 
भयवं | नियभत्तारं एयं च गहिल्लयं पमोत्तणण | अज्नो जइ मह देहे रूग्गइ ता धरसु जंघाहिं ॥६०॥ 

चितेइ जाव जक्खो ईहा-5पोहेहिं हरियहियओ सो । ताव सहस त्ति सा वि हु नीहरिया जंघमज्ञेण ॥६१॥ 
जक्खो ठिओ विलकखो चितह पावाए कहमहं छलिओ । अहव महिलाण चरियं दुव्विन्नेयं सुराणं पि ॥६२॥ 
ससुरो बिन्तेह जहा कलंकिओ पेच्छ कहमहमिमीए | अहव महिलाण चरियं दुब्बि्लेयं सुराणं पि ॥६३॥ 
कहमसइईए होउं सइत्तमावाओं रंजिओ सयणों । अहव महिलाण चरियं दुव्वि्नेयं सुराणं पि ॥६४॥ 
तूररवेणं सद्धि जाओ तीए महासईसद्दो । ससुरो वि य अयसेणं वसीकओ सह अवक्खाए ॥६५॥ 

निद्वाए सम॑ नद्ठा धणियं सेट्टिस्स मणसमाही वि । हरिसेण सम॑ जाओ तीए कंतस्स पणओ वि ॥६६॥ 

ससूरो वि पउरलोएण निंदिओ साहिडणंदिया अहिय॑ । संपत्ता ससुरगिहे अहिययरं रंजिओ भत्ता ॥६७॥ 
सेट्टिस्स अवक्खाए निद्दा नद्ठ त्ति निसुणिउ रज्ना | वाहरिऊणं विहिओ महल्लओ निययअवरोहे ॥६८॥ 
सुत्तो तत्थ निरिक्खह सरेट्टी अंतेडरीणमेगयारिं । उट्ठंति निसियंतिं तल्लुब्वेल्लि करेमाणि ॥६९॥ 

तो सो चिंतइ सेट्टी एसा कि कुणह ? जाणणनिमित्त' | पावरिऊर्ण पडय॑ सुत्तो सो अलियनिद्दाए |॥७०॥ 
जाव निहुय॑ निरिक्खइ ता पेच्छट् मत्तवारणतलूम्मि | खंभम्मि मत्तवारणमागलियं मिठपरिकलियं ॥७१॥ 
रयणीए अंधयारे हृत्थी मिठेण चोइओ संतो । उड़ काऊण कर उत्तारइ रायवरपत्तो ॥७२॥ 

कि तुह महई वेल ? त्ति जंपिउं भारसंकलाए हया । मिंठेण भणइ देवी न मज्क दोसो परं किंतु ॥७३॥ 
रज्ना जो पाहरिओ विहिओ सामि ! सुयइ न कहिंपि । सुत्तम्मि तम्मि संपह समागया तुह समीवम्मि ॥७४॥ 
रमिऊण त॑ जहिच्छ मेल्लावद करिकराओ सट्टाणे | त॑ सब्ब॑ अवलोइय सवियक्कों चितए सेट्टी ॥७५॥ 

जत्थ नरनाहमहिला विविहपयारेहिं रक्खियाओं वि | एवं कुव्वंति जए का गणणा इयरनारीणं ? ॥७६॥ 
अज्ज वि वयं कयत्था जाण पुरंधीओ निग्गया बाहिं। नीराईण निमित्तं नियगेहेसुं नियत्तति ॥७७॥ 

इय चितिउं पसुत्तो विगवअवक्खो तहा कहवि सेट्टी । सूरमगमे वि न जहा पडिबुज्कूद जग्गवंताणं ॥७८॥ 
पुव्विन्ला पाहरिया तत्तो साहिति राइणो गंतुं | देव ! नवज्लमहज्ली न य उद्गइ सूरठदए वि ॥७९॥ 

रज्ञा तो आणत्त' पडिबोहह मा तयं सुयउ काम | सो वि जह एगदिवसं तह सुत्तो सत्त दिवसाणि ॥८०॥ 
सत्तमदिणम्मि बुद्धो वाहरिओ राइणा तओ सेट्ठी । कि तुह अगन्नसरिसा समागया एरिसा निद्दा ? ॥८१॥ 
तो सेट्टिणा वि भणियं एगंत॑ कुणह जेण साहेमि । नरवइनयणुक्खेवा एगंते जाइ सब्वसहा ॥८२॥ 

तो साहइ त॑ सब्व॑ सुणिउं रन्ना विसज्जिओ सेट्टी । तकहियजाणणत्थं राया अंतेउरे गंतुं ॥८३॥ 

सव्वाओ ताओ अंतेउरीओ एगत्थ मेलिउ' भणइ । जह अज्ज मए दिद्ठों सुमिणो रयणीविरामम्मि ॥८9॥। 
गयनिवसणाहिं भवईहिं लंधियव्वी किलिंजमयहत्थी । ता सच्चसुमिणयं तह करेह जह होइ मह खेम॑ ॥८४॥ 
लंघंति तहेव तयं अवराओ सा य कुडिलहिययत्ता । जंपह बीहेमि इमाओ दढमहं हत्थिरूवाओ ।॥८६॥ 

तो नरवइणा हसिउ' लीलाकमलेण ताडिया संती | पडिया सहस त्ति महीयरूम्मि सा अलियमुच्छाए ॥८७॥ 
पेच्छइ य पट्टिभायं संकलसलसंजुयं तओ राया । तव्बइ्यरजाणावणनिमित्तमेसी पढइ गाहँ ॥८८॥ 
मत्तगयमारुहन्तिए | भिडमयस्स हत्थिस्स बीहंतिए ! । तत्थ न मुच्छिय संकलाहया ! एत्थ य मुच्छिय उप्पछाहया |।८९॥। 
तो कोवफुरियअहरो राया वज्ञाणि तिन्नि वि इमाणि | आणवह सावराहदे मिठं देविं करिंद च ॥९०॥ 


२३. व्यसनशतज नकयुवत्यविश्वासव्णाधिकारे नू पुरपण्डिताल्यानकम्‌ १६१ 


देवि चडाविऊर्ण मिंठं आरोहयं च काऊणं । कारवह छिल्नटंके तं करिवरमेगपाएण ।॥९१॥ 

तिक्‍्खर्गअंकुसेणं मिठेणं चोइओ करिवरिंदो | उक्खिवह एगपायं तह बीयं तह य तहय॑ं च॥९२॥ 

जा तिहिं पणहि हत्थी आयासे संठिओ निराहारों । ता हाह्यारवसद्दों उच्छलिओ पउरलोगम्मि ॥९३॥ 

हा हा ! न जुत्तमेयं नरवइणों परवसं गहियसिक्खं । एरिसविन्नाणजुय्यं करिरयणं ज॑ विणासेइ ॥९४॥ 

तो रज्ना जणवायं सुणिऊणं पभणिओ वरारोहों | ओयारिउं समत्थो विसमाओ गय॑ समपहम्मि ? ॥९७॥ 

तेणुत्त जइ अभयं देवीसहियस्स देसि मह देव ! | ता हूं करेमि एयं पडिवन्नं राइणा त॑ं पि ॥९६॥ 

तत्तो सणियं सणियं ओयरिए करिवरे समाइसइ । मह विसयं मोत्तणं वच्चसु रे पाव ! अन्नत्थ ॥९७॥ 

सो सद्धि देवीए बच्चन्तो अन्नया य संझाए। एगत्थ नयरपरिसरदेवउले जाब पासुत्तो ॥९८॥ 

ताव सहस त्ति चोरो आरक्खियतासिओ गहियदच्छो । तत्थ पविट्टो त॑ं वेढिऊण ते वि हु ठिया बाहिं ॥९९॥ 
चोरो वि क्षंधयारे पविसंतो तीए कह वि सो छित्तो । तप्फंसरायरंजियहियया देवी पयंपेइ ॥|१००॥ 

को सि तुम चोरों हं इय भणिया सा वि पभणए निहुयं । जइ इच्छसि म॑ भोत्त ता तुह जीय॑ पयच्छेमि ॥१०१॥ 
नियजीयरक्खणकए पडिवन्न॑ं तेण ववणमह सा वि । मोयावइ त॑ दच्छं पावा मिंठस्स उस्सीसे ॥१०२॥ 

अह निहणियदोसो वि हु तीए दोसं व पयड़िओ सूरो । निययकरप्फंसेणं उज्जोयंतो भुवणवलूयं ॥१०३॥ 
उदयगिर्रि संपत्ता तत्तो आरक्खिया सलोत्तं त॑ । चोरो त्ति कलिय बंधंति जाव ता जंपए मिट्टो ॥१०४॥ 

पहिओ हं न हु चोरों एसा मह भारिया गुरुसिणेहा । पुच्छंति ते वि जुबईं को भत्ता तुज्स एयाण १ ॥१०५॥ 
साहइ सा वि हु तेसिं मह भत्ता देवबंभणेहिं इमो । दिल्नो तो त॑ सोउं मिंठोा हियए विचितेइ ॥१०६॥ 
महिला मरणमयंडे महिला दुग्गेज्यममाणसपयारा । महिला कयंतकत्ती महिला मूलं परिमवाणं ॥१०७॥ 

महिला दुहट्सयखाणी सब्भावविवज्बिया सया महिला । महिला नरयदुवारं गुणगिरिवज्ञासणी महिला ॥१०८॥। 
महिला निद्यचित्ता उब्भडविसवेल्लरी जए महिला | संतावजलणजालापरिभवतरुमंजरी महिला ॥१०९॥ 

इय मिंठो चिंतंतो सूलाए रोविओं निरवराहो । आरक्खिएहिं तत्तो खणंतरे तिव्ववियणाए ॥११०॥ 

जाओ तिसाभिभूओ जा वंछट पाणियं तहिं पाउं | ता गच्छंतं पेच्छइ सुदंसणं नाम वरसड्र' ॥१११॥ 

तो भणइ भो महायस ! पायसु सलिलं करेवि कारुज्न | सो पभणदह्‌ जद सुमरसि जिणनवकारं महामंतं ॥।११२॥ 
तेणाबि हु पडिवन्ने तिसाभिभूएण सेट्टिणा दिल्नो । दुह्तरुवणदावानलसरिसो परमेट्टिनवकारों ॥११३॥ 

सलिलं घत्तु' सेट्टि आगच्छंतं वियाणिउं तत्तो | अहिययरं उम्घोसइ सल्लिकए सुद्धकयचित्तो ॥११४॥ 
एत्थंतरम्मि सहसा भिन्नो सूलए सो तओ मरिउं । परमेट्ठिपहावेणं संजाओ वंतरों बलिओ ॥११५॥। 

तयणंतरं च तेणं सन्नेज्मं सावयस्स जह विहियं | जह सा धम्मे ठविया सियालवेसेण बोहेउं ॥११६॥ 

जह राया मेसविओं पुव्तुत्त जह कलंक्मवरणीय । वित्थरओ विन्नेयं सब्ब॑ गंथंतराओ तहा ॥११७॥ 


॥ नू पुरपण्डिताख्यानकं समाप्तम्‌ ॥७१॥ 


इदानीं द्राकदुद्दिताख्यानकमाख्यायते । तच्चेदम्‌ू-- 
सलिल व्व निम्मलपया जंबुद्दीवो व्व वन्नियसुवासा । अत्थि पुरी उज्जेणी मणोहरा मय्रणमुत्ति व्व ॥१॥ 
तीए राया रिउकरडिकरडनिद् लणकेसरिकिसोरो । विप्फुरियबुद्धिविज्ञाणविक्षमो विक्रमाइच्चो ॥२॥ 
कहया वि हु रगणीए नयरीचरियावियाणणनिमित्त | पावरियनीलूपडओ अदिस्सिमाणों परिब्भभमइ ॥३॥ 
पेच्छंतो तिग-चचर-चउक्क-चउमुह-महापह-पहेसु | जणवइयरे नररिंदों वइससमेगं इम॑ नियह ॥9॥ 
कुलडाए [काए] को वि हु करम्मि घेत्तण भन्नए सुहय !। कि कइया वि न दीससि ? तेणुत्तं सुयणु ! सममेयं ॥५॥ 
तीए भणियं चल्ल्सु गिहम्मि त॑ संपयं पि सो भणह । तुह गेहे भत्तारो ता कह मे कज्जसंसिद्धी ? ॥६॥ 


(कल “जनम 3-क्ाकना उ्याथान की भजन न +++ पक पान-+.सवतकाशन भजन वन तन न समान पतन. सानन-परज-नाल-कन-अत अमनिना गाल ाइन्‍क, 


१६२ आश्यानकर्माणकोशे 


तीयुत्त मा भायसु तत्थ गया हूं सय॑ मल्स्सिमि । मड्डाए अणिच्छंतो वि चालिओ तीए सो गेद्दे ॥»॥ 

राया चिंतह ताव5ज्ज चरियमेयाए चेव पेच्छामि | अच्छसु अबरं काही कहं सकज्ज पहसमीवे १ |॥८॥ 

तिन्नि वि पत्ताणि गिहं त॑ं मोत्तणं सयं विसद गेहे । सव्बं विहियं किच्च॑ं सिसुपुत्तो पाइओ थन्‍न्सं ॥९॥ 

भणिओ तीए भत्ता सहीए मह छट्ठिजागरों होही । ता जह कहिं पि वेला लगाइ ता त॑ भलसु गेहे ॥१०॥ 
इय भणिऊरणं दहयं विणिग्गया सिक्‍्खवित्तु विडपुरिसं | समगं तेण पविद्ठा पणमिय सेट्टि विड़ो भणइ ॥११॥ 
जिणदत्तसेट्टिगेह होइ इमं ? सेट्टिणा भणियमामं । ता कि न धणसिरी दीसइ ? त्ति कज्जे कहिं पि गया ॥१२॥ 
संपयमेवा55गच्छइ तुब्मे कत्तो समागयाणि ? त्ति। पुद्ठे पाहुणगेणं भणियं तुह ससुरगेहाओ ॥१३॥ 

एवं वुत्तो तेसिं सेज्ञा-पावरणपमुहपडिवत्ती । ससुरकुलूसिणेहेणं सगउरवं सेट्टिणा विहिया ॥१४॥ 

नीसंक॑ जा सुत्ताणि ताव य छुद्दाइओ' ' 'बालो । रोवह रइविग्घकरों तीए आणाबिओ पासे ॥१५॥ 

कि एस रुयइ ? पुदट्ठम्मि सेट्टिंगा भणियमेयजणणीए | पडियमणागमणमिमो छुहाइओ कि करेमि अहं ? ॥१६॥ 
तेणुत्त मह भज्जा वि बालवच्छा तओ धयावेमि | तहविहिए सो सुत्तो सुहेण ताणि वि असेसनिसं ॥१७॥ 
पच्छिमपहरे रमणीए णीणिओ सा वलंतिया वुत्ता । रन्ना भद्दे ! तुह सरिसियाओ कइ मज्ञ नयरीए ? ॥१८॥ 
नायं जहेस राया तीयुत्तं देव ! केरिसी अहयं १ । दत्तयदुहिया एत्थेव जणसमक्खं वसइ गेहे ॥१९॥ 

सा केरिसिया भद्दे ? कहसु जओ मज्क कोउंगं गरुयं । तीए वुत्तं निसुणसु खणमेगं अवहि ओ राया ॥२०॥ 
इह अत्थि देव ! दत्तयसेट्टी सवब्वत्थ सुइसमायारों । तस्स सुया रूयवई सुवियड्ञा बालविहवा य ॥२१॥ 

त॑ सीलरक्खणकए सेट्टी पासायसंठियं धरइ । भोगंगं तु समग्गं पहदियहं देइ नेहेणं ॥२२॥ 

सा तत्थ5च्छह पारूढख्यलायन्नजोव्वणारंभा । उज्जंभभाणमयणा वि अमयणा मयणघरिणि व्व ॥२३॥ 

अह मयणविहुरियंगी अहोवयंतं च सत्थवाहसुयं | जाणावइ नियभाव॑ कयाइ केंणइ पयारेण ॥२४॥ 

सो वि हु तत्था55गच्छइ निश्व॑ं चिय मंचियापओएण । तीए जणएण सम॑ ववहारं कुणइ पीईं च ॥२५॥ 

तिए सिक्‍्खविओ सो अमुगं पव्वाइयं वसीकाउं | तस्सिस्सिणिवेसधरेणा55गंतव्वं मह समीवे ।॥२६॥ 

जणओ विमीए वुत्तो एगागीए विणोयणनिमित्तं | मह धम्मवंतममुगगं पव्वाइं ताय ! आणसु ॥२७॥ 

तप्पभिह तत्थ रायं ! तहा कए जंति तेसि दिवसाणि । न य को वि कि पि जाणइ पेच्छसु तीए वियड्ढत्तं ॥२८॥ 
अह अन्नया य अन्न पि काउकामाए तीए नियदइओ । भणिओ को निव्वाहों एयाए कूडचरियाए ? ॥२९॥ 
जइ भणसि कमवि अन्न पवंचमहमायरामि जेण सुहं । अच्छामो तेणुत्तं ज॑ जाणसि त॑ं पिए ! कुणसु ॥३०॥ 
कल्लमहमागमिस्सामि जक्खजत्ताए जणसमूहम्मि । एवं करेज्ज पच्छा सब्वं स॒त्थं करिस्सामि ॥३१॥ 

तो तत्थ जणसमक्खं घेत्तु बाहाए सामरिसवयणं । भणिया कि हिंडसि छड्डिएण नियगेहकिच्चेण ॥३२॥ 
तप्परियणेण भणियं भुल्लो कि भमसि भद्द ! तुममेवं ? । तेणुत्तं सच्चमहं भुल्लो सारिक्खयाए दढं ||३३॥ 
तप्पभिई कट्टरका रियाए त॑ सुणसु जं समारद्धं । परपुरिसेणं छित्त त्ति छोल्लिउं दंतसंपुडयं ॥३४॥ 

जम्मंतरम्मि घेच्छे कूरमहं सा ठिया पहन्नाएं। अहन्नो सव्बो वि हु जगयाई परियणों तीसे ॥३५॥ 

अन्नम्मि दिण जं तीए कूरकम्माए देव ! पारद्धं | कहिउ' पि तं॑ न तीर्‌इ कि पुण काउं सकरुणाण ? ॥३६॥ 
पव्वाइयाए मज्झट्वियाए पञ्ञालिऊण पासायं | तब्वेसं पेत्तणं नीहरिया पिययमेण सम॑ ॥३७॥ 

हाहारवो य जाओ महासईए पसाहिओ अप्पा । सीलस्स रक्खणकए जुत्तमिणं सीलबंताणं ॥३८॥ 


यत उक्तम्‌--- 
वरं प्रवेष्ठुं ज्वलित हुताशनं, न चापि भग्नं चिरसश्चितं ब्रतम । 
वरं हि मृत्यु: सुविशुद्धकमंणो, न चापि शीलस्खलितस्य जीवितम्‌ ॥३९॥ 
पच्नाइओ य लोओ घुत्तीए सयं च भुंजर भोण | जणपयडं च पव॑चं पेच्छ महाराय ! महिलाणं ॥४०॥ 


२३. व्यसनशतजनकयुवत्यविश्वासवंणनाधिकारे दक्तकदुद्विताख्यानकम्‌ १६६ 


काऊणं मयकिच्च॑ कालेणं सो य विरह्िओ जाओ | जणयाइजणो जम्हा दंसणसाराइ' पेम्माइ ॥४१॥ 

सो उण सत्थाहसुओ तददेव ववहरइ सेट्टिणा सद्धि । अह अज्नया य बस्थे घेत्तु' पत्तो पियाए कए ॥०२॥ 
वालेऊण मुक्काणि ताणि जा दोज्ि तिन्नि वाराओ । राढाला मज्झ पिया ताय ! न रोयंति एयाणि ॥४३॥ 
केरिसिया तुज्म पिया ? आगच्छउ वच्छ ताव पेच्छामि । गिण्हउ मणस्स रुच्चंति जाणि वत्थाणि सयमेव ॥४४॥ 
तो आगंतु' चलणेसु निवडिया एस चेव मह धुया । धरिया नियउच्छंगे गहवरिओो त॑ं निएकण ॥४४५॥ 
आऊरिय गलसरणी पमुक्कपोक्कार॒वं परुन्लो य | भणियं च जणसमक्खं एस श्विय होउ मह धया ॥५६॥ 

एसी च्चिय जामाऊ वुढ्ो हं एस मज्ञ घरसारों । विछसउ देउ जहिच्छ न किंपि केणावि वत्तव्वं ॥४७॥ 
सत्थाहसुणणुत्त इमीए भंतीए ताय ! तुज्क सुया | बाहाए मए गहिया तीसे एड्रेण न विसेसो । ॥०८॥ 

तो राय ! तीए पुरओ केरिसिया हूं ? सय॑ विचितेसु । इय सुणिउं पुहहवई विम्हइयमणो विचितेइ ॥४९॥ 
गह-सूर-चंदचरियं ताराचरियं च राहुचरियं च । जा०॑ति बुद्धिमंता महिलाचरियं न याणंति ॥५०॥ 

गंगाए वालुया सायरे जल हिमवओ य परिमाणं | जाणंति बुद्धिमंता महिलाचरियं न याणंति ॥५१॥ 

भणिया सा नियपदणो त॑ केरिसमुत्तरं पयच्छिहिसि १ । तीयुत्त खणमेगं नियसु महाराय | जद एवं ॥५२॥ 
उद्बाविऊण सेट्ठी मणिओ तीयत्युडुंकियमुहीए । सेजा किमेस ? छिद्दं लहिउं कम्माइयं किंपि ? ॥५३॥ 

मा रूस पिए ! किंपि हु मह सासुरयाओ काणि वि इमाणि । वसिऊण गयाणि तओ सरोसमेईए संलूत्त ॥५४॥ 
इममेव मए पुद्ठं सुहय ! तए अज्ज किंपिं सासुर॒यं | घडियमउव्वमिमीए कओ विलक्खो वराओ सो ॥५५॥ 
भणिओ य तीए राया दिट्ठव॑ मम किंपि चेट्टियं तुमए १ । तुब्मे त्थ वंदणिज्ञाओ भवह भणिउं गओ गेद्दे ॥५६॥ 


॥ द्त्तकड॒द्विताख्यानक समाप्तम्‌ ॥७२॥ 


इदानीं भावभटकास्यानकमुच्यते । तद्यथा-- 


तथाहि--- 


हब | 
) ५ ५ 


रयणविणिम्मियपासाय-भवण-पायार-तोरणाईहिं । रयणपुरं व जहत्थं ज॑ नियनामं समुव्बहई ॥१॥ 

सव्वत्तो चिय पसरियरयणंसुनिबद्धसकचावाए । रयणप्पहाए आयरिसए व्व जं नियइ नियसोहं ॥२॥ 
तम्मि पुरे ससहरक़रसियजसधवलियद॒हदियंतराभोगो । भोगोवभोगसु त्थियसमरिसियासेसपणइजणो ॥३॥ 
जणयाणुरायगुणवसविदत्तसुविसुद्धसंययाकलिओ | कलिओहामियरिउजणकरिमरिकरचलियचमरजुगो ॥५॥ 
जुगसमपयंडभुयदंडवंडिमाधरियवसुमईवलूओ । बलओहजुओ सिरिस्यणसेहरो नाम नरनाहो ॥५॥ 

तस्स य रज्नो भज्जा सुयणाणं हिययहारिणी अहियं | नामेण रयथणमाला विमलगुणा रयणमाल व्व ॥६॥ 
मश्माहप्पविणिच्छियरज्जत्थो सुमइनामओ मंती | तस्स य पुत्तो गुणएरयणसायरों सायरो नाम ॥७॥ 
गुणदिवसाणं सुहिचक्रवायमिहुणाण बंघुकमलाणं । पुरिसेट्ठी नामेणं भाणू भाणु व्व सगदइओ ॥८॥ 
नामेणं भाणुसिरी तस्स पिया तप्पह व्व सुपयासा । तेसिं अब्भुयभूया धूया भावद्टिया नाम ॥९॥ 
बालत्तणे वि पढिया सेट्टियुणणं सम॑ सुरिदेणं । लोइय-वेइयसत्थेसु जा पवीणत्तमुब्यहइ ॥१०॥ 
इत्थीज़णजोग्गाजी सयबलाओ कलाओ तीए नायाओ । तेणं चिय सा किल बालचंडिया विस्सुया नयरे ॥११॥ 
बड़ढंती य कमेणं परूढनवजोनव्वणाहियं जाया । लायन्न-रूय-सोहरग-ललियसुंदे्‌रगुणभवर्ण ॥|१२॥ 


चलणजुयं कस-ससि-संख-मीण-कमलोवसोहियं जीए । लायन्नलहरिलडहं छज्जइ रयणायरसरिच्छ ॥१३॥ 


; ,उरुजुयं रंभाथंभविव्भमं कमपविद्धवित्तजुयं | मवणस्स मयणरन्नो तोरणथंभोवरम सहइ ॥१४॥ 


| 


रमणं सुरसरियापुलिणसन्निभं सइसुहिल्लिसोहिल्लं। जगजगडणपरिसंतस्स मयणसुहडस्स सयण्ं व ॥१५॥ 


; 'जीए सिसुमुद्ठिगेज्की [कडिभाओ निम्मिओ पयावहणा | थणभरभंगभणण व वलित्तयसमस्सिओ सह ॥१६॥ 


बे 


१६७ आखश्यानकमणिकोशे 


जीसे थणजुयमश्च॑तमुन्नयं वट्वल॑ ससाममुहं । रेहह कामनिवइणो निहिकलसजुयं व्व कयमुद्दं ॥१७॥ 

बाहुलया वि हु जीसे सहजारुणकरसरोयरमणीया । पज्जंतपरूढाभिणवपल्लवा चंपयलूय व्व ॥१८॥ 

जीसे कंठो रेहातिगेण समलंकिओ कहइ एवं । थीरयणमवरमेरिसरूवं भुवणत्तए नत्यि ॥१९॥ 

अहंरदलिल्लं सियद्सगकेसरं नयणभमररेहिल्लं । नासानालं लायन्नसिरिगिहं सहह मुहकमलं ॥२०॥ 

रमणीयं सवणजुयं जीसे सरलं सहावसोहिल्लं । रइ-पीईणं मणहरमंदोलयकरणिमुव्बहइ ॥२१॥ 

सुसिणिद्ध-कसिण-मिउ-कुडिलकेसकबरी मणोहरा जीसे | कामकुलकेलिसिहिणो कलावलीलं विडंबेइ ॥२२॥ 
अबरं च-- 

विज्नाणयुणवियड्ढं गरुयगर्म जइ निएज्ज पुव्वमिमं | ता जडपयई निन्नयगईं च गिण्हेज्ज कह णु हरो ॥२३॥ 

गंगं ? कहं व गोरिं पव्वयदुहियं सया सुहियमेयं । लक्छि व वासुदेवों समुदमहणुब्भव॑ चवर्ं ॥२४॥ 

सज्जणजणेण सुहयं थिरस्सहांवं व चहय जं दट्ठुं । एवं विय्रप्पट जणो को सक्कइ वन्निउं तमिह ? ॥२५॥ 

अह अन्नया य कम्मि वि पत्थावे तत्थ रायअत्थाणे | महिलागओ वियारों जाओ रायाइपुरिसाणं ॥२६॥ 

केणावि भणियमित्थी तुच्छा पयददेए ऊणहियया य | कुडिल्सहावा दोसाण मंदिरं भणियमवरेण ॥२७॥ 

सत्यं वच्मि प्रियं वच्मि हितं वच्मि पुनः पुनः । अस्मिन्नसारे संसारे सारं सारझ्लोचना ॥२८॥ 
राज्ञोक्तम्‌-- 

चवला महलणसीला सिणेहपरिपूरिया वि तावेइ । दीवयसिह व्व महिला लद्धप्पसरा भय॑ देइ ॥२९॥ 
भाणुसेट्रिणा भणियं-- 

महिला कुडिल्सहावा बंधवकुलमेयकारिणी महिला | महिला निदयहियया पचठचक्खा रक्‍्खसी महिला ॥३०॥ 

महिला आलकुलहरं महिला लोयम्मि दुःचरियखेत्त । महिला सकज्जनिद्ठा महिला जोणी अणत्थाणं ॥३२१॥ 
मन्त्रिपत्रेणावाचि-- 

मम तावन्मतमेतदिह, किमपि यद॒स्ति तदस्तु | रमणीभ्यो रमणीयतरमन्यत्‌ क्रिमपि न बत्तु ॥३२॥दोधकः॥ 
अपरेणोचे-- 

अश्वः श्र शास्त्र वाणी वीणा नरश्व नारी च | पुरुषविशषं प्राप्ता भवन्त्ययोग्याश्व योग्याश्व ॥३३॥ 

भणियं च भाणुणा जइ वि एवमिह तह वि निच्छओ मज्झ । देवेहिं पि न एसा रक्खिज्जद मुक्मज्ञाया ॥१४॥ 

एवं विवयंतों सो मिलिऊण कुओ वि अभिनिवेसाओ । सब्वे्हिं पराभूओ विसेसओ मंतिपुत्तेण ॥३५॥ 

एवं विसन्नचित्तो भणिओ भावद्टियाएु गेहगतो । दीससि असमाहिजुओ तेण वि कहिय॑ जहावत्तं ॥३६॥ 

जणयावमाणमसमं तीए परिभाविउ' असज्क्ममिमं | धणियं माणघधणाए भणिओ भावद्टियाएं पिया ॥३७॥ 

वियरसु म॑ मंतिसुयस्स ताय ! सच्च करेमि तुह वयणं । मइमाहप्पं पेच्छामि जेणमेएसि सब्बेसि ॥३८॥ 

एबमभिमाणवसगाए तीए चित्तप्पवंचनिउणाए । परिणावियमप्पाणं सुरिंदगयमाणसाए वि ॥३९॥ 

तेण वि नायमिमीए परिभवकामाए विहियमेयं मे । तो त॑ पासायतले सुगोवियं धरइ मंती वि ॥४०॥ 

भोगोवमोगजायंतीए सो अप्पणा पणामेइ । मायापवंचनिउणाए रंजिओ ससुरओ भणिओ ॥9०१॥ 

ताय ! मह सुत्थमवरं परमहमेगागिणी वसामि दुहं | ता सहियणमज्ञाओ सुपरिक्खियमप्पणा सहिय॑ ॥४२॥ 

एगं दो वा पेससु जेण नवाणं कलाणमब्भासं । सद्धि ताहिं करेमी मणयं च सुहेण चिट्ठामी ॥४३॥ 

जावा55गच्छंति सहीओ तीए पासम्मि मंतिवयणेणं | ता कइया वि सुरिंदों सहिवेसेणं समाहुओ ॥४४॥ 

तप्पभिई तेण सम॑ सुस्यसूहं सरसमणुद्वबंतीए । वच्चंति दिणाणि अहो ! गूढायारित्तमित्थीणं ॥|९५॥ 

तीए वि हु तह कह वि हु विणएण वसीकओ ससुरवग्गो । जह कन्नाओ कन्‍्न॑ न को वि कि पि हु तयं सुणइ ॥४६॥ 

तप्पदणा य कया वि हु सरीरमलणाइणा पयारेण । परिजाणियं जमेसा समगं पुरिसेण संवसह ॥४७॥ 

छक्कन्न॑ जाव कय॑ ता भणिओ तीए सविणयं ससुरो । ताय ! तए सच्चविय॑ नियसुयविलसियमपुव्बमि्म १ ॥४०८॥ 


८ 


तथा हि--- 


२३. व्यसनशतजनकयुयत्यंविश्यासवर्णनाधिकारे भावभट्िकाख्यानकम्‌ १६५ 


तुह चेव निद्धसुयण॑ःस सेट्टिणो भाणुणो अहँ धूया । परिणेऊकण जमेय॑ सुद्भायारा वि परिहरिया ॥४९॥ 

न हु एत्तिएण तुद्ठों दुसणमारोवए मह5न्न' पि। ता णेण कय॑ सच्चं केणावि बुहेण ज॑ भणियं ॥५०॥ 

न हु एत्तिएण ठाही गयणयल' मइलिऊण घणनिवही । कायव्वा अज्ज वि रायहंससुत्ना सरुच्छंगा ॥५१॥ 

ता संपह सुद्धा हं कूर्गहण करिस्समऊमिमिणा | चाविज्ज॑ति न मिरिया जह चणया ताय ! पयडमिणं ॥५२॥ 
छड्डुसु भलिमवराणं महिलाणं गयनिमीलियं काउं । जा सकलंका जीयंति ताय ! ता कुणस्‌ मह सुद्धि ॥५३॥ 
इय सोऊणं सब्वो सराय-पउरों जणो तहिं मिलिओ । जा कोबि क्रिंपि पमणदह पहाणपुरिसेहिं ता वुत्त ॥५४॥ 
जा एवं कयनियमा सा कावि हु होउ कि वियप्पेण ? खिप्पठ सुरपियभवणे किमियरदिव्वेहिं कायप्वं ॥५५॥ 
न्हाया कयबलिकम्मा धवलविलेवणविलित्तसव्वंगा । धवलाहरणविह सियसव्वावयवा घवलवसणा ॥५६॥ 
धवलप्पसृणपरिमलमिलंतभमरउलरुदरगलमाऊा । धवलूसरोरुहसयवत्तकुसुमसिरधरियसेहर या ॥५७॥ 

इय सब्बंगीणमह्धवत्थसच्चवियफारसिंगारा । अणुगम्ममाणमग्गा नरवइ-नायरयनिवहेण ॥५८॥ 
निरवज्जवज्बिराउज्जमणहरारावपूरियदियंता । पढमाणभट्ट-ब॑दियणबहलहलबोलमुहलनहा ॥५९॥ 
सवियक्ष-सविम्हय-स दय-को उगविखत्तनायरजणस्स । गरुययरचडयरेणं पत्ता सुरपियभवणमेसा ॥६०॥ 

सो उण जबखो सन्निहियपाडिहेरों निसाए बलवंतो | पालइ पयत्तओ पाणिनिवहमिह सुइसमायारं ॥६१॥ 

दुट्टं रुट्टो निग्गहह गहिय जमजीहसच्छहच्छुरिओ । दिवसम्मि अर्किचिकरो पयद एसा जणपसिद्धा ॥६२॥ 
खिविऊण जबखभवणे भावद्टियजुवइमुब्भडकवाडे | ढक्षिय ढड़ढसमेयं काउं वलिओ नयरिलीओं ॥६३॥ 

सो तं दटठु दष्मोद्ठभिउडिभासुरकरालभालयलो । आयड्डिउमसिधेणुं पाविट्टे ! सुमरसु तमिद्ठ ॥६४॥ 

एवं भेसविया वि हु सविणयमवलंबिऊण थिरचित्तं | पभणइ भयवं ! एवं को किर मह उबरि संरंभो ? ॥६५॥ 
अहमेगघायसज्का महापभावो तुम च दयरसियों । ता विन्नत्ति निसुणसु मह पद्चासन्नमरणाए ||६६॥ 

संपइ मह मरणं पि हु सलाहणिज्ज जयम्मि जं दुल॒हं । एएण निमित्तेणं संजाय॑ दंसणं तुम्ह ॥६७॥ 

ता संपइ होसु थिरो जाव सुद्िटट करेमि जियलोयं । तुह चिंतग-भासण-दंसणेहिं दुलहेहपुन्नाणं ॥६८॥ 
साणुणयं सप्पणयं तह कह वि हु तीए भणिइनिठणाए | सो भणिओ जह जाओ मणयं उवसंतकोवर्भरो ॥६९॥ 
भणियं च तेण भद्दे | जीय॑ मोत्तृण वरसु कि पि वरं । जं सावराहजीयं कइया वि न दिल्नपुब्वं मे ॥७०॥ 

तो तीउत्तं निसुणसु कहाणयं किंपि तुह कहेमि अहं | तेणुत्त निस्संक। कहसु अहं अवहिओ एस ॥७१॥ 

[ विक्रमादित्यनूपाण्यानकम्‌ ] 


अत्थि अवंतीजणवयपरमालंका रसन्निभा भयवं ! | परमच्छेरयभूया सब्वेसि गुणाण कुलभवर्ण ॥७२॥ 


त॑ विन्नाणं भुवणे वि नत्थि तं को3ययं जए नत्थि | त॑ साहस पि अवरत्थ नत्थि कुहगं पि त॑ नत्यि ॥७३॥ 
चाओ नाओ धाओ धाउत्बाओ विसिद्टसमवाओ । तह य रसायणवाओ जोगिणिवाओ य गहवाओ ॥७४॥ 
कि बहुणा नयनिउणं जोइज्जतो विवेयचक्खूहिं । सो कोवि हु नत्यि गुणों पाएणं तीए जो नत्यि ॥७५॥ 
जम्हा हरिसद्दा्णं परमुज्जयणी जणम्मि नयरी सा । तम्हा त॑ं नयनिडणे परमुज्जयर्णी बुहा बंति ॥७६॥ 

त॑ नयरिमसमसाहसबसीकयाणहपभावभूयतिगो । पालइ पयडपरक्षमसमुवज्जियकित्तिजसपसरों ||७७॥ 
हयविक्कमो वि गयविक्कमों वि रहविक्कमो वि सो तत्थ । तह सब्वविक्रमों वि हु जाओ नयविक्कमो जेण |।७८॥ 
महिवलयभासणाओ कमलाण वियासणाओ सब्वत्तो । दुन्नयतमहरणाओ आइच्चो विक्षमाइच्चो |७९॥ 

चाई सूरो पडिवन्नवच्छलो बुद्धिविजियसुरमंती । दक्खिन्ननिही निययं परोवयारेकगुणएसिओ ॥८०॥ 

अह त॑ कद्या वि निव॑ अणेगमडकोडिसंकडत्थाणे | कणयमयंदंडहत्थो पडिहारो विज्ञवइ एवं ॥८१॥ 

सियभूइ गुंडियतणू लक्खणपडिपुत्ननरकवालकरो | डमडमियडमरुयधरो खंधोवरि धरियखटंगो ॥८२॥ 


१६८ 


आख्यानकर्मणिकोशे 


वियडजडामउडसिरो एगो कावालिओ दुवारम्मि | अहिल्सइ देवदंसणमुट्डं देवो पमाणं ति ॥८३॥ 
सिम्घं पवेससु तयं भणिए रज्ना पवेसिओ तेण । ससमयपसिद्धमेसो दाऊणासीसमुवर्विट्टो ॥|८9॥ 

भणियं च तेण हिमवंतपव्वए आसि साइसयमंतो । मज्झ गुरू तस्सीसं मं जाणसु भदरवाणंदं ॥८५॥ 

मह तेण मरंतेणं दिल्लो नरनाह ! साइसयमंतो । सिद्धेण जेण सिज्कह पओयणं तिहुयग5०्महियं ॥८६॥ 
विहिया य जहाविहिणा बारस वरिसाणि पुव्वसेवा मे । इण्हि तु असमसाहससहायसाहेज्जवसगाणं ॥८७॥ 
सिज्कइ एसो तं पुण तुज्क सयासाओ होहिही नुणं । महिवरुए वि जमवरों नेवंविहभारधुरधवलो ॥८८॥ 
त॑ पुण साहसविहवो परोवयारेक्ककरणदुल्छललिओ । निव्वडियसूरचरिओ अब्भत्थणभंगभीरू य ॥॥८९॥ 

ता तुज्क सयासमहं पडुच्च कज्जं इमं समणुपत्तो । तो कण्हचउदसिदिणे निसिमेगं कुणसु साहेज्ज ॥९०॥ 


चितियं च राइणा -- 


जओ--- 


गुरु-मित्तत्थे पाणा रूव॑ तारुन्नयं च दश्याए | विहलुद्धरणम्मि धणं ज॑ उबरउज्जश तय॑ं सफल ॥९१॥ 

इय पडिवज्जिय सहरिसमुद्दिद्वदिणम्मि नरवई पत्तो | एगागी सत्तथणों करालकरवालवग्गकरो ॥९२॥ 

पुरओ चिय संपत्तो पेतवर्णं तम्मि भेरवाणंदों । सयलीकरणं काऊणा55लिहियं मंतमंडलयं ॥९३॥ 

रज्ना भणियं भयवं ! आइस तं॑ किंपि ज॑ मए कज्जे | तेणावि भणियमक्खयमडयं तुममेगमाणेसु ॥९४॥ 

सी वि हु तह त्ति पडिवज्जिकण भीसावणम्मि पेयवणे । जाव भमइ ता दिद्ठो रुकखे उल्लंबिओ चोरों ॥९५॥ 
चडिऊणं छुरियाए जा छिंदिय रज्जुमुत्तरह तरुणो | ता पेच्छइ उबरिं तयं तहेव लंबंतमायासे ॥९६॥ 

दुइयं वारं छिंदह ताव तहेव य तयं नियइ रुके । तइयाए वाराए आलिंगिय देइ झंपमहोी ॥९७॥ 

खंधे काऊण तय जावा55गच्छइ पहम्मि ता तेण। कहिउ' कि पि कहाणयमेसो बोल्नाविओ जाव ॥९८॥ 
ता त॑ तहेव रुकखे विलग्गिउं ठाइ एवं बीयं पि। तश्याए वाराए आयासे सुणई वयणमिमों ॥९९॥ 

भो भो नरिंद ! कावालियस्स मा वीससेज्ज एयस्स । एसो हु सुवन्नकए हंतुं त॑ं महइ कूरमई ॥१००॥ 

राया वि भणइ न जुगंतरें वि मह वयणमन्नहा होइ । पडिवन्नमिमं कज्जं कायव्वं सब्बहा वि मए ॥१०१॥ 


छिज्बउ सीस अह होउ बंधणं वयउ सव्वहा लच्छी । पडिवन्नपालणे सुपुरिसाण जं होइ त॑ होउ ॥१०२॥ 
जद एवं तह वि तुम॑ कह वि हु अक्खाणयस्स पज्जन्ते । पुच्छंतस्स वि नरवर | पडिवयणमिमस्स मा देसु ॥१०३॥ 
अन्न च मडयभाले पणवमिमं गवलगुलियवन्नाभं । झाएज्जसु थिरचित्तो खेम॑ एबंकए तुज्ञ ॥१०४॥ 

इय पडिवज्जिय सम्म॑ं मडयं काऊण खंधदेसम्मि । गंतुं जाव पयट्टो ता मडएणं इम॑ बुत्त ॥१०५॥ 
गरुयंतरालमज्ज वि अज्ज वि तुह मंतवाइओ दूरे । ता पहनिव्वहणकए कहेमि अक्खाणयं सुणसु ॥१०६॥ 
राया वि मोणमस्सिय पत्तो कावालियं भणइ एवं | एये अक्खयमडयं अन्न पि हु भणसु मह किश्च॑ ॥१०७॥ 
तेणुत्त तलहड्सु वसाए संपयमिमस्स पयजुयलं । सो उण निवकरवाल्ं करम्मि काऊग मडयस्स ॥१०८॥ 
आदढत्तो परिजविउं मंतं राया वि पणवमक्खुहिओ । ताव य मंतपभावा सहस त्ति समुट्तियमिमो वि ॥१०९॥ 
गाढयरं जा कायइ पणवं भूमीए ताव त॑ पडियं । पुणरवि य मंत-पणवे दुन्नि वि सुद्दुयरमुबउत्ता ॥११०॥ 
झ्ायंति जाव ताव य भूओ वि हु रूमगमुट्टिउं मड॒यं । पणवपभावा पडिय॑ तहेव काबालिओ तत्तो ॥१११॥ 
आवेसेणं जा जबइ मंतमेएणमुद्ठधिउ ताव | तइयाए वाराए पहओ खग्गेण कावाली ॥११२॥ 

जाओ सुवन्नखोडी त॑ पुण किच्चा सुबत्नयं भणियं । पुरिसो छिन्नावयवों वि जायए पुणरवि य पुत्नो ॥११३॥ 
इय सो सुवन्नपुरिसो पहदियहं पि हु बहज्जमाणो वि। देवाणुभावओ खलु न निष्ठएण तत्तिओं चेव ॥११४॥ 
तो तस्स पभावेणं सब्बं॑ पि बसुंधरं रिणविहीणं । विहिउं विहिओ तेणं नियओ संवच्छरो रजन्ना ॥११५॥छ७छ॥ 
इय विक्कमनरवइणों कहाणय॑ तुह मए समक्खाय॑ । तुह संगमरसियाएु न उणो नियपाणभीयाए ॥११६॥ 


२३. व्यसनशतजनकयुवत्यविश्वासवर्णनाधिकारे भावभटलकायण्यानकम्‌ १६७ 


उक्खणिकर्ण जबखो जमजीहासन्निहं छुरियमेसो । जा मारिउं पवतों ता भणिओ तीए मिउवयणं ॥११७॥ 
भयवं |! पढमी पहरो5इक्कंतो जामिणीए पहरतिगं । पडिपुन्नमेव चिट्ठुइ ता कुणसु थिरत्तमबरं च ॥११८॥ 
मह उवबरि सियालीए उब्भडदाढाविडंबियमुहस्स । पंचाणणस्स भण तुज्क केरिसो एस संरंभो ? ॥११९॥ 
ता कप्पपायवसमं जम्मन्तरपुत्नपावणिज्जमिम । माणेमि तुज्क दंसणमओ कहाणयमिमं सुणसु ॥१२०॥ 
तो तीए सजीद्वाए सो जक्खो मारणुज्जुओ वइरी । बंधुसमो संजणिओ अहो ! हु जीहाए माहप्पं ॥१२१॥ 
जह एवं तो भद्दे | कहाणयं कहसु जमभिरुइयं ते | एसो हं तस्सवणे पठणो त॑ जंपियमिमीए ॥१२२॥ 

[ चणिकपुश्र-मिनद्सयोराख्यानकम ] 
जंबुद्दीवष्भंतरभारहवासस्स मज्मखंडम्मि | महुराभिहाणनयरी आसि महीवीढविक्खाया ॥१२३॥ 
तत्थ5त्थि महीनाहो जियसत्तु धारिणी पिया तस्स । कइया वि हु मंडीरवणचेइए ऊसवे जाए ॥१२४॥ 
संपत्तोी नरनाहो सपरियणो सावरोहणो तत्थ । केणावि वणियपुत्तेण जवणियंतरियदेवीए ॥१२४५॥ 
आलत्तयरसरंजियनहमणिकिरणावलीहि विच्छुरिभो । रयणाभरणविसिट्ठो दिदट्ठो अंगुट्गो तेण ॥१२६॥ 
अंगुट्ठओ वि जीसे असरिससुंदेरमंदिरं तीसे । अमरीण वि अव्महिया सरीरसोहा धुबं होही ॥१२७॥ 
जह न इमाए सव्वंगसुंदरावयवमणहरंगीए । पावेमि संगमसुहं ता नियमा होइ मरणं मे ॥१२८॥ 
इय चितिऊण नाया या धारिणी सा तओ वणिसुणण । तब्विरहविहुरियंगेण रायमंदिरदुवारम्मि ॥१२९॥ 
गहियं गंधियहडं देइ समम्घं स सुन्दरं वत्थुं। अंतेउरदासीओ वि तस्स हड्टे ववहरंति ॥१३०॥ 
आवज्जियाओ सब्वाओ तेण अन्तेउरीण दासीओ । धारिणिदेवीचेडी पियंकरा पुण विसेसेण ॥१३१ 
कइया वि वणियपुत्तेण चेडिया धारिणीए देवीए । पारूढगरुयपुलएण पुच्छिया कहसु मह भद्दे | ॥१३२॥ 
को उब्वेढदब पढम॑ पुडए ? चेडीए जंपियं देवी । तो लेहगब्भपुडओ समप्पिओ तेण दासीए ॥१३३१॥ 
तीए वि धारिणीए देवी उब्वेढए तयं जाव | ता तत्थ लेहलिहियं पवाइयं एरिसं तीए ॥१३४॥ 
काले प्रसुपस्य जनादंनस्य, मेघान्धकारासु च शवरीषु । मिथ्या न भाषामि विशालनेत्र |, ते प्रत्यया ये प्रथमाक्षरेषु ॥ १३५॥ 
'कामेमि ते! इमाइं पढमाणि पयक्खराणि नाऊण । सा अवगयलेहत्था य चितिउं एवमारद्धा ॥१३६॥ 
तेसि घिरत्थु विसयाण पाणिणो जेहिं मोहिया संता । रागंधनयणजुयला कज्जा-5कज्ञाई न नियंति ॥१३७॥ 
त॑ किंपि नत्यि भुवणोयरम्मि पावं न जं अहिलसंति । पुरिसा विसयपिवासापरव्वसा मुक्कमज्जाया ॥१३८॥ 
भुवणब्भंतरवित्थरियजसहरा ते जियंतुं जियलोए । जे परकलत्तविसए विरत्तचित्ता महासत्ता ॥१३९॥ 
ता एस विसयवंछाविमोहिओ मा विणस्सउ वराओ । इय चिंतिय पुडयकओ लेहो तीए वि पेसविओ ॥१४०॥। 
जाय॑ मज्क समीहियमिह चिंतिय तेण हिद्नहियणण । उन्वेढिऊण पुडयं पवाइयं एरिसं तत्थ ॥१४१॥ 
नेहलोके सुखं किश्विच्छादितस्यांहसा भुशम्‌ । मितं च जीवितं नणां तेन धर्म मति कुरु ॥१४२॥ 
पढमक्खराणि पायाण तेण “'नेच्छामि ते” त्ति नायाणि | तो विमणदुम्मणो सो विगयासो चितिउं छग्गो ॥१४३॥ 
नेच्छद परपुरिसमिमा संजायमहासइत्तगुरु गव्वा | ता चिट्ठिउ न सक्‍को तीए विओगे इह खणं पि ॥१४४॥ 
अमराउरीसमाणं पेयवर्ण पुरिवरं पि पियविरहे । पडिहासइ सम्गसमं वललहजणजुयमरजन्न पि॥१४५॥ 
ता किमिह संठिएणं तब्विरहे ? इय विचितिउ' चलिओ । गच्छंतो संपत्तो कम्मि वि रज्जंतरे स वणी ॥१४६॥ 
दिद्दो य सिद्धउत्तो उज्काओ तेण निययछत्ताण । नीइ वक्‍खाणंतेण तेण एयारिस पढिय॑ं ॥१४७॥ 
अत्थो कामो धम्मो सत्तुविणासों अतूरमाणस्स । जिणदत्तसावयस्स व जहिच्छिओ होइ पुरिसस्स ॥१४८॥ 
को एसो जिणदत्तो ? त्ति पुच्छिएण ताण कहइ उज्ञाओ । आसि वसन्तउरपुरे जिणदत्तो इब्भसेट्टिसुओ ॥१४९॥ 
अद्दिगयजीवा-5जीवो परियाणियपुन्न-पावपरिणामो | अह अज्नया य दविणज्जणाय चंपाए सो पत्तो ॥१५०॥। 
तत्थ धणसत्थवाहो महेसरो तस्स दुन्नि रयणाणि । चउजलहिसारहारो अबरा हारप्पह्या धूया ॥१५१॥ 


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आद्यानकमणिकोशे. 


जाए संववहारे जिणदत्तो तयणु तस्स भवणम्मिं | पत्तो कीलंतिं तत्थ निंयइ हारप्पहं कन्तं ॥१५२॥ 
उब्मिज्लमाणजोव्वणरमणीय अमरर्मणिसमरूवं । अणुरायरं जिओ सो निययावासम्मि संपत्तो ॥|१४५३॥ 

मंगाविओ धणो त॑ कन्नं हारप्पहं न से दिन्ला | तो विक्किणियकयाणो जिणदत्तो नियपुरिं पत्तो ॥१५०॥ 
हारप्पहानिमित्तं काऊणं छत्तवेसमणुपत्तो । चंपाए किंचि उज्झ्ायमुत्तमं सो समज्लीणो ॥१५५॥ 

महं वक्‍्खाणसु क़िंपि हु तेणुत्त जंपए उवज्काओ । भोयणरहियं विज्ज गिण्हसु जं कि पि पडिहाइ ॥१५६॥ 
मग्गसु धणस्स पासम्मि भोयणं भद्द ! दाणवसणी सो । पंचसए ससरक्खाण जेण भुंजंति तस्स गिहे ॥१५७॥ 
तो तेण घणो भोयणनिमित्तमब्भत्यिओ भणद् क॒न्न' । वच्छे ! जं वा त॑ं वा एसो भोयावियव्वो त्ति ॥१५८॥ 
हारप्पहाउणुद्वि्स पि भोयणं तस्स वियरए सो वि। त॑ पुप्फ-फलाइईहिं उवयरह न मज्नए सा वि ॥१५९॥ 
छंदाणुवत्तगेणं मिउभासंतेण तेण अशुदिवसं । आयारिंगियकुसलेण रंजिया सा तहा कहवि ॥१६०॥ 

तीए जहा भणिओ सो मग्गंसु इद्ढ पयंपए सो य | जह एवं ता सहयस ममंगसंगेण तीयुत्त ॥१६१॥ 
पायाइगहियवन्न॑ सललियपयगामिणिं मम सरिच्छे । मुणिऊर्ग गाहमिमं॑ जं कायब्बं॑ तयं कुणस ॥१६२॥ 

हसियं तुह हरइ मं रमियं पि विसेसओ न संदेहो । मयरद्धओ व्व विनडह मंन वि तुमाओ वित्थरिओं ॥१६३॥ 
भावत्थो एयाए गाहाए 'हर मर्म' ति पढमेहिं । पयअक्खरेहिं सिद्ठो हरामि कि ? अहव नो जुत्त ॥१६४॥ 
इह-परलोगविरुद्ध हरणं इय चितिऊण भणिया सा । ससिवयणि ! सुपुरिसाणं न जुज्वण कहवि अवहरणं ॥|१६५॥ 
ता अलियगहर्गहिया होसु तुम जेण मन्तवाइत्तं | काउ' निरुयं जाय॑ गुरुयणदिन्नं विवाहेमि ॥१६६॥ 

मह वल्लहेण विहिओ चारुपवंचो त्ति चितिउः रूगा | हारप्पहा पयंपिउमुबहासपरं असंबद्ध' ॥१६७॥ 

एमेव हसइ गायइ पलवइ नज्चह पुरे परिब्भमइ । तो सत्थवाहपमुहों लोगो अच्चाउडो जाओ ॥॥१६८॥ 
वाहरिया सब्बे वि हु पयंडवरमंतवाइणो तत्थ । तेहिं वरमंतवाएु कए गहो वद्धिओ अहिय॑ ॥१६९॥ 

कि बहुणा?जह जह विज्वबाइणो से कुणंति उबयारे । तह तह महागहो सो बाहइ त॑ पिसुणलोगो व्व ॥१७०॥ 
तो पुच्छिओ स छत्ती धणेण जिणदत्त ! जाणसे क़िंपि ? ।तेणुत्तं मज्म कुलक्रमागया संति बिज्ञाओ ॥१७१॥ 
पेच्छाम्रि पप्रमिमीए सखूवमिय ज़ंपिकण जिणदत्तो | पत्तो तीए सयासे रहम्मि सा जंपिया तेण ॥१७२॥ 

सुयणु ! करिस्समहं ते मंतपत्रोगं परं तह कए वि। तइयाए वाराए पठणा तं होसु इय भणिउं ॥ १७३॥ 

गंतृण़ धणो भणिओ महागहो ताय ! एस दुस्सज्को | मंतो वि भूयतासो समत्यि ता कुणसु सामग्गि ॥१७४॥ 
आबालकालपालियविसुद्धबंभव्वया नरा अट्ठ | ताय ! निहालसु मज्झं जे उत्तरसाहया होंति ॥१७५॥ 


“भग़इ घणो भयवंतो ससरकखा सन्ति सीलबलकलिया । ता सो किण्हचउद्द सिनिसाए चलिओ धणाइजुओ ॥१७६॥ 


संपत्तो पेयवणे पिसायअट्टट्वहासभीमम्मि | डज्झंतमडयवसविस्सगंधपरिपूरियदियंते ॥|१७७॥ 
एयारिसभीसावणमसाणमज्क्रम्मि मंडल काउं । ससरक्खा खग्गकरा विहिया एवं च उल्लविया ॥१७८॥ 
सोउं सहाससदं तुब्भेहिं सिवारवा विहेयव्वा | इय सिक्‍खविउं मुक्का ते अद्ठ वि अट्टसु दिसासु ॥१७९॥ 
पुअ्य॑ चिय सिक्खविया ताण पुरो सद्दवेहिणो अट्ट । विंधेयव्वं लक्ष्खं तुब्भेहिं सिवारवे जाए ॥१८०॥ 


| आकर 


तो मंडलए उववेसिऊण हारप्पहं समुवविद्टो | पज्ञालिऊण जलणं 'हुंफड़साह' त्ति तेणत्ते ॥१८१॥ 


सइवेहिं सिवाफेक्षारवो कओ तयणु सद्दवेहीहिं । विद्धा बाणेहिं तओ नटद्ठा भयकंपिरा ते वि ॥१८२॥ 
पीडियमहियं पत्तं मंडलए मन्तवाइओ पडिओ । उवलद्धचेयणो पुष्ट खणेण मणिउं समाढत्तो ॥१८३॥ 

ताय! मए पुव्व॑ पि हु पयंपियं बंभवारिणो दुलहा | इय जंपिऊण सब्बाणि ताणि पत्ताणि नियठाणं ॥१८४॥ 
गहनिग्गहं कहं त॑ कुणसि ? त्ति धणेण पुच्छिओ छत्तो । जद किर अज्ब वि इह बंभयारिणों हुंति तेणुत्त ॥१८५॥ 
नियगुरुणो सत्थाहेण पभ्रणिया बंभयारिणो परमा । पेसह तह विहिए त॑ पि विहडिय॑ म्त्ति पुव्व॑ व ॥१८६॥ 
निद्धाडिया धणेणं कुविएण तओ असेसससरक्खा । पुट् च कहं पुण बंभयारिणों बच्छ! नायव्बा ? ॥१८७॥ 


जओ-- 


२३. व्यसनशतजनक युधत्यविश्वासवर्णनाधिकारे भावभश्काल्यानकम्‌ १६६ 


ब्रसहि-कह-निसिज्जिदिय-कुड्धंतर-पुव्वकी लिय-पणीए । अहमायाहार विभूसणा य नव बंभगुत्तीओ ॥१८८॥ 
बुज्ञति अणु॒ट्टति य गाहत्थ॑ जे इमं विसुद्धा ते | वरबंभयारिणो तो धणेण सा दंसिया गाहा ॥१८९॥ 

ससरक्ख-अक्खपायाइयाण नाओ न तेहिं परमत्थो । एव्थंतरम्मि सिरिधम्मघोससूरी समोसरिओ ॥१९०॥ 
उबविट्ठ॑ पठरजणे जिणदत्तो सह धणेण संपत्तो | पणमिय गुरूण चरणे उवविद्ो उचियठाणम्मि ॥१९१॥ 
सूरीहिं समारद्धा सनीरनीरयसरेण धम्मकहा । भो भव्वा ! सब्बाणि वि सुहाणि धम्मेण जायंति ॥१९२॥ 


धम्मेणं चिय अत्था धम्मेणं चेव उत्तमा भोगा । धम्मेण सग्ग-मोक्‍्खा सुहाइं सब्बाणि धम्मेण ॥१९३॥ 
नारय-तिरियगईओ सत्ता पावंति पुण अहम्मेण | ता परिहरिय अहम्मं॑ धम्मम्मि रईं सया कुणह ॥१९४॥ 
इय निमुणिऊण सूरीण देसणं फुरियगरुयसंवेगो । पडिबुद्धो पाणिगणो धणो वि सावयसमों जाओ ॥१९५॥ 

ते सकयत्था सूरुग्गमम्मि सूरीण जे नमंति कमे । इय भार्वतिण धणेण पमणिओ तयणु जिणदत्तो ॥१९६॥ 
जारिसया वच्छ |! तए संलत्ता बंभयारिणो नुणं | तारिसया जइ एए वक्‍्खाणावेसु ता गाहं ॥१९७॥ 
वक्‍खाणिया मुर्णिदेण पभणियं तत्थ सत्थवाहेण | भयवं ! मंडलकम्मे पट्टावसु साहुणो नियए ॥१९८॥ 

न हु एसो मुणिमग्गो बच्चंति जमेरिसेसु कज्जेसु | मुणिणो इय गुरुभणिए सविणयमुल्लवइ जिणदत्तो ॥१९९॥ 
परिचत्तगिहावासा ताय ! इमे सत्तृ-मित्तसमचित्ता । समतिण-मणिणो बरबंभयारिणों तिब्वतवनिरया ॥२००॥ 
मुणिणों कुणंति न कया वि ताव गिहिसमुचियाइं कज्जाईं । किंतु इमेसि नाम॑ पि नासणं कुणइ भूयाणं ॥२०१॥ 
लिहिउं मुणीण नामाणि तेण अट्डसु दिसास पेयवणे । ठविऊण मंतवाओ कओ पयत्तेण छत्तेण |।२०२॥ 
हारप्पहा महीए पडिया सहसा विमुक्अक्कंदा | उवलद्धचेयणा पुण खणेण सा जंपिउ' छूगगा ॥२०३॥ 

कि ताय ! जणो मिलिओ पेयव्णे तयणु तीए वुत्तंतो | कहिओ त॑ सोउ' सा लज्जाए अहोमुही जाया ॥२०४॥ 
तो सव्वाणि वि नियमंदिरम्मि पत्ताणि ताणि हिद्दाणि । जाए प॒रभायसमए विचितियं सत्थवाहेण ॥२०५॥ 
निक्वित्तिमोवयारी जिणदत्तो ता इमस्स मह जुत्तं । काउं पद्चवयारं सो य सुयादाणओ होइ ॥२०६॥ 

भणिओ य तओ सो वच्छ ! गिन्ह हारप्पहं विवाहेउं । तेणुत्त ताओ च्चिय जुत्ता-उजुत्तं वियाणेह ॥२०७॥ 
सुपसत्थदिणे परिणाविओ य हारप्पहं धणेण तओ । करमेल्लावणदाणं दिल्न॑ं हारेण संजुत्त ॥२०८॥ 

तो जिणदत्तो कश्य वि दिणाणि तत्थेव भुंजिडं भोए । हारप्पहाए जुत्तो संपत्तो निययनयरीए ॥२०९॥ 
हारपहा जह लढड्धा तेणं थिरयाए तह य बुद्धीण । तह अन्नो वि हु थिरबुद्धिभावओ लहइ सब्बं पि ॥२१०॥७॥ 
सोऊण नीहसत्थ॑ माहुरवणिणा वि चिंतियं ण्यं | जह संजाया एयस्स इट्टसिद्धी सबुद्धीण ॥२११॥ 

अहमवि तह नियनयरिं गंतुं पेसेमि दृशकज्जेण | अक्खलियप्पसराओ तीए परिव्वाइयाओ दुयं ॥२१२॥ 
सिक्‍्खेमि वसीकरणाय मंत-तंतोइयाणि सव्वाणि | तह विज्ञासिद्धाणं नराण काहामि ओलगं ॥२१३॥ 

इय चिंतिऊण पत्तो नियनयरिं तह अणुट्टियं सब्बं | अवलग्गिएहिं विज्ञासिद्धेहिं पयंपियं एयं ॥२१४॥ 

तुद्ठा वयमब्भत्थसु इंट्ठं तो मग्गिया इम॑ं तेण । जह होइ धारिणी में भज्जा तुब्भे तहा जयह ।॥|२१५॥ 

इय पडिवज्जिय मारी विउव्विया तेहिं डिभरूवाण । नीरोगाणि वि डिभाणि तत्थ एमेव य मरंति ॥२१६॥ 
आइट्टा नरनाहेण नियह मारीए कारणं सिद्धा । देव | महादेवी ते मारी इय जंपियं तेहिं ॥२१७॥ 

देवीए सेज्जाए मयडिभकराइयाणि खंडाणि । खित्ताणि तओ बयणं विलिंपियं तीए रुहिरिण ॥२१८॥ 

जाव निवो तीए निरिक्खणाय पत्तो तमस्सिणीविरमे । तो त॑ दट्ढू , रुद्टो तीए असुहोदयवसेणं ॥२१९॥ 

अह सिद्धाणं हणणत्थमप्पिया धारिणी तओ तेहिं। भेसविया पेयवणे नेऊण निसाए सा बाढं ॥२२०॥ 
कयसंकेओ पत्तो वणियसुओ भणइ भो ! किमारद्धं ? । तेहुत्तमिमं मार्रि दुम्मरणेणं विणासेमो ॥२२१॥ 

मारी न सोमयाए एयारिसयाए होह ता मुयह । मरणं विणा न मोबखो तेहत्ते भणह वणियसुओ ॥२२२॥ 


आश्यानक्रमणिकोशे 


दविणेण मुयह न मुयंति जाव ता जंपिया इमं तेण | मारह म॑ एयं पुण मुयह न मेल्लंति ते तह वि ॥२२३॥ 

तो तेण भणियमेद्देणु मारणे इह मए वि मरियव्वं । अम्हांण तुम विग्घं संजाओ जंपियं तेहिं ॥२२४॥ 

तों दाउ' दीणाराण कोडिमम्हाण त॑ पुणो दूर । बच्चसु गिन्हेवि इमं न जहा नज्जई इमा एत्थ ॥२२५॥ 

दिन्‍्नम्मि ताण दविणे देवी चितइ अहो | महासत्तो । कोइ इमो मह कज्जे जो नियजीयं पि परिहरइ ॥२२६॥ 

जद एस महासत्तो निकारिमवच्छलो न इह हुंतो । ता केणावि कुमरणेण मारिया नियमओ हुंती ॥२२७॥ 

पच्चुवयारं काउ' न तरामि इमस्स नरसिरोमणिणों । नियतणुदाणेण वि इय विचितिउ' तेण संजुत्ता ॥२२८॥ 

गंतृण दूरदेसे मणप्पिया तस्स भारिया जाया । दोण्ह वि नवनेहबसंगयाण कालो अइक्कमह ॥२२९॥ 

पंचप्पयारविसए दोलन्ि वि भुंजंति पमुइयमणाणि । विविहृष्पयारकीलाविणोयवक्खित्तचित्ताणि |२३०॥ 

अह अन्नया य रयणीए देवजत्ताए गच्छमाणो सो । तब्विरहमसहमाणाए तीए वत्यंचले धरिओ ॥२३१॥ 

तं॑ तारिसं इमं पुण एयारिसमिह पयंपिए तेण | देवीए पुच्छिओं सो गरुयनिबंधेण कहसु त्ति ॥२३२॥ 

तेण वि लेहाईओ वत्थंचलघधरणकहणपज्जंतो | कहिओ से वुत्तंतो विसन्नवयणा ठिया सा वि ॥२३३॥ 

भणियं च तयं तुमए विहिय॑ ? वणिएण भणियमाम॑ ति। सा भणइ पाव ! विहिया विडंबणा कि तए मज्क ) ॥२३४॥ 
ता तिविहं तिविहेणं नियमो मह होठ सयलपुरिसाण । इयजंपिऊण काण वि अज्वाण सयासमल्लीणा ॥२३५॥ 
भणियाओ ताओ भयवइ | पव्वज्ज देहि जोग्गया जह में । जोग्ग त्ति दिक्खिया ताहिं तयणु तिव्वं तव॑ काउः ॥२३६॥ 
समउत्तविहाणेणं पत्ता सा मरिउममरलोयम्मि । सो पुण अद्वज्माणेण किन्हलेसाए नरयम्मि |।२३७॥ 

तो तेण वणियपुत्तेण थेज्जवसओ समीहियं पत्तं | तुम्हारिसा विसेसेण हुन्ति सव्वत्थ थिरवित्ता ॥२३८॥ 

पुणरवि तइज्जपहरे जा सो उद्ध।इओ हणिउकामो । ता कीए वि भणिदए कहं सुणावेइ सा य इमा ॥२३९॥ 


[ अमरादत्त-मित्रानन्दाख्यानकम ] 
आसि विसालवसुन्धरविलासिणीवरविलासभवर्ण व । भुवणयलतिलयतुल्ल तिलुयपुरं नाम नयरं ति ॥२४०॥ 
सिंघुरसमिद्धिरिद्धों राया मयरद्धउ त्ति तत्था55सि । उद्दामसत्तुवारणवियारणो जस्स करवालो ॥|१४१॥ 
रइरमणिकेलिभवणं सिंगारगिहं व कुसुमबाणस्स | तस्सा55सि मयणसेण व्व पणइणी मयणसेण त्ति ॥२४२॥ 
पुव्वभवपु ज्षपगरिसपरिचयपरिणामपावियपयावी । तीए सह विसयसोक्खं उवभुंजंतो गमइ काल ॥२४३॥ 
अह अजन्नया य देवी निरूवयंती निवस्स चिहुरचयं । नियभवणमत्तवारणपरिट्टिया पेच्छिउ' पलियं ॥२४४॥ 
परिहासेण पयंपह पिययम ! दूओ समागओ एत्थ । तो नरवई निरिक्खइ संभंतो तरलनयणेहिं ॥२४४५॥ 
चिंतेह कह णु दूओ समागओ वंचिऊण वावसिए १। सा विम्हइयं दइयं दटठ्रणं भणइ परमत्थं ॥२५६॥ 
देव | तुह सवणमले पलियछलेणं समागओ दूओ | विन्नव३ खमं चइऊण नियमणं धरसु धम्मम्मि ॥२०७॥ 
इय निसुणिऊण वणयं पियाए परिहासपेसलरसं पि। वेरगगगओ चितेह नियमणे तयणु नरनाहो ॥२४-॥ 
पुव्वपुरिसाणुसरिओ परिहरिओ नियमओ मए मग्गो । जम्हा अदिट्वपलिया करिंसु ते घोरतवचरणं ॥॥२४९॥ 
ता इण्हि चिय रज्जे ठविऊर्ण पठमकेसरकुमारं । गंतूण तावसवर्ण तावसवयमणुचरिस्सामि ॥२५०॥ 
इय चितिऊण सुपसत्थवासरे कणयकलूससलिलेण | आपुच्छिय मंतियणं करेइ कुमरस्स अहिसेयं ॥२५१॥ 
चहऊण रायलच्छि सकलत्तो सत्तु-मित्तसमचित्तो | गंतृण तावसवणे पडिवज्जइ सो तबचरणं ।।२५२॥ 
वच्चंतेसु दिणेसुं सुगूढगब्भो पवड़िओ तीए । सुयणजणस्स व नेहो त॑ं पेच्छिय पुच्छिए रिसिणा ॥२४५३॥ 
सामि! तुह चिय॑ गब्भो एसो साहेइ सा वि निवरिसिणो | वयगहणभंगभीयाए साहिओ नो मए तइया ॥२५४॥ 
तो पच्छन्नं तीए सुद्देण गब्भ॑ समुब्वहंतोए । नवमास5द्ध्‌्ममवासरेहिं पुत्तो समुप्पन्नो ॥२५५॥। 
अगुचियआहा रेहिं सुकुमारत्ताओ तह सरीरस्स । सह घोरवेयणाए सूयारोगो समुप्पत्नो ॥२५६॥ 
नवबालपालणकण आदन्ो जाव तावससमूहो । देवसिरिभारियाए समन्रिओ बालघूयाए ॥२५७॥ 


तहा हि-- 


२३. व्यसनशतजनकयुवत्यविश्वासबणनाधिकारे भावभद्टकाल्यानकम्‌ २०१ 


तावुज्जेणिनिवासी देवाणंद/भिहाणवरसेट्टी | हरिसटराओं नियत्तों संपत्तो तावसवणम्मि ॥२५८॥। 

पणमित्तु तावसजणं विमणं संपेब्छिऊण पुच्छेद | साहेइ मयणसेणाए वइयरं सो वि तप्पुरओ ॥२५९॥ 

अम्हाण पुव्बपुत्नाणुभावओं त॑ं समागओ एव्थ | इय मणिऊण समप्पेह तस्स कुमरं मयणसेणा ॥२६०॥ 
तणुकिरणनियरणिज्जियनवतरणिं त॑ गहित्तु सेट्ठी वि। देवसिरिभारियाए पमुइयहिययाए अप्पेइ ॥२६१॥ 
अद्चंतवेयणगया दिवंगया तयणु मयणसेणा वि। तदुदुक्खभरियहियए पडिबोहइ ताबसे सेट्टी ॥|२६२॥ 
तरुणीकडक्खचवलम्मि जोव्वणे जीवियम्मि तडितरले | सोगो जईण जुत्तो न होइ ता त॑ परिच्चयह ॥२६३॥ 
इय अवसोए काऊण तावसे ताण पणयपयपडमो । संचलिओ सकुमारो संपत्तो नयरिमुज्वेणि ॥२६४॥। 
सुपसत्थतिहिमुहुत्ते करेइ कुमरस्स अमरदत्तों त्ति। नाम॑ सम्माणंतों सेट्टी नियनयरजणनियरं ॥२६५॥ 
परिवड्माणदेहेण तेण बाहत्तरी वि य्‌ कलाओ 3083 406 चैक कर गज के इज 228 पक न | | २ ६६ | | 

अबरं च तत्थ वेसमणसेट्टिपुत्तो ककाकुसलचित्तों । मित्ताणंदों नामेण तस्स जाओ परममित्तो ॥२६७॥ 

तेण सह विविहकेलिप्पसंगवर््खित्तमाणसो कुमरों | गच्छंतमवि न याणइ काल सग्गे सुरवरों व्व ॥२६८॥ 
एत्थंतरम्मि गंभीरगज्जिजयतुरपूरियदियंतों । थुव्वंतो बरहिणमागहेहिं केकारवथुईेहिं ॥२६९॥ 

बीइज्जंतो दिसिसुंदरीहि पवसंतहंसचमरेहिं | हयसूररायपावियब्रदायमालाजयपडाओं ।।२७०॥ 
अक्खंडाखंडलूचावदंडमणिकणयपट्टकयसोहो । उद्दंडगुरुसमीरणजयवारण खंधमारूढो ||२७१॥ 

अवलोयंतो उब्भडतडिच्छडाडोयरत्तनेत्तेहिं। भुवणयल्ं संताविय विणिग्गयं गिम्हपडिवक्खं ||२७२॥ 
धाराहारविराइयविप्फारियमेहडंबरों भुवर्ण । निव्वार्वितो पत्तों नहंगणे नवधणनरिंदों ॥२७३॥ 

एत्थंतरम्मि दोन्नि वि गंतुणं मत्तकोइलुज्ञाणे । सिप्पसरिपरिसरम्मी कुत्वंति अणोलिया खेड्ड ||२७४॥ 

अह अमरदत्तकणियासमाहयाउणोलिया समुच्छलिया । जा गयणे सेट्टिसुओ उड्डकरो ऋल्लण ताव ॥२७५॥ 
वडविडविविडवर्ंबियमडयमु हे निवडियं तयं नियइ । विम्हहयमणो हसिउं पयंपए5हह ! महच्छरियं ॥२७६॥ 
तो मडण्ण वि हसिउं भणियं तु थेवकालओ एत्थ । अवलंबियस्स एयं होही ता कि महच्छरियं १ ॥२७७॥ 
तव्वयणायन्रणजायगरुयभयकंपमाणमण-गत्तो | सो अमरदत्तमित्तेण सह गओ निययभवणम्मि ||२७८॥ 
परिहरियालंकारों अवहृत्यियविविहवत्थसिंगारो । न हसइ न रमइ न भमइ न सुयह न चवह न जेमेइ ॥२७९॥ 
करकलियकवोलेो सो केवलमविचलसरीरवावारो । उत्थंभिओ व्व उक्कीरिओ व्व लिहिओ ब्व सुत्तो व्य ॥२८०॥ 
उब्बिग्गमाणसं त॑ द्दृण॑ मणियममरदत्तेण । मित्त | अभिमित्तमेयं कि तुह हियय॑ पणद्ठमिणं १ ॥२८१॥ 

कि मित्त ! पराभूओ केण बि? अहवावमाणिओ पिडठणा ?। उत्तसिरहरिणनयणी अह रमणी कावि तुह हियए १ ॥२८२॥ 
अच्चंतमकह णिज्ज॑ न होइ जद ता कहेसु मह एयं | इय अमरद॒त्तभणिए मित्ताणंदो पयंपेह ॥२८३॥ 
नियजणणि-जणय-बंधव-भइणी-भज्जाइ-भिच्चवग्गस्स । अबि होज्ज अकहणीयं मित्तस्स न नेहसारस्स ॥२८४॥ 
हय भणिऊणं तेणं कहिओ सब्बों वि मडयवुरुन्तो | त॑ निसुणिउः कुमारो पभणइ मा मित्त | बीहेसु ॥२८०॥ 
जेण न नज्जह एयं सच्चं होही उआहु पुण अलियं । जम्हा मडयमुहि ट्विय भणंति भूयाणि केलीए ॥२८६॥ 
किंतु तह पुरिसयारों कीरउ गुरुदुरियनासणनिमित्त । नियगोत्तरक्खणकए जह विहिओ नाणगब्मेण ॥२८७॥ 


नयरम्मि वसंतपुरे उब्भडभडकोडिसंकडत्थाणे । जियसत्तुपु्दपाले उवविट्ठे मंतिजणकलिए ॥२८८॥ 
पडिहारकयपवेसो एगो नेमित्तिओ नरिंदेण । संपुश्छिओ पयासइ सुह-दुह्मत्थाणलीयस्स ॥२८९॥ 

खणमेगं कयमोणो ही ही ! दिव्बस्स विलसियं पिच्छ । जं पुरिसरयण ! एयस्स आवया अहह ! निबडेही ॥२९०॥ 
होही मारी तेरसमवासरे नाणगब्भमंतिस्स । त॑ निमुणिऊण मंती नेमित्तियमाणिउ' भवणे ॥२९१॥ 

सम्माणिऊण विणएण पुच्छए कहसु कारणमिमीए । सो भणह जेट्ठपृत्ताओं पभणिए मंतिणाउमिहिओ ॥२९२॥ 

एयं न भासियव्वं कस्सडवि पुरओ त्ति त॑ं विसज्जेइ । साहेद जेट्टपृत्तस्स सो वि तव्वबइयरं सब्बं॑ ॥२९३॥ 


*०२ 


आखश्यानकमणिकोशे 


भणइ य जइ वच्छ ! तुम॑ मह वयणं कुणसि तो सबुद्धीए । रक्खेमि जममुहाओ वि घोरमारीए नियगोत्त ॥२९४॥ 
इय निसुणिऊण पुत्तो भणेह जं ताय ! भणसि त॑ काहं । मंजूसाए तो खिबइ पाण-भोयणजुययं त॑ से ॥२९५॥ 
तालितु चउप्पासं मंजूसं राइणो समप्पेउः | पभणइ देव ! मह गिहसार॑ रक््खेह कइवि दिणे ॥२९६॥ 

तं वयणं पडिवज्जिय राया रक्‍्खइ निउत्तपुरिसेहिं । मंती गंतृण गिहे चिट्इ सद्धम्मकाणपरो ॥२९७॥ 

अह तेरसम्मि दिवसे उच्छलिओ कलयलोडवबरोहम्मि । कुमरीए मंतिपुत्तेण कड्डिओ वेणिदंडो त्ति ॥२९८॥ 

त॑ निमुणिउ नरिंदों उच्भडभिउडीभमयंकरों भणइ । रे रे मारह मारह मंति गंतुण सकुडुंबं ॥२९९॥ 
रायाएसाणंतरमुद्भाया घोरपहरणा पुरिसा । पावित्तु मंतिभवर्ण भणंति एवं कहिं मंती ? ॥३००॥ 
लल्लकहककक्सवयणं सोउं भणावए मंती । अवराहदूसियस्स वि देवों मह दंसण्ण देउ ॥३०१॥ 

जह मंजूसादव्बं॑ उवणेमि निवस्स पायपउमपुरों | पच्छा जह पडिहासइ तह मज्क विणिग्गह कुणड ॥३०२॥ 
रायाएसेण तओ तेहिं वि मंती निवस्स उवणीओ । उम्घाडइ मंजूसं निवपुरओ जाव ता तत्थ ॥३०३॥ 
वामकरगहियवेणिं दाहिणकरगहियतिक्खअसिधेणुं । पासित्तु मंतिपुत्त तयवत्थं विम्हिओ राया ॥३०४॥ 

पुच्छइ अतुच्छठच्छलियकोठओ पत्थिवो महामंतिं | साहेइ सो वि सब्बं नेमित्तियवइ्यरं तस्स ॥३०५०॥ 

तो भणइ निवो तुह गोत्तकुवियवंतरकया वि अइधघोरा । नियबुद्धिपगरिसेणं तुमए अवहत्थिया मारी ॥३०६॥ 
इय भणिऊणं पुहईंसरेण महविह्वहरियहियएण । मुक्को पसायपुव्बं॑ मंती सिरिनाणगब्भी त्ति ॥३०७॥७॥ 
नियबुद्धिपगरिसेणं तेणं जह रबिखियं नियकुडुंबं । अम्हे वि तह विहेमो रकक्‍्खमुवएण केणावि ॥३०८॥ 
मित्ताणंदो पमणइ स उवाओ मित्त | केरिसों ? कहसु | तो भणइ अमरदत्तों गम्मइ देसंतरं दूरं ॥३०९॥ 

तो पभणह सेट्टिसुओ सुटठु उवाओ निरिक्खिओ तुमए। किंतु सुकुमारतणुणों तुह गमणं कह विएसम्मि ? ॥३१०॥ 
अह एक़ो चिय देसंतरम्मि गच्छामि तह वि तुह विरहे । जं मह काले होही त॑ जायइ संपयं चेव ॥३११॥ 
इय निमुणिऊण पभणइ कुमरो बहुनेहनिब्भरं वयणं । मित्त ! तए सह अहमवि विएसवासं अणुसरिस्सं ॥३१२॥ 
इय एक्कमणा गमणेकबुद्धिगो निययजणणि-जणयाणं । अन्नोन्ननवणसयणं कहिऊण निसाए नीहरिया ॥३१३॥ 
जत्थ पएसे भुंजंति तत्थ न कुणंति कवि सयणीयं । इय गच्छंता पत्ता पाडलिपुत्तम्मि नयरम्मि ॥३१४॥ 
तत्थुत्ञाणब्भंतरवावीजलधोयपायपउमजुया । द्टू ण देवहरयं हरिसेण पलोइउं छूगगा ॥३१५॥ 

पेच्छेताणं अह अमरदत्तकुमरस्स पवरपुत्तलिया । अदृघुद्ठभंगघडिया पडिया पसरम्मि नयणाण ॥३१६॥ 

त॑ पेच्छंतो पीवरपओहरिं हरिणनयणरमणीयं । कुमरो हिययम्मि तओ विद्धों मयरद्धयसरेहिं ॥३१७॥ 

त॑ हयहिययं द्ठ मित्ताणंदेण पमणियं कुमर !। नयरम्मि भोयणकए पविसामो जेण उस्सूरं ॥३१८॥ 

तो भणइ अमरदत्तों सब्बंगं पुत्त्िं पलोएमि । ताव तुम खणमेक एल्थेव विलंबसु वयंस ! ॥३१९॥ 

पुणरवि खणेण भणिओ पमणइ साहेमि तुज्क परमत्थं । मित्त ! न सकक्‍केमि अहं परिहरिउमिमं मणागं पि ॥३२०॥ 
तो सेट्टिसुओ जंपइ निच्चेद्गाए किमेत्थ तुह नेहों ? | परिहासवयणलीलाकडक्खविक्खेवरहियाए ॥३२१॥ 

सो जंपइ कि बहुणा ? एयाए विणा न मित्त ! मह पाणा । अह मेल्लावेसि मम ता मञ्झं देहि कट्ठाईं ॥३२२॥ 
त॑ सोउ सेट्टिसुओ मन्नुभरुप्पन्ननाहसलिलोहो । जा विलविउ' पयत्तो विलवइ ता अमरदत्तो वि ॥३२३॥ 

ते दो वि जाव विल्वंति ताव नियदेवपूयणनिमित्त | नामेण रयणसारों समागओ तत्थ पुरसेट्टी ॥३२४॥ 

पविसंतो संपेच्छइ रोबंते दो वि तत्थ वरकुमरे । आभासिउ' पयंपइ नारीण व चेट्टियं क्रिमिम॑ ? ॥३२५॥ 
भणियं मित्ताणंदेण ताय | तुह जणयनिव्विसेसस्स । कि न कहिज्जद ? भणिऊण अक्खिओ पुव्ववुत्तंतो ॥३२६॥ 
जह उज्जणिपुरीए समागया एत्थ पाडलीपुत्ते | पुत्तलियदंसगाओ परव्वसो जह इमोी जाओ ॥३२७॥ 

जा ताय ! मए भणिओ वच्चामी ताव मग्गए कट्ठ । इय सोउं मज्झ मं मन्नुभरुम्मंथरं जाय॑ ॥३२८॥ 


१. तेण जद्दा -रं० । 


जओ-- 


२३. व्यसनशतजनकयुवत्यविश्वासवर्णनाधिकारे भावभद्टिकाल्यानकम २०३ 


त॑ निश्युणिऊण सेट्टी कोमलवयणेहिं पमणइ कुमारं । वच्छ ! न जुत्तं उत्तमपुरिसाणमठाणपडिबंधो ॥३२९॥ 

बालो वि जओ जाणइ नत्थि निचेट्वाए रइरससुहाईं । ता विबुहहासद्वाणे वच्छ ! तुम किह णु रत्तो सि ? ॥३३०॥ 
जंपह्ट सोऊण तय॑ं कुमरो वि हु ताय ! मोहिओ अहिय॑ । जह मेल्लावेसि इमं मह अग्गी होज्ज ता सरणं ॥३३१॥ 
चिंतेह तओ सेट्टी चित्ते तदुदुक्खसल्लियसरीरों | सच्चमिणं त॑ नूणं ज॑ भणियं विउसवग्गेण ॥३३२॥ 
गह-विस-भूयपणासण अत्थि अणेग नर, अत्थि जि वाहि विणासहिं तक्खणि वेज्जवर । 

जाणमि वेज्बु सु सच्चउ सत्थागमु वह, नेहगहिल्लह चित्त” जो ओसहु कह ॥३३३॥ 

किंतु परिह्ासपेसलरसाए रम्रणीए होड अणुराओ । जं पुण पाहाणविणिम्मियाए जायइ तमच्छरियं ॥३३४॥ 

इय चिंतंतो सेट्टी मित्ताणंदेण पमणिओ ताय !। मह मित्तजीवियकए कि पि उवाय॑ विचिनेहि ॥|३३५॥ 

बज्जरह रयणसारों मज्क उबाओ न को वि विप्फुरइ । जइ कोइ तुज्क चित्त ता झत्ति तयं पयासेसु ॥३३६॥ 

तो भणह सेट्टिपुत्तो अत्थि उवाओ अईवदुन्नेओ | जइ जाणिज्वइ ण्यं पुत्तलिया केण घडिय त्ति ॥३३७॥ 

तो आह रयणसारो भवणं कारावियं मए वच्छ ! । जाणेमि सुत्तहारं पि निम्मिया जेण पुत्तलिया ॥३३८॥ 

कुकण विसयविहूसणसोपारयपुरवरम्मि सो वसइ । साहसु ज॑ं कायव्वं इय भणिए भणइ सेट्टिसुओं ॥३३९॥ 
पुच्छामो कि पडिछंदणण घडिया ? उयाहु एमेव १ । पंडिछंदएण घडिया जद ता आणेमि त॑ नियमा |॥३४०॥ 
ता होज्ज कज्जसिद्धी वच्चामि ताय ! ता अहं तत्थ | पडियरियव्वों तुमए पहदियहं एत्थ मह मित्तो ॥३४१॥ 

सेट्टी वि तयं मत्नह भणइ तओ अमरदत्तकुमरों वि। कि मित्त ! असरिसेणं मंतेण किलेसबहुलेण ? ॥३४२॥ 


पुत्तलियविरहहुयवहजालोलिपलीवियस्स मह मरणं | अबरं च सुहय ! तुह मुहविओगकरवत्तकप्परणं ॥३४३॥ 
इयरो पयपह इम॑ कुमार ! जह नो दुमासमज्भम्मि । आगच्छामि तओ त॑ मुणिज्न जीवह न मह मित्तो ॥३४४॥ 
इय गरुयनिबंधेणं कुमरं संठविय सेट्टिणाईणुमओ । पत्तो अक्खंडपयाणएहिं सोपारयम्मि पुरे ॥३४५॥ 
मुहारयणणं विणिजोइऊण परिविष्टियवत्थ-सिंगारों । करयलूकयतंबोलो जाइ गिहं सुत्तहारस्स ॥३४६॥ 

त॑ पविसंतं पासित्त सुत्तहारों वि कुणइ पडिवत्ति । परितुट्ठमणा पुच्छति दो वि अपरोप्परं कुसरुं ॥३४७॥ 
कज्जेण केण मह गिहमलंकियं ? सूरदेवभणियम्मि । तंबोलदाणपुव्व॑ मित्ताणंदों पयंपेह ॥३४८॥ 

इच्छामि कारिउमहं देवउलं तुह सयासओ किंतु । पाडलिपुत्तब्रिणिम्मियपकिद्रपासायसारिच्छ ||३४९॥ 

तो भणइ सूरदेवो देवउल्ं निम्मियं मए तं॑ पि। इयरो वि भणइ अमुगा पुत्तलिया सालभंजी य ॥३१५०॥ 
पडिछंदएण घडिया ? उयाहु नियबुद्धिनिम्मिया तुमए ? | तो भणइ सूरदेवो तरुणाणं मणवसीकरणं ॥३५१॥ 
उज्जेणिनयरिनायगमहसेणनरेसरस्स कन्नाए | सिरिस्यणमंजरीए घडिया पडिछंदएण इमा ॥३५२ ॥ 

इय निसुणिऊण अहिलसियकज्जसिद्धी स बंघुरं भणइ । पुणरवि पसत्थदियहे तुज्क सरूव॑ निवेइस्सं ॥३५३॥ 
तयणंतरं समुद्ठिय वत्थे विणिवश्चिएषण नीहरिओ । अणवरयं वच्च॑तो संपत्तो नयरिमुज्जेणिं ॥|३५४॥ 

अब्मितरे पविद्ठस्स तस्स पिहिएसु नयरदारेसुं । अजल्लियह वारवासिणिभवर्ण सयणाय सो जाव ॥३१५५॥ 
एत्थंतरम्मि निसुणह पडहयसद्देण पोककरिज्जंतं | मडयमिणं जो रक्खइ पहरे चत्तारि रयणीए ॥३५६॥ 

दीणाराण सहस्सं वियरइ तस्सेह इसरो सेट्टी | त॑ निसुणिं पओलीपाहरिओ पुच्छिओ तेणं ॥३५७॥ 

कि एत्तियम्मि कज्जे वियरिज्वइ एत्तियं दविणजायं ? | सो भणइ एस नयरी उबदुदुया घोरमारीए ॥३५८॥ 

त॑ मारिनिहयमडयं निकालइ जाव इसरो सेट्टी । अत्थमिओ ताव रवी पुरीपओलीओ पिहियाओ ॥३१५९॥ 
मारिपकंपिरगत्तो रक्खइ मडयं न कोबि भयभीओ । इय निमुणिकण नियमाणसम्मि चितेह सेट्टिसुओ ॥३६०॥ 
न हु का वि कज्जसिद्धी निद्धणभपुरिसाण जायइ जयम्मि | ता मडयरक्खण<ज्जियधणेण साहेमि नियकर््ज ॥३६१॥ 
परिभाविऊण एवं छित्तो मडयस्स पडहओ तेण । तो ईसरेण दिल्ला दीणाराणं सया पंच ॥३६२॥ 

सेसं पहायसमए दायव्वं पभणिउं गओ सेट्टी । सो वि अपमत्तचित्तो मुणि व्व मडयं निरिक्खेइ ॥३६३॥ 


२०४ 


१, दश यति । 


आख्यानकमणिकोशें 


अह उग्गयम्मि सूरे धाहावंतो सपरियणो सेट्री । जावुप्पाडइ मडय॑ तो मग्गइ सो वि सेसधण्ण ॥३६४॥ 

पंच सयाइं दिल्लाईं तुज्क कि मग्गसे ? त्ति भणिऊर्ण । तों तं गलत्थिऊ्णं मडयं उप्पाडियं तेणं ॥३६५॥ 

तो मणह सेट्टिपुत्तो जह होही इह पुरे पुह्॒पालो | ता सविसेसं द॒ब्व॑ गिण्हिस्स तुह सयासाओ ॥३२६६॥ 

तो दीणारसएणं दोसियहड्ट किणित्त वत्थाईं | कय॑उच्भडर्सिगारों गणियागेहं गओ रम्म॑ ॥३६७॥ 

त॑ पविसंतं द्ट | वसंततिलया समुद्दिया समुहं । उत्बूढ़जाब्वणा चमरधारिणी जा नरिंदस्स ॥३६८॥ 

तीए समप्पर चउसयपमाणदीणारनउलयं सा वि। नियकुट्टणीए अप्पद संभालइ सा तमेगंते ॥३६९॥ 

पुत्नाणि तत्थ पेच्छइ दीणाराणं सयाणि चत्तारि | तो विम्हह्या चिंतदह अहह ! द्ारो न से कोइ ॥३७०॥ 

सा जंपइ नियधूय पडिवत्तिमिमस्स कुण सं वच्छे ! । सा वि तहा निश्बत्तर न्हाणा-5ड5सण-भोयणाईयं ॥३७१॥ 
अह पत्तम्मि पओसे पविसह सो वरबविलास भवणम्मि | कयउब्भडसिंगारा समागया सा वि पललंके ॥३७२॥ 

त॑ दट्ण विचित्इ मित्ताणंदों विछासबसगाण । सिज्ञंति न कज्जाइं ति चिन्तिउं तं समाइसह ॥३७३॥ 

आणेहि पट्टमेगं जत्थुवविसिउं करेमि क्ाणमहं । तो उवणीओ तीए तवणीयमओ मसिणपद्टों ||३७४॥ 

तत्थ पउमासणत्थो पिहिऊर्ण सियवडेणमत्ताणं । जा चिट्ठद ता पहओ रमणीए पढमओ पहरो ॥३७५॥ 

पमणइ वसंततिलया सामि ! पसाय॑ विहेसु मह इण्हि | अवगजन्निं ठिओ सो ता पहओ बीयपहरो वि ॥३७३॥ 
एवं तइय-तुरीया अइकंता तस्स जामिणीजामा । पहए पहायपडहे उद्धितु गओ तडागम्मि ॥३७७॥ 

ता कुट्टणी पयंपह अमलियगत्ता किमज्ज त॑ं वच्छे ! | सा वि हु साहइ तीसे निसाए निस्सेसवुत्तंतं ॥३७८॥ 
निमुणित्तु कसिणवयणा अक्का उल्लवइ नो थिरं दब्वं | ता अज्ज रंजियव्वों विविहविलासेहिं सो वच्छे ! ॥३७९॥ 
एवं बीया तइया वि जामिणी जा तहेवडइक्क मइ । तो तुरियदिणे उग्गयदिणेसरे भणइ त॑ अक्का ॥३८०॥ 
अणुरायरसियहिययं मह दुहियं कि विडंबसे सुहय ? | जा अणुवज्जियपुन्नाण दुल्लहा सुरवराणं पि ॥३८१॥ 

ता अमरदत्तमित्तो जंपइ जं भणसि अंब ! त॑ काहं | किंतु परिपुच्छियव्वं अत्थि तओ आह सा कहसु ॥३८२॥ 
सो भणइ रायकुमरी परियाणसि रयणमंजरीमंत्र ! | सा भणइ मह सुयाए वयंसिया चमरधारीए ॥३८३॥ 

जइ एवं ता अम्मो ! गंतृणं कहसु तीए मह वयणं | जह बंदियगिज्जंतं गुणनियरं अमरदत्तस्स ||३८४॥ 
आयन्निऊण संजायगरुयअणुरायरंजियमणाए । नियकरकमलेण लिहित्तु पेसियं जइ इमं तुमए ॥३८०५॥ 

सामि ! तुह बंदिविंदप्पयासियं गुणगणं निसामंती । मयणानलजलियंगी संगमसलिलेण निव्बवसु ॥३८६॥ 

तो अमरदत्तकुमरेण पेसिओं पडिसरीरसरिसो है । नियलिहियलेहजुत्ता त्ति जंपिए कुद्टणी मणइ ॥३८७॥ 

वच्छ | करेमि समग्गं ति जंपिउं जाइ कुमरिभवणम्मि । तो रयणमंजरीए द्ढ बोल्लाविया अक्का ॥३८८॥ 
अम्मो ! अई्वहरिसियहियया कि ? कहसु कारणं अज्ज । सा आह तुज्झ वल्लहलेहेण तओ भणइ कुमरी ॥३८<॥ - 
को मज्म वल्लहो ? कहसु अम्ब ! सा वि हु पव॑ंचिउं अका । मित्ताणंदेण जहा तह साहइ तीए पुरओ वि ॥३९०॥ 
कि एयमघडमाणं विचितए रयणमंजरी जम्हा । न य को वि रायकुमरो मज्ञझ मणे वल्लहो वसह ॥३९१॥ 

न य गुणनियरों कस्सह निसामिओ नेय पेसिओ लेहो । ता धुत्तविलुसियमिणं ममाणुरत्तस्स कस्सावि ॥३९२॥ 
जाणामि ताव कज्ज सो वा उण केरिसो महाधुत्तो ? | परिभाविऊण एय॑ पयंपिया कुट्टणी तीए ॥३९३॥ 

मह वल्लहलेहकरो पुरिसो इृह दंतवलभियाए तए | आणेयव्बो त्ति तओ सुणित्तु अक्का गया सगिहं ॥३९४॥ 
परितुट्ठमणा पभरणइ तुह कज्जं साहियं मए वच्छ !। जंपइ मित्ताणंदों कहं ? तओ कहइ सा सब्वं ॥३९५॥ 
गंतव्वं जाव तए तोए सयासे स आह आम॑ ति। सह तीए निसाए गओ संपत्तो रायदारम्मि ॥३९६॥ 

सा भणइ पुत्त ! एत्तियमेत्तं मग्गं सुहेण पत्ताणि | पायार-पओलीथाणगाणि पिहु पिहु पुरो सत्त ॥३९७॥ 

ता दुष्पवेसमेयं सोउं सो भणह कत्थ सा कुमरी १। तो अक्का दक्खालइ वासगिहं तीए तप्पुरओ ॥३९८॥ 


२३. व्यसनशतजनकयुयत्यविश्वासवर्णनाधिकारे भावभट्टिकाख्यानकम्‌ २०४ 


मित्ताणंदेण तओ पयंपियं अंब ! वच्च नियभवणे । ता सा वि नियत्तउं पच्छन्न हेरिंउः लग्गा ॥३९९॥ 
आबद्धपरियरो सो विज्जुक्खित्तेहिं पवरकरणेहिं । सव्वे वि हु पायारेडइक्कमई जाव ता अक्का ॥४००॥ 

नृणं वीरबरिट्टी गरिट्ववंसुब्भवो इमो को वि। तो होज्ज कज्जसिद्धि त्ति चितिउ' पडिनियत्ता सा ॥४०१॥ 
इयरो वि दंतवऊलमि गवक्खमग्गेण आरुह३ तीए । एत्थंतरम्मि कुमरी त॑ दट्टूं चितए एवं ॥४०२॥ 

कि वा करेइ एसो ? कि वा जंपेइ ? चितिकण तओ । पावरणपिहियगत्ता सुत्ता सा अलियनिद्दाए ॥४०३॥ 
तो अमरदत्तमित्तो तारिसरूबं तयं निएकण । गिण्हईइ वामकराओ कडयं नरनाहनामंक॑ ॥॥|४०४॥ 

कढ्चित्तु तओ छुरियं लंछित्ता तीए ढाहिणं ऊरुं । तो पुब्वुत्तकमेणं नीहरिओ भकत्ति झंपाहिं ॥४०५॥ 

तो देवकुले गंतुं सुत्तो नियबुद्धिविहवपरितुट्टो | परिचितइ कुमरी वि हु अहो ! इमो को वि अइृद॒क्खो ॥४०६॥ 
घेत्तण रयणकडयं ऊरू लंछित्तु एस नीहरिओ । त॑ सुट्ठ , कयं न मए जं न कया तस्स पडिबत्ती ॥४०७॥ 

इय चिंतिऊण कुमरी सुत्ता रयणीविरामसमयम्मि । इयरो वि साहुलकरो समागओ रायदारम्मि ॥४०८॥ 
पोक्कारंतो अन्नायमेंस हक्कारिओ पुहइदवइणा । पभणइ संभंतमणों विज्ञत्ति देव ! निसुणेसु ॥००९॥ 
धरणियललुलियसीसो पणमित्ता जाव संठिओ ताव। रज्ञा नयणुक्खेवेण पणिओ विज्नवेहि त्ति ॥४१०। 
विज्नवइ तओ तुब्मेहिं नाह ! पुहईवईहिं महमेवं । देसंतरिओ काउ' परिभविओ ईसरेण द्ढं ॥०११॥ 

जम्हा पओससमए सामि ! अहं आगओ विदेसाओ | इच्चाइवइयरं निसुणिऊण सब्बं पि तेणुत्त ॥४१२॥ 
कोवभरमिउंडिभासुरभालयलो भणइ भूवई रे रे !। आणेह मज्क पुरओ बंधित्तु तयं दुरायारं ॥४११॥ 
आएसो त्ति भणित्ता संचलिओ जाव भडयणं ताब | तं नाउ सिग्धं चिय दविणक्ररों इसरो पत्तो ॥०१४॥ 
विन्नचइ देव ! एयस्स दिज्ञमद्धंं धणस्स सेसं तु । संपइ देमि जमज्ज वि नो दिन्न त॑ निसामेहि ॥४१५॥ 

तम्मि समयम्मि सामिय ! कि मडय॑ नेमि ? अहव एयस्स । दीणारे दमि ? सयं जुत्ता-उजुत्तं वियारेसु ॥०१६॥ 
अवबरं च वासरतिगं लोयायारेण संठिओ सामि ! । एसो इह् उबणीयं संपइ गिण्हेउ नियद्विणं ॥०१७॥ 
मित्ताणंदो राएण पभणिओ भद्द ! गिण्हसु सद॒व्बं | कारणवसेण जम्हा ठिओ इमो ता अदोसो त्ति ॥४१८॥ 
एएण धुत्तिओ नरबद वि धुत्तेणमिह विचिंतेउ । मित्ताणंदो घेत्त नियदविणं त॑ विसज्जेइ ॥०१९॥ 
उच्छलियकोउहल्लेण राइणा पुच्छिओ कहं तुमए १ | जोइणिवीढे मारीउवदुदुयं रक्खियं मडयं ॥४२०॥ 
अवहियहियओ होऊण नाह ! निसुणेहि भणइ इयरो वि। साहेमि तयमसेसं जं वित्त मज्य रयणीए |॥|४२१॥ 
चिंतेमि मडयमारीभयमेयं कह णु नित्थरिस्सामि ? | हुं नायमप्पमत्तस्स किल भयं पभवद न कि पि ॥४२२॥ 
इय चिंतिकऊण आंबद्धपरियरों कड्डिऊणमसिधेणुं । जा चिद्वामि दसदिसं पेच्छंतो ता गए पहरे ॥४२३॥ 
फेकारुग्गिन्नजनलंतजलणजालाकराल्मुहकुहरा । परिपिक्ककलमर्पिगलनयणपहाछुरियद्सिविवरा ॥|०२४॥ 
घोरसिवारिंछोली समागया हक्किया मए जाव । सहस ति ता पणट्ठा सीहस्स करेणुमालू व्व ॥४२५॥ 

एत्थंतरे नरेसर ! बीए पहरम्मि घृमरसरीरो | कयमुंडमालवेसो पिंगलकेसोी चिबिडनासो ॥|४२६॥ 
नियमुहकुहरविणिग्गयहुयवहजालावलीहिं भुंजित्ता । उक्कत्तिकण नियखंधमडयमंसाइ' भकक्‍्खंतो ॥४२७॥ 
पप्फोडंतो बंभंडखंडयं पायददूदुररवेण । अट्टट्तहासभीसणपिसायविसरो समुब्भूओ ॥४२८॥ 
करकलियतरलछुरिणण भेसिओ निब्भएण जाब मए । सहस त्ति ता पणट्टी दिणमणिणो तिमिरनियरों व्व ॥४२९॥ 
तो देव ! तइयपहरे समागया डाइणीउ उद्ुमरा । फेक्कारनियरपूरियद्यिंतरा हक्कियाउ मए ॥४३०॥ 
नट्टाउ जहा उप्पन्ननाणिणो घाइकम्मपगडीओ । ता पहु ! तुरिए पहरे जं जाय॑ त॑ निसामेहि ॥४३१॥ 
वररयणघडियआहरणकिरणपब्भारहरियतमपसरा । उत्तत्तकणयभासुरतणुप्पहा कामघरिणि व्व ॥४३२॥ 
उब्वूढ़पढमजोव्वणमणोह्दरा तेसिरहरिणसमनयणी । कंदप्पमिल्लभन्लि व्व मोहवल्लि व्व तरुणाण ॥४३३॥ 
रोलंब-गवल-कज्जलसामरूओमुक्ककुंतलकलावा । तडितरलकत्तियकरा करालफेक्कारवरउद्दा ॥४३४॥ 


२०६ 


आख्यानकमणिकोशे 


पभणंती रे ! अज्ज वि चिट्ठसि याविद्व ! निट॒ठुर निकिट्ठ ! | तो पुहइपाल ! पत्ता घोरा मारी मह सयासे ॥४३५॥ 
जा पच्चासन्नठिया ता गहिया वामकरयलम्मि मए | उम्मोडिऊण हत्थं पठायमाणा तओ मत्ति ॥४३६॥ 
दाहिणकरयलछुरियाए लंछिया दाहिणम्मि उरुम्मि | तीए करकमलकडयं मज्क करे चिय ठियं सामि ) ॥४३७॥ 
अद्दंसणी गया सा सहसा रविमंडलस्स रयणि व्व । एत्थंतरम्मि तरणी समुगओ ते निएउ व ॥४३८॥ 

एत्तो य परमसेसं पि साहिय॑ तुम्ह तो भणइ राया | अहह ! अहो ! अच्छरियं अच्छरियमिमस्स पुरिसस्स ॥४३९॥ 
कोऊहलेण राया जंपइ दंसेसु मज्ञ त॑ कडयं । तो उद्धियाए कल्ठित्तु अप्पए पुहइपालस्स |४४०॥ 

पेच्छेइ नरवरिंदों कडए उक्कीरियं नियं नाम । दट्ठ्रण त॑ं बिचितह अहो ! किमेयं अधडमाणं १ ॥०४१॥ 

जम्हा कुमरीए करे पुरा पिणद्धं इमं मए आसि । ता कि नारीहत्यथे चडियं अहवा वि सा मारी ॥४४२॥ 

जइ एरिसाए मारीए कारिया रयणमंजरी कुमरी । ता नूण मयंकमणी जलूणफुलिंगे समुग्गिरह ॥४४३॥ 

इय चितिऊण राया सरीरचिंताछलेण त॑ दटठुं | जा जाइ रयणमंजरिपासे ता नियह त॑ सुत्त ॥००४॥ 

अवरं च वामपार्णी सुन्नं कडएण दाहिणोरुं च | बद्धं पट्रेण निरिक्खिऊण वज्जेण पहओ व्व ॥१४५॥ 

चितेह निवो पावाए मज्क वंसो कलंकिओ चेव । तो निग्गहेमि एयं नयरिजणं भकखह न जाव ॥४४६॥ 

इय चिंतिउं वलित्ता पुणरवि सीहासणे समुबविद्टो । मित्ताणंदं पुच्छइ कि केवलमेव तुह सत्त ? ॥०४७॥ 

विप्फुरइ अहव तुह कावि मंतसत्ती वि  तयणु सो भणइ । नरनाह ! मज्झ नियकुलकमागओ अत्थि मंतो वि ॥४४८॥ 
तो एगंते काऊण भूवई भणइ भद्द! मह कुमरी | नियमेण घोरमारी ता तीए विणिग्गहं कुणसु ॥४४९॥ 

विन्नवह सो वि सामिय ! सज्ञमसज्झं ति तं परिक्खेमि । नरबइणाउणुन्नाओ तओ गओ तीए गेहरम्मि ॥४५०॥ 
कि रयणिवीरपुरिसो समेह १ अह तायपेसिओ कोइ ? | इय चितिऊण कुमरी अब्भुटद्विय आसणं देह ॥४५१॥ 
जंपइ मित्ताणंदो कुमारि ! संभरसि रयणिवुत्तंतं ? | अबरं च घोरमारीरूवो जाओ तुह कलंको ॥४५२॥ 

नरवइणा वि हु त॑ मज्क अप्पिया गरूयनिग्गहनिमित्तं | एयं पुण सब्बं पि हु तुज्म निमित्तं मए विहियं ॥४५३॥ 
ता जइ करेसि करुणं आसाबंधं च नेसि सहलत्तं | ता एहि जेण इमिणा ववएसेणं तुम॑ं नेमि ॥|४५४॥ 

अह ना5डगच्छसि तो तुह रउद्दमारीकलंकमव्णेमि | त॑ पि मह जीवियब्बे संपह सलिलंजलिं देहि ॥४५५॥ 
चिंतेह तओ कुमरी सप्पुरिसो एस म॑ पयंपेइ । ता जामि अहं अहवा न व त्ति दोलायए हियय॑ ॥४५६॥ 

अहवा रक्‍्खेमि इमं इण्हि गुणरयणरोहणगिरिंदं | इय चिंतिकण पभणइ तुह जीय॑ वल्लहं मज्क ॥2२५७॥ 

ता भण ज॑ कायव्वं फेकारसु तुम॑ ति तेण सा भणिया । मह हुफुड़ त्ति भणिए सरिसवनिक्खेवसमयम्मि ॥४५८॥ 
इय संकेयं काउं समागओ भणइ देव ! मह सज्ञा । किंतु समप्पसु जाणं जेण निसाए मुयह देसं ॥४५९॥ 

अह कह वि देसमज्झे गच्छंतीए समुग्गई सूरो । ता अवलोइयमेत्ता मारी एसा तह चय ॥|४६०॥ 

भीएण पुहइपालेण अप्पिया पवणवेगवडवा से । अत्थमिए दिचसयरे वित्थरिए तिमिरपब्भारे ॥४६१॥ 

काऊण सिहाबंधं अभिमंतिय सरसवेहिं ताडित्ता । सा फेक्कारकराला वडवाएु चडाविया तेण ॥२६२॥ 
हरिस-विसाय-महाभयविवसेण नरेसरेण सह चलिओ । उम्घाडाविय पुरवरपओलिदारेण नीहरिओ ॥०६३॥ 
अक्कंतनयरिपरिसरधरवीढो प्मणिओ कुमारीए | आरुहसु वडबषिट्ट सो जंपह जामि पाएहिं ॥०६४॥ 

थोवंतरे पुणो वि हु भणिओ ना55रुहह कहइ परमत्थं | आणीया जह न तुम॑ नियकज्जे किंतु मह मित्तो ॥४६५॥ 
नामेण अमरदत्तो तुह पडिख्ब्वेण मोहिओ अहिय॑ | मह हिययवल्लहो सो तस्स निमित्तं तमाणीया ॥२६६॥ 

ता मित्तकलछत्तेणं सह निवसिज्जइ न एगठाणम्मि | इय निमुणिकण कुमरी हरिसियहियया विचितेह ॥४६७॥ 
एयस्स अहो ! मित्ते वच्छल्लं अहह ! नीइकुसलत्तं | अहह ! महापुरिसत्त परोवयारित्तणं अहह ! ॥४६८॥ 

अबरं च अमरदत्तस्स नाममेत्तेण पुलइयसरीरा । सा चित्तह सुहहेऊ मज्क कलंको वि संजाओ ॥०६८०॥ 
अणवरयपयाणेहिं पाडल्पृत्तस्स परिसरे पत्ता | एत्तो य अमरदत्तो मित्ताणंदे गए देसे ॥|9७०॥ 


जओ--- 


इओ य-- 


२३, व्यसनशतजनकयुवत्यविश्वासवर्णनाधिकारे भावभट्टिकाख्यानकम्‌ २०७ 
चिंतेह अहो ! अत्थाणरागिया अहृह ! बुद्धिहीणत्त | अणवेक्खियकारित्तं अहृह ! महामोहमूढ॒त्त ॥९७१॥ 


पाहाणघडियपडिमाणुरायरत्तेण किह मए मित्तो । विहिओ विण्सअतिही अहह ! महामोहमूढेण ? ॥|४७२।। 
ससिविमलनियकुलकमपहपब्भट्टण किह मए मित्तो । विद्चिओं विएसअतिही अहृह ! महामोहमूढेण ? ॥४७३॥ 
जणयसमसेट्टिसिक्खं परिहरमाणेण क्रिह मए मित्तो । विहिओ विणए्सअतिही अहह ! महामोहमूढेण ! ॥9७४॥ 
कंदप्पभिल्लमल्लीसल्लियहियएण क्रिह मए मित्ता । विहिओ विए्सअतिही अहह ! महामोहमूढेण १? ॥४७५॥ 
कह कद्द वि सरीरठिइ' करेइ सो सेद्रिणोवरोहेण । निहुयनिहुयं रुयंतो मुत्ताहलथूलअंसूहिं ॥९७६॥ 

अह कहमवि संपत्ते दुमासपञ्जंतअवदिदिवसम्मि । आबद्धपंजलिउडो जंपह सेट्टि अमरदत्तो ॥४७७॥ 

ताय ! खमेज्वसु सब्वं अवरद्धं तुज्झ जं मए कि पि। नियजणयनिव्विसेसो संजाओ मज्झ त॑ जम्हा ॥४७८॥ 
जेण न विज्जइ मित्तो मित्ताणंदो जयम्मि जीवंतो | जा अमणुन्न' न सुणेमि तस्स ता देहि में कट्ठे ॥०७९॥ 

त॑ निसुणिउण सेट्टी कुमरमहादुबखसल्लियसरीरों | सो पडरजणसमेओ विलवंतो रयइ कट्टाईं ॥४८०॥ 

तो पठरजणो सब्बो कयंजली पणमिरों कुणइ लल्लि। अत्थमइ जाव तरणी ता कुमर ! तुम विलंबेसु ॥४८१॥ 
अवबरो वि जणो मंदिर-देवउल-पयार-तरुवरारूढो । मित्ताणंदागमणं अणिमिसनयणो पलोएइ ॥२८२॥ 

अह दिवससेससमए समागओ सो न जाव ता कुमरो । पज्बालाविय क्टे ण्हाइत्तु तओ सचेली वि ॥४८३॥ 
जा देइ तत्थ झंपं जलंतजालाकरालजलणम्मि | ता हाहारवपुव्व॑ वारेइ जणो भणइ एवं ॥४८४॥ 

एगो5ह आ सवारो एगो पुरिसो समेइ सिग्घगई । इय जंपंताण तओ मित्ताणंदों तहिं पत्तो ४८५॥ 

भणइ य एसा तुह चित्तचोरिया कुणसु निग्गहमिमीए । नियपाणिपीडणेणं ति तयणु आलिंगए मित्तं ॥४८६॥ 
तो अमरदत्तकुमरों उच्छल्यातुच्छहरिसपब्भारो । आभासिऊण पुच्छइ समग्गमवि तीए वुत्तंतं ॥४८७॥ 
कन्नंतपत्तनयणि छणरयणीयरसमाणवरवर्य्ण । उब्भिज्जमाणसिहिणिं मणहरक॒लहंसगहगर्माणि ॥३८८॥ 
अवलोयंतो चिद्ग॒इ सब्वंगं रयणमंजरिं जाव । सेट्टी वि तुद्ठहदियओ सविम्हयं चितए ताव ॥०८९॥ 

कि पुत्तलिया घडिया दरट्ठ्रणं रयणमंजरिं कुमारिं ! । पुत्तलियिदंसणाओ अहव इमा निम्मिया विहिणा ! ॥४२०॥ 
अह सेट्टी उद्धित्ता कट्टे फेडित्तु अमरदत्तस्स | कारेइ पाणिगहणं सुमुहुत्ते तम्मि समयम्मि ॥४<१॥ 


तत्थ अपुत्तो राया पंचत्तं पाविओ गयदिणम्मि । रायनिमित्तं दिव्वाईं पंच अहियासए लोओ ॥५९२॥ 
ताणि तओ तिय-चच्चर-चउक्-रच्छासु परिभमंताणि । आगंतुं नवपरिणीयकुमरपासम्मि पत्ताणि ॥४२३॥ 
गलगज्त्ता अहिसिंचिऊण वरकणयकल्ससलिलेण । त॑ सुंडादंडेणं हत्थी संठबइ नियखंघे ।|४९४॥। 

छत्तेण अलंकरिओ ढलिए सयमेव चामरे तस्स । हयहेसारवपुव्व॑ जयतुररवों समुच्छलिओो ।|४९५॥ 
पणमिज्जन्तों मंडलिय-मंति-सामंत-सुहडविंदेहिं । बंदियणुग्घु दुजओ तओ पयद्टो पुरपहम्मि ॥४९६॥ 
एत्थंतरम्मि अहिणवनरनाहपवेसहरियहिययाओ । पमणंति पहिद्वाओ परोप्परं पुरपुरंधीओ ॥४९७॥ 

अह ताण आह एक्का सकयत्था रयणमंजरी देवी । जीए रईए व दइओ संपत्तो कुसुमबाणों व्व ॥४९८॥ 
अह अवरा हरिणच्छी पभणइ सिरिर्यणसारसेट्टी वि। सकयत्थो जेण हले ! जणएण व रविखिओ कुमरों ॥४९९॥ 
मित्ताणंदं वन्नह हले ! करिमल्नेण ? जंपए कावि ? । नियमित्तजीवियकए परिभमिओ जो विदेसेसु ॥५००॥ 
इच्चाइ हरिणनयणीपमभणियवयणाइं सो निसामेंतो । पवितिय नरिंद्भवर्ण पवरे सोहासणे विसइ ॥५०१॥ 

तो मंति-मंडलेसर-सामंतेहिं सुवन्नकलसेहिं। अहिस्सिचिओ कुमारो वज्जिरवरतूरसद्देर्हि ॥५०२॥ 

मित्ताणंदो मंतीपयम्मि संठाविओ तह य सेट्टी । नियजणयपए सिरिस्यिणमंजरी अग्गमहिसि त्ति ॥५०३॥ 





१, करइ रं | 





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तथा हि-- 


आदश्या नकमरणिकोशे 


अह विसयसुहपरव्वसचित्ताणं ताण जाइ जा काछो । मित्ताणंदेण तओ विज्ञत्तो नरबई एवं ॥५०४॥ 

तं॑ देव ! मडयवयणं अज्ज वि हियए खुड़कए मज्क | तो गंतृणं दूरे कि पि हु काल विलंबेमि ॥५०४५॥ 

तो भणइ निवो मह बाहुवज्मपं जरगयस्स तुह न भय॑ । ता मित्त ! असरिसेणं कि देसंतरकिलेसेणं ? ॥५०६॥ 
इय रयणमंजरीए वुत्तो वि हु जाव नो घिईं लहइ । तो तेण पेसिओ सो भडयणजुत्तो वसंतपुरे ॥५०७॥ 
अणुगंतृर्ण क_ वि हु पयाणए भणइ भडयणं राया । रे रे ! मह कहियव्वा सुद्धी पत्तस्स मित्तस्स |५०८॥ 
आलिंगिऊण मित्तं पुहइवई दुम्मणो पडिनियत्तो । मित्ताणंदविरहिओ गमेइ काल निराणंदो ॥५०९॥ 

जाव न कोवि हु मित्तस्स कहइ वत्तं पि पडिनियत्तेड' । पेसित्तु तओ पुरिसे संभाल तो तहिं नत्यि ॥५१०॥ 
अह अन्नया नरिंदो उज्जाणगयं मुणित्तु मुणिनाहं | सिरिधम्मघोससूरिं पणमइ अबरोहसंजुत्तो ॥५११॥ 
उवविट्ठट नरनाहे धम्मकहं कहह मुणिगणाहिवई । नरनाह ! इह असारे संसारे सारया नत्यि ॥५१२॥ 


खरपवणपहयपोइ णिदरूगजलर्बिदु चंचल जोय॑ | लोललव॒लीदलावलिचवलतरा पेम्मपरिणामा ||५१३॥ 
नवजलहरसिहरावलिविलसिरतडिलहचंचला रच्छी । करिकन्नतालतरला नराण नवजोव्वणारंभा ॥५१४॥ 
अणिवारिज्प्पसरा सुहा-5सुहा कम्मपरिणई जेण | ता जिणधम्मं मोत्तु सरणं न हु कि पि संसारे ॥५१५॥ 
एत्थंतरे नरिंदेण पुच्छितओं पणमिऊण मुणिनाहों । पत्तों मित्ताणंदो किमवत्थं संपयं सामि ! ॥५१६॥ 

तो भणह मुणिवर्रिदों निमुणसु नरनाह ! मित्तवुत्तंतं । लघित्तु दुरदेसं वणम्मि आवासिओ जाव ॥५१७॥ 
भोयणसमए भीमा भिल्लाणं ताव निवडिया धाडी । मोत्त' मित्ताणंदं भएण नद्ठा भडा सब्बे ॥५१८॥ 

सो वि हु पलायमाणो तिसिओ पत्तों सरम्मि सिसिरजले | विहियसलिलावगाहो सुत्तो नग्गोहतरुमूले ॥५१९॥ 
तत्तो अकालदारुणकसिणभुयंगेण तत्थ सो डक्को । दिट्टो य घोरगरलेण घारिओं तावसेण तओ ॥५२०॥ 
नह-नयण-दसणनीलत्तणेण नाऊण नागदट्ठटी त्ति। अहिसित्तो अभिमंतियसलिलेण समुट्टिओ सहसा ॥५२१॥ 
साहेइ तस्स तावसमुणीसरों विसहरस्स वुत्तंतं । पुच्छह य वच्छ ! तं कत्थ पत्थिओ कहसु एगागी १ ॥५२२॥ 
तो तेण तस्स पणमित्तु साहिओ पृव्वबइयरों सब्वो । आासीसं दाऊ्ण नियासमं तावसम्मि गए ॥५२३॥ 

चितेदद सुधीरेहिं वि विहिपरिणामी खलिज्जइ न जम्हा । मह मरणनासिर॒स्स वि समागयं दारुणं मरणं ॥५२०४॥ 
जीवाविओ म्हि नवरं निकारिमपरमबंधुणां रिसिणा | ता कि परिभमिएणं ? मित्तसयासम्मि वच्चामि ॥५२५॥ 
इय चिंतिडं पयट्टी पाडलिपुत्तम्मि पच्छिमाहुत्तो | एत्थंतरम्मि निदयमाणसचोरेहिं सो गहिओ ॥५२६॥ 
नाइत्तयाण पासे विक्किणिओ तयणु ते वि नाइत्ता । नियदेसं वच्चन्ता संपत्ता नयरिमुज्जेणि ॥५२७॥ 
आवासिया य बाहिं निसाए छिद्द लहित्तु सो नद्ठीं | तो मडयवर्ड दट्टूं | धसक्षिओ जत्ति हिययम्मि ॥५२८॥ 
उच्छलियमहामयकंपमाणगत्तो पंणद्वधारिट्ठी । किकायव्वविमूढों पविस॒ह पायारखालेणं ।।५२९॥ 

तम्मि समयम्मि नयरी निरंतरं चोरहरियसब्वस्सं । जाणित्तु पुहह॒पालेण ताडिओ उब्मडतलारो ॥५३०॥ 
उबउत्तमणो सो तत्थ जाव जाएइ तककरपवेसं । मित्ताणंदो खालण पविसिरो तेहिं ता दिद्ठो ॥५३१॥ 

घरिऊण तओ वालेहिं कट्टिओ बंधिऊण पिट्ठति । निटठुरमुसुंढि-मोग्गर-कत्तरि-पन्हिप्पह रेहिं ॥५३२॥ 

रेरे पाविट् ! निकिट् ! दुष्ठ मुसिऊण नयरिमुज्जेणि । किह छुट्टिसि ? त्ति भणिऊकण नियभडे सो समाइसइ ॥५३३॥ 
उब्बंधह वडपायवसाहाए सिप्पसरियतीरम्मि | आएसाणंतरमेव तेहिं उप्पाडिओ सहसा ॥५३४॥ 

एत्थंतरम्मि चित मित्ताणंदों मणम्मि मह तइया । जं॑ं आसि मडयभणियं समागओ अबसरो तस्स ॥५३५॥ 
अवि कुवियवज्जपाणिप्पमुक्ककुलिसं पि रविखर् सक्‍का । न हु पुतव्वभवसमज्जयसुहा-5सुहो कम्मपरिणामो ॥५३६)॥ 
अवि उब्मडमयरहरोा निय भुयदंडेहि तीरए तरिउं। न हु पुव्वभवसमज्जियसुहा-5सुहो कम्मपरिणामो ॥५३७॥ 


मिल अब 


१, निवकारणपरम० रं०। २, प्रनष्टधाष्य्यः । 


२३. व्यसनशतजनकयुथत्यविभ्वासवर्णनाधिकारे भावभटिकाखल्यानकम्‌ २०६ 


अबि ससुरा-5सुरभुवर्ण जिप्पइ समरम्मि वीरसत्तेहिं। न हु पुव्वभवसमज्जियसुहा-५सुहो कम्मपरिणामों ॥५३८॥ 
पुरिसक्क्रारपरेहिं वि विहिपरिणामो खलिज्जइ न जम्हा । ता एरिससंसारे मा तम्मसु जीव ! मणयं पि ॥५३९॥ 

इय चितंतो वडपायवम्मि उब्बधिओ तलारेंहिं। तह कीलिरगोयालाणुन्नइया वि हु मुहे पडिया ॥५४०॥ 

इय मित्तमरणनिट्टुरवज्जपहारेण ताडिओ व्व निवो । सह रयणमंजरीए घस त्ति धरणीयले पडिओ ॥५०१॥ 
नियपरियणेण सित्तो जलेण उबलद्धचेयणो राया । लल्लक्कमु ककपोक्कों अक्कंदइ गरुयसद्देण ॥५४७२॥ 

हा मित्त | मित्तरहियं व नहयलरूं मज्य सोहइ न रज्ज । मणवल्लह ! तुह बिरहे भुवणमरन्न॑ व पडिहाइ ॥५४२॥ 
हा बंधव | तइय खिय निवारिओ त॑ मए विदेसम्मि | गच्छंतो तह वि तुम न ठिओ कम्माणुभावेण ॥५४४॥ 

हा | तहया मज्क कए आणीया रयणमंजरी देवी । अकगय्रन्नुणा मए पुण तुह साहेज्जा पि न य विहिय॑ ॥५४५॥ 
विल्वइ देवी वि तओ सल्लंती मुणिजणस्स हिययाइ' । हा हा देवर ! गुणनिहि ! निकक्रारणपरमकारुणिय ! ॥५४०६॥ 
हा मित्तकज्जवच्छल ! परोवयारेक्रकरणतल्लिच्छ ! | हा सच्छासय ! सुंदर ! ता इण्हि कत्थ दीसिहसि ? ॥५४७॥ 
हा ! तइया मज्ञ कए विहियाओ तए अणेगबुद्धीओ । नियमरणवसणसमए हा ! भुल्लो कह तुम वच्छ !  ॥५०८॥ 
हा हा ! सुपुरिसरयणं अवहरिऊर्ण कयंत ! कि पत्तं ? | हा हा हयविहि ! निम्धिण ! पुज्जंतु मणोरहा तुज्ञ ॥५४९॥ 
एत्थंतरम्मि सूरी करुणारसरसियमाणसो भणइ | नरनाह ! एरिसा चिय संसारों # विसाएण १ |॥|५५०॥ 

जम्हा संसारवियाणएहिं जिणवयणभावियमईहिं । न हु सोगो कायब्वों नट्टविणट्वम्मि कज्जम्मि ||५५१॥ 

किर कस्स थिरा लच्छी ? कस्स जए सासय॑ पिए पेम्मं ? । कस्स व निश्च' जीयं ? मण को व न खंडिओ विहिणा ? ॥५५२॥ 
अन्न च हयकयंतोी न नियह दढपेम्मपरवसाण दुहं । न गणइ कुड्डंबभंगं न य चितइ मित्तविच्छोह ॥५५३॥ 

न ये परिभावह पिय-माइपभिदवुड्धत्तणं नवरमेसो । सच्छंदसुहं वियरह भंजंतो मत्तह॒त्थि व्व ॥५५४॥ 

इय एवभावणाए संसा रासारयं वियाणित्ता | परिहरसु राय ! सोय॑ कुगइकरं सुगइपडिवक्खं ॥५५५॥ 

इय निसुणिऊण सोय॑ परिहरिऊर्ण पयंपइ नरिंदों । मुणिनाह ! मज्झ मित्तो मरिऊर्ं कत्थ उबवन्नों ? ॥५५६॥ 

तो भणइ मुणिवरिंदों मरिऊणं रयणमंजरीगब्भे । जो चिट्दइ सो होही तुह पुत्तो कमलगुत्तो त्ति ॥५५७॥ 

तो निययमित्तपुत्तत्तणेण परितुट्टमाणसो राया । जंपइ पुव्वभवरम्मि भयवं ! अम्हेहिं कि विहिय॑ ? ॥५०८॥ 

मित्तस्स जेण मरणं मारिकलंक॑ च अग्गमहिसीए । बधूहिं मह विओगो कहइ तओ मुणिवरिंदों वि ॥५०२॥ 

इह तइयभवे खेमंकरो त्ति कोडंंबिओ तुम आसि । सच्चसिरी तुह दइया कम्मयरों चंडरुद्दो य ॥५६०॥। 

अह अन्नया कयाई कम्मयरो खेत्तरक्खणनिमित्तं । गच्छंता संपेच्छह कप्पडियं वाडिअंतरियं ॥।५६१॥ 
नवचवलयसिंगाओ गिए्हंतं हक्किउं भणइ एवं । रे रे ! एयं पावं उब्बंधह रुक्खसाहाए ॥५६२॥ 

तो कप्पडिओ तं॑ निसुणिऊकण अइदूमिओं नियमणम्मि | कम्मयरों वि हु खेत्ताओं आगओ ताब गेहम्मि ॥५६३॥ 

ता राय ! तुज्क वहुयाए भुंजमाणीए लमग्गियं गलए । भणियं सच्चसिरीए कि रक्खसि ? भक्खसे न थिरा ? ॥५६४॥ 
अह अन्नया नरेसर ! कम्मयरो जंपिओ तए एवं | भद्द ! तुमं॑ मह कज्जे गच्छसु अमुगम्मि गामम्मि ॥५६५॥ 

सामि ! अहं अक्खणिओ पमणइ कज्जेण निययसयणाण । अह सो तुमए भणिओ मिलंतु मा तुज्क ते सयणा ॥५६६॥ 
तुब्भेहिं तओ दुब्भासिएण समुवज्जियं असुहकम्मं । एत्थंतरम्मि पत्तं मुणिजुयलं तत्थ भिक्‍खट्ठा ।५६७॥ 

दद्वण तयं तुमए पयंपिया पणइणी मुर्णिदाण । भत्तं पाणं वियरसु उत्तमपत्तं जजो एए ॥५६८॥ 
तव्वयणसवणसमयुच्छलंतरोमंचकंचुयंगीए । महुराहारेण तओ मुणिणो पडिलाभिया तीए ॥५६२॥ 

चितेइ चंडरुद्दो निययमणे पुत्नभायणमिमाणि । जेणेरिसाए भत्तीए एत्थ पडिलाभिया एए ||५७०॥ 

तो दाणफलेण तए सकलत्तेणं समज्वियं राय ! । अणुमीयणेण तेण वि समज्जयं भोगकम्मं ति ॥५७१॥ 

एत्थंतरम्मि तुम्हाण उबरि आउक्खए नहयलाओ । तडयडिऊणं पडियं तड त्ति तडिमंडल्ं तत्थ ॥५७२॥ 

मरिऊण तओ सुहभावलद्धसोहम्मदेवलोगम्मि | उप्पज्जिऊण नेहेण तत्थ भुंजित्तु सोबखाईं ॥५७३॥ 


२१० 


आखश्यानकमणिकोशे 


तत्तो चइत्तु नरनाह ! अमरदत्तत्तेण तं जाओ । सच्चसिरी वि य सिरिरियणमंजरित्तेण उववन्ना ॥५७४॥ 

जाओ कम्मयरो वि हु मित्ताणंदत्तणेण नरनाह ! । जं तहइया दुब्बयर्ण भणियं तेणेह तुह राय ! ॥५७५॥ 
बालत्तणाओ जाओ तस्स विवागेण बंधवविओगो । जाओ य तुज्ञ दह्याए वहुयदुब्भासिणण इमो ॥५७६॥ 
रक्खसिवाओ दुसहो मित्ताणंदेण जं पुरा भणियं । कप्पडियवहयरम्मि तेणं सो पाविओ मरणं ॥५७७॥ 
एत्तियमेत्तस्स वि भासियस्स नरनाह ! एरिसविवागों । जो पुण कसायवसयाण होइ त॑ मुणइ सब्वन्नू ॥५७८॥ 
परिहरिऊर्ण ता पुहइपाल | दुष्बयणगोयरं पावं । जिणनाह भणियधम्मे समुज्जुओ होसु सुगइपहे ॥५७९॥ 
इय निसुणिउं नरिंदों देवीण समन्निओं गओ मुच्छं । चंदणजलेण सित्तो सचेयणों कहद सूरीण ॥५८०॥ 
तुब्मेहिं सामि ! जं मज्झ साहियं नाणचक्खुणा चरिय॑ । तं पच्चकक्‍्खं जायं जाईसरणेण सयलं पि ॥५८१॥ 
किंतु मडएण तइया जं भणियं तत्थ मज्क संदेहो । ता साहसु मह भयवं ! जम्हा न चवंति मडयाईं ॥५८२॥ 
साहेइ तस्स सूरी सिंगग्गाही मरित्तु कप्पडिओ । भवियव्वयावसेणं तत्थ वडे वंतरो जाओ ॥५८३॥ 

दटुं मित्ताणंदं पुब्वकयं वइरमणुसरंतेण । समहिद्धिऊण मडयं पयंपियं तेण तो तइया ॥५८४॥ 
तव्वयणसवणसंजायगरुयवेरुगसंगओ राया । आबद्धपाणिपउमो पणामपुव्व॑ पयंपेह ॥५८५॥ 

भयवं! भीमभवाडविपरिभमणुब्भूयभयपकंपंतो । परिवालिऊण कुमरं पव्वज्ज धुरं धरिस्सामि ॥५८६॥ 

हय पभणिउं नरिंदों मुणिर्विंदं वंदिउः गओ नयरे । सह रयणमंजरीए उवभुंजइ विसयसोक्खाईं ॥५८७॥ 
कालेण कमलगुत्तं पुत्तं रज्जे ठवित्तु सकलत्तो । निक्‍्खंतो सुहचित्तो पासे सिरिधम्मघोसस्स ||५८८॥ 
छट्ट-5ट्टम-दसम-दुवालसाइं काऊण तिव्वतवचरणं | कयभत्तपरिच्चाओ सब्बट्टें सुवरो जाओ |॥५८९॥७।॥ 

इय तेण मित्तसंतियमणन्नसज्ञ॑ पओयणं विहियं । अहमबि कइपयपयमासणेण तुह मित्तमसमं ति ॥|५९०॥ 

ता मम वि मित्त | कज्ज तुममेत्तियमज्ज कुणसु पसिऊणं । जह तुज्ज पए पेच्छामि जाव जंपंति एयाणि ॥५६१॥ 
ताव य घडियाहरए रयणीए वज्जिओ तइ्यपहरो । ता सो चितइ धुत्तीए वंचिओं कहमहमिमीए १ ॥५६२॥ 
जा किर मारिउ रूग्गो तं जक्खो तिक्खधारछुरियाए | ताव य दीणमुहाएं पर्यपियं पायवडियाएु ॥५४३॥ 
अहमित्थिया अणाहाउणुकंपणिज्ञा सहायवियला य | पयईए अप्पसत्ता मज्क वहे तुज्स गरुयरस ॥५९४॥ 
लोयम्मि जसो कित्ती वन्नो सद्दो य केरिसों होही १ । इय परिमावसु कज्जे भवंति गरुया थिरारंभा ॥५९५॥ 
परमेरिससिक्खाए कि मह दिल्नाए तुज्स विसयम्मि १ | त॑ चेव बुद्धिमंतो सुंदरमियरं व जं॑ मुणसि ॥५९६॥ 
परमहमइईव तुह दंसणस्स तित्ति न देव ! पावेमि | ता सामि ! संपयं पि हु कहाणयं सुणसु तुममेयं ॥५९७॥ 
इय सो विलक्खवयणो वट्ढ३ दोलायमाणसो जाव । तो तीए मलयविसयाए महुरराएण पारद्धं ॥५९८॥ 
कहिउं संरंभेणं चरियमिमं चारुदत्त[सिद्ठटि|स्स । अप्पुन्वसंधिबंधेण विरइयं विउसहिययहरं ॥५९९॥ 


[ चारुदशसचरिडउ ] 


इह भरहि अत्थि पुरि नामि चंप, पररायचक्रभयनिप्पकंप । 
धणुकुडिलवंकपायारवलय, सुमहंतहिमालयसरिसनिलय । 
पयपणयपुरंदररइ्यपुज्जु, जहिं मोक्खि पत्तु जिणु वासुपुज्च । 
जियसत्तु नामु जियसत्तु राड, तहिं अत्यि अखंडियसुहडबाउ । 
अवरो वि अत्थि तहिं सेट्टि भाणु, सुहि-नयणक्रमलवणसंडभाणु । 
जणवन्नणिज्ज अकलंकदेह, उन्नय जिव बीयाचंदरेह । 

नामि सुभद्द तसु भज्ज हुयइ, अणुरत्तिय जइ पर देहि जु जुइय । 


१-०२, नाम २० । 


२३. व्यसनशतजनकयुयत्यविश्वासवर्णनाधिकारे भावभट्टिकाख्यानकम्‌ २११ 


सहु तीए सुहउ सबु गेहवासु, जम3पुत्तु एक्कु परदोसु तासु ॥ 
कुलवंसुद्धारणि, पुत्तद कारणि, सेट्टि सभज्बु वि दुक्खियउ । 

संसारि महालइ, एवदुहालह, माइ कवणु किर सुत्यियड ॥१॥६००॥ 
हय जा जिणिंदपूयणरयाईं, चिट्ंति निसामियजिणमयाईं । 

ता तत्थ नाण-चारित्तपत्तु, चारणमुणि जिणहरि कोवि पत्तु । 

पुच्छियठ सुभद्दईं पुत्तजम्मु, मुणिराउ वियाणियसमणधम्मु । 

जाणिबि गुणु नाणिण तीए कोवि, होहीइ भणेविणु गयउ सो वि। 
आहयउ तक्खणि तीए गब्भु, जो अज्नह महिलह पुन्नलब्भु । 
नवमासिहिं अद्धट्टमदिणेहिं उप्पन्नु पुत्तु तहिं सहुं गुणेहिं । 
सुहलक्खणलक्खियचारुगत्त, तसु नामु पहुद्ठिउ चारुदत्तु । 

वड़ तु अइच्छियबालभावु, अब्भसियसमत्थकलाकलाबु ॥ 
हरिसीहपमुक्खिहिं, अइसयदक्खिहि मित्तिहिं सहियठ निउणमह | 
अगमंदिरिपव्वइ, कीलणभव्वह, गयउ जेत्थु गिरिनइ बह ॥२॥६० १॥ 
तहिं नइहि पुलिणि तिणि जंति जंति, थी-पुरिसहं दिद्टिय पयह पंति । 
अणुमग्गि तीए विप्फुरियथामु, कयलीहरु गउ सुंदेरधामु । 

तहिं खग्गु दिटठु सेज्ञासणाहु, नररयणु अन्नु दुक्खिउ अणाहु । 
अयकीलिहि कीलिउ रुरत्रिंख सहिउ, तसु दुक्खि निरारिउ हियइ वहिउ । 
जा जोइउ ताव<ज्ज वि सजीउ, परितम्मह सरसदयापरीउ । 

अवलोयइ जावहि तासु खग्गु, ता पेच्छट# ओसहितिगु विलग्गु । 
उक्कीलिय तावुक्कीलिणीए, संरोहिय वणसंरोहणीए । 

चेयन्नु कयउ संजीवणीए, पडुपन्नु हुयड ओसहिमणीए ॥ 

चितियद न जं मणि, न य दीसइ जणि, जुत्ति वियारि न जं घड३ । 
त॑ पि हु सो पाविउ, तिणि जीवाबिउ, सब्बु सपुन्नहं संपड३ ॥३॥६०२॥ 
तउ अग्गइ दिद्ठडु चारुदत्तु, ति भणिउं मज्म तुहुं बंधु मित्त । 

जिम्व कीलिउ हउं इह अकयपाउ, अक्खणह रूग्गु जिह एव्थु आउ । 
वेयड्ड नामु भारहि गिरिंदु, सुरयणिहि समन्निउ न॑ सुर्रिंदु । 

सिवमंदिरु दाहिणि तासु नयरु, तहिं राउ महिंदविक्षमु सखयरु । 
अमियगइनामु हडउं तासु पुत्तु, चिट्ठामि जाव सुहसंपउत्तु । 

धूमसिह- गउरमुंडाभिहाण, दुइ मज्क मित्त | हुय गुणपहाण । 
हिरिमंतु नामु नगु कलियवोमु, तावसु माउलउ हिरन्नरोमु । 

तहिं निवसइ मज्झु सिणेहवंतु, हउं तहिं समित्तु गउ जंतु जंतु ॥ 

तसु धीय मणोहर, पुन्नपओहर, विहिवाहिं परिकम्मविय । 

तावणि अन्नाणहं, हरणि जुवाणहं, कामभल्लि ने निम्मविय ॥9॥६०३॥ 
सुकुमालिय नामि मज्क कज्जि, सा ताइईं मग्गिय नेहसज्जि । 

सा मइं वीवाहिय सुहइ लग्गि, सहु तीए वसउ जिम्ब सक्‍कु सग्गि । 





१. राय ३०। २. तोइ रं० । ३. बेयडू रं० । ४. नाम रं० । ४. गउरसुंडा रं० । ६. जिम रं० । 


२१२५ 


आश्यानकमणिकोशे 


सा तारिसकुलसंभव विसिट्ट, कश्या वि धूमसिहिं सहुं विणद्ठ । 
अहमवि भमामि रिउभावजुत्तु, न यणामि किंपि परमत्थु तत्तु । 
कीलानिमित्तु आइयउ एव्थु, सहुं भज्जईं सेज्जहिं रमउ सत्यु । 

पाविष्ठटि आवि ओबद्धु अज्जु, एयारिसमित्तहं पडउ वज्जु । 

गउ दुक्खु लेवि सहु तोए पावु, धूमसिहु अहव दहणस्सभावु । 

धिति ! धिसि ! धिरत्थु जगि महिलियाहं, मित्तद वि विसयविसकवलियाहं ! ॥ 
नामाइ मुणेविणु, सुकिउ सरेविणु, पुण दंसणु भणि सुद्धमह । 
वेरमापवन्नउ, चित्ति विसन्नउ, कर जोडिवि गड अमियगइ ॥५॥६०४॥ 
तसु ठावह सो वि हु चारुदतु, गडउ गेहि निद्धसुहिसंपउत्तु । 
विज्नायसमग्गकलाकलावु , जोव्वणि संपत्तु विसुद्धभावु । 

सव्वत्यु नामि माउलउ तासु, धण-कणसमिद्धु वड्लियविलासु । 

तसु अत्यि पढमजोव्वणरवन्न, रज्नावि जेव मित्तवइ कन्न । 

सहु तीए तासु वीवाहु जाउ, संपन्नसयणगरुयाणुराउ । 

मित्तवइसमरउं पर चारुदत्तु, कलरसिउ न भोगहं देह चित्तु । 
दुल्ललियवयंसह मज्मि छुद्धु, नं बद्घु बिरालउ जेत्थु दुदूधु । 
सामग्गिवसिण भोलियउ नेहिं, पाडियउ वसणि पावेहि तेहिं ॥ 
अप्पणइं कुवार्सि, भवअब्भासिं, एक्कु जि जीवह पावरइ । 
तारिसववएसि, गुरुउवएसि, केव न पसरह विसयमइ ॥६॥६०५॥ 
जहिं कुट्टणि गरुय कलिंगसेण, तसु धूय सुरूव वसंतसेण । 

तहिं वेसावाडइ तेहिं छुद्वु, वेसह सरूवु अमुणंतु मुद्धु । 

अहु वेस विसिद्दिय हुंति केव, उद्चिट्ठिय निग्धिणि सुणहि जेम्ब । 
धणलुद्धिय किम्व॒ कोढिउ रमंति, निद्धणु गरुओ वि परिच्चयंति । 
मणिद॒ष्टिय चाडुसयईं करंति, पररंजणत्थु कबर्डि मरंति । 

जउं पोसगु पुज्जह महुर ताव, अवरत्थ निबवककलिय पाव । 

रूयडउ सो ज्वि सोहगिउ सो जि, धणवंतु जु रंजहिं किंव अभोज्ि | 
निप्फर्लिं सहुं सेज्जहिं न उ सुयंति, झंकोलवि तरुवरु जिम्ब॑ मुयंति ॥ 
सहु तीए विलासिहिं, पसरियहासिहिं, सोलह कोडि सुबन्नह । 
वड्डियउक्करिसिहिं, बारह वरिसिहिं, निहणह नीय रबन्नह ॥७॥६०६॥ 
निग्धिणद निरूविवि बहुपयारु, मोसारिय जाणिवि छुत्तसारु । 

पाविद्ठ३ पाइवि मज्जपाणु, बाहिरि छड्डाबिउ सावमाण । 

उद्टिव गउ गेहि विसन्नचित्तु, तं दिद्ू कुमुणि जिम्ब नद्टवित्तु । 
नरवइहि गेहु जिम्व विगयसोहु, मुणिमाणसु जिम्व परिगलियमोहु । 
काउरिसिं सरिसु विणट्वदारु, भग्गालउ जेम्व जुवाणिवारु । 

मित्तवइ निएविणु कंतु पत्तु, उक्खिवि अब्भुक्खणनीर' पत्तु । 


१. पुणु रं० । २. समिद्ध रं०। ३, जेय रं० । ४. जिम रं० । ४. नीर रं० । 


१, जेम रं०। 


२६३. व्यसनशतजनकयुवत्यधिश्वालवणनाधिकारे भावभट्िकाल्यानकम्‌ २१३ 


आसणदाणाइसु कियपयत्त, आपुच्छिय जणयहं तणिय वत्त । 

सोएविणु माया-वित्त बेवि, नीवियहिं कलत्ताहरणु लेवि ॥ 

वित्तासइ पत्थिउ, मग्गि सुसत्थिउ, अत्थोवज्जणि दिज्न उरु । 

माउलइईं समग्गठ, सोहण >ग्गउ, पत्तु उसीरावत्तपुरु ॥८॥६०७॥ 
कप्पासु तेत्थु लदयउ महत्थु, आवंतह दवि दड्डउ समत्थु । 

माउलइ विउत्तउ अत्थकामु, वेलाउलु पत्तु पियंगुनामु । 

पिउमित्ति पेरिउ तहिं अकीवि, गउ जाणवत्ति लहु जबवणदीवि | 

तत्थ वि य मुकवाणिज्जि खोडि, तिणि अट्ट विढत्त सुवन्नकोडि | 
आवंतह फुद्टं जाणवत्तु, थीगुज्झु जेव हारवियवित्तु । 

दिणसत्तगि फलहिं तरेवि नीरु, आसमपउ पाविउ कहवि तीरु । 
दिणयरपहु तहिं परिवाउ दिट्‌ठु, गिरिविवरि गहिरि तिणि सहु पविट॒ठु । 
चउपुरिसमाणि रसकूवि खित्तु रज्जूपओगि भयविहुरचित्तु ॥ 

अग्गेरह पडियद', नरिं धणनडियइं, रसह सरूवु निवेइयउ । 

सो वि हु तहिं खित्तउ, दुहसंतत्तउ, वसणु सुणेविणु वेबियउ ॥९॥६०८॥ 
सुमरेविणु सावगकुल पहाणु, सुमरेविणु जिणवरु गुणनिहाणु । 

सुमरेविणु गुरु वेरगपडिउ, भावेइ भवन्नव दुक्खनडि3 । 

ते धन्न सउन्न कयत्थ नरा, जे चत्तसंग वय-नियमघरा । 

महु एवं जिणेसरपयसरणू, नवकारु निवारियजरमरणू । 

कहिं तारिसु पाविवि धम्मु सुइ' ? कह एत्थ मरेवर्ड एव मह १। 

त॑ नि्ुणिवि तलि बोल्लियइ नर्रिं, मा भद्द ! विसाउ महंतु करी । 
जेण5ज्ज वि अत्थि उवाउ तऊ, महु पुणु रसि खद्धउ अद्घुसऊ | 

इह आवह गोह महंततणू , रसु जाइ पिएविणु एक्क्रु खणुं ॥ 

जह जग्गहि पुच्छिहि विरूगहि [लग्गहि] गोहहि, ता आवइ तरहि । 
अह उज्जम मुक्कड, आयहं चुक्रउ, ता एत्थ वि मद जिम्ब मरइ ॥१०॥६०९॥ 
जाव5च्छह अवहिउ एक्क मणी, तावितर्हिं गोहहि सुणइ झुणी । 

जा वलइ पिएविणु कूबरसू , ता ऊमगउ गाढउ पुच्छि तसू । 

नरगाउ जेव सुहपरिणईए, काराउ व कुबि सुहनिववईए । 

नावाए व जलहिनिमज्जणाओ, विरईए व पावपवत्तणाओं । 

जणणीए व दुहगब्भालयाओ, नीसारि3उ तीए वि गिरितलाओ । 

केत्तिउ वि जाइ जा भूमिभाउ, तिस-भुक्खहिं पीडिउ सो वराउ । 
जममहिसु व मुक्कउ बंधगाउ, वणमहिसु द्धाइउ ता वणाउ । 

तसु भणए सिलहि सिरि विचडिउ, अजगरह महिसु ता पह पडिउ ॥ 
ते जाव परोप्परु, भिडहिं समच्छरु, ताव पलाणउ उत्तरवि। 

घिसि धिसि ! तसु पावह, दावियतावह, वि वलि जो जीवह मरिवि ॥११॥६१०॥ 
लंधिवि अरन्नु जा गामि पत्तु, तावेगु मिलिउ माउलह मित्तु। 


२५२७४ 


आश्यानकमणिकोशे 


भमडंतु रुदददत्तामिहाणु, पयईए पावु दोसहं निहाणु । 

तिणि सहुं सुवन्नभूमिहिं पयटटु, अपमाणवित्तवंछावसद ढु । 

नह नियहिं जंत वेगवह नाम, सिंधुबइ पासि त॑ बहुसकाम । 
दुइतडकुलूउभय बिसुद्ध जासु, रत्तृप्पलचलणसजंघ तासु । 
सुकुमालपुलिण वित्थयनियंब, कोमलमुणाल भुयलयपलंब । 

आवत्त नाहि तिवली तरंग, वर कंबु गीव घण थण रहंग । 

सयवत्त वयण सुइ सिप्पि भाल, चल सफरि नयण सेवाल वाल ॥ 
जल्वट्ट सुबसणिय, मोत्तियद्सणि य, धाउरायतंबोलजुय । 

नं जलनिहिवरहरि, केणह महिहरि, सिंगारिवि पेसिय बहुय ॥१२॥६११॥ 
अग्गेरइ गंतु पवन्नु जाव, वित्तवणु गहणु संपत्त ताव । 

अजमग्गु परेरइ अत्थि तासु, गुरुकिच्छि पारि जाहयइ तासु । 
अरयपिद्वारूढहं तेत्थु गमणु, अयमग्गु पवुच्चर तेण पवणु । 

अय दुन्नि लश्य तहिं रुद्ददत्ति, आरुहिवि तेसु पत्थिय पयत्ति । 

पुणु तेहिं वि जंतह मग्गु भग्गु , तो रुदददत्तु बोल्लणह रूग्गु । 

भो भत्थ एइ मारेवि करहुं- पहसेवि तेत्थु ओ वसणु तरहुं । 
भारुंडपक्खि आयहि भमंति, मंसबुद्धि अम्हे नयंति। 

तेणुत्तु जेहि आरूढ आय, उबगारी एइ अम्हह वराय ॥ 

उवयारिहि मारणु, पावह कारणु, एरिसु करहिं जि नरयगह | 

जसु मणि जिणु निवसइ, सो कि ववसह, अइसउ निम्धिणु सुद्धमईं १ ॥१३॥६१२॥ 
तिणि भणिउ एड मइ कीय दो वि, जं भावहइ तं॑ हउ' करिसु छेवि। 
तो नियपसु पाडिउ खडहडंतु, पेक्खंतह मारिउ तडफडंतु । 

बीयह' भइई जोइउ तासु मह, मह आयह रक्‍्खहि भद्द ! तुंह । 
तुह वाहणु हउः उवयारु सरि, मइ रक्खिवि पडिउवयारु करि। 
जोयंतु तरलतारयनयणू , वित्थरियमरणभयवुन्नमणू । 

पसु पेक्खवि कोडीकिउ मरणी, किरि का सु न पूरिय गलसरणी १ । 
तो पभणिउं त॑ पह चारुदत्त , जो भद्द | भवन्नवजाणवत्त्‌ । 
सुसमत्थठउ रक्‍्खणि तुज्क रम्मु, जिणभासिउ संपइ देवधम्मु ॥ 
उबसमि मणु दावहि, मणि परिभावहि, पुन्वक्तिउ परिणमिउ तुय । 
इय पंचाणुव्वय, कियकम्मव्वय, एवं सरणु सम्मत्तजुय ॥१४॥६१३॥ 
सो वि हु सुहभावण भावयंतु, नित्तिसि विणासिउ उत्तसंतु । 

तहिं तेहइ कुहियइ ते अमोज्शि, एक्रेकहि भत्थहि पहट्ठ मज्कि । 
भूमिहिं भमंत भारुंड पत्त, उप्पार्डहं आमिसलुद्धचित्त । 

उप्पयवि जाहिं जा गयणमग्गु, अन्नि पक्खिं सहु ज॑ जुज्झु रुग्गु । 
जुज्ञंतह पयडियसाहसाहं, अवरुप्परपरवसमाणसाहं । 

जहिं पोद्लि अच्छटट चारुदत्तु, सो खिसिवि सरोवरनीरि पत्तु । 
नीसरिउ तासु जलधोयगत्तु, परिभमण रूग्गु वीसत्थचित्तु । 


२३. व्यसनशतजनकयुवत्यथिश्वासवणनाधिकारे भावभट्टिकाख्यानकम्‌ २१५ 


पुणरवि य तासु हुय जीवियास, पासट्नियजीबह जम्म तास । 

रमणीयपएसिहिं, पयडविसेसहि, भमडंतईं जलडुंगरिणि । 

गुरुसिहरसमग्गउ, गयणि विछूग्गउ, एगु महीहरु दिटठु तिणि ॥१५॥६१४॥ 
रायंतु रुवखेह्िं साहोडयक्खेहिं हिंताल-तालेहिं जंबीरसालेहिं । 

बोरी-करंजेहिं नारंगसज्जेहिं बब्बूलमिल्लेहिं [*' "१४" ]। 
सोहंजणक्खेहि दीसंतदक्खेहिं सामा-कयंबेहिं खज्जर-निंबेहिं। 

मंदारु-गुंदेहिं कोरिंट-कुंदेहिं पुन्नाग-नागेहिं कप्पूर-पू्गेहि ॥ 

इय पसरियसाहेहिं, सीयलछाएहिं, सो गिरि सहइ समुन्नएहिं । 
फलपावणपउणेहिं, संसियसउणेहिं, जिम्ब विउसयणु सकन्नएहिं ॥१६॥६१५॥ 
जा चडइ उबरि विम्हइ्यचित्तु, ता पेच्छह चारणमुणि पवित्तु | 

तो भावसारु वंदियउ साहु, पारेवि झाणु किउ धम्मुलाहु । 

भो चारुदत्त ! किम्ब एतव्थ आउ ९, माणुसहं एहु जमगम्मु ठाउ। 

मूलह पमिद जिम्ब तासु वित्तु, तिम्व कहिय सयलू अप्पणिय वत्त । 

मुणिराउ वि अक्खइ नियपउत्ति, तसु भाणुसेट्वितणयह सजुत्ति । 

जो मोइउ कीलयबंधणाउ, सो हं तहु पत्थिउ काणणाउ । 

रिउमाण मलेविणु पत्तु गेहिं, जोग्गय निएवि वड्डियसिणेहि । 

पव्वइ्डकामि अप्पणइ रज्जि, अहिसित्तु पियरि सुहजणणिसज्जि ॥ 

नियपउ पालंतह, दुद्व दलंतह, सिट्ठटलोय रक्खणखमहु । 

जयसेण मणोरम, रूवमणोरम दुन्नि भज्ज संजाय महु ॥१७॥६१६॥ 

दुइ पुत्त [ग्रन्थाग्रमू ८०००] मणोरमदेवि जाय, गुणमहि[म]विदत्तजणाणुराय । 
सिंहजसु पढमु विक्षमि अकोवु, बीयह अभिहाणु वराहगीवु । 

जयसेणह पुण गंधव्वसेण, हुए धुय वित्तगंधव्वएण । 

पत्थावि समप्पिवि सुयह रज्जु, पव्वइंउ जाउ वयधरणसज्ज । 

परिहरिय सयल सावज्ज कज्जु, इह आइउ आयावणह अज्जु । 

इह कुंभ-कंबुदीवहं पहाणु, एहु पव्वउ कक्ोडयभिहाणु । 

इय जाय ताहं आलोव जाव, विज्ञाहर दोन्नि पराय ताव । 

मुणिपुत्त नाय अणुहारिरूव, जाणाविय साहम्मियसरूवु ॥ 

मुणि जीवियदावय, बंदहु सावय, संभमि वंदण विहिय तसु | 

उवयारु कु किज्जउ ? कि तुह दिज्जउ ९ भुवणि न बिज्ञउ अवर जसु ॥ १८॥६१७॥ 
जाव<च्छहिं इम्ब ते तिणि समाणु, तावेगु गयणि आइउ विमाणु । 
पणवन्नरयणमयभित्तिभाउ, आबद्धरुइरसुरइंदचाउ । 

ओलंबिरमुत्ताहारतारु, नं सिद्धिधामु लोयग्गसारु । 

विलसंतचमरु न॑ विज्ञरन्नु, सुविभत्तथंभु न॑ मयपवन्नु । 

सुइचित्तकम्मु जारिसय सुयणु, उल्लोयसारु नं साहुरयणु । 

जसु सरयसरोवरु आहरणू , कमलारूउ सच्छरसाहरणू । 
सरयब्भसुब्भधयवडसणाहु, दप्पुदूधरि न॑ उब्मविउबाहु । 


२१६ 


१, पायईदिं रं० ॥ 


आखश्यानकमर्णिकोशे 


कि बहुयईं वायावित्थरेण १, रमणीयवत्थु न समाणु तेण ॥ 

तसु मज्ञह सुरवरु, चलकुंडलबवरु, निग्गउ चंगिमनिव्वडिउ । 

[ तो सो ] मुणि मिल्लिवि, नयपहु पोल्लिवि, चारुदत्तुपाइहि पडिउ ॥१९॥६१८॥ 
नय-विणय-रूवरेहाजुएहिं, पुच्छिज्जइ विज्ञाहरसुएहि । 

भो भद्द ! भत्तिवडंतपणउ, मुणि मिल्लिवि आयह कि पणउ १। 

हिमवंत धरहिं जिम्व सुरसरिया, तिंव नीइवबि सग्गह नीसरिया । 
आयजन्नहु विज्ञाहरसुयहो !, नीसेसक्रुवासणमणिमुयहो | । 

वाणारसि नार्मि इह नयरि, परिवारिय जा पुरिगुणनियरि । 

तत्थ य सुभदद-सुलसाभिहाण, पव्वाइय वेय-सुइष्पहाण । 

अवरू परिवायगु जन्नवक्कु, तहिं अत्थि वियाणियवेयवक्कु । 

तिं वेयवियारिं सुलसजिया, तसु पासि दार्सि जिम्ब सा उ ठिया ॥ 

सो तीय5णुरत्तउ, हुयउ पमत्तउ, कामपिसाइं भोलियउ । 

जइ वा जिणु मेल्लिवि, बाणेहिं पेल्लिबि, मयणि भुवण घंधोलियउ ॥२०॥६१९॥ 
तो तीए गब्भसंभूइ हुया, उप्पन्नि पुत्ति लज्जाए मुया । 

पिप्पलहे हिट्टि परिचत्तसुया, सहु कंतिं नासिवि कहिंवि गया । 

बालह मुहि पडियउं पिंपफलू, आसायइ सो त॑ छुहववियल्‌ । 

संपत्त कुओ वि सुभद्द तहिं, पिप्पलतलि मुक्कउ बाहु जहिं । 

विज्ञायड वइयरु तीए सहू, संगोविउ एहु सुउ ससहि महू । 

किउ पिप्पलाउ गुणनाउं तसू , हुयउ वेयविसारउ लद्धुजसू । 

नियजम्मु मुणिवि अहिमाणधण्ट, दुवि वाइं पराइय जणय तिणि। 
पिहमेह पयट्टिय जन्न जणि, उच्छलिउ करंतउ मारि हणि ॥ 

अहिमाणि' ****: विणु, जणय हणेविणु, पाव वेय वित्थरिय तिणि । 
अन्नार्णि मूढउ, माणारूढड, कवणु पावु ज॑ न करइ जणि ॥२१॥६२०॥ 
तसु पच्छइ वद्दलि सीसु हउ, सु अणेग करेविणु जन्नसुउ । 

पसु मारिवि पावि नरह गऊ, उच्बद्धिवि नरयह हुयउ अऊ ॥ 

सो पंच वार पसुमेहि हऊ, छट्ठई् भवि टंकणविसइ गऊ। 

तो रुद्ददत्ति मारिउ वराउ, जिणधम्मवसिण दिवि देउ जाउ। 

इणि कारणि एहु मह धम्मगुरू, आयह पसाइं हउं हुयउ सुरू । 

गुरु दुष्पडियारउ होइ जई, कुछि जायउ तसु संभरइ जई । 

विज्ञाहर रंजिय बिंति बे वि, सुकयन्नु भावु तारिसु मुणेवि । 

अम्हाहिं वि उवकिउ एहु तणउ, आइं जीवाबिउ जि जणउ ॥ 

अह अवसरपत्तउ, सुर्रि विज्नत्तड, दिज्जउ पहु | आएसु महु । 

संभरियउ एज्जसु, जिणु सुमरिज्जसु, पडिवज्जिबि उप्पइठ नहु ॥२२॥६२१॥ 
अह तेहिं अदंसणि हुयइ सुरि, निउ चारुदत्तु अप्पणइ पुरि । 

तहिं विहियदाण-सम्माण-विणय, ठिय कइ्वबय दिण वड्ंतपणय । 


तथा हि-- 


जओ--- 
तथा--- 


किच-- 


तथा-.- 


श्ष्द 


२३. व्यसनशतज नकयुयत्यविश्वासवर्णनाधिकारे भावभट्टि काख्यानकम्‌ २१७ 


पत्थावि तेहिं वरविभवजुओ, संपाविउ चंपर्हि भाणुसुत्रो । 

स वसंतसेण सुक्किल्वसणा उब्बद्धवेणि छुल्लियद्सणा । 

जप्पभिर विउत्त सुभदसुया, तप्पभिह मित्तवइगेहि ठिया | 

सुहि-सयण-कलत्तदुगेण जुओ, पुणरवि य रच्छिकुलभवणु हुओ । 

जे संपय-विवयहं हेउभाव, सन्निहिय ति जीवह पुत्र पाव । 

जिम्ब उदय-पयाव-5त्थमण सूरि, तिंव आयईं सब्बह भविय दूरि ॥ 

जिम्व [जिय] आयह, तिब जिय जायह, सव्वह संपय बिवय जणि | 

एउ मुणिवि सयाणहु, तत्तवियाणहु, हरिस विसाय न करहिं मणि ॥२३॥६२२॥ 
सो हयहियओ भावटद्टियाए बहुद्यव-भावनिठणाए । तदुवियसवणजुयलो विम्हरियप्पा सुणईइ जबखो ॥६२३॥ 
जाव5ज्ज वि न समप्पइ दुण्ह वि रसियाण ताण चरियमिमं | घडियाहरए ताव य पहया चउपोरिसी नयरे ॥६२४॥ 
एत्थंतरम्मि य रवी मिलंतचक्काणमंचिओ चडिओ । भावश्टियाए चरियं व चाहिउं उदयगिरिसिहरे ॥६२५॥ 
एत्यंतरम्मि सब्वी सकोडओ नायरो जणो पत्तो । जक्खाययणे अक्खयदेहं भावद्टियं नियह ॥६२६॥ 
पुब्वुत्तविहणेणं पमोयसंभारमुव्बहंतेण । पठरजणेणं पत्ता पवेसिया भाणुभवणम्मि ॥६२७॥ 
महईए विभूद्देण वद्धावणयं पयट्टियं नयरे । पत्थावम्मि सपणय॑ पणमित्ता पउरलोएण ॥६२८॥ 
पुट्टाइ तं महासइ ! कहमुव्वरिया इमाओ जक्खाओ ? | भणियं निरहंकारं तीए वि हु ओणयमुहीए ॥६२९॥ 
देव-गुरूण पसाया महासईणं च सीलमहिमाए | उवसमिओ मह जक्खो रुट्टी परमेस छोयस्स ॥६३०॥ 
भणियं च कीसमिमिणा कलंकमारोवियं असंतं ते ? । कि वा वि हु तुह जणओ तइया णेणं पराभविओं ? ॥६३१॥ 
ता एयं पुरलोयं पभायसमयम्मि सिक्‍्खविस्समहं । तत्तो य मए चिंतियमहों ! कहं एस परिकुृबिओं ? ॥६३२॥ 
मा होउ मन्निमित्तयमेसो5णत्थो पुरम्मि एयाओ । कह कह वि मए पणमिय कारविओ सो ववत्थमिमं ॥६३३॥ 
जइ एसो पुरछोओ मज्म्ममवाणुब्भवेण तेल्लेण । टिल्लाणि कुणइ मुंचामि न5न्नहा भणियमेणण ।॥६३४॥ 
त॑ निसमिउं जणेणं दिवसम्मि न किंचि काउमलमेसो । उप्पाडिकण निहओ चउहट्ठें नायरसएण |॥|६३४॥ 
उक्कीरिकण घाणयकरणिवरमवाणदेसमेयस्स । परिपीलिऊण तिलनियरमेवमुप्पाइयं तेल्लं ॥६३६॥ 
विहियाणि सब्बलोएण निययभालेसु तेल्लटिल्लाणि | एयं सव्व॑ किर कूडकवडभरियाएु तीए कय॑ं ॥६३७॥ 


अणुभूयं विसयसुहं पभूयमप्पाणयं च सुज्कवियं । विग्गोविओ य सब्वो पिउपरिभवकारओ लोगो ॥६३८॥ 

जक्खो महप्पभावों अपमाणं कारिओ पुरसमक्खं । अबरो वि जो विरूवों बसीकओ सो वि कि बहुणा ? ॥६३९॥ 
पढम॑ पि हु विहियमिमं असहंतीए पराभव पिउणो | माणधणाए भणियं तहेव निव्वाहियमिमीए ॥६४०॥ 
अभिमाणवज्जियाणं ठाणे ठाणे पराभवहयाणं । काउरिसाणं ताणं न य इहकोगो न परलोगो ॥६४१॥ 

अवि उड्ड' चिय फुटंति माणिणो न य सहंति अवमाणं । अत्थवणम्मि वि रविणो किरणा उद्बं चिय फुरंति ॥६४२॥ 


वियसंतकमलवणसंडमंडियं भमरमणहरुग्गीयं | अभिमाणधणस्स तणं व सरबरं रायहंसस्स ॥६४३॥ 


देस मुयंति जीयं चयंति पियबंधवं पि न गणंति । अभिमाणधणा पुरिसा रज्जब्मंसं पि हु सहंति ॥६४४॥ 
अह अन्नया कयाई विचित्तकम्मक्खओवसमजोगा । अंतररिउवम्गं पह वियंभिओ त्तीए अभिमाणो ॥६४५॥ 


श्श्ध आख्यानकमणिकोशे 


अभिमाणेण किमिमिणा बहुएण वि अविसए पउत्तेण १ | जइ जाणिऊण जिप्पइ कि पि हु तो जायए हट ॥६०६॥ 
इय सुहपरिणामाए दिद्लो तीए समंतभहगुरू । नमिऊणं सो पुट्टो अभिमाणो कत्थ कायव्वों ? ॥६०७॥ 
भणियं च तेण-- 
राग-दोस-कसाए भद्दे ! अभिमाणओ जिणसु एए । जित्तेसु जेसु सुहिया होहिसि जम्मंतरसए्सु ॥६४८॥ 
इय सुणिऊर्ण तीए भणियं भयवंत ! तुह समीवम्मि । मोयाविऊण पियरो तुह वुत्तमहं करिस्सामि ॥६४९॥ 
तो सा अम्मा-पियरो मोयावेउं खमाविउ' पउरे | महईए विभूईए पव्वइया गुरुसमीवम्मि ॥६५०॥ 
पव्वाविऊण गुरुणा समप्पिया सुब्ववाए गणिणीए । उद्धरियसव्वसल्ला विहरदइ सा गुरुसमीवम्मि ॥६५१॥ 
पंचसमिया तिगुत्ता जिइंदिया जियपरीसह-कसाया । विसयनिउत्तडभिमाणा विसेसओ तवसमाउत्ता ॥६५२॥ 
तथा हि-- 
छट्ठ-5ट्रम-दसम-दुवालसेहिं मास-5द्धमासखमणेहिं । तह सोसविओ अप्पा जह रागाई वि सोसविया ॥६५३॥ 
तत्तो य निकलंक सामन्‍नं पालिऊण बहुकालं । सुरलोयं संपत्ता तओ चुया पाविही मोक्खं ॥६५४॥ 
कह तीए तारिसओ परिणामों भवनिबंध्णं आसि १ । कह संपद सिवहेऊ ? अहो ! विचित्ताणि कम्माणि ॥६५५॥ 
जह एयाओ बहुकूड-कवडदोसाण मंदिरिमणज्जा । तह पायं सब्बा वि हु विवेदणा ता विवज्ञाओ ॥६५६॥ 
[॥ भावष्टिकाल्यानक समाप्तम्‌ ॥७३॥ ] 


एतासु निध्वेणपुरन्भ्रिषु राक्षसीषु, मायाधनासु च न विश्वसनीयमेव । 
एता हि मुग्धजनमात्मवशं विधाय, संसारदुःखजलधी खलु पातयन्ति ॥१॥ 


॥ इति भीमदाप्रदेवसरिविररचितवृक्षावास्यानकमणिकोशे ध्यसनशतजनकयुवतिविश्वास- 
वर्ण नख्रयोविशतितमो.5घिकार: समाप्त: ॥२३॥ 


6 चक्छ्ध5ठ9 


[ २४. रागाद्नथेपरम्परावणेनाधिकारः ] 


युवतिषु विश्वासो न विधेय इत्यभिहितम्‌ । तासु चामिलाषो जन्तो रागादिसद्भावे भवति। तेषां चेहिका-55मुष्मिकापायहे- 


तुत्वेन परिहायतामाह-- 
संसारवुड्डिजणगा राग-दोसा तहा कसाया य । 
तवसंजमहाणिकरा हह चेव इमें अणत्थफ़ला ॥३०॥ 
अस्या व्याख्या--'संसारवृद्धिननकौ' भवोपचयकारकौ 'राग-द्वेषो' प्रीत्यप्रीतिरक्षणो जीवपरिणामो, “तथा” इति समुचनये, 


'कषायाश्व'” क्रोधादयो जीवपरिणामा एवं 'तपः-संयमहानिकरा:' तपश्च-अनशनादिरूपं संयमश्च-प्रथ्रिग्यादिरक्षणलक्षण: तयो: 


हानि--वृद्धयभाव॑ कुबन्ति ये ते तथोक्ताः 'इह्ैब' अप्मिन्नेव जन्मनि 'अनर्थफला:” अपायप्रयोजनाः ॥३०॥ एतानेव दृष्टान्तेनाह-- 
रागम्मि वणियपत्ती दोसे नायं ति नाविओ नंदो | क्‍ 
कोहम्मि य चंडहडो मयकरणे चित्तसंभूया ॥ ३१॥ 


मायाए आइचो लोमे उण लोभनंदि-नउलबणी | ' 
हय नाउं जेयव्वा रागाइरिऊ पयत्तेण ॥३२॥ 


२४. रागाद्यन्थपरम्परावणनाधिकारे वणिक्पत्न्याव्यानकम्‌ २१६ 


अनयोव्यौख्या--'रागम्भि! त्ति रागविषये वणिक्पत्नी' वणिग्मायों । 'दोसे' ति दोषविषये “नाय॑ ति! दृष्टान्तः 'नाविकः” 

पोतवाहकः 'नंदो' त्ति नन्दाभिधान:। “कोहम्मि य! त्ति क्रोपे च चंडहडो” त्ति चण्डभटनामकः | 'मयकरणे'त्ति अहह्लारनिवंतने 
“चित्र-सम्भूतो' इति चित्र-सम्भूतामिधानौ मातम्भदारकों ॥३१॥ “ायाए' त्ति मायाकरणे 'आदित्यः" इति मायादित्याभिधान: । 
'लोभे उण' त्ति लोभविषये पुनः ज्ञातमित्यथ: 'लोमनंदि-नउलबणी' इति लोभनन्दिश्व--श्रेष्ठी नकुडबणिक्‌ च-नकुलकप्रधानो वाणिजक 
लोभनन्दि-नकुलवणिजों । 'हति' अमुना प्रकारेण 'ज्ञात्वा! [अवबुध्य] अनथहेतुतया 'जेतव्या:” वशीकतेव्या: 'रागादिरिपव:” रांगप्र- 
मुखाः शत्रवः 'प्रयत्नेन' आदरेण इति गाथासडक्षेपार्थ: ॥३२॥ व्यासाथस्त्वास्यानकगम्यः । तानि चामूनि । 
तत्र तावत्‌ क्रमप्राप्त वणिफ्पत्न्याख्यानकमाण्यायते-- 

निवसंति खिहपइट्टियनयरे जणरेहिरे धणसमिद्धे | अरिहन्न-अरिहिमित्ता वाणियगा भाउणो दोन्ि ॥१॥ 

अरिहिन्नभारियाए अहउन्नय5ब्मत्थिओ अरिहमित्तो । अणुरत्ताए चंदो व्व सोमपयई सुहाहारो ॥२॥ 

तेणं सा पडिसिद्धा बहुप्पयारं न जाव विर्मेह | तो भणियं मह भाउगभयमवि ते नत्यि इय भणिए ॥३॥ 

चितेइ न कइया वि हु एसो म॑ मन्निही जियंतम्मि | नियभा उगम्मि नियमा ता त॑ कहमवि विणासेमि ॥४॥ 

अह केणावि छलेणं भत्तारं मारिऊण तं भणइ । इण्हि ते कस्स भय॑ं ? तो सो चितहइ अहह ! निहओ ॥५॥ 

मह बंधू एयाए पावाए मह निमित्तमिह नाउं। वेरगगओ गिण्हह पत्वज्ज सुगुरुमूलम्मि ॥६॥ 

तब्विरहविहुरियंगी कम्मिवि मरिऊण सन्निवेसम्मि | सुणिया सा संजाया सो वि हु कह कहवि विहरंतो ॥७॥ 

तत्थेव अरिहमित्तोीं संपत्तो पेच्छिकण त॑ सुणिया । पुव्वभवब्भासाओं न मुयइ पिद्ठि मुणिवरस्स ॥८॥ 

तत्तो जणेण कहमवि विओइया मुणिवरं अपेच्छंती । अदृज्काणोवगया पडिबद्धा तम्मि साहुम्मि ॥९॥ 

मरिउं महाडईए संजाया मक्कडी मुणी वि तहिं । बिहरंतो संपत्तो त॑ दटटुं कंठमणुलूग्गा ॥१०॥ 

साहुजणेणं निच्छोडिऊण निद्धाडिया कहवि तत्तो । त॑ साहुमणुसरंती मरिउं सा वंतरी जाया ॥११॥ 

नाऊण विभंगेणं पुव्वभवं तप्पमोसमावन्ना । छिड्डाइं निहालंतो अच्छइ सा अरहमित्तम्मि ॥१२॥ 

हसिऊण तरुणसमणा भणंति धननो सि अरिहिमित्त | तुम | ज॑ सि पिओ सुणियाणं वयंस ! गिरिमक्कडीणं पि ॥१३॥ 

सो तह वि निकसाओ विहरंतो अवरवासरे सरियं । थोवजलमवक्कमिउं उप्पडइ मुणी तहिं जाव ॥१४॥ 

ता तं छिट्ें लहिउं छिंदृह सा ऊरुयं गुरुपओसा । पडिए ऊरुम्मि जले मिच्छाउक्कडमिमों देइ ॥१५॥ 

अह सासणदेवीए सो ऊछू लाइओ ससत्तीए । निद्धाडिया य पच्चंतदेवया साहुभत्ताए ॥१६॥ 


॥ वणिकपरन्‍्याख्यानक॑ समाप्तम ॥७४॥ 


अधुना नन्दाख्यानकमाण्यायते-- 


बहुजीवसंकुछाए गंगाए हसियसुरसमूहाए । उत्तारइ मोल्लेणं जणनिवहं नाबिओ नंदो ॥१॥ 
अह अन्नया य साहू धम्मरुई विविहलद्धिसंपन्नो | उत्तिन्नो गंगाए धरिओ सो तेण मोन्लकए ॥२॥ 
अइकंते पहरदुगे वि जाव न हु मेनल्नण तओ बिहिओ। सहस त्ति छारपुंजो मुणिणा सो तेउलेसाए ॥३॥ 
मरिऊण समुप्पन्नो सभाए घरकोइलो किलिट्ठमणो । धम्मरुई वि य पत्तो विहरंतो तत्थ कालेण ॥9॥ 
, गामाओ विणिक्खंतो मिक्‍्खं गहिऊण भुंजए जाव । तत्थ घरकोइलो सो पुव्बभवव्भासओ रोसा ॥५॥ 
विविखरइ कयवराई मुणी वि अन्नत्थ उद्गिउं जाइ | सो कुणइ त॑ तहेव य एवं तइए वि ठाणम्मि ॥६॥ 
तो चित धम्मरुई को एसो नंद्सरिसगो पावो । कूरं निरिक्खिऊणं सो वि हु भासीकओ तेण ॥७॥ 
तत्तो मयंगतीरे हंसो मरिऊण सो समुप्पन्नो | कालेण तत्थ पत्तो विहरंतो धम्मरुइसाहू ॥०८॥ 
: तं दष्ठु सो हंसो प्रखंड भरिय सीयलजलस्स । पुव्वभवकोबवसओ आछंटइ सिसिरसमयम्मि ॥९॥ 
एवं पुणो पुणो वि हु थकइ न हु जाव ताव मुणिणा वि। को एस नंदकप्पो!त्ति झामिओ तेउलेसाए ॥१०॥ 


२०२५० आखश्यानकमणिकोशे 


मरिऊर्ण संजाओ अंजणसेलुम्मि दुद्धरो सीहो । सह सत्येणं पत्तो कालेणं तत्थ साहू वि ॥११॥ 
दटठण तयं सहसा सत्थं मोत्तण धावए कुविओ । जा मुणिवरस्स समुहो निवारिओं ताव लोएण ॥१२॥ 
जा कह वि नो नियत्तइ को एसो नंददेसिओ पावो १। मुणिणा वि विगप्पेडं सहसा छारीकओ सो वि ॥१३॥ 
मरिऊर्ण सो जाओ बडुओ वाणारसीए नयरीए । भिक्‍खट्वाए पविट्ठों दिटद्े सो तेण धम्मरुदे ॥१४०॥ 
तो डिभे रममाणं मोत्तणं कुणइ जाव उवसम्गं । पुव्वभववहरभावा ता तत्थ वि मारिओ तेण ॥१५॥ 
मरिऊर् संजाओ राया तत्थेव सुमरिउं जाइं । चितेइ तेण मुणिणा दढ्ढी हं एत्तियमवेसु ॥१६॥ 
इन्हि पि जइ डहेज्जा न हु होही रज्जसंपया मज्ञझ । पेच्छेमि तयं जइ ता तो हं खामेमि नियमेण ॥१७॥ 
तज्जाणणानिमित्त सड्डसिलोगेण पुन्वभवचरियं ! नियय॑ सव्वजणेणं पढावदई त॑ सिलोगमिमं ॥ १ ८॥ 
“गंगाए नाथिओ नंदो, सभाए घरकोइलडो | 
हंसो मयंगतीराए, सीहो अंजणपव्वए ॥१॥ 
याणारसीए बडुओ, राया तत्थेव आगओ ।” 
एवं बीयसिलोगं, जो पूरइ तस्स पत्थिवों देइ । रज्जस्सडद्धं उम्घोसियं च नयरीए तो लोगो ॥१९॥ 
रइउं सबुद्धिविहवाणुसारओ पच्छिम5द्धमवणिवईं । अणुसरइ तय॑ दटू ठुं न पच्चओ होह नरवइणो ॥२०॥ 
अह धम्मरुई विहरिय अन्नत्थ समागओ तहिं वुत्थो । उज्जाणरन्मि उज्जाणपालएणं पढिज्ज॑ंतं ॥२१॥ 
गंगाए नाविओ इय पयाइं निसुणित्तु तेण सो भणिओ | वार वारं परिपद्सि कीस तं भद्द ! एयं ? ति ॥२२॥ 
सब्वो वि साहिओ तेण बइयरो तस्स मुणिय परमत्थं । तत्तो मुणिणा तं पच्छिमद्धमापूरियं एवं ॥२३॥ 


पण्सि घायगो जो उ सो एत्थेव समागओ ॥२॥ क्ति 


तो त॑ संपुन्नपयं घेत्तणा55रामिओ निवसयासं | पत्तों निवेइयं तं दटठु राया भउव्विग्गो ॥२४॥ 
मुच्छावसेण महिमंडलम्मि पडिओ तओ परियणेण । एसो असोक्खकारी पहुणो इय जायकोवेण ॥२५॥ 
पिद्विज्जंतो सो आह कव्बमेयं कयं मए नेय । किंतु महं समणेणं समप्पियं दुक्खमूल ति ॥२६॥ 
उवलद्धचेयणेणं रजन्ना उज्बाणपालओ पुट्ठी | केण कय॑ कव्बमिमं ? सो भणइ वणम्मि मुणिण त्ति ॥२७॥ 
तो तत्थ निवो पत्तो रिसिणो वंदणय-खामणनिमित्तं | वंदित्तु खामिऊर्ण पडिवज्जिय सावगं धम्मं |२८॥ 
संपत्तो नियभवणे मुणी वि सरिऊण पुव्वदुचचरियं । आलोइय पडिकंतो सम्म॑ गुरुपायमूलम्मि |२८॥ 
सुकज्माणानलदड्घाइकम्मिधणों विमलनाणो । निम्महियसेसकम्मो सासयसोक्खं सिव॑ पत्तो ॥३०॥ 


॥ नाविकनन्दाख्यानकं समापु्तम ॥७५॥ 


इदानीं चंडहडाख्यानकमाण्यायते | तश्चेद्मू-- 
अत्थि विसेसयनामो बहुसरसीरसियगोवयसमूहो । विशो व्व समयसंगयकरकरिसयसंगओ गामो ॥१॥ 
अह तम्मि चेव गामम्मि दुम्मई वसइ करिसगो एगो । नामेणं चंडहडो भंडणवसणो सहावेण ॥२॥ 
अह अन्नया य सरयम्मि सस्ससंपत्तिवन्नणिज्जम्मि | फलियम्मि तस्स खेत्तम्मि कहवि सुन्नम्मि एगम्मि ॥३॥ 
गामबइल्ला कस्सवि य संतिया किल कुओ वि हु पविद्ठा | तेहि बि छुह्ाकिलंतेहिं भक्खियं बहुविहं धन्नं ॥४॥ 
दटठूण तयं पयईए कोहणो पेच्छिउं च ते वसहे । पाह्मण-कट्ठ-जट्टीहिं निदयं हणियमारद्धों ॥५॥ 
भंजइ तेसि विसाणे केसिंपि खुरे मुहाह केसिंपि | रुहिरपवाहव्वावियसब्बंगे मुयह न तहा वि ॥६॥ 
कोहवसट्टी गलियं पि निवसणं मुणइ नेय तयवत्थो । विम्हरियप्पा वसहे पहरंतो सो गओ गाम॑ ॥७॥ 
लोएणं सिक्खविओ भो भो | कि कयमिमेहिं तुह पावं ? | जं॑ पहणसि निस्संको निकरुणो मुक्कमज्ञाओ |॥८॥ 


१, भाराणसीए रं० । ह 


२३. रागाद्नर्थपरम्परावणनाधिकारे श्ण्डसडाल्यानकम्‌ २२१ 


तुममेएसि सामी मग्गसु खाइं निएसु ववहारं । मुंचसु इमे वगए गोरूवे निब्विविण य ॥९॥ 
मूढो किमेवमेत्तियमप्पाणं नग्गयं ति नो नियसि | भणइ य नग्गमिमेसिं, सामी काहं न संदेहो ॥१०॥ 
एवं सिक्खविओ वि हु कोहंधो जाब चेयह न कि पि। तावा55रक्खियपुरिसेहिं बंधिउ गाढबंधेहिं ॥११॥ 
कारागिहम्मि खित्तो धरिउं कश्वयद्णाणि सेहेउं । हरिउं गिहसव्ब॒स्सं मुक्की काउः जहाजाओ ॥१२॥ 

॥ चण्डभडाख्यानकं समाप्तम ॥७६॥ 


उक्त चण्डभडाख्यानकम्‌ | अधुना चित्रसस्मृता[ख्यानक |माख्यायते । तथ्येद्म --- 
साकेयनयरनायगचंडवर्डिसयसुओ गुरुसमीवे । पव्वहओ मुणिचंदों अडबी< सत्थपरिमट्टो ॥१॥ 
दिट्टो गोवाल्यदारएहिं पडिजग्गिओ य सो चउहिं | पडिबोहिऊण धम्मे सब्बे पत्वाविया तेण ॥२॥ 
पालिति समणधम्मं नवरं तेसि चउण्ह मज्ञम्मि | दो जाईमयमहमं कुणंति मणयं तओ मरिउं ॥३॥ 
उबबन्ना सुरलोए भोत्तणं तत्थ अमरसोक्खाईं । संचिणियनीयगोया चइउं वाणारसिपुरीए ॥४॥ 
रज्जे रज्नो संखस्स तस्स मायंगभूयदिज्नस्स । उववन्ना पुत्तत्तेण नामओ चित्त-संभूया ॥५॥ 
ते दो वि रूबवंता दोन्नि वि मेहागुणेण संजुत्ता | दोन्नि वि कलाण जोगा संजाया अट्टवारिसिया ॥६॥ 
एत्तो य नमुइसचिवेण किंपि अंतेउरम्मि अवरद्धं । तो पच्छन्नो मारेउमप्पिओ तेसि जणयस्स ॥७॥ 
चिंतियमिमिणा जइ कहवि मह सुए एस गाहइ कछाओ । तो गोवेउ' रक्खेमि चिंतिउ' पुच्छिओ एसो ॥८॥ 
तेण वि तं पडिवन्न॑ सब्बं पि हु मरणभीयहियएणं । भूमीहरयम्मि ठिओ पाढइ ते दो वि तरस सुए ॥९॥ 
मायंगी वि हु किश्च॑ सव्वं पि हु भोयणाइयं कुणइ । तो तीए वि सम॑ सो तहेव रूग्गो अकज्जम्मि ॥१०॥ 
वसणं पत्तो वि हु तीए सह कहं सो अकज्जमायरइ ? | धिसि घिसि ! एयस्स अकज्जकारिया नयणहयगस्स ॥११॥ 
हय विनडियं पि विनडइ विग्गोबइ खलु विगोवियं पि जणं । मारेइ मारियं पि हु एस अणज्जो जओ भणियं ॥१२॥ 
कृशः काण: खज्ज: श्रवणरहित: पुच्छविकल, क्षुधाक्षामो दीन: पिठरककपालार्पितगल:ः । 
ब्रणेः पूयक्किन्रे: कृमिकुलचितैराचिततनुः, शुनीमभ्येति श्वा हतमपि निहन्त्येव मदनः ॥११॥ 
मायंगेणमिमं पुण पच्छन्न॑ पि हु वियाणियं कह वि । नज्जई चोरियरमियं गोविज्जंतं पि जेणुत्तं ॥१४॥ 
चंदकला-छुरमट्टी-चोरियरमियाइं राइणो मंतो । सुद्ठ वि गोविज्बंतं चउद्यिहे पायर्ड होह ॥१५॥ 
चिंतियमिमिणा संपद पावमिमं सव्वहा वि मारिस्सं | पत्थावं लहिऊरणं गुरु त्ति काउं पुण सुएहि ॥१६॥ 
नीसारिऊण मुक्रो गंतुं हत्यिणपुरम्मि अन्नाओ | जाओ पहाणमंती सणंकुमारस्स चकिस्स ॥१७॥ 
ते वि हु मायंगसुया जोव्वण-लायन्न-रूवसंपन्ना । जाया कलासु कुसला गीयकलाए विसेसेणं ॥१८॥ 
अह अन्नया य पत्ते उम्मायकरे वसंतसमयम्मि | अंदोलयकीलासुं विलासिलोयम्मि कीलंते ॥१९॥ 
विविहासु चच्चरीसुं गायंतीसु ["*'**' ] नायरजणेणं । तेसिं मायंगाणं नीहरिया चचरी तइया ॥२०॥ 
गायंति गीयानउणा तीए मज्कम्मि चित्त-संभूया | नायरयचच्चरीओ तेसि गीएण भग्गाओ ॥२१॥ 
मायंगचच्चरीए मिलियाओ गीयपरवसमणाओ । मोत्तु, छिप्पमछिप्पं जायं असमंजस सव्ब॑ ॥२२॥ 
नाऊण वश्यरमिमं पहाणपुरिसेहिं गंतु विज्नत्त | रत्नो जह देव ! इमे मायंगा तुज्क गायंति ॥२३॥ 
जत्थ तहिं सब्बो वि हु हरिणजुवाणो व्व गोरिगीएणं । अक्खित्तमणो न मुणइ कज्जमकर्ज नयरिकोओ ॥२४॥ 
त॑ सोउं नरवइणा गायंता वारिया समायंगा । रयणीए पच्छन्नं सुणंति ते चच्चरीगीयं ॥२५॥ 
निसुणंताणं तेसि बला वि गव्वेण निग्गयं गीयं | सुणिकण सियालाण व सहियमुन्नाइयद्धणियं ॥२६॥ 
त॑ नाऊणं रज्ना निययाणाइक्षमाओ रुट्टेणं । नियविसयाओ निव्वासिऊण ते दो वि पम्मुक्का ॥२७॥ 


कि 


१, अ्रकिश्म्मि रं० । 


१२५२ 


तथा हि--- 


आश््यानकंमणिकोशे 
चितियमिमेहिं तहया अहिमाणाओ मणे सनिव्वेयं । घिसि घिसि ! अम्हाणाममा कलाकछावाइगुणनियरों ॥२८॥ 


रूवं सोहग्गगुणो पियभासित्तं कलासु कुसरत्त । जाईए दोसेण5म्ह निप्फलं कासकुसुमं व ॥२९॥ 
ता दुकियहणणत्थं कुणिमो किंपि हु सुहं तबचरणं | जम्मे वि जेण एवं न भवामो परिभवद्वाणं ॥|३०॥ 
इय वेरगगगएहिं अइसयनाणी मुणी जहा दिद़ो । तेण जहा दिल्ववया कद्ठाणुद्राणतवनिरया ॥३१॥ 
दिद्ठा य नमुइणा जह विहिय॑ संभूरणा जह नियाणं | जह पत्ता सुरलोयं चुया तओ माणुसा जाया ॥३२॥ 
तह सब्वं समयाओ। विन्नेयं वित्थरेण विउपेहिं | इह गंधगउरवभया न सम्ममुत्तं जमम्हेहिं ॥३३॥ 
॥ चित्र-सम्भूताख्यानकं समाप्तम ॥७७॥ 


अधुना मायाव्त्यकथानकमुच्यते । तशथ्चेद्म-- 


रेहइ जो बहुगोउलसयसंकुलभूरिगामनिवहेहिं । गामा सारयससहरवलक्खदेवउलवंद्रेहि ॥१॥ 

देवउलाइं वि निम्मलजलभररमणीयसरवरसएहिं । रेहंति सरवराईं वियसियसयक्रमलसंडेहिं ॥२॥ 

कमलवणाइं वि मयरंदरुद्धपरिभमिरभमरनियरेहिं । भमरा वि हु सुद्सुहयरसमहुरझंकाररावेदि ॥३॥ 
महुयरझंकारा वि हु सया वि सवणेक्वरसियकुसलेहिं । सोयारा वि हु रेहंति जत्थ गंधव्वियकरलाहिं ॥४॥ 

एवं परंपराए गुणाण को लहइ तस्स पज्जन्त । तियसालयसंकासो सो कासी जणवओ अत्थि ॥५॥ 

तम्मि य पासजिणेसरपयपउठमपवित्तियावणिविभागा । निस्सेसनयरिगु णगगामधाम वाणारसी नयरी ॥६॥ 

तीसे समीववत्ती सालिग्गामो समत्यि थिमियजणो | तम्मि य गंगाइच्चो निवसइ कोडुंबिओ एगो ॥७॥ 

सो उण कुकम्मवसओ धणवहपरिपूरियम्मि गामम्मि । दारिदृभरकंतो कुकम्मनिरओ सया वसइ ॥८॥ 
नियतणुर्ूवविडंत्रियमयरद्धयमाणवाण मज्कृम्मि | सो चिय कुरूवयाए दिद्ठी दिट्वीए देइ दुहं ॥९॥ 
पुव्वाभासि-पियंवय-कन्नामयवयणभासणरयाणं । सो चेवेगो उन्बेयकारओ नवरिं भासंतो ॥१०॥ 

सरलेसु वि मायावी किवणो चाईण मज्कयारम्मि । सुकयन्नूण कयम्धो विबुहाणं मुक्खसेहरओ ॥११॥ 
मुद्धजणवंचणरओ मायाए चेव कुणइ ववहारं । तत्तो जणेण विहियं भायाइच्चो त्ति से नाम॑ ॥१२॥ 

अह तम्मि चेव ग़ामे दक्खिन्नमहोयही महिमनिकओ । सरलसहावो सज्जगसिरोमणी साहुसिरतिलओ ॥१३॥ 
वसहाहिद्टयदेहो अग॒तणयाहियमओ<डभिहाणेण । थाणु त्ति विस्पुओ[''**** ]संकरो अत्थि थाणु व्व ॥१४॥ 
जल-जलणाण व छाया-55यवाण वरमणि-वराडियाणं व । राहु-ससीण व तेसि अमय-विसाणं व सुहिमावों ॥१५॥ 
संजाओ कहवि हु पुव्वजम्मअब्भत्थनेहरायाण । वारंतस्स वि लोयस्स सुद्ध-कछुसियमणाण पर॑ं ॥१६॥ 

अह अन्नया य नियसच्छयाए कलिएण थाणुणा भणिओ । मायाइच्चो मित्तो3कलुसियचित्तेण कठुसमणो ॥१७॥ 
पुरिसत्थवज्जिएणं जाएण वि को गुणों मणूसेणं ! । चिंचापुरिसेण व मित्त ! मद्टियामयनरेण5हवा ॥१८॥ 
धम्मत्थो ताव5म्हाण नत्यि सुहभावणाए रहियाणं । कामत्थो वि हु धणबज्जियाण दूरेण दुहियाणं ॥१९॥ 
अत्थोवज्जणकज्जे जुत्तो तावुज्जमो जमत्थेण । रहियाण माणवाणं निरत्थओ गुणकलावो वि ॥२०॥ 


जओ भणियं-- 


किच-- 


जाई रूव॑ं विज्ञा तिन्नि वि निवडंतु गिरिगुहाविवरे । अत्थो चिय परिव्ठउ जेण गुणा पायडा हुंति ॥२१॥ 


अणहुंता वि हु हुंतीए हुंति हुंता वि जंति जंतीए । ओ |! जीए सम॑ नीसेसगुणगणा जयउ सा लच्छी ॥२२॥ 
अवरं च दविणरहियस्स मित्त ! धम्मप्पियस्स वि गिहिस्स । इहलोय-पारकोइयकिरियाओ ग्ंति सबकाओ ॥२३॥ 
इय मित्तवयणमायल्रिऊण मायापवंचमइनिठणो । जंपइ मायाइच्चो पहसियवयणों कुडिडहियओ ॥२४॥ 

जइ एवं ता चल्लसु जामो वाणारसीए नयरीए | तोए वि हु धणयसमाणविहवनागरयगेहेसु ॥२५॥ 


२७. रागाद्यनथपरम्परावणनाधिकारे मायाद्त्याच्यानकम्‌ २४ 


खत्ताणि खणामो कणय-रयण5लुंकार भूसिए कन्ने । तोडेमो वणियवहण दविणगंठीओ छिंदेमो ॥२६॥ 
काहामो बंदिगहं पमूयविहवाण वणियनिवहाणं । एवंविहमवर् पि हु तत्थउत्थकए करिस्सामो ॥२७॥ 
एवं जत्तपराणं साहससहियाण बुद्धिमंताणं | एस वराओ अत्थो कत्तियमेत्तो किल5म्हाणं ? ॥२८॥ 
एवं सोउं मयसमयमत्तकरिदंतघट्टियतरु व्व | करपन्लवे धुणंतो, तहिं पिहिन्तो य सवणजु्य ॥२९॥ 
मा मित्त ! वयणमेरिसमणंतभवभमणकारणमसुद्धं । हियए वि धरसु सज्जण !, किमंग पुण वयण-किरियासु ? ॥३०॥ 
जेण परत्स विरूवं, जायइ परलोगबाहगं ज॑ वा । तहूरेणं जं होइ बंछियं तेण न हु कर्ज ॥३१॥ 

भणिय॑ च-- 
अक्ृत्वा परसन्तापमगत्वा खलसब्जतिम्‌ । अनुत्सज्य सतां मार्ग, यत्‌ स्वल्पमपि तद्‌ बहु ॥३२॥ 
ता अबरे वि उबाया अणेगरूवा धणज्जणे संति | तेहिं वि जायइ वित्त पुन्तसहायाण पुरिसाणं ॥३३॥ 
ते उण वाणिज्जकला किसिकरम्म॑ गरुयराइणों सेवा | धाउव्बाओ वरदेवयाए आराहणाकरणं ॥३४॥ 
जलनिद्दितरणं पसुपालवित्तिया गिरिगुह्यपवेसो य। इसरगिहकम्मकरत्तमप्पणो विणयकरणेणं ॥३५॥ 
एमाइअणेगविहं अत्थोवज्जणकए अणुट्टाणं | ता कि भवओ भणिएण निंदिएणं संयाणाण १ ॥३६॥ 
तो भणइ तस्स मित्तो, हासेणं मित्त | जंपियमिमं ति। न उणो मरणा वि अकज्जमेरिसं अहमणुट्विस्सं ॥३७॥ 
अत्थोवज्जणहेउं तत्तो दोन्नि वि गया पहद्ठाणे | तत्थ अणेगोवाएहिं विढवियं तेहि पउरधण्ण ॥३८॥ 
जा गणियं ता जाया, पंच्चसहस्सा सुवन्नजायस्स । पत्तेयं पत्तेयं दोन्हँ पि हु दब्वसंखाए ॥३९॥ 
चितियमिमेहिं दव्वं कायकिलेसेण जायमम्हाणं । अन्नत्थ देसियाणं पर॑ क्रिमिएण ? भणियं च ॥४०॥ 
कि तीए सिरीए पीवराए ? जा होइ अन्नदेसम्मि | जा य न मित्तेहिं सम॑ं ज॑ च अमित्ता न पेच्छंति ॥४१॥ 
ता गच्छामो संपइ नियदेसे तत्थ धम्मियजणाणं | नियसयणाण जहिच्छ॑ नियलच्छि संपयच्छामो |॥9२॥ 
परमेयं चोरिभया निव्वाहेउं न तीरह सुबन्नं । ता विणिवद्टिय लेमो महग्घरयणाणि एएण ॥४३॥ 
ताणि सुहं संगोविय मग्गे निज्ंति चितिऊणेवं | किणियाणि-सुवन्नेणं सहस्समुल्लाणि रयणाणि ॥४४॥ 
तत्तो य मलिणजरचीवरस्स गंठीए बंधिडं ताणि । सुमुहुत्तम्मि पयद्टा गंतुं कृप्पडियवेसेण ॥४५॥ 
मग्गे गच्छ॑तेणं मायाइच्रेण चिंतियमणिट्ठं | वंचेऊणं थाणुं गिण्हामि समग्गरयणाणि ॥४६॥ 
तो कवडेणं भणियं भो ! भिकक्‍्खाभोयणेण एएण । पव्वहिया पहदियहं मित्त ! व मग्गपरिसंता ॥४७॥ 
मुबखत्तणेण अहयं काउं कयविक्कय॑ न याणामि। ता आगच्छसु किणिऊण कि पितं मंडयाईयं ॥४८॥ 
परमेत्थ नयरमज्झे न नज्जए केरिसो वि ववहारों ? | तो रयणकप्पडमिमं मह पासे मेक्लिउं जाहि ॥४९॥ 
तत्तो वंचणमइणा नयतरुकरिणा'**'***** कयसिरमणिणा । निदयवणिणा तेणं जं विहिय॑ त॑ निसामेह ॥५०॥ 
तारिसयमलिणचीवरगंठिदुगे बंधिकण पाहाणे | किर एयमप्पिउं गिण्हिऊण सेसं पलाइस्सं ॥५१॥ 
तो आगए तमप्पिय जामि अहं गोरसाइकज्जम्मि | त॑ परिवालसु एव्थेव निग्गए तम्मि इय भणिउं ॥५२॥ 
एसा55गच्छइ मित्तो इय बहुह्ा खिज्जिऊण थाणुबणी । गेहाभिमुहो चलिओ सविसाओ मित्तवसणेण ॥५३॥ 
हा मित्त | सुहय ! त॑ कत्थ दीससे ? कि न देसि पडिबयणं ?। कत्थ गओ सि महायस ! संपद मोत्त ममेगागी ॥५४॥ 
जइ जीवंतो एही मह मित्तो ता इमं धणं तस्स | अह नो एही तम्माणुसाण गेहे समप्पिस्स ॥५५॥ 
एवं थाणू वच्चइ मायाइच्चो वि दूरदेसम्मि | गंतुं जाव निरूवइ पेच्छइ तावुबलगंठिदुगं ॥५६॥ 
तत्तो झुरह पलवइ कुट्टट॒ ॒वच्छत्थलं मलइ हत्थे | दीहरनीसासे मुयइ दुम्मणो रुबइ चितइ य ॥५७॥ 
जो अन्नस्स विरूय॑ चितई तेणेव दुगुणतरगेण । सो हम्मइ कंडेण व पच्चुप्फिडिणण न हु भंती ॥५८॥ 
भमडंतो महिवलयं भिक्‍्खाभोई किलिट्रिपरिणामो | मिलिओ मायाइच्चो कइ्या वि हु थाणुणो मग्गे |५९॥ 


१, ०ण संताणं रं० । २. सकर्णानाम्‌ । ३. गंतू खं० । 


घ्२४ 


आख्यानकमणिकोशे 


तो उक्कंठियहियओ कंठम्मि विलग्गिउं परुज्नो सो । हा मित्त ! मज्क वज्लह ! कत्थ ठिओ एत्तियं काल १ ॥६०॥ 
कि वा सुह-दुहजायं, मह विरहे विसहिय॑ तए मित्त | १। इय पुद्ठों मायाए मायाइच्चो पयंपेह् ॥६१॥ 

अत्थि तुह रयणदसगं समप्पिउं पत्थिओ अहं तइया । गोरसकज्ज तत्तो कम्मि वि गेहे पविट्ठों ह॑ं ॥६२॥ 
चोरो त्ति भणिय गहिओ आरक्खियसंतिएहिं पुरिसेहिं। पक्खित्तो गोत्तीए सुदुक्खिओ जाव चिट्ठामि ॥६३॥ 
भोयावणत्थमेगा तावा55या मज्क मज्मिमा जुबई । तीए कहिय॑ त॑ देवयगाए गहिओ बलिनिमित्तं ॥६४॥ 
घरमज्झवाउलाणं जइ कह वि विणिग्गजो तओ लठट्ढ | तो हं भीओ लहिऊणमंतरं कह वि नीसरिओ ॥६५७॥ 
इय नियवह्यरजायं तुमए ज॑ पुच्छियं तयं कहियं । सुह-दुहकहणाओ अहं जाओ सुहिओ जओ भणियं ॥६६॥ 
मित्तेहि जाव न सुय॑ सुहं व दुबखं व जीवलोयम्मि | सुयणाण हिययलगां ताव5च्छइ नद्धसल्ल व ॥६७॥ 

एवं बच्चंताणं अडवी निम्माणुसा समणुपत्ता । तत्तो छुहाकिलुंतो मायाइचं भणइ थाणु ॥६८॥ 

गिण्हसु रयणाणि इमाणि मित्त)! मह परवसस्स पडिहिंति | तो तेण हरिसिएणं घेत्तणं चिंतियं एयं ॥६५९॥ 
पुणरवि वंचेमि इमं हत्थे चडियाणि मज्क रयणाणि | इय कलुसिणण दिद्ठो तणछन्नो कूबओ तत्तो ॥७०॥ 
अवहत्थिय चिरपरिचयमवगन्निय[निय]कुलक्षमायारं । परिहरिउं पुरिसव्वयमंगीकाउं नरयवड॒णं ॥७१॥ 
उज्िय नियमज्जायं विस्सरिउं सुहिसिणेहसब्भावं | परिचइउं सदयत्तं दूरीकाऊण लोयठिइं ॥७२॥ 

पक्खित्तो पिसुणत्तणमवर्ंबिय तेणमंधकूवम्मि | सरलसहावों मित्तो कयग्धनिकिवसिरोंमणिणा ॥७३॥ 

तत्थ वि पडिओ चितइ पक्खित्तो केण कूवमज्ञम्मि ? | न मुणई सरलत्तणओं थाणू जह मित्तकम्ममिमं ॥७४॥ 
जावुप्पहेण चलिओ इयरो ता हण हण त्ति भणिरेहिं । भिल्लेहिं बंधिऊर्ण मुको घेत्तण रयणाणि ॥७५॥ 
अणुभव दुनह्नयतरुणो कुसुमं रे जीव ! फलमिओ नरओ । इय भाविंतो चिद्द॒द कुइंगिमज्क्म्मि पक्िखत्तो ॥७६॥ 
एत्तो सेणावशणा भणिया मभिन्ना तिसामिभूएण । भो भो ! जोयह नीरं ते वि भमंता गया तत्थ ॥७७॥ 
जत्थथच्छह सो थाणू तणछन्ने कूवयम्मि पक्खित्तो । नीर॑ जाब निहालंति ताव निसुणंति नरसद्ं ॥७८॥ 

भो भो ! मं पहियनरं नरयसमाओ तमंधकूबाअ ।। उत्तारह केणावि हु पक्खित्तं करिय कारुन्न ॥७९॥ 

तेहिं वि सेणावइणों कहिउऊणं कड्डिओ निउत्तेहिं । पुट्ेंण जहावुत्तं कहिय॑ तेसिं नियं चरियं ॥८०॥ 

भो भो ! एस वराओ पक्खित्तो तेण कूबए नुणं । रयणाणि दंसिऊर्ण सब्बं॑ पि विणिच्छियं तेहिं ॥८१॥ 

तेण वि मग्गंतेणं दिद्दो मित्तो कुडंगमज्झम्मि | नीसारिकण तत्तों मग्गे गंतुं पयद्टा ते ॥८२॥ 

बच्चंता य कमेणं पत्ता पच्चंतगाममेगमिमे । तत्तो विचित्तयाए कम्माणमचिंतसत्तीए ॥८३॥ 

जाओ सुहपरिणामो मायाइचचस्स एत्थ पत्थावे । चितियमिमिण। मह चेट्टियस्स धिद्धी ! विख्ूयस्स ॥८४॥ 

ता केण पयारेणं मह सुद्धी होज्ज पावमलिणस्स ? | इय चितिऊण पुद्ठा गामकुलीणा विसुद्धिकए ॥<५॥ 

तेहिं वि केण वि कि पि हु पावविसुद्धीए कारणं भणियं । जावंते सब्वेहिं वि गंगान्हाणं समाइट्ठं ॥<5६॥ 

तो तत्थ पट्टिएणं दिद्लों सिरिधम्मनंदणो सूरी । धम्म॑ं वागरमाणो भव्याणं पावसुद्धिकए ॥<८७॥ 

तत्तो सो वि हु पुच्छइ पच्छायावेण दूमिओ भयवं ! | मह मित्तवंचणउज्जियपावविकुत्तस्स कि ताणं १ ॥८८॥ 
पुव्विल्लगामगामीणएहिं मह मेत्तदोहमलिणस्स । जल-जलण-तित्थण्हाणाइएहिं किल दंसिया सुद्धी ॥८९% 
मुणिनाहो वि पयंपइ इमेहि पुणरुत्तपावजणएहिं । भद्दय | न भवह ताण॑ घुबमन्नाणियबहुमएहिं ॥९०॥ 
अइकूररायकेसरिकरालमुह कुहरमज्झवडियाणं । कत्तो ताणं ताणं मोत्तगाउ5णं जिणिंदाणं १ ॥११॥ 
उब्भडदोसमहागयजगडियगरुयाभिमाणविहवाण | कत्तो ताणं ताण॑ मोत्तणाउ5णं जिणिदाणं ? ॥६२॥ 
पञलियकोहहुयासणजालावलिडज्कमाणहिययाणं । कत्तो ताणं ताणं मोत्तणा55णं जिणिंदाणं ? ॥९३॥ 
माणमहागुरुपव्वयचंपियनिम्मलविवेयगत्ताणं । कत्तो ताणं ताणं मोत्तणा55णं जिणिंदाणं ? ॥२५॥ 
मायादट्ठभुयंगीविसवेयविलुत्तसुद्धबोहणं । कत्तो ताणं ताणं मोत्तणा55णं जिरणिंदाणं ? ॥<२५॥ 


२४. रागाचनर्थपरम्परावणनाधिकारे मायादित्याण्यानकम्‌ २२४५ 


तिहुयणजगडण संपत्तमहिमगुणलोहरायवसगाणं । कत्तो ताणं ताणं मोत्तणा55णं जिणिंदाणं ? ॥९६॥ 
भुवणत्तयसंतावयमच्चुमहारायबयणपत्ताणं । कत्तो ताणं ताणं मोत्तगा55णं जिणिंदाणं ? ॥|९७॥ 
इय सोऊणं सम्मं मायाइच्चो पवन्नजिणधम्मी । आलोइऊण मायामहल्लसल्लं गओ सग्ग॑ ॥९८॥ 


॥ मायादित्याख्यानकं समाप्तम्‌ ॥७८॥ 


इंदानीं लोभनस्‍न्‍यास्यानकमुच्यते | तथ्यथा-- 


नयरम्मि वसंतउरे जियारिनामो नरेसरो आसि | तेणडन्नया सरोवरमेगं कारावियं तत्थ ॥१॥ 
तम्मि उ खणिज्ञमाणे कणयकुसा निग्गया मिउपणिद्धा । निवपच्छन्नं दिन्ना उद्धुहि लोहनंदिस्स ॥२॥ 
विन्नायसरूवेण वि लोह5ग्गलिएण लोहमुल्लेण | गहिऊण तेण भणियं अबरे वि य मज्झ दायव्वा ॥३॥ 
ते वि अणुवासरं पि हु तस्स पयच्छंति अन्नया स वणी । नीओ बलिचंडाए मित्तेणं अन्नगामम्मि ||9॥ 
गच्छंतेणं तेणं पयंपिओ नियसुओ जहा वच्छ ! | लोहकुसा दविणणं बहुएण वि संगहेयव्या ॥५॥ 
ते आगया महम्घत्तणेण कुबिएण सेट्ठितणणण । ताणेगो उल्लालिय खित्तो अन्नायतत्तेण ॥६॥ 
पाहाणे अब्मिट्टो विघट्टिया मद्विया तओ तस्स । दिद्लो य दित्तकंचणविणिम्मिओ रायपुरिसेहि ॥७॥ 
भणियं च तेहिं चोरा वणियाणं दिति रायदविणमिणं । तो बंधिऊण खिक्ता रायपुरो पुच्छिया तेण ॥८॥ 
हट्टडम्मि कस्स कस्स य दिल्नमिणं ? ते भणंति न5न्नस्स । मोत्तण लोहनंदि सामि ! समग्गं पि तुह दविणं ॥«॥ 
पढम॑ पि हु जिणदासस्स दंसियं तेण गिण्हियं नेय । तो वाहरिय स पुट्टो निवेण कि न हु तए गहिय॑ं १ ॥१०॥ 
तेणुत्त सामि ! सया वयाणि मह संति ताणमेगयरं । भज्जइ गिण्हिज्जंतो तेण इमं देव ! नो गहियं ॥११॥ 
तो तुट्ेण भरिंदेण पूहउं सो विसज्जिओ गेहे । छूसियमसेसगं पि हु गेहं पुण लोहनंदिस्स ॥१२॥ 
आणत्ता तग्गहणाय नियभडा भिउडिभासुरनिडाला । तेण वि आगच्छंतेण जाणिओ एस वुत्तंतो ॥१३॥ 
छिन्न॑ च॒ कुढारेणं चरणजुय्यं एवमुल्लवंतेण | एएहिं पाविओ<5हं अइघोरं आवइं एवं ॥१४॥ 
सुहडेहिं तह वि एसो नीओ कुद्धेहिं रायपयपुरओ । तेणावि मारिओ सो दुम्मरणेणं विडंबेउं ॥१५॥ 

॥ लोभनन्याख्यानकं॑ समाप्तम्‌ ॥७६॥ 


इदानीं नकुलवणिज्याख्यानकमुच्यते-- 





३३ 


उज्जेणीए पुरीए सहोयरा दोन्नचि आसि वणियसुया । सिवसिवभद्दभिहाणा दुरंतदोगच्चसंतत्ता ॥१॥ 

दोलि वि दविणोवज्अणकज्जम्मि गया सुरद्गवविसयम्मि । दुक्खोवज्जियदविणं नउले काउं पडिनियत्ता ॥२॥ 
जइया जेट्डसयासम्मि नउलगो सो विचितए तइया । हणिऊण कणिट्टं सब्बमेव गिण्हामि दविणमिमं ॥३॥ 
सिवभद्दस्स वि जायइ चिता एसेव नउलसहियस्स । इय बुद्धिजुया नियनयरिपरिसरे दो वि संपत्ता ॥9॥ 
गंधवईए नईदए दहम्मि परिभमिरमयर-तिमिनियरे । पयसोहणं कुणंतेण चितियं तयणु जेट्ेंण ॥५॥ 

अत्थो धुवं अणत्थो जेण महामोहविसविमूढेण । पाणप्पियस्स वि मए विचितियं बंधुणो हणणं ॥६॥ 

ता अलमिमिणा नियजणविणासकरणेण पावरूवेण | इय चिंतिऊण नोरम्मि निवलओ खित्तओं तेण ॥७॥ 
भणियं तओ कणिद्वेंण हा ! किमेयं तए कयं भाय ! ? । तेणुत्तमस्स दोसा मारिउमिच्छामि त॑ं सहसा ॥८॥ 
तेणेस मए खित्तो दहम्मि त॑ निसुणिउं भणइ लहुओ । तुह मारणम्मि मज्ञ वि आसि इमा लोभओ चिंता ॥९॥ 
ता बंधव ! सुद्दुं कयं जमेस खित्तो तरंगिणीनीरे | इय भणिय हिट्ठहियया नियगेद्दे दो वि संपत्ता ॥१०॥ 
तच्चरणसोयणाई काउं जणणीए तेसि लहुभइणी । मच्छाणमाणणत्थं ताण कए पेसिया हट्टे ॥११॥ 

एत्तो य निवलओ सो गिलिओ तिमिणा छुहाकिलंतेण । तत्तो य जालिएणं स मच्छओ गिण्हिओ तत्थ ॥१२॥ 





१. गुणमोहराय -खं० रं०। 


२२६ आख्यानकमणिकोशे 


नीओ उ विवणिमज्ञे कोओ भवियव्वयाए सो तीए । वंजणनिमित्तमेदए छिंदिओ मंदिरे गंतुं ॥१३॥ 

दिटद्ठो य नउलुओ तयणु झत्ति मुक्को नियम्मि उच्छंगे | पच्छायंती त॑ पेच्छिछण जणणीए सा पुद्ठा ॥१४॥ 

कि पच्छायसि वच्छे | १ न किंपि इय तीए जंपिए जणणी । निस्संकियकरणत्थं तीए समीवम्मि संपत्ता ॥१५॥ 
मम्मद्वाणे चूल्हेत्तरण सहस त्ति तीए हणिया सा | त॑ निवर्डति द्ठूण दो बि तप्पासमल्लीणा ॥१६॥ 

ते दूं भयकंपिराए तीए सयासओ पडिओ । सो निवलओ तओ तेहिं चिंतियं ह ! स एवेसो ॥१७॥ 

तो दो वि विसन्नमणा भणंति ज॑ं दूरमेव परिहरियं | तं॑ पुरओ चिय जायं अहह ! महापावपरिणामो ॥१८॥ 
लोहतिमिरंधनयणा जीवा सयणं पि सत्तुठाणम्मि । पेच्छंति जओ एद्रंए मारिया निययजणणी वि ॥१९॥ 

ता एयारिससंतावकारयं परिहरित्तु गिहिवासं । इह-परभवहियकरणं तवचरणं किंपि काहामो ॥२०॥ 

इय जंपिऊण काउं मयकिच्चमसेसयं पि जणणीए । भइणीए तयं दाउं दविणं तो दो वि गंतृर्ण ॥२१॥ 
सुत्यियसूरिसमीवे पव्वइ्या चरियचारुतवचरणा । परिपालियसामन्ना दोन्नि वि सुगईं समणुपत्ता ॥२२॥ 


॥ नकुलवण्याख्या नक॑ समाप्तम्‌ ॥८०॥ 
रागाइदोसवसओ पत्ताणि जहा इमाणि दुह्वसणं । 
तह अन्नो वि हु पावह ता एयविणिग्गहं कुणह ॥१॥ 


हे धार्मिका: ! प्रशमसम्भृतिमुक्तिवश्यान्‌ , रागादिशत्रुविसरान्‌ कुरुत प्रयल्नातू । 
एते हि धमपथवर्तिनमप्यकस्मादुन्मार्गमझ्निनिवहं नितरां नयन्ति ॥२॥ 


॥ इति भ्रीमदाम्नदेयसरिविरचितवृक्तावाख्यानकमणिकोशे रागाद्यनर्थ परम्परावणनश्चतुर्विशतित मोडघिकारः समाप्त: ॥२४॥ 
6&&ट्रऊ9 


[ २५, च्ञान्तिगुणवणनाधिकारः ] 


रागादिरिपवो3नथंजनकत्वेन जेतव्या इत्यभिहितम्‌ । साम्प्रतमुपलक्षणद्वारेण क्रोधरिपुजयलक्षणां क्षान्तिमाह-- 
स-परोभय गुणहेऊ खंती ता त॑ कुणेज्ज इृह नाया | 
खुडमृणि-नंदिसेणा तह सीसो चंडरुददस्स ॥३३॥ 
अस्या व्याख्या--स्व-परोभयेषाम' आत्म-परोभयस्वरूपाणां “गुणहेतु गुणकारणं 'क्षान्ति:” क्षमा। 'तत्‌” तस्मात्‌ 
कारणात्‌ 'तां' क्षान्िति 'कुयोंद! विदध्यात्‌ । 'इह” अस्मिन्नर्थ 'नाय? त्तिज्ञातानि क्षल्लकमुनि-नन्दिषेणो, 'तथा” तेनेव प्रकारेण 'शिष्यः” 
विनेयः “चण्डरुद्रस्य' चण्डरुद्राभिधानसूरे: इत्यक्षराथ: | भावार्थो5पि प्राक्‌ प्रतिपादिताख्यानकेभ्यो ज्ञेयः ॥३३॥ 
जह एयाणं खंती सपरोभयगुणपसाहिया जाया। 
अन्नस्स वि तह जायश ता तीए जयह जहसत्ती ॥३४॥ 
क्षान्त्या सदेव मनुजा: सुरपूजनीया:, क्षान्तया भवन्ति भविनों भुवि माननीयाः । 


क्षान्या वसन्ति सुरसझसु शमभाज:, क्षान्त्या बजन्ति शिवतामिति तां कुरुध्वम्‌ ॥१॥ 
॥ इति भ्रीमदाप्नदेवस्‌रिविरचितशुत्तावाख्यानकमणिकोशे क्षान्तिगुणवणनः पत्नविशतितमो5घिकार: समाप्त ॥२४॥ 


6-७5) 


[ २६. जीवदयागुणवर्णनाधिकारः ] 
गुणहेतुः क्षान्तिरभिहिता । इमां च जीवदयावानेव प्रायो विधत्ते इत्यतो जीवदयागुणवत्तामाह-- 


दीहाउयाइहेऊ जीवदया हद परे य सुहहेऊ। 
सड्डसुओ ग्रुणमहया मेहों दामश्नगो नाय॑ ॥३४५॥ 


अस्या व्याख्या--दीहा उयाइहेउ' त्ति भावप्रधानत्वाद्‌ निर्देशस्य दीघोयुप्कत्वादिहेतु: दीधोयुष्कत्वं-चिरजीवित्व॑ं आदि- 
थंषां नोरोगत्वादीनां गुणानां ते तथोक्ताः तेषां हेतु:-कारणं 'जीवदया? प्राणिदया 'इह' अस्मिन्नेव लोके 'परे च' परलोके च 'सुखहेतुः? 
सौख्यनिमित्तं भवतीति शेष: । दृष्टान्तानाह--सड्डसुओ! त्ति ग्ृहीताणुब्रतः परकूलसूपकारहस्तविक्रीत: श्रावकसुतः 'गुणमती च' 
श्रेष्ठिुता 'मेघश्व” श्रेणिकराजसुतः 'दामन्नकश्च' मत्स्यबन्धकजीवः “नायं' ति प्रत्येकं योजनीयम्‌ इत्यक्षराथ: ॥३५॥ भावाशथस्त्वास्या- 
नकगम्य; । तानि चामूनि-- 


धन्नउरग्गामे माणिभदसेट्विस्स धम्मरु३ पुत्तो | सम्ममणुव्वय-गुणवयधारी सम्मत्तथिरचित्तो ॥१॥ 
जिणचलणकमलभसलो निश्व॑ गुरुपायपूयणे सत्तो । कइया वि सह वयंसेहिं निग्गभो गामबहिभागे ॥२॥ 
पत्तो य तकरेंहि नीओ नयरीए सो अवंतोए । दिज्ञो दविणेण नरिंदसूबगारस्स तो तेण ॥३॥ 

नीओ रसवहसालाए पमणिओ लावयाण हणणद्ठा । रे ! ऊसाससु एए वंजणकज्जे नरिंदस्स ॥४॥ 

सो पाणिवहाईणं विरओ करुणापवन्नहियओ य | तो तेण पासयाओ छोडेउ' लावया मुक्का ॥५॥ 

दिट्टो य सूवकारेण जंपिओ कि तए इमे मुक्का ? सो भणहइ तुज्ञ वयणं मए कय॑ किमिह पुच्छाए १ ॥६॥ 
आवलिऊर्णं कंधरमिमेसि मोक्‍्खं विहेसु बीयदिणे । इय सिक्‍्खविउं तेणं समप्पिया तित्तिरा तस्स ॥७॥ 
बीयदिणे वि हु तेणं वंक॑ काऊण कंधरं नियय॑ | उप्पाडेउ' मुक्का उद्धुअणं गया सब्वे ॥८॥ 

तइयदिणे गाढयरं निब्बुद्धिय ! मंसमक्खणनिमित्त । मारसु एए इय भणियमप्पिया छावया तस्स ॥९॥ 
जइ एवं ता सिद्ठाण निंदियं नरयकारणं घोरं । पाणच्रए वि नाहं करेमि एयारिसं पाव॑ ॥१०॥ 

तत्तो य सूयकारेण आसुरुत्तेण ताडिओ बाढं । धम्मरुई धम्मरुई तह वि न मन्नेइ तव्बयणं ॥११॥ 

तो पुणरवि निट्ठुरयरपहारनियरेहिं ताडिओ संतो । कंदंतो गुरुसद' सुओ महीसामिणा एसो ॥१२॥ 
वाहरिय सूवगारो पुट्टो कि एस कंदए करुणं १ | सो भणइ देव ! एसो विक्विज्जंतो मए गहिओ ॥१३॥ 
न कुणइ जीवविणासं ति ताडिओ निट्ठुरं मए रुयइ । पुट्टी सो वि नरिंदेण कि न जीवे विणासेसि ? ॥१४॥ 
सो भणइ मए विहिया जावज्जीवं पि पाणिवहविरई । आह निवो न हु नियमो पलइ परायत्तवित्तीणं ॥१५॥ 
ता कुणसु पाणिषायं न हु मन्नर सो तओ नरिंदेण | तस्स परिक्खनिमित्तं भिउडोभीसणनिडालेण ॥१६॥ 
ताडाविओ सुनिट्ठुरकसप्पहारेहिं तह वि मण्यं पि। न हु मन्नइ पाणिवहं तओ महादुद््करिपुरओ ॥१७॥ 
पक्खिविउ' भेसविओ संतो चिंतर मणे महासत्तो | जीव ! तुह वेयणीयं कम्मं समुवद्धियं सहसु ॥१८॥ 


वरमत्थु मज्झ मरणं अक्खंडियनिययनियमजुत्तस्स । न उणी जीवबिणासो चलम्मि जीयम्मि भणियं च ॥१९॥ 
एकस्स कृए नियजीवियस्स बहुयाओ जीवकोडीओ । दुक्‍्खे ठवंति जे केइ ताण कि सासय॑ जीय॑ं ? ॥२०॥ 
इय चितंतो एसो भणिओ रज्ञा न मन्नए जाव। तो नाओ नियनियमे थिरचित्तो एस नरबइणा ॥२१॥ 

तो एस अंगरक्खगपयस्स जोगो त्ति चिंतिउं तेण। काऊण सप्पसाओं निवेसिओं अंगरक्खपए ॥२२॥ 
विस्सासठाणमेसो जाओ दिल्नो य तस्स वरदेसो | त॑ उबभुंजिय बहुकालमसमरिद्धीए संजुत्तो ॥२३॥ 


श्श्८ आख्यानकमणिकोशे 


पासे केसिं पि गुरूण गिण्हिउं दिक्‍्खमुत्तमं तत्तो । कयतिव्वतवच्च रणो कमेण सुगईं समणुपत्तो |२४॥ 
॥ श्रायखुताख्यानक समाप्तम्‌ ॥८१॥ 
इदानीं गणमत्याख्यानक व्याख्यायते-- 


नयरम्मि सुसम्मपुरे राया ससिसेहरो हरो व्व तहिं । निवसइ धणाभिहाणो नरबइणो सम्मओ सेट्टी ॥१॥ 
नंदो व्व गोडरूपिओं गयणाभोओं व्य सुहयमुणिचंदो । भव्वो व्व गुणमइसुओ नयवं व सुसंपयाधरओ ॥२॥ 
मुणिचंदनिव्विसेसो कम्मयरो थावरों थिरप्पयई । सव्ब॑ पि हु घरचितं चितइ चउरो विचित्तं पि ॥३॥ 
अह अन्नया य सेट्टी तिहुयणसाहारणेण मरणेण | धणवं पि घणो निहणं नीओ घणियं अधणिड व्व ॥४॥ 
मुणिचंदो सेट्टिपयं परिपालइ गुणमई वि जिणधम्मं | सा उण असंपया संपया वि जाया कुकम्मवसा ॥५॥ 
विनडिज्जंती अवसेहिं इंदिएहिं दिणं पि राइ' पि। अब्मत्थदह थावरयं विसयत्थे सुत्थयाहेउं ॥६॥ 
सो उण तह वि बराओ मयणंसूगाहुओ जसोकामी । भणइ य विरूवमम्मी ! वयणमिणं जं तुम॑ं वयसि ॥७॥ 
त॑ मह जणणी अहयं तु तुह सुओ विस्सुयं जणम्मि इमं । ता अंब ! इममकज्जं न जंपणीयं न करणीयं ॥८॥ 
अन्न च गेहसामिम्मि विज्जमाणम्मि अंब ! मुणिचंदे । एरिसमकज्जमेवं किज्जंतं केरिसं ? कहसु ॥९॥ 
तीए भणियं एय॑ सुत्थं सब्बं करिस्समवरं च | गिहसामित्तमयाणुय | किमेवमंगीकरेसि न त॑ १ ॥१०॥ 
इय तं॑ मन्नावेउः मायाबहुलाए जं समारद्धं । आयन्नह तमयंडे सा पावा रोविउ' रूग्गा ॥११ 
कि अम्मो ! रुयसि तुम ? पुद्ठा मुणिचंदसेट्टिणा सब्बं । तीयुत्त नियकज्जं सीयंतं वच्छ ! रोएमि ॥१२॥ 
तेणुत्तं केरिसयं ? कबडेणं सा पयंपइ सदुक्खं । दुद्धाइ गोडलाओ तुह जणओ बच्छ ! आणंतो ॥१३॥ 
त॑ पुण पमत्तचित्तो करेमि ता क्रिमिह गोरसेण विणा । सयणाईयं कज्जं ? तेणुत्तं मा वय विसाय॑ ॥१४॥ 
सयमाणिस्सामि इहं तो तीए गोउलम्मि पेसविओ । थावरएणं समय॑ नाऊण्ं गुणमईए इमं ॥१५॥ 
सिक्‍क्खविओ मुणिचंदो होयव्वं निश्वमप्पमत्तेणं । न मुणसि मुद्धत्तणओ नियजणणीविलसियं तुमयं ॥१६॥ 
सो वि हु खग्गागरिसणपमुहं थावरयचेट्टियं मुणिउं । सुट्ठु यरं अपमत्तो पत्तो नियगोउलूम्मि तओ ॥१७॥ 
पडिवत्ती सव्वा वि हु विहिया गोडलियसामिणा तस्स । सामि त्ति मुणिय सेज्जा रइया रयणीए गिहमज्ञे ॥१८॥ 
तेण वि भणियं बहुद्विसद्ट्वसंखाणजाणणनिमित्त । गोरूवाणं गोवाडयम्मि सोविस्समज्जमहं ॥१९॥ 
तह विहिए सेज्ञाए खोडि पच्छाइऊण वत्थेणं । सयमेगंते थक्ो जग्गंतो खग्गवग्गकरो ॥२०॥ 
जाव य थावरएणं खग्गपहारेण आहया खोडी | ता हक्षिऊणमियरेण मारिओ खग्गघाएण ॥२१॥ 
लोयाववायरक्खत्थमेस निक्कालिऊण गोवग्गं | पोक्कर्‌इ मारिऊणं थावरयं निति गावीओ ॥२२॥ 
एए चोरा तो वालियाओ गाबीओ कुढियवर्गेणं | सयमारुहिउं तुरय॑ तुरियं पत्तो निययगेहं ॥२३॥ 
जणणीए थावरए पुद्ठे कहियं समेद मग्गम्मि | तो संकियाए तीए पिपीलियासरणओ कहवि ॥२४॥ 
थावरयरत्तरत्तं तीए थावरयरत्तरत्ताए | खच्छंखच्छाए दिद्ठमसिवरं समिवपावाए ॥२५॥। 
मुणिचंदसिरं छिन्‍न तीए तेणेव तयणु खग्गेणं । चक्कण राहुसीसं व विण्हुमुत्तीए रुद्टाए ॥२६॥ 
मुणिचंदमहेलाए विणासिया सा वि तेण खग्गेणं । तह चेव ठिया त॑ नियद गुणमई पाणिवहविरया ॥२७॥ 
मिलिए लोए सब्बो वि वश्यरो गुणमईएण सो कहिओ । धन्ना सलक़खणा तं सि संसिया सा वि लोएणं ॥२८॥ 
॥ गुणमत्याखल्यानक समाप्तम्‌ ॥८२॥ 

अधुना मेघाख्यानकमारभ्यते । तश्चेदम्‌-- 
वायरणं व गुणाहियसुसद्संगयवियाररमणीय । निम्मलवन्ननिवेसणपसा हिय॑ चित्तयम्मं व ॥१॥ 
विस्सुयणेगविणायगमेगविणायगगुणज्बियजसोहं । जमणेगहरविराइयमेगहरं हसइ कइलासं ॥२॥ 


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१. साडधसुता० प्रती । 





२६. जीवद्यागुणवर्णनाधिका रे मेघाल्यानकम्‌ २२६ 


नाणाविहवत्थव्वयदिय-खत्तिय-वणियवासगेहं व । नयवंतसगुणजणमंदिरं पि पुरमत्थि रायगिहं ॥३॥ 

त॑ पालइ समरहिओ5समरहिओ गुरुपरक्कमावासो । वीसं पि हु पसरियपवरसेणिओ सेणिओ राया ॥४॥ 

जो साहीणसुहत्थी परमरहों पठरसुहयपरिवारों | विस्सुयसुहडसम्‌ हो चउरंगबछो उभयहा वि ॥०५॥ 

तस्स य सुनंद-चेल्लणपहाणओरोहमज्कयारम्मि | सब्बंगसुंदरंगी समत्यि सिरिधारिणी देवी ॥६॥ 

जा हरइ मणं सारयसिरि व्व निम्मलनहा विरायंती | तह य सलक्खणचरणा जणपुज्ञा वेयकिरिय व्व ॥७॥ 
सुघडियपवित्तजंघा पासायपरंपर व्व मणदइया । परमोरुजुया रेहह रहवरराह व्य रमणीया ॥८॥ 
सुकुमार-सुहयरमणा नवजोव्वणललियकलियविलय व्व । जिणमुत्ति व्व गभीरा परमयसमणे हिया सहइ ॥९॥ 
लच्छि व्व मयणसुहया सया वि परमोयरा विसालच्छी । लायन्नललामरसा सुहथणिया मेहमाल व्व ॥१०॥ 
वेल्लहलललियबाहा पयंडनरवरनिउत्तसेण व्व | रामसह व्व समंता सुग्गीवा हियसयाण सुहा ॥११॥ 
कउरवभडयणसेणि व्व सव्वया सहइ सरलसुहकन्ना । जिणदेसण व्व भविययणसवण-मणमसुहयसुहबयणा ॥१२॥ 
विलसिरनिद्धसुरयणा भाइ पुरंदरमहायुरवरि व्व | निम्मलविसुद्धदिद्टी सिवसुहमणसमणकिरिय व्व ॥१३॥ 
निव्वणनिद्धनिडाला निरुवहयपहाणपायवालि व्व | विलसिरसुरम्मवाला सपुन्नपुन्नायनारि व्व ॥१४॥ 

एवं किर को सक्कह तीए पहअवयवं सरीरगुणं । बन्नेउं विन्नो वि हु अच्चब्भुयपवररूवाए ? ॥१५॥ 
तस्स5त्थि पवरपुत्ता अभओ नामेण नायपरमत्थो । मज्कमम्मि महामंती पंचण्ह सयाण मंतीणं ॥१६॥ 

बुद्धीसु चउसु चउरो निउणो चउसुं पि रायनीईसु । सब्वकलाण वराए धम्मकलाए विसेसेणं ॥१७॥ 
आरोवियरज्जभरो सो तम्मि सुयप्पह्णमंतिम्मि | उवभुंजंतो विसए निच्चितो गमइ दियहाईं ॥१८॥ 

अह अजन्नया य पासिय सुहसुमिणं धारिणी महादेवी । सुमिणस्स फलं नाउं निवपासे जाइ मुइहयमणा ॥१९॥ 
इद्टाहिं पियाहिं सुहाहिं चित्तपल्हायणाहिं कंताहिं | मउयाहिं मणामाहिं सयत्थजुत्ताहिं वायादि ॥२०॥ 
आलवमाणी विणएण सेणियं हिययवल्लहं रायं । सणियं सणियं सणियं पास[य]मल्लियइ मणदइया ॥२१॥ 
निसियद समणुन्नाया निवेण नियडम्मि पायवीढम्मि । सप्पणयमभिष्पायं कयप्पणामा भणइ देवी ॥२२॥ 
अहमज्ज तम्मि पहु | तारिसम्मि सुमणुन्नवासभवणम्मि | मणि-रयणपहानासियतमंधयारम्मि रुइरम्मि ॥२३॥ 
दोसु वि पासेसु समुन्नयम्मि मज्से गभीरविणयम्मि | सुकुमालतूलि-गंडोवहाण-आलिंगिणिजुयम्मि ॥२४॥ 
सयणम्मि पसुत्ता सुत्तजागरा कि पि कि पि सुहनिद्दा । सुमिणमिमं पासित्ता ससंभमा सामि ! पडिबुद्धा ॥२५॥ 
सत्तंगसुप्पइट्टं तुसार-ससहरवलक्ख चउदंतं । संगय-समुन्नयकरं समग्गलक्खण-गुणोवेयं ॥२६॥ 

किर गयणादवयरिउ' मयसलिलूपवाहधोयगंडयल । वयणम्मि पविसमाणं गयमेगं सामि ! पासामि ॥२७॥ 
ता सामिय ! कि मन्‍ने होही मह फलमिमस्स सुमिणस्स ? | भणह निवो एस पिए ! पहाणसुमिणाण मज्ञम्मि ॥२८॥ 
ता ओरालो सुमिणो कल्लाणकरो य मंगलकरो य । वंससमुन्नहजणगो पयइपहाणो इमो सुमिणो ॥२९॥ 

त॑ अम्हं कुलकेउ' कुलसेउं कुलबडिसयमुयारं । कुलकित्तिकरं कुलविद्धिकारयं कुलपसाहणयं ॥३०॥ 
अद्भद्ठमदिवसाणं नवन्ह मासाणमुवरि वरपुत्त | दिणयरमिव पुव्बदिसा देवाणुपिण ! पयाइहिसि ॥३१॥ 

सो वि हु परिवष्ट तो तणुवचएणं कलाकलावेणं । होही नाहो पुहईए भावियप्पाउणगारों वा ॥३२॥ 

त॑ वयणं सोऊणं धारडब्भाहयकयंबपुप्फं व । ऊससियरोमकूवा संवुत्ता धारिणी देवी ॥३३॥ 

भणह य देव-गुरूणं पयप्पसायाओ जं तए भणिय॑ । तुम्ह पभावाओं वा होही सव्बं॑ पि मह एवं ॥३४॥ 
इय सुयसूयासंजायहरिसपप्फुल्ललोयणा देवी । वत्थंचलम्मि सहसा बंधइ वायासउणगंठिं ॥३५॥ 

तत्तो सेणियकंता परिणममाणम्मि तइयमासम्मि । असरिसपुन्नाहियसुकयलब्भगब्भाणुभावाओ ॥३६॥ 

कुणइ मणे दोहलयं गब्भट्वियजीवविलसियसरूवं । इममेयारिसरूव पुरिसासज्ञ तयं सुणगह ॥३७॥ 


बम -नझ--०--०+०+-“-+० >> न०्-न_-- +. हा खक>क--+ 77०० 


१, डलय॑ खं० । 


२३० 


आखश्यानकमणिकोशे 


धन्नाओ ताओ पुत्ताण मायरो ताओ सुकयपुन्नाओ । कयलक्खणाओ ताओ विदत्तसच्चरियविभवाओ ॥३८॥ 

नणु तासिमम्मयाणं सुलुद्धमिह जन्म जीवियफर च | जाओ विविहदविभूसगभूतियसेयणयम्रारूढा ॥३९॥ 

सह सेणिएण रन्ना धरिज्वमाणेण सेयछत्तेण । अब्भुन्नएसु अब्भुग्गएसु पणवन्नमेहेसु ॥9०॥ 

सप्फुतिएसुं सुहगज्जिएसु निव्ववियमेदणितलेसु । पुरतिग-चडक्क-चच्चर-चउम्मुहेसुं निवपहेसुं ॥४ १॥ 

आरामेसु वणेसु उज्जाणेसु सकाणणवरेसु । वेभारगिरिगुहासु सकंदरासु दरोसु च ॥9२॥ 

वियरंति जहिच्छाए वियरंतीओ मणुन्नमसणाई । तह विविहृवत्थ-तंबूलपभिइपणइयणवम्गेसु ॥३३॥ 
नायरयजणावरिया महरिह-मणहरमहाविभूईए । पूरेमि मणोबंछियमहमबि जह कहवि एवमिमं ॥०9०॥ 

तो तम्मि मणोभिमए अपूरमाणम्मि भिज्जिउ' रूग्गा | पहद्विसमसियपक्खम्मि चंदमुत्ति व्व विच्छाया ॥४५॥ 

तो सेणिएण पुदट्ठा साहीणे वि हु समत्थवत्थुम्मि | किसिया कोस किसोयरि ! साहसु किंपि हु मणोभिमयं ॥४६॥ 
तो साहियम्मि तीए नियगम्मि मणोरहम्मि नरनाहो । आयमुवायं वा तस्स साहगं कमवि अनियंतो ॥9७॥ 
परिसिढिलियरज्जघुरो पडिओ चिंतामहासमुद्दम्मि | किंकायव्वविमूढो चिट्ठइ नं हरियसव्वस्सो ॥४८॥ 

ताव य अभयकुमारों पत्तो पिउपायपणमणनिमित्त । वक्खित्तमणत्तणओ ना55भट्टो न वि य विन्नाओ ॥०९॥ 

तो पुच्छियमभएणं तुब्भे मं ताय ! अन्नया इंतं । आभासह आमंतह निसियावह निययउच्छंगे ॥५०॥ 

जिग्घह सिरम्मि भद्धासणेण तुट्ठा य म॑ निमंतेह । ओहयमणसंकप्पा । कि झायह अज्ज ? में कहह ॥५?॥ 

रज्ना भणियं सम्म॑ वियाणियं वच्छ ! मज्क सुन्त्त | जं॑ चुल्लमाउयाए संजाओ दोहलो एस ॥५२॥ 

जत्थ न पसरइ बुद्धी न यावि संकमइ पोरिसं मज्म | न य विहवेणं सिज्ञह तो तच्चिताए सुन्नो हं ॥५३॥ 
अभणएण तओ भणियं कज्जमिमं तुज्स ताय ! विसम॑ पि। साहिस्समहं ताओ निराकुलो संपयं भवउ ॥५४॥ 

तत्तो पोसहसालाए पुव्वसंगइयगरुयदेवस्स । आराहणत्थमारुहह दब्मसंथारयं अभमओ ॥५५॥ 

ताहे परिणममाणम्मि अट्ट मे सुद्धफाणसहियर्स । मणि-रणयभासुरं दिव्वमासणं चलियममरस्स ||५६॥। 

तत्तो रवियरभासुरकिरीडकुंडलपहा|कडप्पेण | उज्जोयंतो गयणं पाउब्मूओ पुरो अमरो ॥५७॥ 

साहिउकामो पत्थुयपओयणं अभमयसंगइपहाणो । पयडपयावो अमरो गयणगओ सहह सूरो व्व ॥५८॥ 
गरुयपयावो5भयवंछियत्थनिप्फायगो अमररूवो । मेहकुमरस्स रेहद भविस्सतवतेयपुंजो व्व ॥५२॥ 

सो वि हु विरइयकरकमलसंपुडो भणह सप्पणयमभयं । भो भो ! भणसु महायस ! कि सरिओ हं तए अज्ज ? ॥६०॥ 
ता भणसु जमभिरुइयं कि रज्ज देमि ? किमरिसंदोहं । तुह निट्ठवेमि ? किमवरमसज्झमिह किपि साहेमि १ ॥६१॥ 
तं॑ सुणिऊणं जंपियमभएणमकालमेहदोहलओ । जाओ मह मायाए तो त॑ पूरसु महाभाग ! ॥६२॥ 

एवं करेमि भणिऊण सुरवरों सो तिरोहिओ सहसा । तत्तो अचितदेवप्पभावओ मेहपडलेण ॥६३॥ 

कत्थ वि य सामवन्नेण मइलियं निम्मलं पि गयणयल्ं । गरुओ वि हु मइलिज्जह अहवा मलिणेण न हु भंती ॥६४॥ 
रेहइ घणेण जह रायवइवन्नेण गयणवित्थारों | तह सेणिओ वि गरुणबंतमावियपुत्तप्पसूएणं ॥६५॥ 

अवरत्थ सरसजासुयणरत्तवन्नेण जलयविंदेणं । अप्फुन्नं गयणयलं भुवणं व निवाणुराणणं ॥६६॥ 

कत्थ वि य सुवन्नसमुज्जेण जह सहइ नहयलाभोओ । मेहेण विमलगब्भष्टिएण तह सेणिओ राया ॥६७॥ 

अन्नत्थ बलाहयमिलर्णाबउणधवलेण धवलियं गयणं | जलएणं घवलिज्जइ निम्मलवन्नेण5हव सब्वो ॥६८॥ 

इय सप्पवंचवन्नेहिं मालियं वित्थयं पि गयणयल्ूं । जलए॒हि जय॑ व गुणेहिं सिरिमहावीरनरबइणो ॥६५॥ 
सेयणयगयारूढा ताहे सा विहरिया जहिच्छाए | सम्माणियदोहलया सुहेण गब्भं समुव्यहई ॥॥७०॥ 
समुवचियंगा-5वयवं पुन्नाहियपुहइपालरज्ज व | लवणमहोयहिनीरं व सरसलायन्नरमणीयं ॥७१॥ 
सारयदिणदिणमणिमंडलं व विप्फुरियतेयपब्भारं । नाणयपारिक्खियमंद्रिं व सुहरूवयमणुन्नं |७२॥ 
सूरजणचंभणिज्ज' गुणन्नियं वरधणु व सुहवंसं । माणससरं व जीसे सहइ सरीरं विसालरूच्छ ॥७३॥ 


त॑ जहा-- 


२६. जीवद्यागुणवर्णनाधिकारे मेघाल्यानकम्‌ २३१ 


तीसे सिरिमवलोहय नयरं सब्बं पि वियसियच्छि-मुहं । जाय॑ खलो व्व एक्क साममुहं नवरि थणजुयलूं ॥७४॥ 
सणियं निसियह्ट सणियं च सयह सणियं च कुणइ चंकमणं । मणिकुद्टिमम्मि वियणे चिद्ठृह् निरुबदवे ठाणे ॥७५॥ 
ज॑ नाइतित्तमसणं न यावि कडुयं न यावि अइअंबं । जं नाइसीयमुण्हं वेलाइक्कमविमुक्क॑ ज॑ ॥७६॥ 

ज॑ं तस्स पुट्टिजणयं वुड़ियरं जं च तस्स गब्भस्स । जं च हियं ज॑ च मिय॑ परिणामसुहं च जं तस्स ॥७७॥ 
उउसमयसुहयफासं वत्थुत्अलरयणकंबलाईयं । काले देसे य तयं उवभुंजइ वज्जियविसाया ॥७८॥ 
मुक्कजहिच्छायारा चेट्टइ सब्व॑ पि तयणुरोहेणं । विलयायणस्स गब्भो अहो ! पिओ भणियमेयं पि ॥७९॥ 
दुद्ध॑ं गब्भो तूरं घुसिणंडजण-कत्तणं च पिसुणत्त | पाएण महिलियाणं इद्ठाईं भवंति लोयम्मि ॥८०॥ 

तत्तो नवण्ह मासाणमुबरि अद्धट्टमाण य दिणाणं । नियदेहकंतिपब्भारभरियनिस्सेसदिसिवलूयं ॥८१॥ 
सुकुमालपाणि-पायं लक्खणपडिपुन्नविग्गहाइवयवं | कंतं पियं मणुन्न नियवंससमुत्ननकरं च ॥८२॥ 
बुहयणपसंसणिज्ज॑ं समुच्चकुल-गोत्तसंसियं सुहयं । पुन्बदिसा दिणनाहं व पुत्तरयणं पसूया सा ॥८३॥ 

तत्तो य रभसवसपक्खुलंतपयपाय-तुरियगमणवसा । परिसिढिलियपरिहाणा सिरसंसियउत्तरीया य ॥८४॥ 
हिययब्मंतरह रिसुब्भवंतजणसुहमणोरहा धणियं । वद्धावद निव्चेडी पियंकरानामिया निवईं ॥<५॥ 

तो सो जमंगलगं वत्थाउलंकारजायमइरुइरं । तं से सब्बं पि हु पारितोसियं देह दासीए ॥८६॥ 

त॑ कुणइ मत्थयं धोविऊण परिवारमज्कमयारम्मि | पियभासणाओ तुट्टो वियरह य सुवन्नमयजीहं |॥८७॥ 

अह पुत्तजम्मसवणुब्भवंतसव्बंगपयडरोमंचो । आणंदियनायरयं कारवइ महसवं राया ॥८८॥ 


गंभीरमहुरवज्जिरचउब्विहा उज्जरावरमणीयं । नचिरवारविलासिणिरंजियपेच्छयवियड्डजण ॥८९॥ 
कलकंठविविहगायणगीयरवावहियछेयजणनिवहं । उद्दामसदमागहपदढिज्वमाणाणवज्जगुणं ॥९०॥ 
अहिणवपल्लवविरइयवंदणमालामणुन्नगिहदारं । उब्मिज्जमाणचंदणचच्चियबहुजूय-मुसलसयं ॥९१॥ 
पउमप्पिहाणजलपुन्नपुल्नकुंभाभिरामधरदारं । वंसुग्गयविद्धा किज्ञमाणबहुमेयसुयरक्खं ॥९२॥ 
अणवरयतेल्लतुप्पिज्माणचट्टालिविहि यहलबोलं | करकमलकलियचोक्खक्खवत्तनवरमणिरमणीयं ॥९३॥ 
पियवयणभणणपुव्वमुद्दालिज्ंतविविहविंटलय । उत्तालभमिर-धावणहासा विज्वंतजणनिवहं ॥<०॥ 
खज्जं॑तविविहफल-मक्ख-भो ज्ज-तंबोलतुट्टसयलजणं । सोहिज्वमाणगरुयावराहजणपुन्नेगोत्तिगिहं ॥६५॥ 

चिरकालं नरवर ! नंद जीव तुह होउ सयलकल्लाणं । कुलरिद्धि-विद्धि जणओ जस्स सुओ एरिसो तुज्क ॥९६॥ 
तुह वद्धउ रायसिरी तुह संपइ रद्ठवद्धणं होड | ओरोहबिलयविसरो पुन्नाहिय ! वयउ तुह विद्धि ॥९७॥ 
चउरंगबलसमिद्धी वद्धिस्सइ तुज्क सेणियनरिंद !। तुह विविहवाहणाणं समुन्नई सुहय ! साहीणा ॥९८॥ 
तुह नरवइ ! वद्ध3 वश्रिविसरदुसहों परक्रमपयावों | तुह सारयससहरकरवलक्खजस-कित्ति-गुणविद्धी ॥९९॥ 
मणहरमणि-रयणविभूसणाइं नेवच्छरुइरदेहाईं । पविसंति पाउलाइं इय आसीवायमुहलाईं ॥१००॥ 

राया वि विविहमणि-रयण-कणय-करि-तुरय-रहवराईहिं । सामंत-मंति-पउराण देह दाणं पहिद्ठमणो ॥१०१॥ 
तेहिं पि दिज्जमाणं पडिच्छए तुरय-करिवराईयं । सुयजम्ममहसवविद्धि करणपरिवद्धियाणंदों ॥१०२॥ 

इय गरुय-विविहविच्छड्डुपय रिसुप्पन्नपउरसंतोसं । पमु इयपकीलियजणं वद्धावणयं कय॑ रज्ना ॥१०३॥ 

अह नामकरणदिवसे पुणर॒वि य महामहूसवं राया । कारविय देइ नाम॑ गृणनिप्फन्नं तयं तु इमं ॥१०४॥ 
जम्हा इमम्मि गब्भे गयम्मि माऊए मेहदोहलओ । जाओ तम्हा एयस्स होउ मेहो त्ति सुहनामं ॥१०५/ 

तो सो विबुहाणंदो सरीरसोमत्तनिव्ववियभणो । चंदो व्व सुकपकखे परिवद्धर नयण-मणसुहओ ॥१०६॥ 
नाऊण नरबरिदों मेहकुमारं कलागहणजोग्गं । मइ-मेहागणपडुयं मणयं सुब्वत्तविज्नाणं ॥१०७॥ 


१, शिरःखस्तोत्तरीया । २. गुसिणहं काराणहम्‌ | 


शेर 


तओ य-- 


क्‍3+3++4++>नन+तन-क-पन काम क-+५+>पनननकनन-नम>-क जा, 


१, निज्ञाडाओ रं० । 





आश्यानकमणिकोशे 


काऊर्ण सियचंदण-वत्थाउलंकारभूसियसरीरं । विज्ञा-विभूइकारयतिहि-वार-मु हुत्त-करणेसु ॥ १०८॥ 

जत्तेण कलायरियं वत्था-55ह२णा-55सणाइणा सम्मं | सक्कारिऊण सम्माणिऊण तस्स5प्पए विहिणा ॥१०९॥ 
तो निवसिक्ववणाओं तहा कलायरियकयपयत्ताओ । नियजोग्गयागुणाओ भविस्सकल्लाणभावाओ ॥११०॥ 
नइनाहं व नईओ सोहग्गगुणाहियं व तरुणीओ । नयवंतं व सिरीओ विणयनिहिं वा पसिद्धीओ ॥१११॥ 
सग्गा-5पवग्गसुहवित्थराणि जह संकमंति धम्मजुयं । तह मेहकुमारं पि हु ककाओ सयलाओ संकंता ॥११२॥ 
तत्तो तरुणीहरिणीण वागुरासममणंगनरवइणो । छीला-विलासगेहं व रूयसव्वस्सभव्णं व ॥१११॥ 
सोहग्गसंपयामंदिरं व लायन्नधणनिहाणं व । विब्भम-विलास-विन्नाण-नाणनायरयनयरं व ॥११४॥ 
निस्सेसगुणारोहणपहाणपासायमुन्नयमणाणं । कृप्पियकप्पदूदुमकप्पमप्पपुन्नाणमइदुलहं ॥११५॥ 
पोरिसपयावपयरिससिक्खादिक्खा गुरु गरुयगठ्वं | तारुन्नं॑ तारुन्‍्नयसरीरसोहं समणुवत्तो ॥११६॥ 


लायन्नामयकुल्लाओ असमसुंदेरनीरसरिसीओ । सिंगारतरंगतरंगिणीओ रइसोकखखाणीओ ।॥|११७॥ 
कुम्मुन्नयचरणाओ मंसल-बट्टुलसुवत्तजंघाओ । रंभाखंभोरुयविव्भममाओ नइपुलिणरमणाओ ॥११८॥ 
गंभीरनाहियाओं वलिरेहिर-मुद्ठिगेज्ञमज्ञाओ । उन्ननपओहराओ मुणालवेजन्नहलबाहाओ ॥११९॥ 
रेहारेहिरकंठाओ बिंबअहराओ कुंदद्सगाओ।| पुन्निमससिवयणाओं वियसियसयवत्तनयणाओ ॥१२०॥ 
धणुकुडिल्मूलयाओ पुत्निमचंदद्धसमनिडालाओ । रइअंदोल्यसबणाओ सिहिकलाबाहकेसाओं ॥१२१॥ 
उत्तमकुलुब्भवाओ लक्खणपडिपुन्नमणहरंगीओ । निम्मलकलाकलावाओ महुर-मिउभासिणीओ य ॥१२२॥ 
समरूवजोव्वणाओ तुल्नालंकाररुइ रवेसाओ । मेहं सेणियराया परिणावइ अट्ट कन्नाओ ॥१२३॥ 

तो परिणयणाणंतरमुदार॒यागुणविभूसिओ राया । वियरइ वरपासायं सब्वार्सि तासिमेगेगं ॥१२४॥ 

एवं सो विसयसुहं भुंजंतो ताहिं अट्टह्हिं समेओ । दोगुंदुगो व्व देवो गय॑ पि कार न याणेइ ॥१२५॥ 
कइया वि सत्थविसयं वियारमब्भसइ छेयनरसहिओ । कइया वि विविहकरणंगहारकलियं च नट्टविहिं ॥१२६॥ 
कइ्या वि सरसपत्तयछेयं कइया वि चित्तयम्मविहिं | कइया वि सत्तसरगाम-मुच्छणाकलियगीयबिरहिं ॥ १२७॥ 
कइया वि तुरयसिक्खं कइया वि हु हत्यिसिक्खमायरइ । कदया वि मुद्टिजुद्धं कश्या वि हु मल्लजुद्धं च ॥१२८॥ 
कइया वि वारविलयापेक्खणयासत्तमाणसो सययं | नियपासायपरिगओ नायरयजणाण सुहजणओ ॥१२९॥ 
भो ! केरिसो वि देवो न याणमोी एस नित्तुलं देवों | इय जणयंतो बुद्धि विसिद्धलोयाण सो छल्‌इ ॥१३०॥ 
अह अन्नया य भयवं ! सिरिवीरजिणेसरो समणसहिओ । विहरंतो संपत्तो समोसढों बाहिरुआणे ॥१३१॥ 
एत्थंतरम्मि उज्जाणपालओ हरिसनिव्भरसरीरो । वद्धावइ आगंतु जएण विजएण नरनाहं ॥|१३२॥ 
देवाणुपिया ! किर जस्स दंसणं सुहयरं समीहंति । वंछंति नयणनिव्वुइजणयं वा वीयरागस्स ॥१३३॥ 

सबणेणं नामस्स य जलधाराहयकयंत्रपुप्फ॑ं व | ऊसवियरोमकूवा हयहियया हुंति नरनाह ! ॥१३४॥ 

एसो वीरजिणेसरतित्थयरो णेगदेवकोडीहिं । परियरिओ पावहरों परिमुणियासेसनायव्वों ॥१३५॥ 

इहइ' चिय संपत्तो गिहागओ इह समोसढो भयवं ! | ता एयं वयणमहं पियं ति काउं निवेएमि ॥१३६॥ 
सुणिऊरण वयणमिणं धाराहयनीवरुक्खकुसुमं व । रोमंचंचियदेहों अणुभवमाणो रसमपुव्व॑ ॥१३७॥ 

दाऊण पीहृदाणं सहरिसवयणो विसुद्धदृविणस्स । त॑ पुण समए देसियमद्धत्तरससयसहस्सा ॥१३८॥ 

तो सब्बेण बलेणं सब्वेणंते उरेण परियरिओ । सब्बाए विभुदेण सब्वाए रायरच्छीए || १३९॥ 

आभरणरुदरदेहो सेयणयं सिंधुरं समारूढो । सारयजलहर॒ससियपरिविलसिरविज्जुपुंजो व्व ॥१४०॥ 

चलिओ वंदणहेउ' जाव य पत्तो समोसरणमभूर्मि । परिहरियरायककुहो काउ' तिपयाहिणं विहिणा ॥१४१॥ 





्््शणण 


२६. जीवद्यागुणबर्णनाधिकारे मेघार्यानकम्‌ २३३ 


कयपंचंगपणामी भत्तिभरुल्लसियबहलरोमंचो | जिणवयणनिहियनयणो एवं थोउं समाढत्तो ॥१४२॥ 

जय जय भुवणुज्जोयण ! जय जय जस-कित्तिवद्धियाणंद !। जय जय गुणरयणायर ! जय जय जय वद्धमाण ! तुम ॥१४०३॥ 

वद्धर मणसंतोसों तिसलादेवीए देहलायन्न | गब्मम्मि गए तुमए तेण तुम वद्धमाणो सि ॥१४४॥ 

परमपयाव-परक्षमगुणाण चउरंगबलूविभूईए । वद्ध३ सिद्धत्थनिवों तेण तुम वद्धमाणो सि ॥१४५०॥ 

पीई-सक्कारेंहिं मणि-मुत्त-सिलप्पवाल-वइरेहिं । जं वद्ध३ रायसिरी, तेण तुम वद्धमाणो सि ॥१०६॥ 

तइ उदिए चंदम्मि व परमपवित्ते कलानिहाणम्मि । जं वद्धह कुलजलही तेण तुम॑ वद्धमाणो सि ॥१४७॥ 

वद्धर सुहमारोग्गं जणस्स पाएण धम्मबुद्धी य। तइ संभूए भय ! तेण तुम वद्धमाणो सि ॥१०८॥ 

तिहि-रिक्खम्मि पसत्थे अम्मा-पियरों करिंसु जं तुज्ञ । गुणनिप्फन्न नाम॑ तेण तुमं वद्धमाणो सि ॥१४९॥ 

इय वद्धमाणसामिय ! करुणायर ! सह करेवि कारुन्न । सिद्धिनिबंधणधम्मस्स वद्धणं कुणस भवियाणं ॥१५०॥ 

एवं थोऊण जिणं गंतु पुव्वुत्तरे दिसीभाणु। जिएसमयभणियविहिणा उबविट्वो मणुयपरिसाए ॥१५१॥ 

मणि-हेमभासुराभरणकन्तिपसरंततणुपहावलूओ । मेहकुमारों वि रवि व्व वयह आसरहमारूढो ॥१५२॥ 

सिरिवीरवंदणत्थं ओयरिउं रहवराओ विहिपुच्छे । जणओ व्व जिणं वंदिय उबविद्रो जणयपासम्मि ॥१५३॥ 

एत्थंतरम्मि भयवं | जलहरगंभीरमहुरवाणीए । सुरअसुरनरसभाए एवं कहिउ' समाढत्तो ॥१५४॥ 

संसारे संसरंतस्स जंगमत्तं पि दुल्लहं | तम्मि पंचिदियतत च तओ वि मणुयत्तणं ॥१५५॥ 

नरत्ते आरियं खेत्तं खेत्त वि विम्ूं कुलं | कुले वि उत्तमा जाई जाईए रूवसंपया ॥१५६॥ 

रूवे वि बलसंपत्ती बले वि चिरजीवियं । हिया-5हियाइविन्नाणं जीविए खलु दुल्लहं ॥१५७॥ 

सम्मत्तममलं तम्मि सम्मत्ते सीलमुत्तमं | सीले वि खाइओ भावो सब्बकम्मखयंकरों ॥१५८॥ 

इय संजोगा इत्थं दुलहा जीवाण कुणह ता धम्मं । संपञ्जइ जेण इमं सफलं माणुस्सयं जन्मं ॥१५९॥ 

दुग्गहधरणा धम्मो जइ-सावयमेयओ य सो दुविहो । दुविहों वि भवे कज्जो उचियत्तं अप्पणो नाउ ॥१६०॥ 

पाहेएण विरहिओ पहम्मि पहिओ जहा भवे दुहिओ । इय धम्मेण विरहिओ परलोयपहम्मि जीवो वि ॥१६१॥ 

धम्मत्थिणा य पियजीवियाण जीवाणमवहणं करज्ज । | सब्बगुणाणं मूर्ल सच्च भासंति धम्मपिया ॥१६२॥ 

बाहिरपाणसरूवं परद॒व्व॑ परिहरंति धम्मरया । जीववहमूलमहम निच्चमबंभ॑ च वज्जति ॥१६३॥ 

अप्पं व बायरं वा परिग्गहं परिहरंति धम्मधणा । राईभोयणविरई सया वि धम्मत्थिणा कज्जा ॥१६४॥ 

समिईओ पालणीया मायाउ व धम्ममायरंतेण । गुत्तीओं वि हु रक्खा गुत्तीओ व धम्मसस्सस्स ॥१६५॥ 
च्छाकारो कज्जो परम्मि धम्मत्थिणण सब्वत्थ | मिच्छाउक्कडमुत्तं वितहायरणम्मि धम्मंगं ॥|१६६॥ 

धम्मोवएसदाणे गुरुणो परिभासिओं तहक्कारों । आवस्सिया य कज्ञा कज्जे नंताण वसहीओ ॥१६७॥ 

जो होइ निसिद्धप्पा निसीहिया तस्स पविसणे भणिया | आपुच्छणा उ कज्जा गुरुणो कज्जम्मि पाएणं ॥१६८॥ 

पडिपुच्छणा गुरूणं पुव्वनिसिद्धेण होइ कर्ज ति। लडद्धम्मि भत्त-पाणम्मि छंदणा होइ कायव्वा ॥१६९॥ 

साहूण निमंतणयं पविसिउकामो करेइ गोयरियं । उवसंपया वि गुरुणो नाणाईणं निमित्तम्मि ॥१७०॥ 

इय एस समणधम्मों सप्पुरिसनिसिविओ महाइसओ । अक्खेवेणं मोक्खस्स साहओ जिणवरामिहिओ ।|१७१॥ 

एयं काउमसत्ता सावयधम्मं॑ दुवालसविह पि | विहिणा जिणवरभणियं नाऊण कुणंति कयउन्ना ॥१७२॥ 

एसो वि सुगइमग्गी पायं सुकरो विलंबसुहजणओ । समणाणं धम्ममिमं काउमसत्ताणमुचिओं य ॥१७३॥ 


भणियं च-- 
विसयसुहपिवासाए अहवा बंधवजणाणुराएणं । अचयंतो अद्ददुसहे बावीसपरीसहे सहिउ' ॥१७४॥ 


जइ न तरसि काउ जे सम्म॑ अइदुक्करं समणधम्मं । तो कुज्जा गिहिधम्मं मा बज्को होसु धम्माओ ॥१७५॥ 


इय सोउ धम्मकहं के वि हु सुविवेशणो लहुयकम्मा । मोत्तण गिह जाया अणगारा भावियप्पाणो ॥१७६॥ 
३० 


श्ट्रे४ . 


धारिणी-- 
मेघ:--- 
घारिणी-- 
मेघ:--- 
धारिणी-- 
[ मेघः |-- 
धारिणी -- 


आख्यानकमणिकोरशे 


अबरे5णुव्वयधारी अन्ने पडिवन्नसुद्धसम्मत्ता । उवलद्धबोहिबीया केवि अहाभद्या जाया ॥१७७॥ 

मेहकुमारों वि समुल्नलसंतसुविसुद्धचरणपरिणामो । अभिवंद्ऊण वीरं एवं भणिउ' समाढत्तो ॥१७८॥ 

आलित्त ण॑ भंते ! लोए वीसुं पि तह पलित्ते य | आलित्त-पलित्ते वि य जराए मरणेण रोगेहिं ॥१७९॥ 
अवितहमेयं भंते ! भयवं तहमेयमन्नहा नेयं । सच्चे णमेस अट्टे जहेयमेवं वयह तुब्मे ॥१८०॥ 

जह गेहम्मि पछित्ते सविवेओ कोइ रयणमाईय॑ । गिन्हद सारमसारं च चयइ धणघधन्नमाईयं ॥१८१॥ 

एवं भवगिहिवासे भयवं ! रागग्गिणा पल्त्तिम्मि । नित्थारिस्समहं पि हु मंप्पाणं धम्मकरणेणं ॥१८२॥ 

ता जाव5म्मा-पियरों पडिमोयावेमि भयवमप्पाणं । ता तुम्ह पायमूले पडिवज्जिस्सामि पव्वर्ज ॥१८३॥ 

तो भणियं जयपहुणा अहासुहं तुज्ञ होठ मा विग्घं । मा पडिबंधं काहिसि इय भणिओ भयवतया तुट्टो ॥१८१॥ 
तो सप्पणयं पणमिय वीरं पडिवज्जिकण तब्बयणं । नियगेद्दे संपत्तो तत्तो विय जणणिपासम्मि ॥१८५॥ 

पाएसु पणमिऊणं नियजणरणि भणइ महुरवाणीए । अम्मी ! अहमज्ज गओ ताएण सम॑ समोसरणे ॥१८६॥ 

दिट्लो य तत्थ वीरो मुणिसहिओ वंदिओ सबहुमाणं । सासयसिवसुहजणओ धम्मो य तयंतिणु निुओ ॥१८७॥ 
धन्ना हं तुह जणणी वच्छ ! तए अज्ज सोहणं विहियं । ज॑ भुवणवंदणिज्जो मुणिसहिओ वंदिओ वीरो ॥१८८॥ 
जइ एवं ता संपह मुयसु तुम अम्ब ! पव्वहस्समहं । सिरिवीरनाहपासे छेत्त! पासं व गिहवासं ॥१८९॥ 
अस्मुयपुव्व॑ त॑ कन्नकडुयमायन्निऊण सुयवयणं । परसुनिर्कितियचंपयलय व्व पडिया धरणिवीढे ॥१८०॥ 
तक्खणमेव य सिरिखंडमीससीयलजलेण सित्तंगी । पडिलंभियचेयज्ना सुदुक्खमिईइ पलविउं रूगा ॥१९१॥ 
तुममेगो बच्छ ! सुओ उ बरपुप्फं व दुल्लहो मज्म | ता तुह वच्छ ! विओग खणमव्रि न सहामि अदृदु सहं ॥१९२॥ 
ता जाय ! जाव जीवामि ताव मा भणसु एरिसं वयणं । परलोय॑ पत्ताए ज॑ जुत्तं कुणसु तं बच्छ ! ॥१९३॥ 
मेहेणुत्त तुह वयणमंब ! सब्बं पि घडइ जइ होज्वा । जीवाण जमेण सम॑ का वि हु एवंविहववत्था ॥१९४॥ 
पुव्ब॑ मरेज्ज बुड़ो बालो पच्छा जया य न हु एवं । तो को कुज्जा भरवसयमेरिसे जीवियम्मि जज ॥१९५॥ 
गब्मे जम्मे बालत्तणम्मि तरुणत्तणम्मि वुद्तत्ते | मट्टियभंड व जिया सब्वावत्थासु विहडंति ॥१२६॥ 

ता होउ मज्क भणियं कुणसु पसायं इमम्मि अत्थम्मि | माया हिया अवज्चम्मि इय पसिद्धी हवउ सच्चा ॥१९७॥ 


अज्ज वि तुह तारुन्न ता त॑ं माणसु विलासकरणेण | समयम्मि कज्जमाणं सलाहणिज्जं हवइ कर्ज ॥१८८॥ 
जलबुब्बुओवमाणं खणभंगुरमंब ! सुंदरं पि इमं । निच्छयओ सहलत्तं बच्चइ जिणधम्मकरणेण ॥१९९॥ 

त॑ जाय ! कलाकुसलो सब्वुत्तमरायलक्खणा55वसहो । ता विल्ससु रज्जसिरिं नियजणयपह॒ट्टिओ वच्छ ! ॥२००॥ 
रायसिरी वि हु बहुदुक्खलक्खसंपुत्ननरयपुरपयवी । अप्प-परगरुयसंतावकारिया कह सुहा अंब | १? ॥२०१॥ 
उत्तमकुलुब्भवाभी रूवाइगुणडन्नियाओ रत्ताओ | वच्छड्ट्ट भारियाओं माणसु एयाओ ता जाय ! २०२॥ 
गिरिगरुयपराभवका रियासु पियभारियासु एयासु । को कुणउ कहसु पडिबंधमंब ! परिणामविरसासु ? ॥२०३॥ 


तुह वच्छ ! कुलूप्पमवो पडरो मणि-कणयपमिहओ अत्थो | वियरण-भोगसमत्थो जहोचियं विलससु तयं पि ॥२०४॥ 


१, मकारोडत्रालाक्षणिक: । २. विश्वासम्‌, भरोंसो इति लोकभाषायाम्‌ | 


मेघ:--- 
धारिणी-- 
मेघः -- 
धारिणी-- 
मेथः-- 
धारिणी-- 
मेघः-- 
धारिणी-- 
मेघः-- 
धारिणी-- 


मेघः -- 


२६. जीवद्यागुणवर्णनाधिकारे मे घावपानकम्‌ 


जल-जलण-राय-तक्कर-दाइयभयविद्दुओ दढं अत्यो | वह-बंध-मरणहेऊ को मुच्छठ अंब ! एयम्मि ? ॥२०५॥ 


सुहरालिओ सि सुहपालिओ सि सुहसमुचिओ सि तं॑ वच्छ !। कह कम्मक्खयहेउ' कट्ठाणुद्राणणायरसि ? ॥२०६॥ 


संसारभीरुयाणं सप्पुरिसाणं विवेयसाराणं । सुकयज्ञवसायाणं केत्तियमेत्तं इमं कट्टं ? ॥२०७॥ 
लोहमयचणयचावणयतुल्लमच्॑तदुकरं वच्छ ! | निसिउग्गखग्गधाराचंक्मणसमं खु समणत्तं ॥२०८॥ 

एयं पि कुणंति न किंपि दुकरं अंब ! साहससहाया । पेच्छ झलक्ियक्रडतल्लभीसणे अब्मिडंति रणे ॥२०९॥ 
अवरं च सरस-महुरेहिं लालिओ निश्चमन्न-पाणेहिं | कहमंत-पंत-विरसं भुंजसि वच्छय ! तमाहार ॥२१०॥ 


परलोयदिल्नचित्ताण धिइसहायाण पाणमसणं वा | गलविवराओ परेणं कि काही भददमियरं वा ? ॥२११॥ 


केणावि अपरिभूओ मणयं पि हु वच्छ ! वयपवन्नो उ। अक्कोस-हणणपमिई कह विसहसि नीयजणविहियं ? ॥२१२॥ 


मोक्खसुहबद्धवित्ताण नियसरीरे वि निष्पिवासाणं । थोव॑ पि दुक्खमक्ोसणाइ न हु जणइ धीराणं ॥२१३॥ 
नवणीयफासमिउहंसरूयतृलकलावकलियाए । सुविओ कोमलसेज्ञाए सुयसि किह धरणिवट्ठम्मि ? ॥२१४॥ 


हरिणाईण वरायाण रज्नमूमीसु संवसंताणं | सयणीयमंब ! केरिसमह य वणे ते वि हु जियंति ॥२१५॥ 

इय विविह॒हेउ-जुत्तीहिं धारिणी जा न सकए धरिउं। मेहकुमारं ताहे मुयइ अकामा वि पव्वहउं ॥२१६॥ 
तत्तो पुव्वाभिमुहो महरिद्र्सिहासणे समुवबिट्टो । चउसट्विसहस्सेहिं अभिसित्तो मंतिपमुहेहिं ॥२१७॥ 
पसरंतबहलपरिमलसिरिखंडविलित्तरुदरसव्वंगो । भमिरभमरउलमणहरमज्ला-5लंकाररमणीओ ॥२१८॥ 
हार-उद्ध॒हार- तिसरय-पालंबप्पमुहभूसणकलावो । नियसियधवलदुगुल्लो सक्खं चिय कप्परुक्खो व्व ॥२१८॥ 
सुसिलिट्ठकट्ठ-मणि-रयणकम्मनिम्मवियपवरसिबियाए । आरुहिऊण निसन्नो महरिह॒र्सिहासणवरम्मि ॥२२०॥ 
सन्वेयरपासट्टियतरुणीकरघुव्वमाणसियचमरों | धरियधवलायवत्तों बंदियणुग्घु ठ्रजयसद्दो |२२१॥ 

पत्थिज्जंतो वंछियविसए वियसंतनयणमालाहिं । पेच्छिज्जंतो अंगुलिसएहिं दाइज्वयमाणो उ ॥२२२॥ 
दिकक्‍्खाविणिच्छियमई दुक्करकरणेण भवियलोयस्स । विम्हयमुप्पायंतो निद्बाइ पुराओं जिणपासे ॥२२३॥ 
सिरिवीरजिणवरेणं विहिणा पव्वाविओ सहत्थेण । किरियाकलावमिणमों सब्बं समणाण सिक्खविओ ॥२२४॥ 
एवं भाससु एवं च सयसु एवं च भुंजसु सया वि। एवं चिट्ठसु एवं च वयसु इरियासमिइसमिओ ॥|२२५॥ 
एवमणुसासिऊर्ण थेराण समप्पिओ जिणवरेणं । पत्तो य तेहिं समयं समणाणमुबस्सए मेहो ॥२२६॥ 

ताहे वियालवेलाए समणसंथारएसु दिन्नेसु । मेहस्स दारदेसे कमेण संधारओ जाओ ॥२२७॥ 

तो सब्वं पि हु रयर्णि निरंतरं मुणिबरेहिं वसहीओ । सज्ञायाइनिमित्तं निंतेहिं पुणो विसंतेहिं ॥२२८॥ 
मेहकुमारों केहिंवि जईहिं रयरेणुगुंडिओ विहिओ । केहि वि कहिं पि पायाइएहिं संघष्टिओ बहुहा ॥२२९॥ 


१३६ आज्यानकर्माणकोशे 


एवं सव्वनिसाए खणं पि निद्दा न पाविया तेण । तत्तो5सुहकम्मवसा चिंतियमसुभं इम॑ मणसा [२३०| 

जइया गिहत्थभावे अहमासं समणगा इमे तइया । म॑ आलवंति म॑ संल्वंति भासंति मेह ! त्ति॥२३१॥ 

जप्पभिइ अगाराओ पव्वइओ हं इमेसि मज्कमम्मि | तप्पमिह समणगा परिभवंति मं ता धिरत्थु ! इमे ॥२३२॥ 

समणत्तमिमं सप्पुरिससेवियं कायराण दुरणुचरं । भूसयण-लोयसहणाइदुकरं भणियमंबाए ॥२३३॥ 

एवं जहुत्तमिण्हि सकिस्समहं न चेव काउं जे | ता मोत्त' जिणपासे लिंगमिमं जामि गिहवासे ॥२३४॥ 

इय परिचिंतिय गोसे अचितमाहप्पमाहवसवत्ती । जिणवारबंदणत्थं साहहिं समं गओ मेहो ॥२३५॥ 

आभासिओ जिणेणं पढमं चिय धारिणीसुओ सम्मं । अत्थि तुह मेह ! रयणीए अज्ज परिचिंतियमिम ? ति ॥२३६॥ 

सिररश्यकरंजलिणा मेहकुमारेण पणमिर्ं भणियं । सच्चमिमं जं तुब्भे नाणेण वियाणिउं भणह ॥२३७॥ 

पुणराह जिणो तुह भद्द्‌ ! जुत्तमेयं न सुद्धवंसस्स । जं पाविय पव्वज्जं पमायमायरसि अप्परिउं ॥२३८॥ 

जम्हा एसो चिय वच्छ ! विविहदुहवसणकारणमणज्जो | भवपहसंपत्थिय5णत्थसत्थसत्थाहसिरस्यणं ॥२३९॥ 

सयमेव चिंतसु तुमं इहईं चिय जे अचिंतकम्मवसा । संजमगिरिवरसिहराओ एयबसया खडहडंति ॥२४०॥ 

ते दुक्कयकम्महया ससंकिया लज्जिया विवन्नमुहा | बहुजणधिक्कारहया जियंति दुहजीवियं वच्छ ! ॥२४१॥ 

इय निउण-महुरवयणप्पुव्वगमणुसासिओ भुवणपहुणा । परितुट्ठो एवं चिय लहुदोसे सिक्खवंति गुरू ॥२४२॥ 
भणियं च-- 

महु रेहिं निउणेहिं वयणेहिं सिक्खवंति आयरिया । सीसे कहिं पि खलिए जह मेहमुणी महावीरों ॥२४३॥ 

अवरं च वच्छ ! तुह पुव्वजम्मभावम्मि वद्ठमाणस्स | तिरियस्स वि आसि स कोवि कम्मवसओ सुहविवेओ ॥२४४॥ 
तथा हि-- 

तुममेत्तो तइयभवे गुरुबलमाहप्पपह्यपडिवक्खो । वेयड्डपायमूलेसु जायजूहाहिवपहाणो |२४५॥ 

विंको व्व सरलवंसो निवो व्व सययं समुन्नयक्खंधो । सुहदाणविरूसिरकरो चाइ व्व मुणि व्व सुदृदंतो ॥२४६॥ 

निवरज्वभरो व्व महासत्तंगपइट्ठिओ पगट्टिपओ । सब्वंगलक्खणधरो अहेसि हत्थी समग्गगुणो |२४७॥ 

तत्थठिय वणयरेहिं सहसि सुमेरुप्पहो क्ति कबनामी । चरसि निरुव्विग्ग्मणो भयमगणंतोडभिमाणधणो ॥२४८॥ 

कइ्या वि लहुयनियकलह-कलभियाजूहयं पडिक्खंतो । करिणीकरकंड्रयणमीलियनयणो सुहं लहसि ॥२४९॥ 

कइ्या वि हु चरसि महल्लसझलईपल्लवेसु पडिबद्धो । कइया वि पयंडविपक्खभिडणसंपत्तजयपसरों ॥२५०॥ 

कहया वि हु पयपूरियगुरुसरवरजलनिमग्गसव्वंगो । घणचाडु करणकोवियकरेणुयासुरयसुहरिसिओ ॥२५१॥ 

कइया वि कुणंतो सरवरम्मि सह भारियाहिं जलकीलं । अणुभवसि सकामकरेणुगंडगंडूसपाणसुहं ॥२५२॥ 

एवं गिरिकंदर-काणणेसु गुरुसरवरेसु वियरंतो । सच्छंदसमुत्थसुहिल्लिसंगओो गमयसि दिणाणि ॥२५३॥ 

अह अन्नया य खरतरदिणयरकरनियरताविए भुवणे । गिम्हम्मि परोप्परवंसघंससंजायजलणवसा ॥२५४॥ 

पाउब्भूओ संमंतसत्त-तरु-कट्टदृहणदुप्पेच्छो । धूमंधयारजालामालियगयणो वणदवग्गी ॥२५५॥ 


तथा हि-- 
मल्लियसमुचगोत्तो झामियसच्छायतरु-सउणनिवहो । कलिकालो व्व समंता वित्थरिओं वणदवहुयासो ॥२५६॥ 
फुट्टंसवंसअद्डद्नदा सरवभरियनहयलाभोगो । जालापिंगलकेसो ढयरो व्व वियंभिओ दावों ॥२५७॥ 
निद्विसप्पिससमयसावभयभीयसत्तसंधाओ । कुद्धमुणि व्व विसप्पइ विमुकतेओ वणदवर्गी ॥२५८॥ 
तत्तो य वणदवभया पलायमाणेसु सावयगणेसु | मणवल्लहं पि जूहं मोत्तण तुम पि हु पलाणो ॥२५१॥ 
मोडंतो तरुनिवहे वणदवपाउन्भवंतदप्पेण । तोडंतो वेयवसा विविहे वल्लीवियाणे य ॥२६०॥ 


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१, मइलियसमु रं०। २, पिशाच: | 


जओ-- 


किच-- 


२६. जीवदयागुणबर्णनाधिकारे मेघाल्यानकम्‌ २३७ 


जालावलिधूमेणं सुद्रमप्फुल्नविग्गहावयवों | एगागी नीहरिओ महया किच्छेण दावाओ ॥२६१॥ 
दवजलरूणदाहतावियतणुणा तत्तो तिसाभिभूएणं । तुच्छजलं बहुकद्दममेगं पत्तं सर तुमए ॥२६२॥ 

तत्तो पिवासिओ तं पविससि पाहं ति पाणियं तम्मि | नवरमतित्थपवेसा खुत्तो पंके अगाहम्मि |॥२६३॥ 

तत्तो त॑ं तयवत्थों दिट्ठी तरुणेण वेरिणा करिणा । विद्धो य पद्टिमायम्मि दंतमुसलेहिं तेणावि ॥२६४॥ 
पंकम्मि खुत्तगत्तो पिवासिओ दंतमुसलजज्जरिओ । अणुभवसि सत्त द्वसाणि दुरहियासं महावियणं ॥२६५॥ 
वीसाहियवरिससयं सव्बाउं पालिऊण तम्मि भवे । अट्ववसट्टोवगओ मरिउं इंह चेव भरहम्मि ॥२६६॥ 
सरसतरुराइरेहिरसर-सरियानियर निज्भमराइन्ने । वि्वगिरिपायमूले पुणरवि य गओ समुप्पन्नो ॥२६७॥ 
ससि-संख-कुंदधवलो चउदसणो गलियदाणगंडयलो । परिसकिरनवनीरयरेहासंगयहिमगिरि व्व ॥२६८॥ 
सुपसत्थलक्खणंकियसत्तसयपमाणगयपरीवारों | वियरसि तुम॑ जहिच्छं भयरहिओ विज्लगिरिगहणे ॥२६९॥ 
परितुट्टवणयरेहिं तत्थ वि मेरुप्पहो त्ति कयनामो । गिम्हम्मि नियसि वंसीसाहाघंसणसमुब्भूयं |॥२७०॥ 
खरपवणवसबियंभियजालामालियसमग्गगयणयलं । धूमंधयारवेविरसमत्थथणसावयसमूहं ॥२७१॥ 
पञ्जलियवणदवरग्गि कत्थ वि मह एस दिद्ठपुव्वो त्ति। इय देहाकरणवसा सुमरसि त॑ मेह ! पुव्वभवं ॥२७२॥ 
तो विन्नायं तुमए वणम्मि एसो भविस्सद सया वि। ता एयरक्खणोवायमविकर्ल किपि चितेमि ॥२७३॥ 
जम्मंतरे वि अहयं एयाओ पाविओ महावसणं । वणदवदाहभयाओ अणागयं निययबुद्धीए ॥२७४॥ 
आई-मज्ञ-5वसाणे वासारत्तस्स थंडिलाण तिगं । त॑ कुणसि कयवराई तत्थगयं सव्वमवणेउं ॥२७५॥ 

इय जा निव्वुयहियओ चिट्टसि ता वणद्ववम्मि पत्लनलिए | नट्टो भयभीयमणो पत्तो ता थंडिलं पढमं ॥|२७६॥ 
तम्मि रुरु-रोज्ञ-संबर-ससय-तरच्छ-5च्छमज्लपभिईणं । बिल्धम्मेणं चिट्ठट अरन्नसत्ताण संघाओ ॥२७७॥ 

तो तं मोत्तु बीयम्मि वयसि तं पि हु तहेव पडिपुन्न | तो तह॒ए गंतू्ं पविरलसत्तम्मि तं थको ॥२७८॥ 
उक्खिवसि पायमेगं कंडुयगत्थं पुणो वि जा मुयसि । तो तम्मि पायठाणे पेक्निज्जंतो बलिट्वेहि ॥२७९॥ 
ससयसरूवो कोबि हु सत्तविसेसो ठिओ तयं मुणिउ । मा मारिज्वउ एसो मह पाएणं पमुक्केणं ॥२८०॥ 

इय अणुकंपावसओ तहेव आकुंविउ' धरसि पाय॑ । सो थंभिओ तहेव य भरिओ रुहिरस्स निब्मिश्च ॥२८१॥ 
तत्तो तुह तिरियस्स वि अचितविरियत्तणाओ जीवस्स । कम्माणं च तहाविहविचित्तपररिणाममावाओ ॥२८२॥ 
जीवाणुकंपलक्खणसतब्वुत्तमगुणपभावजोगेण । मणुयाउ' निब्बंधसि विसुद्धसम्मत्तबीयं॑ च ॥२८३॥ 


थेवा वि हु जीवदया जियाण कल्लाणसंपर्य कुणइ । मणक्रप्पियं पयच्छई अहवा तणुया वि कप्पलया ॥२८४॥ 


सग्गसिरीए नियाणं विलसिरनररायसंपयाहेऊ । सिवलच्छिवसीकरणं एक्क चिय होइ जीवदया ॥२८५४५॥ 
सुहपुन्नसस्सभूमी निम्मलगुणरयणरोहणगिरिंदों | भवजलहिजाणवत्तं एक च्िय होइ जीवदया ॥२८६॥ 
चिंतियचिंतारयणं अहरीकयकामधेणुमाहप्पा । अवहत्यियकामघडा एक चिय होह जीवदया ॥२८७॥ 
अड्डाइयदिवसेहिं पभूयतण-कट्ठ-कयवराइन्नं । विंशझ्ञारन्नमसेसं दहिउः विरओ वणदवग्गी ॥२८८॥ 

तो नीसरिए सव्वम्मि मंडडाओ पसूृण संघाए । तुममवि पायं धरणीए मुयसि गमणाय वेगेण ॥२८९॥ 
तत्तो य दुज्जयजराजज्जरियतणुत्तओं तुम॑ तइया । थंभियचरणत्ताओ य पडसि धरणीए सहस त्ति ॥२९०॥ 
हत्थीणमेगपडणाओ उद्ठिउ' सव्बहा वि अचयंतो । समका्ल पसरियतिव्ववेयणाविहुरसब्बंगो ॥२९१॥ 
खडद्घो सि त॑ सियालाइएहिं मंसासिसावयसर्णहिं । अहियासिऊण दूसहतणुवियणं तिन्नि दिवसाणि ॥२९२॥ 
संपुन्नं वाससयं सव्वाउ' पालिऊण हत्थिभवे । अणुकंपागुणविढवियनिरुवमपुन्नप्पमावेण ॥२९३॥ 


श्शे८ 


आख्यानकर्मणिकोशे. 


जाओ सेणियपुता मणप्पिओ धारिणीए देवीए | सब्बगुणाण निवासो मह सीसो एस पच्चक्खो ॥२९४॥ 
इय वीरजिणेसरमुहविणिग्गयं निमुणिऊण नियचरियं । जाईसरणा जाय॑ मेहकुमारस्स पश्चक्खं ॥२९५॥ 
रयणीए वहयरे अक्खियम्मि वीरेण मेहकुमरों वि। जाओ विलक्खबयणो नियदुच्चरियं सुमरमाणो ॥२९६॥ 
भणइ जिणं मेहमुणी मह सामि ! पवित्तमुत्तिणो मुणिणो । नयणदुगं मोत्तणं सब्वत्थ कुणंतु संघढ ॥२९७॥ 
एयाणं मुणिसीहाण विमलसीलंगगुणपवित्ताणं | पायाइघइणेणं संपत्नो पूयपावों हं ॥२९८॥ 
पच्चागयसंवेगो आलोइयमणसमुत्थअइ्यारो | परिणमियसुद्धभावो विहरहइ सिरिवीरपयमूले ॥२९९॥ 
एक्कारस अंगाइ' तेण अहीयाइ' गुरुसयासम्मि । गीयत्थो संजाओ थिरधम्मों मंदरगिरि व्व ॥३००॥ 
एयस्स महामुणिणो सोहणपंथम्मि संपयट्टस्स । कंटगखलणातुल्लो विन्नेओ वयविपरिणामी ॥३०१॥ 
संलिहियनिययतणुणो विणीयविणियस्स तस्स साहुस्स । पव्वज्ञापरियाओ बारस वासाणि संजाओ ॥३०२॥ 
बारस भिक्‍्खूपडिमा तेण तया फासिया महामइणा । गुणरयणवच्छरेणं तवेण परिसुसियसब्बंगो ॥३०३॥ 
उद्धरियसव्वसल्ली पहसमयसमुल्लसंतपरिणामी । मासद्धपमाणाए अणसणकिरियाए सुहलेसो ॥३०४॥ 
आपुच्छिऊण वीरं सह गीयत्थेहिं सुविहियमुणीहिं । आरुहद विउलपव्वयसिलायले जिणवराणाए ॥३०५॥ 
आउयखयम्मि जाए कालं काऊण कालमासम्मि । पंचपरमेट्रिमंतं क्रायन्तो सुद्धपरिणाभो ॥३०६॥ 
मेहो व्व मेहकुमरों सुहरसनिव्ववियसत्तसंधाओ | जह इह तहा मओ वि हु वरविजयविमाणमारूढो ॥३०७॥ 
तत्तो चुओ समाणो सब्वुत्तमगुणविसिद्रकुलजम्मो । परिपालियपव्वज्जो महाविदेहम्मि सिज्मिहई ॥३०८॥ 
॥ मेघकुमाराख्यानक समाप्तम ॥८शे॥ 


अधुना दामन्नक[कथानक स्यादसरः | तथ्य नियमाधिकारे भणितमिति हरूत्वा ना5<5ख्यायते। 


इहलोय-पारलोइयसुहाण भायणमिमे जहा जाया । जीवदयाए तह3न्नो वि होइ ता तीए जइयबव्बं ॥१॥ 
यत्‌ सुस्थिता गतरुजो निरवयदेहा, आजन्म जन्मिनिवहा गमयन्ति कालम्‌ । 
तत्‌ स्मज्जिगणनिममलनस्य [शस्य]श्रेयोविजुम्मितमुदारधियों भणन्ति ॥२॥ 


॥ इति भ्रीमदाप्नदेवस्‌रिविरचितवृक्तावाध्यानकमणिकोशे जीवद्याशुणवर्णनः षड्विशतितमो5धिकारः समाप्त: ॥२६॥ 


&6<-7&.थटऊ9 


[ २७, धर्मप्रियवादिगुणवर्णनाधिकारः ] 


जीवदया सुखहेतुत्वेनाभिहिता । साम्प्रतं सर्वोड़ुपि जिनधर्म: सुखहेतु: परमादेयबुद्धथा ग्रहीतो5यं मोक्षसाधको भवतीत्य- 


मुमथमभिधित्सुराह-- 


पियघम्मा दढधम्मा गिहिणो वि य मोक्खसाहगा होंति। 
जह कामदेव-सागरचन्दा चंडावर्डिसों य॥३६॥ 


अस्या व्याख्या--प्रियः-वललमः धर्म:-जिनोदितं दानागनुष्ठानं येषां ते प्रिययर्माण: | दृढः-्यसनगतैरपि यो न विराध्यते 


स ताहशो धर्मों येषां ते हदधमोण: । ग्ृहिणोडपि च न केवल यतय इत्यथः 'मोक्षसाधका:” निवृत्तिजनकाः “यथा? येन प्रकारेण काम- 
देव-सागरचन्द्रौ श्रावको चन्द्रावतंसकश्व राजेति गाथासमासार्थ: ॥ व्याख्या(व्यासा)थस्तववास्यानक्रगम्यः | तानि चामूनि । 
तत्न तावत्‌ कामदेयाख्यानकमारभ्यते-- 


जियसत्त नाम निवो अहेसि चंपाए विस्सुओ भुवणे | रूवेण कामएबोव्व सावओ कामणएवों त्ति ॥१॥ 


२७, धमप्रियत्वाविगुणवर्णेनाधिकारे कामदेवाल्यानकम २३९ 


रूवाइगुणसुभद्दा भद्दा नामेण पणइणी तस्स । सम्माणट्टाणं सो नर्रिदपत्अ॑तपउराण ॥२॥ 
विन्नायपुन्न-पावो जीवा-5जीवाइजाणियसरूवों | छक्कोडीउ निहाणीकयाउ कणयस्स तब्भवणे ॥३॥ 
छ व्वित्थरप्पउत्ताउ तह य छ व्वड्िसंपउत्ताओ । छ व्वहणाइईं तहा से वहंति सगडाण पंच सया ॥४॥ 
पंच सयाणि हलाणं किसिप्पउत्ताणि गोडलाईं से | छ प्पत्तेयं दसदससहस्सगोसंखजुत्ताणि ॥५॥ 
तत्थडन्नया य अमरा-<सुरिंद-नर-खयररायनयचरणो | समवसरिओ पुरीए उज्ञाणे वद्धमाणजिणो ॥६॥ 
परिसाए निग्गयाए स कामदेवों जिणिदतमणत्थं । संपत्तो रोमंचियगत्तो बंदित्तु भयवंतं ॥७॥ 
उचियट्टाणनिविद्टों सोउं सद्देसणं जिणाभिहियं । चित्तब्भंतरसुहपरिणईजुओ भणइ जिणनाहं ॥<८॥ 
भयवं ! काउमसत्तो पव्वज्यमहं करेमि पुण सम्मं । धम्मं सुसावगाणं तो बारसहा वि पडिवन्नों ॥९॥ 
सावयधम्मो पणमिय जिणेसरं पडिगओ तओ तस्स । त॑ सम्मं पारलंतस्स सुद्धसज्कायजुत्तस्स ॥१०॥ 
अट्टमि-चउद्दसीसुं चउव्विहं पोसहं कुणंतस्स | चोहस समइक्कंताणि तस्स वरिसाणि गुणनिहिणो ॥११॥ 
अह अज्नया य पोसहसालाए सब्वराइयं पडिम॑ | पडिवन्नमिमं खोमेउमागओ रक्खरूवसुरों ॥१२॥ 
आरलनेत्तदित्ती विद्वंसियअंधयारसंघाणो । पञ्नलियजलणमिस्सियविमुकलल्लक्क फेकारों ॥१३॥ 


गुरुकरहकंधरारोमकविलकेसो करालमुहकुहरों । फाल्समविसमदंतो धूमसिहासामलच्छाओ ॥१४॥ 
गोणसकयावयंसी जन्नोइयअइगरेण अहभीमो । धुंटंतो करयलकयकवालकीलालमणवरयं ॥१५॥ 
उबखायखगर्गदंडो प॒भणइ भो कामदेव ! जह नो तं॑ । सील्व्वयाइं खंडसि ता खग्गेणं हणिस्सामि ॥१६॥ 

तो कामदेवसड्डी गाढ्यरं धम्मझाणमारूढो । इय वारत्तियमुत्तो विन चलिओ धम्मकाणाओ ॥१७॥ 

ता खग्गदंडघाएहिं खंडिओ सहइ सम्ममेसी वि । तो मुक्कजक्खरूबों देवो जाओ गुरुकरिंदां ॥१८॥ 
उब्मियसुंडादंडो रणंतघंटाजुएण डंबरिओं । गलगज्जिभरियभुवणो सत्तंगोगलियमयपवहों १९॥ 

जंपइ य कामदेवं जह न कुणसि खंडणं नियवयाणं । ता उल्लालिय सुंडाए तह पडिच्छेवि दंतेह ॥२०॥ 
वलवद्ठिस्सं पाएहिं होइ तुह मरणमट्टझाणेण । इय तिकक्‍्खुत्तो वुत्तो विन चलिओ सो सुझाणाओं ॥२१॥ 

तत्तो य आसुरुत्तेण हत्थिणा गिण्हिऊण सुंडाए | उल्लालिऊण दुंतेहिं कलिय दलिओ सपाएहिं ॥२२॥ 

सो वि हु करिकयवियणं सम्मं अहियासए महासत्तो | तो अमरो करिरूव॑ परिहरिउं विसहरो जाओ ॥२३॥ 
फुक्कारविड्वरिल्लो वियडफडाडोयडंबरुडुुमरो | जलणकणारुणनयणो तरलदुजीहो घणच्छाओ ॥२४॥ 

भणइ य तयं तहेव य वारतिगं सो न मणयमवि खुहिओ । गाढं वेढिय कंठेसु तिक्खदाढाहिं तो डसइ ॥२५॥ 
त॑ पि हु वियणं सम्मं अहियासइ जिणमयम्मि थिरुद्धी । तो तं॑ अभीयमवल्लोइऊण धम्मम्मि थिरचित्तं ॥२६॥ 
तयणु कयामररूवो विलसिरमणिकणयकुंडला55हरणो । पभणइ य कामदेव सकयत्थो धन्न-पुत्रो तं ॥२७॥ 

तुह जम्म-जीवियाइ' सकयत्थाइं समत्थि निर्गंथे । जिणपवयणम्मि एरिसनिच्चलया जस्स सयकालं ॥२८॥ 
विहियं देवाणुप्पिय ! सक्‍्केण सुहम्मसुरसहामज्झे । तुज्क गुणग्गहणमिणं जहा सइंदेहिं देवेहिं ॥२९॥ 
चंपाए कामदेवो तीरइ न जिणप्पणीयधम्माओ । चालेउमिममसदृहमाणो5हमिहागओ झत्ति ॥३०॥ 

विहिया य चालणकए घोरुवसग्गा मए इमे तुज्श | ता खमसु इय पयंपिय पणमिय त॑ खामिउं अमरो ॥३१॥ 
नियठाणे संपत्तो गोसे पारेइ पडिममेसो वि। एत्थंतरम्मि सामी समोसढो वद्धमाणजिणो ॥३२॥ 

वंदेवि कामदेवो भयवंतं पञ्जुवासए जाव । ता भुवणसामिणा सो पयंषिओ तुज्ञ रयणीए ॥३३॥ 
सम्ममहियासिया इह उवसग्गा रक्खसाइणो तुमए । तेणुत्त जह भयवं ! तुब्भे जाणह तह चेव ॥३४॥ 
पुणरवि य भयवया सो भणिओ जिणपवयणम्मि जस्सेसा । निश्चलया सो त॑ पुन्नभायणं इय निसामेउ' ॥३५॥ 
हरिसपरिपूरियंगो पणमेवि जिणं गओ सठाणे सो । वाहरिय भयवया प॒भणिया य समणा य समणीओ ॥३६॥ 
अज्जो | जइ गिहिणो वि हु एवं सम्मं॑ सहंति उवसग्गे | ता कि न हु सहियव्वा तुब्भेहिं विमुकसंगेहिं ॥३७॥ 


२७४० आश्यानकमणिकोशे 


ताणि जिणवयणमेयं सम्म॑ रोम॑चियाणि मन्नंति । एत्तो य कामदेवों सावयपडिमाउ काऊण ॥३८॥ 
अप्पाणं भावितों सील्व्वयभावणाहि जा वीसं । वासाइईं सावयत्तं परिपालिय सो महासत्तो ॥३4॥ 
आलोइय-पडिकंतो मासियसंलेहणाए कालूगओ । सोहम्मअमरलोए अरुणामे वरविमाणम्मि ॥४०॥ 
विप्फुरियसरीरपहो चउपलियाऊ सुरो समुप्पन्नो | तत्तो चुओ विदेहे उववज्जिय पाविही सिद्धि ॥४१॥ 


॥ कामरदैयाल्यानकं॑ समाप्तम्‌ ॥८७॥ 


अधचुना सागरचन्द्राख्यानकमारभ्यते | तथ्चेद्म-- 
बारवईए बलदेवपुत्तनिसदस्स नंदणो मइमं | सागरचंदो नामेण आसि निस्सेसगुणभवण्ण ॥१॥ 
संबाइकुमाराणं मणप्पिओ सयलसुंदरावयवो । एत्तो य आसि घधणसेणनरवई विस्सुओ तत्थ ॥२॥ 
कमलदलसरलनयणा कमलामेलाभिधा सुया तस्स । दिल्ना निवुग्गसेणंगयस्स नहसेणकुमरस्स ॥३॥ 
वीवाहकज्जसज्जम्मि परियणे नारओ नहयलेण । पत्तो नहसेणंते न जाबव सम्माणिओ तेणं ॥४॥ 
ताव पउट्टो संतो सागरचंदस्स मंदिरं पत्तो | सम्माणिय पुट्ठो कहसु कि पि भयव॑ ! मम5च्छरियं ॥५॥ 
सो भणइ वच्छ ! अच्छरियमेरिसं तुह कहिज्जह इहेव | कमलामेला धणसेणकन्नया अत्थि रुहरंगी ॥६॥ 
नियरूवविजियअमरो भमरीनिउरुंबकसिणघणकेसा । कुमरेण तओ भणियं भयवं ! सा मम कहं होही १ ॥७»॥ 
न मुणेमि त्ति पयंपिय कमलामेला सयासमनल्लीणो | तो तीए सम्माणिय सविणयमाभासिओ एवं ॥८॥ 
भयवं ! अच्छरियं क्िंपि कहसु तेणावि जंपियं वच्छे ! । दिट्ठें अच्छरियमिमं इहेव नयरीए मज्झम्मि ॥९॥ 
रूविजणसिरोरयणं सागरचंदो जयत्तएु एसो । अवरो कुरूविचूडामणी पुणो एत्थ नहसेणो ॥१०॥ 
सोऊण तमणुरत्ता सागरचंदे नरिंदकुमरी सा | नहसेणम्मि विरत्ता चंचलचित्ता5हवा नारी ॥११॥ 
गंतुं सागरचंदस्स अक्खियं नारणण सा कुमरो । त्तं पह अणुरायपरा त॑ सोउं सो वि अणुरत्तो ॥१२॥ 
त॑ चिय कुमरी चिंतइ चित्तर रूवेहिं तसस भूबलयं । तो विमणदुम्मणो सो दिद्ठो संबेण साममुहो ॥१३॥ 
परिहासेणं पिट्ठटीए तस्स ठाऊण तेण नयणजुयं । पिहियं नियकरजुयलेण तयणु तेणेवमुल्नवियं ॥ १४॥ 
कमलामेल त्ति तओ भणियं संबेण इसि हसिऊण । नाहं कमलामेला कमलामेलो अहं किंतुं ॥१५॥ 
तेणुत्तं जइ एवं ता तं॑ तुममेव मज्क मेलेहिं। कमलदलूदीहनयणं कमलामेलं मणोमिमयं ॥१६॥ 
कुमरेहिं सुरं पाइय अब्भुवगच्छाविओ इमं संबो । विगयमओ पुण चिंतइ कहमेयमहं करिस्सामि १ ॥१७॥ 
घेत्तणं पन्नत्ति पल्जुन्नाओ कुमारपरियरिओ | गंतूणुत्ञाणे नारयस्स सो भिन्द्‌इ रहस्सं ॥१८॥ 
परिणयणकज्जसज्जे नहसेणे नारणण रूग्गदिणे । हरिऊण सुरंगाए कुमरी नेऊणमुज्जाणे ॥१९॥ 
परिणाविओ य सागरचंदो चिट्ठंति तत्थ कीलंता । विज्ञाहररूवेणं इओ य घधणसेणभवणम्मि ॥२०॥ 
निउणं निरिक्खिया वि हु कुमारी दिद्ठा न तेसि लोएण । तत्तो मग्गंतेहिं सच्चविया तम्मि उज्जाणे ॥२१॥ 
कहिओ य वासुदेवस्स वहयरो सो वि कोवदद्टोट्टी । सन्नद्धबद्धकवओ उज्जाणम्मि समणुपत्तो ॥२२॥ 
संबाइकुमारेद रणंगणे गुरु पि कन्हबर्ू | निज्जिणियं तो पत्तो हक्कंतो वासुदेवों वि ॥२३॥ 
संहरियखयररूवो संबो चलणेसु निवडिओ तस्स । सागरचंदस्सेव य दिन्ना कन्हेण सा कुमरी ॥२४॥ 
नहसेणसयणवग्गो खमाविओ सो पुणो सकोवमणों । मग्गद छिड्डाणि तओ सागरचंदरस हणणत्थं ॥२५॥ 
सागरचंदो वि पुणो अहिणवजोव्वणमणोहरंगीए । तीए सम॑ विसयसुहं उवभुंजंतो गमइ काले ॥२६॥ 
अह अन्नया जगत्तवजणसरणो तियसकयसमोसरणो । पयडियमुणिजणचरणो कमलोवरिनिहियनियचरणो ॥२७॥ 
निज्निणियसयलकरणो पयासियासेससाहुगुरुकरणो । सुसिणिद्धबहलकज्जलतमालदल्सन्निभो भयवं ॥२८॥ 
सिरिनेमिजिणो उज्जितपव्वए पव्वए समासरिओ । निस्सेसजायवेसुं पणमिय तत्थोबविद्वेंस ॥२९॥ 
धम्मकहापज्जंते सागरचंदेण नमिय नेमिजिणं । पडिवन्नो भत्तीए सावगधस्मी समग्गो वि ॥|३०॥ 


[ ५. भावनास्वरूपवर्णनाधिकारः ] 
व्याख्यातस्तृतीयस्तपोरूपो धममेदः । अघुना भावरूपं चतुथ धर्मभेदं व्याख्यातुकाम आह-- 
सुद्द परिणामों नि्य कायव्वों जेण बंध-मोबखाणं। 
सो परमंग नाया दमगो भरहो इलापूत्तो ॥१०॥ 
व्याख्या--'शुभ:” धमध्यानादिरूप:, प्राकृतत्वाद्‌ विभक्तिलोपो द्र॒ष्टव्य;, 'परिणामः” मानसब्यायार: “नित्यम! अनवरतम्‌ 
कतेव्य:” विधेय:। किमिति ? अत आह--येन” कारणन “बन्ध-मोक्षयो:” कमेबन्धन-मुक्त्यो: 'सः” परिणाम: “परमाड़ं” प्रधान- 
निमित्तम्‌। 'ज्ञातानि! दृष्टान्ताः द्रमकः” रहृः 'भरतः” भरतचक्रवर्ती 'इलापुत्र: श्रेष्ठिसुत इत्यक्षरा्थ: ॥१०॥ 
भावाथस्त्वाख्यानकगम्यः । तत्र तावद्‌ द्रमकाख्यानकमाख्यायते । तश्ेदम. 
रायगिहम्मि पुरवरे आजम्मदरिद्दिओ वसइ दमओ । भिकखामेत्तुवजीबी अह3न्नया ऊसवे जाए ॥१॥ 
सब्वो वि नयरलोओ घेत्तणं खज्ज-पेज्ज-लेज्याई । वेभारगिरिसमीवे सव्वत्तुगचारुउज्ञाणे ॥२॥ 
उज्जाणियाए पत्तो एत्तो जाएसु दोसु पहरेसु । कप्परयक्रों दमओ नयरे भिक्‍खं परिब्भभई ॥३॥ 
पडिभवणं हिंडंतो भणिज्जएण भवणरक्खवालेहिं | सब्वी वि जणो घेत्तमग भोयणं अज्ज उज्जाणे ॥५॥ 
संपत्तो ता तं पि हु वच्चसु तत्थेव तयणु सो जाव । तत्थ गओ ता लोगो भोत्तण मणोन्नमाहारं ॥५॥ 
तत्तो ताल्य-रासय-नाडय-पेक्खणय-महुरगीएहिं । अक्खित्तमणो न हु कोइ तस्स भिक्‍खं पयच्छेद ॥॥६॥ 
सुइरं जाय॑ तस्स वि उत्तरमवि तस्स देइ न हु कोइ । तन्हा-छुह्ाकिलंतो तत्तो सो कोवमावन्नो ॥७॥ 
वेभारसेलसिहरं समारुहेऊण महरिहसिलाए | उवविसियमहोभागे हणणकण सयललोयस्स ॥८॥ 
रोदज्ञवसाएणं खणइ तओ सो वि चूरिओ तीए। मरिउमसिपत्तदारुणनरएण सो नारओ जाओ ॥९॥ 
निवडंतसिलाखडहडसदं सोऊण पउरपुरलोगो । नद्ठी तम्हा वज्जह असुहं भाव पयत्तेण ॥१०॥ 
॥ द्रमकाख्यानक समाप्तम्‌ ॥२२॥ 
इदानीं भरताख्यानकमारभ्यते । तश्ेद्म-- 
नमिरनरिंद-चंदसिरसेहरकुसुमसमूहधारयं, जम्मणमरणसलिलपरिपूरियभवर्सिघुवइतारयं । 
पंणमिवि रिसहनाहपयपंकउ पणयविपत्तिवारयं, पमणिउ भरहराय-बाहुबलिहहिं चरिठ भवंतकारय ॥१॥ 
इह अत्यि चक्रहररायसज्झि, छक्खंडसमज्नरियभरहमज्मि । 
जयलच्छितिलय नरवररवन्न, नवजोयणवित्थय जेम्ब क॒न्न । 
बारस गिम्हु व आयामि दीड, हरिणालि व पत्तपसत्थलीह । 
खमणयवउ जिम्व परिहाणवज्ज, बिंझाडइ जिम्व गुरुसाल्सज्ज । 
जा कहिं वि गयालि व विमलरयण, अन्नत्थ जुवाणि व पयडरयण । 
पुणु कहिं वि सुमेर॒ व कणयतार, अवरत्थ जणणि जिम्व नेहसार । 
निप्पुत्न व कत्थ वि हयपहाण, सुभग व्व कहिं वि सुहसन्निहाण । 
मुणिमाल व कत्थ वि विगयराय, वणिय व्व कहिम्वि सच्चवियमाय ॥ 
इय उबरि सयासिय, भुवणपयासिय, सा अउज्झ नामि नयरि। 
रह-जाणमणोहर, हरियतमोहर, गुणेहिं समाणिय अहिमयरि ॥१॥ 


मम 33 आल 2 व 3 पा अफरीजलअ एक 


१, परणामवि -₹० । २. पंकय -२ं० । ३. जिम -३०। 
११ 





ष्य्र्‌ आश्यानकर्मणकोशे 


जहिं भवणसिहर रविरहु खर्लंति, रविकंतमित्ति दिणि पहूलंति | 
जहिं पउमरायमणि विप्फुरंति, ससिकंत निप्तिह जलु पज्ञरन्ति । 
जहिं धयवड पर कंपंति पवणि, मारणधणि सूयह विसइ सवणि | 
गंधियहं हृष्टि जहिं कुट्ठवाय, जूइयरहं सुब्वह पासपाय । 
जहिं गहणु जणह निम्मलकलाहं, ताडणु कामिणिवच्छत्थलाहं | 
कश्ययणह पर सगुणप्पबंध, गय-हयपहाण जहिं रायखंध । 
जहिं कुट्टण छेयण सहहिं कणय, ससि-सूरह गसंणु वर्यति गणय । 
करपीडणु तरुणिधणत्थणाहं, दीसइ न कयाइ वि जहिं जणाहं ॥ 
नंदणवणसोहिय, मुणिहि विमोहिय, अबषिरोहिय सुमणसपरिस । 
गुरुरायरवन्निय, विवुहसमन्निय, जइ पर सुरपुरि तसु सरिस ॥२॥ 
त॑ पालइ भूवह भरहु राउ, घरि जिम्ब रणि रेहह जासु चाउ । 
चउसद्विसहस्सपुरंधिनाहु, छक्खंडविजयलच्छीसणाहु । 
पुरपरिहपलंबपसत्थबाहु, मण-पवणजवणरमणीयबाहु । 
चउरंगसेण्ण जसु सत्तुमहण, जिम्ब॑ जिणह धम्मक्रिय जुत्तिगहण | 
तसु सब्बंतेउरंपहाण, लायब्न-रूव-रइ-सुहनिहाण। 
करि खग्गजट्टि जिम्ब सुद्धवंस, सुपओहरपावियजणपसंस । 
अकलंक महासइवन्नणिज्ज, बीयाससिरेह व वंदणिज्ज । 
कलभासिणि परि पसरियसुभद्द, निवपयप॑इट्ट नाम्मि सुभद्द ॥ 
सो गोरिए जिम्ब भवु, रह जिम्ब रइधवु, स हु सिरीए जिम्व महुमहणु । 
राहवु जिम्ब जाणइ, तिम्व सुहु माणइ, तीए समउ रिडवणदहणु ॥३॥ 
जिणकेवलनाणुप्पत्तिसमइ, उप्पत्ति चक्कि चक्वइसमइ । 
नियहियद हियावह भरहु राउ, पूएमि चककु ? कि वा वि ताउ १। 
सविवेइं पुणरवि मुणिउ एम्व, हउं वड्जुइ अंतरि भुल्लु केम्व १। 
कहिं तुच्छु चक्‍कु ? कहिं जिणवरिंदु १, गंडोवछु कहिं ? कहिं सुरगिरिंदु १ । 
कहिं सायरु सोहद ? कहिं तलाउ ?, कहिं चक्षवट्टिनरु ? कहिं चिलाउ १। 
कहिं रासहु ? कहिं सुरवइकरिंदु ?, कहिं किर कुरंगु ? कहिं वंणमहंदु ९ । 
चिंतामणि कहिं १ कहिं उबलखंडु, 0 ०»०००००००००००००००००००० । 
खज्जोयठ कहिं ? कहिं दिवसनाहु ?, कहिं पामरु ? कहिं हरि सिरिसणाहु १ ॥ 
इहलोइउ चककु, सुसुंदरु वि '*'****** जिणु परलोयह सुहजणउ। 
त॑ पूहउ [ चक्‍कु, ] ताईं पूयइ, ता पूयमि पढमउं जणउ ॥५॥ 
पूइत्तु जि जिणेसरु समुणिवग्गु, छक्खंडवसुहमाहणह रूग्गु । 
मांगह वरदाम पहास सिंधु, साहितु भरहु धय-छ[त्त|यचिघु । 
साहेवि सद्टिवरिसहं सहास, माणेवि सिरिदेविं सहु बिलास । 
कारवइ सहोयर नियय सेव, ति वि कहहिं जणारह रिसहदेव । 

१, मारणवल्लि सूयह रं०१ २. गहण रं० । ३. जिम रं०। ४. उरवहुपहाण रं०। ५. सुश्यंस २० | ६. पयद्ध नामि य सुभद रं०। 

७. एम रं० । ८, वणुगइंदु रं० | 


५. भावनास्वरूपवर्णनाधिकारे भरताख्यानकम्‌ । दे 


उद्दालइ अम्हह भरह रज्ज, कि उप्पहुं भवहूं ? कि जुज्ञसज्ज ? | 
इंगालगदाहगपमुह ताहं, दिट्वंत देवि विसइहिं रयाहं । 

संबुज्मह होह म मूढचित्त, वेयालिय अट्टाणवह वित्त | 

पडिबोहिय पढिवि जुगाइदेवि, निंदेवि विसय कग्र भुवणसेवि ॥ 
पव्वइय महायस, वष्टियसाहस, सेविय दुकर तव चरण । 

उप्पाडिय केवल, खालिय कलिमल, विहरहिं वसिकयनियकरण ॥५॥ 
साहिबि वसुह नराहिवसाहणु, पवितद नयरिहिं हय-गय-वाहणु । 
जिम्ब चउवेउ विप्पु मोयंगह, पविसह गेहि न वज्जियसंगहं । 

जिम्ब गुणवंती का वि महासइ, वेसहं पाडइ कहवि न पहसइ। 
अकयपओयणु भिच्चु पहाणउ, जिम्व लज्जइ पेच्छंतंड राणउ । 
तिम्व चकक्‍कु वि कयवंदणमालहिं, पविसइ नवरि न आउहसालुहिं। 
तं पिक्खिवि विम्हिउ भरहेसरु, ७०००००००७०७०७०००७०००७ ७ । 

बुच्चइ मंतिहिं पहु ! निशुणिज्जउ, कारणु चक्रपवेसि भरहेसरु । 
जिम्व कमचुकउ वणि पंचाणणु, कहवि न वंछइ खरनहराणणु ॥ 
जिम्व को वि कुलीणउ, मग्गनिडीणठ, महइ न माणु विणा सयणु । 
तिम्व माणधणेसरु, तक्खसिलेसरु, बाहुबलि वि तुह सासणु ॥६॥ 
ता अकयपओयणु चक्करयणु सट्टाणि न पहसह दिव्वनयणु । 

अन्नु वि आयन्नसु वयणु सामि ! , तुह हियकरु सुरकरिलीलगामि !। 
पद भरहह जित्तउं काइ देव ! , बाहुबलि अलितइं तुज्झ सेव । 

पय मुद्ठिपहारिहि पहउ गयणु, किउ कुमउ मुय्रवि सत्बन्नुव यणु। 
कण मेल्लिवि रिसहेसरकुलेस १ , पइ कुक्कुस कुंट्विय कयकिलेस । 
नश्चियरउं निरत्थउं अंधयारि, किउ अग्गिहोमु निप्फलउ छारि। 

किउ अंधह मंडणु मुहह एुउ, रोविउ अरज्नि पहं निव्विवेड । 

एउ दिज्नउ बहिरह कन्नजावु, एत्तिउ पयासु निप्फलउ सावु !। 

पईं भरहु जिणंतइ, नउ अमुयंतह, मुयह कलेवरु उच्चेलिउ । 
बाहुबलि अकायरु, लहुयउ भायरु, कारिउ सेव न जं ब॑लिउ ॥७॥ 
त॑ निसुणेविणु भरहु पयंपइ, भुंजउ रज्जु मुईं वह संपइ । 

मंतिहु महु एड वयणु न भावई, जगि अप्पणउ कु बंधवु पावह ?। 
सा संपय जा सयणह दिज्जइ, त॑ फलु जं विहलहमुवउज्जह । 
धत्तराहहु कवर्णि खज्जइ ? , किपागह फछु मुक्खु वि वज्जइ । 
किवणह घरि थुत्थुकिय अच्छह, ऊच्छिहि तहिं कहि को मुहु पेच्छह १ । 
लहुयसहोयर जं निकालिय, जणइं दिन्न रज्जईं उद्दालिय । 

त॑ प हु अज् वि पुदट्टि्हि घावइ, दुव्विलसिउ जिम्व मणु संतावइ । 
भरहेसरु संतुट्ठट सप्पद, पुणरवि मंतिहि इम्ब विन्नप्पइ ॥ 





१. जिम २० | २. «»गहु २० । ३. पिच्छुंतठ रं० । ४. कुट्तिमपाय० र॑। ४. उच्चलियठ रं० । ६. बलियठ | ७, संपह रं०॥ 


समा) >मामाए८+लक मर, 


आख्यानकमणिकोशे 


पहु ! तुज्ञ हियत्थि, सइ सेयत्थि, अम्हिहि एउ कहिज्जइ । 

निय सेस कराविवि, नउ सुमराविबि, सम्माणिवि विसज्जियइ |॥|८॥ 

अह पभणीह पवीणिहि भरहनाहु, मेल्लाविउ मंतिष्ठि मणह गाहु । 
पट्टवह दूउ नामि सुवेगु, अप्पेविणु रहवरु पवणवेगु । 

अहो दूय |! जाहि तकखसिल ताव, पियवयण्श्िह भणसु महाणुभाव ! । 
पिउ बंधवु मज्झु कणिट्ट _ भाय, बाहुबलि न रूसह जिम्व सुजाय । 
पव्वदय सहोयर लहुय सावबि, दुइ अम्हिहिं राय न अंति '*''"'**' । 
महु मन्नह सेव सिणेहजुत्त, उवभुंजहु रज्ज पसन्नचित्त । 

आएसु भणेवि जाहु लग्गु, अवसठणसहसपडिखलियमग्गु । 

अट्टाणि कणिट्ठह पहुहु आण, सब्वा वि निवेह्य कयपमाण ॥ 

बाहुबरलिं भणिह य भो भरहभाय !, म भायसु होहि थिरु '"'*'''*' । 
मेल्लेविणु मुणिवर अन्नु जिणु, अवरह न नमइ न॑ मज्झु सिरु ॥९॥ 
एत्थंतरि रायपसायसुहिउ, चंदुग्गमि जलनिहिजलु व खुहिउ । 

अत्थाणु सयलु बाहुबलितिणउं, दुयागमि मणि मच्छरिउ घणउं । 
आंबेलीय भीमि दाढिय हुलेवि, उत्ताणिय ददरहिं नयन बे वि । 
चउरंगुहु भूमिहिं निसढि भग्गु , अवलोइउ सीहिं निसिउ खग्गु । 
अत्थयल्अियलि हउ धरणिवद्ट | , दमघोसि दंतिहिं अहरु द्टू । 
भालयलिं सुवेगिं तिवलि भग्ग, महसेणह छुरियहिं मुद्ठि रूग्ग । 

फुडड पुष्फदंतिं फुरुफुरियहोट्टं, पहरणहुं पिहुहु कंपिय पकोट्ट । 
उब्मडभडभीसणसुहढवग्ग, अजन्ने वि एम्ब बोज्लणह रूम्ग ॥ 

बहुसेन्नु भरहु कहि किर कवणु, बाहुबलिहि कुवियाणणह ? । 
परियरिउ हरिणु कहि कि कुणउ कुवियह पंचाणणहं ? ॥१०॥ 
अह सुवेगवर्यणि रणकामय, दुन्नि वि भायर पायडनामय | 

रणसंभार खुहियसायरजल, सिंवार्सिविहिं मिलिय महाबलि। 

तो उदयाचलि चडियद दिणयरि, पेच्छिउकार्मि पणासियेतमभरि । 

अहो किर कि रिसहेसरजायहं, घरि वि विरोहु हुयउ दुहं भायहं । 
धिसि ! धिसि | धिसि ! विसयह तुच्छत्तणु, धिसि ! धिसि ! धिसि ! कसायविरुयत्तणु । 
जाण कज्जि इंम्व होइ जणबखउ, यावहं ताहं कु दुष्टिम छक्खउ १। 
विसय दुरंतनरयदुहकारण, विसय सम्ग-अपवग्गह वारण | 

विसय धम्मविश्वेयवियारण, विसय घरि वि इम्ब विहिय महारण ॥ 
जह वि हु जणसम्मय, जह वि मणोमय, तह वि हु खय गय विसयरइ | 
किउ वलिहि सुवन्नउं, जह वि रवन्नउ, कन्नह छेयणु ज॑ " करह ॥११॥ 
निग्गह तमभरि पयडिय नहंगणि, बहुभडभीसावणे समरंगणि। 
बिन्नि वि रणरहसिं सन्नद्धरं, बहुमच्छः अमरिसि सकुद्धईं । 
बिन्नि वि जयसिरिसंगमलुद्धईं । >०००००००००००००००००००० | | 


१. आंबलिउ -रं०। २, हुट्ड -रं० । ३. कंपिउ -रं०। ४. ०सिउठ तम० रं०। ४, इम रं०। ६. दिहिम रं०। ७, कारणु रं० | 


८, वारणु रं० | ६. इम रं० | १०. जह ₹०। 





५. भावनास्थरुपवर्णनाधिकारे भ रताख्यानकम्‌ 


बिज्नि वि नियसामियकज्जुज्जय, बित्नि वि पयडपरक्रमदुज्ञय । 
बिलि वि रणसंकडि अविसायइ, बिज्नि वि नियपहुलद्भधपसायईं । 
बिन्नि वि रणकलसिक्खियसत्थई, बिल्नि वि पउठणीकियबहुसत्थइं । 
बिन्नि वि मिल्लियसिहनिनायह, बिन्नि वि सुद्धवंसगुणनायइ' । 
बिन्नि वि निकरुणद तिप्पट्टट, बिन्नि वि रणरहसिं संघट्टह ॥ 
रवि आगमि जिम्ब चंदुग्गमि, रेहलंतह महियदु जलई । 
पुव्वावरसिंधुहुं दोहिं वि बंधु, दुग्गाहइ मिलियहइ बलई' ॥१२॥ 
अब्भिट्ट गयाहिव गयवराहं, गलगज्जिभरियभुवण्णंतराहं । 

संलूम्ग तुरय जवसुंदराहं, तुरयरह हयहेसियमणहराहं । 

संचोइय संदण रणि रहाहं, घरहररवपूरियसुरपहाहं । 
लल्लक्कमुक्कहकारवाहं, संलूग सुहड भडमाणवाहं । 
कडतल्कझलक्कियभीसणाहं , उक्खायखग्गगुरुनीसणाह । 
भलभलियसेल्लभासियनहाहं, मुग्गर-मुसुंढिपयडाउहाहं । 
लल्ल[क्क]चक्कचश्च कियाहं, नाणाविहहेइ्चमक्कियाहं । 
बाणावलिछाइयनहयलाहं संलूग्गु जुज्झु दोहिं वि बलाहं ॥ 

इम्वे कायरनासण, सूरह तोसण, घणजणमहणि महाबलइ' | 

रिसहेसर जायहं, दोहि वि भायहं, अब्मिद्ृह वियड ईं बलइ ॥१३॥ 
भिडंतरायनंदण्ण, भज्जंतभूरिसंदणं, किज्जंतसत्तुसदर्ण संपत्नवेरिमदृणं । 
मरंतमत्तवारणं, पढंतचारुचारणं, विपक्खदिन्नदारुणं, महंतपावकारणं। 
पडंतसेयछत्तयं, भिज्ज॑तरायगत्तयं, दीसंतरत्तगत्तयं, संजायगिद्ध भ त्तयं । 
छिज्जंतहत्थिसुंडयं, रुलंतरुंडमुंडयं, उड्'ुंतमूरिकंडयं,' "7" ॥ 
एवंविहु भीसणु, सुयहरिनीसणु, विम्हावियसुरनरनिवहु । 

जाय[उ] आभोहणु, भडसंखोहणु, दंसियबहुविहुसत्तृवहु ॥१४॥ 
चित्तरहह नंदणु चित्ततेउ, हक्किउ नलि भडहमसज्झतेउ । 

ओरिं चहु कायर म करि खेउ, जि दंसेमि दुक$ रणह भेउ । 

तिं वर्यणिं रंजिउ चेत्ततेड, बोल्लणह लग्गु तुहु रणि अजेउ । 

महु सामिहि सेवकरावणेण, नियलहुयभायनीसारणेण । 

तुह जणयह जाउं ज॑ कलंकु, पहं परिपक्रखालिउ तउ विसंकु । 

पद अप्पउं पयडिउ सुहडविंदि, पह नाउं लिहाबिउ धवलि चंदि । 
इय भेंणवि परोप्पर जुज्झि लग्ग, बाणेहिं संछाहय गयणमग्ग । 
सरधोरहिं छाइय सूरतेय, वरसहि घण जिम्व नल चित्ततेय ॥ 
चित्तरहह नंदणि, कयकडमद्णि, भरहह नंदणु अतुलबलु । 
बाणावलिधाइ, गरुयदुवाइ, पाडिउ तरुवरु जेम्ब नलु ॥१५॥ 

नलि पडियह दंडाहिवि पयंडि, आयड्डिय दढ कोदंडदंडि | 

सीहरहु सुसेणि इम्व सगव्वु, पडिभणिउ मुएविणु अवबरु सब्बु । 


न्‍विलननन-कलनन-ननननननी नाल तनननकम, 


, १, इस “३० |, २. गिद्धछुत्तयं -खं० | ३. फायर -२०,। ४. भणिवि -रं० | ४, «धारिहिं -२० । 





ध्दि आखश्यानकमणिकोशे 


मह समउ सुहड वरि जुज्सि रग्यु, करि धणहरु धरि अहवा वि खग्गु । 
नलु मारवि गम्मइ केत्थु पाव, ए सयल देमि हउ तुम्ह ताव । 
इम्व भणिवि सरिउ मणिदंडरयणु , करि चडिउ तेइईं भासंतु गयणु । 
पविदंडिं सुरवह जेम्व गिरि, तिम्व सो वि सुसेणि पहउ सिरि । 
बाहुबल्सिन्नु निप्पहवयणु , संजाउ खणिण मँयलियनयणु । 
अवारिंउ गयणु व दिणमणीए, अत्थमियइ भडचूडामणीए । 
बाहुबलिहि नंदणु मडआणंदणु, भरहसेन्रि सुहडह दुजओ । 
सुमरिवि रिसहेसरु, मणि परमेसरु, मरि समाहि सोहम्मि गठ |॥|१६॥ 
॥ नलकुमार-सीहरहविणासणो नाम पढमो संधी ॥१॥ 
पहुपल्हायरायकुलसंभवु भवरिउमहणजिणमणो, 
बहुबहुमाणविहियगुरुपयपउमपणमणो | 
बहिरंतरंगदुज्जयरिउगंजणु जणबहुस्सुउ । 
जिम्ब हणुयंतु सुहड्चूडामणि तिम्व निलवेउ बविश्सुउ ॥१॥ 
अह निलवेउ समररहसुब्मडु रणि अन्नियंतु नारउ । 
निव्भरसुहड्घडणरणसंकडदंसणकेलिकारउ ॥२॥ 
चिंतइ चरणि चत्तउ सुयहरु, नहयलि नीरिं रहियउ जलहरु । 
सुहरसलवणविहृणउं भोयणु, सुहसोहग्गविवज्जिउ जोयणु । 
तणु जि्म्वे वयणविवज्जिउ दीणउं, वयणु व पम्हलनयणविहीणउं । 
गयणु व अत्थमियद जिम्बे दिणमणि, हारु व हारियवरमज्यिममणि | 
सुहपरिणामविवज्जिउ मुणिमणु, सिंहकिसोरविहृणउं जिम्व वणु | 
रायहं सरहियर्ट जिम्व सरवरु, जिम्बे जणि रूवविवज्जिउ वहुवरु । 
विह॒वु व चत्तउ पत्तह दार्णि, दाणु व दूरीकिउ सम्माणि । 
गीउ व वियलउं सुमहुरवाणि, पउमु व रहियउं भमरज्जुबाणि ॥ 
रिसहेसर जायह, चत्तविसायह, तेम्व रणंगणु'"'********* । 


०००१०+०००७००००००००१००७००७०७०७००००००००००००७० ० ग धरणि पकिलामिउ | 

जम्मि लयहरहिं कीलंति विज्ञाहरा, भमहिं गय-गवय-हरि-हरिण-रुरु-नाहरा । 
तासु सिरि दोन्नि सेडीओ जणवयवरा, एग दक्खिणहिं उत्तरहिं भणियाउवरा । 
अत्थि तहिं नयरु नामेण रहनेउरं, सदरमणीउ गिरिसरिहि न॑ नेउरं । 
पयडपल्हाउ पल्हाउ तहिं नरवरो, रूवसोहग्गगुणकलिउ नं महिधरो ॥ 

तं॑ पयडपरक्षमु, सम्मयसक्षमु, खग्गवसीकयरिउनिवहु । 

पालइ महिमालउ वरु, वहिमालउ धवलकित्तिगंगापवहु ॥२॥ 


नारयरिसि जायवि रायपासि, अज्झयणु पढेविणु गुरु पयासि । 
हउं बंभणु मम्गागमकिलंतु, महु भोयण दिज्जउ गुणमहंतु । 


किन 


१, मारिवि २० । २. केत्य २० | ३. मउलिय० रं० | ४-४, जिम रं० । ६. जिम बिणरूव रं० । ७. विज्जलरउं रं०। ८, जुयाणि २ं०। 





५. भाषनास्थरूपवर्णनाधिकारे भरताथ्यानकम्‌ 


कि कारणु उत्तावलउ भट्ट | , सो भणह रिसहसुय गुरुमरद्द । 

आभिट्टा संगरि बलपकिट्ट, जाएवउं तहिं महं गुणगरिट्ठ !। 

भो भट्ट ! भुंजि तुह होठ भद्‌दु, म॑ करि वियत्त इम्ब उच्चसददु । 

जाणिस्सदह वहयरु अनिलवेगु, पियपरिभवु मुणि एही सुवेगु । 

जा एय तत्थ आलाव हुंति, ता अनिलवेउ' संपत्त झत्ति । 

महु दिज्जउ किंपि हु सेन्नु देव ! , मईं समरि करेवी तायसेव ॥ 

पुत्ति पमवंति, गुणेहिं महंति, ताय ! जणेरह गुण कवणु १ । 

मह रणि पहसेवर्ड, निरुवज्ञेव[उं], एम्व भणि चल्लिउ गुणभवणु ॥३॥ 

तं॑ सुणिवि नेहिं भोलविउ ताउ, बोल्लणह लग्गु पल्हायराउ। 

तुहुं अज् वि बालउ सवह सज्झु, अन्नायचक्द रजु(ज्ञ|मज्झु । 

आयन्नवि तं॑ निम्मलविवेउ, पम्णिउ साहसधणु अनिलवेड । 

हुईं बालु अकारणु ताय |! एउ, जह जियह फुरइ अप्पणउं तेउ । 

कि कुद्धउ सीह किसोरबालु, निदलइ न गयकुछु कमकरालहु ?। 

लहुयउ चितामणि जणि समत्थु, चिंतियठ पणामइ कि न वत्थु १। 

कि नासियतमभरु फुरियतेउ, न पयासह दीवउ गुरुनिकेड १ । 

पञ्नलियठ सिहिकणु अप्ययासि, कि न कुणइ तणभरु भासरासि १॥ 
बाहुबलिहि तायह, भरहह भायह, मह' साहेज्जु करेवउ । 
निच्छई जोएबउ', रणि पहसेवउ', वहरिमाणु मलेवउ ।|४॥ 

दससहस समप्पिय मयगलाह, तत्तिय जि रहहं हयचंचलाहं । 

दसलकख हयह कयघणथडाह, सन्नद्धकोडि दुद्मभडाह । 

इम्व विसद कुमरु रणि बलमहंतु, भडसंकडि दढ़ु मयवज्जु दिंतु। 

परिकुविउ सणिच्छरु जिम्ब नियंतु, उत्थरिउ नाइ कुद्धउ कियंतु । 

सायरजलु जिम्व महि रेज्नयंतु, सरधोरणिछाइयदहदियंतु । 

धणुगुणटंकारवभारिंउ सयलु, बंभंडखंडु नं फुडह वियलु । 

अच्चब्भुउ पेच्छवि त॑ समग्गु, भरहेसरु सइ बोल्लणह रूग्गु । 

अहु भडहु एहु कि वरिसयाहु ?, कि वा वि जुयवखइ पलयकारु १॥ 

तहिं भरहह अक्खिउ, भडयणसक्खिउ, अनिलवेउ एहु वावरइ | 

साहिज्जइ आइउ, महिहिं न माइउ, जसु जसु तिहुयणु आवरइ ॥५॥ 

अह जाम्वेव तेण बलु काइउ, ता सुसेणु तसु सम्नुहु धाइउ । 

करयलकयदंडरयणु रोसुब्भडु । हक्क॑तउ दुष्पिच्छु दप्पुब्भडु । 

उरइं वलु रे निप्फलवग्गिय ! , पाडमि तुह सिरि रोस निभग्गिय | । 

ता गढगजइ मत्तउ मयगढु, लिन ं 

तो कुमरिं दंडाहिवु वुच्च३, एहउ गब्वु महाभड मुच्चह । 

कज्जदुवारि मुणिज्बइ भनल्नउ, अप्पणि अप्पु न थुणइ महल्लउ । 


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१, वेगु २ं०। 


ध्ष्ष्र 


७-० अलग लत अमान 





आखश्यानकमणि कोशे 


छुल्लुच्छलदट ज॑ भायणु ऊणउं, रित्तउ पुणु कणकणइ निहीणरउं । 

तूरु निज्जीवु निरारिउ वज्जइ, निज्जलु जलहरु निप्फलु गज्जइ ॥ 
उवसप्पि वि बेइं, इंव निलवेहं, हियइ पण्हि अप्फालियउ । 

सुरवरहं नियंतहं, गयणि वहंतहं, दंडरयणु उद्दाल्यिउ ॥६॥ 

भरहसेन्नु अवसक्किउ समरह, सुरिहिं मुक्क कुसुभईं सिरि कुमरह । 

भरहिं भणियउं करिबलनायग, अरि अरि अरि वारिय सांयग । 

रणि दुज्जउ एहु पावु निरारिउ, मयगलघडिहिं मेल्लि परिवारिड । 
वयणाणंतरु तेण महायसु, मयगलूघडहिं सु वेढिउ चउदिसु । 

जलहरु मालइ जिम्बव नहि दिणमणि, कम्मपरंपर जिम्ब जिउ भववणि । 
कुमरु वि त॑ पेक्खिवि खुद्धउ मणि, सामवयणु संजायउ तक्खणि । 
सारहि चिंतद एहु रणि भग्गउ प्राहिउ कुछु लज्जावइ लूम्गउ | 

मह धुरि भक्कई होहि म कायरु, तुहुं भडु एहु सुसंगरसायरु ॥ 

तो कुमरिं सारहि, भणिउ महारहि !, हय हय वत्त म एय भणु । 

इम्ब मइ जुज्ञझ॑तउ, रणि सुज्ञंतउ, ताउ न पेच्छह तिणि विमणु ॥७॥ 
इम्व॒ भणि निग्गउ जयसिरिमाणणु, गयघड भंजिवि जि[ नव ]पंचाणणु । 
काइ' असारइ' इणि बलि भग्गइ, भरहिं सहुं वरि संगरि रूग्गह । 
सुहर्डि एक्कु सीहु वरि जोहिउ, हरिणसत्थु मं बहु उबवरोहिउ । 

वरि हिल्लूर एक रयणायरि, मंछिल्लिरि अशुराउ दुहायरि । 

त्ररि नहु एक्कु हुयउ कप्पूरह, म॑ं चंदणह सराउ असारह । 

तिसियद अमयप्पुडु वरि परिपीयठ, जलूघडि जम्मु वि खयह म नीयउ। 
जहिं बंदिणह सद््‌ , सुमणोहरु, दीसइ विलुयसत्थु सुपओहरु । 

जहिं सुम्मह वीणारवु मणहरु, धयमालाउलु जहि थडु गुणहरु ॥ 

तहिं रहवरु चोयहि, एम्व म जोयहि, निसिय खग्ग साहसजुयहं । 
बाहुबलिहि तणयह, वललह जणयह, पेक्ख परिक्षमु मह भुयहं ॥८॥ 
एत्थंतरि जुज्ञउ लूगगु बाहु, भरहेसरिं सहु नं पलयकालु । 

वरिसंतु निरंतरु नहि न ठाइ, सरधारहिं अहिणवु मेहु नाइ । 

भरहु वि आयड्डलियचावदंडु, बाणावलि मुंचह बलपयंडु । 

भरहेसरबाणह खलबि जाइ, खण नहयलि खंणि महिवीढि ठाइ । 

खणि दीसइ करिवरि खण रहग्गि, खणि धणुहरि खणि भडनिसियखग्गि । 
खणि बाणि खणंतरि करिहि पुच्छि, खणि वियडि विल्ूमगइ रायवच्छि । 
जिम्ब विज्जुपुंजु खणि दिद्वनट्ट ,, तिम्व भमइ रणंगणि गुणगरिद्द | । 

न य छेपईं भरहह सो सरेहिं, मुणिराउ व मयणह दुहयरेहिं ॥ 
नियधणुहरबाणिहिं, अगणियमाणिहिं, छाइठ सघउ सहँउ सरहु । 
जुज्झंतइं बारलिं, अइसुकुमालि, किउ विलक्खु संगरि भरहु ॥९॥ 


पिन 


१ सालइ २०१ २, खण रं०। ३, छिप्पद २० ॥ ४. सहसउ २० । 


१९२ 


१. वड्डिउ रं। 


५. भायनास्थरूपवणनाधिकारः 


सो मंतिहिं वुत्तउ इम्ब म तम्मु, एहु सव्वह सत्थह रणि अगम्मु । 
मणि चकरयणु सरि सत्थरम्मु, एहु मारहिं जइ पर मुयवि धम्मु । 
जं भरहि निरुद्धउं जोगचक्कु, ०%०००००००० ..__._ ७०००००००००००० | 
तक्खणि मिलंतु जालावमालु, चउदिसिहि फुरंत सिहिकणकरालु । 
करकमलि ठियउं त॑ चक्‍करयणु, पेक्खिवि कुमारु अक्खुहियवयणु | 
भरदेसरि वुच्चह गुरुसिणेहिं, अज्ज वि जीवंतउ जाहि गेहि । 

इह एही भवणि म होउ मज्झ, जसकित्तिहि नासण बालवज्झ । 
पमणिउ कुमारि करिलीलगामि, भज्ज॑तिहि रणि लज्जियह सामि ! ॥ 
उज्जल्मुहछायह, तासु सुवायह, मुक्क चककु ज॑ बहु करइ | 

विसि रज्जह हुंतह एम्ब गुणवंतह, पुत्तह पिय जहिं ववहरइ ॥१०॥ 
आयंतह यक्कह चत्त तासु, ह धणुह हत्थु सम्मुहउ तासु । 
दढबाणिहिं पहउ महाभुएण, अच्छोडिउ खग्गि बलजुएण । 

तह वि हु आगच्छट तिक्खधारु , कम्मह विवागु जिम्व दुन्निवारु । 
संखुद्धउ माणसि मोकक्‍्खकामु, गउ वेगिं गयणि [सु] जहत्थनामु । 
जहिं जहिं नासंतउ जाइ बाहु, तहिं तहि जि जाइ जालाकरालु । 
बहिरंग जिणेविणु मुकखग्गु , एवंतरंगरिउ जिणह छूग्गु । 

ते धन्न पुन्न रिसहेसजाय, समभावरुद्धमण-वयण-काय । 

मज्झ वि संपन्नउ समउ भावु, पठमासणि संठिउ समियपावु । 
चउसरणि पवन्नउ, महिहिं निसन्नउ, निदिय गरहिय दुकियग३ । 
सुमरिय परमेसरु, मणि रिसहेसरु, थुणहुं रूग्गु एम्व सुद्धमइ ॥११॥ 
जय जय रिसहेसर ! भुवणसामि !, मयमद्ण ! मयगललीलगामि ! । 
जय केवलवसविन्नायभाव !, पणमंत सत्तनिम्महियताव ! । 

जय तिहुयणभवणपयासदीव | भवजलहिपडंतासासदीव ! । 

जय लोयपयासियनीइसार!, परिवालियनिरुवमरज्जभार !। 

जय तिहुयणभवणुद्धरण खंभ, संरक्खिय दुद्धरसुद्धबंभ | । 

जय सब्वसत्तसंजणियसोवख !, अट्टावयपव्वयभाविमोकक्‍्ख ! । 

जय भवजलनिहिसंपत्तपार |, दुव्बहनिव्वाहियनियमभार ! । 

जय जिणवर | निज्जियजम्म-मरणु !, मुहु तुहुं गई [ तुहुं मह ] तुहूँ जि सरणु | ॥ 
इय थुय रिसहेसरु, नयजोगेसरु, अनिलवेउ दुल्लयविमुहु । 

चकाउहि दद्धउ, हियइ विसुद्धउ, पत्तउ समरि पसिद्धिसुहु ॥१२॥ 
अह रणि सीहरहाहिय नेहह, सुयइ मरणि कुमरह निलवेयह । 

बिहिं पुत्तहं मरणि विद्वाणउ । सोइवि वहु तकखसिलहि राणउ । 
भरहिं सहु असमत्यियसंगरु, पत्तउ रणभुई वड़ियमच्छरु । 

भणिउ भरहु बाहुबलिं राइं, बहुजणि कि मारियहं वराइं । 

भणि जिणि जुर्झि जुज्मउ भायर |, पडिवन्नह भरहेसि | म कायर । 


अिनटिचभ नर कलन सन +क नल न सकनननक न 


आखश्यानकमणिकोशे 


दिट्ठि जुज्झि [जि]यउ भरहाहिवु, वइजुज्झि वि जित्तउ चक्काहिवु । 
बाहुजुज्सि भग्गद भरहेसरि, पुणु पडिवन्नइ दंडिहिं संगरि । 
पेच्छिवि उद्धियदंडु कणिट्ठठ, आयह पासह अज्जु विणद्वउ ॥ 
नियमणि खलभलियउ, अइसईं बल्यिउ, चिंतइ कि एहु चक्षवह ? । 
पडिभट्ट पहन्नर , रणरसिखिन्नह, कियउं चक्‍कु करि भरहवह ॥१३॥ 
अह चितिउ लहुयइं लल्लक्कद, भंजउ भडमरट्टु सहु चकक 
कि फलु तुच्छह विसयहं कारणि, आयह भट्ठटपइन्नह मारणि १। 
धिसि ! धिसि ! अहो ! कि अभरणि एही ?, नियकुलसंहारणि निन्नेही । 
आईं मह वल्लह सुय मारिय, लहुयसहोयर इणि नीसारिय । 
धिसि ! धिसि ! विसय अंगुसंतावह, धिसि ! धिसि ! विसय जि कारणु [पावह] । 
धिसि ! धिसि ! विसय हेउ संसारह, धिसि ! धिसि ! विसय नियाणु जि मारह । 
विसयासत्त न जिणु परियाणहिं, विसयासत्त न गुरुयणु माणहिं । 
विसयासत्त विडंबण पावहिं, एउ चिन्तेविणु वुत्तउं तावहिं ॥ 
अह तुज्झु अतित्तद, विसयासत्तह, किपि ज असरिड तं सरउ । 
अहु तुहुं अहु मंडल, अहु भूखंडलु, मुक्कउ टारु सर्तिदूरठ ॥१४॥ 
कउ पंचहिं मुद्ठिहिं लोड तेण, पुणरवि य॑ विचितिउ नियमणेण । 
उप्पन्ननाण महु लहुयभाय, किम्व नमणि करेवी मइं सवाय १। 
उप्पन्ननाणि महं तायपासि, जीयवि पेक्खेवा गुणह रासि । 
ठिउ काउसग्गि संजमिय वाणि, मणि माणाहिट्टठिउ धम्मझाणि । 
तण-लयहि पवेढिउ अप्पमाणु , तसु वेरिसु जांव न यठसणु न पाणु। 
रिसहेसरि पेसिय समयवाय, तहिं बंभी सुंदरि भर्णाह भाय ! । 
हत्थिहि ओयरियह होइ नाणु , एउ भणइ ताउ सुरविहियमाणु । 
क॒हिं मज्ञ हत्थि इृह वणि पसत्थि , हुं नायउं एहु जि माणु हत्थि ॥ 
तो जिणवरु वंदउं, मुणि अभिनंदउ, सुहह हुयइ परिणामि मणि । 
उप्पन्नह केवलि, नासियकलिमलि, जिणह पासि गठ तम्मि खणि ॥१५॥ 
भरहेसु वि भुंजइ एग छत्त, छ्खंडवसुह बहुरिद्धिपत्त । 
कहया वि हु निवु विलसिरअणंगु, सव्वालंकारविभूसियंगु । 
आयरिसगेहि गोयंकु वीरु, राढईं किर कइसउं महु सरीरु १ । 
एगंगुलि पेच्छह ता मणुन्न, दुद्दंसग मुद्दारयणसुन्न । 
अवणेह सब्ब जी विगयमोहु, उच्चिणियपठम सरु जिम्ब असोहु । 
चिंतह सरूवि सब्बु असारु, मेल्लेवि धम्मगुणु निव्वियारु । 
सुहभाविं मज्झिवि ठियउ घरहु, उप्पाडइ केवलुनाणु भरहु । 
देवयईं समप्पिय समणलिंगु, कयलोउ महिहिं विहरइ असंगु ॥ 
विहरिवि बहुवासइं, वज्जिउ हासइ, कम्मक्खयनिम्माणह । 
पडिवोहिय महियलु, नासियकलिमलु, भरहु गयउ निव्वाणह ॥१६॥ 

॥ भरताल्यानक समाप्तम्‌ ॥२३॥ 


९. जुम्फि उद्बाइय भरहेसरि र॑ । २, तुज्क रं०। ३, उ रं० | ४. जाइवि रं० । ५, वरिस रं० | 


४. भाषनास्वरूपषणनाधिकारे इलापुत्राव्यानकम्‌ ९१ 


इदानीमिलापुत्राख्यानकमारभ्यते । तथथा-- 


निरुवमनयरगुणेहिं पुहईए पत्तवद्धणत्तणओ । पत्तजह॒त्थमिहाणं अत्यि इलावद्धणं नयरं ॥१॥ 

तत्थेव य वत्थव्वों इब्भो भवर्ण महाविभूदेण । सुद्धसहावों दक्खिन्नसायरों सुहसमायारों ॥२॥ 
रायाइपूयणिज्जो निच्च॑ नीसेसनिगमनिवहस्स । अग्गासणी गुणन्नू गुणिजणवगास्स गोरव्बो ॥३॥ 

एवं एयस्स महायणम्मि सब्वत्थ सुत्यहिययस्स । परमेगमवच्चदुहं जयम्मि जद वा सुही नत्यि ॥9॥ 
मिउवयण-रूव-सोहग्गधारिणी धारिणी पिया तस्स । सहसुत्यिया वि नवरं, निरवच्चा पुत्तकामा य ॥५॥ 
तत्थ इलादेवीए, आययणं विज्जई जणपसिद्धं | तं च जणो कज्जत्थी पुत्ताइनिमित्तमच्चेइ ॥६॥ 

त॑ च पसिद्धि सोउं देवीए तीए इच्भभज्जाएं | पायवडियाए भणियं मयबह ! जह तुह पसाएणं ॥७॥ 
मज्झ भविस्सइ पुत्तो ता तुह भवण महाविभूईण । पहवरिसं कारिस्सं जत्ताइमहूसवं परम ॥८॥ 
गोउलपमुहं वित्ति वद्धारिस्सामि तुज्म आययणे | कि बहुणा ? नाम॑ पि हु सुयस्स तुह संतियं दाह ॥९॥ 
तो तीए पभावेणं खओवसमणेणमंतरायस्स । पाउब्भूओ गब्भो तप्पमिदें इच्भभज्जाए ||[१०॥ 

जाओ कालकमेणं वद्धावणयं पयट्टियं नयरे | वित्तम्मि सूइकम्मे संपत्ते बारसाहम्मि |११॥ 

ज॑ जह भणियं तं तह सब्ब॑ ओवाइयं विहेऊण । पाएहु पाडिऊरणं नाम॑ दिन्न॑ इलापुत्तो ॥१२॥ 
गिरिकुंजसमल्लीणो सो चंपयपायवों व्व निरवाओ । वड़ तो अणुवरिसं संजाओ अद्टवारिसिओ ॥१३॥ 
अम्मा-पियरेहिं तओ वियाणिऊर्ण कलागहणसमयं । न्हाओ कयबलिकम्मो धवराहरणो धवलवेसो ॥|१४॥ 
सुहदिवसे सुहमासे सुद्धे पक्खमि पंचमितिहीए । सुहजोगे सुमुह॒त्ते गुरुवारे पुस्सनक्खत्ते ॥१५॥॥ 
सकारिऊण सम्माणिऊणमज्झावयं विसेसेणं । महईए विभूहए लेहायरियस्स उबणीओ ॥१६॥ 


जओ भणियं-- 


अपर च-- 


तथा हि--- 





सब्बगु णसंजुओ वि हु विज्जाए विणा सुओ वरं कन्‍ना । गब्मे वि वरं नासो वंझा वज्जा वरं होउ ॥१७॥ 
वागरण-छंद-इलंकार-सिद्धंत-वेयनिउणाणं । सुकुलृप्पन्नो वि हु पामरों व्व जोयइ मुहं मुक्खो ॥१८॥ 


अजात-म्रत-मूर्ख भ्यो, मृता-5जातौ वरं सुतौ | तौ किश्विच्छोकदौ पित्रोमूखस्त्वत्यन्तशोकदः ॥१९॥ 
तत्तो सजोगयाए जणयपयत्ता तहाभिओगाओ । अज्ञावयस्स पत्तो कलाकलावस्स पारम्मि |॥२०॥ 
भवियव्वयानियोगा पायं विसएसु न रमइ मणो से । अम्मा-पिऊहिं तत्तो खित्तो दुल्ललियगोट्टीए ॥२१॥ 
एत्थ॑तरस्मि मन्‍ने जेउमसत्तस्स तिहुयणं सयलं । मयणस्स सहायत्तं काउं पत्तो सरयसमओ ॥२२॥ 


वित्थिन्नसरोवरवियसियाइईं कुमुयाइं निम्मलनिसासु | तारानियरसमिद्धि गयणगयं जम्मि पहसंति ॥२३॥ 

बीसूं पि दिसासु सरोवराइ' सुइसच्छसलिलकलियाइ' । जम्मि उ सरयसिरीए दप्पणलीलं विडंबंति ॥२४॥ 
हंसेहिं संचरंतेहिं सोहियं गुरुनहंगणं जम्मि । सुविसुद्धोभयपक्खेहिं अह व गरुया वि सोहंति ॥२५॥ 

जत्थ य पहिया सुहसालिगोवियासरसगीयपडिबद्धा । सम्मग्गाओ भस्संति अहव एवंविहा विसया ॥२६॥ 
सरसधणकालिमाए कलियाइ' वि दिसिवहण वयणाइ । सुहयस्स जस्स संगे वियाससहियाइ जायाइ' ॥२७॥ 
हिमसंकासो चंदो सवियासो सइ॒इ जत्थ सविसेसं । सत्वत्थ वि वित्थरिओं सारयसिरिकित्तिपडठ व्व ॥२८॥ 
धवलिज्द दिसिवलयं जत्थ य कासेहिं ससहरसिएहि । अइसरला सुहपव्वा सुविसुद्धा कं न घवलंति १ ॥२५९॥ 
अनिलंदोलिरविलसिरकासा आसाविलासिणी खंधे । सरयनरेसरचामरकलावलीलं विडंबंति ॥३०॥ 


१, सुच्छु० २०॥ 


णश्‌ 


किंच-- 


आश्यानकमणिकोशे 


पेच्छ5च्छरीयबहुवायसंजुयं जिणमयं जए जयइ । सिहिणो विमणा हंसा य सहरिसा जम्मि संजाया ॥३१॥ 
सुयपंतीए फलय॑ पि भव्खिउं सालिरक्खिया सालिं। देह न जमदायारे कुणंतु कि रत्तवयणा वि १ ॥३२॥ 

उय सालिरक्खियाए सुद्रमुड्जाविऊण सुयसेणिं | खत्ता किविणघरेसुं कुणंतु कि वा सपक्खा वि १ ॥३३॥ 
सउणेहिं संसियाओ सस्सइ ओसह[*''*** सह |लाओ । सिस्सेहिं सम॑ सोहंति जम्मि सुहछेत्ततीमाओ ॥३४॥ 
जम्मि सुविसिद्टपरिपुद्विलट्टगोविंदतड्डलियमुहाओ । गोट्ंगणभूमीओ भममंतगोवीओ रहंति ॥३५॥ 

खत्तेहिं समल्णिहिं घणेहिं संगे गया वि मलिणत्तं । सुइसंगे सुज्मंती सारयगयणं व गरुया वि ॥३६॥ 

पेच्छह पयडपयावों अहिययरं सरय संगमे वि रवी । निव्वडियपयावगुणा कुणंतु जे किंपि तह वि मुहा ॥३७॥ 
विमलियनहम्मि सरयम्मि ससहरो अहह ! पेच्छ सकलंको । अहवा निम्मलसंगे वि न5न्नहा जायइ सहावो |।३८॥ 
इय एरिसम्मि सरए पकामकामम्मि सो इलापुत्तो । कश्या वि कीलिउं काणणम्मि निज्ञाइ सवयंसो ॥३९॥ 
तत्थ ललंतो लीलाए लंखियं लहुललामलायन्नं । सोहग्ग-रूव-सुंदेरमंदिरं ममणघरणि व ॥४९॥ 
नवजोव्वणरमणीयं नडघूयं नियह मयणसबरस्स । जेउं जयं व विहिणा विणिम्मियं निसियभल्लि व ॥४१॥ 
पावो पेच्छह मह पणइणि त्ति कामेण जायकोवेण । समगं सब्बगं पिहु विद्धो पंचहिं वि बाणेहिं ॥४२॥ 

ताहे अयकीलयकीलिउ व्व थिमिउ व्व चित्तलिहिउ व्व । लेप्पयमउ व्व मुच्छागउ व्व पाह/णघडिउ व्व ॥४३॥ 
जा तयवत्थो चिट्ठह तो तग्गयमणवियप्पकुसलेहिं । हरिस-विसायाउलमाणसेहिं मित्ते्ि संलत्तो ॥४४॥ 

उस्सूरं संजायं महई वेला समागयाण<म्हं । ता गच्छामो गेहं कल्ले पुणरागमिस्सामों ॥४५॥ 

त॑ पि हु ता परिसंतो मा किमवि सरीरकारणं होही । अम्मा-पियरों दूरं तुह अवसेरिं करिस्संति ॥०६॥ 

वारं वारं भणिओ वि जाव तगायमणो न चिंतेइ । बाहाए घेत्तणं बला वि नीओ जणयगेहं ॥०७॥ 

तत्थ वि हसह वियंभइ पलवह रोवइ निरिक्खए सुन्नं | तत्तथले पक्खित्तो मच्छो व्व रह न पाउणइ ॥9८॥ 

जा कट्ठद्स पत्तो ताव य जणयस्स से निवेइन्ति । सो वि निसामिय वज्ञाहउ व्व जाओ विसन्नममणो ॥४९॥ 
साणुणयं सप्पणयं सुजुत्तजुत्तिक्वम खमासारं । परिफुसिय मुहं मुहरं भणियं सुण वच्छ ! मह बयणं ॥५०॥ 
पढियस्स तस्स सुणियस्स तस्स निरुवमकलाकलावस्स । सुहगुरुउवएसस्स य अवसाणं एरिस बच्छ ! ॥५१॥ 


लज्जिजइ जेण जणो महल्ज्जिद नियकुलक्षमो जेण । कंठट्ठिणु वि जीए कुणंति न कया वि त॑ सुयणा ॥५२॥ 

अन्न च निवो नाही सो मह सब्वस्सनिग्गहं काही | पठरजणो वि हु भणिही अकज्जमिमिणा समायरियं ॥५३॥ 

ता संति रूव-जोव्वण-लायन्नपवाहसारणीओ व्व । कुलबालियाओ ताओ वच्छस्स कए वरिस्सामि ॥५४॥ 

ता नीयाए किमेयाए वच्छ ! रूवाइगुणजुयाए वि | सीय॑ पि पओ मायंगकूवए पियइ कि विप्पो ? ॥५४५॥ 

भणियं च तेण अहमबि ताय | वियाणामि जं तए भणियं । किंतु मह कम्मपरिणइवसेण विसम॑ तहिं पेम्मं ॥॥५६॥। 


जओ भणियं-.- 


अवबरं च-- 


धारिज्जइ इतो जलनिही वि कल्लोलभिन्नकुलसेलो । न हु पुव्वजम्मनिम्मियसुहा-5सुहो कम्मपरिणामों ॥५७।। 


ता लज्जा ता माणो ता इह-परलोयचिन्तणे बुद्धी । जा न विवेयजियहरा मयणस्स सरा पहुप्पंति ॥५८॥ 

ताव परो वि हसिज्जइ कीरइ माणं थिरत्तणं लज्जा । जा विसमे न पडिज्जइ अत्थाहे पेम्मकूवम्मि ॥५९॥ 
सुयनिच्छयं वियाणिय मग्गामितयं पि कि वियप्पेण ? | मा मह सुयस्‍्स जीवियसमस्स अच्चाहियं होही ॥६०॥ 
गंतुण मग्गिओ सो सुबन्नतुलियं पयच्छ नियधूयं । मणियं तेण महायस ! सुबन्न अक्खयनिही एसा ॥६१॥ 

ता जइ कज्जं मज्झ॑ मिलेउ सो तुह सुओ किमन्नेण ?। गोरवअरिहस्स गिहागयस्स साहेमि कज्जमिणं ॥६२॥ 
आगंतृ्णं जणएण लंखियाजणयभासियं कहिय॑ | सो वि य निसामिऊणं मणे विसल्नो वियप्पेइ ॥६३१॥ 





५. भायनास्थरूपयर्णनाधिकारे इलापुत्राय्यानकम ९३ 
जणएण जणविरुद्ध अकज्ञमवि ववसियं मह निमित्त | त॑ पि न जाय॑ तम्हा धिरत्थु विवरीयमयणस्स ॥६४॥ 


जओ-- 
साहीणं मोत्तणं ज॑ं ज॑ जणगरहणिज्ञमहियं च । त॑ त॑ महह वराओ दुरन्तहयमयणवसवत्ती ॥६५॥ 
भणिय॑ च-- 
पेरिज्ंतो पुव्वक्षिएहिं कम्मेहिं कहमवि वराओ । सुदमिच्छंतो दुल्लहजणाणुराए जणो पडह ॥६६॥ 
अन्न च-- 
सच्छंदपयपहाविरदुल्लहलंभ जणं विमग्गंतो । आयासपर्ट[हिं भमंतहियय ! कइया वि भज्जिहिसि ॥६७॥ 
एगत्तो गुरुआणा अलुंघणिज्ञा कुलं च ससिविमलं | एत्तो य अपडियारो मणभवणं दहइ मयणग्गी ॥६८॥ 
ता कि वयामि देसं १ कि वा पाणे चयामि पावो हं ? अहव मणवल्लहाएं मिलामि ज॑ं होह त॑ होउ ॥६९॥ 
जओ-- 


नासइ कुलाहिमाणो लज्जा परिगलइ पोरिसं पड॒इ । दूरे गुरूण सेवा नारीवसयाण भणियं च ॥७०॥ 

ताव फुरइ वेरग्गु चित्ति कुललज्ज वि तावहिं, ताव अकज्जह तणिय संक गुरुपणभउ तावहिं। 

ता्विदियह वसाइ' जसह सिरि हायइ त।वरहिं, रमणिहि मणमोहिणिहि व[सउ नरु होइ न जावहिं ॥७१॥ 
सुकयत्थु वियक्खणु सो सुहिउ, सुगइमग्गि सो संघडिउ । परमोहणमूलियसरिसियह जो बालियहं न पिडि पडिउ ॥७२॥ 
सो जणओ सा माया ते मित्ता तारिसो सथणवग्गो | एगपए चिय चत्तं अहह ! महामोहमाहप्पं |७३॥ 

इय सो मिलिओ नडपेडयत्स जाणियकराकछाओ वि। चउत्रेयपारगो माहणो व्व मायंगगेहम्मि ॥ ७४॥ 

भणिओ समुच्छुगेणं सप्पणयं तेण लंखियाजणओ । देसु मम ताय ! धूयं, जमिमीए बिणा न सक्केमि ॥७५॥ 
तेणुत्त बच्छ ! तुमं असिक्खिओ सिक्खिया य मह धूया | अणुरूवो संजोओ न होइ ता सिक्‍ख विज्नाणं ॥७६॥ 
तो सो तह त्ति पडिवज्बिऊण तप्पमिह सिक्खिउं छूगो । अहवा वि कि न ववसइ ? कि न कुणद लोहवसवत्ती ? ॥७७॥ 
तो सो महपगरिसओ नज्चण-गंधव्वकरणपमुहासु । सब्वेसिमुवरिवत्ती संजाओ नाडयकलासु ॥७८॥ 

पुणरवि जणएणुत्तं सिक्खं पयडेसु विढवसु सुवन्नं | जेण महाभूदश करेमि वच्छर्प वीवाहं ॥७९॥ 

विज्ञायडम्मि नयरे नडपेच्छं मगिओ महाराया । निहओ य रंगभूपोए गहयबंसी तयग्गम्मि ||८०॥ 

फलिहम्मि उमयपासेसु कीलया तत्थ सो समारूढो । परिहियसछिद्ददोौरुमयपाउओ वंत्सिहरम्मि ॥८१॥ 

दाऊण खग्राखंडयविहत्थहत्थो विसिट्वकरणाईं । पुरओमुहाइं पच्छामुहाईं पिहु सत्त सत्त तओ ॥८२॥ 

कीलेसु पाउयाओ खिविउं उद्यृष्टिओ निहब्बिग्गों । जा चिट्ठर ता लोओ रंजियहियओ भणदइ एवं ॥८३॥ 

अहह ! महच्छरियमहो ! इमस्स नीसेसनडसिरोमणिणो । जो एरिसम्मि दुग्गे आयासे कुणए करणाणि ॥८४॥ 
ता जइ राया वियरइ पढम॑ कि पि हु इमस्स ता अम्हे | कुणिमो इसरमेयं विभवपयाणेण कि बहुणा ? ॥८५॥ 
राया उ लंखियाए रूवाइगुणेहि अक्खिवियहियओ । एड्रेण इमो भत्ता पडिऊर्णं कहवि जह मरह ॥८६॥ 

ता एसा मम भज्जा पाणपिया हवह इय विचितंतो | भणइ मए सच्चवियं न सम्ममेयस्स विज्ञाणं ॥८७॥ 

ता पुणरवि मह दंसउ एय॑ चिय पत्थुयं सविज्नाणं | इय भणिए नरबहणा दक्‍्खत्तनओ जणसमक्खं ॥८८॥ 

किल सिक्खियस्स न हु कि पि दुकरं तेण बद्धलक््खेग | लहुमेव वंससिहरे कयाणि पुण सत्त करणाणि ॥८९॥ 
जा पुणरवि मज्ञत्थो नरनाहो नो पयंपए कि पि। पुणरुत्तमवुत्तण वि कयाणि ताबंति करणाणि ॥९०॥ 
एत्थंतरम्मि निवदम्मि तम्मि दिद्ठवम्मि दाणनिरवेक्खे । अहह ! अजुत्तमजुत्तं जणेण हाहारबो विहिओ ॥९१॥ 
राया वि लंखियाए अणुरत्तो लक्खिओ वियद्वुंण। उबरिट्टिएण तेण वि तह चेव इलाए पुत्तेण ॥९२॥ 


नव तस3-+- चलती >>णल+ बा... -+:33--%०-अककन---3++०५००:१०-००--०-० 


१, संबोगो २० ॥ 


थे 


आश्यानकमणिकोशे 


तो परिभावियमिमिणा नृणमिमो मज्ञझ मारणनिमित्तं | करणाणि कारवेई पुणरुत्तमिमीए रत्तमणो ॥९३॥ 

ता कि एसो लावजन्नरू्वकलिएसु नियकलत्तेसु । सायत्तेसु वि एद्रैण नीयजाइए अणुरत्तो ? ॥९४॥ 

ता कि इमिणा ? जम्हा अहं पि एयारिसो जणो अहवा । पेच्छइ गिरिम्मि जलणं पजलंतं न उण पायतले ॥९५॥ 
तो मणयं संविग्गो बंसग्गगओ विवेयवसवत्ती । परिभाविउं पयत्तो सतत्तमेसो सबुद्धीए ॥९६॥ 

एयाए अहं रत्तो राया वि इमीए चेव वेलविओ । एयाए वि हु चित्त चंचलचित्ताए दुग्गेज्मं ॥९७॥ 

तो पेच्छ मंदमहणा मए विमूढेण केरिसं विहियं ? | पच्छायावपरद्धो स दूरमेवं विचितेह ॥।९८॥ 


भाणियं च--- 


न तहा तवेइ तवणो न जलियजलणो न विज्जुनिग्वाओ | जं अवियारियकर्ज विसंबयंतं तबइ जंतु ॥॥९९॥ 
हयमिह मह विन्नाणं हयमिणमों मज्झ मणुथमाहप्पं । जेण मए ससिविमले कुलम्मि मसिकुश्चओं दिल्लो ॥|१००॥ 
अवगणिओ नियजणओ अवगणिओ तारिसो सयणवग्गो । अवहत्यिया पसत्था ते वि हु इहलोय-परलोया ॥|१०१॥ 
जमिमीए मोहिएणं केणइ जम्मंतराणुराएणं । ववसियमेयमकज्ज वियाणमाणेण जमिहुत्त ॥१०२॥ 

अहो ! संसारजालस्य विपरीत: क्रियाक्रम: | न पर जलजन्तुनां धीवरस्यापि बन्धनम्‌ ।।१०३॥ 

परमेत्तो वि हु एयं महंतमच्छेरयं जमेसो वि। राया कछत्तजुत्तो दढमणुरत्तो इमीए वि॥१०४॥ 


अत्रायुक्त केनचिद्‌ यथा-- 


भणियं च-- 


अवाकमाभाए अत: साल. 


सर्वाभिरपि नेको5पि तृप्यत्येकाउपि नाखिले: । द्वितीयं द्वावपि द्विष्ट: कष्ट : ख्रीपुंसमागमः ॥१०४५॥ 
ता अलमिमिणा परिदेविणण निश्च॑ नमोत्थु विसयाणं | वज्जिय कज्जमकरज्ज कुणंति वसगा जमेयाणं ॥॥१०६॥ 


विसयविसमोहियाणं सुधम्ममंदायराण सत्ताणं । अमुणियसारा-डइसाराण गलइ हत्थट्टियं अमयं ॥१०७॥ 
विसया किपागफलं विसया हालाहलं विसं परम | विसया विसमं सल्रं विसया आसीविस भुयंगो ॥|१०८॥ 
विसया उक्क्रड़पासो विसया कंदुज्जुओ नरयमग्गो | इय मुणिय विसयसंगं धीरा वज्जंति द्रेणं ॥१०९॥ 
विसयासत्ता सत्ता विडंबणं तं जयम्मि पावंति | ज़ं कहिउं पि न तीरइ धुलीवुक्कावणमहं व ॥११०॥ 

तो विसयविरत्तो हं संपह विसएसु मज्झ पज्जत्तं | दिट्टों माल्वदेसो खद्धा मंडा मए हण्हि ॥१११॥ 

इय वेरग्गगएणं नयरीमज्ञझ॑ निरूक्यंतेण | दिद्ठा धणइब्भगिहे धम्मजणा साहुणो के वि ॥११२॥ 
पंचसमिया तिगुत्ता संजमजुत्ता दढव्वया धीरा। सुपसंता पविसंता सुविसिट्ठां भत्त-पाण द्वा |११३॥ 
नवजोव्वणाहिं सिंगारियाहिं लायन्न-रूवकलियाहिं | पडिलाभिज्जंता धम्मियाहिं धणवहृगिहवह॒हिं ॥११४॥ 
दट्ठ्रणं मुणिवसभे दढमुल्लसिओ गुणाणुराएण | कयपुत्रा खडु एए विसयविरत्ता न उण अम्हे ॥११५॥ 
इय गुणिगुणाणुरागा खठबसमाओ चरित्तमोहस्स । उल्लसियविरियवसतओ जाओ चारित्तपरिणामों ॥११६॥ 
अहिय॑ विवाहबुद्धी हिययम्मि सयत्थचितणपरों य। ठियसकलत्तविराओ विसयविरत्तो सुथिरचित्तो ॥११७॥ 
जह सो महाणुभावो अपुव्वकरणेण वंसजट्टीए | आरूढो तह चेव य गुरुईएण खबगसेढीए ॥११८॥ 
सिवपुरदंसणमइणो समणसमाहीए वट्टठमाणस्स । छोया-5छोयपयासं संजाय॑ केवर्ू नाणं ॥११९॥ 

एत्थंतरम्मि ओयरिय वंसभागाओ सो इलापुत्तो । रायाइजणसभाए धम्म॑ कहिउं समाढत्तो ॥१२०॥ 

भो भो भव्वा ! दुलहं लहिउं मणुयत्तमाइसामस्गि | पडिवज्जह जिणधम्मं सेम्म॑ सम्मत्तमायरह ॥१२१।॥ 
विरमह विसएहिंतो सिम्घं सुहुमं पि दुच्चरियजाय । वियड॒ह सुगुरुसयासे माउहमिव विडंबणं वयह ।'१२२॥ 
एत्थंतरम्मि भणियं रायाइसभाए विम्हियमणाएं । भयवं कहमिव तुब्मे विडंबिया ? कहह निय चरियं ॥१२३॥ 
निसुणह एगग्गमणा इओ भवाओ अद्दयतहइ॒यभवे । अहमासि वसंतउरे छक्क्रम्मरओ दियप्पवरों ॥१२४॥ 


१, ०लाहिज्जंता २०। 


६. सम्यकत्थगुणवर्णनाधिकारे सुलसाख्यानकम । ९५ 


मह माहणी य भज्जा माहणकुलूसंभवा पयदसोमा । दढमणुरत्तमणाइ' परोप्परं तम्मि जम्मम्मि ॥१२५॥ 

समुदायकडा कम्मा समुदायफल त्ति इय सरंताइ । संविग्गमाणसाह पव्वइथाह गुरुसमीवे ॥१२६॥ 

रिउभावओ य भज्जा जाइमयं कुणइ तह मणे सुहुमो । सुगुरुसमीवे वडम्हं नावगओ नेहपेडिबंधो ॥|१२७॥ 

त॑ सुहुममणालोइय तहेव पत्ताइ' देवलोगम्मि । तत्तो इह जायाइ' तुम्हाणं चेव पच्चकक्‍्खं ॥१२८॥ 

तो जाइमएणेसा संजाया निंदियाए जाईए | अहमवि तन्नेहेणं विडंवर्ण एवमणुपत्तो ॥१२९॥ 

तो भो महाणुभावा ! सुगुरुसमीवम्मि सल्लमुद्धरह | कुणह य विसयविरमणं जइ सम्मं॑ महह सिवसोक्ख ॥१३०॥ 

इय निमुणिऊण राया तहाडवरा लंखिया महादेवी | संजायकेवलाइं चठरो वि गयाइ मोक्खम्मि ॥१३१॥ 
॥ इलापुत्राख्यानक समाप्तम्‌ ॥२५॥ 

इथ असुहो परिणामों जाओ दमगस्स दुग्गइनिमित्त | भरह-इलापुत्ताणं सुहो य सिवसोक्ख संजणओ ॥१॥ 

तह अन्नाण वि जायइ दुग्गइ-सुगईण साहओ एसो | ता वज्जिऊणमसुहं सुहपरिणामं सया कुणह ॥२॥ 

यद्वत्‌ शुभो लवणरूपरसों रसेषु, चिन्तामणिमंणिषु यद्वद्ह प्रशस्यः । 

तद्॒च धरमंशुभक्रमंणि शुद्धभावस्तस्मात्‌ तमेव भजताशुभभावहानात्‌ ॥१॥ 


॥ इति भ्रीमवान्नदेवसरिविरचितवृत्तावास्यानकमणिकोशे भावनोपपण्णनो नाम पश्चमो5घिकारः समाप्तः ॥५॥ 


>> 2८८ 


[ ६. सम्यक्वगरुणवर्णनाधिकारः ] 


व्याख्यातो भावनारूपश्चतुर्थो धमंभेदः | तद्बयाख्यानात्‌ समर्थितश्रतुर्विधोडपि दानादिधर्म: | अय॑ च सम्यक्त्वनिश्चल्तायां 


सम्यक्‌ फलदायी भवति । अतः सम्यक्त्वस्वरूपमेवाह-- 


भवचारयवासहरं तह सम्मदंसणं सुगहमूल। 
ता सेणिय-सुलसा इव सम्मत्ते निच॒ला होह॥११॥ 


ध्याख्या--'भवचारकवासहरं” संसारकारागारावस्थानविनाशनं “तथा” इति समुच्चये 'सम्यम्दशनं' सम्यक्त्व॑ 'सुगतिमूलं” 


सुदेवत्व-सुमानुषत्वादिसुखप्राप्तिबीजम्‌ “तस्मात्‌! कारणात्‌ श्रेणिक-सुलसे इव सम्यक्त्वे “निश्चला:” स्थिरा भवत इत्यक्षरार्थ: ॥११॥ 


भावाथस्त्वाख्यानकाभ्यामवसेय: । ते चामू । तत्र श्रेणिकाख्यानक॑ सेडुवकार्यानके कथयिप्यते । 


छुलसाख्यानक त्विदम-- 


कनीीनतदल-नी न 5 न ज ++ तल, *>०>+« 


मगहामंडऊूअक्खंडमंडले आसि रायगिहनयरे । नयरेहिरो नरिंदो सेणियनामो ससोहो वि ॥१॥ 
तस्स5त्यि पवरभूसो सुभदज।ई सुदाणललियकरों । पउमालंकियदेहो रहिओ नागो व्व नागो त्ति ॥२॥ 
जीवा-5जीवाइविऊ परियाणियपुन्नपावपरिणामा । सिरिवीरचरणतामरसमहुयरी सीलकुलभवं ॥३॥ 

तस्स सुल्साभिह्ााणा भज्जा वज्जियअवज्जसंसग्गी । चंदकरनियरनिम्मलनिच्वलसम्मत्तसंजुत्ता ॥४॥ 
अल्नोन्ननेहनिब्भरमणाण जिणथवणकरणपवणाण । अइकमइ ताण कालो विसयसुहं भुंजमाणाणं ॥५॥ 
एत्तो य विहरमाणो गामा-55गर-नगरमंडियं वसुहं । वसु-हरि-नरिंद-मुणिवरभत्तिब्भरनमियक्रमलो ॥६॥ 
कमलोलकणयनिम्मियकमलोवरिनिहियरुदररुइहचरणो । चरणरुइचारुमुणिवरमाणससंजणियगुरुहरिसो ।।७॥ 





१. ब्भरनिव्मरनमिय रं० | 


९४ 


तथा हि-- 


आश्यानकमणिकोशे 


हरिसोयामणिविप्फुरियतेयपब्भार निहयतमजाओ । तमजाइरहियसन्नाणफलयखलियंगयप्पसरो ।। ८॥। 
पसरंतचरणनहमणिमयूह॒विच्छुरियसयलमहिवलओ । वढओहकलियसुरवइसमू हथुव्वंतगुणनियरो ॥९॥ 
नियरोस-रायरिउधडसमरंगणविजयसयलसिद्धत्थो । सिद्धत्थसुओ सिरिवद्धमाणसामी समोसरिओ ॥|१०॥ 

चंपाए परिसरम्मी असुरा-5मरनिम्मिए समोसरणे । सीहासणे निविद्ठों धम्मकहं कहिउमाढत्तो ॥११॥ 
एत्थंतरे तिदंडय-गणित्तिया-मिसिय-छत्तछल्लालो । अम्मडनामो सड्ढो तत्थ परिव्वायगो पत्तो ॥१२॥ 

काउ पयाहिणतियं पणमइ महिमंडले मिलियभालो | थोऊण जिणं भत्तीए तयणु खणमेक्कमुबविद्ठी ॥।१३॥ 
तो पणमिउ पयद्टो रायगिहे पुरवरम्मि ता एसो । सुलूसाए मह पउत्ति साहसु जगबंधुणा भणिओ ॥१४॥ 
इच्छे ति पमरणिऊर्ण उप्पशओ गवलसामले गयणे । रायगिद्दे संपतो चित्ते चिंतेइ तो एवं ।।१५॥ 

पेच्छ कह वीयराओ सुर-नरमज्ञम्मि विहियसुपसंसो । केण गुणेणं सुलुसाएु ? त॑ परिक्खेमि गुणमहयं ॥॥१६॥ 
इय चिंतिऊण तत्तों संपत्तो तीए गेहमचिरेण । मग्गह भोयणमेसोी देह न धम्मत्थमेसा वि ॥१७॥ 

तो नयरपरिसरम्मी पुव्वपओलीदुवारदेसम्मि । विर्यइ विरिचिरूवं चउबयणं पंकयनिविट्ठं ॥|१८॥ 
सियबंभसुत्त-सा वित्ति-हंस-जड-मउड-अक्खमालाहिं । परिकलियं धम्मकहासमुज्जयं जाणिउं तत्तो ॥१९॥ 
आगच्छइ पउरजणो तो सुझुसा सहियणेण आहूया । दंभो क्ति पमणिऊर्ण न गया तव्वंदणद्वाए ॥२०॥ 

तत्तो स बीयदिवसे दाहिणदेसे विउव्बए कण्हं | गय-संख-चक्क-सारंग-गरुड-लच्छीहिं परिकलियं ॥२१॥ 

तेण वि न रंजिया सा तो तहयदिणिम्मि पच्छिमदिसाएु | कुणइ सिरिकंठरूव नयणत्तय-भूहभासुरयय |२२॥। 
आबद्धजडामउडं चंदकलालंकियं वसहसोहं । अद्धंगगउरि-डमरुय-खट्टंगगरणेण संजुत्तं ॥२३॥ 

तत्थ वि न गया सुलसा तो उत्तरगोउरे विणिम्मविउं | वररयण-कणय-कलहोयकलियपायारतियसहियं ।॥२४॥ 
तियसहियसमवसरणं कंकेल्ल्तिलम्मि चउसरीरो सो । सिंहासणे निविट्ठो अट्ठ महापाडिहेरजुओ ॥२५॥ 

तो जिणनाहं नाउं नयरजणो नरवररिंदपज्जन्तो | तब्वंदणवडियाएु विणिग्गजो नो गया सुलूसा ॥२६॥ 

तो अंबडेण एसा भणाविया जिणवरस्स नमणत्थं | सुलसाए तओ भणियं न एस सिरिवीरजिणनाहों ॥२७॥ 
तेण वि भणाविया सा पणुवीसइमो इमो जिणो मुद्धे !। सा आह न हुंति जिणा पणुवीसं भरहखेत्तम्मि ॥२८॥ 
किंतु कयकूडकवडो कोइ इमो सासणं विडंबेइ । तो अम्मडो वि चिंतह थिरसम्मत्ता अहह ! एसा ॥२९॥ 
उप्पन्नविमलकेवनाणी भयवं पि ज॑ पसंसेह । सा सुठलसा जयउ जए निच्चल्सम्मत्तवररयणा ॥३०॥ 

ज॑ं खोभिउं न सक्को सको वि हु सासगाओ सुरसहिओ । सा सुल्सा जयउ जए निश्वलसम्भत्तवररयणा ॥३१॥ 
देवा वि हु सन्निञ्ञ कुणंति जीए गुणेहिं अक्खित्ता । सा सुलसा जयउ जए निश्च>सम्मत्तवररयणा ॥३२॥ 
इय संहरिउं सब्बं॑ सुलसागेहम्मि अंबडो गंतुं। कुणइ निसीहियसद्ं सोउं अब्भुट्टर सा वि ॥३३॥ 

भणइ य निसीहियाए सागयमह कुणइ उचियपडिवर््ति। वंदावद गिहचेहयर्तिब्रे एसोडमिवंदह य ॥३४७॥ 
सासय-असासयाइं वंदावइ चेंइयाइं सो सुरूसं | सा वि घरलुढियसीसा वंदइ उब्मिन्नरोमंचा ॥३५॥ 

पुणरवि य सो पयंपइ सकयत्था तं सि पुच्छए जीए । सिरिविद्धमाणसामी कुसलूपउत्ति समवसरणे ॥|३६॥ 
निसुणित्तु तयं सुलसा भत्तिभरुब्मित्ररुदररोमंचा । महिमंडलमिलियनिडालमंडरा पणमइ जिर्णिंदं ॥३७॥ 

तो तेण पुणो भणिया भद्दे ! हर-हरि-हिरज्नगब्भाणं | वक्‍्खाणे सह लछोएण ना5डगया कि तुम ? कहसु ॥३८॥ 
कि भद्द | तुम जंपसि अयाणमाणो व्व ? जंपए सुलूसा । वीरं मोत्तु, न रमह मज्झ मणो इयरदेवेसु ॥३९॥ 


जो अइरावयगंडयलूगलियमयरंदपरिमरूम्धविओ । सो वियसियं पि न रमइ पिचुमंदं महुयरजुवाणों ॥४०॥ 
भरुमच्छकच्छवच्छुच्छलंतमयरंदगुंडियंगस्स । भमरस्स करीरवणे मणयं पि मणो न वीसमह ॥|७१॥ 


१, निसन्नो २० । २. अम्बड० २० | 


७. जिनविस्वदशनफलाधिकारे शय्यम्भवंभद्वास्यानकम्‌ । ९३ 


जो माणसम्मि वसिओ वियसियसयनत्तमासलामोए । सो कि फुल्लपलासे सविलासं छप्पओो छिबह ? ॥०२॥ 
जो नासियधवगगंगं गंगं धवलुज्जलं जल लिहइ । गयसोहं सो हंसो कि सेसनदैपयं पियद १ ॥४३॥ 
जो कयसीयलतीरे नीरे रेवाए मज़जह जहिच्छे | सो कि इयरे बियरे गओ गओ देह दिट्टि पि ? ॥४४॥ 
जो घणलयसामलए मलए मयरंदवासिओ वसिओ । सारंगो सारंगो सो कि हयरे घरे रमइ ? ॥४५॥ 
जो गंतुज्थितनए न एनओ भवह वसह वरवच्छे | सो नीलगलो विगलो कि विगयतरुं मरुं सरह ? ॥४६॥ 
जो पोढपुरंधिरएण रओ पकाम॑ पकामकामम्मि | सो कि मोहियमोरे खोरे कामे मं कुणइ ? ४७॥ 
इय सिरिवीरजिणेसरनिरुवमपयपंकय॑ नय॑ जेहिं | सो हरि-हराण कि सुहसमूहमहणे कमे नमइ ? ॥४८॥ 
इय जो जिणिंदनिरुवमवयणामयपाणपियणदुल्ललिओ । सो सेसकुनयमयकंजिएसु न य निव्वुइं लहइ ॥४९॥ 
आउच्छिऊण सुलसं तओ गओ अम्बडो नियद्वाणे | सुलसा वि य पज्जते कमेण संलेहणं काउं ॥५०॥ 
सुमरंती वीरजिणं खामंती सयल्सत्तसंघायं । गरिहंती दुच्चरियं पमणंती पंचनवकारं ॥५१॥ 
मरिऊण गया सग्गे तत्तो चविऊण भरहवासम्मि | उववज्िही जिणिंदों पनरसमो निम्ममत्तजिणो ||५२॥ 
॥छुलसाख्या नर्क॑ समाप्तम्‌ ॥२५॥ 

जह एएहिं चिसुद्धं सम्मत्तं पालियं सुगइमूलं । तह अन्नेण वि एयं॑ पालेयब्वं॑ पयत्तेण ॥१॥ 

यद्वन्मनुष्यनिवहेषु जिन: प्रधान, स्वर्णाचलो गिरिवरेषु यथा वरेण्यः । 

तारागणेप्वपि यथा शशभृत्‌ प्रशस्यः, सम्यक्त्वमेवमिह धर्मविधो वदन्ति ॥१॥ 

॥इति भ्रीमदाप्नदेवसूरिधिरचितवृत्तावाब्यानकमणिकोषे सम्यकत्वगुणवर्णनः षष्टोडघिकारः समाप्तः ॥६॥ 


*+>>5५ ०८२ 


[ ७. जिनबिम्बदशेनफलाधिकारः । ] 


व्याख्यातं सम्यक्त्वम्‌ | इदं च प्राप्तमपि जिनबिम्बदशनादेरोधिसद्भावाद्‌ विशुद्धिमासादयति इत्यनेन सम्बन्धेनाड्यात॑ 
जिनबिम्बदशन व्याख्यातुकाम आह-- 


जिणबिंबदंसगाओ लहुकम्मा केश इत्य बुज्कंति | 
जह सेजमवभट्टो अदयकुमरो य संबुद्धा ॥१२॥ 
व्याख्या--जिनबिम्बदशनात' सर्वेज्ञप्रतिमावलोकनात्‌ “लघुकर्माण:” स्वल्पीभूतज्ञानावरणीयादिकर्ममला: 'केचन' न सर्व 
“अन्न” भवे “बुध्यन्ते! अवगततत्त्वा भवन्ति । दृष्टान्ताभिधानायाह--“यथा' येन प्रकारेण 'शय्यम्भवभट्ट:” प्रभवसूरिशिष्यः “आद्रेककु- 
कुमारश्च' सम्बुद्धी इति गाथाक्षराथें: ॥१२॥ 
भावाथ स्त्वाख्यानकाभ्यामवसेयः | ते चामू | तत्र तावदादी शय्यम्मवभद्वाख्यानकमारम्यते । तश्चेद्म--- 
वीरजिणेसरदिलिं निययपयं पालिउं सुहम्मम्मि | सिद्धि गयम्मि तत्तो तस्स पय॑ जंबुणामम्मि ॥१॥ 
परिपालिऊण मोक्खं संपत्ते तप्पयं पभवसूरी | परिपालह परियरिओ निरुवमगुणसाहुनियरेण ॥२॥ 
परगच्छ-सगच्छेसु वि निउणं पि निरिक्खियं पुरिसरयणं | कत्थई अपेच्छमाणो नियगच्छघुराधरणधवलं ॥३॥ 
जा उवओगं पुव्वेसु देह ता नियदइ रायगिहनयरे । पारद्धमहाजन्नं सेज्ज॑भवमाहणं तत्तो ॥४॥ 
सिरिरायगिद्दे नयरे सूरी पत्तो तओ य मज्ञन्हे । संपेसह सिक्खविं मुणिजुयर्ं जज्नवाडम्मि ॥५॥ 


१, क्लिउं पुरि० ₹०। २. सिद्धभव० रं० | एवमग्रेडपि कथासमाति यावद्‌ शेयम्‌। 
१३ | 


श्द 


अओ-- 


आखश्यानकमणिकोशे 


गंतुं सेजंभवबंभणस्स पुरओ उराल्सद्देण । तुब्मेहि तिन्नि वाराओ एरिसं तत्थ भणियव्वं॑ ॥६॥ 

अहो ! कष्ट [ अहो ! कष्टम ] तत्त्व न ज्ञायते । 
तो ते इच्छ॑ ति पयंपिऊण सेज्ज॑भवस्स जन्नम्मि । गंतूण भणंति तय॑ त॑ सोउं चित दिओ वि ॥७॥ 
जंपंति सया सच्च॑ एए सब्वलुपुत्तया तत्तो । तत्तमिह कि पि अन्न होही पुच्छामि ओज्झायं ॥८॥ 
तो पुट्ठटो उज्माओ वेया तत्तं परूवियं तेण । जम्हा अपोरिसिया पुरिसुत्तं किर विसंवयह ॥९॥ 
पुणरवि पुट्टो तत्त स इओ जंपह तइज्जवाराए। संजायमहाकोबी उक्खायनिसायकरवालो ॥१०॥ 
जंपह जइ न हु इणिह तत्त अक्खसि तओ विणासिस्सं | तो संभंतो संतो जंपइ एरिसमुबज्ञाओ ॥११॥ 
सच पि सिरच्छेण तत्तं अव्खिज्जए त्ति तो कहइ । पुव्वा-5पराविरुद्धों धम्मो जिणदेसिओ तत्तं ॥१२॥ 
तो माहणो पयंपइ दंससु मह एल्थ पद्चयं कि पि | सो जंपह पूहज्जइ जन्नछलेणं इहं अरिहा ॥१३॥ 
इय भणिय जन्नखोड़ि खणिउ सिरिरिसिहसामिणो पडिमा । उवसंत-कंतरूवा पयासिया तस्स सो तुट्ठी ॥१४॥ 
पणमइ पडिम॑ तत्तो मुणिणो वि गया गुरूण पासम्मि । निव्वत्तिकग जन्नं सयलं सेज्जंभवेण तओ ॥१५॥ 
दिए्णं च बंभणाणं दाणं तत्तो गुरूण पासम्मि | गुणसिलए चेइयम्मि पत्तो गरुयाए भत्तीए ॥१६॥ 
पणमिय गुरुकमकमलं उबविट्ठटो जोडिऊण करजुयलं । गुरुणो वि गहिरसद्देण देसणं काउमारद्धा ॥१७॥ 
नभस्तलूतरक्लिणीजलविलासलोला: श्रिय:, कुरज्ननयनेक्षणअ्रमणभहुरं योवनम्‌ । 
विलोललवलीदलालि [***] चलाचलं जीवितं, समस्तमपि गत्वरं जगति जेतधर्म विना ॥१८॥ 
तत्तो सो पडिबुद्धो गुरुचरणे पणमिउ' भणइ एवं । जइ अत्थि जोग्गया में ता दिक्‍्खं देह मह भयवं ! ॥१९॥ 
तो दिक्खिओ भयवया चउदसपुव्वी कमेण संजाओ । ठविओ य पभवसूरीहिं नियपए सो महासत्तो ॥२०॥ 
तत्तो य पभवसूरी घेत्तृणं अणसर्ण समाहीए । मरिऊण समुप्पन्नो सुरालए सुंदरो अमरो ॥२१॥ 
सेज्ंभवसूरी वि य मुणिगणपरिवारिओ पसंतप्पा | तिहुयणगुरुणो सिरिवद्धमाणतित्थं प्मावितो ॥२२॥ 
पंचविहं आयारं समायरंतो तहा परूविंतो । सम्मत्तमूलधम्मं साहणं सावयाणं पि ॥२३॥ 
पडिबोहंतो सूरु व्व भवियकमलाईं विहरह महप्पा | गामा-55गर-पुर-कब्बड-मडंब-खेडाइ ठाणेसु ॥२०॥ 
एत्तो य तस्स भज्जा तं पव्वइयं सुणित्तु सयणेहिं | पुद्ठा कि पि हु उयरे तुह अत्थि ? उयाहु न हु अत्यि १ ॥२५॥ 
तीए पयंपियमेयं मणयं लक्खिज्ञजए अह कमेण । विद्धि पत्तो गब्भो जाओ य सुओ सुहमुहु॒ त्ते ॥२६॥ 
गब्मे गयम्मि एयम्मि तीए मणयं ति जंपियं आसि । ता होउ मणयनामो एसो तो त॑ कय नाम ॥२७॥ 
जाओ पवड्ठमाणो कमेण सो अट्ठवरिसदेसीओ । अह अन्नया य जणणी पुदट्ठा मह अंब ! कत्थ पिया ? ॥२८॥ 
तो तीए तस्स कहिय॑ सेज्जंभवबंभणो पिया तुज्म | पत्वइओ त॑ सोउं सो चिंतह सुंदरं विहियं ॥२९॥ 
जं पव्वदओ अहमवि करेमि पव्वज्जमिइ विचितेउं । अकहंतो नीहरिओ गओ य चंपाए नयरीए ॥३०॥ 
भिक्‍्खावेलासमए गोयरचरियं गएसु साहसु । सूरी सरीरचिन्ताए आगओ एगगो तत्थ ॥३१॥ 
तो तेहिं इमो दिद्दो दिद्ठा तेणावि सूरिणो तत्तो । जाओ महासिणेह्ों परप्परं ताण दुण्हं पि ॥३२॥ 


नयणाईं नृण जाईसराइं वियसंति वल्लहे दिद्ठे । कमलाइ' व रविकरबोहियाईं मउलंति वेसम्मि ॥३३॥ 
मणएण तओ पणय॑ कमकमलं ताण भत्तिजुत्तेण । तो सूरिणा स पुट्टो को सि तुम भद्द | ? सो भणइ ॥३४॥ 
रायगिहे सेज्जभवबंभणपुत्तो5हमेत्थ संपत्तो । मह जणओ पव्वइओ तप्पासे पव्वइस्सामि ॥३५॥ 

तो गुरुणा भणियमिणं तुह जणओ मह सरीरसमरूवो । तो पव्वयसु तओ सो सुमुहुत्ते दिक्खिओ तेहिं ॥३६॥ 





१, अ्परोसेया खं० रं०। २. इत्थ २ं०। ३, ०कमलछसंडाइं विह० रं०। ४. दोरहं रं० । 


७, जिनविम्बद्श नफलाधिकारे आद्रंककुमाराल्यानकम्‌ ९९, 


एयस्स जीवियब्बं कित्तियमेत्त ? ति जाव उबओगं । पुन्वेसु देह सूरी तो छम्मासे नियद तस्स ॥३७॥ 

उद्धरिऊर्ण आगमसमुददमज्ञाओ कि पि थेवसुय । विरएमि इमस्स जहा जायह सिम्धं पि उबयारो ॥३८॥ 

जम्हा चडदसपुव्वी निज्जूहइ कारणम्मि जायम्मि | निज्जूहामि अहं पि हु कारणमेयं जओो मज्ञ ॥३९॥ 

सो निथमा निज्जूहइ जो दसपुव्वीण होइ पच्छिमओ । इय चिंतिय सेज्ज॑भवसूरी निज्जूहिउं लूग्गो ॥४०॥ 
निज्जूढा य वियालियवेलाए तओ य तस्स सत्थस्स | दसवेय।लियनामं जाय॑ भणियं च सूरीहि ॥9१॥ 

मणगं पडुच्च सेज्जभवेण निज्जूहिया दस5ज्ञयणा । वेयालियाए ठवियं तम्हा वेयालियं नाम ॥४२॥ 

तत्तो छहिं मासेहिं पंढि) मणओ गओ य सुरलोयं । जाओ अंसुनिवाओ सूरीणमबच्चनेहेण ॥9३॥ 

द्ठ,ण तयं सेज्जमवाण थेराण मोहवसयाण । पुट्टं जसभद्वेणं अच्छरियमिणं जओ भणियं ॥४४॥ 

तुम्हारिसा वि वरपहु ! मोहपिसाएण जइ छलिज्ज॑ति | तो साह तुमं चिथ धीर ! धीरिमा क॑ समक्षियठ १ ॥४५॥ 
तत्तो कहिओ तेसि निययविणेयाण<वच्चसंबंधो | न उणो निवेइओ तुम्ह निज्बरा होउ एयस्स ॥०६॥ 


॥सेज्लंभवाख्यानकं समाप्तम ॥२६॥ 


इदानीमाद्ककुमाराख्यानकमाख्यायते । तश्वेद्म-- 
सिरिरायगिहे नयरे जंबुद्दीवु व्य सेणिओ राया । आसि गुरुगोत्त-वाहिणि-विजयालंकारपरियरिओ ॥१॥ 
तस्साउभयाभिहाणो पुत्तो सुइ-सुद्धगुणसमिद्धस्स । हारस्स व मंतिगणस्स नायगो तम्मि रज्जसिरिं ॥२॥ 
आरोविय विसयसुहं उवभुंजइ चेल्लणा-सुनंदाहिं । राया हरो व्व सुपओहराहिं गंगा-गिरिसुयाहिं ॥३॥ 
एत्तो य जलहिमज्झे अद्दयदेसम्मि अद्दयय नयरं । तत्थ य अद्दयराया रिउकरिमहणो महंदों व्व ॥३॥ 
नियनयणविजियहरिणी घरिणी तस्स5त्थि अहया नाम | अहयनामो कुमरो तीए सिरीए व्व रइनाहो ॥४५॥ 
अह अन्नया नरिंदों उन्भडभडकोडिसंकडत्थाणे | करकलियकणयदंडेण दारवालेण विज्नत्तो ॥६॥ 
देव ! दुवारे सेणियमंती तुह चरणदंसणं महह । संजाओ से हरिसो पुलएण सम॑ इमं सोउं ॥७॥॥ 
भद्द ! पवेसय सिम्घं ति जंपिए सो पवेसिओ तेण | नरनाहचरणकमलं पणमिय उबणेइ तो मंती ॥८॥ 
कंबल-सोवच्च ल-निंबपत्त-वरवत्थपमिद्ट कोसल्ल । तो संतुट्टो राया सेणियकुसलं पपुच्छेउ ॥॥९॥ 
पमणइ को एयारिसमहम्घमोल्लाणि मज्झ वत्थूणि | मोत्तु सोणियनिवई पेसइ ? तो अद्यकुमारों !१०॥ 
जंपह को देव ! इमो सेणियराओ ? त्ति भणइ तो राया । वच्छ ! त याणसि मगहामंडल्सार्मि महारायं ? ॥११॥ 
अम्हाण तेण सद्धि नेहों नियकुलकमागओ तत्तो'। अद्यकुमरों पुच्छह सेणियमंतिं जहा तस्स ॥१२॥ 
सेणियनिवस्स कुमरो रज्जमहाभरघुराधरणधीरों । अत्थि ? त्ति तओ मंती पभणइ कि न हु तए नाओ १ ॥१३॥ 
बंधुरबुद्धिसमिद्धो धरणिपसिद्धों सद्धम्मसद्धालूं | धीरो वीरजिणेसरकमकमले रायहंसो व्व ॥१४॥ 
इचाहगुणगणजुओ अभयकुमारो त्ति तस्स वरकुमरों । तत्तो अहयकुमरों नरेसरं भगइ सपणामों ॥१५॥ 
ताय ! जहा तुम्हाणं नेही अवरोप्परं तहम्हे वि । इच्छामो तो जंपइ नरेसरो पुत्त ! जुत्तमिणं ॥१६॥ 
पाल्ज्जिह निश्चं पि हु नियपुरिसपरंपरागओ नेहो । वच्छ | जओ गुरुएहिं वि सुहासियं एरिसं भणिय॑ ॥१७॥ 
उद्दृइ सणियं सणियं बंसे संचरह गाढमणुरूग्गो । थेरो व्व सुयणनेहों न वि भज्जय बिउणओ होइ ॥१८॥ 
ते धन्ना सप्पुरिसा जाण सिणेहों अभिन्नमुहराओ । अणुदियह वड्डमाणो रिणं व पुत्तेसु संकमइ ॥१९॥ 
तो कुमरेण अमच्चो भणिओ ताओ जया विसज्जेइ | तइया मह मिलियब्बं एवं ति तओ भणइ मंती ॥२०॥ 
अह्द अन्नदिणे सम्माणिऊण मंति निवो समप्पेइ । सिरिखंड-रयण-विदृदुम-कप्पूरप्पभिदह कोसल्लं ॥२१॥ 
तत्तो विसज्जिओ सो निवेण नियपवरपुरिसपरियरिओ । पत्तो कुमरसयासे तेण वि सम्माणिओ सम्मं ॥२२॥ 


१. पदियं ₹०। 


१०० 


जओ--- 


उक्त च--- 


आश्यानकमणिकोशे 


बज्जिदनील-मरगय-मुत्ताहलपमुहरायरयणाणि । अभयकुमारनिमित्तं समप्पिकर्ण इम॑ भणिञ्रो ॥२३॥ 
मज्ञ वयणेण अभओ भणियव्बों जह तए सम॑ पीईं । काउं बंछह अहयकुमरो त्ति तओ विसज्जेह ॥२४॥ 
अणवरयपयाणेहिं संपत्तो सो पुरम्मि रायगिहे । पडिहारकयपवेसो पणमह नरनाहमत्थाणे ॥२५।॥ 

तो अद्दयनिवइनरेहिं राइणो ढोयणीयमुबणीयं | अभयकुमारस्स पुणो अहयकुमरस्स रयणाणि ।।२६॥ 
तत्तो दट्ट _ रथणाणि रायपमुहा असेससामंता | विम्हियहियया जाया कहंति तो ते कयपणामा ॥२७॥ 
अद्दयकुमारपेसियपाहुडयं अभयमंतितिल्यस्स । त॑ सोउं जिणवयणामलमइणा चितिय॑ तेण ॥२८॥ 

नूणं इसिविराहियसामन्नो5णारियम्मि उप्पन्नो । कोवि इमो लहुकम्मो ता होहो सिद्धिपुरगामी |२९॥ 
वंछह पीईं काउ मए समाणं तओ इमो नियमा । ता परमबंधवत्तं पडिबोहिय त्तं पयासेमि ॥३०॥ 


भवेगिहमज्झम्मि पमायजलणजलियम्मि मोहनिद्दाए । उद्गवह जो सुयंतं सो तस्स जणो परमबंधू ॥३१॥ 

ता मा कयाइ जिणबिंबदंसण जायजाइसरणो सो । पडिबुज्ञर इय चिंतिय कारावह सब्बरयणमय ॥३२॥ 
उवसंतकंतरूवं पडिम॑ सिरिरिसिहनाहदेवस्स । संगोविउः समुग्गे मंजूसामज्ञयारम्मि ॥३३॥ 
धूयकडच्छुय-घंटिय-आरत्तिय-मंगलप्पद्याइ । पक्खिविय तत्थ ताले दाउ' मुद्दर तओ अभओ ॥३४॥ 

राएण जया अद्यनरिंदपुरिसा विसज्जिया दाउ | कोसल्ल उबणीया तइया अभएण मंजूसा ॥३५॥ 

भणियं च जहा अहयकुमरेणेगागिणा तहेगंते । एसा निरिक्खियव्व त्ति जंपिउ' ताण सम्माणं ॥३६॥ 

काउ' विसज्िया ते पत्ता य कमेण अद्दए नयरे । काउ पुव्वकमेणं जहोचियं तो कुमारगिहे ॥३७॥। 

कहिय॑ सब्वं॑ पि जहासंदिट्व॑ं अभयमंतिणा तस्स । तत्तो अद्दयकुमरों गंतुं भवणस्स मज्ञम्मि ॥३८॥। 

पिहिउ' भवणकवाडे उम्घाडह जा तयं स मंजूसं । ताव पहापडलेणं पराभवंती तरणिबिंबं ।३९।। 

दिद्ठा जि्णिंदपडिमा तत्तो अच्चब्भुयं तयं दटठुं। विम्हियहियओ चिंतह अहो वराभरणमेयं ति ॥४०॥ 

ता कि नियसिरकमले ? अहवा कंठे १ उयाहु बच्छयले )। अहव भुए? अह चरणे परिहेमि ? न कि पि जाणामि ॥४१॥ 
किंतु इमं कि पि मए कत्थ वि दिट्ठं सुयं व पडिहाई । इय ईहापोहपरस्स जाइसरणं समुप्पन्न ॥४२॥ 
मुच्छामीलियनेत्तो धस त्ति महिमंडले गओ कुमरो । गिहभित्तिमत्तवारणपव्णेण सचेयणो जाओ ॥५३॥ 

पेच्छइ य जाइसरणेण नियभवे जह इओ तइज्जभवे । गामे वसंतपुरण आसि कुडुंबी जणपसिद्धो ॥४४॥ 
सामाइउ त्ति नामेण बंधुरा पणइणी वि बंधुमई । अह सकलत्तो सुत्यियसूरिसयासम्मि पव्वहओ ॥9५॥ 
अब्भसियदुविहरसिक्खो विहरिय संविग्गसाहुजणजुत्तो | पत्तो कम्मि वि नयरे समागया साहुणी वि तहिं ॥४६॥ 
दटट्ूणं बंघुमई तीए सम॑ पुव्वकीलियं सरिउ । जाओ में अणुराओ कहिओ य दुइज्जसाहुस्स ॥9७॥ 

तेण वि पवत्तिगीए कहिओ तीए वि बंधुमइए वि । एसा तओ विचितद अहो ! महामोहमूढत्त ॥9८॥ 

जह एरिसो वि संविग्गमाणसों मुणियसयलसुत्तत्थो | एयारिसं विचितह मुणिवरसरणि परिच्चहउ' ॥२९॥ 

ता जाव बलक्कारेण कुणइ न हु सीलखंडणं मज्स | अक्खंडियसीलवया पाणे हं ता परिचयामि ।।५०॥ 


वरं प्रवेष्टुं ज्वल्तिं हुताशनं, न चापि भग्न॑ चिरसश्चितं ब्रतम्‌। 

वरं हि मृत्यु: सुविशुद्धकमंणो, न चापि शीलस्खलितस्य जीवितम्‌ ॥५१॥ 

इय चिंतिउ' पवत्तिणिपासे घेत्तण अणसणं अज्ञा । उब्बंधिय मंरिऊर्ण उवबन्ना देवलोगम्मि ॥५२॥ 
अहमवि एये नाउ' एसा एवं मय त्ति सविसाओ । अइयारमंणालोहय कयसन्नासो मरेऊण ॥५३॥| 


३. ता सेद्धी सिद्धि० खं० | ता सेई सिद्धि० रं०। २, भवगयम० खं० रं० । ३. इय ऊहा० रं०। 


७, जिनबिम्धदर्शनफलाधिकारे आद्ककुमाराल्यानकम्‌ १०१ 


भासुरसरीरधारी जाओ अमरोडमरालए तत्तो । दु्चितियमेत्तेण वि उप्पन्नोडणारिए देसे ॥५४॥ 

पडिबोहिओ य अहय॑ अभएणं परमबंधुणा इण्हि | संपेसिय रयणमयं पडिम॑ सिरिरिसिहसामिस्स ॥५५॥ 

ता एस परममित्तो परमगुरू परमबंधवों मज्म । जेण अणारियदेसे एवं उप्पाइया बोही ॥५६॥ 

ता तत्थ इओ गंतु' आरियदेसे करेमि जिणधम्मं | पेच्छामि अभयकुमरं ति चिंतिऊर्ण समुद्देह ॥५७॥ 

घेत्तण सुरहिपुप्फप्पभिई पूओवगरणमहइर॒म्मं | विरइयपडिमापूओ तओ गओ रायअत्थाणे ॥५८॥ 

विज्ञवइ कयपणामो देव ! सिणेहो3भएण सह मज्झं । जाओ तो ताय ! अहं पलछोइउ त॑ समीहेमि ॥५९॥ 
भणिओ तओ नरिदेण बच्छ |! अम्हाण तेहिं सह नेहो | अद्दसणेण निच्च॑ ता तत्थ तए न गंतव्वं ॥६०॥ 
तयणंतरं कुमारों साममुहो चत्तसयलसिंगारो | गमणेक्षमणो दिद्लो अह अन्नदिणे नर्रिदिण ॥६१॥ 

नायं च जहा एसो नियमेण गमिस्सइ त्ति एगंते । मणइ तओ पंचसए सामंताणं जहा कुमरो ॥६२॥ 
तुम्हाणमुवरि जद एस जाइ तत्तो समग्गसामंता । वच्चंति कुमरपासं जीवस्स व सुकय-दुकियाईं ॥६३॥॥ 

नायं च कुमारेणं एए मह रक्‍्खणे नर्िंदेण । आइट्ठा ता कहृववि हु वंचिय नियमेण गच्छिस्सं ॥६४॥ 

तो तुरयवाहियाली पारद्धा तेण ताण छलणत्थं । बच्चह दूरे कुमरो सिग्धतुरंगेण ते चइउ' ॥६४५॥ 

अणुवासर॑ पि एवं दूरे गंतु' समेइ उस्सूरे । इयरे पुण परिसंता वणसंडेसुं विलंबंति ॥६६॥ 

अह अन्नया कुमारों पडिम॑ रयणाणि जाणवत्तम्मि | पुष्व॑ं चडाविऊर्ण पच्छा सयमेव आरुहिउः ॥६७॥ 

पत्तो आरियदेसे पेसइ सिरिस्सिहपडिममभयस्स । कारियजिणिंदमहिमो पव्वहठमणों महासत्तो ॥६८॥ 

कय पंचमुट्टिलोओ पभणइ सामाइय॑ं इमो जाव | तो आगासे ठाउ' भणियमिणं देवयाए जहा ॥६९॥ 

मा गिण्हसु पव्व्ज भोगफलं कम्ममत्थि तुह भद्द ! | कि काही मह कम्मं ? ति जंपिड' गहियपव्वज्जो ||७०॥ 
गामा-55गर-नगर-मर्डंब-खेड-कब्बडसुसंक्ड वसुहं । विहरंतो संपत्तो कमेण नयरे वसंतपुरे ।।७१॥ 

कम्मि वि देवाययणे काउस्सग्गेण संठिओ तत्थ । एत्तो य देवलोगाओ पुव्वभवभारिया तस्स ॥७२॥ 

वंधुमई चविऊणं उप्पन्ना देवदत्तसेट्टिस्स । धणवहपणइणिकुच्छिसि दारिया सिरिमद नाम ॥७३॥ 
पुरबालियाहिं सद्धि समागया सा वि तम्मि देवउले | पहवरणेहिं कीलिउमारद्धा तयणु अवराहिं ॥७४॥ 
वरिया अबर कुमारा साह पुण सिरिमईए ता देवी । ज़ंपह गयणयलठिया अहो ! सुबरियं सुवरियं ति ।।७५।॥ 
गजब काउ गयणंगणाओ विप्फुरियकिरणरयणाणं । जाया वुट्ढो तत्तो संभंता बालिया नद्ठा ॥७६॥ 
अइधोरगज्जिभीया गंतृणं सिरिमई मुर्णिद्स्स । कमकमलम्मि विलूग्गा अहो5णुकूलो ममुवसग्गों ॥७७।॥ 

इय चितिउ' मुर्णिदो अन्नत्थ गओ इओ य नरनाहो । सुणिऊण र॒यणबुद्धि आगंतुं गिण्हए जाव ॥।७८॥ 

ता फुकारकराला समुद्ठिया कालदारुणा कसिणा | वियडफडाडोयजुया फणिणो विसजलणकणभीमा ॥७९॥ 
तो देवयाएं गयणे भणियं वरणम्मि बालियाए मए | दिल्न॑ दविणं तत्तो संगहियं तीए जणएण ॥|८०॥ 
आगच्छंति अणुदिणं वरया तो तीए पुच्छित जणओ । ताय ! किमेए सो भणइ तुज्य वरया इमे वच्छे ! ॥<८१॥ 
ताय न जुत्तं उत्तमवंसुब्भवसुपुरिसाण सा भणइ | एगस्स सुयं दाउ दिज्जइ जं सा दुशृज्जस्स ॥८२॥ 


नीतावप्युक्तम--- 
सक्ृज्जल्पन्ति राजान:, सक्ृज्जल्पन्ति साधवः । सक्ृत्‌ कन्या: प्रदीयन्ते, त्रीण्येतानि सकृत्‌ सकृत्‌ ॥८३॥ 
दिल्ला य अहं तुब्मेहिं तस्स तहया जया दविणनियरो | देवीदिन्नो गहिओ ता ताय ! बरेसि कहमन्नं ? ॥|८४॥ 
सो चिय गई इहभवे भवंतरे मह मयाए सो चेव | तो भणइ तीए जणओ पुत्ति ! कहं त॑ं वियाणेसि ? ॥८५॥॥ 
भणियं च तीए तहइया भीयाए गहिरगज्जिसदाओ । तक्कमकमले रूग्गाए एरिसं लंछणं दिद्व! ॥८६॥ 


१, ०रिसहनाहस्स रं० । २, वुकार ० सं० रं०। १. डोवजुया ₹ं० । 


१०२ 


आख्यानकमणिकोशे 


तेण वियाणेमि तयं तो भणियं सेट्टिणा तुमं वच्छे ! | मिक्‍्खयराणं दाणं वियरसु मा सो वि कइया वि ||८७॥ 
महिमंडलं भमंतो आगच्छइ सा पयंपए एवं । एत्तो य दुवाल्सवच्छरम्मि भवियव्वयवसेण ॥|८८॥ 
दिसिमोहिओ समाणो संपत्तो तत्थ अद्यमुर्णिदों | परियाणिओं य तीए तओ इमं भणिउमाढत्ता ॥८९॥ 

हा नाह ! मम मोत्तूं दुहियं तं कत्थ एत्तियं काल ? | परिभमिओ मणवल्लह ! मज्झ मणं तं॑ हरेऊण ॥९०॥ 
पियवरणदिणप्पभिई, संजाओ जाव एत्तियं कालं । मणयं पि न मज्ञ मणे मणोरहो वि य वरे अवरे ॥९१॥ 
ता सामि | मयणमम्गणजलुणेणुत्तावियं मह सरीरं । इण्हि तु निययसंगमसीयलसलिलेण निव्ववसु ॥९२॥ 
सोऊण तय सेट्टी समागओ नरवई वि वाहरिओ । पणमिय मुणिकमकमलं भणियमिणं तो नरिंदेण ॥९३॥ 
सुपुरिस ! भणिया वि इमा न कुणइ सुविणे वि अवरपरिणयणं | जंपह एरिसवयणं न मणं मह रमइ अन्नत्थ ॥९४॥ 
भणइ य मज्झ सरीरे लूगगइ सो सिरिसकुसुमसुकुमालो | अहवा पञ्जलियकरालजालमालो चियाजलणो ॥९५॥ 
तो पडिवज्जसु संपह् पाणिग्गहणं इमाए अणुकंपं । काऊग तओ अद्दयमुणीसरों चिंतए एवं ॥९६॥ 

एयं त॑ भोगफलं समागयं देवयाए जं कहिय॑ । ता एयस्स न नासो जायइ एवं विचितेउ' ॥९७॥ 

तेसिं च निबंधेणं परिणीया तेण तयणु तीए सम॑ । पंचप्पयारविसए विलसइ अह अन्नसमयम्मि ॥९८॥ 
संजाओ से पुत्तो पवढ्विओ जाव कइवि वरिसाईं । तो तेण इमा भणिया तुह एस दुइज्ञओ होही ॥९९॥ 
पव्वज्वामि अहं तो तज्जाया जायजाणणनिमित्त | चत्तं गहाय कत्तिउमारद्धा तो सुएण इमं ॥१००॥ 

भणिया कि अंब ! इमं इयरमहेलांण उचियमायरसि । तो सा जंपइ पुत्तय ! पहपरिचत्ताण जुत्तमिमं ॥१०१॥ 
कि अंब | इमममंगलरूवं जंपसि जियंतए ताए | भणिए सुएण जंपइ तज्जणणी जाय ! तुह जणगओ ॥१०२॥ 
पव्वइउमणो पुत्तो वि भणइ तमहं धरामि बंधेउं । तो जगणिकरयलाओ चत्तं पेत्तण नियजणओ ॥१०३॥ 
चरणेसु चत्ततंतुहि बंधिउं तो पयंपिया जणणी । वीसत्था अंब ! तुम चिट्ठ सु बद्धो मए ताओ ॥१०४॥ 
गच्छिस्सइ न हु कत्थइ तो तस्स सुणित्तु मम्मणुल्लावे । गाढं बद्धो अद्यकुमरों नवनेहनिगडेहिं ॥१०४५॥ 
चिंतह य पेच्छ एयस्स [बालयस्स] वि सिणेहआसंघो । ता जत्तियतंतूहि बद्धों हं तत्तिण वरिसे ॥१०६॥ 
चिट्ठामि तओ गणिया बारस ते तंतुणो तयणु सो वि। वरिसाइं ठिओ बारस उवभुंजंतो विविहविसए ॥१०७॥ 
तत्तो5इक्कंतेसुं वरिसेसु दुवालसेसु रयणीए । चरिमपहरम्मि चिता जाया एयारिसा तस्स ॥१०८॥ 

पेच्छ जहा विसयासापिवासिएणं मए महापावं । विहिय॑ ज॑ घेत्तणं विराहियं सम्बविरइवयं ॥१०९॥ 

पुव्बभवे दुच्चितियमेत्तेण अहं अणज्वदेसेसु | संजाओ इण्हिं पुण वयभंगे कत्थ गच्छिस्सं ? ॥११०॥ 
परियाणियपरमत्थेण ज॑ मए विहियमेरिसमजुत्त । तं॑ नुणं भमियव्वं भीमम्मि भवाडबीमज्झे ॥१११॥ 

ता इण्हि चिय अज्ज वि करेमि अइदुकरं तबचरणं | जम्हा सिद्धंतवियाण्एहं भणियं इमं वयणं ॥११२॥ 
पच्छा वि ते पयाया खिप्पं गच्छंति अमरभवणाईं । जेसिं पिओ तवो संजमी य खंती य बंभचेरं च ॥११३॥ 
तत्तो पभायसमए संभासिय पणइणिं गहियचरणो । नीहरिओ नियभवणाओ पत्थिओ रायगिहनयरे ॥|११४॥ 
तत्तो तयंतराले सामंतसयाणि जाणि पंच तया । तस्सेव रवखणकए तज्जणएणं निउत्ताणि ॥११५॥ 

दिद्दाणि अडविमज्झे धाडी[ए] कुणंतयाणि नियवित्ति | ताणडंवि तं॑ परियाणिय पणामपुब्बं पयंपंति ॥११६॥ 
सामि ! जया इह तुब्भे अम्हे वंचिय समागया तइया । तुम्ह गवेसणकज्जे एत्तियभूमि वयं पत्ता ॥११७॥ 
तुम्ह पउत्ती लद्घा न हु कत्थ वि ता कहं अकयकज्जा | रन्नो नियमुहमम्हे दंसिस्सामो ? त्ति लज्याए ॥११८॥ 
न गया रायसमीवं अनिव्वहंता इहाडदमज्झे । धार्डि पाडिय नियपाणवत्तणं सामि ! कप्पेमो ॥११९॥ 

तो भयवया पयंपियमेयं भो भो ! महतज्नवजलम्मि | गलियरयणं व दुलहं मणुयत्तं पाविकण तओ ॥१२०॥ 
कावयब्वो बुद्धिमया धम्मम्मि य होइ उज्जम्मो नियमा । ता परिहरिय पमाय॑ उज्जमद्द ज़िरणिंदधम्मम्मि ॥१२१॥ 
तो तेहिं बद्धकरयलकोसेहिं पयंपियं जहा भयवं ! | जइ अत्थि जोग्गया ता अनम्हाणं देहि पव्वज्ज ॥१२२॥ 


७, जिनविम्बद्शनफलाधिकारे आद्रेककुमाराख्यानकम १०३ 


अह भयवया पयंपियमेयं पव्वयह तो असेसा वि । दिल्नवया तेण सम॑ संचलिया तयणु गोसालो ॥१२१॥ 

पत्तेयबुद्धमद॒य॑मुणीसरं वद्धमाणसामिस्स । वंदणनिमित्तमागरछड त्ति नाउं तओ वाय॑ ॥१२४ ॥ 

दाउं समुद्ठिओ सो उत्तर-पच्चुत्तरेहिं निजिणिओ । अददयरिसिणा तत्तो पुणो पयट्टो पहम्मि मुणी ॥१२५॥ 

तो हत्यितावसासमभूमि पत्तो तबस्सिणो ते वि। मारिय गरुयगईंदं भुंजंति पभूयदिवसाईं ॥॥१२६॥। 

जंपंति थ किमिह विणासिएहि बीयाइबहुयजीवेहिं ? | वरमेककर्रिं मारिय किज्जइ वित्ती सपाणाणं ॥१२७॥ 

तत्था55णीओ अहगरुयगयवरो बंधिड' तवस्सीहिं । लोहग्गलाहिं चउद्सि अग्गलिउ' निगडिओ गाढं ॥१२८॥ 

तो इरियासमिहपरो समागओ तत्थ अद्दयमुणिंदों | त॑ दट ठरण गइंदो सामंतमुणीहि संजुत्त ॥१२९॥ 

जा वंदिउमभिवंछहइ उच्छलियअतुच्छभत्तिपब्भारो | ता तडयड त्ति तुद्ा नियडा लोहग्गलाहिं सम॑ं ॥१३०॥ 

उड्डकयसुंडदंडो दोघट्टी झत्ति साहुणो समुहं । संचलिओ तो लोगो पलाइओ मुणिवरं मोत्तु ॥१३१॥ 

तत्तो कुंभी कुंमत्थलेण पणमित्त साहुणो चरणे | आवलियखंधरो सो त॑ पेच्छंतो गओ रज्ने ॥१३२॥ 

दट टु रिसिणो अइसयमेयं तत्तो तवस्सिणो सठ्वे | विहियामरिसा वाए समुद्ठिया तेण निज्िणिया ॥१३३॥ 

पडिबोहिऊण सब्बे वि पेसिया सामिणो समोसरणे । ते गंतृ्ं सिरिवीरनाहपासम्मि पव्वइया ॥१३४॥ 

एत्तो य सेणियनिवों सोउ' सिंघुरविमोयणच्छरियं । वंदणहेउः अददयमुणिस्स अभएण सह पत्तों ॥१३५॥ 

तो तिपयाहिणपुव्ब॑ मुणिणो पयपंकर्य पणमिऊण । भणइ निवो अच्छरियं भयवं ! निययप्पभावेण ॥१३६॥ 

ज॑ मोइओ गइंदो बद्धो वि हु निबिडनियडनियरेण । तो गंभीरसरेणं परयंपियं साहुणा एवं || १३७॥ 

न दुक्करं बंधणपासमोयणं, गयस्स मत्तस्प् वणम्मि रायं | जहा उ चत्तावलिएण तंतुणा, सुदुक्क रं मे पडिहाइ मोयणं || १३८॥ 

त॑ सोउं नरवइणा भणियं भयवं ! किमेयमह मुणिणा । नियत्रुत्ततो सत्ब प्रासिओ पुहइपालस्स ।॥|१३९॥ 

ता भो नरिंद ! ते चत्ततंतुणो बालएण जे बद्धा । दुक्खं ण मए ते मोहतंतुणो तोडिया तइया ॥१४०॥ 

एएण कारणेणं गयबंधगमोयणाओं ते मज्झ । दुम्मोया पडिहासंति तो मए एरिसं पढियं ॥१४१॥ 

सोऊण तयं बहवे पडिबुद्धा पाणिणो भवुब्विग्गा । संतुट्ठी नरनाहो अभएण सम॑ मुर्णि नमिउं ॥१४२॥ 

संपत्तो नियठाणे मुणी वि सिरिवीरनाहकमकमलं । रोमंचंचियदेहो भत्तीए संथवेऊण ॥१४३॥ 

विहरिय उग्गविहारेण तिव्वतरबारि धारसमघोरं । काऊण तबच्चरणं उप्पाडिय केवल नाणं ॥१४४॥ 

तो भवियजणं पडिबोहिऊण बहुकालमदयमुर्णिदो । निद्टवियसेसकम्मो सासयसुहमोक्खमणुपत्तो ॥१४५॥ 
॥आद्रेककुमाराख्यानकं समाप्तम ॥२७॥ 


एयाण पुत्नवंताण दंसणं जिणवर्रिद्र्बिंबस्स । जह जाय॑ बोहिफल तह अन्नस्स वि भवह एयं ॥१॥ 
चिन्तामणिं जयदनड्जजितो जिनस्य, बिम्बं जरत्तरतृणीयत कामधेनु । 
निस्सारकामघटमल्पितकल्पवृक्षं, कल्याणकृत कृतधियों द्वलोकयन्ति ॥१॥ 


॥ इति भ्रीमदाज़वेवरसरिधिरचितबृत्तावाब्यानकमणिकोशे जिनबिम्बदशन फलवणनः सप्तमो5घिकारः समाप्तः ॥७॥ 


८20 का 


१. वुक्खेण-खं० २० । २. संबुद्धों नर० रं०। 


[ ८. जिनपूजाफलवणनाधिकारः । ] 


व्याख्यातं जिनबिम्बदशनम्‌ । तश्च सम्यम्दष्टिना दृष्ट सद्‌ यथाशकत्या पूजनीयम्‌ इत्यनेन सम्बन्धेना5<यातां तत्पूजां 
व्याख्यानयन्नाह-- 


जे जिणवराण पूय कुणंति ते हुंति सयलसुदभागी । 
दीवयसीह-नवफुरलय-पउमुत्तर-दुग्गनारि व्य ॥१३॥ 


व्याख्या--'ये! केचन 'जिनवराणां! तीर्थक्ृतां 'पूजाम्‌! अभ्यचेनं 'कुवेन्ति! सम्पादयम्ति 'ते! जीवाः 'भवन्ति! जायन्ते सकल- 
सुखभाजनम्‌ । दृष्टान्तानाह--दीपकशिखश्व--कर्मकरीजीव:ः नवपुष्पकश्च--मालाकारजीवः पद्मोत्तरश्च--नौवित्तककर्मकरजीवः 
दुर्गनारी च--कायन्दीवास्तव्यवृद्धा ता दीपकशिख-नवपुप्पक-पद्मोत्तर-दु गनाये: ता इव हत्यक्षराथे: ॥१३॥ भावार्थस्त्वाख्यानकगम्यः । 
तानि चामूनि | 
तत्न तायदू दीपकशिखाल्यानकमारभ्यते । तब्बेदम्‌-- 


तथा हि-- 


सेयवियाए पुरीए कम्मयरी आसि गंगदतत त्ति। अह अन्नया य जिणदीवदाणपुन्न॑ सुयंतीए ॥१॥ 


जो देह भत्तिनिब्भरचित्तो जिणनाहदीवयय॑ तस्स । जायंति सयलकल्लाणयाइं सहलाइ' पुत्नेण ॥२॥ 
नाओवज्यतेल्लेण भत्तिपव्भारनिब्भरंगीए । दीवूसवम्मि देवस्स दीवओ दिल्ओ तीए ॥३॥ 
सुहपरिणामवसेणं समज्जियं तीए भोगफलकम्मं | कालक्रमेण मरिउ' तीए नयरीए नाहस्स ॥४॥ 
सिरिविजयधम्मरन्नो भज्जाए जयामिहाए कुच्छीए । उप्पन्ना पुत्तत्तेण तयणु सा सुविणय॑ नियह ॥५॥ 
किर पज्जलंतजालाकलावनिट्ठ वियतिमिरपब्भारो । निद्धूमो मुहकुहरेण पविसए पावओ उयरे ॥६॥ 
तत्तो सुहसंबुद्धाए तीए पहणो पयासिओ सुविणों । फुरियपयावों पुत्तो तुह होही राइणा भणियं ॥७॥ 
गड्मे पवड्माणे संजाओ तीए दोहलो एसो । कयरयणालंकारा दीणाणं देमि जद दाणं ॥८॥ 

तो तीए पुहइपालेण पूरिओ दोहलो अह कमेण । जाओ य पवरपुत्तो पसत्थतिहिकरणसंजोए ॥९॥ 
दीवसिहामलनियगत्ततेयपडिहणियभवणतमपसरो । दीवयसिहो त्ति नाम॑ विहियं सुपसत्थदिविसम्मि ॥|१०॥॥ 
संगहिओ कुमरेणं कलाऊलावो कमेण ससिण व्व | पत्तो य हरिणनयणीहिययहरं जोव्बणारंभं ॥११॥ 
एत्तो य महीमहिलाकंचीदामं व कंचियानयरी । गुरुविकमेक्रसिओ विक्मसेणो निवो तत्थ ॥१२॥ 
तस्सा55सि पढमजोव्वणमणोहरा रायहंसगइगमणा । गंधव्वदत्तनामा धूया रूवाइगुणकलिया ॥१३॥ 
वीणाविन्नाणेणं जो मं निज्जिणइ तस्स हं घरणी | इय एरिसा पहन्ना तीए कया गरुयगव्बेण ॥|१४॥ 
तीए तीए पइज्नाए निययविज्नाणगुरुमरद्वा वि। निज्विणिया अइबहुया नरेसरा एरिसं सोउ' ॥१५॥ 
दीवयसिहकुमरेणं जणओ भणिओ अहं पि पेच्छामि । वीणाविन्नाणं से तो नरवइणा कयाणुन्नो ॥१६॥ 
सिंधुर-तुरंग-गुरुययरहरयणारूढरायकुमरेहिं । अणुगम्मंती पत्तो कंचिपुरिं गुरुपयाणेहिं ।।१७॥ 
आवासिओ य तन्नयररायअप्पियपकिट्टपासाए । काऊण कामिणीनयणमोहणं सयलऊूसिंगारं ॥१८॥।। 
आरुहिय गरुयर्सिधुरबंधुरखंधेसु धीरिमाकलिओ । पत्तो य रायमग्गेण सुहडसंकिण्णमत्थाणं ॥१९॥ 
महियलमिलंतभालयलमणहरं तेण नरबई नमिओ । उवविट्टो य तया55णाए रहयसिंहासणे रम्मे ॥२०॥ 
दिद्दा य तत्थ सज्जियसरस्स मयरद्धयस्स वासगिहं । लायण्णजलहिलहरीललूणालीलाए कुलभवर्ण ॥२१॥ 
गंधव्वदत्तकुमरी अमरी विय सयल्सुंदरावयवा | दीवयसिहकुमरो वि हु तीए मयणों ब्व सशच्चिविओ ॥२२॥ 


१४ 


८, जिनपूजाफलवणनाधिकारे दोपकशिखाल्यानकम्‌ १०५ 


दोण्ह॑ पि नयणभमरा परोप्परं ताण वयणकमलेसु । निरुवमलायन्नमहूं पियंति अणुवरयमणवंछा ॥२३॥ 

पुव्व॑ पि पुहइ॒पालेण तिन्नि दिवसाणि निसरणों हत्थी । विहिओ आसि तओ सो आणीओ रायभवणम्मि ॥२४॥ 
तो तस्स करे कवलो समप्पिओ गुरुछुहाकिलंतस्स । आसारिया य वीणा कुमरीए करेणुसन्नेज्से ।२५॥ 

ताहे रणंतवीणासरं सुणेउं करी कवलमवसो । मोत्तं कुमरिसयासम्मि पत्थिओ सद्वसवत्ती ॥२६॥ 

तीए वीणाविज्ञाणकोसलं पासिऊण विउसयणा । तग्गुणकित्तणपवणा संजाया घुणियसिर्कमला ॥|२७॥। 

कुमरो वि पुण पयंपइ विन्नाणमिमीए सुंदरं किंतु | तंती इमा न सुद्धा वेणु वि हु वाल-उवलेहिं ॥२८॥ 

अह भणियं नरवइणा कह नज्जइ ? तो झड त्ति कुमरेण | उव्बेढिऊकण तंतीए कड्डटिओ कोमलो वालो ॥२९॥ 
मज्ञाओ वेणुदंडस्स दंसियं निवहणो उबलखंडं । तत्तो य सज्जिऊणं वीणादंडं सबुद्धीए ॥३०॥ 

आसारिऊण तंती वाएउं जा पयत्तओ रूग्गो | तो तीए सबणसुहयं सद्ं सोउं सुयइ हत्थी ॥३१॥ 
विज्ञाणाइसएणं कुमरस्स नरिंदपमुहपुरछोगो । जाओ उब्मूयपभूयहरिसपरिपूरियसरीरों ॥३२॥ 

रज्ना वि पसत्थमुहत्त-करण-सुहवार-लग्गम्मि । काराविओ कुमारो पाणिग्गहणं सम॑ तीए ॥३१॥ 

तो तत्थेव य कइय वि दिणाणि पीणत्थणीए तीए सम॑ | भुंज़ंतो विसयसुह ठिओ कुमारो अहडन्नदिणे ॥३४॥ 
सम्माणिओ समाणो सद्धिं गंधव्वदत्तकुमरीए । नियबलभरपरियरिओ विसज्जिओ नरवरिंदेण ॥३५॥ 

वच्च॑तो संपत्तो कमेण कुमरो पुरे पइट्टाणे। आवासिओ य तप्परिसरम्मि एत्थंतरे तत्थ ॥३६॥ 
कक्कनरेसरकुमरी नियरूवविणिज्जियामरी अहिणा । दट्ढा मय त्ति निज्जह दाहनिमित्तं मसाणम्मि ॥३७॥ 
डिंडिमसद्द सोउं उल्लबिया पणइणी कुमारेण । निस्सारिज्जह सुंदरि ! सजीवमाणुसमिम नियमा ॥३८॥ 

कह पिययमो वियाणइ १ इय भणिए तीए जंपइ कुमारो । डिंडिमसदविसेसेण तयणु सा भणइ कहमेयं ? ॥३२९॥ 
कुमरेण कहियमहिणा दद्ठा तो तीए जंपियं एयं । जीवाबिउं वियाणसि ? तेणुत्तं अत्थि ता मंतो ॥४०॥ 

जइ एवं जोवावसु पिययम ! एयं पयंपियं तीए । नियपुरिसं पद्टाविय कुमरेण धरावियं मडयं ॥४१॥ 
कारावियं चियाए पद्चासन्नम्मि तेण मंडलयं । तो तत्थ गओ दिद्ढों ककमहीसामिणा कुमरो ॥४२॥ 

कहिय॑ च तस्स रज्ञा कन्ना लीलावई इमा मज्ञझ । दट्ठा कसिणभुयंगेण कुणसु ता नित्विसं एयं ॥४३॥ 
मिल्लाविया य मंडरूयमज्ञभायम्मि सा कुमारेण | काऊण सिहाबंधं सरिउं विसनासणं मंतं ॥०४॥ 

भणिया एसा उद्धित्तु देहि मुद्ससोयणं सजणणीए । तत्तो समृद्दिया सा कंचणतंबाहुयं घेत्तं ॥४४॥ 

दिन्न॑ मुहसोयणयं त॑ दट ठुं हरिसिओ जणो सब्वो | वज्ञावियं च॒ वद्धावणयं कुमरेण पडिसिद्धं ।॥४६॥ 
भणियं च मए तुम्हाण दंसियं संतकोठयं एयं | अज्ज वि सविसा एसा इय जंपंतस्स तस्स तओ ।॥४७॥ 
पडिया सा मंडलए तो भणिओ सायरं नरिंदेण । कुमरो तेणावि कया कुमरी मंतेहिं विसवियला ॥|४८॥ 
कुमर्रि पच्चुज्जीवियमवलोएउं पहरिसिओ राया । सो वि हु नाओ सिरिविजयधम्मरत्नो सुओ त्ति इमो ॥४९॥ 
नीओ य निययभवणम्मि निवइणा पारितोसियं दाणं । दिल्ला कुमरी कुमरस्स तत्थ तेणावि परिणीया ॥५०॥ 
तीए सह विसयसोक्खं उवभुंजेऊण कइय वि दिणाणि । संचलिओ निययपुरिं पत्तो य कमेण उज्जेणि ॥५१॥ 
जाए संझासमए सुबन्नजाले सरस्स उबकंठे । दिद्ठा चिया जलंती तीसे जालाविसेसेण ॥५२॥ 

एसा सजीवमडया एयं देवीण साहिडं कुमरो । अंधारपडं पावरिय करयले कलिय करवाल्ूु ॥५३॥ 

एगेण भडेण सम॑ गओ चियासन्नपायवतरूम्मि | जा तत्थ ठिओ ता तक्‍्खणेण गयणंगणग्गाओ ॥५४॥ 
अवयरिओ सोयामणिपुंजो व्व सिहि व्व दिणयररहों व्य । नियतेयपञज्जलंतो चियाए कावालिओ एगो ॥५५॥ 
जालावली चियाए नद्ठा मंडलयमालिहेऊण । मन्तुचखारपुरस्सरमप्फालइ डमरुगं एसो ॥५६॥ 

तो उद्धामरडमरुगसद्दं सोउ' चियाए मज्ञ्ाओ । हा ताय ! त्ति भणंती समुद्दिया कन्नया एगा ॥५७॥ 
भयकंपिरसब्बंगा घेत्तूं केसेसु कड्डिया तेण | संठविया मंडलए हढेण मिउडीए मभेसित्ता ॥५८॥ 


१०६ 


आश्यामकमणिकोशे 


करकलियकत्तिएणं भणिया संभरसु देवयं इंट्टं । एत्तियमेततो जम्हा होही तुह जीवलोओ त्ति ॥५९॥ 

तो भामितो जमरायभूलयासमकरालकरवालं । मा साहसं भणंतो संपत्तो झत्ति कुमरो वि ॥६०॥ 

तत्तो कवालिएणं अद्धत्यंभीकओ विचितेदइ । एसो महप्पभावों को वि तओ इईसि संखुद्धों ॥६१॥ 

भणिओ कवालिएणं महाणुभावा ! न जुज्जए तुज्ञ । मम विग्घकरण]मेवं कवालिओ भारभूह अहं ॥६२॥ 
पारद्धं थीरयणायरिसणमंतस्स साहणं अज्ज । बारसमासपमाणा कया मए पुव्वसेवा वि ॥६३॥ 

इण्हि पुण पारद्धा पहाणसेवा नरिंदकन्नाए | दिज्जइ बली तओ इह एसा उप्फेरछठमेण ॥६४॥ 

कन्ना अवन्तिवद्धणनरवइणो<वंतिणि त्ति नामेणं । मंतेण कया सुनिरुद्धचेयणा आणिया एत्थ ॥६५॥ 

भयव॑ करालजालो वि हुयवहो थंभिउः कओ सोमो । एवं विहिए मंतो सिज्झद ता मा कुणसु विग्घं ॥६६॥ 
दीवयसिहो वि जंपइ थीवज्ञा गरहिया महाभाग ! । कारणमिणं महंतस्स पावपब्भारभवणस्स ॥६७॥ 

ता कि सिद्ध णं पि हु मंतेणं नरयकारिणा इमिणा ? । पडिसिद्ध' तुम्हारिसपुरिसाण जओ विसेसेणं ॥६८॥ 
ता कि तुमए ववसियमणज्जजणजोग्गमे रिसं पावं ? । एवं वुत्तो कुमरेण लज्जिओ जंपिउ' लग्रो ॥६९॥ 
एवमिणं जं तुमए पयंपियं सव्वहा कओ मज्झ । गरुओ अणुग्गहों पावपडलूपब्भारपिहियस्स ||७०॥ 
एरिसकुमंतकरणेण किह मए पेच्छ मइलिओ अप्पा १। ता मन्ने मह सुद्धी न अत्थि नरए वि पडियस्स ॥७१॥ 
ता दुव्विकसियमेयं परिचत्तं सव्वहा मए इण्हि । पायच्छित्त सिरिपव्वयम्मि गंतु' चरिस्सामि ॥७२॥ 

तुमए समप्पियव्वा रन्नो कन्ना पमायसमयम्मि । उचियमिणं सप्पुरिसाण जंपियं दीवयसिहेण ॥७३॥ 

कस्स न चुक॑ खलियं समेइ भववासमहिवसंतस्स । पुणरवि तह जइयव्वं जहा न मइलिज्जणु अप्पा ॥७४॥ 
संपाडिस्सामि अहं भवओ आणं पयपियं तेण । तत्तो गओ कवाली कुमरेण वि कन्नया नीया ॥७५॥ 
निययावासे देवोण साहिओ तीए बइयरो सब्वो । सोऊण तयं विम्हियमणाओ जायाओ ताओ वि ॥७६॥ 
गोसे अवंतिवद्धणनिवस्स कुमरेण अप्पिया कन्ना । कहिओ य असेसो वि हु कावालियविहियवुत्ततो ॥७७॥ 
सोऊण तयं कन्नाए वहयरं पमुइओ पुहइपालो । त॑ चिय कन्नारयणं वियरइ सुपसत्थद्विसम्मि ।|७८॥ 
महया महसवेणं कओ विवाहो ठिओ तहिं कुमरो । कश्य वि दिवसे विसए पंचपयारे अणुहवेउं ॥७९॥ 
नियदेसे संचलिओ पत्तो पउमावईए नयरीए | आवासिओ य परिसरधराए वणराइरुइराए ॥८०॥ 

नाउं कंचिनरिदेण सो वि तस्सम्मुही समणुपततो | नीओ य निययअत्थाणमंडवे विहियसम्माणों ॥<८१॥ 
जाया तत्थ ठियाणं नरिंद-कुमराण एवमुल्लावा । जंपई कुमरो अत्येत्थ नत्थि वा संपयं थोभो |८२॥ 
मज्झ मएणं नत्यि त्ति राइणा जंपिए भणइ कुमरो । अत्यि तओ आह निवो जह होइ मिलंतय॑ पत्तं ॥८३॥ 
दीवयसिहो पयंपइ अमिलंते वि हु करेमि पत्ते हंं । तत्थ करिज्जसु जमहं पत्तं अप्पेमि भणह निवो |॥|८४॥ 
पडिवन्ने कुमरेणं तत्तो य दुइज्जवासरे राया । कामलयं नियकन्नं मूयगपत्तं समप्पेइ ॥८५॥ 

तस्स तओ मंडलए निवेसिया तेण विहियसियवेसा । तो तीए पत्तदेवयमवयार्‌इ मंतसरणेण ॥|८६॥ 

जाव न जंपइ कि पि हु ता सो उवउत्तमाणसो होड । गाढयरं परिवत्तद मंतं चित्तस्स मज्ञम्मि ॥८७॥ 
तत्तो कालविलंबेण पत्तदेवी पयंपिउं लग्गा | सा जंपिया कुमारेण कहसु कि एत्तिया वेला ? ॥८८॥ 

तो पत्तदेवयाए पयंपियं मूयग्गं इमं पत्त । भणियव्व॑ं पुण पणकरणजोगओ तो मण झत्ति ॥|८९॥ 

गंतुं हिमबंताओ आणेउमिमीए मूलिया दिज्ञा । जह जंपणस्स सत्ती जायइ एयाए तो मज्झ ।॥९०॥ 
जांओ कालविलंबो एत्तियमेत्तो तओ कुमारेण । काउं विणोयमेयं विसज्जिया देवया नमिउं ॥९१॥ 

सा मूयगा पयंपिउमारद्धा मूल्यापभावेण । तत्तो हरिसियहियएण कंचिरज्ञा कुमारस्स |।९२॥। 

दिल्ला कन्ना तेण वि विवाहिया तत्थ कइ्यवि दिणाणि | उवभुंजिऊण पंचप्पयारविसए स तीए सम॑ ॥९३॥ 


१, या सन्निरझ० “-खं० रं०। २, इ राया अ० -+खं० रं । 


न ० 


८. जिनपूजाफलयण नाधिकारे नवपुष्पकाल्यानकम्‌ १०७ 


बुद्धीहि जहा अभओ नीईहिं निवो भुयाहिं गोविंदों | तह दीवयसिहकुमरो संजुत्तो चड॒हिं दश्याहिं ॥९४॥ 
नियबलभरपरियरिओ पउमावहपुरवरीएण नीहरिओ । सेयबियं नियनयर्रि पत्तो उत्तूं गपासायं ॥९५॥। 

अहिसिततो नरनाहेण निययरज्जे पसत्थद््‌विसम्मि | जाओ य सत्तुसंदोहदरूणदक्खो महाराया ॥९६॥ 

कालेण समुप्पत्ना पुत्ता चिता य एरिसा जाया । कि पुव्वभवे विहियं मए १ जमेसा महारिद्धी ॥९७॥ 

इय ईहा-5पोहपरस्स तस्स निस्सेसरायतिलयस्स । जाय॑ जाईसरणं दिट्लो तो तेण पुब्बभवों ॥९८॥ 

अह आसि गंगरुद्दा कम्मयरी तीए दीवओ दिज्नो । देवस्स तप्पभावेण एरिसो हं समुप्पन्नो ॥९९॥ 

नाऊण हम पूयइ जिणेसरे कुणइ संघसम्माणं | रहजत्ताओ पवत्तह भत्तिब्भरनिब्भरसरीरों |१००॥ 

अह अन्नया य अहिसिंचिऊण रज्जम्मि जेट्टनियकुमरं । पासे पहाससूरीण संजुओ चउहिं वि पियाहिं ॥१०१॥ 
पव्वइओ समहिज्जियसुत्तत्थो विहियतिव्वतवचरणो । मरिउममरंगणाणं हिययहरो सुरवरों जाओ ॥१०२॥ 


॥ दीपकशिख्ताख्यानर्क समाप्तम ॥२८॥ 


इदानीं नवपुष्पकाख्यानकमारभ्यते | तश्चेदम्‌-- 
आसी विल्ल्रपुरे मालागारो असोगनामो त्ति | सयवत्त-जाइ-मचकुंद-[कुंद|कुसुमाइ' विक्रिणइ ॥१॥ 
अह अज्नया य विक्किणिय कुसुमनियरं गिहम्मि गच्छंतो । कम्म5वि सावयभवणम्मि सुणइ गिज्ज॑तगेयाहं ।|२॥ 
ता तत्थ गओ पेच्छइ' सड्ढा गायंति केवि नश्वंति । वायंति केवि गंभीरसद्दमाउज्जसंदोहं ॥३॥ 
किमिमस्स गिहे १ इय पुच्छियम्मि केणावि अक्खियं तस्स | जिणपडिमाए पहट्टा जाया तो ऊसवो एत्थ ॥४॥। 
तिहुयणगुरुणो पडिमा जिणस्स दिद्ठा पहिद्नहिेयणण । मालागारेण तओ भत्तिभरुब्मिन्नपुलएण ॥५॥ 
चिंतियमणेण जह पुत्नभायणं सावया इमे भुवर्ण । पूयंति जिणं विच्चेवि नियधणं गरुयभत्तीए ॥६॥ 
ता अहमवि [जिण]पडिम पूणमि विचितिऊण जा नियहइ । पुप्फकरंडयमज्झे ता नव फुल्लाणि लद्भधाणि ॥७॥ 
तो तेण गरुयभत्तीए पूहया भुवणसामिणो पडिमा | नमिया य महीयलमिलियभालवट्टेण बहुमाणा ॥८॥ 
असरिसभत्तिवसेणं बद्ध' तप्पन्चयं सुहं कम्मं | अइकमइ तस्स कालो जिर्णिंदबहुमाणजुत्तस्स ॥९॥ 

ह अन्नया य मयरद्धयस्स मित्ते वसंतसमयम्मि । वियसावंते वणराइमसमसुसुयंधकुसुमेहिं ॥१०॥ 

भमरउलरोलमुहला घेत्त सहयारमंजरी तेण । पुहईवइस्स नवफुल्लएण सप्पणयमुबणीया ॥११॥ 
संतुट्नेंण नरिंदेण ठाविओ मालियाण सब्वे्सि | मयहरपयम्मि आउक्खयम्मि सो सुद्धपरिणामो ॥१२॥ 
मरिउऊणं एलउरे जाओ पुत्तो विसिट्टसिट्टिस्स । नवलक्खदविणनाहो तओ वि मरिऊण तत्थेव ॥१३॥ 
जाओ नवकोडीणं दविणवई अह तओ वि कालगओ । संजाओ तत्थेव य नयरे नवकणयलक्खेसो ॥१४॥ 
नवकणयकोडिनाहो जाओ मरिउं पुणो वि तत्येव । तो मरिऊणं नवरयणलक्खनाहों समुप्पन्नो ॥१५॥ 
तत्तो वि मओ नवर॒यणकोडिसामित्तणं समणुपत्तो । एत्तो वाडिपुरीए वल्लहरायस्स नरवइणो ॥१६॥ 
अंगरुहो संजाओ अहिसित्तो तो निवेण नियरज्जे । जाओ महापयावो वसीकयासेसनरनाहो ॥१७॥ 
नवलक्खगामसामी तह जक्खाहिटद्ठियाईं नव तस्स । पुव्वपुरिसागयाइ तेण निहाणाइ” पत्ताइ' ॥१८॥ 
अह अज्नया य कजजल-जलहर-रोलंबसामलसरीरो । थुव्वंतों सुर-चारणनियरेण जिणेसरों पासो ॥१९॥ 
समवसरिओ तओ सो परिग्न्थाग्रम्‌ 2०००]यरिओ बहुनरिंदविंदेहिं। आरुूढ़ो जयवारणखंधे पत्तो समवसरणे ॥२०॥ 
परिहरियरायककुहदो ओयरिऊणं गइंदखंधाओ । पणमिय पासजिणिंदं नरेसरो थोउमारद्धों ॥२१॥ 
जय जय पास ! जयप्पयास ! पयडियवरसासण !, विविहवाहि-उव्सग्गवग्गसंसग्गपणासण ! । 
आससेणनररायजाय ! विज्नवउं महापहु !, बहुविहदुहदुत्थियहं देव ! विज्नत्ति सुणि महु ॥२२॥ 








१, पिच्छड --रं० । २, इत्थ “-रं० । 


श्ण्घ आज्यानकमणिकोशे 


अज्जु सलक्खणु सूरु अज्जु सुंदरु सुविहाणउं, अज्जु पसत्थउ वारु अज्जु वासरु सुपहाणउं । 

अज्जु नाह ! नक्खत्त जागु तिहि करण विसिद्दउ, दुल्लहदंसण भावसारु जं तुह मुहु दिद्ठडः ॥२३॥ 

एवं थोऊण जिणं उबविट्ठों जोडिऊण करजुयलं । धम्मकहापज्जंते पासजिणो पुच्छिओ एवं ॥२४॥। 

कि सामि ! कयं सुकय॑ भवम्मि पुव्वे मए जमेसा मे । रायसिरी ? तो कहिया पुव्वभवा भयवया तस्स ॥२५॥ 
जह नवफुल्लेहिं तए जिणपडिमा पूहया तओ सुकय॑ । संजायं तेणेसा रिद्धी तुह असरिसा जाया ॥२६॥ 

त॑ सोउ' तेणावि हु जाईसरणण जाणियं सब्बं । एयं पुण इय गाहाए पभणियं केणइ बुहेण ॥२७॥ 
नवसयसहस्स-नवकोडिसामिओ दविण-कणय-रयणाणं । नवगामलक्ख-नवनिहिवई य नवफुल्लओ जाओ ॥२८॥ 
नमिऊण जिणं गंतृण राल['* **' | भुंजिऊण रायसिरिं । अहिसिंचिऊण कुमरं रज्जे पुणरवि य पत्तस्स ॥२९॥ 
पासजिणस्स सयासे पव्वदओ चरियचारुतवचरणो । मरिऊण पंचपंचुत्तरेसु सो सुरवरो जाओ ॥३०॥ 


॥ समाप्त नथपुष्पकाख्यानकम्‌ ॥२६॥ 


इृदानों पश्नोश्तराव्यानकमारभ्यले । तश्चेद्म--- 
वाणारसीए सुरवरतरंगिणीतीरबिहियसोहाए । संखसियदंतपंती संखो नाइत्तगो तत्थ ॥१॥ 
तस्सा55सि गिहपओयणपभूयपब्भा रधरणधुरधवलो । गुणवंतो थिरचित्तो कुलउत्तो नंदणो नाम ॥२॥ 
अह अन्नया य नाइत्तगस्स कज्जेण कम्मि वि पएसे । गंतुण पडिनियत्तो सिसिरजलं नियइ पउमसरं ॥३॥ 
फलिहमणिघडियकुट्टिमत॒र् व तेलोकलूच्छिभवणस्स । तूलीतरं व जलदेवयाए सयणत्थमच्चत्थं ॥४॥ 
सारयजलहरखंडं व निवडियं पडिनिहिं व गयणस्स । मुउरो व्व दिसिवहणं सियायवत्तं व फणिरन्नो ॥५॥ 
पटरपयपूरियं पि हु विलसिरछच्चरणपंतिपरिकलियं । संखसहस्समुहं पि हु असंखजलयरसमायन्नं ॥६॥ 
बहुलहरिपरिगयं पि हु नलहरिमालाविलासरमणीयं । नीरुयजलयरजुयमवि सरोयसत्ताहिगयमज्ञ ।।७।॥। 
मोणजुयं गयणं पिव रहवररयणं व चारुचक्जुयं । तिदिवं पिव सुरसहियं सबिलासं तरुणिवयणं व ॥८॥ 
तो तत्थ सिसिरनीरे मग्गपरिस्समपणासणनिमित्त । मज्जंतणण तेणं दिट्ठं लट्टं सहसपत्त ॥९॥ 
मयरंदमत्तमहुयरमणहरझंकारबहिरियदियंत॑ । घेत्तूण तय रंगंतलहरमुत्तरह जाव सर॑ ॥१०॥ 
तो निययरूवउवहसियअमररमणीहिं चउहिं कन्नाहिं। भणियमिममुत्तमस्स य कस्स वि जोगं ति त॑ं सोउः ॥११॥ 
सो चिंतइ नायत्तइसंखो मह उत्तमो तओ तस्स । अप्पेयव्बं तत्तो पत्तो नायत्तइस्स गिहे ॥१२॥ 
सो तस्स त॑ समप्पइ जंपइ नाइत्तगो वि तं दट टुं। उत्तममुत्तमजोग्गं त॑ं सोउ' नंदणो भणइ ॥१३॥ 
मह उत्तमो तुमं चिय तो संखो भणइ मम वि सुविसिट्टी । सेट्टी उत्तमठाणं ता तस्स इमं समप्पेमो ॥|१४॥ 
तो जंति गिहे ते दो बि सेट्टिणो जाब त॑ं समप्पंति । तेण वि वुत्तं जुत्तं उत्तममिममुत्तमस्सेव ॥१५॥ 
नायत्तइ-नंदणया तमुत्तमो जाब त॑ पयंपंति । वज्जरइ तओ सेट्टी अम्हाणं उत्तमो मंती ॥१६॥ 
सव्व वि तओ गंतूंण मंतिमंदिरमिमं अमच्चस्स | अप्पंति सो वि उत्तममुत्तमजोग्गं समुल्लवह ॥१७॥ 
जंपंति ते वि अम्हाणं उत्तमो तं तओ भणइ मंती । अम्हं तुम्हाणं पि हु नरेसरो उत्तमं पत्त ॥१८॥ 
ता तस्स समप्पेमो इय जंपिय ते गया नरिंदपुरों | विहियपणामा उवर्णिति राइणो त॑ सहस्सदलं ॥१९॥ 
अह आह महाराया उत्तममिममुत्तमस्स होइ त्ति। सोऊण इम॑ जंपंति ते वि त॑ उत्तमो अम्ह ॥२०॥ 
तो जंपइ पुहहवई कमकमलमहं पि जेसि पणमामि । ते उत्तम त्ति ता नाणगब्मसूरीण उबवणेमी ॥२१॥ 
मयपाणमत्तछश्वरणरुणुझुणारावमणहरं तत्तो । आरुहिय गंधर्सिघुरखंधे सद्धि सुबुद्धीहि ॥२२॥ 
नंदण-नायत्तइ-सेट्टि-मंतिपभिदृर्हिं पटरलोएहिं । नीहरिओ नरनाहो सुरीण सयासमणुपत्तो ॥२३॥ 


१, नाहु [| --रं० । २. णमुत्त० --रं ॥ 


शक 


८. जिनपूजाफलयणनाधिकारे प्मोसतराख्यानकम्‌ १०५ 


पणमित्तु पायपउमं सूरीण सहस्सपत्तमप्पंति | तं द्ढण पयंपंति सूरिणो महुरवाणीए ॥२४॥ 

अमरकरि व्व करीणं कंचणसेलो व्व अवरसेलाणं | तारावइ व्व ताराण कृप्परुकखों व्व रुबखाणं ॥२५॥ 
सुरनाहो व्व सुराणं धम्माणं जिणवरिंदधम्मो व्व। चक्कि व्व नरिंदाणं इयरफणीणं फर्णिदो व्व ॥२६॥ 
चिंतामणि व्व रयणाण सेसजाईण मणुयजाइ व्व । सन्वेसि तित्थयरो जमुत्तमो तस्स ता, जोग्गं ॥२७॥ 

तो गंतु' जिणभवणे जिणेसरं नंदणस्स दंसंति | सो वि हु पमूयभत्तीए मुयइ जिणनाहसिरंकमले ॥२८॥ 
सब्बे वि जिणं तत्तो खोणीमंडरूमिलंतसिरकमल। | बहुमाणवससमुच्छलियबहलरोमंचकंचुइया ॥२९॥ 
सूरीहिं तओ तेसि पयासियं भयवओ गुणसबन्नं | विहिया य उबियसद्धम्मदेसणा बहुमया तेसिं ॥३०॥ 
जाय॑ च बोहिबीयं भोगफलं कम्ममज्यियं तेहिं। जाय॑ अणुमइपुत्नं कुमारिगाणं चउण्हं पि ॥३१॥ 
अवरुप्पराणुबंधेण तम्मि जम्मम्मि ताण सब्वेसि | जाया रिद्धी कालक्रमेण सुविसुद्धभावेणं ॥३२॥ 
पंचत्तमिमो संपप्प नंदणो पउमविसयमज्झम्मि । नंदणनामम्मि पुरे परिहासहिए वयंसि व्व ॥३३॥ 
तारावीढनरेसरसुदारनामाए परमभज्जाए । कुच्छिसि समुप्पन्नो पुत्तत्ताए तओ तीए ॥३४॥ 

रंगंतलहरिमालं हंसावलिकलियकमलकोसेसु । मयपाणमत्तममरउलरुणुझुणारावरमणीयं ॥३५०॥ 

पउमसरं पविसंतं दिट्नं सुमिणम्मि ववणकमलेण । तत्तो सहसंबुद्धाए साहिय॑ नरबरिंदस्स ॥३६॥ 

तेणुत्त तुह सुंदरि ! पहाणपुत्तो भविस्सह तओ सा | उब्बहई सह पमोएण गब्भमह अज्नया जाओ ॥३२७॥ 
दोहलओ जह दीणाण देमि दाणाइ तह य कीलेमि । पउमसरेसुम्मीलियकल्हारपरायछुरिएसु ॥३८॥ 
दोहलयदुब्बलंगीए तीए सो अक्खिओ नरिंदस्स । संपाडिओ नरिंदेण पहरिसुप्फुन्ननेत्तेण ॥३९॥ 

जायम्मि पसवसमयम्मि पसविया पुत्तमुत्तमं देवी | नियगत्तदित्तिसंताणपहणियासेसतमपसरं ॥४०॥ 

लड्»ो नाल्यनिक्वगणखणियखोणीयलूम्मि पउमनिही । नाम॑ पि तेण पउमुत्तरों त्ति विहियं नरिंदेण ॥४ १॥ 
वच्चद विद्धि अहियं कलाकलावेण कमलनयणो सो । पत्तो तत्तो सब्बंगसुंदरं जोव्वणारंभं ॥४२॥ 

ताओ वि कन्नयाओ चत्तारि वि कम्मधम्मजोएण । आयामुहीए नयरोए दोलन्नि दोणस्स नरबहणो ।।४ ३॥ 
धयाओ जायाओ पउमावइ-कुमुइणीभिहाणाओ । तो दोजन्नि हत्थिगाउरनयरे जियसत्तरायस्स ।।४४॥। 
विब्भमवद त्ति पढमा बीया धूया पुणो विलासवई । कालकमेण ताओ वि जोव्बणारंभमणुपत्ता ।|४ ५।। 
जाया जणयाण मणे चिंता होही इमाण को भत्ता | अणुरूबवो ? तो पडिछंदएहि आणाविया कुमरा ॥०६॥ 
तेसि वियड्डसहीणं समप्पिया जंपिया य ता एवं । लक्खेउं कहियव्वो भावों कुमरीण अम्हाण ॥०७॥ 

तत्तो सहीहिं कुमरीण दंसिया रायकुमरपडिछंदा । भणियं च ताहिं कि एत्थ रूवमेत्तेण नाएण ? ॥४८॥ 
जाणयब्वी जीवो सहीरहिं भणियं भवंति कि मणुया । निज्ञीवा ? तो जंपंति ताओ जीवो पवरभावों ॥०९॥ 
भणियं सहीहिं सो किह जाणिज्इ ? तयणु ताओ जंपंति | लिंगेहिं विसिट्टेहिं सहीहिं भणियं तयं सोउं ॥५०॥ 
काणि पुण ताणि लिंगाणि ? तो पयंपंति रायकन्नाओ । सत्॒त्थ उचियवित्ती सहीहि तो एबमुन्नवियं ॥५१९।। 
लक्खिज्जइ कहमेसा ? तेण पओगेण हिययगम्मेण । भणियं सहीहिं कीरठ सो वि पओगो तओ ताहि ॥५२॥ 
भणियं जइ एवं ता आणह वन्नयसमुग्गयं एत्थ । तह चित्तपट्टियाओ ताओ वयंसीओ उवर्णिति ॥५३॥ 
अद्धुम्मीलियपउमुप्पलाणि लिहियाणि दोणतणयाहिं । लिहियं विसिद्रकन्नाजुयर् जियसत्तवयाहिं ॥५४॥। 
तत्तो भणियं सव्वाण रायकुमराण पेसह इमाणि | भणियव्बा ते एयाणुरूवमिह आलिहेयव्ब॑ ॥५५। 

तो दंसियव्वमम्हं जेण सजीवत्तमक्खिमों तुम्ह | तज्जणयाणं ताओ सहीओ कहिउं समप्पंति ॥५६।। 

तयणु नरिंदेहिं वि रंजिएहिं निस्सेसरायकुमराण । वरचित्तपट्टियाओ पट्टवियाओ तओ तासु ॥५७॥ 
आलिहिय पेसियाओ कुमरेहिं नरवरिंदकन्नाहिं। अवलोइ3' पयंपियमेए सब्बे वि निञ्जीवा ॥५८॥ 


१, तो ---२० । २. सिरिकमले --रं०। ३. इत्थ “-रं० । 


११० 


भणियं च--- 


- आखश्यामकमर्णिकोशे 
त॑ सोउ' रायाणो मणम्मि खेयाउरा विचितंति | को एयाओ रंजिस्सइ ? त्ति पडिया दुह्मवत्ते ॥५९॥। 


उद्घेगमहावर्ते पातयति पयोधरोन्नमनकाले । सरिदिव तटमनुवर्ष विवर्धभाना सुता पितरम्‌ ॥६०॥ 

दोण्हं पि नरिंदाणं अहडज्नया मागहेहिं अत्थाणे । पउमुत्तरकयगाहा पढिया उद्दामसद्देण ॥६१॥ 

आलाणम्मि उ हत्थी नियए ठाणम्मि घेप्पए अस्सो | हिययम्मि पवरमहिला सुयणो सब्भावमेत्तेण ॥६२॥ 
कहिय॑ च तेण पउमुत्तरेण रइया परंपराए इमा । निसुया कन्नाहिं तओ भणियं एसो सजीबो त्ति ॥६३॥ 

ता चित्तपट्टियाओ तस्स वि पदट्ठवह अह नरिंदेण। पउमुत्तरस्स पट्टावियाओ दिद्वाओ तेणावि ॥६४॥ 

नायं च जहा--लिहियव्वमेत्थ एयाणुरूबयं तत्तो । पउमस्स पुव्वभायम्मि वियसियं कमलमालिहियं ॥६५॥ 
अवराभिमुहं पडिबुद्धमुप्पलं लिहियमुप्पलसयासे । उड्डंतनिलीयंतो भमरजुबवाणो कओ तेसु ॥६६॥ 
उभयाणुवत्तणपरो लिहिओ कन्नाजुयस्स सन्निज्से । तरुणो रसंतरत्थं सुहुमं रेहंतराणुणओ ॥६७॥ 

को निउणमिणं जाणइ ? अणुरूवं ताव मज्झ पडिहाइ । एरिसवयणं लिहिऊण चित्तफलहीसु कुमरेण ॥६८॥ 
पद्टावियाओ तार्सि पलोइया ताहिं पुलइयंगीहिं । कुमरीहि निययसहियणसम्मुहमेवं समुल्लबियं ।।६९॥ 
पेच्छह तस्स वियद्वत्तमसरिसं तो सहीयणो भणइ । को इह भावों ? तो कन्नयाओ भाव॑ पयासंति |॥७०॥ 
पुव्वाभिमुहं पउमस्स कमलमरुणोदएण वियसेइ । उप्पलूपच्छिममुप्पलमुम्मीलइ बालचंदेण ॥७१॥ 

एसो एत्थ वियासो सलहिज्जहइ तह य कहइ अविओगं | भमरजुवाणो तह वयणलिहणमक्खद अगब्बं त॑ं ॥७२॥ 
अवराहिं पुणो जियसत्तरायकन्नाहिं जंपियं एयं | एयाणुसारसंगयमेयं रूवं॑ कुमारस्स ॥७३॥ 

तत्तो सहीहिं विम्हियवियसियवयणारदविद॒-नित्ताहिं | कहियं तेसि जणेराण ते वि हरिसियमणा जाया ॥७४॥ 
अबरोप्पराणुराओ पउमुत्तर-कन्नयाण संजाओ । तत्तो महरिहरिद्धीए तेण वीवाहिया ताओ ॥७५॥ 

सद्धि च ताहिं नवजोव्वणाहिं चउहिं पि रायकुमरीहिं । उवभुंजद विसयसुहं नियपिउकमकमलसरहंसो ||७9६॥ 
तारावीढनरिंदेण अन्नया सुहमुहुत्त-नक्खत्ते । अहिसित्तो पउमुत्तरकुमरो रज्जे पहिट्टेण ॥७७॥ 

तेणावि निययभुयदंड्चंडिमाइंबरेण सुंडा वि । अक्खंडमहीमंडलनरेसरा सेवगा विहिया ॥७८॥ 

पालइ पडिहयपडिभडमयगलघडमवणिवीढमसममई । गाढाणुरत्त-सुवियड़ियाहिं पोढंगणाहिं सम॑ ॥७९॥ 
उवभुंजंतो पंचप्पयारविसए विणोयवक्खित्तो । बच्च॑ंतं पि न याणइ काल दोगुंदुगो व्व सुरो ॥८०॥ 

एत्तो य अउज्ञापुरवरीए राएण देवगुत्तेण | निसुया रूवाइगुणा पउमुत्तररायपत्तीण ॥<८१॥ 

संपेसिऊण दूयं भगाविओ सो समप्पसु करत्ते । तेणुत्तं जुत्तमिमं वोत्तं पि न उत्तमनराण ॥<२॥ 

पुण पउमुत्तरराया भणाविओ देवगुत्तनरवइ्णा । जइ न समप्पसि ता तुह होही न हु रज्जसामित्तं ॥८३॥ 

तं॑ सोउं पउमुत्तररन्ना दूओडवगन्निओ जाव । ता देवगुत्तराया कोवदवानलपलित्ततणू ॥८४॥ 
गुडियगइंदारोवियनाराइयनरवरिंदविंदेण । पकक्‍्खरियतुरयआरूढपोढफारक्कचक्केण ||८५॥ 
रहरथणचडिय-पहरणविहत्थवरसुहडचक्कवालेण । वज्जंतसमरमभेरीभंकाराऊरियनहेण ॥८६॥ 
वावल्ल-सेल्ल-मोग्गर-असि-सर-तीरी-तिसूलसत्येहिं । भीसावणेहिं कोवुब्भडेहिं पाइकचकेहिं ॥<८७॥ 

एएहिं असेसेहिं वि अणुगम्मंतो रणेकरसिएहिं । समरंगणभूमीए संपत्तो देवगुत्तनिवों ॥८८॥ 

पउमुत्तरों वि रह-गय-तुरंग-पाइक चक्कपरियरिओ । नियखंधवारसंभारभरियभूमंडलो पत्तो ॥८९॥ 

तो दोण्हं पि हु अग्गिमदलाइं जइलच्छिलालसमणाइ । उम्मुकहक-हुंकारभीमरूवाई भमिडियाइ' ॥९०॥ 
दोघइघडा सह गयघडाहिं तुरया सम॑ तुरंगेहिं। अब्भिद्टा गरुयरहा रहेहिं सुहडा पडिभडेहिं ॥९१॥ 


१. पवरविलया --रं० । 


८. जिनपूजञाफलवणनाधिकारे पच्मोशराल्यानकम्‌ १११ 


आयन्नायद्वियचावदंडउम्मुक्ककंकपत्तेहिं । संछाइयं नहयलं वासारत्ते घ्णेहिं व ॥९२॥ 

कयभिउडिभालवद्टा दगठुद्ना दो वि सुहडसंघाया । अवरोप्परं सुनिद्दुरसत्थपहारेहिं पहरंति ॥९३॥ 
निसियासिपट्पाडियसिराणि नश्वंति भडकबंधाईं । हुंकंति महीमंडलपडियाणि वि सुहडसीसाईं ॥९४॥ 

एत्थंतरम्मि भडरुंडमुंडमालाउलम्मि संगामे । अब्मिद्ठा पउमुत्तरपुहईवह-देवगुत्तनिवा ॥९५॥ 

'मेल्लंति सीहनाय॑ दोन्नि वि हक्कंति दो वि वग्गंति । उच्छलियमहामच्छरपरव्वसा दो वि पहरंति ॥९६॥ 
झस-कुंत-सत्ति-तीरी-तोमर-नारायसत्थनियरेहिं । निप्पसरं पहरंता रज्ज॑ति परोप्परं दो वि ॥९७॥ 

ता लद्धलक्खयाए दक्खेण खणंतरेण सो बद्धो । पउमुत्तरेण रज्ना रणंगणे देवगुत्तनिवों ॥९८॥ 

संगाममहीवीढे जयखंभ॑ निक्खणित्तु नरनाहो । जयजुत्तो संपत्तो बलबंतो निययआवासे ॥९९॥ 

मुको य देवगुत्तो राया काऊण तस्स सम्माणं । जाओ य साहुवाओ पउमुत्तरवरनरिंदस्स ॥१००॥ 
चउरंगबलसमेओ समागओ नियपुरिं तओ राया । परिषालह महिवलयं निम्मू लुम्मूलियारिगणं ॥१०१॥ 

कालक्कमेण जाया पुत्ता वररूवधारिणो तस्स । निश्च॑ पि बंदिविंदाण दाणरसिएक्कहिययस्स ॥१०२॥ 

अह अन्नया य अत्थाणमंडवे सुहडसंकडिल्लम्मि । पडिहारेण नरिंदो विज्नत्तो कयपणामेण ॥१०३॥ 

देविदजालिओ विज्जुमालिओ महई दंसणं तुम्ह । भणिओ तओ नरिंदेण देह जं तस्स दायव्वं ॥१०४॥ 

गंतुण दारपालेण अक्खिए इंदजालिओ भणह । न हु दविणनृणया मे पसायओ रायपायाण ॥१०५॥ 

कर्ज तु रायचरणावलोयणं कहइ सो वि त॑ रज्नो । जइ न कुणइ पेक्खणयं ता एउ परयंपिए पहुणा ॥१०६॥ 

सो आगंतुं पणमेवि रायपयपंकय' समुबविद्वो | आणंदवियसियच्छो पेच्छह लच्छि निवसहाए ॥१०७॥ 

अह गयणओ नवजोव्वणाए रमणीए संगओ खयरो । अवयरिओ अत्थाणे करालकरवालवग्गकरों ॥१०८॥ 

दिल्ोे य तओ अब्भुट्टिओ य राएण सविणय' एसो । सो वि नरिंदं नर्मिंउं पयंपिउं एवमाढत्तो ॥१०९॥ 

महया पओयणेणं देव ! अहं तुह सयासमज्लीणो । भणिओ रज्ना जं किर मए वि सिज्भह तय कहसु ॥११०॥ 
तेणुत्तमहं दुव्वारवहरिणा पाविओ पहु | इयार्णि। तं तु सुओ परनारीसहोयरो सब्वया वि मए ॥१११॥ 

ता देव | इमा दया अब्भहिया मज्झ जीवियस्साबि । रक्‍्खेयव्वा नासो व्व जाव सत्तं, विणासेमि ॥११२॥ 

त॑ सो नरनाहो जंपह किर केत्तिय' इमं कज्जं ? | सो भणइ तुह न कि पि हु मह पुण सव्वस्समवि एसा ॥११३॥ 
तुज्ञञपयावेण अहं निज्िणिउं सत्तुमागमिस्सामि | इय भणिय समुप्पहओ फलिणीदलूसामलं गयणं ॥११४॥ 

तब्भज्जा पुण उन्नमियवयणकमला पलोयए गयणं । खणमेत्तेण तओ सा करुणसरं रोइउं रूम्गा ॥११५॥ 

तो पुच्छिया नरिंदेण रुयसि कि भइणि ? सा वि पडिभणिया । संजाओ मेलावो पयट्टमाओहणं दोण्हं ॥११६॥ 

तो भणिय' भूवइणा करेमि कि भूमिगोयरो अहय १ । इय एवं पयंपंताण ताण गयणंगणग्गाओ ॥११७॥ 
रुहिरच्छडाकराला परिमलरुणुझुणिरममिरभमरउला । मंदारकुसुमकयमुंडमालिया निवडिया पुरओ ॥११८॥ 

द्दुण तय' कंकेल्लिपल्लवारुणकरेण गिण्हेड' | तप्पणइणीए वच्छत्थलम्मि निहिया रुयंतीए ॥११९॥ 

हा हिययदइय ! हा मज्य दइय ! हा अमयमहय ! मणरुइय ! हा वल्लह ! तुज्ञ न सुंदरं ति मणसा विचितेमि॥१२०॥ 
हा ! मंद्भाइणीए अहिय' दोलायमाणहिययाए । रे दिव्व ! त॑ ममोवरि केरिसओ ? त॑ न याणामि ॥१२१॥ 

मा भइणि ! भाहि सुहडाण हुंति एवंविहाणि समरम्मि | मा होसु कायरा एस एड तुह अक्खओ भत्ता ॥१२२॥ 
कहकह वि हु भूवइणा एवं मंभीसिया ठिया जाव । वच्छयलनिहियसिरमुंडमालिया तरल्तरनयणा ॥१२३॥ 

ताव सहस त्ति गयणाओ निवडिया तस्स विग्गहावयवा । कर-चरणमाइणो कलस-कमल-कुलिसंकियपसत्था ॥१२४॥ 
तो दिद्वप्चया सा सुदुक्खिया पुण वि पलविउ' छूम्गा | हा भाय ! भाय ! संपइ कहसु तुम कत्थ वच्चामि १ ॥१२५॥ 
सो हु दुरंतो दुजओं रणंगणे मज्झ भत्तुणो सत्त । तो तेण पावमइणा विरूवमेयारिस विहियं ॥१२६॥ 


के अलनन डक, 





१. मिल्लंति सिंहनायं --रं० । २, त्तरनरवरिंदस्स --रं० | 


११२ 


आश्यानकमणिकोशे 


हा सुहयसार ! हा कितितार ! हा रूवमार ! दुहवार ! । दे ! देखु दंसणं दहय | दीणवयणाए मह इण्डि १२७॥ 
हा पणइपत्थ | हा वियडवच्छ ! हा सरसपंकयदलूच्छ ! | हा करणदच्छ ! हा हिययसच्छ ! तं॑ कत्थ ददट्वव्वो ? ॥१२८॥ 
इय वच्छयलनिवेसियकर-चरणाए दढ़ं रुयंतीए | निवपज्जंतो लोगो रुयाविओो तीए भणियं च ॥१२९॥ 

संपद सिणिद्धबंधव ! कज्जं कुण देहि मज्झ क॒ट्ठाईं । जह झत्ति अमरलोए गंतुण मिलेमि द,यस्स ॥१३०॥ 
तेणावि भणियमेयं जुत्तं सुकुलीणवीरघधरिणीण । तो तीए कए रज्ञा कारविया सुरहिकट्ठचिया ॥१३१॥ 

घेत्तण मुंडमालं सह कर-चरणाइएहिं नियपइणो । विज्ञाहरस्स भज्जा सज्जा पज्ञालियचियरिं ॥१३२॥ 

काउ' नियउच्छंगे अंगावयवे पियस्स उबविट्ठा । सलहिज्जंती निस्सेसरायपञत्॑तलोएण ॥१३३॥ 

तो पवणवसबवियंभियकरालपज्जलियजलणजालाहिं । विज्ञाहरभज्जा झत्ति भासरासीकया तत्थ ॥१३४॥ 

तो पउमुत्तरराया जलंजली जाव वियरए तोए । तो रुहिरारुणगत्तो पत्तो विज्ञाहरो सहसा ॥१३५॥ 

भणियं च तेण वियसंतवयणकमलेण जयड नरनाहो । जस्स पभावेण मए निज्निणिओ दुजयपडिवक्खो ॥१३६॥ 
जइ मउझ हिययदइयं दइयं न हु तं॑ नरिंद ! रबखंतो । ता किह पडिभयमहय' हढेण एवं विणासंतो ? ॥१३७॥ 
इय एवमुल्लवंतस्स तस्स वज्जप्पहारपहउ व्व । पउमुत्तरनरनाही अहिय' चिताउरों जाओ ॥१३८॥ 

एएण महासत्तेण5विस्ससंतेण कस्स वि परस्स । मह अप्पिया नियपिया मए वि एयारिसं विहिय ॥१३९॥ 
भज्जाविणोसभीएण अप्पिया न हु अणेण अवरस्स । सो पुण सिम्धयरं चिय मए कओ पावकम्मेण ॥१४०॥ 
विस्सासघायओ हं जाओ खयरीविणासकरणेण । अहवा अवियारियकज्जकारिणो केत्तिय एय' १ ॥१४१॥ 
सत्थत्थपंडियस्स वि मज्ञझेणा55वडइ कि पि तं कज्जं | ज॑ न जणइ चित्तमुहं घेप्पंतं नेय मुच्चंत ॥१४२॥ 
अपरिक्खियकयकज्ज सिद्ध पि न सज्जणा पसंसंति । सुपरिक्खियं पुणो विहडिय' पि न जणेइ वयणिज्जं ॥१४३॥ 
मडिमिंडलम्मि अजसो भमिहि काही न कोइ विस्सासं | कस्स वि अवरस्स जए मज्झ वि एवं कुणंतस्स ॥१४४॥ 
अबरं च वीररमणीण जुत्तमेय' मए भणंतेण । उच्छाहिऊण विहिय' थीवज्ञालक्खणं पाव॑ ॥१४५॥ 

पुच्छंतस्स नियपिय' उत्तरमेयस्स कि पयच्छिस्सं ? | विवरं जद देइ मही ता हं पविसामि पायालं ॥१४६॥ 

दट्टू ( विलकखवयणं निवईं तेणिदियालियनरेण । वाएउ' हुरुदुविखयमेय' पढिय' पहिट्टेण ।१४७॥ 

पणमह चलणे इंदस्स इंदजालम्मि लद्धलवखस्स | तह अद्गसंवरे संवरस्स सुपइट्टियजसस्स ॥१४८॥ 

त॑ सोउ पउमुत्तरराया जा नियइ ता न तत्थ चिया | न हु खयरो तो नाय' विलसियमिणमिंदियालकय ॥१४९॥ 
दावेह दविणलवखं तो सायरमिंदियालियनरस्स । राया रंजियहियओ चरिएणं तस्स गुणनिहिणो ॥१४५०॥ 
वेरगगभावियप्पा पुहइवई पेच्छिउ' तमच्छरिय । अंतोरमंतसंवेगभाविओ चिंतिउ' रूग्यगो ॥१५१॥ 

खणदिट्ठनट्टरूवं जहा इमं इंदियालमह जाय | संसारविलसिय पि हु तह अथिरं पेच्छ सब्बं॑ पि ॥१५२॥ 
विलसंतवारविल्यालोयणभमणं व चंचल पेम्म | अनिलंदोलियलवलीदलोवमं तारतारुण्णं ||१४५३॥ 
पवणुल्लाल्यिरंगिरतरंगमालाचलाचलं जोीय । अथिरसरूवं वित्त चित्त व सरायजीवाणं ||१५४॥ 

एवं विचितयंतो विज्नत्तो सो वरोहिएण इम॑ । दुक्‍्खंतरिसी अज्जं समोसढो देव | चउनाणी ॥१५५॥ 

त॑ सोउ' नरनाहो सपरियणो सावरोहणो चलिओ । आरुहिय मत्तहत्थि संपत्तो सूरिसन्नेज्से ॥१५६॥ 

गुरुणीो चरणे नमिऊण धरणिवीढम्मि तयणु उबविट्टों | धम्मकहापज्जन्ते सप्पणय' पुच्छए एवं ॥१५७॥ 

भयवं ! पुव्विल्लमवे मए कयं कि ? जमेरिसा रिद्धी । पुरओ वा कि भविही १ इय भमणिए पमणइ मु्णिदों ॥१५८॥ 
पुव्विल्लमवे पएमेण पूहओ आसि जिणवरो तुमण । तेण सुर्िंद्समाणा रिद्धी एयारिसा तुज् ॥१५९॥ 

जाईसरणेण तओ पुव्वभवों जाणिओ नरिंदेण | भाविभवा वि हु कहिउ पारद्धा मुणिवर्रिदेण ॥१६०॥ 

सद्धि चउहिं पि पियार्हिं तुज्ञ होही नरिंद ! सुरलोगो । सत्तमजम्मम्मि पुणो परमपय त॑ पि पाविहिसि ॥१६१॥ 
त॑ सुणिऊण नरिंदों हरिसवसुद्धुसियरोमरेहिल्लो । काऊण गंठिमेय' पावइ सम्मत्तवरर्यणं ॥१६२॥ 


£. जिनवंदनफलाधिकारे बकुला ख्यानकम्‌ श्श््े 


अंतेउरेण सद्धि पणमिय पयपंकय' मुणिदस्स । हरिसाऊरियहियओ संपत्तो निययपासायं ॥१६३॥ 
एवं विसुद्धहियओ सुदरं परिपालिऊण सम्मत्त | मुणिमणियविहाणेणं पिद्धों सो सत्तमभवम्मि ||१६४॥ 
॥ प्मोशराख्यानकं समाप्तम्‌ ॥३०॥ 
इदानीं दुर्गनार्याख्यानकमारभ्यते | तश्चेद्म-- 
का्यंदिपुरोए नरिंद-चंद-नागिंदनमिय[कम]कमलोी । समवसरिओ जिणिंदो तत्तो तन्नयरनरनाहो ॥१॥ 
सिंगारियपउ रपयापरियरिओ सिंधुरं समारूढो । तित्थयरवंदणत्थं नीहरिओ गरुयभत्तीए ॥२॥। 
दिट्ठो दुग्गाथेरीए नीर-इंघणकण भमंतीए । तो तीए कोइ पुदट्ठी सपरियणों जाइ कत्थ निवो १ ॥३॥ 
तेणुत्तं तित्थयरस्स दुसहदारिदृदुकखदलणस्स | अभिवंदर्णात्थ|मिय' निसामिउः चितए थेरी ॥४॥ 
सकयत्थो एस जणो जो नियसत्तीए पूयइ जिरणिंदं | अहयं तु अकयसुकया धणरहिया किह तमच्चेमि ? ॥५॥ 
एवं विचितिऊरणं उम्मीलियर्सिदुवारकुसुमाणि । घेत्तृण मुहालत्माणि रत्मज्ञाओ सा चलिया ॥६॥ 
समवसरणम्मि चलिया हिययब्मंतरभवंतभत्तीए | "**२००००९००००१*०*००००****०००*५०***** णा ॥७॥ 
सकयत्था हं जिणनाहचरणतामरसमचहस्पामि । एरिससुहपरिणामाए तीए अद्ध तराले वि ॥८॥ 
जाय॑ पज्जवसाणं अइवुड्त्तेण जीवियव्वस्स । विप्फुरियपहापडलो सुरकोए सुरवरो जाओ ॥९॥ 
महिमंडलम्मि पडियं तीए सरीरं पुरीजणो दट्टं । कि मुच्छिया मया वा एसा ? करुणाए सवियक्को ॥१०॥ 
नी रच्छडार्हि सिंचह कड्ढृइ हियय॑ मुहे जरं खिवइ । वत्थंचलेण वोयइ तह वि न जंपइ न संचलइ ॥११॥ 
तो गंतुं जिणइंद पणमिय पुच्छइ निबद्धकरकमलो । कि मुच्छिया ? अह मया दुग्गा ? तो भयवया भणियं ॥ 
मज्झ परिपूयणत्थं आगच्छंतीए आउयखएण । पूयापरिणामेण वि इमीए अमरत्तणं पत्तं ॥१३॥ 
एत्थंतरे स देवो नियचरियं ओहिणा वियाणेउं । विप्फुरियरयणकुंडलकिरणकरं बियकवोलजुओ ॥१४॥ 
जा वंदिडं पवत्तो जणस्स ता दंसिओ जिणवरेण । भो ! पेच्छह पदच्चक्खं एसो सो थेरिजीवसुरों ॥१५॥ 
तत्तो जणेण भणियं अहो ! पभावों जिणस्स पूयाए। जीए परिणामेण वि पाविज्जइ एरिसा रिद्धी ॥१६॥ 
॥ दुगनार्याख्यानकं समाप्तम ॥३१॥ 
जह एएसि जाया जिणपूया सोक्रखसंपयाहेऊ | तह अन्नस्स वि जायइ ता जइयव्बं इमीए सया ॥१॥ 
सौरभ्यभाजिकुसुमादिपदा थंसार्थं: सिद्धान्तसिद्धविधिनोभयथाउपि शुद्धा: । 
श्रीमज्िनं जितमशेषविकारजात॑ श्रेयस्करं सुकृतिनः परिपूजयन्ति ॥१॥ 
॥ इति श्रीमदाप्नदेवसूरिविरचितवृत्तावाल्यानकमणिकोशे जिनपूजाफलोपवर्ण नो नामाष्टमोउघिकारः समाप्तः ॥८॥ 
मर 4 ८५00 


[ ९. जिनवन्दनफलाधिकारः ] 

व्याख्यातो जिनपूजाफलाधिकार: । साम्प्रतं जिनबिम्बं पूजितं विधिना वन्दनीयमिति अतो जिनबिम्बवन्दनफलं व्याचिख्या- 
सुराह-- 
का तित्थयरवंदणेणं पाविजड संपया सुराईणं। 

जह पत्ता बउलेणं तह सेदुय-नंदजीवेहिं ॥१४॥ 

व्याख्या--'तीथंकरवन्दनेन' सर्वेज्ञप्रणामादिना “पाविज्जइ” प्राप्यते आसाद्ते 'सम्पद” लक्ष्मी: 'सुरादीनां' गीर्वाणप्रभती- 
नाम्‌। दृष्टान्तानाह--'यथा” येन प्रकारेण '्राप्ता! रूब्धा 'बकुलेन' मालाकारेण तथा” तेनेव प्रकारेण 'सेदुब-नन्दजीवा'भ्यां! 
सेदुबकश्च ब्राप्मणो नन्दश्व श्रेष्ठी तज्जीवाभ्याम्‌ इत्यक्षरा्थं: ॥१४॥ भावाथस्तवाख्यानकेभ्यो5वसेय: । तानि चामूनि | 
१. ०म [--]स्वि० प्रतो। 


१५ 


११७ आश्यानकर्मांणकोशे 


तत्न तायद्‌ बकुलाख्यानकमारभ्यते । तच्चेद्मू-- 
कंचणधर इव सगुणं कंचणसोहं सिरीए वहमाणं । कंचणसमिद्धपउरं कंचणपुरमंत्थि रमणीयं ॥१॥ 
तत्थ य मालायारो बउलो नामेण सुइसमायारो । भज्जा य पउमिणी पउमिणि व्य गुणरायहंसाणं ॥२॥ 
तत्थ य सियधयमालं सिरिसंठियकणयक्रल्ससोहिल्ं | तडिलय-बलायमालासंगयसरयब्भमखंडं व ॥३॥ 
सिरिरिसहेसरभवर्ण हिमगिरिसरिसं समग्गगुणकलियं | गब्भहररहियसिरिरिसहर्बिबरेहं तगब्भहरं ॥9॥ 
तम्मि य वसंतसमए विसेसपरमूसवों समारद्धो | सावयजणेण जिणपुंगवस्स गुरुईए रिद्धीए ॥५॥ 

तथा हि-- 


विरइयवंदणमालं लूलामउल्लोलयं विहारलूयं । विल्संतफुल्लहरयं विचित्तविच्छित्तिवलिस्यणं ॥॥६॥ 
चित्तियभित्तिविभायं पवित्तपडमंडवावरियगयणं । वेसुत्जलसिंगारियसावय-सावियजणाइन्न ॥७॥ 

तत्थ य मालायारा समागया पुप्फविकिणणकज्जे । सत्वे वि नयरवासी विसेसअत्थागमनिमि त्तं ॥८॥ 

बउलो वि तेहिं समयं समागओ पुष्फपेच्छियाहत्थो । गरुययरपुप्फाच्छयवावडपियप उमिणिस णाहो ॥९॥ 
विक्किणिय पुप्फनिवहा मणोरहाईयलामपरितुद्ठा । सब्वे वि गया थक्को बडछो नियपणइणीसहिओ ॥१०॥ 
सुहकम्मोद्यवसओ चितियमिमिणा जिणाययणमज्झे । एत्तियपुप्फेहिमहो ! कि विहियमिपेहिं वगिएहिं ? ॥११॥ 
कोउयबसओ जा जिणहरस्स मज्ञझम्मि पविसइ सभज्जों । ता पेच्छइ सब्व॑ जिणवरस्स सोहासमुदयं सो ॥१२॥ 
जिणमंडवमज्ञगओ सब्वालंकारभूसियसरीरं । पेच्छह जिणवररिंबं हरिसाऊरिज्जमाणमणो ॥१३॥ 

चिंतेइ पुन्ननंता एए खलु सावया वइय अत्थं । जे पूयंति जिणिंदं करंति एयारिस जत॑ ॥ १ ४॥ 
अंगीकणहजम्मा अत्थोवज्ञणमणा वयमहन्ना । घरवासमोहियमणा जे परलोयं न चितेमो ॥१५॥ 
उत्बरियपाडछामालियाएु एयाए ताव पूएमि । अहमबि जिणमिय चिंतिय निययपियं पठमिणिं भणइ ॥१६॥ 
पूृएमि जिणवरं भणसि जह तुम तीए जंपियं सामि ! | पूयस्ु संगयमेयं मणोरही मज्म पुण बहुओ ॥१७॥ 

जइ एवं तो कुणिमो वयमंग[ल]|लक्खओ जियमिमस्स । तीए भणियं पिययम ! सइत्तिया जइ इमं कुणसि ॥१८॥ 
कइवयदिणेहिं विहिया उज्जमणे बलिविहाणमायरिउं । तिछओ निवेसिओ पउमिणीए रिसहस्स भालयले |॥१९॥ 
तत्तो य पहरिसुब्भिज्ञमाणरोमंचकंचुइयतणुणा । बउलेणं सकलत्तेण वंदिओ रिसहजिणइंदो ॥२०॥ 
आउक्खयम्मि गयउरपुरम्मि सिरिकमलसेणनरबइणो । देवीए रयणमालाए सूइओ सुहयसुमिणेणं ॥२१॥ 

सो बउलमालिओ पूयपुव्बजिणवंदणाणुभावेणं । जाओ पुत्तो कयरयणचूडनामो गुणवसड्ो ॥२२॥ 

जह गहियकलाविज्जो अवहरिओ हृत्थिणा अरन्नमि । जह कयसुरसन्निज्ञो सुहाइ' पत्तो सुपुन्नेण ॥२३॥ 

जह तिलयसुंद्रीपमुहपणइणीसंगओ सुहाभागी । संजाओ तह नेयं सब्ब॑ पि हु रयणचूडाओ ॥२४॥ 


॥ बकुलाख्या नक॑ समाप्तम ॥३२॥। 


इदानीं सेदुबकाख्यानकमारभ्यते । तश्चे दमू-- 
मगहाजणवयउत्तंससन्निभ॑ अत्यि बहुजणाइन्नं | सिरिरायगिहं नयरं अणुरायगिहं व रूच्छीए ॥।१॥ 
तत्थ5त्थि पत्थिवो परमसब्वसत्थत्थवित्थरियबुद्धीए । अस्संखसंखउक्खायखगगपडिवत्खखयद क्खो ॥२॥ 
विक्खायजसो दक्खिन्न-दाणगुणरयणभूसियसरीरों । लायज्नपरमसिंघू सुपसिद्धो सेणिओ नाम ॥३॥ 
उवसं तडमर-डिंबाडंबररज्ज॑ परक्रमगुणेहिं । अइकमह पालयंतस्स तस्स कालो कलछावइणो ॥४॥ 
अह अन्नया कयाई अत्थाणे सुहडकोडिसंकिन्ने । उज्जाणपालएणं विज्नत्तो नमिय पयकमलं ॥॥५॥ 
अक्खलियविमलकेवलविसारिकरनियरगुरुपयासेण । निहयतमतिमिरनियरों तिमिरहरो इव महावीरों ॥६॥ 


१. ०पुरमित्थ -२ं० । २. ०पत्थिया० -र२ं० । 


तथा हिं--- 


६. जिनवन्द्नफलाधिकारे सेदुयकाल्यानकम ११५ 


भुवणत्तयसिरिधरिओ गुणसिलए चेइए समवसरिओ | मुणिजणमणसुमणोहरनलिणीवणवड्ियाणंदो ॥७॥ 
तव्बयणसवणओ वंदणेण तव्वयणदंसणेण पहू !। पणमियजिणपयकमलो सहलत्तणमत्तणों कुणउ ॥८॥ 

त॑ वयणं अमरसोहसबन्निमं निसमिऊण नरनाहो । हरिसभरनिव्भरंचियसव्वंगो उद्ठटिओ सहसा ॥९॥ 

दाऊण पीहदाणं अद्धभत्तेस य तो सहस्साइ' । अहृगरुयविभूईए नीहरिओ वंदणनिमित्तं ॥१०॥ 
संचल्लियगुरुबलभरसंभारनमंतफणिवइ्फणोहो । वरतुरयसमारूढो संचलिओ सेणियनरिंदों ॥११॥ 

उबरोहेणं चलिया केइ कुझऊहलियमाणसा अन्ने । भत्तिभरेणं अबरे रायाणो तेण सह बहवे ॥१२॥ 
उवरिधरियायवत्तो निवारियासेसरायगुणवत्तो । रमणीयणनयणंजलिसिदण्हपिज्जंतलायन्नो ॥१३॥ 

संपत्तो य कमेणं नरनाहों समवसरणभूमीए | कणयज्ञझय-वंदणमालसंकुले तहयसालम्मि ॥१४॥ 

परिहरिय तुरय-चामर-सियछत्त-कराल्खग्गनिवचिंधो । तयणु पयट्टो गंतुं सपरियणों पायचारेण ॥१५॥ 
सिरिवीरचरणकमलं दुह्दलणं सयलसुब्खसंकलणं | निहिकंखिणा निहाणं व तेण लद्ध[ सउन्नेण ॥१६॥ 
हरिसभरनीरपरिपूरपू रियासेसरोमवणराई । भालयलनिहियकरकमल्संपुडो पणमिउं थुणइ ॥१७॥ 

जय जय गरुयपरक्षम ! जय जय असमाणसत्तसंपन्न ! | जय जय तवसिरिसोहिय ! जय जय जिणवर ! महावीर! ॥१८॥ 
बालत्तणम्मि लीलाए चालिय॑ जेण मरुचूलग्गं | चलणग्गेण महाबल ! तेण फुड त॑ महावीरों ॥१९॥ 
कडपूयणिपमुहं काल्चक्कजणियं च कन्नकीलकयं । उवसग्गं ज॑ न गणसि तेण फुड त॑ महावीरों ॥२०॥ 
तुच्छत्ततेण तणमिव संगमयसुरंगणाओ गणियाओ । गुणनिहि ! तुमए जेणं तेण फुड त॑ महावीरों ॥२१॥ 
संगमयामरजणिया अवगणिया जेण विविहडबसग्गा । अन्ने वि य नाह ! तए तेण फुडं त॑ महावीरों ॥२२॥ 
एवंविहमुवसग्गं गोसाल्यपमुहपच्चणीएहिं | जं सम्मं सहसि कय॑ तेण फुडं त॑ महावीरों ॥२३॥ 
अणहअणारियदेसे अणज्जजणजणियदेहसंतावे । भयरहिओ जं विहरसि तेण फुड त॑ महावीरों ॥२४॥ 

इय धीरत्तणकुल्हर ! भवारिभीयाण भव्वसत्ताणं | भयभेरवभवहरणं विहेसु विरियं महावीर ! ॥२५॥ 

इय थुणिउण जिर्णिंदं तिपयाहिणपुव्वयं पुहइपालो । आबद्धपंजलिट्डो उबविट्टों उचियदेसम्मि ॥२६॥ 
गंभीरिमगुणनिज्वियमंद्रमंथिज्वमाणजलहिरवो । भयवं पि भुवणहियओ धम्मकहं कहिउमादत्तो ॥२७।! 
जह जीवा बज्झंती मुच्चंती जह व संकिलिस्सिति । अट्डवसट्टोवगया संसारं परियर्डति जहा ॥।२८॥ 
एत्थंतरम्मि एगो गलंतकोढो निरागिई पुरिसो । मयवंतपायमूले पणामपुव्व॑ समज्लीणो ॥२९॥ 

दत्थ ठिओ परिसिच॒इ पयकमलं भगवओ विगयसंको । ससरीराओ घेत्तण कोढदुग्गंधखयरसियं ॥३०॥ 
अमणुन्नमुत्तिरूवं त॑ं पासित्ता पसेणदतणओ । गुरुकोवानिल्तरलियअहरदलो चिंतए एवं ॥३१॥ 
भुवणत्तयभत्तिवसुल्लसंतजणनिवहनमियपयकमल । अभिभवहइ भुवणसामि कहमेसो दूरगयलज्ओो ? ॥३२॥ 
एय॑ं न जुत्तिजुत्तं जं गुरुपरिभावुयं उविकखेउं | इयरनराण वि मह उण विसेसओ सत्तिमंतस्स ॥३३॥ 

सह सामत्थे गुरुणो जे परिभवकारयं उविवखंति | नियजणणिकिलेसकराण को गुणों ताण जायाणं ? ॥३४॥ 
ता कि एयस्स तणू तणूणि खंडाईं कप्परेजझण | अविणयनिहिणो पावस्स दसदिसिं देमि भूयबलि ॥३५॥ 
कि वा एयस्स दुरासयस्स सयमेव मंडलमग्गेण । तालहलं पिव पाडेमि खंधमूलाओ सिरकमलं १ ॥३६॥ 
किंतु न जुत्त एयं जिणवरपुरओ विरोहकरणं मे । जमिह परोप्परमच्छरगया वि जीवा उवसमंति ॥३७॥ 


जत्थ नयाखंडलूमउलिमंडलो महियलं समल्लियह । भयवं भवंतभयभमिरभवियनित्थारणसमत्थो ॥३८॥ 
तत्थुवसमंति वइराणन्नोन्नविरोहिसव्वजीवाणं । पुव्विकयाणि वि भावाण संभवो भवई न कया वि ॥३९॥ 


तम्हा चिट्ठ3 एसो दुद्ठो निकिट्ठकुद्टअभिभूओ । एत्थ ट्वाणम्मि तहा कुणउ जहिच्छ॑ वि चिट्ठाओ ॥४०॥ 


१,तकुट्दो निया -२ं० ॥ 


११६ आखश्यानकमणिकोशे 


जइ पुण एसो होही विणिग्गनो समवसरणबाहिं ति। ता नुणमविणयफलं दायव्बं मे सय॑ चेव ॥४१॥ 
समयंतरम्मि छीए मुणिवहणा मरसु सो नरो भणइ । नरवइ्णा पुण छीए जीवसु सुचिरं तुम देव ! ॥०२॥ 
अभएणं पुण छीए जंपइ सो मरसु त॑ सि जीवसु वा | मा जीवसु मा मरसु व केयछिक्के काल्सूयरिए ॥9३॥ 

त॑ वयणं सोऊणं जिणिंद ! मा जीवसु त्ति खर-फरुसं । घयसित्तजलणपुंजो व्व नरवई कोवपज्जलिओ ॥४४॥ 
तस्सुवरिअक्खिसंको यसन्निया अंगरक्ख नियपुरिसा । जइ एस कह वि कुट्ठी उद्ग३ तत्तो गहेयव्वो ॥४५॥ 
धम्मकहापज्जंते पणमित्ता मुणिवरिंदपयकमलं । सो निस्सारसरीरो निस्सरिओ ताण पच्चकखं |।४६॥ 

ते वि हु तमणु विलूग्गा विणिग्गया तस्स धरिसणनिमित्त । अवलोइऊण ते गहणमुज्जए सो वि कि कुणइ १ ॥४७॥ 
अंगीकयफारफुरंतजच्चनतवणीयभासु रसरीरो । वरमउड-कुंडलधरो उप्पहओ गयणमग्गेण ॥३८॥। 

वलिया विलक्खचित्ता चित्ताउहकलियकरयला सुहडा । संपत्ता विम्हयसहियमाणसा रायपासम्मि ॥४९॥ 
अग्गेसरेण तेसिं कहियं सो झत्ति निययतेएण । तिरियंतो देवपहं, देवपहं देव ! उप्पहओ ॥५०॥ 

अहह अहो ! अच्छरियं पेच्छह भणिऊण चितए राया । ता कि असुरो एसो ? विज्ञासिद्धों ? सुरो कि वा ? ॥५१॥ 
कि में संसयकरणेण ? संसयं जयगुरुं पपुच्छेमि | हत्थत्थकंकणाणं कि कज्जं दष्पणेणड्हवा १ ॥५२॥ 

भणइ निवो जयसामिय ! को एस नरो ? किमेत्थ संपत्तो ? | कि वा एयस्स तणू अभिभूया कोढरूवेण १ ॥५३॥ 
सोहम्मसुरो एसो भणइ जिणो जंपई निवो नाह ! । देवत्तं जह पत्तं इमिणा त॑ सामि ! साहेसु ॥५9॥ 

आयन्नसु भणइ जिणो अत्थि इहं सुरघरेहिं संकिन्ना । वच्छाजणवयमज्झे कोसंबी नाम नयरि त्ति ॥५५॥ 
असरिसफुरंतविक्षमअस्संखअणीयकलियरज्जो वि | नरनाहसयाणीओ तत्थ5त्थि समग्गगुणनिलओ ॥५६॥ 

ताए पुरीए निवसइ दारिदसहोयरों दिओ एक्ो | विज्ञाण-नाण-गुणरयणवज्जिओ सेदुओ नाम ॥५७॥ 
समरूव-गुणा तस्सडत्थि गेहिणी बंभगी विणयकलिया । अणुसरिसो संजोगो सच्चविओ जीए भवणम्मि ॥५८॥ 
तीए सम॑ विसयसुहं अणुभुंज़ंतस्स जंति दियहाइ । तस्स पुरिमज्ञकणभिक्खवित्तिकरणेक्कचित्तस्स ॥५९॥ 

अह अन्नया कयाई वेलामासे पवड्माणम्मि | भणिओ य बंभणो बंभणीए हक्कारिउं एवं ॥६०॥ 

मम गब्भप्सवसमए पओयणं घय-गुडेण भावि त्ति। ता एयं कत्तोशच्चिय ठाणाओ आणसु तमिन्हि ॥६१॥ 

अह भणहइ दिओ मम मंदिरम्मि वित्त वराडयामेत्त | अबि नत्यि कहं होही तयभावे वंछिओ अत्थो १ ॥६२॥ 
इय चिंता[भर]|धणपवणपूरपेरिज्जमाणमणरुक्खो । भणिओ कंताए पसन्नकंतवयणाए सो एवं ॥६३॥ 

गंतृण महारायं सपसायं कुणसु जेण सेवाए । काही तुट्टो दारिदकंदरुक्खक्खयं खिप्पं ॥६४॥ 

जंपइ विप्पो नरवइसेवाए मज्झ कोसलं नत्यि | साहसु तुम॑ पि सुंदरि ! जं कायव्बं मए एत्तो ॥६५॥ 

तो बंभगी भणीओ घेत्तु कुसुमाणि मलयमज्ञाओ । गंतृण सीहवारं नरवइणो त॑ समच्ेसु ॥६६॥ 

अणुदियहं तुह भत्ति दट्ठ्रण सुनिश्चलं नरवरिंदों | करुणामयमयरहरो पूरिस्सइ वंछियं अत्यं ॥६७॥ 

नवरं जया नरिंदों भगह जहा भद्द ! त॑ वरं वरसु । पुच्छित्तु मं महायस ! मग्गेयव्वों बरों तश्या ॥६८॥ 

एवं ति मन्निऊणं पभायसमयम्मि गोहलीपुव्ब॑ | कुसुमेहि सीहवारं पहद््‌यहं पूयण सो उ ॥६९॥ 

खीणम्मि लाभविम्षे दट्‌ट्रणं तस्स निश्चर् भत्ति। हक्कारिउमाह निवो मम्गसु त॑ देमि तुट्ठटो हैं ॥७०॥ 

कि देसो तुह दिज्वउ ? अन्न वा हिययवंछियं भद्द ! । सो भणइ भष्टिणी पुच्छिकण नरनाह ! मग्गिस्सं ॥७१॥ 
गंतुण बंभणीए निवेइयं अज्ज मह निवो तुट्ठीो । तो कहसु तुम ज॑ किंचि पत्थिवं तत्थ पत्थेमि ॥७२॥ 

तो बंभगीए भणिओ भोयणमग्गासणम्मि मम्गेसु | दीणारदक्खिणा विय कन्नुस्सारं च पहविदर्स ॥७३॥ 
गंतृणअगासण-भोयणाइ जं मग्गिओ निवो तेण | मग्गियमइथोवं भद्द कि तए ? प॒णिओ अहवा ॥७४॥ 

जो जत्तियस्स अत्थस्स भायणं सो हु तत्तियं लह॒इ । इय चिंतिऊण रज्ना पडिवन्नं तस्स तं चेव ॥७५॥ 


कीनन-मननऊ-+ नी क भनी लीक कनमीनन-म. >लनलिनीणणध पा न नतनन+ 


१, कयछीए -रं० । २, श्राइन्नसु -रं० । 


ज-००»न्‍०»गाक/कक+कान-+मकक न... ल्‍तनकन बीकम जे 


£, जिनवम्द्नफलाधिकारे सेद्वयकाण्यानकम ११७ 


त॑ कुब्बंतं दृट्टं/ नरनाहडब्भासवत्तिणो अन्ने । चिंतंति कुणइ देवों महापसायं दियस्स जओ ॥७६॥ 

तो अम्हेवि य एयं भोयण-सयणा-55सणेिं पूएमो । पासट्विएहिं रज्नो पओयणं जायए जेण ॥७७॥ 

इय चिंतिऊण ते वि हु नियगेद्दे भोयणं निमंतेउं । दीणार-वत्थजुयरं च दक्खिणाए पयच्छंति ॥७८॥ 

सो तारिसलाभाओ संजाओ रिद्धिसंजुओ अइरा । पुत्ताइसंतदए वि किमवि विद्धि समणुपत्तो ॥७९॥ 

एवं दक्खिणलोभा गिहदे गिह्े उब्बमित्तु भुंजंतो | कोढेण समभिमूओ तिव्वेणमजिण्णसब्भावा ॥८०॥ 

पुव्व॑ं व तह वि रज्लो भोयणमग्गासणे ठिओ कुणह । परिसडियंगुलि-नासाविव रो निस्संकिओ संतो ॥८१॥ 
दटट्रण तारिसं त॑ भयाउ मंती्िं पमणिओ राया । एसो हु महारोगो बाढं संचरणसीलो त्ति ॥८२॥ 

तो वारिज्जउ एसो भोयणमग्गासणम्मि कुत्बंतो । एयट्टाणे पुत्ताण को वि द्राविज्जए जोग्गो ॥८३॥ 

पडिवन्ने रत्ना एवमत्थु भणिओ स मंतिबग्गेण । पुत्तेण तुज्म निवमंदिरम्मि भोक्तव्वमेत्ताहे ||८४॥ 

तेणावि निययपुत्तो पट्टविओ भोयणाइकज्जम्मि । चिट्ठइ उव्विग्गमणो रोगक्कंतो सय॑ं तु गिहे ॥८५॥ 

बढ्'ढंते पुण रोगे लज्जंतेहिं सु्दि तस्स वह । काराविडं कुडीरं सुन्हाओ तं॑ च दटटणं ॥८६॥ 

थुक्कति भणंतस्स वि न चेव वयणं कुणंति गासं पि। दूरद्वियडुंबस्स व छाइयनासा पयच्छंति ॥८७॥ 
चिंतइ सो नियचित्ते मज्ञ पसाणण एरिसा रिद्धी । संपत्ता जेहि पुणो वि चिट्ठिय॑ तेसिमेरिसियं ॥८८॥ 
पेच्छ अहो ! निल्लज्ञा पुत्ता मामवि परिब्भवंति सया | ता नुणमविगयफलं सिरम्मि पाडेमि एयाणं ॥८९॥ 
इय चिंतिऊण भणिया निव्विन्नो जीवियस्स हं पुत्ता ! | काऊण कुलायारं वंछामि सजीवियं मोत्तु. ॥९०॥॥ 
त॑ सोउं जइ जीय॑ छद्बुइ सिग्धं तओ भवे लट्ट | इय हिद्ठमणा पमर्णिति ताय ! जं भणप्ति त॑ं करिमो ॥९१॥ 
जंपह पुत्ता |! गोत्ते अम्ह कमो एरिसो सबंधुणं । ज॑ मंतहुणियछागो दायव्वो मरणकामेहिं ॥९२॥। 

तो आणित्तु समप्पह पसुमेगं मज्झ सुंदरावयवं । जेण5प्पणो हियत्थं करेमि वियरिय सबंधर्ण ॥९३॥ 

आणित्तु तेहिं बद्धो तस्स कुडीरम्मि छगलगो बलवं | विप्पो वि सरीरम्ं उत्बद्धिय भोयणेग सम॑ ॥९४॥। 
पहवासरं पयच्छइ मलस्स संतेणं थोवकालेण । पडिसडियरोमराद संजाओ तारिसो चेव ॥९५॥।। 

नाउं सब्वंगेसुं विप्पो रोगं पसुम्मि संकंतं । हणिऊण तओ पच्छा समप्पिओ निययपुत्ताणं ॥९६॥ 
अमुणियतचेट्टेहि भुत्ते तेहि पसुम्मि सो भणइ । अहय॑ क॒त्थइ तित्थे छड्डिस्सं जीवियं वच्छा ! ॥९७॥ 

जेण पुणो न सरीरं संजायइ मज्झ एरिसं कह वि । इय भणिऊणं गेहाओ निग्गओ हिट्ठचित्तो सो ॥९८॥ 
गच्छंतो य पविट्टो कंतारं अग्गमहिसिसंकिन्नं । करि-सीहद।रहरिक मलसंकुल॑ रायभवर्ण व ॥९९॥ 

तत्थ य हिंडंतेणं तेणं तिसिएण रन्नमज्ञम्मि । दिद्दो अहृदीहदहो बहुतरुछन्नप्पएसम्मि ॥१००॥ 
तीरट्टियतरुनिवडियफल-पत्त-पसूणएहिं जत्थ जले । संजायं काढियकत्थसन्निभं गिम्हतावेण ॥१०१॥ 

तं॑ लद॒घुं उल्लसिओ निहिलाभेणं दरिद्वपुरिसो व्व । तण्हावोच्छेषक्रए पीयं अह पाणियं तेण ॥१०२॥ 

जह जह सो पियद जर्ूँ तह तह संजायए विरेओ से । सद्धिं करिमीहिं तो तेण थोवदिवसेंहिं संजायं ॥१०३॥ 
ओसहसारिच्छेणं तस्स सरीरं पुणन्नवावयवं । दटटुं सदेहसंपयमह चितहद नियमणे एयं ॥१०४॥ 

एय॑ देहस्स सिरिं गंतुं दरिसेमि निययपुत्ताणं । पेच्छामि जारिसीं तेसि संपयं दुष्ट बुद्धीणं ॥ १०५॥ 

इय चिंतिऊण पत्तों पुरीजणेणं स पद्चभिन्नाओ । पुच्छेति तुज्झ कुट्टं अवणीयं केण अहृभीम॑ १ ॥१०६॥ 

सो जंपइ देवीए वर्ण समोलग्गियाए तुद्ठाए । एसो मज्झं॑ रोगो अवहरिओ थेवदिवसेहिं ॥१०७॥ 
सलहिज्बंतो नयरीजणेण पत्तो गिहं सुए दटठुं | जंपइ अणुहवह फल अविणयतरुणो मह कयस्स ॥१०८॥ 
कि ताय |! तए विहिय॑ एयं अम्हाण ? भणइ सो बाढं । पुत्ता भणंति हा ताय ! कि तए एरिसं विहियं ? ॥१०९॥ 
जं अम्हमवत्थमिमं काऊण गओ तमेरिसं पत्तो । देहस्स सिर्रि ता कि न लज्जिओ जणयमभावस्स ? ॥११०॥ 


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१, तारिसभावाओ -र२ं० । 


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आख्या नकर्माणकोशे 


तं ताय ! जुत्तिजुत्तं न तुम्हमेयं जओो उ दुवियायं । होइ परं न दुमाया एस पसिद्धी जण पयडा ॥१११॥ 
सो भणह पुरा तुम्हे वि लज्जिया ज॑ न पुत्तभावस्स | ता इन्हिमविणयफलं इमिणा रूवेण अणुहवह ॥११२॥ 
विज्नायवइयरेणं हीलिज्जंतो स नयरिलोएणं । नीहरिओ नयरीओ संपत्तो नयरमेयं ति ॥११३॥ 

पोलिदु वारे चिट्दृह चंडीए मंदिरिम्मि जावेसो । एव्थंतरम्मि अम्हे समागया एत्थ बिहरंता ॥११४॥ 

पत्तो तुमं पि 4दणनिमित्तमम्हं पओलिपाहरिओ । संपत्तो सो वि इमं संठविउ' तत्थ रक्खत्थं ॥११५॥ 

अश्चंत भुक्खिओ हं भणिओ विप्पेण जमिह नेवज्जं । दुग्गापुरओ तुमए त॑ भोक्तव्ब॑ ति भणिकण ॥११६॥ 
जीवियनिरवेक्खेणं तेणं दुलहं लभित्त आहारं । कंठपमाणे भुत्ते पाउब्भूया तिसा गिम्हे ॥११७॥ 

नजन्नगओ भीओ सो चिन्तह चित्तम्मि एरिसं धन्ना । जलजीवा एमाई अट्ृज्ञाणट्विओ मरिउं ॥११८॥ 
निव्वत्तिय तिरियाउयमिहेव वावीए ददुदुरो जाओ । अह पुणरवि विहरंता एव्थेव वयं समोसरिया ॥११९॥ 
नयरजणा मम वंदणकज्जेण विणिग्गया विभूईए । गच्छंताणं तेसि एसो मम संकहं सुच्चा ॥१२०॥ 

तेणं चित्ते चितियम्हो ! मए एरिसो निसुयपुय्वो | कत्थद सद्दो बहुविहमीहा3पोहं कुणंतस्स ॥१२१॥ 

जायं जाईसरणं एत्येव समागओ महावीरो । जस्स समीवे पत्तो मं मोत्तु दारपाहरिओ ॥१२२॥ 

तो हूं गंतुं वंदेमि पज्जुवासेमि हिद्नचित्तो सो । नीहरिओ वावीओ साहलूरो सुद्धपरिणामो ॥१२३॥ 

बच्च॑तो मग्गम्मि तुह तुरयखुरप्पहारनिहओ सो । मरिडं विसुद्धचित्तो सोहम्मे ददुदुरंकेसु ॥१२४॥ 

देवेसु समुप्पन्नी इओ य सोहम्मसुरसहामज्झे । सहसक्खो संभंतो तुज्ञ गुणुकित्तणं कुणई ॥१२५॥ 

थिरभांवो सम्मत्ते अहो ! अहो ! सेणियस्स नरवइणो । न हु चालिज्जिइ तत्तो सुरेहिं मेरु व्व पवणेहिं ॥१२६॥ 
एसो असहदृहंतो तंवयणं वज्जपाणिणा भणियं । तुज्ञ परिक्खनिमित्तं एरिसरूवेण संपत्तो ॥१२७॥ 

ज॑ सिंच३ पूइरसेण मम पए दिद्टिविब्भमों तुज्स | गोसीसचंदरणेणं आलिंपइ सुरवरो एसो ॥१२८॥ 

जंपइ राया विन्नायतियसनिस्सेसवद्यरो इमिणा । आसीवाओ पहु ! कि निमित्त एयारिसो दिन्नो ? ॥१२९॥ 
भणइ जिणो संसारं मोत्तुमसारं तुम सिव॑ वच्च | एएण हेउणा म॑ पडुच्च मा जीव इइ वुत्त ॥१३०॥ 

तुह जीवंतस्स गुणो मयस्स नरयम्मि चेवे उववाओ | तेण निमित्तेणिमिणा भणियं तं जीव सुइरं ति ॥१३१॥ 
अभयकुमारों एव्थं जीवंतो गुणगणं समज्जिणइ । देवेसु मओ होही तम्हा दोसु वि अणुन्नाओ ॥१३२॥ 
चिट्ंती हृह बहुय॑ पावं॑ संचिणइ कालसूयरिओ । अपइट्टाणम्मि मओ गुरुकम्मी नारओ होही ॥१३३॥ 

एएण कारणेणं पडिसिद्धो उमयपक्खओ चेव | अह निसुणिउं नरिंदों स अत्तणों नरयगइगमणं ॥१३४॥ 
जंपइ राया दुग्गइगुरुकूवपडंतसत्तनिवहस्स । उद्धरणनिबिडतररज्जुसन्निभे सामिसालम्मि ॥१३५॥ 

सामिय ! कि मह होही तुमम्मि संते अहोगइनिवाओ ?। भयवंतेण वि भणियं अधिइं मा कुणसु निव | जेणं ॥१३६॥ 
पुव्व॑ चिय बद्धाऊ गंतव्वमभी अवस्स नरयम्मि | भवियव्वयोनिओगो न अन्नहा तीरए काउं ॥१३७॥ 

किंतु मम समसरीरों समवन्नो समगुणो य त॑ होसि । उस्सप्पिणीए पढमो तित्थयरों पठमनाहो त्ति ॥१३८॥ 
त॑ सोउं भणइ निवो पुलइयदेहो विसायसहिओ य । भयवं ! अत्यि उवाओ जेण न निवडामि नरयम्मि ) ॥१३९॥ 
जयसामिणा वि भणियं जद भिक्‍ख॑ जइजणस्स दाविहिसि । कविलाए बंभणीए हत्थेणं काल्सूयरिओ ॥१४०॥ 
जह मुंचइ दिणमेगं पाणिवहं ता न तुज्ञ नरयगई । तो भणइ निवो एयाणि मम वसे चेव बढ्ंति ॥१४१॥ 
अह वंदित्तु जिर्णिंदं चलिओ सम्मत्तनिश्चको राया । नयराभिमुहं देवो सम्मत्तपरिक्खणनिमित्तं ॥१४२॥ 
सजलपएसे खुडडं गिन्हंतं मच्छण विउन्बेह । तं दट ठुं भणइ निवरो भयवं ! तुमए किमारद्ध ? ॥ (१५२ 
जंपइ मायासाहू विक्किणिउं मच्छए महाराय !। पाउसजलरक्खत्थं गिण्हिस्सं कंबर्ल एगं ॥१४४॥ 

भणियं रज्ना जिणसासणस्स मा कुणसु लाघवं भद्द ! | जं किंचि तुम॑ जंपसि त॑ सब्वमहं करिस्सामि ॥१४५॥ 


१. सोदच्चा -रं० । २, जेणु -२ं० । 


६. जिनयन्दनफलाधिकारे सेदुवकाल्यानकम्‌ ११० 


त॑ अविचलसम्मत्तो निवारिउं पविसई पुरं जाव | ताव विउव्वइ देवो गुब्विणियं साहुणी एगं ॥१४६॥ 
मग्गंति हड्ढेसुं बराडियं पेच्छिकण त॑ राया । चिंतद चित्ते जिणसासणस्स मालिलमिह गरुयं ॥१४७॥ 

जंपइ अज्जे | कि लोगगरहणिज्जं तए समारद्धं ? | सा जंपद मह एयं कम्मवसेणेरिसं जायं ॥१४८॥ 

होही पओयणं घेय-गुलेण मह राय ! पसवसमयम्मि । पहआवणमेगेगं मग्गेमि वराडियं तेण ॥१४९॥ 

मा भवउ लाघवं पवयणस्स जंपदइ ससंकिओ राया । एहि तुम मह भवणे तुह सब्वमहं करिस्सामि ॥१५०॥ 
तो नेउं नियभवणे पच्छन्ने मंदिरिम्मि संठविया । पुत्तं तत्थ पसूया य साहुणी देवमायाए ॥१४५१॥ 

बालो रोयंतो न वि थक्कइ उच्चारयाइं कुब्वंते । सयमेव कुणइ राया परिचिट्ठं ताण तत्थ ठिओ ॥१४५२॥ 
पवयणलाघवरक्खत्थमुज्जुयं पवरयणम्मि थिरचित्तं | नाऊण ओहिनाणेण सुरवरो तस्स पतच्चक्खो ॥१४५३॥ 
संजाओ नरबइणो मणिकिरणफुरंतकुंडलाहरणो । निययपहानियरेणं उज्जोयंतो दिसिमुहाईं ॥१४५४॥ 

जंपइ देवो जिणपवयणाओ अविचलियमाणसो त॑ सि । सोहम्मसहामज्झे सोहम्मे तियसपच्चक्खं ॥|१५५॥ 
घणसारसियगुणावलिआवज्जियमाणसेण सुरवइणा । जारिसओ संथुणिओ तारिसओ खच्िय तुम राय ! ॥१५६॥ 
अविचलसम्मत्तगुणेण रंजिओ राय ! तुज्झ तुट्टो हैं । ता गिण्ह गोलयदु गं अद्टारसचक्कवेह 'च ॥१५७॥ 
हारमिणं ति समप्पिय जंपइ अमरो विम॑ तु जो हारं । तुद्दं पुण संधिस्सइ फुडही सयहा सिरं तस्स ॥१४८॥ 
इय कहिऊणं रन्नो पत्तो अद्दंसणं सुरो झत्ति । राया वि चेल्लगाए हारं अप्पद पहिट्ठमणो ॥१५९॥ 

देइ सुनंदाए पुणो गोलयजुयलं निएवि त॑ तीए । पसरियसवक्षिवेहंवविहु रियसुसरीरजट्टीए ॥१६०॥ 

किमहं कीलिस्सं बालिय व्व एएहिमिय सहासाए ? | ज॑ पदच्चक्खं दिल्लो रज्ञा हारो सपत्तीए ॥१६१॥ 

इय ईसाणुगयाए दाणं दिल्न॑ जमप्पमुल्लं ति। अवमाणियाए विग्गोवियाउहमवरोहमज्झम्मि ॥१६२॥ 

इय अवलंबियरोसाए तयणु विप्फुरियरुद्रभावाएु | रसनियरमुव्वहंतीए फोडियं गोलयदुगं पि ॥१६३॥ 
पच्चासन्ने थंभे जाव तओ एक्गाओ गोलाओ । पयडीमूओ भूगोलयाओ रविनिंबजुंगमं व ॥१६४॥ 
कुंडलजुयर्ुं दुसदिसिपसरियनवकिरिणजालसंवलियं । बीयाओ नीहरियं निद्दोसं देवदूसदुगं ॥१६५॥ 

दट्‌ठुं ताणि सुनंदाए फुरियआणंदअमयसित्ताए | अणुभूओडपुव्वरसो समगं तद्दविसलाभम्मि ॥१६६॥ 
उल्लसियं हियएणं कबरोलफलएहिं पुलइयं तह य । वयणेणं पुण वियसंतसरसकमलाइयं सहसा ॥१६७॥ 
उल्लसियं अंगेहिं लोयणजुयलेण किमवि वित्थरियं | रससंकरं वहंती गया सुनंदा नियावासं ॥१६८॥ 

अह अन्नदिणे राया कविलं हक्कारिकणिमं भणइ । तुममज्ज साहणणं भद्दे ! भिक्‍खं पयच्छेहि ॥१६९॥ 

सा जंपइ निवपुरओ नाहं कुलख़ंपर्ण करिस्सामि । ज॑ भिक्‍खं भिच्छृणं लंघित्तु कुलक्षमं देमि ॥१७०॥ 

वज्जरइ निवो जइ त॑ करेसि एय॑ हिरन्नकोडीओ । तो देमि तुज्ञ जंपह दासी एवं अभव्वत्ता ॥१७१॥ 

जह सब्वहिरन्नमयं करेसि मं देव ! तुममिहं तुट्ठी । रुट्टो य परवसं म॑ं खंडाखंडि जइ विहेसि ॥१७२॥ 

तो न वि करेमि एय॑ विज्नाए निच्छयम्मि सा मुक्का । बीयअभिग्गहकर््जे वाहरिओ कालसोयरिओ ॥१७३॥। 
भणियं रे ! मुंच इमं पाणिविणासं तुम दिवसमेगं । इमिणा जीवइ सो भणइ एस पउरो जणो पउरो ॥१७४॥ 
रज्ञा भणियं दव्वं गिण्हसु तं लक्ख-कोडिपभिददयं । नित्थरउ तुज्झ लोगों अज्जं तु निवारणीयमिणं ॥२७५॥ 
जा कहवि न पडिवज्जइ ता रुट्टो पत्थिवों भणइ पुरिसे । पाविट्टमिमं घत्तह अहोमुहं अंधकूवम्मि || १७६॥ 
पक्खित्तो सो कूवे तत्थ ठिओ महिसयाण पंच सए । मट्टियमयाण काऊण क्रचित्तो विणासेइ ॥१७७॥ 

रज्ञा वि भुवणसामी गंतृणं पुच्छिओं जहा मज्झ । अक्खलिओ संजाओ एसो किमभिरगहो नाह ९ ॥१७८॥ 
भणइ जिणो निव ! एसो न पालिओड5मिग्गहो तए जेण | कूवठिएण वि तेणं विणासिया पंच महिससया ॥१७९॥ 
राया विम्हिय-हियओ जंपइ कह नाह ! संभवो तय 3 35505%355 ३0३5 हक हज है इउर 5 वजह रहिएणं 0 | | १ ध्य्द । | 


१, पयगुडेण -रं० । २. वैभव । ३. युग्ममिव | 


१२० आश्यानकमरणिकोशे 


तो जंपह मुणिनाहों पुढविमए संठवित्तु दुद्वेण । हत्थं विहित्तु खग्गं उग्गं वाबाइया तेण ॥१८१॥ 
नरवइणा कृवाओ तत्तो निस्सारिउं पुणो मुको । सविल्बखमाणसेणं च भीरुणा नरयमम्गस्स ॥१८२॥ 
तेहिमभव्वत्तणओ दोहि वि पडिवज्जियं न निववयणं । कि लब्भइ तिसिएहिं अमय॑ पाउं अपुल्तेहि ? ॥१८३॥ 
॥ सेदुबकाख्यानक समाप्तम ॥३३॥ 
इंदानीं नन्‍्दाख्यानकमुच्यते | तथ्ेद्म-- 
पासजिणथूभमहुरा महुरा भरहम्मि पुरवरी अत्थि | अभियासिया चिकिच्छ व्व गंधजुत्ति व्व सुहवासा ॥१॥ 
तीए गुरुजणभत्तो निश्च॑ जिणपायपूयणासत्तो । निवसइ सेट्टी नंदो नंदो व्व सदत्थसारेण ॥२॥ 
सो सुइसमायरणरओ रायाइमहायणम्मि गोरव्वो । अवदाणदाणवसणी अहडन्नया पच्छिमवयम्मि ॥३॥ 
धम्मंतरायवसओ जाओ पुन्नक्खएण तणुविहवों | ना55यरइ जणो तत्तो पुत्ता वि पराभवंति तयं ॥४॥ 
तह वि हु सो अहिययरं जिणवंदणवसणवं जहाविहवं । खिस्संति सुया धम्म॑ वहुयाओ कुरुकुरायंति ॥५॥ 
भज्जा उण निब्भच्छइ भणइ तुमं गलरधमधमीहओ | न मुणसि अत्थि-अणत्थि न कुणसि घरचिंतणं कि पि ॥६॥ 
सो उण चिंतइ एवं सव्वो वि जणो इमो सकज्जत्थी | धम्मो चिय जीवाणं सरणं जोहारमित्तो व्व ॥७॥ 
अह अन्नदिणे सो जिणहरम्मि संपूदंअण जिणवसभं । साइसयगुरुसमीवे उबउत्तो सुणई जिणवयणं ॥८॥ 
दट ठूण तस्स चेट्ट धम्मथिरत्तं जणाओ सोऊणं । सुगुरूह्ि तयणु सेट्टी सायरमाभासिओ एवं ॥९॥ 
तुह सव्वया वि एवं धम्मखणो भद्द ! निव्वहइ एसो ?। तो बंदिऊण भणियं आमं जिण-गुरुपसायाओ ॥१०॥ 
किंतु मम परिवारों न सम्ममुज्जमइ घम्मकज्जम्मि | तो कमवि गुणं नाउं अइसयनाणाओ ते गुरुणा ॥११॥ 
मंतं महापभावं कहिऊर्ण तस्स साहणोवाय । अन्नत्थ गया सो वि हु सबिलंबो सगिहमणुपत्तो ॥१२॥ 
भणिओ य कुडुंबेणं मिलिएहिं छुह्माण अज्ज मरियव्वं | न कुणसि नियववसाय' दंससु धम्मफलं कि पि ॥१३॥ 
अवहेरिं काऊणं थक्को तत्तो जहुत्तद्‌विसम्मि । सुइभूएणं मंतो पसाहिओ तयणु सिद्धो य ॥१४॥ 
पत्तो य बंभसंती तसस पभावेण भणइ वरसु वरं । तेणुत्तं तिक्ालं जिणवंदणय' करेमि अहं ॥१५॥ 
तो मह पूयापुब्वगजिणवंदणयस्स जं फल होइ । एगम्मि दिणे विहियस्स संपर्य पयडसु तमज्ज ॥१६॥ 
भणिय' च तेण महरिह वेमाणियसंपयाफल भणिय । एत्तियमेत्तस्स वि भावसारविहियस्स विहिपुव्वं ॥१७॥ 
ता भद्दय ! वंतरजाइस्स महं एरिसा कुओ सत्ती ?। न हि गामसामियाओ लब्भइ मंडलियसामित्त ॥१८॥ 
नंदेणुत्तं देवस्स दंसणं तुज्म सम्मदिट्विस्स | संजाय' मह जम्हा कयकिश्वो बोहिलाभेण ॥१९॥ 
ता मे पओयणं नत्यि कि पि त॑ भद्द ! वयसु सद्ठाणं । कज्जम्मि समुप्पन्ने सुमरिस्समहं कुण समाहि ॥॥२०॥ 
भणियं च तेण भवदुग्गयत्तदरणम्मि पडुपयावस्स । सम्मद्ंसणरयणस्स संभवे सव्वमबि जाय॑ ॥२१॥ 
तह वि हु भवओ दुक्‍कुहकुट्ुंबजिणधम्मथिज्जजणणत्थं । ज॑ मह भणेसि कल्लाणभाइणो त॑ करेयव्वं ॥॥२२॥ 
चउकोणेसुं तुह मंदिरस्स चिट्नंति धणनिहाणाईं । गिण्हसु एवं भणिउ' देवों अद्ंसणीहओ ।॥२३॥ 
तत्तो सोहणदिवसे निहाणमेगं खणित्तु संगहिय' । जोयति जाव पेच्छंति ताव मणि-कणयपडिपुन्न ॥२४।। 
तनल्लाभा ओ पुणरवि य पूयणिज्जो जणम्मि संजाओ । अत्थस्स निम्मुणस्स वि जमेरिसं पयडमाहप्पं ।२५॥ 
जिणधम्मपतन्चयाओ तप्पभिद निश्चवलाणि जायाणि । सम्म॑ कुणंति सब्वाणि तयणु जिणपूयणाईय' ॥।२६॥ 
जिणबिंबबंदणाओ लहिउं सुर-मणुयसंपयं विउरुं । काऊणं कम्मखयं कमेण पत्ताइं सिवसोक्‍्खं ॥॥२७॥। 
॥ इति नन्‍्दाख्यानकं समाप्तम्‌ ॥३४॥ 
जह एएसि जिणबिंबवंदर्ण संप्यावहं जाय । तह अन्नस्स वि भव्वस्स जायए ता तय॑ कुणह ॥१॥ 
श्रेयःसमृद्धिमधिक विद्धाति शश्वत्‌, स्वास्थ्य मनो नयति शुअयशस्तनोति । 
स्वर्जोषमावहति मुक्तिसुखं विधत्ते, कि वा करोति न जनाः ! जिनवंदन वः १ ॥२॥ 


॥ इति भीमदाप्नदेवसूरिविरचितकृत्तावधाबल्यानकमणिकोशे जिनवन्दनफलथणनो नाम नवमो5घिकारः समाप्तः ॥९॥ 


[ १०, साधुवन्दनफलवर्णनाधिकार: । ] 


व्याख्यातो जिनवन्दनफलाधिकारः। साम्प्रत॑ बन्दितजिनेत सम्यम्दशा गुरुम्यो वन्दनकं॑ दातव्यमित्यनेन सम्बन्धेन 


सम्बन्धितं गुरुवन्दनक॑ व्याख्यातुकाम आह--- 


जो वंदणयं सम्म॑ साहणं देह सीलकलियाणं | 
सो लद्दह सग्ग-मोक्खे हरि व्य दुक्खक्खयं कुणइ ॥१५॥ 


व्याख्या--यः” भव्य: वन्दनक! कृतिकर्म 'सम्यग! भावसारं 'साधुम्य:” गुरुभ्य: 'ददाति'! बितरति 'शीलकलितेम्यः” 


चारित्रयुक्तेभ्य: सः 'लभते' प्राप्नोति 'स्वर्ग-मोक्षो' सुरसदम-मुक्ती | किंवद्‌ ? इत्याह--'हरिवत्‌' वासुदेव इव । दुःखक्षयं च 
चस्य गम्यमानत्वात्‌ 'करोति” विधत्त इत्यक्षराथः ॥१४५॥ भावाथ्ंस्त्वाख्यानकादवसेय: । तच्चेदम्‌-- 


अत्थि समत्थच्छरयपेच्छयजणजणियनयण-मणतोसा । सुरपुरिसमाणविहवा सुत्यियपउरा सुहनिवासा ॥१॥ 
पेरंतपरमपरिहा सुवन्नमयतुंगपवरपायारा । देवउलसिहरघुव्बंतथयवडा धवलपासाया ॥२॥ 

घणएण विणम्मविया बारबई पुरवरी सिरीमवर्ण | बारसजोयणदीहा नववित्थिन्ना सया थिमिया ॥।३॥ 

त॑ पालइ पयडपयावपत्तमाहप्पपह्यपडिवक्खेण । ससि-सेसजससयन्नी जयसिरिनाहो निब्रो कण्हों ॥४॥ 
अह अन्नया य देविंदविंदवंदिज्ञमाणचरणजुओ । सयमेव समयविहिणा समोसढो रिट्ठनेमिजिणो ॥५॥ 
तो रभसपहरिसुब्मिज्वमाणरोमंचकंचुइयकाओ । तित्थयरवंदणत्थं विणिग्गओ कण्हनरनाहो ॥६॥ 

काउ' पयाहिणतिगं विहिसारं बंदिऊण भयवंतं । पंजलिउडो पहिट्ठो सट्ठाणस्मि समुबविद्टो ॥७॥ 
एत्थंतरम्मि नेमी जल्हरगंभीरमहुरवाणीएण । सुर-असुर-नर-सभाए धम्म॑ं कहिउ' समाढत्तो ॥॥८॥ 

भो भव्या ! जइधम्म॑ काउमसत्ताण मोहवसयाण | पाएण गिहत्थाणं जिण-गुरुभत्तीपरो धम्मो ॥९॥ 
जिणपूया मुणिदाणं एत्तियमेत्तं गिहीण सच्चरियं | जइ एयाओ भट्टो ता भट्टो सब्वकत्ञाओ ॥१०॥ 


तहा--- 

देवगुरूणं भत्ती इहेव वारेह सयलदुरियाईं । परलोए य नरा-5मरसुहाइ संपाडइ जियाण ॥११॥ 

एत्थंतरम्मि कण्हेण पुच्छियं केरिसा सुगुरुभत्ती ? कि वा वि हु तीए फल ? अणुग्गहत्थं कहह मयवं ! ॥१२॥ 
भयवया भणियं-- 

बहुमाणो वंदणयं निवेयणा पाछणा य वक्वस्स । उवगरणदाणमेव य गुरुभत्ती एस विन्नेया ॥१३॥ 
विसेसओ बंदणयफलं--- 

विणओवयार माणस्स भंजणा पूयणा गुरुयणस्स । तित्थयराण य आणा सुयधम्माराहणा5किरिया ॥१४॥ 
तहा--- 


१६९ 


खबददे नीयागोयं उच्चागोयं च बंधए कम्मं । सोहग्गं निव्वत्तर आणासारं जणपियत्तं ॥१५॥ 

जहइ एवं ता भयवं अहमबि एयाण तुम्ह सीसाण | समियाण खंतिमंताण सीलवंताण साहणं ॥१६॥ 
अट्टारसण्ह सहसाण दुसहतव-चरणखवियदेहाणं । कम्मविणिज्जरणकए वंदणयं देमि मुणिनाह ! ॥१७॥ 
इय भणिऊणं कन्हो काउमहाजायरूवमुवउत्तो । पडिलेहिय मु हपोत्ति सम॑ं तया सब्बराईहिं ॥१८॥ 
आवत्तसार-सरसा र-भावसारं च दाउमारद्धो । राईणं पुण कोइ वि कहिं पि थक्को अदिन्ने वि ॥१९॥ 
जा वीरयसहिएणं सब्वे वि हु वंदिया नरिंदेणं । निव्वाहियसपइज्नो समागओ जिणसयासम्मि ॥२०॥ 


कोत्थुहकिरणकरंबियकज्जलकाओ गलंतसेयजलो । विप्फुरियसकघणु-विज्जुपुंजजुयअहिणवधणो व्व ॥२१॥ 


१, ०णम्मि- खं० | 


रैशर 


आश्यानकमणिकोशे 


ठाऊर्ण जिणपुरओ विरहयकरकमलकोरओ कण्हो । नमिऊर्ण नेमिजञ्िणं हिट्ठरणो भणिउमादत्तो ॥२२॥ 

भयवं ! भिडंतमडकोडिथट्डसंभिडणसंकडे सामि | । एरिसपरिस्समों मे संगामे वि हु न संजञाओ ॥२३॥ 
जारिसओ भत्तिवसुक्लसंतरोमंचकंचुश्यतणुणो । मुणिपयपंकयवंदणयदाणकज्जुज्जयमणस्स ॥२४॥ 

भणइ जिणो अज्ज तए चारित्तमहानिवस्स पथ्चवर्ख । एवं जुज्झतेणं बह जिय॑ सुहड ! कि बहुणा ? ॥२५॥ 
जेणेए मह समणा चारित्तमहानिवस्स मणदइया । आराहयंति जमिमे अपमत्ता निश्चमेवमिमं ॥२६॥ 

ता एएसि वंदणयदाणकरणेण रंजिओ एसो । अणुकूलो संजाओ भद्द ! तुम पद विसेसेण ॥२७॥ 

एए य सत्त सुहडा सुयण ! महामोहरायसेन्नस्स | धणियं पहाण भूया पश्चक्खं पेच्छ तुह पुरओ ॥२८॥ 
एएहिं विणा एसो मुण मोहनराहिवो अर्किचिकरो | उद्धियदाढो5समविसहरों व्व नणु सिंदुरीमूओ ॥२९॥ 
तुमए पयत्ततसओ वंदणयपयाससमरसंरंभो । वीरियखग्गलयाए हणिऊणं पाविया निहणं ॥३०॥ 

एएहिं तुज्य चउगइसरूवसंसारगुविलकंतारे । पडियस्स सया वि चरित्तरायसेन्नाओ भद्टस्स ॥३१॥ 

जीवस्स तत्तरूवं जमिमं पावेष्टिमावरियमासी । संपह पयडीभूयं खाइगसम्मत्तवररयणं ॥३२॥ 

तं॑ तुह निम्मलमणभवणसंठियं दिप्पए पईवों व्य । करयलूचडिया वियडा कल्लाणपरंपरा वि सुहा ॥३३॥ 

ज॑ भणियमिमं त॑ तुममणुभवसि ? न व ? त्ति ताविमं कहसु । तेणुत्तं साहिज्जइ सुरलोओ न हु सुरिंदस्स ॥३४॥ 
अहमणुभवामि भयवं ! तुमए जं पुच्छियं निरवसेसं । कोहहुयाससमाणो सीईभूओ महं अप्पा ॥३५॥ 
तणुईभूओ माणो मणयं माया पसन्निया जाया । लोभसमुद्दो वि थिरो थिमियतरंगोवमोी जाओ ॥३६॥ 
अहुणा तुम्हाणुवर्रि भत्ती वि हु दढयरा मणोभवणे । जीवाइपयसत्थेसुं वियंभिया तत्तबुद्धो वि ॥३७॥ 

अणु भवसिद्धं भयवं ! जं तुब्मे मणह विब्भमो नत्यि | पंडिणिहियममयकुंडे सुक्खं लक्खेमि अप्पाणं ॥३८॥ 


भणियं च भयवया-- 


न ग++ 3-33 3न-न-नन ननननम- 


एयं पि सुहडसत्तगनिम्मूलुम्मूलणेक् पभवस्स | विलसियमसमं मुण तस्स चेव सम्मत्तरयणस्स ॥३९॥ 

एसो सुहपरिणामो न केवलं तुज्झ किंतु सब्वेसि । जीवाणमिहं भडसत्तगेण पावेण आवरिओ ॥४०॥ 

कि बहुणा ? मोहनराहिवस्स सत्तगमिणं विसेसेणं । सेन्नस्स असंखस्स वि मज्झेंडसज्झं ववइसंति ॥०१॥ 

अन्न॑ च जणे जा का वि पाविया गिज्वए तद्द पयडा | दंसणतिगनिम्माया सा एसा मुणसु न हु अन्ना ॥०२॥ 
चउरो पढमकसाया पेच्छसु कुकफंसणा महापावा । एमाए मिलिऊरणं जगइंति जय॑ असेसं पि ॥४३॥ 

एए य कम्मपरिणामरायजाया सहोयरा नेया । सब्बे वि असुहपरिणइसमुब्भवा सोलस कसाया |॥४४॥ 
किंचिसुहे मोत्तुणं सबंधुणो पावियाए एयाए। मिलिया तईए पायं समाणसीलेसु सुहिभावों ॥४५॥ 

ए्याण तए सद्धि. अब्भिद्ठाणं भडाण भंडणए । पडियाणमसेसं पि हु खलभलियं मोहरायबलं ॥४६॥ 

पलवइ मोहनरिंदो रुवंति रागाइणो सुहडसत्था । कुस्सुइ-कुबुद्धि-कुमईंससाओ सोयंति साममुहा ॥४७॥ 
साहारणस्सरूवा सत्तण्ह वि पणहणी विसालच्छी । एसा अतत्तबुद्धी वि कण्ह ! रंडत्तणं पत्ता ॥2८॥ 
घुसिणविलित्ता नवरंगनिवसणा गलविलंबियपसूणा । नज्जइ वोलणकज्जे जलासए पेच्छसु वराई ॥४९॥ 
तुज्ञड्ज्ज कण्ह ! कल्लाणसंपया सुत्यिओ चरित्तनिवों | दुहियं च मोहसेन्नं अहो ! विचित्तं भवसरूवं ॥५०॥ 
एयस्स सरूवमिणं जो हणइ इम॑ सुहं पि तस्सेव | जीवाण जए जम्हा पत्तेयं पुत्र-पावाईं ॥५१॥ 

ता एयविणासकये अवरेण वि सब्वहेव जइयव्वं । विदवियमेवुवभुंजद अल्लेणडन्नो न उण इह३' ॥५२॥ 
अवरं च अज्ज तुमए आसि महारंभसंतियं कम्मं । सत्तममहीए जोग्गं त॑ तइयाए समाणीयं ॥५३॥ 

एयं निसामिऊणं भयभीओ केसवो भणइ भयवं ! । तुब्भेहि सामिएहिं अज्ज वि मह कहमकक्लाणं ९ ॥५४॥ 
चिंतामणिम्मि पत्ते दारिदपराभवों जइ जियाणं । उद्यम्मि वि दियनाहे जद तमपसरो परिप्फुरह ॥५५॥ 


१, पडिहयमम्मयकुंडे - खं० रं० । २, दिणनादे - रं० । 


११, सामायिकफलबणनाधिकारे संप्रतिराञाब्यानकम्‌ १२३ 


ता सामि ! कहिं गम्मउ ? पविसिज्जउ कस्स सरणमम्हेहिं ? | तो भणह जिणो केसव ! अवस्समवि वेयणिज्ञमिमं ॥५६॥ 
पुणरवि पावखयत्थं बंदणयं देसि तं ५, .. .. , नोसम्ममणुट्ठाणं ज॑ न कुणइ कम्मनिज्जरणं ॥५७॥ 
एवं निवारिओ जा मणयं वेलबखमागओ कण्ही । ता पुणरवि पड़िभणिओ मा तम्मसु भद्द ! तुममेवं ॥५८॥ 
जम्हा अहमिव तुममवि वरकेवलनाण-दंसणपरवों । भुवणस्स पूथणिज्जो पसंसणिझ्ओो य भरहम्मि ॥५९॥ 
तेरसमो तित्थयरों होह्दिसि तं मुणिसहस्सपरियरिओ । ता एरिसकल्लाणे कह संपह खेयमुव्वहसि ? ॥६०॥ 
इय एवं जयपहुणा सायरमाभासिओ जिणं नमिउं। कण्हों मुत्तिसयण्हो नियनयरीए समणुपततो ॥६१॥ 
जह देहनिरावेक्खं दिल्लमणेणं तहाउवरेणावि | दायतव्वं बंदणयं सुगुरूण सुहत्यिणा सम्म॑ ॥६२॥ 
॥ हयांख्यानक॑ समाप्तम ॥३५॥ 
इत्थं यथा विधिविशुद्धममुष्य जात॑ सद्वन्दुन॑ निरपहस्तितजन्मजातम्‌ । 
जायेत भव्यमविनो<प्यपरस्य तद्बत्‌, तस्माद्‌ ददध्वमनवथ्यमिद गुरुभ्यः ॥१॥ 


॥ इसि भ्रीमदाप्नदेवसूरियिरचितवृत्तावाख्यानकमणिकोशे साधुवन्दनफलव्णनो द्शमो:5घिकारः समाप्त: ॥१०॥ 


>> ब्ेहे-*2 


[ ११, सामायिकफलव्णनाधिकारः ] 


व्याख्यातः साधुवन्दनकाधिकार: । साम्प्रतं दत्तवन्दनकेन सामायिक॑ प्रतिपत्तत्यम्‌ | अतः सामायिकाधिकारं व्याचिख्या- 
सुराह-- 


अव्वत्तस्स वि सामाहयस्स नर-सुरसमिद्धिमाईय॑ | 
फलमडले निदिहू जह संपदणो नरिंदस्स ॥१६॥ 


व्याख्या-- “अव्यक्ततस्य” सम्यक्त्वस्वरूपपरिज्ञानरहितस्य अपिशब्दात्‌ तदितरस्थ सामायिक्रस्य समभावलक्षणस्य नर-सुर- 


समृद्धयादिक' मकारस्यालाक्षणिकत्वात मनुजा-5मरसम्पत्तिप्रभृतिक॑ 'फलं' काय निर्दिष्ट| कथितम्‌। यथा इति दृष्टान्तोपन्यासे । 
सम्प्रतिनामकस्य “नरेन्द्रस्य' राज्ञः इत्यक्षराथें: ॥१६॥ भावाथंस्त्वास्थानकादवसेयः । 


न्‍कैनलड न नलमननन-+ नकल तन न -सनबनीननपमोकन+ ला" 


तब्चेदम्‌-- 


वच्छाजणवयभालयलसरससिरिखिंडपट्टियासरिसा । अत्थि पुरी कोसंबी सियकित्ती सुइसमायारा ॥१॥ 
सत्तरिसिसमद्धा सियमणेगरि सिसयसमस्सिया संती । जा तज्जश गयणयलं करंगुलीसरिसथयमिसओ ॥२॥ 
तीए गणाहिवहणो सिरिअज्जसुहत्यिनामगा गुरुणो । कश्या वि मासकप्पेण विहरमाणा समणुपत्ता ॥३॥ 
सुत्त-5त्थपोरुसीकरणपुव्वमह पत्तमिक्खपत्थावो | इसरगिहम्मि कम्मि वि सुसाहुसंघाडगो तेसि ॥४॥ 
भिक्‍्खट्टमणुपविट्टो दुब्मिक्वे महइ वट्टमाणम्मि | अत्ताणं अत्ताणं सकयत्थं मन्नमाणेण ॥५॥ 
अब्भुट्टाणपुरस्सरमह मड्भडाए वि तेण धणवइणा । विहिय॑ पत्तयभरणं भत्तीए भत्त-पाणस्य ॥६॥ 

दिट्ठं व तमेगेणं मिक्खयरेणं तहिं पविट्टेणं | चिंतियमिमिणा पुन्नाणमंतरं पेच्छ पाणीणं ॥»॥ 

एए वि हु भिवखयरा अहमवि भिक्‍्खायरों परमहज्नो । अक्कोसिज्ञामि परं॑ भिक्खाकवर्ं पि न लहामि ॥८॥ 
एए उ भत्तिपुव्व॑ पडिलाभिज्जंति भक्ख-भोज्जेहिं । ता नूणमत्यि धम्मो न विब्भमो एत्थ वत्थुम्मि ॥९॥ 
ता मग्गामि इमे हं दाहिंति दयावरा इमे मज्ञ । भयवं ! तुब्मे सब्वत्थ लहह ता देह मह कि पि ॥१०॥ 
तो मुणिवरेहिं भणियं भो भद्द ! न अम्ह संतियं भत्त | एयं खु अम्ह पहुणो लहंति जमुबस्सण वि ठिया ॥११॥ 


१. देवि त॑ - खं० रं०। २. सों सम्म॑ं - खं० २ं०। 


आवश्यानकमणिकोशे , 


तो तस्स सुकयकम्मोदएण जाया इमा मणे चिता । गच्छामि ताण पासे नूणं दाहिंति ते गरुया ॥१२॥ 
साहूहि सम॑ पत्तो किमेस ? गुरुणा पयंपिए तेहिं। कहिओ से बुत्ततो सुओवउत्तो गुरू भणइ ॥१३॥ 

भो ! एस उन्नतकरो होही जिणसासणस्स तेहुत्त । तुब्भे जाणह न बय॑ं वियाणिमों कुणह जं जोरगं ॥१४॥ 
दाऊण तस्स कन्ने सामाइयसुत्तमेत्तमव्वत्त | भोयाविओ जहिच्छं मणुन्नमहसरसमाहारं ॥१५।। 
अणुतियभोयणवसओ संजायविसूइओ तओ संतो | सामइयपरिणदए पाडलिपुत्तम्मि नयरम्मि ॥१६॥ 
सिरिचंदगुत्तरन्नो पुत्तो सिरिबिंदुसारनरनाहो | तस्स वि य असोयपिरी कुमरो तस्साबि य कुणालो ॥१७॥ 

सो मयमायत्तणओ रज्नो अइवल्लहो सवक्षिभया । उज्जेणीनयरीए कुमारभुत्तीए परिवसह ॥१८॥ 
पहदिविसमसोयसिरी लेहं पेसइ सहत्थलिहियं से । मह आएसा कुमरो अहिज्वऊ इय लिटददेऊणं ॥१९॥ 

अह अन्नया य लेहो लिहिउं मुक्को निवेण एमेव । दिल्लो सवक्षिमायाए बिन्दुओडयारवन्नसिर ॥२०॥ 

मु को लेहो परिवाइयव्वओ न सरिया इमा नीई । संवत्तिकण रज्ञां तहेब संपेसिओ तत्थ ॥२१॥ 

जा वाइऊण तं अक्खवडलिओ मुयइ नो करम्गाओ । घेत्तु बला वि कुमरेण वाइओ मुणिय परमत्थं ॥२२॥ 
परिभावइ थिरसत्तों मोरियवंसुब्भवाणमम्हाण । न य केणइ गुरुआणा विलंधिया पुव्बपुरिसेणं ॥२३॥ 

तो साहसिक्वरसिएण तेण कट्ठं कुणालकुमरेण | तत्तसलायाए नयणजुयलमंजियमयंडम्मि ॥२४॥ 

पच्छा नाऊण्णं माइविलसियं नियमणे विचितेह । घिसि धिप्ति नारीण वि चेट्टियाणि कूराणि कुडिलाणि ॥२५॥ 
जइ हं असोगसिरिणा जाओ जइ को वि सच्चयं पुरिसो। ता तीए मुहे छारो दायब्वों कि वियप्पेण ? ॥२६॥ 
तत्तो य तस्स कुमरस्स पणइणी नामओ य सरयसिरी । कुसुमियसहयारतरुं सुभिणे दट ठ्रण पडिबुद्धा ॥२७॥ 
सो दमगजिओ मरिऊण पउरपुन्नप्पमावपरियरिओ । पुत्तत्तणेण तइयां तीए गब्भम्मि संजाओ ॥२८॥ 
कालक्मेण जाओ देवकुमारोवमो सुओ तीए | सो वि कुणालकुमारो गंधव्वकछाएं अइनिउणों ॥२९॥ 

निश्चं च गीयवसणी गायंतो महियलं परिब्भभइ । पत्थावं नाऊणं पाडलिपुत्तम्मि संपत्तो ॥३०॥ 
हाहा-ह॒ह-तुंबुरुकंठो कहिओ निवस्स मंततोहिं । देव ! कुओ वि हु पत्तो अप्पुब्तो गायणो को वि ॥३१॥ 
नवरं नयणबिहीणो एवं रक्नो निवेइए भणियं । आगच्छठ को दोसो १? गायउ मह जबणियंतरिओ ॥३२॥ 
तत्तो य तेण सर-गाम-मुच्छणासरसमहुरगीएणं । हयहियओ भणइ निवो वरसु वरं तेण तो भणियं ॥३३॥ 
चंदगुत्तपपुत्तो [ य उ ] बिंदुसारस्स नत्तुओं । असोगसिरिणो पृत्तो, अंधो जायइ कागर्णि ॥३४॥ 

तत्तो य सुय॑ नाउं झड त्ति नियजवणियं तमवणेउं । आगच्छ वच्छ ! वल्लह ! आरोहसु मज्झ उच्छंगे ॥३५॥ 
तत्तो य मन्नुवससंपयट्टनयणंसुसलिलधाराहिं । सिंचंतो नियतणयं सगग्गयं भणिउमादत्तो ||३६॥ 

कि वच्छ ! विहिवसेणं एयमवत्थंतरं तुम पत्तो ? | तेणुत्त ताय ! पयप्पसलायओ नत्थि मह खू्ण ॥३७॥ 
किंतु मह गीयवसणं तो एवं परिममामि धरणियले । ता कि पसायदाणं थोवमिणं मग्गियं ? कहसु ॥३८॥ 
जावेवं वत्तो वि हु न जंपए ताव वज्जर्‌इ मंती । कागिणिसद्देणं रज्जमाहियं देव ! निवईणं ॥३९॥ 

को अन्नो वच्छ ! तुम मोत्तु रज्जस्स होज्ज मह जोगो १। जइ तुह नयणविणासो न होज्ज एसो विणा कर्ज ॥००॥ 
तेणुत्त मज्म सुओ काही रज्जं ति तो निवेणुत्त | तुह वच्छ | कया पुत्तो ? सो जंपइ संपइ नरिंद ! ॥9०१॥ 
तुह सुण्हा सरयसिरी ताय ! पसूया सूर्य जयंतसमं । काउं पसायमसमं ता दिज्जउ तस्स रज्जमिमं ॥०२॥ 
साणंदं भूवदणा भणियं सिग्धं समेउ मह पासे । अहिर्सिचामि सहत्थेण जेण रज्जम्मि तुह तणयं ॥४३॥ 
आणाविऊण सिम्धं सुर[वर]कुमरोवर्म सुयस्स्त सुयं | सिंहासणे निवेसिय कओडभिसेओ पुरसमक्खं ॥|४४॥ 
सहरिसिमसोयसिरिणा कओ पणामो महायणेण सम॑ | भणियं निवेण एसो संपइ तुम्हाण होउ पह ॥०४५॥ 
जणयमु हनिग्गयं ज़ं संपह नाम॑ ति होउ एयस्स । त॑ चेव तस्स सिद्धि गय॑ पियामहकय नाम ॥०६॥ 

सो वद्धिउमरद्धो सद्धि रिद्धीए बुद्धविहवेणं । रूवेण पयावेणं कलाकलावेणमसमेण ॥०७॥ 

अह अन्नया कयाई संपइरन्ना गएणमुज्जेणिं | दिद्ठा अज्जसुहत्थी विहरंता तत्थ संपत्ता |॥|४८॥ 


११, सामायिकफलयर्णनाथिकारे संप्रतिराजाण्यानकम्‌ 0 


मन्ने हंं करथ मए5णुभूयपुव्वा सुसाहुणो ए० । दय चिंतंतस्स-मणे जाय॑ जाईसरणमेव ॥४९॥ 
एए ते मह गुरुणों परोवयारी महाणुभ।4। 4 । जास पसाएण अहूं संपह्ट संपहनिवों जाओ ॥५०॥ 
तो हरिसवसविसप्पंतबहलरोमंचकंचुइयगत्तो । गंतुं तेसिमुवस्सयममिवंदिय मणिउमाढत्तो ॥£१॥ 
भयवं | तुब्मे जाणह म॑ नियसीसं ? तुह्पसाएणं । सो तारिसओ होउं संपह एयारिसो जाओ ॥५२॥ 
दाउ' सुओवओगं भणियं सम्मं तुमं वियाणामो | कोसंबीए महायस ! खणमेगमदह्ेसि मह सीसो ॥ ५२॥ 
जय सन्नाणदिवायर ! परोवयारेक्रसिय ! गुणमवण !। करुणारसरयणायर ! नमो नमो तुज्म पायाणं ॥५०॥ 
दारिददसमुद्पडंतजंतुनित्थरणजाणवत्ताण । करुणारसरयणायर ! नमो नमो तुज्झ पायाणं ॥५५॥ 
सग्गा-5पवग्गसंसग्गकारयाणं महाणुभावाणं | करुणारसरयणायर ! नमो नमो तुज्ञ पायाणं ॥५६॥ 
चकं-5कुस-घधय-झस-कमल-कुलिसमुपसत्थलक्खणधराण । करुणारसरयणायर ! नमो नमो तुज्ञ पायाणं ॥५७॥ 
इय थोऊरणं नयणंसुपूरियच्छो पहूण नमिऊणं । धरणीयले निसन्नो धम्मं सोउं समाढत्तो ॥५८॥ 
भयवं ! कि धम्मफलं ? गुरूहिं भणियं जिणप्पणीयस्स । धम्मस्स फलमुयारं विसिदट्ठसग्गोउडपवग्गों य ॥५९॥ 
सामइय॑''''' 'फल''''' 'साहइ सूरी सुए महाराय !। अव्वत्तस्स वि सामाइयस्स रज्जाइ फलमउलं ॥६०॥ 
ता दिट्वपच्चनओ सो भणइ निवो सामि ! तुम्ह सीसो हं । पुष्व॑ पि अणुग्गहिओ संपयमवि मं अणुग्गहह ॥६१॥ 
तो भणियं मुणिवदणा जह सत्ती राय ! ता पवज्ज वयं | अहवा सावयधम्मं प्रयणसारं समायरसु ॥६२॥ 
तो तेणमिमों धम्मो रंकेण व पाविउं निधागं व । सावगधम्मों विहिणा गुरूवएसेग जह विहिओ ॥६३॥ 
जह रंकत्तं सुमरिय सत्तागारेसु दावियं दाणं । जह जिणरहजत्ताओ अणारिएसुं मुणिविहारों ॥६४॥ 
जह साहू वणियावणेसु असणाइदाणमाइट्ट | जह अज्जमुहत्थी वि हु कओ विसंभोइओ गुरुणा ॥६५॥ 
जह धम्मं काऊणं राया वेमाणिएसु उववन्नो । अणुहृविउं सुररिद्धि चुओ जहा सुद्भवंसम्मि ॥६६॥ 
लद॒धूण माणुसत्तं कम्मं खबिऊण पाविही मोक्खं । सतबं सवित्थरेणं तहा निसीहाओ विन्नेयं ॥६७॥ 
एएणं अव्वत्तगसामइणणं वि महांफलं रज्जं | पत्तं जो पुण विहिणा कुणइ इमं तस्स परमपय ॥६८॥ 
॥सम्प्रतिराजाख्यानकं समाप्तम ॥३६॥ 
नियोतपापमनवद्यक्नतिप्रधानं शश्वत्व्वभावसमभावितश्त्रु-मित्रम्‌ । 
सामायिकर तृण-मणीसमभावमेवं सम्यक्‌ समाचरत सर्वविदा प्रणीतम्‌ ॥१॥ 
॥ इति श्रीमदाप्नरेवसूरिविरचितवृत्तावाख्यानकमणिकोशे सामायिकफलवण्णन एकादशो<उघधिकारः समाप्त: ॥११॥ 


/्फ््न सुबरच्रस 


[ १२. जिनागमश्रवणफलाधिकारः ] 


व्याख्यातः सफलप्रपश्चनः सामायिकाधिकार: | साम्प्रतं कततामायिकेन सदागमश्रवर्ण विधेयमित्यनेन सम्बन्धेना5डयात- 
मागमश्रवणफल व्याख्यातुकाम आह-- 
आगमवयण्ं निसुयं थेव॑ पि महोवयारयं होह । 
नाय॑ चिलाइपुत्तो तह रोहिणओ य नायव्वो ॥१७॥ 
व्याख्या--आगमबचन' सिद्धान्तवाक्यं “निश्रृं तं' नितरामाकर्णितं 'स्तोकमपि' स्वल्पमपि 'महोपकारक' बृहदूगुणं 'भवति! 
जायते । '्ञातं' दृष्टान्तः 'चिलातीपुत्र:ः धनदासीपूत्र: 'तथा' तेनेव प्रकारेण 'रोहिणेयकश्च” रौहिणेयकामिधानश्ौर: 'ज्ञातव्य:” 
बोद्धव्य इत्यक्षराथ: ॥१७॥ भावाथंस्त्वास्यानकाभ्यामवसेय: । ते चामू। 


श्श्द्वे आखश्यानकमणिकोशे 


तत्र तावत चिलातीपुत्राख्यानकमाख्यायते। तशथ्ेद्मू-- 


इह कम्मि वि सुहवासे तहाविदे वसइ सन्निवेसम्मि | सुय-जाइमउम्मत्तो नामेणं जन्नदिन्नदिओ ॥१॥ 

सो नाणलवुम्मत्तो निंदह पासंडिए हसइ देवं | पडिजाणाइ पमाण्ण वेउत्तमपोरिसेयत्ता ॥२॥ 

पुरिसा हि रायवसया वयंति विवरीयमेव ज॑ कि पि। इय सो मयावलेवा खायह द्पेणमंगाईं ॥३॥ 

अह अन्नया तहाविहथेराण समीववासिणा निसुयं | एयं खुड्डुयमुणिणा तेणुत्तं भद्द ! मा भणसु ॥9॥ 

न य वयणमेत्तओो खिय जायइ साहुत्तणं विवेईणं । तम्हा जंपसु सद्धि ताव मए कि वियप्पेण ? ॥५॥ 

तेणुत्तं पणपुव्व॑ जंपामि स केरिसो ? दिएणुत्त | जइ हं जिणामि ता त॑ करेमि बडुयं नियविणेयं ॥६॥ 

अह नो ता तु सीसो भवामि इय सक्खिणो सुणावेउं | भणियं मुणिणा न घडइ वयणं जम्हा विरुद्धमिमं ॥७॥ 
जद वयणमेस धम्मी तुह ता भण कहमपोरिसियं त॑। अत्थं च अत्तणों कह तं॑ कहिही निययमिह कहसु ॥८॥ 
अह अज्नो त॑ं कहिही सो नणु रागाइसंगओ संतो । विवरीयं पि हु भणिही ता कह जुत्तीए तं घडइ ? ॥९॥ 
इच्चाइजुत्तिसंगयपमाणवयणेहिं सो कओ तइया । निष्पिट्रपण्ह-वागरणवयणओ सब्भपञ्चकखं ॥१०॥ 
फ्वाबिओ य तेणं सुसाहुसंगाओ परिणओ धम्मों | नवरं मणयं न मुयइ मणम्मि सो जाइमयमेत्तं ॥११॥ 
अह माहणीए नियप्जइणीए पावाए मोहवसयाए । दिल्लो जोगो भत्तम्मि तेण मरिडं सुरो जाओ ॥१२॥ 

सा वि हु निब्वेएणं गुरूण कहिऊण निययवुत्तंतं । पन्‍्कज्ज काऊणं देवी मायाह संजाया ॥१३॥ 

तत्तो सग्गाओ चुओ रायगिहे जाइमयकुदोसेणं | धणइब्मदासचेडीए सो चिलाए सुओ जाओ ॥१४॥ 
जाओ य अट्ववरिसो सा वि हु चविऊण देवलोयाओ । पंचसुओवरि जाया धणधूया सुंसमा नाम ॥१५॥ 

सो तीए बालगाही पुव्वभवब्भासओ अणालिपिओ | निद्धाडिओ धणेणं तदोसेणं नियगिहाओ ॥१६॥ 

जाओ प"्लीवइणो पुत्तो पल्लीवयम्मि य मयम्मि | सो चेव य तस्स पए चोरेहिं निवेसिओ तेहिं ॥१७॥ 
अमरिसवसओ तेणं भणिया ते अज्नया निययचोरा । रयणाइं दविणजायं तुम्हं मह सूसमा कन्ना ॥१८॥ 
जामो धणस्स गेहं अहं वियाणामि गेहमम्म॑ से | इय मंतिकण चोरा पड़िया धाडीए धणगेहे ॥१९॥ 

तत्तो य चोरवइणा चिलाइपुत्तेण हकिओ सेट्टी । भणसि न भणियं संपह् होसु मणसो मुसामि अहं ॥२०॥ 
तत्तो य रित्थ[**'**' ]गुणरयणखार्णि च सुंसुमं घेत्त । सकक्‍ख॑ पेच्छंतस्स वि चिलाइपुत्तो विणिक्खंतो ॥२१॥ 
रायाणं आपुच्छिय पभायसमए निरूविया कुढिया | रयणाइय॑ मुयाविय चलिया कुढिया गया चोरा ॥२२॥ 
सुयपंचगेण लग्गो पट्टीए धणो पलाइया चोरा । निव्वाहिउमचयंतो तं कन्न॑ं सो चिलाइसुओ ॥२३॥ 

मूढो सीस॑ छेत्तं तीए मुहं पत्थिओ पलोयंतो । ते वि हु विलक्खचित्ता छूगा तं सोइउ' बालं ॥२४॥ 

हा मयणघरिणितुल्ले ! लायन्नामयललामजलकुल्ले ! | हा सोहर्गविडंबियगिरिदुहिए ! हा सयासुहिए ! ॥२५॥ 
जाव न विदलइ हिययं भम्हाणं तुह गुणे सरंताणं । इंदीवरदलनयणे ! ता वच्छे ! पयड नियबयणं ॥|२६॥ 
ताव परिसुसियकंठा मरणावत्थं गया छुह्ाभिहया । जणएणुत्ता दुहियं मं खाउः तरह वसणमिमं ॥२७॥ 

इय सेसेहिं वि भणियं कमेण नो मत्नियं इमं जाव । ता सुंसुमाए देहं भरत्त-दुद्ठेहि न॑ भुत्त ॥२८॥ 
एयुवमाए जईणं आहारो वज्निओ जिणिंदेहिं । नित्थेरिउं ते वसणं पुणरवि सुहभायणं जाया ॥२९॥ 

सो वि हु चिलाइपुत्तो पेच्छट झाणट्ठियं मुर्णि एगं । भो ! मज्झ धम्ममक्खसि जइ णो तुज्ञ वि लुणामि सिरं ॥३०॥ 
उबसम-विवेग-संवरपएहिं तिहिमक्खिओ समासेण । जा सो तहेव गच्छद तो चिंतिउमेवमारद्धो ॥३१॥ 

एसो महाणुभावो धम्मज्ञाणट्विओ मए विग्घं | काउं पुट्ठो धम्मं ता धम्मपयाण को अत्थो १ ॥३२॥ 
तत्थोवसमी कोहस्स निम्गहों सो कहं नु कुद्धस्स ? | मह संजायइ तम्हा चत्तो सब्वो मए कोहो ॥३३१॥ 
बीयं तु विवेगपयं तं पुण घण-सयण-जीवमेयत्थं । तो त॑ परिभार्वितो स महप्पा मुयइ खम्गसिरे ॥३४॥ 


१. निच्छुरियं- रं०। 


१२, जिनागम्रवणफलाधिकारे रोहिणेयकाणल्यानकम १२७ 


जाव णमेयइ वेयद्‌ एस जिओ ताव बंधओ भणिओ । तो संवरपयबुद्धों काउस्सग्गे ठिओ भयवं ॥३५॥ 
तो रुहिरगंधसंपत्तवज्जतुंडप्पिपीलियाहिं सो । खज्जतो सुपसंतो थिरचित्तो चालणि व्वय कओ ॥३६॥ 
भणियं च-- 
जो तिहिं पएहिं धम्मं समभिगओ संजम समभिरूढो । उवसम-विवेग-संवर चिलाइपुत्तं नमंसामि ॥३७॥ 
अहिसरिया पाएहिं सोणियगंधेण जस्स कीडीओ । खायंति उत्तमंगं त॑ दुकरकारयं बंदे ॥३८॥ 
धीरो चिलाइपुत्तो मुयंगलीयाहिं चालणि व्व कओ | जो तह वि. खज्जमाणो पडिव्न्नो उत्तमं अट्टं ॥३९॥ 
अड्डाइज्जेहिं राइंदिएहिं पत्तं चिलाइपुत्तेणं | देविंदामरभवर्ण अच्छरगणसंकुलं रम्मं ॥४०॥ 
आगमवयणं सोच्चा जह संबुद्धों इमो महासत्तो | तह अन्नो वि हु बुज्ञद तो सोयव्वं सया वि इमं ॥४१॥ 


॥ चिलातीपुशत्राब्यानकं समाप्तम ॥३७॥ 
अधुना सैहिणेयकाख्यानकमारभ्यते | तशथ्ेद्स-- 


सिरिरायगिहे रिउकरिवियारणो सेणिओ नरवरिंदो । बंधुरबुद्धिसमिद्धो अभयकुमारों सुओ तस्स ॥१॥ 

तत्थ य वेभारगिरिंदगुरुगुहारोहयूढकयवासो । लोहक्खुरामिहाणो निवसइ चोरों महाकूरों ॥२॥ 

अवहरिय धणं लोयाण सुत्त-मत्त-प्पमत्तचित्ताण | उवभुंजह परदारे भक्खइ मंसं महुं पियइ ॥।३॥ 
सोहग्ग-रूव-मुदेरमंदिरं रोहिणी पिया तस्स | ताण सुओ रोहिणओ गुणेहिं अहियं जणेरसमोीं ॥४॥ 
नियमरणकालसमए भणिओ लोहक्खुरेण सो एवं । जंपेमि किचि. जह कुणसि वुत्तयं जाय ! मज्झ तुम ॥५॥ 
तो रोहिणओ पणमिय पयंपए भणसु ताय ! भणियव्वं | तेणुत्तं मिच्छाए बलियत्तं चोरियामम्मं |॥६॥ 

अबरं च एस सुरवरनमंसिओ जो जिणो महावीरों । वयणं पि तस्स मा सुणसु महसि जह संपर्य विउलं ॥७॥ 
एवमणुसासिऊणं पुत्त पंचत्तमुवगओ चोरों । रोहिणओ वि हु सविसेसचोरियं कुणई जणयाओ ॥८॥ 

अह अन्नया य भुवणत्तएण पणमिज्जमाणक्रमकमलो । गुणसिलयचेइयम्मी बीरजिणिंदों समोसरिओं ॥९॥ 
रोहिणओ वि हु दट्ठरूण जिणवरं नियमणे वियप्पेइ । जह वीरजिणब्भासेण जामि ता होइ धम्मसुई ॥१०॥ 
जायइ जणयस्सा55णामंगो मग्गो वि नत्यि पुण अवरो | ता एस वम्ध-दुत्तडिनाओ जाओ ममेयाणिं ॥११॥ 
ता वच्चामि पिहेऊण कन्नजुयलं करंगुलिजुएण । इय चितिउं तहेव य काउं निच्च॑ पुरं वयइ ॥१२॥ 

अह अन्नया य वेगेण गच्छमाणस्स समवसरणंते । तस्स सुनिट ठु रपयपपडणभावओ कंटओ भग्गो ॥१३॥ 
तेणाणुद्धरिएणं न तरइ गंतुं पयं पि रोहिणओ । अह उद्धरह तओ जिणवयणं सवणोयरं विसइ ॥१४॥ 

जा एगसवणविवराओ अंगुलिं कड्डिडं तमुद्ध रद । ता जिणवीरपरूवियसुरस्सरूवं सुयं तेण ॥१५॥ 
अणमिसनयणा मणकज्जसाहणा पृष्फदामअमिलाणा । चररंगुलेण भूमि न छिवंति सुरा जिणा बिंति ॥१६॥ 
जिणभणियसुरसरूव॑ परिभार्वितो मणम्मि संचलिओ । मुसिऊण पुरं पुणरवि समागओ नियगुहागेहे ॥१७॥ 
एवं मुसिज्ञमाणे नयरे अम्गेसरा नरा मिलिउं | पणमित्तु निव॑ आबद्धकरयला विज्ञवंति इमं ॥१८॥ 

देव ! अणाहं व सया मुसिज्जए तुम्ह संतियं नयरं । ता तह करेसु जह सुत्यिया वयं तुह कमे नमिमो ॥१९॥ 
त॑ निमुणिऊण दद्गोट्र-भिउडिभासुरनिडाल्वट्रेग । आरक्खिओ सकोवेण राइणा जंपिओ एवं ॥२०॥ 

रे पाव ! कि न नयरं पि रक्खिउं तरसि तक्करेहिंतो ? । एवं वुत्तो सो नरबरिंदमुल्लविउमारद्धों ॥२१॥ 
देव ! पयंडो चोरों निसुओ पुरजणपरंपराए मए | रोहिणओ नामेणं न उणो दिद्टीए सचविओ ॥२२॥ 
तस्सावलोयणत्थं नियकरयलकलियदीवीओ देव ! नयरे परिब्भमंतो कत्थइ पेच्छामि अब्बत्त ॥२३॥ 

जा तस्स धरणकज्जे सज्जीहया वर्य पयद्टामो । मग्गेण ताव चोरो विज्जुक्खित्तेहिं करणेहिं ॥२४॥ 


कक न--+- 3 फ+4->मरननपका-.ल्‍बबभन- कक नाना-- कक -. ५०००००० ०० ०“»+ ०० के क्न्‍नीओ न 


१, कि पि जह- २० | 


श्श्दे 


आख्यानकर्माणिकोशे 


पासायाओ पासायमक्कमेउं तहेव पायारं । निउणं पेच्छंताण वि कत्थइ बच्चद न याणामो ॥२५॥ 

ता कस्सह आरक्खियपयं पयच्छंतु सामिणो एयं | त॑ निसुणिउं ज़्रिंदों प्लोयए अभयमंतिमुहं ॥२६॥ 

तेणुत्त तग्गहणे पठणीकाउं चउव्विहं पि बलं । जह तक्करो न याणइ पुरे पइट्ठे तओ तम्मि ॥२७॥ 

वेढेऊणं नयरं मज्झे हक्षिज्ए तओ चोरों | निग्गच्छंतो बज्ञइ एस मई ताव तग्गहणे ॥२८॥ 

तहविहिए आरविखयभडेहिं पायारमक्कमंतो सो । बद्घुं मऊरबंधेहिं घत्तिओ रायपयपुरओ ॥२९॥ 

तो कोवरत्तनेत्ण भालतिवलीतरंगभीमेण | जा वज्ञो आणत्तो सेणियराएण रोहिणओ ॥३०॥ 

तो विन्नत्तं अभएण नत्थि लोत्तं इमस्स पासम्मि | चोरो अलद्धलोत्तो जायइ राओ व्व नरनाह ! ॥३१॥ 

ता देव ! परिविखज्जदइ इय जंपिउमभयमंतिणा पुट्टी । को सि तुम कत्थ5च्छसि इय भणिए आह रोहिणिओ ॥३२॥ 
सालिगामे वत्थव्वगो अहं दुग्गचंडकोडंंबी | निययपओयणकज्ज अज्जेव समागओ एत्थ ॥३३॥ 

पेच्छणयं पेच्छंतस मज्म महई निसा गया देव ! । तो गच्छंतो गेहम्मि हक्किओ रायपुरिसेहिं ॥३४॥ 

तो तेहिं भेसिओ हं विज्जुक्खित्तेण जाव करणेण । पायारं अक्कंतो पत्तो ता तुज्ञ पुरिसेहिं ॥३५॥ 

तब्वयणं सोऊणं पुच्छावियमभयमंतिणा गामे । जह दुग्गचंडनामो कोइ कुडुंबी वसइ इहईं ? ॥३६॥ 
अप्पायत्ता विहिया गामीणा रोहिणेण पुष्ब॑ पि। जंपंति अत्थि परमज्ज सो गओ कहिं वि कज्जेण ॥३७॥ 

त॑ सोउमभयमंती चिन्तहइ चोरो इमो5हवा साहू । नज्जइ नउज्जइ कि पि हु कीरठ ता कोइ वि पबंधों ॥३८॥ 
इय चितिय कारविओ कणयमओड<भयकुमारसचिवेण । अमरविमाणसमाणो मणोहरो गरुयपासाओ ॥३९॥ 
चीणंसुय-पट्टंसुय -जदर-देवंग-देवदूसे हि । कयउल्लोओ वेल्नहरुघयवरडा डोयडंबरिओ ।॥४०॥ 
उल्लोयतलपलंबियमुत्ताहलहारदित्तिदिप्पंतो । तवणीयद॒प्पणावलिचामरनियरेहिं रेहंतो ॥४१॥ 
रणझणिरकणयकिकिणिकल!वमुह लिज्वमाणद्सिचको । कयपंचवन्नपुण्फोवहाररुणुझुणिरममरउलो ॥४२॥ 
विदृदु म-मुत्ताहल-पउमराय-वज्बिदंरायपमुहाहिं । विप्फुरियकिरणमालाहि रयणरासीहिं सोहंतो ॥४३॥ 
विलसंतसालिहंजियम णिघडियसुमत्तवारणाइन्नो । सब्वत्तो विणिवारियदिणयरकिरणावलीपसरों ॥४४॥ 
उब्बूढपढमजोव्वणपीवर-सुसिणिद्ध-सुघणसिहिणाहि । वारविलयाहिं कलिओ तह नवजोव्वणजुवाणाहिं ॥४५॥ 
मिउवेणु-वीण-मद्दलरवमी सियमंजुगेयसवणसुहो । कि बहुणा ? भुवणत्तयसंभविसुंदेरसोहन्तो ॥०६॥ 

तो रोहिणओ चंदप्पमं सुरं पाइऊण मयमत्तो | पडएण छाइउं तत्थ सोविओ रुइरपलल्‍लंके ॥9७॥ 

तो मयनिद्दाविर्मे अवणेउं पडयमुद्रण जाव | अभयाणुसासिओ तयणु उद्टिओ जुबइ-जुबवग्गो ॥४८॥ 

जंपंतो जय नंदा जय जय भद्दा पहू तमम्हाण | जाओ देवो अम्हे वि तुज्ञ पुण किंकरा सब्वे ॥9९॥ 
एआओ अजच्छराओ एए देवा इमं नियविमाणं । एयाओ रयणरासीओ सामि ! विलससु जहिच्छाए ॥५०॥ 
तो तेहिं तस्स पुरओ पारद्धं जाव परमपेच्छणयं । ता कंचणदंडकरेण जंपियं एबममरेण ॥५१॥ 

रेरे! कि पारद्धं ? ते वि पयंपंति निययपहुपुरओ । विन्नाणदंसणं तयणु दंडहत्थेण पडिभणियं ॥५२॥ 
दंसिज्जउ विन्नाणं कारिज्जउ परमिमो सुरायारं । जंपंति ते वि केरिसमायारं ? आह दंडकरो ॥५३॥ 

रे ! बिस्सेरियं तुम्हं सुरलोए सुरवरो समुप्पन्नो । जं पुव्वभवोवज्जियसुक्य-दुकयाईं साहेह ॥५४॥ 

तो उवभुंजई नियपुन्नपगरिसुब्भूयसग्गवाससुहं । सोऊण तय॑ ते बज्जरंति विम्हरियमम्हाणं ॥५५॥ 
नियसामिसमुप्पत्तीए जायपरिओसपूरियंगाण | ता ख॑मउ एगमवराहमज्जमज्जो ! कयपसाओ ।॥।५६॥ 
रोहिणओ वि हु तमदिद्वपुव्वमच्छेरमणुपलोयंतो । करकलियकणयदंडेण सविणयं तेण विज्नत्तो ॥५७।॥॥ 

पहुणो कयप्पसाया कहंतु नियसुकय-दुकयकम्माईं । जेग [ सु ]पुन्ना अमरा तं सोड चिंतए चारो ॥५८।। 
किमहं जाओ अमरो ? जइ सच्चमिमं तभो कहिज्जंते । लवमेत्तो विन दोसो अह अलियं ता महाणत्थो ॥५९॥ 


१, ०दनीलपमु०- रं०। २, वीसरियं- रं०। ३, खमसु एगमवराहमज्कममजो- २० । 


१७ 


१२. जिनागमर्रवणफलाधिकारे रौहिणेयकाल्यानकम्‌ १२६ 


एवं विचितयंतस्स तस्स सिरिवीरनाहवज्जरियं । संभरियं अमरसख्ववन्नणं तो विचितेद ॥॥६०॥ 

जहइ मिलिही जिणमणियं तओ कहिस्सामि इय विभावेउं | जाव पलोयइ निउणं ता नियह न कि पि सुररूवं ॥६१॥ 
नयणनिमेसुम्मेसे कुणंति फरिसंति तह महीवलयं । पगलंतसेयवारणकज्जे परिकलियवीयणया ॥६२॥ 

ता मज्झ जाणणकए होयव्वं अभयमंतिबुद्धीप | इय चिंतंतो पुणरवि य पुच्छिओं तेण सो कहइ ॥६३॥ 
अहमासि सालिगामे कोडुंबी दुग्गचंडय5मिहाणो । पयईए महुरवाणी दयावरो दाणधम्मरओ ॥६४॥ 
पररमणिविरत्तमणो सब्वेसि सुराण विहियबहुमाणो | विणयरओ सब्वेर्सि विसिसओ वयपवन्नाणं ॥६५॥ 
पाएण तुच्छविहवो सच्छासयसंगओ अपेसुन्नो । तेणुप्पन्नो अमरो पयंपण तयणु दंडधरो ॥६६॥ 

ता आयद्नियमेयं सुन्द्रमिण्हि असुन्दरं कहसु । सो भणइ न कि पि कय॑ असोहणं करिसणं मोत्त' ॥६७॥ 
तो तेहि तहा भणियं अभयकुमारस्स सव्बमक्खायं | तेणावि निवो भणिओ न सब्वहा एस चोरो त्ति ॥६८॥ 
तो मुक्को कड्डं ऊण राइणा रोहिणो समोसरणे । वच्चइ परिभावंतो न सोहणं जणयसिक्खवर्ण ॥६९॥ 

जइ न सुणंतो कंटयमवर्णितो भुवणसामिणो वयणं । तो हुंतो नरवइणा विणासिओ हं कुमरणेण ॥७०॥ 
एक्ेण वि पुण मुको जिणवयणेणं सुएण एमेव । ता सु दरं जिणेसरपयंपियं न उण जणयस्स ॥७१॥ 

एवं परिभावंतो जिरणिंदचरणारविंदमछ्लीणो । जिणचरणक्रमलमलियभालयलो पणमिउ' थुणइ ॥७२॥ 

जय करुणारसनिज्ञरगिरिंद ! मुणिवंदवंदिय ! जिणिद ! । दुब्वारमारवारणनिद्दवारणदारुणमइंद ! ॥७३॥ 
एमेव य तुह वयणं निसामियं सामिसाल ! सत्ताण। महईणं पि हु मज्स व विवईण विणासणं कुणइ ॥७४॥ 
इय थोडं वीरजिणं सो्ड सद्दंसणं जिणामिहियं । रोहिणओ पणमेउं कयंजली सविणयं भणइ ॥|७५॥। 

भयधव॑ ! भवनिम्महर्णि पव्वज्जमहं करेमि तुह पासे । परमत्थि कि पि सेणियनिवेण सह मज्ञ वत्तव्वं ७६॥ 
अह सेणिओ पयंपइ पभणसु ज॑ कि पि तुज्ञ पडिहाइ । तो तेणुत्त अहमेस तकरो रोहिणो नाम ॥७७॥ 
जेण अणाहं व पुरं मुसियं सब्वं पि तुज्ञ नरनाह !। ता संपेससु अभयं जेण समप्पेमि धणजायं ॥७८॥ 
तो कोऊहलपरिवुडसपउररोहिणयसंजुओ अभओ | पत्तो वेभारगिरिं तत्थ धण्ं दंसियं तस्स ॥|७९॥ 

अवरं च सरिय-कंदर-मसाण-भूमीहराइठाणेसु । आभरण-रयणपमिइ समप्पिउं पुच्छिउं जणर्णि ॥८०॥ 
सुपसत्थतिहि-मुहुत्तम्मि सित्रियमारुहिय विहियसिंगारो | अणुगम्मंतो सेणियनिवेण तित्थं पभावंतों ॥<१॥ 
गंतृण समवसरणम्मि जिणवरं नमिय गहियपव्वज्जो । अहिगयसयलसुयत्थो तिव्वतवं काउमारद्धो ॥८२॥ 
कणगावलि-र॒यणावलि-छट्ट-डट्टम-दसम-मासखवर्णेहिं । नाणाविहेहिं दुच्चरतवेहिं परिसोसियसरीरों ॥८३॥ 
सुक्को किडिकिडिभूओ जाओ पाओवगमणमरणेण । विप्फुरियत्तद्त्ती अमरो अमरालए रुइरो ॥८४॥। 

तत्तो य चवेऊणं स पाविही सिवपुर्रि पहयकम्मी । ता सोयव्वं आगमवयणं जम्हा गुणी गरुओ ।||८५॥ 


॥ समाप्त रसोहिणेयकाख्यानकम्‌ ॥३८॥ 
मोहं घियो हरति कापथमुच्छिनत्ति संवेगमुन्नमयति प्रशमं तनोति । 
सूते3नुरागमधिक मुदमादधाति जैनं बच: श्रवणतः किमु यन्न धत्त १ ॥१॥ 


॥ इति श्रीमदाप्नदेवसूरिबिरचितयृक्तावाख्यानकमणिकोशे जिनागमश्रवणगुणवणनों 
डादशो.5थिकार४ समाप्त ॥१२॥ 


ल्‍्श््निसुबुरच्ल.स 


र कोड बियदुर्ग ० न्रूं ० || 


[ १३. नमस्कारपरावत्तनफलाधिकारः । ] 


व्याख्यातमागमश्रवणफलम्‌ । साम्प्रतमागमश्रवणसामग्रूयभावे नमस्कारपरावतेन॑ विधेयमित्यनेन सम्बन्धेना5यात॑ 
नमस्कारमाहात्म्यं प्रचिकटयिषु राह-- 
नवकारपभावेणं जीवा पावंति परमकल्लाणं । 
गो-पड्डय-फणि-मिंठा सोमपह-सुदंसणा नाय॑ ॥१७॥ 
व्याख्या--'नमस्कारप्रभावेण” पश्चपरमंष्टिमन्त्रमाहात्म्यस्वरूपेण हेतुभूतेन 'जीवाः:” प्राणिन: प्राप्नुवन्त' लभन्ते 'परम- 

कल्याणं' प्रधानसुखम्‌ । दृष्टान्तानाह--गौश्व--वृषभः पड्ुकश्च--सैरभेयः फणी च सर्प: मिण्ठश्वथ--हस्तिपकः गो-पद्ुक-फणि- 
मिण्ठा: । तथा सोमप्रभश्च-त्राह्मण: सुदशनश्व--श्रेप्टी सोमप्रभ-सुदशनी च । चस्य गम्यमानत्वादित्यक्षरा्थ: ॥१९॥ भावाथतस्त्वा- 
ख्यानकेभ्योडवसेय: । तानि चामूनि । 
तत्न तावद्‌ गोकथानकमाशण्यायते । तश्चेदम-- 

समस्ति स्वगंसड्राशरामणीयकभासिता । भासिताभअंलिहोदारदेवसअविराजिता ॥१॥ 

जितानुपमसौन्दर्यधामरम्यालकासमा । समानमानवावासदृश्यमानमहामहा ॥२॥ 

महत्त्वगुणविख्यातनिर्णीतगुणवेभवा । वे भवानीसमाकारवारयोषिल्लसज्जना ॥३॥ 

सज्जनानाविधा भ्यासपण्डिताभ्यस्तसत्कला । कलावित्सन्मनोहद्या हया क्षेमपुरी पुरी ॥४॥ 

तस्यामासीज्नयावासो नयाभिज्ञो नयप्रिय: । नयदत्ताहयः श्रेप्टी श्रेष्ठ कर्म समाभ्रित: ॥५॥ 

शील-सौन्दयसम्पन्ना दानानन्दितसज्जना । वसुनन्दाहया भायों तस्यासीद्‌ वर्यवंशजा ।।६॥ 

स्वच्छाशय: सदाचारः सत्यवाक्‌ शिष्टसम्मत: । धनदत्ताहय: पृत्रस्तयोजजे जनग्रिय: ||७॥ 

द्वितीयोडपि मनाग्‌ मानी माननीयो मनस्विनाम्‌ । बभूव वसुद॒त्ताहः सुतः स्वश्रातृवत्सल: |८॥ 

अथ तत्रेव दुष्टात्मा दौजन्यप्रकृतिद्वधिजः । नानायज्ञावनि: पापात्‌ पापमित्रमभूत्‌ तयो: ॥९॥ 

तथाडन्योडपि नृणां मान्यो मानिनीनां मनोहर: । श्रेष्ठी समुद्रदत्ताहस्तत्रा55स्ते स्मयवर्जित: ॥१०॥ 

तस्य सौन्दय-लावण्यनिजितामरसुन्दरी । कन्यका गुणवत्यस्ति मन्दिरं यौवनश्रिय: ॥११॥ 

तेन सा विधिवद्‌ दत्ता धनदत्ताय धीमते । समक्ष सवेलोकानां लछामरमया समम्‌ ॥१२॥ 

तत्रैव श्रीपतित्वादिगुणे: श्रीकान्त इत्यदः । यथार्थतं नयन्‌ नामापरोउप्यस्ति वणिक्सुतः ॥१३॥ 

तेन सम्मान-दानादिगुणेरावर्जितो निजाम्‌ । तां सुतां दत्तवांस्तस्मै विलोप्य वचन स्वकम्‌ ॥१४॥ 

विरूपं पश्य कीदक्षं ताहशापि सता कृतम्‌ । यदेकस्में सुतां दत्त्वा तामन्यस्मे प्रदत्तवान्‌ ॥१५॥ 

पुरतः शिष्टलोकानामात्मनो लाघवं कृतम्‌ | प्रसिद्धव्यवहारश्र सतामेव॑ विलोपितः ॥१६॥ 

एतच्च तेन मित्रेण पिशुनत्वान्निवेदितम्‌ । वसुदत्ताय यद्वा कः स्वभाव मोक्‍्तुमीश्वर: १ ॥१७॥ 

उद्पासितश्व॒ तेनासी वचोभिः कोपदीपने: । न युक्तो मानिनामेवं सोढुं शक्तौ पराभवः ॥१८॥ 

प्रकृत्या रोषणश्रेक द्वितीयं तेन रोषितः । विरुद्धश्चिन्तयामास मानवान्‌ मानसे निजे ॥१९॥ 

मा जीवदू यः परावज्ञादु:खदग्धो5पि जीवति । तस्याजननिरेवास्तु जननी क्लेशकारिणः ॥२०॥ 

आ; ! पापेन विना कार्यमनायेण दुरात्मना । प्रागप्यन्याय्यचर्यण पर्यणायि कथं छलात्‌ ? ॥२१॥ 

भाया आतुमंमानेन वेरिणत्यतिरोषतः । गत्वा खज्नप्रहारेण प्रापितोडसौ परासुताम्‌ ॥२२॥ 

तेनाप्यसौ तथेवा55शु मृत्युवक्त्रे प्रवेशितः । तावेव॑ कार्यतस्तस्य मृतति प्राप्ती परस्परम्‌ ॥२३॥ 

सो5यं वज्ाम्निदाहस्य मुमुंराग्निकणोपम:ः । राम-रावणयोराद्यः प्रारोहों वेरशाखिनः ॥२४॥ 

अथानेन प्रकारेण तयोमृत्युमुपेयुषो: । स्वपित्रा गुणवत्युक्ता विषादं पुत्रि | मा गमः ॥२५॥ 


१३, नमस्कारपरावक्तनफलाधिकारे गोकथानकम्‌ १३१ 


येनाधमेफलं स्वेमेतदाख्यान्ति सूरयः | विशेषतः पुनः स्रीणां पापभावेन तद्थथा ॥२ 
वेधव्यं बालभावेडपि दौमोम्यं शीलखण्डनम्‌ | अनाथत्वं च वैरूप्यं पेशुन्यं दुष्टभाषणम्‌ |॥|२७॥ 
ततः कुरुप्व सद्धम मत्साहाय्येन निवृंता । जन्मान्तरेडपि येनैवं न भवेद दुःखभाजनम्‌ ॥२८॥ 
सा पुनः पापकमत्वाद धम निन्दृति पापिका । गुणिनां च गुणान द्वृष्टि साधूंश्व हसति स्वयम्‌ ॥२९॥ 
ततोडसौ संख्ती प्रायः सज्ञाता दुःखभाजनम्‌ । अयोग्यस्य गुणाघानं विधातुं कोडथवा विभुः १ ॥३०॥ 
ततो वेधव्यदु:खेन मृताउसो स्वायुषः क्षये । कुरड्ली समभूत्‌ पापान्मृत्वा तौ च कुरज़्को ॥३१॥ 
सदैव जायते ताभ्यां करमवैचित्ययोगतः । वैरानुबन्धभावेन मृत्युभावं प्रघयते ॥३२॥ 
हरिण्या हारिणे भावे महिष्या माहिषे भवे । हस्तिन्या हास्तिक्रे जन्मन्यन्योन्यं तो सृर्ति गती ॥३३॥ 
एवं वेरानुबन्धेन त्रयोदश भवानमू । तस्या: प्रयोजने रौद्रध्यानतो निधनं गती ॥३४॥ 
यथाउनयोरियं जाता निमित्तं दुःखसन्तते: । तथाउन्यस्यापि नारीय॑ प्रायोडनथंपरम्परा ॥३५॥ 
यद्यप्यसौ क्वचिद गीता कारणं सुख-दःखयोः । अतत्त्वदर्शिभि: केश्वित्‌ सामान्येनेव तद्यथा ॥३६॥ 
सत्यं जना: | वच्मि न पक्षपातो, लोकेपु सप्तस्वषि तथ्यमेतत्‌ । नान्यन्मनोहारि नितम्बिनी भ्यो दुःखेकहेतुन च कश्विदन्यः ॥ 
तथापि वासनामात्रं सोख्यमस्यां न तत्त्वतः | बडिणामिषवत्‌ तुच्छं ज्ञेयं पयन्तदारुणम्‌ ॥|३८।। 
धनदत्तश्व॒ भव्यत्वाद दृष्ठा तच्चेष्टितं तयो: । वेराग्यात्िगंतों गेहाद्‌ आम्यन्‌ गामेकया दिशा ॥३९॥ 
पीडित: क्षुत-पिषासाम्यां प्राप्तो राजपुरं क्रमात्‌ | विलोक्य ब्रतिन: कांश्वित्‌ तत्रा55चाररतान्‌ निशि ॥४०॥॥ 
मुमुदे मानसेउत्यन्तं तोषाच् समचिन्तयत्‌ । धन्या: सुलब्धजन्मानः पुण्यवन्तश्व केडप्यमी ॥०१॥ 
अजानानस्तदाचारं ययाचे भोजनादिकम्‌ | तेरूचे भद्र ! नास्माक निःसह्नलादुपाश्रये ॥४२॥ 
प्रियते धान्य-पानादिवस्तु रात्री विशेषतः । तवापि पापदेतुलवान्न युक्त रात्रिमोजनम्‌ ॥४३॥ 


यत उक्तम्‌-. 

स काल: कश्चिदत्रास्ति यत्र नेवोपभुज्यते । हित्वाउकार्ल ततः काले यो भुन्नीत स धर्मवान्‌ ॥३४॥ 

आयुवषशतं लोके तद्ध स उपोषितः | करोति विरति धन्यो यः सदा निशिभोजने ॥४४५॥ 

घटिकाध घटीमात्रं यो नरः कुरुते त्रतम्‌ । स स्वर्गी कि पुनयस्य त्रतं यामचतुष्टयम्‌ ॥४६॥ 

जीवितं देहिनां यस्मादनेकापायसड्कुलम्‌ । कथश्विद्‌ देवयोगः स्थान्नक्त सोडनशनी भवेत्‌ ॥४७॥ 

श्रुव्वेदं भाषितं तेन धरम: स्वेज्ञभाषितः । अणुव्रतादिकः सर्वों जग्हे जन्मिनां हित: ॥9८॥ 

पालयित्वा स्वक धर्म भावना-5भ्यासयोगतः । सम्यम्दशनसम्पन्न: सौधर्म5मूत्‌ सुरोत्तम: ॥४९॥ 

पश्चप्रकारमौदायसारं वेषयिक॑ सुखम । सुरख्रीभि: सम॑ तत्र भुकत्वा द्वे सागरोपमे ॥५०॥ 

रलपुण्जयुतैरद्वेजने: सद्रलभूषणे: । यथार्थनामतां बिश्रदासीद रलपुरं पुरम ॥५१॥ 

तत्राभू ललोकमध्यस्थः प्रोत्तड़: सुमन:प्रियः | नामतोडन्वथतश्वापि ख्यातो मेरुप्रभो वणिक ॥५२॥ 
युता5सो समाधुयः सुकोशोउभ्रमरोचितः । प्रियमित्र : पवित्रोउस्थाभूत्‌ पढुजमुखः सुतः ॥५३॥ 

वधमानो जडमुक्त: सत्पत्रो मन्दिर श्रियः | स्पृष्टो मित्रकर: श्रेयानुज्जजम्मे जनप्रियः |५०॥ 

क्रमेण सरसाहारों निष्पन्ठ: साद्रतास्पदम्‌ | पूजनीयाचनप्रहः प्रौढभावमुपागतः ॥५५॥ 

सम्मतो राजहंसानामालयों गुणसन्ततेः । भूषणं वंशसरसो विश्रुतो नालसड्भगतः ॥४६॥ 

द्वाससततिकलाभिज्ञो धममार्गे विचक्षण: | क्रमेण वधमानोउ्सौ सम्प्राप्तो यौवनश्रियम्‌ ॥५७॥ 

मेरुप्रभेण मित्रोडसो पहुजास्योडम्यधाय्यद: । वत्स ! वाह्या अमी अश्वा विनश्यन्ति विसृत्रिता: ॥५८॥ 

विनीता जातिसम्पन्ना: स्वभतुमंद्रकारिण: । संवाह्या: पोषणीयाश्र सच्छिप्या इव वाजिनः ॥५९॥ 

अड्जीकृते पितुवोक्ये विनीतत्वाच्च दक्षिणात्‌ । ढोकथ्रामास ततपत्तिरश्वमेक॑ महागुणम्‌ ॥६०॥ 


१३२ आश्यानकमणिकोशे 


तथा हि-- 
नानालक्कारसुम्रीब॑ रामसेन्यमिवानघम्‌ । विन्ध्यारण्यमिव प्रोच्वेश्वामरोपनिषेवितम ॥६१॥ 
नपास्थानमिव व्यक्तमुल्ल्सत्कविक पुरः । विशिष्टश्रुतिसम्पन्न॑ सैद्धान्तिकमनःसमम्‌ ॥६२॥ 
निदोषधारया युक्त तीक्ष्ण्खड्गक्ृतोपमम्‌ । प्रशस्तलक्षणोपेतं शब्दशाख्रविदं यथा ॥६३॥ 
विहितस्फारश्रृज्ञारों रम्यालह्लारधारकः । सद्वेष: सुहृदाधारस्तमारुद्य विनियेयौ ॥६४॥ 
कचित्‌ प्छुत्या कचिद्‌ गत्या क्चिद्‌ वेगेन वीह्वया । कचिद्‌ वाहयता अम्या तेनारड्जि सुहज्जनः ॥६५॥ 
ततो<पि बहिरुद्यानं प्राप्रवान नन्द्रनाहयम्‌ । तत्रेक॑ गोवृषं बृद्धू पश्यति स्म स सत्नयः ॥६६॥। 
दुबलाहु गलतन्नेत्रं विरूपं विक्ताननम्‌ । विपयंस्तं बृहच्छवासं विनियन्मृत्र-गोमयम्‌ ॥६७॥ 
चतुर्भिश्वरणेम्‌ मौ सविलेखेविंलक्षणे: । छन्दःश्लोकमिव अष्टच्छायं कुकविना क्ृतम ॥|६८॥ 
मुमूषु त॑ विनिश्चित्य संवेगागतमानस: । निर्वेदाचिन्तयामास सर्वस्यापीदशी गति: ॥६९॥ 
तथा हि--- 
बव गतं युद्धमेतस्य ? क्‍्व ताहग ढेक्क्कतं गतम्‌ ? | क्व गत॑ रूपलावण्यमहो ! वस्तु विनश्वरम्‌ ॥७०॥ 
तदस्य गप्रियमाणस्य करोमि कुशलाशय:ः । जन्मान्तरहितं किश्चिन्नमस्क्रारप्रदानतः: ॥७१॥ 
अभ्यर्णमूय क्णस्य संसाराणेवतारिका । वणनीयातिगा कर्ण दत्ता पश्चनमस्क्ृति: ॥3७२॥ 
गौरप्यमंस्त को5प्येष ममाकारणबान्धवः । पीयूषवर्षकल्पं मे प्रवेशयति कर्णयोः ॥७३॥ 
तथा<यं भावनासारं नमस्कारः श्रुतो गवा । तत्मभावेन येनासावुदपादि नृपान्वये |॥७४॥ 
तथा हि--- 
तत्रेव नगरे राज्ञः सन्नीतेनिहतद्विष: । सप्तच्छदस्य शुद्धान्तसाराया भुवनश्रिय: ॥७५॥ 
देव्या: कुक्षिसर:क्रोडे राजहंससमप्रभ: । शारदाअस्फुरच्छुअकीतितारों विचक्षण: ॥७६॥ 
कुमारगौरीसम्पन्न: सभूति: सविनायकः । महेश्वरश्व स नाम्ना प्रसिद्धो वृषभध्वज: ॥७७॥ 
ज्ञान-विज्ञान-सौभाग्यगुणरलमहोदधि: । विज्ञातशाखसद्भावो यौवन प्राप्तवानसी ॥७८॥ 
यथेवं भावतः स्मृत्वा गौगतो गतिमुत्तमाम्‌ । तथान्योडपि स्मरन्ेनां नरः कल्याणमश्नुते ॥७९॥ 
अहो ! माहात्म्यमेतस्या: स्पष्टं पश्चनमस्क्ृते: । यया गौरप्ययोग्योडपि जज्ने राजाह्ञजो गुणी ॥<८०॥ 
यद्वा न किश्विदाश्च्यमचिन्त्यं इश्यते भुवि । कस्यचिद्वस्तुनो वीयें व्यक्त वाचामगोचरः ॥॥८१॥ 
यत:--- 
स्वल्पाक्षरो5पि सन्मन्त्रो निमृह्लाति महाग्रहम्‌ । स्वल्पोडप्यपम्रिकणो दाद्मं दहत्येव प्रदीपित: ॥<८२॥ 
कल्पद्गुमः कनिष्ठोडपि कल्पितं राति देहिनाम्‌ | मभाति न महानागान्‌ कनीयानपि केसरी ? ॥<८३॥ 
यथतल्लोकवस्तुनां सामथ्यमवलो कितम्‌ । विशषेण तथा दृश्यं मन्त्रस्य परमेष्ठिनाम्‌ (॥८४॥ 
तथा हि-- 
यस्यासवो ब्रजन्स्यत्र नमस्कारसमा स चेत्‌ । मोक्ष कथश्विन्नो यायादवश्यममरों भवेत्‌ ॥८५॥ 
किश्व- 
पतन्नग: पृष्पमाला स्यात्‌ स्थल च जलधिभंवेत्‌ । अभि: शेत्यमवस्कन्देद्यायाच्छत्रुश्व मित्रताम्‌ ॥८६॥ 
एवं स ज्ञान-विज्ञान-सोभाग्यगुणसम्पदाम्‌ । भाजनं भुवने जज्ञे यौवराज्यपदोचितः ॥८5॥ 
अथान्येयुस्तदेवासी सहेलं वाहयन्‌ हयम्‌ | मित्रादिपरिवारेण प्रधानेन समन्वितः ॥<<॥ 
पूवोभिहितमुयान प्राप्तवान्‌ प्रीतमानसः । रम्यत्वात्‌ तत्नदेशानामितश्रेतश्व सश्चरन्‌ ॥<५९॥ 





१. ०रच्छुत्रकीत्ति-रं० | २, सम्भूति:-रं० । 


१३. नमस्कारपरायतंनफलाधिकारे गोकथानकम १्देके 


स्वेच्छया रममाणश्व त॑ प्रदेश कथश्वन । गतवान्‌ गोवृषो यत्र पूर्वजन्मन्यभूत्‌ स्वयम्‌ ॥९०॥ 

दृष्टपूर्वों मयेत्येव॑ तदावारकृकमेण: । क्षयोपशमयोगेउस्य जातिस्मरणमुद्ययौ ॥९१॥ 

क वा मयाउनुभूतोडयमित्येवं तत्र चिन्तनम्‌ | कुबोण: स्वल्पक मेत्वादज्ञासीत्‌ प्राक्तनं भवम्‌ ॥९२॥ 
अस्मिन्‌ स्थाने मया चीणे पीतमस्मिन्निहा55सितम्‌ | अमुत्र आन्तमेतस्मिन्‌ सुप्रमेवमबोधि सः ॥९३॥ 
केवल न विजानाति यथा कणामृतोपम:ः । दत्त: पश्चनमस्कारः केनापि खिग्धबन्धुना ॥९४॥ 
व्यचिन्तयच् स्वल्पोडपि धमें: कल्याणकारकः । यत्मभावादहं प्राप्तो रम्यां राज्यश्रियं क्षणात्‌ ॥९४५॥ 
परं किमेतया ऋृत्यप्राप्तयाउपि पराद्धयेया । देवयोगाद्‌ वियुक्तस्थ महाभागेन तेन में ? ॥९६॥ 
उपकुरुते यः पूव स तावत्‌ साधुसत्तम: । प्रत्युपकारलिप्सुर्यो मन्येहं सोडपि नो महान ॥९७॥ 

पूज्यों महोपकारित्वात्‌ स तावतू कि विकल्पितैः ? । प्रत्युपकारं विना तस्य समाधि: केन में भवेत्‌ ? ॥९८॥ 
ततो यदि कथश्चित्‌ तं जाने जन्मान्तरप्रियम्‌ । राज्याथ संविभज्यास्मे भविष्यामि निराकुछ: ॥९९॥ 
चिन्तयित्वा मनस्येतत्‌ निवृत्तोडसो ग्रृहान्‌ प्रति । यथावृत्तं स्ववृत्तान्तं पिन्रादिभ्यों न्‍्यवेद्यत्‌ ॥१००।। 
तैरप्यूचे कुमार ! त्वं मास्म भूरुन्मना: कचित्‌ | सत्कुब्यादौ कचिचित्रे चरितं लिख्यते तब ॥१०१॥ 
मा कश्चित्‌ कोडपि लिखित दृष्ठा तच्चरितं निजम्‌ | जातिस्मतेत्वतः सब विद्यात्‌ पूवभवान्तरम्‌ ॥१०२॥ 
पित्रादिभ्यस्तकदुवाक्यं निशम्य वृषभध्वज: । युक्तियुक्तं गुणोपेतं व्यक्तं तुष्टो3भवत्तराम्‌ ॥१०३॥ 
तस्मिन्नेव सदुद्याने तुड्त्वजितमन्दरम्‌ । मन्दिरं सुन्दरं जैनं कारयामास कालवित्‌ ॥१०४॥ 


तन्च कीटहशम्‌ ९- 


तथा हि-- 


कचिद्‌ व्योमाडुणं यद्वद्‌ विराजत्तारचन्द्रकम्‌ । कचिद्‌ रामांहियुग्मं वा तुलाकोटिविभूषणम्‌ [१०५ 
कचिद्‌ भोजनशालावद भास्वत्प्पष्टकरोटकम्‌ । कचिन्रेन्द्रकोशाभं विचित्रामलसारकम्‌ ॥१०६॥ 
जम्बूद्वीपोपम॑ विप्वण्‌ जगतीपरिवारितम्‌ | स्वगोचलेन सझ्काशं भद्रशालेन वेष्टितम्‌ ॥१०७॥ 

जगत्यां च कचित्‌ कुब्ये मुमू षुवृषभश्रुती । नमस्कार ददत्‌ कश्चिचित्रे व्यालेखि मानवः ॥१०८॥ 
नियुक्ताश्व नरास्तत्र यः कश्चिचित्रमीक्षते । प्च्छति वा तमाचडदवं ममेत्येवं विशेषतः ॥१०९॥ 
पहुजास्यो5पि तत्रा55गात्‌ कदाचिद्‌ रामणीयकम्‌ | जिनागारस्याथ पश्यंश्रित्रमेक्षिष्ट विस्मित: ॥११०॥ 
नियुक्तांश्व प्रयत्नेन पप्रच्छ प्रीतिपूवंकम्‌ । भद्गा: ! केनेदमालेखि ? तेडप्यूचुयंद्‌ यथास्थितम्‌ ॥१११॥ 
अन्रान्तरे समाहतो नियुक्तैवृंषभध्वज: । तद्गचश्च निशम्यासौ शीघ्र तत्र समाययौ ॥११२॥ 

समायातेन तेनापि पह्ुजास्य: प्रसन्नपी: । जनानां वर्णयन्नुच्चेर्विचित्रं चित्रचेष्टितम्‌ ॥११३॥ 
पियूषवृष्टिसात्‌ तत्त्वदृष्टे: दृष्टो जनः प्रिय: । समुन्नतो हरंस्तापमम्भोद इवं केकिना ॥११४॥ 

सस्नेहं सादरं चाभ्यां प्रतिपत्तियंथोचिता । निवर्तिता यथावृत्तं प्रस्तुतं च निवेदितम ॥११४५॥ 

तस्मिन्‌ क्षणे तयोः सौख्यं सञ्जातं यत्‌ परस्परम्‌ । तदन्यस्मे समाख्यातुं पायेते न मनीषिभिः ॥११६॥ 
इत्थ॑ राज्यश्रियं श्रेयः कृत्येषु रतयोस्तयो: । भुज्नजानयोर्विधानेन गतेनेहाक्रियामपि ॥|११७॥ 
प्रवर्धभानप्रणयौ पार््वे धर्मरुचेमुने: । अणुव्रतादिकं धर्म रूब्ध्वा देवौ बमूबतु: ॥११८॥ 

इशाननामके कल्पे भुकत्वा तत्र चिरं सुखम्‌ । सुग्रीवो रामदेवश्थ जज्ञाते जनताप्रियों ॥११९॥ 
नमस्कारफले चास्मिन्‌ ज्ञेयं पूवभवानुगम्‌ । वस्तुतो रामचन्द्रस्य वृत्तमेतत्‌ कथानके ॥१२०॥ 


धनदत्तस्य यो जीवः प्रकृत्या शान्तमूर्तिक: । रामदेव: कलाभिज्ञो विज्ञेयः स विचक्षणेः ॥१२१॥ 
वसुदत्ताहयो यस्तु धीरों धीरपराक्रम: | असहिष्णुमोनवान्‌ जीवो रक्षणस्यथ स लक्ष्यताम ॥१२२॥ 


१३७ आख्या नकर्माणकोशे 


श्रीकान्तस्तत्र यो गीतः करो न्यायबहिप्क्ृत: । स्लीलोलं भीमरूप॑ त॑ बुध्यध्व॑ राबणं बुधा: ॥१२३॥ 
वृषध्वजस्य यो जीवो नमस्कारप्रदानतः | रामदेवप्रियो जज्ञे सुग्रीवोड्सी सुनिश्चितम्‌ ॥१२४॥ 
गुणवत्यपि या कन्या वेरभावस्य कारणम्‌ | सा सीतेति सदा प्रायो मृत्युहेतुस्तयोरभूत्‌ ॥१२५॥ ग्रन्थाग्रमू--५०००॥ 
॥ इति गोकथानकं समाप्तम्‌ ॥३९॥ 

पड्डयाल्यानकमाण्यायते । तश्चेदम्‌-- 
रमणीयसन्रिवेसे कम्म5वि कुलपुत्तओ वसइ एगो । उवर्यभज्जो! लहुएगपुत्तओो पयइधम्मपिओ ॥१॥ 
वड्/ुंतो जाव सुओ संजाओं अट्ठवरिसदेसीओ । तो सो थविरसमीवे धम्मं सोऊण पव्वइओ ॥२॥ 
वेरगभावियमणो सो सम्मं कुणइ साहुपव्वज्ज । नवरं सिसुत्तदोसा पमायवसओ सुओ न तहा ॥३॥ 
भणह य नियडिपहाणों खंत ! न सकक्‍केमि कढिणभूमीए । हिंडिउमणुवाहणओ जणओ वि हु मोहपडिबद्धों ॥४॥ 
आणह पाणहियाओ न समत्थो हं वियारभूमीए | उण्हामिहओ तत्तो कप्पं से धरह सीसम्मि ॥५॥ 
गोयरचरियं काउं खंत ! न सक्केमि तो तहिं पि पिया | भोयणजायं आणइ वसहिठियस्स वि सिणेहेण ॥६॥ 
जा जोव्बणमणुपत्तो तह वि कुओ वि हु किलिट्ठकम्मवसा । देइ न चित्त मुणिचक्कवालकिरियाकलावम्मि ॥७॥ 
चोयंति साहुणो त॑ जणयं पि भणंति एस सत्तो वि। कि न अगधह्ड सम्म॑ संपहमवि साहुकिरियाए ? ॥८॥ 
परमत्थ ओ तए चिय विणासिओ एस मोहमू ढेण । हेवाइओ सुहेणं नेहेण न किंचि सिक्खविओ ॥९॥ 
भणसिन्त भणियं भवओ तह कहवि हु भणसु भद्द ! नियपुत्त | जह साहुसमायारिं सब्वं सम्म॑ं समायरइ ॥१०॥ 
अन्नह गुरुकुलवासो तुज्झ वि होही न एयदोसेणं । तंत्रोलपत्तनाया मा सेसे वी विणासिहसि ॥११॥ 
अह अन्नया पयंपइ इंदियवसगों रहम्मि नियजणगं । खंत ! न सक्केमि अहं अविरइयाए विणा इण्हि ॥१२॥ 
तो जणएणं चितियमिमस्स संपाडियं मए सब्वं | एयं तु समोयरिउं न पहू संपइ महापावं ॥१३॥ 
न वि र्कि पि अणुन्नायं पडिसिद्धं वा वि जिणवर्रिदेहिं । मोत्तु मेहुणमावं न तं॑ बिणा राग-दोसेहिं ॥१४॥ 
तो परिभावियमिमिणा न एस पावों वयस्स जोगो त्ति। ता कि इमिणा मज्झं ? जाओ जहिं वलइ न गओ वि ॥१५॥ 
अवहीरिओ य तेणं चइऊण वबय॑ गओ गिहावासं । एसो छालीए मुहे अहवा कि माइ कुंभंड ? ॥१६॥ 
तत्तो कुणइ कुकम्म॑ न मुणइ तत्तं न सो सुणइ धम्मं | वह भरं सहइ छुह मह॒इ धण्ं लहइ न हु कि पि ॥१७॥ 
पुत्रविहीणत्तणओ पयडपयत्तों वि पत्थियं बत्थु | कारणवियलूं कज्जं कुओडहवा हवह ? पयडमिमं ॥१८॥ 
एवं किलिट्ठमणसो कुकम्मनिरयस्स तस्स वरयस्स | उयरभरणं पि दुलहं दूरे संभोगसुहवत्ता ॥१९॥ 
पायं जणपरिभूओ अप्पुन्नमणोरहों वस॒णवसओ । अप्पत्ततसणभवणों छुह्दा-पिवासापरामिहओ ॥२०॥ 
पाणीण पुन्नवंताण पेक्खिउः धणविलाससामरगिंग । झुरंतो अप्पाणं तिणतुल्लं पुन्नपरिहीण ॥२१॥ 
पच्छायावपरद्धों सुमरंतो सुहयसमणपरियायं । पालंबयचुक्को मकडो व्व वेलक्खमावन्नो ॥२२॥ 
दीणो दुत्थियदेहो दुरंतदारिदृदुक्खसंतत्तो । विसयमुहं पर्व्थितो अटज्ञाणोवगयनित्तो ॥२३॥ 
मरिऊण समुप्पन्नो महिसीगब्भम्मि पडुयत्तेण | जाओ कालकमेणं पयडावयवों दढसरीरों ॥२४॥ 
तत्तो य तप्पिया पाविऊणमिणमेव कारणं धम्मे | थिरचित्तो मरिऊण्ं देवो वेमाणिओ जाओ ॥२५॥ 
ओहिन्नाणेण वियाणिऊण त॑ पडुय॑ नियं पुत्त | भामडरूबवं वेउव्विऊण नेहेण संपत्तो ॥२६॥ 
तत्तो महिसीपहुणी पासाओ तेण पड्ुओ कीओ | पिट्ठारोवियभारों पीडिज्जंतो परायत्तो ॥२७॥ 
निल्लालियमाजीहो ताडिज्ंतो कसप्पहारेहिं | एयावत्थं पत्तो अहो ! पमाओ महासत्त ॥२८॥ 
पंचनमोक्कारपयं पढिउं दाउं कसप्पहारं च। खंत ! न सककेमि अहं ति सावए वयणमेसो उ ॥२९॥ 
कृत्थ मए सुयपुव्॑ वयणमिणं १ तस्स चितयंतस्स । जाय॑ जाईसरणं संभरिओ समण्पपञ्ञाओ ||३०॥ 


१, कस्मिन्नपि । २ भव्वं-रं० । ३. कुष्माण्डम्‌ | 


१३. नमस्कारपरायक्त नफलाधिकारे पडुकाख्यानकम १३५ 


पायडियसमणरूवो भणइ सुरो भद्द ! पाविओ वि तए। न कओ धम्मों सम्म॑ तत्तो एयारिसं वसणं ॥३१॥ 
तेणुत्तं ताय ! तुम॑ संपयमवि कुणसु मज्झ जं जोग्गं | पच्चकखाणपुरस्सरमह सम्म॑ भावियमणस्स ॥३२॥ 
दाऊण नमोकवारं जणओ पत्तों सुराल्यं सो वि। नवकारपभावेणं पत्तो सुरसंपयं परम ॥३३॥ 
जह एसो संपत्तो नवकारपभावओ सुराण सिरिं। तह अन्नो वि हु पावह तम्हा जद्यव्वमेयम्मि ॥३४॥ 

॥ पडुका ख्या नक॑ समाप्तम्‌ ॥४०॥ 


इदानीं फण्याख्यानकमारभ्यते -- 


तश्चेदम-- 


ब्ननकबबननग-५ 33 >कब-क+++कन भा जलाना 7 


सिरिआससेणपत्थिववित्थयकुलनहयलामलमयंकी । वरवम्माजणणीजढरसरस[सर]|रायहंससमो ॥१॥ 
भिगंग-घणंजणसामवन्नदेहों दयेक रसियमणो । नाणत्तयसंपन्नो कुमारभावम्मि वढुंतो ॥२॥ 
सिरिपासजिणेसरभुवणसामिओ सयलजणमणाणंदो । समवयवयस्ससहिओ कोउयवसओ समणुपत्तो ॥३॥ 
जत्थ5च्छट कढिण-करालकट्टखोडीजलंतजल्णम्मि | अइृदुकरदित्ततवप्पमाववक्खित्तपतरजणो ॥9॥ 
पंचरिगितावियतणू तरणि व्व तवष्पयावदुद्धरिसो । कट्टाणुद्गाणविकिट्रकाय कमढामिहाणरिसी ॥५॥ 
भणियं च पासकुमरेण भद्द ! कि कुणसि कट्ट मन्नाणं ? | जम्हा जीववहाओ पावमिमं धम्मबुद्धीए ॥६॥ 
जीवदयाए धम्मी सा एवं जलणजालणे कत्तो । जम्हा जलणो सत्थं निसियमिमं सब्वओधारं ॥७॥ 
ते निसुणिऊण कमढों विवेयवियलत्तणाओ अमरिसिओ । आयंबिरनयणजुओ खलंतफुरियाहरोट्ट उडो ॥८॥ 
आवद्धभीमभिउडी भासुरतिवलीतरंगभालयली | पग्ंतसेयसलिलो खणेण जाओ स दुष्पेच्छो ॥९॥ 
पासट्वियपबलजरंतबहलजालाकलावजडिल्स्स । जलणरस व संपक्का सो वि हु कोव5ग्गिणा जलिओ ॥१०॥ 
पासेणुत्त मा भद्द ! कुणसु कोव॑ जमेवमिह कुविओ | जलूणो व्व तुमं जलिओ दहसि तबं कट्ठनियरं व ॥११॥ 
अबरं च ववत्थाणं कोव-तवाणं विरुद्धमेगत्थ । अमय-विसाण व तम्हा परिहर परमत्थरिवुमेवं ॥१२॥ 
एवं मिउवयणेण वि पिक्खविओ दढ़यरं मणे कुविओ । भणइ तुम कि जाणसि धम्मस्स तवस्स रूवं ? ति ॥१३॥ 
जाणसि तुम सरूवं हयाण हत्थाण रहवराणं च | अहय॑ तु धम्मतत्तं चिरप्व्वहओ तवम्मि रओ ॥१४॥ 
अबरं च किमिह जायइ विसुद्धकट्टाण जालणे पावं ?। तो फेडिऊण खोडिं पासेण पयासिओ सप्पो ॥१५॥ 
कमढो वि अत्तणो पासिऊणमन्नाणविलसियमपुव्वं | सामरिसो य सलज्जो य किमवि वेलक्खमावन्नो ॥१६॥ 
पास जिणो वि हु दाउं फणिणो कन्नंसि जिणनमोक्कारं । पत्तो गिहं फणी वि हु धरणिंदत्तं मरेअण ॥१७॥छ७॥ 
॥ फण्याख्यानक समाप्तम ॥४१॥ 


इदानों मिण्ठाल्यानकस्यावसर: । तश्च नूपुरपण्डिताख्यानके भणिष्यतयिति क्रमागतं सोमप्रभाखव्यानकमुच्यते । 


अह भारहखेत्तह दाहिणद्वि, सिरिगिरिवर-पुररूच्छीसमिद्धि । 

पुर वद्धमाणु नामेण आसि, धणरारु सेट्टठि तहिं गुणहं रासि । 
तसु पुत्तु धणेसरनामघेउ, नियरूविं नं सोहम्म देउ । 

अबरो वि तत्थ दिउ सोमदेउ, सोमप्पहु तसु सुउ पढियवेउ । 
तत्थेव नयरि नवजुव्वणाउ, निवसंति दोज्नि पन्‍नंगणाउ । 
अहमहमिगाए रंजियजणाउ, नियरूवविजियअच्छरगणाउ । 

तह एक्क कामरइनामधेय, तसु रत्तु धणेसह कुणइ भोय | 

अह दुइजी कामपडाय नाम, भुंजइ सोमप्पह मणभिराम ॥ 

हय विविहविलासिहि, मणपरिओसिहि, ताह कालु वच्च३ सुहेण । 








१. ०नक॑ समार०-२० । २, बृहत्काष्ठ | 


१३६ 


आखश्यानकमणिकोशे 


एत्थ॑तरि पत्तउ निरु गिज्अंतउ, चित्तु मासु महुयरगणेण ॥१॥ 
वियसिया जत्थ सहयारतरुमंजरी, कामभल्लि व्व विरहियणसल्लंकरी । 
कुसुमिया किसुया कीरचंचुप्पहा, विरहियणद्हणपजलियचियासच्छहा । 
फुक्षिया मल्लिया फुरियवरगंधया, महुयरा जीए महुपाणमयअंधया । 
सहइ वियसंतिया कुंदकुसुमावली, न॑ वसंतस्सिरी दित्तदंतावली । 
पाडलापरिमलाइन्नमल्यानिलो, नं महुत्थीए निस्सासवरपरिमलो । 
कोइलाकलयलारा वबहिरियवणं पेच्छिउं पहियलोयाण झिज्जई म्ण । 
सहइ पवणेण वणराइ कूयंतिया, नं समासाइउं वरमहुं मत्तिया । 
सुव्बए मंजुरुणझुणिर भमरावली, कामएवस्स ने गिज्जए कागली ॥ 
इय अबरि वि तरुवर, विलिहियअंबर, नवपवाल भरमंथरिय । 
सिंगारियपुरिसिहि, कयमहुहरिसिहिं सहुं कुसुमिहिं समलंकरिय ॥२॥ 


तथाहि-- 


वियसिय कंकेल्लि सकंचणार, पुन्नाग नाग फुल्लिय अपार । 
कक्कोल लवल कयकुसुमबंध, पोमिणि पबुद्ध परिमलसुयंध । 
उम्मीलिय एला5गरु लवंग, हिंताल ताल कयकुसुमसंग । 
उज्बिभिय[**** * ']धवसणाह, कप्पूर कलिय कुसुमियससाह । 
मउरिय पिचुमंद निरंतराल, मंजरिय तिलुय स्पियंगुसाल । 
पसविय असेस कणियारयाउ, कलिया5भिराम माल्रयाउ | 
मचकुंद कुंद कलिया विचित्त, जंबीर जाय पसविहि पवित्त । 
केसर तमाल हुय कुसुमसार, विहसिय तरु अबरि वि बहुपयार ॥ 
इय चित्ति पहुत्तह, परहुयमत्तइ, कामकेलिविणिहियहियय । 
गीएहि गिज्॑॑तह, जणि नच्च॑तइ, चत्तारि वि उज्याणि गय ॥३॥ 
आदत्त तेत्थु अंदोलिकील, तरुणीयणमणहरकामलील | 

तो मिलिए असेसए तरुणिवग्गि,, गणियागणि आगइमणहरिज्लि । 
जायउ अंदोलारुहणि ताहं, अन्नोन्न कलहु पन्नंगणाह । 

तो पभणिउ नयरमहाजणेण, कि गज्जहु अलियमडप्फरेण १। 

जा चाइं कणयह लक्खु देह, जणि सज्जि पढम अंदोलएइ । 

तो ताहिं निरूविउ पियह वयणु , पडिमणिउ धणेसरु समयवयणु । 
हुउ कामरइहि [-----------८--८------ | 
““““-“-“-“-“-“-“““-८““5८---८-८ ] विसाय सुवयणु । 
बंदिहि थुव्वंती, जणु रंजंती, चडिय ज्ञत्ति अंदोलइ । 

पडिवक्खु हसंती, चाइ करंती, कणयलक्खु इय हेलइ ॥४॥ 

तो कामपडाय विलक्ख जाय, उवहसिय जणिहि ठिय सामछाय । 
अधणत्तणेण सोमप्पहो वि, उबहसिउ विलक्खिउ हुयउ सो वि । 
न पुणो तीए गेहम्मि गयउ, चिंतणह रूग्गु दुह॒भरियहियउ । 


मनन तीन क-+ज3ध++५+->- 7 पपए 75 ४-० 


१३, नमस्कारपरायशनफलाधिकारे सोमप्रभाव्यानकम्‌ १३७ 


सुलहउ धणहीणह माणभंगु , निरु होइ पराभवतणउ संगु । 

न कलत्तु न मित्तु न निययसयण , उल्लबइ दलिद्विउ एक्कु खणू । 
वच्चामि कहिंवि ता दूरदेसि, अइपउरदविणआणणह रेसि । 

इय चितिऊण नियसयणवण्ि, अकहिंतु वत्त संचलिउ मग्गि । 

ता जंतु जंतु पउमुत्तरम्मि, संपत्त नयरि वणराइरम्मि ॥ 

तो तहि संपत्ति पहपरिसंति, दिट टु एक्क्रु उज्ञायवरु । 

सवणिय नियछत्तहं, गुणसंजुत्तट, खन्नवायवकक्‍्खाणपरु ॥५॥ 

जहिं विल्‍्ल-पलासह तरुवराहं, पायउ जद महिगउ होइ ताहं । 
अह खंजरीडसंजोउ होइ, ता तत्थ निरुत्त निहाणु जोइ । 

जो पायड रक्तईं रसिण जुत्तु, सो रयणह निहि अक्खइ निरुत्त । 
पीईं रसेण कंचणु विसिट्ठु, धवलुइ कलहोउ मुणिददि सिट॒ठु । 
एमाइ सुणिवि गउ जंतु जंतु, जा एक्कु महागिरिकुहरु पत्तु । 

तहिं पायउ बिल्लह महिपविट ठु, महिं चुंकिइ तहिं रसु रु दिटठु । 
हुं होसह रयणनिहाणु एत्यु, दिसि जोइवि तो ति खणिउ तेट्यु । 
उवलदूघु समुम्गउ रयणजुत्त, त॑ पेच्छिउ हरिसिउ तासु चित्त ॥ 
तो गिण्हिहि हत्थि, छाइवि वर्त्थि, चलिउ जाव सो नियनयरह । 
ता पत्तउ चोरिहिं, पहरणघोरिहिं, हुबउ घरह न बारह ॥६॥ 
उद्दालिंड रयणुनिहाणु तेहिं, गुरुह्ककिंहि त॑ भेसंतर्णाद । 

सो खित्तउ बंधिवि अंधकूवि, गयजीवियासु तहिं ठिउ विरूवि । 

तो दिवसि तइज्जइ कोइ सत्यु, आवासिडउ लंघिवि पउरपंथु । 

तहि नीरु निरिविखहिं जाव नरा, बोल्लाविय तो ति दीणगिरा । 
अहु पुरिसहु हउं तकरिहिं घित्तु, बंधेविणु बंभणु एत्थु खेत्त । 

ता कट्टहु मईं महइृण दयाए, जा मरउं न इंह तन्हा-छुहाए । 

तो तेहि पपुच्छिउ सत्थवाहु, तेण वि कट्ढाविउ दिउ अणाहु । 
पुच्छिय सव्वा वि हु तस्स वत्त, अवि्खिय विप्पेण वि तह निरुत्त । 
सत्थाहिं कयवरु, वियरियसंबल॒, पुणु पयट्टु देसंतरहं । 
अवखंडपयाणिहिं, गरुयपमाणिहिं, तलि संपत्तउ गिरिवरह ॥७॥ 
जम्मि रहंति रम्माउ वणराइओ, सुद्धवंसालियाउ व्व सज्जाइओ | 
लोयणालि व्व संपुन्नसोहं जणा, पंडुसेण व्व दीसंतसज्5ज्जुणा । 

कंत्थ वी गेहपंति व्व बहुसालया, रासया जेम्ब अन्नत्थ सुहतालया । 
पुत्ननारि व्व विलसंतपुन्नागया, वि्यमूमि व्व भासंतसन्नागया | 
रामसेण व्व वरनीलनलजुत्तया, कुडिल्महिल व्व उत्तरलुतरचित्तया । 
वारविलय व्व वरतिलयरेहंतया, समरभुमि व्व बाणावलीजुत्तया । 
विण्हुमुत्ति व्व विल्संतसिरिवच्छया, नोडुजाइ व्व दीसंति उकच्छया । 


१. तह्विं तुं किद तहिं शत्यपि पाठो दृश्यते । 


८ 


श्रेप 


आख्यानकमणिकोशे 


पवरकन्न व्व संपन्ननववरणया, साहुमुत्ति व्व सोहंतसुहकरुणया ॥ 

इय णेयपयारेहिं, विहियवियारेहिं, सो गिरि निरुवमतरुवरेहिं । 
अइयारि विरायह, महिहिं न मायइ, तसु जसु संसिउ सुरबरेहिं ॥८॥ 
तो तत्थ हेमकूडाभिहाणु दिद्वउ वाइउ मायापहाणु । 

क॒हिं भद्दय ! पत्थिउ ? पुटढ्ु तेण महि भमहि नाइं वज्िउं धणेण । 
तो कहिउ सब्वु नियचरिउ तेण, तं॑ सुणवि पयंपिउ वाइएण । 

इसरह सिरोमणि करउं तहइं, तो भणिउ तेणाउणुग्गहहि महं । 

आरुढ दो वि तो गिरिहि सिहरि, संजुत्ति धाउ-मूलियहं पयरि । 
अवरोप्परु मीसिवि धमिउ जाव, दिप्पन्तु सुबन्नउं हुयउं ताव । 

त॑ गिण्हिवि तो गय कहिवि गामि, तहं सुत्ता सुन्नह देवथामि । 

तो वाइउ सब्दु सुबन्नु लेवि, नट्टउ दिउ सुत्तउ तहिं चणवि ॥ 

तो उग्गइ तरणिहिं, जोहउ धरिणिहिं, तेण न कत्थइ दिद्वउ । 

नं तसु बीहंतहु, भत्ति तुरंतठ, धरणीवीढि पहद्ठउ ॥९॥ 

गहियसोगो तओ चिंतए सो मणे, पुन्नहीणेहिं न हु किंपि लब्भइ जणे । 
तह वि धीरेण गरुएण होयव्वयं, लब्भए जेण नियमेण भवियव्वयं । 
एवं चितंतु चित्तम्मि पुण गच्छए, जाव जोगीसरं जोगियं पेच्छए । 
तयणु नमिऊण सप्पस्सयं तप्पए, सिद्धजोगि त्ति काऊण स पयंपए । 
गरुयदारिददु क्खेण अइृदु क्खिओ, तुम्ह सरणं पवन्नो धणे कंखिओ । 
ता पसाय॑ क[रे]|ऊण दविणजणे, हेउमुबवइ्ससु अवमाणमलमज्णे । 
सो वि उवरोहसीलो तय॑ जंपए, नाममेत्तेण जणि जेणमणुकंपए । 

सो महामंतु सोवन्नधणदायगो, अत्थि मह भद्द ! मंताण वरनायगो ॥ 
तो तेण परयंपिउ, भयवं ! मह पिउ, देहि मंतु एहु दय करिवि । 

जो करइ न बंधणु वियरइ कंचणु, दुहु दोगच्चह भवहरवि ॥१०॥ 
दिन्नु जोगिएण तसु मंतु विहिएव्वयं, कहिउ साहणउवायाइयं सब्वयं 
किण्हचा उद्सीए महापियवण, मडय-वेयाल-फेक्कारभीसावणे । 
मंतकुसुमेहिं जलणम्मि होयव्वयं, नो रउद्दोवसग्गाण भेव्वयं । 

जाव निस्सरहइ जलणाउ कंचणनरो, विज्ञवेयव्वओ तयणु वइसानरों । 
कणयपुरिसोी न छिन्नो वि सो निट्टए, सो वि जोगेसरेणेरिसो सिद्ठए । 
पणमिऊणं पए तस्स सोमप्पहो, पत्तु कम्मिवि निवेसम्मि सोमप्पहो । 
कसिणचा उद्दसिनिसाए मसाणट्ठटिओ, जाव होमेह उवसग्गु तावुद्ठिओ ॥ 
फेकारहिं डाइणि, हकहिं साहणि, कंपिय धरणि सगिरि-कुहर । 

जा खुहिउ न झाणह, सत्तपहाणह, ता गय तिन्नि निसिहि पहर ॥११॥ 
तो पच्छिमपहरि करालकाय, हक्कंत पत्त रक्खसनिकाय | 
फेक्कारुग्गिन्नजलंतजलण, अइगरुयसिलायलसरिसचलण | 
अट्टइहासपूरियदियंत, नियकरकवाले लोहिउ पियंत । 

कंदंत रुलंत समुल्ललंत, पयदद्दुरधाएहिं महि दलंत । 


१३. नमस्कारपरावर्तंनफलाधिकारे सोमप्रभाव्यानकम्‌ १३६ 


ते पेच्छिवि सो संखुद्धु जाब, छलियउ मंताहिबदेविं ताव । 
कंपंतु जाव मंडलए पडिउ, तो उदयगिरिहिं दिणनाहु चडिउ | 
एत्थंतरि पत्तठ लोहनंदि, रत्तंबह पणयहं विहियनन्दि । 

तयवत्यु तत्थ सो तेण दिटठु, कुवि विज्वासाहणि इह बइट ठु ॥ 
टवसग्गिहि चलियउ, विज्ञए छलियउ, इय जाणिवि रत्तंबरिण । 
वरमंतपओगिहिं, मूलियजोगिहि, पडणीकउ सो आयरिण ॥१२॥ 
उवयारि भणिवि रत्तंबरस्स, सो नमिठ कमेहिं करुणायरस्स । 

तो पुच्छिउ ति कि भद्द एउ १, तेण वि तसु अक्खिउ न किउ खेड । 
तो चल्लिउ रिट्ठउराभिमुह्ट, चिंतंतु विसन्नउ दीणमुह । 

पडिकूछु मज्झु किह पेच्छ विही ?, न वि होइ पुन्नसंचउ सविही । 
जि जायइ संपय अप्पमाण, महु होइ विवय मरणावसाण | 

ता कि भमेमि देसंतरम्मि ?, इण्हि पि जामि नियपुरवरम्मि | 
गमणेण अहव कि निययनयारि, विलसिरसुहि-सज्जण-बंधुनियरि ? | 
वरि निद्धणु उच्बंधिवि मरठ, मा बंधवधरिहि कुकम्मु करउ ॥ 
जीवंतु वि निद्धणु, दीणिमवद्धणु, मुयह समाणु गणिज्जइ । 
खग-सुणयसमूहिहि, सहुवजूहिहिं, जद इम्वहमवि खज्जह ॥१३॥ 
ता अज्ञ वि किज्जउ पुरसियारु, पेच्छिज्वउ मा बंधवनियारु । 
आराहिमि देवग्र कावि पवर, जा देंइ दविणु होएवि सवर । 

तो चलिउ रिट्ठउरकाणणम्मि, चामुंड दिट्ठ तहि तो मणम्मि 
चिंतएइ आराहिमि एह देवि, अदरिददु करइ जि दविणु देवि । 
इय चितिऊण सो संझयालि, त॑ नमिवि भणइ हउं कलिउ कालि | 
तुहँ भयवई ! दुक्लियदुक्खहरणि !, पपपणयजणह कल्लाणकरणि | 
मह दुविखयस्स विहिविनडियस्स, दारिदमयरहरनिवडियस्स | 

इय जंपिऊण सो तीए पुरठ, ठिउ निवड़ि वियाडी धरणिनिरठ || 
तो पडिहयतरणिहिं, तमभरि रयणिहिं, गरुयमग्गपरिसंतह । 

तसु निद्द समागय, देविहिं संगय, निम्मलगुण समरंतरह ॥१४॥ 
एत्थंतरि रायह वाररमणि, गच्छंती पेच्छिवि निययभवणि । 

तो केणवि तक्खणि तकरेण, तहिं कन्नजुयछु तोडिबि करेण | 
वरकु डल हारा55भरणु लेवि, उज्जाणि नट्‌ ठु भड़ुयणु छलेवि । 
तत्थेव देविमंदिरि पविटठु, तसु पासि दच्छु मिल्लिवि बहटठु । 

तो वेढिविठिय भड देविभवणु, उगयउ जाव गयणयलि तबणु । 
तो तेहिं दिटठु दिउ दच्छ जत्तु, संगहििउ चोरु जाणिवि निरुत्तु । 
तो तेण पयंपिउ संभमेण, हउं चोरु न बंभणु कारणेण । 

देसंतरि पत्थिउ पयइसच्छु, इह सुत्तह केणइ मुक्क दच्छु ॥ 

तो तककरु बंधिवि, बंभणु रुंधिवि, दो वि नीय रायह भवणु । 

तेहिं अक्खिउ रायह, निवनयपायहं, देव ! चोरु आयहं कवणु ? ॥१५॥ 


१७४० 


आश्यानकमणिकोशे 


किउ दिव्वु नरिंदिं सियजसेण, तो खुट्टउ बंभणु विहिवसेण । 

चोर त्ति धरिय हिययाभिसंधि, बंधाविउ बंभणु मोरबंधि । 

तक्करु पुणु मुक्कउऊ साहु करिवि, आणत्तु वज्झु दिउ कोबु धरिवि। 

आरोविवि रासहि भडयणेष्टिं, भोनिवि पुरिवेढ़िउ बहुजणेहिं । 

सो मरणमहाभयवेविरंगु, केसरिअक्कंतउ जिह कुरंगू । 

हा हा हयास ! निदय ! करयत !, हक 5 का 20 क की 2 कक जे अर ४ 38 कह 7३0 हे % के के ड़ # 

कि सुद्धसीलकलियस्स अज्ज, सइ महु कलंकु आणिड अणज्ब !। 

इय एवमाइ कलुणउं रुयंतु, सूलहिं पक्खित्तउ जणुनियंतु ॥। 

मिन्लितरि गय निवभड, भिउडीउब्भड, एत्थंतरि विज्ञाहर । 

ति नहयलिं दिद्ठा, रूवविसिट्ठा, पमणिय करुणामयरहर ॥|१६॥ 

अहु पुरिसहु करुणासायरहो, हउ' सूलियपोइउ भायरहों । 

निद्दोीसु वि ता मइ करि पसाउ; रक्खहु दुम्मरणहु एरिसाउ । 

अणुकंप करिवि तो खेयरेंदि, आयड्डिउ जीवदयापरेहिं । 

सो नीयउ कम्मि वि गिरिसिरम्मि, मुक्कऊ नवपल्लवसत्थरम्मि । 

तव्वइ्यरु पुच्छिउ खेयरेहिं, ति कहिउ सब्बु कोमलसरेहिं । 

त॑ निम्ुणिवि प्र्णिड तेहिं बुज्ि, तुह विसमकम्म ता मणि म मुज्ि । 

कुण धम्मबुद्धि परलाय रेसि, तं विद्धु जेण मम्मप्पएसि । 

ता जीवसि न हु इय भणिवि तेहिं, कारुन्नपरिहिं वरखेयरेहिं ॥ 

अणुसट्ठि सुहासिय, दिन्नसुहासिय, अणुकूलियसग्गप्पह्ह । 

सूल्मुहभिन्नह, दुहनिव्विन्नह, हियकामिहि सोमप्पहह ॥१७॥। 

जो नरइ पडंतहं होइ सरणु, बहुमवसमज्जियपावहरणु । 

दारिदमहाभरतिमिरतरणि, जो भवियह सिवपुरि पवरसरणि । 

सग्गा5पवग्गवरसुहनिहाण, जिणसासणि जो समयप्पहाणु । 

जो माणमहाभडमाणमलणु, भविओहदुरियदंदोलिकलणु । 

दढतोडिय बहुभवकम्मपासु, घणखुद्दावदवकयविणासु । 

निज्जियचिन्तामणि-कामधेणु , पणमंतुड्डाबियपावरेणु । 

गह-भूयपणासणपवरमंतु, वेयालुतच्चाडण निब्रिडजंतु । 

कि बहुईं ? वियारि अचित धामु, आसन्नसिवह सुगहीयनामु ॥ 

पंचहिं परमिद्ठिहिं, तेहिं विसिद्धिहिं, दिन्नु मंतु विज्वाहरिहिं । 

हुउ तासु पभार्वि, पणमिउ भाविं, धूमकेउपरमामरिहिं ॥१८॥ 

॥ सोमप्रभाख्यानकं समाप्तम ॥७२॥ 
इृदानीं सुद्शनाख्यानकमारभ्यते । तच्चेदम--- 

अत्थि इह भरहवासे चंपा नयरी सिरीए कुलमवर्ण । रिउरोसदलणदक्खो राया दहिवाहणो तत्थ ॥१॥ 
नियरूवविजियपज्जुन्नरपणइणीपवरपीणघणसिहिणी । अभयाभिदहाण भज्जा तस्स भवस्सेव गिरिदृहिया ॥२॥ 
पउरपुरलोयसामी सेट्टी तत्थडत्थि उसहदत्ता त्ति। अरिहद्दासी नामेण पणइणी तस्स ससिवयणा ॥३॥ 
ताण य खुभगो नामेण सेरहीरक्खगो अहडन्नदिणे | घेत्त महिसीओ गओ अडबवि अदहरुग्गए सूरे ॥४॥ 


इओ य-- 


१३. नमस्कारपरावर्सनफलाधिकारे सुद्शंनाख्यानकम १७१ 


संझाए, पडिनियत्तो अग्गेकाऊण सेरहीनियरं । गच्छंतों संपेच्छइ उत्सग्गे संठियं साहुं ॥५॥ 

अप्पावरणं हिमकणविमिस्सबहुमाहमाससीएहिं । उद्धसियरोमकूवं पणमित्त तओ गओ सगिहं ॥६॥ 
पुणरवि रयणिविरामे गहिउं महिसीओ सो गओ रज्ने । दट्दुण तं तह ख्विय भत्तिज्मर निब्भरों नमइ ॥७॥ 
अप्पावरणं रयणीए सिसिर्सीएण सोसियं साहु । त॑ं अवसीयं काउ' व उग्गओ उण्हकिरिणो वि ॥८॥ 
भणिऊण मुणिवरिंदा नामोउ5रहंताणमिह पय॑ पवरं । करवाललयासामलनहंगणं भकत्ति उप्पशओ ॥९॥ 

सुभगो वि नमोकाररस्स तं॑ पयं गयणगामिणि विज्जं । मन्नंतो उम्घोसह न चयइ उच्चिट्ठकाले वि ॥१०॥ 

तो सिट्टिणा स भणिआं भद्द ! तए कृत्य पावियं एयं । तेण तओ तप्पुरओं कहिओ साहुस्स वुत्तंतो ॥११॥ 
सेट्टी वि आह एसा न केवल गयणगामिणी किंतु । विज्ञा असेसकल्लाणदाइणी कामधेणु व्व ॥१२॥ 
जम्हा ज॑ किंचि जयत्तयम्मि मण-नयणमोहणं वत्थुं । जिणनाहनमोक्काराओ पाणिणों तं पि पाविति ॥१३॥ 
एयस्स पभावेणं पुरिसा पा्विति परमरिद्धीओ । नर-असुरा-5मर-खेयररायाणं जिणेसराणं पि ॥१४॥ 

ता भटद्द ! सुंदरमिणं जं तुमए पावियं परं किंतु | उच्चिट्नेंहि तिहुयणगुरूण नाम॑ न घेत्तव्वं ॥१५॥ 

सो आह साप्रि ! एवं करेमि ता सेट्टिणा सिणेहेण । सिक्खविओं सुविणीओं सब्बं पि हु पंचनवकार ॥१६॥ 
अणुदिवसं अणुसमयं परिवत्तंतम्स त॑ नमोक्‍्कारं । अइकम[३] तस्स कालछो अहऊज्नया पाउसो पत्ता ॥१७॥ 
घणकट्टचियातडिल्यहुयासडज्झंतविरहिवगास्स ) धूमसिद्दा जालेण व घणेण परिपूरियं गयणं ॥१८॥ 
कयघोरगज्जिअट्टट्टहा सचहिरियदियंतराभोगो । कल्कंततरल्तडिल्यकत्तियबिच्छोहदु प्पेच्छो ॥१९॥ 
विलसिस्बलाहमालादसणिल्लो कोइलाकसिणछाओ । भेसंतो विरहियणं विप्फुरिओं पाउसपिसाओं ॥२०॥ 
पडिहणियरायपसरों विहुयरओ मलिणअंबरो पत्तो । अंगीकयमदवओ मुणि व्व धणसमयसंरंभी ॥२१॥ 

जह मरह विप्हरासणविसदिद्ठसिहंडिसदओं मरओ । विरहियणों त॑ चोज्जं ज॑ सित्तो अमइमरणण ॥२२॥ 
दिसिदिसिरइंतददुदुरठक्डकडु रावजणियउव्वेया । वच्चंति विरहिणीणं पाणा इव रायहंसगणा ॥२३॥ 
एवंविहम्मि समए महिसी घेत्तण सो गओ रज्ने। तो तस्सेक्ा महिसी तरिऊण तरंगिणीतीरे ॥२४॥ 
खेत्तम्मि संपविट्टा दिद्ठा सुभगेण तो नमोक्वारं । परिवत्तिऊण दिल्ना झड त्ति झंपा नईमज्े ॥२५॥ 

तत्थ वि खायरकीलो खुत्ता पंकम्मि आसि तेणेसा । विद्धों मम्मपएसे पंचत्तं पाविओं सिग्घं ॥२६॥ 
जिणनाहनमोकवारप्पमावओ निययसेट्टिमज्ञाण । गंतृणं उबवन्नो अरिहद्दासीए कुच्छिसि ॥२७॥ 
परिवद्धमाणगब्भम्मि दोहलो तयणु तीए संजाओ । अभय्रप्पयाण-जिणण्हवण-साहुसुस्सूसणाविसओ ॥२८॥ 
कहिओ य तओ सेट्टिस्स पूरिओ सेट्ठिणा वि हिट्ढेंण | तो पवरवासरम्मि पुत्तं पसवह अरिहदासी ॥२९॥ 
अह संपत्त बारसमवासरे सेट्टिणा सुनक्खत्त | विहियं तस्स सुदंसण नाम॑ सुहृदंसणो जम्हा ॥३०॥ 

तो तेण कमेण अहिज्जियाओ बाहत्तरि चिय कलाओ | पत्तो य विलासिणिनयणमोहणं जोव्बणं एसो ॥३१॥ 
वररूव-जोव्वणड्ढा उब्बूढा पोढगुणवियड्ढेण । तेण रद्द कामेण व नामेण मनोरमा कन्ना ॥३२॥ 

तीए सह विसयसोक्खं उवभुंजंतस्स तस्स5इक्कमइ । कालो विविहविणोयप्पसंगवक्खित्तचित्तस्स ॥३३॥ 
तेण नियगुणगणेहिं पुरलोओ पुहइपालपज्जन्ता । तह रंजिओ जहा सो संजाओ तम्मओ चेव ॥३४॥ 


तत्थेव कविलनामो निवसइ उचरोहिओ दियपहाणो । नियहिययनिब्वि[सि]सो संजाओ तस्स वरमित्तो |३५॥ 
दस्स य भज्जा कविलानामेणं तीए सो वि पइ्दियहं । रमणीयणमणहरणं गुणनियरं कहइ मित्तस्स ॥३६॥ 
रूवेण कुसुमबाणो बुद्धिप्पसरेण सुरगुरुसमाणो | तेण्ण तिव्वकिरणो गमणेण करेणुगइगमणों ||३७॥ 
दक्खिन्ननिही सोहग्गसुन्द्रों वाइनियरसिरितिलओ । कि बहुणा परनारीसहोयरों एरिसो मित्तो ॥३८॥ 
तग्गुणगहर्ं सोउ' परोबखअणुरायरंजिया कविला । जाया जाव सकामा परिहरिया ता समाहीए ॥३९॥ 


श्छर 


तहा हि-- 


आख्यानकमणिकोशे 


सा अलहंती सोक्खं कत्थइ नियपरियणे कविलभज्जा । अहिलसइ तस्स संगममणुद्यिहमुवायकोडीहिं ॥|४०॥ 
अह अन्नदिणे गामम्मि पेसिओ पुहइसामिणा कविलो । कविला तओ सुदंसणपासे गंतुं इमं भणइ ॥४१॥ 

तुह मित्तस्स निसाए अदपउरसरीरकारणं जाय॑ | तो एस तुह सयासे न आगओ पेसिया अहय॑ ॥४२॥ 

तुह हक्कारणकज्जे जम्हा सो तं॑ विणा मयाणं पि। न तरइ ठाउ' ता एहि तस्स पासम्मि तो एसो ॥४३॥ 

ने मए नाय॑ं ति पयंपिकण चलिओ ससंभमो भ्रत्ति | संपत्तो तब्भवणे भणइ तओ कत्थ मह मित्तो ? ॥9४॥ 
कविलाए पभणिओ सो मज्झे भवणस्प तो गओ तत्थ | पुणरवि पुच्छद एसो सा आह तइज्जयम्मि खणे ॥४५॥ 
तत्थ वि य अपेच्छंतो पुच्छह कविला वि भवणदाराणि | ढक्षित्तु उत्तरीयं मेल्नह पल्लंकपज्जन्ते ॥४६॥ 
सविलास-सविव्भम-सरल-तररू-सकडक्ख चक्खुखेवेहिं । कब्बुरयंती पभणइ सुदंसणं महुरवयणेहिं ॥|४७॥ 

न हु एत्थ [(अत्थि] कविलो पडिजागरणं करेसु कविलाए | कि पडिजागरियव्वं कविलाए सुदंसगो भणइ ॥४५८॥ 
सा आह सुहय ! कविलेण साहिया जप्पभीइ तुज्क गुणा । तप्पमीह मयणबाणानलेहिं तत्ता तणू मज्य ॥४९॥ 
एत्तियकालं तुह संगमुस्सुया संठिया सुदुक्‍्खेण । इण्हि तु नाह नियअंगसंगसलिलेण निव्ववसु ॥५०॥ 

तत्तो सुदंसणेणं सब्भावं जाणिकण कविछाए | नियसीलरक्खदक्खेण तक्खणुप्पन्नबुद्धीप ॥५१॥ 

भणियं सविसाएणं सुयणु ! समीहेमि संगम तुज्क । किंतु नियदुकियकम्मेण निम्मिओ पंडओ अहय॑ ॥५२॥ 
अलियकयपुरिसवेसोी वसामि नयरीए तो विरत्ताएं। उम्घाडिउ कवाडे झड त्ति नीसारीओ तीए ॥५३॥ 

संपत्तो नियभवणे सुदंसणो नियमणे विचितेइ | अहह ! अहो ! महिलाणं अकज्जकरणुज्जमो अहिय॑ ॥५४॥ 


न गणह कुलाभिमाणं न य इहलोगं न यावि परलोगं । नियकुलकलंककारी नारी चल्लंतिया मारी ॥५५॥ 
महिला अयसनिवासो कवड-कुहेडाण मंदिर महिला । महिला नरयमहापुरपायडपयवी विणिद्दिद्वा ॥५६॥ 
मुहमहुरा परिणइदारुणा य दीसइ मणोहरा महिला । किपागफलसरिच्छा महिला मूलं अणत्थाणं ॥५७॥ 
कंदररहिया वग्घी विसूहया भोयर्ण वीणा महिला | पंक्रविणा वि कलंको महिला वयणिज्जकुलभवण्ण ॥५८॥ 
महिला मोहविरहिया अरज्ज़्यं बंधगं जए महिला | खणरत्त-खणविरत्ता हलिद्द रागोवमा महिला ॥५९॥ 
करिकन्नचवलचित्ता कयंतचित्तं व निम्धिणा महिला । महिला सच्चविरहिया अणब्भवज्ञासणी महिला ॥६०॥ 
ता कहमिमीए छलिओ पावाए चिंतिऊण नियमेइ । एवगागी परगेह्े न गमिस्सं जावजीवाए ॥६१॥ 
तद्दियहाओ जाओ विसेसओ धम्मकम्मकयचित्तों | अह अज्नया कयाई इंदमहो आगओ तत्थ ॥६२॥ 
ससुदंसणो स कविलो सपरियणो सावरोहणो राया | नीहरिओ नयरीओ उज्जाणसिरिं समणुहविउं ॥६३॥ 
एत्तो य रायदइया अभया कविलाए संगया तइया । संचलिया उज्जाणे महरिहजंपाणमारूढा ॥६४॥ 

दया सुदंसणस्स वि परियरिया छहिं सुएहिं संचलिया । आरुहिय महाजाणं रणंतघंटारवविसिट्ट ॥६५॥ 
दट्टण तयं कविलाए जंपियं देवि ! कहसु का एसा ? नियसोहापहसियतियससुंदरी पृत्तपरियरिया ॥|६६॥ 

देवी तओ पयंपइ हला ! तए कि न याणिया एसा ? | सेट्टिसुदंसणदइया विक्खाया खोणिवीढम्मि ॥६७॥ 
कविला आह इमा जइ तब्भज्जा ता इमीए नेउन्न | उप्पाइयाणि ज॑ एत्तियाणि वरपुत्तमंडाणि ॥६८॥ 

वज्बरहइ तओ देवी कि नेउन्नं ? नियस्स दहयस्स । आसाइयसुरयाए अक्खयत्रीयाए ज॑ पुत्ता ॥६९॥ 

उल्लबइ तओ कविला संभवइ इमं पर॑ इमीए पई । संढो त्ति तओ देवी भणइ कहं जाणिओ तुमए १९ ॥७०॥ 
विन्नासिओ इमेणं वुत्तंतेणं इमो मए सकक्‍्खं । हसिऊण भणइ अभया हलि ! डोढिणि ! मूढमइविहवे ! ॥७१॥ 
वरकामसत्थविन्नाणविरहिया तेण रइवियड्डं ण | तं वंचिऊण चत्ता अबरं च इमं पि संभविही ||७२॥ 

होही नपुंसओ सो जावज्जीवं पि परकलत्ताण । निययकलत्ताण पुणो निशच्च॑ चिय कुसुमबाणो व्व |॥७३॥ 





१ उम्घाडियं --२० । २. डोडिणि | --रं० । 


जओ-- 


तथा हि-- 


१३. नमस्कारपरावश्नफलाधिकारे सुदशनाख्यानकम्‌ १७३ 


भणियं विलक्खवयणाए एरिसं पहसिऊण कविलाए | जह कामसत्थदक्खा सि ता इम॑ त॑ पि कामेसु ॥७४॥ 

देवीए तओ भणियं किमत्थ चोज्ज ? करेमि अहमेयं | कविछा वि भणइ मा कुण अइसयसोहर्गगारवयं ॥७५॥ 
पभणह अभया सो कुणइ जस्स निययं समत्थि सामत्थं | जाणे तुह सामत्थं जद रमसि इमं भणइ इयरा ॥७६॥ 
देवी वज्बरइ इमं जह नो कामेमि रइवियड्ड' त॑ं | ता पजञ्जलियहुयासे पविसिय पाणे परिचयामि ॥७७॥ 

एवं विवयंतीओ ताओ गंतृण मणहरुज्ञाणे। सुइरं रमिऊण तहिं पत्ताओ निययगेहेसु ॥७८॥ 

भणिया अभयाए तओ नियधाई पंडियामिहा एवं | अम्मो ! अज्ज पइन्ना एवंछूवा मण विहिया ॥७९॥ 

ता तह जएसु जह होइ मज्म सह तेण भक्ति संपत्ती | धाईए तओ भणियं न हु सुट ठु कय॑ तए पुत्ति | ॥८०॥ 


अवि चलइ कह वि कुम्मो खिसह वराहों नमेह फणिनाहो | खडखडह धरणिवीढं न वि चलइ सुदंसणो तह वि ॥८१॥ 
जम्हा स महासत्तो परमहिलासंगविहियविणिवित्ती । इह-परलोयविरुद्धं न कुणइ सुविणे वि कइया वि ॥८२॥ 
आणित्तुमुवायाणं लक्खेण वि सो न तोरए तम्हा । मन्नेमि तुह पहन्ना विहला बच्छे ' न संदेहो ॥<८३॥ 
देवीए पुणो भणियं जद एवं तहवि एक्ववारं तं। आणेहि तओ पच्छा तेण सममहं भलिस्सामि ॥८४॥ 

तो पंडियाए भणियं जद एवं तुज्क निच्छओ वच्छे !। ता अत्थि एत्थ एका पवरठवाओं जओ एसेो ॥८५॥ 
पव्वदिवसेसु गंतुं सुनहर-मसाणपमिइठाणेसु । चिद्नद काउस्सग्गे आणिज्वउ ता तह ठिओ वि ॥८ ६॥ 

देवीए तओ भणियं उबलडट्धो अंब ! सुंदरएववाओं । अह अन्नया पुरीए समागए कोमुईदिवसे ॥८७॥। 

तो नरवइणा पडहों पुरीएण घोसोविओ वरुज्ञाणे | सब्बेण नयरिलोएण सब्बरिद्धीए गतुण ॥८८॥ 

पेच्छेयव्वो कोमुइमहसवो त॑ सुदंसणो सोउ' । चितद एगत्थ महो चाउम्मास अहउन्नत्थ ॥८९॥ 

पेच्छामि कोमुइमहं जइ ता न हु होइ देवयापूया । अह धम्मज्काणमहं करेमि तो रूसए राया ॥९०॥ 
एगत्थ रायआणाभंगो अन्नत्थ धम्मक्लाणस्स । ता भमिरतुंबअरयाण अन्‍्तरे अंगुली मज्क ॥९१॥ 

ता पुव्व॑ पि हु कोरठ कोइ उवाउ त्ति चितिकण गओ | रायपुरों उवणेउं उवायणं भणिउमाढत्तो ॥९२॥ 
देव ! इह कोमुइमहे दियहो अम्हाण धम्मकज्जाणं | तो जद कुणइ पसायं सामी ता पूइमो देवे ॥९३॥ 

मा होउ देवयाणं पूयाविग्ध॑ ति चितिऊण निवो । अणुमन्नइ तो सेट्टी महापसाय॑ पयंपेउ' ॥९४॥ 

गंतृण तओ सब्बे जिणेसरे पूइऊ' पओसम्मि । कयपोसहो ठिओ सो उस्सग्गे चच्चरे गंतुं ॥९५॥ 

तो पंडियाए अभया भणिया तुह अज्ज वंछिय॑ वच्छे ! | पुज्जिस्सह नियमेणं मा गच्छसु मणहरुज्ञाणे ॥९६॥ 
तो देव ! मज्क सींसं पीडइ इय उत्तरं नरिंदस्स | दाऊण संठिया सा गओ नरिंदों वरुज्ञआणे ॥९७॥ 

तो पंडियाए लिप्पमयमयणपडिमा पिहित्तु वत्थेहिं । जाबा55णिया निरुद्धा भड़ त्ति ता दारपालेहिं ॥९८॥ 
कि एयं ति तओ तेहिं पुच्छिए कहइ पंडिया तेसिं। नो उज्जाणम्मि गया सरीरकारणवसा देवी ॥९९॥ 
काही ता इहइं चिय पूय्यं देवाण तो इहाणीया । मयरद्धयस्स पडिमा इण्हि अवबरा वि आणिस्सं ॥१००॥ 
जइ एवं ता दंससु पयंपिए तेहिं दंसिया तीए। मुक्का तेहिं तओ सा एवं च दुइृज्जवाराए ॥१०१॥ 

वेलाए तइज्जाए सुदंसणं छाइऊण वत्थेहिं । तत्थ पविट्ठा न हु तेहिं निन्वियप्पेहि पडिसिद्धा ॥१०२॥ 
अभयाए महादेवीए अप्पिओ तीए सा तय॑ दटटुं । छूग्गा बहुप्पयारं सविब्भमं खोहिउः एवं ॥१०३॥ 


पिययम ! महापसाय॑ काऊणं कुण समीहिय॑ मज्क | आणाबिओ सि जम्हा तमेत्थ पडिमापवंचेण ॥१०४॥ 
तुहविरहविसमविसपरवसाइं घुम्मंति मज्क भंगाईं । निययालिंगगअमएण कुणसु ता नाह ! पठणाणि ॥१०४५॥ 


हम अनन--++++क++५७.कओ-सकक»9>»सअ०»+>क «००. 


१. गच्छुउ रं० । 


१४७४ 


तथाहि--- 


आख्यानकमणिकोशे 


परियाणियपरमत्थो सुदंसणो नेय चलइ ऋक्राणाओ $ अभयाउस्सग्गेहिं बहुपव्णेहं सुरगिरि व्व ॥१०६॥ 
अणुरायरसियहिययं अहिणवजोव्वणमणोहरसरीरं । वरसुरयकरणदक्खं सुवियड्' पवररूवं च ॥१०७॥ 

कि बहुणा अमराण वि दुल्लहलंभ॑ मम॑ तए पत्त | माणेतु मणभिवंछियविसएहि सामि ! कयकरुणों ॥१०७॥ 

अवरं च दंसणं पि हु न मज्क पावंति राय-सूरा वि। त॑ पुण मए सयं चिय आणीओ ता मम रमसु ॥१०९॥ 

त॑ नाह ! मए निमुओ दयालहुओ सावओ त्ति ता पसिय | रमसु ममं अह न रमसि मह मरणे तुज्क थीवेज्का ॥११०॥ 
एवं वुत्तो वि न जाव कि पि जंपह सुदंसणों ताव | कंकेल्लिपललवारुणकरकमलेहिं परामुसइ ॥१११॥ 

परिरंभइ अइगाढं मुणाल्सुकुमारदीहरभुयाहिं । चक्रलपीणघणत्थणजुयलेण निपीडिऊण उरं ॥११२॥ 

तह कह वि कामतवियाए तीए संताविओ महासत्तो । अबरों जहा विलिज्जइ अग्गी इव मयणपुत्ततओ ॥११३॥ 

सो हि हु महाणुभावा जह जह सा पाविया कुणइ विग्घं । तह तह वि सुथिरचित्तो धम्मज्काणं समारुहह ॥११४॥ 


अमुणियसुइसब्भावा कुडिला उक्कंचुया महाभोगा । जीव ! भुयंगि व्व इमा खंडइ तुह सिद्धिपुरमग्गं ॥११५॥ 
अबरं च असुइद-वस-मंस-पूय-रुहिरेहिं पूरियसरीरा । एसा ता जीव ! तुम इमीए मा रखचसु खणं पि ॥११६॥ 
चिंतह य जइ इमाओ उस्सज्गाओ कहं पि मुंचेज्य । पारेमि तओ अह नो होइ इमं अणसणं मज्क ॥११७॥ 

ता बद्धभीमभिउडीए पम्णियं रूसिऊण अभयाए | जइ सावेक्खो नियजीवियस्स ता कुणसु मह वयणं ॥११८॥ 
इय जंपिओ वि एसो धम्मज्माणं मियाइ दढचित्तो | निस्सेसं पि हु रयर्णि कयत्थिओं तह वि नो खुहिओ ॥११९॥ 
नाउं पमायपायं तमस्सिणि तयणु तीए पावाए । तिबखनहरेहिं निययं वियारिउं थोरथणजुयलं ॥१२०॥ 

पोक्करियं तो धावह धावह एसो नरो दुरायारो । खंडइ बलिचंडाए अखंडियं सीलरयणं मे ॥१२१॥ 

त॑ सोउ' उद्धाया पाहरिया मुकहकहुंहारा | काउस्सग्गेण ठिय॑ सुदंसणं तत्थ पेच्छंति ॥१२२॥ 

न हु एरिसस्स एरिसकम्मं संभवई इय विचितेड । विज्नत्त नरवइणों राया वि समागओ तत्थ ॥१२३॥ 

संपुच्छियां य देवी पिए ! किमेयं ? ति सा वि विन्नवह । देव ! अहं एत्थ ठिया सरीरकारणवसेण तओ ॥१२४॥ 
आगंतूणं इमिणा पावेण कयत्थिया बहुपयारं । निब्भच्छिओ य निट ठुरवयणेहिं इमो मए नाह ! ॥१२५॥ 

मड्डाए मज्झ सीलस्स खंडणं जाव कांउमारद्धों | ताव मए पोक्करियं त॑ं सोउः चितए राया ॥१२६॥ 

जइ कहवि अमयकिरणो किरइ कराले जडुंतअंगारे | तह वि सुदंसणसेट्ठीी न कुणइ असमंजस कि पि ॥१२७॥ 
इय चितिउ' नरिंदेण सायरं पुच्छिओ किमेयं ? ति। देवीअणुकंपाए न कि पि सो कहइ मणय॑ थि ॥१२८॥ 

एवं पुणो पुणो वि य पुट्टो वि निवेण जंपइ न कि पि। संभाविज्जइ एयं पि मन्निउ' तो नरिंदेण ॥१२९॥ 

सो वज्की आणत्तो भणिउ' पउराण दोसमेयस्स । सयलं पयारिऊर्ण तो वावायह दुरायारं ॥१३०॥ 

गहिऊण तओ आरक्खिएहिं रत्तंदणेण परिलित्तो | खित्ता सरावमाला गरूम्मि मसिपुंडयं रइयं ॥१३१॥ 

विहिया य मुंडमाला सुरत्तकणवीरकुसुममालाहि | आरोहियो य रासहपिट्टि सिरिघरियछित्तरओ ॥|१३२॥ 
वज्जंतडिडिमेणं पारद्धो भामिउ' नयरिमज्झे । उम्घोसिज्जह एयं रच्छामुह-तिय-चउक्केस ॥१३३॥ 

निसुणंतु जणा अन्तेउरम्मि चुकों सुदंसणों सेट्टी | तेण इमो मारिज्वइ नय अंवराहो नरिंदस्स ॥१३४॥ 

त॑ निसुणिउ' समग्गों पउरजणों मिलिय भणिउमाढत्तो | ह द्वी किमेयमेयर्स आगय॑ सुद्धसीलस्स ? ॥१३५॥ 

जइ अमयं पि हु परिणमद कहवि हालाहलस्सरूवेण | तहवि सुदंसणसेट्टी न कुणइ ण्यारिसमजुत्त ॥१३६॥ 

एवं बहुप्पयारं साहुक्कारं जणाओ निसुणंतों । पेच्छंतो पउरजणं रुयमाणं थूलअंसूहिं ॥१३७॥ 

संपत्तो नियमंद्रिपओलिदारम्मि जाव ता दिद्ठों | दश्यामणोरमाए धसक्वियाए किमेयं ? ति ॥१३८॥ 

हा हा हयविहि ! विहियं मह पइणो कि तए अदोसस्स ? | संभाविज्जह सुविणे वि ज॑ न कइ्या वि एयस्स ॥१३९॥ 


१, चन्द्रसूर्यावपि । २. पविलित्तो --₹ं० । ३. आरोविश्नो --रं० । 


१३. नमस्कारपरायरत्तनफलाधिकारे सुद्शेनाख्यानकम्‌ १४५ 


अकलंकस्स वि ए्यस्स आगओ जमिह दारुणकलंको । तंकत्रू्ण पुत्वमवोवज्जियकम्मेण होयव्वं ॥१४०॥ 

ता कि इमिणा अप्पत्थुणण ? चितेमि कि पि कायव्वं । आराहिज्वउ सासणदेवी जह कुणइ सनन्‍नेज्झं ॥१४१॥ 
तो गंतृणं नियगिह॒पडिम परिपूइऊण कुसुमेहि । विहिओ काउस्सग्गो भणिउ' एयारिसं बयणं ॥१०२॥ 
आबालकालरूउ चिय जह सील पालियं मए विमलं | ता आगंतुं सासणदेवी इह कुणउ सन्निज्झं ॥१४३॥ 

अह न करिस्सइ [जह] सा सन्निज्झं ता इमं न उस्सरगं । पारेमि होड एसो वि अणसणं मज्क उस्सग्गो ॥१४४॥ 
सेट्टी सुदंसणो वि य नायरनर-नारिनियरवज्जरियं । हाहारवं सुणंतो संपत्तो पेयवणभूमिं ॥१०५॥ 

चिंतइ अदीणचित्तो जीव ! तए जं॑ पुराकयं कम्मं । त॑ संविवेओ वेयसु सम्म॑ सहिऊण उबसग्गे ॥१४६॥ 

रे जींव ! सुह-दुद्देसुं निमित्तमेत्त परो जियाणं ति । सकयफलं भुंजंतो कीस मुहा कृप्पसि परस्स ? ॥१४७॥ 

रे जीव ! कसायहुयासणेण दड्ढं चरित्तघरसारे | भमिहिसि भवकंतारे दीणमुहो दुत्थिओ य तुम ॥१०८॥ 

सच्चं चिय जइ मोक्खत्थमुज्ञजो जिणसु ता कंसायरिव्‌ | पद्चक्खं पेच्छंतो कह कवे निवडसि निहीण ! ॥१४९॥ 
अप्पविसुद्धिनिमित्तं किलम्मसे ता चएसु कोवरिवुं | विमलत्तमहिलसंतो कह मज्जसि पंकिलजलम्मि ॥१५०॥ 
एगरस वि नियहिययस्स जीव ! विणिवारणे जइ न सत्ती । ता कद् यारंभियमवमहारिविणिवारणं तुज्क ॥१५१॥ 
सब्बो व इह पसंतो पसंतजणमउझूसंटिओ होइ । सइकोवकारणे जो अकोवणो सो इह पसंतो ॥१५२॥ 

ज॑ खमसि दोसवंते सो तुह खंतीए होइ अवयासो । अह न खमसि को तुह अविसयाए खंतीए वावारों ॥१५३॥ 
एवं विचितमाणो आरक्खियभडयणेहिं सूलाए | आरोबिओ सुनिद्‌ ठुरगिराहिं निव्भच्छिउ' एसो ॥१५४॥ 
एत्थंतरम्मि सूला सासणदेविप्पमावओ भग्गा । जाय॑ं च मकत्ति दित्तं कंचणकमलासणं तस्स ॥१५५॥ 

तयणंतरं च तेहिं कुबिएहिं सिरोहराए सेट्टिस्स । दिन्नो खग्गपहारों सो संज्ाओ कुसुममाला ॥१५६॥ 

दट्‌ ठरण तयं आरक्खिएहिं भयकंपिरेहिं नरवइणो । विज्नत्तं तो राया संमंतो आगओ तत्थ ॥१५ज॥ 

खामित्तु बहुपयारं सुदंसणं भणइ भूवई भद्द ! | कि मह न तए कहिओ पुव्व॑ चिय रयणिवुत्तन्तो ? ॥१५८॥ 
आरोविउ सहत्थेहिं राइणा नियकरेणुखंधम्मि | नीओ य सबहुमाणं नियधवलहरे तओ सेट्ठी ॥१५९॥ 
न्हाण-विलेवण-आभरण-वसण-वरभोयणाइसामग्गि । काऊण तस्स पुच्छद राया रयणीए वुत्तंतं ॥१६०॥ 

तयण सुद्ंसणसेट्टी मग्गइ अभयं तओ भणइ राया । कि भणसि अभयमेत्तं ? अबरं पि हु देमि तुह इट्ट ॥१६१॥ 
तो तेण समग्गों वि हु कहिओ रायस्स रयणिवुत्तंतो । त॑ निसुणिउ' नरिंदों आरुट्टो उवरि अभयाए ॥१६२॥ 
उबसामिऊण तत्तो चलणेसु विरुग्गिकण नरनाहं । तो आरूढो सिंघुरखंधम्मि सुदंसणो सेट्टी ॥१६३॥ 
बंदियणपदिज्जतो वज्बिरजयतूरपूरियदियंतो । नायरलोयपमोयं जणमाणो सुद्धसीलेण ॥१६४॥ 

परिभमिऊं नर्यारें चच्चर-रच्छा-चउक्कसंकिन्नं । संपत्तो नियभवणे परियरिओ नायरजणेण ॥१६५॥ 

तदंसणेण अम्मा-पियराणि पमोयपूरियंगाणि | जाया मणोरमा वि य हरिसियहियया पियं दटटुं ॥१६६॥ 

नाऊण तयं अभया भणण उब्बंधिऊण पंचत्तं । संपत्ता तद्धाई वि पंडिया नासिझऊण गया ॥१६७॥ 

पाडलिपुत्ते नयरे ठिया सयासम्मि देवदत्ताए | अणुदिवसं पि सुदंसणगुणगहणं कुणइ तप्पुरओ ॥१६८॥ 
तम्गुणसवणाओ तीए तम्मि जाओ परोक्रखअणुराओ । सो वि सुदंसणसेट्टी पव्वहओ जायसंवेगो ॥१६९॥ 
अहिगयसयल्सुयत्थो कुणमाणो दुच्‌चरं तबच्चरणं | एकल्लविहारेणं विहरह सो गुरुअणुन्नाओ ॥१७०॥ 

विहरंतो भूवीढे पाडलिपुत्तम्मि पुरवरे पत्तो | मिक्‍खं परिब्भमन्तो गिहे गओ देवदत्ताए ॥१७१॥ 

कहिय॑ च पंडियाए सामिणि ! एसो सुदंसणो सेट्टी | तो पिहियकवाडाए तीए खोभेउमारद्धो ॥१७२॥ 
अब्भत्थिओ सपणयं मयणानलतावियाएु गणियाए । परिहासपेसलेहिं वयणेहिं सविब्भमं साह ॥१७३॥ 

कि बहुणा ? बाहुलयापरिरंभणपमिहकामकेलीहिं । * *'** **' रमिओ वियालवेलाए ता मुको ॥१७४॥ 


१, सुविवेश्रो रं० । 


३३< 


१७६ आख्यानकमणिकोशे 


तो गंतु उज्ञाणे काउस्सग्गम्मि संठिओं साहू | अभयावंतरिणीए दटठरूण कयत्थिओ अहिय॑ ॥१७५॥ 
बहु विहउस्सग्गेहि रक्खस-गुरुसीह-सप्पपभिशहिं । जा सम्मं अहियासइ अउत्बकरणं तओ जाय॑ ॥१७६॥ 
विहिया य खबगसेढी संजायं विमलकेवर्ल नाणं । देवेहिं कया केवलमहिमा गुरुभत्तिकलिएहिं ।१७७॥ 
पारद्धा य सुदंसणरिसिणा सद्धम्मदेसणा तत्तो | पडिबुद्धा वंतरिणी सपंडिया देवदत्ता य ॥१७८॥ 
अबरं पि भवियलोगं पडिबोहेउ' सुदंसणमुर्णिदो । निट्टविय अट्ठकम्मी सासयसोक्खं समणुपत्तो ॥१७९॥ 
॥ खुद्शनाख्यानकं॑ समाप्तम ॥४३॥ 

जह एएसि जाओ नवकारो सुगइसाहगो सम्मं | 

तह अन्नस्स वि जायइ ता जश्यव्वं इमम्मि सया ॥१॥ 

स्फूजेत्करीन्द्र -हरि-सद्गर-कालकूट-व्याला-डनलादिभवभीमभयापहारी । 

स्वगों-डपवर्गसुखसाधनकल्पवृक्ष:, क्षीणाशुभो जयति सत्रमेष्ठिमन्त्र: ॥१॥ 

॥ इति श्रीमदाप्नदेवसूरिविरचितवृत्तावाख्यानकमणिकोशे नमस्कारफलयणनस्त्रयोदशो5घिकारः समाप्त: ॥१श॥ 


“इयर की वयथक 
[ १४. स्वाध्यायाधिकारः ] 


व्याख्यातं नमस्कारफलम्‌ | अय॑ च नमस्कार: परावत्यमानः स्वाध्यायो भवति अतः स्वाध्यायफलं व्याचिख्यासुराह-- 


वेरग्गकरो सन्नाणकारओ पावकम्मखयकारी । 
इहलोगे वि गुणकरो जवसाहुस्सेव सज्काओ ॥१६॥ 
व्याख्या--“वैराग्यकर:” भवनिवेदकारी 'सज्ज्ञानकारकः' सह्दोधविधायी 'पापकर्मक्षयकारी' ज्ञानावरणीयाग्रशुभमलापहत 
“इहलोके5पि? आस्तां तावत्‌ परभवे 'गुणकरः” गुणकारकः । दृष्टान्तमाह--जवसाधोरिव 'स्वाध्याय:” वाचनादिरूप इत्यक्षराथ:॥१९ 
भावाथस्तवाख्यानकादवसेयः । तच्चेद्मू--- 
जवउरनयरे राया जवाभिहों धारिणी पिया तस्स । गद्दहनामो पुत्तो धुया य अगोल्या ताण ॥१॥ 
मंती वि दीहपिट्टो सिद्ध नेमित्तिएण निव ! तुज्क । धूयं जो परिणेही होही रायाहिराओ सो ॥२॥ 
अह अन्नया य निउणाभिहाणसूरी विसिट्तचउनाणी । विहरंतो संपत्तो समोसढो जवयउज्जाणे ॥३॥ 
महरिहरिद्धीए जवो वि नरबई मुणिवरिंदनमणत्थं । गंतुं गुरुणो पणमिय कयंजली तत्थ उबविद्ठो ॥४॥ 
तो एगंते पुट्टं निविण भयवं ! अणोलियाए पई । होही को ? तो सूरी पयंपए तुज्स भइणिसुओ ॥५॥ 
सदूदुलओ तयणु निवो पयंपए तस्स देवि रज्जसिरिं । पव्वज्ञामि अहं तो पयंपियं मुणिवर्रिदेण ॥६॥ 
गदह कुमरस्सिन्हि रज्यसिरी तवसिरी पुणो तुज्म । जुज्जइ एयं सोउ' नरेसरो पणमिऊण गुरुं ॥७॥ 
गंतुं भवणे गद्दहकुमारमहिसिचिउ' निययरज्जे | गद्दहमणोलियं पि हु भलाविड' दीहपिट्ठस्स ॥८॥ 
निक्खंतो नरनाहो विहर्‌इ गुरुणा सम॑ं समाहीए । वुड्कत्तेण न जाओ पाढो ता कुणइ सज्ञायं ॥९॥ 
अह अन्नया य नाणेण गद्दहाईण नाउमुबयारं । एगागी वि हु गुरुणा जबरायरिसी विसुद्धमणो ॥१०॥ 
वंदावणाय सन्नाइयाण पद्ठाविओ तओ सो वि। आगच्छट जाव पहे इरियासमियाए संजुत्तो ॥११॥ 
ता पेच्छह जवछित्ते पविसंतं गद्दह॑ं चरणलोलं । हकित्तु आरहट्टियनरेण निसुणइ पढिज्जंतं ॥१२॥ 


१, देमि रं०। 


१७. स्वाध्यायाधिकारे यवाख्यानकम्‌ १४७ 


अवघससि घससि धघुत्ता |! ममं चेव निरक्खसि । लक्खिओ ते मए भावो धवं पेच्छेसि गद्दद्दा ! ॥१३॥ 
तो सिक्खिउं तयं जाव जाइ परिवत्तयं पुणो मग्गे । ता उन्नइयाकीलापरव्वसे पेच्छइ कुमारे ॥१४॥ 
ताणेक्केणं कणियाए पहणिया उन्नई समुल्ललिउं | कत्थइ बिलम्मि पडिया न य दिद्ठा तेहिं तो पढियं ॥१५॥ 
इयो गया इओ गया जोइज्जन्ती न दीसए । वर्य एवं वियाणामोी अगडे पडिया अणोलिया ॥१६॥ 
तं॑ पि हु सिक्खिय उम्घोसमाणओ जवपुरम्मि संपत्तो । अशुजाणाबिय सालाए संठिओ कुंभयारत्स ॥१७॥ 
रयणीए उल्लभंडाणि छिंडिउ' जाइ मूसओ भीओ । तो अणुकंपाजुत्तेण कुंभयारेणिमं पढियं ॥१८॥ 
सुकुमाल्य ! भदृदुलया ! रत्ति हिंडणगसीलया ! । मम सयासाओ नत्थि ते भयं दीहपिद्वाओ ते भयं॑ ॥१९॥ 
सिक्‍्खेउ' त॑ पि मुणी गुणइ तओ ताणि तिन्नि वि पसंतो । एत्तो य बालरज्ज॑ नाऊणं दीहपिट्रेण ॥२०॥ 
नेमित्तियसिट्ं पि हु जमडणोलियकन्नयापई होही । रायाहिवई त॑ चिय विचिन्तिड तेण पावेण ॥२१॥ 
हरिउ कुमरी भूमीहरम्मि खित्ता तहेव सामंता । केत्तियमेत्ता वि हु तेण भेइया दविणजाएणण ||२२॥ 
नाओ य जबमुर्णिदों समागओ ता न सुदरं एसी । महविलसियं मुणिस्सइ ता मारिज्वउ उबाएण ॥२३॥ 
इय चितिऊण गद्दहनरेसरं भणइ देव ! तुह जणओ । तिव्वतव-चरणभग्गो समागओ गिण्हिद्दी रज्ज ॥२४॥ 
सामंता वि हु सब्बे वि भेइया तं पुणो मुणसि तइया । रज्ज जया गहिस्सइ ता तेणुत्त कहसु जुत्त ॥२५॥ 
पभणइ य दीहपिढ्रो नीईसु वि जंपियं हर्‌इ रज्जं । जो बप्पो वि स सप्पो व्य मरणमरिहह महाराय ! ।।२६॥ 
न जहा जणाववाओ जायइ तह सिम्घमेव गंतूृणं । त॑ वावायसु इय जंपिऊण कहिओ कुलालगिहे ॥|२७॥ 
राया वि हिओ एसो त्ति चितिउः जणयमारणनिमित्त । अंधारपडं पावरिय करयले कलिय करवालूुं ॥२८॥ 
सद्धि भद्दलएणं गंतुं सो जाव हेरिउः रूग्गो । ताव पढंतं निसुणइ जणयं अवघससि इच्चाइ ॥२९॥ 
त॑ सोउ' नरनाहो चिंतदइ ताएण जाणिओ अहयं | नाणेण अणोलियमबि नाही इय चिंतयंतस्स ||३०॥ 
तस्स तओ पुण मुणिणा पढियं तमिओ गय त्ति इच्चाइ । त॑ सो3' नरनाहो चिंतइ पावेण मह भइणी ॥३१॥ 
छूढा अयडे केणावि तो भयं तस्स पासओ मज्झ । तं पि हु ताओ नाही तो पढियं साहुणा एयं ॥|३२॥ 
सुकुमालय इच्चाई त॑ं सोउ' चिंतएु निवो मज्कम॒ | मंतिसयासाओ भय कहिय॑ ताएण नाणेण ॥३३॥ 
ता मह भइणी वि हु तेण गिण्हिया नियमओ जओ ताओ । चितियमेत्तं पि हु कहइ मज्क इय चितिउ” राया ॥३४॥ 
गंतुं भवण नियबलभरेण घरिऊण भ्त्ति तं मंतिं। जाव निहालइ भूमीहराइं ता पाविया भइणी ॥३५॥ 
तो पुद्भराए सिद्ठ तीए जहा अहमणेण अवहरिया । रुट्ठ णं रज्ना वि हु सरोसमणुसोसिओ मंती ॥३६॥ 
जाए. पभायसमए सबलो राया गओ मुणिसमीवे । पणमेउ' उबविट्ठटों मुणिणा वि हु निययसत्तीए ॥३७॥ 
कहिया सद्धम्मकहा तो नरनाहो विलग्गिय कमेसु । जंपइ किह मह मोक्खो होही एयस्स पावस्स ? |॥३८॥ 
जंपइ साहू पाव॑ नासइ सब्वं पि साहुदिक्खाए | एयं पि करिस्सामि त्ति जंपिउ' उद्धिओ राया ॥३९॥ 
गंतुं भवणम्मि तओ भइणिपरिणाविऊण भदलूओ । अहिसित्तो नियरज्जे सयं पुणो सह सजणणीए ॥४०॥ 
पत्तो जणयसयासे तेण वि गंतृण गुरुसमीवम्मि | पव्वाविओ तओ ते सब्वे वि कुणंति तवचरणं ॥४१॥ 
मरिऊण समुप्पन्ना अमरा विप्फुरियतणुपह्ापडला । सिज्मिस्संति विदेहे उववज्जिय विजियकम्ममडा ॥४२॥ 
स-परोमयगुणहेऊ सज्काओ जह जवबस्स नरवइणो । जाओ तह अन्नस्स वि जायइ इहइ च भणियं च ॥०३॥ 
अट्टमट्ट पि सिक्खिज्जञा सिव्खियं न निरत्थयं । अट्टमइप्पसाएणं जीवियं परिरकक्‍्खियं ॥०४॥ 
॥ यवाख्यानक समाप्तम्‌ ॥४४॥ 
स्वाध्यायकर्म कृतिनां कृतसिद्धिशरम, सद्धमेसाधनमपाकृतपापकर्म । 
सऊउज्ञानकारणमकारणबन्धुमेतद्‌ , दुध्योनसिन्धुरसितांकुशमा श्रयध्वम्‌ | १॥ 
॥ इति भ्रीमदाप्नदेवसूरिधिरचितवृत्तावाख्यानकमणिकोशे स्वाध्यायफलश्रतिपादकश्थतुदंशाधिकारः समाप्त ॥१४॥ 
वर 4 ८०0 आज 


[ १५. नियमविधानफलाधिकारः ] 


उक्तः स्वाध्यायाधिकार: । साम्प्रतं पूर्वोक्तगुणयुक्तेन नियमेन विना न स्थातव्यमिति नियमविधानफलमाह--- 
थेवों वि कओ नियमो महाफलो होह निच्छियमणाण । 
दामन्न-बंभणी-चंडचूड-गिरि-रायहंस व्य ॥२०॥ 
व्याख्या--'स्तोकोडपि' स्वल्पोडपि आस्तां बहुरित्यिपिशब्दा्थ: कृत: बिहितः “नियम: अभिग्रहविशेषः 'महाफल:' 
बृहदूगुण: 'भवति' जायते “निश्चितमनसां' दृढचित्तानाम्‌। दृष्टान्तानाह-दामन्नकश्च मत्सबन्धकजी वः ब्राह्मणी च-विश्रवधू: चण्डचूडरच- 
तथाविधकुलपुत्रकः गिरिश्च--डुम्बः राजहंसश्च-कुन्दकर्मकरजीव: दामन्नक-ब्रह्मणी-चण्डचूड-गिरि-राजहंसाः तद्वदित्यक्षराथें: ॥२०॥ 
भावा्थंस्तव्वास्यानकगम्य: । तानि चामूनि । 
तत्र तावद्‌ दामन्नकाख्यानकमाख्यायते । तश्चेदम-- 
कत्थ विय सल्रिवेसे निवसइ पयइप्पसंतयाकलिओ । एगो धीवरपुरिसो अहडन्नया सरयपज्जन्ते ॥१॥ 
सरयम्मि सप्पयावं सस्ससमिद्धं खलो ब्व जडपयई । हेमंतो कलिराओ व्व बाहिउ' भुवणमवयरिओ ॥२॥ 
निब्वायगिहल्लीणं बहुवसणं फुरणतेयगमरहियं । जड्डुज्जरपत्वहियं विहियमणज्जेण जयमिण्हि ॥३॥ 
सच्छाइ' सुद्धिजणयाइ' तावहरणाइ सउणसहियाइ' । सुयणकुलाइ' व्व सराइ' भट्ठकमलाइ विहियाइ ॥७॥ 
उब्वेयकराओ तमोजुयाओ सम्मग्गगममणखलणीओ । रयणीओ रंडाओ व्व जम्मि विद्धि पवन्नाओ ॥५॥ 
सद्धम्मकम्मविहिहेउणो वि सम्मग्गपयडणपरा वि। सप्पुरिसा इव दिवसा पावेणं पाविया हार्णि ॥६॥ 
बहुधण-धन्नक्खयकारयम्मि किर कि कहिज्जए अवबरं ?। परिहरिऊणडमयकरं दहणो सेविज्ञजए जम्मि ॥७॥ 
सुपवित्तं सरसं पि हु हिमेण विच्छाइयं सरोयवर्ण । गुणवंता वि हु कलिणा विच्छाइज्जंति सप्पुरिसा ॥८॥ 
फलरहिया सुमणसवचत्िया य साहारपभइणो तरुणो | कुदो उग विडत्रों जम्मि कपमुमिओ हसइ वगराइ ॥९।। 
सूरो वि दरिद्दियमाणवों व्व खत्थो पयावधणरहिओ । जम्मि जडासयकमलंतरेसु परिभमइ खिवियकरो ॥|१०॥ 
परमेगो तम्मि गुणो सिणेहसारम्मि जायइ जमेगा । मित्तोदयम्मि पाय॑ परमाहारे रुदई अहिय॑ ॥११॥ 
चइऊण सुरससीयलूसिरिखंडाईणि जम्मि सेवंति | संतावकरं कारीसजलणजायं जडत्तहया ।।१२॥ 
मोत्त्ण गुणवन्तं मणोहरं वित्तवं पवरहारं । वन्नंति जम्मि रल्लयतेल्लप्पमुहँ अहममहमा ॥॥१३॥ 
एवंविहहेमंते संते सो धीवरों पुराभिहिओ | मच्छयगहणनिमित्त' जालकरों निग्गओ गेहा ॥१४॥ 
गंतुं तरंगिणीए घेत्तृणं मच्छए पडिनियत्तो | संझाए नियइ साहुं उस्सग्गठियं नईतीरे ॥१५॥ 
पहणिज्जंतं हिमकणविमिस्सअइसिसिरपवणपूरेण । तो तेणं करुणाए जालेणावेढिओ साहू ॥१६॥ 
अह नियगिहम्मि पत्तों सुत्तो काउ. पलालसत्थरयं | सावच्चाएण सह पिययमाए कंथिकपावरणो ॥१७॥ 
काउ' पच्चासन्ने हुयासणं पज्जलंतगुरुजालं । तह वि हु पीडिज्जंतो सीएण न पावए निद्दं ॥१८॥ 
अहमेत्थ पियापरिरंभिओ वि सेवियसिही वि गिहमज्झे । कंथापावरणो वि हु कंपामि सतुहिणपवणेण ॥१९॥ 
सो उण महाणुभावो मुणी कहं होहिई निरावरणो । अइदुसह-हियाहोडयहिमकणसम्भिस्ससीएण ॥२०॥ 
इय एवं चितंतस्स तस्स जाया निसा गयप्पाया । तो सो समुद्धिऊणं गओ तह चिचय मुर्णि नियह ॥२१॥ 
तो भत्तिपगरिसुब्मिन्नपुलयपरिपूरिणण तेण मुणी । पणओ पयपंकयमिलियभालबदट्ठेण सप्पणयं ॥२२॥ 
एत्थंतरम्मि भुवणस्स जडिममव्णेउमिच्छमाणेण । उइयं पुब्बदिसाए विउसेण व उण्हकिरणेण ॥२३॥ 
मुणिणा वि पारिऊणं उस्सग्गं तरस देसणा विहिया । भो भद्द ! पावमूलं परिहर पाणिवहमेयं ति ॥२४॥ 
जओ भणियं-- 
हंतुण परप्पाणे अप्पाणं जो करेइ सप्पाणं । अप्पाणं दियहाणं कण्ण नासेइ अप्पाणं ॥२५॥ 


१४. नियमविधानफलाधिकारे दामन्नकाण्यानकम्‌ १४९, 


एकस्स खणं तित्ती अन्नस्स य तिहुयणं पि अत्थमइ । एवं कहमारिज्वउ खणसोक्खकणण पाणिगणो १ ॥२६॥ 
एक़सरीरस्स कए सरुयस्स असासयस्स तुच्छस्स । जे मारयंति जीवे ताणं कि सासओ अप्पा ? ॥२७॥ 

इय मुणिवयण्णं सोउ' पाणिवहं अत्तणो अण्त्थफलं | सो जंपह भयभीओ देसु महं पाणिवहनियम ।॥|२८॥ 

भणिओ मुणिणा परिभाविऊण गिण्हसु पयंपए सो वि। कि मज्क कोह काही नियनियमे निच्छयपरस्स ? ॥२९॥ 
दिन्नो य साहुणा से नियमो तेणावि तोडियं जाल | एमेव गओ गेहे भणिओ भज्जाए बीयदिणे ॥३०॥ 

कि न हु गच्छसि मच्छयनिमित्तमह तेण अक्खिओ नियमो । त॑ सोउ' सा कुविया गुरुसद्दं कलहियं रूगा ॥३१॥ 
मिलिओ य मच्छियाणं सब्बो वि हु पाडओं भणइ एवं । न हु जोवबदयाध म्मो अम्हाणं निम्मिओ विहिणा ॥३२॥ 
इय जंपिऊण नीओ इयरेहि तरंगिणीए मड्डाए । घन्नलाविओ य जारूुँ जलम्मि भरियं च मच्छाणं ॥३३१॥ 

मुका करुणारसिएण तेण सब्वे बि मुच्चमाणाणं । भग्गा एगस्स परं पंखुडिया तंतुसंगेणं ॥३४॥ 

एवं जालियपुरिसेहिं मड्ुया मच्छसंगह एसो । कारविओं वारदुगं मुक्का ते तेण तह चेव ॥३५॥ 

तप्परओ परिपालिय नियमं अह आउयक्खए जाए | जीवदयापरिणामा बद्धं मणुयाउयं तेण ॥३६॥ 

रायगिहे सिद्टिसओ जाओ दामन्नगों क « नाम॑ । अद्टवरिसिस्स मारीए मारियं तस्स य कुडुंब ॥३७॥ 

नायरजणेण मारीसंचरणभएण तस्स भवणस्स | चाउद्दिसं पि विहिया वाडी बहुकंटयभरेण ॥३८॥ 

सो पुण जीवदयावससंजायपकिद्ठ पुत्नभावेण । जीवंतो नीहरिओ सणि य कयवाडिदारेण ॥३९॥ 

भुंजंतो भिकखन्नं तहा सुयंतो य सुन्नहद्वेसुं | वच्चइ विद्धि अह अन्नया य सिसिरम्मि संपत्ते ॥४०॥ 

पावरणविहृणो सो प्िप्तिरानिलकंपमाणसब्बंगो । दिद्लो समुद्ददत्तेण सेट्रिण जायकरुणेण ॥9१॥ 

नियमंदिरिम्मि नीओ भोयणपावरणपश्िदह सब्ब॑ पि। संपाडिकण विहिओ कम्मयरों नियगिद्दे चेब ॥४२॥ 

अह अन्नदिणे मुणिणो समागया दोज्नि विहरणनिमित्त | दटतुं दामन्नगमेगसाहुणा जंपियं ताण ॥४३॥ 

एसो इमस्स भवणस्स नायगो होहिही न संदेहो । निसुय॑ कुड्डंतरिएण सेट्टिणा साहुणो वयर्ण ॥४४॥ 

चितइ य मइ जियंते मज्झ सुए वा कहं इमो होही । मह मवणवई ? अहवा न अन्नहा होइ मुणिभणियं ॥४४५॥ 
ता केणावि उबाएण एस मारिज्जउ त्ति चितेउं | वाहरिय पुत्वगरिचियचंडालं भगह उवयरिउ ॥२६॥ 

रे रे |! इमं विणाससु जह कोइ न याणए तओ तेण । सह सेट्टिणा पवंचो रइओ अह अन्नदिवसम्मि ॥०७॥ 
विवणीए वच्च॑तं चंडाल्लं हक्किउ' भणइ सेट्टी । रे ! मज्झ देहि दम्मे ज॑ सोउ' भणइ मायंगो ॥४८॥ 

इण्हि चिय संपेससु नियपुरिसं कंपि मज्झ गेहम्मि | दम्मे जस्स समप्पेमि तयणु पद्ठावए सेट्टी ॥४९॥ 
दामन्नगमेव तओ मायंगेणं कयप्पवंचेण | मायंगवाडयाओ वि दूरदेसम्मि सो नीओ ॥५०॥ 

तो तव्वहणनिमित्तं कालनिसाचूलय व्व अइवंका । जमजीह व्व सुभीमा कालसरूवा भुयंगि व्व ॥५१॥ 
आयड्िया कराला किवाणिया तडिलय व्व दुप्पेच्छा | तो पुव्वभवसमज्जियजीवदयासुकयकम्मेण ॥५२॥ 


.मायंगमणे करुणा जाया जह कि विणासिएणिमिणा १ | भणिओ ये सो तुममहों हणाविआ सेट्टिगा आसि ॥५३॥ 


ता वच्च दूरदेसे नाम॑ं पि न नज्वए जहा भद्द ! | अहय॑ तु तस्स पच्चयनिमित्तं लेसंगुलिं तुज्य ॥५४॥ 
छिंदेउ दंसिस्सामि एवमायन्निउः वराओ सो । मरणमहाभयकंपिरगत्तो दीणस्सरं भणइ ॥५५॥| 

मुंच मम॑ जीवंत महापसाएण तयणु नीएण । छेत्तण अंगुली से समप्पिया सेट्ठिणो गंतुं ॥५६॥ 

त॑ द्व॑ संतुट्ठो सेट्टी दमन्नगों वि नासंतो । तस्सेव गोउलम्मी संपत्तो संठिओ य तहिं ॥५७॥ 

सो तत्थ भयविमुक्को गोडलूवइणो गिहम्मि परिवसह । रक्खइ दक्‍्खत्तणओ तग्गोउलूवच्छरूवाणि |[५८॥ 
सेट्टी वि हु तत्थ गओ गोउलसाराकए तमायंतं । गोरसपुद्दावयवं पेच्छिय दामन्नगं भीओ ॥५९॥ 
सासंकमाणसेणं अंगुलिछेएण पच्चभिन्नाओ | चिंतियमिमिणा नुणं मुणिवयर्ण न5न्नहा होही ॥६०॥ 


१, मुणिवयणं रं० । 


१५० 


आख्यानकर्मणकोशे 


बलिय॑ दइवं जइ वि हु तह वि पयट्टेमि पोरिसं ताव । पोरिसविहवा जम्हा दइवं पि छलंति सप्पुरिसा ॥६१॥ 
परिभाविऊणमेयं भणिओ दामज्नओ मह सुयस्स । लेहमिमं वच्छ ! तुम गंतुं सिग्धं समप्पेसु ॥६२॥ 

सो वि विणीयत्तणओ पडिवज्जिय तं गओ तुरियगमणो । पत्तो य परिस्संतो पुरपरिसरबाहिरुज्ञाणे ॥६३॥ 
निद्दापरव्वसो तरुतलम्मि जा सुयइ ताव सेट्ठिसुया । कीलंती संपत्ता तम्मि पएसे विसा नाम ॥६४॥ 

ढिट्ठो य तीए लेहो निद्ठाए निब्भरं सुयंतस्स | निययसहोयरनामेण लंछिओ तस्स पासम्मि ॥६५॥ 
थीचावलभावाओ छोडेउ' वाइओ तयत्थो य | एसो एयर्स विस दायव्वमधोयपायस्स ॥६६॥ 

चितियमिमीए तायस्स करिमवरद्धं सुदूरमेएण | काराविओ जमेव॑ दंडो मह भायपासाओ १ ॥६७॥ 

अहवा वि हु मज्क पिया संपयमहियं जरामिभूयतणू । मइ-सुइवियलो अन्न॑ मणम्मि अन्न कुणइ कर्ज ॥६८॥ 
चिंताउरों य जम्हा अहमेव य पढमजोव्वणाभिमुहा । अड्डा यतिरिच्छा विव भमामि जणयस्स जमिह॒त्तं ॥६९॥ 
जायंति य दीणिम जणंति जोव्वणि संपत्तिय, चितासायरि खिवर्हिं तवहिं परमंदिरि जंतिय । 

पियपरिचत्त अहुंतपुत्त मणु तावहिं जणयहं, जम्मदिणि चिय नयणनीरू ति दिज्जइ तणयहं ॥७०॥ 

अहवा वि हु किमणेणं वियप्पजालेण रुचइ जमसो 0 25 किक 45 जज सह 200 08 के ३08 840 लेक ३8 | | 9 १ | | 

इय चिंतिऊणमच्छीए कज्जलं सहरिसाए घेत्तृणं | विससद्ृस्स विणीओ नहसुत्तीए अणुस्सारों ॥७२॥ 

विहिओ य दीहभावो सरस्स संवत्तिकण तह चेव । लेहो मुक्को तुरियं काऊणप्रिमं गया सगिहं ॥७३॥ 
दामन्नगो वि निद्दाखयम्मि बुद्धो गिहम्मि गंतृण | सागरदत्तस्स पुरो पक्खिवइ करेण त॑ लेहं ॥७४॥ 

घेत्तण करे सीसेण वंदिउः जाव वायए लेहं । ता विज्ञायतयत्थो मणम्मि परिमावइ मुहुत्त |॥७५॥ 

एयस्स विसा ताएण दाविया सिम्धमेस लेहत्थो । कायव्वमिणं नवरं जोइसियं ताव पुच्छामि ॥3६॥ 

जा पुच्छ ता तेण वि वुत्तं सुभगज्जमड्डरत्तम्मि | रूग्गं पुरओ सुद्धी वरिसदुगेणं मह मईए ||७७॥ 
सागरदत्तो वि हु सुणिउमरिसं नियमणे विचितेइ | नुणमिम॑ मह जणओ नाऊणमकारविंसु दुयं ॥७८॥ 

तो तेण पमोएणं पमाणयंत्रेण निययपिउवयणं । गंधव्वविवाहेणं दुन्नि वि वीवाहियाणि लहुं ॥७९॥ 

सेट्टी जावा55गच्छइ पभायसमयम्मि ताणि तो नियह । निवसियवलक्खवत्थाणि रुइरनवकंकणकराणि |॥|८०॥ 
पुच्छ३ किमेयमह तस्स दंसिओ तस्सुएण सो लेहो । जा वायइ ता पेच्छइ तहेव लेहत्थमच्चत्थं ॥८१॥ 


चितियं च तेण-- 


कि च-- 


केसरिं वारिउः सका, वारणं वा वि भीसणं | नाल बुद्धिसमिद्धा वि वारिउः भवियव्वयं ॥८२॥ 


अवि चलइ मरुचुला, गयणाओ दिणमणी वि निवडेज्जा । न हु मुणिवयणं भुवणम्मि अन्नहा होइ कइया वि ॥८३॥ 
ता कि अज्ज वि जामाउयस्स चितेमि मारणोवायं | परमेव कए कट्ठ वच्छा कह होहिइ वराई ? ॥८४॥ 

परमेयं न मणम्मि वि धरियव्वं॑ नीयमणुसरंतेहिं। भणियमिणं नीइविसारएहिं वयणं जमेत्थत्थे |८५॥ 

त्यजेदेक॑ कुलस्याथे, मस्यार्थ कुर्ल त्यजेत्‌ | ग्रामं जनपदस्यार्थे, आत्मार्थ प्रथिवीं त्यजेत्‌ ॥<६॥ 

इय चितिऊण वुत्तं नवपरिणीयं वहू-वरं वच्छ | । कुलदेवयाए पाएसु पाडिय॑ कि न वज्ज्ज विय ? ॥८७॥ 

पुत्तो पमणइ नज्ब वि सेट्टी पुण भणइ अम्ह कुलमग्गो | ता संपयमवि बच्चउ संकासमयम्मि सुमुहत्ते ॥८८॥ 

इय भणिउं भेसविओ मायंगो रे ! तयं तए तइया । तह चेव कयं ? कि वा कि पि हु कावाइयं विहियं ? ॥८९॥ 
सो भयभीओ जा कि पि न भणई ताव सेट्टिणा भणियं | संपयमवि मह वुत्तं करेसु तुह न5न्नहा मोक्खो |॥९०॥ 
मा कुप्प सामि ! जं भणसि संपयं तमहमायरिस्सामि | जइ एवं ता जो चंडियाए भवणमम्मि संझाए ॥९१॥ 


जज अज 


१, तमिह० रं०। 





१४. नियमविधानफलाधिकार ब्राह्मण्याल्यानकम १५१ 


आगच्छर पूयत्थं पुरिसो तं सव्बहा विणासेसु । मा पुष्व॑ व पमायं काहिसि तुममेस सिक्खविओ ॥<९२॥ 
दामन्नगो वि सह पिययमाए जा जाइ जाणमारूढो । ता सायरदत्तेणं भणिओ त॑ पत्थिओ कत्थ ? ॥९३॥ 

तेण वि कज्जम्मि निवेइयम्मि वुत्तं तमेत्थ हट्टम्मि | उबविससु सस॑ कुलदेवयाए पाएसु पाडेउं ॥९४॥ 
जावा55गच्छामि तहा कयम्मि जा जाइ ताव तमसम्मि । विद्धो बाणेणं तेण झत्ति मुकी य जीएणं ॥९५॥ 
हाहारबो य जाओ सिद्ध कज्ज॑ति जाइ जा सेट्टी । ता दामन्नगमेसो पेच्छह हड्डम्मि उबविद्ठं ॥९६॥ 

ते कि न गओ ९ भणियं च तेण एत्थेव चिट्दसु तुम॑ ति। म॑ मोत्तु तुह पुत्तो बला गओ कि करेमि अहं ? ॥९७॥ 
ख़ुहियमणो जा चिट्वइ सेट्टी सिद्टं च ताव केणावि । नाउं परंपराए सेट्टिसुओ हा ! विणट्टो त्ति ॥९८॥ 

पुणरवि एस जियंतो पावो माराविही अपावमिमं | इय कलिउ' व स सेट्टी मुक्को सहस त्ति पाणेहिं ॥९९॥ 
नाऊण वहयरमिमं रज्ना पुट्टं वउप्पए कोइ । नत्थि त्ति देव ! नवरं चिट्ठ् जामाउगों एगो ॥१००॥ 

आगच्छठ सो पेच्छामि ताव पत्तो य निवसयासम्मि । दिद्नो रज्ना पुव्विल्लपुन्नपयरिसपवित्तंगो ॥१०१॥ 
चितियमिमिणा मा होउ मज्ञ एसो जणम्मि अववाओ । रत्नों गिह्े पविट्ठं समुद्ददत्तस्स सब्बस्सं ॥|१०२॥ 

जह वि हु एसो जामाउगो त्ति जोग्गो न गेहसामित्ते | तह वि मए दिल्नमिमस्स चेव सब्वं पि सब्वस्सं ॥१०३॥ 
तत्तो रत्ना दामन्नगस्स नायरयलोयपच्च कखं । दिल्न॑ रंजियमणसा सब्बं पि समुद्ददत्तपयं ॥१०४॥ 

तो दामन्नगसेट्टी संजाओ नायराण गोरव्वों ।सब्वत्थ चक्खुभूओ जाओ य असेसनयरस्स ॥१०५॥ 

अह कइ्या वि विसाए परूढपणयाए साहियं तस्स । लेहस्स बिंदुफुसणाइ सब्बमेयं मए विहिय॑ ॥१०६॥ 

ते पिययम | तुह पाणे तया मए रक्खियाउणुरत्ताए । तेण परितुट्ठेणं ठविया सब्बस्ससामित्ते ॥१०७॥ 

अह कइया वि हु चिरपेसियाणि जलहिम्मि जाणवत्ताणि । पत्ताणि ताणि पुन्नप्पमावओ तस्स सब्वाणि ॥१०८॥ 
वद्धाविओ य सेट्टी जा गच्छह ताव अंतरालम्मि | नन्ंतेण नडेणं  परिपढियं रंगमूमीए ॥१०९॥ 
अणुपुंखमावहंता वि अणत्था तस्स बहुफला हुंति । सुह-दुक्खकच्छपुडओ जस्स कयंतो वह पक्खं ॥११०॥ 
नियचरियसुमरणेणं रंजियहियणण तेण से दिज्नो | एगो लक्खो दविणस्स पाढिउ' पुणरवि तमेव ॥१११॥ 
पुणरवि दिन्नो लवखो पुणरवि पढियम्मि तइयओ दिल्नो | जा दिल्न॑ं छक्खतिगं रज्ना रुट्रेण तो भणिओ ॥११२॥ 
रे निव्मगाय ववहरसि किह णु पाएहि छड्डिएहिं तुमं | मह पासाओ हछद्धू' रिद्धिमिम॑ ज॑ विणासिहिसि ॥११३॥ 
भणियं च तेण जाणामि देव ! वणियाणमणुचियं एयं | कज्जेण जेण विहिय॑ तस्स तुम सुणसु परमत्थं ॥११४॥ 
मह सुमरावियभिमिणा चरियं तो तोसओ मए दिज्नं | इय नाऊणं देवो ज॑ जाणइ त॑ कुणउ मज्ञ ॥११५॥ 

पुट्टे नियवुत्तंतो कहिओ दामन्नगेण सब्वो वि | सुणिकण तयमसेसं रंजियहियएण रज्ना वि ॥११६॥ 

परिपूरऊण महरिहृवत्थालंकारपमिशणा भणिओ | वियरसु भहद | जहिच्छ गोरव्वो मज्म तुममिण्हिं ॥११७॥ 
इय सो जणाणुरायप्पुव्वगममरोवर्म मणुयपोक्खं । भुंजिय सग्गसमिद्धि पत्तो कमसो य सिद्धि च ॥११८॥ 


॥ दामन्नका ख्यानक समाप्तम ॥४५॥ 


इदानी ब्राह्मण्याय्यानकमारभ्यते। तशथ्चेद्स-- 


उज्जेणीए पुरीए वणिणो निव्ंति तिन्नि जिणभत्ता । वणिजन्नदत्त-सिरिविण्हुमित्त-जिणदासनामाणो ॥१॥ 
धूयाओ ताण जयसिरि-विजयसिरीओड्वराइया अबरा । अन्ना वि हु ताण सही वसुमित्ता माहणस्स सुया ॥१॥ 
अवरोप्परं च वड्ड तपीइपरिहासहरियहिययाण । अइकमइ ताण कालो अहज्नया माहणस्स सुया ॥३॥ 
आसाढचउम्मासयपभायसमए समीवमियराण । संपत्ता ताओ वि हु एवं समुल्लबिउमाढत्ता ॥४॥ 


निज अजवलललनलल. ऑनिओनन किन च त 


१, पदियमिणं रंग --२ं० । २, पादियं --२ं० । ३. लक्खो तद्देव पढि० रं० | 





श्श्२ 


आख्यानकमणिकोशे 


पियसहि ! न रमिस्सामो अज्ज5म्हे जेण धम्मद््‌विसमिणं । जिणपूर्य काऊणं वंदिस्सामो सुसमणीओ ।॥५॥ 

ता गच्छ तं सगेहे पयंपिण तयणु भणइ वसुमित्ता । आगच्छिस्समहं पि हु तो ताओ भणंति को दोसो १ ॥६॥ 
तो चत्तारि वि जिणमंदिरम्मि गंतुं जिणिंदबिंबाण । न्हविय विलेविय पूहय पणमिय संथविय भत्तीए ॥७॥ 

पत्ता य साहुणीणं सन्नेज्मे पणमिउः समुवविद्वा । विहिया य देसणा साहुणीए तो सावयसुयाओ ॥८॥ 
अंगीकरंति तिन्नि वि सावयधम्मं दुवालसविहं पि | वसुमित्ता वि हु अज्ञाण पणमिउ' एबमुल्लवइ ॥९॥ 
मंस-निसिभोयणाइं अहमवबि नियमेमि तीए परिणामं । नाउ' दिल्लो नियमो सा वि हु त॑ पालए सम्मं ॥१०॥ 
अह अन्नया य वद्धणपुराओ ससुरेण आणयणकज्ञा । पट्टाविओं नरो सा वि ताओ आउच्छिऊकण गया ॥११॥ 
न कुणइ नियनियमाणं भंगं तो जंपिया ससुरणण । निसिभोयण-मंसाइं अम्ह कमो तीए तो वुत्तं ॥१२॥ 
दिवसस्याष्टमे भागे, मन्दीभूते दिवाकरे । नकतं तद्‌ विजानीहि, न नकतं निशिभोजने ॥॥१३॥ 

अवरं च राइभत्तं जइ भणियं किन्न कीरए ताय १। तीए पिंडपयाणं तम्हा न हु होइ निद्दोसं ॥१४॥। 

मंसं पि हु पंचिंदियपाणिविणासुब्भवं सदोसमिमं । जम्हा घायग-कयगा भक्‍्खागा वि हु समा भणिया ॥१५॥ 
तेणुत्त मह वयणं जइ न कुणसि निच्छएण तो गच्छ । नियपियहरम्मि त॑ं निसुणिकण सा चितए एवं ॥|१६॥। 

न हु जुज्जइ जणयगिहे गंतुं एवं ठिए ममेयाणिं। पडिबोहेमि इमं पि ह ता केणावि हु उवाएण ॥१७॥ 

इय चिंतऊण भणियं मेल्लावसु ताय ! तस्स पासम्मि | नियमो जस्स सयासे गहिओ तो मज्नियं तेण ।॥।१८॥। 
सासू-ससुरय-सुण्हाइयाणि चलियाणि नयरिमुज्जेणिं | गामम्मि जीवहरणे पत्ताणि तमस्सिणीसमए ॥१९॥ 
दिद्ठाणि माहवेणं दिएण तो रसवई कया गेहे । ताण निमित्तं सालणयसंगया सुमहुररसा य ॥२०॥ 

अद्द हियरम्मि बहुतीमणम्मि थालीए उवरिभागाओ । मूसयममिधावन्तो कसिणाही निवडिओ तत्थ ॥२१॥ 
चालंतेणं डोएण खंडिओ तयणु माहवदिएण | भणियाणि भोयणट्ठटा ताणि न मन्नेइ वसमित्ता ॥२२॥ 

तीए य अजमंतीए सासू ससुरो य दो वि नो जिमिया। भुत्तो य ताण परियणलोगो विसजोगओ य मओ ॥२३॥ 


दिद्वाईं गोससमए विसहरखंडाणि तीमणस्संते । तो ससुरयस्स जाओ बहुमाणो तम्मि नियमम्मि ॥२४॥ 
पुणरवि चलियाणि पहे पत्ताणि पुरम्मि दसउरे ताणि | रयणीए समुत्तिन्नाणि मंदिरे बउलद॒त्तस्स ॥२५॥ 

पुत्तो य तस्स नियगिहनिउत्तकुलपुत्तयस्स भज्जाएण । आगच्चसम्मनामा अणुरत्तो तेण नाओ य ॥२६॥ 
तज्जणणी-जणयाणं कहिय॑ तेहिं पि किंपि न हु भणियं | तो बहुययरं कुबविओ निहालए तस्स छिड्डाणि ॥२७॥ 
पाहुणयाण निमित्तं मंसाणयणे य पेसिओ तेण । गच्छंतेण नियभारियाए सह रहसि सो डिट्ठो ॥२८॥ 

कुविएण तओ उच्बंधिऊण तस्सेव उरुजुयलस्स । उक्कत्तिकण मंसं तज्जणणीए समप्पेडः ॥२९॥ 

घेत्तण य सकलत्तं कुलउत्तो नासिउ गओ कहिंवि | भणिया य भोयणट्टा पाहुणगा भोयणे सिद्धे ॥३०॥ 
निसिभोयण-मंसाणं नियमो तो जेमिया न वसुमित्ता । सासू-ससुरेह्ि पि हु न हु भुत्तं तयणुरोहेण ॥३१॥ 
जोयइ जा नियपुत्त जणओ ता नियइ त॑ तहावत्थं । नाओ य ससुरणणं महाणमंसस्स वुत्तंसो ॥३२॥ 

तो जंपइ जयउ जए नियमो तुह पुत्ति ! जप्पमावेण । नो जाय॑ विसमरणं न भक्खियं विप्पमंसं पि ॥३३॥ 

तो एसो चेव जए धम्मो न हु अत्थि कोइ पुण अन्नो । जेणेरिसोवयारों जाओ एमेव य कएण ||३४॥ 

अम्हे वि करिस्सामो निसिभोयण-मंसविरमणं वच्छे ! | जम्हा न एयअबरो आओ परो अत्थि वरधम्मो ॥३५॥ 
तो तेहिं वि पडिक्ल्ना नियमा वलिडः गयाणि नियनयरे | जाया य हिययदइया अहिय॑ दइयस्स वसुमित्ता ॥३६॥ 
तो तिन्नि वि नियनियमे सुनिम्मले पालिकण मरिऊण । भासुरबुंदी जाया अमरा सोहम्मकप्पन्मि |३७॥ 
चविउ' ससुरयजीवो जाओ एत्थेव भरह॒वासम्मि | सिरिधम्मो निवपुत्तों संपत्तो जोव्वणारंभं ॥३८॥ 

वसुमित्ता वि हु चविड' जाया तत्थेव सेट्टिणो धूया | सिरिद्‌वी नामेणं अवरा वि हु तत्थ नयरम्मि ॥३९॥ 
जायाओ चउददस कन्नयाओ सासूजिओ वि ताणेको । उप्पन्ना नामेणं देवजसा देवकुमरि व्व ॥४०॥ 


१४. नियमविधानफलाधिकारे ब्राह्मण्याख्यानकम्‌ १५३ 


तत्तो चडद्सण्हं पि सेट्टिणा विरइय॑ं विभृई्ण | वद्धावणयं कालक्रमेण पत्ताओ तारुननं ॥४१॥ 

नियवहुयनियमभंजावणुब्भवं उदयमागयं कम्म॑ | तो देवजसागत्ते बाढं कोढो समुप्पन्नो ॥9२॥ 

सिरिदेवीए सब्बाओ ताओ नेहेण नियनियनिओंगे । एगा केसे संजमहू का वि उच्बद्बणं कुणइ ॥४३॥ 

परिहावह्‌ आभरणे अवरा अन्ना य आसणं देइ । इय उवभओगं गच्छेति तीए कज्जेसु सब्वाओ ॥४२४॥ 

देवजस। पुण जंपइ मम पि कारवसु कि पि नियकज्ज | पियसहि ! एरिसपरिवज्जणिज्जरोगेण सहियं पि ॥४४५॥ 

तीए भणियं ठाणन्मि जम्मि ण्हाणं समायरामि अहं । तम्मि पएसे सुपसत्थसत्थियं देसु समईए ॥४६॥ 

तो तं॑ समायरंतीए तीए पंकप्पमावओ हृत्था । जाया तो तप्पाओग्गओ य सज्जं सरीरं पि ॥४७॥ 

जाओ सिरिधम्मस्स वि कोढो सो चेव तेण कम्मेण । पच्चसखाओ विज्जेहिं तयणु घोसाविओं पडहो ॥४८॥ 

छित्तो देवजसाए भणियं च अहं करेमि निहयप्रिमं | तो आणेउं नियमंदिरिम्मि तीए वहम्मि ठिओ ॥४९॥ 

उत्वष्टिओडणुदिवसं सिरिमह उव्बद्णेण निवकुमरों | जाओ य जच्चऊंचणसच्छाओ थेवदिवसेहिं ॥५०॥ 

परिणाविओ य सब्वाओ ताओ तुट्टेण राइणा कुमरों | अद्विसिंचिओ य रज्ज पत्थावे कणयकल्सेहिं ॥५१॥ 

जाओ य महाराया अहडन्नया सुहगुरूण पासम्मि | पडिवन्नो जिणधम्मों सव्वाहिं वि पणइणीहि सम॑ ॥५२॥ 

त॑ सम्म॑ परिपालिय गयाणि सब्बाणि देवलोगम्मि । उप्पज्जिउ' विदेहे सिद्धिसुहं लहु लहिस्संति ॥५३॥ 

गंथाओ नेयब्वं वित्थरओ बहिणिवच्छलाओ इम॑ | इय नियम नाऊणणं कायबव्बो सो सुबुद्धीहिं ॥५४॥ 

॥ ब्राह्मण्या ख्यानर्क समाप्तम ॥४६९॥ 

इवानीं चण्ड्यूडाज्यानकमारभ्यते | तश्चेदम्‌-- 

अत्थि इहेव को वि तहाविहकोडुंबियपायजणाहिट्ठटिओ, रोहणामिहाणभूहरमूमिभागों व्व महाहीरयाहारो, पंडियसहापणएसो 
व्व गोवाहिद्विओ, मरुमंडलो व्व थोववाणिओ, जणाउलनिवासो व्व अप्पसावओ, सप्पुरिसदेहों व्व सच्छायवच्छत्थलोवसोहिओ 

हत्थलामिहाणो नाम गामो । तम्मि य एगो कुलपुत्तओं परोवहसणसीलो सहावकुडिलो चंड्च॒डामिहाणो परिवसह । अवरो वि 

तग्गिहसमीवे चेव ठग्गयामिहाणो कुंभयारों खल्लिहडओ । सो य चंडचडो पहदिणं पेच्छद रविकिरणकरालियं पिलिपिलंतं इतो तओ 
निंतो गिहद्टिओ तस्स खल्लि । 

अज्ञया पासद तहाविहसाहुसमीवे सावयाइजणं मज्ज-मंसाइनियमे गिण्हंतं। आगंतृणं उवहासपरो प्रणइ--- 
भो | जह एयारिसेहिं नियमेहि धम्मो भवई ता अहमवेतत्स दग्गयाभिहाणकुंभयारस्स जाव खल्लि न पेच्छामि ताव न 
भुंजामि, मज्झ वि होठ एस नियमो । साहूहिं भणियं--जह निच्छएण परिपालेसि ता अत्यथि फल । गहिओ य अवन्नाए नियमों, 
पालइ य तं॑ तहा कल्लाणमायणत्तणेण सम्ममेसो । 

अन्नया य गओ सो कुंभयारों अणुग्गए चेव दिवसयरे मध्ियाखणणत्थं । जायमवरणहं | सुइरं निरिक्खिओ विन 
ढिद्ठटों कुंगययारों। दढपइन्नत्तणओ न भुंजए एसो। पुच्छिओ भारियाए--कि न भुंजसि १। भणिय च णेण--मए एरिसो 
नियमो अंगीकओ । तीए पणयपुव्वमुवहसिओ -तुज्क वि केरिसो नियमो १। तेण भणियं--भद्दे ! मा भणसु एवं, पडिवन्नानिव्वहणे 
केरिसं पुरिसत्ततं ?। तओ तीए तस्स निच्छयं जाणिऊण पुच्छियाणि दुग्गययमाणुसाणि | भणियं च तेहिं गओ मट्टियानिमित्तं 
खाणीए | तत्थेव गओ चंडचडो तद्वंसणत्थं । 

एत्थंतरे कुंभयारस्स मद्वियाखणणत्थं दिल्ने कुद्दालियापहारे उम्मिट्टं निहाणभायणं । 'दिट्लो दिद्वो' कत्ति भणिकण वलिओ 
चंड्चूडो । तेण य संकिएण “नायमणेणं' ति वालिओ । तेण वि भिउडि काऊण भेसिऊण भणियं मम पुव्विल्लएहिं निहाणीकयमासि । 
तओ तदुचियं दीणारसहस्सं दाऊण वसीकयं दविणजायं | जाओ य तप्पभावेण जणपूयणिज्रो । कुणइ य चाय-भोय-विलासाइय । 
जाओ य पत्थुयनियमविसए बहुमाणो । चितियं च तेण अणुभूयनियमफलेणं-अहो | मे पावपरिणईद, अहो ! मे पयइकुडिलत्तणं, अहो ! 
में पुरिसाहमत्तणं, अहो | मे छोगवबहारबज्मत्तणं, अहो ! मे दुद्वंतइंदियत्तणं, अहो ! मे परलोयनिरवेक्खत्तणं, अहो ! मे गुणवेसत्तणं 

१. अहमप्येतस्य | 

२० 


१५७ आख्यानकमणिकोरे 


जेण मए मलिणपक्खेण अच्च॑तमुच्छितेण लोहमइएण सुतिक्खतुंडेण परमम्मवेहिणा सन्वजणसंतावगेण चत्तगुणेण धम्मविमुक्केण बालेण 
व तया तारिसा वि साहुणो परोवयारनिरया इहलोयनिप्पिवासा समसत्तु-मित्ता समतिण-मणि-लेट ठु-कंचणा 'एए सुबडुया दिंबायरिया 
असंबद्धभासिणो भोगंतरायकारय' त्ति पावकम्मुणा निंदिया, एए वि सावया जीवदयापरायणा असच्चवावारविरिया परदव्व|वहारभीरुणो 
सकलत्तसंतुद्टा अपरिमियपरिग्गह-राइमोयण-मज्ज-मंसाइपरिभोयनियत्तचित्ता अयाणमाणेणोवहसिया, पेच्छ ममोवहासपरस्स वि एरिसं 
पत्तियं नियमफलं जाय॑ ति, ता सब्बद्या अहमेत्तियस्स चेव जोगो त्ति, कि कइया वि काओ कंचणसलागामयपंजरपक्खेवमरिहइ 
कि कहटया वि मायंगगेहदारमेरावयर्सिधुरबंधणभायणं होइ ? किंवा छालीए मुहे कुंमंड माह ? कि वा दोणधणवरिसणे वि 
गिरिसिहरे नीरावत्थाणमरिहइ ? कि वा आमम्मियकुंभो महुर-सीयलनीरपत्तत्तणं पावह ? कि वा मरुमंड् वियसियकमल्सरोवरसोहा- 
भवणं भवह ) त्ति; कि बहुणा ? सब्वहाउहमकल्लाणभायणं जेण मए एएहिं सावएहिं सम॑ बहुययरनियमगहणं न कर्य-ति साहु- 
सावयगुणपक्खवायबहुमाणेण पोसियं बोहिबीयं, परित्तो कओ संसारो । आउयक्खए पत्तो तियसालयं | तओ चुओ कमेण पाविही 
परमपयं ति ॥ 


॥ चण्ड्चयूडाख्यानक समाप्तम्‌ ॥४७॥ 


इदानों गिरिडुम्बाख्यानकमाख्यायते | तथथा-- 


अत्थि सिरिसिरिउरं नाम नयरमइनयररम्मयाकलियं । राया तम्मि जियारी जियारिनामो जहत्थक्खों ॥१॥ 

पुरपरिसरम्मि डुंबो सुकुडंचो पयइभद्गो एगो । निवस्तह नाडयवित्ती नडो व्व नाम॑ च तस्स गिरी ॥२॥ 

तस्प य दो भज्ञाओं सज्जाओ नाडयं चलंतस्स | पज्जंते चलमाणा तार्स पासेसु दोसुं पि ॥३॥ 

मंसस्स छब्बयं वारओ य मज्जस्स वच्चह चलंतो | जावेगीए पास ता मंसं खाइ पियद सुर ॥४॥ 

तीए वि हु दाऊण चलमाणो जाइ पासमियरीए । तत्थ वि तहेव ववसइ इय कम्मरओ वसइ तत्थ ॥५॥ 

अह कइया वि हु मयमल्लसुरिणो समणसंघपरियरिया । संवत्ता विहरंता तओ य भोत्तृणमवरण्हे ॥६॥ 

संजमवियारभूमीए पत्थिया पवरनाणिणो जाव | ताव खरतरणिकरनियरतत्ततणुणी समामिहया ॥७॥ 
वच्छच्छायाए वीसमंति पेच्छंति तत्थ ताव तयं । तारिसकुकम्मकरणेक्षवावर्ड मूढवावारं ॥८॥ 

चिंतियमिमेहिं केचिरमेसो निदियकुकम्मकरणाओ । पावं समायरिस्सह सुओवओगेण तो नाय॑ ॥९॥ 

खणमेत्तमिमो जीवइ तओ य परिभाविऊण करुणाए। एस वराओ कहमम्ह दिट्विंगोयरगओ चेव॑ १ ॥१०॥ 

महु-मज्ज-मंसभक्खणसंचियगुरुकम्मकयवरो कुगईं । गच्छिहिइ सम्ममाभासिऊण भो भद्द ! कि कुणसि ? ॥११॥ 

एवं वुत्तो मोत्तण नाडयं रइयकरकमलकोसो । पडिउं पाएसुं भणइ देव ! कि कम्ममम्हाणं ! ॥१२॥ 

लज्जियहियओ नियचेट्ठटिएण जाव5च्छट विल्कखमणों | ता भणिओ भट्द ! वयं समागया तुज्ञ गेहम्मि ॥१३॥ 

सब्वो वि हु गोरुवों समागओ होइ एस ववहारो । ता संपयमम्हाणं वुत्तं कि पि हु करेसु तुम॑ं ॥१४॥ 

तेणुत्त तुह वुत्त केरिसभम्हेहिं तीरए काउं ? । तुब्मे भणिस्सह इस मंसं मज्ज मुयसु भद्द ! ॥१५॥ 

भणियं गुरूहिमिच्छा तुहेत्थ जं॑ तरसि तत्तियं कुणसु | जइ एवं ता पठणो जमुचियमम्हाण त॑ भणह ॥१६॥ 

भणिओ गुरूहिं गंठिं बंधसु घेत्तण मह तुम नाम॑ । जावंतरालमेयं संपत्ती भक्खपासम्मि ||१७॥ 

भुत्ते तहेव बंधसु छोडेउं भक्खियम्मि पीयम्मि । पुणरवि तहेव बंधसु एवं कए तुह् सुहं होही ॥१८॥ 

जोगत्तणओ तेणं पडिवन्ने भावओं सनिय्रमम्मि । तद्टाणाओ सूरी वियारभुमीए संपत्तो ॥१९॥ 

इयराणि वि वक्खित्ताणि जाव चिद्ठंति नाडए तम्मि | भवियव्वयाए ताव य ज॑ जाय॑ त॑ निसामेह ॥२०॥ 

घेत्तणं उग्गविसं भुयंगम सउणिया समुप्पहया । भुयगस्स मुह्ाओ मज्जवारए निवडियं गरलरूं ॥२१॥ 

न य लक्खियमियरेहिं इओ य सो गंठिसंगओ डुंबो । पत्तो मंससमीवे छोड गंठिं सरिय नाम॑ ॥२२॥ 


अनिनन-लनीन- ना नानक नल 


१, मायह र०। 


१४५. नियमविधानफलाधिकारे राजहंसाख्यानकम्‌ १५४ 


भक्खिय मंसं जा पियंह मज्जमह गरलदोसओ झत्ति | भामियदिट्वी भूमिए निवडिओ ताव गयचेट्ठों ॥२३॥ 
मुक्को पाणेहिमिओ य तस्स भज्ञाओं कंदमाणीओ । काउ' परिद्दाणं मत्थयम्मि पत्ता निवसयासं ॥२४॥ 

हा देव ! दुब्बलाणं बलिओ राय त्ति ता परित्ताहि | कत्तो तुम्हाण भय॑ ? तो भणियं ताहि सुणसु पह ! ॥२५॥ 
सज्जो संपयमेव हि भत्ता अम्ह!ण सेयवरडर्ण्ह । दाऊण कमवि जावं विणासिओ मंदभग्गाणं ॥२६॥ 

रत्ना वि सम्ममपरिविखऊण कोवेण पेसिया पुरिसा । तेहिं वि निदयदट्टोट्ट-मिउडिभासुरसरीरेहिं ॥२७॥ 
भणिया सूरी चज्नह रायाएसेण रायपासम्मि । ढिंबारिएहिं तुब्मेहि मारिओ रायडुंबदओ ॥२८॥ 

सो वि हु डुंबो नियमप्पमावओ सुमरिऊण गुरुनाम । मरिऊण समुप्पन्नो कवड्धि जक्खो महिड्ीओ ॥२९॥ 
जो अज्ज वि सत्तुंजयगिरिसंठियरिसहवंदणपरस्स । कुणइ सया सन्रिज्झ मग्गे संघस्स भत्तीए ॥३०॥ 

जाव पउंजइ ओहिं ता तयवत्थे निएद् नियगुरुणो | विउरुब्विकण नयरस्स मत्थए गिरिवरं गरुयं ॥३१॥ 
उद्दंडवायदंदूलविविह[' *''' "]कडयडंतविडविभरं । उक्खणियधूलिधृसरियसत्तसस्थं दढमसत्थं ॥३२॥ 

जा चिट्तह ताव भणंति केइ एएह5कज्जमायरियं | डुंबन्वहकरणाओ तो जाय॑ विड्थु रमकंडे ॥३३॥ 

अन्ने वि सावया सम्मदिद्ठिणो ते इमं पयंपंति | सासणदेवीए कय॑ सन्नेज्म॑ साहुभत्तीण ॥३४॥ 

जावेवं सव्बो वि हु नयरजणो खुहियमाणसो जाओ । ता आयासे ठाउं पयंपियं कवडिजक्खेण ॥३५॥ 
हंहो ! अप्पत्यियपत्थियाइ गुणकलियगलियमाहप्प || एवं अपरिक्खियकारगस्स तुह नत्थि कल्लाणं ॥३६॥ 
तत्तो भीओ राया सुइमूओ उल्लपडयपावरणों | धूयकडच्छुयहत्थो एवं भणिउं समाढत्तो ॥३७॥ 

देवो व दाणवो वा गंधव्वो किन्नरो व जक्खो वा। सो खमउ मज्झ सन्बं अवरद्धं पायपणयस्स ॥३८॥ 
इय सोऊर्ण जक्खो मणय॑ उबवसंतमाणसो जाओ । सम्मदिट्टी जीवा अणुसयरहिया भवंति जओ ॥३९॥ 
भणिओ सुरेण राया तुमए राय॑ं ! विरूवमायरियं । ज॑ एवंगुणनिहिणो कयत्थिया साहुणो एए ॥४०॥ 
समसत्तु-मित्तमावा जीवाण हिया दयावरा धीरा । अवरद्वे वि विरुद्ध परस्स चिंतंति न कया वि ॥४१॥ 
एएसि पभावेणं परोवयारेक्रमाणसाणमहं । सो तारिसो वि डुंबो जाओ जक्खो महिड्ठीओ ॥४२॥ 

ता एएसि पणओ भवाहि पडिवज्ज धम्ममेएसि | एएसि माणनिरओ भवेज्ञ जइ जीवियं महसि ॥०३॥ 

इय सोउं सूरीणं केसेहिं पमज्जिऊण पयक्रमलं । भमणइ निवो मरिसिज्जसु अन्नाणाओं जमवरद्धं ॥०४॥ 

अज् प्पभिहं तं मज्य सामिओ बंधवों गुरू जणओ । आणाकारी भयव॑ं ! सीसो हं तुम्ह पयसेवी ॥४५॥ 
जक्खो वि हु पच्चमखों सक्खं होऊण सूरिपयपुरओ । दंसंतो सुररिद्धि निययं संथुणिउमाढत्तो ॥०६॥ 
अणुवकयपराणुग्गह करणपरायण ! पसंतमणपसर ! । दुत्यियजणकरुणारसनिज्ञरणगिरिंद ! तुज्म नमो ॥४७॥ 
इय थोऊणं जक्खो सुमरंतो सूरिशयपउमजुय्य । निच्चल्सम्मत्तजुओ संपत्तो अत्तणों ठाणं ॥४८॥ 


॥ गिरिडुम्बाख्यानकं॑ समाप्तम्‌ ॥४८॥ 


इदानीं राजहंसाख्यानकमाख्यायते । तश्ेदम्‌-- 


किनननरननन 





सोरद्ठदेसमज्झे पुरीण अणिमंजियाभिहाणाएं । कुंदर्सियदंतपंती कुंदो नामेण कम्मयरों ॥१॥ 
कज्जलसिणिद्धतारा वि भारिया मंजरी पिया तस्स | अह अन्नया य तेणं कट्टाण कए गएण बहि ॥२॥ 
सिरिधम्मघोससूरी दिट्लो उज्बाणमज्ञयारम्मि । दिप्पंतो तवतेणण पणमिओ परमभत्तीएण ॥३॥ 
एवमणुवासरं पि हु पणमह पयपंकर्य मुर्णिदस्स । गुरुणा वि तओ सद्धम्मदेसणा तस्स परिकहिया ॥४॥ 
तो तेण मज्ज-मंसाणि नियमियं पणमिरं गुरूण पुरो । नियनियमपालणुज्जुत्तचित्तजुत्तस्स कुंदस्स ॥५॥ 
पाहुणओ संपत्तो अह5ज्ञया तस्स भारियाभाया। तस्स कए निम्मवियं मंसं तह रसवई महुरा ॥६॥ 


लिन शिनित लि पाए * 








१, तुब्भ र | 


आश्यानकमणिकोशे 
सालय-भहणीवइणो उवविद्वा दो वि भोयणनिमित्त | परिवेसियम्मि मंसे दोण्हं पि न भुंजए कुंदो ॥७॥ 
भुंजाबिओं य नियम॑ अयाणमाणीए तीए मड्डाए | सुत्तो पच्छायावं॑ निसाए सो काउमारद्धो ॥८॥ 
पिच्छ जहा घेत्तणं नियमों निब्भग्गसेहरेण मए। जाणंतेण वि भग्गो अमीरुणा पावकम्मस्स ॥९॥ 
अप्पाणं निंदन्तो पुणो पुणो पुच्छितओं पिययमाएं । कि सोयसि ? त्ति भणियं तेणं नियमों मए भग्गो ॥१०॥ 
अहह ! विरूवं जाय॑ ति जंपिउं तीए पाणिओ भत्ता | कि मह कहिय॑ न तए लजआए तम्मि समयम्मि ? ॥११॥ 
ज॑ विहिओ वयभंगो अहमवि काराविया इम॑ पावं । ता क्रिमिह सोइएणं ? गोसे गुरुणो कहिस्सामो ॥१२॥ 
तो उग्गयम्मि अरुणे गुरूण चरणारविदमभिनमिउं । मोणमवर्ंबिऊर्ण साममुहो मणयमुवविद्ों ॥१३॥ 
संजाओ छज्जाए अहोमुहो तो पयंपिओ गुरुणा । कि भद्द ! सामवयणों ? तह वि हु न पयंपए किंपि ॥१४॥ 
तो तसस सहयरीए कहिय॑ नियमस्स खंडर्ण गुरुणो | करुणारसिएण तओ सायरमाभासिओ गुरुणा ॥१५॥ 
कह वि हु कत्तंतीए संधिज्ज३ कि न तुट्ठओ तंतू ? | पाओ य कि न धुव्वइ असुइविलित्तो पमायवसा १ ॥१६॥ 
भग्गो रणम्मि सुहडो पुण भिडिओ कि न लहइ जयलूच्छि ? | एवं खंडियनियमो वि लहइ नियमप्फलं सच्च ॥१७॥ 
ता तुममवि मणखेयं मुयसु पुणो वि हु पवज्ज नियममिणं । तेण वि य भावसारं पडिवन्नो पुलइयंगेण ॥१८॥ 
तब्भज्ञाए वि कओ नियमों भत्तीए मज्ज-मंसाण । दोन्नि वि पालंति पवड्ठमाणबहुमाणसाराइईं ॥१९॥ 
कालक्कमेण सुहपरिणदैए कुंदो5मिवंदिय मु्णिदे । मरिऊण समुप्पन्नो देसे सिरिकंठनामम्मि ॥२०॥ 
नयरीए जयंतीए नरिंदकुरुवन्दअगामहिसीए | गब्भम्मि मंगलाए तीए इम॑ सुविणयं दिद्वं ॥२१॥ 
लीलाचंकममाणो महुरसरो चंदरबिंबसियपक्खों | वयणेण रायहंसो पविसंतो रथणिविरमम्मि ॥२२॥ 
कहिओ य नरवरिंदस्स भणइ सो तुज्ञ उत्तमो पुत्तो | होही त॑ सोऊणं तुद्ठा गब्म॑ समुब्बहइ ॥२३॥ 
जाओ य दोहलो से मुर्णिदपयपञ्जुवासणाविसओ । संपूरिओ य रज्ना तो पसवदिणे पसूथा सा ॥२४॥ 
जाओ य रयणपुंजो व्व गत्तदित्तीए भासियदियंतो । पुत्तो तो तस्स कय॑ वद्धावणयं विभूदेए ॥२५॥ 
जाए बारसमदिणे सुविणयसरिसं कय॑ नर्िंदेण । कुमरस्स रायहंसो नाम॑ सम्माणिउं पउरे ॥२६॥ 
लालिज्जन्तो नवक्रमलकोमलारुणकराहिं धाईहिं। जाओ पवड्ठमाणो कमेण सो अट्नवरिसो उ ॥२७॥ 
जा संपत्तो पारे कुमरों निम्मलक॒लाकलावस्स । भवियव्वयाए राया ता संजाओ कहासेसो ॥२८॥ 
निवमम्गो अणुसरिओ देवीए वि रायमरणदुक्खेण । बालो त्ति रायहंसो न कओ नरनाह रज्वम्मि ॥२९॥ 
अहिसित्तो पररेहि सिरिचंदों राइणो लह भाया | नरनाहपए सो पुण जुबरायपयम्मि संठविओ ॥३०॥ 
कालेण कामिणीयणदुम्मणसंपायगं सुमज्ज व । सो संपत्तों सब्बंगसुंदरं जोब्बणारंभं ॥३१॥ 
तो पुत्वजम्मकयनियमभंगसंजायकम्मदोसेण । सिरिचंदअगामहिसी तस्सुवर्रिं कोवमुव्बहह ।।३२॥ 
एत्तो य कोइ राया नियदुग्गबलेण लूसए देसं | तो रायहंसकुमरं मोत्तु नयरीए निवसहिय॑ ॥३३॥ 
राय तगाहणत्थं कडयं काउं तओ गओ सो वि । दुग्गबलेणं घेत्तं न तीरए तो नरिंदों वि ॥३४॥ 
वेढेवि ठिओ तत्थेव दुग्गमित्तो य रायहंसी वि। निश्व॑ पि रइयसिंगारसुंदरो देइ अत्थाणं ॥३५॥ 
अत्थाणटियं त॑ विप्फुरंतमणि-रयणजडियमउडधरा । पणमंति मंति-मंडलियजुत्तसामंतसंघाए ॥३६॥ 
एमेव य भणिया वि हु आएं सीसेण [ते] पडिच्छंनि | अप्पाणं कयकिश्च॑ तस्सा55एसेण मन्नंता ॥३७॥ 
सो वि हु सम्माणं कुणइ ताण सब्बेसिमहसएण सया । आलुवणा-भरण-पलोयणाइउचियप्पयाणेहिं ॥३८॥ 
आवज्जिया तहा ते संजाया तम्मया जह सपउरा । पेच्छंति तयं जणयं व देवयं वाउहव गुरु व ॥३९॥ 
कुणइ य कयसिंगारों सिंधुरमारुहिय पुरिपरिव्भमणं | सियपुंडरीयवारियदिणयरकिरणावलीपसरो ॥9०॥ 
वीइज्जंतो विलसिरविलासिणीधरियचारुचमरेर्टि | अणुगम्मंता रह-तुरय-गयवरारूढराएहिं ॥४१॥ 


१, वययो रं०। २. श्रद्धवारिसिओ रं० | 


१४. नियमविधानफलाधिकारे राजहंसाल्यानकम १४७ 


जतो जत्तो छीलापलोयणं कुणइ तत्थ तत्थेब । भामंति अंचले कुल्वह॒ओ पणमंति पउरजणा ॥४०२॥ 

इय एवं विलसंतं त॑ं दटदुं दुष्डचित्तवित्तीण | तीए नरनाहभज्जाए चिंतियं पावक्रम्माए ॥३३॥ 

नर्ण इमस्स होही रज्जमिणं न उण मज्झ कुमरस्स । ता तह करेमि न जहा अरिहृइ एसो नर्िंद्सिरिं ॥४४॥ 
इयचिंतिऊण पावाए तीए मंडुक्कवाहिसंजणणं । दिल्न॑ कराविऊर्ण कम्मणयं रायहंसस्स ॥|४५॥। 

तो तप्पभमावओ तस्स जढरमाऊरियं २... .._......< महं उयरं अइतणुयं पि हु तयं जाय॑ ॥०६॥ 
कडयट्विणण वेज्जेहि कारिया राइणा चिगिच्छा से । न तहा वि गुणो जाओ रोगो पुण वड़िओ अहिय॑ ॥४७॥ 
चिट्ठउ तावियरजणो न कुणइ नियपरियणो वि तस्सा55णं । देवीमीओ पेच्छड य केवल्ं तं अवन्नाए ॥|४ ८॥ 
अह अज्या य सारीर-माणसाणेगदुक्खसंतत्ती । रयणीए रायहंसो एवं चिन्तेउमारद्धो ॥०९॥ 

पेच्छ मए सयलऊजणो सुइरं परिपालिओ सजीय॑ं व । निशच्च॑ कयप्पसाओ वि कुणह न हु मज्क वयणं पि ॥५०॥ 
माणधणा पयईए पराभवं पयणुयं पि न सहन्ति । अहमबि अहीणमाणो ता एत्थ न जुज्जए ठाउं ॥५१॥ 

ता जाव5ज्जवि सत्ती गंतुं थेवा वि विज्जए मज्ञ । ता वच्चामि विएसं घिसि सयगपराभवं सोढुं ॥५२॥ 

इय चिंतिय नीहरिओ पसुत्तनिस्सेसपउरलोगम्मि । मंदं चंक्रममाणों संपत्तो नयरमुज्जणि ॥५३॥ 

तो तत्थ महाकालस्स चच्चरे संठिओं तओ तस्स । वियरइ करुणाएु जणो मंडयखंडाइ अणुदिवर्स ॥५४॥ 
कालक्कमेण रोगेण बाहियं तस्स सज्बमवि अंगं । नासाउहर-कर-चरणंगुलीओ सब्बा पविद्धाओ ॥५५॥ 
वाल्ग्गाओ नहंतं जाव सरीरम्मि फोडया होउं । फुटंति पक्क-दुग्गंधपूयपरिपूरिया पयर्ड ॥५६॥ 
लिक्षिरयमेत्तकच्छाट्टनिवसणो मच्छियाहिं परियरिओ । न तरइ पयमवि गंतुं अणिट्ददुस्सरघणी घणियं ॥५७॥ 
एत्तो य मंजरी तस्स भारिया आउयक्खए जाए | तीए चेव पुरीए मरिउं महसेणनरवइणो ॥|५८॥ 


अम्गमहिसीए धूया जाया विहियं च देइणीनामं । दंतुग्गमपत्थावे त॑ कम्म॑ तीए वि उदिन्नं ॥५९॥ 
तो गरुय-घोररोगेहिं पीडिया दुब्बलंगिया जाया । ताहे पच्चक्खाया नाउमसज्झ त्ति वेज्जे्िं ॥६०॥ 
आगासरेवईयाइदेवया पूइया नरिंदेण । जाणगजणोवइट्टं सब्वं पि कयं विसेसेण ॥६१॥ 
तह वि न थेवो वि गुणो संजाओ तीए तिव्वकम्मबसा । कम्मोवसमे सयमवि तारुण्णे नीरुवा जाया ॥६२॥ 
देवीए तओ सिंगारिऊण संपेसिया निवत्थाणे । सहिययणसंगया सा कीलइ तत्थेव निनच्बं पि ॥६३॥ 
अहिमाणिणा नरिंदेण अज्नया निययरिद्धि-बलकलिया । वाहरिया सब्बे वि हु सामंता पउरजणजुत्ता ॥६४॥ 
कयसिंगारा रह-करि-तुरंग-नर-नारिनियरपरियरिया | आउज्जमद्पूरियदियंतरा तयणु संतत्ता ॥६५॥ 
पणमिय निवमुवविद्धा पुद्ठा एवं नरिंदबंदेण । मह कहह कस्स पुन्नहिं तुम्ह एयारिसा रिद्धी ? ॥६६॥ 
छंदाणुवत्तिणो ते नमिय नरिंदं निबद्धकरकमला । जंपंति तुम्ह पुन्नप्पमावओ अम्ह संपत्ती ॥६७॥ 
सोऊण तयं कुमरीए तीए विप्फुरियदन्तदित्तीए | हसियं त॑ दद्वु्ण पयंपियं नरवर्रिदेण ॥६८॥ 

वच्छे ! किमलियमेयं मह वयर्ण जमिणमेवमुवहससि ? । सा भणइ ताय ! तुम्हं सच्च॑ साहेमि ? किमसच्च ? ॥६९॥ 
सच्च॑ ति निवेणत्ते सा जंपइ ताय ! तुह जणो सब्बो । छंदाणुवत्तणपरो पयंपए सयलमलियमिणं ॥७०॥ 
सच्च॑ पुण निच्च॑ पि हु नियपुन्नसमुब्भवं सिर्रि सव्वे । भुंजंति जज न हु होइ अवरभुत्ते अचरतित्ती ॥७१॥ 
पुब्वकयसुकयकम्मप्पभावओ त॑ पि तूससे न मुहा | तब्विरहे पुण रूससि निमित्तमित्तं तमेत्थ जओ ॥७२॥ 
सव्वो पुव्वकयाणं कम्माणं पावणु फलविवागं । अवराहेसु गुणेसु य निमित्तमेत्तं परो होइ ॥७३॥ 
त॑ सोउ नरनाहो भासुरभिडडीकरालभालयलो । पभणह रुट्टी वच्छे ! तुह रिद्धी कस्स पुन्नेहिं ? ॥७४॥ 
सा जंपइ नियपुन्नप्पमावओ ताय ! न उण जन्नस्स | तं सोउ' घयसित्तों व्य पावओ पज्जलिओ राया ॥७५॥ 
आइसइ सेवयनरे पुरीए जो कोइ दुहभरक्कंतो | सिर्घं तमिहा55णावह मज्झ समीवम्मि जेणाहं ॥७६॥ 
वियरेमि तस्स पाव॑ जह भुंजइ निययपुमन्नपब्भारं । इय सोउ' निवपुरिसा भमंति नयरिं पलोयंता ॥७७॥ 


तहा हि-- 


आख्यानकमणिकोरे 


रायनिबंधं नाउ' पदंपिया देइणी सजणणीए | सामंत-मंर्ति-मंडलिय-पउरनियरेण जुत्ताए ॥७८॥ 

वच्छे ! जणयं चलणेसु लगमिउ' भणसु खमसु अवराहं | अह न भणसि ता कस्स वि दाही जह दुक्‍्खमणुहवसि ॥७९॥ 
सा जंपई इह अत्थे भवियव्वं ज॑ भविस्सह तमेव । ता कि अपत्थुएणं खामणयपयासकरणेण ? ॥८०॥ 

एत्तो य महाकालस्स चच्चरे रोगविहुरसब्बंगो । पु रिसेहि रायहंसो दिट्लो तो चिंतियं एवं ॥८१॥ 

अन्नो एयाओ न कोइ अत्थि दुह्भायणं ति तो तेहिं। नीओ उप्पाडेडः समप्पिओ नरवबरिंदरस ॥<२॥ 

दद्ढूण तय॑ हिट्ेंण राइणा जंपियं जहा भद्द !। वीवाहसु मह धूय॑ त॑ं सोउ' जंपए एसो ॥८३॥ 

कप्पिजइ कि कइया वि कमिलिणी दहुरस्स सिरिभवर्ण १ । कि वा जुज्जह कायस्स मंजरी चारुचूयस्स १ ॥८४॥ 

कि वा सब्वंगसुहा सामि ! सुहा सहइ असुरविसरस्स ? | कि वा वि हु सलहिज्जइ सामिय ! सीही सियालस्स ? ॥८५॥ 
ता देव ! तुज्क तणया अन्नायकुलक्मस्स रोरस्स । रोगक्कंतस्स कहं सलाहणिज्ञा हवइ दिल्ला ? ॥८६॥ 

तो भणियं भूवइणा एसा तुह सब्वहा मए दिल्ला | वीवाहिझण भणियाणि ताणि मेल्लेह मह विसय॑ ॥८७॥ 

कुमरी वि जणयचरणे पणमिय माणंसिणी अदीणमणा । उल्लवइ रायहंसं पिययम ! आरुहसु मह खंधे ॥८८॥ 

तो नियखंधे काऊण देइणी पुरवरीए मज्ञझेण । नीहरिया निमुणंती जणावव।र्य सजणयस्स ॥८९॥ 

गंतूण बहलपत्तलसहयारतलम्मि तमुववेसेउं । तस्स सरीरे मच्छीओ वीजयंती सवत्थेण ॥९०॥ 

भणिया करुणारसिएण रायहंसेण देइणी एवं । मह संसग्गीवसओ विणस्सिह्दी तुह सरीरं पि ॥९१॥ 


नहपंतिकंतिकलियं कमजुयलं तुज्ञ लक्खणधरं पि | हिमवायझलुकियकमल्सन्निभ॑ होहिही सुयणु ! ॥९२॥ 
तुह सुंदरि ! ऊरुजुयं नवरंभाखंभविब्भमधरं पि | होही दवग्गिनिदृड्थाणुजुयरं व रोगहयं ॥९३॥ 
गयगमणि ! तुज्ञ रमणं तवणीयसिल्समं पि रोगेण | होही दावानलदड़गिरिसिलासामरूच्छायं ॥९४॥ 
खामोयरि ! तुह मज्झं॑ विलसिरतिवलीतरंगरुइरं पि | होही सिप्पउड पिव खर-फरुसं खसरसंवलियं ॥९४५॥ 
थोरत्थणि ! थणजुयल करिकुंभत्थलसम॑ पि मह संगा । होही थउर्ड पिडएहि सुसियमालूरफलसरिसं ।।९६॥ 
तुह सिरिसकुसु [म|मालासुकुमा्ं भुयलयाजुयं सुयणु ! | सोहारहियं होही जलणझुलुक्षियसयजुयं व ॥९७॥ 
कंकेल्लिपल्लबारुणतर्ूं पि सियद्सणि | पाणिजुयलं ते । होही विसुक्कए्रंडपत्तजुयरं व रोगेण ॥९८॥ 
बिंबाफलोवमी वि हु अहरो इंगाल्सच्छहो होही । मंडुक्िय व्व चिविडा भविही सरल। वि तुह नासा ॥९९॥ 
सवणंतं पत्तं पि हु तरलं पि हु पम्हरं पि पसयच्छि | | अच्छिजुयं रोगवसा मिलाणकुसुमं व संकुइही ॥|१००॥ 
पडिपुन्नहरिणलंछणछायं वयणं पि तुज्ञ रोगेण । होही राहुग्गत्थं गयसोहं चंदर्बिबं व ॥|१०१॥ 
मयणाहिपरिमलट्डा कज्जलकसिणा वि कुंतला तुज्ञ । घम्माहयखंखरदब्भसन्निभा सुब्भु ! होहिति ॥१०२॥ 
ता सब्वहा वि सब्बंगसुंद्रावववमणहर एयं | मह कज्जम्मि विणाससु नियरूवं मा मयच्छि ! तुम ॥१०३॥ 
वच्चसु माउलयगिहं अबरं वा कि पि सयणमक्लियसु | त॑ सोऊण सविणयं पयंपिया देइणी एवं ||१०४॥ 
मा अज्जउत्त | एयं जंपसु जम्हा न होइ अलियमिणं । भत्तारदेवया कुल्वहु त्ति सत्ये पसिद्धं ति ॥१०५॥ 
तम्हा तं॑ मज्झ पहू बंधू सयणो सुही सुहगुरू य । वल्लीए वच्छसमासियाए वच्छो व्व तं॑ सरणं ॥१०६॥ 
झिज्बउ अंगं पगलंतु लोयणा जोव्बणं अइक्कमउ । मरणं पि होठ पिययम ! तुह सुस्सूसं कुणंतीए ॥१०७॥ 
इय जंपिऊण तीए आसजन्नावासियम्मि सत्थम्मि | गंतृण सत्थवाहों सविणयमेयारिसं भणिओ ।॥|१०८॥ 

ताय अहं पि हु तुम्हाण सुत्यसत्थेण गंतुमिच्छामि । त॑ सोउं सत्थाहों चिंतेडं एवमारद्धों ॥१०९॥ 

नुणं सुकुलुप्पनत्ना नज्जइ वयणेहिं विणयगव्मेहिं | इय चितिय तेणुत्तं वच्छे ! सिम्धं समागच्छ ॥११०॥ 

तो देइणीए भणियं मज्झ पद रोगविहुरसब्बंगो | सो ब्रि समागच्छित्सइ तं सोउं सत्थवाहेण ॥१११॥ 
तस्सा55रुहणनिमित्तं समप्पिओ से रहो तओ तीए । तम्मि समुप्पाडेउं चडाविओ निययभत्तारो ॥११२॥ 


१५, नियमविचानफलाधिकारे शजहंसाख्यानकम १४५६ 


सद्धि सत्थेण तओ कुमरी परिहरियनिययपिडविसया । रुरु-रोज्ञरउद्दा डविमज्झे आवासिए सत्ये ॥११३१॥ 
नग्गोहसाहिसीयलूतलूम्मि तरुपत्त इयसयणिज्ज । तीए समुत्तारअऊण सोविओ पहपरिस्संतो ॥|११४॥। 
नियउच्छंगियतस्सीसकेसनियरं निरूवयंतीएण । तीए सिसिरसमीरणसुद्देण तस्साडंडगया निद्रा ॥११५॥ 

एत्तो कुमारजणणी तदया मरिऊण वंतरी जाया । तो तीए रायहंसो दिल्लों तमवत्थमणुपत्तो ॥११६॥ 

देइणिकुमरी जाणावणत्थमिणमिंदयालरूमायरियं । सहस त्ति वम्मियाओ वियडफडो निग्गओ सप्पो ॥११७॥ 
कुमरस्स य निद्वापरवसस्स बयणे समागओ सहसा । उयराओ दह्ुरो दद्वमेस सप्पं भणइ कुबिओ |॥११८॥ 

रे रे हयास ! विसहर ! समहिद्दिय संठडिओ निहाणमिमं । जो तत्तजर्ं खिविउं हणिउं त॑ लेइ सो नत्यि ॥११९॥ 
तो तेणुत्त रे दुष्ठ ! पाव | मंडुक ! निवसुओ एसो । सत्बंगसुंदरो वि हु एयमवत्थो लए विहिओ ॥१२०॥ 

तो एत्थ नत्यि सो कोइ राइयाचुन्नमीसियं तक । जो पाइउं कुमारं हणिउं तं कुणइ पठणमिमं ॥१२१॥ 
सप्पपयंपियमायल्चिऊण चितेइ देइणी एवं । नणं नरिंदपुत्तो एसो ता सुंदरं जायं ॥१२२॥ 

लद्धो य वाहिविगमोवाओ चत्तो य तायविसआं वि । ता गोउलम्मि कम्मि वि गम्मउ इय चिंतिउं चलिया ॥१२३॥ 
पत्ता य गोउलम्मि ठिया य आउच्छिऊण सत्थाह । गंतृण गोंउलरूवद पयंपिओ सबिणयं तीए ॥॥१२४॥ 

ताय ! इमो मज्क पई कम्मवसा रोगविहुरसव्वंगो । निरुओ जायइ तक्केण राइ्याचुन्मिस्सेण ॥१२४५॥ 

सो थि पयंपइ वच्छे ! धया तं॑ मज्क चिट्ठसु इहेव । सुस्सूसंती कंतं जावेसी जायए निरुओ ॥१२ 

सह राइयाहिं तक्क पायंती पिययमं ठिया तत्थ । तो तप्पभावओ दारुणो वि वाही अवक्कंतोी ॥|१२७॥ 
नासा-5हर२-कर-चरणा नीहरिया रंभगब्भसुकुमाला । अररेण वि संजाओं मणहरणोी मयणसमरूबो ॥१२८॥। 
आउच्छियम्मि तीसे पयासिओ नियकुलक्कमों तेण | सा वि पयंपइ पिययम ! ता गम्मउ तुम्ह कुझभवणे ।|१२९॥ 
तेणुत्तं जुत्तमिणं परमेएसि कयम्मि उवयारे | त॑ सोउं सा चिंतइ मणम्मि एसो महासत्तो ॥१३०॥ 

पच्चुवयारं काउ' वंछइ ता दह रोवइट्“ेंण । दग्बवेण होउ इय चिंतिऊण तो तीए दइयस्स ॥१३१॥ 

दह र-कसिणाहीणं वुत्ततो साहिओ तओ तेण । चेत्तण त॑ निहाणं उबणीयं गोउलबइस्स ॥१३२॥। 

भणियं च देइणीए अणुकूलो तुदहद विही जओ नाह ! । जाओ रोयविणासो तह संपत्त निहाणं पि ।॥१३१॥। 

ता गम्मउ तुह नयरे तओ पयद्वाण्ि ताणि मग्गस्मि । गच्छंताणि कमेणं जयंतिनय रीए पत्ताणि ॥१३४७॥ 

ता मग्गपरिस्संतो सुत्तो सहयारतरुतले कुमरो । एत्तो य तत्थ सिरिचंदनरवई पुत्तमरणम्मि ॥१३५। 

पंचत्तं संपत्तो सो वि हु सुयसोयसल्लिओ संतो । अहिसित्ताणि अपुत्तो त्ति पंच दिव्वाणि मंतीहिं ॥१३६॥ 

ताणि तिय-चच्चराइसु भमिउं पत्ताणि जत्थ सो कुमरो । तो अहिसिचिय करिणा चडाविओ निययखंधम्मि ॥|१३७॥। 
तो मंति-मंडलेसर-सामंतप्पमिहपउरपरियरिओं । संपत्तो रायउले अहिसित्तों पुब्बरायपए ॥१३८॥ 


जाओ य महाराया नाय॑ एत्तो अवंतिनाहेण । जह कोइ देसियनरों राया जाओ जयंतीए ॥१३९॥ 

तो तेण पेसिओं निययदूयओ रायहंसनरवइणो । भमणिओ दृएण निवो वियरसु मह राइणो दंडं ॥|१४०॥। 

अह नो ता रज्जं पि हु गिण्हिस्सह त॑ निसामिउ' रन्ना । भणियं जं तस्स मणे पडिहासइ कुणउ तं सिम्धं ॥१४१॥ 
दृएण तओ गंतुं महसेणनिबस्स साहियं सव्वं । होऊण जुज्ञसज्ञो विणिग्गओ सो5भिमाणधणी ॥१४२॥ 

नाउं चरेहिं सिरिरायहंसराया वि विहियसन्नाहों । नीहरिओ नियबलभरपरिपूरियभूरिभूवलओ ॥१४३॥ 

दोन्नि वि बलाइईं सन्नद्ध-बद्धकवयाइ देससीमाए | भिडियाईं मुकहकाणि झत्ति जयरूच्छिलुद्धाणि ॥१४४॥ 
करि-तुरय-रह-नरोहा गय-हय-संदण-भडाणमब्भिट्टा । आबद्धभिउडिभीमा भूवइणो भूमिनाहाण ॥१४५॥ 
एवमवरुप्परं पि हु दुन्हं पि बलाण जायमइघोरं । आओहणं विणासियर्सिघुर-नर-तुरयसंदोहं ॥१४६॥ 

बद्धो सामंतेणं महसेणो रायहंसतणएण | कि कीरउ तुह जणयस्स ? पुच्छिया देश्णी रज्ञा ॥१४०७॥ 

तीए पयंपियमेय॑ं मुच्चउ सम्माणिउं तओ रज्ञा । गंतृण तेण सयमेव कारियं तस्स वणकम्मं ॥१४८॥ 


१६० 


आखश्यानकमणिकोशे 


पणमिय पियपयपउमा पयंपए देहणी जहा ताय !। पयडीमूयाणि इमाणि संपयं मज्क पुन्नाणि ॥१४९॥ 
भणियं महसेणनरेसरेण कहमेयमह कट कुमरी । ददुदु र-विसहरवज्जरियपमुहनिस्सेसनियचरियं ॥१४५०॥ 

त॑ सोउं सब्बे वि हु सामंता वज्जरंति जह एसो । सो रायहंसकुमरो जो आसि विणट्ठसब्बंगो ॥१५१॥ 

सा एसा महसेणस्स अंगया जा तया सकोवेण । दिल्ना अणेण कोट्डामिभूयदेहस्स दमयस्स ॥१५२॥ 

जं सब्बे नियपुन्न॑ भुंजंति इमाणु आसि उल्लवबियं । त॑ सच्चं॑ चिय जाय॑ं जमिमाणं रज्जसंपत्ती ॥१५३॥ 

तो महसेणनरिंदेण जंपिओ रायहंसनरनाही । त॑ मह पुत्ताण पहू अहयं तु तवं करिस्सामि ॥१५४॥ 

एवं विहिया सब्वे निययाणावत्तिणो नरवरिंदा । जाओ रायाहिवद नरेसरो रायहंसो सो ॥१५५॥ 
असरिसनरिंदलच्छि उवभुंजंतस्स तस्स बहुकालो | समइकंतो अह अन्नया य सूरी समोसरिओ ॥१५६॥ 
नामेण भवंतकरों तिलूउज्जाणे तओ नरबरिदों । महरिहरिद्धीए गओ सूरिसयासम्मि सकलत्तो ॥१५७॥। 
अभिवंदिऊण सुगुरूण चरणतामरसमुचियटाणम्मि । उबविट्ठो तो सूरीहि देसणा तस्स परिकहिया ॥१५८॥ 
भो भो भव्वा ! संविग्गमाणसा सुणह परममुणिवसणं । एसो ता संसारो चिंतिज्जंतो घुवमसारो ॥१५९॥ 
कम्मवसया जमेत्थं जीवा खणभंगुरस्सरूवम्मि | संपय विवयाओ पाउणंति ता कह णु सविवेया ॥१६०॥। 
हरिस-विसायं बच्चंतु संपपाओ भवंति पुन्नेण । विवयाओ अपुन्नेणं ता पुन्न जयह जमिहुत्तं ॥१६१॥ 
वच्चइ जत्थ सउन्‍्ने विदेसमडर्वि समुद्मज्झे वा । नंदइ तहिं तहिं चिय ता भो ! पुन्ने समज्जिणयह ॥|१६२॥ 
पुन्न॑ पि नियमभंगाइदोसओ संतरं जणइ दुक्‍्खं । जह तुज्क इमं जाय॑ जम्मंतरनियमर्भगेण ॥१६३॥ 
एत्थंतरम्मि पुट्ठी सो सूरी पणमिउं पुहइवहणा । कि भयवं ! मह रोगो जाओ तह असरिसा रिद्धी ॥१६४॥ 
तो भयवया वि सब्बे पुन्वभवे साहिए महीनांहो | नाऊण जाइसरणेण त॑ तओ भणइ एवं ति ॥१६५॥ 
कहिओ य रायहंसेण नियभवों सबलरायलोयस्स । जह जाया नियमेणं रिद्धी तब्मंगओ रोगो ॥१६६॥ 

त॑ निसुणिऊण बहवे पडिबुद्धा पाणिणो भवुव्विग्गा । राया वि सावयत्तं पडिवज्जिय सभवणम्मि गओ ॥१६७॥ 
कारेइ जिणहराइईं पूएइ् जिणे नमंसए गुरुणो । पुहदेए पयद्वावइ रहजत्ताओ सुभत्तीए ॥१६८॥ 

जाओ य देइणीए पुत्तो पत्तो य जोग्वणारंभं । अहिसिततो निययपए निवेण सुपसत्थद्विसम्मि ॥|१६९॥ 

तो देइणीए सहिएण रायहंसेण सुगुरुषासम्मि | गहिया जिणिंददिक्खा चरिउं अइधोरतवचरणं ।|१७०॥ 
मरिऊण बंभलोंगे जाओ भासुरतणुप्पही अमरो । तत्ता चुओ समाणो स पाविही सिद्धिसुहमसमं ।॥१७१॥ 


॥ राज़हंसाख्यानक समाप्त ॥४९॥ 
जह एयाणं नियमो संजाओ गुरुगुणाण संजणओ । 
तह अन्नस्स वि जायइ ता तग्गहणे कुणह जत्तं ॥१॥ 


पुण्यानुबन्धजनक॑ शुभभावसारमञ्जीकृतस्वनियमग्रहणं क्रमेण । 
स्वगो-5पवगेफलदायि दिताभिमाना: प्रत्यग्रषापमथनावहमामनन्ति ॥ १॥ 


॥ इति श्रीमदाप्नदेवसूरिधिरचितवृत्तायाख्यानकमणिकोशे नियमफलप्रतिपादको नाम पश्चदशो 5थिकार: समाप्त: ॥१५॥ 


९ ५-:-४*<७र-- 9 
द्द्ण- (8 7 


[ १६. मिथ्यादुष्कतदानफलाधिकारः ] 


नियममालिन्ये च मिथ्यादष्कृतं दातव्यमित्यनेन सम्बन्धेना<ड्यातं मिथ्यादप्कृतं व्याख्यातुकाम आह-- 


खमगा य चंडरुददो मिगावई तह पसन्नचंदो य । 
सम्म॑ मिच्छाउकडदाणफले हुंति आहरणा ॥२०॥। 


व्याख्या-- 'क्षपकाश्च” प्रतीता एवं, 'चण्डरुद्र:” समयप्रसिद्धः सूरिः, “ मृगावती? शतानिकनृपतिभायों, तथा” तेन प्रकारेण 
'प्रसन्नचन्द्रश्न पोतनपु राधिपति:, 'सम्यग! भावसारं “मिथ्यादुष्कृतदानफले' स्वदोषप्रतिपत्तिवितरणगुणे “भवन्ति” जायन्ते “आहरण!! 
त्ति दृष्टान्ता इत्यक्षराथं: ॥२१॥ भावाथस्त्वाख्यानकेभ्योडवसेय: । तानि चामूनि । 


तत् तावत क्षप[का]खू्यानकमाख्यायते तच्चेद्म-- 


जओ--- 


ते जहा-- 


चीन के *०++००+०७७०७७-००००५०+ केक “न जनजमा.»2.32>-- जन ७७ -२०-०० ००-०० ७. 


अत्थि तहाविह॒गच्छे करुणारसपूरियम्मि विच्छित्रे | जलहिम्मि व खमगरिसी परमपद्दावो वरमणि व्व ॥१॥ 
सो भुंजइ मासं केसरि व्व कइ्टया वि पारणगद्वसे । भिक्‍्खट्वाए पविट्टी खमगरिसी खुडडुएण सम॑ ॥२॥ 
मच्छियपमाणमंडुक्कियाहिं पच्छाइयम्मि मग्गम्मि | खमरिसिणा अक्कंता कमेण मंडुक्किया एगा ॥३॥ 
भणिओ य खुड्डुणणं खमग ! तए पेच्छ मारिया एसा | कहियव्वा य गुरूणं चारित्तायारसोहिकए ॥|३॥ 

तं सो सो रुट्टो इमाओ पाविट्ठ ) केण वहियाओ । दंसइ लोणएणं मारियाओ तो चिंतियमिमेण ।॥॥५॥। 
आवस्सयवेलाए पसंतहिययस्स संभराविस्सं | ता पारावड एसो छुहियस्स न एस पत्थावो ॥६॥। 


नासइ खंती परिगलइ पोरिसं लहु पलायइ विवेगो | सिकखा वि ठाइ न मणे छुह्ामिभूयाण जीवाणं ॥७॥ 

किर किमसंगयमिमिणा चुक-क्खलियम्मि चोइओ जमिमो १ । परमिह दुजओ कोबो गुणट्वियाण वि महासत्त ॥८॥ 
कट्ठं करंति समरे मरंति जलणं घरंति सीसेण | न उणो जिणन्ति कोव॑ पावमिणं धम्मवणदहणं ॥९॥ 

पढउ सुयं धरउ वय॑ कुणउ तवं चरउ बंभचेराई । तह वि तयं सब्बं पि हु निरत्थयं कोववसगस्स ॥|१०॥ 

जइ जलइ जलउ लोए कुसत्थपवणाहओ कसायग्गी । त॑ चोज्ज ज॑ जिणवयणवारिसित्तो वि पञ्जलइ ॥११॥ 

तो सो अणुसयवसओ तहेव भुत्तो वियालवेलाए | सुमरावियम्मि कोवेण पजलिओ खुब्डयस्सुवर्रि ॥१२॥ 

मिलियाण मज्ञयारे विगोविओ अहमणेण पावेण । ता मारेमि सयमहं खुडुयमेयं ति चिंतेउं ॥१३॥ 

गहिऊण खेलमल्लगमसुहज्ञाणो पहाविओ जाब । ताबाउडबडिओ खंभे विम्हरियसलओ मओ खमओ ॥१४॥ 

जाओ कुलूम्मि  मइलियवयाण दिद्वीविसाण सप्पाण । कुगईए संपत्तो दीणमुहो चिंतिउ' रूग्गो ॥१५॥ 


रे जीव ! कसायहुयासणेण दड॒ढ़े चरित्तघरसारे | भमिद्दिसि भवकंतारे दीणमुहो दुक्खिओ य तुम ॥१६॥ 

तो जायजाइसरणो रयणीए दयावरो परियडेति | मा रविकरसंपक्का दिणम्मि दिट्टी वहउ जीवे ॥१७॥ 

एत्तो य वसंतपुरे कुमरो अरिमद्णस्स नरबइणो । तइया भुयंगदट्टी मुकी सहस त्ति पाणेहि ॥१८॥ 

राया वि सुयसिणेहा कुबिओ सप्पाण ते विणासेउ' । जो दंसइ सप्पसिरं दीणारं देइ तस्स तओ ॥१९॥ 

संजाए सप्पखए वणम्मि रयणीए संचरंताणं । घसणीउ नियद एगो गारुडिओ तेसि वहणत्थं ॥२०॥ 

मेल्लेह ओसहीओ बिलेसु तो तेसि गंधमसहंता । निग्गच्छ॑ति वराया सो ते मारेइ दविणकए ॥|२१॥ 
ग्रन्थाअम्‌--६००० ॥ 

सो वि हु खमगभुयंगो ओसहिगंधेण विहुरियसरीरों | बिलूमज्भम्मि य चिट्टिउमचयंतो चिंतए एवं ॥२२॥ 





१, मृगापतिः २० । २. विस्मृतपश्चात्तापः | ३. मयलिय० रं०। 


२१ 


१६२ 


आदश्यानकमणिकोशे 


एस वराओ को वि हु मुहेण जइ नीहरामि ता मरिही । मह दिद्वीविसदोसा इय करुणापरिगओ धणियं ॥२३॥ 
निग्गच्छइ पुच्छेणं जत्तियमेत्तं च निस्सरइ बाहिं। तत्तियमेत्त छिंदइ गारुडिओ सो उ चितेइ ॥२४॥ 

रे जीव ! सुदविवज्जिय निहीण ! निब्भग्गसेहर ! अणज्ज |। संपयमवि मा कुप्पसु अणुभूयं कोवफलमेयं ॥॥२४५॥ 
जइ संतियाए किर चोइओ तया तेण समणरूवेण । ता तस्सोवरि कुवियस्स तुज्क कि कस्स संजायं ? ॥२६॥ 
त॑ तारिससुगुरूणं विजोजिओ धम्मबंधवाण्ं पि। तह तारिससंजमगिरिवराजो पडिऊण खडहडि ओ ॥२७॥ 
तारिससामग्गीए तश्या एयस्स तारिसो कोवो । इण्हि पुण एस खमा अहो ! हु कम्माण कुडिलत्तं ॥२८॥ 

इय सो वेरग्गगओ विसहंतो वेयणं तमइदुसहं । मणुयाउं निव्वत्तह सुकुलुप्पत्ति च खमगाही ॥२९॥ 

अह नागदेवयाए सुमिणम्मि नेविहयं नरवइस्स । विस्मसु नागवहाओ तुह पुत्तो होहिही राया ॥३०॥ 

सो मरिउ' खमगजिओ संजाओ तस्स राइणो पुत्तो । झस-कुलिस-चक्कलंछणलुंछियसुहविग्गहावयवो ॥॥३१॥ 
विहिय॑ वद्धावणयं सुयजन्ममहसवम्मि नरबइणा । दिज्ञ' च देवयाए नाम॑ से नागदत्तो त्ति ॥३२॥ 

अह देहोवचएणं कलाकलावेण विद्धिमणुप्तो | सयलजणनयणसुहओ ससि व्व पयईए सोमतणु ॥३३॥ 

सुहओ पुव्वाभासी पुध्वभवब्मासओ य नायपिओ । देव-गुरुपूयणरओ पच्चक्खो पसमधम्मो व्व ॥३४॥ 
संसारियसुहविमुहो रज्जसिरीसंगमस्स निरवेक्खो । कारागारगओ विब निव्वेयाओ वसइ गेहे ॥३५॥ 

अह अजन्नया कया वि हु गुणवंताणं गुरूण पासम्मि | मोयाविऊण पियरं निक्खंतो जायसंबेगो ॥३६॥ 
पंचसमिओ तिगुत्तो दसविहमुणिचक्कवालकिरियाएु। सययं चिय उबउत्तों वेयावच्चे विसेसेण ॥३७॥ 

अह तम्मि चेव गच्छ खमगा चत्तारि चरणसंपन्ना | मास-दुमास-तिमासिय-चउमासतवोविसेसरया ॥३८॥ 


अममत्ता निस्संगा कट्ठाणुट्टाणपोसियसरीरा । खुद्ुगसाह तेसिं विसेसओ कुणइ बहुमाणं ॥ ३९॥ 
सो उण तिरिक्खजोणीसमागमा सययमेव य छुहाल । भुंजइ पहकक्‍्खणं चिय विसुद्धमाहारमांणेउः ॥४०॥ 
वहद य मणम्मि खेयं घिसि घिसि मम देह-जीवियव्वाण । पढमपरीसहभीओ जो5हमसत्तों तवं काउ ॥४१॥ 


ए महाणुभावा पेच्छह सरिसे वि माणुसत्तम्मि | दुक्करतवचरणरया खर्वेति पोराणयं कम्म॑ ॥४२॥ 
अह अज्नया पभाए भरिउ दोसीणकूरद॒हियस्स । नियपडिगहयं पत्तो आलोएउं गुरुसयासे ॥४३॥ 
साहवो तो चियत्तेण, निमंतेज्ज जहकमं । जइ तत्थ कोई इच्छेज्जा, तेहिं सद्धि तु भुंजण ॥४ ४॥ 
इय वयणमणुसरंतेण तेसि सब्वेसि दंसियो कमसो । निच्छूढं सत्बेहि वि पडिग्गहे कोववसगेहिं ॥४५॥ 
सो उण तहेव भुत्तो पवित्तमेयं मणम्मि चिंतंतो | मणयं पि हु न पउट्ठो अहो ! हु से पसमपगरिसिया ॥४६॥ 
चिंतह॒ पसंतहियओ नडिओ<5हमणेण निशच्चमुयरेण । एएसि खेलमल्लयमवि सत्तो न हु समप्पेउं ॥४७॥ 
अह अन्नया य खुद्डुयपसमगुणावज्जियाए ते खमए । मोत्तुण देवयाए गंतृणं वंदिओ खुड्डी ॥४८॥ 
निग्गच्छंती वत्थंचलम्मि धरिऊण मच्छर वसेण । चउमासियखमगेणं भणिया सामरिसवयणेण ॥॥४९॥। 
कडपूयणि ! पावे ! पावपडलपच्छन्ननिम्मलविवेएणु ! | गुण-दोसवियारविसेससुन्नहियए ! हयपयावे ! ॥५०॥। 
मोत्तण5म्हें खवगे दुकरतवचरणसोसियसरीरे । एयं तिकालभोइं वंद्सि कह खुड्डुयं लहुयं ! ॥५१॥ 
तीए वुत्तं भो दव्वखवग ! वंदामि भावखबवगमहं । तेणुत्तं कहमेव॑ जंपसि पावे ! पदुद्ठमणे ! ? ॥५२॥ 
एयस्स अप्पणों वि य विसेसमिणिह पि पासिहह पयड्ड । इय वोत्तृणं खबगं सट्ठाणं देवया पता ॥५३॥ 
एवं खुड्डुयमुणिणो निरवज्ञाहारभोइणो सययं | 3वसंतमणस्स द॒ढं वेयावच्चम्मि निरयस्स ॥५४॥ 
गुणपक्खवायबहुमाणवसणिणो गुरुकुले बसंतस्स । उल्लसियजीवविरियस्स खबगसेढ़िं पवन्नस्स ॥५५॥ 
सुकज्फमाणहुयासणविसेसनिदइघाइकम्मस्स । लोयालोयपयासं उप्पन्न॑ केवल नाणं ॥५६॥ 
केवल्महिम॑ काउ' खुड्डुयमुणिणो सुरेहि भत्तीण | रइयम्मि कणयकमले उबविट्ठे खुड्डुयमुणिम्मि ॥५७॥ 
आगन्तृणं भणिया ते खबगा देवयाए सामरिसं । पेच्छह खुड्डयमुणिणो अप्पाणस्सावि य विसेसं ॥५८॥ 


१६. मिथ्यादुष्कृतदानफलाधिकारे चण्डरुद्राब्यानकम्‌ १६३ 


एवं ते भणिया देवयाए तह कहवि सम्ममाउद्ा | जह अप्पाणं निंदिउमाढत्ता पसमरसवसया ॥५९॥ 
घिसि धिसि अम्हाणं कोवसत्तुवसयाण कट्टनिरयाणं । जेहिमिस पि न नाय॑ गुरूवएस सुगंतेहिं ॥६०॥ 
निरवज्ञाहाराणं साह्ण निश्चमेव उववासो । कोहंधाणं तु तवो वि निप्फलो कासकुसुमं व्व ॥६१॥ 
इय तेसिं पि हु सम्म॑ मिच्छाउक्कडपुरस्सरं हियए । सुहभावणावप्तेणं संजाय॑ केवलन्नाणं ॥६२॥ 
॥ क्षपकाल्यानक समाप्तम्‌ ॥५०॥ 

इदानीं चण्ड रुद्राख्यानक व्याख्यायते । तथेद्स--- 
उज्जेणीए पुरीए सूरी बहुगुणगर्णेहिं परियरिओ । नामेण चण्डरुद्दो रुद्दो व्व सिवासयसणाहो ॥१॥ 
सब्भावेण सकोबो त्ति निययसिस्साण भिन्नवसहीए । चिट्ठ३ तन्निस्साए सज्कायपरो महासत्तो ॥२॥ 
अह अन्नया य एगो विलसिरसिन्ञारसुंदरसरीरों | नवपरिणीओ बहुमित्तसंजुओ इच्भवणियसुओ ॥३॥ 
साहुसयासं पत्तो परिहासेणं भणंति से मित्ता | भयवं भवउब्बिग्गोडभिवंछए एस पव्वज्ज ॥०॥ 
नाउ' परिहासमिमेसि साहुणोडवगणिऊण तव्बयणं । सज्फ्रायप्पभिईयं वावारं काउमारद्धा ॥५॥ 
ते वि हु पुणो पुणो वि य परिहासेणं तहा पयंपंति | दुस्सिक्खियाणमोसहमिमेसि सूरि त्ति चिंतेउ' ॥६॥ 
भणियं मुणीहि गुरुणो दिक्खं वियरंति इय पयंपेउ । भिन्नद्टाणम्मि ठिओ सूरी वि य दंसिओ तेसिं ॥७॥ 
केलीकिलत्तणेणं ते सब्बे सूरिणो समीवम्मि | संपत्ता परिहासेण पणमिउ' तत्थ उबविद्वा ॥८॥ 
भणियं च तेहिं भयवं ! भवभमणुव्विग्माणसो धणियं | अम्ह वयंसो एसो पत्वज्ज गेण्हिउ' महइ ॥९॥ 
एयत्थमेव सब्वंगसुंदरं विरहऊण सिंगारं । तुम्ह कमकमलजुयलं दुहसयदलणं समझ्लीणो |॥१०॥ 
ता काऊण पसाय॑ दिक्खादाणेण5णुग्गहह एयं | इय निसुणिऊण सिरिचिंडरुदसूरी वि कोववसा ॥११॥ 
चिंतेह पेच्छ पावा मामवि कहमुवहसंति ता एए । दुग्विक्सियफलमिण्हि भुंजंतु विचितिउ' भणइ ॥१२॥ 
जह एवं ता भूइं दुयं समप्पेह सूरिणा भणिए | उवर्णति तयं ते वि हु कुओ वि ठाणाओ आणेड' ॥१३॥ 
तयणंतरं सकोवेण सूरिणा भिउडिभीमभालेण । पेच्छंताण वि ताणं सिरम्मि निप्फाइओ लोओ ॥१४॥ 
ते वि हु विलक्खवयणा नियनियठाणेसु पडिगया मित्ता । तत्तो य इब्भपुत्तो कयंजली सुद्धपरिणामो ॥१५॥ 
पणमियतप्पयपउमो पयंपए पहु ! पयच्छ पव्वज्ज | सम्म॑ चिय परिणमिओ परिहासो वि हु इमो मज्क ॥१६॥ 
तो इब्भकुलुब्भूओ सम्मं पव्वाविओ मुर्णिदेण | पुणरवि गुरूण चरणे पणमित्तु पयंपए एवं ॥१७॥ 
भयवं ! बहुसयणो हं मामे धम्मंतराइयं होठ । ता वच्चामो अन्नत्थ कत्थई भणइ तो सूरी ॥१८॥ 
जहइ एवं पडिलेहसु मग्गं इच्छंति जंपिकण गओ । सुविणीओ सुविणेओ मग्गं पडिलेहिउं पत्तो ॥१९॥ 
तत्तो निसाए सूरी गंतुमसत्तो पयं पि एगागी । वुद्डत्ततेण नवसिक्खगस्स खंधे भुयं काउ' ॥२०॥ 
संचलिओ खलियम्मि वि पयम्मि पयइृप्पमूयकोवत्ता । तं॑ निब्भच्छिय ताडइ सिरम्मि दंडप्पहारेण ॥२१॥ 
सो वि हु महाणुभावो चिक्तब्मंतरभवंतसुहभावो । चितदइ मए किह एस पाडिओ एरिसे वबसणे ? ॥२२॥ 
एयस्स महासत्तस्स साहुसज्ञायजुत्तचित्तस्स | जणयंतेणमसोक्खं अहह ! मए पावमायरियं ॥२३॥ 
नियसयलसाहुसामायारीपरिपालणेक् चित्तस्स | जणयंतेणमसोक्खं अहह ! मए पावमायरियं ॥२४॥ 
बहुद्विसजराजज्जरियविहु रगत्तस्स भुवणचि(मि?)त्तस्स | जणयंतेणमसोक्खं अहह ! मए पावमायरियं ॥२५॥ 
एरिसपरिणामवसुल्लसंतसुविसुद्धसुककाणस्स । नवमुणिवरस्स विमलं संजायं केवलज्ञाणं ॥२६॥ 
तप्पभिई सो तह कहवि नेइ जह से न होइ पयखलणा । तेणुत्तं त॑ं संपह कह सम्मं नेसि मं भद्द ! ? ॥२७॥ 
अइसयभावाओ अहं सम्म॑ पासामि भणइ सो भयवं | । पडिवाइ अपडिवाइ ? त्ति भणइ सूरी कहसु एये ॥२८॥ 
तेणुत्तमपडिवाई गुरू वि संवेगमागओ देह । सम्म॑ मिच्छाउक्क उमेत्तो सूरुगमणसमए ॥२९॥ 


१, वाइ य गुरू रं० । 


१६४, 


आश्यानकमणिकोशे. 


सो चंडरुद्दसूरी नियह सयं चेव निययसीसस्स । दृढदंडताडणुब्भूयरुहिरधारारुणं सीसं ॥३०॥ 

तयणंतरं विचितइ सूरी संजायगरुयवेर्गो । अहह ! महापावमिणं मए कय कोववसगेण ॥३१॥ 
अज्दिणदिक्खियस्स वि अन्नाणस्स वि य बालयस्सावि । अन्नायविवेयस्स वि अहो ! खमा पेच्छ एयस्स ॥३२॥ 
बहुदिणपव्वद्यस्स वि सिद्धंतसमुद्द पत्ततीरस्स । तित्थप्पहावगस्स वि मह पुण एयारिसो कोवो ॥३३॥ 

बालो वि वरं एसो जो एयारिसखमाए परिकलिओ । न॑ उणो अहय॑ परिणयवओ वि कोवंधनयणजु ओ ॥३४॥ 
ता एयस्स मए ज॑ किंपि हु मणदुक्कइं कय इणिंह । त॑ होठ भावसारं मह मिच्छादुकडं विहिणा ॥३५॥ 

तस्स वि हिययब्भंतरभवंतसुहभावणाओ संजायं । पयडियलोगा-डलोगं केवलनाणं मुर्णिदस्स ॥३६॥ 
केवलिपरियायं पालिऊण पडिब्रोहिऊण भवियजणं । ते दो वि खवियकम्मा संपत्ता सासयं ठाणं ॥३७॥ 


॥ चण्ड रुद्रा व्यानक समाप्तम्‌ ॥५१॥ 


अधुना म्गापत्याख्यानकस्यावसर: | तशथ चित्रश्रिययक्षाख्यानके वक्‍यते इत्यत्र नोच्यते। क्रमप्राप्त तु 


प्रसशन्नचंद्रास्यानकमार भ्यते । तश्चेद्म्‌-- 


अत्थि समुन्नयपव्वयपओहराए रसावरवहूए । हारस्यणं व गुणरयणपोयणं पोयणं नयरं ॥१॥ 

तत्था55सि सोमचंदो चंदो व्व सुहायरो सुहे राया । त॑ं सासंतो वि हु नवर्मत्तिजणगो न लोयाणं ॥२॥ 
तस्स|55सि ससहरस्सेव रोहिणी रोहिणी व सुहवच्छा | सीलाइगुणालंकारधारिणी धारिणी भज्जा ॥३॥ 
तीए पसन्नमुत्ती पसन्नचंदों सुओ पसन्नमुहो | पणइयणबंघुकइरववणवियसावणपसन्नकरों ॥४॥ 

एवं तेसि चउरंगवल्समग्गं समिद्धरज्जसिरिं | पालंताणं वच्चंति वासरा सुत्थहिययाणं ॥५॥ 

अह समयणमसमवसंतलच्छिसमलंकियं जय॑ सुहियं । दटदुं अचयंतो दुज्जणो व्व गिम्हो समणुपत्तो ॥६॥ 
मन्ने रविरहतुरया वि तरणिकरताबिया परिस्संता । तुरियं गंतुमसत्ता तेण तहिं दीहरा दियहा ॥७॥ 

जम्मि य रविकरतविया जलासया सुहरसा वि संजाया । खलसंगे सुयणा इब असेवणिज्ञा य सुसिया य ॥८॥ 
सो चेव रवी ते चेव रविकरा जम्मि संतवंति जणं । मित्तो वि तबइ भुवर्ण अहवा विगुणेसु दियहेसु ॥९॥ 
वीरीरवेहिं गायइ वणराई जम्मि -गिम्हनवनिवई । उदयं पत्तो संतावगो वि सेविज्वह [ज]यम्मि ॥१०॥ 
जम्मि य मयणाहियदुसहतावलयाझुलुक्कियसरीरा | पहिया जडहयहियया जोयंति पंवालियावयणं ॥११॥ 
एवंविहम्मि गिम्हे सीयलवायायणोवविद्वाएं | नियपिययमस्स दूरं परूढपणयाए देवीए ॥१२॥ 

चिहुरे विउरंतीए दिट्ठ॑ं तम्मज्कूसंठियं पलियं | ससहरसियनियकंतीकलावचवलियद्सिावलय ॥१३॥ 

वुत्त तीए पहसियमुहीए दूओ समागओ देव ! | जा जोयइ तरलूच्छो तीए हसिऊण तो भणियं ॥१४॥ 
देव | न माणुसरूव॑ दूयमहं संपर्य निवेयेमि । किंतु पलियं पि दूय॑ विउसा वन्नंति जेणुत्त ॥१५॥ 

उज्झसु विसए परिहरसु दुन्नए ठवसु नियमणं धम्मे | ठाऊण कन्नमूले इट्टं सिद्ं व पलिएण ॥१६॥ 

त॑ं सो साममुहो जाओ राया पियाए पुण भणिओ । भाव॑ अमुणंतीए लज्जसि पलिएण कि देव ! ॥१७॥ 
सो भणइ मज्ञझ लज्जा न एस अज्ज वि य हरिसठाणमिणं । किंतु मए निययाणं मज्जाया लंघिया देवि | ॥१८॥ 
जम्हा अदिट्ठपलिया पुन्विल्ला पंव्वइ सु महपुरिसा । अहय॑ पुण एमेव य विसयासत्तो गिहम्मि टिओ ॥१९॥ 
ता संपइ मुयसु मम त॑ पुण रज्ज सुयं च पालेसु | तीए भणियं एयं न भवह सामिय ! जुयंते वि ॥ २०॥ 
तो अहिसिचिय रज्जे पसन्नचंदं गया य वणवासे । तीए गब्भी आसी पच्छन्नो तो सुओ जाओ ॥२१॥ 
ठइओ य वक़लेहिं वक॒लचीरि त्ति से कयं नामं | अणुचियसामग्गीए देवी मरिउ सुरेसु गया ॥२२॥ 
वणमहिसीरूवेणं पायइ नेहेण दुद्धमागंतुं । जाओ य अद्ठवरिसो कमेण सो तावसवणम्मि ॥२३॥ 


१, भलक्िय २० | २, प्रपाइ$इलिकाइ5्प्रतनम्‌ । प्रशालिकावदनम्‌ । ३. पत्वयंसु रं०। 


१६. मिथ्मादुष्छतवानफलाधिकारे प्रसचन्दाख्यानकम १६४ 


एत्तो पसलचंदों संजाओ पयडसासणो राया । नायं च जहा भाया चिट्टर मह जणयपासम्मि ॥२४॥ 
तस्सा55णयणनिमित्त कुमरीओ तस्समाणरूवाओं । पदच्चइयनरेहिं सम॑ मोयगसंब्रलुूयकलियाओ ॥२५॥ 

पेसइ जम्हा बालो हीरइ सुव्वत्तमन्न-पाणेहिं । मोयगपुंजे विरयन्ति ताणि रुक्खाण छायासु ॥२६॥ 

सो विहु वकलचीरी गिण्हइ ते मोयगे तरुतलाओ । रुक्खाणमिमाणि फलाणि मुणिय संजायविस्संभो ॥२७॥। 
एवं कुमरो मोयगलोभाओ तासि सविहमल्लियइ । जम्हा पसू वि घिप्पइ लोमेणं कि पुण मणुस्सो ? ॥२८॥ 
ताउ वि दरिसावेतस्स दिंति विस्संभयंति वयणेहिं | दूरे जा आणीओ ता डिटद्ठो तावसो इंता ॥२९॥ 
आरुहिऊणं जाणेसु ताणि नट्ठाणि तत्स सावभया | सो ऊण न तेसि मिलिओ न यावि जणयस्स वणमज्झे ॥३०।। 
दिद्ना रहिएण सभारिएण देसंतराओ वलिएण | भमणिउममभिवायए ताय ! तेण विष्ठिओ पणामोा से ॥३१॥ 
तावसकुमरो कोवेस भमइ ता मा विणस्सउ कहिंपि | इय संजायदएणं रहम्मि आरोविओ रहिणा ॥३२॥ 
दिल्ला य तस्स संचलयमोयगा तेण जंपियमिमाणि । रुक्खप्फलाणि पोयणतबोबणे पत्तपुव्बाणि ॥३३॥। 

पत्ताणि पोयणपुरे भणिओ गिण्हाहि उडबयं किंपि । ओयारियं रहाओ मुक्कों रहिएण पुरबाहिं ॥३४॥ 

सो वि पविट्ठी गणियागिहम्मि तीए निमित्तसंवाया । धरिओडणिच्छेंतो विहु नहसोहणपभिदइ कारविओ ॥३५॥ 
दिल्ला से नियवूया वत्थालंकारभूसियसरीरों | सकरूत्तो पल्लंके निवेसिओ सा य तुद्ठमणा ॥३६॥ 

जा चिट्ठद निव्भरसरसगीयपेक्खणयविहियवक्खेवा । पुरिसेद्धि ता कहिओ रज्नो कुमरमस्स वुत्तंतो ॥३७॥ 

त॑ साउं दुहियमणो गयनिद्दो जाब चिट्रएु राया | ता निसुणइ गिज्व॑तं गणियागेहम्मि तं गेयं ॥३८॥। 

की एस मए दुहियम्मि सुत्यिओ पुरवरे महापावो ? ! जोयावियम्मि रन्ना कहिओ गणियाए बुत्तंतो ॥३९॥ 
रुट्“ेंण वाहरिया तीयुत्तं सुणसु देव ! परमत्थं । मह अत्थि पिया दुहिया सा खुहिया किर कहं होही १ ॥४०॥ 
एयत्थं च सुवयणो पुट्टी नेमित्तिओं मए एगो । तेगुत्ता तावसझबधोरि पुरिसो अमुगदिवसे ।।४१॥ 

जो आगच्छट् तं तस्स देखु ता होहिही इमा सुहिया । तं मज्क अज्ज जाय॑ नेमित्तियवयणमवियप्पं ॥०२॥। 
हरिसाऊरियहिययाए विहियमेयं अयाणमाणीए । मह उबरि देवपाया सकोबणा हुंतु मा तम्हा ॥०३॥ 

त॑ सोऊणं रनज्ना सो वि हु कइया वि होज्ज इय मुणिउं । ते पुरिसा पदट्ठविया तेहिं वि सो पच्चमिन्नाओ ॥०४॥ 
आणीओ निवपासे एसो चिय तुह सहोयरो देव ! | विहियं वद्धावणयं गणियाधूया य आणीया ॥४०५॥ 
रज्जसिगर्मिणुहवंताण ताण वच्चंति जाव दिवसाणि । ता सो तावसजणओ वक्कलचीरीविओगम्मि ॥४६॥। 
सोएण नयणनीलीरोएणं नवरमंघभो जाओ । नाऊणमिमं राया सपरियणो तत्थ संपत्तों |०७॥। 

पणओ पिउठणो तेण वि सायरमाभासिओ य वच्छ | तुमं । कुसली पालसु रज्ज धम्मपरो खत्तनाएणं ॥४८॥ 
वक्कछचीरी पणमइ भयवं ! तुह पायपठममिइ सो । हरिसविसप्पियहियओ उच्छंगम्मी निवेसेउ ॥४९॥ 
नियकरयलेहिं कुमरं परामुसंतस्स सुहियहिययरस । हरिसंसूहि सम॑ चिय नट्ठटा नीठी निरुयनयणो ॥५०॥ 
पासइ सव्व॑ं जणओ इय तेसिं हरिसमुव्बहंताणं । वक्कछचीरी उडवेसु भंडयं पुन्बविहिणा उ ॥५१॥ 

जा पडिलेहइ मुणिपायकेसरीपत्तयप्पयारेण । ता जायजाइसरणो जाओ पत्तेयबुद्धमुणी ॥५२॥ 

संपत्तववगसेढी सुहपरिणामेण केवडी जाओ । कहिओ तेसिं धम्मो पडिवन्ना जिणवरमयं ते ॥५३॥ 

नीया य वीरपासे सम्मं पव्वाविया जिर्णिदेण | अह कइया वि हु वीरो समागओ पोयणपुरम्मि ॥५४॥ 

राया पसल्नचंदो रज्जे अभिसिंचिऊण नियकुमरं । पव्वइओ वीरेणं सह पत्तो रायगिहनयरे ॥५५॥ 
नयर-समोसरणाणं आयावइ अंतरम्मि स महप्पा । सेणियराया वि जिर्णिंदवंदणत्थं विणिक्खंतो ॥५६॥ 
सुम्मुह-दुम्मुहनामा रज्नो दो सेवगा रमभभणण । अग्गे गच्छंतेणं भणियं सुमुहेण मित्त ! इमो |।५७॥। 

राया पसन्नचंदो कयपुत्नरो उज्यिऊण रज्जसिरिं। आयावइ निस्संगो बीएणुत्तं कहं मित्त ! ॥५८॥ 

पावद एस पसंसं ? जो बालू नियसुयं ठविय रज्जे । निक्‍्खंतो सो संपइ सीवालेहिं पराभूओ ॥५५९॥ 


१५६ आखश्यानकमणिकोशे 


इय कन्नकडुयवयणायल्रणसंजायरोसरत्तच्छो । चितह मइ जीवंते को मम पुत्तं पराभवइ ? ॥६०॥ 
हिययब्भं[त]रविप्फुरियरोसपारद्ध समरभूमिए । सत्तहिं सम॑ कस-सत्ति-सेल्ू-वावल्लसत्येहिं ॥६१॥ 
जुज्झंतस्स पहुत्तो सेणियराया पयाहिणं काउ' | त॑ं वंदिऊग य गओ सुमरंतो तस्स गुणनियरं ॥६२॥ 
वंदित्तु जिणं पुच्छइ जंसमयं वंदिओ मए भयव॑ | । राया पसन्नचंदो तंसमयं कुणइ जइ काल ॥६३॥ 
ता जाइ क॒हिं ? भणियं जिणेण सत्तमर्माह महाराय | । तुण्हिको जाबव ठिओ तो तेण पसन्नचन्देण ।|६४॥। 
मुकेसु पहरणेसुं पहाणसत्तम्मि विसहमायाए। जाव पसारइ हत्थं तन्वहणत्थं सिरत्ताणे ॥६५॥ 
ता पेच्छ निययसिरं विलुत्तकेसं तओ महासत्तो । पदच्चागयसंवेगो चितिउमेवं समाढत्तो ॥|६६॥ 
रे जीव | कत्थ समरो ? कत्थ तुम संजमं समभिरूढो १ | अप्पाणं मोत्तणं अणज्ज | त॑ पत्थिओ कत्थ १ ॥६७॥ 
चारित्तरायसुहडत्तमस्सिओ त॑ पहाय निययपहुं। मिलिओ सि मूढ ! पडिवक्‍्खमोहरायस्स सेन्नम्मि ॥६८॥ 
एरिसमुहेण रंजिहसि निच्छियं त॑ चरित्तनिवश्ममुं । पाविहसि जयपडायं सिवपुररज्ज व मन्ने हं ? ॥६९॥ 
भयवदवयणं सुहयं तमेगमेगस्स णं ति सुमरंती । कत्थ तुमं ? कत्थ सुओ ? कि मूढमणों परिब्भभसि ? ॥७०॥ 
इय पद्चागयभावो पुणो वि त॑ कहवि ऋ्लाणमारूढो । सम्म॑ मिच्छाउक्कडदाणपुरस्सरमिमों भयवं | ॥७१॥ 
जह खबगसेढिमारुहिय घाइकम्मक्खएण खणमज्झे । जाणियसब्वपयत्थं संपत्तो केवलन्नाणं ॥७२॥ 
देवेहिं कया महिमा पहयाओ दुंदुहीओ त॑ दट ठुं। सेणियनिवेण पुट्ठ भयवं ! कि एस सुरविसरो ? ॥७३॥ 
जाय॑ पसन्नचंदस्स केवल कहमिमं ? ति सव्वो वि। रज्नो मणवावारों निविदओ वीरनाहेण |॥७४॥ 
॥ प्रसन्नचन्द्राख्यानक समाप्तम ॥५२॥ 
मिच्छाउकडदाणा जह एएसि महाणुभावाणं । जाय॑ केवलनाणं तह अन्नस्स वि य होइ तयं ॥१॥ 
वेरानुबन्धमभिहन्ति महन्ति[--]स्य, दातारमज्ञिनमनज्जजितां मते5स्मिन्‌ । 
निःशषकर्मशमक जनक च शुद्धर्मिथ्येति दुष्क्रपपदानुगमो मनन्ति ॥१॥ 
॥ इति श्रीमदाप्नदेवसूरिविरचितवृत्तावाख्यानकमणिकोशे सम्यम्मिथ्यादुष्कृतदानफलवणनः षोडशो5थघिकारः 
समाप्त: ॥१६॥ 


6-६5 9 


[ १७, विनयफलवणेनाधिकारः ] 


उक्तो मिथ्यादुष्कृताधिकारः । साम्प्रतं मिश्यादुष्कृतशुद्धन विनयो विधेय इत्यनेन सम्बन्धेनाउडयात॑ विनयाधिकारं 
व्याख्यातुकाम आह-- 


विणएण कज़सिद्धी सिज्कम॑ति सुरा वि विणयकरणेण । 
जह चित्तपिओ जक्खो जहेव वणवासिणो जक्खा ॥२२॥ 
व्याख्या--'विनयेन' औचित्यप्रतिपत्तिलक्षणेन 'कार्यसिद्धिः” प्रयोजननिष्पत्तिभवतीति शेष: | 'सिध्यन्ति” वशीभवन्ति सुरा 
अपि आसतां मनुष्यादयः 'विनयकरणेन' भक्तिसम्पादनेन । अत्र दृष्टान्तावाह--“यथा'” येन प्रकारेण “चित्रप्रिय: दयितचित्रकमो 
“यक्ष:' देवविशेष:, यथेव “वनवासिनः” उद्यानवसतयों “यक्षा:” सुरविशेषा [हइ]ति गाथाक्षरा्थ: ॥२२॥ भावाशर्थस्ववाख्यानकाभ्या- 
मवसेय: । ते चामू । 


१७, विनयफलवणनाधिकारे सित्रप्निययक्षा्यानकम्‌ १६७ 


सञ् तायत्‌ चित्रप्रिययक्षाव्यानकमाण्यायते । तश्ेद्म-- 
अत्थि महायणकिज्ज॑ंतरायमाणं विरायमाणं पि। सम्गसिरीए अलब्मं पि पुरवरं नाम साकेयं ॥१॥ 
तस्सुत्तरदिसिभाए रम्मुज्ञाणे [य] सुरपिओ जक्खो । सो चित्तपिओ जत्त काउं चित्तियह वरिसंते ॥२॥ 
चित्तयरं पुण मार्‌ह एवमविहिए जणं पि मारेह | मयवसगस्स5हव सुरप्पियस्स जुज्जइ इमं चेव ॥३॥ 
चित्तयरा तस्स भया सब्बे छगगा पलाइउं बद्धा । संकलिगाए जस्सेइ नामगं सो वि चिंतेइ ॥४॥ 
कोसंबीओ चित्तयरदारओ चित्तसिक्खणनिमित्तं | तत्था55याओ विद्धाए एगपुत्ताए गेहम्मि ॥५॥ 
तीए सुयस्स नाम॑ समागयं सा वि रोवबिउं छग्गा । आगंतुगेण वुत्त अम्मी ! कि रुयसि ? तीयुत्त ॥६॥ 
जहवत्तं तेणुत्तं अंब | अहं चेव चित्तइस्सामि । तीए वि हु संलत्तं कि वच्छ! तुम॑ मह न पुत्तो ? ॥७॥ 
सच्चमिमं तह वि मए कायव्वमिमं ति निच्छयं काउं। कयण्हाणो सुइभूओ सियवत्थों बंभवयधारी ॥८॥ 
काऊणं छट्ठतवं पवित्तवन्नेहि विणयपुव्वमिमो । तह कहवि चित्तिओं खामिओ य जह तस्स सो तुट्ठो ॥९॥ 
वरसु वरं देमि तयं तुट्टों ह॑ं तुज्झ किपि मणरुइयं | तेणुत्तं जइ एवं जणस्स मा मारणं कुणसु ॥१०॥ 
जायप्रिमं अन्न पि हु भणसु महाभाग ! मह समाहिकए । तेणुत्तं दुपय-चउप्पयस्स पासामि जं देसं ॥११॥ 
तस्साणुसारओ चिय लिहेज्ज सेसं पि एस होज्ज वरो । पडिवन्ने तेशमिमो संपत्तो अक्खयसरीरों ॥१२॥ 
रायाईणं कहिओ सब्वो वि हु जक्खवहयरो तेण । त॑ सोडं तुट्ठेणं सलाहिओ पूइओ एसो ॥१३॥ 
नियनयरे संपत्तो इओ सयाणायराइणा तत्थ । चित्तेउं चित्ततभा पारद्धा तयणु सब्बे्सि ॥१४॥ 
चित्तयराण समाए विभइज्जंतेसु भूमिभाएसु । अंतेउरस्स पासे मूभाओ तेण संपत्तो ॥१४५॥ 
तेणं मियावदए पायंगुट्टी कहिंपि सच्चविओं | तो तयणुसारओं अख्िय रूव॑ देवीए निम्मवियं ॥१६॥ 
जाव संवारइ चक्खुं ता पडिओ उरुयम्मि मसित्रिंदू | फुसिओ वि पुणोी पडिओ एवं दो तिन्नि वाराओ ॥१७॥ 
पडियम्मि तम्मि नाय॑ं एवं चिय नृणमेत्थ भवियव्वं । निप्पन्नम्मि य चित्त जाव निवो नियह चित्तसहं ॥१८॥ 
ता तम्मि तहा दिट्ठे मम पत्ती धरिसिया अणेणं ति। जा वज्ञो आणत्तो ता मिलिया चित्तयरसेणी ॥१९॥ 
देवेस वरगुणेणं अदिट्ठमवि रूवयं लिहइ सव्वं | अवयवदरिसणओ चिय ता पसिऊं मुयसु एयं ॥२०॥ 
खुज्जाए अंगुट्टी जबणंतरियाए दंसिओ तत्तो । तीए रूवे निम्मावियम्मि से पच्चओ जाओ ॥२१॥ 
अंगुलिअंगुट्पुड॑ तहा वि छिंदाविऊण वेरवसा । मुको रन्‍ना तेण वि पुणरवि आराहिओ जक्खो ॥२२॥ 
वामकरेण वि चित्तिहसि तेण दिल्ले वरम्मि अमरिसओ । लिहिऊण चित्तफलए मियावई दंसिया तेण ॥२३॥ 
पञ्जोयर॒प निवइणों तेण वि दूओ सयाणियनिवस्स । जह पेसविओ नयरी य रोहिया जह य खोभेणं ॥२४॥ 
रायम्मि मयम्मि जहा कारिय सुत्थत्तणं विसंवश्या । संभरियं तीए जहा सिरिवीरजिणिदपायाणं ॥२५॥ 
वीरम्मि समोसरिए जह पव्वहया जहा य सविमाणा । अवयरिया चंद-रवी जह तत्थ ठिया अणाभोगा ॥२६॥ 
वेलाइक मभीया जह पत्ता चंदणाए पयमूलं । जह संतियाए सा चोयणाए तीए वि सिक्खविया ||२७॥ 
तारिसकुलजायाए तारिसगुरुदिक्खियाए तुह जुत्ते । एगागिणीए ठाउ' एत्तियवारं पमायवसा ॥२८॥ 
जह एवं सिकक्‍्खविया तीए चलणेसु निवडिया संती । जह निंदिउमारद्धा अप्पाणं गुरुपमायवसा ॥२९॥ 
रे जीव ! किमुच्चरियं अज्ज वि तुह गुरुगुणाए गुरुणीए | पडिचोश्यस्स ? एवं बुज्कसु जइ अत्थि चेयन्नं ॥३०॥ 
त॑ कत्थ गओ सुज्कसि ? कत्थ गओ निब्वुइं तुमं लहसि | दंससि तं कस्स मुहं काऊणं एरिसपमायं १ ॥३१॥ 
इय पसमामयसित्ताएं तीए नियगरुयदोसपडिवरत्ति | मंसंतीए तइया सो को वि सुहो समुल्लसिओ ॥३२॥ 
परिणामो अप्पुष्वो जेणारूढाए खबगसेढीए । पयडियजीवा-3जीवं उप्पन्नं केवल नाणं ॥३३॥ 
रयणीए सप्पदंसणपभिई जह पुच्छियं तहा सब्बं । गंथंतराओ नेय॑ एव्थ न भणियं पसिद्धं ति ॥३४॥ 

॥ चित्रप्रिययक्षास्यानकं समाप्तम्‌ ॥५३॥ 
“प्‌ खझय-अपयस्स पासामि खं० र०। २. समवाये इत्यर्थः । 


शहद आखश्यानकणिकोशे 


इदानीं वनवासियत्तास्यानकमारभ्यते । तद्यथा-- 
अत्थि तहाविहधम्मियजणाउले महइ सन्निवेसम्मि । [वेज्को व्व गुरुपमाणो पालियसावयवओ सड़ो ॥१॥ 
अह् अन्नया य सम्मेयसेलसिहरम्मि तित्थजत्ताए | सत्येण समं चलिओ जा पत्तों तस्समीवम्मि ॥२॥ 
एगम्मि सन्निवेसे बाहिं आवासियम्मि सत्थम्मि | जक्खाययणस्स वणे पलासतरुणो समतलम्मि ॥३॥ 
नियइ तहाविहलोयाण पूयणिज्ञाओड5हिट्टिययणाओ । निक्खयकीलयरूवाओ जक्खपडिमाओ णेगाओ ॥४॥ 
ताण य मज्झे पासइ पलासपोय॑ निहाणकयसूयं । अन्नस्स कहिस्समिमं मज्कम वयाइक्रमो जम्हा ॥५॥ 
तत्तो य गाममज्झे सावयगिहपडिमवंदणनिमित्त | जाव पविट्ठों ता नियद सावगं दुग्गयं एगं ॥६॥ 
परमच्च॑ंतविणीयं तस्स गिहे वंदिऊण जिणरबिबं | जाव5च्छइ ता तेणं साहम्मियविणयकरणेणं ।॥७॥ 
रंजियचित्तो साहइ निहाणसंबद्धवइयरं तस्स | तेण वि य दीहदरिसित्तणेण रन्नो तयं कहिय॑ ॥८॥ 
रज्ञा वि तस्स रिजुया-विणयाइगुणेण रंजियमणेण । अणुजाणियं निहाणं गिन्हसु सब्बं पि तुह दिन्न॑ ॥९॥ 
तेण वि सुइमभूएणं विणएणा55वज्जिऊण ते जक्खे । सुमुहुत्ते सत्व॑ पि हु वसीकयं दविणजायं त॑ ॥१०॥ 
जिणमवणाइसु सत्तसु खेत्तेसुं वइय निश्चमेव तय॑ । पञ्जंते सुगईए पत्तो काऊण धम्ममिमों ॥११॥ 
जह एयाणं जाओ इह्-परछोयाण साहओ विणओ । तह अन्नस्स वि जायह ता जह्यब्बं इमम्मि सया ॥१२॥ 
॥ वनवासियक्षाख्यानकं समाप्तम्‌ ॥५४॥ 
प्राणप्रियो विनयवानिह लोक एवं, सर्वेज्ञशासनमिदं विनयात्‌ प्रवृत्तम्‌ | 
कुबेन्ति तीरथपतयोडपि यदेनमेवं, सद्धमंकल्पतरुमूलमुशन्ति सन्‍्तः ॥१॥ 
॥ इति श्रीमदाप्नदेवसूरिविरचितवृत्तावास्यानकमणिकोशे विनयफलवणण नो नाम सप्तदशोडधिकार: समाप्त: ॥१७॥ 


८२02 


[ १८. प्रवचनोन्नत्यधिकारः ] 


व्याख्यातः सामान्येन विनय: ! साम्प्रतं प्रभावनारूपं विशेषविनयममिधित्सुराह-- 


मोक्‍्खसुहबीयभूयं सत्तीए पवयणुन्नह कुज्जा । 
विण्हुमुणि-पह्र-सिरिसिद्ध-मन्न-समिय-5ज़खउड व्व ॥२३॥ 


व्याख्या--'मोक्षसुखबीजभूत॑' निर्वाणशर्मेककारणं 'शक्तौ' सामथ्यें सति प्रवचनोन्नतिं तीर्थप्रभावनां 'कुर्याद! विदध्यात्‌ । 

दृष्टान्तानाह-विप्णुश्च-विष्णुकुमारों राजपुत्र: वेरश्च-वेरस्वामी (श्रीसिद्धश्च] श्रीसिद्धसेनदिवाकरो [मल्लइच] मल्लवादी समितशच 
वेरस्वामिगुरुः आयखपुटश्च-समयप्रसिद्धो विद्यासिद्धः ते तथोक्ता:, ते इब तद्गद्‌ इत्यक्षराथं: ॥२३॥ 
भावार्थस्त्वाख्यानकगम्य: । तानि चामूनि। तत्न तावद्‌ विष्णुकुमाराख्यानकमारभ्यते | तश्चेंद्म-- 

हत्थिणउरम्मि नयरे दुव्बन्नजुओ सुबन्नजुत्तो वि। अट्टाववपरिकलिओ आवयरहिओ वि जत्थ जणो |॥१॥ 

मणपवणजवणवाहो बाणासणगुणकरिणाभरणबाहों । पउमुत्तरनरनाहों तत्थ5त्थि महाबल्सणाहो ॥२॥ 

समुवज्जियगुणमाला जाला नामेण आसि से देवी । अन्नोन्ननेहसाराण ताण काछो अइक्कम३ ॥३॥ 

केसरिसुविणयसिट्टी विण्हुकुमारो त्ति ताण पढमसुओ | बीओ य चउद्दससुमिणसूइओ सिरिमहापउमों ॥४॥ 

तत्थ निरीहो जेट्टो रज्जसिरिं इहए पुण कणिट्ठो | जुवरायपए रज्ना तो अहिसित्तो महापउमो ॥५॥ 


श्र 


१८. प्रचचनोन्नत्यधिकारे विष्णुकुमाराख्यानकम्‌ १६९. 


एत्तो य अवंतीए पुरीए सिरिधम्मनामओ राया । सब्भावेण पउट्ठो मंती नामेण नमुई से ॥६ 
सिरिमुणिसुव्ववजिणनाहसंतिओ सुव्वयाभिद्दों सूरी । समवसरिओ पुरीए उज्जाण सुमुणिपरियरिओं ॥७॥ 
सह नमसुइमंतिणा नरवई गओ सूरिबंदणनिमित्त | पणमिउमुबबिद्ठं तम्मि रायपज्बंतलोयम्मि ||८॥ 

सह सूरिणा वितंडाबाओं पारंभिओ अमच्चेण | अवहीरिओ मुरणिदेण मोणमालुबिय खमाए ॥९॥ 

एसो हु बलीबदृप्पाओ सूरी न याणए किंपि | इय तेणुत्ते नियगुरुपराभवं असहमाणण ॥१०॥ 

एगेण विणेण्णं नरिंदपञ्जन्तपठरपच्चत््खं । विदिओ निरुत्तरो सो महापओसं गज तयणु ॥११॥ 
मुणिमारणाय रयणीए आगओ कड्डिऊण करवालं । धरिओ तहेव पावो सासणदेवीए थंभेउ ॥१२॥ 

दिट्लो तहट्ठिओ सो गोसे रज्ना सपउरलागेण । त॑ दट ठुं बहुमाणो जाओ साहूसु लोगस्स ॥१३॥ 

मुक्को य देवयाए करुणाए तत्थ छोयलज्जन्तो | हत्थिणउरम्मि गंतुं अल्लीणां निवमहापउम ।॥१४॥ 

तेण कओ मंतिपण अह5न्नया सीहबलनिवों तस्स । नियदुग्गबलसमेओ लूडइ निस्सेसमवि देस ॥॥१५.। 

सो निययबुद्धिपगरिंसपमावओं नमुइमंतिणा बद्धों । तुट्ठेण बगे दिल्लो रज्ञा तेण वि भणियमेयं ॥१६॥ 
चिट्ठउ तुम्ह सयासे जायम्मि पओयणे गहिस्सामि । अह अन्नया य जालादेवीए दविणजाएण ॥१७॥ 
कारवियं रहरयणं जिणस्स बंभस्स पुण सबत्तीण | लूच्छीनामाए तओ जाओ। दोण्ह वि विसंवाओ ॥१८॥ 
पढमं रहजत्ताणु तो पउमुत्तरनिवेण पडिसिद्धा । दोन्ह वि रहा महापठमजुवनिवों तयणु रयणीण ॥१९%॥ 
जणणोअवमाणं मन्निऊग सो एगगो वि नीहरिओ । वीवाहिंतो नर-खयर-रायकन्नाओं परिभमिओं ॥२०॥ 
सयलं पि चक्रिरिद्धि आसाएऊण हत्थिणपुरम्मि | जाओ पयडपयावों छक्खंडवई महापउमो ॥२१॥ 

जो रन्ना पडिसिद्धों जणणीए रहवरो तया आसि । सो गरुयविभूईण नियनयरे भामिओ तेण ॥२२॥ 

एवं सो चक्कवई पुन्नपभावेण परममाहप्पं । पत्ता अहडन्नया तत्थ आगओ यसुव्वओं सूरी ॥२३॥ 
राय-महापउमे्टिं रज्जनिमित्तं पयंपिओ विण्हू | विसयपिवासाविरणण तेण परिवज्जिण रज्जे ॥२४॥ 
अहिसित्तो सुमुह॒त्ते पउमुत्तरराइणा महापडमों | पध्वइओ य सव्िण्हू राया सुरीण पासम्मि ॥२५॥ 
कयचारुतवच्चरणो राया सिद्धि गओ निहयकम्मो । जाओ विण्हुकुमारों वि सबलूसिद्धृंततत्तविऊ ॥२६॥ 
आगासगमप्पभिईओ तस्स जायाओ असमलडद्धीओ । विहरेइ महासत्तो उबसंतो सो महीवीढे ॥२७॥ 

अह अन्नया य हृत्यिणउरम्मि विहियम्मि वरिसयालूम्मि । सिरिसुव्ययसूरीह बहुमुणिपरिवास्कलिएिं ॥२८॥ 
दिद्ठा य अन्नया नपुुइमंतिणा ते पओसजुत्तेण । पुब्बपराजयसंभरणमच्छरप्फुन्नहिियएण ॥|२९॥ 

एसो समओ नियवेरसाहणे इय विचिंतयंतेण । चक्की कयप्पणामेण नियवरं मग्गिओं तेण ॥॥३०॥ 
वेउत्तविहाणेणं देव ! महाजन्नमायरिस्समहं । ता मज्झ केत्तियाणि वि दिणाणि रज्जं पयच्छेष्टि ॥|३१॥ 
अंतेयरे पविट्टो नरेसरो तस्स रज्जमप्पेड | अलियकयजन्नदिवखों संपत्तो जन्नवाडम्मि ॥३२॥ 

पासंडिणो सपउरा वद्धावणएु समागया तस्स । नवरं न गया सप्रणा तो बाहरिऊंण तेणुत्ता ॥३३॥। 
वद्धावि् न पत्ता तुब्मे मं जन्नदिक्खियं एत्थ । ता चयह संपयं में देस तो जंपण सूरी ॥३४॥। 
पंचप्पयारसञज्कायकरणवक्खित्त चित्तवित्तीहिं । परिहरियसयलूसावज्जलोयतत्तीहिं अम्हेहिं ||३५॥ 
वद्धाविओ न त॑ नरबरिंद ! न हु किंपि कारणं अन्न । ता मा कोबव॑ कुण अम्हमुबरि इय जंपिओ तेहिं ॥३६॥ 
सुटठयरं कुबिओ सो पयंपए सत्तद््‌विसपज्बंते । जो चिट्ठटिही स नियमेण मारियव्वी मए पावो ॥३७॥ 

गंतुं नयरुज्ञाणम्मि सूरिणो सह समग्गसंघेण | आलोचिउं पयत्ता किह उवसमिही इमो मंती ।॥|३८॥ 

ता एगेण विणेशण्ण पभणियं ए३ कहवि जइ एत्थ । बिण्हुकुमारमुणी ता उवसमइ न अन्नहा एसो ॥३९॥ 
सो पुण अंगामंदिर्सेले ता भगइ मुणिवरों अवरो । आगासगमणसत्ती विज्जइ मह न उग आगमण ॥४०॥ 
जइ एवं ता सो वि हु तमिहाडडणेहीई प्रणिओ गुरुणा | इय भणिए उप्पशओ तमालदलसामलं गयणं ॥४१॥ 


१७७० आश्यानकमणिकोशे 


हवण तय॑ं संघस्स कारणं किंपि होहिही गुरुयं । ज॑ं पाउसे वि साह समेह इय चितयंतस्स ।॥2२॥। 
विण्हुकुमरस्स मुणी समागओ पणमिऊण तच्चरणे । कहिओ सत्बो वि हु नमुइमंतिणो वइयरो तस्स ।।३३॥ 
तो विण्हुकुमारमुणी तं घेत्त नहयलेण संपत्तो । पणमियगुरुकमकमलो समागओ नमुइअत्थाणे ।|9४॥ 
सामंत-मंति-मंडलिय-पउरपज्डंतरायलोएण । नमुइविहृणण महीमिलंतभालेण पणओ सो ॥४४५॥ 
तो तेणुत्तो मंती नरिंद ! विर्यम्मि वरिसयालूम्मि | गच्छिस्सामों अन्नत्थ सहसु ता कइ्बयदिणाणि ॥४६॥ 
त॑ सोउं घयसित्तो व्व पावओ [पावओ] नमुइमंती । पमणइ जइ भणियदिणाणमुवररि तुम्हाणमेगं पि ॥४७॥ 
पेच्छिस्सामि समग्गं पि दंसणं ता तहा हणिस्सामि । न जहा तुम्हाणं कोइ कत्थई दीसई भुवणे ॥४८॥ 
एयारिसं निसामिय चित्तब्भंतरसमुच्छलियकोबों । पगलरंतसेयजालो भिउडीमीसावणनिडालो ॥०९॥ 
दुष्पेच्छरत्तनेत्तो खलंतजीहाबिणिस्सरियवयणो । फुरफुरियहोट्नजुयलो एवं भणिउं समाढत्तो ॥५०॥ 
अहो ! प्रकृतिसादश्यं श्लेष्मणो दुजनस्थ च | मधुरै: कोपमायाति, कटुकेरुपशाम्यति ॥५१॥ 
जइ वि हु एवं तह वि हु वियरसु तिण्हं पयाण मह ठाणं । तेणाबि अवन्नाए भणियं गिण्हसु पए तिन्नि ॥५२॥ 
तो वेउव्वियलद्धीए वद्धिओ लक्खजोयणपमाणो | विकरालकालकाओ भयंकरो तिहुयणस्सावि ॥५३॥ 
दटठुं महाभयंकरकरालरूवं महापमाणं त॑ । नर-अमरा-5सुर-खेयरनियरा भयकंपिरा जाया ॥५४॥ 
गरुयप्पमाणपव्वयनिट्ठुरपयददरे कण तेण । विस्संभरा सगिरिनियरकंदरा कंपिउ' रूग्गा ॥५५॥ 
झल्लज्सलिया सब्बवे वि सायरा खडहडंति पायारा । इय असमंजसरूव॑ तिजयं सब्वं पि संजायं॑ ॥५६॥ 
दाउ' सिरम्मि पाय॑ पायाले घत्तिओ नमुइमंती । साहुवियंभियमेरिसममचनाहेण नाऊग ॥५७॥ 
पट्टवियाओ सिंगारियाओ अमरीओ कोवसमणट्टा । ठाऊण ताओ मुणिसवणजुयलरूसविहम्मि मिउवयणा ॥५८॥ 
मुणिउ्वसमसंबद्धं गेयं ग।यंति महुरसद्॑ण । तह अमर-चारणा वि हु पारद्धा उवसम॑ पढिउः ॥५९॥ 
कुव्वंति संतिकम्मं विप्पा तह सावया वि भयभोया । जाया जिणेसराणं न्हवण-5च्वणकरणतल्लिच्छा ॥६०॥ 
मुणिणो उबसमरसपूरियाईं वयणाणि भणिउमाढत्ता | सह चक्रिणा जणों से रूग्गो चलणेसु सब्वो वि ॥६१॥ 
तो उबसंतो स मुणी उवसमरसगब्भवयणसवणेण | जिणपवयणस्स जाया समुन्नई तप्पभावेण ॥६२॥ 
तद्दियहाओ जाओ जयम्मि स मुणी तिविक्रमडभिहाणो । उप्पाडिउः कमेण य केवलनाणं गओ सिद्धि ॥ ६३ ॥ 
चक्को वि महापउमो भारहखेत्तं समग्गमवि भोत्तु | कयपव्वज्जो संजायकेवलो सिवपुरिं पत्तो ॥६४॥ 


॥ विष्णुकुमाराख्यानक समाप्तम्‌ ॥५०॥ 
अधुना वेरस्वाम्याख्यानकमाख्यायते । तययथा-- 


इह जइया किल भयवं गोयमसामी जिणे[ण]5णुन्नाओ । अद्ठबावयमारूढो नीसेसपमायरहिओ वि ॥१॥ 
आयासगमणलड्धी वि परिमिमों खेयरहियगइगमणो । पुट्रो वेसमणेणं रयणीए महातवस्सिगुणो ॥२॥ 

जह जाए स्देहम्मि तस्स कुवियप्पविडडणनिमित्त । पुंडरिय-कंडरीयाण तणयमज्मयणमकर्टिसु ॥३॥ 
पढियमसेसं पि हु जेण तप्परीवारगुज्ञगेण तयं । तुंबबणसबन्निवेसे सा जाओ वइरसामिमुणी ॥४॥ 

तत्तो गब्भत्थस्स वि जणओ मोयाबिऊण पव्वइओ । जह सो बालो दिन्नो तहइया जणणीए जणयम्स ॥५॥ 
जह य विवाए जाए ज़ित्तं संघेण तम्मि पत्थावे | जह पव्वइओ निइमइगुणेग जह रंजिओं सुगुरू ॥६॥ 
जह गुज्मएहिं बालो निमंतिओं जह य गणहरपयम्मि । नियगुरुणा संठविओ जाओ आएज्जबयणो य ॥७॥ 
जह तस्स रूय-लायन्न-कंति-सोहग्गगुणकलावेण । हयहिययाए धुयाए सेट्टिणी पत्थिओ भयवं ॥८॥ 
वेउव्वियलद्धीए कुसुमपुरे रंजिओ जहा राया | जह ओराला जस-कित्ति-वन्न-सद्दा य से जाया ॥९॥ 
किंच हुयासणगेहाओ कुंभमाणेण कुसुमनियरेण । गुणमणिरोहणगिरिणा पभावणा जह कया तत्थ ॥१०॥ 
पुन्वदिसाओ उत्तरपहम्मि पत्तेण महइ दुब्मिक्खे | पडविज्ञाए य जहा संघो नित्थारिओं तेण ॥११॥ 


१८, प्रवचनोन्नत्यधिकारे गैरस्वास्थाण्यानकम्‌ १७१ 
सिरिवीरजिणेसरतित्थनाहतित्थ॑ पमावयंतेण । विहरंतेण पभूयं काल कलिकलुसमहणेण ॥१२॥ 
पच्छिमवयम्मि कहया वि तस्स सिंभाहियम्मि संजाए। संठीए विम्हरण अणसणमाराहियं तेण ॥१३॥ 
नियपरिवारजुएणं जहा रहावत्तपव्वयवरम्मि | आवस्सयाओ नेय॑ सब्बं पि हु वित्थरेण तहा ॥१४॥ 
॥ वैरस्वाम्याख्यानकं सडः क्षेपत: समाप्तमिति ॥५६॥ 


अधुना [क्रम]प्राप्त भीसिदसेनाख्यानकमाख्यायते । तश्चेदमू-- 


तहाहि-- 


उज्जेणीए पुरीए सूरी सिद्धंतपपारगों आसि । नामेण विद्धवाई तिरोमणी विउसवग्गस्स ॥१॥ 
नियविउसत्तवसेणं तहा महागरुयगव्वयाए इमो । विहियपह्न्नो नज्जइ सब्बत्थ इमेण पढिएण ॥२॥ 

मदगो: श्वृज्ज शक्रयष्टिप्रमाणं, शीतों वहिमोरुतः स्थैययुक्त: । 

यद्वा यस्मे रोचते यज्न किश्विद्‌ , वृद्धो वादी भाषते कः किमाह ? ॥३॥ 

सोऊणेरिसगव्वं बंभणवंसुब्भवों गुरुमरद्टों । सिरिसिद्धसेणनामो परियरिओ निययछत्तेहिं ॥९॥ 

वायं दाउ पत्तों सद्धि सो विद्धवाइसूरीहिं। सह बंभणेहिं कलह को काही ? इय विचिंतेउ' ॥५॥ 

सूरी चलिओ कम्मि वि गामे जा ताव सिद्धसेणो वि। नष्ट त्ति विचितिय कत्ति धाइओ तस्स पढ्टीए ॥९॥ 
गच्छंतो संपत्तो सूरी सिग्घयर बड़ुयवम्गेण | भणिओ य कहिं वबच्चसि नट्ठो सेवडय ! तमियाणिं ? ॥७॥ 
भणिया य सूरिणा ते नाहं नट्टो कुओ वि हु भणण | एवं जंपंताणं संपत्तो सिद्धसेणो वि ॥८॥ 

भणइ य निययपइन्न॑ पालसु वियरसु मए सम॑ वाय॑ । जंपह सूरी नयरीए वियरिमो विउसपन्चक्खं ॥९॥ 
तेणुत्त एत्थेव य आह मुर्णिदो न संति इह सब्भा । सो जंपड एमेव य वियरसु सूरी वि पडिभणइ ॥१०॥ 
एए वि ताव गोवाल-हलहरा हुंतु इह सहावयिणो । तेणाणुमन्निए ते वाहरिया सूरिणा सब्बे ॥११॥ 

जो हारिही स सिम्सो होही इयरस्स सिद्धसेणेण | विहिया इमा पहनना पच्चक्‍्खं हलहराईणं ॥१२॥ 

तुह चेव पुव्वपक्खों होउ त्ति पयंपिए मुणिदेण । सो सक्कयवाणीए विप्पो जंपेउमारद्धो ॥१३॥ 

नत्थि जए सब्वन्यू पमाणपंचगपवत्तणाभावा | गयणारविंदमिव ता अभावमाणग्स विसओ सो ॥१७॥ 


पच्चक्खपमाणेणं सब्बन्नु ता न दीसए छोण | लिंगाभावाओं तहा अणुमाणेणावि तह चेव ॥१५॥! 

उवमाणेण वि तत्तुल्लडदंसणाओ न सो भवे गज्को । गम्मइ न आगमेण वि विरोहओ तेसिमन्नोन्नं ॥१६॥ 
अत्थावत्तीए वि हु दूरं गम्मई न सो भुवणभाणू | जम्हा तेण विणा वि हु सब्बे अत्थे पसिज्ञति ॥१७॥ 
तम्हा अभावविसओ सब्वन्नू मुयह तम्मि पडिबंधं । धम्मा-उधम्मवियारों वेयाओ गम्मए सब्बो ॥|१८॥ 
कत्तारदोसर हिए अपोरुसेए सया वि किल वेए | गयणं व सब्वतुल्ले सइ कि सब्वन्नुकप्पणया ? ॥१९॥ 

इय सब्बन्नुनिसेहप्पहाणमेयं सुणित्तु दियवयणं । हलहरसहाए उचियं पभणइ सिरिविद्धवाई वि ॥२०॥ 

धम्मु सामिड सयल्सत्ताहं, विणु धम्मि नाहिं धर **'॥ '''******८**००*०००००*००*०००००५*** ॥१॥ 

की पक मम बल धणु धन्नु धम्मह पसाणण । धम्मक्खरबाहिरिण धिसि, घिरत्थु कि तेण जाएण १ ॥२॥ 
धरणिहिं भारु करंतेण, पयपूरणपुरिसिण । किउ संसारि भमंतेण, धम्मु सुमित्तु न जेण ॥३॥ 

इय पढिऊरणं पुद्ठा मुणिवदणा हलहरा सहावइणों । मज्कमिमस्स य पढिए भव्वमभव्वं भगह तुब्भे ॥२१॥ 
तेहत्तं तुह पढिए सुइजुयममणण सिंचियं अम्ह । एयस्स संतियं पुण न कि पि अम्हे सुहावेइ ॥२२॥ 

ता किंपि भणियमिमिणा न बुद्धमम्हेहिं तत्तमेयस्स । सूरी वि भणइ निसुणह जं भणियमिमेण तस्सत्थं ॥२३॥ 
जंपियमणेण तुम्हाण देवहरयम्मि नत्यि अरहंतो । ते बिंति अत्यि अम्हेहिं पणमिओ संपयं चेव ॥२४॥ 

जइ एरिसं पयंपद पिया वि अलिओ इमस्स ता नृणं । इय जंपिऊण विप्पं घेत्त बाहाहिं ते बिंति ॥२५॥ 


१, श्लेष्माधो श्लेष्मरोगे |... 


'१७२ आखश्यानकमणिकोशे 


आगच्छसु जह तुज्ञ वि दंसेमो जिणहरम्मि अरहंतं | सब्बेहिं तओ दिन्नो जयवाओ मुणिवरिंदस्स ॥२६॥ 

विप्पेण वि निययपइन्नपालणुज्जुत्तमाणसेण तओ | भणियमहं तुम्हाणं सिस्सो ता देह में दिकखं ॥|२७॥ 

तो दिक्खिओ] मुर्णिदेण सिद्धसेणो पसत्थद्विवसम्मि | जाओ य सयलसिद्धंतपारगामी महासत्तो ॥२८॥ 

बहुगुणगगपरिकलिओ ठविओ सो नियपयम्मि सूरीहि | विहरइ वीरजिणेसरविसिट्ठतित्थं पमावंती |२९॥ 

उज्जेणीण पुरीण कमेण पत्तो महीए बिहरंतो । निमुणइ जणाववायं पाययसिद्धंतविसयम्मि ॥३०॥ 

मेलेऊणं संघं कयंजली मुणिवईं भणइ एवं । जह आएसं संधो मह वियरइ विरइयपसाओं ॥३१॥ 

सिद्धंतं सब्ब॑ पि हु करमि भासाण सक्षयाए अहं । सोऊण तय॑ संघो वि एबमुल्लविउमारद्धो ॥३२॥ 

दूरे ता भणियव्व॑ एसा चिंता वि जुज्जइ न तुम्ह । जम्हा चितियमेत्ते वि जायए गरुयपच्छित्त ॥३३॥ 

तो सिद्धमेणसूरी पयंपए मज्ञ चरिमपच्छित्त | संपइ संपतन्नमिमं पुण न हु मह वट्ढए इण्हि ॥३४॥ 

ता काऊण पसाय॑ संधो मह देउ चरिमपच्छित्त | तस्स5ब्भासाओं जेण मज्क़ संजायए सुद्धी ॥३५॥ 

तं॑ पुण बारसवासप्पमाणमव्वत्तलिंगधारीहिं । पायच्छित्तं किज्जइ संजाए एरिसे पावे ॥३६॥ 

अणुजाणिओं समाणो संघेणं सिद्धसेणमुणिनाहों । अव्वत्तलिंगधारी होउ' तं॑ चरिउमारद्धों ॥३७॥ 

चितइ य महीवीढे परिब्भमंती पसंत-थिरचित्तो | ते धन्ना मुणिवसभा सलाहणिज्ा तिहुयगम्मि ॥३५८॥ 

जाय॑ चुकक्खलियं न जेसि कइया वि एरिससरूवं | अकखंडचरणपणिमसुंदरा ते जयंतु जए ॥३९॥ 

इय एरिससुहभावणपडिहयपावस्स तस्स वरिसाणि | बारस जाव अईयाणि ताव पत्तो अबंतीए ॥४०॥ 

सो तत्थ कुडंगेसरदवस्स मढम्मि संठिओं महमं | संथुणइ न तं॑ दवं इय नाउ नयरिलाएण ॥०१॥ 
विन्नत्तं नरबइणों देव ! कुडंगेसरस्स देवस्स | चिट्ठ॒३इ मढम्मि अव्वत्तलिंगिओं थुणद न हु देव ॥४२॥ 

त॑ सोउ' नरनाहों संपत्तो तत्थ त॑ पयंपेइ । का सि तुमं ? सो वि हु भणइ घम्मिओ हमिद् संपत्तो ॥३॥ 

तो भणइ निवो कि न हु देवमिमं थ्रुणसि ? भणइ पुण सो वि। एस न सहिउं सकह मज्क थुईं भणइ तयणु निवो ॥०४॥ 

एयं चिय पेच्छामों कुणसु थुईं कोउ्यं जओ अम्ह । इह होउ अम्ह दंसणपमावणा इय विचितेडं ॥४५॥ 

तेणुत्तमिमं गोसे कायव्वं तयणु बीयदिविसम्मि | निवपज्ज॑तो छागो संपत्तो तम्मि दवउले ॥०६॥ 

तो सिद्धसेणसूरी सुइभूओ सुमरिऊण जिणनाहँ । बत्तीसाहिं बत्तीसियाहिं थोउ' समारद्धं। ॥०७॥ 

ओहिन्नाणण वियाणिऊकण जिणपवयणुन्नइनिमित्त | सासणद्‌वी जिणसासणस्स भत्ता समणुपत्ता ॥०८॥ 

एत्थंतरम्मि सिरकमलमज्मभागाओ तस्स दवस्स | पासजिणसरपडिमा सहसा निस्सरिउमारद्धा ॥०९॥ 

उवसंत-कंतरूवा अंते बत्तीसियाण सब्बाण । नीहरिया सब्बा वि हु सच्चविया राय-लोर्ह ॥५०॥ 

दटठूण पवयणुन्नइमेरिसमच्छरियभूयमच्चत्थं । पडिबुद्धों पउरजणो तित्थस्स पभावणा जाया ॥५१॥ 


॥ भ्रीसिद्धसेनाख्यानक समाप्तम्‌ ॥५७॥ 


इदानीं मन्नवाद्याख्यानक कथ्यते | यथा-- 
सरसप्पवालकलिण अमियावासे महाअरन्ने व | रयणायरे व्य भरुयच्छपट्टणे निवसण सूरी ॥१॥ 
नामेण जिणाणंदो बुद्धाणंदाभिह्ाणमिक्खू वि। निवपज्जंतो वाओ परोप्परं तेहि पारद्धो ॥२॥ 
जो हारइ सो नियमा नयरं परिहर्‌द विरदया तहिं | दोर्ि वि इमा पइन्ना संजाए तयणु वायम्मि ॥३॥ 
भवियव्वयावसेणं विणिज्जिओं भिक्खुणा मुणिवरिंदों | नीहरिऊण ससंघो समागओ वलहिनयरीए ॥४॥ 
पव्वइया सूरिससा दुल्लहएवी सम तिहि सुएहिं। अजियजस-जक्ख-मन्लाभिहेहिं [सुविशमुद्धबुद्धी्िं ॥५॥ 
समहिज्यसुत्तत्था तिन्नि वि जाया विसेसओ मल्लो । मोत्तृणं पुव्वगयं तह नयचक्क समर पि ॥६॥ 
बारसअरयपमाणं रइयं पुव्वाओ त॑ समुद्धरियं । अर॒याणं पत्तियं पारंभे तह य पज्जते ॥|७॥ 
कीरइ जिणाण पूया महापयत्तेण इयरहा विग्घं | संजायद वबखाणे पढणम्मि य सयलसंघस्स ॥८॥ 


१८. प्रधचनोन्नत्यधिकारे मल्नलवाद्याख्यानकम श्जरे 


सूरीहिं तीए अज्ञाए अप्पिओ पोत्थयाण मंडारों | अद्द अन्नया य विहरिडकामेद्टि पयंपिओ मल्लो ॥९॥ 
नयचक्कपोत्थयमिणं न वाइयव्वं ति विहरिया गुरुणी । अद्द निग्गयाणु अज्ञाएु तीए केणावि कज्जेण ॥१०॥ 
इह पोत्थयम्मि कि चिद्बह ? त्ति संजायकोडहल्लेण । मल्लेण तय घेत्तण छाडियं तयणु से पत्त ॥११॥ 

पढ़म॑ कलिऊण करम्मि वाइओ तम्मि आइमसिलोगो । निम्सेससत्थभावम्स साहगो महुरवाणीए ॥१२॥ 
विधि-नियमभड्ञवृत्तियतिरिकतलादनरथंकवचोवत्‌ । जेनादन्यच्छासनमनतं भवतीति वैधरम्यम्‌ ॥॥१३॥ 

जा सम्म परिभावद तस्सडत्थं ताव देवयाण तयं | अविहि त्ति चितिऊर्ण सपत्तमबि पोत्थयं हरियं ॥१४॥ 
तमपेच्छंतो संतो जा संजाओ विलक्खबयणों सो | ता आगयाए अज्चाए पुच्छिओ कि विसन्नो सि ? ॥१५॥ 
तेण बि पोत्थयहरणं कहियं तीए वि सयलमसंघस्स । तं॑ सोउं साममुहो संघो सब्वो वि संजाओं ॥१६॥ 
विसमम्मि पविसियत्व॑ं न मए नयचक्रपोत्थणण विणा । रुकखा य भविखयव्या केवछया भोयण वल्ला ॥१७॥ 
भणिआ संघणसी बाहिज्जसि केवलेहिं वल्लेहि । ता देहरक्खणकण गिण्हसु त॑ किपि बिगईं थि ॥१८॥ 
संघाण्सं बहुमन्निऊकण सो वल्ल-घय-गुडाहारों । गंतूण संठिओं गुरुगुह्दाण गिरिद॒म्गसेलस्स ॥१९॥ 

तत्थ ट्वियस्स वि मल्लम्स मुणिवरा दिंति भत्त-पाणाई | तम्मइपरिक्खणत्थं अहउन्नया दवयाणु इमं ॥२०॥ 
भणियं रयणीण क मिद्ठा ? वबलल त्ति जंपियं तेण। पुणरवि पज्जन्ते तीए जंपियं छण्ह मासाणं ॥२१॥ 

कण ? त्ति घय-गुडेणं [ति] जंपिण मल्लचेल्लण्ण तओ । तम्सेवंमइपगरिसरंजियहिययाण देवीण ॥२२॥ 
भणियं जं किपि मणप्पियं तयं मल्ल ! मग्गसु इयाणि । तुह तुद्ठा हं तो मल्लचेल्लण्णं इमं भणिया ॥२३॥ 
नयचक्रपोत्थयं मे वियरस ता देवयाए सो भणिओ । पढमसिलागाओ चअिय होही त॑ तारिसं तुज्ञ ॥२४॥ 
तो देवयाणुभावेण विरइयं तण तत्थ नयचक्कं । सघेण वि वल्हीण पवेसिओ सो विमृदेण ॥२५॥ 

गुरुणा वि विहरिटणं समागया नायसयट्बुत्तता । अजियजस-जक्ख-मन्ला गुणगणजुत्त त्ति तेहिं तओ ॥२६॥ 
संठविया सूरिषणु जाया परवाइवारणमइंदा | अह अन्नया य सिरिमन्नलसूरिणा सुमरियं एयं |॥|२७॥ 

जह भिकक्‍्खुबुद्धदासंण वायमुद्राणु सूरिणा वबिजिया | भरुयच्छाओ संघेण संगया तयणु नीहरिया ॥२८॥ 
निययगुरूणडवमाणं संघस्स पराभवं॑ च नाऊणं । मल्लमु णिदो भरुयच्छपट्टण भकत्ति संपत्तो ॥२९॥ 
कयतारिसप्पइन्नेण तेण सह भिक्‍खुणा समारद्धो । निवपज्जंतो वाओ बहुविउससहाए पदच्चक्खं ॥३०॥ 
एयम्स गुरू वि मए विणिज्विओं विजयवाइविंदों वि। ता एयम्मि दुह्ा वि हु बाछे किर मज्क का गणणा ? ॥३१॥ 
इय भणिउमग्गवाओं समप्पिओं भिक्खुणा मुणिदस्स । सो वि हु सुमरिय सासणदेचिमुबन्नसिउमा रद्धा ॥३२॥ 
सियवायसारजिणमयगम-हे उ-भंग-पवरजुत्तीदि । काऊणमुबन्नासं धरिआ छद्दिवसपज्ज॑ते ॥|३३॥ 

भणियं च तेणमणुबइ दूसेयव्व॑ तण इमं गोसे । तो बुद्धदासमिवखू नियटाणगओ तमिस्साएु ॥|३४॥ 
दीवयमुज्जालेऊण करयले कलिय सेडियं सुब्भ । जमुवन्नसियं मल्लण तं लिहेउ' समारद्धी ॥३५॥ 
परिभावणाए मढमज्थ्िमाए भित्तीए ता न से किंपि | सम्म॑ं संभरइ तओ घसक्किओं हिययमज्मम्मि ॥३६॥ 
निवपज्ज॑ंतसहाएु भणियव्वं किह मणए प॒रभायम्मि ? | एवमयज्ञवसाणण सो गओ ज्ञत्ति पंचत्तं ॥३७॥ 
मिलियम्मि विउसवस्गे बीयदिण जा न एड सो भिक्‍खू | हक्कारणाय ता तस्स राइणा पेसिया पुरिसा ॥३८॥ 
ते तत्थ गया भिक्‍खू नियंति भित्तीसमीबमुबबिट्ठं । उत्ताणियनयणजुयं सेडियपाणि बिगयपाणं ॥३९॥ 

गंतुण तहिं रन्नो साहियमह भणइ नरबई एवं । जह कहियमिमेहिं तहा चिंतंतो सो भणएण मओ ॥४०॥ 

तो तेण हारियं तयणु राइणा मल्लवाइणो दिल्नं । जयपत्तं संजाया संघस्स पभावणा महई ॥०१॥ 
निस्सारिउमारद्धं रज्ना भिक्खुण दंसणं सयलं । तो मल्लवाइणा सा निवारिओ जायकरुणण ॥|४२॥ 

सूरी वि जयाणंदो निवेण निस्सेससंघरुंजुत्तो । पद्चाणीओं गंतृण सम्मुहं गुरुविभूदए ॥०३॥ 


१. वायविंदो रं० | 


१७७४ आश्यानकमणिकोशे 


विहिया पभूयकालं पभावणा मल्लवाइसूरीहिं। निन्नासिया य सब्वे वि तेण परवाइणो बहुसो ॥४४॥ 
सवणोयरसुहसद्देसगाए पडिबोहिकऊण भवियजणं । सिरिमल्लवाइसूरी मरिऊण गओ अमरलोए ॥४५॥ 


॥ मललासल्यानक समाप्तम्‌ ॥५८॥ 
अचुना समिताख्यानकमारभ्यते | तच्चथा-- 


कन्ना-वेज्ाण नदेणमन्तरे तावसासमों एगो । बंभद्दीवियसाहाण तावसाणं समत्यि तओ ॥१॥ 

कुलवइणा तरुमूलाण मेलणे जाणिओ कहवि जोगो | तं॑ पयतलेसु दाऊण तावसा उत्तरंति नईं ॥२॥ 

तेसिं पमावणा सावयाणमोहावणा घुवं जाया । दष्ू गमइसय॑ त॑ तेसिं भत्ति कुणइ लोओ ॥३॥ 

तसम्मि य समए सिरिवइरसामिणो माउला य समियज्ञा । विहरंति जोगसिद्धा तो तेसि निवेहए भणियं ॥५॥ 
पायतललेववसओ एय॑ न उणो तवाणुभावेण । तो सावगेण विउणा एगेण निमंतिया गेद्दे ॥५॥ 
तेसिमणिच्छंताण वि पाए पवखालिऊण भोयबिया । गच्छंति चडयरेणं बुड्ुंति नदणु ताव जले ॥६॥ 

तो तत्थ अज्वसमिएहिं जोगसिद्धेहिं जोगचप्पुडियं । खिविउ' वुत्तं बिन्‍ने ! परकूलं गंतुमिच्छामि ॥७॥ 

ताव य दो तीए तडा मिलिया जोगप्पभावओ जाया । सासणपभावणा तावसा य सब्वे वि पडिबुद्धा ॥८॥ 
पव्वहया गुरुपासे संजाया बंभदीविया साहा । जम्हा उ बंभदीवियतवोवणाओ इमे जाया ॥<॥ 


॥ सा मताख्यानकं समाप्तम ॥५६॥ 


इदानीमाय खपुटाख्या नक॑ व्याख्यायते । तश्चेद्सू-- 


सिरिअज्वखउडसूरी विज्ञासिद्धों सुसाहपरियरिओ । विहरंतो संपत्तो भरुयच्छपुरम्मि कह्या वि ॥१॥ 
तस्सडत्थि भाइणेज्जो खुद्डमुणी कुणइ तस्स सुस्सूसं । सोउं परिवत्तंते गु रुणो विज्ञाओ अणुदिव्स ॥२॥ 
पढियाओ कन्नाहेडएण विज्ञाओ पढियसिद्धाओ । ताओ जओ तो तस्स वि चितियमेत्ताओं बिफुरंति ॥३॥ 
गुडसत्थाओ अह अज्नया य मुणिजुयल्मागयं तत्थ । पणमिय गुरुकमकमलं कयंजली जंपए एवं ॥9३॥ 

भंते ! अकिरियवाई गुडसत्थपुरे समागओ भिक्‍खू । देवाइधम्मतत्तं नत्थित्ति पयंपमाणो सो ॥५॥ 
विजिओ संतो साहूहिं गुरुपओसं गओ मरेऊण । वद्डुकरामिहाणो जाओ तत्थेव सो जक्खो ॥|६॥ 
पुन्वपराभवमवललोइऊण नाणेण आसुरुत्तो सो | उवसम्गइ साहुजणं संपइ तुम्हे पमाणं ति ॥७॥ 

मोत्त सभाइणेज्जं गच्छं तत्थेव अज्जखउडपह । सद्धिं मुणिजुयलेणं पत्तो गुडसत्थयं गाम॑ ॥८॥ 

अवलंबिउं उवाणहजुयलं वद्भुकरस्स जक्खस्स । कन्नेसुं तप्पुरओ सुत्तो पावरिय सियपडयं ॥९॥ 

देवच्जएण दिद्ठो सिट्टो य सपठरनरवरिंदस्स । त॑ं सोऊण सकोवों सपरियणों नरवई पत्तो ॥१०॥ 
नियजक्खस्स अधन्नं दटठुं उद्लाविओ स नरवइणा । न वि उद्भइ गरुएहिं वि सद्देहिं पयंपिओ बहुसो ॥११॥ 
सुहडेहिमेगदेसा कुओ वि पडयम्मि तम्मि अवणीए । तेहि अहोभागो से दिद्लो सपउरनरिंदेहिं ॥१२॥ 
जत्तो जत्तो पडयं अदणेउं ते तयं पलोयंति । तत्थ य तत्थ य मुणिणो पुयप्पएसं निरूवंति ॥१३॥ 

दटू ठरण तयं भूवेण पभ्णियं रे ! बिभीसिया एसा । ता सिम्धं परिताडह कर-कस-दंडप्पहारेहिं ॥१४॥ 
तहविहि० मुणिवहणा तेसि पहारा निवावरोहम्मि । संकामिया सविज्ञाबलेण तत्थेत्थ रग्गंति ॥१५॥ 

नाउं महल्लएहिं कहिय॑ रन्नो निवो वि त॑ सोउं । चितेइ को वि एसो महप्पमावों महासत्तो ॥१६॥ 
उच्छलियबहलकोवो जाव न म॑ हणइ पउरपरिकलियं । खामेमि ताव इय चिंतिकण पणओ निवो तस्स ॥१७॥ 
भणइ य महापसायं काउं मह खमह एगमवराहं । जम्हा करुणारसिया भवंति पणएसु सप्पुरिसा ॥१८॥ 

त॑ निम्युणिऊण सूरी समुट्ठिउं चल्लिओ तओ ज्त्ति | वद्ुकरजक्खो वि हु संचलिओ तयणुमग्गेण ॥१९॥ 
अवराणि वि चामुंडाइयाणि सव्वाणि देवरूवाणि | सूरिप्हम्मि पयद्टाणि खडहडंताणि समकालं |२०॥ 


१८, प्रय नोभत्यधिकारे आय खपुटाल्यानकम १७४ 


जक्खाययणदुवारे बहुपुरिससएहिं चालणिजञाओ । वाहरियाओ मुर्णिदेण दोन्नि पाहाणदोणीओ ॥२१॥ 

ताओ वि हु चलियाओ एरिसमच्छरियमइसयं दटठुं। रायाइनयरलो ओ पयपणओ पभणए एवं ॥२२॥ 

मुंचसु भयवं जक्खं मुक्की य स भयवया सपरिवारों | निययट्टाणम्मि गओ ताओ पुण दो वि दोणीओं ॥२३॥ 
धरियाओ हड्टमज्मम्मि थंभिउ' पम्रणियं च सूरीहिं। जो कोइ मज्झ तुल्ली सो नेउ इमाओ नियठाणे ॥२४॥ 
गुडसत्थपुरे अज्ज वि तहेव चिट्ंति ताओ तत्येव | तद्दियहाओं जाओ जक्खो जिणसासणे भत्तो ॥२५॥ 
पडिबुद्धो पउरजणो महई जिणपवयणुन्नई जाया । साहुक्कार ह सवब्यो वि सासणं वीरनाहस्स ॥२६॥ 

एत्तो चिय भरुयच्छे भोयणगिद्धों स भाइणेज्जमुणी । जाओ बुद्धो विज्जप्पमावओ तस्स पत्ताणि ॥२७॥ 
गयणंगणेण गच्छ॑ति अणुद््‌णं नियठवासयगिहेसु । भोयणमरियाणि पुणो तह चेव य पडिनियत्तंति ॥२८॥ 
अहिवासिया समाणी टोप्परिया पवरआसणनिविद्ठा । सब्त्रेसि पत्ताणं पुर२ओ सा ए्‌इ गच्छइ य ॥२९॥ 
एयारिसमच्छरियं पेच्छिय बुद्धाण दंसणे लोगो । आउट्टो संजाया संघस्सोहावणा गरुई ॥३०॥ 

जाणाविओ समाणो संघेण समागओ मुणिवरिंदों | ताण5वि उवासगाणं गिहेसु पत्ताणि पत्ताणि ॥३१॥ 

तेहिं वि पूयापुव्व॑ भत्तिब्भरनिन्‍्भरेहिं भरियाणि | उप्पहयाणि नहंगणमग्गेणं जाव सव्वाणि ॥३२॥ 

ता मुणिवइ्वेउव्वियसिलाए अश्मिद्टिण भग्गाणि | नायं च भाइणेज्जण मह गुरू आगओ एत्थ ॥३३॥ 

तो भयभीओ नट्टो बुद्धविहारम्मि सूरिणो वि गया । भिकखूहि जंपिया एह नमह बुद्धस्स कमकमल ॥३४॥ 
सुरीहि जंपियं एहि बुद्ध ! वंदाहि मज्म कमजुयलं | तो बुद्धदेवपडिमा विणिगया तेसि पणया य ॥३५॥ 
चिट्टट महरिहथूभो विहारदारे पयंपिओ सो वि । वंदाहि तं पि तो सो वि निवडिओ सूरिचलणेसु ॥३६॥ 
पुणरवि भणिओ चिट्सु अद्घोवणओ तहेव सो थकक्‍को । तत्थ नियंठाणामियणामेण गओ गुरुपसिद्धि ॥३७॥ 
दटठरण तमच्छरियं विम्हयउप्फुल्ललोयणो लोगो । जिणसासणाणुरत्तो पयंपिउं एवमारद्धो ॥३८॥ 

त॑ जयउ वीरसासणमेरिसअइसयसहस्ससंकिन्नं । जत्थ अजंगमदेवा वि सूरिचरणे5भिवंदंति ॥३९॥ 

सव्वो वि जणो जिणपवयणम्मि जाओ सुभत्तिथिरचित्तो । जिगसासणस्स जाया समुन्नदे भुवणमज्ञम्मि ॥|४०॥ 


॥ आयंखपुटाख्यानकं समाप्तम ॥६०॥ 


एएहिं जहा विहिया सत्तीए पवयणुन्नर असमा । कायव्वा अन्नेहिं वि तहेव सप्पुरिसरयणेहिं ॥१॥ 
सेद्धान्तिकप्रमुखसत्पुरुषप्रभावैरष्टाभिरप्यपरतीर्थमतं निरस्य । 
श्रीसववितद्मयवचनोन्नतिम क्लिमान्यो धन्य: स को5पि कुरुते शिवशमंबीजम्‌ ।।२॥ 


॥ इति श्रीमदाप्नदेवसूरिविरचितवृस्ताधासख्यानकर्मणिकोशे प्रवचनोन्नतिवणनो नामाष्टादशो 5घिकार: ॥१८॥ 
&6<-7&.2:59 


[ १९, जिनधमोराधनोपदेशाधिकारः ] 


उक्त प्रवचनोन्नतिकारणम्‌, एतश्च परमं धमंसवेस्वम्‌ । एतत्करणशक्त्यभावे5पि स्वजनादिमोहं विहाय धर्म एवं विधेय इत्यु- 
पदेशमभिधातुकाम आह-- 
सयणे धण्ण असारे मोह मोत्तण इुणह जिणधम्मं । 
ज॑ परभवाणुगामी सो शिय ओदारमिफ्तो व्व ॥२४॥ 


१७६ आश्यानकमणिकोशे 


व्याख्या--स्वजने' माता-पित्रादो 'घने च' गणिमादो 'असारे' परमाथंसारशून्ये 'मोहं' मूढ़तां 'मुक्त्वा' त्यक्त्वा [कुरुत 
विधत्त 'जिनधम' सर्वविद्धणितमनुप्ठानम्‌॥ कारणमाह--“यद्‌” यस्मात्‌ कारणात्‌ 'परभवानुगामी” परलोकानुयायी 'स एव! जिनधम्म 
एवं । किंवत्‌ ? 'जोत्कारमित्रवत्‌' मित्रतृतयमिव हत्यक्षराथ: ॥२४॥ भावाथंस्त्वाख्यानकादवसेयः । तब्चेद्सू-- 


निसेससुहयवसुद्दा विलासिणीकुसु मसेहरसमाणं । सप्पुरिसरयणजलही रयणउरं नाम पुरमत्थि ॥१॥ 

तम्मि पुरे अरिवारणवियारणो रयणसारनरनाही । परिहरियदयरनरवहकमलाकुलबालियागेहं ॥२॥ 
उप्पत्तियाइचउविहमइविहवालंकिओ महामंती । तस्सडत्यि बुद्धिसारों सारेयरनायपरमत्थो ॥३॥ 

सो अन्नया विचितइ राया मित्तो न होइ कश्या वि। किंतु मह पुन्वपुन्नप्पमावओ वहइ मित्तत्त ॥४॥ 

अह कहवि देव्वपरिणइवसेण रूसिज्ज मज्ञ नरनाहो । तदियहवसणतरणाय किंपि विरएमि मित्तमहं ॥५॥ 
इय चितऊण तत्तो महंतसामंतवंससंभूयं । विरण॒द गरुयनवनेहनिब्भरं किंपि वरमित्त ॥६॥ 
आभरण-वत्थ-भोयण-सयणा-55सण-जाणवाहणाईयं । नियदेहनिव्विसेसस्स तस्स वियरेइ अणुदियहं ॥७॥ 
अबरो वि तेण वीवाह-विद्धि-बद्धावणाइपन्‍्वेसु । विहिओ मित्तो आभरण-वत्थदाणेहिं सचिवेण ॥८॥ 

अबरं च रायमग्गे उत्तमवंसुब्भवो महासुहडो । जोहारमेत्तसज्ञझा संजाया तेण सह मेत्ती ॥९॥ 

अह अन्नया अयंडे बाढं कुवियं नरेसरं नाउं | चिंतेइ महामंती मयक्पिरमाणंसो एवं ॥१०॥ 

नुणं न एत्थ वासो मह होही राइणा विरुद्धेण | ता वच्चामि विएसं तत्थ कहं जामि असहाओ ? ॥११॥ 
पर मज्झ परममित्तों विज्जइ नवनेहनिब्भरो पढमो । सन्निज्ञणं तो तस्स जामि रज्जंतरं अन्नं ॥१२॥ 

हय चिंतिऊण मंती जाइ तओ पढममेत्तगेहम्मि | उद्धित्तु सो वि समुहं सयणा-55सणदाण-विणयाईं ॥१३॥ 
विरइत्तु तो पयंपइ मदद गेहमलंकरियं तए मित्त !। कज्जेण केण ) मणिए भणइ तओ बुद्धिसारो वि ॥१४॥ 
मह कम्मपरिणदैए विणाउवराहेण रुट्टओ राया । ता तुह साहिज्जेणं वच्चामी अन्नदेसम्मि ॥१५॥ 

इय निसुणिउं पयंपह जइ रुट्टो तुज्ञ नरवई मित्त ! | णएक्क॑ पि पयं गंतुं ता न खमो सामि ! साहेज्ज ॥१६॥ 
आयत्निऊण एवं मंती चिंतेह जायवेरुगो | एक्कपए चिय जाया उवयारा निप्फला किह णु ? ॥१७॥ 
विच्छायमुहो गच्छइ मंती बीयम्मि मित्तगेहम्मि | सो वि समुद्ठिय समुहं पयंपए भणसु कि कर्ज ? ॥१८॥ 
मंती वि कह सब्वं पयंपएु सो वि मित्त ! न समत्थो । नियपुत्त-कलत्ताईं परिहरिउं तुज्ञ कज्जम्मि ॥१९॥ 
किंतु पुरीए परिसरे तं अब्भडवंचियं नियत्तेमि । देसंतरम्मि गंतुं तुमए सद्धि न सक्कमि ॥२०॥ 

तो तं॑ पभणह मंती सच्चयमाहाणयं कर तुमए। तक्केण मक्खिउं मक्खियाहिं खावेसि तुममेव॑ ॥२१॥ 

चिंतेह इमे सम्माणदाणपरिभोसघणसिणेहा वि। जइ न सहाया जाया ता कि जोहारमेत्तंण ? ॥२२॥ 

तह वि परिपुच्छियव्यो त्ति चितिउः जाइ संसइयहियओ । जोहारमेत्तमवणे साहइ सब्बं पि वुत्तंतं ॥२३॥ 
सो भणइ मह जियंते निदलियासेसदुक्ख संदोहे । वालविणिवायमेत्तं पि मित्त ! न भय॑ं तुह जयम्मि ॥२४॥ 
ता साहसु नियकज्ज॑ इय भणिए भणइ बुद्धिसारों वि। गिण्हित्तु सारद॒व्बं बच्चामी अन्नदेसम्मि ॥२५॥ 
भरिऊण सारदविणस्स रहवरं रयंणिपढमपहरम्मि । नीहरिओ नयराओ त॑ सन्नद्धं पुरो काउं ॥२६॥ 

पत्तो य अवरदेसंतरम्मि तद्देसनयरनरनाहो । जाणित्तु बुद्धिसारं समागयं सम्मुही एड ॥२७॥ 

नाऊण बुद्धिकलहंसकेल्िलीलाविलासकमलसर । सो वि- नियमंतिमंडलूसिरोमणित्त निवेसइ ॥२८॥ 


इदानीमन्तरज्ञभावना--- 
मंती संसारिजिओ बुद्धीविनज्नाणसंपयावसहो । पयदेए वल्लहस॒हो दुह्भीरू गुणनिवासगिहं ॥२९॥ 
जमसरिसो पुहइ्वई सइस॒ुत्यियजणअतक्षियागमणो ।.सच्छंदचरणसीढों करुणारहिओ य सब्बस्स ॥३०॥ 
अकयन्नुयानिवासो विन्नेओ पढम॑मंतिमित्तममों । डवयारगुणक्षगेज्यो नेओ देहो खलयणो व्व ॥३१॥ 


२०. नरजन्मरक्षाफलाधिकारे वणिक्पुत्रत्रयाख्यानकम्‌ १७७ 


भणियं च-- 

तहलालियस्स तहपालियस्स तहसुरहिगंधमहियस्स | खलदेद् ! तुज्ञ जुत्त ? पय॑ पि नो देसि गंतव्बे ॥३२॥ 

जह सो पढमो मित्तो सरणं मंतिस्स आवह्गयस्स । मणयं पि न संजाओं देहो वि तहेव जीवस्स ॥३३॥ 

जह सो बीओ मित्तो नियकज्जपरायणो सुदेकरसो । मंतिस्स न साहेज्ज दुहियस्स तहाविहमकासी ॥३४॥ 

तह सयणा विज्नेया क्रित्तिमनेहा सकज्जतल्लिच्छा | परमत्थेण न किंचि वि जियस्स जंतस्स साहेजे ॥३५॥ 
भणियं च-- 

बंधवा सुहिणो सव्बे पिय-माइ-पुत्त-भायरा । पिहवणाओ नियत्तंति दाऊणं सलिलंजलिं ॥३६॥ 

अब्भुक्खंति य त॑ गेहूं पियम्मि वि मए जणे | हिद्ठा तेणडज्जियं द॒व्वं, तहेव विलसंति य ॥३७॥ 

अत्थोबज्जणह्देऊहिं, पावक्म्मेहिं पेरिओ । एकओ चेव सो जाइ, दुग्गई दुह्भायणं ॥३८॥ 

जोहारमित्तमेत्ती मंतिसदाओ जहा तइयमित्तो । तह अप्पपयत्तकओं वि होइ जीवस्स जिणधम्मो ||३९॥ 
भणिये च-- 

थेव॑ थेवं धम्मं करेह जइ ता बहुं न सकेह । पेच्छह महानईओ तिंदृर्हिं समुदरभूयाओ ॥४०॥ 
तहा-- 

इहलोइयम्मि कज्जे सब्वारंभेण जह जणो तणइ । तह जइ लक्खंसेण वि परलोण ता सुही होइ ॥०१॥ 

थ्रेवोवयारविहिओ वि मंतिणा जह इमों तदयमित्तो । सरणं जाओ जीवस्स परभवे तह इमो धम्मो ॥०२॥ 

॥ योत्कारमित्राख्यानकं समाप्तम्‌ ॥६१॥ 
सवे धनं सनिधनं स्वजनादयो<पि प्रायो भृशं स्वभरणं प्रतिबद्धकक्षा: । 
मोहं विहाय तदमीषु जिनेन्द्रधम जोत्कारमित्रमिव जन्मिहितं कुरुष्वम ॥१॥ 
॥ इति श्री मदाप्नदेवरसरिविरखचितवृत्तावाव्यानकमणिकोशे जोत्कारमित्रनिद्शनजिनधमंब्णन 
एकोनविशो-5घिकारः समाप्तः ॥२१॥ 


ब्रा 


मर 4 ८00 आज 


[ २०. नरजन्मरक्षाधिकारः ] 


अनन्तरं जोत्कारमित्रनिदशनेन धर्मा व्यावर्णित: । साम्प्रतमेतत्कारणसामग्रीप्रधानतरमूलधनकल्पनरत्वप्राप्तावपि निजयोम्यतानु- 
रूपेण धमफलं प्राप्यते इत्येतद्भिधित्सुराह-- 
लद्धुं केह नरत्तं सग्गसुहं नरसुहं व अजिंति । 
हारिंति केश त॑ पि हु इृह नाय॑ं वणियपुत्तेहिं ॥२५॥ 
व्याख्या--लब्ध्चा” अवाप्य 'केचिद' जीवा: “नरत्वं' मनुष्यत्वं 'स्वगंसुख' देवलोकशर्म “नरसुखं' मनुजसुखं वा “अजे- 
यन्ति” बिढपन्ति 'हारयन्ति! नाशयन्ति 'केडपि' निर्माम्या: 'तद॒पि! नरत्वम्‌। हु: इति पादपूरणे । 'इह' अस्मिन्नर्थ 'ज्ञातं' दृष्टान्तः 
'वणिकषपुत्रेट वाणिजकतनयेरित्यक्षराथं: ॥२५॥ 
ग्भोथस्त्वास्यानकगम्यः तश्चेदम्‌-- 
रमणीयमहावणसंडमंडिए सरवरेहिं संकिन्ने | अंतो बहिं च चच्चर-चउक्क-चउमुह-तिगविभत्ते ॥१॥ 
नयरम्मि वसंतपुरे नायरयजणाण गोरवट्टाणं । निवसह सुदृववहरणो नयसारों नाम पुरसेट्टी ॥२॥ 
2३ 


श्ज्८ आद्यानकमणिकोशे 


अह अन्नया य को ऊकिर कुड्डंबपयसमुचिओ महं होही ? । इय चिंताए तिण्हं पुत्ताण परिक्खणनिमित्तं ॥३॥ 
नियसयणबंधुपमुहं नायरयजणं निमंतिउं गेहे । भोयाविऊण विहिणा तस्स समक्खं भणइ सेट्टी ॥9॥ 
एएसि मह सुयाण॑ तिण्हं पि हु को कुड्डंबपयजोगो १। तं चेव विसेसेणं जाणसि जोगो त्ति तेणुत्त ॥५॥ 
इय एवं ता तुम्हं समक्खमेए अहं परिक्खेमि | इय भणिउं वाहरिया तिन्नि वि ते पउरपश्चक्खं ॥६॥ 
पत्तेयं गत्तेये लक्षखं दाऊण दविणजायम्स । ववहारत्थं देसेसु पेसिया तस्समक्खमिमे ॥७॥ 
तो तेसि पुत्ताणं चितियमेगेणमम्हमेस पिया । पाएण दीहदरिसी धम्मपिओ सुइसमायारों ॥८॥ 
पाणच्ए वि अम्हाणमुवरि न कय। वि चितइ विरूवं | केणावि कारणेणं ता नूणं एत्थ भवियव्वं ॥९॥ 
इय परिभाविय तहियं तह कहवि हु नियमईए ववहरियं । जह विढविऊण कोडी वरिसंते पूरिया तेण ॥१०॥ 
बीएण चिंतियमिमं मम पिउणों विज्ञए पभूयधण्णं । ता कि किलेसजाले पाडेमि मुहाए अप्पाणं ? ॥११॥ 
जइ सब्बं पि य विलसामि ता गओ कह मुहं पयंसिस्सं ? तम्हा मूल रक्खिय सेसं भक्खेमि कि बहुणा १ ॥१२॥ 
तइणणमजोगत्ता विगष्पियं नियमणम्मि मह जणओं | वुड्भत्तणदोसेहिं संपह कोडीकओ जम्हा ॥१३॥ 
तिट्ठा लज्जानासो भयबाहुल्ल विरूवभासित्त | पाणण मणुस्साणं दोसा जायंति वुद्धत्ते ॥१४॥ 
अन्नह कहमम्हे पट्टवेइ देसंतरम्मि सइ विहवे ? | इय परिभाविय सब्बं वरिसंते भक्तिखयं दव्वं ॥१५॥ 
संपत्ता सब्वे वि हु नियर्साम]ए वन्नियस्सरूवा ते | पुणरवि तहेव विहिऊण सेट्टिणा भोयणाईयं ॥१६॥ 
सयणाईण समकखं पढमों संठाविओ कुडुंबपण | बीओ भंडारपए तइओ किसिमाइकज्जेमु ॥१७॥ 
मज्झत्थेणं जणगएण नियसुया जह इमे जणसमक्खं | सकयाणुरूवपयवीए ठाविया बुद्धिमंतेण ॥१८॥ 
तह चेव धम्मविसए जीवे ठावेइ कम्मपरिणामो । सकयाणुरूवसरिसे पयम्मि भणियं च जेणमिमं ॥१९॥ 
जहा य तिन्नि वणिया मूल घेक्षण निग्गया | एगो त्थ लभए लाभं एगो मूलेण आगओ ॥२०॥ 
एगो मूलं पि हारित्ता आगओ तत्थ वाणिओं । ववहारे उबमा एसा एवं गम वियाणइ ॥२१॥ 
माणुसत्तं भवे मूल लाभो देवगई भवे | मूलच्छेएण जीवाणं नरय-तिरिक्खत्तणं भवे ॥२२॥ 
॥ वणिकपुत्रश्नयाख्यानकं समाप्तम ॥६२॥ 
लब्ध्वा शुभ मनुजजन्म नरोडजेयन्ति, स्वःशर्म केचन नरप्रभवं सुखं वा । 
निबुद्धयस्तद्पि केचन हारयन्ति, ज्ञातं वणिक्तनयसत्रयमाहुरत्र ॥१॥ 
॥ इति श्रीमदाप्नरेवसूरिविरचितबृक्त़ावाख्यानकमणिकोशे मूलधनकट्पनरजन्मव्यवद्ारसातादिप्रतिपादको 
विशतितमो <धिकार: समाप्त: ॥२०॥ 


&6<--&.2:57७9 
[ २१. उत्तमजनसंसग्गिगुणवर्णना धिकारः ] 


लोकव्यवहारज्ञातेन धमव्यवहारलाभादिक्रममिहितम्‌ । लाभश्रोत्तमजनसंसगांदू भवतीत्युत्तमसंसर्गिविधेयतामाह--- 
द _ उत्तमजणसंसग्गी परमगुणाणं निबंधर्ण होह । 
एत्थ पहाकर-वरसुय-कंबलसबला उदाहरण ॥२६॥ 
व्याख्या-- उत्तमजनसंसर्गि:' प्रधनजनसम्बन्ध: 'परमगुणानां'[ सर्वोत्कृष्टगुणानां ] निब्रन्धनं! कारणं 'भवति' जायते “अन्न! 
अस्मित्नर्थ प्रभाकरश्व-ब्राह्मणपुत्र: वरशुकौ च--गिरिशुकर-पुष्पशुक्ौ कम्बल-सबलौ च--श्रावकवत्सतरो ते तथोक्ता: 'उदाहरणं' 
इृष्टान्ता इति गाथावयवार्थ: ॥२६॥ भावाथस्त्वाख्यानकगम्य: | तानि चामूनि | 


२१. उक्तमज नसंसर्गिगुणवर्णनाधिकारे प्रभाकराख्यानकम्‌ १७९ 


तन्न तावत्‌ प्रभाकराण्यानकमास्यायते । तश्चेदमू-- 


सोवागावाणगमं इले व्व विलसंतमत्तमायंगे | नयरम्मि धरणितिलएु दिवायरों वसइ दियपवरों ॥१॥ 
चउदसविज्वाठाणाण पारओ रायपउरजणपुज्ो । विज्ञाजुयाणमहवा जणाण सत्वत्थ कल्लाणं ॥२॥ 

तस्स य एगो पुत्तो पहाकरों सो य तारिसपिया वि । विज्ञावियलोउजोगाण हंत ! कि कुणउ सामग्गी ? ॥३॥ 
जूय॑ रमेह धाउ' धमेह बेस समेह पयदए । न कुणइ सिक्खं खली पयदैण जमोसहं नत्यि ॥|४॥ 

तह वि हु सो जणएणं निरंतरं सिक्खविज्जइ हियत्थं | अम्मा-पिऊगमहवा हिययमवच्चे हिय॑ चेव ॥।५॥। 

भणिओ वेयमहिज्जसु इहईं पि हु जेण गोरबट्ठाणं | होहिसि वच्छ ! निरायं विडसाणं सेवणिज्जो सि ॥|६॥ 

एवं भणिओ पभणइ को पढिऊर्ण दिवं गओ ताय ? | होही ज॑ मवियव्वं विणा वि पारेणमबरं च ॥७॥ 
बुभुक्षितेव्याकरणं न भुज्यते, पिपासितैः काव्यरसो न पीयते । 

न च्छन्दसा केनचिदुदुधृतं कुलं, हिरण्यमेवाजय निप्फला: कला: ॥८॥ 

पुणरवि भणिओ जहइ वि हु बहुयं न पढसि तहा वि मह वयणा । गिण्हसु सिलोगमेगं बुज्क तयत्थं च सो य इमो ॥९॥ 
उत्तमेः सह साहत्यं, पण्डिते: सह सड्ढथा । अलुब्धेः सह मित्रत्वं, कुबाणो नावसीदति ॥१०॥ 

एवं वसणासत्तस्स जणयलच्छि च विलसमाणस्स | वच्चंति वासरा तम्स वेयकिरियाविउत्तमस्स ॥१ १॥ 

अद् अन्नया य जणओ तिहुयणसाहारणेण रोएण । अच्चंतं अभिमूओ सो य पमत्तो रमइ जूय॑ ॥१२॥ 

वाहरिओ वि हु जूएण छोहिओ भणइ एस एमि त्ति। एवं पयंपंतम्स वि पंचत्तं पाविओ जणओ ॥१३॥ 

उद्दमु भो ! तुज्ञ पिया मठ त्ति ता कुण्स तस्स मयक्रिच्चं । पभणइ निम्धिणकम्मो संपयमवि सो अजोगत्ता ॥१४॥ 
भो भो ' त॑ मह पियरं अणेण मग्गेण नीहरावेह । समगं चिय लोएणं जेणं बच्चामि पेयवणे ॥१४५॥ 
एवमजोगत्तगओड<डवहीरिओ सो मयम्मि पियरम्मि | निंदिज्जह लःब्छी वि हु सम॑ं गया जणयपुन्नेहिं ॥१६॥ 
एवमणेणं न कय॑ पिडवयणं न वि य सिट्ठलोयस्स । जाओ दुह्मण भायणमच्चंतमिमो जओ भणियं ॥१७॥ 
विदुरेप्यमपायमात्मना, परतः श्रदधतेडथवा बुधा: । न परोपहितं न च स्वतः, प्रमिमीतेडनुभवाहते5ल्‍्पघी: ।॥१८॥ 
तत्तो अनिब्बहंतो नयराओ निग्गओं सरइ पिउणों | तह वि अजोगत्तणओं न कुणइ पिउवयणसदृहण्ण ॥१९॥ 
चितइ य सिलोगमहं कि उत्तमसंगयाइकारविओं ? | को किर दोसो ? नीएहिं ताव नीयं परिकखामि ||२०॥ 

तो दिद्वपच्चओं हं गरुएहिं सम॑ तमायरिस्स।मि | हय परिभाविय नीय॑ ठक्कुरमेसी समल्‍लीणों ॥२१॥ 

विहिया य चोडदासी भज्जा तेणं तहा वरो मित्तो । तइओ तस्सेव य ठक्कुरस्स खट्टिकरमायंगो ॥२२॥ 

अह अन्नया य रज्ना वाहरिओ ठक्कुरो सम॑ तेण । पत्तो पहाकरों वि हु सो उण पंडियपिओं राया ॥२३॥ 
वत्था-55सणप्पयाणा पहदियहं भरण-पोसणं वह । पंडिच्चरंजियमणो पंचण्हं पंडियसयाणं |।२४॥ 

जाए समाणसील-व्वसणेसुं सुक्वमिइ विवायम्मि | कहमवि य दहवजोगा कस्स वि न पयट्टए एयं ॥२४५॥ 

कइया वि हु पिउपासे तेणं त॑ पढियमासि विप्पेण | ता तेण तेसि पुरओ पढियमसेसं पि त॑ च इमं ॥२६॥ 

मृगाः मृगेः सज्ञमनुत्रजन्ति, गावश्च गोभिस्तुरगास्तु रहे: । मुर्खाश्च मुर्खे: सुधिय: सुधीमि: , समानशील-व्यसनेषु सरूयम्‌ ॥२७॥ 
तो तुदट्ठेंणं रक्ना दिन्नं गामसयसंजुयय नयरं | तेण वि भणियं मह ठक्कुरस्स जीवणमिमं देहि ॥२८॥ 

तो तस्स पभावेणं जाओ सो पंवरलच्छिविच्छड्डो । तुरय-रह-जाण-वाहणसोहाभवर्ण जओ भणियं ॥२९॥ 

सोहेइ सुद्दावेह य उवभुंजंतो छवो वि लच्छीए । देवी सरस्सई पुण असमत्ता क॑ न बिनडेईं ? ॥३०॥ 
ओलग्गिऊण निवइं पत्थावे ते गया पसायपुरं । अह कम्मि वि अवराहे रुट्ट णं तेण मायंगो ॥३१॥ 

सो बज्को आणत्तो मरणाओ मोइओ दियवरेण । एगं खमह5बराहं सामि ! वरायस्स एयस्स ॥३२॥ 

तीए वि हु दासीए गब्भपभावाओ दोहलो जाओ । सुयसरिसनिद्धट्टक्कुरमऊरपोयस्स मंसम्मि ||३३॥ 





१, पठर० र०। २, असमग्गा २०। 


श्द० आश्यामकणिकोशे 


तेण बि त॑ रक्‍्खेउ' विश्न्‍नमवरस्स मंसमेईए । एवं कयाणि तेणं महोबयाराणि सव्याणि ॥३४॥ 

भोयणसमए संभरइ ठक्कुरो त॑ मयूरमनियंता । गविसावह सब्बत्तो जा कत्थ वि सो न उवलद्धों ॥३५॥ 
दीणाराणं गंठीए संठियं दंसिऊजमट्डसयं । घोसावइ नियनयरे पडहयमेसो मयूरकए ॥३६॥ 

जो कहइ मयूरसुद् सो अभयं लहइ तह य दीणारे । पच्छा नाए काहीं दुसहं सारीरियं दंड ॥३७॥ 

इय सोऊणं तीए दासीए चिंतियं कयरघाए | मह अन्‍्नो वि हु होही भत्ता गिण्हामि ता दव्बं ॥३८॥ 

इय परिभाविय छित्तो पडहो पावाए जंपियमिमीए । मह सामि ! समुप्पन्नो दोहलओ मंसाबसयम्मि ॥३९॥ 
एएणमवरमंसं दाउमसत्तेण निहयमणेण । वारंतीए वराओ मंसकए मारिओ मोरो ॥४०॥ 

तेण वि अपरिक्खियकारएणण निम्धिणसिरोमणिसमेण । तस्सेव अप्पणो खट्टिगसस्‍्स वज्को समुवणीओ ॥४१॥ 
तेणुत्तं भद्द ! मए तुम पि मरणाओ मोइओ आसि। ता मुयसु मम एत्तो वि जामि, देसंतरं दूरे ॥०२॥ 
तेणुत्त जुत्तमिमं परमेसो मित्त ? ठक्कुरो दुट्ठो | तुमए पुण अबरद्धं गरुयं ता कह मुयामि अहं ? ॥०३॥ 
“चितियमिमेण दट्ठुं माहप्पमिमाण ताण सव्वाण । उत्तममिन्हि सेवे थि द्वी ! नीयस्स पयईए ॥|४४॥ 
उबयरियं ज॑ तं पि हु एगपए च्विय कहं पि हु पलाणं ? | जइ वा नीयसस्‍्स कय॑ छारे हुणियं जओ भणियं ॥४५। 
उवयारसहस्सेण वि तिन्नि न घेप्पंति तिहुयणे सयले । वेसा अविवेयपहू दुज्ज्णलोओ तह चेेब ॥४६॥ 

सो वि हु समप्पिकणं मऊरमाभासियं नियं सामि | मणयं सलज्जहिययं सत्यि ति भणित्तु निक्खंतो ॥४७॥ 
गच्छंतो संपत्तो रयगणउरं तत्थ रयणरहराया । तस्स सुओ कणगरहोीं त॑ पासिय भणइ दियपुत्तो ॥४८॥ 

अहय॑ माहणपुत्तो तुम॑ पि गुणगेह ! रायपुत्तो सि । जइ भणसि तुज्ञ पासे अच्छामि अहं कुमारों वि ॥४९॥ 
इमिणा पुरोहियपएण पओयणं मह पुरा भवह तम्हा । सम्माणदाणपुव्वयमहमेयं संगहिस्सामि ॥५०॥ 
परिभाविऊणमेयं पभणइ त॑ भद्द ! मज्क पासम्मि | अच्छसु त॑ मह मित्तो तुह सब्ब्महं भलिस्सामि ॥५१॥ 


भणियं च-- 
पाऊण पाणियं सरवराओ पिट्टि न देइ सिहिडिभो । होही जाण कलाओ पयइ चिय साहए ताण ॥५२॥ 


इय सो सहरिसमच्छद पेच्छह तत्थ य पहाणसेट्टिसुयं । अणुदिणमेव मणोरहनामं त॑ कुणइ नियमित्तं ॥५३॥। 
अवरा वि पिंडवासे गुणगेहं नाम निग्गया वेसा | नामेण रइविलासा संगहिया सा वि घरवासे ॥५४॥ 

एवं सो तिहि वि सम॑ परोप्परं वड्ृमाणपणयगुणो । चिट्ठ३ निव्वुयहियओ सुमरंतो जणयहियवयणं ॥५५॥ 
अह अन्नया य हेडाउडेहिं दसंतराओ दो तुरया । सव्वंगलक्खणजुया समप्पिया पुहइवाल्स्स ॥५६॥ 
आरूढा तेसु कुमार-माहणा जाव वाहिउं रूग्गा | कड्ंताण वि ताणं॑ ते चलिया काणणाभिमुहं ॥५७॥ 
नायमिमे जह विवरीयसिक्खगा तयणु आंबलीहेट्टा । गच्छंतेण दिएणं गहियं आंबलूगतिगमेयं ॥५८॥ 
गुरुणो रुखखाओ तयं॑ नाणाइतिगं व पुन्नवंतेण । भवतण्हाहरणखमं परिणामसुहं च संपत्त ॥५९॥ 

तो खित्ता दुहजणयं भवकंतारं व राग-दोसेहिं । अवसेहिं तेहिं तुरण्ह5माणुसं निज्जलमरन्नं ॥६०॥ 

तो कणगरहकुमारों बाढ़ तण्हाए पीडिओ संतो । भणइ कुओ वि हु आणेह्ि पाणियं जंति मह पाणा ॥६१॥ 
धीरो होसु त्ति पयंपिझण जा तम्मि जोयइ जलूँ सो | ताव न पत्तं कहमवि ता दिल्न॑ आंबल्गमंगं ॥६२॥ 
आसायह जाव तय॑ं ता अमयकला वियंभिया कंठे । एवं बीय॑ तइयं तो पत्तो चेयणं कुमरों ॥६३॥ 

मणयं वीसत्थमणा तम्मि अरज्नम्मि जाब चिट्गंति । ता भोयण-पाणजुयं संपत्तं रायसेन्नमवि ॥६४॥ 


जओ-- 
आवदइगओ वि नित्थरइ आबयं तरह जलहिपडिओ वि। रणसंकडे वि जीवइ जीवो अणुकूलकम्मवसा ॥१५॥ 


संपत्ता नियनयरे कमेण नियनियपएसु संठविया । जणयाइएहिं सब्बे संपत्ता सगुणमाहप्पं ॥६६॥ 
इय सव्बाण वि तेसिं सिणेदसाराणमहवयइ कालो । जम्हा पवद्ठमाणा परिणामसुहा सुयणमेत्ती ॥|६७॥ 


अनन्‍मककनकमक५+»ण»»ाा-+++-कन >कल- जल 


१, ०यमिमिणा दटरटु रं० । 


२१. उत्तमज नसंसर्गिगुणवर्णनाधिकारे वरशुकाख्यानकम १८१ 


अह कइया वि पुरोहियजायाए तीए रइविलासाएु | गब्भाणुभावजणिओ संजाओ दोहझो अहमो ॥६८॥ 
रायसुयं कीलंतं दट्ट णं पंचवरिसदेसीयं | जाणइ मणम्मि एसा जइ मंसमिमस्स भवखेमि ॥६९॥ 
त॑ साहिउमचयंती संजाया दुब्बलंगिया अहियं । पूट्टे अविसिट्ट पि हु कहिय॑ कह कह्टवि त॑ पहणो ॥७०॥ 
तेणुत्तं किमसंगयमहामयं सुयणु ! पूरयिस्सामि | कीस किसोयरि ! न कहियमेत्तियकालं विणा कज्ज ॥७१॥ 
कुमरं गोविय दिल्ञ मंसमिमं।ए सुसाउरसमबरं । तो सा पूरियवंछा सुद्देण तं॑ गब्भमुव्यहई३ ॥।७२॥। 
साराविओ कुमारों भोयणसमयम्मि जाव नरवइणा | कत्थ वि य तो न लद्धो नयरम्मि गवेसिओं वेसो ॥७३॥ 
त॑ बहयरमायन्निय गणिया धणियं धसक्षिया हियण । दुहिया दुक्ियकम्मं निदिउमप्पाणयं छूगा ॥७४॥ 
बलि किज्जउ मह जम्मो कि न मया अकहिऊण पावमिमं ? | कि जीविया करिरसं भक्खिय त॑ पृत्तनररयणं ।।७५॥ 
ता पुच्छिउं मणोरहसेट्विम॒वायं करेमि क्रिंपि अहं ? | जा नरवइपासाओं मह पहणो न भवह अणत्यो ॥७६॥ 
तो गंतुणं गुज्झ॑ निवेइयं सेट्टिणो अणेणावि । पेच्छ विरूवं केरिसमावडियमिमं ? ति चिंतेउं ॥७७॥ 
धीरा होसु समग्गं सुत्थमहं काहमिह पयंपंतो । जाव न वच्च३ ता सिम्धमेत्र गंतं निवसयासे ॥|७८॥ 
भणियं सुदुक्‍्खमेददण देव ! पावं मए कय॑ एयं | ता मरिससु पसिऊर्ं अवराहं मज्क पावाए |७९॥ 
हय जाव पायवडिय। मरिसावहइ ताव सेट्टिणा भणियं । मह गेहम्मि रमंतो दद्दरपडिओ मओ कुमरो ||८०॥ 
एवं खमावंताणं दुण्ह वि निवई समागओ विप्पो | पमणह जइ सच्चमिमं मह दोसा ता मओ कुमरो ॥८१॥ 
नियगरुययाए सामिय ! मह दोसावणयणत्यमेयाणि । भुल्ल।हराणि बोल्लंति देव ! ता कुणसु ज॑ं जुत्त ॥८२॥ 
ता जायपच्चओ सो सब्वेहिं खमाविओ पयत्तेण | पमणइ जह एवमिमं तो खमियं तुह मए मित्त ) ॥८३॥ 
जेणस मज्क भवओ लाभो रज्जाइओ निरवसेसों | कि बहुणा १? मम संप्ट पविट्टमामलयमेगमिमं |॥|८४॥ 
इय वयणं सोऊणं पुरोहिओ नियमणे विचितेइ । सब्बेसि गरुयत्तं विसिसओ राइणों जेण ॥८५॥ 
सो तारिसगुणभवणं देवकुमारोवमों सुओ पढ़मो । आमलगमोज्लपरिकरप्पणाए गणिओ गुणड्ेण ॥<८६॥ 
ता सब्बहा वि सुहयं संपह मह परिणयं जणयवयणं | एवं मणयं सत्याणि जाव जायाणि सच्चाणि ॥८७॥ 
तो विज्नतो बीए दिणम्मि विप्पेणमज्ज संपरिजणो | घरभोयणकरणेणं सपसाओ होउ मह देवो ॥८८॥ 
तहविहिए विहिपुव्ब॑ भोयावे् सपरियणं राय॑ । भु्तत्ते य तत्थ वि वीसंताणं सुसत्थाणं ॥८९॥ 
केऊर-कडय-कुंडल-महरिहहर-5द्धह्वारमाईहिं । आहरिऊण कुमारं रज्नो अंके निवेसेइ ||९०॥ 
त॑ पासिऊण राया ल्ज्जाए अहोमुहो ठिओ जाब । ता भणियं पहु ! क्रिमयं हरिसट्टाणे वि हु विसाओ ॥९१॥ 
हरिसद्वाणं मह मित्त ! केरिसं ? जस्स मोल्लमबि नत्थि | तं आमलगं मोहाउमहियमहम्मेण जेण मए ॥९२॥ 
तो तेण जणयवयणं संसग्गिगयं पयासियं सत्वं । तं सोउं सथ्वो वि हु रायाई रंजिओं छोाओ ॥९३॥ 
भोत्तणं रज्जसिरिं उत्तमसंसग्गिजायबहुमाणा । संपत्ता सब्बे वि हु गुणबहुमाणेण सुगईए ॥९४॥छ॥ 
॥ प्रभाकराख्यानक॑ समाप्तम्‌ ॥६३॥ 

इृदानीं वरशुकाख्यानकमास्यायते । दद्यथा-- 
अस्ति काचिदरण्यानी विस्फूर्जत्खड्गभीषणा । सिंहनादक्ृतोत्कम्पा दुर्गा सडग्रामभूरिव ॥१॥ 
सड्डटितशुद्धवंशा विराजिगुणसक्ृता । फलाब्यविस्फुरदूबाणा धनुयष्टिरेवासमा ॥२॥ युम्मम्‌ ॥ 
तस्यां समुन्नमच्छाखे साधाविव तरो क्वचित्‌ | एका शुक्री सदाकारा समास्ते भतृसड्गता ॥३॥ 
अन्यदाउसो स्वके नीडे सुषुवे कीरयुग्मकम्‌ | सल्लक्षणं लसत्पक्षं सीतेव तनयद्वयम्‌ ॥४॥ 
जगृहे तापसेनेकस्तयोभिल्लेन चापरः । स्वक स्वक समाचार तौ ताम्यां शिक्षितौ शुक्र ॥५॥ 
अथापहत्य तत्रौच्चेरश्वेनाउ3नायि भूषतिः । त॑ दृष्ठा लात लातेति न्यगादीद्‌ मिल्लकीरकः ॥६॥ 


१, पुच्छियं ० । २, निःश्रेणीपतितः २० । ३, सपउरजणो खं ० रं० । 


श्८२ आख्यानकमणिकोशे 


नंष्ठा राजा ततः स्थानादू गतो यावत्‌ तपोवनम्‌ । तावतू तत्र जुकोवादीदेतैत मुनिपुड्वा: | ॥७॥ 
खिन्नोडतिथि: समायातो विधत्तातिथ्यमञ्जसा । ततो राजा तकच्छू त्वा तदन्तिकमशिश्रियत्‌ ॥<॥ 
अथो राज्ञा शुकः प्रष्टस््वत्समोउन्यो मयेक्षितः । परमन्तरं महद्‌ विद्यो न हेतुं सोभ्यधाच्चुकः ॥९॥ 
माताउप्येका पिताउप्येको मम तस्य च॒ पक्षिण: | अहं मुनिभिरानीतः स च नीतो गवाशनै: ॥१०॥ 
गवाशनानां स गिरः श्रणोति, अहं तु राजन ! मुनिपुद्नवानाम्‌। प्रत्यक्षमेतद्‌ भवताउपि दृष्ट, संसर्गजा दोष-गुणा भवन्ति॥ ११॥ 
॥ वरशुकाख्यानक समाप्तम ॥६४॥ 
अधुना कम्बल-सबलाख्यानक व्याख्यायते | तथ्यथा-- 
अत्थि महुरापुरीए पासजिणेसरपवित्तियधराए । नामेणं जिणदासो जिणदासी साविया तस्स ॥१॥ 
सो य केरिसो -- 
जीवाइपयत्थविऊ जिणपवयणरागरत्तमिज-35ट्री । धम्माओ न चालिजइ देवेहिं जक्ख-रक्खेंहिं ॥२॥ 
पंचहिं अणुव्व्हिं गुणव्वएहिं च तिहि वि परिसुद्धों । बहुबीय-5णंतकाइय-कम्मादाणाण वि नियत्तो ॥३॥ 
सामइयमुभयसंझ॑ चीवंदण-पूय्ं च तिकाले । अट्टमिे-चउद्दसीसु य चउव्विहं पोसहं कुणइ ॥४७॥ 
असणं पाणं पत्तं उवस्सयं सयणमासणं व॒त्थं । ओसहमाई वियरइ अतिहीणं संविभागम्मि ॥५॥ 
पढइ सुणेइ गुणेइ य एगग्गो ऋायए नमोक्कारं । तव-नियम-भावणाइसु सावगकिद्चेसु उबउत्तो ॥६॥ 
तेहिं पच्चक्खायं जाजीयं चउपयस्स सब्बस्स । गिण्हंति दहियमाइय निश्चं गोउलियहत्थाओ ॥७॥ 
जाया तिणेहबुद्धी परोप्परं तेसिमित-जंताणं । गोउलियविवाहम्मि य कयाइ सोहा कया तेहिं ॥<८॥ 
वत्था55भरणाईहिं तेहिं य तुट्ठेहिं तस्स सहृस्स | उवणीया सियबन्ना गोणजुबाणा दुबे परमा ॥९॥ 
सो भणइ मज्क नियमों परिग्गहे चउपयम्स काउ जे | ताणि पुणो तस्स गिहे बंधित्तु गयाणि सट्ठाणं ॥१०॥ 
सो वि य सड्डो चिंतइ बाहि मुक्का इमे उ लोगेहि | वाहिज्जंति चरंति य अफासुयं हरियमाईयं ॥११॥ 
तो ते गिहट्वियाणं फासुयचारीए गल्यिमुद॒एण । खाणेण य सो तेसि करेइ सब्बं पि अकखणं ॥१२॥ 
अट्टमि-चउद्दसीसुं उववासं करिय धम्मसत्थाईं । बाएइ तेसि पुरओ ते सन्नी ताणि सोऊणं ॥१३॥ 
भद्दयचित्ता जाया जद्विसं सावगो न जेमेइ । तद्दिवसं सहभावा आहारं ते वि वज्जंति ॥१४॥ 
सडस्स तेसु जाओ बहुमाणो समहिओ सिणेहो य । उबसंतप्पा एए भवियचित्त त्ति नाऊणं ॥१५०॥ 
भंडीरमणे जत्ता जाया नीया य ते अपुच्छाए | सावगमित्तेण तहिं जोएत्ता नियफिरिकाए ॥१६॥ 
अन्नस्स एरिसो नत्यि एवं सिंगारमुव्बहंतेण | अन्नन्नेहि य सद्धि धवाडिया ते य वसहेहिं ॥१७॥ 
ते य बलिद्दा छिन्ना सड्डगिहे तेण आणिउ' बद्धा । न चरंति ते य उदयं पियंति अइविहुस्सव्वंगा ॥१८॥ 
विन्नायवइयरेणं सड्डं ण य खिज्जिउ' बहुपयारं । भत्तं पद्चत्खाविय दिल्नो तेसि नमोक्कारो ॥१९॥ 
तो मरिउ सुहभावा नागकुमारा महिड्डिया जाया । उत्तमजणसंसग्गी एवंगुणकारिया होइ ॥२०॥ 
उत्तमगुणसंसग्गी जह एएसि गुणावहा जाया | तह अन्नस्स वि जायइ ता एई्दए कुणह जत्तं ॥२३॥ 
॥ कस्बल-सबलाख्यानक॑ समाप्तम ॥६९५॥ 
कंबल-सबलकहाणयमेयं बीयं तु चंदणज्ञाए | कविविरइयमेव मए गुरुअहुमाणाओ लिहियमिमं ॥२४॥ 
वेदगध्यमावहति धममर्ति विधत्ते, सद्योगतां प्रथयति प्रशमं करोति । 
कीति च शुअशरदभअरुचिं तनोति, साम्जत्यमु त्तमजनेस्तदतः कुरुध्वम्‌ |१॥ 
॥इति श्रीमदाप्तनदेवसूरिविरचिवृश्ावाल्यानकमणिकोशे उक्तमजनसंसर्गिगुणवर्णन 
पएकविशतितमो5घिकारः समाप्त: ॥२१॥ 
6८-59 


१. एतदाख्यानकमणिकोशकत्‌श्रीनेमिचन्द्रसूरिविरचिते प्राकृतमह्ावीरचरित्रे इत्यर्थः । 


[ २२, इन्द्रियवशवत्तिप्राणिदुःखवर्णनाधिकारः ] 
कुसंसर्गि-सुसंसगिवशाद्‌ दोष-गुणावभिहितौ । कुसंसर्गिदोषश्रेन्द्रिययवशगानां भवतीत्यतो गुणस्थितैरपि तद्विश्वासो न 


विधेय इत्यमुमथंमभिधित्सुराह-- 


वीससियव्वं न य इंदिएसु तव-नियमसुद्डिएहिं पि । 
जह उवकोसगिहगओ महातव्स्सी वि संखुहिओ ॥२७॥ 


व्याख्या --'विश्वसितत््यं' विश्वास: करतंव्य: “न च' नैव “इन्द्रियेषु' इन्द्रियविषये[पु] तपो-नियमसुस्थितैरपि आस्तामपरे: 


इत्यपेरथ: अन्नार्थ | दृष्टान्ताना(न्तमा).ह--“यत्‌' यस्मात्‌ कारणाद 'उपकोशागृहे' कोशालघुभगिनिवेश्मनि “गतः” स्थित: 'महातपस्थयपि' 
विक्ृष्टतपश्चरणशोषितो 5पि 'संक्षुमित:' धर्मात्‌ स्खलित इत्यक्षरार्थ: ॥२७॥ 
भावाथ स्त्वाख्यानकगम्यः । तच्चेदम्‌--- 


जओ-- 


तथा--- 


अबरं च--- 


१. ०रकीडो रं० | 


नंदंतयम्मि नवमम्मि वद्टमाणम्मि नंदनिवदृध्मि | कप्पयवंसपभूए सयडाले मंतिणि मयम्मि ॥१॥ 

तह पव्वद्यम्मि पवित्त-थूलभद्दम्मि थूलभद्दम्मि | संभूयविजयपासम्मि तम्मि गच्छेम्मि खमगतिगं ॥२॥ 

एगो सिंहगुहाए सप्पबिले मंडुकासणे तइओ । चउमासियम्मि नियमे एएहिं तिहिं वि पडिवन्ने ॥३॥ 
चिरपरिचियाए सरसाए गाढपेमाणुरायरत्ताए । सिगारकोवियाए रूवाइगुणेहिं अहियाए ॥४॥ 

कोसावेसाए गिह करणजयद्टाए निश्चभुत्तीए | विहियपहन्ने सिरिथूलभद्दसाहुम्मि पज्जंते ॥५॥ 

गुरुपडिवरत्ति दटठुं समच्छरो बीयवरिसयालम्मि | सीहगुहाइत्तमुणी आगच्छट वेसभवणम्मि |।६॥ 

तीए भइणी भणिया तह खोहसु जह न होइ वयभंगो । तीए कडक्खविक्खेवमोहिओ जाव सो खुहिओ ॥७॥ 


उप्पयड गयणमग्गे रुंजड कसिणत्तणं पयासेड । तह वि हु गोब्बरईडो न पावए भमरचरियाईं ॥८॥ 


अहो ! का काकानामहमहमिका हंसविहगे: ?, सहामषे: सिंहेरिह हि कतमो जम्बुकतुकाम्‌ ? । 

बत ! स्पधो कीहक्‌ कथय कमले: सेवलतते: ?, सहा5सूया सद्ठिः खछु खलजनस्यापि कतमा ? ॥९॥ 
तीए जहा पेसविओ कंबलरयणस्स जायणनिमित्त | पाउसकाले नेपालविसयनरनाहपासम्मि ॥१०॥ 

त॑ जह कंबलरयणं समप्पियं तीए जह नियंतस्स । खित्तं असुइद्भराणे सोयंतो तं च सिक्खविओ ॥११॥ 
भयवं ! त॑ सुइृदेहों सीलालुंकारभूसिओ सययं । मह असुइसरीरवसा तुम पि एयारिसो होसि ॥१२॥ 
ता तं एयं सोयसि न उगो गुणरयणरुइरमप्पाणं । ता इयगए वि भयव॑ संभरसु पवित्तनियपयवि ॥१३॥ 


सील सुनिम्मलु दीहकालु तरुणत्तणि पालिउ, भाण-5ज्कमयणिहिं पावपंकु तवचरणिहिं खालिउ। 

हय हालाहलविससरिच्छ विसयास निवारहिं, उज्जलबन्नु सुबन्‍्नु धम्विउ म॑ फुकईं हारहि ॥१४॥ 
अब्मसिठ वीरपइन्नाण वरु, आवज्जिड मुणिगुणहं गणु | ता संपह उवसमि धरहि मणु, आवइ तुरिउं जर-मरणु ॥१५॥ 
ता मुणसु भी महायस ! इंदियवसगस्स अत्तवियलस्स । सिरिथूलभद्दमुणिणा का तुह सह तेण समसीसी ? ॥१६॥ 
पेच्छसु मह भइणीए सोहग्गमग्बणीए रह वियड्राए | पयडियमयणवियाराए पददिणं दिढपइन्नो सो ॥१७॥ 
वाओलीए मंदरगिरि व्व निकंपक्राणथिरचित्तो । तिलतुसमेत्तं पि हु नेय चालिओ अहह ! स महप्पा ॥१८॥ 
त॑ पुण मए वि अहिट्वगुणसरूवाएण बोहिओ एवं | ता पुरिसाणं पच्चक्खमंतरं दीसए गरुयं ॥१९॥ 


3-3 >->-लज+स-नन«->-जक»म-- पका > नामक. 


श्ध्छ आख्यानकमणिकोशे 


समरे मरंति जलणे विसंति निवर्डति गिरिसिरग्गाओ | जे उण करणाणि जिणंति तिहुयणे ते जणा विरछा ॥२०॥ 
जम्हा-- 

जाण रमणियणभमुहाधणुनिम्गयसियकडक्खभन्लीहिं । सीलकवयं न भिन्‍ने नमो नमो ताण वीराणं ॥२१॥ 

ता भद्द ! संपय्य पि हु सुगुरुसयासम्मि वच्च दुच्चरियं | आलोइऊण सम्मं संजमभारं समुन्बहसु ॥२२॥ 

इय तीए सिक्खविओ भट्टपहन्नो क्लिकखवयणों सो । अणुसासिओ सगुरुणा पयडियसल्लो वयं चरइ ॥२३॥ 

तह सब्बं नेयव्व॑ं आवस्सगविवरणाओ वित्थरओओ । इह गंथगोरवभया वित्थरओ नो मए भणियं ॥२४॥ 

॥ उपकोशाग्रहगततपस्थ्याख्यानक समापु्तम ॥६६॥ 
स्थान्मतिः--इन्द्रियाणां समीहितपूरणेन सुखितस्य पूवंदोषासम्भव इति एतदपि नास्ति, यत आह-- 
जो होह इंदियवसो सुहमप्पं तस्स दुक्खमहबहुय॑ । 
भद्दा-माहुर-निवसुय-नराय-सुकुमालियाणं व ॥२८॥ 
अस्या व्याख्या--'यः” मूढ़: प्राणी 'भवति' जायते 'इन्द्रियवश:' करणपरतन्त्र: 'सुखं' शर्म 'अल्पं' स्तोक॑ 'तस्य! 

इन्द्रियवशगस्य “दुःखं' तद्विपरीतं 'अतिबहुक' प्रभूतम्‌। दृष्टान्तानाह-भद्रा च-श्रेष्ठिभायों माथुरश्च-मथुराभवों वणिक्षतनयः नृपसुतश्च 
राजपुत्रों गन्धप्रियकुमारः नरादश्व-नरमांसभक्षकों नृप: सुकुमारिका च-नृपभायां तास्तथोक्तास्तासामिव इत्यक्षरा्थ: ॥२८॥ भावाथे- 
स्वाख्यानकेभ्योडवसेय: । तानि चामूनि । 
तत्नापि तावत्‌ क्रमागतं भद्राव्यानकमभिधीयते । तथ्चेदम--- 

आसीह वसंतपुरे छंदम्मि व पवरजइसमाइन्ने । नरगणकलिए बहुवित्तसंजुए पयपहाणम्मि ॥१॥ 

अणुसरियविबुहमग्गो पुव्वाभासी पहाणसत्तिजुओ । धणनाम सत्थवाहों निवसइ अणुहरियद्विसयरों ॥२॥ 

पयईए बुद्धिजुया सुपच्चया सुस्सरा य गुणकलिया । तस्स य भद्दा भज्जा सुपया वायरणवित्ति व्व ॥३॥ 

अह अन्नया य धणओ भह्दू मोत्तण निययगेहम्मि । अत्थोवज्जणकर््जे संचलिओ अवरदेसम्मि ॥४॥ 

तद्दासीओ अन्नम्मि वासरे हड्ठमज्कयारम्मि | कज्जेण गया केणवि उस्सूराओ पडिनियत्ता ॥५॥ 

-अंबाडियाहिं ताहिं भणियं मा कुप्प सामिणि ! तमज्ज । जेण निमित्तेण ठिया इत्तियवेलं तयं सुणसु ॥६॥ 

नामेण पृष्फचूलो महुरसरो मुणियगीयविज्नाणो | नियगीयपरवसीकयअसेसपुरनारि-नरनियरों ॥७॥ 

सो गायंतोी दिट्ठों कलकंठो विरहिविहियउक्कठो । तग्गीयपरवसाणं जाया अम्हाण वेल,त्ति ॥८॥ 

त॑ नियुणिऊण तत्तो पमणइ भद्दा कया वि अम्हं पि। दरिसियव्वो त्ति पयंपियम्मि त॑ं ताहि पडिबन्नं ॥९॥ 

अह अन्नदिणे कत्थइ पारद्धा देउले महाजत्ता । नियदासीहिं समेया समागया तत्थ भद्दा वि ॥१०॥ 

एत्तो य पुप्फचूलो सयलं रयणि पि गाइउं खिन्नों | देवउलपिट्विमाए चिट्ठह जा निब्भरं सुत्तो ॥११॥ 

कुणमाणाए पयाहिणमेसो भद्दाए दंसिओ ताहिं। सो एस पुप्फचुलो सामिणि ! गंधव्विओ सुयह ॥१२॥ 

दट्ट ण तं विरूव॑ं कसिणं उद्धंतुरं कविलकेस | पभणइ भट्दा जस्सेरिसा5गिददे को गुणों तस्स ? ॥१३॥ 

इय एवं जंपंती उब्बिग्गा तम्मि सा विरूवम्मि । निद्टीविऊण तत्तो तद्काणाओं गया सगिहं ॥१४॥ 

पच्छा तप्पुरिसेहिं निवेइए तीए वहयरे तस्स । तो सो कुविओ विरइय धणचरियं गीयबंधेण ॥१५॥ 

जह भद्दाए नियगिहं भलाविउं परियणेण सह चलिओ । जह अवरदेसनरवहपसायदाणेण लद्धजसो ॥१६॥ 

विढवित्तु भूरिदव्वं नियदेसं पह जहा पडिनियत्तो । जह नियगेद्दे पविसइ तह गायइ महुरमेसा वि ॥१७॥॥ 

पियविरहजलणजालाकरालिया हरियहिययवावारा । तग्गीयसवणविव्रसा जाणइ किर एड मह भत्ता ॥१८॥ 

पविसद गिहम्मि ता जामि सम्मुहा इय विगष्पियं तरसा | उवरिमतलाओ मेज्नइ विवसा सब्बंगमत्ताणं ॥१९॥ 

ताव सहस त्ति पडिया मुक्का पाणेहि पुप्फचूलो वि । तज्जीवियं व घेत्तु नष्टी अन्नत्थ चोरों व्व ॥२०॥ 

॥ भद्गवाल्यानके समाप्तम ॥७॥ 


२२, इन्द्रियवशवर्शिप्राणिदुः:खबणेनाधिकारे नरादाख्यानकम श्प्श्‌ 


अधुना माथुराख्यानकस्यावसरः, तच्च भायद्टिकाल्यानके भणिष्यते। अतः क्रमप्रापं उपसुताख्यानकमारभ्यते । 


यथा--< 


नयरम्मि वसंतपुरे नवसंतपुरे रणंगणेक्रसो । आसि नरसीहराया रायायवसियजसप्पसरो ॥ १॥ 

तस्सा55सि पढमकुमरों जणियं भुवणम्मि जेण अच्छरियं । जणमेगमुहं काउं नियगुणगहणे बहुमुहं पि ॥२॥ 
सव्वत्थ वत्थुजायं जं जं पेच्छह स जिग्घए त॑ पि। इद्ठा-डणिट्रसु सथा राय-विराए कुणइ कमसो ॥३॥ 
नाऊणअचासत्ति सिम्घंतो गुरुषणेण सिक्खविओ | एवं अदृप्पसंगो न जुज्जए वच्छ ! तुम्हाणं ॥९॥ 

मा कुणसु दुगुंछमसोहणम्मि मा सोहणम्मि अणुरायं । जम्हा दुन्षि वि जीवाण कारणं कम्मबंधस्स ||५॥ 
अवरं च सुगंधं पि हु कप्यूराई सरीरसंसग्गा | जायइ दुगंधरूव ता जुज्इ न इह अणुराओं ॥६॥ 
खरमडयगंधवासिय नलाइवरसुरहिवत्थुसंजोगा | जायइ सुरहिसख्बबं तं पि न विउसा दुगुंछंति ॥७॥ 

ता पोग्गलपरिणामम्मि एरिसे वच्छ ! होसु मज्ञत्थो | मा होउ [तुह] अगत्थो क्या वि असोहणम्बाए ॥|८॥ 
एबमणुप्तासिओ बि हु मुरू्ि न हु मुयह गंधवसण्ण सा । भमइ य जिम्बंतो परिमलट्ठ वत्यूणि सब्वत्थ ॥९॥ 
तो सत्बत्थ वि जाय॑ नाम॑ गंधप्पिओ त्ति कुमरस्स | कुणइ य आरुहिऊर्ण बहुसा वि हु गरुयनाबाए ||१०॥ 
मणहरसलिलंदोलणकेलिं कल्लोलिणीए गंतृूण | समवयवयंसबिलसिर विलासिणीवग्गपरयरिओं ॥११॥ 

अह से सवक्विजणणी त॑ बिलसंतं विलोइउं पावा । चितइ रज्ज होही इमस्स न हु मज्क पुत्तत्वय ॥१२॥ 

ता मारिज्जउ एसो त्ति चितिउं लहुपुडे विस बद्धं । उस्सिंघियमेत्तेण वि मरणं संयज्जए जेण ॥१३॥ 

तो त॑ समुग्गयम्मि मंजूसासत्तगस्स मज्कम्मि | तं पि हु पक्खिविऊर्ण पव्राहिया उवरिमे तिव्वे ॥१४॥ 
तत्तो तरंगिणीए तरमाणी दिट्विगोयरं पत्ता | कुमरस्स तओ तेणं तं विश्मुस्सिधियं घेतु' ॥१५॥ 
गुरुविसमाहप्पेणं खणेग कुमरो परव्वसो जाओ । तत्तो विसभीएहिं व मुक्को पाणहिं सहस त्ति ॥१६॥ 


॥ नपसुताख्यानक समाप्तम ॥६८॥ 


अधुना नरादाख्यानकं व्याख्यायते । तथ्थथा-- 


रेड 


अत्थि सुसीमा नयरी नयरी संकुणइ कावि जीए सम॑ | सयय॑ं सुत्यथियजणया जणयाइजणाण कयपूया ॥१॥ 
जो न पडिवन्नराओ गुणेसु पत्तिय स भन्नह नराओ । पायडअवन्नराओ तं राया रक्खइ नराओ ॥२॥ 

जम्हा उ सो नरं माणुसं ति अत्तित्ति भक्खद निसंसो । तेण नरायं त॑ वच्जरंति अन्ने उ सोदासं ॥३॥ 

सो पयईए वसणी विसेसओ मंसलोलुयाकलिओ । मंसं च सूययारप्पमायओ केण वि हियं से ॥४॥ 

तेण वि भयभीएणं माणुसमंसं सुसंभियं काउं । परिवेसियमस्सा5डसाइयम्मि पुट्टो कुओ एयं ? ॥५॥ 

तेण वि निब्बंधेणं निवेशणु तम्मि चेव नरमंसे । रसलोलयाए लुद्धा एगेगं माणुसं हणइ ॥६॥ 

तस्स भएणं सब्वो नायरकोओ पलाइड रूगो | संकलियाए निशद्धों माणुसमेगं समप्पेह ॥७॥ 

एवं बच्चर कालो कयाइ पउरेहिं मंतियं एयं । एसो र्रखसपयई ता णण न कज्जमम्हाणं ॥८॥ 

रज्जे निवेसिऊण तस्स सुययं सम्मएण सब्वेसि । अडवीए पक्खित्तो सो मत्तो मज्जपाणेणं ॥९॥ 

तत्थ विसेसाहारेण धम्मरहिओ घिईं अलभमाणो । पंथे माणुसमेगं मारइ परिचत्तमज्ञाओं ||१०॥ 

अह अन्नया य तेणं भुक्लिय-तिसिएण साहुणो दिद्ठा । उद्धाइओ य ते वि हु भक्खिउकामो दुरायारो ॥११॥ 
तो ते घेत्त॑ सागारमणसणं ठन्ति काउसग्गम्मि | न तरइ उग्गहभूमि तेसिमइक्कमिउमहममई ।॥१२॥ 

तत्तो विलक््खवयणों पडिबोहकए मुणीहिमालविओ । भो भो सुणमसरु महायप्त ! पंचिदियजियवहसमुत्थ॑ ॥१३॥ 
मंसं विसिट्वलोयाण गरहियं गरुयपावसंजणयं । सामन्नेणं सब्व॑ माणुसमंसं विसेसेणं ॥॥१४॥ 


श्ध्दे आश्यानकमणिकोशे 


यत:- 
स्‍व॑ मांस परमांसेन यो वधयितुमिच्छति । वृद्धि न लभते सोडपि यत्र यत्रोपपद्यते ॥१५॥ 
आयुःक्षयो भवति तस्य दरिद्रता च, नेवान्यजन्मनि भवेत्‌ कुल-जातिलाभः । 
मांसाशिनो हतमतेविंफलक्रियस्य, स्यान्नीचकमंकरणोदरप्‌र णं च ॥१६॥ 

तथा-- 


मां स भक्षयिताउमुत्र यस्य मांसमिहादम्यहम्‌ | एतन्मांसस्य मांसत्वं प्रवददन्ति मनीषिण: ॥|१७।। 
त॑ सोऊण नराओ पडिबुद्धों कुगबइगमणजायभओ । सह मंसभक्खणाओ विणियत्तो जायधम्मरुई ||१८॥ 
॥ नरादाख्यानक॑ समाप्तम ॥६६॥ 


इदानीं सुकुमारिकास्यानकं व्याख्यायते । तद्य था-- 


चंपापुरीए राया जियसत्तू सत्तुसमरसंहारो | सरयरयणियरकंता कंता सुकुमालिया तस्स ॥१॥ 

तो तीए कमलकोमल्सरीरफासेण मोहिओ अहियं । अणवरयसुरयवाबारहरियहियओ महाराया ॥२॥ 
अवमन्निय अवरोहणरमणीनियरो विधुक्ककरिकीलो । परिचत्तवरत्थांणो दूरीकयमंतिपउरजणो ।।३॥ 
अगणियजणाववाओ परिहरियहिओवएससंघाओ | अवगन्नियगुरुवयणों अवहत्थियसत्थपरमत्थों ||9॥ 

अगु णियकलाकलाबो अदिल्नबंघुयणदंसणालाबो । परिचत्तधम्मकम्मी अवमाणियमित्त-पुत्तगणों ॥५॥ 
अकलियनियबलमाणो अजणियबंदियणदाणसम्माणो । अन्नायसत्तुमंडलवावारों अकयकायव्बों ॥६॥ 

कि बहुणा भणिएणं ? तश्चित्तो तम्मओ व्व संजाओ । तप्फासलछालसो सो निग्गच्छइ नावरोहाओ ॥७॥ 
राया मयणमहागहगहिओ त्ति असेससत्तृसंघाओ | चंपेइ चउप्पासं तद्देसं विहियसन्नाहो ॥८॥ 

खत्ते खणंति चोरा धाडि पाडिति चरडचक्काणि | बंदंति वंदियगणा वणियजणं दविणलुद्धमणा ॥९॥ 

तोडंति जुयइ कन्‍ने जूयारा कणयकुंडलनिमित्त' । गंठिच्छेया गंठिं छिंदित्ता क्त्ति नासंति ॥१०॥ 

सेवंति पारदारियनियरा निस्संकमेव पररमर्णि | कि बहुणा ? सब्बा वि हु नयरी असमंजसा जाया ॥११॥ 

न य कोइ सुहं निद्दं पावह भुंजह न कोइ सोकक्‍्खेण । एगागी न य कोइ वि नयरीमज्कम्मि परिभमई ॥१२॥ 
पेयवर्ण व सुभीम॑ पुरि पछोएड विमलमइमंती । चिंतह अहो ! विणट्टं रज्ज ता कीरठ किमेत्थ ? ॥१३॥ 
परिहरद्द विसयवसणं न निय्रो सुदरं पि पमणिओो वि मया । ता दिज्वउ रायसिरी कुमरस्स विचितिउ' एवं ॥१४॥ 
पभणइ तो एगंते कुमरं मंती जहा महाराया । नीइनिवारियविसयासत्तों हारेइ रज्जसिरिं ॥१५॥ 

तुम्हारिसा वि जइ किर निययकुलक्षमसमागयं रुच्छि । समुविक्खंति तओ सा गिण्हेयव्वा रिऊहिं सुहं ॥१६॥ 
तो निव्वासिय पियरं कुमार ! समलंकरेसु रायसिरिं। जेण तुह पायपायवछायाए सुहं बसइ लोगो ॥१७॥ 

जं भणइ महामंती करेमि तं॑ पभणिए कुमारेण । मंती पहिद्नहियओ महापसायं पयंपेइ ।॥१८॥ 

तत्तो अप्पायत्ता कुमरेण कया समग्गसामंता । राया वि तीए जुत्तो जोगजुयं पाइओ मइरं ॥१९॥ 

तो मयमत्तों सुत्तो उप्पाडित्ता निउत्तपुरिसेहिं | देवीए जुओ मुक्को पल्‍्लंकठिओ महारज्ने ॥२०॥। 
रुरु-रोज्ञ-सीह-सम्बर-सदुदूलविमु क्घो रवॉकारे । बद्ध॑ं च तस्स वत्थे पत्तं एवं लिहेंऊण ॥॥२१॥ 

वसणासत्तो त्ति तुमं कलिऊणं सयलनथरलोएण । मुक्को देवीए सम॑ एयम्मि महाअरजन्नम्मि ॥२२॥ 

ता एये नाऊण्ं न हु वलियव्व॑ तएु इओहुत्त | "९१" ******' य नाउं कुण जहाजुत्त ॥२३॥ 

मयरामयपज्ज॑ते पच्चागयजीविओ व्व नरनाहो । उबलद्धचेयणो सो पेच्छइ घोर महाअड्विं ॥२४॥ 

कि इंदियालमेयं इय चितंतेण पत्तयं दिट्ट । उच्छोडिऊण वायइ अबगयतत्तो तओ राया ॥२५॥ 

जंपइ य पिए ! चत्तो त्ति अहममच्चेण दुद्नचित्तेण | ता मज्क रायलच्छी को गिण्हह मइ जियंते वि १ ॥२६॥ 


२२. इन्द्रियवशवर्शिप्राणिदुःखबणनाधिकारे सुकुमालिकालख्यानकम्‌ श्८७ 


इय जंपिऊण आबडद्धभामभिउडीए भासुरनिडालो । आयडियकरवालो समुदट्ठटिओ जाब तो देवी ॥२७॥ 
जंपइ न जुत्तमेयं नरिंद ! चउरंगबलबिहणेण । तो भणइ पुहइपालो कि कायब्बं॑ पिए ! इरण्हि ? ॥२८॥ 
सेवेमि न किपि निव्र जम्हा सन्वेहि सेविओ अहय॑ । न हु उत्तमाण सेवाविडंबणा जुज्जइ कया वि ॥२९॥ 
ता गच्छामोी कत्थइ इय भणिउं जाव अडविमज्ञम्मि । गच्छम्ति तओ देवी सुकुमालत्तेण परिसंता ॥३०॥ 
जाया अईव तिसिया तो राया सिसिरतरुतछे मोत्त' | नीरनिरिक्खणकज्जे भमिओ सत्वत्थ न हु लद्धं ॥३१॥ 
तो नियभुयदंडसिरं छित्तु छुरियाए तस्स कीलालं । अच्छीकाउं तं॑ मूलियाए पाएइ पुडयगयं ॥३२॥ 

तत्तो छुह्दियाए इमाए अवरमाहारमलहमाणो से । नियऊरुमंसखंडाइं छिंदिं भुंजिऊण दवे ॥३३॥ 
संरोहिझण ऊरूवणंपि संरोहणीए मूलीए | तो ससमंसछलेणं नियमंसं देइ देवीएण ॥३४॥ 

पत्ताइं तओ गंगातरंगिणीतीरपवरनयरम्मि । ता देवीआभरणेहिं नरवई कुणइ वाणिज्ज ॥३५॥ 

अह अन्नदिणे देवी पुहइ॒चइ' भणइ अज्जउत्त ! अहं | तइया सहियणकलूगीयवेणुबीणाविणोएहिं ॥३६॥ 

न मुणंती गच्छंतं पि काल्मेगागिणी कहं इण्हि । चिट्ठामि ? क्रिंपि ता कुण विगोयणत्थं मह सहाय॑ ।॥३७॥॥ 
तो तीए विणोयकए ठविओ पंगू निवेण नियभवणे । कागलिगेयं गायइ किन्नरसद्देण सो तत्थ ॥३८॥ 
कहइ य कामकहाओं बहुप्पयारं तओ इमा तम्मि । गाढमणुरायरत्ता भत्तारं मारिउं महइ ॥३९॥ 
उज्ञाणीए राया गंगाए गओ अहडन्नदिवसम्मि | ता झत्ति तीए खित्तों वीसत्थो वारिमज्मम्मि ॥9०।। 

तो भुयदंडेहिं तरंतएण लद्धं तरंडयं तेण । तरिउः तरंगिणीनियडमागओ कस्स वि पुरस्स ॥०१॥ 

तो परिसंतो सुत्तो महल्लकंकेल्लिरुक्खछायाए । न दुह्मा वि तस्स छाया ओसरइ खणं पि पुन्नेहि ॥०२॥ 
एत्थंतरे अपुत्तो पुहइ॒बई तम्मि पुरवरम्मि मओ । अद्दिवासिओ तुरंगो मंतीर्टि विसिद्ठमंतेहिं ॥०३॥ 

तो तिय-चउक्क-चचर-रच्छामुह-चउमुहे परिब्भमिउ' । पत्तो नरिंदपासे उद्धुइ पिटष्टि चड॒इ राया ।४४॥ 

तो मंतिमंडलेसरसामंतप्पमिइपडरलोएहिं । पणमिज्जंता पत्तो रायउलं तत्थ अहिसित्तों ॥४५॥ 
पुव्विल्लरायपट्टे जाओ अइउग्गसासणो राया । सुकुमालिया वि एत्तो भक्रिखिय निस्सेसनिवदविणं ॥|०६॥ 
तत्तो चोल्लयखित्तं पंगुं काऊण निययसीसम्मि । भिक्‍खं परिव्भमंती जणेण पुच्छिज्जए एवं ॥०७॥ 

कि तुज्ञ पई पंगू ? सा जंपइ देवबंभणाईहिं । मह दिल्नों भत्तारो परिणीओ तो मए एसो ॥०८॥ 

सील परिपालंती सेवेमि इमं पि इय पयंपेइ । एवं परिब्ममंती पत्ता जियसत्तुनयरम्मि ॥०९॥ 

पडिमंदिरं पि भिक्‍खं भमेह गायइ य पंगुणा सरद्धि । रायस्स तओ कहिय॑ केण वि एयारिससरूवं ||४०॥ 
त॑ हक्कारिय पुच्छइ जबणीमज्झट्टिओ महाराया । असरिसरूवजुयाए तुह कि ए्यारिसो भत्ता ? ॥५१॥ 

सा जंपइ देव ! अहं पइव्वया तो इमेण ददएण । पालेमि निययसीलं भणियमिणं तो नरिंदेण ॥५२॥ 
बाहो रुधिरमापीतमुरुमांस च भक्षितम्‌ । गह्लायां प्लाबितो भत्ता साधु साधु पतित्रते ! ॥५३॥ 

सोउ' नरिंद्वयणं नाया हं राइण त्ति लुज्जाएं। जाया अहोमुही सा तो भणियं मंतिबग्गेण ॥५४॥ 

सामि ! किमेयं ? अम्हाण कोउयं कहसु भणइ तो राया । अल्मेईए कहाए पावाए मंतिणो वि पुणो ॥५४५॥ 
पमरणंति अकहणीयं जइ नो ता कहसु देव ! सुपसायं । ऊहइ तओ नरनाहो वुत्तंतं तीए ताण पुरो ॥५६॥ 
त॑ सोऊणममच्चा भणंति पावाए पेच्छ जं विहियं | विवुहजणनिदणिज्ज उवहसणिज्ज अमित्ताण ॥५७॥ 
परिहरिय पुरिसरयणं अहिणववरकुसुमबाणअभिरूव॑ । राय॑ कि अणुरत्ता पावा पंगुम्मि गुणहीणे १ ॥५८॥ 
अहह ! अहो ! अविवेओ अहह ! महापावपरिणई गरुया । जं गरुयकुलुप्पन्ना वि कुणइ एयारिसमजुत्त ॥५९॥ 
दंडो नारीण विसज्जणं ति मंतीहिं नीइमणुसरिउं । देसस्स समग्गस्स वि पावा निद्धाडिया तेहिं ॥६०॥ 


॥ खुकुमालिकाण्यानक॑ समाप्तम्‌ ॥७०॥ 


श्ष्८ आश्यानकमणिकोशे 


जह एएहिमसज्झ॑ इंदियवसगेहिं पावियं दुक्खं । तह अन्नो वि हु पावह ता तेसि निग्गहं कुणह ॥१॥ 
रम्यं यदक्षजसुखं परिकल्पयन्ति, मूढास्तकद व्यसन-विप्नशतोपगूढम्‌ । 
कृपोपरूढवटपादपपादल अमत्योपलब्धमधघुबिन्दुसमानमल्यम्‌ ॥।२॥ 


॥ति भ्रीमदाम्नरेवसूरिधिरचितवृत्तावास्यानकमणिकोशे इन्द्रियवश प्राणिदुः:ख- 
वर्णनो द्वाविशतितमो5घिकार: समाप्तम ॥२२॥ 


अदा कर थक 


[ २३. व्यसनशतजनक्युवत्यविश्वासवर्णनाधिकार: 


इन्द्रियवशगस्य सुखमल्पमित्युक्तम्‌ । तद्गबश्यता च॒ प्रायः प्राणिनो युवतिभ्यो भवति, ताश्व दःखहेतुत्वाद विश्वासस्थानमेव 

न भवन्तीत्येतदाह--- 
जुबईसु न वीसासो कायव्वों पयहकुडिलहिययासु । 
नेउरवंडिय-दत्तयदुहिया-भावद्टियासूं व ॥२६॥ 

अस्या व्याख्या--'युबतिपु' महेलासु “न! नेव 'विश्वास:' हृदयसमपंणं 'कतंव्य:' विधेय: । कीदशीषु 'प्रकृत्या” स्वभावेन 
कुटिलहृदयासु” वक्रचित्तासु। दृष्टान्तानाह--नुपुरपण्डिता च-श्रेष्ठिबधू: दत्तकदुहिता च-दत्तकश्रेष्ठिछुता भावद्टिका च 
श्रेष्ठिमुतैव तास्तथोक्‍ता: तास्विवेत्यक्षरा्थ: ॥२९॥ भावार्थश्वासामप्याख्यानकगम्यः | तानि चामूनि । 
तन्न क्रमाप्राप्तं तावद्‌ नूपुरपण्डिताख्यानकमारभ्यते । तश्चेद्मू-- 

नामेण वसंतपुरं नयर॑ सुपसिद्धमत्थि जम्मि सया | लयपरिकलिओ वि हु अल्यसंजुओ गाइणीसत्थों ॥१॥ 

तम्मि य असंखसंखो पठरगओ णेगपवरबलभद्दो । उवहसियपउमनाहो जियसत्त नाम नरनाहों ॥२॥ 

परिवसइ देवदत्तो सेट्टी तम्मि उ विसिद्ठगुणजुत्तो । सोहग्ग-रूय-लायन्नगुणनिही तस्स पवरसुया ॥३॥ 

अबरी कुमारनंदी निवसइ मइविहवलद्धमाहप्पो | रूवेण पंचबाणो तस्स सुओ पंचनंदि त्ति ॥४॥ 

परिणीया सा तेणं महाविभूईए नेहसारेण । तीए सह विसयसोवर्ख उवभुंजइ निश्चमणुरत्तो ॥५॥ 

अह अज्नया कयाई ण्ह्ाणत्थं सा गया नई कहवि । मज्जंतिं त॑ दट्ठु अह एगो चिंतए तरुणा ॥६॥ 

सो चिय जयम्मि धन्नो जो एयाएु सपपखगुणकलिओ । अहरदुलूवयणकमले छप्पयलीलं समुव्बह३ ॥७॥ 

सो चिय जयम्मि जाओ गुणकलिओ निम्मलो वि सो चेव | जो एयाए विलसइ विउले हारो व्व थणवद्टे ॥८॥ 

एवं विचितयंतो निव्भरअणुरायरंजिओं अहिय॑ | तीसे अणुरायपरिक्खणत्थमेसो इम॑ं पढह ॥९॥ 

सुण्हायं ते पुच्छह एस नई मत्तवारणकरोरु ! | एए य नईरुकखा अहं च पाएसु ते पडिओ ॥१०॥ 

तं सोऊणं गाह वंतसकडक्खचवखुबाणहि । चिघंती त॑ तरुणं वियद्वु याए इमं पढइ ॥११॥ 

सुभगा हुंतु नईओ बिरं च जीवंतु जे नईरुक्खा । सुण्हायपुच्छगाणं घत्तीहामो पियं काउ' ॥१२॥ 

तब्भाव॑ नाऊणं तग्गेहाईण जाणणनिमित्त । तीए सह आगयाणं डिंभाण फलाणि सो दाउ' ॥१३॥ 

पुच्छइ गेहाईयं ताणि वि साहंति सुद्धभावा उ। त॑ सब्बं तप्पुरओ तत्तो सो चितए एवं ॥१४॥ 

तब्बिरहजलणजालाकरालकवल्ज्जिमाणमच्चत्थं । कह निग्ववेमि तीए संगमसलिलेण अत्ताणं ? ॥१५॥ 

इय संगोवायमिमोी चितंतोी अहियमुवयरेऊर्ण । पेसइ पुव्वपरिश्चियपव्बाइ तीए गेहम्मि ॥१६॥ 

सा तत्थ गया दिद्रा इंती भिसयाइवावडकरम्गा । काऊण तप्पणामं दाऊणं आसणं तत्तो ॥१७॥ 

पुच्छद भगवह ! कि दिद्वमेत्थमच्छरियमसरिसं किंपि ? | सा भणह दिटद्टमामं वच्छे ! एत्थेव नयरम्मि ॥ १८॥ 

दहु आह कहसु भयवइ ! अच्छरियं मज्क जं तए दिद्वं | पव्वाइयाए भणियं सुदंसणो नाम सेट्टिसुओ ॥१९॥ 


२३. व्यसनशतजनकयुयत्यविश्वासवणेनाधिकारे नृपुरपण्डिताल्यानकम्‌ श्पध्‌ 


नयजुत्तमहियमसरिसमच्छरियसरू [ग्न्थागअ्म्‌ ७० ० ० ]बमइकलाकुसलं | पावेहि तयं वच्छे ! दुहत्थमणुरत्तभत्तारं ॥२०॥ 
तप्पट्टवियं नाउं अ्टो ! छह ल्‍लो तहा वि छकन्न॑ | मा होउ रहस्समिमं ता पव्वाई पबंचेमि ॥२१॥ 

इय चिंतेउः थालीतलघोयणवावडाए तो तीए । पंचंगुलीचवेडाए सा हया पिट्ठिदेसम्मि ॥२२॥ 

पभणइ पावे ! वइणीहोउं एवंवबिहं पयंपंती | कुलबहुकलंककारिणि ! न लज्जिया निययवेसस्स ॥२३॥ 

सा वि विलक्खा जाया पट्टिपहारं इमस्स दरिसंती | पभणह न पुत्त ! जोग्गा तुह सा सीलेण दुवियद्धा ॥२४॥ 
चितद सुदंसगो वि हु अहो ! छह्लऊत्त मसरिसं तीसे । जं वंचिया वराई पव्वाई नियपवंचेण ॥२५॥। 

मह संकेओ दिल्लो कसिगाए पंचमीए रयणीए | ठाणं पुणो न कहियं ता पुणरवि तत्थ पेसेमि ॥२६॥ 

इय चिंतिऊण पभणइ पव्चाइं ठाणजाणणनिमित्तं | जइ सीलवई तह वि हु गंतूणं भणसु इगवारं ॥२७॥ 

सा गंतुं तं पभणइ सुमहुरवयणेहिं चितए सा वि । कि एसा पट्ठविया पुणो वियडढेण इह तेण ? ॥२८॥ 

हुं नाय॑ संकेयट्राणं न मए पयासियं किंपि | इणिंह पि ता पयासेमि चितिउः भणइ सा रुसिउ ॥२९॥ 

आ पावे ! निल्लज्जे ! त॑ं भगामणोरहे ! दुरायारे ! | निब्भच्छिया वि एवं समागया पुणरवि क्रिमत्थं ? ॥३०॥ 
निव्मच्छिऊण एवं निट्ठुरवयणेहिमद्धचंदेण । गाढं गलत्थिऊर्ण असोगवणियाए दारेण ॥३१॥ 

निस्सारिया समाणी साहइ सब्ब॑ पि तस्स सो भणइ । जइ एवं ता अम्मी ! निन्नेहाए न मह कज्ज ॥३२॥ 

अह सो संकेयदिणे पत्तो रयणाए अद्भरत्तम्मि | | भत्तारं रंजेउ सा वि य विविहष्पयारेहिं ॥३३॥ 

सुत्त मोत्त पत्ता असोगवणियाए विडसमीवम्मि | तेण सह विसयसोकर्खं उवभुंजईइ विविहभंगहिं ॥३४॥ 
अइसुरयगुरुपरिस्समखिन्नाइं दो वि जाव सुत्ताइ । ताव तहिं संपत्तों समुरो ससरीरचिताए ॥३५॥ 

जारेण सम॑ पेच्छइ निययवहुं निद्दपरवसं तत्थ । तो सो चिंतइ हियए सुत्ता एसो न मह पुत्तो ॥३६॥ 

जाए पभायसमए न हु एसा मन्निहि त्ति तो घेत्तु । साहिन्नाणनिमित्तं चरणाओ नेउरं जाइ ॥३७॥ 

घेप्पंतं त॑ दढ्भमयभीया उद्भवित्त तं पुरिसं | साहेइ तयं सब्ब॑ भणद जहा जाहि तुममिण्हि ॥३८॥ 

समए मह साहेज्ज कायव्वं बुद्धिपगरिसेण तएु | तम्मि गए सा सणियं गंतुं भत्तारसेज्ञाएु ॥३९॥ 

निसियइ खणंतरेणं उद्बावेऊअण पमणएु कंतं । अह पिययम ! में घम्मो असोगवणियाए ता जामो ॥४०॥ 
परमत्थमजाणंतो तीए सम॑ सोविओ गआओ। तत्थ । सुत्त जाणित्तु तयं उद्भावित्ता भणइ एवं ॥४१॥ 

कि एस कुलायारो तुम्हाणं १ जेण निययवहुयाणु । नियपइणा सह सुत्ताए नेउरं गिण्हए ससुरो ॥०२॥ 

सो पभणइ वीसत्था सुयसु पिए ! अप्पिही प॒भायम्मि | सा भणइ संपयं चिय मम्गसु मह नेउरं नाह ! ॥७३॥ 
ताओ न चेव दूरे न गमिस्सइ त॑ कहिंपि तेणुत्ते । पमणइ सा वि हु एवं महाकलंको इमो होही ॥४४॥ 

मइ साहीणम्मि पिए ! वयणिज्लज तुज्कड्बुज्ञ का कुणइ ? | सा भणइ पिय ! विवागं पमायसमयम्मि जाणिहिसि ॥४५॥ 
एवं जंपंताइं सुत्ताईं जाव तत्थ खण्मेगं | ताव पाया रयणी परिगलिओ तारयानियरों ॥४६॥ 

जाए पमायसमए नियपुत्तं संठवित्तु एगंते । सेट्टी साहइ सब्बं निसाए वुत्तंतमाह सुओ ॥४७॥ 

ताय ! अहं सो सुत्ता न हु अन्नो पुण वि पभणए सेट्टी । पुत्त ! तुम गेहंते नियपल्टकम्मि पासुत्तो ॥४८॥ 

तो पंचनंदिणा पुण वि य भणियं ताय ! तुम्ह विद्धत्ता । नयणा नयंति न तहा न हु तेणं लक्खिओ अहय॑ ॥०९॥ 
एवं पुणो वि भणिओ जाब न पत्तियदइ कहबि त॑ जणओ । ता भिउडिभंगभासुरवयणों भणिउ समाढत्तो ॥५०॥ 
भुल्लो सि ताय ! त॑ नियवहुए सुत्ताए मज्मपासम्मि | अलियमिणं जंपंती न लज्जिओ निययपलियाणं ॥५१॥ 
एवं जंपंताणं पिय-पुत्ताणं समागया वहुया । जइ एवं ता सुद्धा गिण्हिस्सं अन्न-पाणमहं ॥४५२॥ 

मिलिओ य सयणवग्गों तीए सब्बो वि मलिणमुहछाओं । समुरकुलेणं सद्धि समागओ पउरपुरलोगो ॥५३॥ 

सा भणइ ताय ! साहसु सुज्ञवणं मज्म अइृदुसज्ञं पि। ससुरो न जाव जंपइ ता भणियं पठरलोएण ॥५४॥ 


१. महपम्मोी २० | 


१६० 


आखश्यानकमणिकोशे 


अत्येत्थ सच्चवाई जक्खो नयरम्मि पसरियपयावों । तज्जंघामज्झेणं निग्गच्छठ जइ इमा सुद्धा ॥५५॥ 

तत्तो सा सुहभूया जक्खाययणम्मि जाव संचलिया | जाओ अलियगहिल्‍लो विडपुरिसो जाणिउं ताव ॥५६॥ 
गायंतो पलवंतो नच्चंतो डिभपरिवुडों संतो | धूलीधूसरगत्तो आलिगंतो सयललोयं ॥५७॥ 

तम्मि पएसे पत्तो सा गच्छद जत्थ पठरपरियरिया | सहसा आर्लिंगंतो तीए निब्भच्छिओ बाढं ॥५८॥ 

आ पाव ! कहं छित्ता पुणो वि ण्हाइत्त आगया भवणे । जक्खस्स पठरपच्चक्खमेरिसं भणिउमादत्ता ॥५९॥ 
भयवं ! नियभत्तारं एयं च गहिल्लयं पमोत्तणं । अन्नो जह मह देहे लमाइ ता धरसु जंघाहिं ॥६०॥ 

चितेह जाब जक्खो इहा-5पोहेहिं हरियहियओ सो । ताव सहस त्ति सा वि हु नीहरिया जंघमज्ञेण ॥६१॥ 
जक्खो ठिओ विलक्खो चितइ पावाए कहमहं छलिओ । अद्वव महिलाण चरियं दुव्विज्नेयं सुराणं पि ॥६२॥ 
ससुरो चिन्तेह जहा कलंकिओ पेच्छ कहमहमिमीए । अहव महिलाण चरियं दुव्बिन्नेयं सुशाणं पि ॥६३॥ 
कहमसईए होउं सइत्तमावाओ रंजिओ सयणो । अहव महिलाण चरियं दुव्विन्लेयं सुराणं पि ॥६४॥ 
तुरवेणं सद्धि जाओ तीए महासईसद्दों । ससुरो वि य अयसेणं वसीकओ सह अवक्खाए ॥६५॥ 

निद्वाए सम॑ नट्टा धणियं सेट्विस्स मणसमाही वि । हरिसेण समं जाओ तीए कंतस्स पणओ वि ॥६६॥ 

ससूरो वि पउरलोएण निंदिओ साहिडणंदिया अहिय॑ | संपत्ता ससुरगिहे अहिययरं रंजिओ भत्ता ॥६७॥ 
सेट्टिस्स अवकक्‍्खाए निद्दा नष्ट त्ति निमुणिउ' रज्ना । वाहरिऊणं विहिओ महल्लओ निययअवरोहे ॥॥६८॥ 
सुत्तो तत्थ निरिक्खइ सेट्टी अंतेडरीणमेगयरिं । उद्ठरति निसियंतिं तल्लुब्वेल्नि करेमाणि ॥६९॥ 

तो सो चितइ सेट्टी एसा कि कुणइ ? जाणणनिमित्त । पावरिऊणं पडयं सुत्तो सो अलियनिद्दाए ||७०॥ 
जाव निहुय॑ं निरिकखइ ता पेच्छइ मत्तवारणतलरूम्मि | खंभम्मि मत्तवारणमागलियं मिठपरिकलियं ॥७१॥ 
रयणीए अंधयारे हत्थी मिंठेण चोइओ संतो । उड़ काऊण कर उत्तारइ रायवरपत्तो ॥७२॥ 

कि तुह महई वेल ? त्ति जंपिउं भारसंकलाए हया । मिंठेण भणइ देवी न मज्क दोसो परं किंतु ॥७३॥ 
रज्ना जो पाहरिओ विहिओ सामि ! सुयइ न कहिंपि । सुत्तम्मि तम्मि संपह् समागया तुह समीवम्मि ॥७४॥ 
रमिऊण त॑ जहिच्छ मेज्नावदह करिकराओ सट्टाणे | त॑ सब्ब॑ अवलोइय सवियक्को चिंतए सेट्ठी ॥७५॥ 

जत्थ नरनाहमहिला विविहपयारेहिं रक्खियाओ वि । एवं कुव्वंति जए का गणणा इयरनारीणं ? ॥७६॥ 
अज्ज वि वयं कयत्था जाण पुरंधीओ निग्गया बाहिं। नीराईण निमित्तं नियगेहेसुं नियत्तति ॥७७॥ 

इय चितिउं पसुत्तो विगवअवक्खो तहा कहवि सेट्टी । सूछूगमे वि न जहा पडिबुज्माइ जग्गवंत्ाणं ॥७८॥ 
पुव्विल्ला पाहरिया तत्तो साहिति राइणो गंतुं । देव ! नवज्लमहल्ली न य उद्गुइ सूरठदएु वि ॥७९॥ 

रज्ञा तो आणत्त' पडिबोहह मा तयं सुयउ काम॑ । सो वि जह एगदिवसं तह सुत्तो सत्त दिवसाणि ॥८०॥ 
सत्तमदिणम्मि बुद्धों वाहरिओ राइणा तओ सेट्टी । कि तुह अणन्नसरिसा समागया एरिसा निद्दा ? ॥८१॥ 
तो सेट्टिणा वि भणियं एगंत॑ कुणह जेण साहेमि । नरबइनयणुक्खेवा एगंते जाइ सव्वसहा ॥८२॥ 

तो साहइ तं सब्वं सुणिउं रन्ना विसज्जिओ सेट्टी । तकहियजाणणत्थं राया अंतेररे गंतुं ॥८३॥ 

सव्बाओ ताओ अंतेउरीओ एगत्थ मेलिउ' मणइ । जह अज्ज मए दिद्ठों समिणो रयणीविरामम्मि ॥८४॥। 
गयनिवसणाहिं भवईहिं लंधियव्वों किलिजमयहत्थी | ता सच्चसुमिणयं तह करेह जह होइ मह खेम॑ ॥८४॥ 
लंघंति तहेव तयं अवराओ सा य कुडिलहिययत्ता । जंपदइ बीहेमि इमाओ दढमहं हत्थिरूवाओ ।॥॥८६॥ 

तो नरबइणा हसिउ लछीछाकमलेण ताडिया संती | पडिया सहस त्ति महीयलम्मि सा अलियमुच्छाए |८७॥ 
पेच्छइ य पट्टिभायं संकलसलसंजुयं तओ राया । तब्बइ्यरजाणावणनिमित्तमेसी पढ़ गाहं ॥८८॥ 
मत्तगयमारुहन्तिए ! भिडमय्रस्स हत्थिस्स बीहंतिए ! । तत्थ न मुच्छिय संक्लाहया ! एत्थ य मुच्छिय उप्पलाहया ।।८९॥ 
तो कोवफुरियअहरो राया वज्ञ्ाणि तिन्नि वि इमाणि | आणवहइ साबराहे मिंठं देविं करिंदं च ॥९०॥ 


२३, व्यसनशतज नकयुवत्यचिश्वासवर्णनाधिकारे नू पुरपण्डिताख्यानकम्‌ १६१ 


देवि चढाविऊर्ण मिंठं आरोहयं च काऊणं । कारवइ छिल्नटंके तं करिवरमेगपाएण ।॥॥९१॥ 
तिकक्‍्खग्गअंकुसेणं मिठेणं चोइओ करिवरिंदों | उक्खिवइ एगपाय॑ं तह बीयं तह य तइयं च॥९२॥ 
जा तिहिं पण्हि हत्थी आयासे संठिओं निराहारों । ता हाहारवसद्दो उच्छलिओ पउरलोगम्मि ॥९३॥ 
हा हा ! न जुत्तमेयं नरवहणो परवसं गहियसिक्खं । एरिसविन्नाणजुय्यं करिरयणं ज॑ं विणासेइ ॥९४॥ 
तो रन्ना जणवायं सुणिऊर्ण पमणिओ वरारोहो । ओयारिउं समत्थो विसमाओ गय॑ समपहम्मि ? ॥९५९॥ 
तेणुत्तं जइ अभयं देवीसहियस्स देसि मह देव !। ता हं करेमि एयं पडिवन्न॑ राइणा त॑ पि ॥९ 
तत्तो सणियं सणियं ओयरिए करिवरे समाइसइ । मह विसयं मोत्तणं बच्चसु रे पाव ! अन्नत्थ ॥९७॥ 
सो सद्धि देवीए वच्चन्तो अन्नया य संभाएु | एगत्थ नयरपरिसरदेवउले जाव पासुत्तो ॥९८॥ 
ताव सहस त्ति चोरो आरक्खियतासिओ गहियदच्छो । तत्थ पविट्ठो तं वेढिऊण ते वि हु ठिया बाहिं ॥९९॥ 
चोरो वि अंधयारे पविसंतो तीए कह वि सो छित्तो । तप्फंसरायरंजियहियया देवी पयंपेद ||१००॥ 
को सि तुम चोरों हंं इय भणिया सा वि पभणए निहुयं । जइ इच्छसि म॑ भोत्त ता तुद् जीय॑ पयच्छेमि ॥१०१॥ 
नियजीयरक्खणकए पडिवन्न॑ं तेण वयणमह सा वि | मोयावह तं दच्छं पावा मिंठस्स उस्सीसे ॥१०२॥ 
अह निहणियदोसो वि हु तीए दोसं व पयड़िओ सूरो | निययकरप्फंसेणं उज्जोयंतो भुवणवलूयं ॥१०३॥ 
उदयगिर्रि संपत्तो तत्तो आरक्खिया सलोत्त तं | चोरो त्ति कलिय बंधंति जाव ता जंपए भिट्ठटो ॥१०४॥ 
पहिओ हं न हु चोरो एसा मह भारिया गुरुसिणेहा । पुच्छंति ते वि जुबई को भत्ता तुज् एयाण ? ॥१००॥ 
साहइ सा वि हु तेसिं मह भत्ता देवबंभणेहि इमो | दिल्लो तो त॑ सोउं मिंठो हियए विचितेइ ॥१०६॥ 
महिला मरणमयंडे महिला दुग्गेज्ममाणसपयारा | महिला कयंतकत्ती महिला मूल परिभवाणं ॥|१०७॥ 
महिला दुह्सयखाणी सब्भावविवज्जिया सया महिला | महिला नरयदुवारं गुणगिरिवज्ञासणी महिला ॥१०८॥ 
महिला निद्दयचित्ता उब्भडविसवेल्लरी जए महिला | संतावजलणजालापरिभवतरुमंजरी महिला ॥१०९॥ 
इय मिंठो चितंतों सूलाए रोविओ निरवराहो । आरक्खिएहि तत्तो खणंतरे तिव्ववियणाएु ॥११०॥ 
जाओ तिसाभिभूओ जा वंछह पाणियं तहिं पाउं | ता गच्छंतं पेच्छइ सुदंसणं नाम वरसड्ड ॥१११॥ 
तो भणइ भो महायस ! पायसु सलिलं करेवि कारुन्न । सो पभणद जह सुमरसि जिणनवकारं महामंतं ॥॥११२॥ 
तेणावि हु पडिवन्ने तिसामिभूणण सेट्टिणा दिन्नो | दुहतरुवणदाबानलसरिसो परमेट्टिनवकारों ॥११३॥ 
सलिलं घत्तु' सेट्टि आगंच्छंतं वियाणिउं तत्तो । अहिययरं उम्घोसइ सलिलकए सुद्धकयचित्तो ॥११४॥ 
एत्थंतरम्मि सहसा भिन्नो सूलाए सो तओ मरिउं। परमेट्टिपहावेणं संजाओ वंतरों बलिओ ॥|११५॥ 
तयणंतरं च तेणं सन्नेज्मं सावयस्स जह विहियं । जह सा धम्मे ठविया सियालवेसेण बोहेउं ॥११६॥ 
जह राया भेस्विओ पुय्जुत्त जह कलंक्रमवणीयं । वित्थरओ बिन्नेयं सब्ब॑ गंधंतराओं तहा ॥११७॥ 
॥ नू पुरपण्डिताख्यानक समाप्तम्‌ ॥७१॥ 


इदानीं दत्तकदुद्दिताख्यानकमाण्यायते । तच्चेद्म्‌-- 
सलिल व्व निम्मलपया जंबुद्दीवो व्व वन्नियस॒वासा । अत्थि पुरी उज्जेणी मणोहरा मयणमुत्ति व्व ॥१॥ 
तीए राया रिउकरडिकरडनिद्द लणकेसरिकिसोरो । विप्फुरियबुद्धिविन्नाणविकमो विकमाइचो ॥२॥ 
कइया वि हु रयणीए नयरीचरियावियाणणनिमित्त | पावरियनीलपडओ अदिस्समाणों परिव्भमइ ॥३॥ 
पेच्छंतो तिग-चच्चर-चउक-चउमुह-महापह-पहेसु | जणवइयरे नरिंदों वहससमेगं इम॑ नियह ॥9॥ 
कुलडाए [काए] को वि हु करम्मि घेत्तण भन्नए सुहय ! । कि कइया वि न दीससि ? तेणुत्त सुयणु | सममेयं ॥५॥॥ 
तीए भणियं चल्लसु गिहम्मि तं संपयं पि सो भणह । तुह गेद्टे भत्तारो ता कह मे कज्जसंसिद्धी ? ॥६॥ 


श्तेरंब॥........ 


१६२ आख्यानकमणिकोशे 


तीयुत्त मा भायसु तत्थ गया हं सयं॑ मल्स्सिमि | मड्डाए अणिच्छंतो वि चालिओ तीए सो गेहे ॥७॥ 

राया चिंतइ ताव5ज्ज चरियमेयाए चेव पेच्छामि । अच्छमु अबरं काही कहं सकखज्ज पहसमीवे १ ॥८॥ 

तिन्नि वि पत्ताणि गिहं तं मोत्तणं सयं विस गेहे । सत्वं विहिय॑ किश्च॑ सिसुपुत्तो पाइओ थन्‍्नं ॥९॥ 

भणिओ तीणए भत्ता सहीए मह छट्ठिजागरों होही । ता जइ कहिं पि वेला लगाइ ता त॑ भलसु गेहे ॥१०॥ 

इय भणिऊणं दहयं विणिगगया सिक्‍खवित्तु विडपुरिसं | समगं तेण पविट्ठा पणमिय सेट्टि विड़ो भणइ ॥११॥ 
जिणदत्तसेट्टिगेह होइ इमं ? सेट्टिणा भणियमामं | ता कि न धणसिरी दीसइ ? त्ति कज्जे कहिं पि गया ॥१२॥ 
संपयमेवा55गच्छइ तुब्भे कत्तो समागयाणि ? त्ति | पुट्टे पाहुणगेणं भणियं तुह ससुरगेहाओ ॥१३॥ 

एवं वुत्तो तेसिं सेज्जा-पावरणपमुहपडिवत्ती । ससुरकुरूसिणेहेणं सगउरवं सेट्टिणा विहिया ॥१४॥ 

नीसंक॑ जा सुत्ताणि ताव य छुहाइओ' ' "बालो । रोबइ रइविग्घकरों तीए आणाविओ पासे ॥१५॥ 

कि एस रुयइ ? पुद्ठम्मि सेट्रिणा भणियमेयजणणीए | पडियमणागमणमिमों छुह्टाइओ कि करेमि अहं ? ॥१६॥ 
तेणुत्तं मह भज्जा वि बालवच्छा तओ धयावेमि । तहविहिए सो सत्तो सुहेण ताणि वि असेसनिसं ॥१७॥ 
पच्छिमपहरे रमणीए णीणिओ सा बलंतिया वुत्ता । रन्ना भद्दे ! तुह सरिसियाओ कइ मज्ञझ नयरीए ? ॥१८॥ 
नायं जहेस राया तीयुत्तं देव ! केरिसी अहयं ? । दत्तयदुहिया एत्थेव जणसमक्खं वसइ गेहे ॥१९॥ 

सा केरिसिया भद्दे ? कहसु जओ मज्क कोडंगं गरुयं | तीणए वुत्त निसुणसु खणमेगं अवहि ओ राया ॥॥२०॥ 
इह अत्थि देव ! दत्तयसेट्री सब्वत्थ सुइसमायारों | तस्स सुया रूयवई सुवियड़ा बालविहवा य ॥२१॥ 

त॑ सीलरक्खणकए सेट्टी पासायसंठियं धरइ । भोगंगं तु समम्गं पहदियहं देइ नेहेणं ॥२२॥ 

सा तत्थ5च्छइ पारूढख्यलायन्नजोव्वणारंभा । उज्जंभभाणमयणा वि अमयणा मयणघरिणि व्व ॥२३॥ 

अह मयणविहुरियंगी अहोवयंतं च सत्थवाहसुयं । जाणावइ नियभाव॑ कयाइ केणइ पयारेण ॥२४॥ 

सो वि हु तत्था55गच्छट् निनश्चं चिय मंचियापओएण | तीए जणएण सम॑ ववहारं कुणइ पीईं च ॥२५॥ 

तिए सिक्खविओ सो अमुगं पव्चाइयं वसीकाउं । तस्सिस्सिणिवेसधरेणा55गंतव्वं मह समीवे |।२६॥ 

जणओ विमीए वुत्तो एगागीए विणोयणनिमित्त । मह धम्मवंतममुगं पव्वाइं ताय ! आणेसु ॥२७॥ 

तप्पभिइ तत्थ रायं ! तहा कए जंति तेसि दिवसाणि | न य को वि कि पि जाणइ पेच्छसु तीए वियडढत्तं ॥२८॥ 
अह अन्नया य अन्न पि काउकामाए तीए नियदइओ । भणिओ को निव्वाहों एयाए कूडचरियाए १ ॥२९॥ 
जइ भणसि कमवि अन्न पवंचमहमायरामि जेण सुहं । अच्छामो तेणुत्तं ज॑ जाणसि त॑ पिए ! कुणसु ॥३०॥ 
कल्लमहमागमिस्सामि जक्खजत्ताए जणसमूहम्मि । एवं करेज्ज पच्छा सब्वं स॒त्थं करिस्सामि ॥३१॥ 

तो तत्थ जणसमक्खं घेत्तु| बाहाए सामरिसवयणं । भणिया कि हिंडसि छड्डिएण नियगेहकिच्चेण ॥३२॥ 
तप्परियणेण भणियं भुल्लो कि भमसि भद्द ! तुममेव॑ ? | तेणुत्तं सच्चमहं भुल्लो सारिक्खयाएं दढं ॥३३॥ 
तप्पभिई कट्टरकारियाए त॑ सुणसु जं समारद्धं । परपुरिसेणं छित्त त्ति छोल्लिउं दंतसंपुडयं ॥३४॥ 

जम्मंतरम्मि घेच्छे कूरमहं सा ठिया पइन्नाए। अदन्नो सव्बो वि हु जणयाई परियणो तीसे ॥३५॥ 

अन्नम्मि दिण जं तीए कूरकम्माए देव ! पारद्धं । कहिउ पि तं न तीरइ कि पुण काउं सकरुणाण ? ॥३६॥ 
पव्वाइयाए मज्झट्वियाए पञ्ञालिऊण पासायं | तब्वेसं घेत्तण नीहरिया पिययमेण सम॑ ॥|३७॥ 

हाहारवो य जाओ महासईए पसाहिओ अप्पा । सीलस्स रक्‍्खणकए जुत्तमिणं सीलबंताणं ॥३८॥ 


प्रत उक्तम्‌-- 
वर प्रवेष्टुं ज्वलितं हुताशनं, न चापि भम्नं चिरसश्धितं ब्रतम्‌ । 
वरं हि मृत्यु: सुविशुद्धकमंणो, न चापि शीलस्खल्तिस्थ जीवितम्‌ ॥३९॥ 
पच्चाइओ य लोओ धुत्तीए सय॑ च भुंजण भोए | जणपयडं च पव॑ंचं पेच्छ महाराय ! महिलाणं ॥४०॥ 


२३. व्यसनशतजनकयुवत्यविश्वासवणनाधिकारे दक्षकदुद्दिताख्यानकम्‌ १६३ 


काउऊणं मयक्रिच्चं कालेणं सो य विरहिओ जाओ | जणयाइजणो जम्हा दंसणसाराइ' पेम्माइ' ॥9१॥ 

सो उण सत्थाहसुओ तहेव ववहरइ सेट्ठटिणा सद्धि । अह अन्नया य वस्थे घेत्त पत्तो पियाएु कए ॥४२॥ 
वालेऊर्ण मुक्काणि ताणि जा दोज्नि तिन्नि वाराओं । राढाला मज्झ पिया ताय ! न रोयंति एयाणि ||9३॥ 
केरिसिया तुज्म पिया ? आगच्छठ वच्छ ताव पेच्छामि । गिण्हउ मणस्स रुच्चंति जाणि व॒त्थाणि सयमेव ॥४४॥ 
तो आगंतु' चलणेसु निवडिया एस चेव मह धुया । धरिया नियडच्छंगे गहवरिओ त॑ निएकण ॥४५॥ 
आऊरिय गलसरणी पमुक्षपोकारवं परुज्ञो य | भणियं च जणसमक्खं एस श्वििंय होउ मह धया ॥४६॥ 

एसो च्चिय जामाऊ वुद्ढों हं एस मज्ञ घरसारों | विुसउ देउ जहिच्छ न किंपि केणाबि वत्तव्बं ॥२७॥ 
सत्थाहसुएणुत्तं इमीए भंतीए ताय ! तुज्क सुया | बाहाए मए गहिया तीसे एड्रेंण न बिसेसो । ॥४८॥ 

तो राय ! तीए पुरओ केरिसिया हं ? सं विचितेसु | इय सुणिउं पुहइवई विम्हइ्यमणों विचितेइ ॥०९॥ 
गह-सूर-चंदचरियं ताराचरियं च राहुचरियं च । जाणति बुद्धिमंता महिलाचरियं न याणंति ॥५०॥ 

गंगाए वालुया सायरे जलं हिमवओ य परिमाणं । जाणंति बुद्धिमंता महिलाचरियं न याणंति ॥५१॥ 

भणिया सा नियपइणो त॑ केरिसमुत्तरं पयच्छिहिसि ? | तीयुत्त खणमेगं नियसु महाराय ! जड् एवं ॥५२॥ 
उद्बाविऊण सेट्ठी मणिओ तीयत्थुडुंकियमुहीए । सेज्जा किमेस ? छिद्दं लहिउं कम्माइयं किंपि ? ॥५३॥ 

मा रूस पिए ! क़िंपि हु मह सासुरयाओ काणि वि इमाणि | वसिऊण गयाणि तओ सरोसमेईए संछत्त ॥|५४॥ 
इममेव मए पुट्ं सुहय ! तए अज्ब किंपिं सासुरयं | घडियमउव्बमिमीएु कओ विलक्खो वराओ सो ॥५५॥ 
भणिओ य तीए राया दिट्ठ मम किंपि चेट्टियं तुमए १। तुब्मे त्थ वंदणिज्ञाओ भवह भणिउं गओ गेहे ॥५६॥ 


॥ दत्तकदुद्दिताख्यानक समाप्तम्‌ ॥७२॥ 


इदानीं भावभद्टिकाख्यानकमुच्यते । तद्यथा-- 


तथाहि--- 


श्ज्‌ 


रयणविणिम्मियपासाय-भवण-पायार-तोरणाईहिं । रयणपुरं व जहत्थं ज॑ नियनामं समुब्बहइ ॥१॥ 

सव्वत्तो खिय पसरियरयणंसुनिबद्धसकचावाए | रयणप्पहाएु आयरिसए व्य जं नियइ नियसोहं ॥२॥ 
तम्मि पुरे ससहरकरसियजसधवलियद॒हदियंतराभोगो । भागोवभोगसुत्थियसमस्सियासेसपणइजणो ॥३॥ 
जणयाणुरायगुणवसचिदत्तसु विधुद्धसंपपाकलिओ । कलिओहामियरिउजणकरिमरिकरचलियचमरजुगो ॥४॥ 
जुगसमपयंडभुयदंड्चंडिमाधरियवसुमईवलओ । बलओहजुओ सिरिर्यणसेहरो नाम नरनाहो ॥७५॥ 

तस्स य रज्नो भज्जा सुयणाणं हिययहारिणी अहिय॑ं | नामेण रयगणमाला विमलुगुणा रगणमाल व्व ॥६॥ 
महमाहप्पविणिच्छियरज्जत्थो सुमइनामओ मंती । तस्स य पुत्तो गुणरयणसायरों सायरों नाम ॥७॥ 
गुणदिवसाणं सुहिचक्रवायमिहुणाण बंधुकमलाणं । पुरिसेट्ठी नामेणं भाणू भाणु व्व मणद्‌इओ ॥८॥ 
नामेणं भाणुसिरी तस्स पिया तप्पह व्व सुपयासा । तेसिं अच्भुयभूया धुया भावद्टिया नाम ॥९॥ 
बालत्तणे वि पढिया सेट्टिसुएणं सम॑ सुरिदेणं । लोइय-वेइयसत्थेसु जा पवीणत्तमुन्चहईइ ॥१०॥ 
इत्थीजणजोग्गाओ सयलाओ कलाओ तीए नायाओ । तेणं चिय सा किल बालचंडिया विस्सुया नयरे ॥११॥ 
वड॒ढंती य कमेणं परूढनवजोव्बणाहियं जाया । लायन्न-रूय-सोहग्ग-ललियसुंदेरगुणमवण्ण ॥१२॥ 


चलणजुयं कस-ससि-संख-मीण-क्रमलेवसोहियं जीए । लायन्नलहरिलडहं छज्जइ रयणायरसरिच्छ॑ ॥१३॥ 
ऊरुजुय॑ रंभाथंभविज्ममं कमपविद्धवित्तजुयं । भवणस्स मयणरन्नो तोरणथंभोवर्म सहइ ॥१४॥ 

रमणं सुरसरियापुलिणसन्निं सइसुहिल्लिसोहिल्लं । जगजगडणपरिसंतस्स मयणसुहडस्स सयणं व ॥१४५॥ 
जीए सिसुमुद्ठिगेज्की [किडिभाओ] निम्मिओ पयावहणा । थणभरभंगभणण व वलित्तयसमस्सिओ सहइ ॥१६॥ 


१६४ आश्यानकमणिकोरे 


जीसे थणजुयमच्च॑तमुन्नयं वट्ठलं ससाममुहं । रेहह कामनिवहणो निहिकलसजुयं व्व कयमुद्दं ॥१७॥ 

बाहुल्या वि हु जीसे सहजारुणकरसरोयरमणीया । पञ्जंतपरूढाभिणवपत्लवा चंपयलूय व्व ॥१८॥ 

जीसे कंठो रेहातिगेण समलंकिओ कहह एवं । थीरयणमवरमेरिसरूवं भुवणत्तए नत्यि ॥१९॥ 

अहरदलिल्लं सियद्सगकेसरं नयणभमररेहिल्लं । नासानालं लायन्नसिरिंगिहं सहह मुहकमलं ॥|२०॥ 

रमणीयं सवणजुयं जीसे सरल सहावसोहिल्लं । रइ-पीईणं मणहरमंदोलयकरणिमुव्बहइ ॥२१॥ 

सुसिणिद्ध-कसिण-मिउ-कुडिलकेसकबरी मणोहरा जीसे | कामकुलकेलिसिहिणो कलावलीलं विडंबेइ ||२२॥ 
अबरं च--- 

विन्नाणगुणविय ड्ढं गरुयगमं जह निएज्ज पुव्वमिमं | ता जडपयई निन्नयगईं च गिण्हेज्ज कद णु हरो ॥२३॥ 

गंगं ? कहं व गोरिं पव्वयदुहियं सया सुहियमेयं । लच्छि व वासुदेवों समुद्महणुब्भव॑ चवले ॥२४॥ 

सज्जणजणेण सुहयं थिरस्सहावं व चइय ज॑ दटठुं । एवं वियप्पद्ट जणो को सक्कह वन्निउं तमिह १ ॥२५॥ 

अह अन्नया य कम्मि वि पत्थावे तत्थ रायअत्थाणे | महिलागओ वियारों जाओ रायाइपुरिसाणं ॥२६॥ 

केणावि भणियमित्थी तुच्छा पयदैए ऊणहियया य | कुडिलसहावा दोसाण मंदिर भणियमवरेण ॥२७॥ 

सत्यं वच्मि प्रियं वच्मि हितं वच्मि पुनः पुनः । अस्मिन्नसारे संसारे सारं सारञ़्लोचना ॥२८॥ 
राशेक्तम्‌-- 

चवढा महलूणसीला सिणेहपरिपूरिया वि तावेइ । दीवयसिह व्व महिला लद्धप्पसरा भयं देह ॥२९॥ 
भाणुसेट्टिणा भणियं--- 

महिला कुडिल्सहावा बंधवकुलभेयकारिणी महिला । महिला निद्यहियया पच्चक्खा रक्ख़सी महिला ॥३०॥ 

महिला आलकुलहरं महिला लोयम्मि दुच्चरियखेत्त | महिला सकज्जनिट्टी महिला जोणी अणत्थाणं ॥३१॥ 


मन्त्रिपुश्रेणावाचि-- 
मम तावन्मतमेतदिह, किमपि यद॒स्ति तदस्तु । रमणीभ्यो रमणीयतरमन्यत्‌ किमपि न वस्तु ॥३२॥दोधकः॥ 


अपरेणोचे-- 
अश्वः शख्रं शा्त्र वाणी वीणा नरश्व नारी च | पुरुषविशेषं प्राप्ता भवन्त्ययोग्याश्व योग्याश्व ॥३३॥ 


भणियं च भाणुणा जइ वि एवमिंह तह वि निच्छओ मज्ञ । देवेहिं पि न एसा रक्खि ज्जह मुक्कमज्जाया ॥३४७॥ 
एवं विवयंती सो मिलिऊण कुओ बि अभिनिवेसाओ । सबन्वेहिं पराभूओ विसेसओ मंतिपुत्तेण ॥३५॥ 

एवं विसन्नचित्तो भणिओ भावद्टियाए गेहगतो | दीससि असमाहिज्ञुओ तेण वि कहिय॑ जहावत्तं ॥३६॥ 
जणयावमाणमसमं तीए परिभाविउ असज्क्मिमं | धणियं माणधणाए भणिओ आभावद्टियाए पिया ॥३७॥ 

वियरसु म॑ मंतिसुयस्स ताय ! सच्च करेमि तुह वयर्ण । मइमाहप्पं पेच्छामि जेणमेएसि सम्बेसि ॥३८॥ 
एवमभिमाणवसगाए तीए चित्तप्पवंचनिउणाएं। परिणावियमप्पणं सुरिदृगयमाणसाए वि ॥३९॥ 

तेण वि नायमिमीए परिभवकामाए विहियमेयं मे | तो त॑ पासायतले सुगोवियं धरह मंती वि ॥५०॥ 
भोगोवभोगजायंतीए सो अप्पणा पणामेह । मायापवंचनिउणाएं रंजिओ ससुरओं भणिओ ॥५१॥ 

ताय ! मदद सुत्थमवरं परमहमेगागिणी वसामि दुह । ता सहियणमज्ञाओ सुपरिक्खियमप्पणा सहिय॑ ॥४२॥ 
एगं दो वा पेससु जेण नवाणं कलाणमब्भासं । सद्धि ताहिं करेमी मणयं च सुहेण चिट्ठामी ॥४३॥ 
जावा55गच्छंति सहीओ तीए पासम्मि मंतिवयणेणं । ता कश्या वि सुरिंदो सहिवेसेणं समाहुओ ॥४४॥ 
तप्पभिई तेण सम॑ सुरयसुहं सरसमणुहृबंतीए । बच्चंति दिणाणि अहो ! गूढायारित्तमित्थीणं ॥४५॥। 

तीए वि हु तह कह वि हु विणएण वसीकओ ससुरवग्गो । जह कन्नाओ कन्न॑ न को वि कि पि हु तयं सुणई ॥०६॥ 
तप्पइणा य कया वि हु सरोरमलणाइणा पयारेण । परिजाणियं जमेसा समगं पुरिसिण संचसह ॥४७॥ 

छक्कन्न॑ जाव कय॑ं ता भणिओ तीए सविणयं ससुरो | ताय ! तए सच्चवियं नियसुयविरूसियमपुव्वमिर्म ? ॥४८॥ 


तथा हि-- 


२३, व्यसनशतजनकयुवर्त्यंविश्वासवर्णनाधिकारे भावभट्टिकाख्यानकम्‌ १६५ 


तुह चेव निद्धसुयणस्स सेट्टिणो भाणुणो अहं घूया | परिणेकण जमेय॑ सुद्धायारा वि परिहरिया ॥४९॥ 
न हु एत्तिएण तुट्टो दूसगमारोवण महउल्न' पि। ता णेण कयं सच्च॑ केणावि बुहेण ज॑ भणियं ॥५०॥ 
न हु एत्तिएण ठाही गयणयल मइलिऊण घणनिवहो । कायव्वा अज्ज वि रायहंससुन्ना सरुच्छंगा ॥५१॥ 
ता संपइ सुद्धा हं कूरगगहण करिस्समलमिमिणा । चाविज्जंति न मिरिया जह चणया ताय ! पयडमिणं ॥५२॥ 
छल्बुसु भल्मिवराणं महिलाणं गयनिमीलियं काउं । जा सकलंका जीयंति ताय ! ता कुणसु मह सुद्धि ॥५३॥ 
इय सोऊणं सब्वों सराय-पउरो जणो तहिं मिलिओ । जा कोवि क्िंपि पमणइ पहाणपुरिसेहि ता वुत्त ॥५४॥ 
जा एवं कयनियमा सा कावि हु होउ कि विय॑प्पेण ? खिप्पठ सुरपियभवणे किमियरदित्वेहिं कायव्वं ॥५५॥ 
न्हाया कयब्रलिकम्मा धवलविलेवणविलित्तसव्वंगा | धवलाहरणबिह॒सियसव्वावयवा धवलवसणा ॥५६॥ 
धवलप्पसृणपरिमलमिलंतभमरउलरुहरगलमाला । धवलसरोरुहसयवत्तकुसुमसिरधरियसेहर या ॥|५७॥ 
इय सब्वंगीणमहग्धवत्थसच्चवियफारसिंगारा । अणुगम्ममाणमर्गा नरवइ-नायरयनिवहेण ॥५८॥ 
निर वज्जवज्जिरा उजमणहरारावपूरियदियंता । पढमाणभट्ट-बंद्रियणबहलहलबोलमुहलनहा ॥५५९॥ 
सवियक्ष-सविम्हय-सदय-की टगविखषटनायरजणस्स । गरुययरचडयरेणं पत्ता सुरपियभवणमेसा ॥६०॥ 
सो रण जबखो सन्निहियपाडिहेरों निसाए बलवंतो । पालइ पयत्तओ पाणिनिवहमिह सुइसमायारं ॥६१॥ 
दुट्टं रुद्टो निग्गहद गहिय जमजीहसच्छहच्छुरिओ । दिवसम्मि अर्किचिकरों पयई एसा जणपसिद्धा ॥६२॥ 
खिविऊण जक्खभवणे भावद्टियजुवइमुब्भडकवाडे | ढक्षिय ढडढसमेयं काउं वलिओ नयथरिलोओ ॥६३॥ 
सोतं द्ट्ठु दट्टोट्ठमिउडिमासुरकरालभालयलो । आयड्डिउमसिधेणुं पाविट्टे ! सुमरसु तमिट्गं ॥६४॥ 
एवं भेसविया वि हु सविणयमवर्लंबिऊण थिरचित्तं | पभणइ भयवं ! एवं को क्विर मह उबरि संरंभो १ ॥६५॥ 
अहमेगघायसज्का महापभावो तुम च दुयरसियों । ता विन्नत्ति निसुणसु मह पदच्चासन्नमरणाए ॥६६॥ 
संपद् मह मरणं पि हु सलाहणिज्ं जयम्मि जं दुलहं । एएण निमित्तेणं संजायं दंसणं तुम्ह ॥६७॥ 
ता संपइ होसु थिरो जाव सुदिट्ठ॑ं करेमि जियलोय॑ । तुह चिंतण-भासण-दंसणेहिं दुलहेहपुत्नाणं ॥६८॥ 
साणुणयं सप्पणयं तह कह वि हु तीए भणिइनिठणाए | सो भणिओ जह जाओ मणयं उवसंतकोवभरो ॥६९॥ 
भणियं च तेण भद्दे | जीय॑ं मोत्तण वरसु कि पि वरं । जं सावराहजीयं कइया वि न दिल्नपुब्वं मे ॥७०॥ 
तो तीउत्तं निसुणसु कहाणयं किंपि तुह कह्ेमि अहं । तेणुत्तं निस्संक। कहसु अहं अवहिओ एस ॥७१॥ 

[ विक्रमादित्यनडपाख्यानकम ] 


अत्यि अवंतीजणवयपरमालंकारसन्निभा भयवं ! | परमच्छेरयभूया सब्वेसि गुणाण कुलभवर्ण ॥७२॥ 


त॑ विज्ञाणं भुवणे वि नत्यि त॑ं को3यं जए नत्यि । त॑ साहस पि अवरत्थ नत्यि कुहगं पि त॑ नत्यि ॥७३॥ 
चाओ नाओ धाओ धाउव्वाओ विसिद्दसमवाओ | तह य रसायणवाओ जोगिणिवाओ य गहवाओ |॥|७४॥ 
कि बहुणा नयनिउणं जोइज्जतो विवेयचकखूहिं । सो कोवि हु नत्थि गुणों पाएणं तीए जो नत्यि ॥७५॥ 
जम्हा हरिसिद्वा्ं परमुज्दययणी जणम्मि नयरी सा | तम्हा तं॑ नयनिउणे परमुज्जयर्णी बुहा बंति ॥७६॥ 

त॑ नयरिमसमसाहसवसीकयाणहपमावभूयतिगो । पालइ पयडपरक्क मसमुवज्जियकित्तिजसपसरो ।।७७॥। 
हयविकमो वि गयविकमो वि रहविकमो वि सो तत्थ । तह सब्बविक्षमो वि हु जाओ नयविक्रमों जेण ||3८॥ 
महिवलयभासणाओ कमलाण वियासणाओ सब्वत्तो | दुन्नयतमहरणाओ आदइ्लच्चो विक्कमाइच्चो ॥७९॥ 

चाई सूरो पडिवल्नवच्छलो बुद्धिविजियसुरमंती । दक्खिलनिही निययं परोवयारेक्गुणएसिओ ।।<०॥ 

अह त॑ कइया वि निव॑ अणेगभडकोडिसंकडत्थाणे । कणयमयदंडहत्थो पडिहारो विन्नवह एवं |८१॥ 
सियभूइगुंडियतणू लक्खणपडिपुल्ननरकवालकरो | डमडमियडमरुयधरो खंधोवरि धरियखड्डंगो ||८२॥ 


१६८ 


आखश्यानकमणिकोशे 


वियडजडामउडसिरों एगो कावालिओ दुवारम्मि | अहिलसइ देवदंसणमुडं देवो पमाणं ति ॥८३॥ 
सिग्घं पवेससु तयं भणिए रज्ना पंवेसिओ तेण । ससमयपसिद्धमेसो दाऊणासीसमुबविद्टो ॥८४॥ 

भणियं च तेण हिमवंतपव्वण आसि साइसयमंतो । मज्झ गुरू तस्सीसं मं जाणसु भइदरवाणंदं ॥८५॥ 

मह तेण मरंतेणं दिल्लो नरनाह ! साइसयमंतो । सिद्धेण जेण सिज्कह पओयणं तिहुयगडब्भहियं ॥८६॥ 
विहिया य जहाविहिणा बारस वरिसाणि पुव्वसेवा में | इण्हि तु असमसाहससहायसाहेज्जवसगाणं ॥८७॥ 
सिज्कइ एसो त॑ पुण तुज्क सयासाओ होहिही नुणं । महिवरूए वि जमवरो नेवंविहभारघुरधवलो ॥८८॥ 
ते पुण साहसबिहवो परोवयारेक्करणदुल्शलिओ । निव्वडियसूरचरिओं अब्भत्थणभंगभीरू य ॥८९॥ 

ता तुज्क सयासमहं पद्ुच्च कज्जं इमं समणुपत्तो । तो कण्हचउदसिदिणे निसिमेगं कुणसु साहेज्ज ॥९०॥ 


चिंतियं च राइणा -- 


जओ-- 


गुरु-मित्तत्थे पाणा रूव॑ तारुत्नयं च दहयाए। विहलुद्धरणम्मि धणं जं उब्रउज्जहइ तयं सफल ॥९१॥ 

हय पडिवज्जिय सहरिसमुद्ट्विदिणम्मि नरवई पत्तो | एगागी सत्तथणों करालकरवालवग्गकरों ॥९२॥ 

पुरओ च्चिय संपत्तो पेतव्ं तम्मि भेरवाणंदों । सयलीकरणं काऊणा55लिहियं मंतमंडलयं ॥९३॥ 

रतल्ना भणियं भयवं ! आइस त॑ किंपि जं मए कज्ज । तेणावि भणियमक्खयमडय तुममेगमाणेसु ॥९४॥ 

सो वि हु तह त्ति पडिवज्जिकण भीसावणम्मि पेयवणे । जाव भमइ ता दिद्ठो रुकखे उल्लंब्रिओ चोरो ॥९५॥ 
चडिऊर्ण छुरियाए जा छिंदिय रज्जुमुत्तरह तरुणो | ता पेच्छइ उवरि तयं तहेव लंबंतमायासे ॥९६॥ 

दुइयं वारं छिंदइ ताव तहेव य तय॑ नियइ रुकखे । तइयाए वाराए आलिंगिय देह झंपमहोी ॥९७॥ 

खंधे काऊण तय जावाउ5गच्छइ पहम्मि ता तेण । कहिउ' कि पि कहाणयमेसो बोल्लाविओं जाव ॥९८॥ 
ता त॑ तहेव रुकखे विलूग्गिउं ठाइ एवं बीय॑ पि। तश्याए वाराए आयासे सुणइ वयणमिमों ॥९९॥ 

भो भो नरिंद ! कावालियस्स मा वीससेज्ज एयस्स । एसो हु सुवन्नकए हंतुं तं महइ कूरमई ॥१००॥ 

राया वि भणइ न जुगंतरे वि मह वयणमन्नहा होइ । पडिवन्नमिमं कज्जं कायव्वं सब्वहा वि मए ॥१०१॥ 


छिज्बठ सीसं अह होउ बंधणं वयउ सब्बहा लच्छी । पडिवन्नपालणे सुपुरिसाण जं होइ त॑ होउ ॥१०२॥ 
जद एवं तह वि तुमं॑ कह वि हु अक्खाणयस्स पज्जन्ते | पुच्छंतस्स वि नरवर | पडिवयणमिमस्स मा देसु ॥१०३॥ 
अन्न च मडयभाले पणवमिमं गवलगुलियवन्नाभं । झाएज्जसु थिरचित्तो खेम॑ एवंक्रए तुज्स ॥१०४॥ 

इय पडिवज्जिय सम्म॑ मडयं काऊण खंधदेसम्मि । गंतुं जाव पयट्टो ता मडएणं इम॑ वुत्त ॥१०५॥ 
गरुयंतरालमज्ज वि अज्ज वि तुह मंतबाइओ दूरे । ता पहनिव्वदणकए कहेमि अक्खाणयं सुणसु ॥१०६॥ 
राया वि मोणमस्सिय पत्तो कावालियं भणइ एवं | एयं अक्खयमडयं अन्न पि हु भणसु मह किच्चं ॥१०७॥ 
तेणुत्त तल्हट्डसु वबसाए संपयमिमस्स पयजुयलं | सो उण निवकरवालं करम्मि काऊण मडयर्स ॥१०८॥ 
आदत्तों परिजविउं मंतं राया वि पणवमक्खुहिओ । ताव य मंतपभावा सहस त्ति समुट्ठियमिमी वि ॥१०९॥ 
गाढयरं जा क्रायइ पणवं भूमीए ताव त॑ पडियं । पुणरवि य मंत-पणवे दुन्नि वि सुद्दुयरमुवउत्ता ॥११०॥ 
भायंति जाव ताव य भूओ बि हु लग्गमुद्ठिउं मडयं । पणवपभावा पडिय॑ तहेव कावालिओ तत्तो ॥१११॥ 
आवेसेणं जा जबइ मंतमेएणमुट्टिउ ताव | तइयाए वाराए पहओ खग्गेण कावाली ॥११२॥ 

जाओ सुबन्नखोडी त॑ पुण किच्चा सुवन्नयं भणियं । पुरिसो छिन्नावववों वि जायए पुणरवि य पुन्नी ॥११३॥ 
इय सो सुवन्नपुरिसो पददियहं पि हु वइज्जमाणो वि। देवाणुभावओ ख़ु न निट्टए तत्तिओ चेव ॥११४॥ 
तो तस्स पभावेणं सब्बं पि वसुंधरं रिणविहीणं । विहिउं विहिओ तेणं नियओ संबच्छरो रज्ञा ॥११४५॥७॥ 
इय विक्कमनरवइणो कहाणयं तुह मए समक्खायं॑ | तुह संगमरसियाएु न उणो नियपाणभीयाए ॥११६॥ 


र३. व्यसनशतजनकयुवत्यविश्वासवर्णनाधिकारे भावभद्चिकाल्यानकम्‌ १६७ 


उकखणिऊर्ण जबखो जमजीहासलिहं छुरियमेसो । जा मारिउं पवत्तो ता भणिओ तीए मिउबयणं ॥११७॥ 
भयवं ! पढमो पहरो5इक्कंतो जामिणीए पहरतिगं । पडिपुन्नमेव चिट्दह ता कुणसु थिरत्तमबरं च ॥११८॥ 
मह उबरि सियालीए उब्भडदाढाविडंबियमुहस्स | पंचाणणस्स भण तुज्क केरिसो एस संरंभो ? ॥११९॥ 
ता कप्पपायवसमं जम्मन्तरपुन्नपावणिज्जमिप्र | माणेमि तुज्क दंसणमओ कहाणयमिमं सुणसु ॥१२०॥ 
तो तीए सजीहाए सो जक्खो मारणुज्जुओ वहरी । बंधुसमो संजणिओ अहो ) हु जीहाए माहष्पं ॥ १२ १॥ 
जइ एवं तो भद्दे ! कहाणयं कहसु जमभिरुइयं ते । एसो हं तस्सवणे पउठणो त॑ जंपियमिमीए |॥|१२२॥ 


[ वर्णिक्पुशत्न-जिनवद्शयोराख्यानकम ] 


जंबुद्दीवव्भंतरभा रहवासस्स मज्भखंडम्मि । महुराभिद्ाणनयरी आसि महीवीढविक्खाया ॥१२३॥ 

तत्थ5त्थि महीनाही जियसत्तु धारिणी पिया तस्स । कइया वि हु भंडीरवणचेइए ऊसवे जाए ॥१२४॥ 

संपत्तो नरनाही सपरियणो सावरोहणो तत्थ । केणावि वणियपुत्तेण जबणियंतरियदेवीए ॥ १२४५॥ 
आलत्तयरसरंजियनहमणिकिरणावलीहि विच्छुरिओ । रयणाभरणव्स्थ्टो दिद्ठो अंगुद्नगों तेण ॥१२६॥ 

अंगुट्टओो वि जीसे असरिससुंदे्‌रमंदिरं तीसे । अमरीण वि अव्भहिया सरीरसोहा घुबं होही ॥१२७॥ 

जइ न इमाए सब्वंगसुंदरावववमणहरंगीए । पावेमि संगमसुहं ता नियमा होइ मरणं मे ॥१२८॥ 

इय चिंतिऊण नाया या धारिणी सा तओ वणिसुएण । तव्विरहविहुरियंगेण रायमंदिरदुवारम्मि ॥१२९॥ 

गहिय॑ गंधियहडं देह समग्घं स सुन्दर वत्थुं । अंतेडरदासीओ वि तस्स हड्ढठे बवहरंति ॥१३०॥ 

आवज्जियाओ सब्वाओ तेण अन्तेउरीण दासीओ । धारिणिदेवीचेडी पियंकरा पुण विसेसेण ॥१३१ 

कइया वि वणियपुत्तेण चेडिया धारिणीए देवीए | पारूढगरुयपुलएण पुच्छिया कहसु मह भद्दे ! ॥१३२॥ 

की उन्वेढ॒ह पढम॑ पुडएु ? चेडीए जंपियं देवी । तो लेहगब्भपुडओ समप्पिओ तेण दासोए ॥१३३॥ 

तीए वि धारिणीए देवी उन्बेढएणु तयं जाबव | ता तत्थ लेहलिहियं पवाइयं एरिसं तीए ॥१३४॥ 

काले प्रसु्तत्य जनादनस्य, मेघान्धकारासु च शवेरीषु । मिथ्या न भाषामि विशालनेत्र !, ते प्रत्यया ये प्रथमाक्षरेषु ॥ १३५॥ 
'क्रामेमि ते! इमाईं पढमाणि पयक्खराणि नाऊण | सा अवगयलेहत्था य चिंतिउं एवमारद्धा ॥१३६॥ 

तेसिं घिरत्थु विसयाण पाणिणो जेहिं मोहिया संता । रागंधनयणजुयला कज्ञा-डकज्जाइ न नियंति ॥१३७॥। 

तं किंपि नत्यि भुवणोयरम्मि पावं न जं॑ं अहिलसंति । पुरिसा विसयपिवासापरव्वसा मुक्कमज्ञाया ॥१३८॥ 
भुवणब्भंतरवित्थरियजसहरा ते जियंतुं जियकोण । जे परकलरूत्तविसए विरत्तचित्ता महासत्ता ॥१३९॥ 

ता एस विसयवंछाविमोहिओ मा विणस्सठ वराओ । इय चिंतिय पुडयक्रओ लेहो तीए वि पेसबिओ ॥|१४०॥ 
जाय॑ मज्क समीहियमिइ चितिय तेण हिद्मह्दियणण । उब्बेढिऊण पुडय॑ पवाइयं एरिसं तत्थ ॥१४०१॥ 

नेहलोके सुखं किश्विच्छादितस्थांहसा भृुशम्‌ । मितं च जीवितं नणां तेन धर्मे मति कुरु ॥१०२॥ 

पढमक्खराणि पायाण तेण “"नेच्छामि ते!” त्ति नायाणि | तो विमणदुम्मणो सो विगयासो चितिउं छग्गो ॥१४३॥ 
नेच्छइ परपुरिसमिमा संजायमहासइत्तगुरु गव्वा । ता चिट्टिउ न सक्‍को तीए विओगे इह खणं पि ॥१४४॥ 
अमराउरीसमाणं पेयवर्ण पुरिवरं पि पियविरहे । पडिहासइ सग्गसमं वल्लहजणजुयमरज्न पि ॥१४५॥।॥ 

ता किमिह संठिएणं तब्विरहे ? इय विचितिड' चलिओ । गच्छंतो संपत्तो कम्मि वि रज्जंतरे स वणी ॥|१४६॥ 
दिट्लो य सिद्धउत्तो उज्काओ तेण निययछत्ताण । नीइ' वक्‍खाणंतेण तेण एयारिसं पढियं ॥१४७।॥ 

अत्थो कामो धम्मो सत्तुविणासो अतूरमाणस्स । जिणदत्तसावयस्स व जहिछ्छिओ होइ पुरिसस्स ॥१४८॥ 

को एसो जिणदत्तो ? त्ति पुच्छिण ताण कहइ उज्ञाओ । आसि वसन्‍न्तउरपुरे जिणदत्तो इब्भसेट्टिसुओ ॥॥१४९॥ 
अहिगयजीवा-डजीवो परियाणियपुन्न-पावपरिणामो । अह अज्नया य दविणज्जणाय चंपाए सो पत्तो ॥१५०॥। 
तत्थ धणसत्थवाहो महेसरो तस्स दुन्नि रयणाणि । चउजलहिसारहारों अवबरा हारप्पह्टा धूया ॥१५१॥ 


रश्फ़ 


आद्यानकमणिकोशे 


जाए संववहारे जिणदत्तो तयणु तस्स भवणम्मिं । पत्तो कीलंति तत्थ नियह हारप्पहं कन्नं ॥१५२॥ 
उब्मिज्जमाणजोव्वणरमणीयं अमररमणिसमरूवं । अणुरायरं जिओ सो निययावासम्मि संपत्तो ॥|१४५३॥ 

मग्गाविओ धणो तं कन्नं हारप्पहं न से दिल्ला | तो विक्किणियकयाणो जिणदत्तो नियपुरिं पत्तो ॥१५४॥ 
हारप्पहानिमित्तं काऊणं छत्तबेसमणुपत्तो | चंपाए किंचि उज्ञायमुत्तमं सो समझ्लीणो ॥१५५॥ 

मह वक्‍खाणसु किंपि हु तेणुत्त जंपए उबज्काओं | भोयणरहियं विज्ज गिण्हसु जं कि पि पडिहाइ ॥१५६॥ 
मग्गसु धणस्स पासम्मि भोय्ण भद्द ! दाणवसणी सो । पंचसए ससरक्खाण जेण भुंजंति तस्स गिहे ॥१५७॥ 

तो तेण धणो भोयणनिमित्तमब्भत्यिओ भणइ कन्न । बच्छे ! जं वा तं॑ वा एसो भोयावियव्वों त्ति ॥१५८॥ 
हारप्पहाउणुद्विसं पि भोयणं तस्स वियरए सो वि। त॑ पुप्फ-फलाइईहिं उबयरइ न मन्नए सा वि ॥१५९॥ 

छंदा णुवत्तणेणं मिउभासंतेण तेण अणुदिवसं । आयारिंगियकुसलेण रंजिया सा तहा कहवि ॥१६०॥ 

तीए जहा भणिओ सो मग्गसु इद्ठ पयंपए सो य | जइ एवं ता सुहयसु ममंगसंगेण तीयुत्त ॥१६१॥ 
पायाइगहियवन्न॑ सललियपयगामिरणि मम सरिच्छे । मुणिऊर्ग गाहमिम॑ जं कायब्बं तयं कुणसु ॥१६२॥ 

हसियं तुह हरइ मण्ण रमियं पि विसेसओ न संदेहो । मयरद्धओ व्व विनडइ मंन्‌ वि तुमाओ वित्थरिओं ॥१६३॥ 
भावत्थो एयाए गाहाए 'हर मम! ति पढमेहिं। पथयअक्खरेहिं सिद्टो हरामि कि ? अहव नो जुत्त ॥१६४॥ 
इह-परलोगविरुद्ध हर इय चिंतिकग भणिया सा । ससिवयणि ! सुपुरिसा्ण न जुज्मए कहवि अवहरणं ॥१६५॥ 
ता अलियगहर्गहिया होसु तुम जेण मन्तवाइत्तं | काउ' निरुयं जाय॑ गुरुयणदिन्नं विवाहेमि ॥१६६॥ 

मह वल्लहेण विहिओ चारुपवंचो त्ति चितिउ' रूग्गा | हारप्पह्या पयंपिउमुवहासपरं असंबद्ध' ॥१६७॥ 

एमेव हसइ गायइ पलवइ नज्च३ पुरे परिब्भभहई । तो सत्थवाहपमुहो छोगो अच्चाउडो जाओ ॥१६८॥ 
वाहरिया सब्बे वि हु पयंडवरमंतवाइणो तत्थ । तेहिं वर्मंतवाएु कए गहो वद्धिओ अहिय॑ ॥१६९॥ 

कि बहुणा?जह जह विज्जवाइणो से कुणंति उबयारे | तह तह महागहो सो बाहर त॑ पिसुणलोगो व्व ॥१७०॥ 
तो पुच्छिओ स छत्तो धणेण जिणदत्त | जाणसे किंपि ? ।तेणुत्तं मज्ञ कुलक्कमागया संति बिज्ञाओ ॥१७१॥ 
पेच्छामि परमिमीए सरूवमिय ज़ंपिऊण जिणदत्तो | पत्तो तीए सयासे रहम्मि सा जंपिया तेण ॥|१७२॥ 

सुयणु ! करिस्समहं ते मंतपओगं परं॑ तह कए वि। तइ्याए वाराए पउणा तं॑ होसु इय भणिउं ॥१७३॥ 

गंतृण धघणो भणिओ महागहो ताय ! एस दुस्सज्को | मंतो वि भूयतासो समत्यि ता कुणसु सामरग्गि ॥१७४॥ 
आबालकालपालियविसुद्धबंभव्वया नरा अट्ठट । ताय ! निहालसु मज्झ॑ जे उत्तरसाहया होंति ॥१७४५॥ 

भणइ धणों भयवंतो ससरक्खा सन्ति सीलबलकलिया । ता सो किण्हचउद्द सिनिसाए चलिओ धणाइजुओ ॥१७६॥ 
संपत्तो पेयवणे पिसायअट्टद्नहासभीमम्मि | डज्झंतमडयवसविस्सगंधपरिपूरियदियंते ॥|१७७॥ 
एयारिसभीसावणमसाणमज्क्रम्मि मंड्ं काउं । ससरक्खा खग्गकरा विहिया एवं च उल्लविया ॥१७८॥ 

सोउं सहाससद्दं तुब्भेहिं सिवारवा विहेयव्वा | इय सिक्‍खविउं मुक्का ते अट्ट वि अद्ठसु दिसासु ॥१७९॥ 

पुव्व॑ चिय सिक्खबिया ताण पुरो सदृवेहिणो अट्ठ । विंधेयव्वं लक््खं तुब्भेहिं सिवारवे जाए ॥१८०॥ 

तो मंडलए उववेसिऊण हारप्पहं समुवविट्टो | पञ्ालिऊण जलणं 'हुंफडुसाह' त्ति तेणुत्ते ॥१८१॥ 

सइवेहिं सिवाफेकारवो कओ तयणु सददवेहीहिं । विद्धा बाणेहिं तओ नट्ठा भयकंपिरा ते वि ॥१८२॥ 
पीडियमहिय॑ पत्तं मंडलए मन्‍्तवाइओ पडिओ । उवलद्धचेयणो पुएण खणेण भणिउं समाढत्तो ॥१८३॥ 

ताय! मए पुव्व॑ पि हु पयंपियं बंभचारिणो दुलहा । इय जंपिऊण सब्बाणि ताणि पत्ताणि नियठाणं ॥१८७॥ 
गहनिग्गहं कहं त॑ं कुणसि ? त्ति धणेण पुच्छिओ छत्तो । जइ किर अज्ज वि इह बंभयारिणो हुंति तेणुत्त ॥१८५॥ 
नियगुरुणो सत्थाहेण पिया बंभयारिणो परमा । पेसह तह विहिए त॑ पि विहडिय॑ भमत्ति पुव्व॑ व ॥१८६॥ 
निद्धाडिया धणेणं कुविए७ तओ असेसससरक्खा । पुट्टं च कहं पुण बंभयारिणो वच्छ! नायव्वा १ ॥१८७॥ 


जओ- 


२३. व्यसनशतजनक युवत्यविश्वासवर्णनाधिकारे भावभटकाल्यानकम्‌ १६६ 


वसहि-कह-निसिज्जिदिय-कुड्डंतर-पुब्वकीलिय-पणीए । अहमायाहार विभूसणा य नव बंभगुत्तीओ ॥१८८॥ 
बुज्म॑ति अणु॒ट्टंति य गाहत्थ॑ जे इम॑ विसुद्धा ते । वरबंभयारिणो तो धणेण सा दंसिया गाहा ॥१८९॥ 

ससरक्ख-अक्खपायाइयाण नाओ न तेहिं परमत्थो । एव्थंतरम्मि सिरिधम्मघोससूरी समोसरिओो ॥१९०॥ 
उबबिट्ठ पउरजणे जिणदत्तो सह धणेण संपत्तो । पणमिय गुरूण चरणे उवविट्टो उचियठाणम्मि ॥१९१॥ 
सूरीहिं समारद्धा सनीरनीरयसरेण धम्मकहा । भो भव्वा ! सव्वाणि वि सुहाणि धम्मेण जायंति ॥१९२॥ 


धम्मेणं चिय अत्था धम्मेणं चेव उत्तमा भोगा । धम्मेण सग्ग-मोक्खा सुहाईं सब्वाणि धम्मेण ॥१९३॥ 
नारय-तिरियगदओ सत्ता पावंति पुण अहम्मेण | ता परिहरिय अहम्मं॑ धम्मम्मि रईं सया कुणह ॥१९४॥ 

इय निम्ुणिऊण सूरीण देसणं फुरियगरुयसंवेगो । पडिबुद्धो पाणिगणो धणो वि सावयसमों जाओ ॥१९५॥ 

ते सकयत्था सूरुग्गमम्मि सूरीण जे नमंति कमे । इय भार्वितिण धणेण पमणिओ तयणु जिणदत्तो ॥१९६॥ 
जारिसया वच्छ ! तए संलत्ता बंभयारिणो नुणं । तारिसया जइ एए ववक्‍्खाणावेसु ता गाहं ॥१९७॥ 
वक्‍खाणिया मुर्णिदेण पभणियं तत्थ सत्यवाहेण । भयवं ! मंडलकम्मे पद्ठावसु साहुणो नियए ॥१९८॥ 

न हु एसो मुणिमग्गो बच्चंति जमेरिसेसु कज्जेसु | मुणिणो इय गुरुभणिए सविणयमुन्नवह जिणदत्तो ॥१९९॥ 
परिचत्तगिहावासा ताय ! इमे सत्तु-मित्तसमचित्ता | समतिण-मणिणो वरबंभयारिणो तिव्वतवनिरया ॥|२००॥ 
मुणिणों कुणंति न कया वि ताव गिहिसमुचियाईं कज्जाईं | किंतु इमेसि नाम॑ पि नासणं कुणइ भूयाणं ॥२०१॥ 
लिहिडं मुणीण नामाणि तेण अट्टसु दिसासु पेयवणे | ठविऊण मंतवाओ कओ पयत्तेण छत्तेण ।|२०२॥ 
हारप्पहा महीए पडिया सहसा विमुकअकंदा । उवलद्धचेयणा पुण खणेण सा जंपिउ' छूगा ॥२०३॥ 

कि ताय ! जणो मिलिओ पेयवणे तयणु तीए वृत्तंतो | कहिओ त॑ सोउ' सा छज्जाए अहोमुही जाया ॥२०४॥ 
तो सव्वाणि वि नियमंदिरम्मि पत्ताणि ताणि हिद्ठाणि । जाए परभायसमए विचितियं सत्थवाहेण ॥२०५०॥ 
निकित्तिमोवयारी जिणदत्तो ता इमस्स मह जुत्त | काउं पच्च॒वयारं सो य सुयादाणओ होइ ॥२०६॥ 

भणिओ य तओ सो वच्छ ! गिन्ह हारप्पहं विवाहेउं । तेणुत्त ताओ च्चिय जुत्ता-उजुत्तं वियाणेइ ॥२०७॥ 
सुपसत्थदिणे परिणाविओ य हारप्पहं धणेण तओ । करमेल्लावणदाणं दिन्न॑ हारेण संजुत्त ॥२०८॥ 

तो जिणदत्तो कश्य वि दिणाणि तत्थेव भुंजिडं भोण । हारप्पहाए जुत्तो संपत्तो निययनयरीण ॥२०९॥ 
हारपहा जह लद्धा तेणं थिरयाए तह य बुद्धीए । तह अन्नो वि हु थिखुद्धिभावओ लहह सब्वं पि ॥२१०॥७॥ 
सोऊण नीइसत्थं म।हुरवणिणा वि चितियं एयं । जह संजाया एयस्स इट्टसिद्धी सबुद्धीए ॥२११॥ 

अहमवि तह नियनरयरिं गंतुं पेसेमि दृशकज्जेण । अक्खलियप्पसराओ तीए परिव्वाइयाओ दुयं ॥२१२॥ 
सिक्‍्खेमि वरसीकरणाय मंत-तंताइयाणि सवब्बवाणि | तह विज्ञासिद्धाणं नराण काहामि ओलछूगगं ॥२१३॥ 

इय चिंतिऊण पत्तो नियनयरिं तह अणुट्टियं सब्वं | अवलग्गिएहिं विज्ञासिद्धेहिं पयंपियं एयं ॥२१४॥ 

तुद्ठा वयमब्भत्थसु इट्टं तो मग्गिया इमं तेण । जह होइ धारिणी मे भज्जा तुब्भे तहा जयह ॥२१५॥ 

इय पडिवज्िय मारी विउव्विया तेहि डिभरूवाण । नीरोगाणि विं डिंभाणि तत्थ एमेव य मरंति ॥२१६॥ 
आइट्टा नरनाहेण नियह मारीए कारणं सिद्धा । देव ! महादेवी ते मारी इय जंपियं तेहिं ॥२१७॥ 

देवीए सेज्ञाए मयडिभकराइयाणि खंडाणि । खित्ताणि तओ बयणं विलिंपियं तीए रुहिरिण ॥२१८॥ 

जाव निवो तीए निरिक्खणाय पत्तो तमस्सिणीविरमे । तो त॑ दह्ढ॑ | रुट्टो तीए असुहोदयवसेणं ॥२१९॥ 

अह सिद्धाणं हणणत्थमप्पिया घारिणी तओ तेहिं। भेसविया पेयवणे नेऊण निसाए सा बाढं ॥२२०॥ 
कयसंकेओ पत्तो वणियसुओ भणह भो ! किमारद्धं ? । तेहुत्तमिमं मार्रि दुम्मरणेण॑ विणासेमो ॥२२१॥ 

मारी न सोमयाए एयारिसयाए होह ता मुयह । मरणं विणा न मोक्खो तेहुत्ते भणइ वणियसुओ ॥२२२॥ 


आखश्यानकमणिकोशे 


दविणेण मुय॒ह न मुयंति जाव ता जंपिया इमं तेण। मारह म॑ एयं पुण मुयह न मेल्लंति ते तह वि ॥२२३॥ 
तो तेण भणियमेईैण मारणे इृह मए वि मरियव्बं | अम्हाण तुम विश्य॑ संजाओ जंपियं तेहिं ॥२२४॥ 
तो दाउ' दीणाराण कोडिमम्हाण त॑ पुणो दूरं । वच्चसु गिन्हेवि इमं न जहा नज्जद इमा एत्थ ॥२२५॥ 
दिन्नम्मि ताण दविणे देवी चितह अहो ! महासत्तो । कोह इमो मह कज्जे जो नियजीयं पि परिहरइ ॥२२६॥ 
जहइ एस महासत्तो निक्वारिमवच्छलो न इह हुंतो । ता केणाबि कुमरणेण मारिया नियमओ हुंती ॥२२७॥ 
पच्चुवयारं काउ' न तरामि इमस्स नरसिरोमणिणो । नियतणुदाणेण वि इय विचितिउ' तेण संजुत्ता ॥२२८॥ 
गंतृण दूरदेसे मणप्पिया तस्स भारिया जाया । दोण्ह वि नवनेहक्संगयाण कालो अइक्कअह ॥२२९॥ 
पंचप्पयारविसए दोजन्नि वि भुंजंति पमुइयमणाणि । विविहष्पयारकीलाविणोयवकक्खित्तचित्ताणि ॥२३०॥ 
अह अन्नया य रयणीए देवजत्ताए गच्छमाणो सो । तव्विरहमसहमाणाए तीए वत्थंचले धरिओं ॥२३१॥ 
त॑ तारिसं इमं पुण एयारिसमिद पयंपिए तेण | देवीए पुच्छिओ सो गरुयनिबंधेण कहसु त्ति ॥२३२॥ 
तेण वि लेहाईओ वत्थंचल्धरणकहणपज्जंतो । कहिओ से वुत्तंतो विसन्नवयणा ठिया सा वि ॥२३३॥ 
भणियं च तय॑ तुमए विहिय॑ ? वणिएण भणियमाम॑ं ति। सा भणइ पाव ! विहिया विडंबणा कि तए मज्क ? ॥२३४॥ 
ता तिविहं तिविहेणं नियमोी मह होउ सयलपुरिसाण । इयजंपिऊण काण वि अज्ञाण सयासमल्लीणा ॥|२३५॥ 
भणियाओ ताओ भयवह ! पव्वज्ज' देहि जोग्गया जइ मे । जोग्ग त्ति दिविखया ताहिं तयणु तिव्वं तव॑ काउ. ॥२३६॥ 
समउत्तविहााणेणं पत्ता सा मरिउममरलोयम्मि । सो पुण अइ्ज्काणेण किन्हलेसाएु नरयम्मि ॥२३७॥ 
तो तेण वणियपुत्तेण थेज्जवसओ समीहिय॑ पत्तं । तुम्हारिसा विसेसेण हुन्ति सव्वत्थ थिरचित्ता ।२३८॥ 
पुणरवि तइृज्जपहरे जा सो उद्धाईओ हणिउकामो । ता कीए वि भणिइए कहं सुणावेइ सा य इमा ॥२३९॥ 


[ अमरद्रा-मित्रानन्दाख्यानकम ] 
आसि विसालवसुन्धरविछासिणीवरविलासभवण्ण व | भुवणयलतिल्यतुल्न तिल्यपुरं नाम नयरं ति ॥२४०॥ 
सिंधुरसमिद्धिरिद्धो राया मयरद्धउ त्ति तत्था55सि । उद्दामसत्तवारणवियारणो जस्स करवालो ॥।१४१॥ 
रइरमणिकेलिभवणं सिंगारगिहं व कुसुमबाणस्स । तस्सा55सि मयणसेण व्व पणइणी मयणसेण त्ति ॥२४२॥ 
पुन्वभवपु ज्पगरिसपरिचयपरिणामपावियपयावी । तीए सह विसयसोक्खं उवभुंजंतो गमइ काले ॥२४३॥ 
अह अन्नया य देवी निरूवयंती निवस्स चिहुरचयं | नियभवणमत्तवारणपरिट्विया पेच्छिउः पलियं ॥२४४॥ 
परिहासेण पयंपद पिययम ! दूओ समागओ एत्थ | तो नरवई निरिक्खइ संभंतो तरलनयणेहिं ॥२४५॥ 
चिंतेइ कह णु दूओ समागओ वंचिऊण वावसिए १ | सा विम्हइयं दहय॑ दट ठ्रणं भणइ परमत्थं ॥२५६॥ 
देव ! तुह सवणमले पलियछलेणं समागओं दूओ | विन्नवह् खमं चहऊण नियमणं घरसु धम्मम्मि |२४७॥। 
इय निमुुणिऊकण वणयं पियाए परिहासपेसलरसं पि। वेरग्गगओ चितेइ नियमणे तयणु नरनाहो |२४-॥ 
पुत्वपुरिसाणुसरिओ परिहरिओ नियमओ मए मग्गो । जम्हा अदिट्वपलिया करिंसु ते घोरतबचरणं ।।२४९॥ 
ता इणिंह चिय रज्जे ठविऊर्ण पउमकेसरकुमारं | गंतुण तावसवर्णं तावसवयमणु चरिस्सामि ॥२५०॥॥ 
इय चितिऊण सुपसत्थवासरे कणयकल्ससलिलेण | आपुच्छिय मंतियणं करेइ कुमरस्स अहिसेयं ॥२५१॥ 
चइऊण रायरूच्छि सकलत्तो सत्तु-मित्तसमचित्तो | गंतृण तावसव्णे पडिवज्जइ सो तबचरणं |॥२५२॥। 
वच्चंतेसु दिणेसुं सुगूढगब्भो पवड़िओ तीए | सुयणजणस्स व नेही त॑ पेच्छिय पुच्छिए रिसिणा ॥२५३॥ 
सामि! तुह चिय गड्भी एसो साहेइ सा वि निवरिसिणो | वयगहणमंगभीयाए साहिओ नो मए तहया |॥|२५४॥ 
तो पच्छन्नं तीए सुहेण गब्भं समुव्वहंतोए । नवमास<द्धट्टमवासरेहिं पुत्तो समुप्पन्नो ॥२५५॥ 
अगुचियआहा रेहि सुकुमारत्ताओ तह सरीरस्स । सह घोरवेयणाए सूयारोगो समुप्पन्नो |२५६॥ 
नवबालपालणकण आदल्ो जाव तावससमूहो । देवसिरिभारियाए समन्निओ बालधूयाए ॥२५७॥ 


तहा हि--- 


१६ 


२३, व्यसमशतजनकयुवत्यविश्वासवर्णनाधिकारे भावभद्टिकाल्यानकम्‌ २०१ 


तावुज्जणिनिवासी देवाणंद/भिहाणवरसेट्टी । हरिसठराओ नियत्तो संपत्तो तावसवणम्मि ॥२५८॥ 

पणमित्तु तावसजणं विमणं संपेष्छिऊण पुच्छेद । साहेइ मयणसेणाए वहयरं सो वि तप्पुरओ ॥२५९॥ 

अम्हाण पुव्बपुञ्नाणुभावओ त॑ समागओ एत्थ | इय भणिऊण समप्पेइ तस्स कुमरं मयणसेणा ||२६०॥ 
तणुकरिरणनियरणिज्वियनवतर्रणि तं॑ गहिततु सेट्टी वि । देवसिरिभारियाए पमुइयहिययाए अप्पेइ ॥२६१॥ 
अच्च॑ंतवेयणगया दिवंगया तयणु मयणसेणा वि। तद्दुक्खभरियहियएण पडिबोहइ तावसे सेट्टी ॥२६२॥ 
तरुणीकडक्खचवलम्मि जोव्वणे जीवियम्मि तडितरले । सोगो जद्देण जुत्तो न होइ ता त॑ परिच्चयह ॥२६३॥ 
इय अबसोए काऊण तावसे ताण पणयपयपउमी । संचलिओ सकुमारों संपत्तो नयरिमुज्जेणि ॥२६४॥। 
सुपसत्यतिहिमुहुत्ते करेह कुमरस्स अमरदत्तो त्ति। नाम॑ सम्माणंतों सेट्टी निधनयरजणनियरं ॥२६५॥ 
परिवड्ठमाणदेहेण तेण बाहत्तरी वि ये कलाओ 22४ डक 2 हक ड आल मल कक 4 बह जे कड़ी किक कक मे | | २ ६६ | | 

अबरं च तत्थ वेसमणसेट्ठिपुत्तो कलाकुसलचित्तो । मित्ताणंदो नामेण तस्स जाओ परममित्तो ॥२६७॥ 

तेण सह विविहकेलिप्पसंगवर्क्खित्तमाणसो कुमरो । गच्छंतमवि न याणइ काल सम्गे सुरवरों व्व ॥२६८॥ 
एत्थंतरम्मि गंभीरगज्जिजयतूरपूरियदियंतो । थुव्वंतो बरहिणमागहेहिं केकारवथुईहिं ॥२६९॥ 

वोइज्जंतो दिसिसुंद्रीहि पवसंतहंसचमरेहिं । हयसूररायपावियब्रकायमालाजयपडाओ ।।२७०॥ 
अक्खंडाखंडलचावदंडमणिकणयपट्टकयसोहो | उद्दंडगुरुसमीरणजयवारण खंधमारूढो ।।२७१॥ 

अवलोयंतो उब्भडतडिच्छडाडोयरत्तनेत्तेहिं | मुवणयर्ं संताविय विणिग्गयं गिम्हपडिवक्खं |२७२॥ 
धाराहारविराइयविप्फारियमेहडंबरो भुवर्ण । निव्वार्वितो पत्तों नहंगणे नवधणनरिंदों ॥२७३॥ 

एत्थंतरम्मि दान्नि वि गंतुणं मत्तकोइलुज्ञाणे | सिप्पसरिपरिसरम्मी कुब्वंति अणोल्या खेड्डं ॥|२७४॥। 

अह अमरदत्तकणियासमाहया5णोलिया समुच्छलिया । जा गयणे सेट्विसुओ उड्ककरो मल्लणु ताव ॥२७५॥ 
वडविडविविडवलूबियमडयमु हे निवर्डियं तयं नियह । विम्हइयमणो हसिउं पयंपए5हह ! महच्छरियं ।|२७६॥ 
तो मडएण वि हसिउं भणियं तुद थेवकालओ एत्थ | अवलंबियस्स एयं होही ता कि महच्छरियं ? ॥२७७॥ 
तव्वयणायन्नणजायगरुयभयकंपमाणमण-गत्ता । सो अमरदत्तमित्तेण सह गओ निययभवणम्मि ॥२७८॥ 
परिहरियालंकारों अवहृत्यियविविहवत्थसिंगारो । न हसइ न रमइ न भमइ न सुयह न चवह न जेमेइ ॥२७९॥ 
करकलियकवोली सो केवलमविचलसरीरवावारो । उत्थंभिओ व्व उक्कीरिओं व्व लिहिओ व्व सुत्तो व्व ॥२८०॥ 
उब्बिग्गमाणसं त॑ द्वणं भणियममरदत्तेण । मित्त |! अणिमित्तमेयं कि तुह हियय॑ पणट्टमिणं ? ॥२८१॥ 

कि मित्त ! पराभूओ केण वि? अहवावमाणिओ पिठणा ?। उत्तसिरहरिणनयणी अह रमणी कावि तुह हियएु १॥२८२॥ 
अच्ंतमकहणिज्ं न होह जह ता कहेसु मह एयं | इय अमरदत्तभणिए मित्ताणंदों पयंपेह ॥२८३॥ 
नियजणणि-जणय-बंधव-भदणी-भज्जाइ-भिच्चवग्गस्स । अवबि होज्ज अकहणीयं मित्तस्स न नेहसारस्स ॥२८४॥ 
इय भणिऊणं तेणं कहिओ सब्बों वि मडयवुर्न्तो | त॑ं निसुणिउः कुमारों पभणइ मा मित्त ! बीहेसु ॥२८५॥ 
जेण न नज्जह एये सच्च होही उआहु पुण अलियं । जम्हा मडयमुदि ट्विय भणंति भूयाणि केलीए ॥२८६॥ 
कितु तह पुरिसयारों कीरउ गुरुदुरियनासणनिमित्त । नियगोत्तरक्खणकए जह विहिओ नाणगब्भेण ॥२८७॥ 


नयरम्मि वसंतपुरे उच्भडभडकोडिसंकडत्थाणे | जियसत्तुपुहपाले डबबिट्ठे मंतिजणकलिए ॥२८८॥ 
पडिहारकयपवेसी एगो नेमित्तिओ नर्रिदिण । संपुच्छिओं पयासह सुह-दुह्मत्थाणलोयस्स ॥२८९॥ 

खणमेगं कयमोणो ही ही ! दिव्वस्स विलूसियं पिच्छ । जं पुरिसरयण ! एयस्स आवया अहह ! निबडेही ॥२९०॥ 
होही मारी तेरसमवासरे नाणगब्भमंतिस्स । तं॑ निमुणिऊण मंती नेमित्तियमाणिउ' भवणे ॥२९१॥ 

सम्माणिऊण विणएण पुच्छए कहसु कारणमिमीए । सो भणह जेट्टपुत्ताओ पभ्रणिए मंतिणाउभिहिओ ॥२९२॥ 

एयं न भासियव्बं कस्स5वि पुरओ त्ति त॑ विसज्जेह । साहेइ जेट्टपुत्तरस सो वि तब्ब॒इयरं सब्बं ॥२९३॥ 


२०२ 


आख्यानकमरणिकोशे 


भणइ य जइ बच्छ ! तुम मह वयणं कुणसि तो सबुद्धीए | रक्खेमि जममुहाओ वि घोरमारीए निमगोत्त ॥२९४॥ 
इय निमुणिऊण पुत्तो भणेइ जं ताय ! भणसि त॑ काहं | मंजूसाए तो खिबइ पाण-भोयणजुयं त॑ से ॥२९५॥ 
तालितु चउप्पासं मंजूसं राइणो समप्पेउः | पभणेइ देव ! मह गिहसारं रक्खेह कइवि दिणे ॥२९६॥ 

त॑ वयण्णं पडिवज्जिय राया रक्खइ निउत्तपुरिसेहिं | मंती गंतृण गिहे चिट्ठ सद्धम्मकमाणपरो ॥२९७॥ 

अह तेरसम्मि दिवसे उच्छलिओ कलयलो5वरोहम्मि | कुमरीए मंतिपुत्तेण कड़िओ वेणिदंडो त्ति ॥१९८॥ 

त॑ निमुणिउ नरिंदों उब्भडमिउडीमयंकरों भणइ । रे रे मारह मारह मंति गंतृण सकुडुंबं ॥२९९॥ 
रायाएसाणंतरमुद्भधाया घोरपहरणा पुरिसा । पावित्तु मंतिमवर्ण भणंति एवं कहिं मंती १ ॥३००॥ 
लल्लकहककक्कसवयणं सोउं भणावए मंती । अवराहदूसियस्स वि देवो मह दंसणं देउ ॥|३०१॥ 

जह मंजूसादव्ब॑ उबणेमि निवस्स पायपउमपुरों | पच्छा जह पडिहासइ तह मज्क् विणिग्गहं कुणउ |॥३०२॥ 
रायाएसेण तओ तेहिं वि मंती निवस्स उवणीओ । उम्घाडइ मंजूसं निवपुरओ जाव ता तत्थ ॥३०३॥ 
वामकर॒गहियवेणणिं दाहिणकरगहियतिक्खअसिधेणुं । पासित्तु मंतिपुत्तं तयवत्थं विम्हिओ राया ॥३०४॥ 

पुच्छह अतुच्छठच्छलियकोउओ पत्थिवों महामंतिं | साहेइ सो वि सब्बं नेमित्तियवइयरं तस्स ॥३०५॥ 

तो भणइ निबो तुह गोत्तकुवियवंतरकया वि अइधोरा । नियबुद्धिपगरिसेणं तुमए अवहत्थिया मारी ॥३०६॥ 
इय भणिऊणं पुहईसरेण महविहवहरियहियएण । मुक्को पसायपुव्वं मंती सिरिनाणगब्भो त्ति ॥३०७॥७॥ 
नियबुद्धिपगरिसेणं  तेणं जह रकिखियं नियकुडुंबं | अम्हे वि तह विहेमो रक्खमुवाएण केणावि |॥३०४८॥ 
मित्ताणंदो पमणइ स उवाओ मित्त | केरिसों ? कहसु । तो भणइ अमरदत्तो गम्मइ देसंतरं दूरं ॥३०९॥ 

तो पभणइ सेट्टिसुओ सुटठु उवाओ निरिक्खिओ तुमए | किंतु सुकुमारतणुणों तुह गम कह विएसम्मि ? ॥३१०॥ 
अह एक्को चिय दसंतरम्मि गच्छामि तह वि तुह विरहे | जं मह काले होही त॑ जायइ संपयं चेव ॥३११॥ 
इय निसुणिऊण पभणइ कुमरो बहुनेहनिब्भरं वयणं । मित्त ! तए सह अहमबि विएसवा्स अणुसरिस्स ॥३१२॥ 
इय एक्कमणा गमणेक्बुद्धिगो निययजणणि-जणयाणं । अन्नोन्नमनवणसयणं कहिऊण निसाए नीहरिया ॥३१३॥ 
जत्थ पएसे भुंजंति तत्थ न कुणंति कहबि सयणीयं । इय गच्छंता पत्ता पाडलिपुत्तम्मि नयरम्मि ॥३१४॥ 
तत्थुज्ञाणब्भंतरवावीजल्धोीयपायपउमजुया । दष्टूण देवहरयं हरिसेण पलछोइउं रूगगा ॥३१५॥ 

पेच्छंताणं अह अमरद॒त्तकुमरस्स पवरपुत्तलिया । अद्धुट्ठभंगघडिया पडिया पसरम्मि नयणाण ॥३१६॥ 

त॑ पेच्छंतो पीवरपओहरिं हरिणनयणरमणीयं । कुमरो हिययम्मि तओ विद्धों मयरद्धयसरेहिं ॥३१७॥ 

त॑ हयहिययं द्ढ मित्ताणंदेण पभणियं कुमर ! | नयरम्मि भोयणकए पविसामो जेण उस्सूरं ॥३१८॥ 

तो भणह अमरदत्तों सब्बंगं पुत्तलिं पलोएमि | ताव तुम खणमेक एत्थेव विलंबसु वयंस ! ॥३१९॥ 

पुणरवि खणेण भणिओ पभणइ साहेमि तुज्क परमत्थं । मित्त ! न सक्केमि अहं परिहरिउमिमं मणागं पि ॥३२०॥ 
तो सेट्विसुओ जंपइ निश्चेद्वाए किमेत्थ तुह नेहों ? | परिहासवयणलीलाकडक्खविक्खेवरहियाए ॥३२१॥ 

सो जंपइ कि बहुणा ? एयाए विणा न मित्त ! मह पाणा । अह मेल्लावेसि मम ता मञ्झ॑ देहि कद्ठाई ॥३२२॥ 
त॑ सोउं सेट्टिसुओ मन्नुभरुप्पन्तनाहसलिलाहों | जा विलुविउ' पयत्तो विवइ ता अमरदत्तो वि ॥३२३॥ 

ते दो वि जाव विलवंति ताव नियदेवपूयणनिमित्त | नामेण रयणसारों समागओ तत्थ पुरसेट्टी ॥३२४॥ 
पविसंतो संपेच्छइ रोबंते दो वि तत्थ वरकुमरे । आभासिउ' पयंपइ नारीण व चेट्टियं क्रिमिमं ? ॥३२५॥ 
भणियं मित्ताणंदेण ताय ! तुह जणयनिव्विसेसस्स । कि न कहिज्जर ? भणिऊण अक्षिखओ पुत्ववुत्ततो ॥३२६॥ 
जह उज्जणिपुरीए समागया एत्थ पाडलीपुत्ते | पुत्तलियदंसगाओ परव्वसो जह इमो जाओ ॥३२७॥ 

जा ताय | मए भणिओ वच्चामों ताव मग्गए कट्टं | इय सोउं मज्झ मणं मन्नुभरुम्मंथरं जाय॑ ॥३२८॥ 


१, तेण जद्दा -रं०। 


जओ--- 


२३, व्यसनशतजनकयुयत्यविश्वासवर्णनाधिकारे भावभट्टिकाल्यानकम २०३ 


त॑ निसुणिऊण सेट्टी कोमल्वयणेहिं पभणइ कुमारं । वच्छ ! न जुत्तं उत्तमपुरिसाणमठाणपडिबंधों ॥३२९॥ 

बाक्की वि जओ जाणइ नत्थि निचेद्माए रइरससुहाईं । ता विबुहहासद्वाणे वच्छ ! तुमं किह णु रत्तो सि ? ॥३३०॥ 
जंपश सोऊण तयं कुमरों वि हु ताय ! मोहिओ अहिय॑ । जइ मेल्लावेसि इमं मह अग्गी होज्ज ता सरणं ॥३३१॥ 
चिंतेइ तओ सेट्टी चित्ते तददुकखसल्लियसरीरो | सच्बयमिणं त॑ नूणं जं भणियं बिउसवग्गेण ॥३३२॥ 
गह-विस-भूयपणासण अत्थि अणेग नर, अत्थि जि वाहि विणासहिं तक्खणि वेज्जवर । 

जाणमि वेज्जु सु सश्चठ सत्थागमु वह, नेहगहिल्लह चित्तद जो ओसहु कह ॥३३३॥ 

किंतु परिहासपेसलरसाए रमणीए होठ अणुराओ । जं पुण पाहाणविणिम्मियाए जायइ तमच्छरियं ॥३३४॥ 

इय चितंतो सेट्ठी मित्ताणंदेण पमणिओ ताय !। मद मित्तजीवियकए कि पि उवाय॑ विचिंनेहि ॥३३५॥ 

वज्जरइ रयणसारों मज्क उवाओ न को वि विप्फुरह । जइ कोइ तुज्क चित्त ता झत्ति तयं पयासेसु ॥३३६॥ 

तो भणइ सेट्ठिपुत्तो अत्थि उवाओ अईवदुन्नेओ | जइ जाणिज्वइ एयं पुत्तलिया केण घडिय त्ति ॥३३७॥ 

तो आह रयणसारों भवणं काराबियं मए वच्छ ! | जाणेमि सुत्तहारं पि निम्मिया जेण पुत्तलिया |३३८॥ 
कुंकणविसयविहुसणसोपारयपुरवरम्मि सो, वसइ । साहसु ज॑ कायव्वं इय भमणिए मणइ सेट्ठिमुओ ॥३३९॥ 
पुच्छामो कि पडिछंदणण घडिया ? उयाहु एमेव ? | पंडिछंदएण घडिया जइ ता आणेमि त॑ नियमा ॥३४०॥ 
ता होज्ज कज्जसिद्धी बच्चामि ताय ! ता अहं तत्थ । पडियरियव्वों तुमए पहदियहं एत्थ मह मित्तो ॥३४१॥ 

सेट्टी वि तयं मन्नद भणइ तओ अमरदत्तकुमरों वि। कि मित्त ! असरिसेणं मंतेण किल्सबहुलेण ? ॥३०२॥ 


पुत्तलियविरहहुयवह जालोलिपलीवियस्स मह मरणं । अबरं च सुहय ! तुह मुहविओगकरवत्तकप्परणं ॥३४३॥ 
इयरो पर्यपइ इमं कुमार ! जइ नो दुमासमज्भम्मि । आगच्छामि तओ त॑ मुणिज्ञ जीवइ न मह मित्तो ॥३४४॥ 
इय गरुयनिबंधेणं कुमरं संठविय सेट्टिणाउणुमओ । पत्तो अक्खंडपयाणएह्ट सोपारयम्मि पुरे ॥३४४५॥ 
मुद्दारयणं विणिजोइऊण परिविहियवत्थ-सिंगारो । करयलकयतंबोलो जाइ गिहं सुत्तहारस्स ॥३०६॥ 

त॑ पविसंतं पासित्त सुत्तहारों वि कुणइ पडिवत्ति । परितुट्ठमणा पुचछ॑ति दो वि अपरोप्परं कुसलं ॥३४७॥ 
कज्बेण केण मह गिहमलंकियं ? सूरदेवभणियम्मि । तंबोलदाणपुव्बं मित्ताणंदो पयंपेह ॥३४८॥ 

इच्छामि कारिउमहं देवउलं तुह सयासओ किंतु । पाडलिपुत्तविणिम्मियपकिद्रपासायसारिच्छं ॥३४९॥ 

तो भणइ सूरदेवो देवउलं निम्मियं मए त॑ पि | इयरो वि भणइ अमुगा पुत्तलिया सालभंजी य ॥३५०॥ 
पडिछंदएण घडिया ? उयाहु नियबुद्धिनिम्मिया तुमए १ । तो भणइ सूरदेवो तरुणाणं मणवसीकरणं ॥३५१॥ 
उज्जेणिनयरिनायगमहसेणनरेसरस्स कन्नाएं। सिरिर्यणमंजरीए घडिया पडिछंदएण इमा ॥३५२ ॥ 

इय निमुणिऊण अहिलसियकज्जसिद्धी स बंघुरं भमणइ । पुणरवि पसत्थदियहे तुज्क सरूवं निवेइस्सं ॥३५३॥ 
तयणंतरं समुट्ठिय वत्थे विणिवश्टिकण नीहरिओ । अणवरयं वच्च॑तो संपत्तो नयरिमुज्जणि ॥३५४॥ 

अब्मितरे पविद्ठस्स तस्स पिहिएसु नयरदारेसुं | अल्लियइ वारवासिणिमवर्ण सयणाय सो जाव ॥३५५॥ 
एत्थंतरम्मि निसुणइ पडहयसद्देण पोक्करिज्बंते | मडयमिणं जो रक्खइ पहरे चत्तारि रयणीए ॥|३५६॥| 

दीणाराण सहस्सं वियरइ तस्सेह इसरो सेट्टी | त॑ निसुणिजं पओलीपाहरिओ पुच्छिओ तेणं ॥३५७॥ 

कि एत्तियम्मि कज्जे वियरिज्जइ एत्तियं दविणजायं ! | सो भणइ एस नयरी उबदूदुया घोरमारीए ॥३५८॥ 

त॑ मारिनिहयमडय निक्कालइ जाव इसरो सेट्टी । अत्थमिओं ताव रबी पुरीपओलीओ पिहियाओ ॥३५९॥ 
मारिपकंपिरगत्तो रक्खइ मडय॑ं न कोबि भयभीओ । इय निमुणिऊकण नियमाणसम्मि चितेह सेट्टिसुओ ॥३६०॥ 
न हु का वि कज्जसिद्धी निद्धणपुरिसाण जायइ जयम्मि | ता मडयरक्खण<ज्जियधणेण साहेमि नियकज्ज ॥३६१॥ 
परिभाविऊण एवं छित्तो मडयस्स पडहओ तेण । तो इसरेण दिज्ञा दीणाराणं सया पंच ॥३६२॥ 

सेसं पहायसमए दायव्बं पमणिउं गओ सेट्री । सो वि अपमत्तचित्तो मुणि व्व मडयं निरिक्खेह ॥३६३॥ 


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२०७ 


आख्यानकमणिकोशे 


अह उग्गयम्मि सूरे धाहावंतो सपरियणो सेट्री । जावुप्पाडइ मडय॑ तो मग्गह सो वि सेसधर्ण ॥३६४॥ 

पंच सयाईं दिल्नाईं तुज्क कि मम्गसे ? त्ति भणिऊणं । तो त॑ गलत्थिऊ्ण मडयं॑ उप्पाडियं तेणं ||३६५॥ 

तो भणह सेट्टिपुत्तो जह होही इह पुरे पुहइ॒पालो । ता सविसेसं दव्वं गिण्हिस्स तुह सयासाओ ॥३६६॥ 

तो दीणारसएणं दोसियहड् किणित्त वत्थाइं | कयउब्भडसिंगारों गणियागेहं गओ रम्मं ॥३६७॥ 

तं पविसंतं दट्ढं ; वसंततिलया समुदट्ठिया समुहं । उत्बूढजोव्वणा चमरधारिणी जा नरिंदस्स ॥३६८॥ 

तीए समप्पद चउसयपमाणदीणारनउलयं सा वि। नियकुट्टणीए अप्पद संभालइ सा तमेगंते ॥३६९॥ 

पुन्नाणि तत्थ पेच्छइ दीणाराणं सयाणि चत्तारि | तो विम्हहया चितह अहह ! उदारो न से कोइ ॥३७०॥ 

सा जंपइ नियधूय॑ पडिवत्तिमिमस्स कुण सर्य वच्छे ! | सा वि तहा निशवत्तइ न्हाणा-5डसण-भोयणाईयं ॥३७१॥ 
अह पत्तम्मि पओसे पविसइ सो वरविलास भवणम्मि | कयउब्भडसिंगारा समागया सा वि पललंके ॥३७२॥ 

त॑ द्वूण विचिंत्इ मित्ताणंदो विछासवसगाण । सिज्झंति न कज्जाईं ति चिन्तिउं त॑ं समाइसइ ॥३७३॥ 

आणेहि पट्टमेगं जत्थुवविसिउं करेमि क्राणमहं । तो उबणीओ तीए तवणीयमओं मसिणपद्टो ॥३७४॥ 

तत्थ पउमासणत्थो पिहिऊ्णं सियवडेणमत्ताणं । जा चिट्ठह ता पहओ रमणीए पढमओ पहरो ॥३७५॥ 

पभणइ वसंततिलया सामि ! पसाय॑ विहेसु मह इण्हि । अवगन्निउं ठिओ सो ता पहओ बीयपहरो वि ॥३७६॥ 
एवं तइ्य-तुरीया अइकंता तस्स जामिणीजामा । पहए पहायपडहे उद्धितु गओ तडागम्मि ॥३७७॥ 

ता कुट्णी पयंपह अमलियिगत्ता किमज्ज तं वच्छे ! | सा वि हु साहइ तीसे निसाए निस्सेसवुत्तंतं ॥३७८॥ 
निसुणित्तु कसिणवयणा अका उल्लवइ नो थिरं दव्बं | ता अज्ज रंजियव्वों विविहविलासेहिं सो बच्छे | ॥३७९॥ 
एवं बीया तइया वि जामिणी जा तहेवडइक्कमइ । तो तुरियदिणे उग्गयद्णिसरे भणइ त॑ अक्का ॥३८०॥ 
अणुरायरसियहिययं मह दुहियं कि विडंबसे सुहय ? । जा अणुवज्जियपुन्नाण दुल्लहा सुरवराणं पि ॥३८१॥ 

ता अमरदत्तमित्तो जंपइ जं भणसि अंब ! त॑ काहं । किंतु परिपुच्छियव्वं अत्थि तओ आह सा कहसु ॥३८२॥ 
सो भणइ रायकुमरी परियाणसि रयणमंजरीमंत्र !। सा भणइ मह सुयाए वयंसिया चमरधारीए |॥३८३॥ 

जह् एवं ता अम्मो ! गंतृणं कहसु तीए मह वयणं | जह बंदियगिज्ज॑तं गुणनियरं अमरदत्तस्स |३८४॥ 
आयजन्निऊण संजायगरुयअणुरायरंजियमणाए | नियकरकमलेण लिहित्तु पेसियं जइ इमं तुमए ॥३८५॥ 

सामि ! तुह बंदिविंदप्पयासियं गुणगणं निसामंती । मयणानलजलियंगी संगमसलिलेण निव्ववसु ॥३८६॥ 

तो अमरदत्तकुमरेण पेसिओ पडिसरीरसरिसो है । नियलिहियलेहजुत्तों त्ति जंपिए कुट्ठणी भणइ ॥३८७॥ 

वच्छ ! करेमि समग्गं ति जंपिउं जाइ कुमरिभवणम्मि | तो र्यणमंजरीए दट्ढ बोल्लाविया अक्का ॥३८८॥ 
अम्मो ! अद्देवहरिसियहियया कि ? कहसु कारणं अज्ज । सा आह तुज्ञझ वल्लहलेहेण तओ भणह कुमरी ॥३८९॥ 
को मज्क वल्लहों ? कहसु अम्ब ! सा वि हु पवंचिउं अक्का । मित्ताणंदेण जहा तह साहइ तीए पुरओ वि ॥३९०॥ 
कि एयमघडमाणं विचितए रयणमंजरी जम्हा | न य को वि रायकुमरों मज् मणे वललहो वसह् ॥३९१॥ 

न य गुणनियरों कस्सइ निसामिओ नेय पेसिओ लेहो । ता धुत्तविलसियमिणं ममाणुरत्तस्स कस्सावि ॥३९२॥ 
जाणामि ताव कज्ज सो वा उण केरिसो महाधुत्ता ? | परिभाविऊण एय॑ पयंपिया कुट्टणी तीए ॥३९३॥ 

मह वल्लहलेहकरो पुरिसो इह दंतवलभियाएु तणु | आणेयव्बों त्ति तओ सुणित्तु अक्का गया सगिहं ॥३९४॥ 
परितुट्टमणा पभणइ तुह कज्जं साहियं मए बच्छ ! | जंपइ मित्ताणंदों कहं ? तओ कहई सा सब्बं॑ ॥३९५॥ 
गंतव्वं जाव तएु तोए सयासे स आह आम॑ ति। सह तीए निसाए गओ। संपत्तो रायदारम्मि ॥३९६॥ 

सा भणह पुत्त ! एत्तियमेत्त मग्गं सुहेण पत्ताणि | पायार-पओलीथाणगाणि पिहु पिहु पुरो सत्त ॥३९७॥ 

ता दुष्पवेसमेयं सो सो भणइ कत्थ सा कुमरी ? | तो अक्का दंक्खालइ वासगिहं तीए तप्पुरओ ॥३९८॥ 


कनलजओ नि जज+- अअिलिनजनथजओ औअडटबणण 


१, दशयति। 


२३. व्यसनशतजनकयुयत्यविश्वासवर्णनाधिकारे भावभट्िकाख्यानकम २०५ 


मित्ताणंदेण तओ पयंपियं अंब ) वच्च नियभवणे । ता सा वि नियत्तड पच्छन्न॑ हेरिंडः छग्गा ॥|३९९॥ 
आबद्धपरियरो सो विज्जुक्खित्तेर्दि पवरकरणेहिं । सब्बे वि हु पायारेडइक्कमई जाव ता अक्का ॥४००॥ 

नुणं वीरवरिट्ठी गरिट्ठववंसुब्भवो इमो को वि। तो होज्ज कज्जसिद्धि त्ति चितिउः पडिनियत्ता सा ॥४०१॥ 
इयरो वि दंतवऊकमि गवक्खमग्गेण आरुह्ृ३ तीए । एत्थंतरम्मि कुमरी तं द्ढूं चिंतएु एवं ॥४०२॥ 

कि वा करेंह एसो ? कि वा जंपेइ ? चितिकण तओ । पावरणपिहियगत्ता सुत्ता सा अलियनिद्दाए ॥४०३॥ 
तो अमरदत्तमित्तो तारिसरूबं तयं निएकण । गिण्हइ वामकराओ कडय॑ नरनाहनामंक॑ ॥४०४॥ 

कड़ित् तओ छुरियं लंछित्ा तीए दाहिणं ऊरुं । तो पुव्वुत्तकमेणं नीहरिओ भ्रत्ति झंपाहिं ॥४०४५॥ 

तो देवकुले गंतुं सुत्तो नियबुद्धिविहवपरितुट्टो । परिचितइ कुमरी वि हु अहो ! इमो को वि अइृदक्खो ॥४०६॥ 
घेत्तण रयगणकडयं ऊरू लूछितु एस नीहरिओ । त॑ सुट्ठ , कयं न मए जं न कया तस्स पडिवत्ती ||४०७॥ 

इय चिंतिऊण कुमरी सुत्ता रयणीविरामसमयम्मि । इयरो वि साहुडकरो समागओ रायदारम्मि ॥४०८॥ 
पोक्कारंतो अज्नायमंस हकारिओ पुहइबइणा । पभणइ संभंतमणो विज्ञत्ति देव ! निमुणेसु ॥००<॥ 
धघरणियल्लुलियसीसो पणमित्ता जाब॒ संठिओ ताव। रज्ना नयणुक्खेबवेण पमणिओ विन्नवेहि त्ति |०१०॥ 
विज्ननइ तओ तुब्मेहिं नाह ! पुहईवईहिं महमेवं । दसंतरिओ काउ' परिभविओ इसरेण दढं ॥४१९१॥ 

जम्हा पओससमए सामि | अहं आगओ विदेसाओ । इच्चाइवहयरं निसुणिऊण सब्बं पि तेणुत्त ॥४१२॥ 
कोवभरभिउडिभासुरभालयलो भणइ भूचई रे रे ! । आणेह मज्क पुरओ बंधित्तु तयं दुरायारं ॥४१३॥ 
आएसो त्ति भणित्ता संचलिओ जाव भडयणं' ताव । त॑ नाउ सिम्धघं चिय दविणक्ररों इसरों पत्तो |9१४॥ 
विज्नवह देव | एयस्स दिज्लमद्धं धणस्स सेसं तु । संपइ देमि जमज्ज वि नो दिज्न त॑ निसामेहि ॥४१५७॥ 

तम्मि समयम्मि सामिय ! कि मडय॑ नेमि ? अहव एयस्स । दीणारे देमि ? सयं जुत्ता-डजुत्त वियारेसु ॥०१६॥ 
अबरं च वासरतिगं लोयायारेण संटठिओ सामि ! | एसो इह उबणीयं संपइ गिण्हेउ नियदविणं ॥॥४१७॥ 
मित्ताणंदो राएण प॒णिओ भद्द ! गिण्हसु सद॒व्बं | कारणवसेण जम्हा ठिओ इमो ता अदोसो त्ति ॥४१८॥। 
एएण धुत्तिओ नरबई वि घुत्तेणमिह विचिंतेउ' । मित्ताणंदो घेत्तु नियदविणं तं॑ विसज्जेइ ॥०१९॥ 
उच्छलियकोडहल्लेण राइणा पुच्छिओ कहं तुमए १ | जोइणिवीढे मारीउबदूदुयं रक्खियं मडय॑ ||2२०॥ 
अवहियहियओ होऊण नाह ! निसुणेहि भणइ इयरो वि । साहेमि तयमसेसं जं वित्त मज्य रयणीए ॥४२१॥ 
चिंतेमि मडयमारीभयमेयं कह णु नित्थरिस्सामि ?। हुं नायमप्पमत्तरस किल भयं पभवह न कि पि ॥४०२२॥ 
इय चिंतिकण आंबद्धपरियरों कड्डिऊणमसिधेणुं । जा चिट्ठामि दसदिसं पेच्छंतो ता गए पहरे ॥४२३॥ 
फेक्कारुग्गिन्जलंतजलणजालाकराल्मुह कुहरा । परिपिक्कलमर्पिगलनयणपहाछु रियदिसिविवरा ॥|०२४॥ 
घोरसिवारिंछोली समागया हक्किया मए जाव । सहस त्ति ता पणट्टा सीहस्स करेणुमाल व्व ॥४२५॥ 

एत्थंतरे नरेसर ! बीए पहरम्मि धूमरसरीरों । कयमुंडमालवेसो पिंगलकेसो चिबिडनासोी ॥|०२६॥ 
नियमुहकुहरविणिग्गयहुयबहजालावलीहिं भुंजित्ता । उक्कतत्तिकण नियखंधमडयमंसाइ' भकक्‍्खंतो ॥४२७॥ 
पप्फो्डंतो बंभंडखंडयं पायदद्दुररतेण । अट्ट्ृहासभीसणपिसायविसरो समुब्भूओ ॥४२८॥ 
करकलियतरलछुरिएण भेसिओ निब्भएण जाब मए । सहस त्ति ता पणट्ठी दिणमणिणो तिमिरनियरों व्व ॥४२९॥ 
तो देव ! तइयपहरे समागया डाइणीउ उद्ुमरा । फेक्कारनियरपूरियदियंतरा हक्कियाउ मए ॥४३०॥ 
नट्टाउ जहा उप्पन्ननाणिणो घाइकम्मपगडीओ । ता पहु ! तुरिण पहरे ज॑ जाय॑ तं निसामेहिं ॥०३१॥ 
वररयणघडियआहरणकिरणपब्मारहरियतमपसरा । उत्तत्तकणयभासुरतणुप्पहा कामघरिणि व्व ।॥|४३२॥। 
उब्बूढडपढमजोव्वणमणोहरा तसिरहरिणसमनयणी । कंदप्पभिल्लभन्लि व्व मोहवल्लि व्व तरुणाण ॥०३३॥ 
रोलंब-गवरू-कज्जलसामलूओमुक कुंतलकलावा । तडितरलक॒त्तियकरा करालफेकारवरउद्दा ॥४३४॥ 


२०८ 


आख्यानकमणिकोशे 


पभणंती रे ! अज्ब वि चिट्ठसि याविद्ठ ! निट॒ठुर निकिट्ठ ! | तो पुह॒पाल ! पत्ता घोरा मारी मह सयासे ॥४३५॥ 
जा पदच्चासन्नठिया ता गहिया वामकरयलम्मि मए | उम्मोडिऊण हत्थं पलायमाणा तओ भमत्ति ॥४३६॥ 
दाहिणकरयलछुरियाए लंछिया दाहिणम्मि उरुम्मि | तीए करकमलकडयं मज्क करे च्विय ठियं सामि ! ॥४३७॥ 
अद्दंसणी गया सा सहसा रविमंडलस्स रयणि व्व । एत्थंतरम्मि तरणी समुग्गजो त॑ निएड. व ॥०३८॥ 

एत्तो य परमसेसं पि साहिय॑ तुम्ह तो भणइ राया | अहह ! अहो ! अच्छरियं अच्छरियमिमस्स पुरिसस्स ॥०३९॥ 
कोऊहलेण राया जंपइ दंसेसु मज्झ तं कडयं । तो उद्टियाए कड्वित्तु अप्पए पुहइपालस्स ||४४०॥ 

पेच्छेह नरवरिंदों कड॒ए उक्कीरियं नियं नाम | दट्ठ्रण त॑ं विचितह अहो | किमेयं अघडमाणं १ ॥४४१॥ 

जम्हा कुमरीए करे पुरा पिणद्धं इमं मएु आसि। ता कि नारीहत्थे चडियं अहवा वि सा मारी ॥०४२॥ 

जइ एरिसाए मारीए कारिया रयणमंजरी कुमरी । ता नुण मयंकमणी जलणफुलिंगे समुग्गिरह ॥४०२३॥ 

इय चिंतिऊण राया सरीरचिंताछलेण त॑ दट्ठुं | जा जाइ रयणमंजरिपासे ता नियइ तं॑ सुत्त ॥०४४४॥ 

अवरं च वामपाणीं सुन्नं कडएणण दाहिणोरु च | बद्धं पट्टेण निरिक्खिऊण वज्जेण पहओ व्व ॥१४५॥ 

चितेह निवो पावाए मज्क वंसो कलंकिओ चेव । तो निग्गहेमि एयं नयरिजणं भक्खइ न जाबव ॥४४६॥ 

इय चिंतिउं वलित्ता पुणरवि सीहासणे समुव्विद्टो । मित्ताणंदं पुच्छइ कि केवलमेव तुह सत्त ? ॥४४७॥ 
विप्फुरइ अहव तुह कावि मंतसत्ती वि  तयणु सो भणइ । नरनाह ! मज्ञ नियकुलकमागओ अत्थि मंतो वि ॥४०८॥ 
तो एगंते काऊण भूवई भणइ भद्द! मह कुमरी। नियमेण घोरमारी ता तीए विणिग्गहं कुणसु ॥०४९॥ 

विन्नवइ सो वि सामिय ! सज्ञझमसज्झं॑ ति तं परिक्खेमि । नरवइणाउणुज्ाओ तओ गओ तीए गेहम्मि ॥|४५०॥ 
कि रयणिवीरपुरिसो समेह ? अह तायपेसिओ कोइ १ | इय चिंतिऊण कुमरी अब्भुट्टिय आसणं देइ ॥०५१॥ 
जंपइ मित्ताणंदो कुमारि ! संभरसि रयणिवुत्तंतं ? | अवबरं च धोरमारीरूवों जाओ तुह कलंको ॥४५२॥ 

नरब्‌इणा वि हु तं मज्कू अप्पिया गरूयनिगाहनिमित्तं | एयं पुण सब्बं पि हु तुज्ञ निमित्तं मए विहियं ॥४५३॥ 
ता जइ करेसि करुणं आसाबंधं च नेसि सहलत्त | ता एहि जेण इमिणा ववएसेणं तुम नेमि ॥|२५४॥ 

अह ना5डगच्छसि तो तुह रउद्दमारीकलंकमवर्णेमि | त॑ पि मह जीवियब्वे संपह सलिलंजलिं देहि ॥४५५॥ 
चितेह तओ कुमरी सप्पुरिसो एस म॑ पयंपेइ । ता जामि अहं अहवा न व त्ति दोलायए हियय॑ ॥४५६॥ 

अहवा रकक्‍्खेमि इमं इण्हि गुणरयणरोहणगिरिंदं | इय चिंतिकण पभणइ तुह जीयं॑ वल्लहं मज्म ॥१५७॥ 

ता भण जं॑ कायब्बं फेकारसु तुम॑ ति तेण सा भणिया । मह हुंफुडु त्ति भणिण सरिसवनिक्खेवसमयम्मि ॥|४५८॥ 
इय संकेयं काउं समागओ भणइ देव ! मह सज्ञा । किंतु समप्पसु जाणं जेण निसाए मुयइ देसं ॥५५९॥ 

अह कह वि देसमज्झे गच्छंतीए समुग्गई सूरो । ता अवलोइयमेत्ता मारी एसा तह च्ेय ॥०६०॥ 

भीएण पुहइपालेण अप्पिया पवरणवेगवड॒वा से । अत्थमिए दिविसयरे वित्थरिए तिमिरपब्भारे ॥२६१॥ 

काऊण सिहाबंधं अभिमंतिय सरसवेहिं ताडित्ता । सा फेक्ारकराला वडवाए चडाबिया तेण ॥४६२॥ 
हरिस-विसाय-महाभयविवसेण नरेसरेण सह चलिओ । उन्धाडाविय पुरवरपओलिदारेण नीहरिओ ॥9३६३॥ 
अक्कंतनयरिपरिसरधरवीढो प्मणिओ कुमारीए | आरुहसु वडबषिट्ठं सो जंपह जामि पाएहिं ॥४६४॥ 

थोवंतरे पुणो वि हु भणिओ ना55रुहह कह परमत्थं | आणीया जह न तुम नियकज्जे किंतु मह मित्तो ॥३४६५॥ 
नामेण अमरदत्तो तुह पडिझ्वेण मोहिओ अहिय॑ं । मह हिययवल्लहो सो तस्स निमित्तं तमाणीया ॥०६६॥ 

ता मित्तकलत्तेणं सह निवसिज्जह न एगठाणम्मि । इय नियुणिऊण कुमरी हरिसियहियया विचितेहई ॥४६७॥ 
एयस्स अहो ! मित्ते वच्छल्लं अहह | नीइकुसलत्तं । अहह ! महापुरिसत्तं परोवयारित्तणं अहह ! ॥४६८॥ 

अवरं च अमरदत्तस्स नाममेत्तेण पुलशयसरीरा । सा चित्तइ सुहहेऊ मज्क कलंको वि संजाओ ॥०६६॥ 
अणवरयपयाणेहिं पाडलिपुत्तस्स परिसरे पत्ता | एत्तो य अमरदत्तो मित्ताणंदे गए देसे ॥४७०॥ 





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२३. व्यलनशतजनकयुवत्यविश्वासवर्णनाधिकारे भावभद्विकाख्यानकम्‌ २०७ 
चितेह अहो ! अत्थाणरागिया अहह ! बुद्धिहीणत्त | अणवेक्खियकारित्त अहह ! महामोहमूढत्तं ॥९७१॥ 


पाहाणघडियपडिमाणुरायश्त्तेण किह मए मित्तो । विहिओ विएसअतिही अहह ! महामोहमूढेण ? ॥2७२।। 
ससिविमलनियकुलक्षमपहपब्मट्रण किह मए मित्तो । विहिओ विएसअतिही अहह ! महामोहमूढेण ? ।|४७३॥ 
जणयसमसेट्ठटिसिक्खं परिहश्माणेण किह मए मित्तो । विहिओ विएसअतिही अहह ! महामोहमूढेण ? ॥9०७४॥ 
कंदप्पभिन्लभल्लीसल्लियहियषएण क्िह मए मित्ता । विहिओ विए्सअतिही अहह ! महामोहमूढेण ? ॥०७०॥ 
कह कह वि सरीरठिइ' करेह सो सेद्रिणोवरोहेण । निहुयनिहुयं रुयंतो मुत्ताहलथूलअंसूहिं ||२७६॥ 

अह कहमवि संपत्ते दुमासपंञ्॑ंतअवहिद्विसम्मि | आबद्धपंजलिउडो जंपइ सेट्ठि अमरदत्तो ॥४७७॥ 

ताय | खमेज्जसु सब्ब॑ अवरडे तुज्ञ जं मए कि पि। नियजणयनिब्बिसेसो संजाओं मज्झ तं॑ जम्हा ||३७८॥ 
जेण न विज्जइ मित्तो मित्ताणंदी जयम्मि जीवंतो । जा अमणुन्न न सुणेमि तस्स ता देहि में कट्ठटे ॥०७९॥ 

त॑ निर्यु णिउण सेट्टी कुमरमहादुबखसल्लियसरीरों | सो पठरजणसमेओ विलवबंतो रयइ कट्ठाईं ॥४८०॥ 

तो पठरजणो सब्वो कयंजली पणमिरों वुणइ लल्लि। अत्थमइ जाव तरणी ता कुमर ! तुम विलंबेसु ॥9८१॥ 
अवबरो वि जणो मंदिर-देवउल-पयार-तरुवरारूढो । मित्ताणंदागमणं अणिमिसनयणो पलोएड ॥2८२॥ 

अह दिवससेससमए समागओ सो न जाब ता कुमरो । पज्जालाबिय कट्टे ण्हाइत्तु तओ सचेलों वि ॥४८३॥ 
जा देइ तत्थ झंप॑ जलंतजालाकरालुजलणम्मि | ता हाहारबपुत्ब॑ वारेह जणो भणइ एवं ॥०८४॥ 

एगो5ह आ सवारो एगो पुरिसो समेह सिम्घगई । इय जंपंताण तओ मित्ताणंदो तहिं पत्तो ४८५॥ 

भणइ य एसा तुह चित्तचोरिया कुणसु निग्गहमिमीए । नियपाणिपीडणेणं ति तयणु आलिंगए मित्त ॥४८६॥ 
तो अमरदत्तकुमरों उच्छलियातुच्छहरिसपच्भारों | आभासिऊण पुच्छद समग्गमवि तीए वुत्तंतं ॥४८७॥ 
कन्नंतपत्तनयणि छणरयणीयरसमाणवरघर्यणिं । उब्भिज्बमाणसिहिणि मणहरकलहंसगइगमर्णि ||४८८॥ 
अबलोयंतो चिट्ठ३ सब्बंगं रयणमंजरिं जाव । सेट्टी वि तुट्ठहियओ सविम्हयं चितएु ताव ॥१८९॥ 

कि पृत्तल्या घडिया दट्ट्॒णं रयणमंजरिं कु्मरिं ? | पुत्तलियदंसणाओ अहव इमा निम्मिया विहिणा ? ॥४६०॥ 
अह सेट्टी उद्धित्ता कट्टें फेडितु अमरदत्तस्स । कारेइ पाणिगहणं सुमुहुत्ते तम्मि समयम्मि ॥२२१॥ 


तत्थ अपुत्तो राया पंचत्तं पाविओ गयदिणम्मि | रायनिमिचं दिव्वाइं पंच अहियासए लोओ ॥४९२॥ 
ताणि तओ तिय-चच र-चउक्क-रच्छासु परिभमंताणि । आगंतुं नवपरिणीयकुमरपासम्मि पत्ताणि ॥४<३॥ 
गलगज्जत्ता अहिसिंचिकण वरकणयकल्ससकिलेण । त॑ सुंडादंडेणं हत्थी संठवइ नियखंधे ॥॥४८४॥ 

छत्तेण अलंकरिओ ढलिए सयमेव चामरे तस्स | हयहेसारवपुव्ब॑ जयतूररवों समुच्छलिओ ।|४९५॥ 
पणमिज्जन्तो मंडलिय-मंति-सामंत-सुहडविद्‌हिं । बंदियणुग्घुद्डजओ तओ पयद्टों पुरपहम्मि ॥०<६॥ 
एत्थंतरम्मि अहिणवनरनांहपवेसहरियहिययाओ । प्रभणंति पहिद्ठाओं परोप्परं पुरपुरंधीओ ॥४९७॥ 

अह ताण आह एका सकयत्था रयणमंजरी देवी । जीए रदेए व दइओ संपत्तो कुसुमबाणों व्य ॥४९८॥ 
अह अवबरा हरिणच्छी पभणइ सिरिस्यणसारसेट्टी वि । सकयत्थो जेण हले | जणएण व रक्खिओ कुमरो ॥४२९॥ 
भित्ताणंदं वन्नह हले ! किमन्लेण ? जंपए कावि १ | निबमित्तजीवियकए परिभमिओ जो विदेसेसु ॥५००॥ 
इच्चाइ हरिणनयणीपमभणियवयणाईं सो निसामेंती । पविसिय नरिंदभवर्ण पबरे सीहासणे विसइ ॥५०१॥ 

तो मंति-मंडलेसर-सामंतेहिं सुवन्नकलसेहिं। अहिसिचिओ कुमारो वज्जिरवरतूरसद्देहिं ॥५०२॥ 

मित्ताणंदो मंतीपयम्मि संठाविओ तह य सेट्टी । नियजणयपए सिरिरियणमंजरी अग्गमहिसि त्ति ॥५०३१॥ 





१, करइ रं। 





श्०्घ 


तथा हि-- 


१. निवकारणपरम० रं०। २. प्रनष्धाष्य्यं: । 


आश्या नकमांणकोशे 


अह विसयसुहपरव्वसचित्ताणं ताण जाइ जा कालो । मित्ताणंदेण तओ विज्ञत्तो नरवई एवं ॥५०४॥ 

त॑ं देव | मडयवयणं अज्ज वि हियए खुडुकए मज्क | तो गंतृणं दूरे कि पि हु कालं विलंबेमि ||५०५॥ 

तो भणह निवो मह बाहुवज्जपं जरगयस्स तुह न भय॑ं । ता मित्त ! असरिसेणं कि देसंतरकिलेसेणं १ ॥५०६॥ 
इय रयणमंजरीए वुत्तो वि हु जाब नो घिईं लहइ । तो तेण पेसिओ सो भडयणजुत्तो बसंतपरे ॥५०७॥ 
अणुगंतृ्णं कई वि हु पयाणए भणह भडयणं राया । रे रे | मह कहियव्वा सुद्धी पत्तरस मित्तस्स ॥५०८॥ 
आलिंगिऊण मित्तं पुह्हवई दुम्मणो पडिनियत्तों । मित्ताणंद्विरहिओ गमेइ कालं निराणंदो ॥५०९॥ 

जाव न कोवि हु मित्तस्स कहइ वत्तं पि पडिनियत्तेड' । पेसित्तु तओ पुरिसे संभालइ तो तहिं नत्यि ॥५१०॥ 
अह अन्नया नरिंदों उज्जाणगयं मुणित्तु मुणिनाहं । सिरिधम्मघोससूर्रि पणमइ अवरोहसंजुत्तो ॥५११॥ 
उवविट्ट नरनाहे धम्मकहं कहइ मुणिगणाहिवई । नरनाह ! इह असारे संसारे सारया नत्यि ॥५१२॥ 


खरपवणपहयपोइ णिदरूग्गजलूबिंदु चंचल जीयं | लोललवलीदलावलिचवलतरा पेम्मपरिणामा ॥५१३॥ 
नवजलहरसिहरावलिविलसिरतडिलेहचंचला लच्छी । करिकन्नताल्तरला नराण नवजोव्वणारंभा ॥५१४॥ 
अणिवारिज्जप्पसरा सुहा-3सुहा कम्मपरिणई जेण । ता जिणधम्मं मोत्तु सरणं न हु कि पि संसारे ॥५१५॥ 
एत्थंतरे नरिंदेण पुच्छिओं पणमिऊण मुणिनाहों । पत्तों मित्ताणंदो क्रिमवत्थं संपयं सामि ! ॥५१६॥ 

तो भणइ मुणिवरिंदों निमुणसु नरनाह ! मित्तवुत्तंतं | लूषित्तु दूरदेसं वणम्मि आवासिओ जाव ॥५१७॥ 
भोयणसमए भीमा भिल्लाणं ताव निवडिया धाडी । मोत्त मित्ताणंदं भएण नद्ठा भडा सब्बे ॥५१८॥ 

सो वि हु पलायमाणो तिसिओ पत्तो सरम्मि सिसिरजले | विहियसलिलाबगाहो सुत्तो नग्गोहतरुमूले ॥५१२९॥ 
तत्तो अकालदारुणकसिणभुयंगेण तत्थ सो डक्को । दिट्टो य घोरगरलेण घारिओं तावसेण तओ ॥५२०॥ 
नह-नयण-दसणनीलत्तणेण नाऊण नागदट्टी त्ति। अहिसित्तो अभिमंतियसलिलेण समुट्टिओ सहसा ॥५२१॥ 
साहेइ तस्स तावसमुणीसरो विसहरस्स वुत्तंतं | पुच्छइ य वच्छ ! त॑ कत्थ पत्थिओ कहसु एगागी ? ॥५२२॥ 
तो तेण तस्स पणमित्तु साहिओ पुव्ववइयरों सब्वो | भासीसं दाऊर्ण नियासमं तावसम्मि गए ॥५२३॥ 

चिंतेइ सुधीरेहिं वि विहिपरिणामो खलिज्जइ न जम्हा । मह मरणनासिरस्स वि समागयं दारुणं मरणं ॥५२४॥ 
जीवाविओ म्हि नवरं निक्ोरिमपरमबंघुणा रिसिणा । ता कि परिभमिएणं ? मित्तसयासम्मि वच्चामि ॥५२५॥ 
इय चिंतिड पयट्टो पाडलिधपुत्तम्मि पच्छिमाहुत्तो । एत्थंतरम्मि निदयमाणसचोरेहिं सो गहिओ ॥५२६॥ 
नाइत्तयाण पासे विक्किणिओ तयणु ते वि नाइत्ता । नियदेसं वच्चन्ता संपत्ता नयरिमुज्जेणि ॥५२७॥ 
आवासिया य बाहिं निसाए छिद्दं लहित्तु सो नट्ठी | तो मडयवर्ड द्ठ , धसक्षिओ जत्ति हिययम्मि ॥५२८॥ 
उच्छलियमहाभयकंपमाणगत्तो पंणट्ठधारिट्ठी | किकायव्वविमूढी पविसइ पायारखालेणं ।।५२९॥ 

तम्मि समयम्मि नयरी निरंतरं चोरहरियसव्वस्सं । जाणित्तु पुहद्पालेण ताडिओ उब्भडतलारो ॥५३०॥ 
उवउत्तमणों सो तत्थ जाव जोएइ तककरपवेसं । मित्ताणंदों खाल्ण पविसिरों तेहिं ता दिद्ठों ॥५३१॥ 

धरिऊण तओ वालेहि कड्डिओ बंधिऊण पिट्ठंति | निट्टुरमुसुंढि-मोग्गर-कत्तरि-पन्हिप्पहारेहिं ॥५३२॥ 

ररे पाविट्ठ ! निकिट् ! दुद् मुसिऊण नयरिमुज्जेणि । किह छुट्टिसि १ त्ति भणिऊकण नियभडे सो समाइसइ ॥५३३॥ 
उब्बंधह वडपायवसाहाए सिप्पसरियतीरम्मि | आएसाणंतरमेव तेहि उप्पाडिओं सहसा ॥५३४॥ 

एत्थंतरम्मि चितह मित्ताणंदो मणम्मि मह तइया | ज॑ आसि मडयभणियं समागओ अवसरो तस्स ॥५३५॥ 
अवि कुवियवज्जपाणिप्पमुक्रकुलिसं पि रविखउं सक्‍का । न हु पुव्बमवसमज्जियसुहा-5सुही कम्मपरिणामी ॥५३६॥ 
अवि उब्मडमयरहरों निय भुयदंडेहि तीरण तरिउं। न हु पुव्वभवसमज्ियसुहा-35सुहो कम्मपरिणामी ॥५३७॥ 


बा 3ज+3+-+-+- ---++ अ्लओ 


रस 


२३. व्यसनशतजनकयुवस्यविश्वासवर्णनाधिकारे भावभट्वकाण्यानकम्‌ २०६ 


अवि ससुरा-5सुरभुवर्ण जिप्पह् समरम्मि वीरसत्तेहिं। न हु पुव्वमवसमज्जियसुहा-5सुहो कम्मपरिणामों ॥५३८॥ 
पुरिसक्कारपरेहिं वि विहिरपरणामी खल्ज्जिई न जम्हा । ता एरिससंसारे मा तम्मसु जीव ! मणयं पि ॥५३९॥| 
इय चितंतो वडपायवम्मि उब्बंधिओ तलारेहिं। तह कीलिरगोयालाणुन्नइया वि हु मुहं पडिया ॥५४०॥ 

इय मित्तमरणनिट्ठुरवज्जपहारेण ताडिओ व्व निवो । सह रयणमंजरीए घस त्ति धरणीयछे पडिओ ॥५४१॥ 
नियपरियणेण सित्तो जलेण उवलद्धचेयणो राया । लल्लक्कमुक्क्रपोक्को अक्कंदइ गरुयसद्देण |५9२॥ 


हा मित्त ! मित्तरहियं व नहयलं मज्झ सोहदइ न रज्ज' | मणवल्लह ! तुह विरहे भुवणमरन्नं व पडिहाइ ॥५४२३॥ 

हा बंधव ! तइय चिय निवारिओ तं मए विदेसम्मि | गच्छंतो तह वि तुम॑ न ठिओ कम्माणुभावेण ॥५४४॥ 

हा ! तइया मज्म कए आणीया र॒यणमंजरी देवी । अकयन्नुणा मए पुण तुह साहेज्ञ पि न य विहियं ॥५४५॥ 
विलवइ देवी वि तओ सल्लंती मुणिजणस्स हिययाइ' । हा हा देवर ! गुणनिहि ! निकक्रारणपरमकारुणिय ! ॥५४६॥ 
हा मित्तकज्जवच्छल |! परोवयारेककरणतल्लिच्छ ! | हा सच्छासय ! सुंदर ! ता इणिंह कत्थ दीसिहसि १ ॥५४७॥ 
हा ! तश्या मज्म कए विहियाओ तए अणेगबुद्धीओ । नियमरणवसणसमए हा ! भुल्लो कह तुम वच्छ ! ? ॥५०८॥ 
हा हा ! सुपुरिसरयणं अवहरिऊणं कयंत ! कि पत्त ? | हा हा हयविहि ! निम्धिण ! पुज्जंतु मणोरहा तुज्ञ ॥५४९॥ 
एत्थंतरम्मि सूरी करुणारसरसियमाणसोी भणइ | नरनाह ! एरिसो चिय संसारो # विसाएण १ |॥५५०॥ 

जम्हा संसारवियाणएहिं जिणवयणभावियमईहिं । न हु सोगो कायबव्बों नट्ठविणट्टम्मि कज्जम्मि ॥५०५१॥ 

किर कस्स थिरा लच्छी ? कस्स जए सासयं पिए पेम्मं १ | कस्स वनिश्च जीय॑ ? मण को व न खंडिओ विहिणा ! ॥५५२॥ 
अन्न च हयकयंतो न नियह दढपेम्मपरवसाण दुहं । न गणइ कुडुंबमंगं न य चिंतइ मित्तविच्छोहं ॥५५३॥ 

न य परिभावह पिय-माइपभिइवुड्धत्तणं नवरमेसो । सच्छंदसुहं वियरइ भंजंतो मत्तहत्थि व्व ॥५५४॥ 

इय एवभावणाए संसारासारयं वियाणित्ता | परिहरसु राय ! सोय॑ कुगइकरं सुगइपडिवक्खं ॥५४५५॥ 

इय निमुणिऊण सोय॑ परिहरिऊणं पयंपइ नरिंदों | मुणिनाह ! मज्झ मित्तो मरिऊर्ण कत्थ उबवन्नो ? ॥५५६॥ 

तो भणइ मुणिवरिंदों मरिऊणं रयणमंजरीगब्भे । जो चिट्दइ सो होही तुह पुत्तो कमलगुत्तो त्ति ॥५५७॥ 

तो निययमित्तपुत्तत्तणेण परितुद्ठमाणसो राया । जंपइ पुव्वभवरम्मि भयवं ! अम्हेहिं कि विहिय॑ १ ॥५५८॥ 

मित्तस्स जेण मरणं मारिकलंक च अग्गमहिसीए । बधू हिं मह विओगो कहइ तओ मुणिवरिंदों वि ॥५५९॥ 

इह तश्यभवे खेमंकरो त्ति कोडुंबिओ तुम आसि । सच्चसिरी तुह दइया कम्मयरो चंडरुद्दो 4 ॥५६०॥ 

अह अज्नया कयाई कम्मयरो खेत्तरक्खणनिमित्त | गच्छंतो संपेच्छइ कप्पडियं वाडिअंतरियं ॥'५६१॥ 
नवचवलयसिंगाओ गिए्हंतं हक्किउं भणइ एवं । रे रे ! एयं पाव॑ उब्बंधह रुकखसाहाए ॥५६२॥ 

तो कप्पडिओ त॑ निसुणिकण अइृदूमिओ नियमणम्मि । कम्मयरो वि हु खेत्ताओं आगओ ताब गेहम्मि ॥५६३॥ 
ता राय ! तुज्क वहुयाए भुंजमाणीए लरूग्गियं गलए | भणियं सचसिरीए कि रक्‍खसि ? भक्‍्खसे न थिरा ? ॥५६४॥ 
अह अन्नया नरेसर ! कम्मयरो जंपिओ तए एवं । भद्द ! तुम॑ मह कर््जे गन्छसु अमुगम्मि गामम्मि ॥५६५॥ 

सामि ! अहं अक्खणिओ पभमणइ कज्जेण निययसयणाण । अह सो तुमए भणिओ मिलंतु मा तुज्कम॒ ते सयणा ॥५६६॥ 
तुब्भेहिं तओ दुब्भासिएण समुवज्जियं असुहकम्मं । एत्थंतरम्मि पत्तं मुणिजुयर्ं तत्थ भिक्‍्खट्ठवा ॥५६७॥ 

दद्वंण तयं तुमए पयंपिया पणइणी मुर्णिदाण । भत्तं पाणं वियरसु उत्तमपत्तं जओो एए ॥५६८॥ 
तव्वयणसवणसमयुच्छलंतरोमंचकंचुयंगीए । महुराहारेण तओ मुणिणो पडिलाभिया तीए ॥५६९॥ 

चिंतेह चंडरुद्दो निययमणे पुन्नमायणमिमाणि | जेणेरिसाए भत्ताए एत्थ पडिलामिया एए ||५७०॥ 

तो दाणफलेण तए सकलत्तेणं समज्जियं राय ! । अणुमोयणेण तेण वि सर्माज्जयं भोगकम्मं ति ॥'९७१॥ 

एत्थंतरम्मि तुम्हाण उबवरि आउकक्‍्खए नहयलाओ | तडयडिऊणं पडिय॑ तड त्ति तडिमंडलं तत्थ |॥५७२॥ 

मरिऊण तओ सुहभावलद्धसोहम्मदेवलोगम्मि । उप्पज्जिऊण नेहेण तत्थ भुंजित्तु सोक्खाईं ॥५७३॥ 


२१० 


आख्यानकर्माणकोशे 


तत्तो चहत्तु नरनाह ! अमरदत्तत्ततेण तं जाओ । सच्चसिरी वि य सिरिरियणमंजरित्तेण उववन्ना ॥५७४॥ 
जाओ कम्मयरो वि हु मित्ताणंदत्तणेण नरनाह ! । जं तइया दुव्बयर्ण भणियं तेणेह तुह राय ! ॥५७५॥ 
बालत्तणाओ जाओ तस्स विवागेण बंधवविओगो । जाओ य तुज्झ दहयाए वहुयदुब्भासिएण इमो ॥५७६॥ 
रक्‍्खसिवाओ दुसहो मित्ताणंदेण जं पुरा भणियं । कप्पडियवश्यरम्मि तेण॑ सो पाविओ मरणं ॥५७७॥ 
एत्तियमेत्तस्स वि भासियस्स नरनाह ! एरिसविवागो । जो पुण कसायवसयाण होइ त॑ मुणइ सब्बन्नु ॥५७८॥ 
परिहरिऊणं ता पुहइपाल ! दुब्बबणगोयरं पावं | जिणनाह भणियधम्मे समुज्जुओ होसु सुगइपद्दे ॥५७९॥ 
इय निसुणिउं नरिंदों देवीए समन्निओ गओ मुच्छं । चंदणजलेण सित्तो सचेयणो कह सूरीण ॥५८०॥ 
तुब्भेहिं सामि | जं मज्झ साहिय॑ं नाणचक्ख़ुणा चरियं । त॑ पच्चक्खं जायं जाईसरणेण सयलं पि ॥५८१॥ 
किंतु मडएण तहइया जं भणियं तत्थ मज्क संदेहो । ता साहसु मह भयवं ! जम्हा न चवंति मडयाईं ॥५८२॥ 
साहेइ तस्स सूरी सिंगग्गाही मरित्तु कप्पडिओ | भवियव्वयावसेणं तत्थ बडे बंतरो जाओ ॥५८३॥ 
दटटुं मित्ताणंदं पुन्वकययं बइरमणुसरंतेण | समहिद्विऊण मडय॑ परयंपियं तेण तो तइया ॥५८४॥ 
तव्वयणसवणसंजायगरुयवेरुगसंगओ राया । आबद्धपाणिपउमो पणामपुव्व॑ पयंपेह ॥५८५॥ 
भयव॑! भीमभवाडविपरिभमणुब्भूयमयपकंपंती । परिवालिऊण कुमरं पव्वज्ज धुरं धरिस्सामि ॥५८६॥ 
इय पभणिउं नरिंदों मुणिविंदं वंदिउः गओ नयरे । सह रयणमंजरीए उवभुंजइ विसयसोक्खाईं ॥५८७॥ 
कालेण कमढगुत्तं पुत्तं रज्जे ठवित्तु सकलत्तो । निक्‍्खंतो सुहचित्तो पासे सिरिधम्मघोसस्स ।॥५८८॥ 
छट्ट-5ट्वम-द्सम-दुवालसाईं काऊण तिव्वतवचरणं । कयभत्तपरिच्चाओ सब्बट्टं सुरवरो जाओ ॥५८९॥७॥ 
इय तेण मित्तसंतियमणन्नसज्झ॑ पओयणं विहियं । अहमबि कृइपयपयभासणेण तुह मित्तमसमं ति ॥५५०॥ 
ता मम वि मित्त | कज्जं तुममेत्तियमज् कुणसु पसिऊणं । जह तुज्ज पए पेच्छामि जाव जंपंति एयाणि ॥५९१॥ 
ताव य घडियाहरण रयणीए वज्जिओ तइयपहरो । ता सो चितइ धुत्तीण वंचिओ कहमहमिमीए १ ॥५२१२॥ 
जा किर मारिउ रग्गो तं जक्खो तिक्खधारछुरियाए | ताव य दीणमुहाए पर्यंपियं पायवडियाएु ॥५२३॥ 
अहमित्थिया अणाहाउणुकंपणिज्ञा सहायवियला य | पयईए अप्पसत्ता मज्क वहे तुज्ञ गरुयरस ॥५९४॥ 
लोयम्मि जसो कित्ती वन्नो सद्दो य केरिसो होही १। इय परिभावसु कज्जे भवंति गरुया थिरारंभा ॥५९५॥ 
परमेरिससिक्खाए कि मह दिलज्ञाए तुज् विसयम्मि १ । तं॑ चेव बुद्धिमंतो सुंदरमियरं व ज॑ं मुणसि ॥५९६॥ 
परमहमईव तुह दंसणस्स तित्ति न देव ! पावेमि | ता सामि ! संपयं पि हु कहाणयं सुणसु तुममेयं ॥५९७॥ 
इय सो विलकखवयणो वट्टह दोलायमाणसो जाब | तो तीए मलयविसयाए महुरराएण पारद्धं ॥५९८॥ 
कहिउं संरंभेणं चरियमिमं चारुदत्त[सिट्टि)स्स । अप्पुव्वसंधिबंधेण विरइयं विउसहिययहरं ॥५९९॥ 
[ चारुदत्तचरिड ] 

इह भरहि अत्थि पुरि नामि चंप, पररायचक्कभयनिष्पकंप । 

धणुकुडिलवंकपायारवलूय, सुमहंतहिमालयसरिसनिलय । 

पयपणयपुरंदररइयपुज्जु, जहिं मोक्खि पत्त जिणु वासुपुज्ज । 

जियसत्तु नामु जियसत्तु राउ, तहिं अत्थि अखंडियसुहडवाउ । 

अवरो वि अत्थि तहिं सेट्टि भाणु, सुहि-सयणकरमलवणसंडभाणु । 

जणवन्नणिज्ज अकलंकदेह, उन्नय जिव बीयाचंदरेह | 
नामि सुभद्द तसु भज्ज हुयइ, अणुरत्तिय जइ पर देहि जु जुइय । 





१-२, नाम रं० । 


२३. व्यसनशतजनकयुवत्यविश्वासवर्णनाधिकारे भावभट्विकाण्यानकम्‌ २११. 


सहु तीए सुहउ सबु गेहवासु, जम<पुत्त एक्कु परदोसु तासु ॥ 
कुलवंसुद्धारणि, पुत्तह कारणि, सेट्टि सभज्जु वि दुविखियठ । 

संसारि महालइ, एबदुहालइ, माइ कवणु किर सुत्यियड ॥१॥६००॥ 
इय जा जिणिंदपूयणरयाइं, चिट्नंति निसामियजिणमयाईं । 

ता तत्थ नाण-चारित्तपत्तु, चारणमुणि जिणहरि कोवि पत्तु । 

पुच्छियठ सुभददई पुत्तजम्मु, मुणिराउ वियाणियसमणधम्मु । 

जाणिवि गुणु नाणिण तीए कोवि, होहीद भणेविणु गयउ सो वि। 
आहयउ तक्खणि तीए गब्भु, जो अन्नह महिलह पुन्नलब्भु । 
नवमासिहिं अड्धट्ठमदिणेहिं उप्पन्नु पुत्तु तहि सहुं गुणेहि । 
सुहलक्खणलक्खियचारुगत्तु, तसु नामु पहट्टिउ चारुदत्तु ! 

वड़ तु अइच्छियबाल्भावु, अब्भसियसमत्थकलाकलावु ।। 
हरिसीहपमुक्खिहिं, अइसयदक्खिहि मित्तिहिं सहियठ निउणमह । 
अगमंदिरपव्वह, कीलणभव्वइ, गयउ जेत्थु गिरिनह वबहह ॥२॥६०१॥ 
तहिं नइृहि पुलिणि तिणि जंति जंति, थी-पुरिसहं दिद्विय पयह पंति । 
अणमग्गि तीए विप्फुरियथामु, कयलीहरु गउ सुंदेरधामु । 

तहिं खग्गु दिटठु सेजञासणाहु, नररयणु अन्नु दुक्खिउ अणाहु । 
अयकीलिहि कीलिउ रुख सहिउ, तसु दुक्खि निरारिउ हियइ वहिउ । 
जा जोइउ तावडज्ज वि सजीउ, परितम्मइ सरसदयापरीउ । 

अवलोयइ जावहि तासु खग्गु, ता पेच्छ# ओसहितिगु विछग्गु । 
उक्कीलिय तावुकीलिणीए, संरोहिय वणसंरोहणीए । 

चेयन्नु कयउ संजीवणीए, पडुपननु हुयअ ओसहिमणीए ॥ 

चिंतियइ न जं मणि, न य दीसइ जणि, जुत्ति वियारि न जं घडइ । 
त॑ पि हु सो पाविउ, तिणि जीवाविउ, सब्वु सपुन्नहं संपड३ ॥३॥६०२॥ 
तउ अग्गइ दिद्वड चारुदत्तु, ति भणिउं मज्म तुहुं बंधु मित्त । 

जिम्ब॒ कीलिउ हउं इह अकयपाउ, अक्खणह रूग्गु जिह एव्थु आउ। 
वेयहु नामु भारहि गिरिंदु, सुरयणिहि समन्निउ न॑ सुरिंदु । 

सिवमंदिरु दाहिणि तासु नयरु, तहिं राउ महिंदविक्रमु सखयरु । 
अमियगइनामु हउं तासु पुत्तु, चिट्ठामि जाव सुहसंपउत्तु । 

धूमसिह- गउरमुंडाभिहाण, दुइ मज्क मित्त ! हुय गुणपहाण । 
हिरिमंतु नामु नगु कलियवोमु, तावसु माउलउ हिरन्नरोमु । 

तहिं निवसइ मज्झु सिणेहवंतु, हउं तहिं समित्तु गउ जंतु जंतु ॥ 

तसु धीय मणोहर, पुत्रपओहर, विहिवाहिं परिकम्मविय । 

तावणि अन्नाणहं, हरणि जुवाणहं, कामभल्लि नं निम्मविय ॥|9॥६०३॥ 
सुकुमालिय नामि मज्क कज्जि, सा ताईं मग्गिय नेहसज्जि । 

सा मइं वीवाहिय सुहइ लग्गि, सहु तीए वसउ जिम्ब सककु सग्गि । 





१. राय २० । २. तोइ रं० । ३. बेयडू रं०। ४. नाम रं० । ९. गठरसुंडा रं०। ६. जिम रं० । 


आश्यानकमणिकोशे 


सा तारिसकुलसंभव विसिट्ठ, कश्या वि धूमसिहिं सहुं विणट्ठ । 

अहमवि भमामि रिउभावजुत्तु, न यणामि किंपि परमत्थु तत्तु । 
कीलानिमित्तु आइयउ एत्यु, सहुं भज्जईं सेजहिं रमउ सत्थु । 

पाविष्टि आबि ओबदूघु अज्जु, एयारिसमित्तहं पडउ वज्जु । 

गउ दुक़्खु लेवि सहु तीए पावु, धूमसिहु अहब दहणस्सभावु । 

धिति ! धिसि ! धिरत्थु जगि महिलियाहं, मित्तह वि विसयविसकवलियाहं | ॥ 
नामाइ मुणेविणु, सुकिउ सरेविणु, पुण दंसणु भणि सुद्धमइ । 
वेरमापवन्नउ, चित्ति विसन्नउ, कर जोडिवि गठउ अमियगह ॥५॥६०४॥ 
तसु ठावह सो वि हु चारुदत्तु, गउ गेहि निद्धसुहिसंपउत्तु । 
विन्नायसमगगकलाकलावु, जोव्वणि संपत्तु विसुद्धभावु । 

सब्बत्धु नामि माउलउ तासु, धण-कणसमिद्धु वड्डियविलासु । 

तसु अत्थि पढमजोव्वणरवन्न, रन्नावि जेब मित्तवइ कन्न । 

सहु तीए तासु वीवाहु जाउ, संपन्नसयणगरुयाणुराउ । 

मित्तवइसमरउं पर चारुदत्तु, कलरसिउ न भोगहं देइ चित्तु । 
दुल्ललियवयंसह मज्मि छुद्घु, नं बद्धु बिरालउ जेव्यु दुदधु । 
सामग्गिवसिण भोलियउ नेहि, पाडियउ वसणि पावेहि तेहिं ॥ 
अप्पणइं कुवार्सि, भवअब्भासिं, एक्क्रु जि जीवह पावरह । 
तारिसववएसिं, गुरुईउवएसि, केव न पसरह विसयमह ॥६॥६०५०॥ 
जहिं कुट्टणि गरुय कलिंगसेण, तसु धूय सुरूव वसंतसेण । 

तहिं वेसावाडइ तेहिं छुद्धु, वेसह सरूवु अमुणंतु मुद्घु । 

अहु वेस विसिद्ठिय हुंति केव, उच्चिट्िय निग्षिणि सुणहि जेम्व । 
धणलुद्धिय किम्व॒ कोढिउ रमंति, निद्धणु गरुओ वि परिच्रयंति । 
मणिदुद्टिय चाडुसयईं करेंति, पररंजणत्थु कवर्डि मरंति । 

जउं पोसगु पुज्जह महुर ताव, अवरत्थ निबवक्कलिय पाव । 

रूयडउ सो ज्ि सोहगिउ सो जि, धणवंतु जु रंजहिं किंव अभोजि | 
निष्फलिं सहुं सेज्वहिं न उ सुयंति, झंकोलवि तरुवरु जिम्बेँ मुयंति ॥ 
सहु तीए विलासिहिं, पसरियहासिहिं, सोलह कोडि सुवन्नह । 
वष्डियउक्रिसिहिं, बारह वरिसिहि, निहणह नीय रवन्नह ॥७॥६०६॥ 
निम्धिणइ निरूविवि बहुपयारु, मोसारिय जाणिवि छुत्तसारु । 

पाविद्ठह पाइवि मज्जपाणु, बाहिरि छट्डाविउ सावमाणु । 

उद्टिव गउ गेहि विसन्नचित्तु, तं दिद्ठू कुमुणि जिम्व नह्ठवित्तु | 
नरवइहि गेहु जिम्व विगयसोहु, मुणिमाणसु जिम्ब परिगलियमोहु । 
काउरिसिं सरिसु विणद्वदारु, भग्गालउ जेम्ब जुवाणिवारु | 

मित्तवइ निएविणु कंतु पत्तु, उक्खिवि अब्भुक्खणनीर' पत्तु । 


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१. पुणु रं०। २. समिद्ध रं० | ३, जेय रं० । ४. जिम रं० । ५, नीद २० । 


१, जेम २० । 


२३. व्यलनशतजनकयुवत्यविश्वासवणनाधिकारे भावभट्टिकाल्यानकम्‌ २१३ 


आसणदाणाइसु कियपयत्त, आपुच्छिय जणयहं तणिय वत्त । 

सोएविणु माया-वित्त बेवि, नीवियहिं कलत्ताहरणु लेवि ॥ 

वित्तासइ पत्थिउ, मग्गि सुसत्यिउ, अत्थोवज्जणि दिन्न उरु । 

माउलईं समग्ग3, सोहण >ूग्गड, पत्त उसीरावत्तपुरु ॥८॥६०७॥ 
कप्पासु तेत्थु लदयउ महत्थु, आवंतह दवि दड्डउ समत्यु । 

माउलइ विउत्तउ अत्थकामु, वेलाउलु पत्तु पियंगुनामु | 

पिउमित्ति पेरिड तहिं अकीवि, गउ जाणवत्ति लहु जवणदीवि | 

तत्थ वि य मुकवाणिज्जि खोडि, तिणि अट्ट विढत्त सुवन्नकोडि । 
आवंतह फुट्टउं जाणवत्तु, थीगुज्झु जेब हारवियवित्तु । 

दिणसत्तगि फलहिं तरेवि नीरु, आसमपउ पाविउ कहवि तीरु । 
दिणयरपहु तहिं परिवाउ दिट्ठु, गिरिविवरिं गहिरि तिणि सहु पविट्ठु। 
चउपुरिसमाणि रसकूबि खित्तु रज्जूपओगि भयविहुरचित्तु ॥ 

अग्गेरह पडियइ , नरि धणनडियइं, रसह सरूवु निवेइयउ' । 

सो वि हु तहिं खित्तउ, दुहसंतत्तउ, वसणु सुणेविणु वेवियउ ॥८॥६०८॥ 
सुमरेविणु सावगकुल पहाणु, सुमरेविणु जिणवरु गुणनिहाणु । 

सुमरेविणु गुरु वेरग्गपडिउ, भावेह भवन्नव दुक्खनडिउ' । 

ते धन्न सउन्न कयत्थ नरा, जे चत्तसंग वय-नियमघरा । 

महु एवं जिणेसरपयसरणू , नवकारु निवारियजरमरणू | 

कहिं तारिसु पाविवि धम्मु सुइद ? कह एत्थ मरेवर्ड एव मई १। 

त॑ निशुणिवि तलि बोल्लियइ नर्रि, मा भद्द ! विसाउ महंतु करी । 
जेण5ज्ज वि अत्थि उवाउ तऊ, महु पुणु रसि खद्धउ' अद्घुसऊ | 

इह आवइ गोह महंततणू , रसु जाइ पिएविणु एक्कु खणुं ॥ 

जइ जग्गहि पुच्छिहि विरूग्गहि [छग्गहि] गोहहि, ता आवइ तरहि । 
अह उज्जमि मुक्कऊ, आयहं चुकउ, ता एत्थ वि मह जिम्व मरइ ॥१०॥६०९॥ 
जाव5च्छह अवहिउ एक्क मणी, तार्वितहिं गोहहि सुणइ झुणी । 

जा वलइ पिएविणु कूबरसू , ता रूग्गउ गाढउ पुच्छि तसू । 

नरगाउ जेव सुहपरिणईए, काराउ व कुवि सुहनिववदैण । 

नावाएु व जलहिनिमज्जणाओ, विरदएण व पावपवत्तणाओं । 

जणणीए व दुहगब्भालयाओ, नीसारि3 तीए वि गिरितछाओ | 

केत्तिउ वि जाइ जा भूमिमाउ, तिस-भुक्खहिं पीडिउ सो वराउ । 
जममहिसु व मुक्कउ बंधगाउ, वणमहिसु द्वाइउ ता वणाउ। 

तसु भणए सिलहि सिरि विचडिउ , अजगरह महिसु ता पह पडिउ ॥ 
ते जाव परोप्परु, भिडहिं समच्छरु, ताव पछाणउ उत्तरवि। 

धिसि धिसि ! तसु पावह, दावियतावह, वलि वलि जो जीवइ मरिवि ॥११॥६१०॥ 
लंघिवि अरन्नु जा गामि पत्तु, तावेगु मिलिउ माउलह मित्तु। 


स्का अीििलीतदीिजन 


२१७४ 


आख्यानकमणिकोशे 


भमडंतु रुदददत्तामिहाणु, पयदेए पावु दोसहं निहाणु । 

तिणि सहुं सुबन्नभूमिहिं पयटटु, अपमाणवित्तवंछावसद टु | 

नई नियहि जंत वेगवह नाम, सिंधुबइ पासि तं बहुसकाम । 
दुइतडकुलउभय विसुद्धं जासु, रत्तुप्पछ्चलणसजंघ तासु । 
सुकुमालपुलिण वित्थयनियंब, कोमलमुणाल भुयलयपलंब | 

आवत्त नाहि तिवली तरंग, वर कंबु गीव घण थण रहंग । 

सयवत्त वयण सुइ सिप्पि भाल, चल सफरि नयण सेवाल वाल ॥ 
जल्वट्ट सुवस॒णिय, मोत्तियद्सणि य, धाउरायतंबोलजुय । 

ने जलनिहिवरहरि, केणह महिहरि, सिंगारिवि पेसिय बहुय ॥१२॥६११॥ 
अग्गेरइ गंतु पवन्नु जाव, वित्तवणु गहणु संपत्त ताव । 

अजमग्गु परेर्‌इ अत्थि तासु, गुरुकिच्छि पारि जाहयह तासु । 
अय्यपि्वारूढहं तेत्थु गमणु, अयमग्गु पवुच्चइ तेण पवणु । 

अय दुन्नि लट्ट्य तहिं रुद्ददत्ति, आरुहिवि तेसु पत्थिय पयत्ति 

पुणु तेहिं वि जंतह मग्गु भग्गु , तो रुदददत्तु बोलूूणह रूगु । 

भो भव्य एड मारेवि करहुं- पहसेवि तेत्थु ओ वसणु तरहुं । 
भारुंडपक्खि आयहि भमंति, मंसबुद्धि अम्हे नयंति । 

तेणुत्त जेहि आरूढ आय, उबगारी एड अम्हह वराय || 

उवयारिहि मारणु, पावह कारणु, एरिसु करहिं जि नरयगह | 

जसु मणि जिणु निवसह, सो कि ववसह, अइसउ' निश्िणु सुद्धमई १ ॥१३॥६१२॥ 
तिणि भणिउ एड मइ कीय दो वि, ज॑ भाव त॑ हउ' करिसु लेवि | 
तो नियपसु पाडिउ खड॒हडंतु, पेक्खंतह मारिउ तडफडंतु । 

बीयइ' भई' जोइउ तासु महू, मह आयह रकक्‍्खहि भद्द ! तुंह । 
तुह वाहणु हउः उवयारु सरि, मइ रक्खिवि पडिउवयारु करि। 
जोयंतु तरलतारयनयणू, वित्थरियमरणभयवुन्नमणू । 

पसु पेक्खवि कोडीकिउ मरणी, किरि का सु न पूरिय गल्सरणी १ । 
तो पभणिउं त॑ पद चारुदत्त , जो भद्द ! भवज्नवजाणवत्त । 
सुसमत्थउ रक्खणि तुज्क रम्मु, जिणभासिउ संपद देवधम्मु ॥ 
उवसमि मणु दावहि, मणि परिभावहि, पुन्वक्किउ परिणमिउ तुय । 
इय पंचाणुव्वय, कियकम्मव्वय, एवं सरणु सम्मत्तजुय ॥१४॥६१३॥ 
सो वि हु सुहभावण भावयंतु, नित्तिसि विणासिउ उत्तसंतु । 

तहिं तेहइ कुहियइ ते अमोज्मि, एक्रेकहि भत्थहि पहट्ठ मज्कि । 
भूमिहिं भमंत भारुंड पत्त, उप्पाडहिं आमिसलुद्धवित्त । 

उप्पयवि जाहिं जा गयणमग्गु, अन्नि पक्खिं सहु ज॑ जुज्झु रूगु । 
जुज्ञंतह पयडियसाहसाहं, अवरुप्परपरवसमाणसाहं । 

जहिं पोट्टलि अच्छद चारुदत्तु, सो खिसिवि सरोवरनीरि पत्तु । 
नीसरिउ तासु जलूघोयगत्तु, परिभमण रूग्गु बीसत्थचित्त | 


२३, व्यसनशतजनकयुवत्यविश्वासवर्णनाधिकारे भावभट्टिकाख्यानकम्‌ २१५ 


पुणरवि य तासु हुय जीवियास, पासट्नियजीवह जम्म तास । 

रमणीयपएसिहिं, पयडविसेसहि, भमडंतईं जलडुंगरिणि | 

गुरुसिहरसमग्गठ, गयणि विलूमाउ, एगु महीहरु दिटठु तिणि ॥१५॥६१४॥ 
रायंतु रुक्खेहिं साहोडयबखेहिं हिंताल-तालेहिं जंत्रीरसालेहिं । 

बोरी-करंजेहिं नारंगसज्जेहि बब्बूलभिल्लेहि [7१ ]। 
सोहंजणक्खेहिं दीसंतदक्खेहिं सामा-कयंबेहिं खज्जर-निबेहिं । 

मंदारु-गुंदेहिं कोरिंट-कुंदेहिं पुन्नाग-नागेहि कप्पूर-पूर्गेहि ॥ 

इय पसरियसाहेहिं, सीयलछाएहिं, सो गिरि सहइ समुल्नएहि । 
फलपावणपउणेहिं, संसियसउणेहिं, जिम्व विउसयणु सकन्नएहि ॥१६॥६१५॥ 
जा चडइ उबरि विम्हश्यचित्तु, ता पेच्छह चारणमुणि पवित्तु । 

तो भावसारु वंदियउ साहु, पारेवि झाणु किउ धम्मुलाहु । 

भो चारुदत्त ! किम्व एत्थ आउ १, माणुसहं एहु जमयग्रम्मु ठाउ । 

मूलह पभिद जिम्ब तासु वित्तु, तिम्ब कहिय सयल अप्पणिय वत्त । 

मुणिराउ वि अकखइ नियपउत्ति, तसु भाणुसेट्वितणयह सजुत्ति । 

जो मोइउ कीलयबंधणाउ, सो हं तहु पत्थिउ काणणाउ । 

रिउमाणु मलेविणु पत्तु गेहि, जोग्गय निएवि वष्डियसिणेह्दि । 

पव्वइउकामि अप्पणइ रज्जि, अहिसित्तु पियरि सुहजणणिसज्ि ॥ 

नियपउ पालंतह, दुद्ट दलंतह, सिट्दलीय रक्खणखमहु | 

जयसेण मणोरम, रूवमणोरम दुन्नि भज्ज संजाय महु ॥ १७॥६१६॥ 

दुइ पृत्त [्रन्थाग्रम्‌ ८०००] मणोरमदेवि जाय, गुणमहि[म]विढत्तजणाणुराय । 
सिंहजसु पढमु विक्रमि अकीवु, बीयह अभिहाणु वराहगीवु । 

जयसेणह पुण गंघव्वसेण, हुए धुय वित्तगंधव्वणण । 

पत्थावि समप्पिवि सुयह रज्जु, पव्वदउ जाउ वयधरणसजु । 

परिहरिय सयल सावज्ज कज्जु, इृह आइउ आयावणह अज्जु । 

हह कुंभ-कंबुदीवहं पहाणु, एहु पव्वउ कक्कोडयभिहाणु । 

इय जाय ताहं आलोव जाब, विज्ञाहर दोन्नि पराय ताव | 

मुणिपुत्त नाय अणुहारिरूव, जाणाविय साहम्मियसरूवु ॥ 

मुणि जीवियदावय, वंदहु सावय, संभमि बंदण विहिय तसु । 

उबयारु कु किज्जउ ? कि तुह दिज्वउ १ भुवणि न बिज्वउ अवर जसु ॥१८॥६१७॥ 
जाव5च्छहिं इम्ब ते तिणि समाणु, तावेगु गयणि आइउ विमाणु । 
पणवन्नरगणमयभित्तिभाउ, आबद्धरुदरसुर्‌इंदचाउ | 

ओलंबिरमुत्ताहारतारु, नं सिद्धिधामु लोयग्गसारु । 

विलसंतचमरु न॑ विंज्ञरन्नु, सुविभत्तथंभु नं मयपवन्नु । 

सुश्चित्तकम्मु जारिसय सुयणु, उल्लोयसारु नं साहुरयणु । 

जसु सरयसरोवरु आहरणू , कमलालउ सच्छरसाहरणू । 
सरयब्भसुब्भधयवडसणाहु, द्पुदूधरि नं उब्भविउबाहु । 


२१६ 


१, पायहिं रं०। 


आश्यानकमणिकोशे 


कि बहुयईं वायावित्थरेण , रमणीयवत्थु न समाणु तेण ॥ 

तसु मज्ञह सुरवरु, चलकुंडलवरु, निग्गउ चंगिमनिव्वडिउ | 

[ तो सो ] मुणि मिल्लिवि, नयपहु पोल्लिवि, चारुदत्तुपाइहि पडिउ ॥१९॥६१८॥ 
नय-विणय-रूवरेहाजुए हिं, पुच्छिजइ विज्ञाहरसुएहिं । 

भो भद्द ! भत्तिवड्डंतपणउ, मुणि मिल्लिवि आयह कि पणउ १। 

हिमवंत धरहिं जिम्ब सुरसरिया, तिंव नीहवि सग्गह नीसरिया । 
आयमन्नहु विज्ञाहरसुयहो !, नीसेसकुवासगमणिमुयहों | । 

वाणारसि नार्मि इह नयरि, परिवारिय जा पुरिगुणनियरि । 

तत्थ य सुभद-सुलसाभिहाण, पव्वाइय वेय-सुइप्पहाण । 

अवरू परिवायगु जन्नवक्कु, तहिं अत्थि वियाणियवेयवक्कु । 

ति वेयवियारिं सुलसजिया, तसु पासि दासि जिम्व सा उ ठिया ॥ 

सो तीय5णुरत्तउ, हुयउ पमत्तउ, कामपिसाइं भोलियउ | 

जह वा जिणु मेल्लिवि, बाणेहिं पेल्लिवि, मयणि भुवण धंधोलियठ ॥२०॥६१९॥ 
तो तीए गब्भसंभूह हुया, उप्पन्नि पुत्ति लज्ञाए मुया । 

पिप्पलहे हिट्टि परिचत्तसुया, सहु कंतिं नासिवि कहिंवि गया । 

बालह मुहि पडियउं पिंपफलू, आसायइ सो त॑ छुहवियलू । 

संपत्त कुओ वि सुभद्द तहिं, पिप्पलतलि मुक्कठ बालु जहिं । 

विज्ञायड वइयरु तीए सहू, संगोविउ एहु सुउ ससहि महू । 

किउ पिप्पलाउ गुणनाउं तसू , हुयठ वेयविसारउ लद्धजसू । 

नियजम्मु मुणिवि अहिमाणधण्, दुवि बाईं पराइय जणय तिणि। 
पिहमेह पयट्टिय जन्न जणि, उच्छलिउ करंतउ मारि हणि ॥ 
अहिमाणि'***" 'विणु, जणय हणेविणु, पाव वेय वित्थरिय तिणि | 
अन्नाणिं मूढउ, माणारूढड, कवणु पावु ज॑ न करइ जणि ॥२१॥६२०॥ 
तसु पच्छह वदलि सीसु हउ, सु अणेग करेविणु जन्नसुउ । 

पसु मारिवि पावि नर गऊ, उत्बद्विवि नरयह हुयड अऊ ॥ 

सो पंच वार पसुमेहि हऊ, छट्ठहर भवि टंक५विसइ गऊ। 

तो रुद्ददत्ति मारिउ वराउ, जिणधम्मव्सिण दिवि देउ जाउ | 

इणि कारणि एहु मह धम्मगुरू, आयह पसाइं हउं हुयउ सुरू । 

गुरु दुष्पडियारठ होइ जई, कुलि जायउ तसु संभरइ जई । 

विज्ञाहर रंजिय बिंति बे वि, सुकयन्नु भावु तारिसु मुणेवि । 

अम्हाहिं वि उवकिउ एहु तणउ, आइं जीवाबिउ जि जणउ ॥ 

अह अवसरणपत्तउ, सुर्रि विज्नत्तड, दिज्जउ पहु | आएसु महु। 

संभरियउ एज्जसु, जिणु सुमरिज्जसु, पडिवज्जिवि उप्पहउ नहु ॥२२॥६२ १॥ 
अह तेहिं अदंसणि हुयइ सुरि, निउ चारुदत्तु अप्पणह पुरि। 

तहिं विहियदाण-सम्माण-विणय, ठिय कश्वय दिण वड्ुंतपणय । 


तथा हि-- 


जओ-- 


तथा--- 


तथा--- 


श्ष् 


२३. ब्यसनशतज नकयुवत्यविश्वासवर्णनाधिकारे भावभट्टिकाव्यानकम्‌ २१७ 


पत्थावि तेहिं वरविभवजुओ, संपाविउ चंपर्हि भाणुसुओ । 

स वसंतसेण सुक्िल्वसणा उद्बद्धवेणि छुल्लियद्सणा । 

जप्पभिदह विउत्त सुमदसुया, तप्पभिद् मित्तवश्गेहि ठिया । 

सुहि-सयण-कलत्तदुगेण जुओ, पुणरवि य लच्छिकुलभवणु हुओ । 

जे संपय-विवयहं हेउभाव, सनरिहिय ति जीवह पुत्न पाव । 

जिम्ब उदय-पयाव-5त्थमण सूरि, तिंव आयइं सव्वह भविय दूरि ॥ 

जिम्व [जिय] आयह, तिव जिय जायह, सब्बह्द संपय विवय जणि। 

एउ मुणिवि सयाणहु, तत्तवियाणहु, हरिस विसाय न करहिं मणि ॥२३॥६२२॥ 
सो हयहियओ भावद्टियाए बहुहाव-भावनिठणाए । तड्डुवियसवणजुयलो विम्हरियप्पा सुणद जक्खो ॥६२३॥ 
जाव5ज्ज वि न समप्पद दुण्ह वि रसियाण ताण चरियमिमं । घडियाहरए ताव य पहया चउपोरिसी नयरे ॥६२४॥ 
एत्थंतरम्मि य रवी मिलंतचक्काणमंचिओ चडिओ । भावद्टियाए चरियं व चाहिउं उदयगिरिसिहरे ॥६२५॥ 
एत्थंतरम्मि सब्बो सकोडओ नायरो जणो पत्तो । जक्खाययणे अक्खयदेहं भावट्टियं नियह ||६२६॥ 
पुब्वुत्तविहाणेणं पमोयसंभारमुव्वहंतेण | पउरजणेणं पत्ता पवेसिया भाणुभवणम्मि ॥६२७॥ 
महद्देण विभूईए वद्धावणयं पयद्टियं नयरे । पत्थावम्मि सपणयं पणमित्ता पउरलोएण ॥६२८॥ 
पुद्ठाइ तं महासइ ! कहमुव्वरिया इमाओ जक्खाओ ?१। भणियं निरहंकारं तीए वि हु ओऑणयमुहीए ॥६२९॥ 
देव-गुरूण पसाया महासईणं च सीलमहिमाएं । उवसमिओ मह जक्खो रुट्टो परमेस लोयस्स ॥६३०॥ 
भणियं च कीसमिमिणा कलंकमारोवियं असंत ते ? | कि वा वि हु तुह जणओ तहया णेणं पराभविओ ? ॥६३१॥ 
ता एयं पुरलोयं पभायसमयम्मि सिक्खविस्समहं | तत्तो य मए चिंतियमहों ! कहं एस परिकृविओ ? ॥६३२॥ 
मा होउ मन्रिमित्तयमेसो5णत्थो पुरम्मि एयाओ | कह कह वि मए पणमिय कारविओ सो ववबत्थमिमं ॥६३३॥ 
जइ एसो पुरलोओ मज्क्रमवाणुब्भवेण तेल्लेण । टिल्लाणि कुणइ मुंचामि न5ज्नहा भणियमेएण ॥६३४।। 
त॑ निसमिउं जणेणं दिवसम्मि न किंचि काउमलमेसो । उप्पाडिऊण निहओ चउहट्े नायरसएण |॥६३४॥ 
उक्कीरिझण घाणयकरणिवरमवाणदेसमेयस्स । परिपीलिऊण तिलनियरमेवमुप्पाइयं तेल्ू॑ ॥६३६॥ 
विहियाणि सब्वकोएण निययभालेसु तेल्लटिल्लाणि | एयं सब्वं किर कूडकवडभरियाए तीए कय॑ ॥६३७॥ 


अणुभूयं विसयसुहं पभूयमप्पाणयं च सुज्कवियं | विग्गोविओ य सब्बो पिउपरिभवकारओ लोगो ॥६३८॥ 

जबखो महप्पभावों अपमाणं कारिओ पुरसमक्खं । अवरो वि जो विरूवो बसीकओ सो वि कि बहुणा ? ॥६३९॥ 
पढम॑ पि हु विहियमिमं असहंतीए पराभव॑ पिउणो | माणधरणाए भणियं तहेव निव्वाहियमिमीए ॥६४०॥ 
अभिमाणवज्जियाणं ठाणे ठाणे पराभवहयाणं | काउरिसाणं ताणं न य इहलोगो न परलोगो ॥६४१॥ 

अवि उड्ढ चिय फुट्टति माणिणो न य सहंति अवमाणं । अत्थवणम्मि वि रविणो किरणा उद्भंं चिय फुरंति ॥६४२॥ 


वियसंतकमलवणसंडमंडियं भमरमणहरुग्गीयं । अभिमाणधणस्स तणं व सरबरं रायहंसस्स ॥६४३॥ 


देसे मुयंति जीय॑ चयंति पियबंधवं पि न गणंति । अभिमाणधणा पुरिसा रज्जब्भंसं पि हु सहंति ॥६४४॥ 
अह अन्नया कयाई विचित्तकम्मक्खतवसमजोगा । अंतररिउबग्गं पह वियंभिओं त्तीपु अभिमाणो ॥६४५॥ 


श्श्ष आख्यानकमणिकोशे 


अभिमाणेण क्रिमिमिणा बहुएण वि अविसए पउत्तेण १। जइ जाणिऊण जिप्पइ कि पि हु तो जायए लट्ढें ॥६०६॥ 
इय सुहपरिणामाए दिट्लों तीए समंतभद्गुरू । नमिऊणं सो पुट्टी अभिमाणो कत्थ कायव्वो ? ॥६४७॥ 
भणियं च तेण-- 
राग-दोस-कसाए भद्दे |! अभिमाणओं जिणसु एए । जित्तेसु जेस्ु सुहिया होहिसि जम्मंतरसएसु ॥६०८॥ 
इय सुणिऊर्ण तीए भणियं भयवंत ! तुह समीबम्मि | मोयाविऊण पियरो तुह वुत्तमहं करिस्सामि ॥६४९॥ 
तो सा अम्मा-पियरो मोयावेउं खमाविउ' पठरे । महईए विभूईए पव्वइया गुरुसमीबम्मि ॥६५०॥ 
पव्वाविऊण गुरुणा समप्पिया सुव्वयाए गणिणीए । उद्धरियसव्वसल्ला विहरहइ सा गुरुसमीवम्मि ॥६५१॥ 
पंचसमिया तिगुत्ता जिइंदिया जियपरीसह-कसाया ) विसयनिउत्तडभिमाणा विसेसओ तवसमाउत्ता ॥६५२॥ 
तथा हि-- 
छट्ट-5ट्म-दसम-दुवालसेहिं मास-5द्धमासखमणेहिं । तह सोसविओ अप्पा जह रागाई वि सोसविया ||६५३॥ 
तत्तो य निक्कलंक़ सामन्‍नं पालिऊण बहुकालं | सुरलोयं संपत्ता तओ चुया पाविही मोक्‍्खं ॥६५४॥ 
कह तीए तारिसओ परिणामों भवनिबंध्ं आसि १ । कह संपइ सिवहेऊ १ अहो ! विचित्ताणि कम्माणि ॥६५०॥ 
जह एयाओ बहुकूड-कवडदोसाण मंदिरमणज्ञा । तह पायं सब्बा वि हु विवेइणा ता विवज्ञाओ ॥६५६॥ 
[ ॥ भावद्टिकाख्या नकं समाप्तम ॥७३॥ ] 


एतासु निश्व॑णपुरन्भ्रिषु राक्षसीषु, मायाधनासु च न विश्वसनीयमेव । 
एता हि मुग्धजनमात्मवशं विधाय, संसारदुःखजलधो खलु पातयन्ति ॥१॥ 


॥ इति भ्रीमदाप्नदेवसूरिविरचितवृत्तावाख्यानकमणिकोशे व्यसलनशतज़नकयुवतिथिश्वास- 
वर्ण नस्रयोविशतितमो <घिकार: समाप्त: ॥२३॥ 


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[ २४. रागादयनथपरम्परावणेनाधिकारः ] 


युवतिषु विश्वासो न विधेय इत्यभिहितम्‌ । तासु चाभिलाषो जन्तो रागादिसद्धावे भवति | तेषां चेहिका-5<मुष्मिकापायहे- 


तुत्वेन परिहायंतामाह-- 


संसारवुड्िजिणगा राग-दोसा तहा कसाया य | 
तवसंजमहाणिकरा हृह चेव इमे अणत्थफला ॥३०॥ 


अस्या व्याख्या-- 'संसाखृद्धिजनकौ' भवोपचयकारकौ 'राग-द्वेषो' प्रीत्यप्रीतिलक्षणौ जीवपरिणामो, “तथा” इति समुचये, 
'कृषायाश्र' क्रोधादयो जीवपरिणामा एवं “तपः-संयमहानिकरा:' तपश्च--अनशनादिरूपं संयमश्व--प्रृथिव्यादिरक्षणलक्षण: तयो: 
हार्नि--वृद्धयभाव॑ कुबन्ति ये ते तथोक्ताः 'इहेव” अस्मित्रेव जन्मनि 'अनथफला:” अपायप्रयोजनाः ॥३०॥ एतानेव दृष्टान्तेनाह-- 


रागम्मि वणियपत्ती दोसे नाय॑ं ति नाविओ नंदो। 
कोहम्मि य चंडहडो मयकरणे चित्तसंभूया ॥ ३१ ॥ 
मायाए आइच्चो लोमे उण लोभनंदि-नउलबणी । 

इय नाउं जेयव्वा रागाहरिऊ पयत्तेण ॥३२॥ 


€ प्रप्पतवणबाधिकारे 
२७. रागाद्यनथ वणिक्पत्न्याख्यानकरम्‌ २१६ 


अनयोव्यौख्या--'रागम्मि! त्ति रागविषये वणिकपत्नी' वणिग्भायां। 'दोसे' ति दोषविषये 'नायं ति! दृष्टान्तः 'नाविकः' 

पोतवाहकः 'नंदो” त्ति नन्दाभिधानः:। 'कोहम्मि य' त्ति क्रोधे च 'चंडहडो” त्ति चण्डभटनामकः । “'मयकरणे'त्ति अह्जारनिवेतने 
“चित्र-सम्भूती' इति चित्र-सम्भूतामिधानो मातड्भदारकों ॥३१॥ "मायाए' त्ति मायाकरणे 'आदित्य:' इति मायादित्याभिधान: । 
“'लोमे उण' त्ति लोभविषये पुनः ज्ञातमित्यथं: 'लोभनंदि-नउलूवणी' इति लोभनन्दिश्व--श्रेष्ठी नकुलडबणिक्‌ च-नकुलकप्रधानो वाणिजक 
लोभनन्दि-नकुल्बवणिजी । 'इति' अमुना प्रकारेण 'ज्ञात्वा' [अवबुध्य] अनथहेतुतया 'जेतव्या:” वशीकतेव्या: 'रागादिरिपव:” रागप्र- 
मुखाः शत्रवः 'प्रयत्ने आदरेण इति गाथासडक्षेपार्थ: ॥३२॥ व्यासाथस्तवास्यानकगम्य: | तानि चामूनि । 
तत्ञ तावत क्रमप्राप्ं वणिक्पत्न्याख्यानकमाण्यायते--- 

निवसंति खिद्पइट्टियनयरे जणरेहिरे धणसमिद्धें । अरिहज्न-अरिहमित्ता वाणियगा भाउणो दोन्नि ॥१॥ 

अरिहज्रभारियाए अहउन्नय5ब्भत्थिओं अरिहमित्तो । अणुरत्ताए चंदो व्व सोमपयई सुहाहारों ॥२॥ 

तेणं सा पडिसिद्धा बहुप्पयारं न जाव विरमेद । तो भणियं मह भाउगभयमवि ते नत्थि इय भणिए ॥३॥ 

चितेह न कहया वि हु एसो म॑ मन्निही जियंतम्मि | नियभा उगम्मि नियमा ता त॑ कहमवि विणासेमि ॥9॥ 

अह केणावि छलेणं भत्तारं मारिऊण तं॑ भणइ । इरण्हि ते कस्स भय॑ ? तो सो चितइ अहह ! निहओ ॥५॥ 

मह बंधू एयाए पावाए मह निमित्तमिइ नाउं। वेरमगओ गिण्हइ पव्वज्ज सुगुरुमूलम्मि ॥६॥ 

तब्विरहविहुरियंगी कम्मिवि मरिऊण सन्निवेसम्मि | सुणिया सा संजाया सो वि हु कह कहवि विहरंतो ॥७॥ 

तत्थेव अरिहमित्तो संपत्तो पेच्छिकण तं॑ सुणिया । पुत्वभवब्भासाओं न मुयह पिद्रि मुणिवरस्स ॥८॥ 

तत्तो जणेण कहमवि विओइया मुणिवरं अपेच्छंती । अद्वज्फाणोवगया पडिबद्धा तम्मि साहुम्मि ॥९॥ 

मरिउं महाडदए संजाया मक्कडी मुणी वि तहिं । बिहरंतो संपत्तो त॑ं दटदुं कंठमणुलग्गा ॥१०॥ 

साहुजणेणं निच्छोडिऊण निद्धाडिया कहवबि तत्तो | त॑ साहुमणुसरंती मरिउं सा बंतरी जाया ॥११॥ 

नाऊण विभंगेणं पुव्वभवं तप्पओोसमावन्ना । छिड्डाईं निहालंती अच्छइ सा अरहमित्तम्मि ॥१२॥ 

हसिऊण तरुणसमणा भणंति धननो सि अरिहिमित्त | तुम | ज॑ सि पिओ सुणियाणं वयंस ! गिरिमकडीणं पि ॥१३॥ 

सो तह वि निक्ोसाओ विहरंतो अवरवासरे सरियं | थोवजलमवक्कमिउं उप्पडइ मुणी तहिं जाबव ॥१४॥ 

ता त॑ छिह्ं लहिउं छिंदइ सा उरुयं गुरुपओसा । पडिए ऊरुम्मि जले मिच्छाउक्कडमिमो देइ ॥१५॥ 

अह सासणदेवीए सो ऊछू लाइओ ससत्तीए | निद्धाडिया य पच्च॑तदेवया साहुभत्ताए ॥१६॥ 


॥ वर्णिक्पर्न्याख्यानक समाप्तम्‌ ॥७४॥ 


अधचुना नन्दाख्यानकमाल्यायते-- 


बहुजीवसंकुलाए गंगाए हसियसुरसमूहाए । उत्तारइ मोल्लेणं जगनिवहं नाबिओ नंदो ॥१॥ 

अह अज्नया य साहू धम्मरुदई विविहलद्विसंपन्नो । उत्तिन्नो गंगाए धरिओ सो तेण मोजन्नकए ॥२॥ 

अइकंते पहरदुगे वि जाव न हु मेज्लण तओ विहिओ | सहस त्ति छारपुंजो मुणिणा सो तेउलेसाए ॥३॥ 
मरिऊण समुप्पन्नो सभाए घरकोइलो किलिट्टमणों । धम्मरुई वि य पत्तों विहरंतो तत्थ कालेण ॥४॥ 

गामाओ विणिंबखंतो भिक्‍खं गहिऊण भुंजए जाव | तत्थ घरकोइलो सो पुव्वभवब्भासओ रोसा ॥५॥ 
विक्खिरइ कयवराई मुणी वि अन्नत्थ उद्भिउं जाइ | सो कुणह त॑ तहेव य एवं तहृए वि ठाणम्मि ॥६॥ 

तो चिंतइ धम्मरुई को एसो नंदसरिसगो पावो । कूरं निरिक्खिऊ्ं सो वि हु भासीकओ तेण ॥७॥ 

तत्तो मयंगतीरे हंसो मरिऊण सो समुप्पन्नो | कालेण तत्थ पत्तो विहरंतो धम्मरुइसाह ॥५८॥ 

ते द्ठ' सो हंसो पक्खउड भरिय सीयलजलत्स । पुव्बभवकोववसओ आछंटइ सिततिस्समयम्मि ॥९॥ 

एवं पुणो पुणो वि हु थकइ न हु जाव ताव मुणिणा वि। को एस नंदकप्पोशक्ति झामिओ तेउलेसाए ॥१०॥ 


२२५० आखश्यानकमणिकोशे 


मरिऊरणं संजाओ अंजणसेलम्मि दुद्धरो सीहो । सह सत्धेणं पत्तो कालेणं तत्थ साहू वि ॥११॥ 
दटट्रण तयं सहसा सत्थं मोत्तण धावए कुबिओ । जा मुणिवरस्स समुही निवारिओ ताव लोएण ॥१२॥ 
जा कह वि नो नियत्तइ को एसो नंददेसिओ पाबो १। मुणिणा वि विगप्पेडं सहसा छारीकओ सो वि ॥१३॥ 
मरिऊण्ं सो जाओ बड़ओ वाणारसीए नयरीए । भिक्‍्खट्वाए पविट्ठो दिट्टो सो तेण धम्मरुद ॥१४॥ 
तो डिंभे रममाणं मोत्तणं कुणद जाव उवसग्गं | पुन्वभववइरभावा ता तत्थ वि मारिओ तेण ॥१५॥ 
मरिऊणं संजाओ राया तत्थेव सुमरिउं जाइं । चिंतेह तेण मुणिणा दड्ढो हं एक्तियभवेस ॥१६॥ 
इन्हि पि जइ डहेज्जा न हु होही रज्जसंपया मज्झ । पेच्छेमि तयं जइ ता तो हं खामेमि नियमेण ॥१७॥ 
तज्जाणणानिमित्त सइसिलोगेण पुव्वभवचरियं ! नियय॑ सब्बजणेणं पढावद त॑ सिलोगमिमं ॥१८॥ 
“गंगाए नाविओ नंदो, सभाए घरकोइलडो | 
हंसो मयंगतोराण, सीधी अंजणपव्वए ॥१॥ 
चाणारसीए बड़ुभो, राया तत्येव आगओ।” 
एवं बीयसिलोगं, जो पूरइ तस्स पत्थिवों देह । रज्जस्सडद्धं उग्धोसियं च नयरीए तो छोगो ॥१९॥ 
रइउं सबुद्धिविहवाणुसारओ पच्छिम5द्धमवणिवई । अणुसरह तयं दटू दुं न पच्चओ होइ नरबइणो ॥२०॥ 
अह धम्मरुई विहरिय अन्नत्थ समागओ तहिं व॒ुत्थो । उज्जाणम्मि उज्जाणपालएणं पढिज्ज॑ंतं ॥२१॥ 
7गाए नाविओ इय पयाइं निसुणित्तु तेण सो भणिओ | वारं वारं परिपढ्सि कीस त॑ भद्द ! एयं ? ति ॥२२॥ 
सव्वो वि साहिओ तेण वइयरो तस्स मुणिय परमत्थं । तत्तो मुणिणा त॑ पच्छिमद्धमापूरियं एवं ॥२३॥ 


प््सि घायगो जो उ सो एत्थेव समागओ ॥२॥ शि 


तो त॑ संपुन्नपयं घेत्तणा55रामिओ निवसयासं | पत्तो निवेइयं त॑ं दटठु राया भउब्बिग्गो ॥|२४॥ 
मुच्छावसेण महिमंडलम्मि पडिओ तओ परियणेण । एसो असोक्खकारी पहुणो इय जायकोवेण ॥२५॥ 
पिट्टिज्जंतो सो आह कब्बमेयं कयं मए नेय । किंतु महं समणेणं समप्पियं दुक्खमूलं ति ॥२६॥ 
उवलद्धचेयणेणं रन्ना उज्जाणपालओ पुट्ठटो । केण कय॑ कव्बमिमं ? सो भणइ वर्णम्मि मुणिण त्ति ॥२७॥ 
तो तत्थ निवो पत्तो रिसिणो वंदणय-खामणनिमित्तं | वंदित्तु खामिऊ्ं पडिवज्जिय सावगं धम्मं ||२८। 
संपत्तोी नियभवणे मुणी वि सरिऊण पुव्वदुच्चरियं | आलोइय पडिकंतो सम्मं गुरुपायमूलम्मि ॥२९॥ 
सुकज्माणानलदडडघाइकम्मिधणों विमलनाणो । निम्महियसेसकम्मो सासयसोक्खं सिवं पत्तो ॥३०॥ 


॥ नाविकनन्दाज्यानक समाप्तम ॥७५॥ 


इदानीं चंडदहृडाख्यएनकमाख्यायते । तश्चेद्म-- 
अत्थि विसेसयनामो बहुसरसीरसियगोवयसमूहो । विश्शो व्व समयसंगयकरकरिसयसंगओ गामो ॥१॥ 
अह तम्मि चेव गामम्मि दुम्मई वसइ करिसगो एगो । नामेणं चंडहडो भंडणवसणो सहावेण ॥२॥ 
अह अन्नया य सरयम्मि सस्ससंपत्तिवन्नणिज्वम्मि | फलियम्मि तस्स खेत्तम्मि कहवि सुन्नम्मि एगम्मि ॥३॥ 
गामबइल्ला कस्सवि य संतिया किल कुओ वि हु पविद्ठा । तेहि वि छुह्ाकिलंतेहिं भक्खियं बहुविहं धन्न॑ ॥४॥ 
दट्ठ्रण तयं पयदण कोहणो पेच्छिउं च ते बसहे । पाहाण-कट्ठ-जट्टीहिं निहदयं हणियमारद्धों ॥५॥ 
भंजइ तेसि विसाणे केसिंपि खुरे मुहाइ केसिंपि | रुहिरपवाहव्वावियसब्बंगे मुयद न तहा वि ॥६॥ 
कोहवसटो गलिय॑ पि निवसणं मुणइ नेय तयवत्थो । विम्हरियप्पा वसहे पहरंतो सो गओ गाम॑ ॥७॥ 
लोएणं सिक्खविओ भो भो | कि कयमिमेहिं तुह पावं १। जं पहणसि निस्संको निकरुणो मुकमज्जाओ ॥५॥ 


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१, वाराणसीए २० । 


२३. रागाद्यनथपरम्परावणनाधिकारे च्ण्डभडाल्यानकम्‌ २२१ 


तुममेएसि सामी मग्गसु खाहं निएसु ववहारं । मुंचसु इमे वरए गोरूवे निव्विवेण य ॥९॥ 
मूढो किमेवमेत्तियमप्पाणं नग्गयं ति नो नियसि १? । भणइ य नग्गमिमेसि, सामी काहं न संदेहो ॥१०॥ 
एवं सिक्खविओ वि हु कोहंधो जाव चेयह न कि पि। तावा55रक्खियपुरिसेहिं बंधिउ गाढबंधेहिं ॥११॥ 
कारागिहम्मि खित्तो धरिउं कश्वयदिणाणि सेहेउं । हरिउं गिहसव्वस्सं मुकी काउ' जहाजाओ ॥१२॥ 

॥ चण्डसडाख्यानकं॑ समाप्तम ॥७६॥ 


उक्त घण्डभडास्यानकम्‌ | अधुना चित्रसम्भूता[ख्यानक |माख्यायते । तश्चेद्म -- 
साकेयनयरनायगचंडवर्डिसयसुओ गुरुसमीवे । पव्वहओ मुणिचंदों अडवी6 सत्थपरिभट्ठटी ॥१॥ 
दिट्टो गोवालयदारएहिं पडिजग्गिओ य सो चउहिं । पडिबोहिऊण धम्मे सब्बे पव्वाविया तेण ॥२॥ 
पालिति समणधम्मं नवरं तेसि चउण्ह मज्ञम्मि | दो जाईमयमहमं कुणंति मणयं तओ मरिउं ॥३॥ 
उबवन्ना सुरलोए भोत्तणं तत्थ अमरसोक्खाईं । संचिणियनीयगोया चइउं वाणारसिपुरीए ॥४॥ 
रज्जे रन्नो संखस्स तस्स मायंगभूयद्ल्विस्स । उबवन्ना पुत्तत्तेण नामओ चित्त-संभूया ॥५॥ 
ते दो वि रूबवंता दोन्नि वि मेह्ागुणेण संजुत्ता । दोचि वि कलाण जोगा संजाया अट्नवारिसिया ॥६॥ 
एत्तो य नमुइसचिवेण किंपि अंतेउरम्मि अवरद्धं । तो पच्छन्नो मारेउमप्पिओ तेसि जणयस्स ॥७॥ 
चितियमिमिणा जइ कहवि मह स॒ए एस गाहइ कलाओ । तो गोवेउ' रक्खेमि चितिउ' पुच्छिओ एसो ॥<॥ 
तेण बि तं पडिवन्नं सव्बं पि हु मरणभीयहियएणं । भूमीहरयम्मि ठिओ पाढइ ते दो वि तस्स सुए ॥९॥ 
मायंगी वि हु किश्व॑ सब्वं पि हु भोयणाइयं कुणइ । तो तीए वि सम॑ सो तहेव छग्गो अकज्जम्मि ॥१०॥ 
वसणं पत्तो वि हु तीए सह कहं सो अकज्जमायरइ ? । धिसि धिसि ! एयस्स अकज्जकारिया नयणहयगस्स ॥११॥ 
इय विनडियं पि विनड॒इ विग्गोवहइ खहु विगोवियं पि जणं । मारेइ मारियं पि हु एस अणज्जो जओ भणियं ॥१२॥ 
कृशः काण: खब्ज: श्रवणरहितः पुच्छविकल:, क्षुधाक्षामी दीनः पिठरककपालार्पितगल: । 
न्रणेः पूयक्षिन्रे: क्रमिकुलचितैराचिततनु:, शुनीमभ्येति शवा हतमपि निहन्त्येव मदनः ॥१३॥ 
मायंगेणमिमं पुण पच्छन्न॑ं पि हु वियाणियं कह वि । नज्जह चोरियरमियं गोविज्जंतं पि जेणुत्त ॥१४॥ 
चंदकला-छुरमट्टी-चोरियरमियाइं राइणो मंतो । सुद्ठ , वि गोविज्जंतं चउद्यहे पायर्ड होइ ॥१५॥ 
चिंतियमिमिणा संपह्ट पावमिमं सब्वहा वि मारिस्सं | पत्थावं लहिऊरणं गुरु त्ति काउं पुण सुएहि ॥१९॥ 
नीसारिऊण मुक्को गंतुं हृत्यिणपुरम्मि अन्नाओ । जाओ पहाणमंती सण्णकुमारस्स चक्िस्स ॥१७॥ 
ते वि हु मायंगसुया जोव्वण-लायन्न-रूवसंपत्ना । जाया कलासु कुसला गीयकलाए विसेसेणं ॥१८॥ 
अह अन्नया य पत्ते उम्मायकरे वसंतसमयम्मि | अंदोलयकीलासुं विलछासिलोयम्मि कीलंते ॥१९॥ 
विविहासु चच्चरीसुं गायंतीसु [**'**'] नायरजणेणं । तेसि मायंगाणं नीहरिया चच्चरी तइया |॥२०॥ 
गायंति गीयनिउणा तीए मज्कम्मि चित्त-संभूया । नायरयचच्चरीओ तेसिं गीएण भग्गाओ ॥२१॥ 
मायंगचच्चरीए मिलियाओ गीयपरवसमणाओ । मोत्तु' छिप्पमछिप्पं जायं असमंजस सब्बं ॥२२॥ 
नाऊण वश्यरमिमं पहाणपुरिसेहि गंतु विन्नत्त । रत्नो जह देव ! इमे मायंगा तुज्क गायंति ॥२३॥ 
जत्थ तहिं सब्बो वि हु हरिणजुवाणो व्व गोरिगीएणं । अक्खित्तमणो न मुणइ कज्जमकज्ज नयरिलोओ ॥२४॥ 
त॑ सोडं नरवइणा गायंता वारिया समायंगा । रयणीए पच्छन्न॑ सुणंति ते चच्चरीगीयं ॥२५॥ 
निसुणंताणं तेसि बला वि गव्वेण निग्गयं गीयं | सुणिकण सियालाण व सदियमुन्नाइयद्धणियं ॥२६॥ 
त॑ नाऊणं रज्ना निययाणाइक्षमाओ रुट्टेणं । नियविसयाओ निव्वासिऊण ते दो वि पम्मुका ॥२७॥ 


न्‍दरवलर-+-म»ओं-म०-ननशन का नाप+कानपकक-+ न ममकार-फकमन-+-+-न पाक ककाक न + नाम कक ५4 >-के 3-3० ५०+क नल ए7 कट कफ न वि निनकल 





२२०५ 


तथा हि--- 


आख्यानकमणिकोशे 


चितियमिमेहिं तइया अहिमाणाओ मणे सनिव्वेयं | घिसि घिसि ! अम्हाणमिमों कलाकडावाइगुणनियरों ॥२८॥ 


रूव॑ सोहग्गगुणो पियभासित्तं कलासु कुसलरत्त | जाईए दोसेण5म्ह निप्फलं कासकुसुमं व ॥२९॥ 
ता दुक्षियहणणत्थं कुणिमो किंपि हु सुहं तबचरणं | जम्मे वि जेण एवं न भवामो परिभवद्वाणं ॥३०॥ 
इय वेरग्गगएहिं अइसयनाणी मुणी जहा दिद्ठों । तेण जहा दिल्नवया कद्ठाणुद्राणतबनिरया ॥३१॥ 
दिट्ठा य नमुइणा जह विहिय॑ संभूहणा जह नियाणं । जह पत्ता सुरठोयं चुया तओ माणुसा जाया ॥३२॥ 
तह सब्वं समयाओ। विज्नेय्व॑ं वित्थरेण विउसेहिं। इह गंथगउरवभया न सम्ममुत्तं जमम्हेहि ॥३३॥ 
॥ चित्र-सम्भूताख्यानकं समाप्तम्‌ ॥७७॥ 


अधुना मायाद्त्यिकथानकमुच्यते । तथेद्म-- 


रेहइ जो बहुगोउलसयसंकुलभूरिगामनिवहेहिं । गामा सारयससदरवलकखदेवउलवंद्रेहि ॥१॥ 

देवउलाइं वि निम्मलजलुूभररमणीयसरवरसएहिं । रेहंति सरवराईं वियसियसयकमलसंडेहिं ॥२॥ 

कमलवणाइं वि मयरंदलुद्धपरिभमिरभमरनियरेहिं । भमरा वि हु सुइसुहयरसमहुरझंकाररावेहिं ॥३॥ 
महुयरझंकारा वि हु सया वि सवणेक्वरसियकुसलेहिं । सोयारा वि हु रेहंति जत्थ गंवव्वियकराहिं ॥४॥ 

एवं परंपराए गुणाण को लहइ तस्स पज्जन्तं | तियसालयसंकासो सो कासी जणवओ अत्थि ॥५॥ 

तम्मि य पासजिणेसरपयपउमपवित्तियावणिविभागा । निस्सेसनयरिगु णगगामधाम वाणारसी नयरो ॥६॥ 

तीसे समीववत्ती सालिग्गामो समत्यि थिमियजणों । तम्मि य गंगाइच्चो निवसह कोडुंबिओ एगो ॥७॥ 

सो उण कुकम्मवसओ घणवहपरिपूरियम्मि गामम्मि । दारिदभरक्कतो कुकम्मनिरओ सया वसइ ॥८॥ 
नियतणुरूवविडंबियमयरद्धयमाणवाण मज्क्म्मि | सो चिय कुरूवयाए दिद्ठी दिद्वीए देइ दुहं ॥९॥ 
पुव्वाभासि-पियंवय-कन्नामयवयगभासणरयाणं । सो चेवेगो उव्वेयकारओ नवरि भासंतो ॥१०॥ 

सरलेसु वि मायावी किवणो चाईण मज्कयारम्मि । सुकयन्नूण कयम्धो विब्ुहाणं मुक्खसेहरओ ॥११॥ 
मुद्धजणवंचणरओ मायाए चेव कुणइ ववहारं | तत्तो जणेण विहिय॑ मायाइच्चो त्ति से नाम॑ ॥१२॥ 

अह तम्मि चेव गामे दक्खिन्नमहोयही महिमनिलओ । सरल्सहावों सज्ञगसिरोमणी साहुसिरतिलओ ॥१३॥ 
वसहाहिटद्वियदेही अग॒तणयाहियमओडमिहाणेण | थाणु त्ति विस्सुओ['****' ]संकरो अत्थि थाणु व्व ॥१४॥ 
जल-जलणाण व छाया-55यवाण वरमणि-वराडियाणं व । राहु-ससीण व तेसि अमय-विसाणं व सुहिभावों ॥१५॥ 
संजाओ कहवि हु पुव्वजम्मअब्भत्थनेहरायाण । वारंतस्स वि लछोयस्स सुद्ध-कछुसियमणाण परं ॥१६॥ 

अह अन्नया य नियसच्छयाए कलिएण थाणुणा भणिओ । मायाइच्ो मित्तोडकलुसियचित्तेण कलुसमणों ॥१७॥ 
पुरिसत्थवज्िएणं जाएण वि को गुणों मणूसेणं ? । चिंचापुरिसिण व्‌ मित्त ! मह्ठियामयनरेण5हवा ॥१८॥ 
धम्मत्थो तावउम्हाण नत्यि सुहभावणाए रहियाणं । कामत्थो वि हु धणवज्जियाण दुरेण दुहियाणं ॥१९॥ 
अत्थोवज्जणकज्जे जुत्तो तावुज्जमी जमत्थेण । रहियाण माणवाणं निरत्थओ गुणकलावों वि ॥२०॥ 


जओ भणियं-- 


किंच--- 


जाई रूवं विज्ञा तिन्नि वि निवडंतु गिरिगुहाविवरे । अत्थो चिय परिव्टउ जेण गुणा पायडा हुंति ॥२१॥ 


अणहुंता वि हु हुंतीए हुंति हुंता वि जंति जंतीए । ओ | जीए सम॑ नीसेसगुणणणा जयउ सा लच्छी ॥२२॥ 
अबरं च दविणरहियस्स मित्त ! धम्मप्पियस्स वि गिहिस्स । इहलोय-पारलोइयक्रिरियाओ गरुंति समक्षओ |॥२३॥ 
इय मित्तवयणमायज्निऊण मायापवंचमइनिउणो । जंपह मायाइच्चो पहसियवयगो कुडिलहियओ ॥२४॥ 

जइ एवं ता चल्लसु जामो वाणारसीए नयरीए | तीए वि हु घणयसमाणविहवनागरयगेहेसु ॥२५॥ 


२४. रागाद्यनथपरम्परावंणनाधिकारे मायाद्त्याब्यानकम्‌ २२३ 


खत्ताणि खणामी कणय-रयणडलंकार मूसिए कन्ने | तोडेमो वणियवहण दविणगंठीओ छिंदेमो ॥२६॥ 
काहामो बंदिगहं पभूयविहवाण वणियनिवहाणं । एवबंविहमवर् पि हु तत्थउत्थकए करिस्सामो ॥२७॥ 
एवं जत्तपराणं साहससहियाण बुद्धिमंताणं | एस वराओ अत्थो कत्तियमेत्तो किलडम्हाणं ? ॥२८॥ 
एवं सोउं मयसमयमत्तकरिदंतघट्टियतरु व्व । करपन्लवे घुणंतो, तहिं पिहिन्तो य सबणजुयं ॥२९॥ 
मा मित्त | वयणमेरिसमणंतभवभमणकारणमसुद्धं । हियए वि धरसु सज्जण !, किमंग पुण वयण-किरियासु ? ॥३०॥ 
जेण परस्स विरूवं, जायइ परलोगबाहगं जं वा । तद्दारेणं ज॑ं होइ वंछियं तेण न हु कर्ज ॥३१॥ 

भणियं च-- 
अक्ृत्वा परसन्तापमगत्वा खलसझ्तिम्‌ । अनुत्सज्य सतां माग, यत्‌ स्वल्पमपि तदू बहु ॥३२॥ 
ता अबरे वि उवाया अणेगरूवा धणज्जणे संति | तेहिं वि जायइ वित्त पुल्नसहायाण पुरिसाणं ॥३३॥ 
ते उण वाणिज्ञकला किसिकम्मं गरुयराइणों सेवा | धाउब्बाओ वरदेवयाए आराहणाकरणं ॥३४॥ 
जलनिहितरणं पसुपालवित्तिया गिरिगुहापवेसो य | दसरगिहकम्मकरत्तमप्पणो विणयकरणेणं ॥३२५॥ 
एमाइअणेगविहं अत्थोवज्वणकए अणुट्टाणं | ता कि भवओ भणिएण निंदिएणं संयाणाण ? ॥३६॥ 
तो भणह तस्स मित्तो, हासेणं मित्त | जंपियमिमं ति | न उणों मरणा वि अकज्जमेरिसं अहमणुट्टिस्स ॥३७॥ 
अत्थोवज्जणहेउं तत्तो दोन्नि वि गया पहद्ठाणे | तत्थ अणेगोवार्णाह विढवियं तेहि पउरधणं ॥३८॥ 
जा गणियं ता जाया, पंचसहस्सा सुबन्नजायस्स । पत्तेयं पत्तेयं दोन्हं पि हु दव्बसंखाए ॥३९॥ 
चितियमिमेहिं दव्वं कायकिलेसेण जायमम्हाणं । अन्नत्थ देसियाणं परं किमेएण ? भणियं च ॥४०॥ 
कि तीए सिरीए पीवराए ? जा होइ अन्नदेसम्मि | जा य न मित्तेहि सम॑ जं च अमित्ता न पेच्छंति ॥४१॥ 
ता गच्छामो संपह नियदेसे तत्थ धम्मियजणाणं । नियसयणाण जहिच्छं नियलूच्छि संपयच्छामो ॥४२॥ 
परमेयं चोरिभया निव्वाहेउं न तीरइ सुवन्नं | ता विणिवद्टिय लेमो महग्घरयणाणि एएण ॥४३॥ 
ताणि सुहं संगोविय मग्गे निज्नंति चितिऊणेवं | किणियाणि सुबन्नेणं सहस्समुल्लाणि रयणाणि ॥४४॥ 
तत्तो य मल्णिजरचीवरस्स गंठीए बंधिउं ताणि । सुमुहुत्तम्मि पयट्टा गंतुं कप्पडियवेसेण ॥४५॥ 
मग्गे गच्छतेणं मायाइच्रेण चिंतियमणिट्ठं | वंचेऊणं थाणुं गिण्हामि समग्गरयणाणि |॥|४६॥ 
तो कवडेणं भणियं भो ! भिक्‍्खाभोयणेण एएण । पव्वहिया पहदियहं मित्त | वयं मग्गपरिसंता ॥9७॥ 
मुक्खत्तणेण अहय॑ काउं कयविक्कयं न याणामि | ता आगच्छसु किणिऊण कि पि तं॑ मंडयाईयं ।॥|४८॥ 
परमेत्थ नयरमज्झे न नज्जए केरिसो वि ववहारों ?। तो रयणकप्पडमिमं मह पासे मेल्लिउं जाहि ॥४९॥ 
तत्तो वंचणमहणा नयतरुकरिणा'*''****' कयसिरमणिणा । निद्यवणिणा तेणं जं विहियं त॑ निसामेह ॥५०॥ 
तारिसयमलिणचीवरगंठिदुगे बंधिऊण पाहाणे । किर एयमप्पिउं गिण्हिऊण सेसं पलाइस्सं ॥५१॥ 
तो आगए तमप्पिय जामि अहं गोरसाइकज्जम्मि । त॑ परिवालसु एल्थेव निग्गए तम्मि इय भणिउं ॥५२॥ 
एसा55गच्छट मित्तो इय बहुहा खिज्जिकण थाणुवणी । गेहामिमुहो चलिओ सबिसाओ मित्तवसणेण ॥५३॥ 
हा मित्त | सुहय ! तं कत्थ दीससे १ कि न देसि पडिवयणं १ । कत्थ गओ सि महायस ! संपई मोत्त ममेगागी ॥५४॥ 
जह जीचवंती एही मह मित्तो ता इमं धणं तस्स | अह नो एही तम्माणुसाण गेहे समप्पस्सं ॥५०॥ 
एवं थाणू वच्चइ मायाइच्चो वि दुरदेसम्मि | गंतुं जाव निरूवइ पेच्छह तावुबलगंठिदुगं ॥५६॥ 
तत्तो झुरइ पलवइ कुट्टट)ी वच्छत्थलं मलइ हत्थे | दीहरनीसासे मुयइ दुम्मणो रुबइ चितइ य ॥५७॥ 
जो अन्नस्स विरूयं चिंतई तेणेव दुगुणतरगेण । सो हम्मइ कंडेण व पच्चुप्फिडिएण न हु भंती ॥५८॥ 
भमडंतो महिवलयं भिक्‍्खाभोई किलिट्ठपरिणामो । मिलिओ मायाइच्चो कइया वि हु थाणुणो मग्गे |५९॥ 


१, ०ण संताणं रं० । २. सकर्णानाम्‌ । ३. गंतू खं० । 


श्र्छ 


आख्यानकमणिकोशे 


तो उक्कंठियहिय ओ कंठम्मि विलग्गिउं परुन्नो सो । हा मित्त ! मज्क वल्लह | कत्थ ठिओ एत्तियं कार ! ॥६०॥ 
कि वा सुह-दुहजायं, मह विरहे विसहियं तए मित्त | १। इय पुट्ठटो मायाए मायाइश्वो पयंपेइ ॥६१॥ 

अत्थि तुह रयणदसगं समप्पिउं पत्थिओ अहं तइया । गोरसकज्जे तत्तो कम्मि वि गेहे पविट्टो हैं ॥६२॥ 
चोरो त्ति भणिय गहिओ आरक्खियसंतिएहिं पुरिसेहिं। पक्खित्तो गोत्तीए सुदुक्खिओ जाव बिट्ठामि ॥६३॥ 
भोयावणत्थमेगा ताबाउडया मज्क मज्किमा जुबई । तीए कहिय॑ त॑ देवयाए गहिओ बलिनिमित्तं ॥६४॥ 
घरमज्झवाउलाणं जइ कह वि विणिग्गओ तओ हूट्ठ | तो हंं भीओ लहिऊणमंतरं कह वि नीसरिओ ॥६५॥ 
इय नियवश्यरजायं तुमए जं पुच्छियं तयं कहियं । सुह-दुहकहणाओ अहं जाओ सुहिओ जओ भणियं ॥६६॥ 
मित्तेहिं जाव न सुय॑ सुहं व दुबखं व जीवलोयम्मि । सुयणाण हिययल्ूमगं ताव5च्छइ नद्धसल्लं व ॥६७॥ 

एवं वबच्च॑ंता्णं अडवी निम्माणुसा समणुपत्ता । तत्तो छुह्ाकिलंती मायाइचं भमणइ थाणू ॥६८॥ 

गिण्हसु रयणाणि इमाणि मित्त! मह परवसस्स पड़िहिति | तो तेण हरिसिएणं घेत्त्णं चितियं एयं ॥६९॥ 
पुणरवि वंचेमि इमं हत्थे चडियाणि मज्म रयणाणि । इयर करुसिएण दिद्ठों तगछन्नो कूवओ तत्तो ॥७०॥ 
अवहत्थिय विरपरिचयमवगल्निय[निय]कुलुक्मायारं । परिहरिउं पुरिसव्वयमंगीकाउं नरयवडर्ण ॥७१॥ 
उज्िय नियमज्ञाय विस्सरिउं सुहिसिणेहसब्भावं | परिचइउं सदयत्तं दूरीकराऊण लोयठिइं ॥७२॥ 

पक्खित्तो पिसुणत्तगमवर्लंबिय तेणमंघकूवम्मि | सरलसहावों मित्तो कयर्धनिक्रिवसिरोमणिणा ॥७३॥ 

तत्थ वि पडिओ चिंतइ पक्तिखत्तो केण कूवमज्ञम्मि ?। न मुणइ सरलछत्तणओं थाणू जह मित्तकम्ममिमं ॥७४॥ 
जावुप्पहेण चलिओ इयरो ता हण हृण त्ति भणिरेहिं | भिल्ले्ि बंधिऊर्ण मुक्को घेत्तण रयणाणि ॥७५॥ 
अणुभव दुन्नयतरुणो कुसुमं रे जीव ! फलमिओ नरओ । इय भाविंतो चिट्ठह कुडंगिमज्कृम्मि पक्खित्तो ॥७६॥ 
एत्तो सेणावइणा भणिया भिन्ला तिसाभिभूणएण । भो भो ! जोयह नीरं ते वि भमंता गया तत्थ ॥७७॥ 
जत्थ5च्छइ सो थाणू तणछन्ने कूवयम्मि पक्खित्तो | नीरं जाव निहालंति ताव निसुणंति नरसद्दं ॥७८॥ 

भो भो ! म॑ पहियनरं नरयसमाओ तमंधकूवाअ ।। उत्तारह केणावि हु पक्खित्तं करिय कारुन्न॑ ॥७९॥ 

तेहिं वि सेणावइणो कहिऊणं कट्डिओ निउत्तेहिं । पुट्ेंण जहावुत्तं कहियं तेसिं नियं चरिय॑ ॥<८०॥ 

भो भो ! एस वराओ पक्खित्तो तेण कूबए नुणं | रयणाणि दंसिऊर्ण सब्बं पि विणिच्छियं तेहिं ॥८१॥ 

तेण वि मग्गंतेणं दिद्ठो मित्तो कुडंगमज्ञम्मि | नीसारिऊण तत्तो मग्गे गंतुं पयद्टा ते ॥<२॥ 

वच्चंता य कमेणं पत्ता पच्चंतगाममेगमिमे । तत्तो विचित्तयाए कम्माणमचितसत्तीए ॥<३॥ 

जाओ सुहपरिणामो मायाइच्चस्स एत्थ पत्थावे । चिंतियमिमिणां मह चेट्टियस्स धघिठद्धी ! विरूयस्स ॥८४॥| 

ता केण पयारेणं मह सुद्धी होज्ज पावमलिणस्स ? | इय चिंतिऊण पुट्ठा गामकुलीणा विसुद्धिकए ॥|<५॥ 

तेहिं वि केण वि कि पि हु पावविसुद्धीए कारणं भणियं । जावंते सब्वेहिं वि गंगान्हाणं समाइट्ट ॥<६॥ 

तो तत्थ पट्टिणणं दिद्दों सिरिधिम्मनंदणों सूरी | धम्म॑ वागरमाणो भव्बाणं पावसुद्धिकए ॥<८७॥ 

तत्तो सो वि हु पुच्छइ पच्छायावेण दूमिओ भयवं ! | मह मित्तवंचण5ज्जियपावविकुत्तस्स कि ताणं १ ॥<८<4॥ 
पु्विल्लगामगामीणएहिं मह मेत्तदोद्ममलिणस्स । जलू-जलण-तित्थण्हाणाइएहिं किल दंसिया सुद्धी ॥<९% 
मुणिनाहों वि पयंपइ इमेहि पुणरुत्तपावजणएहिं | मद्दय | न भवह ताणं घुवमन्नाणियबहुमएहिं ॥९०॥ 
अइकूररायकेसरिकरालमुहकुहरमज्झवडियाणं । कत्तो ताणं ताणं मोत्तुणा55णं जिणिंदाणं ! ॥९१॥ 
उब्भडदोसमहागयजगडियगरुयाभिमाणविहवाण । कत्तो ताण॑ं ताणं मोत्तृणा55णं जिणिदाणं ? ॥९२॥ 
पजलियकोहहुयासणजालावलिडज्क्रमाणहिययाणं । कत्तो ताणं ताणं मोत्तणा55णं जिणिंदाणं १ ॥९३॥ 
माणमहागुरुपव्वयचंपियनिम्मलविवेयगत्ताणं । कत्तो ताणं ताणं मोत्तणा55णं जिणिंदाणं ! ॥<५॥ 
मायादद्ठभुयंगीविसवेयविल्त्तमुद्धबोहाणं । कत्तो ताणं ताणं मोत्तगा55णं जिणिदाणं ? ॥६५॥ 


२४. रागायनर्थपरम्परायणनाधिकारे मायादित्याय्यानकम्‌ शेर 


तिहुयणजगडणसंपत्तमहिमगुणलोहरायवसगाण । कत्तो ताणं ठाणं मोत्तणा55णं जिणिंदाणं ? ॥९६॥ 
भुवणत्तयसंतावयमच्चुमहारायब्रयणपत्ताणं । कत्तो ताणं ताणं.मोत्तणा55णं जिणिंदाणं १? ॥९७॥ 
इय सोऊणणं सम्म॑ं मायाइच्चो पवत्नजिणधम्मी | आलोइऊण मायामहल्लसह्लं गओ सग्गं ||९८॥ 


॥ मायाव्त्याल्यानकं समाप्तम्‌ ॥७८। 


इदानीं लोभ नन्‍याख्यानकमुच्यते । तचथा-- 


नयरम्मि वसंतउरे जियारिनामो नरेसरो आसि | तेण5न्नया सरोवरमेगं काराबियं तत्थ ॥१॥ 
तम्मि उ खणिज्ञमाणे कणयकुसा निग्गया मिउपणिद्धा । निवपच्छन्न॑ दिल्ला उद्'ेंहि लोहनंदिस्स ॥२॥ 
विन्नायसरूवेण वि लोहऊगलिएण लोहमुल्लेण | गहिऊण तेण भणियं अबरे वि य मज्झ दायव्वा ॥३॥ 
ते वि अणुवासरं पि हु तस्स पयच्छंति अन्नया स वणी । नीओ बलिचंडाए मित्तेणं अन्नगामम्मि ॥४॥ 
गच्छंतेणं तेणं पयंपिओ नियसुओ जहा वच्छ ! । लोहकुसा दविणणं बहुएण वि संगहेय5वा ॥५॥ 
ते आगया महग्घत्तणेण कुविणण सेट्टितणएण । ताणेगो उल्लालिय खित्तो अन्नायतत्तेण ॥६॥ 
पाहाणे अब्मिझ्े विघट्टिया मट्टिया तओ तस्स । दिद्लो य दित्तकंचणविणिम्मिओ रायपुरिसेहिं ॥७॥ 
भणियं च तेहिं चोरा वणियाणं दिति रायद्विणमिणं | तो बंधिऊण खित्ता रायपुरो पुच्छिया तेण ॥८॥ 
हट्टम्मि कस्स कस्स य दिल्लमिण १ त॑ भणंति नडन्नस्स | मोत्तण लोहनंदिं सामि ! समग्गं पि तुह दविणं ॥<॥ 
पढम॑ पि हु जिणदासस्स दंसियं तेण गिण्हियं नेय । तो वाहरिय स पुट्ठो निवेण कि न हु तए गहिय॑ ? ॥१०॥ 
तेणुत्त सामि ! सया वयाणि मह संति ताणमेगयरं । भज्जह गिण्हिज्जंतोी तेण इमं देव ! नो गहिय॑ ॥११॥ 
तो तुद्ठेण नर्रिंदेण पूइ्ं सो विसज्जिओ गेहे । लूसियमसेसगं पि हु गेहं पुण लोहनंदिस्स ॥१२॥ 
आणत्ता तग्गहणाय नियभडा मिउडिभासुरनिडाछा । तेण त्रि आगच्छंतेण जाणिओ एस वुत्तंतो ॥१३॥ 
छिन्न॑ च कुढारेणं चरणजुयं एवमुल्लबंतेण | एएहिं पाविओड5हं अइघोरं आवबइं एवं ॥१४॥ 
सुहडेहिं तह वि एसो नीओ कुद्धेंद्ि रायपयपुरओ । तेणावि मारिओ सो दुम्मरणेणं विडंबेउं ॥१५॥ 

॥ लोभनन्धास्यानक॑ समाप्तम्‌ ॥७६॥ 


इदानीं नकुलवणिज्याख्यानकमुच्यते-- 


दे$ 


उज्जेणीए पुरीए सहोयरा दोनि आसि वणियसुया । सिवसिवभद्द$भिहाणा दुरंतदोगचससंतत्ता ॥ १॥ 

दोन्नि वि दविणोवज्जणकज्जम्मि गया सुरट्टविसयम्मि । दुक्खोवज्जियद्विणं नउले काउं पडिनियत्ता ॥२॥ 

जहया जेट्टड्सयासम्मि नउलगो सो विचितए तइया । हणिऊण कणिट्टं सब्बमेव गिण्हामि दविणमिमं ॥३॥ 

सिवभदस्स वि जायइ चिंता एसेव नउल्सहियस्स । इय बुद्धिजुया नियनयरिपरिसरे दो वि संपत्ता ॥३॥ 

गंधवईए नईए दहम्मि परिममिरमयर-तिमिनियरे । पयसोहणं कुणंतेण चिंतियं तयणु जेट्रेण ॥५॥ 

अत्थो घुबं अणत्थो जेण महामोहविसविमूढेण । पाणप्पियरस वि मए विचितियं बंधुणो हणणं ॥६॥ 

ता अलमिमिणा नियजणविणासकरणेण पावरूवेण | इय चितिऊण नीरम्मि निवलओ खित्तओ तेण ॥७॥ 

भणियं तओ कणिट्टरेण हा | किमेयं तए कयं भाय ! ? | तेणुत्तमस्स दोसा मारिउमिच्छामि त॑ं सहसा ॥<॥ 

तेणेस मए खित्तो दृहम्मि त॑ निशुणिउं भणइ लहुओ । तुह मारणम्मि मज्ञ वि आसि इमा लोभओ चिंता ॥९॥ 

ता बंधव ! सुद्दूं कयं जमेस खित्तो तरंगिणीनीरे | इय भणिय हिद्नहियया नियगेहे दो वि संपत्ता ॥१०॥ 
रणसोयणाई काउं जणणीए तेसि लहुमइणी । मच्छाणमाणणत्थं ताण कए पेसिया हट्टे ॥११॥ 

एत्तो य निवलओ सो गिलिओ तिमिणा छुद्ाकिलुतेण । तत्तो य जालिएणं स मच्छओ गिण्हिओ तत्थ ॥१२॥ 





१, गुणमोहराय -खं० रं०। 


आखश्यानकमणिकोशे 


नीओ उ विवणिमज्ञे कोओ भवियव्वयाए सो तीए । वंजणनिमित्तमेईए छिंदिओ मंदिरे गंतुं ॥१३॥ 

दिट्ठो य नउलुओ तयणु झत्ति मुक्को नियम्मि उच्छंगे । पच्छायंती त॑ पेच्छिकण जणणीए सा पुदट्ठा ॥१४॥ 

कि पच्छायसि वच्छे ! ? न किंपि इय तीए जंपिए जणणी । निस्संकियकरणत्थं तीए समीवम्मि संपत्ता ॥१५॥ 
मम्मट्टाणे चूल्हेत्तरण सहस त्ति तीए हणिया सा । त॑ निवर्डंति दट्टूण दो थि तप्पासमल्लीणा ॥१६॥ 

ते दह्णं मयकंपिराए तीए सयासओ पडिओ । सो निवलओ तओ तेहिं चितियं हा ! स एवसो ॥१७॥ 

तो दो वि विसन्नमणा भणंति जं दूरमेव परिहरियं । त॑ पुरओ च्िय जाय॑ं अहह ! महापावपरिणामों ॥१८॥ 
लोहतिमिरंधनयणा जीवा सयणं पि सत्तुठाणम्मि । पेच्छंति जओ एईए मारिया निययजणणी वि ॥१९॥ 

ता एयारिससंतावकारयं परिहरित्तु गिहिवासं | इह-परभवहियकरणं तवचरणं किंपि काहामो ॥२०॥ 

इय जंपिऊण काउं मयकिब्चमसेसयं पि जणणीए । भइणीए तयं दाउं दविणं तो दो वि गंतृ्णं ॥२१॥ 
स॒ुत्यियसूरिसमीवे पव्वइ्या चरियचारुतवचरणा । परिपालियसामन्ना दोन्नि वि सुगईं समणु पत्ता ॥२२॥ 


॥ नकुलयण्याख्यानक समाप्तम्‌ ॥८०॥ 


शेर 


रागाइदोसबसओ पत्ताणि जहा इमाणि दुहवसणं | 

तह अन्नो वि हु पावइ ता एयविणिग्गहं कुणह ॥१॥ 

हे धार्मिकाः ! प्रशमसम्भृतिमुक्तिवश्यान्‌ , रागादिशित्रुविसरान्‌ कुरुत प्रयत्तात्‌ । 
एते हि धरमपथवर्तिनमप्यकस्मादुन्मागमझ्जिनिवहं नितरां नयन्ति ॥२॥ 


॥ इति श्रीमदाप्नदेवसूरिविरचितवृत्तावाख्यानकमणिकोशे रागाचनथपरम्परावणनश्चतुर्विशतित मो <घिकारः समाप्त: ॥२४॥ 


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[ २४, ज्ञान्तिगुणवर्णनाधिकारः ] 


रागादिरिपवो5नथजनकत्वेन जेतव्या इत्यमिहितम्‌ । साम्प्रतमुपलक्षणद्वारेण क्रोधरिपुजयलक्षणां क्षान्तिमाह-- 
स-परोभय गुणहेऊ खंती ता त॑ कुणेज्ज हृह नाया । 
खुड्म्ृुणि-नंदिसेणा तह सीसो चंडरुदस्स ॥३३॥ 
अस्या व्याख्या--'स्व-परोभयेषाम्‌' आत्म-परोभयस्वरूपाणां गुणहेतु: गुणकारणं 'क्षान्तिः” क्षमा। 'तत्‌” तसस्‍्मात्‌ 
कारणात्‌ 'तां' क्षान्ति 'कुयोद्‌! विदध्यात्‌ | 'इह” अस्मिन्नर्थ “नाय? त्तिज्ञातानि क्षुल्लकमुनि-नन्दिषेणौ, 'तथा' तेनेव प्रकारेण 'शिष्यः? 
विनेय: “चण्डरुद्रस्' चण्डरुद्रामिधानसूरेः इत्यक्षराथ: | भावार्थों5पि प्राक्‌ प्रतिपादिताख्यानके भ्यो ज्ञेयः ॥३३॥ 
जह एयाणं खंती सपरोभयगुणपसादिया जाया | 
अग्नस्स वि तह जायह ता तीए जयह जहसत्ती ॥३४॥ 
क्षान्त्या सदैव मनुजा: सुरपूजनीया:, क्षान्या भवन्ति भविनों भुवि माननीयाः । 


क्षान्या वसन्ति सुरसझसु शमभाज:, क्षान्त्या व्रजन्ति शिवतामिति तां कुरुध्वम ॥१॥ 
॥ इति श्रीमदाप्नदेवसरिविरचितबृत्तावा्यानकमणिकोशे ज्ञान्तिगणवर्णन: पत्नविशतितमो5घिकार: समाप्त ।२५॥ 


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[ २६. जीवदयाग्रुणवर्णनाधिकारः ] 
गुणहेतु: क्षान्तिरमिद्दिता । इमां च जीवदयावानेव प्रायो विधत्ते इत्यतो जीवद्यागुणवत्तामाह-- 


दीहाउयाइदेऊ जीवदया इह परे य सुहहेऊ। 
सड्डसुओं ग्रुणमश्या मेहों दामश्नगो नाय॑ ॥३५॥ 


अस्या व्याख्या--'दीहाउयाइहेउ' त्ति भावप्रधानल्वाद्‌ निर्देशस्य दीघोयुप्कत्वादिदहेतु: दीघोयुप्कत्वं-चिरजीवित्व॑ं आदि- 
यंषां नीरोगत्वादीनां गुणानां ते तथोक्ता: तेषां हेतु:-कारणं 'जीवदया? प्राणिदया 'इह' अस्मिन्नेव लोके 'परे च! परलोके च 'सुखहेतुः? 
सौख्यनिमित्तं मवतीति शेष: । दृष्टान्तानाह--'सड्डसुओ? त्ति ग्रहीताणुत्रतः परकूलसूपकारहस्तविक्रीत: श्रावकसुतः 'गुणमती च' 
श्रेष्ठचुता 'मेघश्व” श्रेणिकराजसुतः 'दामन्नकश्च' मत्स्यत्रन्धकजीवः “नायं? ति प्रत्येक योजनीयम्‌ इत्यक्षरार्थ: ॥३५॥ भावार्थस्त्वाख्या- 
नकगम्यः । तानि चामूनि-- 


धन्नउरग्गामे माणिभद्सेट्टिस्स धम्मरुइ पुत्तो | सम्ममणुव्वय-गुणवयधारी सम्मत्तथिरचित्तो ॥१॥ 

जिणचलणकमलभसलो निश्व॑ गुरुपायपूयणे सत्तो । कइ्या वि सह वयंसेहिं निग्गओ गामबहिभागे ॥२॥ 

पत्तो य तकरेंहिं नीओ नयरीए सो अवंतीए । दिल्लो दविणेण नरिंद्सूबगारस्स तो तेण ॥३॥ 

नीओ रसवइसाराए पमणिओ लावयाण हणणद्ठा । रे ! ऊसाससु एए वंजणकज्जे नरिंदस्स ॥०॥ 

सो पाणिवहाईणं विरओ करुणापवन्नहियओ य ) तो तेण पासयाओ छोडेउ' लावया मुक्का ॥५॥ 

दिट्टो य सूवकारेण जंपिओ कि तए इमे मुक्का ? सो भणइ तुज्म वयणं मए कय॑ किमिह पुच्छाएु ९ ॥६॥ 

आवलिऊणं कंधरमिमेसि मोक्‍्खं विहेसु बीयदिणे | इय सिक्‍्खविउं तेणं समप्पिया तित्तिरा तस्स ॥७॥ 

बीयदिणे वि हु तेणं वंक॑ काऊण कंधरं निययं । उप्पाडेउ' मुक्का उद्'ुऊणं गया सब्वे ॥८॥ 

तइयदिणे गाढयरं निब्बुद्धिय ! मंसभक्खणनिमित्त । मारसु एए इय भणियमप्पिया लावया तस्स ॥९॥ 

जहइ एवं ता सिद्ठाण निंदियं नरयकारणं घोरं । पाणच्चए वि नाहं करेमि एयारिसं पाव॑ ॥१०॥ 

तत्तो य सूयकारेण आसुरुत्तेण ताडिओ बाढं । धम्मरुई धम्मरुई तह वि न मन्नेह तब्बयणं ॥११॥ 

तो पुणरवि निट्‌टुरयरपहारनियरेहिं ताडिओ संतो । कंदंतो गुरुसद्द' सुओ महीसामिणा एसो ॥१२॥ 

वाहरिय सूबगारो पुट्टो कि एस कंदएु करुणं ? | सो भणइ देव ! एसो विक्किज्जंतो मए गहिओ ॥१३॥ 

न कुणइ जीवविणासं ति ताडिओ निट॒ठुरं मए रुयइ । पुट्टो सो वि नर्रिदेण कि न जीवे विणासेसि १ ॥१४॥ 

सो भणह मए विहिया जावज्जीवं पि पाणिवहविरद । आह निवो न हु नियमो पलइ परायत्तवित्तीणं ॥१५॥ 

ता कुणसु पाणिघायं न हु मन्नर सो तओ नरिंदेण । तस्स परिक्खनिमित्तं भिउडोभीसणनिडालेण ॥१६॥ 

ताडाबिओ सुनिट्दुरकसप्पहारेहिं तह वि मण्ए्यं पि | न हु मन्नह पाणिवहं तओ महादुद्वकरिपुरओ ॥१७॥ 

पक्खिविउ' भेसविओ संतो चिंतइ मणे महासत्तो । जीव ! तुह वेयणीयं कम्म॑ समुवद्धियं सहसु ॥१८॥ 
किच-- 

वरमत्थु मज्झ मरणं अक्खंडियनिययनियमजुत्तस्स । न उणो जीवविणासो चलम्मि जीयम्मि भणियं च ॥१<९॥ 

एक्वस्स कए नियजीवियस्स बहुयाओ जीवकोडीओ । दुक्‍्खे ठबंति जे केइ ताण कि सासय॑ जीयं ? ॥२०॥ 

इय चितंतो एसो भणिओ रज्ञा न मन्नए जाव । तो नाओ नियनियमे थिरचित्तो एस नरबइणा ॥२१॥ 

तो एस अंगरबखगपयस्स जोगो त्ति चितिउं तेण । काऊण सप्पसाओं निवेसिओ अंगरक्खपए ॥२२॥ 

विस्सासठाणमेसो जाओ दिल्नो य तस्स वरदेसो । त॑ं उवभुंजिय बहुकालमसमरिद्धीए संजुत्तो ॥२३॥ 


श्श्ष आख्यानकमणिकोशे 


पासे केसि पि गुरूण गिण्हिउं दिक्‍्खमृत्तमं तत्तो । कयतिध्वतवच्च रणो कमेण सुगईं समणुपत्तो ॥२४॥ 
॥ भ्राद्खुताख्यानक समाप्तम्‌ ॥5८१॥ 
इदानीं गणमत्याख्यानक व्याख्यायसे-- 


नयरम्मि सुसम्मपुरे राया ससिसेहरो हरो व्व तहिं । निवसइ धणामिहाणो नरबइणो सम्मओ सेट्टी ॥१॥ 
नंदो व्व गोउलपिओ गयणाभोओ व्य सुहयमुणिचंदो । भव्यो व्व गुणमइसुओ नयवं व सुसंपयाधरओ ॥२॥ 
मुणिचंदनिव्विसेसो कम्मयरो थावरों थिरप्पयई । सब्वं पि हु घरचितं चितइ चडरो विचित्त पि ॥३॥ 
अह अन्नया य सेट्टी तिहुयणसाहारणेण मरणेण । धणवं पि धणो निहणं नीओ घणियं अधणिउ व्व ॥9॥ 
मुणिचंदो सेट्टिपयं परिपालइ गुणमई वि जिणधम्मं | सा उण असंपया संपया वि जाया कुकम्मवसा ॥५॥ 
विनडिज्जंती अवसेहिं इंदिएहिं दिणं पि राइ' पि। अव्भत्थइ थावरयं विसयत्थे सुत्थयाहेउं ॥६॥ 
सो उण तह वि वराओ मयणंसूगाहुओ जसोकामी । भणइ य विरूवमम्मो ! वयणमिणं ज॑ तुम॑ं वयसि ॥७॥ 
त॑ मह जणणी अहयं तु तुह सुओ विस्सुयं जणम्मि इमं । ता अंब |! इममकज्जं न जंपणीयं न करणीय॑ ॥८॥ 
अन्न च गेहसामिम्मि विज्वमाणम्मि अंब ! मुणिचंदे | एरिसमकज्जमेवं किज्जंतं केरिसं ? कहसु ॥९॥ 
तीए भणियं एयं सुत्थं॑ सब्वं करिस्समवरं च | गिहसामित्तमयाणुय ! किमेवमंगीकरेसि न त॑ १ ॥१०॥ 
इय त॑ मन्नावेउः मायाबहुलाए ज॑ समारद्धं । आयन्नह तमयंडे सा पावा रोविउ' छूगा ॥११ 
कि अम्मो ! रुयसि तुम॑ ? पुद्ा मुणिचंदसेट्विणा सब्बं | तीयुत्तं नियकज्जं सीयंतं वच्छ ! रोएमि ॥१२॥ 
तेणुत्तं केरिसयं ? कवडेणं सा पयंपह सदुक्खं । दुद्धाइ गोडलाओं तुह जणओ बच्छ ! आणंतो ॥१३॥ 
त॑ पुण पमत्तचित्तो करेमि ता किमिह गोरसेण विणा । सयणाईयं कज्जं ? तेणुत्त मा वय विसाय॑ ॥१४॥ 
सयमाणिस्सामि इहं तो तीए गोउलूम्मि पेसविओ । थावरएणं समय नाऊणं गुणमद्दए इमं ॥१५॥ 
सिक्‍्खविओ मुणिचंदो होयव्वं निशच्चमप्पमत्तेणं | न मुणसि मुद्धत्तणओ नियजणणीविलसियं तुमयं ॥१६॥ 
सो वि हु खग्गागरिसणपमुहं थावरयचेट्टियं मुणिउं । सुट्ठु यरं अपमत्तो पत्तो नियगोउलम्मि तओ ॥१७॥ 
पडिवत्ती सब्वा वि हु विहिया गोउलियसामिणा तस्स । सामि त्ति मौणिय सेज्जा रइया रयणीए गिहमज्ञी ॥१८॥ 
तेण वि भणियं बहुद्विसदिद्ठसंखाणजाणणनिमित्त । गोरूवाणं गोवाडयम्मि सोविस्समज्जमहं ॥१९॥ 
तह विहिए सेज्जाए खोडि पच्छाइऊण वत्थेणं । सयमेगंते थक्कों जग्गंतो खग्गवग्गकरो ॥२०॥ 
जाव य थावरएणं खग्गपहारेण आहया खोडी । ता हक्किअणमियरेण मारिओ खग्गधाएण ॥२१॥ 
लोयाववायरक्खत्थमेस निक्ालिऊण गोवग्गं । पोक्रह मारिऊरण थावरयं निति गाबीओ ॥२२॥ 
एए चोरा तो वालियाओ गावीओ कुढियवग्गेणं | सयमारुहिउं तुरय॑ तुरियं पत्तो निययगेहं ॥२३॥ 
जणणीए थावरए पुट्ठे कहियं समेइ मग्गम्मि | तो संकियाए तीए पिपीलियासरणओ कहवि ॥२४॥ 
थावरयरत्तरत्त तीए थावरयरत्तरत्ताए । खच्छंखच्छाए दिट्ठमसिवरं समिवपावाए ॥२५॥ 
मुणिचंदसिरं छिन्‍नें तीए तेणेव तयणु खम्गेणं । चक्केण राहुसीसं व विण्हुमुत्तीए रुद्टाए ॥२६॥ 
मुणिचंदमहेलाए विणासिया सा वि तेण खग्गेणं | तह चेव ठिया त॑ नियइ गुणमई पाणिवहविरया ॥२७॥ 
मिलिए लोए सब्बो वि वइयरों गुणमईए सो कहिओ । धन्ना सलक्खणा तं सि संसिया सा वि लोएणं ॥२८॥ 
॥ गुणमत्याख्यानक समाप्तम्‌ ॥८२॥ 

अधुना मेघाख्यानकमारभ्यते । तश्चेदम्‌-- 
वायरणं व गुणाहियसुसद्संगयवियाररमणीय । निम्मलवन्ननिवेसणपसाहियं चित्तयम्म॑ं व ॥१॥ 
विस्मुयणेगविणायगमेगविणायगगुणज्जियजसोहं । जमणेगहरविराशयमेगहरं हसइ कइलासं ॥२॥ 

..._ १, साडंसुता» प्रतौ। 





२६. जीवद्यागुणबणनाधिकारे मेघाण्यानकम्‌ २२६ 


नाणाविहवत्थव्वयदिय-खत्तिय-वणियवासगेहं व। नयवंतसगुणजणमंदिर पि पुरमत्थि रायगिहं ॥३॥ 

त॑ पालइ समरहिओड5समरहिओ गुरुपरक्कमावासों । वीसं पि हु पसरियपवरसेणिओ सेणिओ राया ॥४॥ 

जो साहीणसुहत्थी परमरहों पउरसुहयपरिवारों | विस्सुयसुहडसमू हो चउरंगबलो उभयहा वि ॥५॥ 

तस्स य सुनंद-चेल्लगपहाणओरोहमज्म्यारम्मि । सब्वंगसुंदरंगी समत्यि सिरिधारिणी देवी ॥६॥ 

जा हरइ मणं सारयसिरि व्व निम्मलनहा विरायंती । तह य सलक्खणचरणा जणपुज्ञा वेयकिरिय व्व ॥७॥ 
सुघडियपवित्तजंघा पासायपरंपर व्व मणदहया । परमोरुजुया रेहह रहवरराइ व्व रमणीया ॥<८॥ 
सुकुमार-सुहयरमणा नवजोव्वणललियकरलियविलय व्व । जिणमुत्ति व्व गभीरा परमयसमणे हिया सह ॥९॥ 
लच्छि व्व मयणसुहया सया वि परमोयरा विसालच्छी | लायन्नललामरसा सुहथणिया मेहमाल व्व ॥१०॥ 
वेल्लहलललियबाहा पयंडनरवरनिउत्तसेण व्व । रामसह व्व समंता सुग्गीवा हियसयाण सुहा ॥११॥ 
कउरवभडयणसेणि व्व सव्वया सहह सरलसुहकन्ना । जिणदेसण व्व मविययणसवण-मणसुहयसुहवयणा ॥॥१२॥ 
विलसिरनिद्धसुरयणा भाह पुरंदरमहापुरवरि व्व | निम्मलविसुद्धदिद्टी सिवसुहमणसमणकिरिय व्व ॥१३॥ 
निव्वणनिद्धनिडाला निरुवहयपहाणपायवालि व्व । विलसिरसुरम्मवाला सपुन्नपुन्नायनारि व्व ॥१४॥ 

एवं किर को सकइ तीए पहअवयवं सरीरगुणं । बन्नेउं विन्नो वि हु अच्चच्भुयपवररूवाए ? ॥१५॥ 
तस्स5त्थि पवरपुत्ते अभओ नामेण नायपरमत्थो । मज्कम्मि महामंती पंचण्ह सयाण मंतीणं ॥१६॥ 

बुद्धीसु चउसु चउरो निउणो चउसुं पि रायनीदैसु । सब्बकलाण वराए धम्मकलाए विसेसेणं ॥१७॥ 
आरोवियरज्वभरों सो तम्मि सुयप्पहाणमंतिम्मि | उवभुंजंतोी विस॒ए निच्चितो गमइ दियहाईं ॥१८॥ 

अह अन्नया य पासिय सुहसुमिणं धारिणी महादेवी । सुमिणस्स फल नाउं निवपासे जाइ मुहयमणा ॥१९॥ 
इद्टाहिं पियाहिं सुहाहिं चित्तपल्हायणाहिं कंताहिं | मउयाहिं मणामाहि सयत्थजुत्ताहिं वायाहि ॥२०॥ 
आलवमाणी विणएण सेणियं हिययवल्लहं रायं | सणियं सणियं सणियं पास[य]|मल्लियह मणदइया ॥२१॥ 
निसियइ समणुन्नाया निवेण नियडम्मि पायवीढम्मि | सप्पणयमभिष्पायं कयप्पणामा भणइ देवी ॥२२॥ 
अहमज्ज तम्मि पहु ! तारिसम्मि सुमणुन्नवासभवणम्मि | मणि-रयणपहानासियतमंधयारम्मि रुइरम्मि ॥२३॥ 
दोसु वि पासेसु समुन्नयम्मि मज्ञे गभीरविणयम्मि । सुकुमालतूलि-गंडोवहाण-आलिंगिणिजुयम्मि ॥२४॥ 
सयणम्मि पसुत्ता सुत्तजागरा कि पि कि पि सुहनिद्दा | सुमिणमिमं पासित्ता ससंभमा सामि ! पडिबुद्धा ॥२५॥ 
सत्तंगसुप्पइट्टं तुसार-ससहरवलक्ख चऊदंतं । संगय-समुन्नयकरं समग्गलक्खण-गुणोवेयं [२६॥ 

किर गयणादवयरिउ' मयसलिलपवाहधोग्रगंडयर् | वयणम्मि पविसमाणं गयमेगं सामि ! पासामि ॥२७॥ 
ता सामिय ! कि मन्‍ने होही मह फलमिमस्स सुमिणस्स १ । भणइ निवो एस पिए ! पहाणसुमिणाण मज्झम्मि ॥२८॥ 
ता ओरालो सुमिणो कल्लाणकरो य मंगलकरो य | वंससमुन्नहजणगो पयइपहाणो इमो सुमिणो ॥२९॥ 

तं अम्हं कुलकेउ' कुलसेउं कुलबडिसयमुयारं । कुलकित्तिकरं कुलविद्धिकारयं कुकपसाहणयं ||३०॥ 
अद्भट्टमदिवसाणं नवन्ह मासाणमुचरि वरपुत्त | दिणयरमिव पुव्बदिसा देवाणुपिएण ! पयाइहिसि ॥३१॥ 

सो वि हु परिवट्ट तो तणुवचएणं कलाकलावेणं । होही नाहो पुहईए भावियप्पा5णगारों वा ॥३२॥ 

त॑ बयणं सोऊणं धार5ब्भाहयकयंबपुप्फं व। ऊससियरोमकूवा संबुत्ता धारिणी देवी ॥३३॥ 

भणहइ य देव-गुरूणं पयप्पसायाओ जं॑ तए भणियं । तुम्ह पभावाओ वा होही सब्बं॑ पि मह एवं ॥३४॥ 
इय सुयसूयासंजायहरिसपप्फुल्ललोयणा देवी । वत्थंचलम्मि सहसा बंधइ वायासडणगंठि ॥३५॥ 

तत्तो सेणियकंता परिणममाणम्मि तइयमासम्मि । असरिसिपुन्नाहियसुकयलब्भगब्भाणुभावाओं ॥३३॥ 

कुणइ मणे दोहलयं गब्भट्वियजीवविलसियसरूवं । इममेयारिसरूवं पुरिसासज्झ तयं सुगह ॥३७॥ 





१, डलये खं० । 


श्दे० 


आखश्यानकमणिकोशे 


धन्नाओ ताओ पुत्ताण मायरो ताओ सुकयपुन्नाओ । कयरक्खणाओ ताओ विढत्तसच्चरियविभवाओ ॥३८॥ 

नणु तासिमस्भयाणं सुलुद्धमिह जम्म जीवियफर्ु च । जाओ विविहदविभूसगभूसियसेयणयमारूढा ॥३९॥ 

सह सेणिएण रन्ना धरिज्जमाणेण सेयछत्तेण । अब्भुन्नएसु अब्भुगएसु पणवन्नमेहेसु ॥9०॥ 

सप्फुसिएसुं सुहगज्जिएसु निव्ववियमेइणितलेसु । पुरतिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुहेसुं निवपहेसुं ॥४१॥ 

आरामेसु वणेसु उज्जाणेयु सकाणणवरेसु । वेभारगिरिगुहासु' सकंदरासु दरीसु च ॥४२॥ 

वियरंति जहिच्छाए वियरंतीओ मणुन्नमसणाई । तह विविहवत्थ-तंबूलपभिइपणइयणवग्गेसु ॥४३॥ 
नायरयजणावरिया महरिह-मणहरमहाविभूरेए । पूरेमि मणोवंछियमहमवि जह कहवि एवमिमं ॥००॥ 

तो तम्मि मणोभिमए अपूरमाणम्मि म्िज्जिउः कूगा । पहदिविसमसियपत्रखम्मि चंदमुत्ति व्व विच्छाया ॥४०॥ 

तो सेणिएण पुदट्ठा साहीणे वि हु समत्थवत्थुम्मि | किसिया कोस किसोयरि ! साहसु किंपि हु मणोभिमयं ॥०६॥ 
तो साहियम्मि तीए नियगम्मि मणोरहम्मि नरनाहो । आयमुवायं वा तस्स साहगं कमबि अनियंतो ॥9७॥ 
परिसिढिलियिरज्जधुरो पडिओ चिंतामहासमुद्दम्मि | किकायव्वविमूढो चिट्ठइ न॑ हरियसव्वस्सो ॥४८॥ 

ताव य अभयकुमारो पत्तो पिउपायपणमणनिमित्तं | वक्खित्तमणत्तणओ ना55मट्टो न वि य विज्ञाओ ॥३९॥ 

तो पुच्छियमभणणं तुब्भे म॑ं ताय ! अज्नया इंतं । आभासह आमंतह निसियावह निययउच्छंगे ॥५०॥ 

जिग्घह सिरम्मि छद्धासणेण तुद्ठा य म॑ निमंतेह । ओहयमणसंकप्पा । कि झायह अज्ज ? मे कहह ॥५?॥ 

रज्ना भणियं सम्मं वियाणियं वच्छ ! मज्क सुन्नत्त | जं चुल्लमाउयाए संजाओ दोहलछो एस ॥५२॥ 

जत्थ न पसरहइ बुद्धी न यावि संकमइ पोरिसं मज्क | न य विहवेणं सिज्ञह्ट तो तच्चिताए सुन्नो हं ॥५३॥ 
अभएण तओ भणियं कज्जमिमं तुज्म ताय ! विसम॑ पि। साहिस्समहं ताओ निराकुछों संपयं भवउ ॥५४॥ 

तत्तो पोसहसालाए पुव्वसंगहयगरुयदेवस्स | आराहणत्थमारुहद दब्मसंथारयं अभओ ॥५५॥ 

ताहे परिणममाणम्मि अट्ट में सुद्धफाणसहियस्स । मणि-रणयभासुरं दिव्वमासणं चलियममरस्स ॥५६॥ 

तत्तो रवियरभासुरक्िरीडकुंडलपहाकडप्पेण । उज्जोयंतो गयरणं पाउब्मूओ पुरो अमरो ॥५७॥ 

साहिउकामो पत्थुयपओयणं अभयसंगइपहाणो । पयडपयावो अमरो गयणगओ सहई सूरो व्व ॥५८॥ 
गरुयपयावो5भयवंछियत्थनिष्फायगो अमररूवो । मेहकुमरस्स रेहद भविस्सतवतेयपुंजो व्व ॥५९॥ 

सो वि हु विरहयकरकमलसंपुडो भणइ सप्पणयमभयं । भो भो ! भणसु महायस ! कि सरिओ हं तए अज्ज ? ॥६०॥ 
ता भणसु जमभिरुइयं कि रज्ज देमि ? किमरिसंदोहं । तुह निट्ठवेमि ? किमवरमसज्झमिह किंपि साहेमि ? ॥६१॥ 
त॑ सुणिऊणं जंपियमभएणमकालमेहदोहलओ । जाओ मह मायाए तो त॑ पूरसु महाभाग ! ॥६२॥ 

एवं करेमि भणिऊण सुरवरो सो तिरोहिओ सहसा । तत्तो अचितदेवप्पभावओ मेहपडलेण ॥६३॥ 

कत्थ वि य सामवन्नेण महल निम्मरं पि गयणयर्ूं । गरुओ वि हु मइलिज्जिइ अहवा मलिणेण न हु भंती ॥६४॥ 
रेहह घणेण जह रायवट्टबन्नेण गयणवित्थारों | तह सेणिओ वि गुणवंतमावियपुत्तप्पसूएणं ॥६५॥ 

अवरत्थ सरसजासुयणरत्तवन्नेण जलयविंदेणं । अप्फुन्नं गयणयलं भुवर्ं व निवाणुराएणं ॥६६॥ 

कत्थ वि य सुवन्नसमुज्जलेण जह सहइ नहयलाभोओ । मेहेण विमलगब्भट्विणण तह सेणिओ राया ॥६७॥ 

अन्नत्थ बलाहयमिलणबिउणघवलेण घवलियं गयर्ण | जलएणं धवलिज्जइ निम्मलवन्नेण5हव सब्वो ॥६८॥ 

इय सप्पवंचवन्नेहिं मालियं वित्थयं पि गयणयलं । जलए॒हि जय॑ व गुणेहिं सिरिमहावीरनरबइणों ॥६९॥ 
सेयणयगयारूढा ताहे सा विहरिया जहिच्छाए | सम्माणियदोहलया सुहेण गब्भं समुव्वहइ ॥|७०॥ 
समुवचियंगा-5वरयवं पुन्नाहियपुहइपालरज्ज व । लवणमहोयहिनीरं व सरसलायन्नरमणीयं ॥७१॥ 
सारयदिणदिणमणिमंडलं व विप्फुरियतेयपब्भारं । नाणयपारिक्खियमंदिरं व सुहरूवयमणुन्नं |७२॥ 
सूरजणचंमणिज्ज गुणन्नियं वरधणु व सुहवंस । माणससरं व जीसे सहइ सरीरं विसालच्छ ॥७३॥ 


त॑ जहा-- 


२६. जीवद्यागरुणवर्णनाधिकारे मेघाल्यानकम्‌ श्वे१ै 


तीसे सिरिमवोइय नयरं सब्बं पि वियसियच्छि-मुहं । जाय॑ खलो व्व एक साममुहं नवरि थणजुयर्ं ॥७४॥ 
सणियं निसियद् सणियं च सयइ सणियं च कुणइ चंक्रमणं | मणिकुद्टिमम्मि वियणे चिट्नह निरुबदवे ठाणे ॥७०॥ 
जं नाइतित्तमसणं न यावि कड्डुयं न यावि अइअंबं | ज॑ नाइसीयमुण्हं वेलाइक्कमविमुक्क ज॑ ॥७६॥ 

ज॑ तस्स पुद्टिजणयं वुड़ियरं ज॑ च तस्स गब्भस्स | जं च हिय॑ ज॑ च मियं परिणामसुहं च जं तस्स ॥७७॥ 
उउसमयसुहयफासं वस्थुत्अलरयणकंबलाईयं | काले देसे य तयं उवभुंजइ वज्जियविसाया ॥७८॥ 
मुक्कजहिच्छायारा चेट्ठह सब्ब॑ पि तयणुरोहेणं । विलयायणस्स गब्भो अहो ! पिओ भणियमेयं पि ॥७९॥ 
दुद्ध गब्भो तूरं घुसिणंडजण-कत्तणं च पिसुणत्त | पाएण महिलियाएणं इद्ठाईं भवंति छोयम्मि ॥८०॥ 

तत्तो नवण्ह मासाणमुवरि अद्धट्टमाण य दिणाणं | नियदेहकंतिपब्भारभरियनिस्सेसदिसिवलूयं ॥८१॥ 
सुकुमालपाणि-पायं लक्खणपडिपुन्नविग्गह् 4वयवं । कंतं पिय॑ मणुन्न नियवंससमुन्नतकरं च ॥८२॥ 
बुहयणपसंसणिज्ं समुच्चकुल-गोत्तसंसियं सुहयं । पुव्वदिसा दिणनाहं व पुत्तरयणं पसूया सा ॥८३॥ 

तत्तो य रभसवसपक्खुलंतपयपाय-तुरियगमणवसा । परिसिढिलियपरिहाणा सिरसंसियउत्तरीया य ॥८४॥ 
हिययब्भंतरह रिसुब्भवंतजणसुह मणोरहा धणियं । वद्धावइ निवचेडी पियंकरानामिया निवहं ॥८५॥ 

तो सो जमंगलरगं वत्था&लंकारजायमइरुइरं । तं से सब्बं॑ पि हु पारितोसियं देइ दासीए ॥८६॥ 

त॑ कुणइ मत्थयं धोविऊण परिवारमज्मयारम्मि | पियभासणाओ तुट्टो वियरह य सुवन्नमयजीहं ॥८७॥ 

अह पुत्तजम्मसवणुब्भवंतसव्बंगपयडरोमंची । आणंदियनायरयं कारवह महूसवं राया ॥८८॥ 


गंभीरमहुरवज्बिरच उव्विहा उज्बरावरमणीयं । नचिरवारविलासिणिरंजियपेच्छयवियड्डजणं ॥<८९॥ 
कलकंठविविहगायणगीयरवावहियछेयजणनिवहं । उद्दामसदमागहपदिज्जमाणाणवज्जगुणं ॥९०॥ 
अहिणवपल्लवविरइयवंदणमालामणुनत्नगिहदारं । उब्भिज्जमाणचंदणचच्चियबहुजूय-मुसलूसयं |॥९१॥ 
पउमप्पिहाणजलपुन्रपुल्रकुंभाभिरामघरदारं । वंसुग्गयविद्धा किज्जमाणबहुभेयसुयरक्खं ॥९२॥ 
अणवरयतेल्लतुप्पिज्माणचट्टालिविहियह लबो्लं । करकमलकलियचोक्खक्खवत्तनवरमणिरमणीयं ॥१३॥ 
पियवयणभणणपुन्वमुद्दाल्ज्जितविविहविंटलय । उत्तालभमिर-धावणहासा विज्वंतजणनिवहं ॥१४॥ 
खज्जंतविविहफल-भक्ख-भोज्ज-तंबोलतुट्टसयलूजणं । सोहिज्जमाणगरुयावराहजणपुन्नगोत्तिगिहं ॥९५॥ 

चिरकालं नरवर ! नंद जीव तुह होउ सयलकक्लाणं । कुलरिद्धि-विद्धिजणओ जस्स सुओ एरिसो तुज्म ॥९६॥ 
तुह वद्धउ रायसिरी तुह संपइ रद्टवद्धणं होउ । ओरोहबिलयबिसरो पुन्नाहिय ! वयउ तुह विद्धि ॥९७॥ 
चउरंगबलसमिद्धी वद्धिस्सइ तुज्म सेणियनरिंद !। तुह विविहवाहणाणं समुन्नई सुहय ! साहीणा ॥९८॥ 
तुह नरबइ ! वद्ध3 वहरिविसरदु सहो परक्रमपयावो | तुह सारयससहरकर॒वलक्खजस-कित्ति-गुणविद्धी ॥९९॥ 
मणहरमणि-रयणविभूसणाइं नेवच्छरुइरदेहाईं । पविसंति पाउलाईं इय आसीवायमुहलाईं ॥१००॥ 

राया वि विविहमणि-रयण-कणय-करि-तुरय-रहवराईहिं । सामंत-मंति-पउराण देइ दाणं पहिट्ठमणो ॥१०१॥ 
तेहिं पि दिज्ञमाणं पडिच्छए तुरय-करिवराईयं । सुयजम्ममहसवविद्धि करणपरिवद्धियाणंदो ॥१०२॥ 

इय गरुय-विविहविच्छड्डपय रिसुप्पन्नपउरसंतोसं । पमु इयपक्करीलियजणं वद्धावणय कय॑ रज्ना ॥१०३॥ 

अह नामकरणदिवसे पुणरवि य महामहूसवं राया । कारविय देह नाम॑ गुणनिप्फन्नं तयं तु इमं ॥१०४॥ 
जम्हा इमम्मि गब्भे गयम्मि माऊए मेहदोहलओ । जाओ तम्हा एयस्स होउ मेहों त्ति सुहनामं ॥१०५॥ 
तो सो विबुहाणंदों सरीरसोमत्तनिव्ववियभणों | चंदो व्व सुकपक्खे परिवद्धर नयण-मणसुहओं ॥१०६॥ 
नाऊण नसवरिदो मेहकुमारं कलागहणजोग्गं | मइ-मेहागणपडुयं मणयं सुब्वत्तविन्नाणं ॥१०७॥ 


१, शिरःसस्तोत्तरीया । २. गुसिण्हं काराणइम्‌। 


श्द्ेर 


तओ य-- 


आदश्यानकमणिकोशे 


काऊणं सियचंदण-वत्थाउलंकारभूसियसरीरं । विज्ञा-विभूहकारयतिहि-वार-मु हु्त-करणेसु ॥ १०८॥ 

जत्तेण कलायरियं वत्था-55ह२णा-55सणाइणा सम्म॑ । सकारिऊण सम्माणिऊण तस्स5प्पए विहिणा ॥१०९॥ 
तो निवसिक्ववणाओं तहा कलायरियकयपयत्ताओ । नियजोग्गयागुणाओ भविस्सकल्लाणभावाओ ॥११०॥ 
नइनाहं व नईओ सोहम्गगुणाहियं व तरुणीओ । नयवंतं व सिरीओ विणयनिहिं वा पसिद्धीोओ ॥१११॥ 
सग्गा-5पवग्गसुद्व वित्थराणि जह संकमंति धम्मजुयं । तह मेहकुमारं पि हु कलाओ सयलाओ संकंता ॥११२॥ 
तत्तो तरुणीहरिणीण वागुरासममणंगनरबइणो । लछीला-विलासगेहं व रूयसव्वस्सभवण्णं व ॥११३॥ 
सोहग्गसंपयामंदिरं व लायन्नधणनिहाणं व । विब्भम-विलास-विन्नाण-नाणनायरयनयरं व ॥११४॥ 
निस्सेसगुणारोहणपहाणपासायमुन्नयमणाणं । कप्पियकप्पदुदुमकप्पमप्पपुन्नाणमइदुलह ॥११५॥ 
पोरिसपयावपयरिससिक्खादिक्खा गुरु गरुयगव्वं । तारुनन्‍्न॑ तारुन्‍्नयसरीरसोहं समणुवत्तो ॥११६॥ 


लायन्नामयकुल्लाओ असमसुंदेरनीरसरिसीओ । सिंगोरतरंगतरंगिणीओ रइसोक्खखाणीओ ||११७॥ 
कुम्मुन्नयचरणाओ मंसल-वट्टुलसुवत्तजंघाओ । रंभाखंभोरुयविब्भभाओ नइपुलिणरमणाओ ॥११८॥ 
गंभीरनाहियाओं वलिरेहिर-मुद्ठिगेज्ञमज्ञाओ | उन्नन"णओहराओ मुणालवेन्नदलबाहाओ ||११९॥ 
रेहारेहिरकंठाओ बिंबअहराओ कुंददसणाओ। पुन्नमिमससिवयणाओ वियसियसयवत्तनयणाओं ॥१२०॥ 
धणुकुडिलूभूलयाओ पुन्निमचंदद्धसमनिडालाओ । रहअंदोल्यसवणाओ सिहिकलावाहकेसाओ ॥१२१॥ 
उत्तमकुलुब्भवाओ लक्खणपडिपुन्नमणहरंगीओ । निम्मलकलाकलावाओ महुर-मिउभासिणीओ य ॥१२२॥ 
समरूवजोव्वणाओ तुल्लालंकाररुइ रवेसाओ । मेहं सेणियराया परिणावइ अट्ठ कन्नाओ ॥१२३॥ 

तो परिणयणाणंतरमु दारयागुणविभूसिओ राया । वियरइ वरपासायं सब्वार्सि तासिमेगेगं ॥१२४॥ 

एवं सो विसयसुहं भुंजंतो ताहिं अट्टहिं समेओ । दोगुंदुगो व्व देवो गयं पि काल न याणेइ ॥१२५॥ 
कहया वि सत्थविसयं वियारमब्भसइ छेयनरसहिओ । कइया वि विविहकरणंगहारकलियं च नट्टविहिं ॥१२६॥ 
कइया वि सरसपत्तयछेयं कइया वि चित्तयम्मविहिं | कश्या वि सत्तसरगाम-मुच्छणाकलियगीयबिहिं ॥१२७॥ 
कइया वि तुरयसिक्‍्खं कइया वि हु हत्यिसिक्खमायरइ । क्या वि मुद्ठिजुद्धं कश्या वि हु मल्लजुद्धं च ॥१२८॥ 
कहया वि वारविलयापेक्खणयासत्तमाणसो सययं । नियपासायपरिगओ नायरयजणाण सुहजणओ ॥१२९॥ 
भो ! केरिसो वि देवो न याणमो एस नित्तुलं देवों | इय जणयंतो बुद्धि विसिदट्वलोयाण सो छूलइ ॥१३०॥ 
अह अजन्नया य भयवं ! सिरिवीरजिणेसरो समणसहिओ । विहरंतो संपत्तोी समोसढो बाहिरुज्ाणे ॥१३१॥ 
एत्थंतरम्मि उज्जाणपालओ हरिसनिव्भरसरीरो । वद्धावइ आगंतु जएण विजएण नरनाहं ॥१३२॥ 
देवाणुपिया ! किर जस्स दंसण सुहयरं समीहंति | वंछंति नयणनिव्वुइजणयं वा वीयरागस्स ॥१३३॥ 

सवणेणं नामरस य जलधाराहयकयंबपुप्फं व। ऊसवियरोमकूवा हयहियया हुंति नरनाह ! ॥१३४॥ 

एसो वीरजिणेसरतित्थयरों णेगदेवकोडीहिं । परियरिओ पावहरों परिमुणियासेसनायव्वों ॥१३५॥ 

इहइ चिय संपत्तो गिहागओ इह समोसढो भयवं ! | ता एयं वयणमहं पियं ति काउं निवेएमि ॥१३६॥ 
सुणिऊणं वयणमिर्ण धाराहयनीवरुक्खकुसुमं व | रोमंचंचियदेहों अशुभवमाणो रसमपुव्वं ॥१३७॥ 

दाऊण पीइदाणं सहरिसवयणो विसुद्धदविणस्स । त॑ पुण समए देसियमद्धत्तरससयसहस्सा ॥१३८॥ 

तो सब्वेण बलेणं सब्बेणंतेउरेण परियरिओं । सब्बाए विभूदेए सव्वाए रायरूच्छीए ॥१३९॥ 

आभरणरुइरदेहो सेयणयं सिंधुरं समारूढो । सारयजलहरसंसियपरिविलसिरविज्जुपुंजो व्व ॥१४०॥ 

चलिओ वंदणहेउ जाव य पत्तो समोसरणमभूमि | परिहरियरायककुहो काउ' तिपयाहिणं विहिणा ॥१४१॥ 


१, नित्ञाडाओ २० | 


२६. जीवद्यागुणवर्णनाधिकारे मेघार्यानकम्‌ २६३ : 


कयपंचंगपणामी भत्तिभरुलल्‍्लसियबहलरोमंचो | जिणवयणनिहियनयणो एवं थोउं समाढत्तो ॥१०२॥ 

जय जय भुवणुज्ञोयण ! जय जय जस-कित्तिवद्धियाणंद !। जय जय गुणरयणायर ! जय जय जय वद्धमाण ! तुम॑ ॥१४३॥ 
वद्ध३ मणसंतोसो तिसलादेवीए देहलायजन्न' | गब्भम्मि गए तुमए तेण तुम वद्धमाणो सि ॥१४४०॥ 
परमपयाव-परक्षमगुणाण चउरंगबलविभूददेए । वद्ध३ सिद्धव्थनिवों तेण तुम वद्धमाणो सि ॥१४५॥ 
पीई-सकारेंहिं मणि-मुत्त-सिलप्पवाल-वहरेहिं । जं वद्धइ रायसिरी, तेण तुम वद्धमाणो सि ॥१४६॥ 

तइ उदिए चंदम्मि व परमपवित्ते कलानिहाणम्मि । जं वद्धइ कुलजलही तेण तुम वद्धमाणो सि ॥१४७॥ 
बद्धर सुहमारोग्गं जणस्स पाएण धम्मबुद्धी य | तइ संभूए भय ! तेण तुम वद्धमाणो सि ॥१०८॥ 
तिहि-रिक्खम्मि पसत्थे अम्मा-पियरों करिंसु जं तुज्ञ । गुणनिप्फन्न नाम॑ तेण तुम वद्धमाणो सि ॥१४९॥ 
इय वद्धमाणसामिय ! करुणायर ! सइ करेवि कारुत्न । सिद्धिनिबंधणधम्मस्स वद्ध्णं कुणसु भवियाणं ॥१५०॥ 
एवं थोऊण जिणं गंतुं पुव्वुत्तेे दिसीभापु। जिणसमयभणियविहिणा उबविट्टों मणुयपरिसाए ॥१५१॥ 
मणि-हेमभासुराभरणकन्तिपसरंततणुपहावलओ । मेहकुमारों वि रवि व्व वयइ आसरहमारूढो ॥१५२॥ 
सिरिवीरबंदणत्थं ओयरिउं रहवराओ विहिपुच्छे । जणओ व्व जिणं वंदिय उबविद्रो जणयपासम्मि ॥१५३॥ 
एत्थंतरम्मि भयवं |! जलहरगंभीरमहुरवाणीए । सुरअसुरनरसभाए एवं कहिउः समाठत्तो ॥१५४॥ 

संसारे संसरंतस्स जंगमत्तं पि दुल्लहं । तम्मि पंचिदियत्त च तओ वि मणुयत्तणं ||१५५॥ 

नरत्ते आरियं खेत्तं खेत्त वि विमलं कुलं । कुले वि उत्तमा जाई जाईए रूवसंपया ॥१५६॥ 

रूवे वि बलसंपत्ती बले वि चिरजीवियं । हिया-5हियाइविन्नाणं जीविए खलु दुल्लहं ॥१५७॥ 

सम्मत्तममलं तम्मि सम्मत्ते सीलमुत्तमं । सीले वि खाइओ भावों सब्बकम्मखयंकरों ॥१५८॥ 

इय संजोगा इत्थं दुलहा जीवाण कुणह ता धम्मं | संपजञ्जइ जेण इमं सफल माणुस्सयं जन्म ॥१५९॥ 
दुग्गहधरणा धम्मो जइ-सावयभेयओ य सो दुविहो । दुविहो वि भवे कज्जो उचियत्तं अप्पणो नाउ ॥१६०॥ 
पाहेएण विरहिओ पहम्मि पहिओ जहा भवे दुहिओ । इय धम्मेण विरहिओ परलोयपहम्मि जीवो वि ॥१६१॥ 
धम्मत्यिणा य पियजीवियाण जीवाणमबहणं कर्ज । | सब्बगुणाणं मूल सच्च भासंति धम्मपिया ॥१६२॥ 
बाहिरपाणसरूवं परद॒व्व॑ परिहरंति धम्मरया | जीववहमूलमहमं निच्चमबंभं च वज्जति ॥१६३॥ 

अप्पं व बायरं वा परिग्गहं परिहरंति धम्मधणा । राईभोयणविरई सया वि धम्मत्यिणा कज्जा ॥१६४॥ 
समिईओ पालणीया मायाउ व धम्ममायरंतेण । गुत्तीओ वि हु रक्‍्खा गुत्तीओ व धम्मसस्सस्स ॥१६५०॥ 
इच्छाकारो कज्जो परम्मि धम्मत्थिणण सब्वत्थ । मिच्छाउक्कडमुत्तं वितहायरणम्मि धम्मंगं ।।१६६॥ 
धम्मोवण्सदाणे गुरुणो परिभासिओं तहककारों । आवस्सिया य कज्जा कज्जे नंताण वसहीओ ॥१६७॥ 

जो होइ निसिद्धप्पा निसीहिया तस्स पविसणे भणिया । आपुच्छणा उ कज्ञा गुरुणो कज्जम्मि पाएणं ॥१६८॥ 
पडिपुच्छणा गुरूणं पुव्वनिसिद्धेण होइ कर्ज ति। लड्धम्मि भत्त-पाणम्मि छंदणा होइ कायव्वा ॥१६९॥ 
साहूण निमंतणयं पव्िसिउकामो करेइ गोयरियं । उवसंपया वि गुरुणो नाणाईणं निमित्तम्मि ॥१७०॥ 

इय एस समणधम्मो सप्पुरिसनिसेविओ महाइसओ । अक्खेवेणं मोक्‍्खस्स साहओ जिणवराभिहिओ ॥१७१॥ 
एयं काउमसत्ता सावयधम्म॑ दुवाल्सविहं पि | विहिणा जिणवरभणियं नाऊण कुणंति कयउन्ना ॥१७२॥ 

एसो वि सुगइमग्गो पायं सुकरो विलंबसुहजणओ । समणाणं धम्ममिमं काउमसत्ताणमुचिओं य ॥१७३॥ 


भणियं च-- 
विसयसुहपिवासाए अहवा बंधवजणाणुराएणं । अचयंतो अहदुसहे बावीसपरीसहे सहिउ' ॥१७४॥ 


जइ न तरसि काउ' जे सम्मं अइृदुककरं॑ समणधम्मं | तो कुज्जा गिहिधम्मं मा बज्को होसु धम्माओ ॥१७०॥ 


इय सोउ' धम्मकहं के वि हु सुविवेशणो लहुयकम्मा । मोत्तण गिह जाया अणगारा भावियप्पाणो ॥१७६॥ 
३० 


श्र४ 


धारिणी-- 
मेघ:-- 
धारिणी-- 
मेघ:-- 
धारिणी-- 
[ मेघः ]-- 
धारिणी -- 


आख्यानकमणिकोशे 


अवरेडणुव्ययधारी अन्‍्ने पडिवन्नसुद्धसम्मत्ता । उवल्ड्धबोहिबीया केबि अहाभदया जाया ॥१७७॥ 

मेहकुमारों वि समुल्नसंतसुविसुद्धचरणपरिणामी । अभिवंदिऊण बीरं एवं भणिउः समाढत्तो ॥१७८॥ 

आलित्ति ण॑ मंते ! लोए वीसुं पि तह पलित्ते +। आलित्त-पलित्ते वि य जराए मरणेण रोगेहिं ॥१७९॥ 
अवितहमेयं भंते ! भयवं तहमेयमन्नहा नेयं । सच्चे णमेस अट्ढे जहेयमेवं वयह तुब्भे ॥१८०॥ 

जह गेहम्मि पछित्ते सविवेओ कोइ रयणमाईयं । गिन्हई सास्मसारं च चयद घणघन्नमाईयं ॥१८१॥ 

एवं भवगिहिवासे भयवं | रागग्गिणा पलित्तम्मि । नित्थारिस्समहं पि हु मंप्पाणं धम्मकरणेणं ॥१८२॥ 

ता जाव<म्मा-पियरों पडिमोयावेमि भयवमप्पाणं । ता तुम्ह पायमूले पडिवज्जिस्सामि पव्यज्ज ॥|१८३॥ 

तो भणियं जयपहुणा अहासुहं तुज्ञ होउ मा विग्घं । मा पडिबंधं काहिसि इय भणिओ भयवतया छुट्टों ॥१८०॥ 
तो सप्पणयं पणमिय वीरं पडिवज्जिऊण तब्वयणं । नियगेह्दे संपत्तो तत्तो विय जणणिपासम्मि ॥|१८५॥ 

पाएसु पणमिऊर्ण नियजणणि भणइ महुरवाणीए । अम्मी ! अहमज्ज गओ ताएण सम॑ समोसरणे ॥१८६॥ 

दिट्टो य तत्थ वीरो मुणिसहिओ वंदिओ सबहुमाणं । सासयसिवसुहजणओ धम्मो य तयंतिण निसुओ ॥१८७॥ 
धन्ना हं तुह जणणी वच्छ ! तए अज्ज सोहणं विहिय॑ । ज॑ भुवणवंदणिज्ञो मुणिसहिओ वंदिओ वीरो ॥१८८॥ 
जह एवं ता संपइ मुयसु तुम अम्ब ! पव्वइस्समहं । सिरिवीरनाहपासे छेत्त' फसं व गिहवासं ॥१८९॥ 
अस्सुयपुष्व॑ त॑ कन्नकडुयमायन्निऊण सुयवयणं । परसुनिर्कितियचंपयलय व्व पडिया धरणिवीढे ॥१<९०॥ 
तक्खणमेब् य सिरिखंडमीससीयलूजलेण सित्तंगी । पडिलंभियचेयज्ञा सुदक्खमिइ पलविउं रूगा ॥१९१॥ 
तुममेगो बच्छ ! सुओ उबरपुप्फ॑ व दल्लही मज्ञ | ता तुह वच्छ ! विओग खणमत्रि न सहामि अइृदु सहं ॥१९२॥ 
ता जाय ! जाव जीवामि ताव मा भणसु एरिसं वयणं । परलोयं पत्ताए जं जुत्तं कुणसु तं बच्छ ! ॥१२३॥ 
मेहेणुत्त तुह वयणमंब ! सव्ब॑ पि घड॒इ जइ होज्जा । जीवाण जमेण सम॑ का वि हु एवंविहवबत्था ॥१९४॥ 
पुव्व॑ मरेज्ज बुड्ढो बालो पच्छा जया य न हु एवं । तो को कुज्जा भरवसयमेरिसे जीवियम्मि जओ ॥१९५॥ 
गब्भे जम्मे बालत्तणम्मि तरुणत्तणम्मि वुड्डत्ते | मद्टियभंडं व जिया सव्वावत्थासु विहडंति ॥१०२६॥ 

ता होउ मज्क भणियं कुणसु पसाय॑ इमम्मि अत्थम्मि | माया हिया अवच्चम्मि इय पसिद्धी हवउ सच्चा ॥१९७॥ 


अज्ब वि तुह तारुन्नं ता तं माणसु विछासकरणेण । समयम्मि कज्जमाणं सलाहणिज्ज हवह कर्ज ॥१८८॥ 
जलबुब्बुओवमाणं खणभंगुरमंब ! सुंदरं पि इमं । निच्छयओ सहलत्तं बच्च३ जिणधम्मकरणेण ॥१५९॥ 

त॑ जाय ! कलाकुसलो सब्वुत्तमरायलक्खणा55वसहो । ता विलससु रज्जसिर्िं नियजणयपहट्टिओ वच्छ | ॥२००॥ 
रायसिरी वि हु बहुदुक्खलक्खसंपुत्ननरयपुरपयवी । अप्प-परगरुयसंतावकारिया कह सुहा अंब ! ? ॥२०१॥ 
उत्तमकुलुब्भवाओ रूवाइगुणडन्नियाओ रत्ताओ | वच्छड्ट्ट भारियाओ माणसु एयाओ ता जाय ! २०२॥ 
गिरिगरुयपराभवकारियासु पियभारियासु एयासु । को कुणउ कहसु पडिबंधमंब ! परिणामविरसासु १ ॥२०३॥ 


तुह वच्छ ! कुरुप्पमवो पडरो मणि-कणयपमिहओ अत्थों। वियरण-भोगसमत्थो जहोचियं विलससु तयं पि ॥२०४॥ 


१. मकारोज्त्रालाज्षणिक: | २. विश्वासम्‌ , भरोंसो इति लोकभाषायाम्‌ | 


मेघः--- 
धारिणी-- 
मेघ: --- 
धारिणी-- 
मेघ:-- 
धारिणी-- 
मेघ:-- 
धारिणी-- 
मेघ:-- 
धारिणी-- 


मेघ: -- 


२६. जीवदयागुणवर्णनाधिकारे मेघाव्यानक््‌ २३५ 


जलू-जलण-राय-तकर-दाइयभय विद्दुओ दढं अत्थो । वह-बंध-मरणहेऊ को मुच्छड अंब ! एयम्मि ? ॥|२०५॥ 
सुहलालिओ सि सुहपालिओ सि सुहसमुचिओ सि त॑ वच्छ ! | कह कम्मक्खयहेउ' कट्ठाणुद्राणणायरसि ? ॥२०६॥ 
संसारभीरुयाणं सप्पुरिसाणं विवेयसाराणं । सुकयज्ञवसायाणं केत्तियमेत्तं इमं क॒ट्ठटं ? ॥२०७॥ 
लोहमयचणयचावणयतुल्लमच्चंतदुकर॑ वच्छ ! । निसिउग्गखग्गधाराचंकमणसमं खु समणत्तं ||२०८॥ 

एयं पि कुणंति न किंपि दुक्कर॑ अंब ! साहससहाया । पेच्छ झलकियकडतल्लभीसणे अब्मिडंति रणे ॥२०९॥ 

अबरं च सरस-महुरेहिं छालिओ निश्चमन्न-पाणेहिं | कहमंत-पंत-विरसं भुंजसि वच्छय ! तमाहारं ॥२१०॥ 
परलोयदिल्नचित्ताण घिइसहायाण पाणमसणं वा । गलविवराओ परेणं कि काही भदमियरं वा ? ॥२११॥ 

केणावि अपरिभूओ मणयं पि हु वच्छ ! वयपबन्नों उ। अक्कोस-हणणपमिई कह विसहसि नीयजणविहियं ? ॥२१२॥ 
मोक्‍्खसुहबद्धचित्ताण नियसरीरे वि निष्पिवासाणं । थोव॑ पि दुक्खमकोसणाइ न हु जणइ धीराणं ॥२१३॥ 
नवणीयफासमिउहंसरूयतुलीकलावकलियाए । सुविओ कोमलसेज्ञाए सुयसि किह घरणिव्टम्मि ? ॥२१४॥ 


हरिणाईण वरायाण रज्नभूमीसु संवसंताणं | सयणीयमंब ! केरिसमह य बणे ते वि हु जियंति ॥२१५॥ 

इय विविहहेउ-जुत्तीहिं धारिणी जा न सकए धघरिउं। मेहकुमारं ताहे मुयइ अकामा वि पव्वचहउं ॥२१६॥ 
तत्तो पुव्वाभिमुहो महरिहर्सिहासणे समुवरधिट्टो । चउसट्ठिसहस्सेहिं अभिसित्तों मंतिपमुहेहिं ॥२१७॥ 
पसरंतबहलपरिमलसिरिखंडविलित्तरुइरसव्बंगो । भमिरममरउठलूमणहरमल्ला-5लंकाररमणीओ ||२१८॥ 
हार-उद्धहार- तिसरय-पालंबप्पमुहभूसणकलावो । नियसियधवलदु गुल्लो सकक्‍्खं चिय कप्परुक्खो व्व ॥२१०॥ 
सुसिलिट्ठकट्ठ-मणि-रयणकम्मनिम्मवियपवरसिबियाए । आरुहिऊण निसन्नो महरिह्सिहासगवरम्मि ||२२०॥ 
सब्वेयरपासट्वियतरुणीकरधुव्वमाणसियचमरों | धरियधवलायबत्तों बंदियणुग्घु द्रजयसद्दो ॥२२१॥ 

पत्थिजजंतो बंछियविसए वियसंतनयणमालाहिं । पेच्छिज्जंतो अंगुल्सि्हिं दाइज्जमाणो उ ॥२२२॥ 
दिक्‍्खाविणिच्छियमई दुक्करकरणेण भवियलोयस्स । विम्हयमुप्पायंतो निजञ्ञाइ पुराओं जिणपासे ॥२२३॥ 
सिरिवीरजिणवरेणं विहिणा पव्वाविओ सहत्थेण । किरियाकलावमिणमों सब्बं समणाण सिक्खविओ ॥२२४॥ 
एवं भाससु एवं च सयसु एवं च भुंजसु सया वि। एवं चिट्ठसु एवं च वयसु इरियासमिहसमिओ ॥२२५॥ 
एवमणुसासिऊरणं थेराण समप्पिओ जिणवरेणं | पत्तो य तेहिं समयं समणाणमुबस्सए मेहो ॥२२६॥ 

ताहे वियालवेलाए समणसंथारएसु दिन्नेसु | मेहस्स दारदेसे कमेण संधारओ जाओ ॥२२७॥ 

तो सब्बं पि हु रयर्णि निरंतरं मुणिवरेहिं बस॒हीओ । सज्ञायाइनिमित्तं नितेहिं पुणो विसंतेहिं ॥२२८॥ 
मेहकुमारो केहिंवि जईहिं रयरेणुगुंडिओ विहिओ । केहिं वि कहिं पि पायाइएहिं संघष्टिओ बहुहा ॥२२९॥ 


“२३६ आखश्यानकमणिकोशे 


एवं सब्वनिसाए खणं पि निद्दा न पाविया तेण । तत्तोडसुहकम्मवसा चितियमसुभं इम॑ं मणसा ॥२३०॥ 
जहयां गिहत्थभावे अहमासं समणगा इमे त्तहया । म॑ं आलबंति म॑ संलवंति भासंति मेह ! त्ति ॥२३१॥ 
जप्पभिह अगाराओ पव्वइओ हं इमेसि मज्क्म्म । तप्पमिश समणगा परिमवंति मं ता धिरत्यु ! इमे ॥२३२॥ 
समणत्तमिमं सप्पुरिससेवियं कायराण दुरणुचरं । भूसयण-लोयसहणाइदुक्करं॑ भणियमंबाए ॥२३३॥ 
एवं जहुत्तमिण्हि सकिस्समहं न चेव काउं जे । ता मोत्तु जिणपासे लिंगमिमं जामि गिहवासे ॥२३४॥ 
इय परिचितिय गोसे अचितमाहप्पमोहवसवत्ती । जिणवीरवंदणत्थं साहूहिं समं गओ मेहों ॥२३५॥ 
आभासिओ जिणेणं पढमं चिय धारिणीसुओ सम्मं । अत्थि तुह मेह ! रयणीए अज्ज परिचनिंतियमिम ? ति ॥२३६॥ 
सिररइयकरंजलिणा मेहकुमारेण पणमिउं भणियं । सच्चमिमं जं तुब्मे नाणेण वियाणिउं भणह ॥२३७॥ 
पुणराह जिणो तुह भद्द ! जुत्तमेयं न सुद्धवंसस्स । जं पाविय पव्वज्जं पमायमायरसि अप्परिउं ॥२३८॥ 
जम्हा एसो चिय वच्छ | विविहदुह॒वसणकारणमणज्रो । भवपहसंपत्थिय5णत्थसत्थसत्थाहसिररयणं ॥२३९॥ 
सयमेव चितसु तुमं इहइं चिय जे अचितकम्मवसा । संजमगिरिवरसिहराओ एयवसया खडहडंति ॥२४०॥ 
ते दुक्कयकम्महया ससंकिया लज्जिया विवन्नमुहा | बहुजणधिक्कारहया जियंति दुहजीवियं वच्छ ! ॥२४१॥ 
इय निउण-महुरवयणप्पुव्वगमणुसासिओ भुवणपहुणा । परितुट्ठो एवं चिय लहुदोसे सिक्खवंति गुरू ॥२४२॥ 
भणियं च-- 
महुरेहिं निउणेहिं वयणेहिं सिक्खवंति आयरिया । सीसे कहिं पि खलिए जह मेहमुणी महावीरों ॥२४३॥ 
अवरं च बच्छ ! तुह पुव्वजम्मभावम्मि वद्ठमाणस्स | तिरियस्स वि आसि स कोवि कम्मवसओ सुहविवेओ ॥२४४॥ 


तथा हि-- 
तुममेत्तो तहयभवे गुरुबलमाहप्पपहयपडिवक्खो । वेयड्रपायमूलेसु जायजूहाहिवपहाणो ॥२४४५॥ 
विंको व्व सरलवंसो निवो व्व सययं समुत्नयक्खंधो । सुहदाणविलरूसिरकरो चाइ व्व मुणि व्व सुदृदंतो ॥२४६॥ 
निवरज्वभरो व्व महासत्तंगपइट्टिओ पगट्टिपओ । सव्वंगलक्खणधरो अहेसि हत्थी समग्गगुणो ॥२०७॥ 
तत्थठिय वणयरेहिं सहसि सुमेरुप्पहो कत्ति कबनामी । चरसि निरुव्विग्गममणो भयमगणंतोडमिमाणघणों ॥२४८॥ 
कइया वि लहुयनियकलह-कलभियाजूहयं पडिक्खंतो । करिणीकरकंडूयणमीलियनयणो सुहं लहसि ॥२४९॥ 
कहया वि हु चरसि महल्लसल्लईपल्लवेसु पडिबद्धों । कहया वि पयंडविपक्खभिडणसंपत्तजयपसरो ॥२५०॥ 
कइया वि हु पयपूरियगुरुसरवरजलनिमग्गसव्वंगो | घणचाडुकरणकोवियकरेणुयासुरयसुहरिसिओ ॥२५१॥ 
कइया वि कुणंतों सरवरम्मि सह भारियाहिं जलकीलं | अणुभवसि सकामकरेणुगंडगंड्ूसपाणसुहं ॥२५२॥ 
एवं गिरिकंदर-काणणेसु गुरुसरवरेसु वियरंतो । सच्छंदसमुत्थसुहिल्लिसंगओजो गमयसि दिणाणि ॥२५३॥ 
अह अज्नया य खरतरदिणयरकरनियरतावबिए भुवणे । गिम्हम्मि परोप्परवंसघंससंजायजलणवसा ॥२५४॥ 
पाउब्मूओ संभंतसत्त-तरु-कट्ठदृहणद्ृप्पेच्छो । धूमंघयारजालामालियगयणो वणदवग्गी ॥२५५॥ 


तथा हि-- 
'मल्लियसमुच्चगोत्तो झामियसच्छायतरु-सउणनिवहों । कलिकालो व्व समंता वित्थरिओो वणदवहुयासो ॥२५६॥ 
फुट्टंलवंसअट्टट्टहा सरवभरियनहयलाभोगो । जालापिंगलकेसो ढयरो व्व वियंभिओ दावों ॥२५७॥ 
निहृड् विसप्पिससमयसावभयभीयसत्तसंधाओं । कुद्धमुणि व्व विसप्पह विमुकतेओ वणदवग्गी ॥२५८॥ 
तत्तो य वणदवभया पलायमाणेसु सावयगणेसु | मणवल्लहं पि जूहं मोत्तृण तुम॑ं पि हु पलाणो ॥२५९॥ 
मोडंतो तरुनिवहे वणदवपाउब्मवंतदप्पेण | तोडंतो वेयवसा विविहे वल्लीवियाणे य ॥२६०॥ 


१, महलियसमु रं०। २, पिशाच: | 





जओ-- 


२६. आवदयागुणबणनाधिकारे मेघाल्यानकम्‌ २४६७ 


जालाबलिधूमेणं सुद्रमप्फुन्नविग्गहावयवों । एगागी नीहरिओ महया किच्छेण दावाओ ॥२६१॥ 
दवजलणदाहतावियतणुणा तत्तो तिसाभिभूएणं । तुच्छजलं बहुकद्दममेगं पत्तं सरं तुमए ॥२६२॥ 

तत्तो पिवासिओ तं पविससि पाहं ति पाणियं तम्मि | नवरमतित्थपवेसा खुत्तो पंके अगाहम्मि ॥२६३॥ 

तत्तो त॑ तयवत्थो दिट्लो तरुणेण वेरिणा करिणा । विद्धों य पट्टिभायम्मि दंतमुसलेहिं तेणावि ॥२६४॥ 
पंकम्मि खुत्तगत्तो पिवासिओ दंतमुसलजजजरिओ । अणुभवसि सत्त दिवसाणि दुरहियासं महावियणं ॥२६५॥ 
वीसाहियवरिससयं सब्वाउं पालिऊण तम्मि भवे । अद्ववसट्वोवगओ मरिउं इह चेव भरहम्मि ॥२६६॥ 
सरसतरुराहरेहिरसर-सरियानियरनिज्म्राइन्ने । वि्गिरिपायमूले पुणरवि य गओ समुप्पन्नो ॥२६७॥ 
ससि-संख-कुंदधवलो चउद्सणो गलियदाणगंडयलो | परिसक्षिरनवनीरयरेहासंगयहिमगिरि व्व ॥२६८॥ 
सुपसत्थलक्खणंकियसत्तसयपमाणगयपरीवारों । वियरसि तुम॑ जहिच्छे भयरहिओ विज्लगिरिगहणे ॥२६९॥ 
परितुट्ठवणयरेहिं तत्थ वि मेरुप्पहो त्ति कयनामो । गिम्हम्मि नियसि वंसीसाहाधंसणसमुब्भूयं |२७०॥ 
खरपवणवसबवियंभियजालामालियसमरगगयणयलं । धूमंधयारवेविरसमत्थयणसावयसमूहं |॥२७१॥ 
पज्जलियवणदवरिंग कत्थ वि मह एस दिद्वपुव्वो त्ति। इय देहाकरणवसा सुमरसि त॑ मेह ! पुव्वभवं ॥२७२॥ 
तो विन्नायं तुमए वणम्मि एसो भविस्सह सया वि। ता एयरक्खणोवायमविकर्ल किंपि चितेमि ॥२७३॥ 
जम्मंतरे वि अहय॑ एयाओ पाविओ महावसणं । वणदवदाहमभयाओ अणागयं निययबुद्धीए ॥२७४॥ 
आई-मज्ञ-3त्रसाणे वासारत्तत्स थंडिलाण तिगं । त॑ कुणसि कयवराई तत्थगयं सब्बमवणेउं ॥२७५॥ 

इय जा निव्वुयहियओ चिट्टसि ता वणदवम्मि पज्जलिए | नट्टो भयभीयमणो पत्तो ता थंडिलं पढमं ॥२७६॥ 
तम्मि रुरु-रोज्ञ-संबर-ससय-तरच्छ-5च्छमज्लपभिददेणं । बिलधम्मेणं चिट्ठ॒॑इ अरन्नसत्ताण संघाओ ॥२७७॥ 

तो त॑ मोत्तु बीयम्मि वयसि त॑ पि हु तहेव पडिपुन्न | तो तइए गंतृ्ं पविरलसत्तम्मि तं थको ॥२७८॥ 
उक्खिवसि पायमेगं कंडुयगत्थं पुणो वि जा मुयसि । तो तम्मि पायठाणे पेक्षिज्बंतो बलिट्ठेहि ॥२७९॥ 
ससयसरूवो कोषि हु सत्तविसेसो ठिओ तय॑ मुणिउ' । मा मारिज्जउ एसो मह पाएणं पमुक्केणं ॥२८०॥ 

इय अणुकंपावसओ तहेव आकुंचिउः धरसि पायं | सो थंभिओ तहेव य भरिओ रुहिरस्स निब्मिश्च ॥२८१॥ 
तत्तो तुह तिरियस्स वि अचितविरियत्तणाओं जीवस्स । कम्माणं च तहाविहविचित्तपरिणामभावाओ ॥२८२॥ 
जीवाणुकंपलक्खणसब्व॒ुत्तमगुणपभावजोगेण । मणुयाउ' निब्बंधसि विसुद्धसम्मत्तबीर्य च |॥२८३॥ 


थेवा वि हु जीवदया जियाण कल्लाणसंपयं कुणइ । मणकप्पियं पयच्छह अहवा तथणुया वि कप्पलया ॥२८४॥ 


सग्गसिरीए नियाणं विलूसिरनररायसंपयाहेऊ । सिवलच्छिवसीकरणं एक्क चिय होइ जीवदया ॥|२८५॥ 
सुहपुन्नसस्सभूमी निम्मलगुणरयणरोहणगिरिंदों | भवजलहिजाणवत्त एक चिय होइ जीवदया ॥२८६॥ 
चिंतियचिंतारयणं अहरीकयकामधेणुमाहप्पा । अवहत्यियकामघडा एक चिय होइ जीवदया ॥|२८७॥ 
अड्डाइयदिवसेहिं पमूयतण-कट्ट-कयवराइन्नं । वि्ञारत्तमसेसं दहिउ' विरओ वणदवग्गी ॥२८८॥ 

तो नीसरिए सब्वम्मि मंडडाओ पसूण संघाए | तुममवि पायं धरणीए मुयसि गमणाय वेगेण ॥२८८॥ 
तत्तो य दुज्जयजराजज्जरियतणुत्तओ तुम तइया । थंभियचरणत्ताओ य पडसि धरणीए सहस त्ति ॥२९०॥ 
हत्थीणमेगपडणाओ उद्ठिउ' सब्वहा वि अचयंतो । समकालं पसरियतिव्ववेयणाविहुरसब्बंगो ॥२९१॥ 
खद्दों सि त॑ सियालाइएहिं मंसासिसावयसएहिं । अहियासिऊण दूसहतणुवियणं तिन्नि दिवसाणि ॥२९२॥ 
संपुन्न॑ वाससयं सव्बाउ' पालिऊण हत्थिभवे । अणुकंपागुणविढवियनिरुवमपुन्नप्पमावेण ॥२२३॥ 


श्द्रेप 


आख्यानकमणिकोश . 


जाओ सेणियपुती मणप्पिओ धारिणीए देवीए | सब्बगुणाण निवासो मह सीसो एस पतच्चक्खो ॥२६१४॥ 
इय वीरजिणेसरमुहविणिग्गयं निसुणिऊण नियचरियं । जाईसरणा जाय॑ मेहकुमारस्स पच्चक्खं ॥२९५॥ 
रयणीए वइयरे अक्खियम्मि वीरेण मेहकुमरो वि। जाओ विलक्खबयणो नियदुच्चरियं सुमरमाणो ॥२९६॥ 
भणइ जिणं मेहमुणी मह सामि ! पवित्तमुत्तिणो मुणिणो | नयणदुगं मोत्तणं सव्वत्थ कुणंतु संघड ॥२९७॥ 
एयाणं मुणिसीहाण विमलसीलंगगुणपवित्ताणं | पायाइघद्कणेणं संपन्नो पूयपावों हं ॥२९८॥ 
पन्चागयसंवेगो आलोइयमणसमुत्थअइयारो । परिणमियसुद्धभावो विहरह सिरिवीरपयमूले ॥२<९९॥ 
एकारस अंगाइ' तेण अहीयाइ' गुरुसयासम्मि । गीयत्थो संजाओ थिरधम्मों मंदरगिरि व्व ॥३००॥ 
एयस्स महामुणिणो सोहणपंथम्मि संपयट्टस्स | कंटगखलणातुल्ली विन्नेओ वयवबिपरिणामो ॥३०१॥ 
संलिहियनिययतणुणो विणीयविणियस्स तस्स साहुस्स । पव्वज्ञापरियाओ बारस वासाणि संजाओ ॥३०२॥ 
बारस भिक्‍्खूपडिमा तेण तया फासिया महामइणा । गुणरयणवच्छरेणं तबेण परिसुसियसव्बंगो ॥३०३॥ 
उद्धरियसव्वसल्ली पहसमयसमुल्लसंतपरिणामी । मासद्धपमाणाए अणसणकिरियाए सुहलेसोी ॥३०४॥ 
आपुच्छिऊण वीरं सह गीयत्थेहिं सुविहियमुणीहिं । आरुहइ विउलूपव्वयसिलायले जिणवराणाए ॥३०५॥ 
आउयखयम्मि जाए कालं काऊण कालमासम्मि । पंचपरमेट्रिमंतं कायन्तों सुद्धपरिणाभो ॥३०६॥ 
मेहो व्व मेहकुमरों सुहरसनिव्ववियसत्तसंघाओ । जह इह तहा मओ वि हु वरविजयविमाणमारूढो ॥३०७॥ 
तत्तो चुओ समाणो सब्युत्तमगुणविसिद्र॒कुलजम्मो । परिपाल्यिपव्वज्जो महाविदेहम्मि सिज्मिहई ॥३०८॥ 
॥ मेघकुमाराख्यानक॑ समाप्तम ॥८३॥ 


अचुना दामन्नक कथानक स्यावसरः | तथ्य नियमाधिकारे भणितमिति हत्या ना5<5ख्यायते। 


इहलोय-पारलोइयसुहाण भायणमिमे जहा जाया । जीवदयाए तहडन्नो वि होइ ता तीए जइयब्बं ॥१॥ 
यत्‌ सुस्थिता गतरुजो निरवयदेहा, आजन्म जन्मिनिवहा गमयन्ति कालम्‌ । 
तत्‌ स्वेमझ्लिगणनि्मलनस्य [शस्य]श्रेयोविजुम्मितमुदारधियो भणन्ति ॥२॥ 


॥ इति भीमदाप्नदेवसूरिविरचितवृत्तावाध्यानकमणिकोशे जीवद्यागुणवर्णनः षड्विशतितमो5घिकार: समाप्त: ॥२६॥ 


6-७: 59 


[ २७, धममप्रियवादिगुणवर्णनाधिकारः ] 


जीवदया सुखहेतुत्वेनाभिहिता । साम्प्रतं सर्वोडपि जिनधमः: सुखहेतुः परमादेयबुद्धया ग्रहीतो5यं मोक्षसाधकों भवतीत्य- 


मुमथमभिधित्सुराह-- 


पियघम्मा दठधम्मा गिहिणो वि य मोक्खसाहगा होंति। 
जह कामदेव-सागरचन्दा चंडावडिंसों य॥३६॥ 


अस्या व्याख्या--प्रियः:-वललभः घम:-जिनोदितं दानागनुष्ठानं येषां ते प्रियरर्माण: | हृढः-्यसनगतैरपि यो न विराध्यते 


स ताइशो धर्मो येषां ते इढ्धमोण: । ग्रहिणोडपि च न केवल यतय इत्यथे: 'ोक्षसाधका:? निवृत्तिजनका: “यथा? येन प्रकारेण काम- 
देव-सागरचन्द्रौ श्रावको चन्द्रावतंसकश्व राजेति गाथासमासा्थ: ॥ व्याख्या(व्यासा)थस्ववास्यानकगम्यः | तानि चामूनि । 
ततन्न तावत्‌ कामदेवाब्यानकमारभ्यते-- 


जियसत्त्‌ नाम निवो अहेसि चंपाए विस्सुओ भुवणे | रूवेण कामएवोब्व सावओ कामएवो त्ति ॥१॥ 


२७. धरंप्रियत्वादियुणबर्णनाधिकारे कामदेधाल्यानकम श्चे£ 


रूवाइगुणसुभद्दा भद्दा नामेण पणइणी तस्स । सम्माणद्दाणं सो नर्रिदपज्जंतपउराण ॥२॥ 
विन्नायपुन्न-पावो जीवा-डजीवाइजाणियसरूबो । छक्कोडीउ निहाणीकयाउ कणयस्स तब्भवणे ॥३॥ 
छ व्वित्थरप्पउत्ताउ तह य छ व्वड्िसंपउत्ताओ । छ व्वहणाईं तहा से वहंति सगडाण पंच सया ॥४५॥ 
पंच सयाणि हलाणं किसिप्पउत्ताणि गोडलाइं से । छ प्पत्तेयं दसद्ससहस्सगोसंखजुत्ताणि ॥५॥ 
तत्थडन्नया य अमरा-5सुरिंद-नर-खयररायनयचरणो । समवसरिओ पुरीए उज्जाणे वद्धमाणजिणो ॥६॥ 
परिसाए निग्गयाए स कामदेवो जिर्णिदनमणत्थं । संपत्तो रोमंचियगत्ता वंदित्तु भयबंतं ॥॥७॥ 
उचियद्ठवाणनिविट्टो सोउं सद्देसणं जिणाभिहियं । चित्तब्भंतरसुदपरिणदेजुओ भणइ जिणनाहं ॥<८॥ 
भयवं ' काउमसत्तों पव्वज्ञमहं करेमि पुण सम्म॑ं । धम्मं सुसावगाणं तो बारसहा वि पडिवन्नों ॥<॥ 
सावयधम्मी पणमिय जिणेसरं पडिगओ तओ तस्स । त॑ सम्म॑ पालंतस्स सुद्धसज्मायजुत्तस्स ॥१०॥ 
अट्टमि-चउद्दसीसुं चउव्विदं पोसहं कुणंतस्स | चोहस समइक्कंताणि तस्स वरिसाणि गुणनिहिणो ॥११॥ 
अह अन्नया य पोसहसालाए सब्वराइयं पडिम॑ | पडिवन्नमिमं खोमेउमागओ रकक्‍्खस्ब्वसुरो ॥१२॥ 
आरत्तनेत्तदित्ती विद्धंसियअंधयारसंघाणो । पज्वलियजलूणमिस्सियविमुकलल्लक्क फेक्ारों ॥११॥ 


गुरुकरहकंधरारोमकविलकेसी करालूमुहकुहरों । फाल्समविसमदंतो घूमसिहासामरूच्छाओं ॥१४॥ 
गोणसकयावयंसी जन्नोइयअइगरेण अइभीमो । धुंटंतो करयलकयकवालूकीलाल्मणवरयं ॥१४५॥ 
उबखायखग्गदंडी पभणइ भो कामदेव ! जह नो तं॑ । सील्व्वयाईइं खंडसि ता खग्गेणं हणिस्सामि ॥१६॥ 

तो कामदेवसड्डी गाढयरं धम्मझाणमारूढो । इय वारत्तियमुत्तो विन चलिओ घम्मकाणाओं ॥१७॥ 

ता खग्गदंडघाएहिं खंडिओ सहइ सम्ममेसी वि । तो मुकजक्खरूवो देवो जाओ गुरुकरिंदा ॥१८॥ 
उब्भियसुंडादंडो रणंतघंटाजुणण डंबरिओ । गलूगज्जिभरियआुवणो सत्तंगोगलियमयप्रहों १९॥ 

जंपइ य कामदेवं जइ न कुणसि खंडणं नियवयाणं । ता उलल्‍्लालिय सुंडाए तह पडिच्छेवि दंतेद्ठि ॥२०॥ 
वलवद्िस्सं पाएहि होइ तुह मरणमटझाणेण । इय तिकक्‍्खुत्ता वुत्ता विन चलिआ सो सुझाणाओं ॥२१॥ 

तत्तो य आसुरुत्तेण हत्यिणा गिण्हिकण सुंडाएण | उल्लालिऊण दंतेहिं कलिय दलिओ सपाएहि ॥२२॥ 

सो वि हु करिकयवियणं सम्म॑ं अहियासए महासत्तो । तो अमरो करिरूव॑ परिह्रिउं विसहरो जाओ ॥२३॥ 
फुक्कारविड्वरिल्ली वियडफडाडोयडंबरुडुमरों । जलणकणारुणनयणो तरलरूुदुजीहों घणच्छाओ ।।२४॥। 

भणइ य तयं तहेव य वारतिगं सो न मणयमवि खुहिओ । गाढ़ वेढिय कंठेसु तिक्खदाढाहिं तो डसइ ॥२५७।। 
तं पि हु वियर्ण सम्मं अहियासइ जिणमयम्मि थिरबुद्धी | तो तं अभीयमवललोइऊण धम्मम्मि थिरचित्त ॥२६॥ 
तयणु कयामररूबो विलसिरमणिकणयकुंडला55हरणो । पभणइ य कामदेव सकयत्थो धन्न-पुत्नो तं २७।॥ 

तुह जम्म-जीवियाइ सकयत्थाईं समत्थि निग्गंथे । जिणपवयणम्मि एरिसनिश्वलूया जस्स सयकालं ।|२८॥। 
विहियं देवाणुप्पिय ! सक्‍्केण सुहम्मसुरसहामज्ञझे । तुज्क गुणम्गहणमिणं जहा सइंदेहिं देवेहिं।।२९॥ 
चंपाए कामदेवो तीरइ न जिणप्पणीयधम्माओ । चालेउमिममसदृहमाणो5हमिहागओ झत्ति ॥३०॥। 

बविहिया य चालणकए घोरुवसग्गा मए इमे तुज्य । ता खमसु इय पयंपिय पणमिय त॑ खामिउं अमरो ॥३१॥ 
नियठाणे संपत्तो गोसे पारेइ पडिममेसी वि । एत्थंतरम्मि सामी समोसढो वद्धमाणजिणो ॥३२॥ 

वंदेवि कामदेवो भयवंतं पज्जवासएु जाव | ता भुवणसामिणा सो पयंपिओ तुज्ञ रयणीए ॥३३॥ 
सम्ममहियासिया इह उवसग्गा रक्खसाइणो तुमए । तेणुत्तं जह भयवं ! तुब्भे जाणह तह चेव ॥३४॥ 
पुणरवि य भयवया सो भणिओ जिणपवयणम्मि जस्सेसा | निशच्चलया सो तं॑ पुन्नभायणं इय निसामेउ' ॥३५॥ 
हंरिसपरिपूरियंगो पणमेवि जिणं गओ सठाणे सो । वाहरिय भयवया पभणिया य समणा य समणीओ ॥३६॥ 
अज्जो ! जइ गिहिणो वि हु एवं सम्मं सहंति उवसग्गे | ता कि न हु सहियव्वा तुब्मेहिं विमुक्कसंगेहिं ॥३७॥ 


शउक आश्यामकमणिकोशे 


ताणि जिणवयणमेयं सम्म॑ रोम॑चियाणि मन्‍्नंति । एत्तो य कामदेवों सावयपडिमाउ काऊण ॥३८॥ 
अप्पाणं भार्वितों सीलव्वयभावणाहि जा वीसं । वासाईं सावयत्तं परिपालिय सो महासत्तो ॥३९॥ 
आलोइय-पडिकंतो मासियसंलेहणाए कालगओ । सोहम्मअमरलोए अरुणाभे वरविमाणम्मि ॥००॥ 
विप्फुरियसरीर॒पहो चउपलियाऊ सुरो समुप्पन्नो | तत्तो चुओ विदेहे उववज्जिय पाविही सिद्धि ॥४१॥ 


॥ कामरैयाल्यागक् समाप्तम्‌ ॥८७॥ 


अधुना सागरचन्द्राज्यानकमारभ्यंते । तश्बेद्म-- 
बारवईए बलदेवपुत्तनिसदस्स नंदणो मइमं । सागरचंदो नामेण आसि निस्सेसगुणभवण्ण ॥१॥ 
संबाइकुमाराणं मणप्पिओ सयलसुंदरावयवो । एत्तो य आसि धणसेणनरवई विस्सुओ तत्थ ॥२॥ 
कमलेंदलसरलनयणा कमलामेलाभिधा सुया तस्स । दिल्ना निवुग्गसेणंगयस्स नहसेणकुमरस्स ॥३॥ 
वीवाहकज्जसज्जम्मि परियणे नारओ नहयलेण । पत्तो नहसेणंते न जाव सम्माणिओ तेणं ॥9॥ 
ताव पउट्टो संतो सागरचंदस्स मंदिरं पत्तो । सम्माणिय पुट्टो कहसु कि पि भयवं ! मम5च्छरियं ॥५॥ 
सो भणइ वच्छ ! अच््छरियमेरिसं तुह कहिज्जद इहेव | कमलामेला धणसेणकल्या अत्थि रुइदरंगी ॥६॥ 
नियरूवविजियअमरी भमरीनिउरुंघबकसिणघणकेसा । कुमरेण तओ भणियं भयवं ! सा मम कहं होही ? ॥७॥ 
न मुणेमि त्ति पयंपिय कमलामेला सयासमल्लीणो । तो तीए सम्माणिय सविणयमाभासिओ एवं ॥८॥ 
भयवं ! अच्छरियं क़िंपि कहसु तेणावि जंपियं वच्छे ! | दिट्ठ॑ं अच्छरियमिमं इहेव नयरीए मज्झम्मि ॥९॥ 
रूविजणसिरोरयणं सागरचंदो जयत्तए एसो । अवरो कुरूबिचूडामणी पुणो एत्थ नहसेणो ॥१०॥ 
सोऊण तमणुरत्ता सागरचंदे नरिंदकुमरी सा | नहसेणम्मि विरत्ता चंचलचित्ताउहवा नारी ॥११॥ 
गंतुं सागरचंदस्स अक्खियं नारणण सा कुमरी । त॑ पह अणुरायपरा तं॑ सोउं सो वि अणुरत्तो ॥१२॥ 
तं॑ चिय कुमरी चिंतइ चित्तह रूवेहिं तस्स भूवलूयं । तो विमणदुम्मणो सो दिद्ठों संबेण साममुहो ॥१३॥ 
परिहासेणं पिट्टीए तस्स ठाऊण तेण नयणजुयं । पिहियं नियकरजुयलेण तयणु तेणेबमुल्लवियं ॥|१४॥ 
कमलामेल त्ति तओ भणियं संबेण ईसि हसिऊण । नाहं कमलामेला कमलामेलो अहं किंतुं ॥१५॥ 
तेणुत्त जइ एवं ता तं॑ तुममेव मज्क मेलेहिं। कमलदलदीहनयणं कमलांमेलं मणोमिमयं ॥१६॥ 
कुमरेहिं सुरं पाइय अब्भुवगच्छाविओ इमं संबो । विगयमओ पुण चित कहमेयमहं करिस्सामि ? ॥१७॥ 
पेत्तणं पन्नरत्ति पज्जुज्ाओ कुमारपरियरिओ | गंतृणुत्ञाणे नारयस्स सो भिन्दद रहस्सं ॥१८॥ 
परिणयणकज्जसज्जे नहसेणे नारएण लूग्गदिणे | हरिऊण सुरंगाए कुमरी नेऊणमुज्जाणे ॥ १९॥ 
परिणाविओ य सागरचंदो चिट्ठंति तत्थ कीलंता । विज्ञाहररूवेणं इभो य घधणसेणभवणम्मि ॥२०॥ 
निउणं निरिक्खिया वि हु कुमारी दिद्ठा न तेसि लोएण । तत्तों मग्गंतेहिं सच्चविया तम्मि उज्जाणे ॥२१॥ 
कहिओ य वासुदेवस्स वहयरो सो वि कोवदट्टोट्टी । सन्नद्धवद्धकवओ उज्जाणम्मि समणुपत्तो ॥२२॥ 
संबाइकुमारे्टि रणंगणे गुरुबलं पि कन्हबर्ूं । निज्जिणियं तो पत्तो हक्कतो वासुदेवो वि ॥२३॥ 
संहरियखयररूवो संबो चलणेसु निवडिओ तस्स । सागरचंदस्सेव य दिल्ला कन्हेण सा कुमरी ॥२४॥ 
नहसेणसयणवग्गो खमाविओ सो पुणो सकोवमणो । मग्गइ छिड्डाणि तओ सागरचंदस्स हणणत्थं ॥२५॥ 
सागरचंदो वि पुणो अहिणवजोव्वणमणोहरंगीए । तीए सम॑ विसयसुहं उबभुंजंतो गमइ काल ॥२६॥ 
अह अन्नया जगत्तयजणसरणो तियसकयसमोसरणो । पयडियमुणिजणचरणो कमलोवरिनिहियनियचरणो ॥२७॥ 
निज्जिणियसयलकरणो पयासियासेससाहुगुरुकरणो । सुसिणिद्धबहलकज्जलतमालदलूसन्निभो भयवं ॥२८॥ 
सिरिनेमिजिणो उज्जितपन्वए पव्वए समासरिओ । निस्सेसजायवेसुं पणमिय तत्थोवविट्ेंस ॥२९॥ 
धम्मकहापज्बंते सागरचंदेण नमिय नेमिजिणं । पडिवज्नो भत्तीए सावगधम्मो समम्गो वि ॥३०॥ 


र८, धमममंशजनप्रबोधनगुणवर्णनाधिकारे पादावलम्बाख्यानकम्‌ २७१ 


अह अन्नया य पडिमापडिबन्नं तं मसाणभूमीए । दटदु नहसेणेणं चिंतियमिमिणा जहा अज्ज ॥३१॥ 
पुज्जिस्संति अवस्सं मणोरहा मज्ममिय विचितेउं । कुरियं ठयं विहेउं नहसेणेणं सिरे तस्स ॥३२॥ 
भरिओ पज्जलियचियाअंगाराणं तओ य स महप्पा । जिणवयणभावियमई सम्म॑ं अहियासिउं रूग्गो ॥३३॥ 
इह इयरजलणजणिया वियणा तुह केत्तिया इमा जीव ! । सहिया वज्जग्गिकया अणेगसो नरयपुढवीसुं ॥३४॥ 
मा कुणसु कोवलवमवि निमित्तमेत्ते इमम्मि रे जीव ! | अवरज्ञझंति जओ तुद पुव्वक्यदुकयकम्माणि ॥३५॥ 
एवमहियासिऊर्णं सागरचंदो विसुद्धपरिणामो । मरिऊण समुप्पन्नो तियसो तियसालए पवरो ॥३६॥ 
॥ सागरचन्द्राल्यानकं समाप्तम ॥5५॥ 
इदानीं चन्द्रावतंसकाख्यानकस्यावसर: । त्च मेताय्याख्यानके भणिप्यत इति अत्र नोच्यते, ग्रन्थगौरवभयादिति । 
धम्मम्मि निच्छियमई जह एए धम्मसाहगा जाया। 
अन्ने वि हु होंति तहा ता एयगुणेहि भवियव्बं ॥ 
यद्यप्यनल्पगृहपासपरिग्रहाता भोगोपभोगसुखगृद्धियुजो ग्रहस्था: । 
केचित्‌ तथापि दृढधमतया गुणज्ञा मोक्ष महागुणममी इच साधयन्ति ॥ 
॥ इति श्रीमदाप्नदेवसूरिविरचितवृत्तावाध्यानकमणिकोशे धमप्रियत्वादिगुणवणन: सप्तर्विशतितमो5घिकारः समाप्त: ॥२७॥ 


5-०5 ०८८८ 


[ २८. धमंम्मज्ञजनप्रबोधनगुणवर्णनाधिकारः ] 


एते प्रियधमंत्वादिगुणयुक्ता धर्मनिश्चये सति मोक्षसाधका जाता:। ततश्च न केवल तत्परिज्ञाने आत्मनः गुणों जायते । 
कि तहिं ? परप्रतिबोधनमपि भवति । अमुमथममिधित्सुराह-- 


धम्मद्ुनिउणबुद्धी गिही वि बोहिंति दहुजण्ण धम्मे । 
पायावलंब-रयणत्तिको डि-मंसकयनाएंहिं ॥३७॥ 
अस्या व्याख्या--धर्म एवं शेषपुरुषार्थंजनकत्वेन वस्तुतो5र्थ:--पुरुषार्थों धर्मारथंः, तस्मिन्‌ निपुणबुद्धयः-निश्चितधियः 'गिही 

वि! त्ति गृहिणो5पि 'बोधयन्ति' [ धर्म ] धममार्ग योजयन्ति बहुजन” प्रभूतलोकम्‌॥ दृष्टान्तानाह--पादस्य-लिखितवृत्तचतुभोग- 
भूयोदिखण्डस्य अवलम्बनं--शाखादेबंद्ध्वा मोचनं पादावरूम्ब: स च, रलानां तिल्रश्व ताः कोट्यश्व रलत्रिकोटयः ताश्व, 
मांसक्रयश्च --मूल्येन मांसग्रहणम्‌ ते तथोक्ता:, त एवं ज्ञातानि---दृष्टान्ता इति गाथासमासाथ: ॥ व्यासाथस्त्वाख्यानकगम्यः । तानि 
चामूनि | 
तत्नापि क्रमप्रापं पादावलस्बा ख्यानकम्‌ । तथ्चेदम-- 


कम्मि वि नयरे कुरुचंदनरबद्दे नरवरिंद्नयचलणो । देव-गुरु-धम्मतत्ते सययं संपन्नजिन्नासो ॥१॥ 

तस्स य रज्नो रज्जाइचितगो मुणियसुइसमायारों । नामेणं चडरमई चउराणणसन्निभो मंती ॥२॥ 

तेणडन्नया तहाविहगीयत्थगुरूण पायमूलम्मि | सम्म॑ परिक्खिऊणं धम्मम्मि पइट्टिओ अप्पा ॥३॥ 

नाय॑ं च इमं रज्ना चिंतियममुणा ममावि जुत्तमिणं । देवो वि पृयणिज्रो पहट्टिओ जेण पत्नाण ॥४॥ 
भणिओ रज्ञा मंती सायरमेगागिणा वि कि धम्मी । अंगीकओ महायस ! ? ममावि जुत्तं तमायरिउं ॥५॥ 


तो भणियममच्चे० देव5म्हे वणियजाइणो धम्मो | जह तह होउ न दोसो देवस्स परिक्िखिउं जुत्तं ॥६॥ 
३१ 


२४२ 


जओ--- 


उक्त च--- 


आख्यानकमणिकोशे 


रज्ञा भणियं तं चिय बुद्धीए त॑ परिविखरउं सम्मं | धम्मियजणं च पुच्छिय ठावसु म॑ सव्वहा धम्मे ॥७॥ 

जइ एवं तो जुत्तं सब्वे पासंडिए सधम्मरए । वाहरिऊण वियारसु धम्मं पायावलंबेण ॥|८॥ 

तत्तो “सकुंडलं वा वयणं” इच्चाइ भुज्बखंडम्मि | आलिहिउं वंसग्गे पलंबिउं भाणियं रज्ना ॥९॥ 

जो पायमिमं लद्घु' पूरियवित्तं सकव्वसत्तीए | रंजइ रायाणमिमं तस्सेव य होइ सो भत्तो ॥१०॥ 

इय सोऊणं सब्बे वंसग्गाओ पगिण्हिउ' पाय॑ । पूरेऊण्ं वित्त समागया रायअत्थाणे ॥११॥ 

आसीवायं दाउं कमेण भट्टाइया समुवविद्ठा | पढमं चिय भट्ठेणं रज्ना भणिएण पढियमिमं ॥१२॥ 

कणत्थमिक्खाए गएण दिद्ठा, सुवन्नवन्ना जजमाणजाया । वक्खित्तचित्तेण न सुट्ठनायं सकुंडलं वा वयणं न वेति ॥१३॥ 
तयणंतरं च सइवो रज्ना भणिओ तवरिस ! तं पढसु । रज्नाइट्टं नियय॑ वित्तमिमं जंपह जडी वि ॥१४॥ 

भिक्खाभमंतेण मएज्ज दिद्ठा माहेसरी पिहुलनियंत्रबिबा । वक्खित्तचित्तेण न सुटठु नायं सकुंडलं वा वयणं न वेत्ति ॥१५॥ 
तयणंतरं च भणिओ रत्तंबरनिवसणो सुगयसिस्सो । त॑ भणसु बुद्धदेवय ! पयाणुरूवं रहय कव्वं ॥१६॥ 

मालाविहारम्मि मए<ज्ज दिट्ठा उवासिया कंचणभूसियंगी । वक्खित्तचित्तेण न सुट्दुनायं सकुंडलं वा वयणं न वेत्ति ॥ १७॥ 
तत्तो पदच्चक्खपमाणगज्क्पंचभूयमयवत्ती | भणिओ नाहियवाई पढसु तुम पि हु सकयकव्वं ॥१८॥ 

भिक्‍्खाभमंतेण मए5ज्ज दिट्टू पमयामुहं कमलविसालनेत्तं | वक्खित्तचित्तेण न सुटठु नायं सकुंडलं वा वयणं न वेत्ति ॥ १६॥ 
एत्तो वि य भवहृणा भणाविओ कविलदंसणवयत्थो | त॑ं भणसु भगवभयवं ! भव्वंकव्वं समइरइयं ॥२०॥ 

फलोदएणम्हि गिहं पविट्ठो, तत्था55सणत्था पमया मे दिद्ठा | वक्खित्तचित्तण न सुट्ट नायं, सकुंड् वा वयणं न वेत्ति ॥२१॥ 
तो सारेयरभाव॑ कब्वाणं पुच्छिया सहावइणो । भणियं तेहिं विसेसं वयमेयाणं न पेच्छामो ||२२॥ 

जम्हा नरिंद ! वक्खित्तचित्तया फडमिमेहिं वागरिया | सो य पमाओ तेण य सह धम्मो चितणीयमिमं ॥२३॥ 

तयणंतरं च रज्ना पलोइय॑ मंतिणो मुहं भद्द ! | एयाणं कस्स तए पडिवन्नो कहसु मह धम्मी ॥२४॥ 

तत्तो य भणियमिमिणा अन्न॑ पि हु देव ! दरिसणं जइणं । विज्जइ ते पुण केणावि कारणेणं न संपत्ता ॥२५॥ 
समतिण-मणिणो समलेटठ-कंचणा तुल्लरंक-रायाणो । अनिययभिक्खातणुवित्तिजीविणी जियअहंकारा ॥२६॥ 
छज्जीवनिकायहिया सज्ञाय-ज्ञाण-संजमुज्जत्ता | वाहरिया वि हु ते इंति नेन्ति वा त॑ न याणामो ॥२७॥ 

रज्ना भणियं वाहरसु ताव पेच्छामि ताण वि सरूव॑ । तत्तो खुड्डुयरूवो वाहरिओ मंतिणा साह ॥२८॥ 

रज्ना नमिठं भणिओ काउं कि मुणसि किंपि तं॑ कव्बं १ | तेणुत्त जाणामो गुरुप्ससाया महाराय ! ॥२९॥ 

जइ एवं ता पूरसु सिलोगमेगं इमं समस्साए | भणियं खुड्डुयमुणिणा भणसु तुम॑ पायमद्धं वा |[३०॥ 

भणिए परिभावेउ' पढियं सब्वेसि टेसि पच्चनखं । त॑ च इम॑ जं मुणिणा वज्जरियं तेसि निरवेक्खं ॥३१॥ 

खंतस्स दंतस्स जिइंदियस्स अज्झप्पजोगे गयमाणसस्स । कि मज्ञ एएण विचितिएणं सकुंडलं वा वयणं न व त्ति ॥३२॥ 
भणिओ रजन्ना साहू विसरिसमेयाण कि तए पढियं ? | तेणुत्त एयाणं गुरुणा वि हु एसिसं वुत्त ॥३३॥ 


उल्लो सुक्को व दो वेत्थ गोलया मद्टियामया | दो वि अब्भेडिया कुड्डु जो उल्लो सोउत्थ रूगगई ॥३४॥ 
एवं रूग्गंति दुम्मेहा जे नरा कामलालसा । विरत्ता उ न ढूग्गंति जहा से सुकगोलए ॥३५॥ 
परितुट्ठेणं रज्ना परिविखं सम्ममप्पणो एयं | पडिवन्नो जिणधम्मो गुणाहिओ सब्बधम्माणं ॥३६॥ 


रुक्खेसु कप्परुवखो मणीसु चिंतामणी जह पहाणो । [अ्न्थाग्रम्‌ू ९०००] अमय॑ रसेसु गोसीसचंदर्ण चंदणेसु जहा ॥३७॥ 
तह पावकम्ममहणो सयलदु हनिवारणो सुहनिहाणं । सब्वेसि धम्मार्ण जिणधम्मो चेव सुपहाणो ॥३८॥ 


॥ पादायलस्बाय्यानक॑ समाप्तम ॥८६॥ 


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श८, धमंममंशजनप्रयोधनगुणवणनाधिकारे मांसक्रयाब्यानकम्‌ २४३ 


इदानीं रत्नत्रिकोटयाख्यानकं व्याख्यायते । यथा-- 
नयरे सिरिरायगिहे विहरंता फेवि आगया थविरा । दिद्वपयत्था पालियमहव्बया पवरगोव व्य ॥१॥ 
आजम्मं॑ भिकखयरो रायगिहजणस्स परिचिओं एगो। कम्मयरो पडिबुद्धो पव्व३ओ तेसि पासम्मि ॥२॥ 
अह सो सिरिमणुपततो अहिणववत्थाइमूसिओं संतो | इंसरजणपणिवइओ जाओ जिणधम्ममाहप्पा ॥३॥ 
तो इयरजणो पमणइ एसो सो अम्ह गेहकम्मयरो । इच्चाइवयणसवणा दूमिज्जइ सो5हिय॑ हियए ॥९॥ 
तो सो असमाहिजुओ गुरूहिं पुट्टो तयं भणइ दुकखं | तो तस्स समाहिकए विहरिउकामे मुणी दट हु ॥५॥ 
भणियममएण भयवं ! किमेस किर सिग्धमेव य विहारों ? | कहियम्मि कारणम्मि अभयकुमारेण संलत्त ॥६॥ 
जह एवं ता चिद्दृह एयस्ये सुत्थयं करिस्सामि | भणियं गुरूह्ि सावय ! जणाण कूवाण य मुहाणि ॥७॥ 
बंधे को सकइ ? तेणुत्तं बुद्धिविलसियं मज्क । पेच्छह पच्छा भयवं ! ज॑ जुत्त त॑ करिज्ञाह ॥८॥ 
इय भणिऊणं चउहृइ्यम्मि रयणाण तिन्नि कोडीओ । उक्कुरुठाबिय छोयं जाणावइ पडहयपयाणा ॥९% 
अभयकुमारों रयणाणि देइ इय आगयम्मि जणनिवहे । गिण्हह रत्रणाणि अहो ! परमेयाए ववत्थाए ॥१०॥ 
परिहरह जो संचेयणपाणीयं तह य जलणमित्थि च । सो गिन्हउ एगं वा दो वा तिन्नि वि जहासत्ति ॥११॥ 
सब्वेहिं वि १रिहरिण भणिया ते अमयमंतिणा छोया । जइ एवं कि पमणह एस मुणी रंककम्मयरों ॥१२॥ 
रंकोउत्थ तुम्ह जणओ कम्मयरों तुम्ह जणयजणओ य । जो घणमेत्तियमुज्कइ सो भण कह भन्नदे रंको ? ॥१३॥ 
एवं ते सिक्खविया सब्बे वि हु मोणमस्सिया छोया । सो वि हु साहू विहरइ समाहिसहिओ गुरूहिं सम॑ ॥१४॥ 
॥ रत्नजिकोटयासल्यानकं समाप्तम ॥८७॥ 
इदानीं मोसक्रयाख्यानकमाख्यायते । तद्यथा-- 
नयरे रायगिह चिय रज्नो सिरिसेणियस्स अत्थाण । जाओ सामंताणं अभयाईणं च मंतीणं ॥१॥ 
विवयंताणं बिवाओ अनायतत्ताण थूलबुद्धीणं । कह वि समग्ध-महस्घयकय्राणविसओ विसेसेण ॥२॥ 
केणाबि हु कप्पूरं कुकुमम्बरेण हेममवरेण । दवीराइयं च केणवि महम्धयं संपर्य कहिय॑ ॥३॥ 
जाव य मंसवियारे महम्धयं मंसमभयकुमरेणं | भणिए सब्बे जंपंति देव ! नेयं घडइ कहवि ॥४॥ 
जम्हा भरियं छब्बगमेगेणं रूवगेण ववहरियं । रज्ना वि हु पडिवन्नं अमओ पुण पत्तियइ नेय॑ ॥५॥ 
अभएणुत्तं कल्ले सब्बमिमं [तुम्ह] पत्तियाविस्सं । तत्तो सरीरकारणमलियिं रज्नो पुरे कहिय॑ ॥६॥ 
आदनल्नो नयरजणो पहाणवेज्जेहिं पुण समाइट्टं | जइ माणुसकालेज्जयजवतिगमेत्तं लहह मंस ॥७॥ 
ता कीए वि जुत्तीप ओसहसहिएण तेण दिन्नेणं । पउराणं पुन्नवसा कया वि पठणो हवइ राया ॥८॥ 
जाव तयं मग्गिजइ न ताव लक्खेण न वि य कोडीए । पुहवीमोल्लेणावि हु न को वि दाउं समुच्छहइ ॥९॥ 
विवयंतो जाव5च्छद् सब्बजणों ताब भणियममणण । भो भो ! 'समम्ध मंसं” ति तुम्ह वयण्ण गय॑ कत्थ ? ॥१०॥ 
पडिवन्न सब्वेहिं वि अभयकुमार॒स्स संतियं वयण्ं । तेणावि हु बुज्ञविया जुत्तीण अगुभवजुयाए ॥११॥ 
सामी-जीवादत्तं तित्थयरेणं तहेव य गुरूहिं । चउविहमदत्तदाणं विगयमलछा जिणवरा बिति ॥१२॥ 
तो सब्बो वि हु लोओ जीवादिन्नं सया असइ मंस | कहमन्नहा न लब्भति देवकज्जे वि तिन्नि जवा ॥१३॥ 
सब्वो वि जणो मग्गम्मि लाइओ एवमभयकुमरेण । धम्मम्मि नायतत्ता एवं बोहंति भव्वजर्ण ॥१४॥ 
॥ मांसक्रयाख्यानक समाप्तम्‌ ॥८८॥ 
एएहिं धम्ममम्गम्मि बोहिया कोविएहिं जह छोया । तह अन्नो वि हु बोहइ भव्वजणं धम्ममम्मविऊ ॥ 
इत्थं विवेकवशतो व्यवहारविज्ञा, विज्ञातधमंगुरु-छाघवचिन्तनाश् । 
सत्तत्त्वनेपुणगुणा ग्रहीणो5पि चित्र, सद्धमंबत्मनि जनानवतारयन्ति ॥ 
॥ इति श्रीमदाप्नदेवस्‌रिविरखितवृस्तावाख्यानकमणिकोशे धर्मममंशशेषजनप्रबोधनगुणवण नो 5 शाविशति- 
तमो<घिकारः समाप्तः ॥२८॥ 


[ २९. भावशल्यानालोचनदोषाधिकारः ] 


अस्य च धर्मेस्य सम्यग्‌ अहणेडप्यनाभोगादिना मालिन्यसम्भवेडपि सम्यग गुरोरालोचनीयम्‌ असम्यगालोचने दोष इत्ये 
तदभिधातुकाम आह-- 


जो सम्म॑ नालोयइ नियसलल्‍्ले सो हु पावह अणत्थं | 
जह माइ-सुया मरुओ रिसिदत्ता मच्छमटलो य ॥३८॥ 


व्याख्या--'य:--कश्चिद्विवेकविकल: 'सम्यग्‌! यथावद्‌ “नालोचयति' नगुरुभ्य: कथयति 'निजशल्य' स्वदश्चरितं 'सः” प्राणी 
प्राप्योति! छमते 'अनथ' व्यसनम्‌ । दृष्ठान्तानाह--यथा” इत्युदाहरणोपन्यासे । 'मातृ-सुतौ” जननी-पुत्रौ 'मरुकः ब्राह्मण: 'ऋषिदत्ता 
तापसकन्या “मत्स्यमन्न:” राजमन्न इति गाथासमासाथ: ॥ व्यासाथंस्त्वाख्यानकै: कथयति । तानि चामूनि । 


तत्मापि प्रथम क्रमायातं माठत-खुताख्यानकमाख्यायते । तश्चेद्म--- 


तथाहि--- 


विशे व्व बहुविहधवे तहाविद्दे कहिं वि सन्निवेसम्मि | अत्यि महेला अडबि व्व दुग्गया सुमयबालसुया ॥१॥ 
सा सव्बया वि ईसरगिहेसु परिप्रणत्थमुद्रस्स | कुणइ कुकम्मं चारइ पुत्ता वि हु वच्छरूवाईं ॥२॥ 

सा य सुयत्थं भोयणजायं काऊण सिक्कयम्मि गया । कस्स वि गेहे कम्मत्थभागओ तम्मि जामाऊ ॥३॥ 
सा कम्मयरी जामाउयस्स न्हाणाइकारिया पढमं । पच्छा पीसण-कंडण-रंधणकिश्वेसु कम्मविया |॥|४॥ 

जाया महई बेला वाउलभावेण तीए भत्ताई । दिल न कि पि तो सा भुक्खिय-तिसिया गया सगिहं ॥५॥ 
त॑ दटदुं मनन्‍्नुइएण तेण पुत्तेण निटठुरं भणिया । तत्थ वि तं कि सूलाए पोइया ज॑ं न संपत्ता ॥६॥ 

तयणु घयसित्तपतञ्जनलियजलणजालासमाणरूवाए । तीए वि तावियाए सुनिट॒टुरं कोववसगाए ॥७॥ 

भणियं तुह पुण कि कट्टिया करा सिक्कगाउ भत्तमिमं । घेत्तण जं॑ न जिमिओ अहयं तु परव्वसा थक्का ॥८॥ 
एवं च तेहिं दोहि वि निकाइयं दुक्वियं वराएहिं । तं पुण मूढत्तणओं कत्थवि नालोइयं कहवि ॥९॥ 

तेसिं दाणरयाणं मणयं सत्ताण मज्मिमगुणाणं । किंचि सुहभावणाएं बइंताणं गलियमाउं ॥१०॥ 

तीए सुओ मरिऊणं भरुयच्छे सेट्विनंदणों जाओ । नामेण बंघुदत्तो उदारयाईगुणावासो ॥११॥ 

माया वि हु मरिऊर्ण धूया रहसायरस्स सेद्टिस्स । नामेण बंधुमई संजाया तामछित्तीए ॥१२॥ 
दुज्जयभवद्विदए विचित्तयाए य कम्मपयईए | परिणयणव्ववहारों तेति जाओ जओ भणियं ॥१३॥ 

भज्जा जायइ माया धया पत्ती पिया वि पुण पुत्तो । दासो जायइ सामी संसारे संसरंताणं ॥१४॥ 
हर-गोरीण व तेसिं मयण-रईइण व सुहेल्लिसव्वस्सं । महुसूयण-कमलाण व परोप्परं वड़िओ पणओ ॥१५॥ 
मोत्तणं पिश्गेहे बंधुमइं बंधुपरियणसमेओ | जलहिम्मि बंघुदत्तो संचलिओ जाणवत्तेणं ॥१६॥ 

विणियद्टिउं कयाणे मणोरहारित्तविढवियधणोहो । जावा5डगच्छ पाउब्भवंतबहुविहवियप्पसओ ॥१७॥ 


एएण सुद्धनायागएण नियभुयविदत्तदविणेण | नियपणईणं पढमं मणोरहे पूरइस्सामि ॥१८॥ 

नियपणइणि च मणहरसब्वालंकारभू सियसरीरं । काउ' पंचपयारं विसयसुहं अणुभविस्सामि ॥१९॥ 
चइऊण सम्ममेयं धम्मद्वार्ण समुद्धरिस्सामि | तो जलहिमज्ञमाए केणइ पावोदयवसेणं ॥२०॥ 

उसरखेत्ते बीयं व भट्ठसीले विसुद्धदाणं व | उवयरियं व खलयणे बिणयविहृणम्मि सत्यं व ॥२१॥ 
निग्गुणविज्ञादाणं व दुद्ठसिस्सोवएसरयणं व । जलहिम्मि जाणवत्तं धणपडिपुन्न॑ विणट्ठं तं ॥२२॥ 

तत्तो विसन्नचित्तो कम्मवसा किंपि पाविउं फलयं । कहकहवि हु किच्छेणं उत्तरिओ जलहितीरवणे ॥२३॥ 
लद्‌धूर्ण चेयन्न जाव य सम्म॑ निरूवइ दिसाओ | ताव य निस्संदेहं विणिच्छियं ससुरपुरमेयं ॥२४॥ 


२६, भावशस्यानालोयनदोषाधिकारे मरकाण्यानकम २४५ 


जाणावियं च केणइ अप्पाणं तेण ससुरबग्गस्स । जावा55गच्छइ ससुरो तयाणणत्थं सपरिवारों ॥२५॥ 
समय बंधुमईए सब्वालंकारभूसियंगीए । ता रयणकणयचुडयविभूसियं रुदरकरजुयलं ॥२६॥ 
छेत्तणं॑ पावमई कोवि हु जूइयरसन्निभो चोरो | आरक्खियभीओ बंधुदत्तपासम्मि संपत्तो ॥२७॥ 
तेणं च धुत्तयाए चितियमिणमेव पत्तकालं मे । मोत्तण तस्स पासे करजुयल निग्गओो चोरों ॥२८॥ 
घेत्तणं सेट्टिसुयं बोरो एसो त्ति कलिय सूलाए | ते आरक्खियपुरिसा रायाएसेण पोयंति ॥२९॥ 
त॑ तेसि दोण्हं पि हु तहेव दुब्बबणविलसियं जाय॑ । थेवस्स वि पेच्छ अहो ! हु दुद्ठया भावसल्लस्स ॥३०॥ 
॥माठ्-खुताख्यानक॑ समाप्तम्‌ ॥८६॥ 
अधुना मरुकाख्यानकमारभ्यते । तचज्चेदम्‌-- 


को वि तहाविहबिप्पो समयायावणरओ रइधवों व्व । मेहुमासपिओ वेयत्तईरमओ तावसो जाओ ॥१॥ 
पंचग्गितवण-तिलहोमकरण-जलण्हाण-तवण-महणाई । निययाणुट्राणरओ तरुदल-फल-कंदमूलासी ॥२॥ 

तहा हि--- 
सिसिरम्मि जले मज्जय आयावइ गिम्हतवणसमयम्मि । वासासु गुहासीणो चिट्ठह सज्ञाणमल्लीणो ॥३॥ 
इय कट्ठाणुट्टाणा गयाइजणरस विस्सुओ जाओ | आवज्ज॑ति गुणा खलु पाएण जणं अमच्छरियं ॥४॥ 
सो अन्नया य वियणे नईए न्हाणत्थभागओ नियइ । जालेण नइृदृहाओ गिण्हंतं मच्छियं मच्छे ॥५॥ 
वेयुत्तविहाणेणं सो पुव्बि मंसभक्खणमकासी । ता सुमरिय तस्स रसं संजाओ असुहपरिणामों ॥६॥ 
चिंतियमिमिणा तइया न ताव म॑ कोइ पेच्छइ अरजन्ने | ता उवसप्पिय मच्छियमेयं मग्गित्तु मच्छमहं ॥७॥ 
भक्खामि मच्छमंसं जइ ता नियमेण होइ वयभंगो । रसगिद्धीए न चएमि अच्छिउं इय विचितेठ' ॥८॥ 
रसबंछाए रसणिदियस्स दोसाण मंदिरित्तणओं | एगागित्तस्स तया भमक्खियमिमिणा5णमिसमंसं ॥९॥ 
अणुचियभक्खवसाओ सो तक्खणमेव पीडिओ गाढं । जररोगेण न किंचि वि चेयइ सो कंठगयपाणो ॥१०॥ 
तत्तो रन्नो जाणावियम्मि वेज्जेण सह समायाओं | तकक्‍्खणमेव य राया दिद्ठो वेज्जेण तयवत्थो ॥११॥ 
पुट्टी नियाणमेसो लज्बाए न किंचि साहिउः तरइ | भणइ य कंद-फलाणं आहारो तावसजणस्स ॥१२॥ 
तो सो वायजरं बुज्झिऊण नेहोवयारमारद्धों । जा काउं जे ताव य दुगुणतरं पीडिओ रोगी ॥१३॥ 
ता परिभावदइ वेज्जो नियाणतत्तं न नज्जए सम्म॑ | तो एगंते काउ पुट्टो वेज्जेण सो एवं ॥१४॥ 
वेज्जा गुरुणो तुल्ला भवंति नायम्मि कीरइ चिगिच्छा | ता भद्द ! साहसु तुम सम्म॑ं पठणो भवसि जेणं ॥१५॥ 
तो लज्ज मोत्तुणं कहियं सब्व॑ जहट्वियं तस्स | तेण वि य तयपुरूव॑ किरियं काउं कओ पठणो ॥१६॥ 

॥ मरुकाख्यानकं समाप्तम ॥६०॥ 


अधुना ऋषिद्त्ताख्यानकमाण्यायते । तश्चेदम्‌-- 
अत्थ अदिद्वोवदवधण-धन्नसमिद्धनामरमणीओ । निस्सेसदेसअवयंससन्निभो मज्ञदेसो त्ति ॥१॥ 
तत्थ5त्थि विलसिररहं रहंगकयसोहसरवराइन्नं । अद्ट्वसयणविरहं रहमद्रणनाम नयरं ति ॥२॥ 
जिणमंदिराइं डिडीरपिंडपरिपंडुराइं रम्माइं | जसपडलाइं व तस्सामियाण रेहंति जम्मि सया ॥३॥ 
जम्मि य मुणिणों परिमुणियसमयसब्भावसुंदरसहावा । विहरंति पायफरिसणपवित्तियासेसधरणियला ॥४॥ 
नियभुयविदत्तघणवियरणेक्वरसिया विसायरहियमणा । अहरीकयकप्पदूदुममाहप्पा सावया जत्थ ॥५॥ 
को वन्निऊण सक्कई गुणनियरं तस्स पवरनयरस्स । सब्वं पि जत्थ दीसइ वसुमइअच्छेरयब्भूयं ॥६॥ 
तत्थ य समत्थि पत्थिवसमत्थजयलच्छिलालसेक्षमणो । निस्सेसगुणावसहो वसुंधराभारधरणसहो ॥७॥ 


१, एकत्र मधुमासप्रियः बसन्तमासप्रिय), अ्रन्यत्र मधुमांसप्रियः । 


२४६ आख्यानकमणिकोशे 


जस्स गुरुविकम5कंतवइरिणो विक्षमारुणनहेसु । संकंता पउरत्तं पावन्ति नमंतसामंता ॥८॥ 

हेमरहो नरनाहो समुद्दपतज्जंतमेइणिसणाहो । रिउवंसजणियदाहो सब्वत्थवियंभियसलाहो ॥९॥ 

तस्स5त्थि रूवलावन्नअमयकुल्ला विसालवरनयणा । वित्थरियमहीसुजसा सुजसा नाम॑ महादेवी ॥१०॥ 
केलिगिहं समलकलाकलावकुलबालियाए वररूवो । तेसिं समत्थि पुत्तो कणयरहो कणयसमवन्नो ॥११॥ 
विसयसुहमणुहवंतो तिवम्गसारं सम॑ं पिययमाए । पालंतो नियरज्जं गमेइ काल महीवालो ॥१२॥ 

एत्तो कावेरिपुरी कावेरितरंगिणीजणियसोहा । अंबरलिहपासाया धण-धन्नसमिद्धजणकलिया ॥१३॥ 
विप्फुरियपउमरायाणि सोत्तिया-संख-विदृदुमजुयाणि । जत्थ जणस्स कुलाइ' तुल्लाइ' नईए कूलेहि ॥१४॥ 
तत्थडत्थि नरवरिंदों सुंदरपाणी जहत्थकयनामों । निस्सेसनमिरनिवमउडर॑यणकिरणच्छुरियबरणो ॥१५॥ 
वासुलदेवी नामेण पणइणी तस्स अत्थि नरबइणो । निम्मलसीलाहरणालंकियदेहा सुहनिहाणं ॥१६॥ 
तीए समत्थि बाला मुहपरिमलहसियकमलवरमाला । सुसिणिद्धकसिणवाला नवरंभागब्मसुकुमाला ||१७॥ 
कंकेल्लिपल्लवारुणकर-चरणा छणमियंकवरवयणा । लावन्नकंतिपरिपुन्नरूविणी रुप्पिणी नाम ॥१८॥ 

सा जोव्वणमणुपत्ता सव्वालंकारभू सियसरीर। । पिउपायपणमणत्थं जणणीए पेसिया बाला ॥१९॥। 
दट्ठरण तय॑ तारुन्नसरललायन्नसुंदरसरीरं । चिंतइ अणुरूवो को इमीए होही गुणेहिं वरो ? ॥२०॥ 
अणुरूववराभावे संबंधो वि हु न सोहमावहइ । ता कि सयंवरं सुत्तिकण दूर्ण्ह रायसुए ॥२१॥ 
जाणावेमि सपणयं ? उयाहु कुलदेवयं पसत्तमणो । आराहेउ' पुच्छामि वंछियं ? सा सयं कहिही ॥२२॥ 
एवं दुहियाचितासमुद्दवसणम्मि निवडिओ राया । अहवा मूलाओ चेव होइ दुहदाइया नारी ॥२३॥ 
एवं नाऊण विसन्नमाणसं नरबह' सुमइनामा । मंती पुच्छइ उब्विग्गमाणसा देव ! कि तुब्मे ॥२४॥ 
तत्तो कहिय॑ रज्ना कुमरीवरलाभसंभवं दुक्‍्खं । तेणुत्त होसु थिरो कयाइ लडद्धोडणुरूववरों ॥२५॥ 

जेण मए5ईयदिणे निसुओ तक्कुयजणेण गिज्बंतो । हेमरहरायतणओ कणगरहो नाम कुमरबरों ॥२६॥ 
चाई सूरो दक्खिन्नमंदिरं सीलब॑ कलानिउणो । ता तस्स देसु जुज्बउ सीहकिसोरेण सह सीही ॥२७॥ 
रज्ना भणियं जह एवमेत्थ कज्जम्मि ता तुम॑ चेव । सिम्धं बच्चसु चिताभारं अवणेसु मह एयं ॥२८॥ 
एवं वुत्तो मंती पसत्थदिवसम्मि पत्थिओ तत्थ । पतद्थुयरायपओयणपसाहणत्थं समणुपत्तो ॥२९॥ 

दिद्टों य गोरवेणं मंती हेमरहनरवर्रिंदेण | भणियं च तेण सविणयमागमणपओयणं रजन्नो ॥३०॥ 

देव ! मह सामिसालो तुमए सद्धि समीहए काउ' । आजम्ममेव संगयमणुरूबाउवच्चजोयणओ ॥३१॥ 


जओ भणियं-- 


इयरह वि सिणेहो सज्णाण जाओ जणेइ संतोसं । कि पुण अवच्चरसंबंधबद्धमूलो महाराय ! ॥३२॥ 

ता जहइ कुछाणुरूवं वयाणुरूवं च महसि वा मेत्ति | ता किज्जउ मह वयणं पडउ घयं सूयमज्कम्मि ॥३३॥ 
ताहे हेमरहेणं कणयरहोी पेसिओ सह बलेण । गच्छंतो संपत्तो अरिद्मणनिवस्स विसयम्मि ॥३४॥ 
अरिदमणेणं कुमरों भगाविओ वज्जिऊण मह विसयं । वच्चसु होसु व सज्जो मए सम॑ समरसंरंभे ॥३५॥ 
कुमरो वि फरुसवयणेण तेण धणियं मणम्मि परिकुविओ । कंडारिओ व्व सीहो सामरिसं भमणिउमादत्तो ॥३६॥ 
रायपहेणं गंतुं न लब्भए केरिसो इमो नाओ १ । न मुयामि रायमग्गं आगच्छसु जुज्कसज्जा हं ॥३७॥ 

त॑ सोऊणं अरिद्मणनरवई नियबलेण परियरिओ । जुज्झेण संपरूग्गो सम॑ं कुमारेण समरम्मि ॥३८॥ 
अब्मिडियनिबिडगुडगडियगयघडा डोयभीसणमयंडे । हयनिवहतिक्खखुरखणियखोणिरयपिहियरविबिंबं ||३९॥ 
रयचलियतुरय[खरखुर रहवररवपसरबहिरियदियंतं । लल्लकपक्पाइक् चक्क पम्मुकद॒ढ हक ॥|४०॥ 
जयसिरिसंगमछुद्धाण ताण सपसायसामिभत्ताणं । दोण्ह वि बलाण जुद्धं बहुजीवबखयंकरं रूम ॥४१॥ 
निदयखग्गवियारियकरिकुंभत्थलगलंतरुहिरेण । पवहन्तनईवुब्भंतजाण-जंपाणदुष्पेच्छ ॥०२॥ 


२६. भावशव्यानालोचनदोषाधिकारे ऋषिदत्ताल्यानकम्‌ २४७ 


कत्थवि य मंस-वसलुद्धसाइणी-पेयसयसमाइन्नं । कत्थह सुरवररमणीनिवहवरिज्ज॑तवीरगणं ॥४३॥ 

कत्थवि करालकरवालछिन्नसिरभमिरभीसणकबंधं । कत्थवि य नरामिसलुद्धगिद्ध-जंबुयगणाइन्न॑ ॥४४॥ 

इय असमंजरूव॑ बहुजीवखयंकरं रणं दटठुं। अरिदमणो कुमरेणं दयाहुुणा एवमालविओ ॥५५॥ 

कि निरवराहजणमारणेण एएण कज्जमम्हाणं ? । तुममहयं चिय नरबर |! जुज्कामो बाहुजुज्शेण ॥४६॥ 
अणुमन्नियम्मि तेणं महीए होऊण बाहुजुद्धेण | कुमरेण विबंधेउ' वसीकओ नागपासेहिं ॥४७॥ 

जिणिऊणेवं मणिओ कुमरेणं सो विपक्खनरनाहो । गिन्हसु रज्जं दिन्न॑ तुज्क मए मन्नसु ममा55णं ॥9८॥ 

सो वि हु माणघणो मणइ मज्क सीसं जिणेसर-मुर्णिदे । मोत्त| न नमइ अन्नस्स निच्छओ एस जा जीव ॥०९॥ 
ताहे अरिदमणनिवों अचयंतो माणगंजणं दुसहं । मोत्तु' तर्ण व रज्ज पव्वहओ गुरुसमीवम्मि ॥५०॥ 

ठविऊण तस्स रज्जे तत्तणयं पत्थिओ पुरो कुमरो । वच्चंतो य कमेणं पत्तो भीमाडर्वि एगं ॥५१॥ 


सा य केरिसा (-- 
कत्थइ सज्ज-उज्जुण-तररू-तमाल-हिंताल-सरलसोहिल्ला । कत्थइ करीर-कणवीर-जंबु-जंबीररमणीया ॥५२॥ 
कत्थवि य सरह-सदूदूल-सीह-गुरुगवय-गंडयाइन्ना । कत्थवि य तरच्छ-मय-5चछमल्लवहुसंचररउद्दा ॥५३॥ 
तत्थ य निवेसिउं सिबिरमेगदेसे दिसाए एगाए | पट्टविया नियपुरिसा पाणीयन्नेसणनिमित्तं ॥५४॥ 
महई वेलाए समागया पुच्छिया कुमारेण | कालविलंबो तुम्हाण किनिमित्तो इमो जाओ ॥५५॥ 
एवं ते परिपुट्ठा नीरन्नेसयनरा निवेइंति | कुमर5म्हे ताव गया तुह पासाओ तुरियगमणा ॥५६॥ 
जलजोयणत्थमेत्तो जोयणमेत्ते सरोवरं दिट्ठं ! बहुतरुवरसंकिन्नं तप्पेरंतेसु वणमेगं ॥५७॥ 
तीरम्मि देवकुलिया अबरं पि हु कुमर ! दिद्वमच्छरियं | अंदोलंती वडपायवम्मि कन्ना सुतारुत्ना ॥५८॥ 
तीए रूव5क्खित्ता पेच्छंता तं ठिया व्ंतरिया | सा वि हु खणंतरेणं विज्वु व्व अदंसणीहया ॥५९॥ 
पुरओं जा वच्चामो ता तीए कुमर ! देवकुलियाए | फल-पुप्फ-कंदहत्थो संपत्तो तावसो एगो ॥६०॥ 
सा वि हु बाला सह तावसेण कंदाइयं तमाहारं | आहारेउं कत्थद सहस त्ति अदंसर्ण पत्ता ॥६१॥ 
तत्तो बयं वलेउं समागया कुमर ! तुज्ञ पासम्मि | एयं बिलंबकारणमावन्नं तत्थ अम्हाणं ॥६२॥ 
बीयम्मि दिणे कुमरों पयाणढर्क दवाविउं सित्रिरे । तुरयारूढो वेगेण तत्थ पुरिसेहि सह पत्तो ॥६३॥ 
दिट्ठ तहेव सुसिणिद्धपत्तसहिएहिं सुहयफलएहिं । संतावहरेहि समस्सियाण वित्थित्नसाहेहिं ॥६४॥ 
सुयणेहिं व नाणाविहतरुवरनिवहेहिं जणियसंतोसं | नंदणवणमिव सग्गम्मि नयण-मणहरणमुज्वाणं ॥६५॥ 
तस्स य मज्ञम्मि सरं बाहुलयाहिं व नीरलहरीहिं । आलिंगइ व्व कुमरं समागयं जं सिणेदेण ॥६६॥ 
निम्मलदलहत्थाहिं नलिणीविलयाहिं भवणपत्तस्स । अम्घं व जं पयच्छ सररुहविसरं कुमारस्स ॥६७॥ 
कलहंस-कुरर-सारस-का रंडवमहुरमणहररवेण । सुहसागयं व पुच्छह कुमरस्स गिहागयस्स सय॑ ॥६८॥ 
महुपाणरत्तमहु यरसुमहुररुणझु णियसुंदर रवेण | जं गायइ व्व कुमरस्स गुणगणं जायगुरुहरिसं ॥६९॥ 
तीरम्मि देवकुलियं नियइ सुतारं नहंगणसिरिं व । समयरमुहं सकन्न॑ सतुले कुंभाभिराम॑ च ॥७०॥ 
पश्चासन्ने वडपायवम्मि अंदोलयम्मि कीलंति । पेच्छइ तहेव पुरिसेहिं वन्नियं कन्नयं एगं ॥७१॥ 
सुरवइसावादत्तोलियं व सग्गंगणा [पुटवि]वासं । रमणीयवणे रमणत्थमागयं नायकन्नं व ॥७२॥ 
उज्जाणनिवासिणिदेवयं व सुंदरसरोवरसिरिं व | तत्थतवोवणलूच्छि व ललियविज्वाहरसुयं व ॥७३॥ 
तीए य रूव-लायन्नपुन्नतारुत्ममणभवणो । जा नियद तय॑ निष्फंद्कोयणो वणल्यंतरिओ ॥७४॥ 
ताव सहस त्ति निप्पुन्नपुरिससंपत्तमवणलच्छि व्व । कत्थवि गया न नज्जह सपिवासस्स वि कुमारस्स ॥७५॥ 
तत्तो तद्ठाणाओ उट्देंडे विसइ देवकुलियाए | दिट्ठो य तत्थ कुमरेण मणहरों तावसो एंतो ॥७६॥ 


१, गुरुवर्घगंड ० रं० । 


शड८ 


आख्यानकमणिकोशे 


सणियमहामहडिट्टी जराए जज्जरियसिढिलसब्बंगो । सारयससहरनिप्पंकपलियसंपुन्नपुन्नतणू ॥७७॥ 
उब्बद्धजडा जूडो पभूयफल-पुण्फसिरिसमाउत्तो । सठणसमस्सियमुत्ती पश्चक्रखो कप्परुक्खो व्व |॥७८॥ 
निब्मिच्चसमुद्धघूलियदेहो सरयव्भ[सरिस]भूईए । न॑ नज्जह सत्धंगं समस्सिओ पुत्रलच्छीए ॥७९॥ 
विप्फुरियासमसत्ती रवि व्व पयडियपयत्थसब्भावो | सुहसोमयाए भवर्ण अमयकरों सारयससि व्व ॥८०॥ 
पालियनियमज्जाओ बहुसत्तसमस्सिओ जलनिहि व्व । मेरु व्व गरुयमुत्ती गिरिपवरों लोयमज्भत्थो ॥८१॥ 
पत्चासन्ने पत्ता सहसा अब्भुट्टिओ कुमारेण । पणमिय पाए भणियं भयवं ! वड़उ तवो तुज्ञ ॥८२॥ 

सुहभागी होसु तुम कुमार ! दाऊणमेवमासीसं । उवविट्टी वित्थारियसियपउमें रायहंसो व्व ॥८३॥ 

कुमरो वि हु तप्पुरओ पवित्तपउमासणे समासीणो । पुट्टो य ताबसेणं कुमार ! कत्तो तुहागमणं ९ ॥८४॥ 
कत्थवि किर गंतव्बं ? इय पुद्ठे तेण पणइपवणेणं । सब्बो नियवुत्ततो कहिओ कणगरहकुमरेण ॥|८५॥ 

तो तावसेण भणियं वट्ठ३ देवच्वणस्स मह वेला | इय जंपियम्मि मुणिणा पणमित्तु समुद्दिओ कुमरो ||<६॥ 

त॑ चेव कन्नयं नियइ निद्धनयणेहिं तरुखयंतरिओ । पेच्छइ भक्रखंतिं वणफलाणि सह तावसेण तयं ॥८७॥ 
खणदिद्दनट्वरूवं एवं त॑ पहददिणं पि पेच्छंतो । अच्चणियं कुणमाणो निरंतरं देवकुलियाए ।।८८॥ 

विणयाइएहिं त॑ं विद्धतावसं किमवि पज्जुवासंतो । अणुजाणाविय कइयवि दिणाणि तत्थेब संचसिओ ॥८९॥ 
अन्नम्मि दिणे सो विन्नवेइ तं॑ तावसं विणयपुव्बं । भयवं ! निवसइ इह कावि कन्नया तावसवणणम्मि ॥९०॥ 

सा कइ्या वि हु दीसइ खणेण विज्जु व्व होइ अद्दस्सा | ता कहसु तीए वइयरमिय पुद्ठी चिंतहइ मुणी वि ॥९१॥ 
नूणमिमीए रोयइ एस कुमारों मणम्मि ससिणेहं । तेण<5प्पाणं पयडह कहेमि तो तत्तमेयरस ॥९२॥ 

भणियं च तावसेणं इमीए कन्नाए वहयरं सोउं | जइ अत्थि कोडयं तुह ता अवहियमाणसो सुणसु ॥९३॥ 
अत्थि धण-धन्न-मणि-रयणपु न्नपुन्नावणा वरणियसुहया । नद्ठावया वि सइ मत्तियावया नाम नयरि त्ति ॥<४॥ 
तत्थ य राया निसिउम्गखग्गदारियविपक्खसंघाओ । नामेण नयगुणब्नरियमणुस्ससेणो वि हरिसेणो ॥<५॥ 
पेच्छयजणाण रूवाइएटिं सययं पियाणि जणयंती । निम्मलगुणेहिं नामेण तस्स पियदंसणा भज्जा ॥२६॥ 
विसयसुहमणुहवंतस्स तस्स सह तीए हिययदइयाए । निज्जियविपक्खवग्गस्स जंति दिवसाणि नरबइणो ॥९७॥ 
नवरं दुक्खमसज्झं समत्थि तस्सेगमेव सुहनिहिणो । जं दुब्बहरज्जघुराधरणखमो नत्थि से पुत्तो ॥२८॥ 

तत्तो तं सुयचितादु हृदुहियं पासिऊण नरनाहँ । पियदंसणाए भणियं सामि ! तुम कि समुव्बिग्गो ? ॥९९॥ 
कहिय॑ दुक्‍्खनिमित्तं थेवमिमं तीए सामि ! संलत्त | आराहसु कुलदेविं पुन्नंतु मणोरहा तुज्क ॥१००॥ 

सोउं पियाए वयणं सुइभूओ सुद्धबंभयारी य। करकलियनिसियखर्गो धवलाहरणो धवलवसणों ॥१०१॥ 
सुयलाभनिच्छयमदई पुरओ कुलदेवयाए पुहदसो । संथरियदब्भसयणों थकों कुलदेवएकमणो ॥१०२॥ 

जा जंति तिन्नि दिवसा वज्जियपाणा-डसणस्स नरवइणों । तो सियवत्था-55भरणा पुरओ कुलूदेवया पत्ता ॥१०३॥ 
कि वच्छ ! बवसियं ते साहसमेयारिसं विसमकर्ज ? | जंपइ राया त॑ चेव मुणसि मणवंछियं मज्ञ ॥१०४॥ 
तीयुत्तं जमविहियं सुरा वि सत्ता न चेव त॑ दाउ । जं पुण बिहियं त॑ बच्छ ! होइ एमेव पुरिसाण ॥१०६॥ 
राया वि वज्जरइ चक्करस्स न हु देवि ! एस पत्थावों । सज्जो पडिच्छसु सिरं वियरसु वा मज्क वरपुत्त ॥१०७॥ 
इय भणिऊणं दाहिणकरेणमाकरिसिऊण करवालं | वामेण केसपासं धरिउ' वाहरइ सामरिसं ॥१०८॥ 

जइ मह चिरंतणाणं सुमरसि कुलदेवि ! कमवि भत्तिगुणं । ता देखु सुयं इय जंपिऊण कंठे कओ खग्गो ॥१०८५॥ 
मा साहसं ति भणिरीए थंभिओ भूवहस्स भुयदंडो । पयडीहोउं भणियं होही तुह वच्छ ! अंगरुहो ॥११०॥ 
तो उद्ठिओ नरिंदों महापसाओ त्ति भगिय नियभवण्ण । पत्तो पभमायसमए पेच्छह पियदंसणा सुमिणं ॥१११॥ 
किर मह सीहकिसोरो उच्छंगगओ सुहं थणं पियइ । इय पेच्छिय पडिबुद्धा सुमिणं साहइ नरिंदस्स ॥११२॥ 
तेणावि हु भज्जाए कहिओ सब्वो वि रयणिवुत्तंतो । सा वि हु तुट्ठा जंपइ दिल्लो देवीए मह पुत्तो ॥११३॥ 


जओ--- 


३३२ 


२६, भावशव्यानालोचनदोषाधिकारे ऋषिद्साल्यानकम २४६ 


तत्तो सुहंसुहेणं गब्म॑ परिवहह जायसंतोसा । अद्भद्ठमदिवसाणं नवन्ह मासाणमुबर्रि सा ॥११४॥ 

पसवह पहाणपुत्त सोहणतिहि-गह-मुहुत्त-रिक्खेसु । वद्धावणयं काउं दिन्न॑ नाम॑ अजियसेणो ॥११५॥ 

अन्नम्मि दिणे राया जिओ व्य कम्मेण गुविल्भवगहण । एयम्मि वण खित्तो अगप्पवसएग तुरएण ॥११६॥ 

दिद्ठी य विस्समभूई नामेणं तावसो परमजोगी । राया वि तस्स पासे धम्मं सोऊण पडिबुद्धों ॥११७॥ 

एत्थंतरम्मि पत्तं तयाणुसारेण राइणों सेन्नं | तो तेण दवउलिया कारबिया गुरुकण एसा ॥११८॥ 

तत्तो य विस्सभूई विज्नत्तो राइणा बर॑तेण | भयवं ! खमसु विरूवं तवोवण जं मए बिहिय॑ ॥११९॥ 

दिल्ले य तेण रत्नो गारुइमंते अवितमाहप्पो । पत्ता य मत्तियावइनियनयरिं नरवरिंदरं वि ॥१२०॥ 

अह अन्नया य पेच्छइ करभीजुयलं दुवारदेसम्मि । तत्तो उत्तरिऊणं दन्नि नरा विन्नविति इमं ॥१२१॥ 

देव5म्हे तुह पासे रज्ना पियदंसगण पढ्वविया । दद्टा कहवि पमाया मह कन्ना उग्गभुबंगेण ॥१२२॥ 

ता काऊण पसाय॑ गारुडमंतेण कुणसु तं॑ पउणं । त॑ सुणिय मंजुलावइनयर्रिं संपत्थिओं राया ॥१२३॥ 

पत्तो य तहिं समयं तन्नयरीएण खणेग नरनाहों । दिद्लो य रायछागों सह नरवइणा विसन्नमणो ॥१२४॥ 

अह भणइ नरबरिंदो तुह कन्न॑ पन्नवेमि विसपुन्नं। इय धीरविओ राया तेण वि मंतप्पओगेण ॥१२५॥ 

उद्टबिया निवधूया उच्छंगे ठाविकण नियपिउणा । पुट्ठा पसन्नवयणा कि तुह बाहइ सरीरम्मि ? ॥१२६॥ 

ताय ! न किंपि हु बाहइ परमेसोी कि बहू जणो मिलिओ ? | तृररवो वि किमेत्ता १ तो भगियं तोएणु जणएण ॥ १२७ज॥ 

बच्छे ! तं॑ भुयगेणं अहेसि दट्ढा मय त्ति काऊण | आणीया पेयवण चियाइयं पठणियं एयं ॥१२८॥ 

दिल्ञा य तुज्स पाणा निकारणवच्छऊुण नरबदणा | एुएण मज्क पुत्नाणुभावओं भणियमईण ॥१२०९॥ 

जइ एवं ताय ! मए वि निययपाणा महाणुभावस्स । दिल्ला इमस्स जगएग जंपियं जुत्तमयं ति ॥१३०॥ 

हरिसेणेण वि भणियं सुणसु महाभाग ! गुरुसयासम्मि । पत्वइउमणों अहय॑ तवोबणं गंतुमिच्छामि ॥१३१॥ 

त॑ नियधूयं वियरसु कस्स वि अन्नम्स तं निसामेउं । भणियं पिश्रमइनामाए तीए कन्नाए वयणमिणं ॥१३२॥ 
मज्क सरीरे एसो ऊग्गइ जलूणों व तइयआ नत्थि । त॑ निच्छयं वियाणिय दिल्ना तेणाबि परिणीया ॥१३३॥ 

त॑ घेत्तणं नियनयरिमागओं तीए सह सिणह्ण । विसयसुहं भुंजंतीं गमेह काले निरुओ्बिग्गो ॥१३४॥ 

अह अन्नया य सुमरियगुरुवयणों भणइ पियमइं राया । त॑ गिण्हसु पउरधण्ण चिट्ठसु गहम्मि पसयच्छि ! ॥१३५॥ 

अहय॑ भवनिव्विन्नों संपह तावसबयय पवच्ञामि | अंसुजलूभरियनयगा सा वि इमं भणिउमाढत्ता ॥१३६॥ 

तरुविरहे कइया वि हु चिट्दृइ कि तहसमस्सिया छाया ?। अहमवि उुद् पिय ! विरहे निवसामि गिहे न ऋया वि ॥१३७॥ 

ता पुणरवि वयगमिमं दुह्दजणयं सब्बहा न वत्तव्व । इण्हि त॑ चेव गई मई वि मह सामि ! त॑ चेव ॥१३८॥ 

इय तीए मुणिऊणं विणिच्छयं नेहपासपडिबद्धां । सकलत्ता संपत्तो एयम्मि वणम्मि सो कुमर ! ॥१३९॥ 

दिट्ठी य विस्सभृद भणिओ संविग्गमाणसेण इमी । देसु मह तावसबयं भयवं ! संसारभीओ हं ॥१४०॥ 

तेणावि हु सो राया विहिणा पत्वाविओं कुणइ किरियं | सत्ब॑ पि तावसाणं तबोबणे एल्थ भवभीर ॥१४१॥ 

अह देवीण अनाओ गब्भी आगमणसमयसंभूओ । परिवड्डिउ पवत्तों सा पुद्ठा कि इमं भद्दे | ? ॥१४७२॥ 

तीए वि हु संलत्तं बयं पवन्नाए सामि ! न हु एतो । ता कि कीरड इणिंह ? कम्मगई का वि मह एसा ॥१४३॥ 

तेणावि तावसेणं विनितियं मज्य ताब संजायं | गरुय॑ कर्ंकमेयं घिरत्थु ! मह जीवियब्वस्स ॥१४४॥ 


अलियं पि हु वयणिज्जं गहुयाणं दूमए हिययमहियं । ता कि कोरेमि संपड ? जामि न नज्ञामि जत्थ अहं ॥१४५०॥ 
मुणिषिक्कारहएणं पओयणं कि ठिएण एत्थ मए १ । चिताउरस्स एवं समागया भीसणा रयणी ॥१४६॥ 

नाओ एस कओ वि हु कुलबहणा गब्भसंभवों तस्‍्स । चइडं वर्ण सय॑ं चिय अन्नत्थ गओ सपरिवारों ॥१४७॥ 
ताहे सो अहिययरं मणभ्मि संतावमुव्वहइ गरुय॑ । पेच्छह पावेग मए मुणिणो निद्रासिया गुणिणों ॥१४८॥ 


२४० आश्यानकमणिकोशे 


ता कि करेमि संपइ ? कत्थ गओ निब्वुइं लहिस्सामि ? | अहवा वि पावियव्वं अवस्स पावह धुवं जीवो ॥१४९॥ 
जओ-- 

दूरं बच्चह पुरिसो तत्थ गओ निब्वुइं लहिस्सामि | तत्थ वि पुव्वकयाई पुत्वगयाईं पडिक्खंति ॥१५०॥। 

जं जेण पावियव्वं रुहं व दुक्खं व कम्मनिम्मवियं । त॑ सो तहेव पावइ कयस्स नासो जओ नत्यि ॥१५१॥ 

धीराण कायराण व अणत्थरिंछोलिया पडइ देहे । सा सहियव्व! न सहइ बला वि दहवों सहावेइ ॥१५२॥ 

ता कि वियप्पिणणं एल्थेव तवोवणम्मि निवसंतो। पालेमि सुद्धसीलं विहिणा नियपणइरणि एयं ॥१५३॥ 

अह सब्वगुणविसुद्धे दिवसे वणदेवयं व दित्तीण | उज्योयंती वणदसदिसाउ वरदारियं देवी ॥१५४॥ 

सा पियमई पसूया पसत्थलक्खणविराइयावयवं । अह तत्थ कम्मवसओ जं जाय॑ त॑ निसामेह ॥१५५॥ 

अणुवियडवत्थाणाओ अशुचियपावरण-भोयणाओं य । परिचारयविरहाओ पंचत्तं पियमई पत्ता ॥१५६॥ 

तत्तो विसन्नचित्तो तश्या सो तावसो समाहीए । किकायव्वविमढों पडिओ चिंतासमुदम्मि ॥१५७॥ 

रे जीव ! तर भवभीयमाणसेणं इमं वयं पत्त । जाव य धम्मगुरूहिं धम्मसहाएहिं य विउत्तो ॥१५८॥ 

एसा वि पेमपत्तं समाहिहेऊ पिया मया जीव !। इण्हि कह कुणसि तुम॑ तद्दिणजाय॑ इम॑ बालं ? ॥१५९॥ 
अहवा-- 

ज॑ एड अवसरेणं परिवाडीए सुहं व दुक्‍्खं वा । तं सहह अदीणमणा जाव पसाय॑ विही कुणइ ॥१६०॥ 

इय भावितो संठाविऊए अप्पाणमप्पण चय । मणयं समाहिवसओ देह मणं पत्थुयत्थम्मि ॥१६१॥ 

पालइ महुररसेहिं पहाणतरुसंभवेहिं य फलेहि । त॑ बालियं पयत्ता वसीकओ नेहपासे हिं १६२॥ 

अह कम्मि वि पत्थावे पसत्थरूवे निवेसियं नाम | जमिमा रिसिप्पसाया जाया ता होउ रिसिदत्ता ॥१६३॥ 

सा वि हु कम्मोदयओ कुमार ! विद्धि गया इमम्मि वणे । जणयमणाणंदयरी संजाया अद्बवारिसियां ॥१६४॥ 

लायन्नकंतिकलिया अहिणवतारुन्नसुन्दरावयवा । मा कोवि हु अवहरिही इमं ति संजायसंकेण ॥१६५॥ 

निययगुरुविस्सभूईदे सिक्खवियंजणपओगकरणेण ! विहिया अद्दिस्सतणू वणम्मि कीलइ जदिच्छाए ॥१६६॥ 

भणिया तेणेसा कुमर ! बालिया तुज्क कोवि जो पुरिसो । रुचचइ त॑ मह साहसु जेण पयच्छामि तं बच्छे ॥१६७॥ 

कुमर ! तयं हरिसेणं मं चेव य तावसं वियाणाहि । एय॑ पि निव्चियप्पं मह धूयं चेव रिसिदतत ॥१६८॥ 

त॑ सोउं मुणिवयणं कुमरों आणंदनिब्भरो भणइ । भयवं ! तं॑ रिसिदत्तं दंससु मणवल्लहं अज्य ॥१६९॥ 

वयणाणंतरमेव य सब्वालंकारमणहरं का | हरिसेणो नियधूयं दंसद कणगरहकुमरस्स ||१७०॥ 

दिद्ठा य तेण बाला रह व्व मयणेण निद्धदिद्वीएण । सो वि हु ससिणेहाए दिद्वीए तीए सच्चविओ ॥१७१॥ 

सुसिणिद्धदिद्टिपसरं परोप्परं ताणि पेच्छमाणाणि | वच्छत्थलूम्मि विद्धाणि मयणभिल्लेण भल्लीहिं ॥१७२॥ 

तो तावसेण नाथं नृूणमिमीए इमो मणे रुइओ । कहमन्नहाउणुराएण पेसए दिद्विमेयम्मि ? ॥१७३॥ 
जञओ-- 

ज॑ मणरुइए छेया दिट्टि दूं भणंति मिहुणाणं | जं हिययस्स न रुच्चइ तत्थ गया कुणउ कि दिद्टी १ ॥१७४॥ 

गुरुणो पेच्छतस्स वि तेसिं पढमे वि संगमे दूरं । पेच्छसु केरिसमेयरस विलूसियं मयणहयगस्स ॥१७५॥ 

तह कहवि नेहवसओ परोष्परं ताण निवडिया दिट्टी । निव्वत्तरसुहाणीव तीए जायाणि ताणि जहा ॥१७६॥ 
भणियं च-- 

दिद्ठीए चिय सा तेण पिययमा नेहनित्भररसाए। आभासिय व्व आलिंगिय व्व रमिय व्व पीय व्व ॥ १७७॥ 
जओ-. 

दरहसियं संरसकडकि्खियं च॒ वन्नंति पेमसब्वस्सं । मिहुणाणमेगसयणे5वत्थाणं लोगवबहारों ॥|१७८॥ 

तत्तो य तावसेणं पाणिग्गहणं कराविओ तीए । तत्थेव कश्वयदिणे वसिओ तावससमाहिकए ॥१७९॥ 


तहा-- 


भणियं च--- 


२६. भावशद्यानालोय नदोषाधिकारे ऋषिद्शाब्यानकम २५१ 


रिसिदत्ताए लाभे संजाए चिंतियं कुमारेण | अवराए भज्जाए न संपयं किंपि मह कर्ज ॥१८०॥ 

तो नियनयराभिमृहं वच्चंतेणं विणीयविणए्णं | भणिओ तावसससुरो मुयसु म +* ताय ! नियनयरे ॥१८१॥ 

देसु मह किंपि सिकखं पओयणं रुप्पिणीए मह सिद्ध । संपह कलत्तविसए तुह घूयाए कयत्यो5हं ॥१८२॥ 
तत्तो भणियं रिसिणा रच्छीए मा छलिज्जसु कुमार !। बहवो इमीए छलिया। अथिरसहाबाए पावाए |१८३॥ 
मा मज्जसु विज्ञाए जम्हा विज्ञा मयस्स पडिवकक्‍्खो । विनडिज्जंति अणेगे एदए वि वच्छ ! तुच्छमई ॥१८४॥ 
एयं पुण तारुन्न' विवेयवियलाणमंधया भणिया । रूव॑ पि हु उम्माओ रज्जसिरी वि हु कुगइहेंऊ ॥१८५॥ 

कि बहुणा वायावित्थरेण सगुणेसु वहसु मा गब्वं । मइलिज्जंति मएणं गरुयाण वि जेण वच्छ ! गुणा ॥१८६॥ 
तह एय॑ रिसिदत्तं मज्य पसाया अदिद्वदुहलेसं | मा मुंचसु | नयछाय॑ व वच्छ ! विहियावराहं पि ॥१८७॥ 

एवं गमणावसरे धूया वि हु तावसेण सिक्खविया । पइणो सरीरकिश्च सयमणुचिट्ठसु सया वच्छे ! ॥१८८॥ 
मा कश्या वि हु मज्जसु पियपणएणं वियारिया वच्छे ! | पहपणएणं भुल्ला महिलाओ थुवं विणिस्संति ॥१८९॥ 


वच्छे ! विणओ च्िय होइ भूसणं इह नरस्स वि जयम्मि | नारीण पुण विसेसा निश्चपराहीणजम्माणं ॥१९०॥ 
एत्तो चिय कायव्वो निश्चं चिय उवसमो इमाहि जओ । अन्नो वि अणुवसंतो न नंदए कि पुणित्थीओ १ ॥१९१॥ 
अविसिद्दसंगमेण सुपुरिसमग्गं चयंति धीरा वि। अबलाण वराईणं ताण विणासम्मि कि चोज्ज ? ॥१९२॥ 
अणुयत्तिविरहियाणं | वहडंति सुयाइणो पहूणं पि । ससुरकुलायत्ताणं निच्च॑ पि हु कि पुणित्थीणं ? ॥१९३॥ 
दिताण दाणमेव हि संकइ न य परिभवं कुणइ कोइ । दाणेण विरहियाणं न टलूह लोओ करीणं पि ॥१९४॥ 
लोयट्टिहमेत्त चिय विभूसणं कणय-रयणमाईहिं | सीलालंकारो चिय पसाहणं कुलपसूयाणं ॥१९५॥ 

इय पुत्ति | विणय-उवसम-सुसंग-अणुवित्ति-दाण-सत्तीसु । निद्च॑ पि समुज्जुत्ता रक्‍्खेज्जमु सीलसंपत्ति ॥१९६॥ 

सा एवं सिक्खविया पणमिय पिडणों पिणण सह चलिया । कुमरे दढमणुरत्ता सिढिलियनेहा य जणग्रम्मि ॥|१९७॥ 


बालत्तणम्मि पिइ-माइ-भइणि-सहियायणों पिओ होइ । आरूढजोव्वणाणं जुबदैण पिओ पिओ एक्को ॥१९८॥ 
अह पणमिऊण जणयं तवोवणाओ विणिग्गया बाला । मणयं पडिबंधाओ वलियग्गीवं पलछोयंती ॥१९९॥ 


जओ भणियं-- 


अच्छंतु निरंतरनेहगब्भसब्भावसुंदरा सुयणा | सहवासवड्डिया तरुवरा वि दुक्‍्खेहिं मुच्चंति ॥२००॥ 

तत्तो तवोव्णं तीए विरहियं किमवि जणइ रणरणियं | सहस चिय परिचत्त असेसजणमाणणिज्ञाए ॥|२०१॥ 
भवणं व भवणलूच्छीए साहुचित्तं व पसमवित्तीए । विज्ञाएं विउसमणं व निवसिरीए व निवभवर्ण |॥|२०२॥ 
अणवरयपयाणेहिं पत्ताईं पमोयनिथ्मरमणाईं । रज्ना पवेसियाईं महाविभुदए नयरम्मि ॥२०३॥ 

पिउणा परितुद्वेणं, समप्पिओ ताण पवरपासाओ । परिवारों य विणीओ दासी-दासाइओ सब्बो |॥२०४॥ 
तत्तो पहमत्ताए भुंजइ भोए गुणाणुरत्ताए । समय॑ रिसिदत्ताए कणगरहो सुद्धचित्ताए |२०८॥ 

कीलइ गीयकलाए कइया वि हु चित्तकम्मकीोलाए | कइया वि हु पण्हुत्तर-पहेलियाणं विणोएण:॥२०६॥ 
लोयणनिमेसमेत्तं विरहं सोढ़ुं अपार्यंतेहिं | दोहिं पि तेहिमइवाहियाइं वरिसाणि पंच तहिं ॥२०७॥ - 
एत्तो कावेरीए सिरिसुंद्रपाणिणा सुयं रज्ना । जह किर तावसकन्नं परिणेडं कणगरहकुमरों ॥२०८॥ 

वलिओ नियनयरीए ताहे सो रुप्पिणीए बिताए। कोड़ीकओ किलेसेण गमहइ कह कहवि दिवसाणि ॥२०९॥ 
एयावसरे पत्ता सुलसा पव्वाइया परिभमंती । बहुकूडकबंडभरिया पावा परलोयनिरवेक्खा ॥२१०॥ 

कश्या वि हु कन्नंतेउरम्मि सा रुप्पिणीए पासम्मि । संपत्ता परिपुच्छह पणइपरं रुप्पिणिं कन्ने ॥२११॥ 
वच्छे ! कि तुममज्ज वि वररहिया रइसमा वि रूवेण । देवाणं पि हु दुलहं निरत्थयं नेसि तारुन्‍्नं ? ॥२१२॥ 


श्र 


आख्यानकमणिकोशे 


तीए भणियं भयवइ ! मह भत्तारो बसीकओ कहवि | कीए वि तावप्कन्नाए- संपयं कि करेमि अहं १ ॥२१३॥ 

सा वि हु जंपद जइ भणसि तुज्ञ वसवत्तिणि करेमि तये । तो रुप्पिणीए वुत्तं भयवह ! भुवणे वि तुदह कर्ज ॥२१४॥ 
नत्यथि असञ्झं किंचि वि ता मह उबरिं करेवि कारुन्नं | तह कहवि जयसु संपइ समीहिय॑ होद जह मज्झ ॥२१५॥ 
एवं तीए वुत्ता अणवरयपयाणएहि संपत्ता | रहमद्ृणम्मि नयरे दिद्ठों कुमरो सह पियाए ॥२१६॥ 

तो चिंतियमेयाए रिसिदत्तारूवसंपयं दटदुं | एवंविहरूवेणं मोहिज्जइ को न एयाए ९ ॥२१७॥ 

जीवंतीए इमीए सुमिणे वि न रुप्पिणि महइ कुमरों | को अमयपाणतित्तो कंजियमहिलसइ मुक्खो वि ? ॥२१८॥ 
परमेयारिसपावं नरयदुहावहमणज्वचरिया हूं । गुणवंतं पत्तमिमं मारिय कहमायरिस्सामि ? ॥२१९॥ 

इय पुण करुणं काउं ववसामि न साहस॑ इमं कहवि । ता भट्टपइनना हं कह तीए पुरो भविस्सामि ? ॥२२०॥ 

इय चितिऊण तीए करुणावियलाणए कूरकम्माए | सव्वजणक्खयकारी विज्ञाए विउव्विया मारी ॥२२१॥ 
मणमोहणीए विज्ञाए मारिउं रायसम्मयं पुरिसं । रुहिरेणं हत्थमुद्दे रिसिदत्ताए विलिपेइ ॥२२२॥ 

दटूट्रणं॑ तं वश्यरमहमसरूव॑ जणो पयंपेइ । कुमर5त्थाणे पावस्स कस्स किर ववसियं एयं १ ॥२२३॥ 

कुमरो पियाए वयणं दटठु संजायविम्हओ भणहइ । कि तुह चेट्टियमेयं ? ति सा वि जंपहइ न याणामि ॥२२४॥ 
बीयम्मि दिणे तह चेव रायपुरिसं विणासि्् पावा । मुंचह रिसिदत्ताए सयणे नरमंसखंडाईं ॥२२५॥ 

कुमरों वि तयं दट दुं चितइ नणु रक्खसी पिया मज्ञ । सा वि हु पुट्ठा सुद्धस्सहावओ भणइ त॑ चेव ॥२२६॥ 
कुमरों वि ताणि धरणीए गोवए हड्डु-मंसखंडाईं । तहइए वि दिण तह चेव मारिड कुणइ त॑ चेव ॥२२७॥ 

नवरं कुमारछुरियं रुहिरेण विलिपिउं वयइ गेहे । विज्ञाए न सा नज्जइ निग्गच्छंती न पविसंती ||२२८॥ 

कुमरो वि तय॑ छुरियं रिसिदत्ताए पयासिड भणइ । अज्ज पिए ! कि जंपसि ? सा जंपइ पुच्छ मह कम्मं ॥२२९॥ 
पुणरवि य मोहमोहियमणेण सां दढयरं रहे पृद्ठा । कहसु पिए ! सब्भाव॑ तुज्क हियत्थं भणेमि अहं ॥२३०॥ 

जइ तुद्द माणुसमंसे कुओ वि कम्मोदयाओ रसगिद्धी । ता हं पच्छन्नं पि हु एयं संपाडइस्सामि ॥२३१॥ 

एवं भणिया लज्ञाए कि पि ओणयमुही परुज्ना सा । कि तुह पिययम ! पच्छन्नमेरिसं कि कयावि कय॑ ? ॥२३२॥ 
तुमए चिय सच्चवियं तवोवणे मज्क भत्त-पाणाई । जह पुण पच्छन्न॑ को वि कुणइ पहु ! तं न याणेमि ॥२३३॥ 
कुमरो वि तीए दुस्सहविओगजणयं दुहं असहमाणों । सब्बं गोवह पुट्टी य भणइ नाहं वियाणामि ॥२३४॥ 

ताहे रुट्टो राया पुच्छइ नियमंतिणो नयरमज्झे | वइससमेयं न मुणह तुम्हाणं केरिसा बुद्धी ? ॥२३५॥ 

तेहिं वि सविणयमुत्तं तह कह वि हु संपयं जइस्सामो । जह कज्जमिणं जायइ विज्नायं देवपायाण ॥२३६॥ 

इय भणिऊण पवीणा पव्वाया हाइ एरिसे कज्जे | सायरमओ तयं चिय गंतुं पुच्छंति पव्वाईं ॥२३७॥ 

तीए भणिए सब्बं सुत्थमहं संपयं करिस्सामि | रयणीए देवय॑ पुच्छिऊण तत्तं कहिस्सामि ॥२३८॥ 

रयणीए रुहिरेणं रिसिदत्ताए मुहं विलिंपेठउ | अवसोयणि च दाउ' रज्नो पासं गया पावा ॥२३९॥ 

अभय मग्गिय ज़ंपइ रिसिदत्ताचट्टियं इमं राय !। जा जोयावइ राया ता पेच्छह त॑ तह छचब ॥२४०॥ 

तो जायपन्चण्णं रज्ना निस्सारिकण सा बाला | पाणाणमप्पिया मारणत्थमकयावराहा वि ॥२४१॥ 

पाणेहिं वज्कमंडणपुव्वं सा विनडिऊण नयरीण । नीया निद्द यहियएहिं तेहिं भीमे मसाणम्मि ॥२४२॥ 

कत्थइ भल्लुंकियरुदसद्विदृवियकायरजणोहं । कत्थवि य कूरकाल्हुयदाढा विक्कत्तियकरंक ॥२४३॥ 

कत्यवि य मडयवस-मंसपुट्ठवेयालभूरिमयजणयं । कत्थवि य विहियसंकुद्धसमाइणीकिलिकिलारावं ॥२४४॥ 

कत्थवि य पयडडज्झंतमडयदुग्गंधभरियदिसिविवरं । कत्थवि य दूरमुब्भवियवाहुनश्ंतमूयगणं ॥२४५॥ 

कत्थाव य वीरविकिज्वमाणनियदेहमंसखंडलूयं । कत्थवि काबालियकीरमाणवरविज्वसाहणयं ॥२४६॥ 

इय एरिसविहभीसणमसाणमज्झम्मि मुक्किया बाला | सुमरिय कुमरं पलबह पमुक्कलल्लकपोक्कारं ॥२०७॥ 

हा पाणद्र॒य ! हा अमयमइय ! हा निद्धहियय ! हा नाह !। हा जीवियसम ! हा परममहिम ! हा पत्त जयपउम। ॥२४८॥ 


तथा हि-- 


२६, भावषशल्यानालोय नदोषाधिकारे ऋषिद्शाख्यानकम २५३ 


सुसरय ! तुम॑ पि सहसा संजाओं कीस निग्धिणो ? कहसु । एक्क चिय पाणपिया जेणाहं तुज्ञ सुयभज्या ॥२४९॥ 
कत्तो वि हु आगंतुं मंभीससु संप्यं तुमवि ताय !। आजम्मं पाणपिया जेणाहं तुज्स नियधूया ॥२५०॥ 

हा माए ! माए ! पियमह ! कुओ वि सग्गाल्याओं आगंतुं । भयसंभंतमसरणं परितायसु दुह्टियरं दुहियं ॥२५१॥ 
इय एवं विलवंती भीया भयभेरव मसाणम्मि | तायारम्विंदंती पडिया वसणंधकृवम्मि ॥२०२॥ 
तयणंतरम॑न्नुब्भडमिडडीभासुरनिडालबट्टेंहिं । उक्खायनिसियकत्तियविहत्यहत्थेर्हिं पाणहिं ॥२५३॥ 

आ पावे ! कूडकुहेडगाइदोसेहिं भरिय ! हयहियए ! । भक्खसि रज्नो पुरिसे मारेउं रोवसि इयाणि ॥२५४॥ 

रे रे! एयाए पावियाए निक्रुणकूरहिययाए । छिंदृह नासा-कन्ने खग्गेणं लणह सिरकरम्ं ॥२५५॥ 

एवं भीसणवयणेहिं तेहि निब्भच्छिया विवन्नमुही । खरपवणाहयतरुवरल्य व्व परिकंपिईं छग्गा ॥२५६॥ 

हा ताय ! ताय ! हा भाय ! भाय ! मा हणह पायव्डिया हं । घेत्तणा55हरणाईं कुणह दयं मुयह जीवंती ॥२५७॥ 
एत्थंतरम्मि पोणाण मज्मयारम्मि भणियमेगेण । एवंविहमेयाए संभवइ न निम्धिणं कम्मं ॥२५८॥ 

अन्न च सूरमिमं (?) गुणकलियं बालियं हणंताणं । केणावि कारणेणं न वहंति करा क्रिमन्नेण ? ॥२५८॥ 
अणुकूलकम्मपरिणामपेरिओ तीए चेव मायंगो | एगो जंपह जीएण मज्झ जीवउ चिरं एसा ॥२६०॥ 

तत्तो य तेहिं वुत्ता तुममेणणं विभोइया भद्दे ! | गच्छसु जत्थ न नज्जसि जइ पुण ते कह वि दीसिहसि ॥२६१॥ 
तो राया अम्हाणं कुलसंहारं करिस्सह पउदट्ढों | इय तज्जिकण पाणा पेयवणाओं नियत्तंति ॥२६२॥ 
सारिक्खमडयमत्थयमेगं छेत्तण दंसियं रज्नो | पच्चयनिमित्तमेत्तो रिसिदत्ता जाइ भयभीया ॥२६३॥ 

चलियस्स वाउवसओ तरुपत्तस्स वि पर्कंपमाणमणा । भीसणमसाणमज्झे धीराण वि ताससंजणए ॥२६४॥ 

एगागिणी असरणा धीरत्तणवज्जिया सहावेण | पयचारेणं गच्छइ सिरीसपुप्फं व सुकुमारा ॥२६५॥ 

न तहा सा दूमिज्ञइ नियतणुसुकुमारयाए गच्छंती । जह मिच्छारोवियदूसणण हिययम्मि भणियं च ॥२६६॥ 
संतगुणविप्पणासे असंतदोमुब्भवे य जं॑ दुक्‍्खं । तं॑ सोसेइ समुद्दं कि पुण हियय॑ मणुस्साणं ? ॥२६७॥ 

अहवा वि भवावद्टम्मि वष्टमाणं सकम्मुणा जीव॑ | त॑ नत्यि किपि विसम॑ ज॑ न सहावइ विही एसो ॥२६०८॥ 


एयम्मि पराहुत्ते जियाण जणओ वि वदरिओ होइ । बहुदुक्खलक्खनणणी जणणी वि हु जायए बग्घी ॥२६९॥ 

मित्तो वि सत्तभावं पडिवज्जइ संपया वि विवयसमा । सच्चं पि होइ अलियं नओ वि अनओ गुणो दोसो ॥२७०॥ 

एवं परिभावंती विसन्नहियया विमूढदिसियक्का | दक्खिणदिसाए चलिया साहसमवलंत्रिय मणागं ॥२७१॥ 

कत्थवि य वीसमंती तरुवरछायासु कयफलाहारा । विसहंती तिस-भुक्खं निवसंती देसियकुदीसु ॥२७२॥ 

पत्ता पमूयकालेण कह वि किच्छेण तम्मि चेव वणे | दट ट्रण तं॑ पएसं जणयं सरिउं गया मुच्छं ॥२७३॥ 

हा ताय ! कि न पेच्छसि नियदुहिय॑ निवर्डियं दुह्समुद्दे ? | संभाससि कि नतुमं ? तुह पाणपिया अहं आसि ॥२७४॥ 
इय पलवंती असमंजसाईं संधीरिउणमप्पाणं । रे जीव ! कि न बुज्ञसि ? कि मुज्ञसि ? कत्थ सो ताओ ९ ॥२७५॥ 
कृत्थ तुम॑ ? कि मूढा ? जमेस एवंविहा विहिनिओगो । ता नियकयस्स मोक्‍्खे संपह सम्मं सहंतस्स ॥२७६॥ 

जह पविससि पायालं लुकसि गिरिकंदरेसु विसमेसु । तह वि हु पुव्वकयाओं न मुच्चसे जीव ! कि बहुणा ? ॥२७७॥ 
एवं विवयवसओं वल्लहभावाओ जम्मभूमीए | मणय॑ पत्तसमाही सा बसह तवोबणे तम्मि |॥२७८॥ 

अह अन्नया य तीए विचितियं पढमजोव्वणत्था हैं | ता सीलरयणपेयं रक्खेयव्ब॑ कह नु मए ? ॥२७९॥ 

जम्हा महिला महुरत्तणेण पयईए पत्थणिज्ञगुणा । चिंचापकफर्ल पिव वड्डियवंछा जयस्सावि ॥२८०॥ 

सील च मएडवम्स खखेयव्वं सपाणचाए वि । एयम्म विणट्वम्मि नो इहलोओ न परलाओ ॥२८१॥ 

सील महानिहाणं सुकुलुप्पन्नाण भावभंडारों । वसणसयसल्लियाणं सरणमिमं जेण भणियं च ॥२८२॥ 


के. %+.. “मन -अल कम कयान-बन--९ननआ» ५3 


१. मश्चन्भुयभिउडी० रं०। 


२५७ 


आख्यानकमणिकोशे 


सील सासयवित्तं परमपवित्तं अकित्तिमं मित्त | उत्तमकित्तिनिमित्त मुत्तिुहपसाहणपसत्थं ॥२८३॥ 

अधणाण धणं सीलं भूसगरहियाण भूसणं परम॑ । परदेसे नियगेहं सयणविमुक्काण नियसयणों ॥२८४॥ 

ता केण पओगेणं आजम्ममगंजियं इमं होही । ता सुमरियमुवहद्नं जणएणणं मूलियावत्थुं ॥२८५॥ 

जणएण मज्क कहिय॑ कइया वि हु कोउयं जइ हवेज्ञा । ता एयाए तरुमूलियाए माहप्पमेयं ति ॥२८६॥ 

जइ महिला वामे ऊरुयम्मि पक्खिवह फालिऊणमिमं । तो पुरिसो जायइ नीणियाए जायइ पुणो महिला ॥२८७॥ 
एयं चिय विवरीयं नारीभवरणम्मि जाण पुरिसस्स । नवरं दाहिणऊरुम्मि त॑ वियड्डा ववइसंति ॥२८८॥ 

तह चेव तीए विहिए जाओ सहस त्ति सोहणो पुरिसो । पयईए दुद्धरिसो मणुन्नलायन्नरूवधरों |२८९॥ 
चकंकुस-कलसंकियकर-चरणतलो वियट्डविमानिठओ । मणि-मंत-ओसहीणं अचिंतमाहप्पजोगाओ ॥२२०॥ 

तो जणयवयं घेत्त' तावसवयवेसधारओ कुमरो । चिट्दृइ वक्ककवसणों तवोवणे कंदफलभोई ॥२९१॥ 

एवं सा रिसिदत्ता तावसवेसेण सुत्यथिया वसइ । एत्तो य तीए विरहे कणगरहो जायरणरणओ ॥२५९२॥' 

न लहइ रइं निसाए न य दिवसे न य गिहे न वि य सयणे । न य कीलावावीए न य उज्चजाणे न यख्त्याणे ॥२९३॥ 
ने य कीलइ न य भुंजइ न सुयइ न कुणइ कलाणमब्भासं। नवरं हसह वियंभहइ गायद रोयह नियद सुनन्‍्नं ॥२९५॥ 
नावेक्खइ गय-तुरणु न कुणइ गुरु-जजणय-जणणिपडिवत्ति । नवरं सुमरिय दइयं कुणइ पलावे विविहरूवे ॥२९५॥ 
हा तारुन्‍नयसिहिणे ! हा ससिवयणे ! सरोयदलूनयणे !। कलकंठिमहुरबयणे ! वित्थयरमणे ! ललियगमणे ! ॥२९६॥ 
नियरूवविजियविलए | रमणीतिलए ! समग्गगुणनिलए ! | हरिसेणजणयदइए ! त॑ दइए ! कत्थ दच्छीहं ? ॥२९७॥ 
अम्मा-पिऊहिं किच्छेण कारिओ पत्थुयं सरीरठिइं । अच्छइ तहेव तम्गयचित्तो परिचत्तवावारों ॥२९८॥ 

एत्तो कावेरीओ सुंदरपाणिस्स संतिओ दूओ । संपत्तो सो संपइ देवाहं पेसिओ पहुणा ॥२९९॥ 

भणियं च तेण एसा मह कन्ना रुप्पिणी महाराय ! । पुरिसंतरस्स सुंदर ! सुविणे वि न गिण्हए नाम॑ ॥३००॥ 
रन्‍ना भणियं कुमरों तावसकन्नं विवाहिउ वलिओ । सा पंचत्तं पत्ता संपह् तह त॑ भणिस्सामि ॥३०१॥ 

जह तुज्क सुयं परिणइ मा एयं अन्नहा वियप्पेसु | इय भणिऊणं दूओ विसज्जिओ हेमरहरन्ना ॥|३०२॥ 

तत्तो कुमरो भणिओ मुंचसु सोय॑ समुज्ञसु विसाय॑ । न्टविणट्ठें कज्जे गरुया एवं न सोयंति ॥३०३॥ 

ता बच्चसु तुममिण्हि कावेरीए विवाहिउं कन्‍नं । आगच्छ वच्छ ! पच्छा परिचितसु रज्जकज्ञाइं ॥३०४॥ 
उवरोहसीलयाए संचलिओ सबलवाहणो कुमरो । हियए समुव्वहंतो रिसिदत्तं देवयं व सया ॥३०५॥ 

पत्तो कयवयदिवसेहिं तं वर्ण जत्थ आसि रिसिदत्ता | तब्बिरहे त॑ं चेव य उच्वेयकरं मसाणं व ॥३०६॥ 

एत्थंतरम्मि फ्रियं दाहिणनयणेण तस्स कुमरस्स । नायं च तेण सूयइ पियमेल्यमंयमुत्त च ॥३०७॥ 

सिरफुरणे किर रज्ज पियमेलो होइ अच्छिफुरणम्मि । बाहुफुरणम्मि पियजणभुयालयालिंगणं जाण ॥३०८॥ 

दिट्टो तावसकुमरों परिब्भमंतेण तेण कुमरेण । तदंसणेण जाओ तस्स अउव्बो पमोयभरों ॥३०९॥ 

हरिसाऊरियमणसा ता|वसकुमरेण पदच्चभिन्‍नाओ | पणमिय सो तप्पुरओ उवविट्टो अमयसित्तो व्व ॥३१०॥ 

पुट्टं च कुमारेणं भयवं ! तुह पढमजोव्वणत्थस्स । एगागिणो अरन्ने केत्तियकालं वसंतस्स ॥३११॥ 

तेण वि भणियं सुंदर ! हरिसेणो एव्थ तावसो आसि !। रिसिदत्ता तद्धूया कत्थह सा परिणिउं नीया ॥३१२॥ 
केण वि कुमरेण रिसी सो जलणं साहिउं गओ सम्गं | अहयं पुण संपत्तो अन्नंतो कुमर ! कइ्या वि ॥३१३॥ 
सुन्नमिमं रमणीयं नाउं एत्येव ताव निवसामि । असमसमाहाणजुओ कुणमाणो नियम5णुट्ठाणं ॥३१४॥ 

कुमरेण चिंतियमिणं तावसकुमरं अहं नियच्छंतो । पच्चकुखं रिसिदत्तं नियद्‌इयं चेव पेच्छामि ॥३१५७॥ 

कुमरेणं सो भणिओ केणावि हु कारणेण त॑ भयवं | | अवलोयंतो मन्‍्ने नयणनिमेसं पि विग्घमहं ॥३१६॥ 

तो जाव वसामि अहं तवोवणे ताव मज्झ पासम्मि | वसियत्व॑ सुयणु ! तए महापसाय विहेऊकण ॥३१७॥ 
तावसकुमरेणुत्त तवोहणाणं सम॑ गिहत्थेहिं । केरिसओ संबंधों ?, न संगयं ता इमं कुमर | ॥३१८॥ 


२६, भावशल्यानालोचनदोषाधिकारे ऋषिदरसाख्यानकम्‌ २५५ 


चलणेसु निवडिऊरणं त॑ मनन्‍नाविय विणिगए कुमरे | सा पावा पतव्वाया परिब्भमंती तहिं पत्ता ॥३१९॥ 

पुट्टो तावसकुमरों तीए नमिऊण भयवमेगागी । कह कुणसि तव॑ं रन्न[म्मि] भीसणे पढमतारुन्ने ? ॥३२०॥ 

तेणावि चिंतियमिमं कइया वि हु सा वि संभवह एसा । निम्धिणसिरोमणीए जीए निव्बासिया अहय॑ ॥३२१॥ 

तो तावसेण मणियं ओसहिविज्ञा-तवाणु भावाओं | पमवह न कि पि मज्झ गुरूवइट्टं कुणंतस्स ॥३२२॥ 

पुणरवि य तीए भावावगमनिमित्तं पयंपियं मुणिणा | तुमम॒वि भद्देगागिणी कहं भमसि किसि[यका]या य ॥३२३॥ 
कि सिस्सिणी वि बीया न अत्थि ? कत्तो य आगया इहइं ? | तीए वि एसो जइ क़रिंचि तावसो मज्झ विज्ञाइ ॥३२४॥ 
देइ इय चिंतिऊर्ण भणियं भयवं ! ममावि विज्ञाओ । अवसोयणि-तालुग्धाडणीओ विज्जंति विविहाओं ॥३२५॥ 

तो त॑ मज्क पयच्छसु अहं तु तुह देमि अप्पणिज्ञाओ | मुणिणा भणियं विज्ञाण केरिसं तुज् माहप्पं ? ॥३२६॥ 
तीए अमुणंतीए तंच्॑ सब्बं पयासियं तस्स | जह कावेरिपुरीओ पत्ता रहमदृणपुरम्मि ॥३२७॥ 

जह कुमरपिययमाए रक्खसिवायं पुरम्मि पयडेउं | कुमरपियं माराविय कुमरेण सम॑ समायाया ॥३२८॥ 
रुप्पिणिपरिणयणत्थं इमो मए चेव चालिओ कुमरो । एयं मह विज्ञाणं माहप्पं तावसकुमार ! ॥३२९॥ 

मुणिणा भणियं कर्ज न मज्ञमेयाहिं पावविज्ञाहिं | इय भणियम्मि निरासा सद्ठाणं सा गया पावा ॥३३०॥ 
एत्थंतरम्मि भाणू अत्थमणमिसेण दुयमइक्कंतो । पव्वाइयाएं तीसे कुचेट्टियं द्ठमचयंतो ॥३३१॥ 

कुमरो वि सुदरमब्भत्थिओ वि कि ना55गओ कुमारमुणी ? । इय भाविंतो पुणरवि तस्स सयासम्मि संपतो ॥३३२॥ 
पेच्छह भाणारूढं झाणसमत्तीए गरुयविणएणं । अब्भत्यिकण नीओ नियसेन्ने तावसकुमारों ॥३३३॥ 

पच्चासन्ने रयणीए दो वि सयणेसु तावस-कुमारा । ससिणेहसंकहासुद्दियमाणसा तत्थ परिवसिया ॥३३४॥ 

भणियं तावसकुमरेण कुमर ! किर केरिसा55सि रिसिदत्ता ? | जीए कए परितम्मसि तुममेवं निब्भरसिणेहों ॥३३५॥ 
कुमरेणत्तं तीए वन्निज्जइ किर किमगजीहाए १ | सा जेण पयावहणा गुणमइया चेव निम्मविया ॥३३६॥ 

रूव॑ रहरूवनिभं लायन्नं गिरिसुयाए अब्भहियं | सुंदेरं देवीण वि न दीसए तारिसं मित्त ! ॥३३७॥ 

अबरे वि महुरभासण-दाण-दया-विणयपमुहगुणनिवहा । जोइज्जंता वि जणे दीसंति न अन्ननारीणं ॥३३८॥ 

तीए सह सरसजंपिय-उवगूहिय-ललियसुरयरमियाइं । सुमरंतस्स न विदलूइ मह हियय॑ वज्जनिम्मवियं ? ॥३३९॥ 
किंतु मह तुज्क पासे मणयं संपज्जए सुहं भित्त || इयरह भुयणमसेसं विस व मन्‍नामि तीए विणा ॥३४०॥ 

कि बहुणा ? दहदियहे रयणनिहिं दंसिऊण त॑ दइयं । उद्दालिऊण विहिणा विडंबिओ कि करेमि अहं | ॥३४१॥ 
भणियं मुणिणा सुंदर ! मा तम्मसु एत्तियं कए तीसे | अबहरियं ज॑ विहिणा सोयंति तय॑ं न सप्पुरिसा ॥३४२॥ 
इय एवं जाव तहिं परोप्परं हुंति तेसिमालावा | ताव पहाया रयणी सेमागया मंतिणों तत्थ ॥३४३॥ 

भणियं च कुमर ! दिज्वउ पयाणयं बहु विलंबियं एत्थ | पुणरवि य नियत्तेहिं एस मुणी एत्थ दट्वव्वो ॥३४४॥ 
भणियं च कुमारेणं जइ एस मुणी मए सम॑ चलइ । ता हं।इ पयाणयमिहरहा उ मह नियमओ नत्यि ॥३४५॥ 

इय कुमरनिच्छयं जाणिऊण तह कहवि तावसकुमारों | भणिओ मंतीहिं जहा संचलिओ सह कुमारेण ॥३४६॥ 
कावेरीए पुरीए अणवरयपयाणएहिं कणगरहो । संपत्तो तप्पहणा पवेसिओ परमभूईए ॥३०७॥ 

परिवाराइपरिगओ समप्पिओ तस्स पवरपासाओं । तो जोइसियविसोहियसुहकरण-मुहुत्त-रग्गम्मि ॥३४८॥ 
मंगलतृररवेणं नचिरवरविलयसत्थसुहएणं । वित्त पाणिग्गहणं सह कुमरेणं कुमारीण ॥३४९॥ 

तत्थेव ठिओ कइय वि दिणाणि कुमरो सुहेण ससुरकुले । समयं तावसकुमरेण विविहसंगयविणोणण ॥३४५०॥ 

अह अजन्नया य सो रुपष्पिणीए संजायपोढपणयाए । भणिओ सा केरिसिया रिसिकज्ञा कहसु रिसिदत्ता १ ॥३५१॥ 
जीए तुममंतराले वसीकओ आसि म॑ विमोत्तण । तेणुत्त जह तीए का वि समा दीसए नारी ॥३५२॥ 

ता तुज्झ पिए ! साहेमि इहरहा कह णु तीरए कहिउं ? | कि बहुणा ? तारिसिया न लब्भए मंदपुन्नेहि ॥३५३॥ 


१, तत््वम्‌ -खं० टिप्पणी । २, समगया -प्रतौ । 


२४ आख्यानकमणिकोशे 


विहिणो बसेण तीए हत्युत्तिन्नाण जणयवय॒णाओ । तुज्झ पिए |! परिणयणत्थमागओ मुणसु सन्चमिमं ॥३५४॥ 
तो रिसिदत्ताअणुकूलकम्मपरिणइवसेण तीयुत्त | पिययम ! तुम॑ न जाणसि जहा मए एव्थ आणीओ ॥३५५॥ 
कहमिव ? तीए सब्बो वि वइ्यरों साहिओ सुणंताणं । कणगरह-तावसाणं गुरुविम्हयमुव्वहंताणं ।३५६॥ 
चिंतियमिसिदत्ताए विहियमिमं साहणं जमेयाए | पच्चक लव दोण्हं पि हु महडलीयकलंकमवर्णायं ॥३५७॥ 
त॑ साउं कणगरहो कोहहुयासणपलित्तसब्बंगो । दद्लोट्ठभिउडिभीसणवयणो रत्तच्छिदुप्पेच्छो ॥३५८। 
अवसर दिद्विपहाओं तमेरिसं जइ तए समायरियं । मेच्छाणं चिय निदियमिह कडयं रुप्पिणि भणइ ॥३५९॥ 
संपइ रिसिदत्ताए इय मरणे कि मए जियंतेण १ | साहेमि जलणमिणिंह कड्ढह कट्ठे चियाजोग्गे ३६०॥ 
त॑ सोउं सव्वो वि हु मंतिजणों गुरुविसायमावन्नों | गुरुसोयसक्लियंगो निवेयण रायपायाण ॥३६१॥ 
तेणावि हु परिचिंतियमहो ! हु कुडिलत्तणं महेलाणं | जेण मए त्रि न नाय॑ पच्छन्न॑ पेच्छ पावमिमं ।|३६२॥ 
घधिद्धी ! एयाए पावियाए बहुकूडकवंडभरियाए । नरयगहगामिणीए निदियसच्चरियचेट्ठाए |।३६३॥ 
एयं पि वयमिमीए सिरम्मि निवडठ अणज्वहिययाए | रक्खसिवायक्रयं पुण इहईं पि हु मत्थए पडिय॑ ॥३६९॥ 
एवं खिंसिज्ज॑ती पुरलोएणं पए पए पावा । लुयपुच्छ-कन्न-धूसरखरपिट्ठाउ5रोवियसरीरा ।३६४५॥ 
विग्गोविआा नयरे रज्ना निव्वासिया परिव्वाया । नारी जणे अवज्क त्ति तेण जीवंतिया मुका ॥३६६॥ 
कुमरो वि हु जा न मुयइ कहिं पि भणिओ वि मरणनिब्बंधं । नायरजणेण रइया चिया तओ सारकट्ठेहिं ॥३६७॥ 
तत्ता वारंतस्स वि रन्नो नायरसमग्गलोयस्स । हाहारवमुहलस्स वि चित्त चलिओ चियाए सो ॥३६८॥ 
सियवत्थ-विलेवण-कुसुमदाम-5लंकारसेयमुत्ती वि । कणगरहो रिसिदत्ताणुरायगुणओ दढ़ं रत्तो ॥३६९॥ 
तव्वबणाओ हुयासो जा किर पठणीकओ चियापासे । ता रन्‍ना विन्नत्तो विणएणं तावसकुमारों ॥३७०॥ 
भयवं ! तुह वयणमिमों न कयावि हु लंघए तओ एयं | तह कह वि हु भणसु जहा विर्मइ एयाओ पावाओ ॥३७१॥ 
भणिओं तावसकुमरेण भद्द ! क्रिमिमं तणए समारद्ध । नीयजणोचियमइनिंदियं च सुकुलुप्पसूयाणं ? ॥३७२॥ 
अन्न च तया तुमण तबोवणाओं ममाणयंतेण । भणियं कयकिश्चों हं तुममाणेऊण मुच्चिस्सं ॥|३७३॥ 
त॑ विस्सरियं संपइ पारद्धं अवरमेव कि पि तए | कर्ज जइ जुत्तमिमं ता,कुमर ! तमेव जाणासि ॥३७४॥ 
अहुणा अणुहयमिणं पाव॑ पावाइयाए ज॑ं विहिय॑ । सा वि हु सुह-दुक्खाणं तुह भज्जा भायणं जाया ॥३७५॥ 
ता विस्मसु एयाओ दुरज्ञ़वसियाओं सिद्रवज्ञाओं | परलोयबाहयाओं अप्पवहओ महाभाग ! ॥३७६॥ 

अन्न च-- 
सगुणं व निग्गुण' वा कज्जकलावं समायरंतेण । परिणामों सब्वत्थ वि चिंतेयव्वो चडरमइणा ॥३७७॥ 
अबरं च तुहा55कूयं मरिऊण मिलामि निययदइयाए | सव्बर्मिम पि महायस ! मुणसु महामोहलरुलियिं ति ॥३७८॥ 
जम्हा उ भवावद्_ सकम्मफलभोइणो जिया सब्बे | ता तीए सह जोगो होही तुह भद्द ! चित्तमिमं ॥३७९॥ 
चुलसीइजोणिलक्खेकसंकडे भववर्णम्मि भवडंतो । को जाणइ को वि कहिं कहसु महाभाग ! जाइ जिओ १ ॥३८०॥ 
ता जद तुज्क ममोबरि को वि सिणेहों समत्यि ता मुयसु | मरणक्रयमसग्गाहं विवेइणों तुह न जुत्तमिमं ॥३८१॥ 
अबरं च जह पियाए निमित्तमग्गिम्मि पविससि कुमार ! । ता इहइईं चिय त॑ तुह भज्ज दंसेमि रिसिदत्त ॥|३८२॥ 
त॑ सोउं कणगरहो पदच्चागयजीविओ पयंपेइ । भयवं ! तुज्ञमसञ्झ॑ कज्जं भुवणे वि नत्थि फुडं ॥३८३॥ 
ता जइ त॑ पाणपियं रिसिदत्तं कहवि पुन्नजोएणं । पेच्छामि ता महायस ! जलंजरलिं देमि मरणस्स ॥३८४॥ 
अन्न च जांवियं पि हु तुज्क पयच्छामि जइ इमं कुणसि । तेणत्तं एस वरो चिट्ठउ पासे तुह कुमार ! ॥३८५॥ 
तत्तो तुट्ठो तावसभरवसगेणं इमेण जं॑ वुत्त | तं होइ तहेव तओ पत्तो कुमरों सपासायं ॥३८६॥ 
तत्तो तावसमुणिणा कहिओ तेर्सि सविम्हयमणाणं । रहमद्रणपुरनिस्‍्सारणाइओ निययवुत्तंतो ॥३८७। 
ताहे कुमरच्छुरियं घेत्तुं वाम॑ वियारिउं ऊरुं | कड्डियमोसहिवल्यं जाया रमणीसहावत्था ॥३८८॥ 


डे 


२६. भावशल्यानालोचनदोषाधिकारे ऋषिदत्ताख्यानकम्‌ २५७ 


आणंदमुव्वहंतेण तेण निज्काइया कुमारेण | भणियं भो भो ! पेच्छह एस पिया मज्ञ रिसिदत्ता ॥३८६॥ 

कि एसा सा गउरी ? रई व कि वा ? सरस्सई कि वा ?। कि वा रंभा ? पायालकन्नया का वि कि होज्जा ? ॥३९०॥ 
इय एवं ते विम्हहयमाणसा सहरिसं पलोयंता । अनिमिसनयणा तित्ति पावंति न तम्मि पत्थावे ॥३<१॥ 
रुष्पिणि-रिसिदत्ताणं दीसह पच्चक्‍्खमंतरं गरुयं । सुणया-सीहीण व काइ-रायहंसीण वयणेण ।।३९२॥ 

अन्न॑ च जणो जंपइ ठाणे कुमरस्स एत्थ पडिबंधो । एईए रूवेणं मोहिज्जह को न भुवणम्मि ? ॥३२३॥ 

तो रन्‍ना सा ण्हविया सब्वालंकारभूसियसरीरा । देवंगनिवसणघरा विहिया कप्पदुदुमलूय व्व |३९४॥। 
संजायगरुयहरिसो तीए सह भुंजिउं समारद्धों । पंचप्पयारभोएण अवगन्निय रुप्पिणि रमर्णि ॥|३९५॥। 

त॑ दट्ट , रिसिदत्ता चिंतह एसो इमीए निन्‍्नेहों । दिद्वविकीओ एवं अवन्नवाओ घुव॑ मज्क ॥३२६॥ 

एसा जइ वि वराई कयावराहा परोवरोहेण । तह वि हु मए इमीए उवयरियव्बं॑ किमन्नेण ? ॥३९७॥ 
उवयरिए उबयारो जो सो वणियाण होइ ववहारों । अवरत्थ जमुवयरियं त॑ पुण गरुया पसंसंति ॥३९८॥ 

तो कइया वि सहरिसं निययवरं पत्थिओ पयत्तेण | रिसिदत्तपणइणीए तेणुत्तं भणसु जं देमि ॥३९९॥ 

जइ एवं ता एसा दद्वव्वा मज्ञ सरिसया सामि ! | एवं तुज्क वि मज्झ वि मज्झत्थगुणेण माहप्प॑ ॥४००॥ 

जइ एयाए कहमवि तीए पावाए पेरियाए कयं । तह वि हु मह खमियव्बं विसिट्ठकुलसंभवों त॑ सि ॥४०१॥ 
इत्थी निदयहियया इसाविसमोहिया सकज्जपरा | फुसिओ एस कलंको एवं तीए कुणंतीए ॥४०२॥ 

अह अन्नया य भणिओ कणगरहो मंतिपमुहलोएण । मोयाविज्वउ राया गम्मउ संपइ नियपुरीए ॥४०३॥ 
कुमरेण वि सप्पणयं तहेव विहियम्मि नरवरिंदेण | संवाहिया सहरिसं विभवं दाऊण नियघूया ॥४०४॥ 

तत्तो सुंदरदिवसे अणवरयपयाणएहिं संपत्तो । पविसइ निययपुरीए पेच्छिज्जतो पुरजणेण ॥४०५॥ 
सब्वेयरपासट्टियरिसिद॒त्ता-रुप्पिणीहिं परियरिओ । सव्वमयसमयबंघुरसिंधुरखंधे समभिरूढो ॥४०६॥ 

भणियं केणावि हु मेत्त ! पेच्छ एयं महंतमच्छरियं | एसा किर रिसिदत्ता विणासिया पाणपुरिसेहिं ॥|४०७॥ 

जाव य सकक्‍खं अक्खंडसुदरावयवरेहिरसरीरा । दीसइ दाहिणपासम्मि संठिया सुहयकुमरस्स ॥४०८॥ 

अहवा विहिराए माणुसस्स त॑ नत्यि जं न संभवइ । अणुकूले कल्लाणं जह जायमिमीए कि बहुणा १ ॥४०९॥ 
एवं वियड्डपुरिसेहिं विसइ वन्निज्ममाणगुणनिवहों । पियपरपरिवायत्ता विसिसओ तरुणरमणीहिं ॥|४१०॥ 

सहइ सुहाहाराहि पियाहिं वि वहुप्पिओ गइंदगओ । रंभा-तिलोत्तमाहिं हरि व्व कुमरो भणइ कावि ॥४११॥ 
मयरद्धओ व्व कुमरो रइ-पीईहिं व पियाहिं परियरिओ | भणियमवराइ [इह हिरि-]सिरिदृइओ समयणाहि इमो॥०१२॥ 
अहवा वि भरहखेत्तस्स मज्कदेसो व्व धम्मकम्मनिही । सरसाहिं गंग-सिंधुहिं सहइ कुमरों सह पियाहिं ॥०१३॥ 
अवराए भणियमेसो हु भागसाराहि भारियाहिं सम॑ । उत्तर-देवकुरूहिं व ससुवन्नो सहइ मेरु व्व ॥०१४॥ 
सीया-सीओयाहि व विदेहभागो व्व रेहइ सुवासो | सुपओहराहिं सह पिययमाहिमेसोडबरा भणइ॥9१५॥ 

अन्ना भणइ सुदिद्वीहि संगजो सहइ पिययमाहिमिमो । दंसण-नाणसिरीहिं व चरित्तराओ व्व सिवजणओ ॥9०१६ 
इय नायरनर-नारीनिवहेणं नंदणो नरिंदस्स । वल्निज्जंतो पविसइ पए पए कोउयक्खित्तो ॥४१७॥ 

पत्तो य रायभवर्ण रुइरुज्लोयं ललामललूणोहं । विरइयवंदणमाल पूरियमुत्ताहलचउकक ||४१८॥ 

विहियं वद्धावणयं रण्णा कुमरागमम्मि हरिसेणं । हरिसपणचिरवरवारविलयतुटंतहाररूयं ॥४१९॥ 
वज्जंततूरनिवहं॑ गायणगिज्जंतरायगुणनिवहं । विद्धाजणनिव्वत्तियकुमरोयारणयरमणीयं ॥४२०॥ 

चलणेसु पाडियाओ सासुय-ससुराइयाण वहुयाओ । रिसिदत्ताणु कहिओ सब्बो कुमरेण वुत्तंतो ॥४२१ 
ससुराइएहिं तत्तो खमाविया आयरेण रिसिदत्ता । खमसु महासइ ! जं तुज्क विहियमसमंजसं किपि ॥४२२॥ 
पव्वाइयाएु चरियं नाऊणं विम्हिया नयरलोया । पेच्छ जहा धुत्तीण अम्हे वि हु वंचिया तीए ॥४२३॥ 
अणुरायपरवसाहिं दोहिं वि [ भज्जाहिं ] सह कुमारस्स । विसयसुहमणुहवंतस्स कोइ काछो वइकंतो ॥४२४॥ 


श्ध्र्८ आख्यानकमणिकोशे 


अह अन्नया य चउनाणसंजुओ सगुणसमणपरियरिओ । सिरिभद्दजसो सूरी विहरंतो तत्थ संपत्तो ॥४२५॥ 
तत्तो राया नायरजणेण चडटरंगबलबिभूईएण | कुमरेण य परियरिओ बंदणवडियाएु नीहरिओ ॥४२६॥ 
सोऊण सूरिमुहकुहरनिग्गयं धम्मतत्तममयसमं । पडिबुद्धों हेमरहो संजायचरित्तपरिणामी ॥४२७॥ 
अभिवंदिऊण मुणिनाहचरणतामरसमसमसंवेगो । सब्वेसि मंत्तीणं निवेइठं नियमभिष्पायं ॥9२८॥ 
सव्वंगलवखणधरं नियए रज्जम्मि सुहमुहुत्तम्मि | ठविऊणं हेमरहो कणगरहं धरणधोरेयं ॥४२९॥ 
दीणाईणं दाणं दाउः घोसाविउ' अभयदाणं । विहिणा जिणभवणेसुं काऊणडटट्टाहियामहिमं ॥४३०॥ 
चइऊर्ण रज्जसिरिं निरुवमविप्फुरियजीवविरियगुणा । गरुददेण विभूईए निक्‍्खंतो निम्मलजसोहो ॥४३९१॥ 
अब्भसियदुविहसिक्खो खंतिखमो महियमोहपडिवक्खो । पंचसमिओ तिगुत्तो विहरइ गुरुवयणपडिबद्धो ॥४३२॥ 
कणगरहो वि य राया अप्पडिहयसासणो महीवीढे । असमपयावपरक्षमवसीकयासेसवइरिगणो ॥४३३॥ 
वित्थरियकोस-कोट्ठायारो निट्टवियकंटयसमूहं । उवसंतडिब-डमरं पालइ रज्जं जणाण मओ ॥४३४॥ 

अह अन्नया य महरिहृविसिट्ठसुसिलिट्ठकट्ट धडियम्मि । सुपसत्थवत्थविरदयमहल्लऊलउल्लोयलडहम्मि ॥४३५॥ 
रुदरपणवन्नविरइयविचित्तविच्छित्तिचित्तयम्मम्मि | उज्झंतधुयघडियासुगंधिगंधाभिरामम्मि ॥४३६॥ 
तंबूल-पुप्फपडलयसमग्गभोगंगगरुयगामम्मि । भुवण<्चब्भुयभूई भवणम्मि सुवासभवणम्मि ॥४३७॥ 
सुकुमालतुलिकलियम्मि मउयगंडोवहाणसुहयम्मि | आलिंगिणि-गल्लमसूरियाइसामग्गिरुदरम्मि ॥४३८॥ 
उस्सीसयपंचसमुन्न यम्मि मज्झे गभीरविणयम्मि । नवणीयतुलफासम्मि सुरनईपुलिणसरिसम्मि ॥०३९॥ 
सुहसयणम्मि पसुत्ता चिता-संताव-सोयरहियमणा । निवपट्टमहादेवी रिसिदत्ता नियह सुमिणमिमं ॥४४०॥ 
किर मह उच्छंगगओ सारयरयणियरधवलसब्बंगो । खंधप्पएसपारूढठकविलकेसरसडासुहओ ॥४४१॥ 
वियडकडिभायरुइरों तणूयरों तिक्व-वियड॒दाढालो । सीहकिसोरों सुपसन्नलोयणों पियह थणछीरं ॥४०४२॥ 
दट्दुण तयं सुमिणं निवेयण निवइणो पहिट्ठमणा | सो वि य गरुयपरक्कमसुयला भेणं सुहावेइ ॥०४३॥ 

तत्तो नवण्ह मासाणमुचरि अद्धट्टमाण य दिणाण । उच्चद्वाणगएमुं गहेसु सुपसत्थदि्‌विसम्मि ॥४७४४॥ 
विप्फुरियतेयपब्भारपयडियासेसद्सिवहूवयणं । पृव्वद्सारविर्बिबं व्व सा पसूया सुयं देवी ॥०४५॥ 
वद्धाविजो य पियवयणियाएु दासीए कणगरहराया । दाऊणं तीए निवो वंछाअइरित्तवसुदाणं ॥४४०६॥ 
कारावइ नयरम्मि कुमारजम्मम्मि गरुयरिद्धीए | पडहयपयाणपुत्व॑ वद्धावणयं पुहइनाहो ॥४४७॥ 


त॑ व केरिस १-- 
वज्बिरगहिर्मणोह रतूरारवमुहछु, जहिं नवरंगयनिवसणु नारीयणु सहलु । 
रभसपणचिरसुंदरवारविलयनिवहु, जहिं सवु सम्माणिज्जइ नायरजणु सवहु ॥०४५८॥ 
ठोंवि ठाँवि जहि गिज्जह चच्चर सवणसुह, मग्गि मग्गि मग्गिज्जहिं जईहहिं नरवह पमुह । 
भवणि भवणि उब्मिज्जहिं जहिं जूबय-मु सल, पह पइ जहिं पूहज्जहि सत्था-55गमकुसलू ॥४४९॥ 
वंदणमालालंकिय तोरण जहिं सहहि, वत्था-55हरण परोप्पर जहिं नायर लहहिं | 
चट्टथट्ट जहिं दीसइ तेल्लचुयंतसिर, वद्धावणउं त वन्निउ सक्कहिं कवण किर १ ४५०॥ 
“जीव नंदय नंदय? रव सुव्वहिं जहिं वयण, जहिं संतुट्ठउ नरवइ वियरइ रह रयण । 
अभयदाणु जहिं दिज्जह मणह सुहावणउं, तं॑ तहिं हरिसि वित्तउ' निरु वद्धावणजउ ॥०५१॥ 
एवं वद्धावणए सुहेण वित्ते सुहम्मि दिवसम्मि | सीहरहो त्ति विइज्न कुलविद्धाहिं कुमरनामं ॥४५२॥ 
एवं सो पहदिवसं वित्थयकुलनहयलम्मि बड्ंतो । चंदो व्व सुकपक्खे सयलजणाणंदणो कुमरों ॥४५३॥ 
विज्ञागहणसमत्थो संजाओ अट्ववरिसपरिमाणो । लेहायरियसयासे कलाण सब्वाण पारगओ ॥४५४॥ 
अह अन्नया य राया रिसिदत्ताए पियाए परियरिओ । पासायोवरि वायायणम्मि लीलाएं ललइ सुहं ॥४५५॥ 


त॑ च इमें-- 


२६. भावशल्यानालो व नदोषाधिकारे ऋषिदतास्यानकम्‌ २५६ 


पेच्छह य गयणभागे सुहुम॑ सम्मुच्छियं जलयखंडं । पच्छा विद्धि पत्तं तहेव रज्नो नियंतस्स ॥४५६॥ 
पणवन्नरुद रवत्तावयवं मण-नयणसुहयर॑ जाय॑ | दीसइ नहरुच्छीए कंचुयलीलं विडंबंतं ॥४५७॥ 

तत्तो पेच्छंतस्स वि पयंडपवणाहयं कुओ वि गय॑ । पुच्छइ देविं दहए ! दिट्ठं फुडमिंदियालमिमं ॥४५८॥ 

जह एय॑ तह सब्वं भवम्मि पडिबंधकारणं मुणसु । पिय-माइ-कलत्त-सुमित्त-पुत्त-बल-रूव-रज्वाइ ॥४५९॥ 
पेच्छ पिए ! एवंविहभवस्सरूवं वियाणमाणा वि। न कुणंति धम्मतत्ति विसयामिसमोहिया जीवा ॥०६०॥ 

मायन्हियाहिं नडिओ जलबुद्धीए जहा भमइ कोइ । तह जीवो विसयवसोी भवगहणे भमह सुहबुद्धी ॥२६१॥ 

जह क़िंपागतरुफलं मुहम्मि महुरं कुणंति खज्ब॑ंतं | तह आवाए सुहया परिणामे दारुणा विसया ॥०६२॥ 

जह वा मुहम्मि महुरं मारह हालाहलं विसं भुत्त | तह विसया वि हु पावा मारंति जिय॑ भवावट्टे ॥४६३॥ 

जह चेव विसमसल्लेण सल्लिओ कोवि दुक्खिओ होइ। तह विसयसल्लिओ वि हु भवम्मि जीवो वसइ दुहिओ ॥४९६४॥ 

अन्नाणमोहमूढा तुच्छामिसविसयमोहिया जीवा । न मुणंति आयइदुहं विवागरूबव॑ जओ भणियं ॥४६५॥ 
जह किर दुद्धं पेच्छह_ मज्जारी न उण लडडयं मुद्धा । तह मूढो विसयसुहं पेच्छइ नो नरयदुक्खाईं ॥०६६॥ 

ता उज्मिउं दुरंते एए विसए अणत्थफलजणए । सुगुरुसमीवे कुणिमों परलोगसुहावहं धम्मं ॥४६७॥ 

एवं वेरग्गगओ राया सह पिययमाए ओयरिओ । काऊण रज्जचितं सुत्तो रयणीए सुहसयणे ॥०६८॥ 

तत्थ वि वेरगगओ गुरु-धम्मियसंकहाहिं सुहलेसो | अइवाहिऊण रयर्णि सुणइ पहाए पढिज्जंतं ॥०४६८॥ 

जन्मेदं न चिराय भूरिभयदा रुक्ष्म्योडपि नेव स्थिरा:, किम्पाकान्तफला नितान्तकटवः कामाः क्षणध्वंसिनः । 

आयु: शारदमेघचश्चलतरं ज्ञात्वा तथा यौवनं, हे लोकाः ! कुरुता554रं प्रतिदिन धर्मंडघविध्वंसिनि ॥9७०॥ 
त॑ सोऊण्णं भणियं पिए ! सुभासियमिमं पढह कोइ । मह चितियत्थसरिसं ता कुणिमों उज्जमं धम्मे ||9७१॥ 

इय राया सह नियपिययमाए संवेयभावियमईओ । काऊण गोसकिद्च॑ उबविट्टो रायअत्थाणे ||9७२॥ 

एत्थंतरम्मि उज्जाणपालएणं कयंजलिउडेणं । विन्नत्तो देव ! तुम वद्धाविज्असि सपरिवारों ॥9७३॥ 

उज्जाणे संपत्तो विहरंतो तुह गुरू जणयसहिओ । दाऊण पारितोसियदाणं वद्धावयनरस्स ॥|४७४॥ 

संचलिओ भत्तीए वंदणवडियाएु सहरिसो राया । काउं पयाहिणतियं उबविट्ठों रहय करकमले ||०७५॥ 

गुरुणा वि हु पारद्धा जलहरगंभीरसुस्सररवेण । भवियाणं बोहत्थं धम्मकहा धम्मबुद्धीए ॥०७६॥ 

पंचिदियत्तणं माणुसत्तणं आरिए जणे सुकु्ं | साहुसमागम सुणणा सद्ृहणा55रोग पव्वज्ञा |०७७॥ 

इय एवं भो भव्वा ! सुदुल्लहो एरिसो गुणकलावों । ता पाविय सामग्गिं जिणधम्मे उज्जमं कुणह ॥४७८॥ 

एत्थंतरम्मि भवभमणभीयहियएण धम्मरसिएण | सिवसोक्खलालतपेणं मुणिनाहों पुच्छिओ रन्ना ॥३७३॥ 

भयवं चउगहरूते भमइ जिओ केण भीमभवगहणे ? । सासयसोक्खे वच्च३ केण व कम्मेण विहुयमलछो ? ॥४८०॥ 

तो मुणिवहणा भणियं आयन्नसु भद्द ! अवहिओ होउं। हिंडइ भवम्मि जीवो कम्मेणडट्वप्पपारेण ॥|०८१॥ 


नाणस्स दंसणस्स [य] आवरणं वेयणीय मोहणियं । आउय नाम॑ गोय॑ तहंतरायं च कम्ममिमं ||०८२॥ 

पंच नव दोज्नि अद्वावीसं चडरो तहेव बायाला | दोन्नि य पंच य भणिया पयडीओ उत्तरा चेव ॥४८३॥ 
बंधस्स मिच्छ-अविर्‌इ-कसाय-जोगा य हेयवो चउरो । पंच दुवालस पणुवीस पनरस कमेण भेया सि ॥४८४॥ 
आभिर्गहियमणामिग्गहं च तह अभिनिवेसियं चेव | संसहयमणाभोगं मिच्छत्तं पंचहा एवं ॥३८५॥ 
बारसविहा अविर॑ई मण-इंदियअनियमो छक्वायवहों | सोलस नव य कसाया पणुवीसं पन्नरस जोगा ॥१८६॥ 
सामन्नेणं एएु विसेसओ बंधहेठणो तस्स | नाणपडणीययाई पह्कम्मं सुत्तओं णेया ॥2४८७॥ 

तत्थ वि आरंभेणं गरुएण परिग्गहेण पावेण | कुणिमाहारेणं अहमरूवपंचिद्यिवहेणं ॥४८८॥ 
निव्वत्तियनरयाऊ जीवा गुरुकम्मभारिया नरणु | निवडंति सरणरहिया जलूम्मि अयगोलउ व्व अहे |४८९॥ 


२६० 


आखश्यानकमणिकोशे 


तत्थ य छिंदण-मिंदण-उक्कत्तण-दहण-दंभणाईयं । विसहंति तिव्ववियण्ण तेत्तीसं सागरा जाब ॥४<०॥ 

तत्तो वि य उव्बद्ा जीवा तिरिएसु जंति विविहेसु | मायाबहुला बहुकवडकूडपरवंचणुज्जुत्ता ॥४६१॥ 

तत्थ वि वाहण-दोहण-दहणंकण-छुहद-पिवास-सहणाईं । भारारोवण-सीया-55यवाणसहणं सहंति दुह ॥०९२॥ 
तत्तो वि खबियकम्मा पयदए पयणुमाण-मय-कोहा । अज्जवगुणभावियमाणसा य मणुया पयायंति ॥|४९३॥ 
तत्थ वि दारिद्ृहया दोहग्गकलंकदूसियसरीरा । कुकलत्तपराभूया अपत्तपुत्ताइसंताणा ॥४९४॥ 
मुक्खत्तसिरोमणिणो कुवन्न-कुस्सर-कुरूवयाभिहया । आजम्मं बहुविहकास-सोस-रोगाभिहयतणुणो ॥४९५॥ 
तम्हा तेसु वि सोक्‍्खं न किंपि परमत्थओ महाराय !। नवरमिमो मणुयभवों धम्मगुणाराहणाओ सुहो ॥४९६॥ 
जम्हा मणुयभवे चिय पडिवल्नो संजमो तवो होइ । दव्वत्थओ य परमो विसिद्दसम्गोडपवग्गो य ॥४९७॥ 
परमेयम्मि वि बहवो निव्वित्ताणा सिणेहपडिबद्धा । बहुविहपावपरिग्गहमुच्छियहियया कुबुद्धीया ॥|४९८॥ 
जोव्वणमयउम्मत्ता परलोयपरम्मु हा पमायपरा । विसयासत्ता अजरामर व्व चिट्ठंति मूढउप्पा ॥४९२९॥ 

देवेसु वि नत्थि सुहं चिंतिज्बंतं सतत्तबुद्धीप | ईसाविसायपरपरवसित्तदुहदूमियमणेसु ॥५००॥ 

ते वि हु कोहामिहया माणमहासेलचंपियावयवा । मायासल्लियहियया लोहमहाजलहिणिब्बुड्ड। ॥५०१॥ 
विज्जंति कसाया जत्थ निव्वुइं तत्थ राय ! मा मुणसु । पञ्जछइ जत्थ जलणो जाण कओ तत्थ सुत्थत्त १ ॥५०२॥ 
कि बहुणा भणिएणं १ पभवंति कसायसत्तुणो जत्थ | गयणे अरविंद पिव मा जोयसु तत्थ सुहसत्तं ॥५०३॥ 
इय चउगइहमभवरूवे संसारे दुक्खिओ भमइ जीवो | संपय सासयसोक्खे मोक्‍्खे जह वसइ तह सुणसु ॥५०४ 
मोक्‍्खो असेसकम्मस्स संखए सो य संवहेऊण । मिच्छत्ता-डविरइ-कसाय-दुष्ठजोगाण सब्वेसि ॥५०५॥ 

होइ विपक्खसेवणदारेण नरिंद ! सो उण विवकक्‍्खो । सम्मत्त-णाण-दंसणग-चरणाणि विसुद्धल्वाणि ॥५०६॥ 
जह वत्थाईण मलो सुज्ञद सुहवारिसंपओगेण । तह सम्माइपओगा कम्ममलोडवेइ जीवाणं ॥५०७॥ 

तो , सब्वकम्मविगमे सरूवलाभम्मि निशच्चओो जीवो । सासयसोक्खे मोक्खे अणाइनिहणं वसइ कालं ॥५०८॥ 
सो तम्मि निराबाहो केवलवरनाण-दंसणपदवो | अणुभवमाणों निवसइ निरुवमसोक्खं जओो भणियं ॥५०९॥ 
न वि अत्थि माणुसाणं त॑ सोक्‍्खं न वि य सव्बदेवाणं । जं सोक्‍्खं सिद्धाणं अव्वाबाहं उबगयाणं ॥५१०॥ 
जह नाम कोइ मेच्छो नयरगुणे बहुविहे वियाणंतो | न चएइ परिकहेउ' उवमाए तहिं असंतीएण ॥५११॥ 
इय सिद्धाणं सोक्खं अणोवरमं नत्थि तस्स ओवम्मं । किंचि विसेसेणेत्तो सारिक्खमिणं सुणह बोच्छे ॥५१२॥ 
जह सब्वकामगुणियं पुरिसो भोत्तण भोयणं कोइ । तन्हा-छुहाविमुक्ो अच्छेज्ज जहा अमयतित्तो ॥५१३॥ 
इय सव्वकालतित्ता अउलं निव्वाणमुबगया सिद्धा | सासयमव्वाबाहं चिट्ठंति सुही सुहं पत्ता ॥५१४॥ 

इय सोउं उबएसं सवणसुहामयपवाहसारिच्छ । भवभयसंभंती भणह भूवई भव्वपरिणामी ॥५१५॥ 

भयवं ! ज॑ तुब्भे मणह भीमभवभयमिमेसि भव्वाणं | भवभयभीयाणं तत्थ विब्भमो मह मणे नत्यि ॥५१६॥ 
ता एयं मणुयभवं सफल काहामि तुम्ह पासम्मि । पडिवज्जिय पव्चज्ज काऊणं रज्जमुत्थत्त ॥५१७॥ 
एत्थंतरम्मि मत्थयनिद्ित्तकरकोससंपुडा देवी । रिसिदत्ता मुणिनाहं परिपुच्छह पउरपचवर्ख ॥५१८॥ 

भयवं ! रकक्‍्खसिवाओ मह जाओ केण कम्मुणा ? कहह । नाऊण5इसयनाणेण कोउय॑ मज्म अइ्गरुयं ॥५१८॥ 
तो पारद्धो कहिउं भदजसोी गणहरो मिठगिराए | अवहियचित्ता होउ' खणमेक्क सुणसु त॑ भद्दे | ॥५२०॥ 
अत्थि इह जंबुदीवे नयरं गंगाउरं मणभिरामं | चित्तमिमं ज़ं न तयं कयाइ विसमक्खपरिभुत्तं ॥५२१॥ 

त॑ पालइ नरनाहो अरिविग्गकुरंगसंहरणवाहो । नामेण गंगदत्तो रिवुगयघडदलणथिरसत्तो ॥५२२॥ 
सब्वंतेडरसारा गंगा नामेण तस्स पियभज्जा । नामेण गंगसेणा तस्स सुया सव्बगुणदइया ॥५२३॥ 
चंद्जससाहुणीए पासे तीए जिणिदपन्नत्तो । पत्तो धम्मो सा तं परिपालइ सुद्धपरिणामा ॥५२४॥ 








१. जीवस्स रं० । 


२६. भावशव्यानालोचनदोषाधिकारे ऋषिद्तास्यानकम्‌ २६१ 


धम्मामयतित्तमणा दूर परिचत्तविसमविसयतिसा । वज्जियपरिणयणकहा चिट्ठृह्र सा धम्मगयबुद्धी ॥५२५॥ 
अवरा वि तत्थ एगा संगा नामेण साविया अत्थि । दारिदभरक्षंता निकरंता साहुणिसयासे ॥५२६॥ 

सा कुणह तवं उग्गं वयमाहप्पेण पूयए लोगो । रायसुया वि हु तप्पह किपि तवं अंबिलाईयं ॥५२७॥ 

नवरं न कोवि वन्न॑ कुणइ गिहत्थ त्ति काउमेईए । तत्तो सा निवधूया मच्छरमुव्बहइ संगाए ॥|५२८॥।॥ 

भणह य एसा वहणी रयणीए बलेण खाइ मडयाणि | ताहे सब्वो वि जणो पत्तिन्तो रायधूयाएण ॥५२९॥ 

सा वि हु सकयफलमिमं ति सम्ममहियासए विवेयवसा । तीए तं पुण कम्मं बद्धमभक्खाणसंजणियं ॥५३०॥ 
भमिऊणं संसारे दुह्वपउरे एत्थ चेव गंगउरे । जाया नरिंद्तणया पत्तो जिणदेसिओ धम्मो ॥५३१॥ 
गहिऊणं पव्वज्जं तवोविहाणं समायमायरइ । तो मायाणुट्वाणं अब्भक्खाणं च संगाए ॥५३२॥ 
सुगुरूणमणालोइय नर्रिद्धूया तहेव य ससल्ला । मरिऊणमग्गमहिसी ईसाणिंदस्स संजाया ॥५३३॥ 

तत्तो चविउं जाया तुममेसा इहभवम्मि रिसिदत्ता | इय सुणिउं नियचरियं जाईसरणेण संबुद्धा ॥५३४॥ 
चलणेसु निवडिऊरणं गुरुणो संजायगरुयसंवेगा | भमणइ गुरु भयवमिमं सव्बं सच्चं भणह तुब्भे ॥५३५॥ 
रायाई सयलजणो विम्हदओ निसुणिऊण गुरुभणियं । रिसिदत्ताए चरियं जाओ दुच्चरियभयभीओ ॥५३६॥ 
कणगरहो वि य राया रज्जे अभि्िंचिऊण सीहरहं | महया विच्छड्ुंणं कारविय जिणिंदपूयाओ ॥५३७॥ 
सिबियाए समारूढो कुणमाणों सासणुन्नईं परम | सकलत्तो निबखंतो विहिणा गुरुपायमूलम्मि |५३८॥ 
अब्भसियदुविहसिक्खों तवसा संखवियधाइकम्मंसोी | उप्पन्नविमलनाणो वियाणियासेसनायव्वो ॥५३९॥ 
केवलिपरियायं पालिऊण पडिबोहिऊण मवियजणं । सासयसोक्खे मोक्खे संपत्तो सह कलत्तेण ॥५४०॥ 


॥ऋषिद्त्ता 5 <ल्यानक समाप्तम्‌ ॥६१॥ 


इदानी मदछ्िकामल्लाख्यानकमाख्यायते । तशथ्चेद्म-- 
उज्जेणीनयरीए जियसत्तुनराहिवस्स रज्वम्मि । नामेणं मल्लमरइकट्टणो अद्णों मल्‍्छो ॥१॥ 
सो उण समुद्द तीरे गेन्हह सोपारयम्मि नयरम्मि । गंतृण जयवड।यं सीहगिरिनिवस्स रज्जम्मि ॥२॥ 
चितियमिमिणा रज्जंतराउ आगम्म मज्क मल्लमहे । घेत्तण जयवडायं जाइ इमो परिभवों मज्झ ॥३॥ 
तो अहमिणिंह मल्लं महाबलं चिंतयामि नियरज्जे । एवं जा गविसावह ता पेच्छइ पुरिसमेगं सो ॥४॥ 
उवचियसोणियमंसं वियडकर्डि पिहुलवच्छयलभायं । पोण-समुन्नयखंधं करिसुंडायारभुयदंडं ॥५॥ 
महु-मंसभक्खणरयं सुराए मत्तं सरेहि विज्ञंतं | रूगंते वि हु न मुणइ बाणपहारे मयवसेणं ॥६॥ 
भणइ य कुओ वि रूग्गंति मच्छियाओ सतिक्खतुंडाओ । तो सो रण्णा ठविओ मच्छियमल्लो निए रज्जे ॥७॥ 
अन्नम्मि महे जाए मच्छियमल्लेण अइणो जित्तो | तेणावि चितियमहं जित्तो वुढ्डुत्णेणिमिणा ॥८॥ 
एसो पढमवयत्थो अहय॑ं तु जराए चउविहबलेणं । अक्कमिओ सब्बत्तो पराभिभूओं जओ भणियं ॥९॥ 
सयणपराभव-सुन्नत-वाउ-सिंभाइयं जरासेन्न | गरुयाणं पि हु बलमाण-खंडणं कुणइ वुड्डत्त ॥१०॥ 
तो तेण तरुणमल्लं सुरद्नविसए निरूवयंतेण । दृरुललकूवियाए सच्चविओ हालिओ एगो ॥११॥ 
एगेण वाहइ हलं करेण फलहीउ छुणइ अबरेणं | त॑ दट्द्र्णं तुझे एसो मह बंछियं काही ॥१२॥ 
जं॑ं बलमाह।राओ तेण परिवखामि भोयणमिमस्स । एत्थंतरम्मि भज्जा भत्तं गहिऊण संपत्ता ॥१३॥ 
कूरस्स भरिय पिडय॑ कुडयं कुसणर्त सब्वमवि भुत्तं । भुत्तस्स वि परिणाम जा जोयइ ता तय॑ पि सुहं ॥१४॥ 
तो भणि ८ कि खिज्जसि ? आगच्छ करेमि इसरं जेण | पडिवल्ने भज्जाएं निब्बाहं चितिउं नीओ ॥१५॥ 
काउऊण कायसुद्धि आहाराईहिं पोसिओ विहिणा । सिकक्‍्खविओ य निजुद्धं कयकरणो जाव संपत्तो ॥१६॥ 
मल्ल्महे संजाए मच्छियमल्लेण जोहिओ तेण । पढमे दिणम्मि न जओ पराजओ न वि य मल्लाणं ॥१७॥ 
बीयम्मि दिणे फलहियमल्लो दुक्‍्खंतयं सरीरम्मि । पुट्टो य अद्वणेण॑ तेण वि कहिय॑ जहावत्तं ॥१८॥ 


२६२ आख्यानकमणिकोशे 


अब्भंगण-मद्रण-सेयणेहिं विहिओ पुणन्नवो तेण | मच्छियमहलो पुट्टो भणह मम तस्स पिठणो वि॥ ॥१९ 
गन्न॑ न किपि तहए दिणम्मि अंबराडिए सरीरम्मि | न चयह चलिउं थंभो व्व संठिओ अचलठाणेणं ॥२०॥ 
सुमराविएण फलहियपओगमियरेण तोडियं सीसं । पत्ता फलहियमल्लेण रंगमज्झे जयवडाया ॥२१॥ 
अट्टणसरिसा गुरुणो मल्‍लसमा साहुणो समकक्‍्खाया । अवराहा य पहारा आराहणया जयवडाया ॥२२॥ 
॥ मक्षिकामल्लाख्यानक॑ समाप्तम ॥६२॥ 
अन्नाणाओ जहेसि गुरुणो णा3डलोइय॑ं सदुच्चरियं | जाय॑ अणिट्ठफलयं तह अन्नस्सावि दह्ठव्वं ॥ 
नानथंमज्जिनिवहस्य रिपुर्विवृद्धस्तादक्षमुग्रकरवालकर: करोति । 
यादक्षमेतदिह शल्यमनुद्‌घृतं सत्‌ , कुर्यादतस्तदलमुद्धरता55शु सम्यक्‌ ॥ 


॥ इति भ्रीमदाप्नदेवसूरिथिरचितवृत्तावाख्यानकमणिकोशे भावशल्यानालोच नदोषप्रकटन 
पएकोनजिशक्षमो 5घिकार: समाप्त: ॥२६॥ 


>> 2:८2 
[ ३०. मोहात्तेस्तकुगतिपातदशेकाधिकारः ] 


सम्यगनालोचनमरणे दोषोडमिहितः । एतच्च मोहवशगस्य भवतीत्याह-- 


मोहेण5इवसटो जो काले कुणइ जाइ सो कुगई । 
तावस-सागरदत्त व्व नंद-ललियंगजणणि व्व ॥३६॥ 
व्याख्या--'मोहेन' मोहनीयकरमेंणा “आतंबशाते:” इति आतेस्य--आतंध्यानस्य वशः-- आयत्तता तेन ऋतः--पीडितः 

आतंवशाते: यः कश्चित्‌ 'कार्” मरणं 'करोति' विधत्ते 'याति' गच्छति स प्राणी कुगतिं नरक-तियग्गतिरूपाम्‌ | दृष्टान्तानाह-- 
तापसश्र श्रेष्ठी सागरदत्तश्च--वणिक्‌ ताविव तद्गत्‌ , नन्दश्चध--मणिकरारः: ललिताड्ुजननी च वासुदेवपूवभवमाता ते तथोक्ते 
ते इव तद्गदिति गाथासमासाथः: ॥ व्याख्याथस्त्वास्थानकगम्यः । तानि चामूनि । 
तत्र तावत क्रमागतं तापसाख्यानकमभिधोयते । तश्चेद्म -- 

आसी कोसंबिपुरीण तावसो नाम विस्सुओ सेट्टी । मोहबसट्टो मरिउं सगिहे चिय सूयरों जाओ ॥१॥ 

दटठूण निययभवण्णं जाओ संजायजाइसरणो सो । त॑ न मुयइ मणयं पि हु अहउन्नया तस्स [दिवस त्ति !] ॥२॥ 

[तक्कज्जे तस्स] सुएण सयणवग्गों निमंतिओ सब्बो । विहिया मंसाईया महुररसा रसवई तत्थ ॥३॥ 

मज्जारेण महाणसगिहाओ नीयम्मि संभिए मंसे । दिदट्ठो रसोयणीए भीयाए सूयरों तत्थ ॥४॥ 

नीओ य तओ विजणम्मि मारिओ विरसमारसंतो सो । पहऊण तस्स मंस दिनन॑ सयणाण सब्वेर्सि ॥५॥ 

सो पुण अइज्माणेण विसहरों तत्थ भीसणो जाओ । दटठ्रण गिहं संजायजाइसरणो न त॑ मुयइ ॥६॥ 

दिट्लो य॒ पीढिविवरे भवणब्भंतरगएण पुत्तणं | विद्धो तहट्ठलिओ सो झड त्ति कुंताइणा तेण ॥॥ 

मरिउं सुण्हाए सुओ जाओ विद्धि गओ गिहं दटठुं | संजाइजाइसरणो विचितए किह भणिस्सामि ॥८॥ 

ताय त्ति पुत्तमेयं सुण्हं जणणि त्ति लज्जमाणो सो । जाओ मूओ पियरेहिं कारिया मंतवाया से ॥९॥ 

मोणट्विओ न पठणो जायइ सो अजन्नया समोसरिओ । सूरी ओहिलन्नाणेण संजुओ नयरिउज्जाणे ॥१०॥ 

भिक्‍्खावेलासमए मुणिणो गुरुणा पयंपिया एवं । अमुगाहिनाणसंजुत्तमवणदारप्पएसम्मि ॥११॥ 

पेच्छिस्सह वणियसुयं त॑ पद वत्तव्वमेरिसं वयणं । तावस ! मोत्तु मोणव्बयं इमं कुणासु जिणधम्मं ॥१२॥ 

मरिऊण सूयरो तं जाओ तह विसहरो सुयसुओ य । इय भणिए से होही पडिबोहो तयणु ते मुणिणो ॥१३॥ 

इच्छे ति भणिय भिक्‍्खाए निग्गया पहगिहं भमंतेहिं। तेहिं सडिभो डिंभो ढिट्ठो भणियं च गुरुमणियं ॥१४॥ 


३०. मोहाक्तसतकुगतिपातद्शकाधिकारे तापसाब्यानकम्‌ ५६४३ 


सोऊण इम॑ चलणेसु निवडिओ मुणिवराण सो भत्ति | अम्मा-पियरो दद्वुण चेट्टियं तस्स चिंतंति ॥१५॥ 
नृणं मंतपओगो कोइ कओ मुणिवरेहिं एयस्स | ताणमिम चिंतंताण तेण ते पुच्छिया मुणिणो ॥१६॥ 
किह भयवं मह चरियं नायं ? गुरुवयणओ त्ति तेहुत्ते । भणियमिमेण कर्हि ते ? ठाणं सिट्ठ॑ तओ तेहिं ॥१७॥ 
पडिलाभिऊण मुणिणो डिभो अम्मा-पिऊहिं संजुत्तो । पत्तो गुरूण पासम्मि पणमि्ं तत्थ उबबिट्टों ॥१५८॥ 
गुरुणा वि तस्स चरियं कहियं विहिया य देसणा परमा । सम्मत्तं संपत्त अम्मा-पिउजुत्तडिंमेण ॥१९॥ 

॥ तापसाख्यानक॑ समाप्तम ॥६३॥ 
सागरदफ्ताख्यानकमाल्यायते-- 


उद्युमरसमररिउकरडिकरडतडपाडणेकखरनहरो । कुसुमपुरम्मि पुरम्मि अत्थि निवो डमरसिंहो त्ति ॥१॥ 

तत्थ य सागरदत्तो सेट्टी निवसह पमूयधणकलिओ । गुणचंदो नामेणं तस्स सुओ अन्नदिविसम्मि ॥२॥ 
भणिओ सागरदत्तेण नियसुओ वच्छ ! दुक्खलक्खेहिं । रूच्छी एसा संकलइ सा वि गेहम्मि संठविया ॥३॥ 
सज्का जायइ तक्कर-निव-गोत्तिय-मित्त-जल्णमाईण । तो सुत्रमसाणम्मि एसा किज्जउ निखाय त्ति ॥9॥ 
जेणावइसिंधुवईए निवडियाणं सुजाणवत्तं व | नित्थरणत्थं जायइ एवमिद पभणिए पुत्ते |॥५॥ 

नियतणएएणं सहिआ। कलसं भरिउं सुवन्नटंकारं । रयणीए संपत्तो सागरदत्तो मसाणम्मि ॥६॥ 

निवखणिउं तेहिं तहिं त॑ दब्बं॑ विरइयाईं चिन्हाइ । एत्तो य नाइदूरट्टिणण कप्पडियपुरिसिण ॥७॥ 

पहसंतेणं सुत्तेण पेच्छिउं त॑ं विचितियं तेण | जद कहवि इमे नियमंद्रिम्मि गच्छंति तो पच्छा ॥८॥ 

अहयं घेत्तणमिमं करेमि विविहे समीहियविल्लसे | सागरद॒त्तेणावि हु भणिओ पुत्तो जहा वच्छ ! ॥९॥ 
आगच्छ तुम आसावलोयणं काउमिह सुओ तयणु । अइनिउणों ताय !'तुमं ति ज॑पिउं काउमारद्धो ॥१०॥ 
हिंडंटेणं दिट्लों कप्पडिओ विगयसासनिस्सासो । सुत्तो धणलोभाओ कवडेणं मडयसारिच्छो ॥११॥ 
चितियमिमिणा एसो मओ य जीवइ व इय परिक्खाए | तो तस्स सवणजुयलं छिन्न॑ जणयस्स त॑ कहिय॑ ॥१२॥ 
जंपइ सो ताय ! मओ इय लिंगा लक्खिओ भणइ जणओ । धणलोभेणं त॑ नत्थि ज॑ न विसहंति इह जीवा ॥१३॥ 
सम्म॑ निरूविऊर्ण पुणरवि आगच्छ तो गओ तत्थ । नासावंसं मूलाओ छिंदिउं आगओ पुत्तो ॥१४॥ 

नायं जहा मओ सो पत्तों सेट्टी गिहम्मि सो वि पुणी । कप्पडिओ त॑ दब्वं घेत्तण5न्नत्थ गोवेउं ॥१५॥ 
गिण्हित्त तयं थोव॑ लेह तओ वत्थ-आभरणमाई । भुंजइ अणंगसेणापणंगणाए सम॑ भोए ॥१६॥ 

अज्नम्मि दिणे तेणं विहिया उज्जाणिया वरुज्वाणे | दिन्नं दीणाईणं दाणं वित्थारियं तेहिं ॥१७॥ 

नयरम्मि जहा अहिणवबणओ दाणं पयच्छण अज्ज | अइमसिणवसण-संविहियसवणजुय-नासियाविवरों ॥१८॥ 
निसुणित्तु जणाओ इम॑ सागरदत्तो विचितण एवं । सो5यं पुरिसो होही निरूविओ जो मसाणम्मि ॥१९॥ 

ता इमिण ।मम दव्वं गहियं होहि त्ति चितिकण तओ । कहिउं पुत्तस्स तयं गओ निसाए मसाणन्मि ॥२०॥ 
जाव निहालइ सम्मं न हु पेच्छइ ताव तत्थ त॑ कलस | तो जायनिच्छएणं निवेइयं राइणो एवं ॥२१॥ 
अज्जं जेणुज्जाणी विहिया सो दव्वहारओ मज्ञझं । अवहरियं सब्वस्सं इमिणा ता सामि ! वालेसु ॥२२॥ 

तो रज्ना रुद्रेण आहओ सो निउत्तपुरिसेहिं | आगंतु' निवपुरओ पणामपुव्व॑ समुवविद्वो ॥२१॥ 

तत्तो रज्ना सेट्टी पयंपिओ भणसु तुज्ञ जं हरियं । इमिणा सो आह सुवन्नटंकपरिपूरिओ कलूसो ॥२४॥ 
नरवहणा पुट्टेणं कहिओ चोरेण सब्ववुत्ततो । आमूलनासियाछेयणाइओ भणियमवरं च ॥२५॥ 

नियअंगाइं विक्वित्तु गिण्हियं ज॑ं मए दविणजायं । त॑ कहमप्पेमि ? निवेण भणियमन्नायरसिएणं ॥२६॥ 
तस्सत्तरंजिएणं भदय ! जह॒या समप्पए सेट्टी | सबणाई अंगाईं तइया तुमए वि एयस्स ॥२७॥ 

अप्पेयव्वो अत्थो त्ति ज़ंपिउं दो वि नरवरिंदेण। सद्ठाणे पट्टविया चोरो विलसइ जहिच्छाए ॥२८॥ 


१. पथभान्तेन । 


२६७ आश्यानकमणिकोशे 


सेट्टी वि हु तं अत्यं अल्हंतो मोहमाहिओ तम्मि | अद्ववसट्टोवगओ मरिऊणमहोगईं पत्तो ॥२९॥ 
॥ सागरद्त्ताख्यानक समाप्तम्‌ ॥६४॥ 

इदानीं नन्‍्दाख्यानकमारण्यते । तश्येद्म-- 
रमणीयदे उला-55रामराइए पुरवरम्मि रायगिहे । सिरिवीरनाहकमकमलमहुयरो सेणिओ राया ॥१॥ 
मणियारवणियवग्गस्स अग्गणी गुणमणीनईनाहो । सेट्टी नंदो नामेण माणणीओ निवस्सडत्यि ॥२॥ 
अह अन्नया य भुवणेक्वबंधवं वद्धमाणजिणनाह | समवसरियं निसामिय समागओ वंदणत्थमिमो ॥३॥ 
भूमीमिलंतभालोडभिवंदिउं जिणवरं समुवबिट्टी | विहिया तिलोयगुरुणा तत्तो सद्देसणा तस्स ॥४॥ 
त॑ निुणिऊण नंदो गिहत्थधम्मं दुवालसविहं पि। पडिवज्जिऊण तह पणमिऊण सामि गिहं पत्तो ॥५॥ 
सम्म॑ गिहत्थधम्मं परिपालइ वड्डमाणपरिणामो । संसारुत्तिन्‍्नं पिव अप्पाणं मन्‍नमाणों सो ॥६॥ 
अह अन्नया असंजयजणस्स संसम्गओडणुदिव्स पि । विरहम्मि सुविहियाणं सिढिलीहूयम्मि सम्मत्ते ॥७॥ 
जायम्मि जेट्टमासे पोसहसालाए पोसहपरस्स । कयअट्टमतवचरणस्स नंदमणियारसेद्रिस्स ॥८॥ 
तन्हा-छुद्दा किलंतस्स वासणा एरिसा समुप्पन्ना । ते धनन्‍्ना सप्पुरिसा ते चिय जीवंतु जियलोए ॥९॥ 
कारावियाओ जेहिं पुक्खरिणीओ सुसीयलजलाओ । जासु जणो वहइ जल पियइ तहा मज्जद जहिच्छं ॥१०॥ 
ता अहमवि नरनाहं आपुच्छिय कारवेमि पोक्‍्खरिणिं | इय चिंतिउं पाए पारित्ता पोसहं सेट्टी ॥११॥ 
परिहियवलक्खवत्थो पाहुडहत्थो निवं समल्‍लीणो । तप्पुरओ उबणेउं उवायणं तेण विन्नत्त ॥१२॥ 
देव ! तुहाणुन्नाए पुरपरिसरमेइणीए पोक्खरिणि | काउमभिष्पाओ में तोडणुन्नाओ नरिंदेण ॥१३॥ 
तत्तो य तेण हिंताल-ताल-ताली-तमालपमुहेण । सुसिणिद्धबहरूसच्छायवच्छनियरेण परियरिया ॥१४॥ 
मुत्ताहलावछीविमलूसलिलसंभारपूरिया परमा । कलहंसावलिविलसंतबहलकल्लोलपरिकलिया ॥१५॥ 
कल्हार-कमल-कुवलयपरायविच्छुरियनीरसंभारा । मयरंदमत्तममरउलरोलमुहलियदि्सावलया ॥१६॥ 
परिभमिरगरुयकरिमयर-मच्छ-मंडुक-कच्छव5च्छनना । कारविया पोक्खरिणी नंदा नामेण नंदेणं ॥१७॥ 
पह्ियजणदाणसाला वि परिसरे तीए कारिया रम्मा । अप्पाणं कयकिच्च तकरणे मन्‍नमाणेण ॥१८॥ 
मज्जंतो भुंजंतो जल पियंतो य तत्थ कीलंतो । कुणइ गुणग्गहणं से समग्गलोगो वि अन्नोन्नं ॥१<॥ 
नंदमणियारसेट्टी सो चिय धन्नो जयम्मि सो जियठ । जेणेसा कारविया पोक्खरिणी सिसिरजलभरिया ॥२०॥ 
इय निसुणंतो नंदो मुन्नर अप्पाणममयसित्तं व्व । अहवा सगुणथुईए हरिसिज्जइ को न जियलोए १ ॥२१॥ 
एवं बच्च॑ते केत्तियम्मि कालम्मि असुहदोसेण । तस्स सरीरे सोलस संकंता दुस्सहा रोगा ॥२२॥ 
पत्चकखाओ वेज्जेहिं तयणु गुरुरोगवेयणक्कंतो । मरिउं नियपोक्खरिणीए द॒दुदुरो सन्निओ जाओ ॥२३॥ 
धन्नो स नंदसेट्टी पोक्खरिणी जेण कारिया एसा । इय जणसाहुकारं सोउ' सो सुमरए जाईं ॥२४॥ 
विज्ञायपुव्वजम्मो विचितए फुरियगरुयसंवेगो । अहह ! अणज्जेण मए कह अप्पा पाडिओ पावे ? ॥२५॥ 
लद्धूण वि भुवणनमिज्जमाणपयपंकय॑ जिणं वीरं । धम्ममवि भुवणगुरुणो सयासओ तस्स नाऊण ॥२६॥ 
सब्बं पि हारियं नियमईए मूढेण क्रिह मए तइया ? | एयं तु मज्क जाय॑ मिच्छत्तफलं अहन्नस्स ॥२७॥ 
ता अज्ज वि किंपि सुहं करेमि जह होइ सुगइगमणं मे । इय चितिय छद्गतवोडभिग्गहमेसो सया कुणइ ॥२८॥ 
पारइ य फासुएणं आहारेणं सजाइजोग्गेण । इय धम्मज्ञाणपरस्स तस्स कालो वइक्कंतो ॥२९॥ 
अवरम्मि अवसरे वद्धमाणसामी समोसढो तत्थ । मज्जंतो पोक्खरिणीए तीए लोओ समुल्लवइ ॥३०॥ 
गुणसिलए उज्जाणे चलह लहुं वीरवंदणनिमित्त | इय निमुणिऊण सो ददुदुरों वि संजायभत्तिमरों ॥३१॥ 
समवसरणम्मि चलिओ समुल्ललंतो इमं विचितंतो । भूमिलियभालवद्ढों बीरजिणिंद॑ नमिस्सामि ॥३२॥ 


१२. नर्मंसामि रं०। 


४३०. भाषशल्यानालोचनदोषाधिकारे छलिताइ्जनन्याल्यानकम्‌ २६४५ 


तत्तो य रह-तुरंगम-गयघड-सुहृडोहघडियपरिवेदों | नमणत्थं वीरजिणस्स निग्गओं सेणिओ राया ॥३३१॥ 
तस्सेगयरतुरंगमख़ुरेण पहओ स ददूदुरों मग्गे । तग्धायपीडिओ सो सरिऊण जिणेसरं वीरं ॥३९॥ 
विहियाणसणो मरिउः जाओ ददुदुरवडिसयविमाणे । सो ददुदुरंकदेवो तओ य सिज्मिस्सइ विदेहे ॥३५॥ 


॥ नमन्‍्दाल्यानक समाप्तम्‌ ॥६४५॥ 


अचुना ललिताडइ्जनन्याख्यानकं व्याख्यायते । तश्ेद्म--- 


जओ-- 


३४ 


निवसंतनिव्वुयजणं निवसंतइताइयं समत्थि पुरं । भोगिद्धमंडलमयं बसंतउरमिव वसंतउरं ॥१॥ 

तत्थ य नयरे निवसंति भायरो दोन्नि दाणधम्मरया । पयईए तेसि जेट्टी दयावरो दुत्थियजणम्मि ॥२॥ 

लहुओ य लद्दुप्पयई पमाय-मयपरवसो किलिट्टमणो | एगुयरसंभवा वि हु न हुंति कश्या वि समसीछा ॥३॥ 
ते अन्नया कयाई सगडारूढा पओयणवसेणं । गामम्मि पत्थिया सुत्थभाणसा जाव गच्छंति ॥४॥ 

तत्तो ते वित्थयवत्तिणीए सुकुमालसीयलरयाए । गड्डीए गंडहाराए सुहपसुत्तं पसत्थमणं ॥५॥ 

पयईए पमाया-55ल्‍लस्ससहिय सुकुमार-मंसलावयवं । सप्पत्रिसेसं लोयम्मि विस्सुयं चककुलंड त्ति ॥६॥ 

पासंति तओ जेट्टेण जंपियं जायजीवकरुणेण । वच्छ ! वराई एसा निरसहदेहा सुयह मग्गे ॥७॥ 

सिम्धं चलिउमसत्ता ता त॑ उन्वष्दिऊण वद्टाए । उम्मग्गेणं खेडसु वसहे सह सोक्‍्खसुहियस्स ॥॥८॥ 

एयस्स जियस्स जहा न विणासो होइ वच्छ ! इय वयणं । जेट्डस्स संतियं विसइ तीए सबणेसु अमयं व्व ॥९॥ 


मरु वायाए वुत्तो रूसइ हिययम्मि भंडणं कुणइ । जइ पुण जिओ त्ति वुच्चह तो तूसइ मन्नए अमयं ॥१०॥ 
बीएण भणियमेईए केरिसो चंपियाए किर होइ । करडकयसद्दो ? भाय ! कोडयं कज्जइ मणस्स ॥११॥ 
सगडं खेडिस्समहं तम्हा एएण चेव मग्गेणं । वारंतस्स वि जेट्डस्स खडइ वेगेण सो वसहे ॥१२॥ 

एयं पि तीए निसुयं बिसं व सवणाण दुहययरमकन्तं । सा वि य मणय॑ सच्चरियवासणा चरियावयवा ॥१३॥ 
मरिऊण हत्थिणउरे कम्माण विचित्तपरिणइवसेण । धूयत्तणेण जाया कस्प वि इच्भस्स भवणम्मि ॥१४॥ 
विहिओ महसवो से जम्मे जणएण गरुयविहवेण । चंपयलय व्व गिरिकंदरम्मि अह् विद्धिमणुपत्ता ॥१५॥ 
एवं तीए कमेणं पत्थावे थीजणस्स जोग्गाओ । मेहागुणकलियाए कलाओ सव्वाओ गहियाओ ॥१६॥ 
पत्ता य तओ तारुन्नमुत्तमं तरुणनयणमोहणयं । कमणीयकंतिकुलकमनिकेयणं कामनरवइणो ॥१७॥ 
परिणीया तत्येव य्‌ विसालविहवेणमिब्भतणएण | ह-०:०८६:०. ४ ०:७७ ७४% ०३७८७ ००:७:३:६ ७ * ७७००० ७ ७:७७ | | ५ ध्ः | | 

तो तेसि पुन्नवसओ परोप्परं दढपरूढपेम्माणं | पंचप्पयारविसए भुंजंताणं वयह कालछो ॥१९॥ 

तत्तो य तीए गब्भे सो जेट्डसहोयरो समुप्पन्नो | भवियव्ववानिओगेण सुकयसंपुन्नपुत्रभरों ॥२०॥ 

सा गब्भपभावेणं सव्वंगसुहेल्लिसंगया जाया । आएंदनिब्मरंगी आसाइयचकिरज्ज व्व ॥२१॥ 
चविरविरहियपियजणमीलिय व्व सुविसिद्गपत्ततग्ग व्व | अमयरससित्तगत्त ठत्र पत्तअपवग्गसोक्ख व्व ॥२२॥ 
किंपि अणक्खेयसुहं संपत्ता जह न माइ अंगेसु । होय चिय पुन्नवसा जीवाणं एरिससरूवं ॥२३॥ 
संपुन्नदोहला सा मणचितियसंघडंतसयलत्था । रयणनिहिं व महस्घं साणंदा वहइ तं॑ गब्म॑ ॥२४॥ 

तत्तो पसत्थद्विसे अद्धृद्ठमदिणनवण्ह मासाणं । उवररिं पसत्थतिहि-करण-लूमग-होरा-मुहुत्तेसु ॥२५॥ 
जाओ नियदेहपहापयासियासेसमवणदि्सियको । सुपसत्थलक्खणघरों तीए सब्वुत्तमो पुत्तो ॥२६॥ 

तो रभसवससमुत्तालगमणविहडप्फडाए दासीए | वंछियसुयजम्मणवहयरेण वद्धाविओ इब्भो ॥२७॥ 

तो तीसे हरिसवसुल्लसंतरोमंचकचुइयतणुणा । निययंगरूग्गवरवत्थमणहराभरणमइरम्मं ॥२८॥ 
दारिदगरुयपव्वयमत्थयनिद्दलणवज्जदंडसमं । तेण परितुट्टिदाणं दिल्न॑ दासित्तमबणेउं ॥२९॥ 

पियमासिणि त्ति काऊण दाविया तीए कणयमयजीहा । सकुडुंबनिव्विसेसं त॑ पेच्छह सब्बकज्जेसु ॥३०॥ 


२६६ 


आख्यानकमणिकोशे 


तयणंतरमिब्भो पुत्तजम्मपाउब्भवंतपरितोसो । नायरयाणंदयरं वद्धावणयं पवत्तेइ ॥३१॥ 


त॑ च केरिस (-- 


जओ--- 


वज्जंतचारुतूरयं नच्ंतनारिपूरयं, गायंततारगायणं दुकंतसाहुवायणं । 

तुप्पिज्माणचट्टयं पढंतमूरिभटयं, आवन्तअक्खवत्तयं हीरंतपुन्नवत्तयं ॥ 

किज्जंतबालरक्खयं पूइज्जमाणपक्खयं, सुब्वंतविद्धिसद्यं संतुद्गपीढमदयं । 

ओल्मगमाणसेवय्यं संथुव्वमाणदेवयं, आवन्तभूरिषाउलं तोसिज्जमाणराउलं ॥ 

सिज्झंतभत्त-पाणयं दिज्जंतदीणदाणयं, मुच्चंतगोत्तिबंधणं किज्जंतरुट्टसंघर्ण । 

वग्गंतचारुचारर्ण संजायलोयसारणं, तुप्पंतसाहुपत्तयं लब्भन्तभूरिभत्तयं ॥ 

इय बहुविहृविच्छड्धिण रंजियसयलूजणु, विलसिरकित्तिकुलंगणनिम्मलकुलभवणु । 

नर-नारियण-नरेसरमणह सुहावणउं, विहवमहाभरिमिब्मि किउ वद्धावणउं ॥३२॥ 
रमणीयंगत्तणओ जणाणमाणंदकारगत्तेण । ललियंगओ त्ति नाम॑ कारियमिब्भेण तणयरस ॥३३॥ 
जा वय-तणुबंधएणं जाओ [सो] अदट्ठववरिसदेसीओ । वड्ुंतो पददियहं सह जणयमणोरहसएहिं ॥३४॥ 
तो सोहणतिहि-वारे समप्पिओ सो कलाण गहणत्थं । लेह।यरियस्स कलाकलावविउणो विणयपुव्व॑ ।|३५॥ 
सम्माणिऊण सम्म॑ वत्था-5लंकारपभिइणा मणिओ । इब्मेणमुवज्काओ तह सम्म॑ं जयसु एस जहा ॥३६॥ 
थेवेण वि कालेणं समग्गसत्थत्थपारगो होउः | विउसाण वन्नणिज्जो जायइ मह मणसमाहिकरों ॥३७॥ 


अणहुंतो वि हु अम्मा-पिऊण ता दुक्खमावहइ तणओ । होऊण विवज्ज॑ंतो बहुययरं कुणइ सो दुक्‍्खं ॥३८॥ 
परमेए अप्पयरं तेसि जणयंति दुक्‍्खरिंछोलिं। अवियाणियपरमत्थो मुक्खो बहुदुक्खसंजणओ |॥|३९॥ 


अन्राप्युक्तम्‌ -- 


अजात-मृत-मूखभ्यो, मृता-उजातौ वरं सुती | तो किश्विच्छोकदौ पित्रोमूखस्त्वत्यन्तशोकदः ॥४०॥ 

तेण वि भणियं मा कुणसु खेयमेयं तहाडहमित्थ5त्थे | भद्द ! जइस्सं जह बुहसिरोमणी तुह सुओ होही ॥०१॥ 
एवं सो नियगुणजोग्गयाए तह जणयतज्जणाओ य । निउणकलायरियपयत्तसंभवाओ य निच्च॑ पि ॥४२॥ 
थ्रेवेहिं वि दिवसेहिं निम्मलमइविउसजणपसिद्धाणं । बावत्तरीकलाणं पारगओ पुन्नलब्भाणं ॥४३॥ 

तो सो सोवज्काओ पसत्थद्विसम्मि जणयभवणम्मि । संपत्ती कारविओ महो य पुणरुत्तमिब्भेण ॥४४॥ 
मणि-रयण-हेम-वत्थाइएहिं परिपूरऊण पज्जत्त | सप्पणयमुवज्काओ विसज्जिओ निययभवर्णम्मि ॥४५॥ 

सो वि हु जम्मंतरलहुसहोयरो कम्मपरिणइवसेण । तज्जणणीए गब्भे पुत्तत्ताए समुप्पन्नो ॥४६॥ 

तो तन्निमित्तदु व्ववणसवणमरणाणुभावजणिएण । वहरेण तीए देहे महई अरद समुप्पन्ना ॥9७॥ 

पक्खित्ता पाहाणा कि मह उयरम्मि तिव्वदुहजणया । कि वा वि कप्परिज्जह मह उयरं तिक्खछुरियाएु १ ॥४८॥ 
पञ्जलियजलणजालाचियाए कि वाउहमेत्थ पक्खित्ता ) | कि वा वि कोइ वाही संजाओ अप्पडीयारों ? ॥४९॥ 
जेणेयं मह दुबखं अजायपुव्व॑ समागयमयंडे । इय सा दुक्‍्खसमुद्दे पविखित्ता गमइ दियहाई' ॥५०॥ 

तत्तो पाडण-साडणकारयपाणाइयाणडणेगाइ' | कारावियाणि तीए तह वि हु सो कम्मदोसेण ॥५१॥ 

न मओ तत्तो कालक्कमेण सो वि हु तहेव संजाओ । जणयंतो जणणीए दुहमतुलं दुक्खपसवेण ॥५२॥ 

सुयणो व्व तओ दुज्जणसंसम्गीए गयाए सा सुहिया । उयराओ तेण विणिग्गएण सहस त्ति संजाया ॥५३॥ 

तो सो तकक्‍्खणमुक्कुरुडियाए वहराणुभावदोसेण । दासीए हत्थेणं समुज्किओ जायरोसाए ॥५४॥ 
तप्पुन्नपभावाओ कुओ वि विज्नायमेयमिब्भेण | संगोविओ य तेणं परुसं भणिया य तज्जणणी ॥५५॥ 
केत्तियमेत्ता पावे ! तुज्क घरे संति संपय॑ पुत्ता | छड्जावसि निव्बिन्ना जं तुच्छमणोरहा एवं ॥५६॥ 

इब्मेण सुहमुहुत्ते सब्ब॑ भोयाविऊण बंधुयणं । विहिय॑ विहाणपुव्व॑ नाम॑ से गंगदत्तो त्ति ॥५७॥ 


३०, भावशल्यानालोचनदोषाधिकारे ललिताइजनन्याख्यानकम्‌ २६७ 


तो सो धावीए समप्पिकण वद्धारिओ पयत्तेण। जाओ कइवयवरिसो पच्छन्न॑ तीए मायाए ॥५८॥ 
तत्तो सो जणय-सहोयरेहिं कम्मि वि महसवे जाए। नेहेण समाणीओ भोयविओ तीए पच्छन्न॑ |५६॥ 
सो जेमंतो जणणीए कह वि दिदट्ठो बला वि तो तेसिं। पाएसु कढ्लिऊर्ण पक्खित्तो ओधसरयम्मि ॥६०।। 
तत्तो जणएणुत्तं क्रिमणेणं तुज्म बालएण कय॑ १। सा वि हु पभणइ कि मज्क मंदिरे एस आणीओ ९ ॥६१॥ 
एवं जणयाईणं कलहंताणं परोप्परं तेसिं। मिक्‍्खट्वाए पविट्टो अइसयनाणी मुणि एगो ॥६२॥ 
तो त॑ बंदिय सिरकयकरंजली जायविम्हओ इब्भो । पुच्छहइ वहयरमिणमों माइ-सुयाणं अघडमाणं ॥६३॥ 
भयवं ! कि जणणी वि हु एरिसअसमंजसं कुणइ पाव॑ । पुत्ते जारिसमेसा मम जाया चत्तमज्जाया ? ॥६४०॥ 
तेण वि भणियं मा कुणसु विम्हयं भद्द ! कुणइ माया वि । पृत्तम्मि अपिपयं पुथ्वजम्मवेराणुभावेण ॥६५॥ 
एएणं पुव्वभवे अन्नाणाओं विराहिया एसा । दुब्बबणभणण-मारणहूवं वहरं जणंतेण ॥६६॥ 
तो तेण तत्थ मुणिणा संखेवेणं निवेइओ सब्बों । पुत्वभववइयरों कड़ु यवयणभणणाइ-मरणंतो ॥६७॥ 
तो सोम ! इमीए इमो पुत्तो वि हु अप्पिओ इहं जाओ | पावमिमं भयजणयं ता भव्वा ! परिहरह बहरं ॥६८॥ 
भीमम्मि भवे भव्यों वि भमह काल दुरंतमेएण । पावमिमं भयजणयं ता भव्या ! परिहरह वहरं ॥६९॥ 
दोगच्च-दु ग्गदीहग्गदुक्खमेएण पाउणइ जीवों । पावमिमं भयजणयं ता भव्वा ! परिहरह वहरं ॥७०॥ 
लक्खण-रावणसुहडा अज्ज वि जुज्ञ॑तिमेण नरयम्मि । पावमिमं भयजणये ता भव्या ! परिहरह वहरं ॥७१॥ 
परिवज्जह मिच्छत्तं कसायभडवग्गनिग्गहं कुणह । परिहरह राग-दोसे दुद्दमदंडत्तयं हणह |७२॥ 
परिचयह विसयसंगं मोहमईं मुयह महह मयणभडं। उम्मग्गगमणरसियं परिरंभह करणहयवंतद्रं |७३॥ [प्रन्थाग्रम्‌ १००००॥] 
सम्मगां पडिवज्जह परिवज्जह पावमित्तसंजोयं | महिऊण मोहमल्ल सिवरज्ज जेण पाउणह ॥७४॥ 
इय मुणिवयण्ं सोउं संवेयकरं सुहं धुणंताणं । वेरग्गगया जंपंति जायचारित्तपरिणामा ॥७५॥ 
जाउ खय॑ गिहवासो निवडउ वर्ज सिरे सिणेहस्स | पविसउ पायालतले परिग्गहो वि हु महापावो ॥७६॥ 
वच्चउ पलयमणज्जो अगत्थजणगो इमो महारंभो । एयाए वि हु जायउ सममुत्ती विसयवंछाए |७७॥ 
संसारियभावाणं नमोत्थु एयाण मोहिया जेहिं । न मुणंति मोहविसघारिय व्व परमत्थमिह जीवा ॥७८॥ 
इय विविहविमलसंवेगभावणाभाविया भवावासे । रइमलूहंता सिववहुसंगमरसलालसा अहिय॑ ॥७९॥ 
रागाइजलणजालोलिपज्ललंतं गिहासमं मोत्त । तिन्नि वि ते पव्वइ्या संविग्गमणा महासत्ता ॥८०॥ 
अब्भसियदु विहसिक्खा गुरुकुलवासं समस्सिया सययं । परिचत्तसव्वसंगा विसुद्धलेसा समियपावा ॥८१॥ 
विप्फुरियगरुयविरिया संखो व निरंजणा गयविसाया | कुलवहुय व्व5वियारा वसुहं विहरंति विगयभया ॥<८२॥ 
सा वि हु जम्मन्तरनेहनियलसंजमियहिययवावारा । ललियंगओ त्ति ललियंगओ त्ति बाहर तज्बणणी ॥८३॥ 
अवहरियमणसमाही विसममहामोहविलसियविसन्ना । हरिणि व्व जूहभट्ठा परिवड्ि यगरुयरणरणया ॥८४॥ 
न सुयइ सुहं निसाए द्वा वि जेमइ न जेमणं छुहिया । अट्टवसट्टीवगया ललियंगयमोहियमईया ।॥|<८५॥ 
मरिऊण मोहवसया पत्ता कुगईं परगिद्विदुहदुहिया । भमिही भवकंतारे अहो ! हु मोहों अगत्थफलो ॥<६॥ 

॥ ललितान्नकजनन्याख्यानक॑ समाप्तम ॥६६॥ 


एए अट्टबसद्टा कुगईं मोहाओ पाविया मरिउं | ता सम्म॑ मरियव्वं समाहिलाभे सुहत्थीहिं ॥ 
यः स्वापतेय-गृह-पुत्र-कलत्रमूढ:, काल करोति स भवेदिह दुःखधाम । 
तस्मात्‌ समाधिवशगेन विवेकभाजा, मतेव्यमन्यजन्मन्यमृतत्वहेतो: (१) ॥ 


॥ इति भीमदाप्रदेबसरिधिरचितवृत्तायाख्यानकमणिकोशे मोहवशात॑मरणकुगतिपातद्शेकर्स्रशक्तमो 5घिकारः समाप्त:॥३०॥ 
">> शेहें ८८ 


[ ३१. धमंसुकरतावर्णनाधिकारः ] 


एतच्च गुरुकर्मणां भवति । लघुकमणः पुनस्तारुण्येडपि च वतेमानाः सुगतिगामितया तपश्चरन्तीति प्रतिपादनाया55ह-- 
साह्दीणसव्वभोगा वए वि पढमम्मि केइ लहुकम्मा 
साहंति तवच्चरणं ढंढणकुमरो व्व जंबु व्व ॥|४०॥ 
व्याख्या--स्वाधीना:--स्वायत्ता: सर्वे--शब्दादयो भोगाः येषां ते तथोक्ताः, “वयस्यपि प्रथमे' तारुण्यावस्थायामित्यथे:, 

'केचन! न सर्वे लघुकमोणः 'साधयन्ति? कुबन्ति 'तपश्चरणम” अनशनादिरूपम्‌ | किंवत्‌ ? इत्याह--'दण्ढणकुमारवत” वासुदेवपुत्र 
इव “जम्बुवद” इभ्यवृषभपुत्र इव इति गाथासमासार्थ: ॥ व्यासाथ॑स्त्वाख्यानकाभ्यामवसेयः । ते चामू । 
तत्न तावत्‌ क्रमप्राप्तं हण्ढणकुमाराख्यानकमाख्यायते । तच्चेदम-- 

अत्थि इह दाहिणड्े भारहमज्झे समम्गदेसाण | चूडामणिसंकासो मगहा नामेण विसओ त्ति ॥१॥ 

तत्थ वि समग्गगामाणमग्गणी धन्नपूरओ गामो । किसिपारासरनामो तत्था55सि बलाहिओ विप्पो ॥२॥ 

रज्नो निमित्तमेसो चरीउ कारइ अह्रन्नादवसम्मि । तण्हा-छुहाकिलंता भत्ते पत्ते नरा तेण ॥३॥ 

नियखेत्ते एक्केक्क चंभं मड्डाए दाविया खीणा । तो तन्निमित्तविग्धं निकाइउ' आउयस्संते ॥४॥ 

तिरिएसु समुप्पत्नो कश्य वि जम्मन्तराणि तत्थ ठिओ । केणइ सुहकम्मेणं तत्तो मरिऊण संजाओ ॥५॥ 

सोरट्टविसयभूसणबारवईसामिवासुदेवस्स । पुत्तो ढंढणकुमरों नामेण कलाकलावबिऊ ॥६॥ 

विवाहिओ य निवकन्न याओ नवजोव्वणाभिरामाओ । विसयसुहमणुहवंतो ताहिं सम॑ गम कालं सो ॥७॥ 

अह अन्नया य सिरिनेमिजिणवरे रेवए समोसरिए। कन्हप्पभिइ्महीवइविंदे नमिउठ' निविट्टम्मि ॥८॥ 

कुणमाणे नवजलहरसरेण सद्देसणं भुवणनाहे | संजायगरुयवेरगगमाणसे भव्वनिवहम्मि ॥९॥ 

पुच्छित्तु सयणवग्गं रज्जसिरिं उज्किउ' महासत्तो | ढंढणकुमरो गिण्हइ पव्वज्ज॑ जायसंदेगो ॥१०॥ 

तिणमिव पडग्गरूग्गं विसयसुहं उज्यझिऊण निक्‍्खंतो । अब्भप्तियद्विहसिक्खो कुमरो तवरूच्छिसंपन्नो ॥११॥ 

रयणपहाकलिओ वि हु दूरं परिहरियरयणपहवत्तो | नाणाविहदेसेसुं विहरह सो सामिणा सद्धि ॥१२॥ 

अह पुव्वभवसमज्जियविग्घम्मि विवागमा[ग]ए भयवं | सुइरं हिंडंतो वि हु न लहइ सो कि पि भणियं च ॥१३॥ 

सिरिवासुदेवतणओ सीसो तेलोकसामिनेमिस्स । सव्वगुणाण निवासो धण-कणयसमिद्धनयरीए ॥ १४॥ 

भममाणो वि न पावइ भिकक्‍खामेत्तं पि ढंढणकुमारों । जम्मंतरनिव्वत्तियतिव्वमहाकम्मदोसेणं ॥१५॥ 

तस्संतरायदीसा बीओ वि हु जाव पावहइ न कि पि। तो सब्बे वि हु मुणिणो गंतु पुच्छेति नेमिजिणं ॥१६॥ 

कहिओ य भयवया से पुन्बभवी तयणु ढंढणकुमारों | गिण्हइ नियमं नियलाभभोयणे भयवओ पुरओ ॥१७॥ 

एवं च अलाभपरीसहं सहंतस्स तस्स अइसम्मं | समइक्कंतो कालो बहुओ अह अन्नदिवसम्मि ॥१८॥ 

बारवबईए सिरिनेमिजिणवरो नमिय पुच्छिओ हरिणा । तुम्ह मुणिनियरमज्झे को दुकरकारओ सामि ॥१९॥ 

भयवं साहइ सब्बे व5इदुकरकारया विसेसेण | ढंढणकुमरो त॑ निसुणिऊण नमिऊण नेमिजिणं ॥२०॥ 

पविसइ जाव पुरीए कण्हो ता दिट्टिगोयरे पत्तो । गोयरचरियाए गओ थिरचित्तो ढंढणकुमारों ॥२१॥ 

ओयरिय करिवराओ भत्तीए वंदिओ तयं दह्ढ॑ | । वंदिज्ज॑ंतं हरिणा सेट्टी वायायणम्मि ठिओ ॥२२॥ 

चिंतइ एस कयत्थो कोइ मुणी जो नमिज्जए रण्णा | ज३ एइ मज्म गेहे ता पडिलाभामि एयमहं ॥२३॥ 

पत्तो कमेण सो तस्स मंदिरे तेण सिहकेसरए । पडिलाभिओ सहरिसं भत्तिब्भरसहियहियएण ॥२४॥ 

तत्तो नियत्तिऊर्ण संपत्तो नेमिपायमूलम्मि | पुच्छट भयवं ! कि मम तमंतरायं खयं पत्त १ ॥२५॥ 


३१. धमंसुकरतावणनाधिकारे ढण्ढणकुमाराल्यानकम्‌ २६६ 


भयवंतेण वि भणियं अज्ज वि कम्म॑ न खिज्जए तुज्क | एसा वि कण्हलद्धी त॑ सोउं ढंढणकुमारों ॥२६॥ 
सन्वेसि दंसिऊर्ण उस्सूरत्ताओ तेहिं वि निसिद्धे । सुहचित्तो पारद्धो परिठविउं मोयगे तत्तो ॥२७॥ 

जीव | तुम॑ मा काहिसि रसगिद्धि मोयगेसु जह एए । न मए भुत्ता जम्हा अणेगसो भुतपुव्ब त्ति ॥२८॥ 
तणरासीहिं व जलणो जह जलनाहो नईसहस्सेहिं। नो तिप्पह तह जीवो बहुयाहिं वि भोयणविहीहिं ॥२९॥ 
इय सम्म॑ चिंतंतरस मोयगे तस्स परिठवंतस्स । पयडियसब्वपयत्थं केवलनाणं समुप्पन्नं ॥३०॥ 

पडिबोहिय भवियजणं पालिता केवलिस्स पज्जायं । निद्ववियअट्टकम्मो स महप्पा मोक्खमणुपत्तो ||३१॥ 


॥ ढंढणकुमराण्यानकं समाप्तम्‌ ॥६७॥ 


इतानीं अम्ब्धाण्यानकमाख्यायते-- 


त॑ च जहा रायगिहे सुधम्मसामिम्मि समवसरियम्मि | जायाविणोयणत्थं पहाणरहमारुहिउमिब्भो ॥१॥ 
संपत्तों गुरुपासे पुट्टम्मि पियाए पृत्तजम्मम्मि | जसभद्देणं कहियम्मि पुत्तताभम्मि जायाए ॥२॥ 

जह ओवाइयमट्ट्सयमंबिलाणं सुयस्स नाम॑ च | जंबूदेवीए तय॑ तीए कयं पुत्तकामाए ॥३॥ 

तम्मि जहा नररयणम्मि इब्भभवणम्मि जायमेत्तम्मि | वद्धावणयविहणेण दाण-सम्माणकरणेण ॥9॥ 
दुत्थियसुहे ल्लिजणणेण पुन्नवंतम्मि जम्मि सव्वजणों | पमुइयपकीलिओ सइ सुही य जाओ जिर्णिदे व्व ॥५॥ 
जह सो सब्वकलाणं मइगुणपगरिसपभावगम्माणं । जाओ सब्बपवीणों धम्मकलाए विसेसेण ॥६॥ 

जह सो तरुणीहरणीण वागुरासरिसमसमगुणकलियं । लायन्नललाममणंगधाम तारुन्नमणुपत्तो ॥७॥ 

जह सो सरोयपत्तं व कामजलसंगवज्जिओ मइम॑ | कंसीपत्तं व सगहनीरपरिहरियरुइरतणू ॥८॥ 

संखो व्व पवित्त-सुदृत्तसंगओं विरहिओ वियारेहिं। वियरह समग्गनर-नारिहिययहरणों समियकरणो ॥९॥ 
जह कश्या वि हु मुणिवरसुहम्मगणहारिसंगइगुणेग । जाओ विसुद्धलेसो धणियं धम्मो' व्व पच्चतखों |॥|१०॥ 
जह सो जणणीउवरोहगुणवसा अट्ट इच्मकन्नाओ | परिणह मणोहराओ सुरंगणाहिं व्व सुरकुमरों ॥११॥ 
परियरिओ जह सो ताहिं वासभवणम्मि धम्मबुद्धीप | करिसगनायाईहिं पडिबोहद ताओ धम्मम्मि ॥१२॥ 
संबोहिय रायसुयं पमव॑ गणहरसुधम्मपासम्मि | पव्वइ्यो जह छड्डिय तणं व त॑ लच्छिविच्छडुं ॥१३॥ 


जओ भणिय॑--- 


तथाहि-- 


सो जयइ जंबुणामो तरुणत्ते जेण पालियं सीलं । अट्ट करूत्ते नवनउइकणयकोडीओ परिहरिउं ॥१४॥ 
अव्भसियदुविह सिक्खो जिणसासणनीरनाहपारगओ । छत्तीसगुणसमन्नियगुरुसंपत्तमुरिपओ ॥१५॥ 
परिपालियपरियाओ नियपयसंठवियपभवरायसुओ । संपत्तकेवलसिरी विहुयमलो सिद्धिमणुपत्तो ॥१६॥ 
तह वित्थरओ जिणनाहभणियसिद्धंतओ समुन्नेयं | इह पुण संखेवेणं भणियं भव्वाण संतिकरं ॥१७॥ 


कल्लाणं मंगल्लं चरियमिमं जयह जंबुनामस्स । एत्तो चिय पच्चसे कुणंति गुणथुइमिमस्सेवं ॥१८॥ 

सो जयइ जंबुणामो मणपज्जवसब्नियस्स नाणस्स | मणचिंतियगुणविउणो अपच्छिमो जो इहं भरहे ॥१९॥ 
सो जयहइ जंबुणामो केवलरविणो5रुणोदयसमस्स । परमोहिस्स महप्पा अपच्छिमो जो इहं भरहे ॥२०॥ 
सो जयइ जंबुणामो पुलायलद्धीए गुरुषभावाए। चक्किबलचू रणीए अपच्छिमो जो इहं भरहे ॥२१॥ 

सो जयइ जंबत्रुणामो विसिट्ठकज्जप्पसाहणखमस्स । आहारगस्स गुणवं अपच्छिमो जो इहं भरहे ॥२२॥ 
सो जयइ जंबुणामो विसिट्ठ सुद्धिपवखवगसेढीए । कम्मक्खयजणणीए अपच्छिमो जो इहं भरहे ॥२३॥ 
सो जयइ जंबुणामो दुज्जयगुरुमोहणिज्जसमणीए । उवसमसेढीए वि हु अपच्छिमो जो इहं भरहे ॥२४॥ 





१, धणुओं व्व--खं ० | 


२७० आखश्यानकमणिकोशे 


जो जयइ जंबुणामों महह्महासत्तसेवणिज्वस्स । जिणकप्पस्स वि गुरुणो अपच्छिमो जो इहं भरहे ॥२५॥ 
सो जयह जंबुणामो परिहारविसुद्धिपभिश्चरणाणं | तिण्हं परमगुणाणं अपच्छिमो जो इहं भरहे ॥२६॥ 
सो जयइ जंबुणामो लोयाउलोयप्पयासणखमाए । केवलनाणसिरीए अपच्छिमो जो इहं भरहे ॥२७॥ 
सो जयद जंबुणामो असेसकम्मक्खयप्पसूयाए | सासयसुहसिद्धीए अपच्छिमो जो ह॒हं भरहे ॥२८॥ 
मयणकररिकेसरिणो चूडामणिणो चरित्तिचकस्स । अच्चब्भुयगुणनिहिणो नमो नमो जंबुणामस्स ॥२९॥ 
एएहिं जोव्वणम्मि वि साहीणे वि हु समुज्मिउं भोए | जह चरियं सीलमिमं तह अन्नो वि हु धरइ धीरो ॥३०॥ 
॥ जम्ब्वाख्यानक समाप्तम ॥६८॥ 
आत्मप्रभावपरिभूतजगत्रयस्य, प्रौढ्पतापविभवैरषि दुजयस्य । 
दत्त्वा पदं सपदि मूद्धंनि मन्मथस्य, केचित्‌ तपः कृतिमम्‌ इव साधयन्ति ॥१॥ 
॥ इति भ्रीमदाप्तदेवसूरियिराचितवृत्तावाब्यानकमणिकोशे प्रथमवयस्यपि विवेकिनो धमंसुकरताव्णेनो नाम 
एकत्रिशसमो 5घिकार: समाप्त: ॥३१॥ 


>> छ2०८2 


[ ३२. धमविषयकुलप्राधान्यनिवारकाधिकारः ] 
स्थान्मतिः कस्यचित्‌ू--कुलजातत्वाद्‌ ढण्ढणकुमारादिभिरिदं निरवाहि, न धुनरपर एतत्‌ कतुमलम्‌ इति मतमपाकुवेन्नाह-- 
न कुलेण पहाणत्तं हवह नराणं सुरा वि ज॑ झुहया । 
हरिकेसि-नंदिसेणे वंदंति नमंति सेवंति ॥४१॥ 
व्याख्या--'न' नेव “कुलेन” शुद्धपितृपक्षेण 'प्रधानत्वं” प्रधानभावः धर्मविषये इत्यध्याहारः भवति 'नराणाम! । 'खुरा अपि! 

आसतां मनुजाः 'यद? यस्मात्‌ कारणाद 'मुदिता:” हृष्टा: हरिकेशि-नन्दिषेणो 'वन्दन्ते” वाम्मिः स्तुवन्ति 'नमन्ति' कायेन प्रणिपतन्ति 
'सेवन्ते' एवमेव पयु पासन्ते इति गाथासमासाथ: ॥ व्यासाथ॑स्त्वास्थानकाभ्यामवसेय: । ते च इमे । 
तत्नापि क्रमप्राप्त हरिकेश्याख्यानक व्याख्यायते । तय्यथा-- 

सुपवित्तसुदत्त समुदसंभवो सिरिनिवासगुणओं य | सव्वत्थ वि विक्खाओ संखो संखो व्व सुहसद्दो ॥१॥ 

वाणारसीए नयरीए नरबई सामनीहनयनिठणो । मंती नमुई नमुइ व्व दाणवो तस्स दुद्गप्पा ॥२॥ 

सो य अमश्चो पयईेए निट॒ठुरों सइधणों व्व दोन्नमणो | पासायतले ओलोयणट्टिओ नियह मुणिमेगं ॥३॥ 

पंचसमियं तिगुत्तं भिक्खट्टा परियडंतमुवउत्तं | तत्थ य हुयवहरच्छा पयईए जलूंतरेणुकणा ॥9॥ 

न य को वि हु वत्थव्वो तीए संचरइ पायदाहभया । तत्तो पुट्टो सो तेण साहुणा मग्गमेसी य ॥५॥ 

चितह दुद्बत्णओं समणगमिममुल्ललंतमेएणं । मग्गेण डज्झमाणप्पणण पिच्छामि ताव सुहं ॥ 

निग्गच्छह बहिमेसो ता वच्चसु समण ! सो वि सोउमिमं | गंतुं जाव पयद्टो इरियासमिओं समयविहिणा ॥७॥ 

ता तग्गुणभत्ताए कीए वि हु देवयाए सो मग्गो | हिमकणसीयलफासो विहिओ दद्वण त॑ नमुई ॥८॥ 

पच्छायावपरद्धों तेणेव पहेण गंतुमिसिपासे । निंद्‌इ सो अप्पाणं कहिऊरणं पुव्बवुत्तंतं ॥९॥ 

वियरसु मह पव्वज्जं जेणाड5राहेमि तुज्ञ पयजुयलं | अवबरेण पयारेणं न जाउ मह जायए सुद्धी ॥१०॥ 

पव्वाविओ य तेणं पालइ पव्वज्जमणहपरिणामी । नवरं मणे न मुंचइ कम्मवसा जाइ-रूवमयं ॥११॥ 

मरिऊण सुरवरेसुं पत्तो सो आउयक्खए चविउ' | मयजणियकम्मदोसेण सावसेसेण मणुयभवे ॥१२॥ 








बी -जग्बू श 
१. श्रमू इव दण्दणकुमार-जम्बूकुमाराविवेत्यथः । 


३३. एकाकिधिद्ारदोषवर्णनाधिकारे अरदृश्तलककथानकम्‌ २७१ 


गंगातीरे हरिकेसजाइया किर वसंति मायंगा । बलकुझ्टो मायंगो गोरीनामेण से भज्जा ॥१३॥ 

तीए गब्मे जाओ मएण हरिकेसबलडमिहाणो त्ति। उद्धंतरो विरूषो लंबोट्टों वकनासो य ॥१२॥ 

खर-फरुस-कविलकेसी विरूयलंबोयरो तिकोणसिरों | दुभगो बिडालनयणो विसमावयवों य पाएण॑ं ॥१५॥ 

पयईए अणालीओ करेह वयणेण जंपइ विरूव॑ । कि बहुणा ? सो विसपायवो व्व सब्वस्स वि य वेसो ॥१६॥ 

कइ्या वि हु रहइयावाणगाण तेससि महुं पियंताणं | मायंगाणं महुभायणाणि भंजेह भयरहिओ ॥१७॥ 

तो मिलिऊर्ण तरुवरजडाए सो तडफडंतओ बद्धो । पेच्छइ महं पियंते कीलंते डिभरूवे य ॥१८॥ 

जाव य खणंतरेणं तेसि समीवे समांगओ सप्पो | तो मिलिऊणं भक्खणमभयाओ सो मारिओ तेहिं ॥१८॥ 

पुणरवि य तयागारो तयंतिणु दीयडो समणुपत्तो | तो त॑ पि हु विसमयओ मायंगा मारिउं छूगा |॥२०॥ 

तावेगेणं भणियं मा मारह एस निश्विसो अज्ज | अट्टमि-चउद्दसीसुं एयस्स विसं जओ होइ ॥२१॥ 

तयवस्थेणं तेणं हरिकेसबलेण सव्वमवि एयं | सच्चमियं सयमेव य तो पडिबुद्धो विचितेइ ॥२२॥ 

पेच्छ इमो निग्गहिओ सविसो बीओ य नित्विसो मुक्को | कीलंति इमे डिंभा अहय॑ं दोसेण संजमिओ ॥२३॥ 

तो मोत्तृणं दोसे संपयमहमवि समायरामि गुणे । इय वेरग्गगएणं कहमवि दिद्वों मुणी एगो ॥२४॥ 

तो हरिसनिब्भरेणं पणमित्ता सविणयं भणियमिमिणा । ज३ अत्थि जोग्गया मह तो भयवं ! देखु पव्वज्जं ॥२५॥ 

पव्वाविओ य तेणं अइसयनाणेण जोग्गयं नाउं । तो सो निव्वेबाओ जाओ समणो समियपावों ॥२६॥ 

दुकरतवचरणरओ निस्संगो क्रिमवि निव्वियारों य। निप्पडिकम्मसरीरों विहर॑ह वसुहं अपडिबद्धों ॥२७॥ 

कइया वि हु विहरंतो संपत्तो तिंदु गम्मि उज्जाणे। तत्थ य तिदुयजक्खो तब्भवणे सो ठिओ भयवं ॥२८॥ 

निस्संगयाइगुणगणरंजियहियएण तेण जक्खेण । काइज्जद पणमिज्जइ वंदिज्जइ सो मुणी निच्च ॥२९॥ 

उवरिं जह भद्दाए रायसुयाए विवाहिउ' विहिओ । जक्खेणं जणपुज्जो सुयाओ सेसं पि तह नेयं ॥३०॥ 

॥ दहरिकेशाख्यानकं समाप्तम ॥६६॥ 
इदानीं नन्व्षिणाख्यानकस्यावसर: । तश्च पूर्व व्याख्यातमेवेति । 

न कुलस्स पहाणत्तं कारणमिह लहुयकम्मया धम्मे | तो जिणबयणविऊरहिं कुलाभिमाणो न कायव्वों ॥१॥ 
प्राधान्यमल्पमपि निश्चयतों जना: ! मा, मन्यध्वमत्र जिनधमंविधौ कुलस्य । 
यज्नन्दिषेण-हरिकरेशिमुनी गुणाव्यो, भक्तया विनाउपि कुल्मज्ञ ! सुराः स्तुवन्ति ॥१॥ 

॥ इति भ्रीमदाम्नदेवसूरिविर चितवृशावाख्यानकमणिकोशे धर्मंविषयकुलप्राधान्यनिवारक: 
दात्रिशतमो४५घिकारः समाप्त ॥३२॥ 


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[ ३३, एकाकिविहारदोषवर्णनाधिकारः ] 


एतञ्च हरिकेश्यादीनामेकाकित्दमापवादिक मन्तव्यम्‌ | उत्सगंतो गुरुकुलवास एवं श्रेयान्‌ , तस्य गुणहेतुत्वादू, इतरस्य 


च दोषदुष्टववात्‌ । तथा चाह-- 
एगागिणो विह्यारो पढिकुट्टो साहुणो जमेगस्स । 
इत्थीमाई दोसा अरइन्नय-कूलवाल व्व॥४२॥ 
व्यास्या--'एकाकिनः एककस्य 'विहार:' विहरणं 'प्रतिकुष्ट:' निषिद्धः निराकृतः। “यदू! यस्मात्‌ कारणादू एककस्य रूयादयो 
दोषा: । कयोरिव ? अरहलक-कूलवालयोरिव प्रसिद्धयोरित्यक्षराथें: ॥ भावाथ॑स्त्वाख्यानक्राभ्यामवसेय: । ते चामू। 


२७० आखश्यानकमणिकोशे 


तत्र तावद्रहश्नककथानकमाखल्याय ते -- 
अत्येत्थ पवरगच्छी गुरुगोत्तरमस्सिओ विउलसत्तो | पवरसुजाणनिवासो पाढीणपयाररमणीओ ॥१॥ 
ज॑ विहियरसच्चाओ मयरमणिविवज्जिओ य जं॑ निच्च॑ । त॑ं तस्स महच्छरियं संजायं जलहिरूवस्स ॥२॥ 
तम्मि भुरुविणयनिरओ अरहन्नयनामओ वसइ खुड़ो । नियजणणि-जणयसहिओ छज्जोवहिओ सयाकालं ॥३॥ 
किंतु नियजणयविरइयवेयावच्चो सया वि सुदकलिओ । आबालकालओ च्चिय कया वि अहिट्ठदुहलेसो ॥॥४॥। 
अह अन्नया य जणए पंचत्तमुवागयम्मि सुहलेसे । खरकिरणतरणिताविलभु वणयले गिम्हसमयम्मि ॥|५॥ 
पियमरणतावियतणू भणिओ साहूहिं एरिसं वयणं | जह अरहज्नय ! इमिणा मुणिणा सह विहर अज्ज तुम ॥६॥ 
पियमरणदुक्खसंभरणजायगुरुसोयसाममु हकमली । तेण सह मुणिवरेणं गोयरचरियाए नीहरिओ ॥७॥ 
खरकिरणतावियतणू गच्छंतं सो पमोत्तु तं साहु | पासायच्छायाए खणमेगं जाव वीसमइ ।।८॥॥ 
ताव नियमत्तवारणपरिट्टियाए पउत्थवइ्याए । दिट्ठों सुकुमाछतणू वयविसए मंदपरिणामो ॥॥९॥। 
तो तीए वाहरिओ आगच्छसु मह गिहे महाभाग !। जेण वियरेमि भिक्‍ख॑ त॑ सोउं जाव तग्गेहे ॥१०॥ 
पविसइ ताव पहिटद्ठा दारं दाऊण पभणए एसा । अइकढिणकायजोग्गं परिहर वयमेरिस सुहय ! ॥११॥ 
उवभुंजसु गुरुलच्छि माणसु तारुन्नमसरिसं मज्क | सहलीकुरु मणुयभवं संपत्तं पुव्वपुन्नेहिं ॥१२॥ 
निसियकरवालधारासंचरणसमं सुदुस्सहं चरणं । परिपालिउमसमत्थो अणुमन्नइ तीए त॑ वयणं ॥१३॥ 
उवभुंजइ विसयसुहं तीए सम॑ जायगरुयअणुराओ । तन्नेहहरियहियओ गय॑ पि काल न याणेह ॥१४॥ 
एत्तो तमपेच्छंती तम्माया नट्टवेयणा जाया । परित्रत्तसाहुवेसा उम्मत्ता वसणपरिहीणा ॥१५॥ 
परिभमह हसइ गायह नच्चइ परिछुढ॒ह धरणिवीढम्मि । डिभसहस्सपरिवुडा भममाणी नयरमज्ञम्मि ॥१६॥ 
सब्बं॑ पि वत्थुजायं 'अरिहज्ञय पुत्तय !” त्ति भणिरी सा | नेहमहागहगहिया न य चेयह किंबि अप्पाणं ॥१७॥ 
रुयमाणी सा दिद्वा पासायगवकक्‍्खसंठिएणिमिणा । चिंतेइ तओ चित्ते धिरत्थु मह जीवियव्वस्स ॥१८॥ 
परिचत्तनियकुलक्रमसमुवज्जियअसमपावभारस्स । गयसीलरयणनिहिणो धिरत्थु मह जीवियव्वस्स ॥१९॥ 
असहाय॑ ससणेहं गुरुजरया जज्जरं नियं जणर्णि | परिहरमाणस्स जए धिरत्थु मह जीवियव्वस्स ॥२०॥ 
आसाइयवरमुणिणो भवहत्थियसुहगुरूवणसस्स । विसयासत्तस्स जए धिरत्थु मह जीवियव्वस्स ॥२१॥ 
उज्मियसुपुरिससुहचेट्ठियस्स परिगलियगुरुविवेयस्स । निद्यचेद्वस्स जए घिरत्थु मह जीवियव्वस्स ॥२२॥ 
इय भाविऊण तत्तो पासाया ओयरित्तु सहस त्ति | उब्भडसिंगारधरों धरणीयलमिलियसिरकमलों ॥२३॥ 
पणमित्तु मणइ अरहन्नओ अहं अंब | बच्छलो तुज्म । निमुणित्तु तयं सहसा सचेयणा सा वि त॑ भगइ ॥२४॥ 
विउसजणनिंदणिजं कि ववसियमेरिसं तए बच्छ | १। सो भणह मंदपुत्नो न समत्थो काउमंब्र | बयं ॥२४५॥ 
अज्ब वि नियपाणे परिचयामि न चयामि वयमिमं काउं। अवरं च भग्गसीलूत्स मज्कमिणमेव जुत्त ति ॥२६॥ 
तीए भणियं वरमिममच्तं दुकरं कयं वच्छ !। न उणो हीणजणोच्चियमसमंजसमेरिसं विहिय॑ ॥२७॥ 
तो गहियसाहुवेसी आलोइय निंदिऊण दुशच्चरियं । गहियाणसणो सम्म॑ मरिसावियसयलरूसत्तगणो ॥२८॥ 
अइगिम्हतावताविलसिलायले निवडिओ महासत्तो । सुहमावभावियमणो लोणियर्पिंडो व्व पविलछीणो ॥२९॥ 
मरिऊण समुप्पन्नो देवो वेमाणिओं महिड्ठीओ । जणणी वि वयं काउं उप्पन्ना तियसलोगम्मि ॥३०॥ 

॥ अरिदृश्चकाख्यानकं समाप्तम्‌ ॥१००॥ 


इदानीं कूलवालाख्यानक व्याख्यायते | तश्चेद्म-- 
अत्थेत्थ पवरगच्छो अणेगसत्येसु लद्धमाहप्पो | नयरारक्खियपुरिसो व्व लोयविणयाइसंजुत्तो ॥१॥ 
परिहरियखमाभारो महावराहो वि नायराओ वि । गुरुचरणपश्चणीओ पडिवज्जियसुगुरुचरणो वि ॥२॥ 
अइमायाहारो वि हु अइमायाहारबज्जिओ निच्चं । परिवसह तम्मि एगो साह पब्भ्ठसुहलेसो ॥३॥ 


ऐड. एकाकिविदारदोषवर्णनाधिकारे कफूलवालाब्यानकम्‌ २७३४ 


अहद अन्नया य कम्मि वि गिरिम्मि तित्थाणि वंदिउं गुरुणा । सह जाव पडिनियत्तो ता चिंतह सूरिविसयम्मि ॥४॥ 
एसो न देह सोक्खं निच्च॑ चिय चोयणं मह कुणंतो । मारेमि ता इयाणि इममेगागिं महापाव॑ ॥५॥ 

इय चितिऊण मुक्को पट्टीए तेण टोलपाहाणो । आवलियखंधरेणं गुरुणा सहस त्ति त॑ द्ढ  ॥६॥ 

ओसरिउणं रुद्ट[ूण] साविओ तेण पच्चणीओ सो । रे पाव ! थीसयासाओ तुज्क होही खओ नियमा ॥७।॥। 
परिहरियं त॑ पाबं॑ एगागी गच्छमागओ सूरी । सो वि गुरुववणपडिकूलणत्थमेवं विचितेह ॥८॥ 

तत्थ मए वसियव्वं इत्थीनामं पि जत्थ न सुणेमि । तत्तो अहउग्गतवं नइकूले काउमारद्धों ॥९॥ 

आउट्टियाए नइृदेवयाए तत्तो य वालियं कूलं । नहकूलवालओ सो संजाओ तद्दिणाड5रब्म ॥१०॥। 

तत्तो चेडयनयरी वेसालो वेढिया गुरुबलेण । रज्ञा असोगचंदेण जाव न हु भज्जए कह वि ॥११॥ 

तत्तो विसन्नचित्तो कि पि उवाय॑ विचितए जाव | तावुच्छलिया सहसा गयणे ए्यारिसी वाणी ॥१२॥ 

समणे जह कूलवालए, मागहियं गणियं लभिस्सइ | लाया य असोगचंदएण, वेसालीनगर्लि गहिस्सह ॥१३॥ 

त॑ निध्ुणिऊण राया मागहियं बाहरित्त त॑ं भणइ । मह देवयाए कहिय॑ कज्जं सज्झं इमं तुज्ञ ॥१४॥ 

ता कूलबालयमुर्णि सवसीकाउं विहित्त भट्दव्य | आणेसु इ॒हं जेणं वेसाली भज्जए नियमा ॥१५॥ 

केत्तियमेत' कर्ज देव ! इमं मज्म तुह पसाएणं | सकडक्खबाणविवसीकयससुरा-5सुरसमूहाए ॥१६॥ 
चीवंदणाइ तत्तो सिक्खित्ता कवडसाविया जाया । कयविहववेसरूवा समाणवय-रूवपरिवारा ॥१७॥ 
वंद्उकामा तित्थाणि निग्गया किर महासइसरूवा । गच्छंती संपत्ता स कूलवालयमृणी जत्थ ॥१८॥ 

त॑ दटठूण पहिद्रा पणमह परिवारसंजुया तस्स । भत्ति-बहुमाणपुव्व॑ं आउच्छइ सुहविहाराइ ॥१९॥ 
गुणसवण-थवण-दंसण-पणमण-भरणेहि तुज्क धन्नाणि । जायाणि सवण-वाणी चक्‍खू काओ मर्ण मज्म ॥२०॥ 
इय थोऊणं तत्तो भणिया साहम्मिणीओ सयलाओ । अवगुंठियवयणाओ लज्जाए ओणयमुहीओ ॥२१॥ 
जंगमतित्थुववासा तुब्मेहि पमज्जियं महापात्र । अज्जेह महापुन्नं अज्जेह मुणिस्स दंसणओ ॥२२॥ 

इय एवं सो दिवसो अइकंतो पज्जुवासमाणीए | तीए अह बीयदिवसे प॒भायसमयम्मि पणमित्ता ॥२३॥ 
भणियं पच्चक्खाणं तुब्भे वि हु परमियं कुणह अज्ज । काऊण संविभागं पारणयं जेण काहामो ण२४॥ 

तत्तो खणंतरेणं वाहरिउ' कूडऋवडभरियाएं । अइसारजोयकयमोयगेहिं पडिलाभिओं तीए ॥२५॥ 
अन्नायतस्सरूवेण मोयगा मुणिवरेण ते भुत्ता । ताणं पभावओ से जाओ रोगो अईसारो ॥२६॥ 

अह बीयदिणे जा किर आगच्छह सा वि बंदणनिमित्त | ता रोगवसविसंदुलदेहावयवं मुर्णि दटठु ॥२७॥ 
पभणइ पावाए इमो अणुचियआहारदाणओ भयवं | । हा ! मंदभाइणीए विहिओ रोगो मए तुज्क ॥२८॥ 
तो कूलवालयमुणी पभ्णह मणयं पि नत्यथि तुह दोसो । किंतु मह कम्मपरिणइवसेण एसो समुब्भूओ ॥२५॥ 
तीए पुणो वि भणियं तुज्झ अणुन्नाए गरुयजयणाए । पडिजागरेमि भयवं | गीयत्था हं तुह सरीरं ॥३०॥ 
पच्छा आलोण्ज्सु अववायपयं गुरुस्स पयमूले । तो तेण अधुन्नाया वेयावच्च कुणइ तम्मि ॥३१॥ 

तीए पहदियहमेवं वेयावच्च॑ ससंपरातीए (१) । पउठणीकओ मुणी सो ओसह-विस्सामणाईहिं ॥३२॥ 
सुकुमारकरप्फंसाणुरायरत्तं मुणित्तु तं साहुं। ससिणेह सकडक्खं सबविलासं भणिउमाढत्ता ॥३३॥ 

भयवं | तावेस मए निस्संगस्स वि सुधम्मनिरयस्स । तुह धम्मझाणविग्घो विहिओ बहुपावकम्माए ॥३४॥ 

न हु एत्तिएण ठाही अज्ज वि ज॑ मज्क माणसमणज्जं अहिल्सइ कि पि अबरं तं संपयमवहिओ सुणसु ॥३५॥ 
मह आसि धम्मबुद्धी सा का वि हु जा न तीरए कहिउ | संपह जलहिजलं पिव मे हिययं जायकल्लोलं ॥३६॥ 
किर तित्थजत्तमेयं काऊण5प्पहियमायरिस्सामि । इय चिंतियं महायस ! सब्वं पि हु अन्नहा जाय॑ ॥३७॥ 
भणहइ मुणी मा खिज्जसु मज्झ कए जेण नीरुओ हं ति। तीयुत्त करुणायर ! मह अन्न सुणसु विज्ञत्ति ॥३८॥ 


१, अथ ह॒श । 


३ज 


२७४ आख्यानकमणिकोशे 


जम्मंतरनेहाओ कि वा तुह दंसणाओ पडिबंधो | जं तुह पास मेल्लंतियाए वच्चंति मह पाणा ॥३९॥ 
विदलइ हिययं निज्जाइ मह रई कृप्परिज्जए अंगं । परिवड्ह रणरणओ त॑ वारिज्जइ समाहाणं ॥४०॥ 
तुह कोमलतणुफरिसण-दंसण-संभासगाइओ जाओ | मं दहह मयणजलणो ता सुहयसु संगमजलेण ॥४१॥ 
त॑ मह नाहो त॑ मज्कू सामिओ त॑ गई मई चेव । त॑ चिय आसट्ठाणं संपह मह मंदपुल्लाए ॥४२॥ 
तुह संगो अमयदहो अमयफलाइं व तुज्क नयणाईं | तुह अंगममयकुंडं तुह वाणी अमयरसकुल्ला ॥४३॥ 
इय कूलवाल्यमुणी तीए तारिसवियड् मणिएहिं । अभिमाणधणो वि तया बद्धों दढनेहनियलेहिं ॥४४॥ 
तीए भणिए तूसइ ससिणेहं नियदइ तीए मुहकमलं । परिसिढिलियधम्ममई धणियं जाओ जओ भणियं ॥५५॥ 
पासो व्व बंधिउं जे महिला छेत्तु असि व्व पुरिसस्स । सल्लं व्व सल्लिउं जे विमोहिउं इंदजाल व्व ॥४६॥ 
फालेउं करवत्तं व्व होइ सूलं व्व महिल्या भेत्त । पुरिसस्स खुप्पिउं कद्दमो व्व मच्चु व्व मरिउ' जे ॥४७॥ 
खेलालीदा तुच्छ व्व मच्छिया दुकरं विमोएउ । महिलासंसम्गीए अप्पाणो पुरिसमेत्तेण ॥9८॥ 
पुणरवि तीए भणियं कूडकुहेडयमहल्लखाणीए । मा तम्मसु तुह बेला महेसपासाणरेह व्व ॥४९॥ 
पत्थावे सममेव य सामन्नमणुत्तरं चरिस्सामो । पच्छा वि हु धम्मधणा मलिणं सोहिति अप्पाणं ॥५०॥ 
संपह् तारुन्नमिमं निरत्थयं सुहय ! नेसु मा एवं | दियहाइ' पंच दृह वा जोन्वणमिणमों बुहा बिति ॥५१॥ 
इय सो किलिट्ठकम्मोदयाओ गुणनिहिगुरूण वयणस्स | अवितहभावाओ तहा खडहडिओ सीलपासाया ॥५२॥ 
ज॑ं न कयं गुरुवयण्ं इह तं तस्सेव मत्थए पडियं। अहहो ! अणत्थहेऊ आणाभंगो महापावो ॥५३॥ 
पेच्छु तीए मोसारियाए तह सावियाए' होऊण । सवसीकओ वराओ अहो ! हु थीचरियगहणमिमं ॥५४॥ 
सो तारिसो वि निस्संगसाहुचूडामणी वि परिवडिओ । गुरुजणवयणाइक्कमतरुणो अज्ज वि कुसुममेयं ॥५५॥ 
पुरओ जह सा नयरी पविसित्तु खडक्िया दुवारेणं | उक्खणिय पाउयाओ सब्बा भंजाविया तेण ॥५६॥ 
तह सब्बं वित्थरओ नेय॑ गंथंतराओ चरियमिमं । इह पुण एत्तियमेत्तं पसाहगं पत्थुयत्थस्स ॥५७॥ 
॥ कूलधालाख्यानक॑ समाप्तम्‌ ॥१०१॥ 
जह वि हु वज्जियसंगो कुलेण चंगो तवेण तणुयंगो | तह वि हु एगो परिवड॒इ वसह ता सुगुरुकुलवासे ॥१॥ 
स्वप्रत्यनीकरमणीकृतदोषभावादेका किनो व्रतवतो विहृतिविरुद्धा । 
यस्मादनागमरुचेयेतनावतो5पि दोषा: कदाचिदनयोरिव सम्भवन्ति ॥१॥ 
॥ इति श्रीमदाप्नदेवसूरिविरचितवृत्तावाब्यानकमणिकोशे साधोरेकाकित्वधिद्यारदोषवर्णनख्रयर्स्रिशशमों 


<घिकारः समाप्त: ॥३३॥ 


>> ५ देह: 


[ ३४. साधुदशनमहागुणवर्णनाधिकारः ] 
एतच्च कूलवालकसाधुदशनमुभयेषामप्ययोग्यत्वाद्‌ गुणाय नाभवत्‌ । यत्र पुनरुभयोगुणवत्ता भवति तत्र साधुदशेनं गुणाय 
भवतीत्येतदाह-- 
साहूण दंसणं पि हु गुणावह सोम-सन्तरूवाणं। 
जह तकरस्स तह भिगम्रुउ]बरोहियपुस्तजुयलस्स ॥४३॥ 
व्याख्या --साधूनां? मुनीनां 'दशनमपि' अवलोकनमपि आस्तां सम्माषणादि 'गुणावहं' गुणननकमेव । हुशब्दस्यावधारणा- 
थेत्वात्‌ | कीदशामित्याह-सौम्य-शञान्तरूपाणां' सौम्यम्‌-आन्तरकोपनिग्रहात्‌ शान्तं-बहिरपि कोपविकारविरहादू-रूपम्‌-आकारो येषां 


१. मधायया तथाआविकया भूत्वा । 


३४. साधुद्शेनमद्दायुणवर्णनाधिकारे भ्र॒गूपरोहितपुशत्रयुगलकाख्यानकम्‌ 


२३५ 


ते तथोक्तास्तेषाम्‌ । “यथा इत्युदाहरणोपन्यासाथ: । 'तस्करस्य” चौरस्य “तथा' तेनैव प्रकारेण 'भृगूपरोहितपुत्रयुगलस्य” भृगुनामको- 


परोहितसुतयुग्मस्य इति गाथासमासाथे: ॥ व्यासाथंस्तु आख्यानकाभ्यामवसेय: । ते चामू । 
सजत्ञ तायत्‌ तस्कराश्यानकमारम्यते-- 
एगम्मि सब्रिवेसे वसंति दो तकरा असमसत्ता । परदव्वहरणवावारसंजुया निहयपरलोगा ॥॥१॥ 


अह अजश्नया य कम्मि वि नयरे कस्स वि य सेट्टिगेहम्मि । खणिऊण खत्तमवहरिय दव्वमारक्खियभयाओं ॥२॥ 


नासंति जाव पेच्छंति ताव नयरस्स परिसरे साहु । उस्सग्गठियं निष्फंदलोयणं कि पि झायंतं ॥३॥ 
तत्तो ताणेगेणं भणियं धन्नो महामुणी एस । परिचत्तसयलवावारपत्तअपवग्गसुहलेसो ॥४॥ 

बीएण पुणो भणियं कह एसो समणमुंडओ दिद्ठों ? | अवसउणसूइयावयपरंपरापेच्छणीओ त्ति ॥५॥ 
एवं ते निययाउं परिपालिय मरणमुबगया संता । उज्जेणीए जाया पिहु पिहु सेट्टिस्स गेहेसु ॥६॥ 
पुत्तताए निच्च॑ पुव्वभवब्भासओ महापीई । आबालकालओ च्रिय संजाया ताणमन्नोन्नं |७॥ 


अन्न॑ च वसण-ववहार-असण-सयणा-55साणाइय॑ सब्बं । एगेण विहियमवरों वि कुणइ तह चेव नेहाओ ||<८॥ 


तो लोयक्रयमिहाणा संजाया एगचित्तया तत्तो । अह अन्नया य भयव॑ समोसढो तत्थ वीरजिणो ॥९॥ 
लोएण सम॑ नयराउ निग्गया ते वि वंदणनिमित्त | सुर-मणुय-तिरियपरिसाए देसणं कुणइ भयवं पि ॥१०॥ 
एगस्स कहिज्जंतं सम्म॑ परिणमइ धम्मसब्वस्सं । अन्नस्स पुणो मुणिवरपओसनिहयस्स न हु कि पि ॥११॥ 
तो लोएणं नाउं परोप्परं ताणअन्नहाभावं॑ । पुट्टो भयवं भेओ किमेगचित्ताणमेएसिं ॥१२॥ 

इण्हि जाओ ? तत्तो पुष्वभवों भयवया समाइट्ठी | इय साहुदंसणं तकर॒स्स जाय॑ महाफलूय ॥१३॥ 


॥ इति तस्कराख्यानकं समाप्तम्‌ ॥१०२॥ 


इदानीं भ्रुगूपरोशितपुत्रयुगलकाख्यानकमाखल्यायते तच्यथा-- 


जे आसि चित्त-संभूयसहयरा पुव्यजम्मसंगइया । ते पावियसम्मत्ता सुरलोगं दो वि संपत्ता ॥१॥ 
आउक्खयम्मि चविऊण विस्सुए खिइ्पहट्टिए नयरे । इब्भकुले ते दो वि हु सहोयरा भायरो जाया ॥२॥ 
तत्थडन्ने इब्भसुया चउरो तेसिं वयंसया जाया । उवभुंजिय विसयसुहं छावि हु थेराण पासम्मि ॥३॥ 
पव्वश्या सब्त्रे वि हु सामन्‍नं पालिऊण सुहभावा । मरिऊण पउमगुम्मे चउपलिया सुरवरा जाया ॥५॥ 
गोवालदारयाणं जे ते चउरो वयंसया आसि । तेसिं एगो कुरुजणवयस्स5लंकारमूयम्मि ॥५॥ 
उसुयारनामयपुरे सहसभवणराइए दुहा वि तहिं। रिउविसरबाणघडणो उसुयारो गुन्नअभिहाणो ॥६॥ 
राया जाओ बीओ तब्भज्जा नयण-वयणजियकमला । कमलावई वि नामेण किमवि कमलाए वुड्डिकरी ॥७॥ 
तइओ तस्सेव य नरवहस्स विप्पो कुलक्रमायाओ । नामेण भिग्रू चउद्सविज्ञाठाणाण परगओ ॥ ८॥ 
आई-मज्क-3वसाणाहिओ वि स पुरोहिओ जणपसिद्धों । वेयबभणिएक्रकम्मप्पिओ वि छक्कम्मकरणरओ ॥९॥ 
जाया जसामिहाणा चउत्थओ तस्स चेव वरभज्जा । निरवच्चणदोसेणं ताणि य तम्मंति परम5हियं ॥१०॥ 
यत उक्तम्‌-- 
अपूत्रस्य गतिनोस्ति स्वर्गों नेव च नेव च । तस्मात्‌ पुत्रमुखं दृष्ट्वा सुखं स्वगें प्रयास्यति ॥११॥ 
जे गोवदारया दो वि ओहिणा तेहिं नायमम्हे उ | उवरोहियस्स पुत्ता होहामो तो समणरूवं ॥१२॥ 
काऊण धम्ममग्गे सभारिओ ठाविओ भिगू तेहिं। गहियाणुव्वयधम्मो पालइ धम्मं गिहत्थहियं ॥१३॥ 
ताहे सुयस्स लाभ॑ नमिऊणं पुच्छिया मुणी तेण । तेहिं वि नाउं भणियं होही तुह विप्प | सुयजुयलू ॥१6॥ 
नवरं लहुकम्मत्ता रइमलहंतं गिहम्मि विसयसुहं । विसमिव परिचइऊर्ण पव्वइही मा निवारेसु ॥१५॥ 
तेणावि चितियं होउ ताव पच्छा वि अभिमयं काहं । भणिउ' महापसाय॑ विसज्जिया मुणिवरा तेण ॥१६॥ 
कालक्षमेण जाय॑ सुयजुयरलं जाव अट्ठवारिसयं | संजायं॑ ता पिउणा सिक्‍्खवियं दुद्बुद्धीण ॥१७॥ 


२७दे 


ते जहा-- 


तथा-- 


आश्यानकमणिकोशे 


ज इमे दीसंति जणे पुत्तय ! कंबलयपावरियदेहा । सेयवडया इमेसिं बीससियव्वं न कइ्या वि ॥१८॥ 
जमिमे रक्खसपयई माणुसमंसासिणो विसेसेणं । सिसुभावे बद्ठतं सुहेण भक्‍्खंति मारेउं ॥१९॥ 

तो ते तह त्ति पडिवज्जिकण कइ्या वि जाव रममाणा । नीहरिया वणमज्झे नियंति ता साहुणो तत्थ ॥२०॥ 
सत्थेण सम॑ चलिए भिक्‍्खं गहिऊण गाभमज्काओ । वियणम्मि भोयणद्ठा वच्च॑ते तो इमे भीया ॥२१॥ 
चडिया तरुम्मि भयभीयमाणसा ताब ते तमेव तरुं । संपत्ता तरुछायाएं समयविहिणा समम्गं पि ॥२२॥ 
किश्व॑ काउं भुंजंति भोयणं ताव चितियमिमेहिं । न हु होंति रक्खसा नेय ताव मंसासिणो एए ॥२३॥ 
छज्जीवहिया उवसंतमाणसा सोममुत्तिणो समणा । परदुहजणया न हु होंति एरिसा निच्छियमिमे त्ति ॥२४॥ 
ता नृणमम्ह जणओ न तत्तदंसी न यावि हियजणओ । एयाण दंसणं पि हु जो बार्‌इ संतरूवाणं ॥२५॥ 
इय चिंतिऊण तरुणो समुत्तरेउं पसंतहिययभया । संविग्गमणा सम्म॑ साहुसयासं समल्लीणा ॥२६॥ 
बहुमाणभत्तिसंभारसंभमुब्भिज्ञमाणरोमंचा । चरणेसु निवडिऊर्ण मुणीण पुरओ समुवविद्वा ॥२७॥ 

नाऊण जोग्गयं तेसि साहुणा मुगियसमयसारेण । जेट्टेंण जंपियं सुणह भद्दया ! सम्ममुबएसं ॥२८॥ 


जाएण जीवलोए दो चेव नरेण सिक्िखियव्वाइं | कम्मेण जेण जीवइ जेण मओ सोग्गईं जाइ ॥१९॥ 


इहलोइयम्मि कज्जे सव्बारंगेण जह जणो तणइ । ता जइ लक्खंसेण वि परलोए ता सुही होइ ॥३०॥ 
परलोइयकज्जमिमं गिहवासं दुचाचयं परिच्चइय । पडिवज्जिय पव्वज्जं ज॑ं कीरइ सोहणो धम्मो ॥३१॥ 
तेहिं वि भणियं भयवं ! सच्चमिमं तुम्ह संतियं वयणं । मोयाविऊण पियरो काहामो कि वियप्पेण ? ॥३२॥ 
मोयाविऊण जणयाओ सुत्तजुत्तीहिं सम्ममप्पाणं । संविग्गभावियमणा पव्वइया ते समियपावा ॥३३॥ 
जह एए तह राया पुरोहिओ तेसि भारियाओ वि। पव्वहउ छावि हु माणुसाणि पत्ताणि सिद्धिसुहं ॥३४॥ 
॥ भुगूपरोद्दितखुतयुग्माख्यानक समाप्तम्‌ ॥१०३॥ 
जह एएसि जाय॑ साहणं दंसणं पि हु गुणाय । तह अन्नस्स वि जायइ ता बहुमाणाओ त॑ कुणह ॥१॥ 
कल्याणकारनिरबद्यगुणेरनल्पं, शश्व॒त्पवित्रपरपावनतीथंकल्पम्‌ । 
धन्यस्य कस्यचिदिदं शुभजन्मभाज:, पृण्यात्मनः सुमुनिदशनमाविरस्ति ॥१॥ 


॥ इति भ्रीमदाप्नदेवसूरिविरचितवृत्तावाब्यानकमणिकोशे साधुद्शेनमद्ागुणप्रतिपादकश्तुर्खिशसमो- 


उधिकारः समाप्त: ॥३४॥ 


>> 8-८० 


[ ३५. अवश्यप्राप्व्यप्राप्यधिकारः ] 


साधुदशन गुणावहमित्युक्तम्‌ । इृर्द च पूर्वेपुण्यजनितमेव गुणावहमनयोयेथा जात॑ तथाउपरमपि विभूत्यादिक॑ यद्‌ यस्य 


पूरवपुण्यजनितं तत्‌ तस्यावश्यमेव जायते इत्येतदाह-- 


ज॑ं जस्स पुव्वविद्दियं सो त॑ पावेह एल्थुदाहरणा । 
करकंडु-नमी तह चारुदत-वणिबंधुदत्ता य ॥४४॥ 
व्याख्या--यत्‌? क्रिमपि विभवादिक 'पूवेविहितं! पूवकर्मोपात्तं तत्‌ 'सः” प्राणी 'प्रप्नोति'! लभते । अन्नोदाहरणानि-- 


करकण्डुशच--दधिववाहनपुत्र: नमिश्च--राजपुत्र एव तो तथोक्तो । तथा इति समुच्चये । चारुदत्तश्च--पश्रेष्ठिपुत्र: वणिग्‌ बन्धुदत्तश्व- 
बन्घुदत्तामिधानो वाणिजकः तौ च। चः समुच्चये इत्यक्षराथें: ॥ भावाथस्ववास्यानकगम्य: । तानि चामूनि । 


३४. अवश्यप्राप्तव्यप्राप्तिवणनाधिकारे करकण्ड्वाल्यानकम्‌ २७७ 
तत्रापि परिपाटीप्राप्त करकण्ड्वाल्यानकमाल्यायते । तच्चेदम्‌-- 


उत्तु गविसालेणं सालेणं परिगया पुरी चंपा । निस्सेसभुवणलरूच्छीए मंदिरं अत्यि सुपसिद्धा ॥१॥ 
लायन्नलच्छिकलिओ मयरहिओ घणरसाणुगयदेहो । रयणायरों व्व निवसइ अलद्धमज्मो जणों जत्थ ॥२॥ 
उद्धुमरसमरसंरंभभिडियभडको डिसंकडे समरे । वहदरियजयसिरि-जसगहणलालसो जस्स करवालो ॥३॥ 
ससहरसमजसधवलियसधरधरावलय-कंदराभोगो । त॑ परिपालइ नयर्रि राया दहिवाहणों नाम ॥४॥ 

तस्स उवरोहसीला मणहरजोव्वणविभूसियसरीरा | सयलावरोहसारा भज्जा पउमावहद नाम ॥५॥ 

आरोविय रज्जं रज्जकज्जसज्जम्मि पयइपुज्जम्मि | मंतिम्मि विसयसोक्खं सो भुंजंतो गमइ काले ॥६॥ 
पुव्वभवोवज्जियपुत्नपगरिसब्भूयगब्भवसयाए । देवीए दोहलकओ संजाओ अक्खियो रज्नो ॥७॥ 

जद तुमए धारियधवलछत्तरयणा रणंतमणिघंटं | जयवारणमारूढा कुंदुतअलचलियचमरजुया ॥८॥ 
आरामुज्ञाण-विहार-गरुयगिरिकंदरासु विहरामि । इय भणिए देवीए रज्ना विहियं तहेव तय॑ ॥९॥ 
एत्थंतरम्मि हरिचाव-विज्जु-गुरुगज्बिभरियभुवणयलो । पहिययणुम्मायकरो वासारत्तो समणुपत्तो ॥१०॥ 
एवंविहम्मि पाउसपारंभे नवधणालिसोहिल्ले | नीलतिणंकुररेहिरधरणीवरएण रमणीए ॥११॥ 
सीरवियारियखोणी-जलहरजलूसंगमाओ सुरहेण । गंधेण हत्यिराया घार्णिदियपरवसो विहिओ |॥|१२ ॥ 
सरिऊण विश्ववंसग्गकरलूअइसरल्सक्लइप्पभिई | मयमत्तो चत्तजणो वणसमुहो गंतुमारद्धो ॥१३॥ 

गंतुमसत्तो संतो वलिओ सामंत-मंतिपभिहजणो । हत्थी उण संपत्तो वणम्मि जलसिसिरपवणम्मि ॥१४॥ 
तत्थ वि गच्छंतेणं दट॒टुं वडपायवं पुरो भणिया । देवी निवेण गच्छट् तलेण एयस्स जह हत्थी ॥१५॥ 

तो त॑ं बडवाययरूग्गणम्मि जत्तं करेज्ज इय भणिए । राया दक्‍्खत्तणओ गिण्हित्त तयं समुत्तिन्नो ॥१६॥ 
दहिवाहणो वि तत्तो बलिउं चंप॑ गओ निराणंदो । पठमावई गएणं नीया निम्माणुसं अडविं ॥१७॥ 
दटठ्॒णं तत्थ सरं हत्थी कीलानिमित्तमोयरिओ । देवी समुत्तरेड सणियं अडवीए भमडंती ॥१८॥ 

दिद्ठा य तावसेणं नीया नियकुलवइस्स पासम्मि । पुट्ठा य तेण भद्दे | काउसि तुम ? किमिह संपत्ता ? ॥१९॥ 
तीयुत्तं दहिवाहणद्‌इया धूया य चेडयनिवस्स । इह संपत्ता अहयं अवहरिया हत्थिणा तयणु ॥२०॥ 

भणियं कुलवइ्णा जइ एवं ता मम वि होसि त॑ धूया | जेण मह तुज्क जणओ दुइज्जहिययं परममित्तो ॥२१॥ 
सम्माणिया समाणी तत्थ ठिया सा वि कद्वयदिणाणि | नाउ तत्थ निवासं असंगयं अन्नदियहम्मि |२२॥ 
नियसीम॑ अब्भड वंचिऊण सा तावसेहिं सिक्खविया | अम्ह न विसओ वच्छे | एत्तो पुरओ तओ तुमए ॥२३॥ 
सिरिदंतवकनयरं गंतव्बं दंतवकनरवइणो । सा वि हु त॑ संपत्ता पव्वद्या साहुणीपासे ॥२४॥ 
पच्छन्नगब्भभावा संजाओ दारओ तओ तीसे । मुद्दारगणसमेओ कंब्रलरयणेण वेढेउं ॥२५॥ 

मुक्को पेयवर्णम्मि पच्छन्ने सा ठिया निरूविती । पेयवणसामिणा भारियांए सो दारओ दिल्नो ॥२६॥ 
अज्जाए मित्ततं तीए सह पाणगीए पारद्धं । ज॑ लहइ मोयगाई त॑ सब्बं तीए अप्पेद ॥२७॥ 

वडुंतो तीए सुओ संजाओ अट्ठटवरिसदेसीओ । कच्छूसंगहियतणू कीलंतो सह वर्यंसेहिं ॥२८॥ 

जंपइ भो | तुम्हाणं मज्झे राया अहं कर देज्ज । ता तुब्मे मज्य तणकच्छुकंडयणेणं ति ॥२९॥ 

तो कयजहत्थनामो सो करकंडु त्ति दिक्करूवेहिं | विद्धि गओ मसाणं रक्खइ अह साहुणो दोन्नि ॥३०॥ 
तम्मि मसाणम्मि गया वंसं दट ठ्रण ताणमेगेणं । वुत्तं जो वंसमिमं गिण्हिस्सह सो निवो होही ॥३१॥ 
नवरं पडिक्खियव्वों चउरंगुलमेत्तयं पवड्ंतो | तत्तो इमो जहोहयलक्खणगुणसंजुओ होही ॥३२॥ 

पच्छन्ने विप्पेणं तं वयर्ण सुणिउ खणिउमारद्धो । करकंडुणा स दिदट्ठो पयंपिओ मुणियभावेण ॥३३॥ 

कि मज्क संतियं वंसदंडयं उक्खणेसि रे विप्प ! | उद्दालिण हढेणं दिएण सो करणमाणीओ ॥३४॥ 
जाओ य विसंवाओ तेर्सि दोण्हं पि दंडकज्जम्मि | कारणिगेहिं भणिओ करकंडू कि न अप्पेसि ? ॥३५॥ 


श्ज्द आख्यानकमणिकोरशे 


विप्पस्स इमं सो आह मज्क एसो त्ति ता न अप्पेमि । अन्न गेण्हसु भणिए जा कह वि न अप्पए तत्तो ॥३६॥ 
तेहुत्त हसिऊणं राया कि होसि एयपासाओ ? | तेणुत्त होहिस्सं बाढं भणिओ पुणो तेहिं ॥३७॥ 
जइया त॑ होसि निवो तइया गामो इमस्स दायव्वो । पडि वज्जिकण एवं दो वि गया नियनियगिहेसु ॥३८॥ 
धिज्ाइएण दंडयगहणत्थं मेलिए दिए नाउं । सो जगय-जणणिसहिओ संपत्तो कंचणपुरम्मि ॥३९॥ 
तत्थ अपुत्तो राया मओ य अहिवासियाणि दिव्वाणि। भमिऊण चच्चराइसु संपत्ताइं तहिं ताईं ॥॥४०॥ 
जत्थ5च्छद करकंडू उुत्तो छायाए सीयलतरुस्स । तं दट्ठुणं चक्ककुसाइसल्लक्खणोबेयं ॥४१॥ 
आरोवबिओ सखंधम्मि हत्थिणा पउरलोयपरियरिओ । जा पविसद पुरमज्ञझे ता मायंगो त्ति कलिऊण ॥9२॥ 
धिज्जाइया पवेसं न देति तो दंडरयणमइधघोरं । पज्जलियं त॑ दट ठुूं नह्ठा विपष्पा तओ रज्ना ॥9३॥ 
निश्विसया आणत्ता मायंगा पुण कया दियप्पवरा । सो वि हु मरुओ सोउं करकंडुनिवं तहिं पत्तो ॥४४॥ 
भणिओ रज्ना गाम॑ गिण्इसु जं कि पि रोयए तुज्क । तेणुत्त मह गेहूं चंपाविसए तहिं देहि ॥०५॥ 
तत्तो य दूयवयणेण भणइ दहिवाहणं निययदेसे । मह देसु गाममेगं घेत्तु गाम व नयरं वा ॥४६॥ 
मायंगो न वियाणइ अप्पं गाम॑ च मम्गइ अणज्जो । इय भणिय अवन्नाए तेणं निद्धादिओं दूओ ॥९ज॥ 
तो करकंडू चंप॑ चउरंगबलेण रोहए गंतुं | नायं च साहुणीए मा होउ जणक्खओ एवं ॥9८॥ 
इय चितिऊण करकंडुगुडडरे आगयाए नरवहणों । कहिओ नियवुत्तंतो तस्स वि मायंगजणएण ॥४९॥ 
सब्भावत्थो कहिओ मुद्दारयणाइ दंसियं तेण | तो भमणइ तह वि अम्मो ! माणेणं न हु नियत्तेमि ॥५०॥ 
निग्गंतूणं अज्जा पत्ता दहिवाहणस्स भवणम्मि | नरवइणा विज्नाया पुद्ठा सा तुह कहिं गब्भो १ ॥५१॥ 
तीयुत्तमेस गब्भी जो चंप॑ं रोहिउं ठिओ तुज्क । तो हिद्ठमणो राया गओ कुमारस्स पासम्मि ॥५२॥ 
दाऊण दो वि रज्जाइ' तस्स दहिवाहणो विणिक्खंतो | करकंडो उण जाओ नरनाहो पयडमाहप्पो ॥५३॥ 
सो पयईए धण-गो3लूप्पिओ गोउलम्मि संपत्तो । पेच्छह य थोरगत्तं सेयं सो वच्छगं तत्थ ॥५४॥ 
बुत्ता गोवा दुद्ध॑ं पाएयव्वो इमोउन्नगावीणं पडिवन्नं तेहिं तयं सो वि हु उव्वित्तमुविसाणो ॥९५॥ 
संजाओ पीणुन्नयखंधो जुद्धम्मि निज्जिणियवसहो । कालेण पुणो रज्ना समागएणं तहिं एगो ॥५६॥ 
परिघट्टिज्जंतो पडुएहिं दिट्लो वि सो तओ गोवे । पुच्छह सो कत्थ गओ वसहो ? सो दंसिओ तेहिं ॥५७॥ 
रज्ना चिंतियमेयं सविसाएणं अहो ! असारत्तं । संसारस्स जमेसोी एरिससत्तीए सहिओ बि ॥५८॥ 
निस्सेसआवयाणं संजाओ मंदिर पुणो इण्हि । संसारियवत्थू णं एसेव गई जओ भणियं ॥५९॥ 
सेयं सुजायं सुविभत्तसिंगं जो पासिया वसहं गोट्टमज्झे। रिद्धि अरिद्धि समुपेहिया णं॑ कलिंगराया वि समेक्ख धम्मं ॥६०॥ 
गोट्टंगणस्स मज्झे ढिंकियसदेण जस्स भज्जंति | दरिया वि दित्ततसहा सुतिक्खसिंगा समत्था वि ॥६१॥ 
पोराणयगयदप्पो गलंतनयणो चलंतवसहोट्टी । सो चेव इमो वसहो पद्ुयपरिघट्णं सहइ ॥६२॥ 
इय एवमाइबहुविहसंसारासारयं विचिंतंतो । आसाइयसुहभावों जाओ पत्तेयबुद्धमुणी ॥६३॥ 
संभरियपुव्वजम्मो जाईसरणेण दिल्लसुरलिंगो | संजाओ पव्वहओ विहरइ विउलं महीवीढं ॥६४॥ 
॥ करकण्ड्याख्यानक समाप्तम्‌ ॥१०४॥ 

इृदानीं नम्याख्यानकमाण्यायते । तथथा-- 
अत्थि अवंतीजणवयतिलयं नयरं सुंदसणं परम । परमम्मोघट्टणदोसवज्जिओ बसइ जत्थ जणो ॥१॥ 
सुह-संपयाण कत्ता विहियअवायाण जणियअहिंगरणो । सुहकम्मो करणरुईं असरिससंजणियसंबंधों ॥२॥ 
सुविभत्तपयपहाणो निष्फाइयसंधिविग्गहो तत्थ । वसइ नरिंदों नामेण मणिरहो सव्वधम्मो व्व ॥३॥ 
लहुभाया जुवराया तस्स5त्थि निहाणमसमसत्तस्स । नामेणं जुगबाहू जुगबाहू वियडवच्छयलो ॥४॥ 
सुहसीलसलिलसायरलहरी तस्सउत्यि सुंदरा भज्जा । नामेण मयणरेहा मयणाहंकाररेह व्व ॥५॥ 
अह अन्नया य राया अवलोयणसंठिओ तयं दटठुं | तम्मोहमोहियमई एवं हियए विचिंतेइ ॥६॥ 


अन्न च--- 


अन्न च--- 


अवरं च--- 


३५, अवश्यप्रापव्यप्राप्तिवर्णनाधिकारे नम्याख्यानकम २७६ 


कह एसा भणियव्वा मए ? जहिच्छ कहं व रमियव्वा ? | अहव ससुरा-डसुरम्मि वि जयम्मि दाणं वसीकरणं ॥७॥ 
तंबोलाईहिं तओ आदढत्ो त॑ पलोभिउं राया । गेण्हइ अदुद्ठभावा जेट्पसाओ त्ति काउं सा ॥८॥ 

पट्टविया अन्नदिणे दृह्दे रज्ना पयंपए गंतुं । तुहरूय-गुणक्खित्तो पभणइ भद्दे ! इमं राया ॥९॥ 

पडिवज्ञसु म॑ भत्तं भत्तारं तुह गुणेहिं अणुरत्त । सहलीकुरु मणुयत्तं अणुमन्नसु रज्जसामित्तं ॥१०॥ 

तो भणह मयणरेहा रेहा तुह राय ! रायवंसस्स । सीलगुणेणं ता कि नियदुच्चरिएण त॑ फुससि ? ॥११॥ 


ज॑ चिंतिउ' न जुज्जइ सप्पुरिसाणं मणम्मि वि जयम्मि | विउसजणनिंदणिज्ज॑ नरवइणा जंपियं कह णु १ ॥१२॥ 
हयरम्मि वि परदारे न रमह मणयं पि उत्तमाण मं । कि पुण नियवहुयाए सेवाबुद्धी नरयहेऊ १ ॥१३॥ 


जुबरायगेहिणीए सामित्तं मज्क विज्वए रज्जे | नट्टन्मि सीलरयणे अहवा मद्द होउ रज्जेण ॥१४॥ 
अन्न॑ च बहुभवेसुं जाया तित्ती न तुज्म रमणीसु । इण्हि म॑ रममाणो निन्नेहं कह णु तिप्पिहिसि ? ॥१५॥ 


एवं त॑ जंपंतो न लज्जिओ नियसहोयरस्सावि | एवमकरज्ज दटठु तस्स मणं केरिसं होही ? ॥१६॥ 

इच्चाइ मयणरेहापयंपियं परिकहेह सा दूर | नरवहणो न नियत्तइ तह वि इमो असुहकामस्स ॥१७॥ 
परिहरियनियकुलक्षममज्ञाओ तो विचितए राया । मह बंधुम्मि जियते एसा हु न तीरए घेत्त' ॥१८॥ 

ता त॑ विणासिऊर्ण हढेण गिण्हामि इय विचितेउ । नियबंधुणो निरिकखद छिड्डाइं मारणकणण ॥१4॥ 
एत्थंतरम्मि कोइलकुलरबसंजणियजणमणुम्माही । अहिणववसंतम।सो संपत्तो परमरमणिज्ञो ॥२०॥ 
दाहिणपवणंदोलिरतरुमंजरिविहुयरेणु संघाओ । डिभो व्व नववसंतो धूलीकीलाए कोलंतो ॥२१॥ 
आवाणयगोद्ठिपरिद्विएहिं तरुणेहि जत्थ हरिसिण । कुसुमाउहनरवइणो गिज्जइ रज्वाभिसेओ व्व ॥२२॥ 
वणराइकु सुमपरिमलतित्त समुड्डणभमररिंछोली । जत्थ पियविरहियाणं कूरकडक्खो व्व काल्स्स ॥२३॥ 
एवंविहे वसंते गिञ्जंते विविहचच्चरिसमूहे | तरुणजणुम्मायकरे परहुयरवबहिरियदियंते ॥२४॥ 

केणावि कारणेणं न गओ राया तहा बि उज्जाणे । जुगबाहू पुण पत्तो कीलत्थं पिययमासहिओ ॥२५॥ 
सुदरं कीलंतस्स य तम्मि य रयणी समागया तत्तो | रइसुहमणुह्वविउमणो कयलीहरए सुहपसुत्तो ॥२६॥ 
पत्थावं नाऊणं असहायत्तं च निच्छिउ' राया । खग्गसहाओ सहसा समागओ तत्थ दुद्वमई ॥२७॥ 

तों चइऊणं लज्जं परिचहऊणं च निययमज्जायं । अवगन्निऊण य जसं पहिहरिऊ्णं च परलोयं ॥२८॥ 
अवहत्थिय जणवायं अंगीकाऊण नरयदुक्‍्खाई । निसियासिपहारेणं गीवाए भायरं हणइ ॥२९॥ 

अह कह वि मयणरेहाए परियणो मिलइ जाव दुक्‍्खत्तो | व्‌ ठुत्तरं विहेउः ताव गओ नरबई गेहे ॥३०॥ 
तत्तो य मयणरेहा विहुरसरीरं वियाणिउ' दइयं । होऊण कन्नमूलेसु महुरवयणेहि त॑ भणइ ॥३१॥ 

भो भो महायस ! तुम मणयं पि मणम्मि कुणसु मा खेयं । नियकम्मपरिणइवसा संजाय॑ तुज्ञ दुक्खमिमं ॥३२॥ 
जइ कुणसि तुममियाणि कंठट्ठियजीविए गुरुपओसं । हारिद्विसि तुम॑ परलोयमेव न हु किंचि वि परस्स ॥३३॥ 
ता धीर ! सब्वसत्तेसु कुणसु मेत्ति ममत्तमवि छिंद । अंतो धरसु समाहिं अणुसर चउसरणमह इण्हि ॥३४॥ 
सिद्धाणं पच्चकखं नियदुच्चरियं च गरहसु सुधीर !। खामसु सब्वे सत्ते खमंतु ते तुज्ञ सब्बे वि ॥३५॥ 
कम्मविसपरममंतो पणयामर-मणुयजणियजम्मंतो । देवो सिवमरहंतो जाजीव॑ तुज्क अरहंतो ॥३६॥ 
परिचत्तघरावासा विसुद्धवारित्तिणो महासत्ता | सम्मत्त-नाणसहिया साहू गुरुणो पवज्ज तुम ॥३७॥ 
पडिवज्जसु वेरमणं पाणिवहाईण तिविहतिविहेणं । जाजीवं अट्ठारसपावद्टाणाण पडिकमसु ॥३८॥ 

परिभावसु तह सम्मं अणिश्चयं सन्वभावविसएसु । अणुसरसु सयलसिद्धंतसारपरमेट्टिनवकारं ॥३९॥ 


ब्श्ध्र्छ 


जओ--- 


तथा हि--- 


आश्यानकमणिकोशे 


पंचनमोक्कारसमा अंते वच्चंति जस्स दस पाणा । सो जइ न जाइ मोक्‍्खं अवस्स वेमाणिओं होह ॥५०॥ 
अम्सा-पियरो मित्तं पुत्त -कलत्ताइसयणवग्गो य | विहडइ सब्बं पि इमं होइ सहाओ परं धम्मो ॥४१॥ 
अणुहयनरयदुकक्‍्खस्स तुज्क किर केत्तियं इमं दुक्खं ? | तो अहियाससु सम्म॑ धरिउं मणपरिणइं परमं ॥०२॥ 
एसा पुणो महायस ! दुलहा मणुयाइया तु सामग्गी । ता गिण्हसु तीए फर्लं समाहिमवलंबिउं सोम | ॥४३॥ 
इय तीए वयणघणरसविज्ञावियकोवहुयवहो सम्म॑ । सिरविरहयकरक्रमलो पडिवज्जइ तं॑ तहा सब्ब॑ ॥४४॥ 
सह वेयणाए वड्ूंतपरमसंवेगसंजुओ मरिउं । संजाय भावसमणो उववन्नो बंभलोगम्मि |[४५॥। 

एत्तो य मयणंरेहा कंदंते परियणम्मि सयलम्मि | चिंतह किमहं गब्मे न विलीणा मंदपुन्न ? त्ति ॥४६॥ 
सुद्धसहावस्स जओ महाणुभावस्स सुद्धसीलस्स । अहमस्स मरणहेऊ संजाया निरवराहस्स ॥9०७॥ 

अवबरं च जेण निहओ नियभाया सो अवस्स सुहसीलं । मह गंजिही बला वि हु ता त॑ रक्खेमि जत्तेण ॥०८॥ 
चंदजसे नियपुत्ते कंदंते परियणम्मि सोयंते । एगागिणी निसाए गुरुहारा निग्गया तत्तो ॥४९॥ 

पुन्वाभिमुहं पत्ता कमेण वियर्ड महाडर्वि एक्क | अह अइकंता रयणी मज्ञन्हे बीयद्विसम्मि ॥५०॥ 

सा कुणइ पाणवित्ति फलेहिं एक्रम्मि सरवरे नीरं । पाऊण कुणइ तत्तो पच्चकखाणं च सागारं ॥५१॥ 
हिययब्भंतरविलसंतपंचपरमेट्टिमंतसव्वस्सा । कयलीहरए तरुपत्तविहियसयणम्मि पासुत्ता ॥५२॥ 

एत्थंतरम्मि रयणीसमुब्भवा भीमसावयसम्‌ हा । नाणाविहभयमेरवसद्समूहेहिं भेसंति ॥५३॥ 


फेकारंति सिवाओ घुरुघुरिया भीमवग्घसंधाया । घुग्घकरेंति घया गुंजारवयंति केसरिणो ॥५४॥ 

एत्थ॑तरम्मि जाया गुरुवियणा चलियगब्भसंभूया | तो पयडियलयहरयं कंतीए सुयं पसूया सा ॥५५॥ 

तत्थेव तयं मोत्तु पदच्चासन्ने सरम्मि जा पत्ता । वत्थाइधोयणत्थं उक्खित्ता ताव जलकरिणा ॥५६॥ 
उन्लालिऊण सुंडादंडेणं घत्तिया गयणमग्गं । विज्ञाहरेण विहिणो निओगओ तयणु सा दिद्वा ॥५७॥ 
नंदीसरम्मि दीवे गच्छेतेणं तओ वलेऊण । आरोविउं विमाणे वेयड्ले पव्वए नीया ॥५८॥ 

भणिओ य तीए एसो अज्ज महाभाग ! तम्मि वणगहणे | संपयमेव पसूया पुत्तं अहयं लूयाहरणु ॥५९॥ 

ता सो सावयपासाओ अहव सयमेव दूसहछुह्ाण | मरिही ता तमिहा55णसु तत्थ व म॑ नेसु रन्नम्मि ॥६०॥ 
तेणुत्तं सुयणु | तुम॑ पडिवज्जसि पाणसामियं जइ मं । तो हूं आणाकारी आजम्मं होमि कि बहुणा ? ॥६१॥ 
अन्न च सुयणु ! गंधारजणवए जणवयाण पवरम्मि । रयणावहम्मि नयरे मणिचूडो नाम नरनाहो ॥६२॥ 
कमलावई य भज्जा तेसि पुत्तो मणिप्पहो अहयं । रज्जधुराधरणखमो पाणपिओ जणणि-जणयाणं ॥६३॥ 

मह जणओ विज्ञाहरसेढीणं पालिऊण सामित्तं । निव्विन्नकामभोगो पव्वहओ गुरुसमीवम्मि ॥६४॥ 

ठविऊरण म॑ रज्जे निस्संगो सो भद्देयद््‌विसम्मि | आसि इहं चेव गओ संपइ नंदीसरे दीवे ॥६५॥ 
तब्वंदणत्थमहयं पि पत्थिओ ता मए तुम दिद्ठवा । ता होसु सामिणी सुयणु ! सब्बविज्ञाहरवहूणं ॥६६॥ 
अवरं च तुज्क तणओ तुरंगमावहरिएण संपत्तो । पउमरहेणं महिलाहिवेण चिद्रइ सुहेण ताहिं ॥६७॥ 

एय॑ पन्नत्तीण मह कहियं चयसु ता तुम॑ खेयं । उवभुंजसु रज्जसिरिं मा विहलं नेसु तारुन्नं ॥६८॥ 
चितियमिमीए मह पावकम्मवसयाए दुक्‍्खरिंछोली । उवरुवरि पडइ ता पडउ वज्जमेयस्स रूवस्स ॥६९॥ 
जेणाहं रूवेणं पहमरणं पढममेव संपत्ता | पुणरवि य सुयविओयं संपत्ता एयदोसेणं ॥७०॥ 

एसो वि हु म॑ पत्थइ रूवेणं चेव मोहिओ संतो । ता मह एस गुणो विहु आवहइ-दुहकारणं जाओ ॥७१॥ 
एयस्स मज्क बहुदुक्खलक्खसंघडणवावडमणस्स । विहिणो5वसरो कज्जंतरस्स करणे घुवं नत्यि ॥७२॥ 


१. गुरुभारा सगर्भा | 


अन्न च--- 


भणिय॑ चं-- 


३६ 


३४. अवश्यप्राप्तव्यप्राप्तिवणनाधिकारे नम्याव्यानकम्‌ श्पर्‌ 


ता अत्थावत्तीए नज्जह अन्नो वि अत्यि जयकत्ता । अन्नह जयवइचित्तं कुओडवरेणावि भणियमिमं ॥७३॥ 
अस्त्येव कश्चिदपरो जगतां विधाता, तुभ्यं शपे तदलमत्र विकल्पितेन । 
मदुदुःखजालघटनाकुलचित्तबृत्ते,, कण्ड्यनेडपि शिरसो5वसर: कुतो5स्य ? ॥७४॥ 

परमिमिणा कि परिचितिणण ? गच्छामि ताव मुणिपासे । उम्मग्गं पि पयट्ट बोहिस्सइ सो निय॑ तणय॑ ॥७५॥ 

तो तीए सो भणिओ सब्बं तुह जंपियं करिस्सामि । नेह मम नंदीसरदीवं वंद।वसु जिणिंदे |७६॥ 

तो सो हरिसियहियओ विज्ञाए विउन्बविउं वरविमाणं । आयासेणुप्पइओ संपत्ती तम्मि दीवम्पि |७७॥ 

वंदिय जिणिंदचंदे मणिचूडं मुणिवरं पणमिऊणं । उबविद्वा तेण सम॑ निसुणइ जिणमासियं धम्मं |७८॥ 

मुणिणा वि मयणरेहाए बइयरं जाणिकण नाणेण | मणिओ सो नियतणओं भद्द | तए कि समारद्धं ? ॥७९॥ 

भीमभवभमणहेऊ परदारासेवर्ण नरयपयवी । सुहसंपयाण विग्धो भुयग्गला सुगइदारस्स ॥८०॥ 

नियकुलनिम्मलपासायभित्तिमसिकुच्च ओ चरणसत्तू। आसंसारं भुवणम्मि अयसपडही महाभाग ! |॥<१॥ 


मयणाइत्तो पुरिसो न गणह वंसद्ठिइं हणइ कित्ति | गंजइ अप्पाणं दलइ पोरिसं मलइ माहप्पं ॥८२॥ 

ता विर्मसु एयाओ दुरज्ञवसियाओ तं महाभाग |! । जइ वंछसि जसकित्ति महसि सुहं वहसि पुरिसव्य ॥८३॥ 
इय अणुसट्ठों मुणिणा विलक्खवयणों अहोमुहो जाओ | लज्जाए नियबयणं न तरह दंसेउमवि मुणिणो ॥८9॥ 
तो उद्ठिउः सविणयं पणमिय पाएसु मयणरेहाए। खमसु महासइ ! सब्बं अवरद्धं ज॑ मए तुज्ञ ॥८५॥ 
मणिचूडमुणिवरेणं पुणरवि जिणमणियसमयवयणेहिं । अणुसासियाणि कोमलरूगिराए जायाणि सुत्थाणि ॥८६॥ 
जावेबं॑ चारणमुणिपुरओ अच्छंति ताव पेच्छति । गयणयलर।ओ विम्हयविप्फारियनयणपत्ताणि |८<७॥ 

सज्जो अमंदसुंदे्‌रधाममेगं विमाणमवहन्नं | नंदीसरजिणमंद्रिदंसणकयको उगेणं व ॥८८॥ 

पणवन्नरयणघडियं सिरविलसिरसे वधयवडसमूहं । उवरिभमंतबलायं पणवन्न॑ं जलयखंडं व ॥८९॥ 

तो मउडभासियसिरों वियसियमंदारदामसुइसिरओ । कुंडलमंडियगंडो हारविरायंतवच्छयलो ॥९०॥ 
केऊर-कडय-वररयणमुद्दिया भरणभूसियसरीरों । नियसियदुगु ललवसणो विम्हयभवण्ण नियंताण ॥९१॥ 
निप्पंकभित्तिसंकंतपयडपडिर्बिंबबहुविहसरीरों | अशु राएणमणेगो व्व मयर्णरेहाए दीसंतो ॥९२॥ 

अवयरिऊण विमाणाउ सुरवरो सरसपंकयदलच्छो । पेच्छंताणं सब्वेसिमेस मणिचूडमुणिपुरओ ॥९३॥ 
आएणंदवियसियमुहो पढमं पडिऊण मयणरेहाए | पयपंकयम्मि पच्छा पणओ चारणमुणिवरस्स ॥९४॥| 
लद्घासीसो सोयामणि व्व दिप्पंतभासुरसरीरो । उबबिट्ठी तप्पुरओ पुदट्टो विज्वाहरेण तओ ॥९५॥ 

नीईओ सरियाउ व समुच्गोत्ताणमुन्नयगुणाण । अमराण महिहराण घ घुवं महाभाग ! पभवंति ॥९६॥ 
मोत्तणं मणिचूड चरित्तचूडामर्णि मुणिवर्रिद । ता कि तुच्छगु णाए एयाए पएसु पणिवइओ ? ॥९७॥ 

तो जंपियममरेणं सुणसु महाभाग ! कारणमिहत्थे । मोक्तणं मुणिनाहं ज॑ पणओ पुव्वमेहेए ॥९८॥ 

आंसि सुदंसणनयरे नामेणं मणिरहो महाराया । जुगरागा जुगबाहू सहोयरो तस्स गुणभवणं |।९९॥ 

केणावि कारणेणं पहओ सो तेण तिक्खखग्गेणं । तो कंठग्गयपाणो इमीए जिणवयणसलिलेणं ॥१००॥ 
वेराणुभावतविओ निव्वविओो थिरमणाए सब्बंगं । पंचनमोक्ारपरो खमावियासेसजीवगणो ॥१०१॥ 
निम्मलवयपरिणामी उबवन्नो पंचमम्मि कप्पम्मि | दससागरोबमाऊ सुरिद्सामाणिओं देवों ॥१०२॥ 

सो य अहं सुकयन्नू सरमाणो धम्मजणियमुवयार । तक्खणमेवाउ5याओ गुरु त्ति काउं नया पढमं ॥१०३॥ 


जो जेण सुद्धधम्मम्मि ठाविओ संजएण गिहिणा वा । सो चेव य तस्स गुरू जायइ सद्धम्मदाणाओं ॥१०४॥ 
अमरेण वि सा भणिया साहम्मिणि! भणसु जं पिय॑ कि पि। तुज्क करेमि महासइ ! तो भणिओ तीए सो अमरो ॥१०५॥ 


२८२ 


त॑ जहा-- 


जओ-- 


आखश्यानकमणिकोशे 


मह नत्थि कि पि कज्जं धम्मं मोत्तण जिणवराभिहियं । ता म॑ पुत्तसयासे नेसु महाभाग ! जेण तय॑ ॥१०६॥ 
दटठु' निव्वुयहियया करेमि त॑ सुगुरुपायमूलम्मि | इय भणियम्मि विमाणे नियये आरोबिउ' तम्मि ॥१०७॥ 
भत्तीए मयणरेहा नीया मिहिलापुरीए अमरेण । अबयरिउं चेइहरे भावेणं बंदिउं देवे ॥१०८॥ 

पत्ताइं वयणिपासे पणमित्ता साहुणीण पयक्रमलं । उबविद्वाइं पुरओ तासि पासे सुओ धम्मो ॥१०९॥ 


लद॒धूण माणुसत्तं धम्मा-5धम्मप्फल॑ च नाऊण | सयलसुहसाहणम्मि जत्तो धम्मम्मि कायव्वो ॥११०॥ 
अमरेण मयणरेहा भणिया भद्दे ! सुयस्स पासम्मि । बच्चामो तीउत्तं गच्छ तुम संपयं सोम ! ॥१११॥ 
चिंतियमिमीए दिद्ठे सुयम्मि होही मणम्मि पडिबंधो | ता कि तत्थ गयाए मए? पवज्ञामि पव्वज्ज ॥११२॥ 


सब्बे जाया सयणा सब्वे जीवा य परजणा जाया । ता तेसि सविवेओ उबररिं को कुणउ पडिबंध ? ॥११३॥ 
इय परिभाविय सम्मं साहुणिपासे वयं पवन्ना सा | ठावियसुव्वयनामा पालइ तव-संजममसंगं ॥११४॥ 

सो वि हु तीए तणओ वह्ढुइ पउमरहराइणो गेहे । सुयमाहप्पा रत्नो नया जओ सेसरायाणो ॥११५॥ 

तो से नमि त्ति नाम॑ कयं तओ पंचधाइपरियरिओ । वड्ंतो य कमेणं संजाओ अट्टवारिसिओ ॥११६॥ 
परिणयकलाकलाबो संपत्तो जोव्वणं तओ पिउणा | कन्नाणं कारविओ करगहमट्टोत्तरसयस्स ॥११७॥ 

पउमरहों नमिकुमरं रज्जे ठबिऊण गहियपव्वज्जो | उप्पन्नविमलनाणो विहुयमलो सिद्धिमणुपततो ॥११८॥ 
जाओ य नमी राया पयावपडिहयविवक्खसामंतो । एत्तो य मणिरहनिवों पावाओ तम्मि चेव दिणे ॥११८५॥ 
द्टो भुयगेण मओ चउत्थपुढदवीए नारओ जाओ । चंदजसो नमिभाया ठविओ मंतीहिं तस्स पए ॥१२०॥ 
एत्थंतरम्मि सरिऊण विभवणमुन्नओ नमिनिवस्स । हत्थी भंजिउमालाणखंभमनिवारियप्पसरों ॥ १२१॥ 
डिंडीरपिंड-गोखीर-तारनीहार-हार-हरघवली । भूवलय भमिउं जे विनिग्गओ कित्तिपुंजो व्व ॥१२२॥ 

दिट्दो य चंदजससेवएणहिं नयरंतिणण बच्चंतो । तो तेहिं बंधिऊणं नीओ नियरायनयरम्मि ॥|१२३॥ 

तत्तो य चारपुरिसेहि साहियं नमिनिवस्स जह देव ! | तुह धवलपद्ठहत्थी चिट्दद चंदजससंगहिओ ॥१२४॥ 
ताहे नमिणा दूओ पहिओ चदजसराइणो सिम्धं । जह एस धवलहत्थी वणम्मि जो पाविओ तुमए ॥१२५॥ 

सो मज्झ संतिओ ता नरिंद ! पेसस तुम ति तेणुत्त | रयगणाणि न कर्स वि संतियाणि ता त॑ न पेसेमि ॥१२६॥ 
निव्भच्छिऊण निस्सारिऊण मुक्को निवेण नमिदूओ । तेण वि सविसेसे साहियम्मि कुद्धों नमी राया ॥१२७॥ 
चउरंगबलसमेओ चंदजसोवरि विणिग्गनों समरे | सो वि तमागच्छंतं सोउ' तस्सम्मुहो चलिओ ॥१२८॥ 
अवसउणखलियमग्गो काऊणं नयररोहयं थक्तों | नाउ' वहयरमेयं च सुब्वयज्ञा विचितेइ ॥१२९॥ 

मा होउ जणस्स खओ मा हु वराया वयंतु नरयमिमे । तो उवसमामि दोज्नि वि गंतृणं तेसि पासम्मि ॥|१३०॥ 
मोयाविऊण गुरुणिं पत्ता नमिरायसंतिएु कडए | दिद्ठों राया दिन्नं च तीए परमासणं रज्ञा ॥१३१॥ 

कहिओ नियतवुत्तंतोी परूविओ जिणवराण सद्धम्मो | नरयदुह्ाण निमित्तं च साहिओ तस्स संगामो ॥१३२॥ 
अन्न च केरिसो तुह संगामो जेद्ठभाउणो सद्धि ? | कहमिव भाया एसो १ सपच्चओ तीए सो सब्बो ॥१३३॥ 
कहिओ सो वुत्तंतो तह वि हु अभिमाणतो न ओसरइ । ताहे खडक्कियाए पत्ता चंदुजसपासम्मि ॥१३४॥ 

तो रायपमुहनायरजणेण सहस त्ति पच्चभिन्नाया । अंतेउरियासत्थो पएसु पडिउं परुज्नो सो ॥१३५॥ 

तत्तो निवेण नमिऊण तीए पयपंकयं तओ पुट्ठा । अम्मो ! किमेरिसं ते कट्ठाणुट्गाणमायरियं ? ॥१३६॥ 

कहिओ य तीए नियओ पुरनिग्गमणाइवइयरों सव्वो | भणियं च तओ रजन्ना सहोयरो कत्थ मे अज्जा | १ ॥१३७॥ 
तीए भणियं एसो जेण तुम॑ वेढिओ नियबलेण । तं॑ सोउ' चंदजसो हरिसवसुब्भिन्नरोमंचों ॥१३८॥ 

नीहरिओ नयराओ निव्भरमालिंगिओ सिणेद्ेण | दाऊण तस्स रज्जं वर्य पवन्नो सयं परम ॥१३९॥ 


३५, अवश्यप्राप्तव्यप्राप्तिवणेनाधिकारे नम्याख्यानकम्‌ श्दईे 


इयरो वि दोसु रज्जेसु पत्तपयरिसविसेसओं जाओ । निग्गयपयडपयावों वसीकयासेसरिउनिवहों ||१४०॥। 

भुंजंतस्स य पंचप्पयारविसए गओ बहू कालो । अह अन्नया य जाओ दाहजरो नमिनरिंदस्स ॥१४१॥ 

तस्सोवसमनिमित्तं घसंति विज्जोबएसओ सब्बा | अंतेउरिया गयदंतवलयपडिपुन्नबाहुलया ॥|१४२॥ 

सिरिखंडाई सिसिरोवयारजणणत्थमवणिनाहस्स । तत्तो उत्तालाणं परोप्परं तेसि बलयाणं ॥१४३॥ 

संघडण-बिहडणावसविसेसओ संतयं समुच्छलिओ । हलबोलरवो विरसो [सु]दुसस्‍्सहों रायकन्नाणं ॥|१४४॥ 

भणियं च तओ रज्ना न सहह एसो दढं मह मणस्स । तत्तो एगेगं दंतवलयमुम्मोइयं ताहिं ॥१४५॥ 

तह वि हु जाव न पसमह ताव य सब्वाणि ताहि मुक्काणि । एगेगं मोत्तणं तो भणियं नरवर्रिंदेण ॥१४६॥ 

संपई कि उवसंतो वलयरवों ? तो निवेहयं रज्नो । बलयाण सरूवमिमं विवेयओ तो विचितेद ||१ ४७) 

पेच्छछु अइहवबलय मोत्तु सब्वाणि जाव णीयाणि | ता मह असमाहिकरो उबसंतो एस हल्बोलो |१४८॥ 

ता एसो वि हु बहुओ पुत्त-कलत्ताइओं सयणवग्गों | जाव5ज्ज वि ता जायइ जियाण हिययम्मि असमाही ॥|१४९॥ 

अन्न च जियस्सिमिणा बहुएण वि पासवत्तिणा ताणं | न भवह दुहम्मि मणयं पि परियणेणं जओ मणिय॑ ॥१५०॥ 

जइया दाहजरत्तो अइदुस्सहवाहिवेयणाविहुरों | तइया पासबहइट्टी सयणो अक्कंदए करुणं ॥१५१॥ 

पंके खुत्तो व्व करी सयणगओ तडफडेइ दुक्खत्तो । सयणों वुन्नो जोयइ असमत्थों वेयणुद्धरणे ॥१५२॥ 

अन्नह कहमेयाओ सरसाओ भारियाओ मिलियाओ १। ससिणेहाउ मह कए खिज्जंतेवं वराईओ ? ॥१५३॥ 

एए विचिगिच्छाए चउप्पयाराए सत्थभणियाए। धन्नन्तरिसारिच्छा वेज्जा कुसला किलि्स्सिति ? ॥१५४॥ 

अबरे त्रि मंत-तंताइवाइणो मंतिणो ससामंता । चउरंगबल् एयं बहुय॑ पि हु विभयइ न दुक्‍्खं |१५५॥ 

जइ पुण पुव्वभवकर्य सहायमेगं पि होइ मह सुकयं | ता तयमवियप्पेणं होज्जा ताणं दुहत्तस्स ॥१५६॥ 

ता जइ कहमवि एयाओ रोगवसणाओ हूं विमुंचेज्जा | ता सुकयम्मि पयत्तं करेमि चहइऊण रज्जसिरिं ॥१५७॥ 

हय चिंतिय रयणीए सेज्जाए जाव सुयइ ताव सुहा । जाया निद्दा वयपरिणई य कम्मक्खओवसमा ॥|१५८॥ 
पेच्छइ रयणिविरामे सुमिणमिम किर अहं सय॑ चेव | संजमभरे व चडिओ समुन्नए मेरुसिहरम्मि ॥॥१५९॥ 

तत्थ वि य सरयससहरकरनियरपहासमुज्जलसरीरे । नियगे व्व पुन्नपुजे करिम्मि आरूढमप्पाणं ॥|१६०॥ 

ताहे नायं एसो मेरुगिरी देवपुव्वजम्मम्मि | दिद्लो जिर्णिदजम्मणमज्जणयमहसवम्मि मए ॥|१६१॥ 

एवं सो नमिराया जाईसरणेण नायपरमत्थो । देवयविहन्नलिंगो जाओ पत्तेयबुद्धमुणी ॥१६२॥ 

गिरि#दराए वीसुं पि पचलपज्जलियजलणदित्ताए | सीहो व्व विणिक्खंतो गिहवासाओ महासत्तो ॥१६३॥ 

एत्थंतरम्मि मणिरयणभासुराभरणभूसियसरीरों | सोहम्मवई सकखं समागओ तप्परिक्खत्थं ॥१६९॥ 

अच्चव्भुयतचरिएण रंजिओ नमिरिसिं महासत्तं | नयरीओ नीहरंतं माहणरूवो भणइ सको ॥१५५॥ 

भो भो ! सुणसु महायस ! पव्वज्जा ताव पाणिदयमूला | तुह वयगहणे य इमा अक्कंदइ दुक्खिया नयरी ॥१६६॥ 

ता दूरमजुत्तमिणं पुव्वा-5वरबाहयं व्यय तुज्स | तो भणइ मुणी न दुहस्स कारणं एल्थ मज्ञ वयं ॥१६७॥ 

किंतु नियनियपओयणहाणी दुक्खस्स कारणं लोए | ता अहमवि नियकज्ज करेमि किमिमाए चिताए १ ॥१६८॥ 


ततः स्वयमेवान्तःपुरगृहाणि प्रज्वलन्द्युपदश्य पुनरप्याह शक्त :-- 
एस अग्गी य वाऊ य एय॑ डज्झइ मंदिर । भय ! अंतेउरंतेणं कीस णं नावएक्खह ? ॥१६५॥ 
ततो नमिराह-- 


सुहं बसामो जीवामो जंसि मो नत्थि किचणं । मिहिलाए डज्झमाणीए न मे डज्झइ किंचणं ॥१७०॥ 
चत्तपुत्त-कलत्तस्स निव्वावारस्स भिक्‍खुणों । पियं न विज्जई किंचि अप्पियं पि न विजई ॥१७१॥ 


१, अविधवावलयं--सौभाग्यचिहृरूपं वलयमित्यथथः । 


२८७ आख्यानकमणिकोशे 


पुनराह शक्र:--- 
पागारं कारइत्ता णं नयरस्स अइदुग्गयं । नाणाजंतेहिं संजुत्त तओ पव्वय खत्तिया | ॥१७२॥ 
राजर्षि: प्राह-- 
संजमो नयरं मज्कू सयं च विहियो तहिं। दुग्गो पसमपायारों नयजंतेहिं संजुओ ॥१७३॥ 
पुनवंदति शचीपति:-- 
निवासहेउं लोयस्स सासए सुमणोहरे । पासाए कारदइत्ता णं तओ पव्वचय खत्तिया |! ॥१७४॥ 
नमिः प्राह--- 
मूढो चेव जणो पंथे वहंतो कुणई गिहं । निच्छएण जहिं ठाणं जुत्तं तत्थेव मंदिरं ॥१७५॥ 
इन्द्र: प्राह--- 
तककरे निग्गहेऊणं सुत्थं काऊण पव्वय । 
नमिराह--- 
चोरा रागाइणो चेव ते य निग्गहिय। मए ॥१७६॥ 
हरिराह-- 
जे केइ पत्थिवा तुज्ञ न नमंति बलगव्विया । बसे ते ठावइत्ता णं॑ तओ पव्वय खत्तिया | ॥१७७॥ 
मुनिरुवाच-- 
जो सहस्सं सहस्साणं संगामे दुज्जयं जिणे | एगं जिणेज्ज अप्पाणं एस से परमो जओ |॥|१७८॥ 
सुरपतिरवादीत्‌-- 
गिहासमसमो धम्मो को अन्नो एत्थ विज्जई ?। दिज्व॑ंति जत्थ दाणाइं दीणा-डणाहाइपाणिणं ॥१७९॥ 
साधुरुत्तयति-- 
जीवधायरओ धम्मं जं कत्थह कुणई गिही । साधुधम्मगिरिंदस्स राइमेत्तो वि नो इमो ॥१८०॥ 
पुरूदरः प्राह--- 
सुवन्न-मणि-मुत्ताओ कंस दूसं च वाहणं । कोसे वड्ढडावदइत्ता णं तओ पव्वय खत्तिया |! ॥१८१॥ 
[ राजपिरुवाच ]|-- 
जइ होंति हिरण्णस्स गिरितुलला वि रासिणो । से तहा विरई कत्तो असंतद्वस्स जंतुणो ॥१८२॥ 
सुराधिपो न्‍्यगादीतू--- 
अणागयाण भोयाणं कारणम्मि नराहिवा !। हत्थागए इमे भोए मूढो जं एवमुज्ञसि ॥१८३॥ 
राजमुनिरभाषत-- 
भोगासंसाए नो भोए हछद्धे परिचयाम5हं । अजिन्नसंभवे दोसे को घयं पियई बुहो १ ॥१८०॥ 
सल्लं कामा विस काम। कामा आसीविसोवमा । कामे पत्थेमाणा अकामा जंति दुग्गईं ॥१८५॥ 
इय भणिओ वि हु एसो जा न चलइ मंदरो व्व पवणेहिं । ता जाओ पच्चक्‍्खो हिट्ठो नमिउं मुणी सको ॥१८६॥ 
भणइ महायस ! भुवण वि तुज्ञ सलहिज्जए कुलं गोत्त । जेण तएु पडलूगं तणं व चत्ता इमा रिद्धी ॥१८७॥ 
आगासं व न लिप्पसि मुर्णिद ! कत्थह ममत्तपंकेण । रागाइसतुवग्गो य सव्बहा तह विणिग्गहिओ ॥१८८॥ 
एवं अभित्थुणंतो रायरिरसि उत्तमाए सद्भाए | तिपयाहिणं कुणंती पुणो पुणो वंदई सक्को ॥१८९॥ 
तो वंदिऊण पाए चक्क॑कुसछतखणे मुणिवरस्स । आगगासेणुप्पह्ओ चलंतमणिकुंडडो सको ॥१९०॥ 
न वि रुट्टो न वि तुट्टो पालेउं नमिमुणी वि पव्वज्ज । सिद्धि गओ इमं चिय कुणंति अन्ने वि सप्पुरिसा ॥१९१॥ 


॥ नमिराजाल्यानकं समाप्तम्‌ ॥१०५॥ 


३४. अवश्यप्राप्तव्यप्राप्तिवणेनाधिकारे बन्धुद्शाल्यानकम्‌ २८४ 


अधुना चारदशाल्यानकस्यावसरः तथ्य भावद्टिकाण्यानके भणितमिति | क्रमप्राप्त तु बन्धुद्साख्यानकमारभ्यते । तथथा-- 


तथा हि-- 


अत्थि समिद्धिसमन्नियनायरजणजणियहिययसंतोसं | रूच्छीतिलूयं नयरं पुन्नाहियमणुयबंद्रं व ॥१॥ 

तत्थ य समग्गलक्खणचंगिमगुणकलियनरकवालरुकरों | सुनओ वसणविरहिओ सिवो व्व ससिसेहरो राया ॥२॥ 
सब्बंतेउरसारा सुदंसणा नाम पिययमा तस्स । नियमइविहवविणिज्जियजीवो मंती वि य सुबुद्धी ॥३॥ 
नेगमवग्गपहाणो समुद्ददत्तामिद्ाणओ सेट्ठटी | सीलाइगुणनिवासा वसंतसेणा पिया तस्स ॥४॥ 

नामेण बंघुदत्तो धम्मपिओ तीए पढमओ पुत्तो । बीओ वि हु बसुदत्तो सो मणयं वक्‍क्रववहारों ॥५॥ 
वाणियगकलाकुसलछा जाया ते दो वि जोव्वणाभिमुहा । तत्तो भणिओ दुद्धाभिसंधिणा विहवल॒द्धण ॥६॥ 

जेट्टी कणिट्वएणं अच्छिज्जइ किमिय पंगुपाएहिं। दविणज्जणस्स जोग्गा जम्हा अम्हाणिमाइवत्था ॥»॥ 

तो दविण5ज्जणकज्जे गम्मउ देसंतरम्मि इय भणिए | मोयाविया य अम्मा-पियरों संप्पस्सयमिमेहिं ॥८॥ 
अम्मा-पिऊर्हि भणिया विज्वइ वच्छा ! गिहे पभूयधणं । विसमा देसा तुब्मे सुहोइया ता न जुत्तमिमं ॥९॥ 
भूओ वि आयरेणं मोयावेऊण सोहणे दिवसे | चलिया एगदिसाए अत्थोवज्जणकणए दो वि ॥१०॥ 

इय ते बाहुबिइज्जा सहाय-वाहण-कयाणयाइ विणा । नियपुन्नपरिक्खत्थं दो वि हु वच्च॑ति सेट्टिसया ॥११॥ 
भणिओ य बंघुदत्तो बसुदत्तेणं जहा इमो भाय !। मग्गो निव्बहइ कहाणियाएु अहवा वि कलहेणं ॥१२॥ 
ता कहसु मह कहाणयमेगं अहवा वि पत्थुयत्थम्मि | अहमेव ताव कहय/म5वन्तरकहाणयं एगं ॥१३॥ 
हलहरजणप्पहाणे कम्मि वि गामम्मि साहिमाणधणों । एगो करिसणवित्ती सकलत्तो वस॒इ कुलउत्तो ॥१०॥ 
सो निययभारियाए कइया वुब्बेओो अणज्ञाए | नवघडियछुरियधारासरिच्छदुव्वयणजीहाए ॥१५॥ 

तस्स य देसंतरपत्थियस्स मग्गम्मि संपयट्टस्स | महियाइविक्क्यकए चलिया गोउढछनिवेसाओ ॥१६॥ 
महियारीओ मिलियाओ निब्बिवेयाओ जोव्वणत्थाओ । अप्पाणयर्स सरिसाउ मत्थएु ताण थाढीओ ॥१७॥ 


सुपयाओ सिणिद्धाओ सुमहियदहियाओ सामलंगीओ । निम्मलपह्ाओ सममणियाओ पायडियपंतीओ ॥१८॥ 
सो उण जइ वि सखेओ हलहरपाओ तहा वि तरुणवओ । दटठुं ताओ जाओ जायवियारों जओ भणियं ॥१५॥ 
अवश्यं योवनस्थेन विकलेनापि जन्तुना । विकार: खलु कतेव्यो नाविक्राराय यौवनम्‌ ॥२०॥ 

इत्थीतरलत्तणओ भणियमिमाहिं मणुस्सगा ! कहसु । कि पि कहाणयमेगं राडि वा कुणसु जेण इमो ॥२१॥ 
मग्गो सुहेण निव्वहद अम्ह तुह वयणहरियचित्तांणं। सो उण ताओ अवगन्निऊण बच्चहई विहियमोणों ॥२२॥ 
वारं वारं ताओ तहेव जंपंति जाव तं॑ चेव | ताव य चिंतियमिमिणा मणयं संजायकोवेण ॥२३॥ 

मोणेण ताव नोवसममेंति एयाओ पेच्छ पावाओ । दिज्वउ तम्हा वक्‍का हु कीलिया वक्ववेहर्स ॥२४॥ 

इय परिभाविय कुल्पृत्तणण तेणुल्लसंतणक्खेण । खिविं पाय॑ पायाणमंतरे पाडिया एगा ॥२५॥ 

तीए पडंतीए निवाडियाओ ताओ धस त्ति धरणीए । महिविक्िखिरियरसाओ तेरस थालीओ भग्गाओ ॥२६॥ 
तप्पभिइं चलियाओ तेण समाणं कलिं कुणंतीओ । अमरिसविलक्खवयणाओ मभ्कत्ति नयरम्मि पत्ताओ ॥२७॥ 
कुलपुत्तएण भणियं सिम्धं राडि कुणंतणण मए । नयरम्मि पावियाओ खमह महं जामि सट्ठाणं |२८॥ 

तत्तो सद्धि तेणं थालीणं सामिणी ऋगडणणं । रूग्गा बहुजणमज्झे अवगन्निय त॑ बला नट्ठीं ॥२९॥ 

संपत्तो [विसा]वाडयम्मि पत्थेइ वासयट्टाणं | ताहिं वि अणाहसालाए दंसिओ सिक्कड़ो एगो ॥३०॥ 

तम्मि निसन्नो जा सुयह नेय अज्ज वि य मग्गपरिसंतो । ता विद्धकुद्टिणोए भणिओ आगंतुमेगाए ॥३१॥ 
कहसु कहाणयमेगं तेणुत्तमहव मग्गपरिसंतो । न चएमि कहेउं जे खणमेगं सुविडमिच्छामि ॥३२॥ 

सा उभयहा वि वेसा जाया कुछुउत्तयस्स तम्मि खणे | होइ हु वेप्तो कुब्ब॑ निद्वाभंगं जओ भणियं ॥३३॥ 


१, वृहस्पति! । २, सप्रभ्रयम्‌ । ३, सममनस:-एकमनसः । ४, कलहम | 


श्ष्द 


तथा--- 


आख्यानकमणिकोशे 


निद्राभज्ज कथोच्छेदं सारथ्यं क्रमविक्रयम्‌ । शक्रोउपि द्वेष्यतां याति यः करोति चतुष्टयम्‌ ॥३४॥ 

पुणरवि न देश जा कह वि सोविउं ताव तेण रुट्रेण। भणियं कप्पियमेयं कि वा वि हु चरियमक्खेमि ? ॥३५॥ 
तीए भणियं चरिय॑ कहेसु रामायणाइयं कि पि। ता रुसिउं रंडाए मुदट्ठीण पाडिया दंता ॥३६॥ 

तो मिलिए वेसावाडयम्मि कोलाहलम्मि वड्ंते । दीवसिहाए पज्जालिऊण गेहं विणिक्खंतो ॥३७॥ 

विन्नायवइ यरेहिं पत्तो आरक्खिर्टाहि निज्जन्तो | रायंतियम्मि दिट्लो तीय वि महियारियाएु तओ ॥३८॥ 
सव्वाहि वि मिलिऊरं कहिओ आरक्खियाण तद्दोसो । तेहि वि रज्नो पायाण दंसिओ बंधिउं पुरओ ॥३९॥ 
भणियं रज्ना पुट् ण तेण देव5ज्ज मग्गखिन्रेण । निद्ंतरायकरणेण बाढमुव्वेविएण मए ॥४०॥ 

चरिय॑ भारह-रामायणाइयं मह कहाणयं कि पि। वार वारं पुट्टेण सामि ! एयाए विद्धाए ॥४१॥ 

जह मउडमुत्तियाईं हणुएणं खलहलावियाइं तया | लंकाहिवर॒स तह देव ! दंसियं दंतपाडणओ ॥४२॥ 

तेण जह पुच्छपजलणपयारओ पहु ! पछीबिया लंका । तह दीवयगिहपज्जालणेण सब्बं पि सच्चवियं ॥३३॥ 
एयं तीए चरियं रामायणसंतियं समक्खायं । इय विहिय॑ देव ! मए उड़ देवो पमाणं ति ॥४४॥ 

एयाहिं वि देव! तहेव दूरमुल्लंठभासणपराहिं । महियारियाहिं संताविएण परिभाविऊण मए ||४५॥ 

अन्नो नत्थि उबाओ त्ति सामि ! एयाण वंकभणिरीणं । एयं. धरणीए पाडिऊण थालीओ भग्गाओ ॥४६॥ 
भव्वं कयं जमेवं सिक्खवियाओ इमाओ पावाओं । एवं पसंसिऊर्ण मुक्कों कुलपुत्तओ रन्‍ना ॥४७॥ 
राडी-कहाणएहिं ता एवं भाय! पहपयद्टेहिं । गम्मइ सुहेण मग्गे ता कहसु कहाणयं तुमवि ॥४८॥ 

तेणुत्त वच्छ| न कि पि ताव अहय॑ कहाणय कहिउं । जाणामि इय भणंता दोन्नि वि वच्च॑ंति मग्गम्मि ॥४९॥ 
अह निययदुद्वयाए जंपइ जेट्ठ॑ पुणो वि वसुद॒त्तो । जीवस्स जओ धम्माओं भाय! कि वा वि पावाओ ? ॥५०॥ 
भणियमियरेण धम्माओ भणइ लहुओ वि भाय! पावाओ । एवं विवयंताणं ताणं जाओ अभिनिवेसों ॥५१॥ 
विहिओ य पणो लोयणजुयेण पत्ता य कम्मि वि निवेसे । पुद्ठा विद्धा अत्थाइयाए धम्माओ तेहुत्तं ॥५२॥ 

न य पडिवन्नं लहुएण तो पयंपंति तुच्छया तत्थ | भव्व॑ं भणइ वराओ पावेण जओ न धम्मेण ॥५३॥ 
पेच्छह पच्चक्खं चिय जे चोरा वंचगा असच्चपिया । दुब्बयणा दुद्धरिसा ते सुहिया वुत्तमेत्थअत्थे ॥५४॥ 
नातीव सरलेभांन्यं गत्वा पश्य वनस्पतीन । सरलास्तत्र छिद्यन्ते कुब्जास्तिष्ठन्ति पादपा: ॥५५॥ 


गुणानामेव दोषात्‌ स्याद्‌ घुरि धुर्यो नियुज्यते । असज्ञातकिणस्कन्धः सुखं जीवति गोगेलि: ॥५६॥ 
तत्तो य बंधुदत्तो हारियकोयणजुओ विलक्खमुहो । जाओ वच्चंताण य समागया भीसणा अडवी ॥५७॥ 


सा य केरिसा -- 


घुरुघुरियवग्धगुरुजणियभया, गुंजारवभीसणसीहसया । रुरु-हरिणकरुणसंवरपवरा, दुष्पेच्छतरच्छपवत्तद्रा ॥'१८॥ 
दीसंतविविहतरुवरविसरा, विहरंतवाह-नाहलूयनरा । गुरुपव्वयकंदरदुग्गधरा, पवहंतनीरनिज्करणसरा ॥५८॥ 
एत्थंतरम्मि लज्ज॑ लहुईकाउं दुह्य वि लहुएण । कुलमज्जायं अवहत्यिकण चइऊण गुरुयत्तं ॥६०॥ 
अवियारिऊण धम्मं तंवारेउं विसिट्रवावारं । परिहरउं परछोयं अंगीकाऊण नरयदुहं ॥६१॥ 

चिंतियमिमिणा जीवंतएण साहारणा हु घरलूच्छी । ता मारिज्जउ एसो दुलहो एवंविहो3वसरो ॥६२॥ 
सामत्थिऊण एवं भणियं मह देसु छोयणजुयं त॑ । सच्चपइन्नत्तणओ पडिवन्नं तेण त॑ तइया ॥६३॥ 

तत्तो सो वसुदत्तो नयणुप्पाडणविहिं अयाणंतो । मुक्खत्तेण तहाविहसत्थेणुत्तोलिउं नयणे ॥६४॥ 

वलिओ हरिसियहियओ संपयमेगागिणी वि घरलूच्छी । मज्क भविस्सइ पियरे मयम्मि चित्ते वियप्पंतो ॥६५॥ 
न मुणइ अकज्जमेयं मए कुणंतेण पाडिओ अप्पा । नरयम्मि दुक्खपउरे धिद्धी ! छोहस्स माहप्पं ॥६६॥ 


१ एकाम्‌ 


भणिय॑ च-- 


३५, अवश्यप्राप्तव्यप्राप्तिवणेनाधिकारे बन्धुद्त्ताख्यानकम्‌ रष्७ 


धावेह रोहणं तरइ सायरं भमइ गिरिनिउंजेसु । मारेइ बंधवं पि हु पुरिसो जो होइ घणढुद्धों ॥६७॥ 

अडइ बहुं वहइ भरं सहह छुहं पावमायरह धट्टी | कुल-सील-जाइपच्चयठिईं च लोभदूदुओं चयइ ॥६८॥ 
एव्थंतरम्मि पेच्छह निद्धस्स सहोयरस्स पावेण । पेच्छंतस्स वि मज्ञं कहमिमिणा कज्जमांयरियं ॥६९॥ 

सूरो हं सुभगो हं सुपवित्तो ह॑ं पयावपयडो हं | तामसपडिवक्खो हं सुपरक्षमसत्तिजत्तों हं ॥७०॥ 

कमलाण बोहओ हं समुच्चगोत्तुदयपत्तपसरो हूँ । सब्व॒वरिं संठिओ हं महिहरसिरदिज्नपाओ हूं ॥७१॥ 
भुवणत्तयमित्तो हं तेयस्सिसिरोमणि त्ति पत्तो हं | ता कि इमिणा गुणसमुद्एण मह कज्जवियलेण १ ॥७२॥ 

इय बंधुदत्तवणियं निद्दोसं दुक्खियं सरणरहियं । दटठुं अचयंतो लज्जिउ व्व अत्थं गओ तरणी ॥७३॥ 

कहमवि सुयणो सुयणस्स आवयावणयणम्मि असमत्थों | आवइपडियं दटदठुं अपारयंतो अवक्रमइ ॥७५॥ 

इय बुद्धीए मन्ने3वर्कतो मह पद सुयणतिलुओ । इय परिभाविय संझा वि झत्ति पहमग्गमणसरिया ॥७५॥ 

सो वि वणिबंधुदत्तो रुहिरुक्षियनयणजुयलओ जगवं | अंगीकओ सरीरय-माणसदुक्खेण खीणतण ॥७६॥ 
कहमवि य हत्थफंसप्पयारओ पत्ततरुतलूपएसो । परिभाविन्तो नियकम्मपरिणईं जाव वीसमइ ॥७७॥ 

ताव य पयईए चेव दुहयरी तमविजुत्तसम्मग्गा | कलिकालकरणिमहिमामणकुव्बंती निसा पत्ता ॥७५॥ 

तीए तमपडलाइं विप्फुरियाइं समंतओ भुवणे । संतावकारयाइं खलुदुत्नयविरुसियाइं व ॥७९॥ 

तत्तो य धूयसंघा घुग्घुइया निग्चिणा सवणकडुया । नीयजणा इवं दुष्बंबणजणियसुइसुयणसंतावा ॥<८०॥ 
कत्थ वि य घोरवग्घा घुरुहुरिया भयकरा करालमुहा । लुंचोवयारकलिया पिसुणा इव पयडपेसुन्ना ॥८१॥ 
अवरत्थ दुसहखरतरकरपसरा तासकारिणो कूरा | कलिकालनरिंदा इव गुंजारवयंति केसरिणो ॥८२॥ 
उन्बेयकारिणीओ भल्लुंकीओ भसति भमिराओं | कुलडाउ व तरल्यराउ उभयकुलफंसणकरीओ ॥८३॥ 

इय सो सावयभीओ समीहए तरुसिरे समारोढूं | नवरमिमों मूलाओ सज्जणों व्व तरू ॥८४॥ 

साहाओ वि हु कुल्बालिय व्व पणयाओ तस्स वरतरुणो । अवलंबिऊण ताओ साहाबिवरे समल्‍्डीणो ॥८५॥ 
अड्डु वियड्भुओ चंपिऊण कोमललूयाओ ताणुवर्रि । रहऊण पत्तसयणं तम्मि पसुत्तो भयविमुको ॥८६॥ 
जाव&च्छइ ता दीवंतराओ पत्ताण सुणइ पक्खीणं । सिहरम्मि जंपियमिमों महल्लजणएण पुदट्ठाणं ॥८७॥ 

भो ! को कुओ इहा55ओ ? केण व दीवंतरम्मि कि दिट्ठं !। निशुयं च कह सब्बं॑ मह पुच्छंतस्स नियपिउणों ॥८७॥ 
तेहि वि ज॑ जहवत्तं दिट्टं ज॑ं जेण जम्मि दीवम्मि | त॑ तह सब्व॑ कहियं नवरमिमाणं भणइ एगो ॥८९॥ 
अहमज्ज ताय ! पत्तों सिंहलदीवम्मि तत्थ नरवबइणो । मयणघरणि व्व रूवेण मयणरेहा सुया तस्स ॥९०॥ 
तीए य अच्छिवियणाए पीडियाए तदृज्बओ मासो । विज्जेहि वि परिचत्ता पिउणा वि दवाविओ पडहों ॥९१॥ 
जो मह धूय॑ पउणं करेइ वियरामि तस्स तीए सम॑ । अद्धं रज्जस्स तयं च को विन य पडहय॑ छिव३ ॥९२॥ 
अज्ज दिणं छट्ठं पहहयस्स ता ताय ! ओसहं तीए । कि नत्थि तिहुयणे वि हु ? कि वा अत्थि ? त्ति मे कहसु ॥११॥ 
अत्थि त्ति परं वच्छय ! केत्तिय एवं विहाणि वत्थूणि | जाणंतेहि वि उम्घाडएण वयणेण सीसंति १ ॥६४॥ 
तेणुत्त ताय ) महंतकोउयं कहसु मज्म जमिह वणे | न य को वि सुणई जह एवमेस रुवखो समग्गाणं ॥९५॥ 
वाहीणमोसहं नतयणवाहिणों पुण विसेसओ वच्छ | | ता जइ इमस्स तरुणों को वि हु पक्खिवह पत्तरसं ॥९६॥ 
तीए नयणेसु तो सा पउठणिज्जह निच्छयं इमं सोउं । चितह लोयणवियणाए बाहिओ बंघुदत्तवणी ॥९७॥ 

ताव परिक्खामि अहं जह मह पउणीभवंति नयणाणि। ता जायपच्चओ हूं पुरओ काहामि ज॑ जुत्त ॥६८॥ 
इय परिभाविय सम्म॑ं कोमलूपत्ताणि चाविऊण रसं | खिव्र३ नयणेसु पिंडी च बंधए ताण चेवुवर्रि ॥९९॥ 

जा खणमेगं चिट्टट ता मणि-मंतोसहिप्पभावस्स । गाढमचिंतत्तणओ नद्ठा वियणा असेसा वि ॥१००॥ 

जाव य रयणिविरामे अवणेउं पट्टयं नियह ताव । पुष्ब॑ व पेच्छिउं लोयणाणि जाओ पहिट्ठमणो ॥|१०१॥ 


श्ष्प्प्द 


अवबरं च--- 


आखश्यानकमणिकोशे 


ओयरिऊणं तरुणो सरम्मि पक्खालिऊण मुहमाई । परिविहियपाणवित्ती फलाइणा गमइ तं दियहं ॥१०२॥ 
पुणरवि तहेव चडिउं चिट्नृ् तरुणो लयंतरालम्मि | संझासमए भारुंडपक्खिणो पेच्छइ तहेव ॥१०३॥ 
चितियमिमिण। पयडेमि पोरिसं पठणयामि निवधूयं । गेहे गओ पडिस्सामि तत्थ पुणरवि अणत्थम्मि ॥१०४॥ 
पडणीभूओं पत्ताणि गिन्हिउं तस्स अमयफलतरुणो | सिंहरूुदीवे गमणं निवेइबं जेण जणयस्स ॥|१०४५॥ 
चरणेसु अप्पयं बंधिऊण भारुंडपक्खिणो तस्स | वसिओ रयणीविगमे नीओ सडउणेण तेण तहिं ॥१०६॥ 
छिविऊण पडहयमिमो पत्तो पुहदवहस्स पासम्मि | कयसमुचियपडिवत्ती पुट्ठो रज्ना कुसलबत्त ।।१०७॥ 
संभासमए काराविऊण बलिमंडलाइयमसेस । वाहरिय मयणरेहं नयणचिगिक्छ॑ कुणइ सब्ब॑ ॥१०८॥ 
जाया तहेव निरुया सोहणदिवसे विवाहिओ कनन्‍्न॑ | दिन्न॑ रज्जस्सडद्धं रज्ना पत्तो पसिद्धि च ॥१०९।। 
भुंजहइ पंचपयारे विसए सह तीए नेहसाराए | अह अन्नया य पत्तों वसुदत्तो विहिनिओंगेण ॥।११०॥ 
ववहरणत्थं वहणेण तयणु निवदंसणत्थमत्थाणे | पत्तो महरिहमणहरपाहुडहत्थो सपरिवारों ॥१११॥ 

पेच्छइ य विरायंतं सहोयरं तत्थ रायरूच्छीए | सम्म॑ं वियाणिऊर्ण धसक्षिओ माणसे सहसा ॥११२॥ 
चितह य कूरकम्मी जइ कह वि हु मज्क वहयरं एसो । रन्‍नो पयडइ ता हं हियसव्वस्सो विणस्सामि ॥११३॥ 
ता केणांवि उवाएण मरइ जइ एस तो भवे लट्ट । एसो पउद्ठचित्तो ववहरइ अभिन्‍नमुहराओ ॥११४७॥ 
अह अन्नदिणे विजणम्मि जाइ मायाए बंघुदत्तगिहे | पुच्छियकुसलोदंता परोप्परं जाव अच्छंति ॥११५॥ 
ता लहुएणं भणिओ सहोयरो भाय ! ताव कइ वि दिणे। मा म॑ जाणाबिज्जसु रन्‍नो तेण वि य पडिवन्नं ॥११६॥ 
इय ते सकम्मनिरया सहोयरा दो वि तम्मि दीवम्मि । निम्मल-कलुसियहियया गमंति दिवसाणि भणियं च ॥११७॥ 
कलुसमई कलुस चिय विमर्॒| विमलं परं पि पिच्छंति | अत्ताणयं व आयरसए व्व जेणं जणो नियइ ॥११८॥ 


जाणंति पिय॑ चिय वोत्तुमुत्तमा अमयमुत्तिणो नुणं । कि अमयाओ अन्न झरिउं मयलुंछणों मुणइ १ ॥११९॥ 
अह अन्नदिणे विम्हइयमाणसो तम्मि चेव अत्थाणे | नियए सहोयरे निग्गयम्मि रायाइपच्चक्खं ॥१२०॥ 

भणइ सविसायहियओ वसुद॒त्तो मद्दिकण करजुयलं । को सक्कइ वन्नेउं नयरसिरिं एगजीहाए ? ॥१२१॥ 
परमिह विरूवमेगं पयदे एसा हवे पयावइणो । ज॑ पडिपुन्नं एसो न कुणइ कत्थइ सनिम्माणं ॥१२२॥ 

हय सव्बया वि एसो कुणमाणो अन्नया नरिंदेण | भणिओ विजणे भो भद्द! कि विरूवं मह पुरीए ? ॥१२३॥ 
नीससिउं सविसाय॑ भणियं नरनाह! अकहणिज्जं पि। तुज्ञ कहिज्जइ नवरं पयासियव्व॑ न कस्सावि ॥१२४॥ 
पडिवन्ने नरवइणा भणियं पहु! एस तुज्ञ जामाऊ | अम्ह पुरे सुपसिद्धो अंगरुहों वेज्जडुंबस्स ॥१२५॥ 

त॑ सोउं नरनाहों चिंतइ एयं पि घडइ जुत्तीए | अन्नह कह मह धूया परिचत्ता सब्बवेज्जेहि १॥१२६॥ 

एएणं॑ पन्‍नविया ? ता जइ सच्च॑ जहा इमो भणइ । ता हयविहिणा अम्हे विडंबिया पावकम्मेण ॥१२७॥ 
एवं विसन्‍्नहियओ पुट्ठो राया सुबुद्धिसचिवेण । देव | किमेयं १ तेण वि कहिय॑ बसुद॒त्ततणिभमणियं ॥१२८॥ 
सचिवेणुत्तं जइ देव! एबमेयं तओ गुरू अयसो । ववहारियाणं ठाणं जमिमा दीवम्मि तुह नयरी ॥१२२९॥ 

ता जाव5ज्ज वि न भवद पायडमेयं नरिंद्‌ ? जणमज्झे । तावोवायं चितसु एत्थ5त्थे भणइ तो राया ॥१३०॥ 
तुममेव बुद्धिमंतो ता ज॑ किचं तमेव मे कहसु । तेण वि भणियं पच्छननमेव वावायसु इमं ति ॥१३१॥ 

त॑ सोउं नरनाहो दुहियादुक्खेण दुक्खिओ अहिय॑ | कह कायव्बा एसा मयम्मि जामाउए दुहिया ? १३२॥ 
पडिवन्ने नरवइणा रहम्मि पुद्ठा इमं मयणरेहा | कि अकुलीणबियारों सच्चविओ को वि कइया वि ॥१३३॥ 
नियपइणो ? पुत्तीए तीयुत्तं ताय! चंदर्बिबम्मि | अज्ज वि अत्थि कलंको न उणों पहणो मह कयाइ ॥१३४॥ 
सरलो सच्चपइन्‍्नों पुत्वाभासी कयन्नुओ सुहभो । परउवयारेकरओ चाई सूरो महासत्तो ॥१३५॥ 

कि बहुणा ? कोउयहारिएण विहिणा विणिम्मिओ एसो । केवलगुणमयमुत्ती पडो व्व परगुज्ञरक्खद्ठा ॥१३६॥ 


३६. सम्पद्धिपदो: सत्पुरषसमताबयणनाधिकारे नरविक्रमाख्यानकम्‌ श्घह 


इय सोउं सुट्‌ ठुयरं अभिभूओ माणसेण दुक्खेण । कहमेरिसनररयणं विणासियव्वं ? अहो ! पाव॑ ॥१३७॥ 
पुणरवि सचिवेणुत्त किज्जउ निवनीहमणुसरंतेहिं | इय निच्छिऊणमेसो संझासमयम्मि वाहरिओ ||१३८॥ 
सुहपुन्नपेरिएणं तम्मि दिणे तेण पेसिओ भाया । नियवेसमप्पिऊणं रायउलेडनायतत्तेहिं ॥१३९॥ 
पश्चइयनरे्हिं तओ वसुदत्तो चेव मारिओ तेहिं | रन्नो निवेइयं तं च निसुणिउं मुच्छिओ राया ॥१४०॥ 
सिसिरोवयारसंपत्त चेयणो वाहरेइ नियधूयं । कि ताय | इमं ? ति सुयाए पुच्छिओ भणइ पावो हं ॥१४१॥ 
ज॑ं तुह वेहव्वकरों तीए भणियं क्रिमेरिसं ताय ! १ । मज्झ पढे नियगेहे जीवउ दीवालियं लक्खं ॥१४१॥ 
सेज्ञाए सुहपसुत्तं मोत्तुमहं तस्स चेव पासाओ । तुज्क सयासे पत्ता मममिव ता पेच्छ ज्ञामाउं ॥|१४३॥ 
निबव्वुयहियओ जाओ त॑ सोउं नरबद्दे रहे पुट्टो । सब्बं पि बंधुदत्तो तेण वि तख्चेद्रियं कहियं ॥१४४॥ 
बसुदृत्तवइयरों वि हु जगम्मि न य पयडिओ अयसहेऊ । पेसविय निययपुरिसे सपरियणो आणिओ जणओ ॥१४५॥ 
विहिओ विच्छड्डंण नयरीए महसवो नरिंदेण । अज्ब॑ चिय ज॑ एसो जाओ जामाउओ मज्झ ॥१४६॥ 
जाया य वंससुद्धी स-परेसु सुहाण कारओ जाओ । रज्जसिरिं परिपालिय सुगईं पत्तो कमेणेसो ॥|१४७॥ 
धम्मेण जजो जाओ एवमिमो बंघुदत्तवतणियस्स । पावाओ खय॑ पत्तो वसुदत्तो दत्तस-परदुहो ॥|१४८॥ 
॥ धणिग्बन्घुद्साख्यानकं॑ समाप्तम ॥१०६॥ 

जह पृव्यकम्मविरइयमवस्समेएसि कज्जमावडियं । तह सब्वस्स वि जायइ सको वि न वारिउं तरइ ॥१॥ 

पापात्मके गतवति क्षयमन्तराये, पृण्यात्मनो गुण[सु]करमंवशान्नरस्य । 

श्रीवेश्महेमगृह-पुत्र-कलत्नजातं, यद्यस्य पू्वेबिहितं भुवि तस्य तत्‌ स्थात्‌ ॥२॥ 

॥ इति भ्रीमदाप्नदेवसूरियिरचितवृशावाख्यानकमणिकोशे अवश्यप्राप्तव्यप्राप्तिदशेकः 
पश्चश्रिशलमो5घिकारः समाप्त ॥र५॥ 


[ ३६. सम्पद्विपदो: सत्पुरुससमतावर्णनाधिकारः ] 


.._पूव॑विहितश्य नाशो [ना]स्तीत्यमिहितम्‌ । साम्भ्तं पू्वविहितवशादेव प्राप्तयोब्येसन-सम्पदो: सल्ुरुषेस्तुल्येमवितव्यमित्य- 
मुमथमभिधित्सु राह -- 


वसणम्मि समावडिया प्रुयंति धीरत्तणं न सप्पुरिसा । 
बिहते वि विगयगव्वा नायं नरविकमरुमारों ॥४५॥ 


व्याख्या--व्यसने' विपद्यपि 'समापतिताः” प्राप्ताः 'मुश्चन्तिः त्यजन्ति 'धीरतलं' थैये “न' नेव “सत्पुरुषा:” उत्तमाः। “विभवे! 
सम्पद्यपि समापन्ना इति द्रष्टव्यम्‌ 'विगतगवो:” परित्यक्ताभिमाना:। "ज्ञात! दृष्टान्तः “नरविक्रर्म[ कुमार: ] नरविक्रमा भिधानों 
€ € 
राजपुत्र हत्यक्षराथं: । भावाथस्तु आख्यानकादवसेयः । तब्चेद्म--- 


अत्थि परचक्क-दुब्मिक्ख-डमरविरहाइनायरगुणेहिं । अलयं पि जयंती जणवयम्मि नयरी जयंति त्ति ॥१॥ 
तत्थ य राया रिउकरडिकरडदलणेक्रपच्चलो धणियं । गरुयपरक्रमभवण्ण समत्थि सीहो व्व नरसीहों ॥२॥ 
जस्स गुणन्नियधम्मप्पमोइया मग्गणा सुसदृजुया । गंतुं वंछियठाणे परसियकित्ति वियारेंति ॥३॥ 

जस्स य रिउजणसंहारकारओ जल्यसामलच्छाओ । जमरायबाहुदंडो व्व सहइ समरंगणे खग्गो ॥४॥ 
तस्स य दुइज्जचित्त व राइणो परमपेम्मसव्वस्सं | चंपयपल्लवहत्था चंपयमाला महादेवी ॥५॥ 


२६० 


तथा हि-- 


आखश्यानकमणिकोशे 


जीसे सविलासनिरिक्खिएसु वंकत्तणं न पयईए । कुडिलत्तं चिहुरेसुं न उणो हिययम्मि कइया वि ॥६॥ 
जम्मंतरसभु वज्जियपुन्नपभावाओ अणुहबंतस्स । तीए सम॑ विसयसुहं इेसाइअदूसियमणस्स ॥७॥ 
नियमइपहावनिज्जियसुरगुरुणो रज्जचितणपरस्स | आरोवियरज्धुरं सुकुलुम्गयमंतिवग्गस्स ॥८॥ 

पाएण सुत्थहिययस्स तह वि नीहइ त्ति वसणरहियस्स । पुव्विल्लरायनाएण पालयंतस्स रज्जभरं ॥९॥ 


नाएणं परिपालइ सिट्ठजणं दुट्ठनिग्गहं कुणइ । निविसइ रायत्थाणे परिचित दुयकृज्जाईं ॥१०॥ 
चउरंगबलं पालइ परिभावइ कोस-कोट्टयाराइ । अंतेउरं निरू वह निसुणइ सद्धम्मसत्थाईं ॥११॥ 
सच्चाइरज्जसंगयकिच्चमसेसं पि चिंतयंतस्स । अप्पडिमबहुपयावस्स तस्स कालो अइकमइ ॥१२॥ 
परिणयपायाए जामिणीए अह अन्नया य नरवइणों । सत्तंगरज्जसंगयस॒हसंपयसुत्थहिययस्स ॥१३॥ 
धम्म>त्थ-कामलक्खणतिवग्गसारं सुहं पवन्नस्स । सुहनिद्दा-वल्लहकामिणीहिं परिसिढिलियंगस्स ॥१४॥ 
सुइसुहयछेयमागहवयणविणिस्सरियमिस्सरियचिन्हं । पाहाउयरायपयारसुंदरं सुकश्रइयं व ॥१५॥ 
सुविसुद्धजाइकलियं सुवन्नपयसंजुर्य कलत्तं व | गाहाजुयलं सुइजुयलमसरिस विसइ तस्स इमं ॥१६॥ 
विद्धि वयंतमसमं गुरुवंसं खमपहट्टसु हम ल॑ । कमविद्ध-निद्ध-धणपव्व-पत्त-साहासमाइन्नं ॥१७॥ 

कज्जभरे आरोविय पुत्तं पुरिसस्स सगुणधम्ममई । जाव5ज्ज वि न पवत्तइ ता कत्तो निव्वुइसुहाईं ? ॥१८॥ 
त॑ सोउं नरनाहो सुयचितागरुयसायरे पडिओ । पेच्छसु ममंतरायस्स विलूसियं अप्पडीयारं ॥१९॥ 

ज॑ मज्ञ अणेगासु वि विसिट्ठलायन्न-रूवकलियासु । ओरोहपणइणीसुं सुयस्स एगस्स वि न लछाभो ॥२०॥ 
अहवा वि किमेयाए सुयचिताए समाहिमहणीए ? । जम्हा अचितियं पि हु ज़ं भवियव्व॑ तयं होइ ॥२१॥ 


जाव5न्न॑ं चिंतिज्जइ पयत्थजायं असासयमसारं । ताव वरं चितिज्जइ धम्मो चिय सुहयरो बंधू ॥२२॥ 

धम्मो जियाण जणओ धम्मो माया सुओ सुही बंधू । भवभमणविनडियाणं जायइ परमत्थओ ताणं ॥२३॥ 
जइ वि हु एवं तह वि हु ववहारनएण धम्मबोच्छेण | सुयसंतदरहियाणं मयाण को लेइ नाम॑ पि ? ॥२४॥ 
अवरं एस वराओ लोओ पुव्विल्लपालिओ अहिय॑ | दूमइ हिययं वुड्डत्तणम्मि ताणं पि हु सुयाओ ॥२५॥ 


यत उक्तम्‌-- 


लक्ष्मी: परोपकाराय विवेकाय सरस्वती । सन्ततिः स्वग-मोक्षाय भवेद्‌ धन्यस्य कस्यचित्‌ ॥२६॥ 
चंपयमालापमुहं संपयमेयं पि पणइणीविंदं । सब्बं निरत्थयं चिय भणियं केणइ जमत्थं पि २७॥ 

कज्जविहृणं वयणं धम्मविहृणं च माणुसं जम्मं । निरवच्च च कलत्तं तिन्नि वि छोए अणत्थाईं ॥२८॥ 

ता कि करेमि ? क॑ विज्नवेमि १ पेच्छामि कमिह कृज्जम्मि ? | सुयविरहियत्स मन्ने मरणे वि हु मज्य न समाही ॥२९॥ 
परमिमिणा कि परिदेविणण विहलेण बुद्धिमंताणं ? । सव्वम्मि कज्जजाए जमुवायपबत्तणं सेयं ॥३०॥ 

जा एवं नरनाहो विवेयवसओ मणम्मि सयमेव | सुयचिताभरदुहिओ संठावइ मणयमणप्णाणं ॥३१॥ 

ताव य भेरी-भाणय-मल्लरि-तिलमाइओ पहासमए । बहिरंतो गयणयलं पवाइओ तुरसंघाओ ॥३२॥ 
वष्टियधुसिणरसेण व रविरमणसमागमम्मि सरसेणं । पुव्वद्सावहुवयणं रंजियमरुणेणमरुणेणं ॥३३॥ 

अमयमएण वि न मए निव्वविओ नरबई नियकरेहिं। इय खेएण व जाओ विच्छाओं ससहरो गयणे ॥३४॥ 
सुयदुहिओ नरसीहो तमसा तविओ मए अणज्ञाए | इय लज्जाए मन्ने सहसा विल्यं गया रयणी ॥३५ 
मिलिएहिं वि अम्हेहिं निवकज्जं न विहियं किमेयं ? ति। तारा वि दुहक्कंता सन्हीहोऊण5वक्कंता ॥३६॥ 
बहुयाणं किम[स]ज्झं ? कुणिमो ता निवसमीहियमिमं ति। कोलाहलमुहलमुहो समुद्ठिओ सडणसत्थो वि ॥|३७॥ 
मित्तो त्ति विस्पुओ हं समुच्गोत्तं समस्सिओ हूं ति | उदय पत्तो भाणू साहिउकामों व्व निवकज्ज ॥३८॥ 


अवबि य-- 


किंच-- 


३६. सम्पद्धिपदोः सत्पुरषसमतावणनाधिकारे नरविक्रमाख्यानकम २६१ 


एत्थंतरम्मि महरिहसुहसेज्जं चहय धीरिमानिकओ । परिविहियगोसकिद्यो निव्वत्तियफारसिंगारो ॥३९॥ 
सामंत-मंति-जोइसिय-पीढपरिमदपमुहपरिवारों । परिहरियत्थाणो वि हु अत्थाणं भयह भूमिवई ॥४०॥ 

सिंगाररुह रवरवाररमणिपरिधुव्वमाणसियचमरो । बहुमाणसहियसामंतपत्तिपषणिवइ्यपयकमली ॥9१॥ 
आभापसियपउरजणो परिपुच्छियनयरनायरयखेमी । पत्चंतरायपेसियपाहुडपडिपाहुडविहत्थो ॥४२॥ 

पत्थावे भूसन्रियविसज्जियासेसरायअत्थाणो । पासपरिट्वियक्भ्वयपहाणपुरिसों पसन्नमुहो ॥०३॥ 

आमंतिय सप्पणयं साहइ सुयरयणिवद्यरमसेस । भो भो ! तुब्मे मह रज्जचितगा बुद्धिमयरहरा ॥४४॥ 

ता कहह कि पि जह गरुयतणयचिताभरो समुत्तरह । मह माणसाओं ते वि हु वयंति करकमलकयकोसा ॥४५॥ 
बहुदेवसिया एसा अम्हाण वि माणसे वस॒ह चिंता । देवेणमेयमम्हं हिययाओं कड्डि भणियं ॥४६॥ 

परमम्हे कि भणिमो देवायत्त इमम्मि कज्जम्मि ? | अन्न च न भवओ वि हु मइविहवों समहिओ अम्हं ॥४७॥ 
परमेयं कहइ जणो पुत्तसमुप्पत्तिकारणं कुसलो । देवाराहण-ण्हाथाइ-मूलियापाणगाईयं ॥॥४८॥ 

एयं कयम्मि कस्स-वि कहया वि हु होइ कज्जनिप्फत्तो | कस्स वि य पुणो विहलं पि होहइ पडिकूलकम्मवसा ॥४९॥ 
ता देव ! दुयं कीरउ पत्थुयकज्जम्मि संपयं जत्तो | एवं पि जह न सिज्कर कर्ज पुरिसस्स को दोसो १ ॥५०॥ 
परमम्हमभिप्पाओ इह संपइ पहु ! कुओ वि संपत्तो । नियविज्नाणमहागु णविम्हावियसयलनयरिजणो ॥५१॥ 
ससिकंतसमुज्जलबहलभू इधवलियतणु तिणयणो व्व । दाहिणहत्थत्थससदडमरुओ धरियखइंगो ॥५२॥ 
गहनिग्गहणे निउणो पयंडसत्ती पिसायनिम्महणे । उड्'ुंडडाइणीनिग्गहम्मि सव्वत्थ साहसिओ ॥५३॥ 
अइवदुद्ठ-रुट्टखरखेत्तपालरक्खणखमी खमावरूए। ओसहिबंधणपसमियजराइबहु विविहरोयभरो ॥५४॥ 

गरुयगिरिदु ग्गविवरप्पवेसतोसबिय जक्खिणीलक्खो । धाउव्वायपसाहियसुवन्नविदवियदारिद्ों ॥५५॥ 


आगिद्धिम्मि पडिट्ठो खुन्नो पन्‍नगमहाविसुद्धरणे । विक्वेवकरणदक्खो अमूढलक्खो वसीकरणे ॥५६॥ 


ज॑ं विउसेहिं न कहिय॑ न दंसियं कह वि पुव्वपुरिसेहिं | जुत्तीए वि न जुज्बद सयाणया सदृहंति न जं॑ ॥५७॥ 
सव्बं पि तयं मज्झं सज्ञं कि पलविएण बहुएण १ | उम्घोसंतो बहुह्ा उब्मियबाहू भमइ नयरे ॥५८॥ 

एवं महप्पभावों घोरसिवों नामओो महावइयो । सो पुच्छिज्वउ पत्थुयपओयणे एस अम्ह मई ॥५९॥ 

इय सोऊणं संजायकोउओ भणइ तो महीपालो । वाहरह तय॑ं सइवं पुच्छामो पत्थुयत्थकए ॥६०॥ 

तत्तो पहाणपुरिसे पेसेडं सायरं समाहुओ । सो वि हु सहरिसहियओ संपत्तो रायपासम्मि ॥६१॥ 
कयसमुचियपडिवत्ती सुहासणत्थो कयप्पणामों य । पुट्टो रत्ना भयवं ! संपई कत्तो तुहागमणं १ ॥६२॥ 
गमणमिओ वा कत्थ वि ? स आह सिरिपव्वया55गओ हं ति। गंतव्वं सिरिजालुंधरम्मि उत्तरपहे रायं ! ॥६३॥ 
पुणरबि भणियं रज्ना तुह सत्ती का वि सुब्वइ अपुव्बा | ता अम्हाणं कि पि हु सकोउगाणं पयंसेसु ॥६४॥ 
आगि्टि-चित्तचिन्ताइको उहल्लेण रंजिओ भणइ । एस च्विय तुह सत्ती ? उआहु अन्नत्थ वि किमत्यि ? ॥६५०॥ 
तो जंपइ सो हसिउं सब्बन्नु चेव जाणए सब्बं | छोयव्ववहारकययं अन्न पि हु अत्यि मह कि पि ॥६६॥ 

जइ एवं ता किज्जड महापसाओ सुपुत्तलाभेण । तेणुत्तं मह नरवर ! केत्तियमेत्तं इमं कज्जं १ ॥६७॥ 

नवरं होसु सहाओ दिणमेगं मंतसाहणे मज्क | मणवंछियमन्नं पि हु जेण पसाहेमि सब्बं पि ॥६८॥ 

तो कण्हचउद्दसिदिणे खग्गकरों सह कवालिएण निवो | पत्थुयकज्जनिमित्तं पत्तो भमीसगमसाणम्मि ॥६९॥ 
आलिहियमंडलो सो सकलीकरणं विहाणओ काउं। नियमंतं घोरसिवों थिरासणो जविउमारद्धों ॥७०॥ 

भणिओ राया तेणं हत्थसयाओ परेण चिट्ठ तुमं । करवालकरो मा एसु सब्वहां तं अवाहरिओो ॥७१॥ 


न ब्ग्न जज नी अत >->+>-न०_०>>- 


१, सकर्णका; । २, महाततिकः । 


२६२ आखश्यानकमणिकोरशे 


राया तहेव थक्को कालविलंबं महंतमाकलिउं । सणियं तप्पिट्टीए समागओ सुणह से जाव॑ ॥७२॥ 

“हुं फडु साह त्ति हुणामि नरवद्दे! हक्िओ इमं सो । रे रे कावालिय ! होसु संपयं मह पुरो पुरिसो ॥७३॥ 
तत्तो य समुक्वणिऊण तकक्‍्खण चझ्ोव कूरकावाली । विप्फुरियतरलजमजीहसच्छहं कत्तियं कुडिलं ॥७४॥ 
काऊण दाहिणकरे निब्भच्छह भिउडिभीमभालयलो । रे रे त॑ं रायाहम ! कुणसु सुदिट्ठं मणुस्सभवं ॥७५॥ 
तत्तो पयडपरक्षमपयंडभुयदंडपहरणरउद्दा । जुज्ञेण संपछग्गा दो वि कवालिय-महीवाला ॥७६॥ 

दोन्नि वि वग्गंति घणं दोनि वि पहरंति पयडियपहावा । दोन्नि वि रोसारुणवयण-नयणविक्खेवदुष्पेच्छा ॥७७॥ 
जाव य खणंतरेणं निदयनरवइपहारजज्जरिओ । मुच्छानिमीलियच्छो पडिओ घरणीए कावाली ॥७८॥ 
एत्थंतरम्मि विप्फुरियतणुपह्ठापडलपयडियद्यंता । चवलतरचरणभणमणिरनेउरारावरमणीया |॥७९॥ 
विल्संतविविहृभुसणविभूसियासेसबिग्गहावयवा । ठाऊणं निवपुरओ देवी भणिउं समाढत्ता ॥८०॥ 

भो नरसीहनरेसर ! भव्वं विहियं जमेस कावाली । कित्तिवलकखसलक्खणखत्तियलयकारओ पाओ ॥८१॥ 
भुवणस्स वि दुद्धरिसो पयंडमंतप्पभावदुरमिभवों । संतावियभुवणयलो विणिज्जिओ जगडियजणोहो ॥८२॥ 

ता तुद्ठा हँ संपयमज्जेव समीहियं मह पसाया । भो भो तुज्क नरोसर ! पसन्नवयणा पयंपंती ॥८३॥ 

पणमिय पुद्ठा रत्ना भयवह ! कहमेस वयपवन्नो वि। खत्तियवहसंजणओ भणिओ भवईए ? कहसु इमं ॥८०॥ 
तोयुत्तमिमो खत्तियवंसपसूओ नरेसर ! नरिंदों । नामेण वीरसेणो जह रज्जाओ परिब्भट्टो ॥८५॥ 
जीवियनिब्बिन्नेणं वित्थयभूमंड्लं भमंतेणं । भदरवनिवडणमरणं जह भीम॑ ववसियमणेणं ॥|८६॥ 

जह य महाकालेणं जोगाइरिएण वारिओ मरणा | तेणं चेव य दिन्नं जह कावाल्यिवयमिमस्स ॥८७॥ 
तइलोक्विजयमंतो दिल्नो गुरुणा जहा मरंतेण । जह अद्वोत्तरनरवइसएण जावो समाइट्ठी ॥८८॥ 

जह वा कलिंगदेसाइएसु लक्खणजुया निवा हणिया । तह सब्बं॑ नरवइणो निवेइयं देवयाएं तया ॥८९॥ 

इय कावालियवहयरमायन्निय देवयाए परिकहियं । सुयलाभेण पहिट्टो पणमिय देवि गओ सगिहं ॥९०॥ 
केण वि अलक्खिओ चेव सेज्जमारुहद जाव ता पढियं । समयनिवेयगपुरिसेण तत्थ केणावि सबणसुहं ॥९१॥ 
तरिऊण तुम व दुरंतदुक्खदंदोलिजलयराइननं । वसणसमुद्दं पावद उदयं नरनाह ! एस रवी ॥९२॥ 

तो सुणिऊणं मणयं सिढिलियनिदो विचितए राया । सूरुग्गमसमयनिवेयगो इमो पढइ को वि नरो ॥<३॥ 
एल्थंतरम्मि चंपयमाला पत्ता नरिंद्पासम्मि | जंपइ संनम्म वयणं जहो ! हु सुहिओ जणो सुयह ॥९9॥ 

पुट्ट रज्ना सुदरि ! विसेसओ कि तुहा55गमणकर्ज ? | अवरं च कि पि हु पिए ! हरिसियहियय व्व लक्खिहिसि ॥९५॥ 
ताहे पयडियविणया जोडियकरसंपुडा भणइ देवी | आगमणकज्जमेयं पहु |! अवहियमाणसो सुणसु ॥<६॥ 
अज्ज मए रयणीए समुस्सिओ सरल्वंसविक्खाओ । विलसंतजयवडाओ कलकिकिणिसदसवणसुहो |॥|९७॥ 
सयलजणाणंदयरो महल्लमंगल्लदंसणमहग्घो । धम्मनिही परमधओ तुम व सुमिणम्मि सशच्चविओ ॥९८॥ 

ताहे सुहसुमिणसमुब्भवंतरोमंचकंचुहयतणुणा । भणियं रज्ना सुन्दरि |! सुहजणओ सुमिणओ एस ॥<९॥ 

अम्ह कुलकेउभूयं पुत्त पसविहिसि सुन्दरि ! नवन्हं । मासाणमुवरिमद्धट्ठमाण राइंदियाणं च ॥१००॥ 

सो वि चउजलहिपज्जंतमहिमहेलाए नायगो होही । दुब्वारवइरिकरिकुंभदलणखरनहरपंचमुही ॥१०१॥ 

सा वि हु सोउं पियवयणमेरिसं भत्तुणों मणोदइयं | हरिसाऊरियहियया बंधइ वत्थे सठणगंठि ॥१०२॥ 

जह नरवइणा तह सउणपाढएहिं वि वियारिए सुमिणे | चंपयमाला परितुट्टमाणसा गब्भमुव्यह३ ॥१०३॥ 
गब्भप्पभिदेदिवसाओ वड्ुमाणम्मि तहयमासम्मि । चिंतह चंपयमाला देवी दोहलयगुणवसओ ॥१०४॥ 
विविहेहिं पायारेहिं जइ पूयणमायरामि देवाणं | आणंदियमणवित्ती करेमि भरत्ति गुरुयणस्स ॥१०५॥ 
वियरामि विविहसुहभक्ख-भोज्ज-वत्थाइएहिं मणदइयं । दीणाईणमहूं जइ दाणं अनिवारियप्पसरं ॥१०६॥ 


श्ीज-नज++-+++>०. *+ आऑआनजा- बन्‍>ण++ आऑनीजज> मन 3 विनकिननीजअनननन 


१, सनम सहासमित्यथः । 





अवनी-न3-33००--२+०५००० ०, 


३६. सम्पड्धिपदो: सत्पुदषसमतायणनाधिकारे नरविक्रमा्यानकम्‌ श६३े 


सवणामयसरिसाइं परिणामसुहाईं निव्वुइकराईं । निम्नुणेमि गुरुसयासम्मि जह अहं धम्मसत्थाइं ॥१०७॥ 
तत्तो मणोरहब्महियवित्तवियरणगुणप्पयारेण । रन्ना दोहलूए पूरियम्मि सइसुहियसब्बंगी ॥१०८॥ 
गब्भसुहावहसयणा--5डसणाइणा सोहणप्पयारेण । गब्भ वहमाणीए तीए जाए पसवसमए ॥१०८॥ 
नवमासाण सवायाणमुवरिमणहम्मि दिणि मुहुत्तम्मि । उन्चद्ठाणगएसुं गहेसु विरियासु य दिसासु ॥११०॥ 
पणइजणमणवियप्पियपयत्थसंपयसमप्पणापवण्ण । कप्पमहीरुहभूमि व्व कप्पपायवमणप्पगुणं ॥१११॥ 

चंपहमाला पसवइ पुत्तं पुन्नप्पमावओ रज्नो। नियतणुकंतिकडप्पप्पभावपज्जोइयदियंतं ॥११२॥ 

तत्तो हरिसविसंठुलगइवसपरिसिढिलवसण-घम्मिल्ला । ओरोहदासचेडी वद्धावई वसुमईनाहं ॥११३॥ 

संपइ वद्धाविज्जसि नरनाह ! तुम॑ं जएण विजएण । जेण पसूया पुत्त चंपयमाला महादेवी ॥११४॥ 

रज्ञा वि य दासित्तं अवणेउं तीए दासचेडीए | दिन्न॑ च पारिओसियदाणं सुयजम्मतुद्वेण ॥११५॥ 

आणत्ता नायरया जहाविभूदणु नयरमज्भमम्मि | कारवह महा55णाए सुयजम्ममहसबं गरुयं ॥११६॥ 

तेहिं वि तह त्ति पडिवज्जिऊण निस्सेसनयरिमज्भम्मि | वद्धावणयं विहिणा कारवियं त॑ च एरिसयं ॥११७ ॥ 
विरइज्जमाणतोरणवंदणमालं दुवारदेसेसु । ठाविज्जमाणचंदणचचियसुहपुन्नकलसजुयं ॥११८॥ 
उब्मिज्थमाणनवरंग-वसण-परिहाण-जूय-मुसलूसयं । पढठमाणचवरूतरचट्ट-भट्ट-सूमा इयाइन्‍न॑ ॥११९॥ 
पविसंतक्खयवत्तं विद्धाजणकिज्जमाणसुयरक्‍्खं । नश्चन्तवारविल्यं सनम्महीरंतसिरतरेढ ॥|१२०॥ 

इय गरुयविभुददेए वद्धावणयं नरिंद्चंदेण | आणंदियपउरजणं कारवियं पुत्तजम्मम्मि १२१॥ 

अह नामकरणदिवसम्मि सोहणे तिहि-मुहुत्त-करणम्मि | भोयाविऊण नीसेसपरियणं भोयणविहीए ॥१२२॥ 
सम्माणिऊण वरवत्थ-रयण-असणप्पयाणओ सम्मं । पुहइवई सप्पणयं सब्बं पि हु पुरपहाणजणं ॥१२३॥ 
कुलविद्धनारिनिवद्देण मत्थए चोक्खयक्खिवणपुव्व॑ । नरविक्कमो त्ति नाम॑ सुयस्स कारवइ कालण्णू ॥१२४॥ 
संजाओ य कमेणं बड्ंतो अट्टववरिसदेसीओ । सुहसियपंचमि-गुरुवा र-पुस्सनक्खत्त-करणेसु ॥ १२५॥ 

उवणीओ लेहायरियपायमूलम्मि मलियमाणभडो । ससिणेहं सम्माणिय कलागुरु गरुयभत्तीए ॥१२६॥ 
नियजोग्गयागु णेणं जणयपयत्ताओ निशच्चमभिओगा । लेहायरियस्स गओ कलाण सब्बाण सो पारं ॥१२७॥ 
लेहम्मि लद्धऊक्खो अहिय॑ परिनिष्ठिओ धणव्वेए । गंधव्वकलाकुसलो पत्तच्छेयम्मि पत्तट्टो ॥१२८॥ 
नर-नारि-तुरय-गय-रहवराइपरमत्थलक्खणविहन्नू । गंधंगजुत्तिनिठणो चडरमई चित्तयम्मम्मि ॥१२९॥ 
लोयव्ववहारविऊ मंतपओगेसु नायपरमत्थो ) परचित्तगहदक्खो विसारओ सदसत्थेसु ॥१३०॥ 

सा नत्यि कला त॑ नत्थि कोडयं कि पि नत्थि विन्नाणं । जत्थ न सो पत्तट्टी विसिसओ मल्लजुद्धम्मि ॥१३१॥ 
अह अन्नया य पेक्खणय-गीयवक्खित्तरायअत्थाणे । निवपाससुहासीणे सुहण नरविक्कमकुमारे ॥१३२॥ 
करकलियपयंडसुवन्नदंडदुद्धरिसभासुरसरीरो । आगंतणं विज्ञनवह सविणयं निवपडीहारो ॥१३३॥ 
हरिसउरसामिणो देव ! देवसेणस्स दारदेसम्मि । चिट्ठहव दूओ देवस्स दंसणं महइ कि कर्ज १ ॥१३४॥ 
सिग्घं भद्द ! पवेससु तमिह निउत्ते निवेण स पविट्टों । कयसमुचियपडिवत्ती एवं विज्नविउमाढत्तो ॥१३५॥ 
संति पहु ! मज्म पहुणो अइसयभूयाणि दोन्नि रयणाणि । नियरूवोबहसियतियससुंदरी कन्नगा एगा ॥१३६॥ 
अवरो थ रायमल्ली पडिभडकमलाण कालमेहो व्व । नामेण कमलमेहो विणिज्जियासेसमन्लगणो ॥१३७॥ 
तत्थ5न्नया कयाई सुहासणत्थस्स रायअत्थाणे । सब्बालुंकारमणोहरंगिया नियजणणीए ॥|१३८॥ 
पिउपायपणमणत्थं पट्टविया पुव्ववन्निया कन्‍ना । उच्छंगम्मि निविद्ठा पलोइया तयणु पिडउणा वि ॥१३५॥ 
वरचिंतणत्थमे सा [अन्थाअम्‌ ११०००] मन्‍ने पउमावहंए देवीण। पद्ठविया मह पासे ता को णु इमीए अणुरूवो॥१४०॥ 
होही भत्ता भवणे वि ? विसरिसाणं कए वि संबंधे । आजम्मं॑ घरवासो दुह्वपासो होइ मिहुणाणं ॥१४१॥ 
इय दुहियावरचितणजलहिमहावत्तसंकडे पडिओ । राया सब्वावत्थासु दुहयरी होइ जेण सुया ॥ १४२॥ 


२६४ 


आद्यानकमणिकोशे 


तत्तो रन्‍ना सयमेय पुच्छिया तुज्कम सीलमइ ! वच्छे ! | केरिसगुणो कहिज्जउ रुचचइ हिययस्स भत्तारो ? ॥१४३॥ 
कि चाई ? कि सूरो ? कि वा विउसो १ कयन्नुओ ? सुहओ ?। गंधव्वकछानिउणो १ परोवयारी ? दयालू वा ॥१४४॥ 
दसि अहोमुहीए सल्ज्मेददेए ज़ंपियं ताय ! | जो को वि हु तुह रोयह सो चिय मह सम्मओ भत्ता ॥१४५॥ 

तो भणियं नरबइणा दसिसमुन्नामिऊण मुहक्रम्ं | उवरोहसीलयाए वच्छे ! न सुहाईं कज्जाईइं ॥१०६॥ 

जइ एवं ता एसो तुह मल्लो महियले व5परिभूओ । जिप्पिस्सइ जेण बली सो मह भत्ता करिमवरेण ? ॥१०७॥ 

तो नायं नरवइणा एसा हु बलाणुराइणी बाला | ता भद्दं परमिमिणा सब्बे वि पराजिया बलिणा ॥१४८॥ 

तो त॑ विसन्नचित्तं दटटुं भणियं पहाणपुरिसेदिं | अज्ज वि देव | जयंतीए अत्यि अपरिक्खिओ एगो ॥१४९॥ 
नरसीहसुओ बलपोरिसेकरसिओ रसायलपसिद्धों । नरविक्रमाभिह्ाणो सो वि परिक्खिज्बउ नरिंद ! ॥१५०॥ 
सामत्यिऊण सम्मं तयत्थमहमेत्थ पेसिओ सामि ! | तो नरवइणा वयणं निरिक्खियं निययतणयस्स ॥१५१॥ 
तेणावि पणमिऊणणं भणियं देवाणुभावओ भव्वं । होही सब्बं पेसवह ताय ! म॑ तत्थ कि बहुणा ? ॥१५२॥ 

तो मंतिऊण सामंत-मंति-नायरजणेण सह रज्ना । पेसविओ हरिसउरे हिट्टो नरविक्रमकुमारों ॥१५३॥ 

अम्मोगइयाए नियमहत्तमो देवसेणनरवइणा । कुमरस्स पेसिओ चडयरेण चउरंगबलकलिओ ।॥१४५४॥ 

तो गरुयविभूईए सोहणदिवसे पवेसिओ नयरे | नर-नारिनियरनयणाण फिमवि परमूसवों कुमरो ॥१५५॥ 
सयणा-55सण-बहुपरिवा रसंजुओ धवलरूधयवडसणाहो । कुमरस्स वासगेहं समप्पिओ पवरपासाओं ॥१५६॥ 
बीयम्मि दिणे भणिओ रज्ना कुमरो मह5त्थि सीलमई । नामेण कन्नया सा [प]भणइ जो कालमेहमिमं ॥१५७॥ 
मह मल्लमपडिमल्लं परिभविही होहिही स मे भत्ता । सह कित्ति-जयवडायाहिं कुमर ! ता गिण्हसु तयं ति ॥१५८॥ 
अंगीकयम्मि कुमरेण सज्जिया नयरपरिसरे रम्म | मंचाइमंचकलिया वित्यिन्ना मन्नरंगमही ॥१५९॥ 
नर-नारिनियरसहिए उवविद्ठे देवसेणनरनाहे । सिरिकुमर-कालमेहा समागया रंगभूमीए ॥१६०॥ 
आबद्धनिबिडकच्छा संजमियसिणिद्धकेसपब्भारा । दोज्नि वि निजुद्धनिव्वडियपोरुसा साहसेक्वरसा ॥ १६१॥ 

दट ठरण कालमेहो कुमरं संहणणदुद्धरिसदेहं । पुन्नक्खयाओ खिप्पं खुहिओ चित्तम्मि बलिओ वि ॥१६२॥ 

चितइ य एस रनन्‍नो वल्लहजामाउओ जणाणुपिओ । ता जय-पराजएसुं कुओ वि मह नत्यि कल्लाण्ं ॥१६३॥ 

हय भयसंभमवसओ फुट्ट हियय॑ तड त्ति मन्लस्स । कुमरस्स साहुवाओ संजाओ रंगमज्झम्मि ॥ १६४॥ 

तत्तो य कलानिहिणो कंठे बलसालिणो कुमारस्स । पक्खित्ता वरमाला कुमरीए नेहरज्जु व्व ॥१६५॥ 

अणुरूवो संजोगो विहिणा विहिओ समाणमेयाण । जाओ साहुकवारों अहो ! सुबरियं ति जणमज्झे ॥१६६॥ 


' तत्तो सोहणदिवसे पाणिग्गहणं करावियं रन्‍ना । मंगलगोयरवेणं बज्जिरवरतूरनिवद्देण ॥१६७॥ 


पहमंडलमेदण तह हय-गय-रहवराइय॑ दिन्नं । रन्‍ना जह नयरजणो सब्बो वि घुणाविओ सीसं १६८॥ 

कइय वि दिणाणि नरवर-वह॒णमणुभविय मंगर्ल राया । मोयाविओ सनयरं पह गमणत्थं कुमारेण ॥१६९॥ 

तत्तो य पसत्थदिणे चउरंगमहाबलेण परियरिओ । संपत्यिओ कुमारों विदवियससिनिम्मलजसोहो ॥१७०॥ 

तत्तो पिडणा दुस्सहविओगतुइंतनेहपासेण । सिक्खविया सीलमई ससुरकुलं पत्थिया तइ़या ॥१७१॥ 

वच्छ ! गुणवियल्ले वि हु जणणी-जणयाण धुवमवच्चम्मि | को वि अपुव्बो नेहों तेण हियत्थं भणामि तुम॑ ॥१७२॥ 
निष्पंकसुवन्नसमुज्ज ला वि सुइसील्सोरभजुया वि । केयहफडस व्व सुया परोवयाराय निम्मविया ॥|१७३॥ 

ता वच्छे ! तत्थ गया सुविणीया होसु ससुरवग्गस्स । अधिणीओ जलरूणो इव जणइ पवित्तों वि संतावं ॥१७४॥ 
नियनाममणुसरन्ती सीलम्मि मईं सया वि मा मुयसु । सीलरयणे विणट्ठे न सुन्दरं उभयलोगे वि ॥१७५॥ 
नियभत्तुणो करेज्बसु सयमासण-भोयणाइयं कज्जं | भत्तारदेवयाओ नारीओ जेण एस सुई ॥१७६॥ 
पइणोडमिमएसु य नम्ममासणा तस्स पुण अमित्तसु | विहियावन्ना पियभासिणी य सब्बम्मि परिवारे ॥१७७॥ 
ससुराईण गुरुणं भत्ता नमिरा नणंदवग्गम्मि | हरिसियमणा सवक्किसु पहबंधुयणम्मि ससिणेहा ॥१७८॥ 


अन्न च--- 


तहाहि-- 


३६. सम्पद्धिपदो: सत्पुरेषसमतोयणनाधिकारे नरविक्रमाख्यानकम २९४५ 
संसारियसोक्खपिवासियाण कुल्बालियाण किल एवं । पहणो विसए निच्छियममंत-मूलं वसीकरण ||१७९॥ 


विणयब्भंससरूवं गव्वं पि हु सब्बहा परिश्चयसु । धणुदंडं चिय विउसा जेण सगव्बं पसंसंति ॥१८०॥ 
रज्जपिरीपमुद्देसुं वत्थसु वच्छे ! मयं पि परिहरसु | सुयणु ! ससि व्व निरूवसु समओ श्िज्जह सुहयरो वि ॥१८१॥ 
दाणं पि जहाबिहवं सया पयट्रेंसु पणइवग्गम्मि | मयसमयम्मि अदाणो करि व्व निंदिज्जइ जणेण ॥१८२॥ 
इय सिक्खबिऊण सुयं दूरमणव्वइय देवसेणनिवों | वलिओ विवन्नछाओं सुमरंतो ताण गुणनियरं॥ १८३॥ 
कुमरों वि अखंडपयाणएहिं पत्तो जयंतिनयरीए | नवजलहरो व्व सिहिणो पिडणो मम्गं नियंतस्स ॥१८४॥ 
जयवारणमारुढो सील्मदए सम॑ सभज्ञाए | पिउणो पुरीए सोहं पेच्छंतो विस३ अह कुमरों ॥१८५॥ 

कुमरस्स दंसणत्थं दोसु वि पासेसु रायमग्गस्स । हट्-उद्टालय-देउलय-भवणपासायसिहरगओ ॥१८६॥ 

मोत्तु नियवाबारं निस्सेसो नयरिनारि-नरनियरों । निश्चलनेत्तो नरनाहनंद्ण नियह नयणसुहं ॥१८७॥ 
परिणयवएहिं भणियं सब्बं पि हु होह पुत्नवन्ताण । जेणेसो पत्तजसो सकलत्तों नियपुर्रि पत्तो ॥१८८॥ 
तरुणाण भणइ को वि हु कुमरो रूवेण मयरकेउ व्व | अवरो जंपइ कुमरी तिहुयणअब्भहियरूबगुणा ॥१८९॥ 
विद्धाहि भणियमम्मा-पिऊण सुइरं कुणंतु संतोसं | जीवंतु चिरं विलसंतु संपयं पुत्नवन्ताणि ॥१९०॥ 

तरुणीण पुणो तरलत्तणेण अविवेयबहुल्याए य । विविहालावा जाया परोप्परं ताण विसयम्मि ॥१९१॥ 


कीय वि कहियं करकमलकलियवज्जो पियाए सह कुमरो | सोहइ सिंधुरखंघे सहि ! सइसहिओ सुरिंदों व्य ॥१६९२॥ 
अवराए भणियमलं पियसहि ! तुह जंपिएण जेण हरी । सो अकुलीणो अबवरं च छिदसंछन्नसव्बंगो ॥१९३॥ 
सुहसिरिजणओ सोहइ सभारिओ निवसुओ महासयणो । वेछाए सहिओ जलनिहि व्व विल्संतलायन्नो ॥१९४॥ 
मयरसिएण जलहिणा अमयं विन्नु जडासएण सम॑ । कुमरं करेसि जाणंतिया वि पियसहि ! बहु भुन्ना ॥१९५॥ 
कृप्पियकरेण संतावहारिणा सहि ! समी सहइ कुमरो । भज्जासहिओ कप्पदुदुमेण सियचंपयरूएण ॥१९६॥ 

साहिपहाणं मणताववज्जिएणं सम॑ कुमारेणं । जंपंती सिरसूलं पिय[सहि!] महं कुणसि जाणंती ॥१९७॥ 
करकलियसंख-चक्को जणनिव्वुइकरसुदंसणो कुमरो | सीलमईए सिरीए व सहिओ विन्हु व्य पडिहाइ ॥१९८॥ 
आवयवइसयणेणं सुहिसयणो विण्हुणा समो कुमरों | लच्छीसमभज्जो वि हु सगएण निरामओ कह णु १ ॥१९९॥ 
सुहरसणो जयसूरों मय-रणभयवज्जिओ सह पियाए। सीहीए सम॑ पंचाणणों व्व सहि ! सोहइ कुमारों |२००॥ 

सहि ! ससधरसियदेहेण भणसि सीहेण जं सम॑ कुमरं । केण वि अगंजियं तं मयच्छि ! मह चालसि अणक्खे ॥२०१॥ 
इय पउरपुरंधीणं कुमरो समयणवियड्डवयणाणि । निसु्ंतो नायरनारिनयणमालाहिं पिज्तो ॥२०२॥ 

वीइज्जंतो व॒त्थंचलेहिं नरनाहमंदिरं विसइ । उब्मियतोरण-मोत्तियचउक्ककलियं कछाकुसलो ॥२०३॥ 

पणओ पिउणो पाएस सविणयं भारियाए सह कुमरो । पिउणा वि हु परिपालसु रज्जघुरं एबमणुसट्टो ॥२०४॥ 

मायाए पुण पणओ चिरकालं जियसु पुत्त | इय भणिओो । सीलमई पुण भणिया अकखयवच्छा भवसु वच्छे ! ॥२०५॥ 
नियपासायसभीवे पासाय॑ देइ निययकुमरस्स । भोगोवभोगपरिवारसंजुयं सहरिसं जणओ ॥२०६॥ 

जुबरज्जम्मि निविसह नायरजणसम्मएण ते कुमरं । इय सो सत्थत्थविऊ नियजणयपसायदुल्ललिओ ॥२०७॥ 

पंचविहे कामगुणे भुंजंतो भारियाए सह कुमरो । दोगुंदुगो व्व देवो गय॑ पि कार न याणेह ॥२०८॥ 

अह अन्नय। कुमारो पंडियगोट्टि समीहए काउं । चउरमइ-विउसभूसणनामगमित्ताइपरियरिओ ॥२०९॥ 

सद्धि सहिसहियाए सोलमईए वियड्रभज्ञाएं | नियपासायवरगओ सरिऊण सुभासियं एयं ॥२१०॥ 

काव्यशाखबिनोदेन कालो गच्छति धीमताम्‌ | व्यसनेन हि मूखोणां निद्रया कलहेन च ॥२११॥ 


३७५७७७५-००-०-०-०-क-.. >न्‍ीननमीनन-बनमीननागित+ 4००+ननत-वलजा 5 पक +* अन्‍्क 


१, शचोसहितः । 


२६६ आश्यानकमणिकोशे 


काऊण छंद-लक्खण-पमाणसत्थाइपंडियवियार॑ । पन्होत्तरगोट्टीए हरियमणो भणइ चउरमई ॥२१२॥ 
पियमित्त ! समइरहइयं कि पि हु पन्होत्तरं पढसु पढम । जेणेस वियाणह विउसभूसणो मज्झ वयणेण ॥२१३॥ 
पढियं च चउरमइणा सरइयपन्होत्तरं कुमरवयणा। वेत्थमिममेगवारं तहा समत्थं च त॑ च इमं ॥२१४॥ 
आन्तिमाशु बत बोधय प्रृष्ट, कानने न ननु का जगदिष्टा: ै। कीहशाश्च पशुपालगृहाः स्पुर्नीलशष्पपरिपुष्पदुरआ:? ॥२१५॥ 
सिग्धं विचितिऊणं सुगममिमं कुमर ! जाणइ सिसू वि। नाऊ[ण विउसबविभूसणेण प]भणियमिमं तस्स ॥२१६॥ 
अमदवयः | 
भणियं च चउरमइणा जह धुगममिमं तओ तुम पढसु । विसमतरं जेण तरं पेच्छामो तेण पढियमिमं ॥२१७॥ 
सम्बोध्यते कथमजो धरणीरुहश्र, मत्येः प्रकाममवबोधनवनितश्र ? । 
कीदग्‌ नगाधिपसुतापतिरंहिहीनमत्यो भवन्ति भुवने कतम[स्व]भावा: ॥२१८॥ 
नायं च चउरमइणा क़िंचि बिरं चितिऊण किच्छेणं | सच्चं चिय विउसविभूसणो सि हसिऊण तं च इस ९ १९॥ 
गमनाः ॥ 
भणियं तो विउसविभूसणेण त॑ कुमर ! पढसु दुरवगमं । पन्होत्तरमम्हाणं ज॑ पढियं जणइ संतोसं ॥२२०॥ 
तक्खणमेव वियप्पियमिणमों नरविक्कमेण तं पढियं । वत्थमणेगालावं गयपच्चागयमिमं त॑ च ॥२२१॥ 
देत्या: केन विदारिता: १ रिपुगणाकी्ण च कीहग्‌ रणं ९, 
प्रोक्त ब्रह्म मनोरथेन वदति ब्रह्मा किमिष्टं नृणाम ? | 
ब्रेते शमंपतिविशुद्धयति मलः केनात्र कीहंगू नभ 
प्रत्येक ब्रुवते विकल्पविधिभृद्‌ वर्णादनत्रह्मजा: ॥२२२॥ 
अहह ! कुमारमईए नेउन्नं जेण गरुयकिच्छेणं । नायमिमं नवनाडीनिरोहओ त॑ कयाइ हम ॥२२३॥ 
केशवारिणारिवाशके ॥ 
अह विउसभूसणों भणइ कुमर ! समईए विरइयमियाणि । पण्होत्तरमेरिसगं भणामि जइ भणसि तुममेगं ॥२२४॥ 
कुमरेण भणियमहमवहिओ मिह अबरं च का वि हु अपुव्बा । आसुकवित्ते सत्ती तुह पढसु तओ य तेणुत्त ॥२२५॥ 
पृष्ठ पुष्करपालकेन मधुभिद्‌ धत्ते किमस््र ? रिपो:, सेन्यं कीहगथो विकल्पवचनो वर्णश्च कि पीयते ? । 
पृष्टं चित्त[******] पिपासति गजो विन्ध्योद्धवः कि प्रथक्‌ , सझ्लल्पन्ति निपात-वामसलिलछाभिख्या समाजश्रियः ॥२२६॥ 
कुमरेणावि हु सविलंबमूहिउं भणियमुत्तरमिमस्स । भव्वमिमं दुरवगमं गुणेसु को मच्छरं वहह ? ॥२२७॥ 
रेबावारिवैरिवाबारे ॥ 
तत्तो य चउरमइणा भणियं अहमवि विसिट्ठजाईए | आयन्नसु कुमर ! तुम पठेमि पण्होत्तरं एगं ॥२२८॥ 
कुमर ! पढावसु जम्हा विसिट्टिजाईए कोउगं अम्ह | सब्वेहिं सहरिसं मन्नियम्मि तेणावि पढियमिमं ॥|२२९॥ 
कोहग्‌ दग्धमरण्यमतिजनक कि चाहुरत्रोदितं, गन्ब्या कीहगथो मनोविद इति धान्वो वदन्त्यम्बुदम्‌ । 
वोद्या चाव्ययपद्मजाहुजमरुन्निः श्रीकशब्दकता, ब्रते पश्च जनोडथ कीदगुदितं वृन्दं मुनीनां वद ॥२३०॥ 
त॑ बहुसो वीमंसियमलुद्धमज्झं न जाव विज्ञायं | केण वि ता कुमरेणं भणियमिमं उत्तरमिमस्स ॥२३१॥ 
सब्वेहि वि मिलिऊर्ण भणियं पुणरवि कुमार! त॑ पढसु । दुरवगमम पण्होत्तरमवगच्छामो न वा अम्हे ॥२३२॥ 
तो पढियं कुमरेणं गयपद्चागयमिमं पउमबंधे | समईए विर्‌इयं मुणउ कोई जस्स5त्यि मइविहवों ॥२३३॥ 
अतिशायिबलो वध्य: सुराज्ञ: कीदशी तनुः १ । तपोलक्ष्म्या च कीरक्ष्या युता कीहग मुनेस्तनुः ? ॥२३४॥ 
बाय वितं सौख्यं सममनमालप कीहग्‌ वणिक्कला बोध्या ! । भौमयुतस्सततगतिबंलं च कोहक्‌ स नो दा स्री ॥२३५॥ 
तो जाव न को वि हु कि पि मुणइ ता चउखुद्धिणा भणियं । उत्तरमिमस्स धुणिऊण मत्थयं कुमरपतन्नाए ॥२३६॥ 
विन सारतरयारतरसा ॥ 
१ स्वरचितम्‌ | २. व्यत्तमिदमेकवारं॑ तथा समस्त च। ३, “आगम-नः !' पुराणपुरुष |। अगमन! | वृत्ध [। “अभ-गमनः ! 
बोधवर्जितपुरुष |। “श्रग-मनाः? हिमाल्यमना; | “भगमनाः' गतिरहिता: । समस्यादिषु स्वरादीनां विपर्यासो न दोषाय 


३६. सम्पद्धिपदोः सत्पुदयसमतावर्णनाधिकारे नरविक्रमाख्यानकम्‌ २६७ 


ताहे विउसाणंदेण जंपियं कुमर! कि पि हु भणामि । अहमवि पण्होत्तरमेगमेरिसं जद मय॑ तुज्क ॥२३७॥ 
कुमरेणमीसि हसिऊण जंपियं मह सभाए त॑ पढमो । कुणसु जहत्थ॑ नाम॑ पढसु जहिच्छाए मज्ञ मय॑ ॥२३८॥ 
इृष्टा सुरूपसुरभीभरमूरिशोभं, भूमीविभागमभितो5मिहितो धरित्र्या । 
स्थाद्माद्सारवचनेन च यद्‌ विरागस्ताभ्यां सदुत्तरमदायि तदेव तेन ॥२३९॥ 

समपन्होत्तरमेयं वियाणिउं जंपियं कुमारेण | काउं नाउं च इमं सुदुककरं पंडियाणं पि ॥२४०॥ 

तथथा--कोडनेकान्तात्मगोब्रजः ॥ 

तेहुत्त महसायर! न5ज्ज वि तं॑ कुणसि कुमरसंतोसं । तेणुत्तं अम्हे सुत्तपाढया के बुहाण पुरो ? ॥२४१॥ 

सुत्तपदणाणुरूवं तहा वि कि पि हु पढिज्जउ पसत्थं | जइ एवं सुत्तं बिय मह पण्होत्तरमिमं सुगह ॥२४२॥ 

का सौरव्येकनिबन्धन त्रिभुवने ?, केषां महद्‌ गौरवं ९, नीरुग्‌ वक्ति, जनस्थ तात्त्विकरिपु: कः ?, क॑ च बश्ुुद्विंपन्‌ ? । 

सट्टी वक्ति, सुदशनं वद करे [ि]पां, स्वराग्रद्योभिधात्‌ , को वर्णो?, नपरो वितुन्दति [न,] कि सूत्र पुरस्यानजः॥२४३॥ 

अह तेहिं धुणियसीसं दिन्ना नहछोडिया भणंतेहिं | पंडियसमाए कुमरस्स5णेण वित्थारिया कित्ती ॥२४४॥ 

नवरं विज्ञायमिमं महसायरसंतियं न केणावि । पण्होत्तरगयसुत्तं मुणियं कुमरेण त॑ तु इमं ॥२४५॥ 
-अहिंसा<र्थानामज्वरे ॥ 

विउसेहिं पुणो भणियं सहियणपरिवारिया मुणंती वि । तुह कुमर! वललहा मोणमस्सिया संपह किमेसा? ॥२४६॥ 

पेच्छ न कि पि पसंसह न य एसा पढ़इ कि पि अम्हाणं । संतोसकए ताहे भणियं कुमरेण पढसु पिए | ॥२०७॥ 

तीए भणियं पिययम ! पाययभासानिउत्तवाणीणं । अम्हाण तुम्ह पुरओ पढियं भण केरिसं होइ १ ॥२४८॥ 

कुमरेणुत्त मा भणसु एरिसं ज॑ बुहा वि जंपंति । उत्तिविसेसो कव्वं भासा जा होइ सा होउ ॥२४९॥ 

ताहे सीलमईए नाऊण विणिच्छयं कुमारस्स | विउसमणाणंदयरं पढियं पण्होत्तरं एयं ॥२५०॥ 

पुत्थयहत्थी, तह सावयं च, कह भण्णए धरातणओ ? । गमणं पुच्छइ, को वा बुहाण सइवन्नणिद्लो उ? ॥२५१॥ 

विज्जेणं बुद्धिमया को लक्खिज्वइ सरीरिणो देहे ? | समरंगणम्मि दीसइ जणेण किर केरिसो कण्हो ? ॥२५२॥ 

रहवाई केरिसओ संजायइ वढविओयपज्ञाओ १। दुह वत्थं [ति]समत्यं जाण[ह] पण्होत्तरं मज्क ॥२५३॥ 

सीलमईए पढियं पण्होत्तरयं [व चिंतयं]ताणं | जाया महई वेला कहवि हु किच्छेण निन्नायं ॥२५४॥ 

“गयवियारो ॥ 

एत्थंतरम्मि पंडियगुणाणुराणण रंजिओ कित्ति । कुमरस्स कहेउं जे पत्तो दीवंतरम्मि रवी ॥२५५॥ 

इय सिद्टविणोएणं नरवइआणं अखंडयंतस्स । कुमरस्स केत्तिओ वि हु सुहेण कालो वइक्कंतो ॥२५६॥ 

अह अन्नया य नरनिवदभूसणं कुसुमसेहरकुमारं । पसवइ पसत्थद्विसे सीलमई सुमणसगुणडं ॥२५७॥ 

बीयं कमेण सिरिविजयसेहरं विजयकारयं पिउणो । तणयदुगं पि हु त॑ पुण निश्व॑ पि पियामहस्स पियं ॥२४५८॥ 

अह कइया वि हु मयसमयपरवसो भग्गनिव्वरालाणो । पाडियमिंठो निदलियनिबिडनिगड़ो नयरमज्झे ॥२५९॥ 

भंजंतो भवणचयं मोडंतो वियडविडविसंघायं | पाडितो पासाए मारंतो माणवसमूहं ||२६०॥ 

नररायपट्टहत्थी परिभमह निरग्गलो अपडियारो । ताहे पुरीए मज्झे जाय॑ असमंजसं सव्वं ॥२६१॥ 

तत्तो भणियं रज्ञा करिस्यणमिमं पहारमकर्रितो । गिन्हउ को वि हु जस्स5त्थि साहसं सुणिउमिय सुहडा ॥२६२॥ 

सब्बे वि हु सनन्‍्नद्धा परमेगो वि हु जम॑ व त॑ हत्थि । अंगीकाउमसत्तो तो रोसविसप्पिरमएण ॥२६३॥ 

कइ्या वि पुरीमज्ञे गब्भभरालसविहत्थसव्बंगी | एगा बाला वालेण तेण पत्ता परायत्ता ॥६४॥ 

हा भाय | भाय ! हा ताय! ताय | हा राय ! राय ! तुरमाणा । तायह तायह म॑ करिवराओं पावाओ एयाओ ॥२६५॥ 


१ बश्नरः नकुलः । २ अश्रहिंसा, श्रर्थानाम्‌ , श्रज्वर १, 'इ:', कामः, श्रहिम्‌, साथ |, अनाम वासुदेवानाम्‌ , श्र, स्वरविपर्यासाद्‌ श्रज्वरः, 
“४ हिंसार्थानामज्वरे;” [कातस्त्र> २-४-४०_] | ३१ गज |, वृक |, “आर | मद्नल | गत |, विचारः | गदविकारः । गदाविचारः । गतविचारः । 
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ग्रीन नए... न्‍लंीिथणओए डडडड: सच 





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आश्यानकमणिकोशे 


हा हा ! कत्थइ कि कोइ नत्थि कित्तिप्पिओ कुमारवरों | जो मोयावइ मरणाओ म॑ इमाओ महासत्तो | ॥२६६॥ 
इय विलवंति भयविहुरमाणसं तत्थ तासतरलच्छि । पदच्चासन्नीहुयमरणमेरिसं कलुणसद्देण ॥२६७॥ 
पासिउमपारयंतो कुमरो करुणापरव्वसो सहसा । हक्कन्तो करिनाहं ढुकों करिणो समीवम्मि ॥२६८॥ 

तो वारिंतस्स वि परियणस्स निस्सेसनायरजणस्स । सीहो व खंधभाए भयरहिओ चडइ चवलगई ॥२६९॥ 

तत्तो य अंकुसो अंकुसो त्ति कुमरस्स वाहरंतस्स । मारेउं पारद्धों त॑ नार्रि मत्तमायंगो ॥२७०॥ 

तत्तो कुमरों करुणाए तीए विम्हरियरायआएसी । पहणइ कुंभयडे तिक्खखर्गधेणुए करिनाहँं ॥२७१॥ 

ताहे हत्थी सो तारिसो वि गाढप्पहारजज्बरिओ । निग्गयरुहिरपवाहों तह चेव अचेयणो व्व ठिओ ॥२७२॥ 
दिद्ढठो जणेण छुरियप्पहारकुंभयडगलियरुहिरजलो । विको व्व गलियनिज्करणनीरपरिधोयधाउरसो ॥२७३॥ 
गयणाभोउ व्व अणूररत्तसंभाणुरायसंवलिओ । रेहइ हत्थी कुमरप्पह्ाारपगलंतरुहिरोहो ॥२७३॥ 
विप्फुरियविज्जुवल्यावण द्वपणवन्नसक्ककोयंडो । नवजलहरो व्व रेहह करिराओ रुहिरसंछन्नो ॥२७५०॥ 

तो ओयरिड कुमरो करिंद्खंधाउ सुद्धपरिणामो | डक्खिविऊरण बाल मुंचह निरुवद्दवे ठाणे ॥२७६॥ 

नाउं राया करिरायवहयरं नेहनिब्भरमणो वि । धणियं कुद्धो दुद्धसिसिभिडडिभासुरियभालयली ॥२७७॥ 
फुरियाहरभयजणओ गुंजारुणवयण-नयणदुष्पेच्छो । घयसित्तहुयासणरासिसन्निभो भणिउमाढत्तो ॥२७८॥ 

रे रे कुल्फंसण ! पावकम्म ! गुरुवयणलंघणसयन्ह ! | अवसर दिद्ठिपहाओ मह जीवियसमकरिकयंत ! ॥२७९॥ 
इय दुस्सहपियपरिभवहुयवहजालापलित्तसब्बंगो | नियनिद्धजणयविरहणमचयंतो चितिउं रूग्गो ॥२८०॥ 

ता कि इहेव चिट्ठामि विणयकरणेण पत्तियावेमि | जणयमहवा न संगयमावडियमिमं पि मज्ञ फलं ॥२८१॥ 
गुरुय णवयणाइक्कमतरुणो ता निरसरामि गेहाओ । अन्न॑ च जणयपरिभवमहियासेउं न सक्केमि ॥२८२॥ 


गयणम्मि निरालंबणमवि परिसक्ति साहसेकरसा | माणंसिणो न मणय॑ पि माणभंगं परिसहंति ॥२८३॥ 
भीसणमसाणपज्जलियहुयवहं मत्थयम्मि साहसिया । गुग्गुलभारं धारिति माणभंगं न माणधणा ॥|२८४॥ 

अब कालकूडकवलणमसुहं सृहमायरंति पियमाणा | न उणो मुययंति मरणे वि माणमाणिक्रधणमणहं ॥२८५॥ 

अवबि समरमरणमवि देसगमणमवि बंघुमुयणमिच्छंति | माणघणा न उ नियनिद्धबंधुजणियं पराभवण्णं ॥१८६॥ 

इय चिंतिऊण कुमरो परियणमाभासिऊण सप्पणयं । सम्माणिऊण समुचियमाभरणाईहिं त॑ं भणइ ॥२८७॥ 

भो भो | जणयाणाए गंतव्वं॑ ता मए विएसम्मि | समयम्मि पुणो तुब्भे पृणरवि संभालइस्सामि ॥२८८॥ 

तेवि ६ व्जोयप्सरियवाहजलाउत्तलीयणा जाया | पियवयणपुव्वमाभासिऊण धीरेण धीरविया ॥२८९॥ 

सीलमई पुण भणिया पिए | तुम॑ जाहि जणयगेहम्मि | तायमणुयत्तमाणो गमिस्समहयं विदेसम्मि ॥२९०॥ 

त॑ सोऊणं दुस्सहविओगदु हमारभा रियसरीरा । बाहजलाऊरियनयणसंपुडा रोबिडं छूग्गा ॥२९१॥ 

कि रुयसि पिए | ? आवंति आवयाओ भवे वसंताण | जीवाणमओ सुंदरि | विवेइणो हुंति धीरमणा ॥२९२॥ 

तीयुत्त मणवल्लह ! घीरमणा वि हु रुयामि जमयंडे | म॑ मोत्त' वयसि तुम त॑ मह गुरुदुक्खमन्नं च ॥२९३॥ 

सामि ! तुम॑ सिक्खविओो जइ सुमरसि तायसंतियं वयणं । एक चिय मह धूया छाय व्य तए न मोत्तव्वा ॥२९४॥ 
तेणत्त सब्वमहं सराभि सुंदरि ! परं तुमं मग्गे | कहमहियाससि सुहिया सीया55यवसंभवं दुक्खं ? ॥२९५॥ 

सा भणइ सामि ! मग्गों वि मह घरं काणणं पि कुलभवर्ण | कक्कसलिला वि सेज्जा गिरी वि सुहओ महि वि पिया २९६ 
जत्थ तुम॑ मह पासे कि मह जणएण!? कि व ससुरेण १ । मणनिय्वुइमेव सुहँ सामि | सयाणा पसंसंति ॥२९७॥ 

जद एवं समदुक्खा ता पठणा होसु जेण बच्चामों | संपयमेव पयाणं करिज्जइ किर कि वियप्पेण ? ॥२१८॥ 

एवं सो सकलत्तो सिसुसुयजुयलो सुहिल्लिदुल्ललिओ | एगागी पयचारी पयत्थिओ साहससहाओ ॥२२९॥ 

कत्थ तयं ससुरसहं १ जगयपसायाओ कत्थ ते भोगा १ । एक्पए श्िय नद्ठा अहो ! हु विहिविलसियमपुव्व॑ ॥३००॥ 


जओ--- 


३६, सम्पद्धिपदोः सत्पुरुषसमतावर्णनाधिकारे नरविक्रमाण्यानकम २६६ 


इय सो माणेक्रषणो दुहममुणंतो अभिन्नमुहराओ । वच्च्‌इ विसायरहिओ पियाणुरोहेण मणियं च ॥३०१॥ 

वसणे विसायरहिया संपत्तीए अणुत्तणा हुंति | मरणे वि अणुव्बिग्गा साहससारा य सप्पुरिसा ॥३०२॥ 

अह हरिरहिय व्व गुहा गुंफविउत्ता सुकव्ववाणि व्व | चायरहिय व्व रूच्छी मुणिमाला पसमवियल व्व ॥३०३॥ 
कुमररहिया जयंती न विरायइ सेसगु णसमग्गा वि। अहवाडवणीयहारा थणव्थली छहइ कह सोहं ? ॥३०४॥ 
पत्चागयपडिबंधों पच्छायावानलेण तवियतणू | राया विसन्नवयणो विज्ञत्तो मंतिवग्गेण ॥३०५॥ 
देव ! किमेयमयंडम्मि वज्बदंडप्पहारसममसुहं । तणु-मणसंतावयरं कुमारपरिभवणमावडियं १ ॥३०६॥ 
जुत्तमजुत्तं जाणंति देवपाया परं वय॑ भणिमो। अबि याणियमम्हेहिं वि न संगयं सामिणा विहियं ॥३०७॥ 
तिलतुसमेत्तं पि हु कज्जमन्नया ने कहंति निवपाया । मंदरगिरिगरुयं पि हु एयं नाय॑ं न अम्हेहिं ॥३०८॥ 
कहमवि करयलूचडिओ पडिओ चिंतामणी जहा दुलहो । तह देव ! कुमररयणं पाविस्सामो कहमहन्ना ? ॥३०९॥ 
उद्दालियनिहिरयणा हियसबव्वस्सा पणट्ठपरिताणा । निब्भग्गसेहरा सामि ! कि करेमो ? कहिं जामो ? ॥३१०॥ 
इय दीणमंतिवयणेण चल्यिसुयसल्लविहुरिओ राया । लल्लकमुकपोक्को धस त्ति पडिओ घरणिवीढे ॥३११॥ 
सिसिरोवयारकरणेण लरंभिओ चेयणं परियणेण । पलवइ राया सल्लं चा्लितो सयललोयस्स ॥३१२॥ 

हा विहियविणय ! हा गरुयपणय ! हा दिन्नकणय ! पणयाणं । 
हा विहवधणय | हा निद्धजणय ! हा जाणियरणरणय ! ॥३१३॥ 

वच्छ ! गयरायचडियं सुरकरिमारूढममरनाहं व। विबुहजणाणंदयरं तं॑ दच्छीहामि कइया हं ? ॥३१४॥ 
हा वच्छ ! विउसगोट्टी वि तुज्क विरहम्मि झुरइ सदुक्‍्खं । हा पुत्त ! तुज्क विरहे रायत्थाणं पि दुहजणयं ॥३१५॥ 
सरभसमागच्छंतं पेच्छित्सं वच्छ ! कत्थ पत्थावे ? | मह पायपणमणत्थं वियसियमुहकमल-नयणजुयं ॥३१६॥ 
अंकम्मि निवेसिस्स अग्घाइस्सं सिरम्मि संतुद्टी । अद्धासणेण कइया निमंतहस्सामि वच्छ | तुम १ ॥३१७॥ 
हा वच्छ ! पुरवरीयं परमपमोयप्पया वि पेयवर्ण | तह पवसियम्मि जाया उत्वेययरी भयं जणइ ॥३१८॥ 

एवं अपरिक्खियकारयस्स निब्बुद्धियस्स मह जीहा । सयखंडा कि न गया कुमरं कडडय॑ भणंतस्स १ ॥३१९॥ 
चंपयमाला वि तया परिसिढिलियदेहबंधणा धणियं । सुयसोयविहुरियंगी विलुवइ विविहृष्पयारेण ॥३२०॥ 
हा ! मज्क मंदभग्गाए कह णु जीवियसमी वि जणएण । विहिवसगेणमकम्हा तुममिय निब्भच्छिओं वच्छ ! ? ॥३२१॥ 
तुममवि वच्छे ! सीलमइ ! बालसुयजुयलूसंजुया कह णु | पयचारेणं गच्छसि कइया वि अदिद्वदुहलेसा ? ॥३२२॥ 
इय असमंजसवयणाणि जणणि-जणयाणि पलवमाणाणि | संठावियाणि कह कह वि मंतिवग्गेण महुरगिरा |३२३॥ 
सो वि हु कुमरो बच्चह सिसुसुयजुयकलियसीलमइकलिओ । अमरिसडवहरियहियओ अक्खंडियपयपयाणेहिं ॥३२४॥ 
गच्छंतो संपत्तो कोडीसरवणियसयसमाइन्ने | संदणपुरम्मि वेलाउलम्मि धण-कणयपउरम्मि ॥३२५॥ 
तत्थ य परिचयविरहाओ किमवि गेहाइयं अयाणंतो । पविसइ पाडलूयाभिहमालायारस्स गेहम्मि |३२६॥ 
सो उण पाडलओ पयइभद्दओ दुत्यथिए दयालू य। सगुणप्पिओ पसंतो परोवयारेकरसिओ य ॥३२७॥ 

भणियं च तेण चिट्बसु मह गेहे होइ कम्मवसगाणं । विसमी द्साविभागो जियाण को विम्हओ भद्द ! ? ॥३२८॥ 


चंदसस खओ न हु तारयाण रिद्धी वि तस्स न हु ताण | गर॒ुयाण चडण-पडणं इयरा पुण निश्धपडिय त्ति ॥३२९॥ 
चिट्ठंति तत्थ मणयं सुहेण परमा55सि दविणजायं ज॑ं | आभरणाई कालेण भक्खियं तो विसन्नाईं ॥३३०॥ 
पाडलएणं भणियं ववसायविवज्जियाण कि दहवो । कत्तो मुहम्मि पाडइ ? ता कि पि करेह वबसाय॑ं ॥३३१॥ 
कुमरेणुत्तं मो भद्द ! भणसु जं क्िंचि किश्वमम्हाणं | तेणावि भणियमुश्चिणह मज्क मलएगदेसाओ ॥३३२॥ 
पुप्फाणि कुणह विक्कयमेवं निव्वहह निव्वियप्पेण । जुत्तमिम ति कुमारों कुणश तयं चितिऊणमिमं ॥३३३॥ 

जह जह वाएइ विही विसरिसभंगेहि निद ठुरं पडहं । धीरा पसन्नवयणा नच्च॑ंति तहा तहा चेव ॥३३४॥ 


३०० 


भणियं च-- 


आखश्यानकमणिकोशे 


तप्पभिदह कलाकुसरूत्तणेण कुमरो विचित्तमालाओ । गुंथह्‌ सीलमई वि हु ताओ विक्किणह रायपहे ॥३३५॥ 
परमेसा रूववई पयईए पसंतवम्महवियारा | कुणइ जणाण वियारे वत्थाउलंकाररहिया वि ॥३३६॥ 


मुद्भाण नाम हिययाईं हरंति हंत !, नेवच्छकम्मगु णणेण नियंबिणीओ । 
छेया पुणो पयह चंगिमरं जणिज्जा, दक्खारसो न महुरिज्जइ सककराए ॥३३७॥ 
अद्द भज्ञया य दीवंतराओ पत्तेण पोयवणिएण । दिद्वा य देहिलेणं तओ य सा मयणवसगेणं ॥३३८॥ 
भणिया तुह पृष्फाणं विच्छित्ति का वि सुंदरि ! अपुब्वा | ता मह इमाणि सब्वाणि सुयणु ! मोल्लेण देयाणि ॥३३९॥ 
अन्नत्थ न गंतव्बं कत्थइ सो देह समहियं दव्वं | सा वि हु धणलोभेणं पहदियह देइ तस्सेव ॥३४०॥ 
अह अन्नया य भणिया सीलमई तेण पावकम्मेण । मयणाउरेण सीलम्मि निश्चला हरिउकामेण ३४१॥ 
जद एहि जाणवत्ते मह प!|से तो बहूण पृष्फाण । सिम्धं पि विक्षतो होइ सा वि तस्थेव संपत्ता ॥३४२॥ 
तीए सुद्धसहावाए जाणवत्त मुणालवेल्लहला । पक्खित्ता बाहुलया पुण्फाण समप्पणनिभित्त ॥३४३॥ 
तो घेत्तु पावेणं चडाविया तेण जाणवत्तम्मि । संवरिया नंगरया समुब्मिओ झत्ति सेयवडो ॥३४४॥ 
चालेऊणमवल्लाईं पेन्लियं पाणियम्मि तं वहणं । आयजन्नायड्ियचावमुक्ककंडुग्गवेगेण ॥३४५॥ 
पत्तं पमूयजोयणपमाणमाणम्मि जलहिमज्ञम्मि । एत्तो वि गिहे कुमरो पियाए मग्गं पलोएड ॥३४६॥ 
जाव न पत्ता ताहे गवेसिया तेण तत्थ सब्बत्थ । अनियंतेणं कहिओ मालायारस्स वुत्तंतो ॥३०७॥ 
तेण वि चउक्क-चचरठाणेसु गवेसिया पयत्तेण | तत्तो य नयरबाहिं निरूविया जाव न हु दिद्ठा ॥३०८॥ 
ताहे पाडलएणं भणिओ कुमरो नईैए परकूले | भद्द ! गवेससु गंतुं कश्या वि हु होह तत्थेव ॥३०९॥ 
ते वि हु जणणीविरहे पिउपासं पुत्तवा न मुंचंति | तो तेहि सहिओ चिय गवेसणत्थं नईण गओ ॥३५०॥ 
संठाविऊणमेगं बीय॑ नेउं नह परकूले | जावा55गच्छइ पढमाणयणत्थं ताव असुहवसा ॥३५१॥ 
सहस श्चिय नइनीरं विद्धि पत्तं तओ अवसपाओं । पययूरेण नईए कुमरो वोढुं समाढत्तो ॥२५२॥ 
भवियव्वयाए पत्तं कि पि हु कट्ठाइयं नहमज्झे । तन्निस्साए पत्तो केत्तियमेत्तम्मि भूभागे ॥३५३॥ 
उत्तरिकण तहाविहतरुपायं पाविउं समुवधिट्टों | चितइ विसन्नहियओ विहिविलसियमप्पणो असुहं ॥३५४॥ 
पेक्छसु एगपए चिय मह विहिणो वामया हयासस्स । ज॑ं चिंतिउं न सक्का न यावि सहिउं न वा कहिउं ॥३५५॥ 


भणियं च-- 


तहा-- 


चितिज्जइ जं न मणे जुत्तिवियारेण जुज्जइ न जं च | तं पि हयासो एसो सुहमसुहं वा विही कुणइ ॥३२५६॥ 


खणदंसियसुरसरिवित्थराइ' खणसुन्नरत्नसरिसाइं । एयाईं ताइं कम्मिदयालिणो जीव ! ललियाईं ॥३५७॥ 
जणय-जणणीविओगो पियाए विरहो सुयाण विच्छोहो । भूयबलि व्व कुडुंबं दिसोदिसि घत्तियं विहेणा ॥३५८॥ 
न तहा जणणी-जणया न तहां मह भारिया तब हियय॑ । जह बाला वणमज्झे दुह्वहा नद्धसल्लं व ॥३५९॥ 
ता कि करेमि संपइ ? क॑ वा सरणं जणं पवज्ञामि ? | विसम-विसंटुरूचेट्टिय ! हयविहि ! वच्चामि भण कत्थ १ ॥३६०॥ 
अहवा गरुयाणं पि हु जायह वसणं विहिम्मि विवरीए । किर कि चोज्जं अम्हारिसाण १ बिउसा भणंति जओ ॥३६१॥ 
अलड्जार: श्डा करनरकपालं परिकरः, प्रशीणोज्नो भूड़ी वसु च वृष एको गतवया: । 
अवस्थेयं स्थाणोरपि भवति यत्रामरगुरोविधों वक्रे मूध्नि स्थितवति वय॑ के पुनरमी ? ॥३६२॥ 
ता मह सत्थत्थविसारयस्स जुत्त न सोइउं एवं । इय जा संठवह मण्ं ता जं जाय॑ तयं सुणह ॥३६३॥ 
सिरिजयवद्धणनयरस्स सामिओ कित्तिधम्मनरनाहो । सूलाइकयार्यकेणमुवरओ केवलमपुत्तो ॥३६४॥ 
तत्तो तप्पयसमुचियसत्वुत्तमपुरिसरयणनाणत्थं । अहिवासियाणि मंतीहिं पंच दिव्वाणि विहिपुव्यं ॥३६५॥ 


जओ--- 


जओ 


इओ य-- 


त॑ जहा-- 


३. सम्पद्धिपदोः सत्पुरषसमतावर्णनाधिकारे नरविक्रमाल्यानकम्‌ ३०१ 


हत्थी तुरओ चमरा कलसो छत्तं च ताणि पुरमज्झे । भमिउः चठक्क-चच्चर-तिगाइटाणेसु सब्बत्तो ॥३६६॥ 
अनियंताणि पुराओ बाहिं पि विणिग्गयाणि पत्ताइं । जत्थ5च्छइ नरविक्षमकुमरों तरुणो तलम्मि ठिओ ॥३६६॥ 
पढ़म॑ चिय गिरिगरुयं थोरोरुकरं करिं नियइ कुमरों | चितइ वणहत्थी को वि एस ता छुणउ जमभिमयं ॥३६७॥ 
एयं न ताव करिरायमागयं दुज्जयं पि दमइस्सं | सिक्खाविऊ वि जम्हा मह मरणं विरहियस्स वरं ॥३६८॥ 


विरहाओ वर मरणं विरहो दूमइ निरंतरं देहं | ता सेयं मरणं चिय जेण समप्पंति दुक्खाईं ॥३६९॥ 
मरणम्मि निच्छियमई कुमरो त॑ जाव नियदद सम्ममिमं | तो त॑ छीलायंत॑ जिभायंतं च सोममुहं ।|३७०॥ 
तम्मग्गेणं तुरयं छत्ताईयं च पासिउं कुमरो । चितइ मणम्मि कारणमिह कि पि न एस वणहत्थी ॥३७१॥ 
तिपयाहिणिय कुमार गलगज्जियजलहिंगहिरगज्जीए | उक्खिविऊण करेणं सखंधमारोबिओ कुमरो ॥३७२॥ 
अहिणवजलहरसामलसमुच्चकरिरायसंठिओ कुमरो । सोहइ सिंहकिसोरो व्व विश्वगिरिमत्थयारूढो ॥३७३॥ 
उक्खिविऊण करेणं निम्मलजलभरियपुन्नकलसेण । विरहग्गितावियतणू अमयरसेणेव अहिसित्तो ॥३७९॥ 
हरहास-हारधव्ं कुमरस्स सिरम्मि संठियं छत्तं । बिंबं व्व सोमयाए विजिएणं पेसियं ससिणा ॥३७५॥ 
ससि-कु द-संखसेयं चामरजुयलं सुसंगयं ढलियं । जस-कित्तिपुंजजुयलं व्व सहइ पासेसु कुमरस्स ॥३७६॥ 
तिपयाहिणिय तुरंगो समुच्चरोमंचकंचुइयगत्तो | हिणहिणइ भणइ पिट्टम्मि चडसु मह विवपए व्य तुम ॥३७७॥ 
मंचाइमंचकलिए नयरम्मि पवेसिओ विभूईए । वरवत्थरइयउल्लोयरुदरविच्छित्तिमणीए ॥३७८॥ 
विरइयवंदणमाला-मणहरतोरणविराइयदुवारे । रायमवणम्मि पविस्‌इ कयकोउयमंगलपवित्त |३७९॥ 
विलसिरवारविलासिणिविरइयमोत्तियचउक्क्रमणीए । सीहासणे निसीयह सुपसत्थमुहुत्तसमयम्मि ॥३८०॥ 

तो समकालपवज्जिरनाणाविहतूरबहिरियदियंतं । पुणरवि महायणेणं विहिओ रज्ञाहिसेओ से ॥३८१॥ 
महरिहवत्थालंकाररुइरनिस्सेसविग्गहावयवी | पणओ असेससामंत-मंति-नायरयनियरेण ॥३८२॥ 

पणया पच्चंतनिवा सब्बे वि हु तप्पयावगुणवसओ । अणुकूलकम्मकलिओ पुणरवि सो संपया वरिओ ॥३८३॥ 
नवरं न कि पि रूगगइ चित्ते से पुत्त-पिययमाविरददे | सललंति ताणि हियए खणे खणे नद्धसल्लं व ॥३८४॥ 


भुज्जउ जं वा त॑ वा परिहिज्वउ सुन्दरं व मलिणं वा । इट्रेंण जत्थ जोगो तं चिय रज्जं किमवरेण ? ॥३८५॥ 


जिणसमयभणियविहिणा वियाणियासेससमयसब्भावों । छत्तीससूरिगुणरयणरोहणो रुद्धमणपसरों ॥३८६॥ 
खंतीनिवासगेहं मदृवगुणविजियदुजयमाणभडो । अज्जवनिज्वियमाओ मुत्तीबलविजियलोहखलो |॥|३८७॥ 
तवतेयदित्ततणुओ संजमसंजमियकरणहयपसरो । सच्चवसीकयभुवणो सोयसमुज्जलसमायारों ॥|३८८॥ 
आर्किचच्विभूसियदेहो बंभवयगुणपवित्ततणू | सुविसुद्धधम्मद्सभेयरयणसमलंकियसरीरों ॥३८९॥ 
दंसणमेत्तेण वि भवियनिवहनिम्महियचित्तसंतावों | परमालवणसुहारसपवाहनिव्ववियजणहियओ ||३९०॥ 
विहरंतो संपत्तो समंतभद्दाभिहाणमुणिवसभो । जयवद्धणपुरपरिसरबहिरुज्ञाणे समवसरिओ ॥३०१॥ 
सोऊण तयागमणं भत्तिभरुल्‍्लसियबहलरोमंचा । के वि हु वंदणवडियाए निग्गया सूरिपायाणं ॥३९२॥ 
के वि हु कोउयवसओ के वि हु पत्ता पराणुवत्तीए | संसयवोच्छेयत्थं च पत्थिया तत्थ के वि नरा ॥३९३॥ 
राया वि मुणियमुणिनाहवइयरों रइय[विमल]नेवच्छो । पियपुत्त-पियावुत्तंतपुच्छणत्थं समणुपत्तो ॥३९४॥ 
सन्वेसुं पि जहारिहमुबविट्टेसुं विसिद्वकलोएसुं । मुणिनाहो नवनीरयगज्जियगंभीरवाणीए ॥३९५॥ 

पारद्वों धम्मकहं कहिउं कारुन्नपुन्नमणभवणों । मवियजणबोहणत्थं सत्थत्थविसारओ भयवं ॥३९६॥ 


खणदिद्वनट्रविहवे खणपरियट्टंतविविहसुह-दुक्खे | खणसंजोय-विओए नत्थि सुहँ कि पि संसारे ॥३९७॥ 


३०२ 
जओ--- 


तथाहि--- 


तहा हि-- 


आख्यानकमणिकोशे 


जीय॑ जोव्वणमिड्डी पियसंजोगा य अत्थिरं सवब्वं | खणदिद्वनट्टरूवं नहम्मि गंधव्वनयरं व ॥३९८॥ 


खरपवणपणुन्न कुसग्गछग्गजलर्तिदुसच्छहं जीयं | तरणिकरतवियतरुख़ुडियकुसुमसरिसं च तारुन्नं ॥३९९॥ 
सुररायचावल्यसच्छहाओ रच्छीओ चलसरूवाओ । विज्जुलयचिलसियसमा पियसंजोगा य जीवाणं ।|४००॥ 
तम्हा सुर-नर-सिवसोक्खकारए सासए जिणपणीए । परमत्थबंधवे कुणह उज्ञमं सुद्धधम्मम्मि ॥४०१॥ 

इय मुणिवश्ववणाओ विणिग्गयं धम्मरयणमभिमुणिडं । संवेबभावियमणा जाया सब्बे वि भवियजणा ॥|४०२॥ 
राया वि हु मुणिवइणों नाणाइसयं वियाणिउं तइया । पत्थुयमत्थं पुच्छिउकामों काम भणइ एवं ॥|४०३॥ 
भयवं ! तुब्मे नाणेण नत्थि त॑ ज॑ न याणह जयम्मि | ता कहह कया होही मह पृत्त-पियाहि संजोगो १ ||४०४॥ 
भयवं पि भणइ नरनाह | धम्ममेयं सया कुणंतस्स | सव्ब॑ पि घडइ जीवस्स वंछियं वत्थुजायं ति ॥२०५॥ 
भयवमसमाहिजोगे धम्मो वि हु तीरए न काउं जे । भवयाणमिव न अम्हं विवेयवियलाण मणथेज्जं ॥४०६॥ 
जइ एवं तह वि तुम निच्चलचित्तो चरित्तवंताणं | मुणिपुंगवाण सह पज्जुवासणं कुणसु भणियं च ॥|४०७॥ 
सेवा वि हु दुलह चिय महाणुभावाण पावनिदलणी । छाय॑ पि कप्पतरुणो पुन्नविहुणा न पावंति ॥४०८॥ 
सो वि हु तह त्ति पडिवज्बिऊण साहूण कुणइ पयसेवं । गुणपक्खवायभावा अलंकिओ पउरपुन्नेण ॥४०९॥ 
एत्तो य नईतीरे ते कुमरे नियह गोउलियपुरिसो । तम्मि पएसे कत्तो वि आगओ तेसि पुन्नेण |॥०१०॥ 

तो घेत्त [जा)३ वर्ण, ते नरकुब्बर-जयंतकुमर व्व | अप्पेइ गोउलियमयह रस्स वज्जरियतव्वत्तो ॥9११॥ 

तेण वि य अपुत्ताए समप्पिया पणइणीए नियगाए । सा वि हु पालूइ अंगुब्भव व्व परमन्नपाणेहिं ॥४१२॥ 

सो वि हु मणदइओ नरवइस्स कोसल्षियाणि घेत्तण | वच्चह रायसमीवे अह5ज्नया ते वि सह पिउणा ॥४१३॥ 
राहार्डि काऊणं चलिया अम्हे वि आगमिस्सामो | नयरस्स दंसणत्थं पत्तो सो तेहिं समयं पि ॥४१४॥ 

जा नियइ निवो ते दो वि दारण अणमिसाए दिद्टीए | ता नाय॑ जह एए मज्क सुया कहइ मह हियय॑ ॥४१५॥ 
पुट्टेण मयहरेणं तहेव कहियं निबंधओ सब्बं । तो काउं उच्छंगे नेहवसा भरियगलसरणी ॥४१६॥ 

किमवि परुन्नो राया गलंतनयणंसुधोवियकवोली | भणइ सुया एए ते मह मिलिया गुरुपसाएणं ॥०१७॥ 
बीयम्मि दिणे गुरुणो कहिओ सब्बों वि पुत्तवुत्तंतो । केत्तियमेत्त भो भद्द | साहुसेवाए फलमेयं ॥०१८॥ 

अज्ब वि होही तुह पिययमाए जोगो वि थेवद्वसेहिं। अहरीकयकप्पदूदुममाहप्पा जेण मुणिसेवा ॥४१६॥ 


हर्‌इ रुय॑ं दुलइ दुह जणइ समाहिं समीहिय॑ कुणइ । अवणेइ आवयाओ मुणिसेवा कामधेणु व्व ॥४२०॥ 

एवं राया संजायपञ्चओ कुणह साहुपयसेवं । पालइ रज्ज निव्वुयहियओ अइगमह दियहाणि ४२१॥ 

सा वि हु सीलमई देहिलेण जलहिम्मि दृढमणज्जेण । नाउं हरिज्ञमाणं अप्पाणं निवडिया वहणे ॥४२२॥ 
मुच्छानिमीलियच्छी विहिया सिसिरोवयारओ सत्था । अइृदुसहबिरहदुहभारभारिया पलविउं छूगा ॥४२३॥ 

हा जलहिदेवयाओ ! हा पवहणदेवय्राओ | हा छुयणा !। इंह अत्थि कोइ जो म॑ रकक्‍्खह पावेण हीरंतं ॥|४२४॥। 
हा ताय ! दुहियवच्छल | हा ससुर ! सिणेहसार ! हा दइय !। मह पाणप्पिय | तायसु हीरंति सरणरहियं मं॥४२५॥ 
त॑ पेच्छिकण सहस त्ति विहियकरसंपुडो वहणसामी । भणह सविणयं सुंदरि ! मा रोयसु सुणसु विज्नत्ति ॥४२६॥ 
वीसत्था होसु खणं अवधारसु मज्म वयणपरमत्थं | अहमेव ताय तुह सुयणु | किकरो पसिय पसयच्छि ! ॥४२७॥ 
भवसु मह विउलगिहविभवसामिणी वहसु गेहिणीसद्दं । चयसु विसाय॑ संठवसु अप्पयं मणसमाहीए ॥४२८॥ 
निव्ववसु सुयणु ! म॑ मयणदहणतवियं ससंगमजलेण । इय विज्नत्ति मह कुणसु करिय करुणं कुरंगच्छि | ॥४२९॥ 

तं सोउं कोवारत्तनयणुभडमिउडिभीसणनिडाला । फुरियाहरुट्रपक्खलियवयणपस्सिन्नमुहुकमला ॥|४३०॥ 


३६. सम्पद्धिपदोः सत्पुरषबसमतायणेनाधिकारे नरविक्रमाल्यानकम ३०३ 


अवसर दिद्विपहाओ निक्षिव ! निब्भग्गसेहर ! निहीण ! । निद्धम्म ! नराहम ! निव्विवेय ! निप्फुट्ट ! निल्लज्ज ! ॥०३१॥ 
मा भणसु पुणो एवं मा निवडसु नरयअंधकूवम्मि । निव्विज्ञाण ! न याणसि अप्पस्स परस्स य विसेसं ॥४३२॥ 
एवं तीए निब्भच्छिओ दु्ढ मोणमस्सिओ वणिओ । लोभाभिहयं च सयं जीवमुबलद्घुमारद्धा ॥०३३॥ 

हा जीव! तया लोमेण विनडिओ मुणसि नेय कवडमिमं । जं॑ं मह कज्जत्थमिमो समहियमत्थं पयच्छंतो ॥३३४॥ 
वाहियइ अहव झुट्टेण लोमिओ लोयजंपियं जाय॑ । तमिमं सच्च संपई जइ मह सीलस्स माहप्पं ॥४३५॥ 

अत्थि तओ देवो वा असुरो वा किन्नरो व जक्खो वा । सन्नेज्सं कुणड जओ गरुया दुह्ियम्मि कारुणिया ॥२३६॥ 
इय सावियम्मि सीलप्पमावओ जलहिदेवया ख़ुहिया । पक्खिवइ महावत्ते वह्णं कयजलयवद्दलया ॥9३५७॥ 
वायाबिद्ध परिभमइ पचहणं जाब ता नहयलरूम्मि | सहस त्ति जंपियं जलहिदेवयाएण सरोसमिमं ॥०३८॥ 

हं हो अणज्ज | निन्लज्ज ! दुट्ठ ! पाबिट्ट | चत्तमज्जाय ! सीलूमईं सीलमईं महासईं एबमहिखिवसि |॥2३९॥ 

संपई्ट जइ भइणिसमं पिच्छसि परिपालिउं पयत्तेण | अप्पसि पइणो ता तुज्झ जीविय॑ अन्नहा नत्यि ॥०४०॥ 
तप्पभिइं भयभीओ भोयण-पाणाइएहिं भइणि व्व | पालंतो गंतव्बं संपत्तो बंछियं ठाणं ॥४४१॥ 

विणिवद्टिऊण भंड विढदवियद॒विणो गिहं पद नियत्तो । पडिकूलपबणवसओ पणोल्लियं पवहणं पत्त ॥४४२॥ 
जयवद्धणम्मि नयरे वणिओ घेत्तुण पाहुडं पवरं । वच्च३ निवस्स पासे तेणावि सगोरवं दिद्नो ॥४४३॥ 
दीवंतरवत्ताकहणवावडाणं परोप्परं महईँ | बेला रूग्णा जाव य वोलीणो जामिणीपहरो |॥॥४४9४॥ 

ता विज्त्तो राया बहुद॒व्वं देव ! पवहण्ण मज्झ । ता मुयह देव ! पुणरवि समागमिस्सं पहायम्मि ॥9४९०॥॥ 
भवियव्वयानिओगेण भूवई भणइ भद्द ! भवओ हं । पदच्चश्यनियनरेहिं रक्खाविस्सामि त॑ वहणं ॥|४४६॥ 

भवया उण मह पासे वसियव्वं अज्ज मन्निण वणिणा । नरवहणा पेसविया पहाणपुरिसा पवहणम्मि ॥०४७॥ 
अणुकूलकम्मवस ओ कुमारकयकोउया जलहिबहणे । जणयं विणएणं विज्नवंति सप्पणयमम्हाणं ॥४४८॥ 
पवद्टणमदिद्वपुन्व॑ ता तद्ंसणकए तहिं ताय !। वच्चामो जइ मन्नसि तो रज्ना पेसिया तत्थ ॥४४९॥ 

रयणीए सुहं सुत्ता तत्थेव य पवहणम्मि सेज्जाए। जाए पाच्छमपहरे पडिबुद्धो भणइ लहुभाया ॥४५०॥। 

भाय ! मह कुसुमसेहर ! कहाणयं कि पि कहसु कमणीयं । वचइ सुद्देण रयणी जेणेसा तं॑ सुणंतस्स ॥४०५१॥ 
जेट्रेण भणियमेयं महंतमच्छेरयावहमपुव्व॑ | अम्हाणमेव चरियं कहाणयं सुण किमबरेण ॥०५२॥ 

लहुएणं संलत्त तयं पि मह कहसु अवहिओ अहयं । अत्थि इह संदणपुरं वेलाउलसन्नियं वच्छ ! ॥४५३ 

तत्थ इमो मह जणओ पिउठणा अवमाणिओ सह पियाए | देसाओ आगंतुं मालायारस्स गेहम्मि |॥०५४॥ 

गुंथइ पुप्फाणि सं भज्जां विक्किणइ रायमग्गम्मि । खत्तियकुलुब्भवा वि हु अहो ! हु विहिविरुसियमपुव्व॑ ॥|४५५॥ 
न हु एत्तिएण तुट्टी बच्छ |! इमो हयविदी जमम्हाणं | केणावि हु अवहरिया माया वि हु जीवियब्भहिया ॥०४५६॥ 
तीए गवेसणत्थं अम्ह पिया निग्गओं नईतीरे । नरविक्कमो कुमारो अम्हे मोत्तु' नइईकूले ॥४४५७॥ 

वूढो नई्पवाहेण पुल्नजोएण नरवई जाओ । अम्हे वि हु संपत्ता कह वि हु गोडलियपुरिसिण ॥४४५८॥ 

तेणावि वच्छ ! अम्हे समप्पिया मयहरस्स तस्स गिहे । विद्धिं पत्ता पुञन्नेण जोइया जणयपायाणं ॥४४५९॥ 

संपई दुक्खत्ताणं जइ माया मिलइ कह वि पुन्नचसा । देव-गुरूणं पायप्पसलायओ ता भवे लट्ढ ॥७६०॥ 
गुणऊलूयणियाए मज्झे सबणीयगयाएु अवहियमणाए | सीरूमईए सब्बं निसामियं निययचरियमिमं ॥॥४६१॥ 

तत्तो नेहपरव्वसहियया सब्बंगजायरोमंचा । सुरहि व्व निययवच्छगदंसणनिग्गयथणयदु दवा ॥४६२॥ 

जामि बलि तुम्ह मुहस्स होमि ओयारणं नियसुयाणं । इय जंपंती तुइंतकंचुया निग्गया बाहिं ७६३ 

एसा अलक्खणा हं तुम्हाणं दुक्खदाइया माया । ता एह एह चिरविरहियाउहमारुहह उच्छंगे ॥|४६४॥। 

इय उच्छंगो काऊण मुकपोकाए तीए तह रुत्न | कुमरेहिं सम॑ वहणे रुषाविजो जह जणो सब्बो ॥॥४६४५।। 
संठावियाणि निवपरियणेण संजायपरमतासेण । आणंदरोदणेण वि पज्जत्त देवि ) बहुणणं ॥|४६६॥ 


३०७ आज्यानकमणि कोशे 


सिम्ध॑ केण वि गंतुं निविदओ एस वहयरो रत्नो । हरिसाऊरियहियओ सो वि हु अंगे अमायंतो ॥९६७॥ 
देवीपवेसगकए नयरम्मि महसव॑ समाइसइ । वयणाणंतरनिव्वत्तियम्मि अह तम्मि निवमग्गे ।४६८॥ 
मंगलगीयरवेणं अवलोयंती समग्गपुरसोहं । पविसइ पेच्छिज्जंती नर-नारिसहस्सवंद्रेणं ॥०६९॥ 
वीइज्जंती सियचामरेहिं कणयप्पहाकरेणुगया । विज्जु व्व विगयंती बलायजुयजलूयमालाए ॥४७०॥ 
पविसइ नरिंदभवणे विद्वाजणविहियमंगलपवित्त । नारीहिं सलहियगुणा आसीसामुहलूवयणाहिं ॥४७१॥ 
रायाई पुरलोओ मिलिओ सब्बो वि तम्मि समयम्मि । नच्चह गायइ पहसइ हरिसियहियओ तयागमणे ॥४७२॥ 
रायाइमाणु साणं तेसिं मिलियाण निरुवमं सोक्खं । जं जाय॑ त॑ तीरइ कहिउं न$न्नस्स केणावि ॥४७३॥ 
अभयप्पयाणपुन्व॑ कहिओ देवीए वहयरों वणिणो । निश्विसओ आणत्तों सो वि हु रज्ना ससव्वस्सो ॥४७४॥ 
तप्पभिइ रज्जसोक्खं विसयसुहं मज्नए मणे राया । जं हिययनिव्वुईए विउसा मन्नंति परमसुहं ॥४७५॥ 
विवयाए निरुव्विग्गो विहवं पत्तो न गव्वमु व्यहह । लच्छोए न छलिज्द अहो ! हु गरुयाण पुरिसव्य ॥४७६॥ 
देह अणवरयदाणं पयडइ भरत्ति पि सीलवंताणं । रक्खह तवोवणाइं सया सहावेण सुहभावों ॥9७७॥ 
चउरंगबलसमिद्धो पडिहयसत्तू विणिग्गयपयावो । ससहरकरधवलरूजसो जाओ नरविक्कमनरिंदों ॥४७८॥ 
एवं सो गुरुपयपज्जुवासणाजायवंछियपयत्थो । संपत्तसावयवओ पत्तो माहिंदकप्पम्मि ॥४७९॥ 
॥ नरविक्रमाण्यानकं समाप्तम ॥१०७॥ 

जह एसो सप्पुरिसो संपइ-विवयासु तुल्लमणवित्ती । 

एयासु तह5न्नेण वि हरिस-विसाओ न कायब्बो ॥१॥ 

ओऔद्धत्यदो षरहिता विभवे भवन्ति, देन्यादपेतमनसो व्यसने5पि सन्‍्तः । 

पुण्याशया: स्तिमितनीरधिनीरकल्पाः, सत्र सम्पदि विपक्ञपि तुल्यचित्ता: ॥२॥ 

॥ इति भ्रीमदाप्नदेवसूरिविराचितवृक्तावाब्यानकमणिकोशे सम्पद्‌ू-विपदोः 

सत्पुरुषतुल्यताप्रतिपादकः षट्त्रिशत्तमो5घिकारः समाप्त: ॥३६॥ 


>> 2०८: 


[ ३७. देवनिवारणा5शक्यताधिकारः ] 
पूव॑ सम्पद्विपद्धवनं देवविलूसितमित्यभिहितम्‌ | एतच्च पुरुषकारपरेरपि निवारयितुं न शक्यते। अतो तदमिधातुकाम आह-- 
पुरिसकारपरेहिं वि विहिपरिणमों खलिञ्जए नेय । 
दियसुय-कुकुकुड-जायव-मित्ताणंदा य दिद्ुंता ॥४६॥ 
व्यास्या--पुरुषकारपरेरपि' उद्यमवद्धिरपि 'विधिपरिणाम”” देवविलसितं 'स्खल्यते” निवायेते 'नेय' त्ति नव | दृष्टान्ता- 
नाह--द्विजसुतश्च--वराहमिहिरत्राह्मणपुत्र: कुक्कुटश्च-पक्षिविशेष: यादवाश्व-द्वारकावतीलोकाः मित्रानन्दश्च-पश्रेष्ठिसुतः ते 
तथोक्ता: 'दृष्टान्ता:' उदाहरणनीति गाथाक्षरा्थ: ॥ भावाथस्त्वास्यानकगम्यः | तानि चामूनि । 
तन्नापि तावत्‌ क्रमप्राप्त द्विजसुताल्यानकमाल्यायते । तच्चेदम -- 
अत्थि समत्थसमीहियसंपाडणसंपर्य थिमियवासं । निम्मलजसगु णभवणं पाडलिपुत्तं पवरनयरं ॥१॥ 
तत्थउत्थि दरियरिउकरडिकेसरी पणयसयल्सामंतो पुव्वपुहईूसपालियपयपालणपश्चलो राया ॥२॥ 
नामेणं जियसत्त जियरंभाविष्भमा महादेवी | नियरायपट्टपयवीपइट्टिय। धारिणी नाम ॥३॥ 


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३७, दैवनियारणा5शक्यताधिकारे द्िजसुताख्यानकम्‌ रे०५ 


नियमइहविभवविणिज्जियसुरमंती सुमहनामओ मंती । रज्नो सयले कज्जे रज्जघुराधरणधोरेयो ॥४॥ 

अवरो वि अत्थि रन्नो पुरोहिओ रायसम्मओ सययं । छक्कम्मरभो चउदसबविज्वाठाणाण पारगओ ॥५॥ 

नामेण विन्हुमित्तो सोमा नामेण भारिया तस्स | माहणकुलूसंभुया पह्वया पयइसोमा य ॥६॥ 

तत्तो य नियकुलागयसकम्मकरणुज्वयाण नीईए । कालक्कमेण जाया ताणं दो चेव सुयरयणा ॥७॥ 

उब्बूढवेयवसुहाभारो अन्नाणतिमिरनिदरूणो । पढमो पत्तपइट्टी वराहमिहिरों जहत्थडक्खो ॥<॥ 

बीओ य सयलकल्लाणका रगत्तेण भव्वकोयस्स । पुरपरिधदीहबाहु त्ति भदबाह समक्खाओ ॥९॥ 

दोन्ि वि लक्खणकुसला दोज्ि वि साहित्तजलहिपारगया । दोजन्ि वि पमाणपड़या दोजन्नि वि परिमुणियगणियमया ॥१०॥ 
अन्नेसु वि बंभन्नयसत्थेसु विणिच्छि यत्थपरमत्था । जाया चउण्ह वेयाण पारया धारया यावि ॥११॥ 

अह रमणीमणमोहणमूयं तारुन्नयं च जा पत्ता | लोइय-वेइय-समइय-ववहारवियक्खणा जाया |॥|१२॥ 


तो कालसमयविउणा पिठणा काराविओ करू्गहणं । जेट्टो विसिद्दनक्खत्ततिहिमुहुत्ते विमुईए ॥१३॥ 

नामेणं सावित्ती जाया जाया वराहमिहिरस्स । बंभस्स व वेयविसारयस्स चउराणणस्स सई ॥१४॥ 

भाया वि तस्स सारीर-माणसाणेयदुक्खसंतत्त | कलिऊण जीवलोय॑ परमाणंद च मुत्तिसुहं ॥१५॥ 

मुणिय तहाविहथेराणमंतिए जायगरुयसंवेगी । पव्वहओ परिचइऊण गेहवासं विवेयवसा ॥१६॥ 
अब्भसियदुविहसिक्खो विज्ञायजहुत्तसमयपरमत्थो । चउदसपुन्वी जाओ कवितिलओ कित्तिकुलभवर्ण ॥१७॥ 
पंचमहव्वयधुरधरणपश्चली सगुरुपत्तसूरिकओ । विहरइ पुहविं छत्तोससूरिगुणसंपयासहिओ ॥१८॥ 

नवरं वराहमिहिरो तस्सुवर्रिं गर॒ुयमच्छरं वहइ । मिच्छत्तमोहियमई धम्मम्मि अनायपरमत्थो ॥१<॥ 

भणइ य पालणयाओ कि न बिरालीए भक्खिओ सब्रखं | पाव ! जमेवं ववसंतएण लज्जाविया लोए ॥२०॥ 
नामाह घडाईणं निरत्थयत्तं पओयणाभावा । मन्नह भावधडड चिय विसिद्ठकज्जप्पसाहणओ ॥२१॥ 

सो उण सूरी समसिरिसमस्सिओ थिमियनीरनाहनिभो । अहह ! महंतं पुरिसाणमंतरं दीसइ जयम्मि ॥२२॥ 
अह उवरयम्मि जणए वराहमिहिरो पुरोहियपयम्मि । महद्दएु विभूईए पहइट्टिओ रायपमुहेहिं ॥२३॥ 
तप्पभिइ पूयणिज्जो संजाओ पउरमज्म्यारम्मि । पाय॑ पाहाणो वि हु पइट्ठिओ लहइ माहप्पं ॥२०॥ 

विन्नाणे नाणम्मि य कलाकलावे य गणियमग्गम्मि । सव्वत्थ वि पत्तट्टो विसिसओ जोइसत्थम्मि ॥२५॥ 

किंतु कुल-जाइमयओ दढमभिमाणी परं पराभवह । अथिरसहावों अहवा अकलंकगुणा जए विरला ॥२६॥ 
नियवंसजाओ अवरेण कह वि जिप्पामि जइ सविज्ञाए । ता साहेमि पहन्नारूढो दुसहं चियाजलणं ॥२७॥ 
एवमसन्नयसुयनाणजणियगुरुगव्वपव्वयारूढे। । उद्धरखंधो नयरे वराहमिहिरों परिब्भभइ ॥२८॥ 

अह अन्नया कयाई सावित्तीगव्भसंभवो पुत्तो । सब्वंगलकखणधरो संजाओ सुहमुह॒त्तम्मि ॥२९॥ 

वद्धाविओ य दासीए रायअत्थाणसंठिओ विप्पो । नवरं हरिसट्ठाणे वि सामवयणो दिओ जाओ ॥३०॥ 
जम्हा तं॑ चिय रूग्गं विणिच्छियं न उण आगमणकालो | परिगणिओ दासीए सुयजम्मुप्पत्तिससिएणं ॥३१॥ 
निवपुच्छिणण भणियं देव ! इमो एरिसम्मि लग्गम्मि | संजाओ मज्झ सुओ जह वड्ंतो अलक्खणओ ॥३२॥ 
देवरस य रज्जस्स य रद्वस्स य जाव नियकुलस्सावि । जायइ विणासहेऊ क्रग्गहदिद्विवायाओं ॥३३॥ 

रज्ना भणियं अह हो ! असंगयं कहसु अत्थि जह को वि। दोण्ह वि य खेमकरणत्तणेण परिरक्खणोवाओ ॥३४॥ 
सो आह बिल्नि रज्जंतराइं जद जाइ लंघिऊण महि ! ता दुरियभरो एयस्स चेव निवडइ न संदेहो ॥३५॥ 
राया5डह निग्धिणमिम॑ भणइ दिओ नीइमणुसरंतेहि । कायव्वमवस्समिमं ति जंपिउं निग्गओ विप्पो ॥३६॥ 
पच्चइहयपुरिस-सुहधाइमाइयं पठणिऊण सामग्गि । तद्दिणजाओ पुत्तो पिउणा निस्सारिओ सिम्धं ॥३७॥ 
भणिओ सो परिवारों सोलसवासाणमेस पज्जंते | मरिही ता तुब्मेहिं वलियव्वं कि वियप्पेणं ? ॥३८॥ 
अवगणिय सुयसिणेहं अवगणिय जणं पि निग्धिणं कम्मं । पृत्तस्स पिया ववसइ अहो ! सकज्जल्स गरुयत्तं ॥३९॥ 


२०६ 


जओ-- 


आख्यानकमणिकोशे 


कहय वि दिणाणि परिदेविकण ववहरह निव्वुओ जणओ । राया जणो वि अहवा दंसणसाराइं पेम्माइ ॥४०॥ 
सो वि हु परिवारजुओ दक्खिणदेसं गओ गरुयपुन्नो | दीसंतो सुहजणओ पच्चक्खो पुन्नरासि व्व ॥४१॥ 

जाओ य अट्ठवरिसो लेहायरियस्स पायमूलम्मि | विणयजुओ पयईए पयत्तओ पढिउमाढत्तो ॥४२॥ 
चउदसविज्ञाठाणा चउरो वेया सहंग-निग्घंटा । अश्रेण तेण नाया विसेसओ जोइस-निमित्तं ॥४३॥ 
लायन्न-रूव-जोव्वण-विज्ञा-विज्ञाणपत्तमाह प्पो । पत्तपहाकरनामी गओं समिद्धि पसिद्धि च ॥४४॥ 
परदेस-निययदेसाण बन्नणं वढ ! कुणंति काउरिसा । परदेसो वि सदेसो सत्ताहिय-पुन्नवंताणं ॥०५॥ 

अह कइया वि हु जोइसबलेण नियजायगम्मि विन्नाए। विम्हहओ निययमणे अहो | हु तायस्स अथिरत्त ॥४६॥ 
ज॑ सुहल्म्गं पि असोहणं ति कलिऊण चावलबलेणं । अन्नाणवसेण कहं विदेसभागी अहं विहिओ ? ॥०७॥ 
अहवा महोवयारी मह ताओ देसदंसणे जम्हा । गुणपयरिसो महंती संजाओ जेण भणियं च ॥४५८॥ 

क विलासा: ? क्‍व पाण्डित्यं ? क्‍्व बुद्धि: ? क्‍य॑ विदग्धता १ । कक्‍्व देशभाषाविज्ञानं ? क्‍्य देशाचारचारुता ॥४९॥ 
यावदूधृतसमाकीणों नानावृत्तान्तसक्लुला । नानेकशः परिशआन्ता पुरुषेण वसुन्धरा ॥५०॥ 

एवं कए वि गुरुणो कुलप्पसूयाण गोरबद्भाणं | ता कइया वि हु तेसिं संतोसमहं करिस्सामि ॥५१॥ 
एत्थंतरम्मि पच्छिमवयम्मि विप्पस्स वद्वमाणस्स । पाडलिपुत्ते पुत्तो पुणरवि अबरो समुप्पण्णो ॥५२॥ 
रायाएसेण तओ मणयं पिउणा पहिद्वचित्तेण | महईए विभूददए वद्धावणयं समाढत्त ॥५३॥ 

रायाई पउरजणो पायं पत्तो पुरोहियगिहम्मि | अक्खयपत्तविहत्थो सुयजम्ममहसवे सब्बो ॥५४॥ 

तत्येव विहरमाणा समागया भद्दबाहुणो गुरुणो । नवरं निस्संगत्ता विप्पस्स गिहं न ते पत्ता ॥५५॥ 

मच्छ रवसेण पुणरवि तमेव खूणं मणम्मि धरिऊरणणं । लोग-ववहारबज्झ त्ति निंदई लोयमज्ञम्मि ॥५६॥ 

सूरी सुओवओगं काउं तहिय॑ तहाकए कमवि | पासिय गुणं महंतं जाणावइ सत्तमदिणम्मि ॥५७॥ 

एकाए वाराए पडिबोहत्थं समागमिस्सामो | सोम ! जमम्हे सज्ञायवावडा निशच्वमक्खणिया ॥५८॥ 

तम्मि दिणे उण सुयमरणसंभवे तुज्क सोयतत्तस्स । धम्मोवएसनीरेण निव्वुईं भद्द ! काहामो ॥५९॥ 

त॑ वयर्ण सोऊ्ण घयसित्तो पावओ व्व पञ्जलिओ । पडिहयममंगरूमिमं तुह चेव य मत्थए पडउ ॥६०॥ 

जहइ पुण जाणसि सेवडय ! कि पि ता मरणकारणं कहसु । मज्जारीए पासाओ भद्द ! मरणं तुह सुयस्स ॥६१॥ 
एसो मिच्छावाइ त्ति होउ निच्छिड्ठ -निबिडकट्ठेहिं । घडिए कट्ठहरम्मि खित्तो पुत्तो सनणणीओ ॥६२॥ 
दारम्मि निबिडलउडयहत्था दो दो पयंडपाहरिया । धाराविया बिरालीरक्खणनिउणेण विप्पेण ॥६३॥ 

तो जाव सत्तमदिणे परिचारीए पमायवसगाए । मुक्का भुयग्गला अवणिऊण सेज्ञासमीवम्मि ॥६४॥ 
जणणीउच्छंगगयस्स तत्थ थिमियं थर्ण पियंतस्स | पडिया मम्मपएसे सुयस्स भवियव्वयावसओ ॥६५॥ 
मम्मप्पहारविवसो पत्तो सो तक्खणेण पंचत्तं | नाऊण निरुच्छासं धस त्ति धरणिं गया जणणी ॥६६॥ 

मुट्ठा मुद्द त्ति हया हय त्ति धाहावियं सदुक्खाए। कि कि एयं ? त्ति पयंपिरेण रुनत्नं दिएण चिरं ॥६७॥ 

हा हा हयविहि ! पच्छिमवयम्मि दाऊण पृत्तरयणनिहि । पुन्नरहियस्स निददय ! नित्तुद्धारो कओ मज्झ ॥६८॥ 
रायाई पठरजणो जाओ सुयसंभवम्मि जह सुहिओ । तह तम्मरणम्मि दुही घिरत्थु संसारियसुहस्स ॥६९॥ 
कि बहुणा मोहनराहिवस्स आणाए सोयच रडेण । जह कट्दिउ' पि न तीर्‌इ तह तत्थ वियंभियं बहुहा ॥७०॥ 
गुरुणो वि तत्थ सिरिभद्बाहुणो मुणियसमयसारत्था । संपत्ता रायाईहिं पूहया सुहनिसन्ना य ॥७१॥ 
संभासिओं य भो भद्द | भवसरूवं वियाणमाणो वि। खणमभंगुरम्मि लोए कीस मुहा सोयसि सुय॑ त॑ ? ॥७२॥ 


होहिंति केइ विहडंति केइ कालेण केइ वोलीणा । हे हियय ! केत्तियाणं सबणाण कए विसूरिहर्सि ? ॥७३॥ 





१. पहुणो रं० । 


३७, दैवनिवारणाउशवक्यताधिकारे द्िजसुताल्यानकम ३०७ 


अबरं च-- 
पिह-माइ-पमुहसयणत्तणेण जीवा अणंतवाराओ । सब्वे विय संजाया जीवस्स उ एगमेगस्स ॥७9॥ 
हय भयवद्वयणेहिं सवणामयरसपवाहम हुरेहिं । भवियायणदइएहिं सोयसमुच्छेयछेएहिं |७५॥ 
आसंघयवसएणं सहोयरेणं दढं समणुसट्ठे । सो तारिसो वि दुट्ठों धम्माभिमुहो दिओ जाओ ॥७६॥ 

भणिय॑ च--- 
आगमलंभे वयपरिणदए भंगे य धण-विलासाणं । दैसिअसमंजसाण वि हिययाइं वहंति परिणाम ॥७७॥ 
भणियं च तेण भयवं ! तुह वयणं मरणनिच्छयकरं जं | त॑ परिभाविज्ज॑तं सच्चमसश्च॑ च पडिहाइ ॥७८॥ 
गुरुणा भणियं कहमिव ? तेणुत्तं सत्तमम्मि दिवसम्मि । जाय॑ सुयसस्‍्स मरणं न उण बिरालीसयासाओं ॥७९॥ 
जद एवं तो कत्तो ? सो आह भुयग्गलापहाराओ । सा केरिस ? त्ति गहिऊण जोइयं जाव तीए मुहं ॥८०॥ 
ताव वणापडिबिंबं दिट्ठं निक्कुट्टियं बिरालीए । दंसिज्जइ जस्स तओ जंपइ एसा बिरालि त्ति ॥८१॥ 
मिच्छत्तावगमाओ तप्पभिई जिणमयप्पसिद्धाणं । नामाईवत्थूणं विष्पमण पच्चओ जाओ ॥८२॥ 
तयणु मणागमसोओ जाओ एसो गुरूवएसाओ । दुण्ह वि सुयाण मरणं हिययम्मि खुड़कए नवरं ॥८३॥ 
एव्यंतरम्मि देसंतराओ सो पुव्ववत्रिओ पुत्तो । महईैए विभूदेण समागओ बाहिरुज्ञाणे ॥८४॥ 
जाणावियं च नयरे जहित्थ जोइस-निमित्तसत्थविऊ | अवितहवयणो चिट्ठइ राया तहय॑ पयंसेह ॥८५॥ 
पयईए सोममुत्ती उज्बलनेवच्छभूसियसरीरों । पडिपुन्नसयलविन्नाणभावओ थिमियजलहि व्व ॥८६॥ 
पत्तो रायदुवारे पडिहारनिवेइओ अणुन्नाओ । रज्ञो सहं पविट्टो कयपडिवत्ती समुवविट्टों |८७॥ 
रज्ना पुट्ठं कि भद्द ! अज्ज नियमेण दिवसमज्कम्मि | होही ? तेण वि भणियं मज्मन्हे बाहिरुजआाणे ॥८८॥ 
पडिही मच्छो पणयालपलपमाणो विणिच्छिओ एस | अवलोइय॑ च तत्तो रन्ना वि वराहमिहिरमुहं ॥८९॥ 
जंपियमिमिणा पडिही नवरं पन्नासपलपमाणों सो | जह एयमन्नहा तो निययपइन्ना मह पमाणं ॥९०॥ 
कोउयवसेण नयराओ निग्गओ नरवई सपरिवारों | नंदणवणाभिहाणे संपत्तो बाहिरुज्ञाणे ॥९१॥ 
मंडलमालिहिय तओ विप्पो सिंहासणे समासीणों | इयरेणं भणियमिमों मंडलयाओ बहिं पडिही ॥९२॥ 
उत्ताणतरलनयणो जाब निरायं नियद नयरलोओ । ताव सुयभणियठाणे झडत्ति पडिओ नहाओ भझसो ॥९३॥ 
तत्तो वारंतस्स वि नरनाहसमतन्नियस्स पउरस्स । अट्टवसद्टों भट्टो झत्ति पयट्टो चियाभिमुहं ॥<४७॥ 
किंकायव्वविमूढं वियापवेसुज्जमं निसेहंत | मरणम्मि निच्छियमदे पत्थिवमिणमी भणइ भट्टो ॥<९५॥ 
सुयसोयग्गिपलित्तं विहलूपइन्न॑ं परेण परिमूयं । निव्ववउ देव ! दहणो जरजज्जरियं मह सरीरं ॥<२६॥ 
एत्थंतरम्मि हा ताय | ताय ! मा साहसं ति भणमाणो । मन्नुभरागयनयणंसुवारिसंसित्तथधरणियलो ॥९७॥ 
एसो हं तुह सन्‍्तावकारओ ताय |! सरसु पढमसुओ । नियतायपायपंकेरुहेसु पडिउं तह परुन्नो ॥९८॥ 
कि कि किमेयमेयं ? ति जंपिरो मन्‍्नुपसरखलियसरों । जह नयरजणो हाहारवेण रोयाविओ सब्बो ॥९६॥ 
ताय ! नहमच्छपडणं सामन्‍्नेणं वियाणियं तुमए | नवरं न वाउधुणणं तस्सोसणयं चडणाभोगा ॥१००॥ 
अन्नं च मए तुह निज्जियस्स किल केवल चिय सलाहा । भुवणंतरम्मि वुच्चह पयडमिमं सत्थयारेहिं ॥१०१॥ 
चाएण दरिदत्त घाएहि य काण-कुंट-मंटत्तं । पुत्तेहि परिभवं जे गुणेहिं पावंति ते धन्‍ना ॥१०२॥ 
पश्चुज्जीवियगुणवंतपुत्तलाभम्मि ज॑ सुहं जायं । हारवियरयणलाभि व्व तीरए तं न कहिउं जे ॥१०३॥ 

उक्त च-- 
चिरविरहियपियजणसंगमम्मि जायइ जणस्स जं सोक्खं । त॑ कहिउं पि न तीरइ संकासं निरुवमसुहस्स ॥१०४॥ 
पडुपडह-संख-काहलरवेण रज्ना गइंदमारूढो । तग्गुणवंदणसुहयं पवेसिओं जणयभवणम्मि |१०५॥ 
एत्थ य लहुपुत्तो चिय दिट्वंतो पत्थुयत्थविसयम्मि । जेट्डसुयचरियकहणं पसंगओ चेव नायबव्बं ॥१०६॥ 


इ्०्ष 


आखश्यानकमणिकोशे 
पवणखु हियनीरं नीरनाहं धरंति, करियमयपवाहं वारणं वारयंति । 
खरनखरकरालं केसरिं दारयंति, न उण बलजुया वी दिव्वमेतं जयंति ॥१०७॥ 
॥ ड्िजसुतकथानकं॑ समाप्तम ॥१०८॥ 


इतदानीं कुफ्कुटाल्यानकमारभ्यते । तच्चेद्म--- 


उकत॑ च--- 


अप्ति शालीनसल्लोकलोचनानन्द्दायकः । गोघधूम-यव-शाल्यादिसस्यशालीनसज्जनः ॥१॥ 

पुष्टगोवृ न्द्सम्मदशब्दितश्रुतिसौख्यक्ृत्‌ । गोप-गोपीसमारब्धरासकश्रतिसुन्दर: ॥२॥ 
दुर्भिक्ष-मारि-दोगत्य-परोपद्रववर्जित: | शालिग्रामाभिध: श्रीमान्‌ सत्रिविशो जनाकुरूः ॥३॥ 

तत्राने कगुणाधाररुत्तमा-5धम-मध्यमे: । मानवैर्निर्मितावासैः सवेदा सुस्थिते सति ॥४॥ 
विजातीयविशेषस्य सम्बन्धी कस्यचिद्‌ वरः । विद्यते व्यक्तावयवों विहक्नः कुक्‍्कुटाहयः ॥५॥ 
बहपत्य-सपत्नीक-स्वबन्धुस्नेहसज्ञत: । भक्ष्या्थ विकिरन्नुच्चेश्चज्चू-चरणकोटिमिः ॥६॥ 

गोमयावकरं हषोदशुक््यादिसमन्वितम्‌ | विरूपं यदि वा कि नो कुयात्‌ प्राणी बुभुक्षितः ? ॥७॥ 
तस्मिन्‌ यज्ञलभते किश्वचित्‌ कण-कीटादिक तकत्‌ | यच्छत्यतुच्छधी: प्रयः स्वबन्धुभ्यो महाशयः ॥८॥ 


शीर्ष शेखरकः कुक्कुटस्य युक्तः क्ृतः प्रजापतिना । निजबन्धुवण्टनोद्वरितमश्नतः सत्यसन्धस्य ॥९॥ 
एवं निवृतचित्तस्य कुट्ुम्बक्ृतसब्रिधेः । पुण्यक्षयेण यत्‌ तस्य सज्ञातं तन्निशम्यताम्‌ ॥१०॥ 

महीयान्‌ महिषारूढो दण्डपाणिः परन्तपः । कालकाय: क्रियाक्ररों र्तनेत्रोडइतिभीषणः ॥११॥ 
स्वच्छन्दः सवंबेरी च जगदुद्वेजको यमः । आम्यन्‌ कुतोडपि पापीयांस्तं॑ प्रदेशमुपाययौ ॥१२॥ 
यत्रा55स्ते स सुखी पक्षी बन्धुबगंसमन्वितः | दुष्ट्रेन पाप्मना तेन क्ररदृष्टयाउवलोकितः ॥१३॥ 
ततो हा ! मन्दभाग्यो5हं मृतो5हमधुना5मुना । निद्धयोतः ऋरचित्तेन कथं जीवाम्यपुण्यकः ? ॥१४॥ 
क प्रयामि ? क्क तिष्ठामि ? क शयामि ? स्मरामि कम्‌ ?। अरत्या स्वीकृतः स्वास्थ्य ना55ससाद कथश्चन ॥१५॥ 
एवं सम्ञआ्रान्तचित्तस्थ सम्यक्‌ चिन्तयतश्विरं । भयोद्विग्नमनोवृत्ते: कथश्विच्रतसि स्थितम ॥१६॥ 
विधुरे: स्मयते बन्धुरस्माक॑ विहगोत्तम: । वेनतेयो वरो बन्धुरतो यामि तदन्तिकम्‌ ॥१७॥ 
अफल्स्यापि वृक्षस्य छाया भवति शीतला । निगुंणोडपि वरं बन्धुयं: पर: पर एवं सः ॥१८॥ 
सश्चिन्त्येव॑ स्मरन्‌ भतुखाणार्थ सृत्युसम्भमात्‌ । जगाम जगतो वर्य वेगाद्‌ बैडोजर्स सदः ॥१९॥ 


तन्च कोदशम्‌ (--- 


क्वचिन्नीलमहानीलभास्वरे कुट्टिमे सुरः । त्रज॑स्तिष्ठनू जलाशड़डी सहासं विप्रतायंते ॥२०॥ 
दृष्ठा स्फाटिकनिष्पक्मित्ति सडक़ान्तमेकतः । स्वमन्यस्रीकृताशझ्ला भरत्री कान्तोपहस्यते ॥२१॥ 


ह अतीतप्राप्तनिवाणजिनदंष्ट्रासमन्वितम्‌ | देवेमोणवकस्तम्भं पृज्यमान व्यलोकयत्‌ ॥२२॥ 


किच्च-- 


क्वचिश्चाभिनवोतन्न॑ सुरं स्वीये: सुरादिभिः | जीव नन्द जयेत्येवं इलाध्यमानं निरीक्षते ॥२३॥ 
अनादिनिधनं सिद्धप्रतिमाष्टोत्तरं शतम्‌ । सिद्धायतनमध्यस्थं स्तृयमानं समीक्षते ॥२४॥ 

क्वचित्‌ पृष्प-फलोपेतैमन्दारादिमहीरुहै: । मनोहरं वनं हृष्टो निशामयति नन्‍्दनम्‌ ॥२५॥ 
क्वचित्‌ सद्रलसोपानां स्वच्छपानीयपूरिताम्‌ । मज्जनाथ महावापी विहलोडपि विलोकते ॥२६॥ 
अहो ! आपदियं सम्पदू व्यसनं च महोत्सव: । यन्मयेतच्छुमं दृष्टं सौरं धामेत्यचिन्तयत्‌ ॥२७॥ 


रतलरोचिष्णुसन्मौलिआजिप्णुं सिंहविष्टरम्‌ । अलह्रिष्णुं सौराज्याज्बिष्णुं सर्वे जगलयम ॥२८॥ 


१. निरीक्षते । २. सुराणां सम्बन्धि धाम--निवासः, स्वर्ग इत्यथः । 


३७, दैवनिवारणा.5शव्यताधिकारे कुफ्कुटाख्यानकम्‌ ३०९ 


प्रशस्तकामिनीहस्तधयमानप्रकीर्णकम्‌ । अनिन्धबन्दिसद्बुन्दगीयमानगुणोत्करम्‌ ॥२९॥ 
अखबंगवंगीर्वाणभटकीटिसमन्वितम्‌ । पारद्धथ भाग्यसीभाग्यमहद्धिद्युतिविक्रमम्‌ ॥३०॥ 
वि रले रपि विख्यातैनवमेदेः समाभ्रितैः । शक्र सत्यापयामास त्रिदशैरुपसेवितम ॥३१॥ 
तथा हि-- 
माता-पितृवत्‌ सम्मान्या गौरव्या गुरुवद्‌ गुणे: । इन्द्रसामानिका देवा: स्वःपर्ति प्युपासते ॥३२॥ 
त्रायख्रिशाखयसिंशत्रममाणा मन्त्रिवन्मता: । शान्तिकमंणि साधिष्टा महिष्ठाश्व महन्ति तम्‌ ॥३३॥ 
नमकमणि विद्वांस: प्रवीणा: प्रेममाजनम्‌ । मित्रकल्पा: कलाभिज्ञा: पारिषया: स्तुवन्ति तम्‌ ॥३४॥ 
सन्नद्धबद्धवमोण: समुद्गीणस्वहेतयः । आत्मरक्षा: क्षमासारा नमन्ति युसदां पतिम्‌ ॥३४॥ 
आरक्षिकभटआाया: सन्धि-विग्रहकारिण: । नमन्ति नम्रमूधोनो छोकपाला बलद्विषम ॥३६॥ 
सप्तप्रकारसेन्यस्य नायका नयशालिनः । विक्षेपप्रभवो5नीका नमस्कुवेन्ति वासवम्‌ ॥३७॥ 
प्रकीणकवणिक्प्रस्या अनायत्ता प्रभोरपि । सेवाये स्वर्गनाथस्य प्रयतन्ते प्रकीणेका: ॥३८॥ 
लोककमकरप्राया: सदा55देशविधायिन: । आभियोग्याः प्रभोर्भोग्या भजन्ते तम्रभुप्रभुम ॥३९॥ 
कुकमकरणव्यग्रा: कुकमंफलभोजिन: । नमस्कुवेन्ति दृरस्था: शक्र' किल्विषिका: सुराः ॥२०॥ 
तस्यैवं कौतुकाक्षिप्तचेतस: स्मृतिमागतम्‌ । यमावलोकितं ताहक्‌ ततोडसौ भयविहलः ॥४१॥ 
गौरव्यं देवराजस्य स्फूजेत्माज्यपराक्रमम्‌ । पक्षिराजं जिताराति स्वत्राणाथमशिश्रियत्‌ ॥४२॥ 
प्रणम्य वैनतेयाय ब्रते भ्रीतिपुरस्सरम्‌ । ताताहं भवृतो5पत्यं मृत्योखस्तः समाश्रितः ॥४३॥ 
अद्याहं सुस्थितो यावत्‌ तिष्ठामि सकुद्ुम्बकः । तावदुविलोकितोडनेन कुतश्चित्‌ क्रकमंणा ॥३९॥ 
आपनने: स्मयते त्राता त्वं मे त्राता पिता प्रभुः | पाहि माममुतः पापाद बिभ्यन्तं भीमकरमंणः ॥४५॥ 
इत्युक्वा विरते तस्मिन्‌ समचिन्ति गरुत्मता | यमेन विहितोडस्माकं पश्य कीहक पराभवः १ ॥9०६॥ 
मा भैषीः पुत्रकेत्येवं तमाश्वास्य विहद्मम्‌ | तेनैव सह सम्भ्रान्तः शक्रान्तिकमगादसो ॥४७॥ 
दशयित्वा तक॑ तस्मे सानुक्रोशतया पुरः । वज़िणे विहगाधीशो मनागू रुष्टो व्यजिज्ञपत्‌ ॥४८॥ 
स्वामिन्‌ ! निरागसं सौम्यं मत्सेवकमपापकम्‌ । पराभवति ते पत्तिरस्माक प्रियपुत्रकम [|४९॥ 
किमस्य युज्यते कतुं दुबेले बलशालिन:ः । उपेक्षणं यदेतस्य भवतों वा विवेकिनः ? ॥५०॥ 
स्वच्छन्दं सच्चरत्येष कुरज्लेष्विव केशरी । आम्यत्यनगंलो भज्जञन्‌ द्रुमेष्विव प्रभ्ननः ॥५१॥ 
तदयं निदयो आम्यलनायों वायेतां यमः । नो चेच्चञ्च्वाउहमेतस्य त्रोटयिष्यामि मस्तकम ॥५२॥ 
स्थिरत्वादमभ्यधादिन्द्रो भद्रेवं मा वृथा रुष: | दुर्जयोडयं जगन्मज्नो यमश्वारभटों मटः ॥५३॥ 
न चेनमीद्शैवोक्ये: कश्चिच्छिक्षयितु क्षम: । शिक्षयिष्येडहमेवातः साम-दण्डप्रयोगतः ॥५४॥ 
आकाये भणितः साम्ना मुश्चा5मुं तुच्छपक्षिणन्‌ । न कषत्यंसभित्ति स्वामल्पत्कन्धे द्रमे गजः ॥५५॥ 
सामतो भणितोडप्येवं तुच्छः सावज्ञमीक्षते । सपिः प्रदीयते तप्तं सिक्‍त॑ शीताम्भसाउथवा ॥५६॥ 
आः पापीयंस्तवानेनापराद्धं कि तपस्विना १ । निश्रिश ! यज्नयस्येनं पक्षिणं क्षीणविग्रहम्‌ |॥|५७॥ 
साक॑ स्वाभिनिवेशेन मुच्यतां मा वधीरमुम्‌ | हठेनापि भवत्पाश्बोद रक्षणीयो मया यतः ॥५८॥ 
भद्वेवं क्रियतां मत्तो भद्रं नापरथा तब । तावच॑क्रीवतः कर्णो यावद्‌ भोः ! स्वामिनों मतो ॥५९॥ 
अभिप्रायममुं ज्ञात्वा नायकस्य दिवौकसाम्‌। याथातथ्याद्‌ यमो वाक्य व्याजहार जगज्जयम |॥|६०॥ 
आराध्यस्त्वं मम स्वामी तवाहं पत्तिस्‍्न्वहम्‌ | त्वया साथ मम स्पर्धा कीहशीति विभाव्यताम ॥६१॥ 


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१, चामरम्‌। २. विरत्नानि--दिव्यस्तानि। तानि चेमानि--“रत्नं गारुत्मतं पुष्परागो माणिक्यमेव च। इन्द्रनीलश्व गोमेदः तथा 
बैद्वयमेव च ॥१॥ मौक्तिकं विद्युमश्चेति रत्नान्युक्तानि वै नव ।? ३, ग्दभस्य । 


३१० 


तथा हि-- 


आद्यानकमणिकोशे 


परमादित्सितं वस्तु यन्मया भुवनन्रये । त॑ न त्रातुमरूं कोडपि कि नाश्राबि खुभाषितम्‌ १ ॥६२॥ 

न ब्रह्मा नेन्दुमोलि:ः शशधर-तपनी नापि नारायणो5सौ, नाप्यष्टी लोकपाला: सह सुरपतिना नापि बुद्धो न चाहन्‌ । 
आक्ृप्टं कालपाशेज़ेनमनुदिवस नीयमान बराक, व्याप्राप्नातं वनान्‍्तात्‌ पशुमिव विवश त्रातुमेते न शक्ता: ॥६३॥ 
क्रोडीकृतो मयाउप्येष आयुष: सडक्षये सति । निःसन्देहं ततो मत्तो मत्तेज्यममुना&घुना ॥६४॥ 

एतच्छ (त्वा विशेषेण कम्पमानं पुरःस्थितम्‌ । दृष्ठा त्रातुमशक्तस्तं शक्रोडभूद्‌ विहलः क्षणम्‌ ॥६५॥ 


विज्ञापनाप्रवृत्त तं गरुडं स्निग्धया दशा । पश्यन्तं जातसंशीत्या विवक्षन्तं च वासवम्‌ ॥६६॥ 

सुरान्‌ सामानिकादी श्व॒ त्राणाथ दीनया मुहुः । तजंयन्तं मुहुखस्ततारया यममेकया ॥|६७॥ 

क्रियाहीन॑ क्ृपापात्रं कृृतान्तवशवर्तिनम्‌ । सतां शोच्यं सुदीनास्य॑ दुस्थितं गद्ददस्वरम ॥६८॥ 

तदवस्थं समालोक्य दयेकरसिकः सुरः । शक्रसंसदि नास्व्येव यो नाभूत्‌ साश्रुलोचनः ॥६९॥ 

दुःखितेषु सुरेप्वेवं परमेको यमः सुखी । दुःखापल्नेइथवा साधावसाधुः सुखमश्नुते ॥७०॥ 

हा हा ! धिग ! धिग ! वराकोडयमस्मा्क शरणागतः । न त्रातुं शकितोडस्माभिमेहानेष पराभवः ||७१॥ 
विषण्णमानसा एवं गीबोणा यावदासते । विवेकात्‌ सत्त्वमालम्ब्य तावदक्तं बिडौजसा ॥७२॥ 

अहो देवा: ! पराभूय वक्रवाक्यममुं यमम्‌ । जीवितव्यं प्रयच्छाम: कथश्वित्‌ करकवाकवे ॥७३॥ 

अयं हि स्वीकृतो3नेन दौबंल्ये पुण्यकरमण: | तन्च साध्यमसाध्यं वा द्वेधा कम विनिश्वचितम ॥७४॥ 
साध्यं सोपक्रमं प्रोक्तमसाध्यं निरुपक्रमम्‌ | यत्नसाध्ये तदेतस्मिन्‌ पौरुषं युज्यते सताम ॥७५॥ 

एतच्छ त्वा सुराः प्राहुयु क्तियुक्तं बचः प्रभोः ! । विधास्यामस्तदेतस्मिन्‌ वयमद्यापि पौरुषम्‌ ॥७६॥ 
एतावतां किमस्माक॑ करिष्यत्येष दुष्टधी: १ । साध्ये सिद्धिन चेदित्थं को5पराधों विवेक्रेनाम ? ॥७७॥ 
सम्यक्‌ सक्लोपयिष्यामः कथश्चित्‌ तत्र कुत्रचित्‌ । गुप्तस्थाने यथा<मुष्य न जानाति पिताडप्यमुम ॥७८॥ 
उक्त्वेवं त॑ करे कृत्वा चेलुः स्वगोचलं प्रति | विलम्बेन विना प्रापुमेरो: श्रृद्ध मनोहरम ॥७<॥ 
गुहामध्येडथ चूडायाः सम्यक संस्थाप्य कुक्कुटम । निविरीसं शिला दत्ता द्वारे तस्य महीयसी ॥८०॥ 
इत्थं यलवतां प्रायः संसिद्धं नः समीहितम्‌ | सन्तुष्टमानसा एवं सुरा: स्वगोलयं ययुः ॥८१॥ 

सो5पि तस्मिन्‌ गुहामध्ये प्रक्षिप्तो भक्षितः क्षणात्‌ । आरण्यकबिडालेन बुभुक्षाक्षामकुक्षिणा ॥८२॥ 
सुप्रसन्नमुखा लेखा: साधितस्वप्रयोजना: । यथावृत्तं स्ववृत्तान्तं स्वनीथाय न्यवेद्यन्‌ ॥८३॥ 

सावज्ञं साभ्यसूयं च सुरांस्तान्‌ वीक्षते यमः । किमेते बत खिद्यन्ते निष्फलारम्भचेष्टिता: ? ॥८०७॥ 
किमेतत्‌ ? केनचित्‌ प्रष्टे तस्मे सब न्‍्यवेदयत्‌ । तदेवासौ गुहामध्ये मुक्त: प्राप्त: परासुताम्‌ ॥८५॥ 
परस्पर सुरेज्ञातं य।वच्छक्रेण तच्छू तम्‌ | ततो भूयो<पि ते देवा निश्चयार्थ नियोजिता: ॥८६॥ 
यावत्रिभाल्यन्त्येते न पश्यन्ति तक॑ क्वचित्‌ । पश्यन्तः पिच्छकान्येव परस्परमिदं जगुः ॥८७॥ 
अन्यथा चिन्तितेडप्यर्थ सम्पन्नं फलमन्यथा । रक्षणे चिन्तितेडप्यस्य भक्षणे विधिरुथमी ॥<८८॥ 
यथाउमुष्य तथाउन्यस्य यदेवं करम्णां गतिः | विषादो नोचितः कतुमुक्तमत्रापि केनचित्‌ ||८९॥ 
चिन्तयति कारयजातं मतिमान्‌ मतमन्यथाविधानेन । निदु:खसुखस्तु विधिस्तच्चिन्तितमन्यथा कुरुते ॥९०॥ 
अहो ! पौरुषमप्यस्मत्मयुक्तं तदू वृथाउभवत्‌ । वृथैवेतद्‌ विधो वक्रे यतोडबाचि विपश्चिता ॥९१॥ 
छित्त्वा पाशमपास्य कूटरचनां भित्त्वा बलादू वागुरां । पयन्तोग्शिखाकलापजटिलान्निगंत्य दावानलत्‌ | 
व्याधानां शरगोचरादपसतो वेगेन धावन्‌ मग: । कूपान्तः पतितः करोतु विमुखे कि वा विधौ पौरुषम ? ॥६२॥ 
यथावृत्तं समागत्य वृत्तान्तं नमुचिद्धिषि । अधःपातितरुक्षाक्षा विलक्षा आचचक्षिरे ॥१३॥ 


१, कुक्कुटाय । २. दृ्दं यथा स्थात्‌ तथा इत्यथः। ३. इन्द्राय । 


तथाहि-- 


३७. दैवनिवारणा 5शवयताधिकारे यादवाख्यानकम्‌ ३३११ 


तच्छुत्वा जातसंवेग: स्वाराद सल्लातविस्मयम्‌ | संसारासारतां जानन्‌ निजगाद सुधाभुजः ॥९४॥ 

अहो सुराः ? कृतो यल्ञो मद्चनमनुष्ठितम्‌ । दैवायत्तेषु कार्येषु वाच्यता काउनुजीविनाम ? ॥१५॥ 

एवं संस्थाप्य तान्‌ सवोन्‌ सन्मागंप्रतिपत्तये । सद्धमंसब्भतं वाक्य प्रस्तावोचितमत्रवीत्‌ ॥९६॥ 

भो भो देवा: ! यथामुष्य प्राणितं पक्षिणो5स्थिरम । सर्वेप्राणभृतामेवं जानन्तः सुस्थिता: कथम्‌ ? ॥९७॥ 


स्वबन्धून्‌ पालयिप्यामि जीविष्यामि चिरं स्वयम्‌ | मरिष्यामीति नो चिन्ता ताम्रचूडस्य चेतसि ॥९८॥ 
मुग्धबुद्धिस्तथा5न्योडपि जीवो विषयलम्पट: । न ब्रह्मणो विजानाति विजुम्मितमवाचि च ॥९९॥ 
कृतमिद्मिदं करिप्ये केवलमतिसरल ! किमिति चिन्तयसि ? | तुटिदुल्तिसकलवाडछं विलसितमपि बिन्तय विधातु: ॥१००॥ 
दुःखरूपं यतः सब हेतुश्च भवसंसते: | अतः स्वंविदा55ख्यातं कुरुष्वं धर्ममज़्सा ॥१०१॥ 
त्रायध्व॑ प्राणिसड्डातं सेवघ्वं साधुसंहतिम्‌ । दद॒ध्व॑ सन्‍्मतो चित्त यतध्वं शासनोन्नती ॥१०२॥ 
सम्यग्दशननेमल्ये भावनायां मवच्छिदि । गुणवद्वरिवस्यायां सम्पय्यध्वं सदोद्यता: ॥१०३॥ 
एतच्छूत्वा सुरेन्द्रोक्तं वेराग्यगतमानसा । सभा सवाडपि देवानां जाता भवपराडमुखी ||१०४॥ 
प्रशमकुलिनिकेतः कौतुकाधायि केषाश्विदर्मिनवविभन्जथा भव्यवेराग्यत्रीजम्‌ | 
जिनवचनरतानामझ्गज ! सवेगहेतुः, कथितमिदमपूव लौकिकाख्यानक व: ॥१०५॥ 


॥ कुककुटाख्या नक समाप्तम ॥१०६॥ 


इदानीं यादवाख्यानक व्याख्यायते । तथ्ेदम्‌-- 


तथा हि-- 


सुकविविणिग्गयवाणि व्व घडणसंगयसुवन्नपायारा । केलासमहीहरचूलिय व्व विलसंतधवलहरा ॥१॥ 
मेरुमहि व्व सुकणया सुरवसुरयणा धणा सुरपुरि व्व | जुबह व्व दीहरच्छा नयरी नामेण बारवई ॥२॥ 
पज्बुन्नपपडजणओ दुहा वि बलभद्दबंधवाणुगओ । सच्चाहिट्टियदेहो दुह्य वि ससुदंसणो सुहओ ॥३॥ 
चक्ि व्व सुसंखनिही सुधम्मचक्कों जिणाण नाहो व्व | विभ्ो व्व गयाहारो तं॑ पालइ वासुदेवनिवों ॥9॥ 
तस्स सुहसच्च भामापमोक्‍्खमंतेउरं॑ मणभिरामं । सारयसरं व सोहह सहंसलक्खणवयावरियं ॥५॥ 


लायन्नसलिललहरीमणुन्नमारत्ततलणनलिणिल्लं । सुकुमार-सिलावित्थयनियंबसुहपुलिणरेहिल्ल ॥६॥ 
नाहिगहीरावत्तं चंचलतिवलीतरंगमंगिल्लं । घण-संगय-जुयलट्टियथूणकलसरहंगरमणीयं ||७॥ 
कोमलकरजुयभुयलयमुणाल-रत्तृप्पलाभिरामतरं । रेहिररेहातिगकलियकंटवरकंबुकमणीयं ॥८॥ 
वियसियवयणसरोरुहनिलीणनयणाभिरामभमरभरं । भालयलूसिप्पिसंपुडमलिसामलवालसेवालं ॥९॥ 
सेणं समुद्विजयप्पामोक्खाणं दसदसाराणं | बलभद्दप्पमुहाणं पंचन्ह महंतवीराणं ॥१०॥ 
पज्जुन्नप्पमुहाणं अद्घुद्वाणं कुमारकोडीणं । संबप्पामोक्खाणं सट्टीदुद्दंतसहसाणं ॥११॥ 

तह उग्गसेणपमुहाण सोलसन्हं तु रायसहसाणं । महसेणपमोक्खाणं इगवीसं वीरसहसाणं ॥।१२॥ 
रुप्पिणिपामोकक्‍्खाणं बत्तीसं महिलियासहस्साणं । गणियाणडणंगसेणापमुहाणडटद्भारसहसाणं ॥११॥ 
अन्नेसि राईसर-तलवर-मार्डबियप्पमोक्खाणं । बारवदनयरीए भरहद्धस्स य समग्गस्स ॥|१४॥ 
आणाईसरियत्तं सेणावच्चं पुरोगमत्तं च | कारेमाणे पालेमाणे एवं च ण॑ं विहरे ॥१५॥ 

अह अन्नया नरिंदो सुंदेरं नियपुरीए पेच्छंतो । परिभमह पहिट्ठमणो समंतओ गयबरारूढो ॥१६॥ 
पेच्छह य रायमग्गं ताव विदेहाओ हड्डपंतीओ । नाणापयारविक्कियमाणप्पडिपुन्नपत्नाओ ॥१७॥ 
कत्थ वि य धन्नपुन्नाओ नियइ धम्मियजणावढीओ व्व | ससिणेहाओ अन्नत्थ नियइ सुयणावलीओ व्य ॥१८॥ 





१. इन्द्र: । 


शे१२ 


जओ--- 


आह च--- 


आख्यानकर्मणिकोशे 


बहुवसणं निप्पुत्नं व्व दोसियावणसमूहमन्नत्थ । विलसिरनेत्तं रामायण व्व पेच्छइ पुहइपालो ॥१९॥ 

परमपयं पउठरजण्ण च धम्मसत्थं व सोहणाहरणं । उब्भडवेसं गणियागिहं व्व अन्नत्थ नियह निवो ॥२०॥ 
विज्जुपहाओ सुपओहराओ लायन्नरससणाहाओ । पेच्छइ पाउसलूच्छीए सच्छहाओ मयच्छीओ ॥२१॥ 
जायवजणं च पमुइयपकीलियं पुज्ञमाणमणवंछं ।अमुणियपरचक्क भयं सुहिय॑ सम्गे सुरयर्ण व्व ॥२२॥ 

अन्न पि भवण-देउल-परिहा-पायार-पव-सभाईयं । सुरसन्नेज्सं सुरनिम्मियं च अश्चब्भुयब्भूयं ॥२३॥ 

अप्पाणयं च पसरियपयंडबलसाहणं समग्गबर्ू | अखलियपयावपसरं वसीकयासेसरिवुबग्गं |२४॥ 
नियनयरसिरिं संचितिऊण हिययम्मि क्रिमवि परितुट्टो । अजरामरो व्व कण्हो गय॑ पि काल न याणाइ ॥२५॥ 


विसयामिसगिद्धमणा सयणविमूढा परिग्गहासत्ता । न मुणंति जिया एन्तं पि विसमविहिविलसियमकंडे ॥२६॥ 


एषा स्थली नवतृणाझ्ुरजालमेतदेषा म्रगीति हृदि जातमदः कुरञ्ञः । 

एतन्न वेत्ति स यथाउन्तरिती लताभिरायाति सज्जितकठोरशरः किरातः ॥२७॥ 
एत्थंतरम्मि गामाणुगामदूइज्जमाणमुणिवर्गो । आयासगएण सयप्पभावओ धम्मचक्केणं ॥|२८॥ 
आयासगएण य पव्वद्विसपडिपुन्नचंदधवलेणं । छत्तेण छन्नरवियरनियरेण महापभावेण ॥२९॥ 
आयासगयाहिं तुसार-हार-हरहास-कासधवलाहिं | सेयवरचामराहि मणि-रयणविचित्तदंडाहिं |३०॥ 
आयासगएण महम्घहेम-माणिक-रयणघडिएणं । सिंहासणेण महया सपायपीढेण पवरेणं ॥३१॥ 
सुयणेण व किमवि समुन्नणण पुरओ पणिज्जमाणेण । धम्मज्कएण एसो धम्मनिही इय भणंतेणं ॥३२॥ 
विप्फुरियपहावलूओ, विलसन्तपओ घणंजणच्छाओ । अहिणवघणसरिसो वि हु भयवं भासंतनवकमलो ॥३३॥ 
मणि-रयण-हेमनिम्मियरमणीयाभरणभासुरतणूहि । नियदेहपहापसरियकिरिणावलिरंजियद्साहिं ॥३४॥ 
पणवन्नरुररमणिमयविमाणमालानिरुद्धगयणाहिं । परिवारिओ समंता णेगाहिं देवकोडीहिं ॥३५॥ 
वरदत्तपमोक्खाणं अदट्वारसहिं सम॑ सहस्सेहि | समणाणं अट्ठटारससीलंगसहस्सकलियाणं ॥३६॥ 
जक्खिणिपामोक्खाणं चत्ताए अज्जियासहस्साणं । समियाणं गुत्ताणं सद्धि संपरिवुडो निश्चय ॥३७॥ 
जेणेव य बारवई नयरी जेणेव रेवयगिरिंदों | जेणेव य रेवयगं उज्जाणं तेण संपत्तो ||३८॥ 
सिद्धंतमणियविहिणा सक्काइसुरा-5सुराण निवहेहिं | रइयम्मि समोसरणे असमोसरणे नमंताणं ॥३८॥ 
कयकिश्चो वि जिणिंदों कयतिन्निपययाहिणो पणयतित्थो । धम्मंग्ं विणयं चिय कयन्नुभावं॑ च भणमाणो ||9०॥ 
मणि-रयणविणिम्मविए महरिहर्सिहासणे समुवविट्टो | सुरसेलसिहरसंसियनवधणलीलं विडंबंतो ॥|9१॥ 
त॑ पासिऊणमुज्ञाणपालओ बहलपुलइयसरीरो । उत्तलगमणरसिओ वद्धावह वासुदेवनिवं |9२॥ 
देवाणुपिया इहंति दंसणं जस्स अज्ज सो भयवं । सुर-असुर-रायमहिओं समोसढो रेवगुज्जाणे ॥9३॥ 
सोऊण वयणमेसो वियरावह पारिओसियमिमस्स । अद्धत्तेससकोडीओ पयडवन्नस्स रुप्पस्स |9४॥ 
कोमोइयमेरीदाणपुव्वमाइसइ सव्वनयरीए । जह नेमिवंदणत्थं निज्ञाइ जणदृणो राया ॥४५॥ 
तो सब्वो पठरजणों सब्बालंकारभूसियसरीरो । तित्थयरवंदणत्थं निज्ञाउ महाविभूदेण ॥०६॥। 
णहाओ कयबलिकम्मोी सयमवि सच्चवियफारसिंगारो । हार-5ड्ृह्र-मउडाइसुंदराभरणरुइरतणू ॥|9७॥। 
गलियमयगंडपरिममिरभमरझंकारजणियसवणसुही । आरूढो गयपरिवारकलियकरिरायखंधम्मि ॥|४८॥। 
पासगयसमुद्दसमुद्दविजयपामोक्खपणइनिवहेहिं । गुडगडियमत्तमयगलखंधारूढेहिं परियरिओ ॥|४९॥ 
पवररयतुरयखरखुरखोणीरयनियरपिहियदिसियक्को । रयचलियतुरयरहवरगभीररवबहिरियदियंतो ॥५०॥ 
उद्दंडपहरणुब्भडपयंडभुयदंडपक्कपाइकी । प्रओपयट्टनंगलिय-वयणमंगलियमुहलूनरों |५१॥ 


जओ--- 


३७. दैवनियारणा 5शवक्‍्पताधिकारे यादवाख्यानकम्‌ ३१३ 


बहुमाणपहरिसुब्भिज्ञमाणरोमंचकंचुइयगत्तो । तित्थयरवंदणत्थं विणिग्गओ वासुदेवनिवों ॥५२॥ 

मन्नंतो अप्पाणं सकयत्थ॑ सुद्धपरिणशव्सेण । सच्चवियजिणेसरपाडिहेरपसरंतपरिओसो ॥५३॥ 

ओयरिय करिवराओ परिहरियपसिद्धपंचनिवककु हो । अच्च॑तमेगसाडयपसंगकयउत्तरासंगो ॥'५४॥ 
पंचविहाभिगमपुरस्सर च काउं पयाहिणाण तिगं | कयपंचंप्गपणामो एवं थोउं समाढत्तो ॥५५॥ 

जय जय नेमिजिणेसर ! नमिरामरनिवहनमियपयक्रमल ! । तुद्द चेव य चंदुज्जलचरियमहं वन्नइस्सामि ॥५६॥ 
तुह पहु! गुणमणिरोहण ! को सक्कह वन्निउ सुहं चरियं?। तह विय कि पिहु भयवं ! भणामि भत्तीए भवभीओ ॥५७॥ 
अवराइयाओ चविओ कत्तियकिण्हाए बारसीए तुम । सिवएवीकुच्छोए समुदृविजयरस भवणम्मि |५८॥ 
सोरियपुरम्मि जाओ सावणसियपंचमीए चित्ताहिं । निव्वत्तियजम्ममहों सुमेरुसिहरम्मि सुरवहणा ॥५९॥ 

गंतुं तुमए मज्झं आउहसालाए सुबलकलिएणं | आऊरिओ जिणेमसर ! संखो संखुहियभुवणयलको ॥६०॥ 
कुवियप्पविउडणत्थं जिण ! मह नियबलपयासणत्थं च | अंदोलिओ तए पहु ! भुयालयाए हरि व्व अहं ॥६१॥ 
सिरिखंडबहलकुंकुमरसरंजियनी रपुत्नवावीए । कणयविणिम्मियसिंगी मुहमुक्कजलच्छडापयड्ड ॥६२॥ 

मज्झ वहुहिं समेओ कुणमाणों मज्जणं जहिच्छाए | सोहग्ग-रूव-गुणनिहि ! ते धन्ना जेहिं दिद्लों सि ॥६३॥ 
जं सामि | सच्चभामाइ वयणओ मन्नियं करग्गहणं । तुमए त॑ पत्थणभंगभीरुणो नुण सप्पुरिसा ॥६४॥ 
लायन्न-रूव-सोहम्गगुणनि्िं नाह ! परिचयंतस्स । रायमईं तुह नाय॑ न दुक्करं कि पि गरुयाणं ॥६५॥ 

पसुणो अवसे पासिय वालावंतेण रहवरं तुमए | सश्ववियं सप्पुरिसा दुहिएसु दयावरा होंति ॥६६॥ 

रइरसियं रायमइं गुणरयणखर्णि खणेण परिहरिउं । संजमसिरिं पवज्िय जं पसमसुहं समझ्लीणो ॥६७॥ 

तं सामि ! विवेयवसुल्लसंतनाणेग निच्छियं तुमए | संप्तारियतोक्खाओ निम्ुहवहुसुद्मणन्नस मं (६८॥ [ युग्गम्‌ ॥ ] 
दामोयर-वत्थावय-कढितोडय-संबकंटए कमिउं । उरज्जितसेलसिहरे कायरजगजणियमणभंगे ॥६९॥ 

आरूढो हरिसवसुल्लसंतसुबिसुद्धमणपरीणामो । सावणसियछट्ठीए संजमभारे य भत्रमहणे ॥७०॥ 
चउपल्नवासराइं छठमत्थो विहरिओ निरभिसंगो । सुक ज्काणानलदड्घाइकम्मिधणो धणियं ॥७१॥ 
आसोयमावसाए विसयपिवासाए सब्वहा चत्तो । लोयाउलोयपयासं त॑ पत्तो केवलज्ञाणं ॥७२॥ 

ता पहु | पहुयकालं केवरूसिरिसंगजो सुहाहारो | अमयमयकरपबोहियतममोहियभवियकुमुयवणों ॥७३॥ 
रेवयगिरिसिहरम्गे आसाढसिय<ट्टठमीए सुहलेसो । सिरिनेमिचंद ! जिणवर ! पाविहिसि सिवं पहयकम्मो ॥७४॥ 
इय नेमिनाह ! नयसु र-नरभमरकयंत्र ! दवसूरीहिं। वज्नियससिक्िरणुज्अलूचरिय ! चरित्ते रह कुणसु ॥७५॥ 
इय थुणिऊर कण्हो जिणवयणायन्नणे सइ सयन्हों । संवेगभावियमणो सट्टाणम्मि समुबविट्टो ॥७६॥ 

एत्थंतरम्मि भयवं जोयणनीहारिणीए वाणीए । अच्च॑ंतमहुरमणहरजलहरगज्जियगभीराएु ॥७७॥ 

सत्नाण-दंसणधरो दुह्ा वि चठराणणो चरित्तनिही । सुर-असुर-नरसभाए धम्मं कहिउं समाढत्तो ॥७८॥ 

धम्मी अत्थो कामो मोक्खो चत्तारि हुंति पुरिसत्था | धम्माओ जेण सेसा ता धम्मो तेसि परमतरों ॥७२॥ 


धम्मी संसारमहासमुद्दनिवडंतज|णवत्तं व्व | धम्मो भीममहाडविनित्थारणसत्थसत्थाहो |॥८०॥ 

धम्मो भंधकूवयपडंतहत्थावलंबणसमाणो । धम्मो दुरंतदालिदददलूणसुंदरनिहाणनिभो ॥८१॥ 

धम्मो सिणेहसंगयसुयवच्छलभावसंगया जणणी । धम्मो सुहयरसिक्खासंपाडणपदच्चलो जणओ ॥८२॥ 

धम्मो समत्थविस्सासठाणसब्भावसंगयं मित्त । धम्मो विणीय-आणावडिच्छ-निब्मिश्व भिश्वसमी ॥८३॥ 

धम्मो समग्गगुणजुत्तसग्गसुहगमणसुंद्रविमाणं । धम्मो सासयसिवपुरसंपावणपवररहरयणं ॥८४॥ 

कि बहुणा ? भो भव्वा ! भुवणे वि न अत्थि कि पि कल्लाणं । ज॑ं न कुणइ एस जियाण सम्ममाराहिओ धम्मो ॥८५॥ 
पडिवज्जह सब्बन्नुं देवं सगुणं गुरु च धम्मं च | जं रयणत्तयमेयं परिक्खियव्ब॑ सुहत्थीहि ॥<६॥ 


३२१४ 


कि च-- 


आखश्यानकमणिकोशे 


चउतीसअइसयजुओ अट्टमहापाडिद्देरयसोहो । जियराग-दोस-मोहो एसो देवो सुगइद्देक ॥८७॥ 
परिद्रियधरावासो जुगप्पह्मणागमो चरित्तनिही । सम्मइंसणसुहओ उबएसपरो गुरू भणिओ ॥<८॥ 
कस-छेय-तावसुद्धों पुव्वा-उ5व२बाहवज्जिओ धणिय॑ । सचरा-5चरजीवहिओ धम्मो वि हु विसयनिग्गहणो ॥८९॥ 
इय सोऊणं धम्मं सम्म॑ं जिणमासियं भवविरत्ता । धम्माभिमुहो जाया सब्वा वि तया भवियपरिसा ॥९०॥ 

अह पाविय पत्थावं पुच्छह पंजलिउडो पृह्हपालो । सुरकयसल्नेज्काए बारवईए पुरवरीए ॥९१॥ 
जक्खसहस्साहिट्वियतणुणो भरहद्धचक्षिणो मम वि। नासो नेमिजिणेसर ! किमियरभावाण व भविस्सो ? ॥२२॥ 
अह भणइई नेमिनाहों सनीरनीरयनिभाए वाणीए | नरनाह ! वत्थुजायं ज॑ किंचि वि दीसइ जयम्मि ॥९३॥ 
कयगसरूवं सब्वं विणस्सरं तमिह कि वियप्पेणं ? | जद एवं ता कइया ? कुओ य ? कह व ? त्ति सुण रायं ! ॥९४॥ 
पारासरनामो आसमम्मि कम्मि वि अहेसि को वि रिसी । निदियकुल्संभूया संपत्ता कन्नया तेण ॥१५॥ 

सो कइया वि हु तीए सम॑ भमंतो गओ जउणदीवं । दीवम्मि समुब्भूओ त्ति तेण दीवायणो नाम॑ ॥२६॥ 
तीए पुत्तो तत्थ वि तुज्क कुमारेहिं मज्जमत्तेहिं । खलियारियाओ तत्तो बारबईए धुवं नासो ॥९७॥ 

तुज्ञ पुण कन्ह | होही जराकुमाराओ जाण एयाओ । भवियव्वया निओया न अन्नहा तीरए काउं ॥९८॥ 
कन्हविणासयमेयं वयणं जिणमुहविणिग्गयं सोउं । निब्भरमन्रुवसागयनयणंसुजलाओ दिद्वीओ ॥९९॥ 
जलहिम्मि नईेओ इव वाहीओ इव अपत्थभोइम्मि | पावम्मि कुगइओ इव विवयाउ व दुनल्नयपरम्मि | १००॥ 
दसयाओ सकोवाओ सबविम्हयाओ सयाणुतावाओं । सब्वेसि जायवाणं जराकुमारम्मि पडियाओ ॥१०१॥ 
सो वि हु जराकुमारो हिययम्मि धसक्षिओ विलक्खमणों । लज्ञाए जायवाणं मुहं पि दंसेडमसमत्थो ॥१०२॥ 
खणमवि ठाउमसत्तो सयणकडक््खेहिं सल्लियसरी रो । लच्छीहरबा णेहिं व विद्धो मम्मम्मि दहवयणों ॥१०३॥ 
भणइ महिं मह भयवह ! वियरसु विवरं विसिद्ठजणवज्जे । जेणाहं हयबु द्वी पावो पविसामि पायाले ॥१०४॥ 
धिद्धी ! कहमेवंविहमहमहमो पावमा यरिस्सामि ? | दूरम्मि मंदभग्गों जामि जहिं फुट्टपाहणा ॥१०५॥ 
पयडेमि पोरिसमओ निरत्थयं कि वियप्पजालेण ? | मह जीविएण जीवउ चिरकालं बंधवों कण्हो ॥१०६॥ 
करकलियबाण-धणुहरदु द्धरेसो साहिऊण कण्हस्स | पायडियवाहवेसो कोसंबवणम्मि संपत्तो ॥१०७॥ 
तारारुइरा वि तया जराकुमारम्मि निम्गए नयरी । न विरायइ रयणीयरविरहे रयणि व्व तमगसिया ॥१०८॥ 
कन्हो पुण सुन्नमणो पियबंधवविरहिओ मुणइ रज्न॑ ।जणसंकु्ं पि नयरिं जराकुमारे पवसियम्मि ॥१०९॥ 


एगेण विणा पियमाणुसेण सब्भावनेहरसिएण । जणसंकुला वि पुहवी अव्बो ! रन्न॑ व पडिहाइ ॥११०॥ 


मणवल्लहलोयविओयणम्मि जायइ जणस्स ज॑ दुक्‍्खं | त॑ कहिउं पि न तीरह सारिच्छ नारयदुहस्स ॥१११॥ 
बलभाया सुसिणिद्धो सिद्धत्थो सारही सुणिय वसणं । मोयावइ बलभद्दं तेण वि भणियं कुणाभिमयं ॥११२॥ 
गुरुद क्खं गिहवासं मुयसु महाभाग ! संपलित्तमिमं | आवद्गयं कया वि हु पडिबोहसु म॑ पवज्जवयं ॥११३॥ 
इय सामपुव्वमेसो सम्म॑ मोयाविऊणमप्पाणं । सिरिनेमिनाहपासे एयावसरम्मि पव्वहओ ॥|११४॥ 
आयन्नियजिणवयणा कण्हाई जायवा निराणंदा । वेरग्गभावियमणा बारबइं पडिगया सब्बे ॥११५॥ 

भयवं पुण नीहरिओ बारवईओ बहिंविहाराए। चउविहसुरपरियरिओ बोहिंतो भवियजणनिवहं ॥११६॥ 
विप्फुरियधम्मचको निद्वारियमोहरायरि उचको । आएज्ज-महुरत्क्रो पाडियपरतित्यियवसकों ॥११७॥ 
पत्नवियतत्तवाओ भावलयविलुत्ततिमिरसंधाओ | अलिउल्सामलकाओ सुरकयकमलुबरिकयपाओं ॥११८॥ 
भयवं अरिट्वनेमी गामा-55गर-नगरमंडियं वसुहं । विहर्‌इ फुरियपयावों पयासियासेसशुवणयलों ॥११८॥ 





१, भामण्डल | 


किच-- 


जओ-- 


तह|--- 


३७. दैवनियारणा5शव्धताधिकारे याद्वास्यानकम्‌ ३१५ 


भव्वकुसेसयभाणू नियकिरणेहि व सुहोवएसेहिं । नासियतमंधयारो बोहिन्तो भवियकमलबणं ॥१२०॥ 
घोसावियं पुरीए जणद्णेण वि जिणेण वागरियं । जं किर त॑ तुब्मेहिं वि सकख॑ं निसुयं निरवसेसं ॥१२१॥ 
मज्जप्पमायवसओ नासो नयरोए जं समाइट्टी । परिवज्जह पावमिमं तम्हा मज्ज परमसत्तु ॥१२२॥ 
कन्हाएसेण तओ मज्ज मणवल्लहं पि पउरेहिं | कायंबरीगुद्दाए मज्ञम्मि समुज्कियं कत्ति ॥१२३॥ 
अन्नमिमं आइटइं सब्वो वि जणो जिणिदभवणेम्ु । न्हवण-विलेवण-पूयणवावाररओ हवउ निश्चं ॥१२४॥ 
पोसहसालाए पुणो चउव्बिहाहारवज्जणुज्जत्तो । सज्ञाय-ज्ञाणएओ जहासमाहीए पोसहिओ ॥१२५०॥ 
पारद्धिपावविरओं असश्चभासण-परस्सहरणेसु । परदारपसंगेसु य जहसत्तीए भवउ विरओ ॥१२६॥ 

एवं धम्मरयाणं विसिट्टसंवेगभावियमणाणं । लोयाणमकल्लाणं न कि वि पायं समावडइ ॥१२७॥ 

अह अन्नया तहाबिहदुद्धरमवियव्वयानिओएणं । संबाइया कुमारा विणिग्गया कह वि कीलाए ॥१२८॥ 
कायंबकाणणर्म्मि संबकुमारस्स संतिओ पुरिसों | को वि पिवासाभिहओ गओ भमंतो वणनिगुंजे ॥१२९॥ 
जत्थ5च्छह किर मज्ज समुज्मियं गिरिगुहाए कुंडेसु । छम्मासावत्थाणा सुपक्रमइसाउरसकलियं ॥१३०॥ 
तेण य पिवासिएणं आकंठपमाणओ तय॑ पीय॑ । कहियं संबाईणं गर्णाह तत्थट्टियं दिद्ठं ॥१३१॥ 

तेहिं वि तयमइरसियं पीयं चिट्ंति जाव खणमेगं । ताव य मयाभिभूया संजाया परवसा सब्वे ॥१३२॥ 
कहिं वि भमंतेहिं वणे दिट्लो दीवायणों रिसी तत्थ | संभरियपुव्ववइ्यरा आयंबिरलोयणा जाया ॥१३३॥ 
एसो सो किर पावो दहिही अम्हाण संतियं नयरिं । ता संपइ जाइ कहिं दिद्ठो अम्हेहि दुद्वप्पा ? ॥१३४॥ 
जुगबं पि तओ लग्गा हणिउं पाह्मण-जट्टि-मुद्ठीहिं । निश्चेद्ट काऊणं अन्नाणाओं गया नरयरिं ॥१३५॥ 
विन्नायवहयरेहिं सिग्धं बलदेव-वासुदेवेहिं। भयमीयमाणसेहिं खमाविओ पायवडिएहिं ॥१३६॥ 

भो भो ! खमसु महायस ! खमापहाणा भवंति महरिसिणो | मा कुणसु भद्द ! कोव॑ कोवो जं दारुणसहावों ॥१३७॥ 


पढम॑ चिय त॑ जंतुं कोहर्गी दहइ जत्थ उववज्जे । जत्थुप्पन्नो त॑ चेब इंधण्ं घूमकेउ व्य ॥१३८॥ 
रत्ने वि कयावासा कसायवसया वयंति नरयगई । वसिमे वि कयनिवासा जिडंदिया जंति सुरलायं ॥१३९॥ 


एगस्स वि नियहिययस्स भद्द | विनिवारणे जइ न सत्ती । ता कह पारंभियभवमहारिविणिवारणं तुज्क ! ॥१००॥ 
अह भणसि निरवराहो कयत्थिओ हूं इमेहिं पावेहिं | तं पिन जं॑ अवयासो खंतीए कयावराहेसु ॥१४१॥ 


ज॑ खमसि दोसवंते सो तुह खंतीए होइ अवयासो । अह न खमसि को तुह अविसयाए खंतीए बावारों ? ॥१४२॥ 
अवरमिमेसि सिसूर्ण विवेषवियर्ण मूढहिययाण । खमियव्वं चेव जओ दुवियायं होइ न दुमाया ॥१०३॥ 


पढउ सुयं धरड वयं कुणउ तवं चरउ बंभचेराई | तह वि तयं सब्बं पि हु निरत्थयं कोववसगस्स ॥१४९॥ 
अन्न च भो महारिसि ! कोहवसट्टी दयं पि नासेज्ञा । दहह तब-संजमं पि हु जहेव मंडुकियाखमओ |॥१४५॥ 
परिगलइ मई नस्सह सरस्सई गलइ वयपरीणामो । कोववसयाण तम्हा परिहरसु कसायसत्तुमिमं ॥१४६॥ 
भणियं च तेण सब्बं अहं पि जाणामि जं अक्ज्जमिणं । सन्वेसिमणत्थफलं विसेसओ वयपवन्नाणं ||१४७॥ 
परमभिमाणवसेणं तया निरायं कयत्यिएण मए। बढद्धं नियाणमसुभं निकाइयं चेव त॑ च इमं ॥१४८॥ 

जह अत्थि इमस्स फल कट्ठाणुट्राणसंचियतवस्स । तो पावाणमिमेसि नयरिमहं निदड्ुहिआआमि ॥१४८९॥ 

परमेवं॑ पणयाणं विणयजुयाणं भविस्सई मोक्खो । तुम्हं दोण्ह जणाणं सुणयस्स य नत्थि अन्नस्स ॥१५०॥ 


१. दुर्विजातं--दुःसन्ततिः । 


३१६ आश्यानकमणिकोशे 


एसा मज्झ पइज्ना न चलइ विहिया जओ जुगंते वि | तो हो महाणुभावा ! मा खिज्जह एत्थ वत्थुम्मि ॥१५१॥ 

वुत्त च तओ हलिणा ज॑ जाणइ कुणउ त॑ किमलेण ? | भवियव्वं एमेव य न अन्नहा होइ जिणमणियं ॥१५२॥ 

तत्तो ते साममुहा परिगलियपरक्षमा अकयकज्जा । सविसाया सविलक्खा समागया निययनयरीए ॥१५३॥ 

सो बि हु पब्भट्ेवओं सामरिसो रुद्काणवसवत्ती । मरिऊण समुप्पन्नो अग्गिकुमारेसु देवेसु ॥१५४॥ 

पुणरवि य देव-दाणवनमंसिओ जिणवरो समोसरिओ । पुव्वक्रमेण राया वंदणवडियाए नीहरिओ ॥१५५॥ 

तत्तो य तिय-चउक्कग-चचर-चउमुह-महापह-पहेसु । बहुजणवूहे बहुजणरोले सद्दे बहुजणस्स ॥१५६॥ 

जंपइ परोप्परेणं जह किर जउनंदणो जिणवर्रिंदों । उप्पन्नविमलनाणों समोसढो नंदणुज्ञाणे ॥१५७॥ 

ता भो ! तित्थयराणं नामस्स वि सवणयं हियकरं ति। कि पुण बंदण-पूयण-नमंसणं धम्मसवर्ण वा ? ॥१५८॥ 

तम्हा देवाणुपिया ! गच्छामो जिणवरं नमंसामो । तदंसणेण विणएण पूयपावा भवामों त्ति ॥१५२९॥ 

एहाया कयबलिकम्मा अप्प-महामुल्लनमूसणपहाणा । राईसरमाईैया विणिग्गया पउरजणनिवहा ॥१६०॥ 

असुयाइं सुणिस्सामों सुयाईं निस्संकियाइं काहामो | अप्पुव्वं पि य कि पि हु पुच्छिस्सामो जिणवरिंदं ॥१६१॥ 

गयमारूढा हयवरगया य रहवरगया य के वि नरा । नरजाण-जुग्ग-गिल्ली-थिल्ली-सिबियाइजाणगया ॥१६२॥ 

अन्ने पयचारेणं चलिया बलिपूयवावडकरम्गा । कि बहुणा ? संखोभियसायरलहरीसरिसचरिया ॥१६३॥ 

छत्ताइछत्तदंसगसमणंतरमुक्पहरणावरणा । जिणसमयभणिय विहिणा पणय[जि]णा ठंति संठाणे ॥१६४॥ 

भयवं विरायजणय॑ संवेगकरं च तीए परिसाए । पारद्धो दाउं जे सुहोवएस सुहावयणो ॥१६५॥ 

भो भव वा ! भीमभवोयहिसम्मि जर-जम्म-मरणसलिलूम्म । दुत्तर-गहीर-भीसणमोहमह।वत्तदुग्गम्मि ॥ १६६॥ 

पजलंतमयणवडवानलूम्मि दुव्वाररोगभुयगम्मि । विलूसंतवसणसावयसहस्ससंरं भविसमम्मि || १६७॥ 

जलहिजलपडियरयणं व दुल्लहं पाविऊण मणुयत्तं | सिद्धंतससवण-सद्धा-विरियजुयं जाणवत्तं व ॥१६८॥ 

मा धम्मकम्मकरणम्मि पावमेव॑ पमायमायरह । जीवाण जमेसो थ्विय परमत्थरिऊ जओ भणियं ॥१६५९॥ 

पमाएणं महाघोरं पायालं जाव सत्तमं | पडंति विसयासत्ता बंभदत्ताइणो जहा ॥१७०॥ 

पमाएणं परायत्ता तुरंगा कुंजराइणो । कसंकुसाइघाएहिं वाहिज्जंति सुदुक्खिया ॥१७१॥ 

पमाएणं कुमाणुस्स-रोगा55यंकेहिं पीडिया | करुणा हीणदीणा य मरंति अवसा तओ ॥२७२॥ 

पमाएणं कुदेवा वि पिसाया भूय-किव्विसा । आभिओगत्तणं पत्ता मणोसंतावताविया ॥१७३॥ 

पमाएणं महासूरी संपुल्नसुयकेवली । दुरंता-5णंतकालं तु णन्तकाए वि संवसे ॥१७४॥ 

पमाओ उ मुर्णिदेहिं भणिओ अद्वभेयओ । अन्नाणं संसओ चेव मिच्छत्ताणं तहेव य ॥१७५॥ 

रागो दोसो मइब्भंसो धम्मम्मि [य] अणायरो । जोगाणं दुष्पणीहाणं अद्ठहा वज्जियव्वओ ॥१७६॥ 

बरं द्वालाहलं पीयं वरं भुत्तं महाविसं | वरं तालउडं खद्धं बरं अग्गीपवेसणं ॥१७७॥ 

वरं सत्तहिं संवासो वरं सप्पेहिं कीलियं । खणं पि न खमो काउं पमाओ भवचारए ॥|१७८॥ 

एगम्मि चेव जम्मम्मि मारयंति विसायणो | पमाएणं अणंताणि दुक्खाणि मरणाणि य ॥१७९॥ 

ता पमायं पमोत्तण कायव्वो होइ सव्वहा । उज्जमो चेव धम्मम्मि सव्वसोक्खाण कारणे ॥१८०॥ 

खणभंगुरसंसारियपयत्थसत्थम्मि नायपरमत्था | पडिबंधमणत्थफलं कुणंतु कहमेत्थ सबिवेया १ ॥१८१॥ 
जओ--- 

गयकन्नतालतरलं जीवियमबि ताव सव्बजीवाणं | संझव्भरायसरिसं जोव्वणमवि चंचलसहावं ॥१८२॥ 

सविया[र]तररूतरुणीकडक्खविक्खेवविब्भमं रूव॑ | छायन्न॑ं पवणाहयलूवलीदलरूचंचलूमसारं ॥ १८३॥ 

ज॑ पि किर विसयसोक्खं जियाण रम्मत्तणेण पडिहाइ । त॑ पि महुर्बिंदुकूबयनायाओ तुच्छमन्चत्यं ॥१८४॥ 


नाक ककककक २» 3०० 3 ७-५५3५५७-3५०७७७७५५+ ५ ०--रन-५ा ९-8 ७+-8++८+ «-239»»>-०4००० ७००० (+कनकक आने *०+क %.५. 339०० निनननननन- +>»न+. >स्‍ममन 


१. विषादयः । 


कील 





३७, दैवनिवारणा 5शव्धताधिकारे याद्वाश्यानकम्‌ ३१७ 


एवमणिश्वसरूवं नाउं संसारियाण वत्थूणं | सासयसिवसुहजणए धम्मे खिय होह जइयव्वं ॥१८५॥ 

इय सवणामयसरिसं सोउं सिरिनेमिसामिणों वयणं । संसारविरत्तमणा जाया सब्बा वि पुरिपरिसा ॥१८६॥ 

ते तारिसा वि जउवल्लहा वि दुद्वंत-तरलहियया वि। संबाइया कुमारा संविग्गा पव्वइंसु तया ॥१८७॥ 
उत्तमकुकुगयाओ वि रूव-सोहर्गगुणजुयाओ वि । रुप्पिणिपामोक्खाओ वयं पवन्नाओ देवीओ ॥|१८८॥ 

सो वि हु कुछिगिदेवी नाउण विभंगओ नियपइन्न॑ | तुरमाणो आगच्छइ पेच्छइ धम्मुज्जयं लोयं ॥१८९॥ 

न तरइ कि पि अणत्थं काउं धम्मप्पभावओ तत्थ । छिं्ं निभालयंतो अच्छइ पासेसु भमडंतो ॥१९०॥ 

अह बारसमे वरिसे अवस्सभवियव्वयानिओयरस । भवणाओ जायवाणं संजाओ माणसवियप्पो ॥१९१॥ 

धम्मप भावेण3<म्हं सो पावो निष्पभो ठिओ नूणं । न तरह काउं कि पि वि उद्धियदाढो भुयंगो व्व ॥१९२॥ 
भुंजामो विलसामो संपह बाढं पराइया अम्हे | मज्वाईनियमेहिं दुककरकरणेण भणियं च ॥१९३॥ 

पुप्फ-फलाणं च रस॑ सुराए मंसस्स महिलियाणं च । जाणंता जे विरया ते दुकरकारए वंदे ॥१९४॥ 

तो ते पमत्त चित्ते दटटुणं मज्जपाणगासत्ते । छिददं पाविय पावो उप्पाए बहुविहे कुणइ ॥१२५॥ 

अट्टट्नहासमसमं मुंचंति अचित्तचित्तपुत्तलिया | देवउलदेवयाओ सकडक्खाओ निरिक्खंति ॥१९६॥ 

गयणयलना रिनश्वण-रुहिरपवरिसण-सिवापवेसा य । कुसुमिणदंसण-सूरोवराय-कविहसियरूवा य ॥१९७॥ 

अबरे वि हु संजाया भूमीकंपाइया दुरुप्पाया | कि बहुणा जिणभणियं पच्चासन्न' तया जाय॑ ॥१२८॥ 

आहुणिय कट्ट-तण-कयवराइसंबट्टवाउणा धणियं । पुंजीकरेइ पावो नयरीए मज्झयारम्मि ॥१९९॥ 

सह्ठि कुलकोडीओ बहिट्टियाओ [तओ य] निकरुणो । बावत्तरिं च मज्कद्रियाओ सयलाओ मेलेउं ॥२००॥ 
अपय-चउप्पयमाई जं कि पि हु पासई तयं सब्वं | नयरीए पडिबद्धं त॑ मज्झे खिवइ दुक्खनिही ॥२०१॥ 

तत्तो चउपासेसुं पत्ञालिय पावयं पबलपवर्ण | उ[ल्ल]|लियबहलधघूमंधयार-जालानिरुद्धनहं ॥२०२॥ 

हा ताय ! भाय ! पिययम ! डज्झंताउसरणया अणाहा य । वीसुंपलित्तगत्ता कहमच्छामो ? कहिं जामो १ ॥२०३॥ 
जलणेण पलित्ताइं पडंति माऊए उबरि डिंभाईं | मायाओ पलित्ताओ पडंति उबरिं पकित्ताणं ॥२०४॥ 
अंगीकयनरयदुहो हा हा ! को एरिसं महापावं । कर्ज ववसह ? जो किर न दूरभव्वों अभव्वो वा ॥२०५॥ 
कंदंति जायवा जायवीओ नाणापलावमुहलाओ । अवराओ नायरीओ रुयंति असमंजसपयारा ॥२०६॥ 

हा बलदेव ! महाबल ! [हा'*'] वंत केसव ! कहिं ते। सहस त्ति गया सत्तो ? हा हा ! ते वि हु कहिं कुमरा ? ॥|२०७॥ 
डज्कामो डज्कामो रकखह रक्‍खह कुओ वि आगंतुं । इय सब्बत्तों सुब्ंति दारुणा पहपय॑ सद्दा ॥२०८॥ 
बलदेवसुओ नामेण कुज्जओो गुरुसरेण पोकरइ । जह किर चरमसरीरों ता कह डज्ञझामि एवमहं ? ॥२०८॥ 
इय भणिए सो सहसा उक्खितो जंभगेहि जिणपासे । पव्वइओ कयपुन्नो कम्मं खविऊण सिद्धो य ॥२१०॥ 
बलदेव-वासुदेवा तुरण जोइत्तु रहवरे पियरो । आरोविऊण सिख्ध॑ जा किर नयरीओ नीणंति ॥२११॥ 

ता देवेणं भणिया निब्भच्छेअण निटठ्ररगिराहिं। भो भो ! तुब्मे भुल्छा | कि वा विसघारियावयवा १ ॥२१२॥ 
कि वा वि हु वीसरियं मह वयणं मोहमोहियमणाण १ । जं दो वि जणा तुब्मे मोत्त नउन्नस्स नीसारो ॥२१३॥ 
एवं वोत्तु पावो पिहेइ दाराईं पुरपओलीए । तो पण्हिपहारेणं फोडिति कवाडसंपुडए ॥२१४॥ 

एवं पि कए जाव य न देइ निग्गममिमों रहवरस्स | अम्मा-पिऊहिं भणिया तो ते मा कुणह पडिबंधं ॥२१५॥ 
अम्हाणमुवरि जम्हा जिणिंदवयणं न अन्नहा होइ । ता वयह तुमे अम्हं पुणाइ ज॑ होइ त॑ं होउ ॥२१६॥ 

तु ब्भेहिं जियंतेहिं पुणरवि कुलुसंतई घुवं होही । अम्हाण संतियं पुण मिच्छादुक्कड मिमं वच्छा ! ॥२१७॥ 

तो ते पमुकधाहा महया सद्देण रोविउं रूगगा । गुरुसोयतावियमणा महंतमुब्वेयमावन्ना ॥२१८॥ 

जिन्‍नुज्ञाणम्मि ठिया ओरुन्नमुह्दा गंतनयणजला । पेच्छेति पुरि दोवायणेण डज्झंतियं दुहििया ॥२१९॥ 


|समननमी>स 934 नन-- न 


१, न शकनोति । 


देशु८ 


आज्यानकमणिकोशे 


हा हा लच्छीहर ! लच्छिवच्छदु ल्ललियवच्छ ! अच्छेरं । पेच्छपु समुद्विजया वि जं बय॑ एवं परिभमविया ॥२२०॥ 
दीवायणेण इमिणा संखोहियमाणसा समग्गा वि । अक्खोहगुणजुया वि हु जायवबग्गा खयं नीया ॥२२१॥ 
अइथिमिय-सुत्यिया वि हु अप्पत्थियदुत्थणत्तदुत्थाओ । नायरयइत्थियाओ वच्छ ! अगाहाओ डज्झंति ॥२२२॥ 
सागरगंभीरिमसंगया वि जलणेण लछाघवं नोया । जत्तेण पालिया वि हु पेच्छपु पउरा विणस्संति ॥२२३॥ 

अहिय॑ हिमवंतसमुन्नओ वि बहुदेवदेवउलनियरो । निदृडमूलभागो विहड॒इ खडहडियसिहरुगो ॥२२४॥ 


अवलोयसु अयलपइट्टिया वि निद्गवियमेदणिपइट्टा | निवडंति खडहडाराबभीसणा हेमपासाया ॥२२५४५॥ 
दढ्धरणधरियपायासु डज्क्ममाणासु हत्यिसालासु । डज्झंति तडयडारावगब्भिणं वंससंघाया ॥२२६॥ 

पहदियहं पूरणपूरिओ वि मणि-कणग-रयणभंडारो । उवहसियधणयकरोसो बच्छ ! विणट्वों विहिबसेण ॥२२७॥ 
अभिचंदं रायं प[?य]इसप्पहं सयलसुहयरं सोम॑ । जायवरूच्छी पेच्छंतिया वि कह भ्कामिया सब्वा ? ॥२२८॥ 
वच्छ5च्छेरयमवरं देवइ-वसुदेव-रोहिणिजुओ वि । पेच्छंताणं पञ्जलइ रहवरो तह वि जीवामो ॥२२९॥ 
दुकयपरिणइपन्हीए पेरिया पेच्छ पडइ पुरिमहिला । कुंतय-मद्दीरूवा्हि दो्हि बाहाहिं धरिया वि ॥२३०॥ 
एरिसगाण वि सुकुलुब्भवाण पुरिसाणमेरिसं वसण्ं । पुन्नकखएण जायइ जियाणमियरेसि का गणणा ?॥२३१॥ 
एत्थंतरम्मि हलिणा भणिओ कण्हो सुदुविखओ संतो । बंधव ! कत्थ वयामो ? कि करिमो ? कस्स पोकरिमों ? ॥२३२॥ 
कस्स मुहं दरिसामो ? कि वा सरणं वय॑ पवज्ञामो ? । इण्हि का अम्द गई हरिणाण व जूहभद्ठाण ? ॥२३३॥ 
एयावत्थ॑ नर्या[ पेच्छंताणं समिद्धमम्हा्ं । वज्जमयं नणु हियय॑ जं॑ं न वि सयसिकरं जाइ ॥२३४॥ 

सरिउं जिणिंदवयणं तओ पयटंति दाहिणाभिमुहं । वारं वारं परिवलियकंथरं ते पलोयंता ॥२३५॥ 

पंडुसुया अम्हाणं संपइ सरणं ति पंडुमहुराण। चलिया ललियगईदए मयगललील विडंबंता ॥२३६॥ 
भूसणजुइविज्ञ॒ज्जोयभासुरा नयणनीरकयवरिसा । पाउसजलद्दरसरयब्भविब्भमा पहनहम्मि ठिया ॥२३७॥ 
समकालं सारीरिय-माणसदुक्खेण ते समुप्फुन्ना | पेच्छाउहों ! बलियाण वि बलिओ बाढं विहिनिओओ ॥२३८॥ 
पहिय व्व पहे वच्चंति पायचारेण भुक्खिया तिसिया । कद-फरु-पत्त-पुप्फाइभक्खिणो खवियतणुसोहा ॥२३९॥ 
भूमीसयणा सयणाइविरहिया वत्थ-पावरणरहिया । ण्हाण-विलेवण-भोगोवभोगमुक्का मुणिवरु व्व ॥२४०॥ 

ते तारिसा वि सुहसुत्यिया वि अविउत्तसयणवग्गा वि। एक्कपए चिय दुहिया अहो ! दुरंतो विहिनिओगो ॥२४१॥ 
सव्वत्थ वि वित्थरियं जह किर दीवायणेण बारवई । दड्ढा दो उव्बरिया नवरं बलभद्द-महुमहणा ॥२४२॥ 

ते वि य कमेण जंता संपत्ता पुन्वदक्खिणविभागे । धयरद्वरायबलवंतसत्तुसुयरायकयरकक्‍्खं ।२४३॥ 

सत्तंगसुप्प;ट्टं उन्ननयकरदाणवरिसरमणीयं । कुंभत्थलसोहिल्लं जहत्थयं हत्थिकप्पपुरं ॥२४४॥।। 

एत्थंतरम्मि कन्हों छुहाभिभूओं हलाउहं भणइ । आणेहि भोयणं भाय ! भुक्खिओ5हं दढमसत्तो ॥२४५॥ 

गंतुं पपमवि तत्तो भणइ हली वच्छ ! होसु वीसत्थो । आणेमि भोयणं बंधवस्स मा वच्चसु विसायं ॥२४६॥ 
परमेयं वहरिपुरं जह कह वि हु वहरिएंहिं पारद्धों | मुंचामि सीहनायं ता रक्खसु बच्छ ! अप्पाणं ॥२४७॥ 
गंतृण नयरमज्झे महरिहमणिकडगविणिमयं काउं । कुल्लूरियावणाओ मंडगपभिई परममन्नं ॥२४०८॥ 
कल्ला|लियावणाओ सरगाई सुरभि पाणगं घेत्त । जावा55गच्छइ सहस त्ति ताव स ज्षिहियसत्तहि ॥२४९॥ 
सत्रद्धबद्धकवर्ण्ह हक्किओ हण हण त्ति भणिरेहिं | बलदेवो वि हु संगोविऊण त॑ भत्तमेगत्थ ॥२५०॥ 
उप्पाडिऊग स महप्पमाणम[लाणखंभमणवरयं । संचूरियं पवत्तों ससीहनायं तमरिसेन्न ॥२५१॥ 

कण्हो वि तुरियमागम्म सम्ममादाय परिहमुद्दंडं | हणिऊर्ण हयमहिय॑ विहियमसेसं पि रिउसेन्न ॥२५२॥ 
अमलियमाणो बलभद्दभाउणो मुइयमाणसो मिलिओ । जेण न सीहो वसणस्सिओ वि सज्ञझो सियालाणं ॥२५३॥ 
अह कत्थद तरुतलछाइयाए तरुपत्तरइयपुडएहिं । भुंजंति जाव ता तेहिं सुमरियं पुव्वभुत्तत्स ॥२५४॥ 

हा जिय ! तारिसभुंजाइयाए तह भुंजिऊण सविलासं | सम्माणदाणपरिवज्एहिं परिभुजइ इयाणिं ॥२५५॥ 


३७. दैवनिवारणा5शक्‍्यताधिकारे याद्वाख्यानकम्‌ ३१९ 


कह सा जिण-गुरुपूया कह सा कलंगीयपमुहसामग्गी ? । कह सो बंधववग्गो ? कह ते जीवियसमा कुमरा ? ॥२५६॥ 
हा हियय ! कि न फुट्टसि सुमरंतं सरसपुव्वभुत्ताणं १ । इन्हि विदेसिएहिं परिभुज्जद भोयणं विहलं ॥२५७॥ 

तह वि हु परिभुंजिज्जर गयलणज्जेहिं छुद्ा-पिवासाओ | पत्थावमपत्थावं ज़ाणंति न जेण पावा उ ॥२५८॥ 

एवं सविसायमणा भुंजित्ता वीसमित्तु खणमेगं । पुरओ केत्तियमेत्तं मूभागं जाव गच्छंति ॥२५५९॥ 
कंट्यपहाणबब्बूल-बोरि-धव-खह्रपमुहतरुनियरं । करकरकरन्तकायं पत्ता कोसम्बवणमसुहं ॥२६०॥ 

ता लवणमोयणाओ खरतरकरतरणिगाढतवणाओ । अंशुवियसमाओ पुन्नक्खयाओं दवदद्धभममणाओ ॥२६१॥ 

कन्होीं तिसामभिभूओ मुच्छाविहलंघलो तरुतलमम्मि | पड़िओ बंधव ! तण्हाए बाहिओ गंतुमसमत्थो ॥२६२॥ 

वाम॑ पायं काऊणमुवरिमियरस्स रायलीलाए | पच्छाइऊण कोसेयपीयवत्थेणमप्पाणं ॥२६३॥ 

नेमिजिणेसरवयणं व सीयलं सुहय ! पायसु जल ति। अन्नह पाणा वच्चंति मज्कू इय भणिय पासुत्तो ॥२६४॥ 

एयं सुन्नमरन्‍्नं ता अपमत्तेण वच्छ ! होयब्वं । जेण5म्हाणं बहवे वसणावडियाणमरिनिवहा ॥२६४५॥ 

भो भो वणाहिया देवयाउ ! एसो पिओ महं भाया । नासो मुक्को तुम्हं रक्खेयव्वों पयत्तेणं |।२६६॥ 

अप्पाहिझण एवं जलमत्रिसिउं गयम्मि बलभद्द । भवियव्वयावसेणं जं जाय॑ तं॑ निसामेह ॥२६७॥ 

खर-फरुससरीरछवी पलंबमंसू परूढदीहनहो । वल्लीवियाणसंजमियमुद्धओ वाहवेसधरों ॥२६८॥। 

कन्हस्स कालपासेहिं कड्डिओ कलियकंडकोयंडो । पत्तो तम्मि पएसे जराकुमारों कयंतो व्व॥२६९॥ ग्रन्थाग्रम्‌ १२०००॥ 
आरोविऊण धणुहरमायज्न॑ कट्डिउं कढिणकंडं । कन्हों मिगब॒द्धीए विद्धों वामम्मि पायतले २७०॥ 

तत्तो भयरहिएणं ससंभमं उद्ठिऊण भणियमिम | भो भो ! किल केणाहं विद्धो बाणेण पायतले ? ॥२७१॥ 

ता साहउ नियवंसं नियनामं नियकुर्ूं नियं कज्ज । जेण मए न कया वि हु अयाणिओ पहयपुव्बो त्ति ॥२७२॥ 

हा हा ! धिसि धिसि ! मम चेट्टियस्स एसो हु माणुसो कोह । हरिणजुवाणो न हु होइ एस इय खिज्बिउं बहुयं ॥२७३॥ 
वंसाइयं च पुच्छह ता त॑ उवसप्पिऋ॥ साहेमि | सो भो ! अहयं हरिवंससंभवों जायवसगोत्तो ॥२७४॥ 

नाम॑ जराकुमारो पुहरेणकल्लवीरचरियस्स । जायववित्थयनहयलूमयंकवसुदेवतणयस्स ॥२७५॥ 
रुर-.हरिण-सीह-सदृदूलभीसणे काणणम्मि कण्हस्स | जीवियसमस्स रक्खत्थमेत्थ निवसामि अइृदुहिओ ॥२७६॥ 
इयमायल्निय कण्हो जराकुमारों त्ति एस नाऊण । उम्घाडियदु हनियरों एवं भणिउं समाढत्तो ॥२७७॥ 

ए ! एहि एहि भायर ! परोवयारेक्ररसिय | परिरंभ । एसो सोहं कण्हो तुहमप्पाणस्स वि य दुहओ ॥२७८॥ 

तेणुत्तं परिरंभणमुचियं पजलियचियानलस्स महं । निल्लक्खणस्स न उणो पसत्थलक्खणवओ भवओं ॥२७९॥ 
पियबंधवस्स जीवियसमस्स बारसमवरिसमिलियस्स । कण्हस्स मए भयवं ! विहियमणज्जेण पाहुन्नं ॥२८०॥ 

पावस्स कि न निवड॒इ गयणाओ मज्क मत्थए व्ज ! । जइ वा सो वि हु संकह फंसेमयाओ जओ भणियं ॥२८१॥ 
एरिसकम्मरयाणं ज॑ न पडइ खडहडंतयं वज्ज | त॑ नुणमिमो चितइ छिविउमिमे कत्थ सुज्किस्स ? ॥२८२॥ 

इय खिज्िऊण बहुय॑ कंठम्मि विलमिऊण कन्हस्स । उम्मुक्षमहाधाहं कहुणसरं रोविउं छमयो ॥२८३॥ 

हा कन्ह ! हा जणद्ण ! हा जायबगयणमंडणमयंक |! | हा | कहमिहमायाओ त॑ बंधव-बंघुजणरहिओ १ ॥२८४॥ 
कि वा विसामि जलणे? कि वा पविसामि गुविलपायाले ? | कत्थ गओ सुज्झिस्सं ? कस्स मुहं दरिसइस्सामि? ॥२८४५॥ 
आसंसारमकित्ती संजाया मज्झ मंदभग्गस्स । जह नियभाया कन्हों जराकुमारेण निहओ त्ति ॥२८६॥ 

नियवइयरों य एसो जराकुमारस्स पुच्छमाणए्स । कहिओ कण्हेण तहिं सब्बो आगमणवुत्तंतो ॥२८७॥ 

इय पलवंतो एसो बाहजलापुन्नदीणनयणजुओ । भणिओ जणदृणेणं अवसर त॑ मज्झ पासाओ |॥२८८॥ 

हिययाओ कुत्थुभमरणि पायतलाओ समुद्धरिय बाणं । पच्छाहुत्तपएहिं पयाहि त॑ पंडुमहुराण ॥२८९॥ 

जह पुण कहमवि एही बलभद्दो तो तुम पि मारिहिही । मा वयउ विणासं जायवाण वसो निरवसेसो ॥२९०॥ 


3 +५+ “-+िनननीयीनी न नयान-++>फकनओे >ी- 4०७५५ ५+-3-५००-००-+-“जम्ाक, 


१, अनुचितभमात्‌ । २, स्पशभयात्‌ । 


३२७० 


आश्यानकमणिकोशे 


पुब्बोइयवुत्तंतो बारवदेएण विणासपज्जंतो । मज्ञ वि मरणं एवं कह्वियव्वं पंडुपुत्ताणं ॥२९१॥ 

एवं बहुप्पयारं रुषमाणों पत्नवित्त कन्हेण | कहमवि किच्छेण तया जराकुमारों विणिगमिओ ॥२९२॥ 
कण्हो वि बाणपहरुत्थवेयणाविहुरविग्गहावयवो । वेरगगरभावियमणो चितिउमेवं समाढत्तो ॥२९३॥ 
पेच्छा5हो ! मम तारिसनिरुवमहरिवंससंभविस्सावि । तारिससिणिद्धबंधवसहस्सपरिवारियस्सावि ॥२९४॥ 
खणमेत्तेण वि दुद्धरविह्वणवसवत्तिणो ममेयारणि | एगाणियस्स मरणं हरिणस्स व जायमुत्तं च ॥२९५॥ 
खणदंसियसुरसरिवित्थराइं खणसुन्नरल्सरिसाईं | एयाइईं ताइं कम्मिदयालिणो जीव ! ललियाईं ॥२९६॥ 


ता अलमिमिणा परिचितिएण कज्जम्मि देमि निययमणं | भावियजिणवयणाणं जियाण परिदेवणमजुत्त ॥२४७॥ 
संपह नेमिजिणेसरपमुहाणं मज्क तित्थनाहाणं | पाया सरणं निज्जियजम्मण-मरणाण सिद्धाणं ॥२९८॥ 

साहण नाण-दंसण-चरणजुयाणं गओ सरणमिण्हि । केवलिपन्नत्तस्स वि धम्मस्स महाणुभावस्स ॥२९९॥ 

इय चउसरणगओ हूं सम्म॑ निंदामि दुक्कडं इण्हि | सुकडं अणुमोएमो सव्वं बिय ताण पच्चक्खं ॥३००॥ 
पंचप्पयारमहया रजायमे्सि समक्खमालोए । वयपरिणामो पुण मज्ञ जाणमोणस्स वि न जाओ ॥३०१॥ 

ते धन्ना कयपुन्ना संबकुमाराइया मह कुमारा । रुप्पिणिपामोक्खाओ पियाओ में निबिडनेहाओ ॥३०२॥ 

जे चहइऊर्ण घरवासमेरिसं दुक्खसंतहनिहाणं । जिणपासे पव्वह्या ता तेसि वयाणिमणुसरिमों ॥३०३॥ 
संगामपमुहपावं समायरंतेण के वि जे जीवा । इहभव-अन्नभवेसु वि दुक्खविया ते खमावेमि ॥३०४॥ 

अज्नं च सरणमिण्हि विसेसओ मज्क मरणसमयम्मि | जिणसासणस्स सारो परमेट्रीणं नमोक्कारों |॥३०५॥ 

एवं मुहुत्तमेगं जाव5च्छह सुद्धमणपरीणामों । तावासुहकम्मवसा सरिय दीवायणरिसिस्स ॥३०६॥ 

पेच्छ अहो ! तेण तया कुलिंगिमेत्तेण तुच्छछूवेण । भुवणे अगंजियर्स वि माणमरट्टो महं भग्गो |३०७॥ 

जं मह पेच्छंतस्स वि दद्धा नयरी सुरिदपुरिसरिसा । पिय-माइ-सयणवग्गों विणासिओ पावकम्मेण ॥३०८॥ 

ता जह पेच्छामि तयं संपयमवि पावकारिणमणज्वं | कड्ढ मि तदुदराओं तो हं सऋलंतरं सब्बं ॥३०९॥ 

एवं वहगयहियओ पुणरवि जाओ किलिट्ठषपरिणामो । जारिसिया इह व गई मई वि मरणम्मि तारिसिया ॥३१०॥ 
रुदज्ञाणोवगओ सुमरंतो वहरभावमणवरयं | मरिऊण समुप्पन्नो3सुहलेसो वाहुयपभाए ॥३११॥ 

एत्थंतरम्मि बलभद्दबंधवों बंधुबंधुरसिणेहों । परिपूरिकण पयसो पोयिणिपुडयं पहपयट्टो ॥३१२॥ 

पाइस्सं पाणपियं सीयलमिणमो जलं ति चिंतंतो । न मुणइ मणयं पि जहा विहिविलसियमन्नहा जाय॑ ॥३१३॥ 
अवसउण मग्गखलरूणा निययमणे संकिओ सकम्माण | विवरीयत्तणओ तह तुरियगई तत्थ संपत्तो ॥३१४॥ 
पेच्छद त॑ तयवत्थं परिसंतो सुयठ ताव मह भाया । पडिबुद्धं पाइस्सं जल ति संठविय जलपुडयं ॥३१५॥ 

जा जोयइ वयणमिमो ता पेच्छह कसिणमव्खियावरियं । मयगसरूव॑ नाउं धसक्षिओ ताव हिययम्मि ॥३१६॥ 
पडिबोहिओ वि कह वि हु जा न पयंपेह ता मय॑ नाउं | उम्मुकमहानाओ ताब हली रोविउं रूग्गो ॥३१७॥ 
वाहो वा सुहडो वा जो को वि वणे स होउ मह पुरओ । जेणेस्त सुहपसुत्तो विद्धों पायम्मि मह भाया ॥३१८॥ 
बाल विद्धं समणं नार्रि सुत्तं पमत्तमह मत्तं । पहरंति न सप्पुरिसा ता नुण स को वि काउरिसो ॥३१९॥ 

ता पयडउ अप्पाणं पोरिसवायं च चत्तमज्ञाओ । जेण भडवायजणियं भंजेमि मरटमविसेसं ॥३२०॥ 

हा कन्ह ! कन्ह ! बंधव ! कत्थ गओ ? पसिय देखु पडिवयणं। अवरद्धं न कया वि हु तुज्क मए कह णु मह रुट्टो !"॥३२१॥ 
पेम्ममकित्तिममेयाणमलियमेयं पि संपयं जायं । अन्नह कह तुह मरणे अहमिह जीवामि निप्पुन्नो ? ॥३२२॥ 
मोडइ हत्थे तोडइ सिरोरुहे भिडइ रुक्खमूलम्मि । ताडइ बच्छं फोडइ महीयलं पण्हिघाएहिं ॥३२३॥ 
खणमेगत्थ वियंभह विस्संभइ तत्थ पासमल्लियइ । नियदेवमुवालंभइ परिरंभह मयगकन्हतणूं ॥३२४॥ 

उग्गायह खणमेगं खणमेगं रुयइ हसइ खणमेगं । खणमेगं परिदेवह वेवह खणमेगमन्नत्थ ॥३२५॥ 

कश्या वि मोहवसगो पलवह असमंजस असंबद्धं । कहया वि हु वीसत्थो रोवह सरिऊण गुणनियरं ॥३२६॥ 


आह च--- 


इ८, मएस्॒तरोद्नाविभैरथंक्याधिकारे भरताब्यानकम्‌ '३२१ 


हा चंदवयण |! हा रूवमयण | हा कमलपत्तसमनयण | | हा अमयवयण ! हा गरिमगयण ! हा वच्छ | नररयण ! ॥३२७॥ 
हा पुहहवीर ! है वसणधोर ! हा समरसुहडसोडीर ! । हा भुवणमल्ल ! हा वइरिसल्ल ! हा तुंगिममहल्ल ! ॥३२८॥ 
रूवं सोहर्गं वा लावन्नं वा पिथंवहत्तं वा | सोजन्न दक्खिन्नं पुन्नमपेसुन्ननेउन्ने ॥३२९॥ 

चाय॑ नाय॑ बायं अविसंवायं विसिद्बसमवायं | गुणमणिरोहण ! रोएमि क॑ गुणं तुहमहमहन्नों ? ॥३३०॥ 

अज्ज वि जीवह रुट्टी त्ति मुणिय परिममह जाव छम्मासे | खंधारोवियमडओ वणमज्झे मोहवसवत्तो ॥३३१॥ 

जाणंतो वि हु भुल्लो अहह ! महामोहबिलसियमपुव्यं | दुढमवियाणिय मज्झं जेण नडिज्जंति गरुया वि ॥३३२॥ 


विविच्य बाधा: प्रभवन्ति यत्र,' ' “मिथ्यामतयश्वरन्ति। संसारमोहस्त्वयमन्य एवं, दिग्मोहबत्‌ तक्तधिया सहा55स्ते ॥३३३॥ 


अपरं च केनचिदनक्षेयुक्तममुष्मे नमस्कृतम्‌-- 


कृच्छाद्‌ बल्लेन्द्रभूतिरजनि परमितः स्थूलभद्रो विकारं, मुश्चत्यश्रण्यजन्नं मणकमृतिविधो पश्य सेज्जम्भवोडपि | 
पण्मासान्‌ स्कन्धदेशे शबमबहदसौ हन्त ! रामो5पि यस्मादित्यं यश्चित्ररूपो भवतु भुवि नमो मोहराजाय तस्मे ॥३३४॥ 
जह गिरिवरगगरहचडणरूव-चिरमयगगाविचारणओ । दवदद्धरुकखर्सिचण-सिलपठमिणिरोबणपयारा ॥३३५॥ 
रमणीयरमणिकन्हा वहा रसिढिलियसिणेहबंधणओ । संबुद्धममकयकन्हकायसक्कारकरणेण ॥३३६॥ 
संकेयसहियपव्वइयपत्तमुरलोयदेवरूवेण । सिद्धत्थनिययसारहिजिएण पडिबोहिओ य जहा ||३३७॥ 
तवलद्धिसहियजिणनेमिपहियचारणसमीवपव्वइओ । जह विहियविविहतव-चरणपत्तमाहप्पगुणबसओ ॥|३३८॥ 
पडिबुद्धसीह-सदुदूल-ह रिणवणसत्तसंघपरियरिओ । गुणविम्हियवणयरलोयदिद्टिपीऊसविद्ठिसमी ॥३३९॥ 
पारणयद्विससंपत्तसीमसबिया रनारिदंसणओ । तक्खणनियत्तवणमज्क्पत्ततणु वित्तिकयनियमों |३४०॥ 
जह हरिणकहियरहयारपासभिक्खानिमित्तमभिपत्तो । जह अद्धछिन्नतरुपडणअप्पतिगपत्तमुहमरणो ॥३४१॥ 
जह बंभलोयवरकप्पपत्तपंचप्पयारविसयसुहो । तत्तो चविऊण जहा सिज्मिस्सइ कन्हतित्थम्मि ॥३४२॥ 
तह तच्चरियपवंचियवित्थरनिउणाओ समयसिद्धाओ । हरिवंसाओ नेयं इह पुण संखेवओ भणियं ॥३४३॥ 
॥ यादवाख्यानकं समाप्तम्‌ ॥११०॥ 


इदानीं मित्राणन्दकथानकस्यावसरः, तच्च भावद्टिकरार्यानके भणितमिति | 


एएहिं बुद्धिमंतेहिं सत्तमंतेहिं उज्जमपरेहिं । तह वि न खलियं एय॑ एवं दुजयं हम॑ दइवं ॥१॥ 
दंष्राकरालवदनं हरिमप्यजन्ति, मत्तं करीन्द्रमपि वीरषियों घरन्ति । 
कल्लोलसह्ड लमपांपतिमापिबन्ति, देव बृहस्पतिधियो5पि न वारयन्ति ॥१॥ 


॥ इति भीमदाप्नदेवसूरिविरखितवृत्तावाख्यानकमणिकोशे5शक्यदैवनिवारणप्रतिपादनपरः 
सप्तत्रिशशमो <धिकार: समाप्त: ॥३७॥ 


+>5५ छे६०“८ 


[ ३८, नष्टम्ृतरोदनादिनेरथंक्याधिकारः ] 


प्राय दैवमस्खलितप्रतापमभिहितम्‌ | साम्प्रतम्‌ 'एतद्वशगानां स्वजनादौ स्ते रोदनाद्पार्थक्म!ः इत्येतद्मिधीयते। 


तथथा-- 


डे) 





रुन्‍्नेण सोइएण य कालग्पत्थो न एड इह बंधू । 
भरदो सगरो रामो पउमो एत्थं उदाइरणा | ॥ 





वि 


१, ०प्रभावमभि७० २० ॥ 


३२२ आखज्यानकमणि कोशे 


अस्या व्याख्या--रुदितेन! अश्रुविमोचनेन 'शोचितेन च” मानसाशुभव्यापारेण 'कालप्रस्त:' कृतान्तक्रोडीकृतः “न! नैब 
“एह” त्ति आयाति 'इह' अस्मिन्‌ लोके 'बन्यु:? स्वजनः । दृष्टान्तानाह--'भरतः? प्रथमचक्रवर्ती, 'सगरः” द्वितीयचक्रवर्ती, 'राम 
बलदेव:, 'पदूम:” लक्ष्मणबृहद्आता “एव्थं” ति अत्रार्थ “'उदाहरणानि' इृष्टान्ता इति गाथासमासाथं: ॥:व्यासा्थस्त्वाख्यानकैराह । 


तानि चाम्‌नि। तत्नापि क्रमायात॑ प्रथमं किल्निद्‌ भरताख्यानकमाख्यायते-- 
इह जश्या किर भयवह रिसहजिणिंदे जुगाइजिणवसभे । तिहुयणछूमगणखंभे अट्ठावयपव्वए सिद्धे ॥१॥ 
संपह् भयवं ! सम्मम्गगमणखलणेक पच्चछो भुवणे । पसरिस्सह तमपसरो अठिद्नपरमत्थसब्भावो ॥२॥ 
वियरिस्सद अक्खलिओ कुलसुइ-कुद्ट्टिपंसुलीसत्थो । तमसा अपस्समाणे जणनिवहे सुइसमायारो ॥३॥ 
वीसुं पि वियंभिस्सह कुनयपवत्तियकुवाइबयूयगणो । केवलकिरणुस्सारियतमम्मि तइ पवसिए सूरे ॥४।। 
वग्गिस्संति जगवणे परतित्थियकसिणमयगलकुलाईं । सियवायदाढदसहे भयवं ! तइ पवसिए सिंहे ॥५॥ 
एवं बहुप्पयारं परिनिव्वाए जिणे जयपईवे | सयलं पि जयं तमसा अप्फुन्नमिणं ति मुणिऊणं ॥६॥ 
आणंद-सोयवसओ संकिन्नरसं समुव्बहंतेण | विबुहहिवेण विहिओ जया महंतो मणे खेओ ।।७॥ 
हा भुवणुत्तम ! हा भुवणनाह ! हा भुवणबंधव ! सरन्न ! | हा भुवणच्चिय ! हा भुवणभीर ! हा भुवणनररयण ! ॥८॥ 
हा भुवणुत्जल ! हा भुवणवीर ! हा भुग्णवल्लह ! जिणिद ! | तुमए गुणमणिनिहिणा विवज्ियं सामिसालेण ॥९॥ 
जायमणाहं भुवर्ण कंदंतों संगयं ससोगमणो । जाओ जहत्थनामों सक्को संकंदणों जया ॥१०॥ 
तइया किर भरहों वि हु सोयसमुप्फुन्नमाणसा सययं | नियजणयमरणदुहिओ अव्वत्तसरं रुपह हियए ॥११॥ 
न मुणइ जह रोइज्जइ लोयम्मि मयम्मि वल्लहजणम्मि | ता निबिडसोयगंठी जाओ भरहरस हिययम्मि ॥१९॥ 
चिंतइ सुरनाहो वि हु मा पीडिज्जउ इमो महापुरिसो । मुक्को धाहासद्वों भरहस्स विलग्गिउं कंठे ॥१३॥ 
भरहेसरो वि मह॒या सद्देण तहेव रोबिउं छूम्गो | सव्बजणो वि हु एवं रोवइ तइ्या दुह्मभिहओं ॥१४॥ 
ससुंरिदेण वि भरहेण रोविए न य नियत्तिओ ताओ । ता कि इमिणा भावहनिरत्थएणं परुत्नेणं ! ॥१५॥ 

॥ इति भरताख्यानकं समाप्तम ॥१११॥ 

अचुना सगराख्यानकमाख्यायते | तश्चेद्म्‌-- 
वज्जह रज्जपयवि व्व गोरिगीयावसत्तहरिणि व्व | कामियणसुरयकिरिय व्व सुइसमायारसेणि व्व ॥१॥ 
पायालनिल्यलरूच्छि व्व जा निरायंसुरामनायरया । भुवणत्तयविक्खाया अत्थि अउज्काभिहाणपुरी ।|२॥ 
साहियछखंडभरहो अइसयसंपुन्ननवनिह्ाणवई । मउडविभूसियबत्तीससहसनरनाहनमियकमो ।।३॥ 
रूवाइगुणविणिज्ियसुररमणीणं विसिट्टविलयाणं । चउसट्ठिसहस्साणं भत्ता भुवणब्भहियमहिमोी ॥४।। 
नाहो हय-रहवर-गयवराण चुलसीइसयसहस्साणं | चउद्सरयणाहिवई त॑ पालइ सयरचक्षवई ॥॥५॥ 
तस्स य समकुमराणं रूयविणिज्जियजयंतकुमराणं । गंजियरिउसमराणं जिर्णिद्पयपउमभमराणं ।॥६॥ 
निरुवमनररयणाणं सद्ठिसहस्साणि सुंद्रसुयाणं । अवरं पि हु अश्चब्भ[यभू |यं सब्वं पि चक्षिसुहं ॥७॥ 
अह अन्नया कुमारेहिं नियपिया [स]विणएहिं विन्नविओ। ताय ! तुह रिद्धिसहिया परिक्षमामों पुहईवीढे ॥८॥ 
ससिणेहमणुन्नाए मणुन्ननरवहसिरीए दिप्पंता | वियरंता संपत्ता अद्टावयपव्वयं कुमरा ॥९॥ 
पेरंतपयडकडओ विविहविरायन्ततुरय-गयगमणो । विलसंतसेयचमरों गिरिमाकलिउं नरवह व्व ॥१०॥ 
सूरो व्व सुद्धवंसो विचित्तवणराइरेहिरसरीरों | पयडसमुन्नयपाओ अद्वावयपव्वओ दिद्ठों ॥११॥ 
सेन्न॑ निवेसिऊ्णं तलम्मि तच्॑ंगिम॑ नियच्छंता । उवरिमभाए चडिया पए पए कोठग5क्खित्ता ॥१२॥ 
दिट्टे पव्वयसिहरं सुरसयणसमत्नियं मयप्पवरं । महुपाइकुलं व पडिक्खलंतपयचाररमणीयं ॥१३॥ 
जवल्थिंदनीलमणिमयकुट्टिमतलमूमिमज्कसंकंतो । उड्डनियरो जणइ जणस्स धरणिगयगयणआसंक॑ ॥१४॥ 
विलिहियगयणंगणतुंगसिहरसयसन्निरुद्ध गहमग्गं । पव्वयचंगिमदंसणसंपत्तं सुरविमा्ण व ॥१५॥ 


३८. नण्टस्त॒तरोद नादिनैरथेक्याधिकारे सगराख्यानकम्‌ शेर 


विरशइ्य(वियरइ) विसंकमित्तो धणओ इव विहियउत्तरासंगो । पयडियपुप्फविमाणो विरायए जत्थ सुरविसरो ॥१६॥ 
वन्नप्पमाणसंगयविमाणदिप्पंतदेवपडिमहरं । सरग॑ व जिणाययणं नियंति निरुबददवं तत्थ ॥१७॥ 
उसभाइजिणेसरपडिमदंसणुप्पक्नपयडरोमंचा । पणमित्तु भावसारं एवं था समाढत्ता ॥१८॥ 
चक्कंकुसलक्खणु, भुवणविलक्खणु , पक्खालियबरहुपावमरहु। चउत्रीसजिणिंदहं , पणयसुरिंदहं, पणमिवि भत्तीए पयक्रमलु ॥ १९॥। 
अट्टावयपव्वयसेहराहं, भरहेसरकारियजिणबराहं । जसु जेत्तिड जिणद पमाणु वन्नु त॑ पभणहुं निसुणहु देवि कन्नु ॥२०॥ 
धणुसयईं पंच सिरिरिसिहसामि, वरकणयकंति करिलीलगामि । 
घणुसय चियारि पंचासअहिय, कणयप्पहि अजियजिर्णिंद कहिय ॥२१॥ 
संभवह जिणिंदह सय चियारि, उच्चत्त कणयवज्नह वियारि | आहुद्रसयह घणुहहं पमाणु, हेमाभह अभिनंदणह जाणु ॥२२॥ 
सय तिन्नि सुमइपरमेसरहो, उत्तत्तकणयतणु भासुरहो । निम्मलपवालजुइसुप्पहस्स, अड्डाइथ सय पउमप्पहस्स ॥२३॥ 
दुइ धणुसय आसि सुपाससामि, तवणिज्जवज्नु सिवनयरगामि । 
चंदप्पहु जिणवरु चंदछाउ, धणुसउ दिवड्ढु तसु तणठ काड ॥२४॥ 
जिणसुविहि संखतलविमलदेहु, सो धणुसउ एक्कु गुणोहगेहु । 
जिण घणुह नउइ सीयलसनामु, तवणीयवन्नु निम्महियकामु ॥२५॥ 
सेयंसु सुवन्नसवत्नकंति, धणुहृहं असीइ तसु तणु कहंति। रत्तुप्पलरतु सुरिंदपुज्ज, सत्तरि धणुह ह॑ं सिरिवासुपुज्जु ॥२६॥ 
जिणु विमलु विमलकरु कणयवन्नु, सो सट्टिवणुह्द सिवपहपवन्नु ! 
पंचासधणुह जिणवरु अणंतु, कुलभवणु सिरिहि कल्होयकंतु ॥२७॥। 
सिरिधम्मु धम्मघुरधरणधीरु, पणयालधणुहमज्जुणसरीरु | सिरिसंतिजिणह चालीस आसि, जो हेमवन्नु सिवनयरिवासि ॥|२८॥ 
पणतीस कुंथुजिण हेमभासु, जि सासयसिवपुरि पत्त वासु । 
अरु कणयवन्नु धणुहरहं तीस, जसु पणमहिं पाय सुरासुरीस ॥२२९॥ 
नीलुप्पलसामलु मन्लिनाहु, पणुवीसधणुद्द केवलसणाहु | मुणिमुव्बउ सुव्वउ सामभुत्ति, सो वीसधणुष्ट वज्जरिय मुत्ति ॥३०॥ 
पन्तरसधणुहद नमिजिणवरासु, तवणीयतणुहु पणयामरासु । घणकज्जलसामलु रिट्ठनेमि, दसधणुह धम्मवरचकनेमि ॥३१॥ 
मरगयसवन्नु तित्थयरु पासु, नवहत्थ विणिद्घुयकम्मपासु । कणयाभु सत्तरयणीपमाणु, सिद्धत्थह नंदणु वद्धमाणु ॥३२॥ 
इय निरुवमसासण, भुवणपयासण, जो नरु भत्तिए संथवह | 
चउबीस वि जिणवर, सिवसिरिवहुवर, सो संसारि न संभमइ ॥३३॥ 
एवं थोउं जिणहरगिरिवरगयचंगिमाहरियहियया । पुच्छंति मंतिवग्गं सप्पणयं ते पयत्तेण ॥३४॥ 
केण इमं जिणभवर्ण कारवियं सुकयकम्मुणा सुहयं ? | तेण वि कहियं॑ जह किर नियजणयसयासओ सोउं ॥३५॥ 
जिणभवणविहाणफलं कारवियं भरहचक्किणा एयं । तेहिं वि भणियं जोयह ए्यारिसपतव्वयं रम्मं ३६॥ 
जेणं अम्हे जिणभवणमेरिसं मणहरं करावेमो । तेहिं वि तारिसयगिरी गवेसिओ वि हु महीवीढे ॥३७॥। 
जा कह वि नोवलूद्धो ता भणियमिमस्स चेव काहामो । रक्खाविहाणमणहं जेण महागुणमिमं पि जओ ॥३८॥ 
जिन्नाणं सिन्नाणं भद्टाण महाफलं समुद्धरणे । समए चिरंतणाणं दंसियमन्नच्चयाणं पि ॥३८॥ 
तत्तो बड्ुइरयणेण छिंदिउं जोयणप्पमाणाओ । पहइयाओ दुरारोहाओ भाविमणुयाण विहियाओ ॥|४०।: 
चउपासेसुं जोयणसहस्समाणा खणाविया परिह्ाा | जिणभवणरक्खणट्टा बिसुद्ध चित्तेहिं कुमरेषहि ॥४१॥ 
जाओ भवणवईणं भवणेमु उबदवो तओ रुट्टो । जलणप्पहाभिहाणो अग्गिकुमारों गुरुपभावों ॥9२॥ 
आगंतूण्ं भणिया भो पावा ! कि समायरियमेयं १ । अहवा दुल्लनयकरणाणं तुम्ह समुवषद्टधियं मरणं ॥।४ ३॥। 
तो जन्हकुमारेणं मा रूस सुभद्द ! जिणहरस्स कए । कयमेयं ति सविणयं खमाविओ सो गओ ठाणं ॥४४॥।। 
भवियव्वयानिआगे तेसि चिंता पुणो इमा जाया । अइसोहणा वि परिह्ा जलरहिया सोहदइ न एसा ।।४५॥ 


३२७ 


आश्यानकमणिकोशे 


तो सारणि विहेउं गंगानीरप्पवाहमाणेउं । परिपूरिया समंता पत्तं नीरं असुरभवणे |।|३६॥ 

तो जलणप्पह्अमरेण नीरभरपू रिए निययभवणे ) रुसिऊण नेत्तजलणेण भासरासीकया कुमरा ||४७॥ 

तत्तो दश्ववसेणं तेसिमकंडम्मि तारिसे जाए । क़रिंकायव्वविमूढो परिवारों कंदिउं छग्गो ॥४८)॥। 
अबरोह-मंति-सामंतपमिइणो5सज्झदुहभरक्कंता । हाहारवमुहलद्सा सब्बे वि हु पलविउं रूम्गा ॥४९॥ 

हा रूव-कंति-विज्राण-नाण-लायत्नरयणजलनिहिणो १ । कत्थ गया सब्बे वि हु मोत्तुमणाहे समगमम्हे १ |।५०॥ 
अम्हे अक्खयदेहा कुमरा सब्बे वि जममुहं पत्ता | एरिसमकंतवयणं को णु कहिस्सह पुरो रज्नो ! ॥५१॥ 
एत्थेव ता मरामो निब्भग्गा कि गया करिस्सामों ? | इय कयनिच्छयहियया तया वियाओ रयावेति ॥५२॥ 
दट्‌ ठुणं तं बइयरमेगेण दिएण चिंतियं तमिमं | मूढाण विकसियमिमा किमणत्थपरंपरा अवरा ! ॥५३॥ 

पमणह भट्टो भद्दा ! तुब्मे वि हु मा निरत्थयं मरह । मा भवउ उबरि गंडस्स फोडया तुम्ह मरणेणं ॥५४।। 
रज्नो य सावइस्सं पढममहं चेव कुमरवुत्तंतं | इय सब्बे वि मरंते निसेहिउं बुद्धिम॑ विष्पो ॥५५॥ 

काऊण मडयमेगं खंधे पोक्रह नयरमज्भम्मि | अन्नाओ अन्नाओ अहो ! हु सयरे वि पभवंते ॥५६॥ 

राया वि हु पयईए माणससरसल्लिसच्छहों सोउं । पुच्छह करिमेयमन्नायधोसणं भणइ विप्पो वि ! ॥५७॥ 
देवेगो संपयमंधजट्टिया पाणवल्लहो पुत्तो । दसिऊण सप्परूवेण हयकयंतेण मह हरिओ ॥५८॥ 

राया वि हु गारुडिए वाहरिउं भणह मंतसत्तीए | जीवावह पृत्तमिमं महाणुभावस्स विप्पस्स ||५९॥ 

ते वि हु सब्वे मिलिउं सामत्येऊण निययबुद्धीए । कुणिमो देवाएस सब्बमिमं कि वियप्पेणं ! ॥६०॥ 
परमाणावसु भूइं देव ! कुओ वि हु कुलाओ जत्थ कुले । न कया वि हु कोइ मओ तो रज्ना पेसिओ विप्पो ॥६१॥ 
नीसेसनयरमारहिंडिऊण परिपुच्छिकण पहभवर्ण । अप्पत्तमंतवाईवुत्तविसेसणकलियभूइं ॥६२॥ 

सो आगओ विलक्खो जंपइ एरिसविसेसणविसिद्ठा | देव ! न लब्भइ भूई उड्ढं देवों पमाणं ति ॥६३॥ 

तो ईसि विहसिऊ्ं भणिओ रज्ना स माहणो विप्प ! । जइ जणसामन्नमिमं ता तुज्ञ पराभवों को णु १ ॥६४॥ 


पंचजणसमाणे वि हु वसणे पत्ते न कीरई सोगो । कि पुण सयलनरा-5मर-तिहुयणसाहारणे मरणे ॥६५॥ 
भट्केण भणियमेवं जइ जाणसि तो थिरो मवसु सामि !। नियभणियं परिपालसु तमप्पियं सावइस्सामि ॥६६॥। 
जम्हा तुज्क वि संपह सह्टिसहस्साणि सामिय ! सुयाणं। समाग्गमणोलूग्गाईं जायाईं विहिनिओगेण ॥६७॥। 
सुणिऊण कन्नकडुयं तं वयणं विवसविग्गहावयवों । वज्जप्पहारपहओ व्व मुच्छिओ तयणु पुहहबई ॥६८॥ 
सत्थीकओ य सिरिखंडपवणजलसोयलोवयारेहिं । कुणइ पलावे दढसोयसंकुसल्लियसमम्गतणू |।६<॥ 
हा गुणनिहिणो ! हा जणयवच्छला ! हा सिणिद्धजणणिपिया ! । तुम्हाणं सब्बे्सि कहेह रोयामि कयरमहं ! ॥|७०॥ 
हा वच्छ रयणसेहर ! हा कणयद्धयकुमार | मणदइय ! | हा पुत्त पउमसेहर ! हा पउमुत्तर ! पियालाव ! |॥७१॥ 
हा सीहविक्कमंगय ! नियविक्रमविजियकेसरिकिसोर ! | हा गयवाहण ! मयगलूमंथरगइगमणदु ल्‍ललिय ! ॥७२॥ 
हा समरकेउ ! रिउविसरसमरजयसिरिनिवासकुलभवण ! । हा दढधम्म | मणोहर | धम्मियसव्बंगगुणगेह | ॥७३॥ 
हा वज्जंगय ! संगय | हा वीरंगय ! विसाल्वच्छयल ! | हय कयनामग्गाहं सयरो रोबइ नियकुमारे |७४॥ 
हा दइय ! निम्धिण ! तए समसुत्ती पाडिया ममेगस्स । दे ! पसिय पसिय दंससु सुयमेगं ताव मह पुरओ ॥७५॥। 
रे दइय ! किमवरद्धं तुज्क मए कहसु मंदभग्गेण । सुयरयणाण सहस्साणेगपए च्िय हरंतस्स ? ॥७६॥ 
हे विहि ! फुकिय ! निल्लज्य | पाव! निप्फुट्ट | चत्तमज्जाय ! । कि कुणसि एत्तिएहिं ! मुंचसु सुयमेगमुच्छंगे ॥७७9॥ 
हा ललिए ! लीलावइतिहुयणतिलए ! रयंगि ! रइसरिए !। कि न मरह सुयरहिया निप्पुन्ना संपयं सहसा ? ॥७८॥ 
हा हियय ! कढसु हा हियय ! फुडसु हा हियय | दलसु सयराहं | 
पाविय ! धरसि किमज्ज वि वज्जसिलिकराहिं निम्मवियं ? ॥3७९॥ 


३८. नष्ठसततरोद्वादिनिरथक्याधिकारे सगराब्यानकम्‌ १५५ 


कि नत्थि कोइ देवो गंधव्वों दाणवो व खयरो वा ? | कि निद्देवयमेयं ? न कुणइ ज॑ं को वि मह ताणं ॥॥८०॥ 
भणियं दिएण सुमरसु जं संपयमेव जंपियं तुमए | अहवा वि हु नियवसणे मुज्माह सव्वो वि जमिहुत्त ॥८१॥ 
दिज्जह सुहमुबएसो हत्थं नश्चाविकण अन्नस्स | नियवसणे सा बुद्धी न याणिमो कत्थइ पेलाया ? ।:८२॥ 

ता अज्ज वि होसु थिरो अवलंबसु धीरिम॑ महाराय !। विसह॒इ वज्जपहारं अयलो खिय न उण लेटटुदल् ॥८३॥ 
इय णेगपयारेणं रोवंतेण वि नरिंद्सयरेणं । नियद्‌हयकुमरनिवही न वालिओ मच्चगेहाओं ॥८४॥ 

सब्बे समाउया जह ज्ञाया आसायणाए संघस्स । उत्तरश्नयणाओ तहा जम्मंतरसंगयं नेयं ।|८५॥ 


॥ सगराख्यानक समाप्तम्‌ ॥११२॥ 


इदानीं रामाख्यानकस्यायर:, तथ्य यादवा ख्यानके भणितमेवेति क्रमप्राप्तं प्माख्यानकमारभ्यते । तश्चेद्स-- 


तथा हि-- 





जइया य दुह्ा वि हु पारदारिओ मारिओ दुरायारो । लंकानाहो वाहो व्व नीइरिणीए दहवयणो ॥१॥ 
जदया य निक्षलुका महासई अच्चुयं गया सीया । रज्जं पालंताणं लक्खण-रामाण पऊुंते ॥२॥ 
रामस्स सुए मरणे नियमेणं मर्‌इ लक्खणकुमारों । रामो वि हु तम्मरणे गहगहिओ भमइ भूवीढे ॥३॥ 
एवंविहो सिणेहों पाएण सहोयराण न3ल्नेर्सि। सक्‍केण सुरसमक्खं इय वज्जरिए नियसभाए ॥४॥ 
एगो असहृहंतो अणेगभडकोडिसंकडत्थाणे। सीहासणोवविट्ट लक्खणकुमरम्मि मायाए ॥५॥ 
अंतेउरं विहेउं हाहारवगब्मिणं भणइ देवो । मुट्ठा मुद् त्ति अहो ! मओ मओ रामदेवपह ॥६॥ 
त॑ वयणं सोऊणणं नेह5ज्मवसायजायसंघट्टो । उबविट्ठटी रूच्छिहरो मुकी सहस त्ति पाणेहिं ॥७॥ 
नेहो अणत्थहेऊ जियाण नेहो हु दुग्गइनिमित्त । नेहो हासद्ठाणं नेहों हु विडंबणाहेऊ ॥८॥ 
नेहेण नियलरहिओ भवचारयमंदिरे वसइ जीवों । नेहेण दर्द खुप्पद्ट जलरहिए कदमे मूढो ||<॥ 
नेहेण दारुरहियम्मि पंजरे वसह सइ सुओ व्व जिओ। कीलियविवज्जिए खोडयम्मि फुडमेस संवसइ ।॥|१०॥ 
नेहो विवेयवइरी अणामिया दृढमणत्थरिंछोढी । नेहेणं चिय परिभमइ जियगणो दुहभवावत्ते ।।११॥ 
पेच्छसु नेहेण इमो पंचत्तं पाविओ विमूढमणों | तेणं चिय परिचत्तो मूलाओ इमो विवेदेहिं ॥१२॥ 
इय भाविंतो देवो विरुक्खचित्तो विसायमावन्नों। धिसि धिसि विलसियमेयं अपरिक्खियकारिणो मज्ञ ॥१३॥ 
एवं विसन्नचित्ते पच्छायावेण दुमिए देवे । एएण निमित्तेणं मयम्मि लक्खणकुमारम्मि ॥|१४॥ 
हाहारबं कुणंते सोरोहे परियणे ससामंते । नीसेसे नयरिजणे संपत्तो रामएवो वि ॥१५॥ 
दट्ठ्॒ण निश्चेट्ठं विच्छायमुहँ च लक्खणकुमारं । मुच्छानिमीलियच्छो धस त्ति पडिओ महीवीढे ॥१६॥ 
सिसिरोवयारकरणा चेयन्नं पाविओ मणायमिमों | सिरिपउमपुहइपालो पलवह विविहप्पयारेहिं ॥१७॥ 
हा वच्छ ! लक्खण ! तुम॑ मम भत्तों कि न देसि पडिवयणं | | कि वा अब्भुट्ठटाणं न कुणसि मह पासपत्तर्स १ ॥१८॥ 
कि तुह गुरुयणविणयं ? कि वा पणय॑ च पणइवग्गम्मि १ | मग्गणगण्म्मि चाय॑ तुज्क गुणं कमिह वन्नेमि ? ॥१९॥ 


कि सुंबकुमरसिरछेयसाहसं सुज्जहासखग्गगहं । कि वा वि हु सुप्पनहाभीसणरक्खसिपराभवणं ॥२०॥ 

कि वा खरदूसणरायसमरभडमिडणसुहडनिव्वहणं । कि कोडिसिलुप्पाडणमहवा दृहवयणरक्खवहं ॥२२॥ 
भुवण<चचब्भुयभूयं विसिद्रजणविम्हयावहमपुव्व॑ | तुह वियसियक्रमलदलरूच्छ | वच्छ | रोएमि क॑ व गुणं १ ॥२२॥ 
तुह वच्छ | नावरद्ध कइया वि मए न यावि मह तुमण। ता कि संपह रुट्टो न देसि दुहियस्स पडिवयण्ण १ |॥२३॥ 
पावियफुडचेयन्नों चिंतह समईए रामदेवनिवों | कि एसो सच्च॑ चिय मओ न जं देइ पडिवयणं ? ॥२४॥ 
एत्य॑तरम्मि भणियं पहाणपुरिसेहिं एस अम्ह पहू | अवहरिओ हयविहिणा ता कोर देहसक्कारो ॥२५॥ 


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१, पल्लाणा २०। २. सूरहास० २०। 


३२६ आख्यानकमणिकोशे 


रामो वि भणइ पडिहयममंगलं तुम्ह एरिसं वयर्ण | न उणो मरिही कश्या वि बंधवों एस मज्ञ पिओ ॥२६॥ 
पुणरवि जंपइ पउमो दुज्जणलोीयाण मज्ञयाराओ । उद्बसु वच्छ | वयामो कहि पि दूरे अरन्नम्मि ॥२७॥ 
इय भणिऊणं खंधे काउ' अन्नत्यथ जाइ गहगहिओ । तत्थ वि न्हावइ धोवहई परिहावइ वत्थ-इलंकारे ॥२८॥ 
जेमावह परमन्नं मुहम्मि पक्खिवह सरसतंबोलं | उच्छंगम्मि निवेसिय परिमुसिउं वयणमालवह ॥२९॥ 
इय मोहमाहियमई पमूयका् वणम्मि परिभमह । खंधारोवियमडओ न मुणह जह एस कालंगओं ॥३०॥ 
तं॑ जह सारहिदेवो पडिबोहह जह य सीयदेविंदो। डबसग्गे कुणईइ जहा उप्पाडइ केवल नाणं ॥३१॥ 
तह सब्बं वित्थरओ विन्नेयं रामदेवचरियाओ | ठाणासुन्नत्थं पुण इह भणियं जाणियव्वमिमं ॥३२२॥ छ॥ 
॥ पश्माख्यानक समाप्तम ॥११३॥ 
एएहिं मओ बंघू बहुएण वि रोइएण ना55णीओ । तह अजन्नो वि न आणहइ निरत्थयं रोइयाइ तओ ॥९॥ 
आक्रन्दितेन बहुनाउपि च शोचितेन, साढ् सुरेश्वरगणेरपि रोदितिन । 
क्रोडीकृतं हतकृतान्तभटे: स्वबन्धु, प्रत्यानयेयुरिह केडपि न सद्धियोडपि ॥१॥ 
॥ इति भीमदाप्नदेवसूरिविरचितवृक्षायाख्यानकमणिकोशे नष्टरततविषयरोदनादिनैरथंक्यप्रतिपादनपरो<छटत्रिश- 
समो5घिकारः समाप्त: ॥३८॥ 


">>>५ दे-८० 


[ ३६ बन्धुकृत्रिमस्नेहत्वाधिकार: ] 


अनन्तरं रोदितादि निरर्थकममिहितम्‌ । अधुना चेतत्‌ स्नेहवशगेः क्रियमाणं कृत्रिमस्नेहत्वादू बन्धूनां निरवकाशमेवेल्येतद्मिधा- 
तुकाम आह-- 
बंधू वि हृह अरित्त कुणएह सकजण तेसु को मोहो १ । 
रविकंत-चुलणि-कोणिय-संख-मरहकणगकेउ व्व ॥ 
व्याख्या--बन्धु रपि आस्तां परः 'इह” अस्मिन्‌ लोके “अरित्व' शन्नत्व॑ “कुणइ” त्ति करोति 'स्वकार्येण” स्वप्रयोजनेन 
तेष बन्धुष 'को मोह: कः स्नेह: ? । दृष्टान्तानाह--रविकान्ता च! सूयकान्ता प्रदेशिनृपभायों 'चुलणी च! ब्रह्ममायो 'कोणिकश्व 
श्रेणिकपुत्र: 'शद्भुश्च' कलावतीपति: 'भरतश्व' वृषभजिनपुत्र: 'कनककेतुश्च कनककेत्वाख्यो राजा ये ते तथोक्ता: तद्गदित्यक्षराथ: ॥ 
भावाथ॑स्त्वाख्यानकगम्यः । तानि चामूनि । 
तत्नापि तायत्‌ क्रमप्राप्त रविकास्ताख्यानकमाख्यायते-- 
केयइदेससरोवरभूसणसियकमलसंडसंकासा । केयहदलरूघवला इब्भतुंगधवलूहरमालाहिं ॥१॥ 
सेयविया नाम पुरी तत्थडत्थि पएसिनाम नरनाहों। साहसिओ कूरमणों पावमई वम्मकलिओ वि ॥२॥ 
नाहियवायपरो वि हु दीसंतो रोहदंसणो दूरं | इहलोयविसियगिद्धो वसीकयासेसपरलोओ ॥३॥ 
सूरियकंता नामेण अत्यि लायन्नअमयरसकल्ला । नियरूवोवहसियतियसपणइणी पणइणी तस्स ॥४॥ 
तासाइदोसरहिओ फुरियपयावों य सूरसंजोगा । सुविसु द्धवन्नकलिओ सूरियकंतो व्व तस्त सुओ ॥५॥ 
सूरियकंतो नाम॑ पारं पत्तो कलाकलावस्स । तस्स य पएसिरन्नो सिणेहपत्तं परमहेसि ॥६॥ 
चित्तो नाम अमचचो अलद्धमज्ञो थिराउ बुद्धीओ । मयरहरम्मि नईउ व समकालं जम्मि विलसंति ॥»॥ 
सो अज्ञया कयाई पट्ठविओ निवषओयणे कट्दि वि। सावत्थीए जियसत्तरायपासम्मि नरवइणा ॥८॥ 
तेण चडनाणकलिओ केसी नामेण गणहरो दिट्लो | अन्तेवासी सिरिपाससामिणों तत्थ य गएण ॥९॥ 


३६. बन्धुकृतिमस्नेद त्थाधिकारे रविकान्ताख्यानकम्‌ ३२७ 


धम्मकहं कहमाणों तस्स सयासम्मि सो वि संपत्तो | सोऊण परमधम्मं संबुद्धों जायसंवेगो ॥१०॥ 
बारसविद्गिहिधम्मं सम्मत्तपुरस्सरं सुद्दासयओ । पडिवज्जइ कयकिच्च॑ अत्ताणं मनन्‍नमाणो य ॥११॥ 

पभणइ भयवं ! भवदुरबगाहकूवम्मि निवडिओ अहयं | तुब्मेहिं समुद्धरेओं जिणपबरयणरज्जुखिवणेण ॥१२॥ 
काऊण गुरुपसायं इन्हि नियचलणकरमलफरिसेण। सेयवियानयरीए भूमितल कुणह सुपतित्तं ॥१३॥ 
'सूरीहुत्तं जह वद्ठमाणजोगेण आगमिस्सामों । बंदित्तु भावसारं सेयवियं पडिगओ मंती ॥|१४॥ 

विहरंता य कमेणं संपत्ता सूरिणो वि तत्थेव | निययसुनिउत्तपुरिसेहिं तयणु वद्धाविओ मंती ॥१५॥ 

नाऊण तेसिमागमणमसमरोमंचकंचुइयकाओ । ठाणट्विओ वि भत्तीए नमइ सूरीण पयकमलं ॥१६॥ 

चिंतइ य जहा मिच्छत्तमोहिओ मज्क एस नरनाहों । रुद्राणीयपरिगओ भवाभिणंदी हरजणो व्व ॥१७॥ 
कि मइ जीवंते वि हु सचिवे एसो गमिस्सई नरय॑ ? | कि सो हु तस्स इट्ठटो जोहज्जइ जो न धम्मम्मि  ॥१८॥ 
कि वा हवेज्ज मित्तो जो न समुद्धरह पावपंकाओ १ । ता केणावि उवाएण नेमि सूरीण पासमिमं ॥१९॥ 
भवजलहिम्मि निव्डियं जेण इमं उद्धरंति ते गुरुणों। जिगसमयजाणबत्तेण मंतिणा चितिकण तओ ।॥२०॥। 
देव ! इमे वरतुरया वहुकालमवाहिया विणस्संति | इय आसवाहियालिच्छलेण मंती तहिं नेइ ॥२१॥ 
कुव्वंति जत्थ सद्धम्मदेसणं सूरिणो बहुजगस्स | तो भणियं नरबइणा एसो मुंडो क्रिमारडइ ? ॥२२॥ 

तत्तो चित्तेणुत्तं सम्म॑ जाणे न देव ! हं किंतु । गंतुणं निमुणेमी तयणु गया गुरुसमीवम्मि ॥२३॥ 

जीवाईए तत्ते परूविए देवयासरूवे य । गुरुणा ता भणइ निवो सब्बमसंबद्धमेयं ति ॥२४॥ 

इह नत्थि ताव जीबो तुह वंछियतत्तमूलभूओ य । पच्चक्खगोयराईयत्तओ ससविसाणं व ॥२५॥ 

तो भणियं सूरीहिं किमिय॑ पद्चक्खगोयराहयं | भो भद्द ! तुज्क ? कि वा सब्वेसि जंतुजायाणं ? ॥२६॥ 
तत्थ जइ पढमपक्खों तो पव्वय-थंभ-कुंभमाईणं । होइ अभावपसंगो जं पच्चकक्‍्खस्स विसओ ते ॥२७॥ 
पडिनिययजीवगोयरचारित्त अह दुइज्जपक्वो य | सो वि असिद्धों सिद्धीए तस्स तुह चेव सब्भावो ॥२८॥ 
सब्वन्नुजीवसिद्धीए तयणु जीवाइतत्तपडिसेहो । होइ अणत्थो जीवे सइ बंधाईण सुकरत्ता ॥२९॥ 
इच्चाइतंतजुत्तीए तेहि राया निरुत्तरो विहिओ । तो भणइ सविणयमिमों भयवं ! जइ होज्ज परछोओ ॥३०॥ 
ता मम माया अच्चंतधम्मिया आसि सयलसत्तहिया | जणओ पुण नित्तिसो निद्धम्मो पावकरणरओ ॥३१॥ 
तुम्ह मएणं मरिऊण ताणि पत्ताणि सग्ग-णरएसु । ते कह आगंतू्ण न प्पडिबोहिति मं एत्थ १ ॥३२॥ 

तो भणियं सूरीहिं भद्द ! जहा कोइ रायपुरिसेहिं। महयावराहगहिओ वज्झमुवं निज्ञए पुरिसो ॥३३॥ 

सो भणइ तेसि पुरओ नियसयणाणं मिलित्तुमीहे हं । एक्कं वारं काऊण मह दय॑ मुयह ता तुब्मे ॥३४॥ 
तो कि तेसि सयासा मिलणं सो लहइ जणणि-जणयाणं ? । एवं नेरइया वि हु परमाहम्मिय सयासाओ ॥३५॥ 
न लहंति इहा55गंतुं करवत्ताईहिं कप्परिज्जंता | करुणारहिएहिं द्ढ निरंतरं नरयवालेहिं |३६॥ 

देवा पुण विसयपसत्त मणहरुज्ञाणकीलणे सत्ता । नरभवअसुहृत्ताओ नहु इंति इहं जओ भणियं ॥३७॥ 
संकंतदिव्वपेमा विसयपसत्ता समत्तकत्तव्वा | अणहीणमणुयकज्जा नरभवमसुहं न इंति सुरा ॥३८॥ 

चत्तारि पंच जोयणसयाणि गंधो उ मणुयलोयस्स | उड्ढ बच्च३ जेणं न हु देवा तेण आवंति ॥३५॥ 

इच्चाइका रणाओ उबंति नरनाह ! ते कहं इहईं १ । ता भणियं भूवहणा सच्च॑ भयवं ! भवउ एवं ॥४०।। 
तह वि मए तावेगो चोरो निच्छिदलोहमइयाए । मंजूसाए निहित्तो कालूण निरिक्खिओ तम्मि ॥४१॥ 
किमिपुंजो विचिय दिद्ठो मज्ञंतेणं न यावि कालेण | मंजूसाए विहिय॑ छिद्दं तो नत्यि एव्थ जिओ ॥४२॥ 

तो भणियं सूरीहिं वायामेत्त नरिंद्‌ ! एयं पि। जम्हा लोहमयाए कुंभीए निहत्तपुरिसिण ।॥४३॥ 

वाइज्जंते संखम्मि संखसद्दो बहिं विणिस्सरहइ | लोहमए वा गोले निक्खित्ते जलणमज्ञम्मि ॥४४॥ 


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१, संतुद्ठो रं० । २, यूरिभिरुक्तम्‌ | 


श्र्द् 


आश्यानकसणिकोशे 


तम्मि य धमिज्जमाणे अग्गी पविसेद गोलयस्संतो । निग्गमपवेसविहियं न कि पि दीसइ तहिं छिहं ॥४५॥ 
मुत्तेसु वि संख-सराइएसु जहइ एवमत्यि नरनाह !। ताव अमुत्ते जीवे सदृहियव्वं विसेसेणं ॥४६॥ 

पुणरवि भणियं रज्ना भयवं ! एगस्स तक्वरस्स मए । खंडीऋय॑ सरीरं तिलमेत्तं न य कहिं पि तहिं ॥४७॥ 
दिट्ठो जीवो ता कहमेसो अत्थि त्ति सहृहेयव्वं ) । सूरीहुत्त राय ! ससिकंतमणिम्मि बहुसो वि ॥9८॥ 
फोडिज्जंतम्मि जलं अरणियकद्ठाइएसु तह अग्गी | नो उवलब्भह अह चंदक्रिरणजोगाइसामग्गी ॥|४<॥ 
तेसिं भावं जणयइ ससिकंताईसु एवमिहईं पि। अह भणियं नरवइणा भयवं ! अबरो मए चोरों ॥५०॥ 
जीवंतो तोलेउः गलमावलिऊण मरि्ं पच्छा | पुणववि य तोलिओ न य निभालिओ तो वि चोरस्स ॥५१॥ 
तुल्लजणिओ विसेसो ता कहमत्थि त्ति सदृहेयव्वो ? | गुरुणा भणियं नरबर ! केण वि गोवालपुत्तेण ॥५२॥ 
त्रायडयं परिपूरिय पवणस्स स तोलिओ पुणो रित्तो । विहिऊण तोलिओ न उण पवणनणिओ तहिं दिद्ठों ॥५२॥ 
कोइ विसेसो अह पुन्वमेस पच्चक्‍्खमेवमुवलद्धो । मुत्तेसु ताव एवं कि भणियव्वं अमुत्तेसु  ॥५४॥ 

तम्हा उ असाहारणचेयन्नगुणोवलंभभावाओ । तुम्हाण वि'*''*'देसेण5प्पा हु पच्चक्खों ? ॥५५॥ 

इच्चाइमोह विद्धंसनिठणजिणसमयवयणमंतेहिं । तह कह वि उंजिओ सो मिच्छत्तविसेण जह मुको ॥५५॥ 
जंपइ य तओ तुब्मेहिं ज॑ं समाइट्टमवितहं भयवं ! । किंतु कमागयनत्थियवाइत्तं परिचयामि कहं १ ॥५६॥ 
सूरीहिं तओ भणियं एयं पि अकारणं महाराय !। कमपत्तं रोग-दरिदमाइयं कि न मोक्तव्वं ? ॥५७॥ 
जायइ पच्छायावो उ अन्नहा लोहभारवाहस्स । पुरिसस्स व को एसो ? रज्ञा भणिए भणइ सूरी ॥५८॥ 
दविणोवज्जणकज्जे चउरो पुरिसा विणिग्गया केइ । तत्तो कम्मि पएसे दिद्लो लोहागरो तेहिं ॥५९॥ 
जावयमेत्तं वहिउ' तरंति लोहं सउत्तमंगेण । घेत्तु तावयमेत्त' संवलिया कह वि अह पुरओ ॥६०॥ 
रुप्पागरम्मि दिट्ठे लोहं चइऊण ते जणे तिन्नि । गिन्हंति रुप्पमेगो परिहरइ न कह वि त॑ छोहं ॥६१॥ 
अन्नेहिं भणिज्जंतो वि भणइ तुब्मे5णवट्टिया दूरं | अहयंतुपुणो एयं चिरपरिवूढं न हु चएमि ॥६२॥ 
अग्गे गच्छंतेहि निहालिओ कणयआगरो रुप्पं | परिहरिउ' ते तिन्नि वि लिंति सुबन्नं जहिच्छाए ॥६३॥ 
इयरो वि तेहिं भणिओ लोहं मोत्तण गिन्ह कणय्रमिणं | उवहसइ अहो ! तुब्मे निच्छयरहिया य पडिबन्ने ॥६४॥ 
पुरणो संचलिएहिं संपत्तो रयणआ।गरो तेहिं। तत्तो समुज्किऊणं कणये गिन्हंति रयणाइई ॥६५॥ 

वुत्तो य लोहवाही अस्नेहिं भणसि जं न कहिय॑ मे । एत्तियगए वि गिन्हसु छोहं मोत्तण रयणाणि ॥६६॥ 
दारिदभरक्‍्कंतो इृहरा सोइहिसि मूढ ! त॑ बहुयं । एवं भणिज्ञमाणो नवरमुवहसइ सो अन्ने ॥६७॥ 
संपत्ता नियदेसे कश्य वि रयणाणि विक्रिकण तओ। विलसंति जहिच्छाए नियभवणे पिययमासहिया ॥६८॥ 
लोहभरवाहओ वि य तेसिं पासित्तु रूच्छिविच्छड्>डं | पच्छायावदवेणं पहद्विसं डज्ञए हियए ॥६२९॥ 

इय लोहभारवाहयपुरिससमं चयसु नियमभिप्पायं। नाणाईरयणाइं गेन्हसु सिवसोक्खहेऊणि ||७०॥ 

इय जंपिओ य गुरुणा संवेगपरायणों महीनाहों । पाएसु निवडिऊर्ण एवं भणिउ' समाढत्तो ॥७१॥ 

तुब्मेहि समुद्धरिओ कारुन्नपरेहिं निवाडिओं अहयं | अन्नाण-दुहसमुद्दे सुदेसणाजाणवत्तेणं ॥७३॥ 

सोऊरणं नरनाहो दुविहं [धम्मं] पि भावियमणों सो । गिहिधिम्म॑ं पडिवज्जह सम्मं बारसविहं तत्तो ॥७३॥ 
गच्छंतेहिं दिणेहिं रन्‍नो तह कह वि परिणओ धम्मो । जह खोभिउ' न सकका सककाईया सुरा वि तयं ॥७४॥ 
संवेयमावियमणो पडिवज्जइ पोसहं अहडन्नदिणे | कामाउरा विचितद रविकंता नियमणे एवं ॥७५॥ 
अंगीकयजिण्धम्मो जप्पभिद चेव एस संजाओ । अच्छंतु ताव परिहासगब्मिणा संगमारंभा ॥७६॥ 
आलवणं पि हु तप्पभिइ चेव न कयं मए सम॑ इमिणा | ता मारिऊणमेयं रज्जे पुत्तं निवेसेड' ॥७७॥ 


बिलसामि जहिच्छाए इय चितिय दुष्धबुद्धिसहियाए | पोसहपारणयदिणे दिन्न हालाहलं रन्‍नो ॥७८॥ 


१, दीयडयं रं० । 


ते जहा--- 


तओ य-- 


3९ 


३६, बन्धुकुतिमस्मेहत्वाधिकारे घुलण्याख्यानकम ३२६ 


तो तिव्वविससमुब्भूयवेयणावेसबिहुरसब्बंगो । सूरियकंताविलसियमेयं नाऊण चिंतेह ॥७९॥ 

नियकज्जबद्धचित्ता महिलाउणत्थाण कारणं परम | घिप्पह न य रूवेणं न यावि सम्माणदाणेणं ॥८०॥ 

विज्जु व्व चवलहियया विसहररमणि व्व कुडिलगइगमणा । बहुनियडि-कूड-कवडाण मंदिर निदिया महिला ॥८१॥ 
नेहगुणक्खयकारी दीवयकलिय व्व पत्तनिहिया वि। निच्च॑ं सकज्जरूग्गा दृहणसरूबा जए महिला ॥८२॥ 

ता कि मह एयाए चिंताए ? निययकज्जमेवेन्हि । साहिज्जउ जेणेत्तो थोब॑ मे जीवियव्ब॑ ति ॥८३॥ 

इय चितिऊण तत्तो विप्फुरियअपुन्बगरुयसंबेगो । तत्थ ठिओ वि हु सरणं पडिवज्जद वीरकमकमलं ||८४॥ 
निहृटअट्टकम्मिषणाण सिद्धांण सुद्धबुद्धिजुओ । सरणं गओ म्हि संपह सासयसिवसोक्खपत्ताणं ॥८५॥ 
भवपंकुक्खुत्तो हं सधम्महत्थावलंबदाणेणं | करुणाए समु द्धरेिओं परोवयारेक्वरसिएहिं ॥८६॥ 

पयकमलं सरणमहं पडिवज्ब तेति केसिसूरीणं । समसत्तु-मित्तचित्ताण सुहयउवएसनिरयाणं ॥८७॥ 
अहरीकयकप्पदूदुम-चितामणि-कामधेणुमाहप्पो । सासयसिवसुहद्देऊ जिणधम्मो होउ मह सरणं ॥८८॥ 

इय चउडसरणगओ हं पाणिगणं सव्वमवि खमावेमि | समभावसहियहिययर्स मम वि सो खमउ सयय॑ पि ॥<<॥ 
सूरियकता उवरिं विसिसओ होउ मह समो भावों । अवरज्ञंति जओ इह पुव्वक्कयदुकयकम्माईं ॥<०॥ 

इय भाविंतों सम्म॑ं नरनाहों गहियअणसणों मरिंठ | सोहम्मसूरियाभे पवरविमाणे समुप्पन्नो ॥९१॥ 

नामेण सूरियाभो तियसो वररिद्धि-कंतिसंजुत्तो । तत्तो चुओ समाणो महाविदेहम्मि सिज्िहइ ॥९२॥ 


॥ रविकान्ताख्यानकं समाप्तम ॥११४॥ 


इदानीं खुलण्याणज्यानक वयाख्यायते । तच्चेद्म-- 


पंचालजणवयाणं नयरमलंकारभूयमवि सुहयं | कंपिल्‍्ल तं पालइ पउमावासो निवो बंभो ॥१॥ 
सयलावरोहसारा चुलणी नामेण भारिया तस्स । तीए चउदससुमिणेहिं सूहओ बारसमचक्की ॥२॥ 
चहइउ' सुरलोगाओ चरित्तिणो चित्तसाहुणो भाया। पुव्वभवकयनियाणो तहया नामेण संभूह ॥३॥ 
गब्भम्मि समुप्पन्नो जाओ कालक्कमेण सुमुहुत्ते । कयबंभदत्तनामो जा क्िर परिवड्िउ' रूगगो ॥३॥ 
ताव य बंभो राया तिहुयणसाहारणेण रोएणं । अब्भाहओ समाणों सुत्थकए निययरज्जस्स ॥५॥ 
कडयं कणेरुद्त्त तहावरं पुप्फचूलनरनाहं । दीहं च दीहदरिसी चउरे चउरो वि नियमित्ते ॥६॥ 
वाहरिऊण पयंपइ सप्पस्सयमेस बालओ तुम्हं । उच्छंगे पक्खित्तो जह पालइ मज्क रज्जसिरिं ॥७।॥ 
तह कायब्वं इय जंपिऊण वियणाए मरणमणुपत्तो । इयरेहिं वि मित्तेहिं दीहो जोगो क्ति कलिऊण ॥८॥ 
रज्जपरिपालणत्थं मुक्को मइपुव्बगं प्रवत्तेण | सो वि हु तं॑ परिपालइ समईए बंभमंतिजुओ ॥९॥ 


पाढइ कुमरं विहिणा समप्पिउ' बंभदत्तमभिउत्तो । विउसाणंदस्स कलाविउस्स पासम्मि सूरिस्स ॥१०॥ 
चिंतइ कोट्ठायारं संभालइ धणसमिद्धमंडारं । कारवइ संधि-विग्गह-जाणा55सणरायनीईैओ ॥११॥ 
गयसाहणं निरूवइ परिभावई तरलहयवरसमूहं । पडियरह रहवरोहं परिपालइ पत्तिपरिवारं ॥१२॥ 
चउरंगबलसमिद्धि वद्धारद बुद्धि-पोरिससहाओ । अंतेडरं॑ च रक्खइ चुलणीए सम॑ विसेसेणं ॥१३॥ 

एवं पददिणमेसोी रहम्मि सह तीए मंतणं कुणइ । सा वि हु तेण समाणं सया वि ससिणेहमालवबइ ॥१४॥ 


आलावाओ पेम्मं पेम्माओ रई रददेए विस्संभो । विस्संभाओ पणओ पंचविहों वड्डिओ नेहो ॥१५॥ 
अविवेयबहुलयाए इमस्स हयजोव्वणस्स जीवाणं । दुद्वंतत्तणओ दृढमिंद्यितुरयाण पावाणं ॥१६॥ 
पहभवमब्भासाओ एयाणं पावगामधम्माणं । दूरं जाणंताणि वि परोप्परं ताणि घडियाणि ॥१७॥ 


चै३० आख्यानकंमणिकोशे 


अबि य-- 
सविलासहसिय-जंपिय-सकडक्खनिरिक्खणाइणा दीहो । समरंगणसूरो वि हु तीए विहिओ सवसवत्ती ॥१८॥ 
तथा चाभ्यधायि-- 
मत्तेभकुम्भदलने भुवि सन्ति शूराः , ऋरप्चण्डम गराजवधेडपि दक्षाः । 
सत्य॑ ब्रवीमि ऋतिनां पुरतः प्रसक्य , कन्दपंदपजयिनो विरला मनुष्या: ॥१<॥ 
तत्तो त॑ नियमित्तस्स संतियं सुकयमवगणेऊण । सह तीए मोहियमद रूग्गो सकखं अकज्जम्मि ॥२०॥ 
दीहो अदीहदरिसी तीए विहिओ सुदीहदरिसी वि। अहवा वि महिलियाईहिं गिरि व्व गरुया वि भिज्जंति ॥२१॥ 
प्णिय च--- 
नीयंगमाहिं सुपओहराहिं उप्पिच्छ-मंथरगईहिं । महिलाहिं निन्नयाहि व गिरि व्व गरुया वि भिज्जंति ॥२२॥ 
घणमालाओ व समुल्लसंतसुपओहराओ वड़ंति । मोहविसं महिलाओ गोणसगरल व पुरिसस्स ॥२३॥ 
एवं सो तीए सम॑ विजणवसाओ अकज्जमावत्नो | एत्तो चिय एयाहिं रहो विरुद्धो समाणाण ॥२४॥ 


मात्रा स्वरा दुहित्रा वा, न विविक्तासनों भवेत्‌ | बलवानिन्द्रियग्रामः, पण्डितो5प्यन्न मुल्यति ॥२५॥ 
अम्ल च महिलियाणं रहम्मि न हु दंसणं हवइ जाव । सद्धिं परपुरिसेणं ताव सइत्तं जओ भणियं ॥२६॥ 
रहो नास्ति क्षणो नास्ति, नास्ति प्राथंयिता नरः । तेन नारद ! नारीणां सतीत्वमुपजायते ॥२७॥ 
एवं सो पच्छन्नो ववहरमाणों जणेण विज्ञाओ । गोविज्जंतं पि जओ अकज्जमिह नज्जद जयम्मि ॥२८॥ 
तो जणपरंपराए नायमिमं बंभदत्तकुमरेण | तो तेणं नियचित्ते विचितियं चउरमइएण ॥२९॥ 
जइ पय्र्ड चिय संपइ पद्चारिज्जति कह वि हु इमाणि। ता लज्ज मोत्तृण॑ विरूवमवि कि पि हु कुणंति ॥३०॥ 
जम्हा मयणायत्ता मणुया मारंति मायरं पियरं । पियपुत्तं पि हु तम्हा छन्नं केण वि पयारेण ॥३१॥ 
जाणावेमि इमाइं कह वि हु विरमंति जह अकज्ञाओ । तो लट्ट पयडं पुण पुच्छिज्जंतं नयविरुद्धं ॥३२॥ 
उक्त च-- 
अथनाशं मनस्तापं गृहे दुश्चरितानि च | वच्चनं चापमानं च मतिमान्‌ न प्रकाशयेत्‌ ॥३३॥ 
इय परिभाविय नयनिउणमन्नया तेसिमेव बोहत्थं | करकलियकाय-कोइलजु यूं संजमिय निब्रिडमिमो ॥३४॥ 
अंतेउरमज्ञेणं वच्च३ उग्गिन्नकंबियाहत्थो । किमिमं वरायमेवं बद्धं तुह कि कयमिमेण ? ॥३५॥ 
इय पुट्टो सो जंपह जणेण एयं विजाइयं जुयलं । दिट्न॑ मए अकज्जं कुणमाणं नयरमज्भम्मि ॥३६॥ 
तत्तो हं नियनयरे अनयं न सहामि तेण पावमिम । निहणामि एवमन्नो वि को वि जो काहिइ विरूवं ॥३७।॥ 
निग्गहियव्वोडवस्सं सो वि मए इय सुणित्तु दीहनिवो । जंपह चुलणि पइट नायकुमरगंभीरभिप्पाओ ॥|३८॥ 
काओ हूं तं पुण कोइल त्ति जाणाबियं कुमारेण | ता न हु सोहणमेयं सा वि हु जंपह अनायनया ॥३८॥ 
सिसुरूबाणं ओ ! केत्तियाणि कन्नम्मि कुणसि किल्चाणि १ | बालत्तणओ जंपंति जं ब तं वा वि हु इमाणि ॥४०॥ 
अज्नम्मि दिणे संकिन्नहत्थिणी भददजाइओ हत्थी | बंधिय तहेव वच्च३ कुमरो दीहो वि भणइ तय॑ ॥|9१॥ 
संपई्‌ कि भणप्ति पिए ! १ एयं पि हु अम्ह बोहणनिमित्तं । कुमरेण कय तत्तो त॑ं चितसु कि पि हु उबायं ॥०२॥ 
जओ-- 
मउओ वि पिए | छिज्जइ वाही बालो वि हम्मए सत्त | मइ जीवंते अन्ने वि तुह सुग्रा सुयणु ! होहिंति ॥२२॥ 
एवं सा सिक्खविया जंपदइ कहमेरिसं महापावं । नियजाए ववसिजञ्जइ मेच्छाण वि निंदणिज्ज १? ति ॥४४॥ 
एवं पहद्वसं पि हु चोइज्जंती चरित्तपरिचत्ता | मन्नइ तं पि हु पावा अह्दो ! हु मोहस्स माहप्पं ॥४५॥ 
परमेयं पयर्ड चिय क्रिज्जंतं जणह गरुयमब॒वायं । ता पच्छन्न॑ कश्या वि कज्जिही सहसु कइ वि दिणे ॥४६॥ 


३६. बन्धुकृत्रिमस्नेदत्याधिकारे कोणिकाल्यानकम्‌ शे३े१ 


इय ताणि कुमरमारणपदुद्ठचित्ताणि ताव अच्छंति । अलहंताणि कुओ वि हु सुविसिट्ं मारणोवायं ॥०७॥ 
मु कुमरो वि हु वरधणुणा सद्धि पिउबंभमंतितणणण । चिद्दद विसिद्क्रीलाहि कीलमाणो निरुव्बिग्गो ॥2८॥ 
तथा हि-- 
कश्या वि हु परिवाहइ तुरंगमे तुरयवाहियालोए । कइया वि हत्थिसिक्खानिउणो कोलावइ करिंदे ॥४८॥ 
कश्या वि हु कील़ापव्वएसु कीलइ कुमारपरियरिओ । कहया वि धणुव्वेए परिस्समं कुणइ अव्वहिओ ॥५०॥ 
कह्या वि मल्लजुद्धं विउसविणोयं कयाह सत्थगंयं | इय विविहकलाबिसयं कुणइ पबंधेणमब्भासं ॥५१॥ 
नाओ धणुणा नियजणयमंतिणा एस वहयरों सब्वो । कुमरविगासणविसओ तो भणिओ तेण दीहनिवो ॥५२॥ 
त॑ चितसु रज्जमिमं मज्झ पए संपयं सुओ एस । कायव्बी अहय॑ पुण परलोयहिए जइस्सामि ॥५३॥ 
सो चिंतद लट्॒मिमो जह ओसहमंतरेण मह वाही । नासइ तो तेणुत्तं समीहिय॑ कुणसु किमजुत्त ? ॥५४७॥ 
तो तेण नयरबाहिं सत्तायारं करावियं तत्थ । अच्छइ पेच्छंतो दुद्डविलसियं ताण पावाणं ॥५५॥ 
चुलणीए चिंतियमिमो रइविग्वकरों कहं किर कुमारों | मारेयव्बो ? तो तीए निच्छियं मज्झ भायसुया ॥५६॥। 
वयपत्ता तीए सम॑ वीवाहं कारवेमि कुमरस्स । महया विच्छड्ठुंणं तस्सेव य वासभवणकए ॥५७॥ 
कारविय चित्तरूवं जठउपासायं पहाणखंभजुयं | तम्मि य सयणनिमित्त सवहूयं पक्खिविय कुमरं ॥५८॥ 
वीस॑ पि हु पासायं पज्ञालिस्सं कयम्मि एवमिमो । मरिही अवन्नवाओ वि रक्खिओ मज्क किर होही ॥५९॥ 
इय चिंतिऊकण कहिय॑ दीहनरिंदस्स सोहणमिमं ति। पडिवज्जिऊण तेणं पासायाई तहेव कय॑ ॥६०॥ 
नायमिमं सबिवेणं तओ सुरंगा खणाविया तेण | जउहर-सत्तायाराणमंतरालम्मि पच्छन्ना ॥६१॥ 
जाणाविओ वरधण जया कुओ वि हु भय॑ भवह्‌ एत्यं | तहया पन्हिपहारं दाविज्वसु कुमरमेत्थ पए ॥६२॥ 
नीहरिय सुरंगाए सत्तायारम्मि मज्कू पासम्मि | आगच्छेज्ज सकुमरो पमाइयव्वं न एत्थअत्ये ॥६३॥ 
तत्तो चुलणीवय्रणा तहेव पज्जालियम्मि पासाए । पन्हिपहारं कुमरो कारविओ भणियभूभाए ॥६७॥ 
निग्गंतृण य तत्तो पत्तो धणुमंतिणो सयासम्मि | तेण वि सब्वो कहिओ कुमारमारणकरयपवंचों ॥६५॥ 
चुलणी-दीहभणणं तत्तो ठाणाओ जह विणिग्गमिया । आरोढुं तुरएहि जहा पणट्ठटा अरन्नम्मि ॥६६॥ 
कालेण जहा जाओ चोदसरयणाहिवों छखंडवई । भरहम्मि बंभदत्तो सुयाओ सब्बं तहा नेयं ॥६७॥ 
एत्थ पुण पत्थुय॒त्थे एत्तियमेत्त सुहं कहिज्जंतं | तो तत्तियमेव मए भणियं ति कय॑ पसंगेण ॥|६८॥ 
ऐवं दुह्मवहाणं नमो त्थु विसयाणिमाण पावाण । जाण कए जणणी वि हु ववसह पुत्ते वि पावमिमं ॥६८॥ 
जंतु ख़यं सिग्धमिमे विसया अहवा विसंतु पायालं । जाण कए जणणी वि हु ववसहइ पुत्ते वि पावमिमं ॥७०॥ 
निवडउ य निरालंबं गिरिसिहराओ इमा विसयवंछा । जीए कए जणणी वि हु ववसइ पुत्ते वि पावमिमं ॥७१॥ 
॥ खुलण्थाख्यानकं समाप्तमिति ॥ ११५॥ 
अधुना कोणिकाण्यानकमारभ्यते । तश्चेदम-- 
मेरु व्व नाभिभूयं पद्वंतपुरं समत्थि वित्थिन्नं | गयणं व कविविराइयमहीणवं भोगिभवण्ं व ॥१॥ 
तत्थ5त्थि निवो निस्सेससत्तुसंदोहसंजणियअंतो । जियसत्तू सबलकलाकलावलक्खणकल्यिदेहो ॥२॥ 
निस्सेसगुणनिवासो नामेण सुमंगलो धुओ तस्स । तत्थ य सेणयनामी मइसायरमंतिणो पुत्तो ॥३॥ 
दृरीकयमइपसरो पिंगलनयणो मसीकसिणदेहो । उद्दंतुरों य खुज्जो कसिण-कुरूबाण दिटद्वंतो ॥४॥ 
अवहण्णो दिद्विपहं कुमरस्सेसो अहडन्नया कह वि । तो कुमरो नच्चावइ त॑ दाउं हत्थताठाओ ॥५॥ 
अन्नेहिं वि हासेहिं केलिपिओ त॑ विडंबए निश्चं । एवं विनडिज्जंता विचित्तमगेहिं कुमरेण ॥६॥ 
निव्वेयमुवगओ सो कुमरस्स य कि पि काउमसमत्थो । गिण्हह तवसदिक्खं तब्वेलमभिर्गहं च इमं ॥७॥ 
मासंते कायब्वं पारणयं तत्थ वेगगेहाओ । न हु गंतव्बं बीए नियत्तियव्वं अलाभे वि ॥८॥ 


शेईै२ 


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आश्यानकमणिकोशे 


कल्लालकुंभियाए मज्कगएणं निदाहमासे वि। चिट्टेयव्व॑ ति मए तहेव सब्बं इमो कुणइ ॥९॥ 

पंचत्तं संपत्त जणए जाओ सुमंगलो राया । कल्लालकुंभियगयं तं दटठुमहडन्नया कह वि ॥१०॥ 

को एसो ? इय पुच्छइ तो सन्निहिएहिं सव्वमवि कहिय॑ | तयणु दया संपन्ना रत्नो तो तत्थ आगंतुं ॥११॥ 
भणिओ पणामपुत्व॑ जं पुव्बि विनडिओ तुम भद्द ! | त॑ सब्ब॑ सहियव्वं अवरं च तए इम॑ कर्ज ॥१२॥ 
काऊण गुरुपसायं पारणए मह गिहम्मि भोत्तव्वं | रज्नो निब्बंधेणं तत्तो अब्भुवगयं तेण ॥१३॥ 

संपत्ते पारणए स तबस्सी जाव निवगिहं पत्तो । संपन्न॑ ताव सरीरकारणं नरवरिंदस्स ॥१४॥ 

तो दारवालिएहिं पडिसिद्धो कुंभियाए पविसित्त | तह चेव खिबइ मासं बीय॑ पि हु सेणगतवस्सी ॥१५॥ 
रोगविवज्जियदेहो नरनाहो बि हु दिणेहिं संजाओ । परियाणिय तव्वइयरमापुद्टे परियणजणम्मि ॥१६॥ 

तो लज्जाजुत्तमणो तस्स समीवे पुणो वि गंतृण । अत्ताणं निंदेउं भोयणकज्जे पुणो मणइ ॥१७॥ 

तह कह वि महुरबयणेहडब्भुवगच्छाबिओ स भूवइणा । जह बीए पारणए सो पत्तों तग्गिहे जाव ॥१८॥ 
अपडुसरीरं रन्नो केणइ रोगेण ताव संजायं । दटटुं च जणं वक्खित्तमाणसं पडिनियत्तेडं ॥१९॥ 

तह चेव कुंभियाए मज्मगओ खिवइ तहइयमासं पि। उल्लाधेणं रन्‍ना विलक्खनित्तेण तो गंतुं ॥२०॥ 
पाएसु निवडिऊर्ण पुणो पुणो खामिऊण बहुवेलं | मन्नाविओ य पारणयमइनिबंधेण पुण वेसो ॥२१॥ 
नरवइभवणम्मि गओ तत्तो सो जाव तइयवेलं पि। ताव नरनाहदेहे दाहजरो बद्बण अहियं ॥२२॥ 

तह कह वि जहा सब्बो परियणलोगो दुह्मउछीमूओ । निब्भच्छिऊण बाढं पडिहारेहिं तओ एसो ॥२३॥ 
भणिऊणमिमं वयणं गयलक्खण ! तुह कए पह अम्ह । बेलं वेलमणत्थं पत्तो एयारिसमणिट्ठं ॥२४॥ 

मा पुणरवि एज्ज तुमं गेहम्मि दसद्धियाउ दाऊण । सीसे घेत्तण गले घराओ निस्सारिओ तेहिं ॥२४५॥ 

सो वि पुणो सद्ठाणे गंतुणं कोवकलियसयलंगो । चितइ एएण जहा कुमारभावम्मि नरवहणा ॥२६॥ 

तह कह वि विनडिओ हं जहा मए तावसं वयं गहिय॑ | ता अज्ज वि न हु तुट्टों इन्हि विनडइ जमेव॑ ति ॥२७॥ 
जहइ पुण सच्च॑ एसो निमंतण नियगिहम्मि भत्तीए। ता भणइ कि न मंतिप्पभिदजणं एत्थ कज्जम्मि ॥२८।। 
कोववसारुणदेहो फुरंतहोट्टी खलंतवयणकमो । परिगलियसेयजलर्विदुजालओ तवगुणेहिं सम॑ ॥२६॥ 
परिचत्तगुणग्गामो समय॑ सत्थत्थजणियबोहेण । मलिणीकयनियचित्तो सद्धि बुद्धिप्पवंचेण |३०॥ 
अवहत्थियमज्ञाओ गुरूण सद्धिं सथम्मबुद्धीए | समय॑ कुलक्मेणं दूरं परिहरियपरकोओ ।।३१॥। 
विल्संतकोवतिमिरावलुत्तनयणो सम॑ समग्गेण । नरनाहं पइ तत्तो स नियाणं काउमाढत्तो ॥३२॥ 

ता जइ चिन्नस्स मए तबस्स सामत्थमत्थि एत्थेव । ता होज्जमिमस्स विणासकारणं परभवम्मि अहं ।।३३॥ 
इय मरिउं सनियाणो संजाओ वाणमंतरेसु सुरो । एएण विरागेणं [स] पत्थिवो वि हु तबस्सिवयं ॥३४॥ 
घेत्तण तयं पालिय पंचत्तं पाविकण संजाओ । तत्थेव वंतरत्ते सो वि य पढम॑ चवित्त तओ ॥३५॥ 
उबवन्नो रायगिहे विक्खाओ सेणिओ महीनाहो । मत्तपरपक्खगयघड वियारणुड्'ु मरजयर्सिहो ॥३६॥ 
सेणगजीवो [सो] चेल्लणाए अइवल्लहाए गब्भम्मि । पुत्तत्तेणुप्पन्नो तत्तो तस्साणुभावेण ॥३७॥ 

चितेह इमं देवी नयणेहिं वि जहइ न दीसए राया । अन्न च चित्तमज्झे सया पओसं समुव्बहइ ॥३८॥ 
गब्भाणुभावदोसो इय जाणिय चेल्लणाए देवीए | पाडेऊणा5डढत्तो बहुसाडण-पाडणाईहिं ॥३९॥ 

न य पडइ तह वि एसो देवीए इमो य दोहलो जाओ । उयरं वियारिऊणं मंसं भक्खेमि जइ रज्नो ॥४०॥ 
तो सा विसायपरिकलियमाणसा विलूविऊणमहबहुसो । जंपह हा देव ! तए कि दिल्नो मज्ञ दहयस्स ॥४१॥ 
अशच्चंतपरमसत्त ? जो मज्क वि एरिसं जणइ कुमईं । ता कुमरेण वि अल्मेत्थ मज्झ गब्मट्टिओ जो उ ॥४२॥ 
चिंतवदई मज्म मणवज्लहम्मि एसो अणिट्ठमेव॑ ति । अणुरायनिब्भरंचियदेहे सब्भावसहियम्मि ॥४३॥ 





१, “पंच टक्कर” 


३६. बन्धुकृश्रिमस्नेहत्थाधिकारे कोणिकाख्यानकम्‌ झेबेके 


एवं रोयंती सा गमेइ कालं न दोहलं कदहह । अह रज्ना निब्बंधेण पुच्छिया कहिउमाढता ॥|४४॥॥ 
नियसहिमुहेण सब्ब॑ पि तयणु चित्ते विसायसहिओ वि । अवलंबिय वीरत्तं नरनाहो जंपिउं लग्गो ॥०४५॥ 
केत्तियमेत्तं ददए ? एयं मंभीसिउं तयं राया । सव्वमभयस्स साहइ तो सो बुद्धिप्पबंचेण ॥०६॥ 

देविं निवेसिऊणं नियगिहवायायणम्मि भूमितले । निवईं पुण सयणिज्जे संठविउं मुयरउवरिम्मि ॥४७॥ 
संधित्तु ससयचम्मेण विविहमंसं विकत्तिकण तय॑ । वियरिज्जइ देवीए तत्तो किर रायमंसं ति ॥४८॥ 

ज॑ं बेल निवमेसा चिंतइ तो निंदए नियं चरियं । गब्भाणुभावओ पुण इच्छइ सब्बं पि भक्खेउं ॥०९॥ 
संपुत्नी दोहलओ तीसे पुत्तो कमेण संजाओ । उज्क्रावइ निव्विन्ना असोगवणियाए तं मज्झे ॥५०॥ 
विद्धा तत्थ य बालस्स अंगुली तंबचूडपिच्छेण | नाऊण वहयरमिमं निवो वि निब्भच्छए देवीं ॥५१॥ 


कीस तए पढमसुओ परिचत्तो दुल्लहो अपुन्नेहि ? | आणाविय नियपुत्तं समप्पए धाइवग्गस्स ॥५२॥ 
नाम॑ं असोगचंदो त्ति तयणु विहियं निवेण सुमुहुत्ते । सुकुमारत्तेणं तस्स अंगुली कृणिया जाया ॥|५३॥ 
पच्छा कुमरेहिं कृणिओ त्ति बीय॑ पि से कर्य नाम॑ । परिगलइ पूय-रुहिरं तयंगुली पत्थिवों तयणु ॥५४॥ 
सुयनेहमोहियमणो तह वि तयं नियमुहम्मि पक्खिवह । तो थक्कई रोयंतो बालो इहरा उ सो रुयइ ॥|५५॥ 
एवं सो वड्ंतो देहेण सम॑ं कलाकलावेण । तरुणीयणमणहरणं संपत्तो जोव्वणारंभं ।॥५६॥ 

एत्तो य चेल्लणाए हल्ल-विहल्ल त्ति दो सुया जाया । सब्वेसि कुमाराणं उज्जाणगयाण कील्त्थं ॥५७॥। 
पेसइ असोगचंदस्स चेल्लूणा मोयगे गुडेण कए । इयरेसि खंड-सक रनिम्मविएु कोणिओ तत्तो ॥५८॥ 
जम्मंतरवइ रवसा पओसभुव्वहइ सेणियनिवम्मि | जह एसो च्चिय पेसवइ मज्झ गुडमोयगे एए ।।५९॥ 
एत्तो अभयकुमारम्मि गहियदिक्खस्मि सामिपासम्मि | चितइ राया रज्जं दायव्वमसोगचंदस्स ।।६०॥ 
उत्तावलेण तेण वि कालाईहिं सवक्कबंघूहिं । पहरिक्करे होऊ्णं समयं आलोचिय॑ एयं ॥६१॥ 

काऊण जहा एयं रज्जं एक्क्रारसेसु भागेसु । गिन्हामो कुमरेहि वि पडिस्सुयं होउ एवं ति ॥६२॥ 
अन्नदिणे अत्थाणे बंधित्तुमसोगचंदकुम रेण । पक्खित्तो गोत्तीए तत्तो दुग्गाण नियजणओ ॥६३॥ 
पुन्वन्ह-पच्छिमन्हें कसघायसयं च देइ पहदिविसं । पाणीय-भोयणं पि हु निवारण तस्स सो कुमरो ॥६७॥ 
ता चेल्लणा वि मइराभरिएसुं गोविऊण केसेसु । कुम्मासे देइ निवस्स घधोविउं तह य वाले य ॥६५॥ 
पाए[इ] सुरं सो वि य तीए पभावेण वेयइ न कि पि। कसघायाई एवं चिट्ंती चितए तत्थ ॥६६॥ 
संसारविलुसियमिणं दुलक्खमज्झं अईव पेच्छ अहो !। कज्जम्मि जेसि किज्जंति देवयाराहणाईणि ॥६७॥ 
जायाणं॑ पुण जायाण कारविज्जंति उच्छवाईया । काऊण कुकम्माइं कीरह परिपोसणं जेसि ॥६८॥ 
दुबखेणं पाढिज्जंति जे य विविहावराहजायाणि । जेसि खमिज्जंति तहा परिचेद्ठाओ विहिज्जंति ॥६९॥ 
किज्जंति सुहियचित्ता जे य मणोभिमयवत्थमाई हिं । अप्पाणमसुत्थमणं काऊणमसुत्थकाले वि ॥७०॥ 
आसा-मणोरहेहिं विद्धि नीयाण जेसि करणिज्जे । तं नत्यि जं॑ न दुकक्‍्खं सहिज्जए मोहमूढ हिं।॥>१॥ 
परिणामों तेसिमिमो जं॑ं नियजणयम्मि मोहमइयम्मि । आबालकालपरिजणियविविहउवयारनियरे वि ॥७२॥ 
वच्छल्लकारणे वि हु निकारणमेरिसं ववइसंति | अच्च्चंतं परिकुविय व्व दुज्जणा सज्जणजणम्मि ॥७३॥ 
अहवा न हु एएसि दोसो अन्नस्स नेय कस्सावि । पुत्ताइमूडहिययस्स केवल अप्पणो चेव ॥७४॥ 

लद॒धूण दुरियदंदोलिमोसणं पोसणं सिवसुहार्ण । सिरिचीरजिणेसरपायपंकरयं जं न पव्वदओ ॥७५॥ 

ते धन्ना मज्ञ सुया मेहकुमारों अभयकुमारों य | तह नंदिसेणकुमरों अन्ने वि हु नायपरमत्था ॥७६॥ 
परिहरिऊणमसारं संसारं परिभवा55बह निवासं । जे सिवसुहबद्धमणा निक्‍्खंता वीरपासम्मि ॥७७॥ 

बालेसु वि पत्वज्जं पडिवज्जंतेसु परिणयत्रओ वि। पुत्ताइमोहमोहियमणवित्ती विसयसुहगिद्धो ॥७८॥ 
जमिह ठिओ निहियमणों नारयपहसज्जरज्जकज्जम्मि । तस्स फल सविसेसं तुमए रे जीव ! संपत्त ॥३९॥ 


इशे७ आश्यानकमणिकोशे 


ता अप्पाणं सयमेव निक्खिबंतो अगत्थसत्थम्मि । सुमरंतो जिणवयणं कीस मुहा कुप्पसि परस्स ? ॥८०॥ 
एवं परिभावंतस्स तस्स सेणियनिवस्स जिणवयणं । साहुस्स व गुत्तिगयस्स कोइ काछो वहक्‍कंतो ॥८१॥ 
एत्तो य कोणियनिवो उदाइनाम॑ सुयं॑ निउच्छंगे | संठविउमुवर्षिट्टो भोयणकज्जे तओ तस्स ॥<२॥ 
भुंजंतस्स य थालोवरिम्मि विहियं सुणएण पासवर्ण । मुत्तनिरोहमएणं रज्ना वि न चालिओ एसो ॥८३॥ 
भुत्तं मुत्तविमिस्सं उस्सारेऊण त॑ निरवसेसं | सुयनेहतरलियमणो तो पुच्छह चेल्लणं एवं ॥८४॥ 
कि एरिंसो सिणेहों अम्मी | दीसह जयम्मि अवरस्स | तो रुयमाणी साहह केत्तियमेत्तो इमो पाव | १ ॥८५॥ 
जेतियमेत्तो नेहो आसि तमासज्ज तुज्क जणयस्स | सो आह कहं ? तो कहइ चेल्लणा अंगुलीचरियं ॥८६॥ 
जद एत्तिओं सिणेहों मह उवरि पिउस्स कृणिओ भणइ । ता कीस मज्झ गुलमोयगे इमो अंब ! पेसंतो ॥८७॥ 
सा आह जहा गब्भप्पभिदह तुमं मरणहेउओ जाओ | जणयस्स जहा दोहलयपूरणं तेण तुज्ञ कय॑ ॥८८॥ 
जह उज्ञिओं य संजायमेत्तओ च्चिय असोगवणियाए । सुयनेहमोहिएणं आणिय जह पोसिओ रज्ना ॥८९॥ 
तह भूसिओ य तुमय॑ मणवंछियवत्थ-भूसणाईहिं । गुलमोयए य जे उण अहय॑ ते तुज्ञ पेसंती ॥६०॥ 
तुमए पुण उबयारं कुणमाणेणं पिउस्स एरिसयं । पाविद्ठेणं विहियं गिहकोहलनायसमरूवं ॥<१॥ 
तो पच्चागयचित्तो पसंतवइरो असोगचंदनिवों । चिंतेह जहा अज्जं नियले भंजेमि जणयस्स ॥4२॥ 
तो नियलभंजणत्थं चलिओ घेत्तण लोहमयदंड । वेगेणा55गच्छंतो दिट्ो सो दारपालेह्िं ॥<३॥ 
तो तेहिं अक्खियं सेणियस्स वेगेण कृणिओ एड । करकल्यिलोहदंडो ज़ं काही तं॑ न याणामो ॥९४॥ 
इंत॑ तं द्वणं अइरोइं सेणिओ विचितेइ । दीसइ अवरसरूवो पाविट्ठी कृणिओ अज्ज ॥९५॥ 
तो जाव>5ज्ज वि एसो मारइ केणावि न हु कुमारेण | इय चितिय तालउडं भक्खित्तु बिसं मओ तत्तो ॥<६॥ 
चुलसीइसहस्साऊ रयणपहापढमपत्थडे जाओ । नेरइओ उच्ब्बद्विय पढमो तित्थंकरों होही ।।॥९७॥। 
पच्छायावपरिगओ तयवत्थं पेच्छिउं कुणह राया । विविहपलावे पिश्मरणसोयसंतत्तमणभवणो || ८॥ 
हा ताय ! सुचाय ! महापसाय ! संपत्तपरमजसवाय ! | हा ताय ! विवायविसिद्दनाय ! हा रायगिहराय ! ॥१९॥ 
हा ताय | जिणेसरवीरभत्त | हा ताय ! वसणपरिचत्त ! | हा ताय ! पयंडपयावविजियदुव्वाररिउविसर ! ॥१००॥ 
हा खाइगसुहसम्मत्तरयणनिम्महियभावदोगच्च ! | हा भुवणभवणमूसणभारहसंभवियतित्थयर ! ॥१०१॥ 
हा ताय ! तयणवच्छल ! हा निम्मलकुलपसूय ! वररूय ! | हा ताथ ! कुलंगारयसुणण संपत्तदुहमरण ! ॥१०२॥ 
एवं कोणियराया दुस्सहपिउसोगकलियसब्वंगो | अचयंतो वसिउं तत्थ चंपनयर्रि निवेसेद ॥१०३॥ 
कालेण विगयसोगो साहियतिक्खंडसयलमहिवालोी । पाल॒इ असोगचंदो रज्ज चउरंगबलकलिओ ॥१०४॥ 
दट्ट णमन्नया रिद्धिमप्पणो चक्‍्क्रवष्धिणों सरिसं । ता कि चक्की अहय॑ ? गंतुं पुच्छेमि वीरजिणं ॥१०५॥ 
सब्वबलसमुद॒ए्णं विणिग्गओ पणमिउं महावीर । पुच्छहइ भयवं चक्की अहय॑ कि वा ? न व ? त्ति तओ ॥१०६॥ 
जयसामिणा वि जंपियमिह सब्वे चक्किणो वइक्कता । पभणदइ पुणो वि राया मरिऊणं कत्थ वचिस्सं ? ॥१०७॥ 
छट्टीए पुढवीए जिणेण भणिए न जामि कि सामि ! | सत्तमियं ? भणइ जिणो चक्कहरा तत्थ गच्छंति ॥१०८॥ 
तो सो अचकिभाव॑ असहृहंतो करित्त रयणाणि । लोहमइयाणि पत्तो तिमिसगुहं साहियतिखंडो ॥१०९॥ 
आराहियकयमालो अट्टमभत्तेण हणर्‌ दंडेण | जाव गुहाए कवाडे ता कयमालेणिमं भणिओ ॥११०॥ 
वोलीणा सब्वे वि हु चक्कहरा ता तुम नियत्तेसु | तह वि य सो न नियत्तइ काऊणं हत्थिसीसम्मि ॥१११॥ 
मणिरयणं संचलिओ कयमालाभिमुहमह गुहावइणा । दाऊण चवेडं मारिओ गओ छट्ठपुढवीए ॥११२॥ 

॥ इति कोणिकाख्यानकं समाप्तम्‌ ॥११६॥ 


इदानीं शह्लाख्यानकमाल्यायते | तश्वेद्मू-- 
सिरिमंगलम्मि देसे नयरं गुरुगोउरं पि संखटरं । सुइहारजणं पि विहारणोयसोहासमाइन्नं ॥१॥ 


३६. बन्घुकजिए" 7 ”लथिकारे शह्वाव्यानकम्‌ ३३५ 


संखाइकंतगुणो संखागयसत्तुदकणदुल्ललिओ । संखामलकित्तिधरो संखामिहनरवई तत्थ ॥।२।। 

पालेइ य पडिहयभडउब्भडचरडाइवज्जियं रज्जं । वित्थिन्नजत्थाणत्थो अहड्म्या सो महीनाहो ॥३॥ 
गयसेट्ठिपुत्तदत्तेण पपडपडिहारकयपवेसेण । उवणेउं रायारिहपाहुडमह पणमिओ तेण ॥०॥ 

संभासिओ य रज्ला उवबिट्टो आसणम्मि सप्पणयं | गयतणय ! कि चिराओ दीससि ? कुसलं सया तुज्झ १ ॥५॥ 
तेण वि पणामपुन्बं॑ पयंपियं पहु ! पसायओ तुम्ह । पायाण जणच्छायापायवतुल्लाण कुसलं मे ॥६॥ 

नाएण धणोबज्जणमेव<म्हाणं कुलक्कमो सामि ! । तं पुण गंतुं कीरह दिसिजत्ताए वि दुग्गाए ॥७॥ 

अवरं च अपुत्वाणं देसाणं होइ दंसणं देव ! | संपज्इ अच्चब्भुयकोऊहलदंसणं बहुसो ॥८॥ 

ता देव ! देवसाले विसालसालोवगूढनयरम्मि | दविणज्जणकज्जे हूं बहुसत्थजुओ गओ हुंतो ॥९॥ 

भणियं च भूमिवहणा चित्तचमक्कारकारयं कहसु | तत्थ तए जं किंचि वि सच्चवियं चारु अच्छरियं ॥१०॥ 
दत्तेणुत्त पहु ! देवसालमच्छरियनियरपरिकिल्ं । बहुहयमाहप्पो वि हु जत्थ जणो अहयमाहप्पो ॥११॥ 

अवरं पि हु अच्छरियं पेच्छठ सामी सयं पि त॑ं जेण । न य सको सक्को वि हु कहिउं जे कि पुण मणुस्सो ? ॥१२॥ 
इय जंपिऊण दत्तो पयत्तपच्छायणाणि अवणेउं | उबवणेह चित्तफलयं निवस्स तं गिण्हिडं सो वि ॥१३॥ 

नियद य सरूवरेहोवहसियतियर्सिदसुंदरिं कुमरिं । एसा देवि त्ति विचितिकण पणओ निवो तीए ॥१४॥ 
आउच्छिओ य दत्तो का एपा देवया ? भणइ सो वि। न हु देव ! देवया किंतु माणुसी एत्थ आलिहिया ॥१५॥ 
तं सोउं नरनाहो निज्काइय अंगचंगय॑ तीए | वारूग्गाओ नहग्गं जाव समुल्लविउमारद्धो ॥१६॥ 

कि दत्त ! माणुसीओ एवंरूवाओ कत्थइ हवंति १ । इसिप्पहासपुच्ब॑ पयंपियं तयणु दत्तेण ॥१७॥ 

सा का वि सरीरलयालीला रूबं पि तीए तं कि पि। जस्स लवो वि न नज्जइ लिहिउं निउणेषहिं वि सुरेहिं ॥१८॥ 
परमेत्थ सुमरणत्थं रूवलवो सामिसाल ! आलिहिओ । तो विम्हिएण भणियं रज्ना मह कहसु का एसा १ ॥१९॥ 
भइणी मम त्ति दत्तेण पभमणिए भणइ भूवई भद्द ! । जइ तुह भइणी ता देवसालनयरे कहं दिद्दा ? ॥२०॥ 

तेणुत्तं परमत्थं निसुणसु पहु ! देसदंसणत्थमहं । दविणज्ञणकज्जेण य विणिग्ओ जणयमझाए ॥२१॥ 
पठरपयाणयलंधियगामा-55गर-नगरकिन्नबहुदेसो । पत्तो य गुरुअरन्नं अब्भासे देवसालस्स ॥२२॥ 

भीमम्मि तम्मि सन्नद्धमडयणो तरलतुरयमारूढो । गच्छामि पलोयंतो चउद्दिसं मिल्लसंकाए ॥२३॥ 

अह तत्थ मए दिद्वो निश्चेट्टो निवडिओ महीवट्टे । रूवस्सी पच्चासन्नमयतुरंगो नरो एगो ॥२४॥ 

कंठंतपत्तपाणो नाओ सित्तो य सिसिरनीरेण । उवलद्धचेयणो तयणु पाइओ सीयलं सल्िलि ॥२५॥ 

छुहिओ त्ति सीहकेसरयमोयगे भोइउं समुल्लविओ । सुपुरिस ! कत्तो आगंतुमित्थ पत्तो महावसणं ॥२६॥ 
तेणुत्तमहं हरिओ हएण सिरिदेवनंदिदेसाओ । इह संपत्तो तुब्भे वि पत्थिया कत्थ ? मह कहह ॥२७॥ 

भणियं मए वि तद्देसमूसणे देवसालनयरम्मि । गच्छिस्सामो अम्हे ता दोन्ह वि सोहणो सत्यो ॥२८॥ 

तुब्मे तरलतुरंगमहरणुब्भूयप्पयासपरिसंता । अल्लियह ता सुहासणमम्हं तो सो समारूढो ॥२९॥ 

सप्पुरिसगुणु कित्तणकहाहिं दोन्हं पि हरियहिययाण । लूंधियकेत्तियमेत्तारननाण रवी गओ अत्थं ॥३०॥ 
आवासिओ य सत्थो तत्थ वि सव्वा वि वोलिया रयणी । नासियतमपब्भारे जाए अरुणुग्गमे सहसा ॥३१॥ 

दिट्ठं पमूयसेन्नं खुहिओ मह भडयणो वि सन्नद्धो । मा भाहि त्ति भणंतों ता पत्तो आसवारेगो ॥३२॥ 

तेणुत्त हयहरियं पुरिसं पेच्छिउमिमं बल पत्तं | घुट्टं च बंदिविदेण जयउ जयसेणकुमरो त्ति ॥३३॥ 

तो विजयभूबई वि य पत्तों विज्ञायकुमरबु 6ंतो । कुमरेण वि सप्पणय पणओ भूमिकियभालेण ॥३४॥ 

आउच्छिओ नरिदेण वच्छ ! कह ते समागओ रनन्‍न॑ ? | सो मणइ देव ! दुद्गण तेण तुरणण हं हरिओ ।॥३५॥ 
आणीओ य अरन्ने इमम्मि परिभमिरसीह-सदूदूले । तो ताय ! मए मुक्का वग्गा गुरुमग्गसमिएण ॥३६॥ 
परिसंठिओ तुरंगो तो मुक्को सो मए समुत्तरिउं | पाणेहिं वि परिचत्तों मन्‍्ने दुट्ठी त्ति कलिऊण ॥३७॥ 


देशेदे 


आश्यानकमणिकोरे 


गिम्हखरतरणितावियतणुणो जाया अईव मह तन्हा । अंधारिज्जंतमिणं भुवणमहं पेच्छिउं छूगो ॥|३८॥ 
तयणंतरं न कि पि वि विन्नायं जा इमेण आगंतुं । जीवाविओ अकारणसुबंधुणा पुरिसरयणेण ॥३९॥। 

त॑ सोउं समकालं पलोइओ हं निवेण सबलेण | पणमिय मए बि राया सविणयमेयारिसं भणिओ ।।४०॥। 

मज्क न जीवियदाणे सत्ती थेवा वि विज्ञए सामि !। किन्तु तुह पायपउमप्पमावओ जीविओ कुमरों ॥४१॥ 
तो पमुइणण पुहदेसरेण आलिंगिऊण हं भणिओ । तं॑ मज्क पढमपुत्तो जयसेणो पच्छिमो वच्छ ! ॥४२॥ 
नीओ य निययनयरे समप्पिओ मज्क परमपासाओं । नियकुमरनिव्विसेसा ठिदददे वि विहिया समग्गा वि ॥४३॥ 
तह कह वि रायकुमरेहि रंजियं मह मणं विणोएहिं । न जहा सुमरह जणणी-जणय-सदेसाण मणयं पि ॥४४।। 
तन्निवइ अग्गमहिसीसिरिदेवीकुच्छिकमलसरहंसी । रमणीययावयंसी अवयंसीकयसरलनयणा ॥9५।। 

अत्थि सुसुवन्वन्ना कन्ना ल/यन्पुन्नसब्बंग | कुसछा कलाकलावे कलावद नाम कामगिहं ॥|२६॥ 

पायं गवेसिओ बि हु न पाविओ कोइ तीए तुल्लवरो । तच्चितासंतावियमणेण राएण हं भणिओो ॥४७॥ 

बच्छ ! कहि पि निहालसु नियभइणीसमुचियं वरं कि पि। तो रूवलवो तीए मए इमो देव ! आलिहिओ ॥०८॥ 
नरवइणा5णुन्नाओ कमेण पहु ! तुह सयासमल्लीणो । जम्हा उत्तमरयणाण ठाणमिह देव ! त॑ चेव ॥४<॥ 
आयन्निऊण एयं महीवई चितिउं समारद्धो । किह संगमो भविस्सह मह सममेयाए ? न मुणेमि ॥५०॥ 
एत्थंतरम्मि मज्मन्हसूयगो सुरगिहेसु संखरवो । उच्छलिओ तह एयं पढियं निवकालकहगेण ॥५१॥ 
उल्लसियतेयपसरो सूरो जणमत्थयं कमइ एसो । तेयगुणब्भहियाणं किमसज्झं जीवलोगम्मि ? ॥५२॥ 
अत्थाणाओ समुद्ठिय न्हाओ पणओ य देवयाण निवो । सुरसं पि तीए बिरहे भुत्तो बिरसं व आहार ॥५३॥ 
पुणरवि वासरसेसो अत्थाणत्थेण राइणा गमिओ | विज्ञत्तो बीयदिणे ससंभमं चारपुरिसेण ॥५४॥ 
पडिहयपडिवक्खस्स वि सन्नद्धा चाउरंगिणी सेणा | देव ! तुह देसमज्झे पविसह वज्जंतआउज्जा ॥५५॥ 

त॑ सोऊण रणंगणपवेसरहसुच्छलंतरोमंचो । सन्नज्मह त्ति आइसइ नरबई निययसामंते ॥५६॥ 

ताडाविया य सहसा भयंकरा कायराण रणमेरी । पहरिसिया रणरसिया नयरे हल्लोहकी जाओ ॥५७॥ 
एत्थंतरम्मि दत्तो पत्तो पहिओ व्य तत्थ पहसंतो । भणहइ य किमयंडे विद्युरिल्लओ पहु ! रणारंभो ॥५८॥ 

नणु त॑ रमणीरयणं सयंवरं तुह समेह सयमेव । जयसेणकुमारों वि हु सो एसो नरसिरोरयणं ॥५९॥ 

त॑ सोउममयसित्तो व्व नरवई विगयविरहविसवेगो | आभरणमंगरूग्गं वियरह से कणयजीहं च ॥६०॥ 

भणहइ य दत्तय ! किह इह समागया सा ? तओ भणह दत्तो | हरिणि व्व देव ! तुह पुन्नवागुरायड़िया पत्ता ॥६१॥ 
तो मइसायरमंती पयंपए देव ! एस सप्पुरिसो । जम्हा एएण कओ पच्छन्नों तुम्ह उबयारो ॥६२॥ 

तुम्हाण गुणग्गहणं तीए पुरो कयमणेण संभविही । होही इमा परोक्‍्खाणुरायरत्ता तुमम्मि पह ॥६३॥ 

तीए निबंध नाउं अम्मा-पियरेहिं पेसिया भविही । तो एसो सिम्घयरं संपत्तो सामि ! तुह पासे ॥६४॥ 

तो संलत्तं दत्तेण देव | मंती जहत्थअभिहाणो । जो अस्सुयसब्बं॑ पि हु जाणइ एवं नियमईए ॥६५॥ 
सन्नज्ममाणनियबलनिवारणं काउमह महीनाहो । आइसइ नयरसोहं पर्मोयपरिपूरिओ संतो ॥६६॥ 

विहिया य नयरसोहा नयरे नायरजणेण सब्वेण । मंचाइमंचविरहयतलियातोरणमणहरिल्ला ॥।६७॥ 

आइट्टो महसायरमंती तेसि पवेसणनिमित्त' | तेण वि महरिहरिद्धीए तीए विहिओ पुरपबेसो ॥६८॥ 
आवासत्थं तिस्सा समप्पियं सत्तमूमियं भवर्ण । सम्माणिओ य तीए लोगो उचियप्पयाणेण ॥६९॥ 
जयसेणकुमारो वि हु पणओ गंतुं सहाए नरबइणो । पुद्ठा य कुसलवत्ता परोप्परं रायकुमरेहिं ॥७०॥ 
रायकुमारा-5मच्चाइएसु सन्वेसु सुहनिविट्लेसु । अवरोप्परसम्माणुच्छलंतपरमप्पमोएसु ॥७१॥ 

एत्थंतरम्मि वज्जर्‌इ कुमर-मंती फुरंतरयदित्ती । एत्तो य तत्थ पत्तेण देव ! दत्तेण तह कह वि ॥७२॥ 

तुम्हाण गुणग्गहणं बिहियं जह रायपमुहपउराण । ओयरइ माणसाओ टंकुकिन्नं व न कया वि ॥७३॥ 


१. च्ंचियंगीए रं० । 


श्दे 


३९. बन्धुरुजिमस्नेहत्थाधथिकारे शझ्वाव्यानकम ३३७ 


तुह मुत्ताहलनिम्मलगुणाबलीधरणहारिहियएण । रज्ञा संदिट्ठ तुज्ञ गउरवं कि वय॑ कुणिमो ? ॥७४॥ 

तत्तो य हिययद॒इया समम्गगुणरयणमालिया कुमरी । तुह समुचिय त्ति काऊग पेसिया गुरुसिणेदेण ॥७५॥ 
अणुराओ न हु जाओ इमाए अबरेसु रायकुमरेसु । अहवा मोत्तण रविं वंछइ कि कमलिणी अन्न ? ॥७६॥ 
तो भणह संखराया पेच्छ अहो | मज्झ निग्गुणस्सावि । नरनाहविजयसेणस्स पकखवाओ किमवि अहिओ ॥७७॥ 
जद जाओ राओ हूं लहुओ वि हु ता कहं गुणी जाओ ? | अहवा उत्तमपुरिसा नियंति दोसं पि गुणरूवं ।।७८॥ 
जद मज्झमुवरिहत्तो एवं नेहों मणे परिप्फुरह । ता तस्स तायतुल्लस्स वयणमम्हेहिं कायव्वं |७९॥ 

तो सब्बे वि य संतुट्ठमाणसा ते गया सठाणेसु । अवरोप्परपीइपरव्वसाण ताणं वयह कालछो ॥<८०॥ 

अह अन्नया य सुपसत्थतिष्टि-मुहुत्तम्मि रूग्गदिवसम्मि । पारद्धो रायडले बीवाहमहसबो रजन्ना ॥८१॥ 
गंभीरमद्दला रवविमिस्सजयतूरगहिरनिग्धोसे । अविहवविलयागिज्जंतमंगलारवसमुप्पत्रे ॥ ८२॥। 
बहुबंदिवंदवज्जरियजयजयारावभरियभुवणयले । मणहररमणीयणनइ[थट्ट]तुइंतहारोहे ॥॥८३॥ 
वंछाइरित्तवियरिज्जमाणवरदाणरंजियजणोहे । वीवाहकज्ज उज्जुयकंबियकरभमिरसामंते ॥।८४।। 

एवंविहम्मि रूग्गस्स वासरे पमुइएणण परिणीया । अणुरायरसियहियया राएण कलावई कुमरी ॥८४५॥ 

वित्ते वीवाहमहसवम्मि सब्बंगचंगिमजुयाए | तीए सह विसयसोक्खं भ्रुंजह सो वज्जियावज्जो ॥|८5॥ 
जयसेणकुमारेणं सम॑ पवड्ुंतपीइपब्भारो । नाणाविणोयवक्खित्तचित्तवित्ती गमइ कालं ॥८७॥ 

अह् अन्नया कुमारो भूमिलियसिरों निवं नमिय भणइ । दुम्मोयं मणयं पि हु तुह पहु ! पयपंकयं मज्ञ ॥॥८८॥ 
किंतु जणयाणशुरोहाओ होहिही नियपुरम्मि गमण्ं मे । ता कय बहुप्पसाया तुह पाया म॑ विमुंचंतुं ॥८९॥। 
अबरं च देव ! देवी कलावई तह सुहेण धरियव्वा । सुविणे वि सरह न जहा नियजणणी-जणय-बंघूणं ।॥९०॥। 
एवं ति जंपिऊर्ण निवेण सुपसत्थवासरे कुमरो । वोलावेउं सम्माणिऊण संपेसिओं सबलो ॥९१॥ 

देवीकलावदेए तह कह वि हु रंजिओ महाराया । जह सब्वहा वि जाओ तख्ित्तो तम्मओ चेव ॥<१२॥ 
संभासणाइएहिं तीए समग्गो सउत्तिकोगो वि। तह तोसविओ न जहा तब्विरहे चिट्दह खणं पि ॥<३॥ 
दासी-दासप्पमुहो परिवारों वियरणाइणा तीए । आवज्जिओ तहा जह आएं सीसेणमुन्यहह ॥९४॥ 

अह अन्नया य रयणीतुरीयपहरावसेससमयम्मि । सयणीयगया देवी कलावई नियह सुमिणम्मि ॥९५॥ 
विप्फुरियविविहमणिरयणकिरणविरइयसुभत्तिदिसिचित्त । कप्पूरमिस्सचंदणथवक्क बच कियावयवं ॥<६॥ 
खीरोयनीरभरियं भमरावलिकलियकमलपिहियमुहं । अंकम्मि पुन्नकलसं दवणीयविणिम्मियं रम्म॑ ॥९७॥ 
सुविणावसाणओ अ्विय पडिबुद्धा बंधुरस्सरं रम्लो । कहद जहा देव ! मए सुमिणो एयारिसो दिट्ठो ॥<८॥ 

तो पुहइवदद पसरियपमोयपरियूरिओ पयंपेह । तुह पिययमे ! भविस्सइ पुत्तो मह कुलगयणचंदो ॥<<॥ 

एवं होउ त्ति पयंपिऊण गब्भं सुहं समुन्बहइ । देवीहियइच्छियपुन्नपरमनिस्सेसदोहलया |॥|१००॥ 

नाऊण पसवसमयं अम्मा-पियरेहिं पेसिया नियया । पडिजग्गया तओ ते पत्ता य कमेण तम्मि पुरे ॥१०१॥ 
गयसेट्वटिगिहे आवासिया य ते दत्तपरिचयवसेणं । भवियव्वयाए दिद्ठा कलावई तेहिं पढमं पि ॥१०२॥ 
सागयकिच्च॑ काउ' परोप्पर पुच्छिया कुसलवत्ता । कहिओ तेहिं पि कलाबईए जणयाइसंभासो ॥१०३॥ 
जणयप्पउत्तिसवर्णुच्छलूतरोमंचकंचुयंगीए । हरिसेण सम॑ तीए अच्छिजुयं वियसियं सहसा ॥१०४॥ 

तो तेहिं समुबणीयं कुंकुम-कप्पूर-चंदणाईयं । भोगंगं तह वत्थाणि तीए पद्ठउल्याईणि ॥१०५॥ 

अबरं च अंगयजुयं जडियं कलूकंतरयणनियरेण । कुमरेण सिणेहेणं पेसियमेयं नरिंदकएु ॥१०६॥ 
पुन्वप्परू्ढपणएण जाइयं आसि दृत्तएणावि । नियपिययमानिमित्त तस्स विदिज्ञि न कुमरेण ॥१०७॥ 

त॑ घेत्तः तीयुत्त अहमबि रज्नो समप्पइस्सामि । सम्माणिऊण तीए विसज्जिया ते गया55वासे ॥१०५८॥ 


० चअआओण गण आना 





रैरे८ 


आदश्यानकमणिकोशे 


अंगयजुयलं विप्फुरियरयणकिरिणावलीहिं दिप्पंतं। नियभुयजुयले परिहियमसेससहिययणजुत्ताए ॥१०९॥ 
एत्थंतरम्मि राया5वरोहमज्झे समागओ सुणह । हसियरवं कि एयं १ ति चिट्रए जाव सवियक्कों ||११०॥ 
ता जाल्गवक्खेणं भुयासु अंगयजुयं नियइ तीसे । निमुणइ य वज्जरंतिं देविं एवं सहीण पुरो ॥१११॥ 
पियसह्दि ! अंगयसंगा सुहारसेणेव सित्तमंगं मे । अहवा इमेसि दंसणमेत्तेण वि सो मए दिद्ठो ॥११२॥ 
तन्नामर्गहणेण वि मञ्झ मं किम वियसियं इन्हि । संसग्गाओ इमेसिं सो चेव य मज्झ परिसत्तो ॥११३॥ 
पेच्छह अच्छरियमिणं मणप्पियरसाबि दत्तयस्स इम॑ | दिल्न॑ न मग्गियं पि हु त॑ सोउं सहियणेणुत्त ॥११४॥ 
सामिणि ! तस्स जहा तं॑ मणप्पिया सव्वहा तहा नडन्नो । तो तस्स नेव दिल्नं ता इह अत्ये किमच्छरियं ? ॥११५॥ 
नामग्गहणविहृणाणि तासि वयणाणि निसुणिउं राया । कुवियप्पवसवियंभियदैसाविसविहुरसब्बंगो ॥११६॥ 
चिंतइ विसन्नचित्तो इमीए अवरो मणप्पिओ कोइ । जस्स गुणग्गहणमिमं करेइ सहिययणपश्च क्खं ॥११७॥ 
अहय॑ तु कबडनेहप्पवंचओ मोहिऊणमच्चत्थं । अवियाणियपरमत्थो वसीकओ पावकम्माए ॥११८॥। 
ता तालहलं व इमाए सीसमिन्हि पि खग्गदंडेण । पाडेमि वल्लहं वा हणिउं वियरेमि भूयाण ॥११९॥ 
एवं हिययब्भंतरपलित्तकोवानलाउलो राया | किकायव्वविमूढो विसन्नहियओ विचितेह ॥१२०॥ 
नुणं न होइ नारी सीलवई जं॑ कलाग्देए वि । उत्तमकुलुब्भवाए वि जायमेवंविहसरूवं ॥१२१॥ 
इय कुवियप्पवियंभणपरव्वसो नरबई पडिनियत्तो । अइवाहइ कहकहमवि वाससहस्सं व दिणसेसं ॥१२२॥ 
तम्मि समयम्मि रज्ना पच्छन्न॑ं वाहरित्तु भणियाओ । मायंगीओ क॑ पि हु पडिवज्जिय त॑ गयाउ गिहे ॥ १२३॥ 
पयईय वि निकरुणो निकरुणो नाम सारही रज्ना । भणिओ भदय ! रयणीविरामसमयम्मि पच्छन्नं ॥१२४॥ 
देवी कलावई मे मोत्तव्वा अमुगगुरुअरन्नम्मि । आएसो त्ति भणित्ता निकरुणो रयणिविरमम्मि ॥१२५॥ 
पउठणीकाऊण रहं रहंगचिकारगहिरनिग्घोसं । पत्तो कलावईए भवणे त॑ भणह पयपणओ ॥१२६॥ 
देवि | समारुहसु रहे राया वि करिंदमारुहेऊण । पत्तो कुसुमुज्ञाणे तुम्हा55णयणे5हमाइट्टी ।|१२७॥ 
त॑ सोउं सत्थमणा रहमारूढा कलावई देवी । निकरुणेण वि पवमाणगामिणो पेरिया तुरया ॥१२८॥ 
निक्करुण ! कत्थ राय ? त्ति तीए भणिए स आह एसेस । एवं समुल्लवन्ताणि ताणि पत्ताणि रज्नम्मि ॥१२९॥ 
एएण वंचिया हं ति चितिउं भणह गग्गयगिरं सा | हा पाव ! वंचिऊ्ण किमिहा55णीया तए १ कहसु ॥१३०॥ 
न मए किमवि विरुवं विहियं ता कि तए5वहरिया हूं ? | इय सोउं निक्क रुणो करुणारसपूरियसरीरों ॥१३१॥ 
अंसुजलुल्लियनयणो कयंजली तक्कमे नमेऊण । पभणइ सामिणि | कम्मं पि मज्क नामस्स समरूव॑ ॥१३२॥ 
मा होज्ज मज्झ सरिसो पुरिसो निबव्भग्गसेहरों पावों | जो एवंविहकम्मे निओइओ हयपयावयणा ॥१३३॥ 
चयह सिणिद्धं पि जणं कुणइ अकज्जं पि हणइ जणय॑ पि। कि कि न कुणइ सामिणि ! परव्वसों सेवयवराओ १ ॥१३४॥ 
सव्वाण वि पावाणं सिरोमणित्तं सया समुव्वहइ । सेवापरव्वसत्तं नराण जेणेरिसं भणियं ॥१३५॥ 
सोच्छवास मरणं निरम्नि दहनं, निःश्रृद्धुलं बन्धनं, 
६ निष्पडूं है विने ५. + 
निष्पक्क मलिनं, विनेव नरक संषा महायातना । 
सेवासझ्ञनितं जनस्य सुधियो घिक्‌ पारवश्यं यतः, 
पश्चानां सविशेषमेतदपरं पष्ठं महापातकम्‌ |॥१३६॥। 
ता ओयरिय रहाओ उवविससु तले विसाल्साल्स्स | आणत्तमिमं रन्‍ना न अन्नहा कीरए एये ॥१३७॥ 
त॑ सोय॑ सोयामणिपहारपहय व्व जाव ओयरइ । रहरयणाओ मुच्छाए निवडिया ता महीवीढे ॥१३८॥ 
निकरुणो रुयमाणो रहरयणं गिणिहउं गओ नयरे | वणपवणवीइयंगी सचेयणा सा वि संजाया ॥१३९॥ 
चिट्टत जाव सकरुणं रुयमाणी मन्‍्नुपूरियसरीरा । ता पत्ताओ मायंगिणीओ नरवइनिउत्ताओ ॥१४०॥ 
भिउडीमीमनिडालाओ तडिल्लयातरलकत्तियकराओ | निव्भच्छिउं पयत्ताओ ताओ फरुसक्खरगिराहिं ॥१४१॥ 


३६. थन्धुरुजिमस्नेदत्याधिकारे शह्वाज्यानकम्‌ शेशेर, 


आ पाविट्ठे ! दुट्टे ! रायसिरिं माणिडं न याणासि । अणुरत्तस्स वि पडिकूलवत्तिणि ! होसि जं रन्नो ॥१४२॥ 

ता उवभुंजसु दुव्विलसियस्स फलमिद पयंपिउं ताहिं। रयणाभरणविराइयभुयजुयर्ू छिंदियं तीए ॥१४३॥ 

सद्धि भुयजुयलेणं देवी पडिया महीए मुच्छाए। कह कहमवि चेयन्नं लहिऊर्ण बिलविडं छग्गा ॥१४४॥ 

हा हा निहय ! हयविष्ि ! विहियं कि एरिसं तए मज्ञ । गुरुदुक्खमयंडे थि हु विणावराहेण दीणाए ? ॥१४५॥ 
हा अज्जउत्त ? जुत्त न तुज्ञ उत्तमकुलप्पसूयस्स । दाउं दारुणदुक्खं दोसमदंसिय दयानिहिणो ॥१०६॥ 
गुरुदोसदूसियाण वि अपरिक्खियकारिणो न सप्पुरिसा । ते मह निद्दोसाए वि कि तए एरिसं विहियं ? ॥१४७॥ 
मह उबरि आसि नेहो सामि ! सयाउनन्नसरिसओ तुज्क । संजाय॑ तस्प इम॑ पञ्ञवप्ताणं पभणियं च ॥१४८॥ 
ताण गुणग्गहणाणं ताणुक्कंडाण ताण भणियाण । ताण रमियाण पिययम ! अवसाणं एरिसं जाय॑ं ॥ १०९॥ 

अहवा मह पुव्वकयकम्माणं परिणदे इमा जाया | न हु अत्थि एव्थ कस्स वि दोसो थेवों वि हु परस्स ॥१५०॥ 
इय एवं अत्ताणं संघीरंतीएण तीए संभरियं | नियजणय-जणणि-बंघूग तयणु पुण बिलविउं छूगगा ॥१५१॥ 

हा ताय ! ममं तायसु उच्छलियतरच्छ-अच्छभज्लम्मि । रत्ने नाहर-रुरु-रोज्ममुकवोक्कारवरउद्दे ॥१५२॥ 

हा अंब ! संवरालीकरालकंतारमज्कयारम्मि | नियदुहियं सुहियं कुण काउं पुत्व॑ व उच्छंगे ॥ १५ ३॥ 

हा भाय ! भाय ! भीमाडवीए भीयाए देखु मंभीसं | जम्हा जणे पसिद्धं भइगोए वच्छछो भाया ॥१५४॥ 

तह तीए तत्थ रुत्नं सरिउं पिय-जणय-जणणि-बंधूणं । जह जायाणि पसूण वि मणाणि विप्फुरियकरुणाणि ॥१५४५॥ 
भुयजुयविकत्तणब्भवपीडाबिहुरियसमग्गअंगाए । उयरम्मि तीए जाय॑ सूल संचलियगब्भाए ॥१५६॥ 

नाऊण पसवसमयं पत्ता पत्तलतरूण गुम्मम्मि । गुरुवेयणाए विवसा उत्तमपुत्तं पसूया सा ॥१५७॥ 

नियदइ य निययक्रमकमलजुयलरूमज्ञम्मि फुरियतणुकिरिणं । पुत्तं उत्तमलक्खणसमन्नियं अमरकुमरं व्य ॥१५८॥ 
तत्तो चित्तव्भंतरभवंतपरिओस-गुरुविसायजुया । जंपइ पुत्तव ! कल्लाणसंजुओ होसु दीहाऊ ॥१५५९॥ 

किर तुज्ञ जम्मदिवसे वद्धावणयं गुरु करिस्सामि | इय चिंतियं पि संजायमन्नहा पुत्त ! उत्तं च ॥१६०॥ 
अन्नह परिचिंतिज्जइ सहरिसकंदुज्जुएण हियएणण । परिणमह अन्नह चखझिय कज्जारंभो विहिबवसेण ॥॥१६१॥। 
पाणिविहणा पुत्तय ! परिचेट्टं मंदभाइणी अहयं । तुह किह करेमि संपह ? इय विलवंतीए देवोए ।।१६२॥ 

पुत्तो चडप्फडंतो तरंगिणीकूल्सम्मुही ढुलिओ | धरिओ य तीए चलणेसु कत्ति एवं मणंतीए ॥१६३॥ 

हा हा निक्करुण ! कयंत ! कि न तुट्ठी सि एत्तियदुहेण । जं हरसि पुत्तरयणं पि दीगबय णाए मह इण्हि ? ॥१६४॥ 
पणइयणकरुणकरणे पणया हं तुह तरंगिणीतिलए !। भयवइ ! पवित्तनीरे ! तीरे तुह हीरए कुमरों | ॥१६५॥ 
ता देवि ! दयं काऊण कुणसु कुमरस्स रक्‍्खणं इन्हि । जम्हा तुम्हाणं सरणमागया दीणबयणा हं ॥१६६॥ 

जइ जयइ जए सील रयणीयरकिरणनियररमणीयं । परिपालियं मए वि हु त॑ जइ सुविसुद्धहिययाए ॥१६७॥। 

ता दिव्वनाणनयणे ! कुण प्पसायं नहृप्पयइसच्छे ! | जह पालिज्जह बालो नवरंभागब्भस्ठु कुमालो ॥१६८॥ 

इय दीणरुयणसवणुच्छलंतकरुणाए सिंघुदेवीण | सा कमठनालक्रीमरुभुयाकूया निम्मिया सहसा ॥१६०॥ 

तो तीए तकक्‍्खर्णं चिय सोयपिसाओ पलाइऊण गओ । मंतस्स व भुयजुयलस्स दंसणे हिट्ठहििययाएु ॥१७०॥ 
घेत्तण तयं कंकरेल्लिपल्लवारत्तपाणिजुयलेण । अंकम्मि कुगइ नवकप्छमउडघुकुप्तालयं बार ॥१७१॥ 

अभ्घाइऊण सीसे पयंपए जाय ! तुज्क मुहससिणो । ओयारणयं किज्ञामि भणिय कारेइ थणपाणं ॥१७२॥ 
पुणरवि चित्तब्भंतरभवंतसंपुल्लमन्नुसंभारा । अइकरुणं रुयमाणी पयंपिउं एबमारद्धा ॥१७३॥ 
जाया5हमकयसुकया कहमणुतच्रियकंदमृुलफलवित्तीं । काउं काहं तुह देहवद्धणं वच्छय ! अपत्था ॥ १७४७॥ 
धत्नाउ बालकाले वि कलियबंभव्वयाओं समणीओ । विप्फुरिओ जाण मणे मणयं पि न पेम्मपरिणामो ॥१७५॥ 
जइ किर अहमवि हुंता समणी बालत्तणे वि सुहचित्ता | ता पिययमपेम्मविडंबणं इमं नेय पावेंता ॥१७६॥ 

इय एवं दीणसरं रुयमाणी त॑ वर्ण भमंतेण । कंद-फल-मूलकज्जे सा दिद्ठा तत्थ कुलबइणा ॥१७७॥ 


३० 


आश्यानकमणिकोशे 


मंभीसिऊण भणिया वच्छे ! आगष्छ आसमपयम्मि | तो सा तेण समेया तवस्सिआसमपयं पत्ता ॥१७८॥ 
भणिया य पुत्ति ! उत्तिमवंसुप्पत्ति कहेइ तुद्द देहो | दंसंतो सुहलूकखणनियरं झस-कुलिसपमुहमिमों ||१७९॥ 
ता कहसु काउसि त॑ ? इय पयंपिया जायमन्नुसंभारा | संधीरिया य तावसवइणा इय कोमलगिराहिं ॥१८०॥ 
मुंच सु विसायमिणमो वच्छे ! सच्छंदयाए दुल्लल्झो | जह पडिद्दाइ तहेव य बिलसइ एसो हयकयंतोी ॥१८१॥ 
जो होह सया सुहििओ बियरइ दुह्मइसएण तस्सेव । जो पुण दुहसंभारेण पूरिओ कुणइ त॑ सुहियं ॥१८२॥ 

जो होइ धणाहिवई दरिदचूडामर्णि तयं कुणइ । जो पुण दोगश्दुह्दी सुहयइ त॑ दविणदाणेण ॥१८३॥ 

जो विलसिरसोहग्गो दोहर्गं देह दुसस्‍्सहं तस्स | दोहम्गजुयं तह जणह होइ जह सयलूजगइट्टो ॥१८४॥ 
जेसिमकित्तिमपेम्मं परोप्परं तेसि तं विहाडेइ । संघडइ विहडियं पि हु केसि पि तयं महापावो ॥१८५॥ 

ता एवंविहविहिविलसियम्मि भद्दे ! कहं कुणसि सोयं १ । धीरत्तणमवलंबिय सोयपिसायं परिच्चयसु ॥१८६॥ 
एत्थ ठिया परिपाल्सु पृत्त गुरु-देवजणियबहुमाणा । जा पुव्वभवोवज्जियसुकयं सविहीभवह भद्दे |! ॥१८७॥ 
एवमणुसासिया सा कुलवइणा जायजीवियव्वासा । पुत्तं परिपालंती तत्थ ठिया इसिअवसोया || १८८॥ 

एत्तो मायंगीओ सह केऊरेहिं तीए भुयजुयलं । दंसंति रुहिरधारारुणियाभरणं नरिंदस्स ॥१८९॥ 

जा नरवई निरूवइ केऊरजुयं करे कलेऊण । जयसेणकुमरनामं ता तत्थुक्कीरियं नियह ॥१९०॥ 

त॑ पेच्छिउं नरिंदों धसकिओ वज्वघायपहओ व्व । तन्निच्छयाय बाहरिय पुच्छए झत्ति गयसेट्टि ॥१९१॥ 

कि देवसाल्नयराओ आंगओ कोइ ? भणइ सेट्टी वि। संतीह देव ! देवीमुयावणे आगया पुरिसा ॥१<२॥ 
नवरं न5ज्ब वि पावंति तुम्ह पयपउमदंसणं देव ! | तो ते वि समाहूया संपत्ता रायपयपुरओ ॥१९३॥ 

भणिया य भो किमेय॑ केऊरजुयं १ ति तयणु ते बंति | सामिय ! ममुल्लमणिमयमंगयजुयमिममइप्पवरं ॥१९४॥ 
जयसेणकुमारेणं तुम्हं पाणप्पियाए पेसवियं । मुक्कं समइक्क॑ते दिणम्मि देवीगिहे आसि ॥१९५॥ 

इय एवमुल्लवंताण ताण सहस त्ति संख नरनाहो । मुच्छामीलियनयणो पडिओ सीहासणुच्छंगे |१९६॥ 
जललवविमिस्सवीयणयवीहइओ किच्छप्तचेयन्नो । निस्सेसजणसमक्खं अत्ताणं निंदिडं रमगो ॥१९७॥ 

अहह ? महापावो हं अहह ! अणज्जो अहो ! सुनिकरुणो । जं सुद्धसीलकलिया कलावई पाविया मरणं ॥१९८॥ 
तो मंति-मंडलेसर-सामंता आयरेण पुच्छंति | सामि ! किमेयमयंडे ? राया वि कहेउमारद्धो ॥१९९॥ 

भो ! नियएणं दुव्विलसिएण संताविओ अईदवबाहं | जेण तर्ण व न गणिओ नेहजुओ वि हु विजयराया ॥२००॥ 
जयसेणकुमारस्स वि नेहतरू वड्डिओ वि मणठाणे । पक्खित्तो उक्खणिउं आमूलाओ वि पेच्छ मए ॥२०१॥ 
थीरयणदाणगयपुत्तदत्तमेत्ती गया वि गरुयत्तं | सव्वा वि य पम्हुसियाउकयन्नुणा पेच्छ पावेण ॥२०२॥ 

पणओ कलावईए व5णज्नसरिसो गओ वि गरुयत्त | एगपए चिय चत्तो अपरिक्खियकज्जकरणेण ॥२०३॥ 
अमयकरकिरणनिम्मलकुले मसीकुच्चओ मए दिन्नो | वित्थारिजो य सनरा-3मरा-असुरे तिहुयणे अयसो ॥२०४॥ 
जं सुद्धसीलकलिया वि नट्डसील त्ति कप्पिअा मए । संपत्तपसवसमया पवेसिया हयकयंतमुद्दे ॥२०५॥ 

न य भज्क अत्थि सुद्धी थीवज्ञाकारिणो विणा जलूणं । ता कुणह मह निमित्तं कट्टचियं जेण पविसामि ॥२०६॥ 
इय नरवरिंदवज्जरियवयणसमगुच्छलंतगुरुसीओ । अत्थाणजणो3न्नोन्नं वयणाणि पलोइउं छग्गो |२०७॥ 

तो समकालं हा हा ! ह ह ! त्ति उम्मुक्रपुकधाहोहो । सोउं नरिंद्वयणं नयरजणो कंदिउं छूम्गो ॥२०८॥ 

हा उचियकरणदव्खे ! हा ससहरसेयसीलकयरक्खे ! । दे देवि ! देखु दंसणमेवं पलवंति कंचुइणो ॥२०९॥ 

हा सामिणि | दीणाओडणुकंपणीयाओ संपयं अम्हे | जायाओ तं॑ बिणा इय रुयंति दासीओ सयलाओ ॥२१०॥ 
हा | दहएण न सुन्दरमणुट्टिय॑ निटठुरेण जं तुज्झ | जणियमइदुट्टकट्टं ति रायदहयाओ रोयंति ॥२११॥ 

हा निन्वियारनयणे ! हा मिउवयणे ! हा पंसमसयणे ! । हा हा ! त॑ कत्थ गय ? ति मंतिव्गो वि पलवेइ ॥२१२॥ 


१, प्रशमसदने | । 


३६. बन्धुकजिमस्नेदत्थाथिकारे शह्ताक्यानकम ३७१ 


ह ! को दाही निययंगलरूग्गमाभरणमइसुतुट्टो वि । मज्झं॑ देवीए विण ? त्ति कंदए बंदिविंदं पि ॥२१३॥ 

हा हा रमणीयणवयणमंडणे | खंडणे ! अकज्जाण । कत्थ गया सि ? त्ति रुयंति पुरपुरंधीओ मिलियाओ ॥२१४॥ 
एवं सबाल-विद्धप्पमुकपोक्षम्मि पुरजणे सयले | पभणइ राया मंतीण सम्मुहं करुणसद्देण ॥२१५॥ 

जाव न तडत्ति फुट्दद मह हिययं ता झड़ त्ति कट्ठेंहि । कुणह चियं न वियाणह कि दुस्सहवेय्ण मज्क ? ॥२१६॥ 
तत्तो मंतिप्पमुह्दा पठरा पगलंतअंसुजलनयणा । सविणयमाबद्धकरंजलीजुया विन्नर्विति निबं ॥२१७॥ 

कि सामि ! समारद्धं मयमारणमम्ह देविदुहियाण ? | जं वंछसि पविसेडं पज्जलियचियानले घोरे ॥२१८॥ 
तुम्हारिसा वि धीरा ज़इ सोयपरव्वसा भविस्संति । ता पाययप्पयाए कायरहिययाए को दोसो ? ॥२१९॥ 
अवबरं च तइ जियंते सबाल-विद्धो वि जियइ पुरछोगो । मरइ मरंते पुण निच्छणुण देवे दएकरसे ॥२२०॥ 

ता दु विखयप्पयापालओ वि दहोऊण सामि ! किह कुणसि । लछोगस्स विणीयस्स वि कमागयस्सावि खयमेवं ? ॥२२१॥ 
पुज्जंतु मा इयाणि मणोरहा तुद रिवृण सवब्वाण । ता काऊण पसाय॑ परिपाल्सु पहु ! पयं पडरं ॥२२२॥ 

एवं सविणय-सप्पणयवयणनिउणे्िं पर्भाणओ वि तहा । मरणेक्बद्धनुद्धी समुद्ठिओ संखनरनाहो ॥२२३॥ 
अणुगम्मंतो गुरुसोयरततनेत्तेहिं नयरलोएहिं । नियमंद्राओ चलिओ चलणेहिमरइयसिंगारो ॥२२४॥ 
अब्भत्यिकण कह कह वि तुरयमारोविओ अमश्चेहिं। परिहरियछत्त-चिंधाइरायलंकारसंदोहो ॥|२२५॥ 

व ज्जियजयआउज्जो वारियचारणगणत्थवणकज्जो । निस्सदृबंदिविंदो अहक्कपाइकचकजुओ ॥२२६॥ 

पेच्छिज्ंतो पगरलंतअंसुजालाहिं नयरबालाहिं । वारिज्जंतो आबद्धपाणिपउमाहिं थेरीहिं ॥२२७॥ 

पत्तो य नंदणुज्ञाणपरिसरे तो विसन्नवयणेसु । मंतीसु रायरवखानिमित्तमप्पत्तबुद्धीसु ॥२२८॥ 

गयसेट्टिणा सबिणयं भणियं इह सामि ! नंदणुज्ञाणे । फलिहमणिरयणनिम्मियजिणिंदवरमंदिरं अत्यि ॥२२९॥ 
अवरं च अमियतेओ सूरी तत्थाउडगओ अमियतेओ । ता देव ! देवपूय्य कुणसु तहा गुरुकमे नमसु ॥२३०॥ 
पच्छा जमभिप्पेयं करेज्ज तं इय पर्यंपिओ राया । एवं ति भणिय जिणनाहमंद्रिद्देसमणपत्तो ॥२३१॥ 
ओयरिय तुरंगाओ पत्तो अब्भंतरे जिणहरस्स । न्हविय विलेविय पूहय पणमिय पडिम॑ सुभत्तीण ॥२३२॥ 

तत्तो गुरूण चरणे नमिऊर्ण तप्पुरो समुवविट्टो । दुह्ििओ इमो लि चिन्तिय पारद्धा देसणा तेहिं ॥२३३॥ 

भो नरवरिंद | जर-मरण-रोय-सोयाउलम्मि संसारे । परियटंताण जियाण दुल्लहं माणुसं जम्मं ||२३४॥ 

त॑ पि हु आरियखेत्ताइसयल्सामग्गिसंगयं लुद्धुं । कायव्वा धम्ममई भवकारागारनिदलणी ॥२३५॥ 

जम्हा जीय॑ जलबिंदुचंचर्ल गत्तरा सिरी सयला । खणभंगुरा विलासा विणस्सरं तारतारुत्च ॥२३६॥ 

अथिरं पियम्मि पेम्म॑ चचलं लीलाललामलायजन्नं । न चिरद्वाई सयणाण संगमो सव्बजीवाणं ॥२३७॥ 

एवंविहे असारे संसारे नरवरिंद ! न हु जुत्ता । मरणमई परियाणियसारा-उसाराण तुम्हाणं ॥२३८॥ 

ता मुच मरणबुद्धि धम्मम्मि पुणो समुज्थमं कुणसु । जम्हा न5ल्नो सर जियाण मोत्तण जिणधम्म॑ ॥२३९॥ 
इय निसुणिडं नरिंदों पयंपए सुट्ठु सव्वह्य धम्मो | परमच्चंतं हियए खुडुकए मह मयच्छिदुहं ॥२४०॥ 

तेण न सक्को खणमवि पाणे घरिउं कलावईविरहे । ता मरणसमयजोग्गं जमणुट्ठाणं तयं कहह ॥२४१॥ 

इय तेणत्ता गुरुणो भणंति नरनाह ! बुज्क मा मुज्क | रुहिरेण धोइयं न हु सुज्ञइ रुहिरारुणं वत्थं ॥२४२॥ 
तह दुकक्‍्खं पि न फिट्टरे मरणदुहेणं नरिंद्र ! नियमेण । अहिययरं पुण जायइ जम्हा अन्नाणकट्टं त॑ं ॥२४३॥ 
ता कुणसु जिणवरिंदप्पयासियं धम्ममुत्तमं राय ! । जह न कयाइ वि जायइ इट्अडविओगाइदुहनियरों ॥२४४॥ 
अयरं च दिव्वदिट्वीए नज्जएु तुह भविस्सए जोगो । सह पिययमाए सब्वंगसुंद्रावववनिरुयाएु ॥२४५॥ 
इयसूरिवयणसिसिर[यर ]|बारिधाराहि रायहिययम्मि । गुरुसोयदावपायवपसरो सव्बो वि विज्काओ ॥२४६॥ 
सुत्तो य तत्थ रयणीए सुविणयं नियइ पच्छिमे जामे । किर केणइ एगफला कप्पदूदुलया दुह्य छिन्ला ॥२४७॥ 
पढिया महीए तचो लूग्गा तत्थ वि तहा गया विद्धि । जाया य पुणो अहियं॑ हिययहरा सयललोयस्स ॥२४८॥ 


दे४२ 


आखश्यानकमणिकोशे 


तत्तो पहायपडहप्पकिट्गरपडहयसरेण पडिबुद्धों । स्रीण कहइ सुविणं पहिद्ठहियओ जहादिटद्वं ॥२४८॥ 
परियाणियसुविणत्था गुरुणो रज्नो कहंति नरनाह ! । छिन्ना जा कप्पलया सा तुज्क कलावई देवी ॥२५०॥ 
एगफला ज॑ त॑ पुत्तसंजुग्रा जं पुणो वि पारूढा । त॑ तुद्द मिलिही अज्जेव जायसंपुन्नसब्बंगा ॥२५१॥ 

तुम्हाण पायपउमप्पसायओ होउ एवमिइ भणिउं । राया पहरिसवसपुलइयंगओ वंदिऊण गुरु ॥२५२॥ 
नियपासायं पत्तों तत्तो दत्त भणेह वाहरिउं | दत्तय ! एबमकर्ज कयं मए मूढमहणण ॥२५३॥ 

पच्छा मरंणपइलन्ना विहिया ता जह कलावई जियइ । ता जीविजद अह नो मरणं चिय हवइ मह सरणं ॥२५४॥ 
ता पवणजवणवाहं रहं समारुहिय रन्नमज्काओ । जह जियद ता तमाणेज्ज अह न तो तं॑ मय॑ मुणसु ॥२५५॥ 
एवं वुत्तो दत्तो पत्तो रत्न रहं समारुहिउं । निठणं निरिक्खयंतेण तेण ते तावसा दिद्ठा ॥२५६॥ 

पुद्ठा य कहह भयव॑ ! कत्थइ तुब्मेहिं गुव्विणी रमणी । सच्चविया इृह रन्ने परिब्भमंती ? तओ ते वि ॥२५७॥ 
जंपंति कि न मुंचह इमाए उबर्रिं नरेसरो रोसं ? | अज्ज वि वंछइ कि पि हु काउं अइदारुणं दुक्खं ? ॥२५८॥ 


तेसि वयणाओ तीए अत्थित्तं चितिड भणइ दत्तो | भयवं ! नेय सकोवो किंतु ससोगो निवो अम्हं ॥२५९॥ 

ता जह कलावई जियइ जियइ राया वि नउन्नहा भयवं ! | काही पाणश्चायं पविसिय पञ्नलियजरूणम्मि ॥२६०॥ 
एवंवुत्तेहिं स तावसेहिं करुणेकरसियहियएहिं । कुलबइपासे नीओ दत्तो पणओ य सो तस्स ॥२६१॥ 

कुलबइणा वि कलावहवुत्ततो साहिओ असेसो वि। नीहरिया देवी वि य तवस्सिणीकोयमज्काओं ॥२६२॥। 

दत्त दट ठुं मन्नृहयमाणसा परूविउं समारद्धा | संधीरिया य दत्तेण निहुयनिहुयं रुयंतेण ॥२६३॥ 

आसासिया य सामिणि ! खेयं मा कुणसु सुणसु मह वयणं | विहिविलसियस्स नासो न होइ अथिरम्मि संसारे ॥२६४॥ 
ता धीरत्तणमवर्ंबिकण सोगावयासमवि मुंच । जम्हा बहुएण वि सोइएण न य फिट्टए दुक्‍्खं ॥२६५॥ 

जाणामि दारुणं तुह एयं दुब्खस्स कारणं जायं | ०एण निमित्तेणं णंतगुणं दुक्खिओ देवो ॥२६६॥ 

इण्हि इमेण दुव्विलसिएण संतत्तचित्तवित्ती सो । अज्ज न जइ त॑ पेच्छह निसाए ता पविसए जलणे ॥२६७॥ 
जाणामि तुज्झ माणं जेणा55गंतुं न तरसि त॑ तत्थ । ता देवि ! दय॑ कुण रायरक्खणे मज्झ वयणेण ।॥२६८॥ 
काउं पसायमारुहसु रहवरे जेण तत्थ गच्छामो । कालविलंबो जुत्तो न होइ एवंठिए कज्जे ॥२६२९॥ 

निवनिच्छयं वियाणिय कुलुवहमाउच्छिउं पणमिऊण । आरूढा रहरयणे पत्ता य कमेण संखउ रे ॥२७०॥ 

दटटुं देवि अक्खयसमम्गअंगं पहरिसिओ वि निवो । तं पेच्छिउमचयंतो लज्जाए अहोमुहो जाओ ॥२७१॥ 

पारद्धं लोएणं वद्धावणयं पुरे समग्गम्मि । बद्धा चंदूणमालाउ पहइगिहं चूयपत्तेहि ॥२७२॥ 

तत्तो वद्धावणए वित्ते पत्ते पओससमयम्मि | खगमत्थाणे उवविसिय हरितियासेससामंते ॥२७३ ॥ 

उद्वित्तु तओ राया कलावईवासभवणमणुपत्तो । संमासह त॑ संजायमन्नुपरिपूरिय परोरं ॥२७४॥ 

देवि ! महापावेणं मए महादुक्खदारुणे वसणे । पक्खित्ता निद्दोसा वि खमसु ता एगमवराहं ॥२७५॥ 

दंसंतो नियवयणं धणियं लज्जामि तुह अहन्नो हं । ता पसयच्छि ! पसाय॑ काउं खेय॑ परिच्चयसु ॥२७६॥ 


तीए विलक्खवयणं नमिऊण निव॑ सगग्गयं मणियं । सामि ! न कस्सह दोसो मोत्तु, मह कम्मपरिणामं ॥२७७॥ 
परिकप्पिकण दोसं जमहं निस्सारिया तय॑ कहसु । तो अंगयाइओ से वुत्तंतो साहिओ रज्ना ॥२७८॥ 

तीए वि नियओ रज्नो निवेइओ त॑ निसामिउं राया | पभणइ पिए ! न होही मज्क समो निम्धिणो भुवणे ॥२७८॥ 
जो निम्मलसीलाए वि तुज्म आणेइ एरिसं वसणं | ता खमियव्वं तुमए एयं सुपसत्नहिययाए ॥२८०॥ 

जह गुरुणो न कहंता ता तुह संगमसुहं न में हुंतं । तो देवीए पुट्टे सिद्टी गुरुवइ्यरों रज्ञा ॥२८१॥ 

दंसेयव्वा मज्क वि गोसे गुरुणो कछावई भणिए | संगयमिमं ति रज्ना पमुइयहियएण पडिवन्नं |२८२॥ 

एवं सिणेहनिब्भरकहाहिं नीया तमस्सिणी तेहिं। नियकिरणहरियतिमिरे समुर्गएु सहसरस्सिम्मि |२८३॥ 
विहियप्पमायकिब्वो राया आरुहिय पट्टदोघट्टे । सबलो कलत्तजत्तो पत्तो सूरीण सविहिम्मि |२८४॥ 


३६, बनन्‍्धुकूृजिमस्नेहत्याधिकारे कनककेत्वाव्यानकम्‌ ३७३ 
दोन्ि वि सूरीण कमे नमिय निविद्ठाणि उचियठाणम्मि । तेहिं वि महुस्सरेणं पसंसियं सीलमाहप्पं |२८५॥ 


कि बहुणा सव्वाण वि नर-अमरा-उ5सुरसुह्ाण संजणणं । सील॑ ता पालिज्जउ तमखंडं भव्वसत्तेहिं ॥२८७॥ 
इय मु णिवइ्सद्देंसणमायन्निय निव-नरिंदपत्तीणं । संजायगंठिभेयाण होइ सम्मत्तवररयणं |२८८॥ 
तो पडिवन्नो दोहि वि सावयधग्मी दुवाल्सविहो वि। गहिय॑ च बंभचेरं जावज्जीवं विरागाओ ॥२८९॥ 
तो गंतुं नियनयरे सुयजम्ममहो पवत्तिओ तेहिं। बारसमदिणे नाम॑ दिन्नं कुमरस्स सुमुहुत्ते ॥२३१०॥ 
सुमिणम्मि पुन्नकलसो दिद्ठो गब्भागयम्मि एयम्मि | तेणेस पुन्नकलसो ति नाम निव्वत्तियं रज्ना ॥२२१॥ 
जिणमंदिरिसु जत्ताओ कारयंतस्स गरुयरिद्धीए । सुस्सूसंतस्स गुरूण चरणजुयलं सुभत्तीए ।|२२२॥ 
साहम्मियवच्छल्लुज्जयस्स सज्ञ्ञाय-नियमनिरयस्स । जिणरहजत्ताउ सया पवत्तयंतस्स नियदेसे ॥२९३॥ 
एवमणुट्वाणपरस्स तस्स देवीए संपरिवुडस्स । सो पुत्नकलसकुमरों संपत्तो तारतारुन्नं ॥२६४॥ 
विहरं तो गामा-55गर-नयरपकिट्ठ वसुंधरावीढे । सूरी वि अमियतेओ संपत्तो नंदणुज्जाणे ॥२२५॥ 
राया वि सपरिवारों समागओ तस्स वंदणनिमित्त | पणमिय त॑ उबविट्टो पमणइ वक्रखाणपजञ्जते |२०६॥ 
निरवज्जा रज्यसरी सुइरं परिपालिया मए भयवं | । इण्हि तु तबसिरीपालणम्मि मह विज्ञए वंछा ॥२९७॥ 
भणिओ गुरुणा जुत्तं उत्तमवंसुब्भवाण तुम्हाण | तो पणमिय गरुचरणे पत्तो राया सपासाए ॥२६८॥ 
अहिसिंचिय नियरज्जे पुत्तं तत्तो करत्तसंजत्तो । निक्खंतो नरनाहो पासे सुरीण संविग्गो ॥२९९॥ 
अहिगयसयलसु यत्थो तिव्वतवं कुणइ पहयमयणरिवू । मय-माण-क्रोह-लोहाइयाण पब्भग्गवावारों |३००॥ 
तिव्वतवचरणपवरा जाया अज्ञा कलावई वि द्ढ । दोन्नि वि सुगईं पत्ताणि ताणि सुहभावमरणेण ॥३०१॥ 
॥ शह्नाख्यानक समाप्तम्‌ ॥११७ ॥ 


इदानीं भरताख्यानकस्यावसर: । तश्य भावनाद्वारे भणितम्‌। अतः क्रमप्राप्त कनककेत्वाल्या नकमाखल्यायते । तश्चेद्म्‌ 
तेयलिपुरम्मि नयरे नरेसरो कणगकेउनामो त्ति | पउमाबइ त्ति देवी मंती तेयल्सुओ तस्स ॥१॥ 
सो भोगलालसमणो रज्जे गिद्धो निर्कितए पुत्ते। नासा-5ह२-कर-चरण-<च्छि-कन्नपभिददेहिमंगेहिं ॥२॥ 
तत्थ य कलादमुसियारसेट्टिधूया मणुन्नतारुत्ना | नामेण पोट्टिला त॑ मग्गिय जणयं अमच्चेण ॥३॥ 
उब्यूढा तीए सम॑ विसए सो भुंजए अह5न्नदिणे | एगं कह वि कुमारं रक्खसु देवी भणह मंतिं ॥४॥ 
पडिवन्ने तेण अहउन्नया य देवीए पोट्िलाए वि। जाओ गव्भो अह ताओ एगदिवसे पसूयाओ ॥५॥ 
जाओ देवीए सुओ सुवन्नसमगत्तदित्तिदिप्पंतो | धूया य पोट्टिलाण तओ अमच्चेण सिम्धं पि ॥६॥ 
संचारियाणि दोन्हं पि पुत्तमंडाणि ता कुमारस्स । कणगज्क्ओ त्ति नामं॑ विहियं दिवसम्मि बारसमे ॥७॥ 
पत्तो पवड्माणो कुमरो पारं कलाकलावस्स । अहज्ञया य दोहग्गभावओ पोड्धिला जाया ॥८॥ 
मंतिस्स अणिट्ठा तयणु सो न नाम॑ पि गिण्हए तीए । सा वि हु सोहग्गकए अज्ञाओ पज्जुवासेइ ॥९॥ 
पभणंति ताओ अम्हं जुज्जइ न कया वि एरिसं काउं । विहिया य ता सद्धम्मदेसणा सा वि पडिबुद्धा ॥१०॥ 
निव्बिन्नकामभोया मंतिं विन्नवइ तुह अशुन्नाए | काहमहं पव्वज्जं मं पडिबोहेज्ज तेणुत्ते ॥११॥ 
अणुमन्नियतव्वयणा सुगुरुसयासम्मि गहियपव्बज्जा । थेवेण वि कालेणं संपत्ता देवलोगम्मि ॥१२॥ 
राया वि कणगकेऊ जाओ कालेण संकहासेसो । अनियंतो रज्जलमं कुमरमओ आउडो लोगो ॥१३॥ 
सामंताणं पठमावईए देवीए कुमरवुत्ततो । कहिओ तो अहिसिततो रज्जे कणगज्कयकुमारों ॥१४॥ 
देवीए तओ कुमरो पयंपिओ वबच्छ ! तेतलिसुयस्स । सम्म॑ वह्ेज्ज्सु जेण रज्जमेयस्स भावेण ॥१४५॥ 
ठविओ सब्बद्मणेसु रायणा तयणु सो व्चिय अमश्चो । एत्तो य पोट्टिलाए देवो पडिबोहए मंति ॥१६॥ 
भोगासत्तो जाहे नो बुज्ञह ओहिणा तओ नाऊं । रूसविओ नरनाहो सुरेण एमेव य अयंडे ॥१७॥ 


३७७ आजयांनकमणिकोशे 


जावा55गच्छइ मंती ठाइ निवो तो परम्मुहो तस्स | पणमियचरणम्मि वि तम्मि कोबमुव्यहह नरमाहों ॥१८। 
एवं सव्वजणेण वि परिमूओ ते गिहम्मि संपत्तो । नियपरियणो वि आंणं न कुणइ से तयणु सो भीओ ॥१९॥ 
ताहे सो भक्खद तालउडविसं तह वि नो मओ जाव | छिंदइ सीस॑ तो तिब्लकंककरवालधाराए ॥२०॥ 
तं पि न लवमवि छिंदइ उब्बंधह तयणु रज्जुणा सा वि । छिन्ना तो पाहाणं बंधेवि गले जले पडिओ ॥२१॥ 
अत्थाहम्मिं तम्मि वि तरेइ तो पञ्जलंतजलणम्मि । कर त्ति पविट्टो तत्थ वि न डज्कए तयणु भयभीओ ॥२२॥ 
नीहरिओ नयराओ तो पिट्टिं धाइओ गुरुगइंदो | पुरओ करालखड्डा दो पासे दुद्धरा चोरा ॥२३॥ 
तो भयकंपिरकाओ पभमणइ हा पोड्डिले ! महाकट्ट । दाऊणं दंसणं मह एरिसवसणाओ रक्खेसु ॥२४॥ 
तो नियरूवं काऊण पोद्टिला तस्स संठिया पुरओ । भणियं च महाभीयस्स होइ सरणं सुपव्वज्ञा ॥२५।। 
पडिबुद्धमणो पभणइ करेमि त॑ किंतु रुद्ठओ राया | ता उवसामेहि तयं न हु होइ अवन्नवाओ मे ॥२६॥ 
देवविउन्वियमाया संहरिया तुट्ठओ तओ राया । जाओ जणो वि सब्बो अणुकूलो तस्स पुवष्व॑ व ॥२७॥ 
खामेऊण सपउरं निवइं सिबियं समारुद्देकग । गंतुं गुरूण पासे पव्वहओ गरुयरिद्धीए ॥२८॥ 
चोदसपुव्बी जाओ अपुव्वकरणेण केवलन्नाणं । संपत्तो सो तत्तो कमेण सिद्धि समारूढो ॥२९॥ 

॥ कनककेत्याख्यानकं समाप्तम्‌ ॥११८॥ 


जह एएहिं विरूवं कयं सकज्जे विसंवयंतम्मि | तह अन्नो वि हु ववसइ बंधुसिणेह्ों मुहा तम्हा ॥१॥ 
स्निश्चन्ति मूढमनसः स्वजनेप्वमोषां, यावन्मतं वहति तावदमी भवन्ति । 
पश्चात्‌ स्वकार्यपरिपूरणमन्तरेण, सर्वे त्रजन्ति वध-बन्धन-वैरभावम्‌ ॥२॥ 
॥ इति श्रीमदाप्रदेवसरिथिरिचितवृत्तावा्यानकमणिकोशे स्वकाय विसंयाद-बन्घुशबुत्थमवननि- 
दशेनप्रतिपादक पुकोनचत्वाशिक्तमो<घिकारः समाप्तः ॥३६॥ 


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[ ४०, धनधान्यादिविषयकशोकापाथकताधिकारः ] 
प्राग्‌ बन्धुविषयक्रत्रिमस्नेह-शोककरणस्यापाथकता5भिह्िता । साम्प्तमपरमपि धन-धान्यादि चिन्त्यमानमनित्यम्‌ इति तह्ि- 
शोको5पार्थक एवं इत्येतदभिधातुकाम आह-- | 
सव्वमणिच्च नाउं सोयड्डाणे वि पंडियजणेहि । 
न हु सोगो कायव्वो धम्मे खिय होह जश्यव्वं ॥४६॥ 
व्याख्या--'सवे' वस्तुजात “अनित्य' विनश्वरं “नाउं” ति ज्ञात्ता 'शोकस्थानेडपि! शोकविषयेडपि! 'पण्डितजने:” विद्व- 
ल्‍्छोकैः 'न हु! नेव शोक: 'कतब्य:” विधेयः । यश्येवं तहिं कि क॒रतंव्यम्‌ ? इत्याह--“'धम्मे चिय” त्ति धर्म एव भवति “यतितव्यं' 
प्रदत्न: कठेन्य इत्युपदेश: ॥४२॥ 
अपरं तर शोककरणमनिष्टफलमेव इत्युपदिशिल्ञाह-- 


अतुद्फलो अमवस्सं रोयणमाईओ लोइओ सोओ । 
सावित्ति-मंति-समणी-राम-इुलाणंदनाएणं ॥५ ०॥ 


४०, घनधास्यादिविषयकशोकापार्थकताधिकारे साविन््याक्यानकम इे७२ 


अस्या व्याख्या--“अशुमफल:” अनिष्टप्रयोजन: “यद्‌” यस्मात्‌ कारणाद्‌ “अवश्य” निश्चयेन “रोयणमाईओ”'त्ति रोदनादिक:ः 

'लौकिकः लोकसम्बन्धी 'शोकः” पूर्वोक्तार्थ:। अत्रार्थे दृष्टान्तानाह--सावित्री च--ब्राक्षणी मन्त्री च--सचिवः अ्रमणी च-- 
अरहन्नकमाता रामश्च--बलदेवः कुछानन्दश्वध--राजतनयः ते तथोक्‍ता:, त एवं ज्ञातं--दृष्टान्तः तेनेति गाथासमासाथे: ॥५०॥ 
व्यासाथस्त्वास्यानकगम्य: । तानि चामृनि । 
तत्नापि प्रथमं तायत्‌ साविश्याव्यानकममिधीयते | तथ्बेद्म-- 

सावत्थीए पुरीए अहेसि भिगुनाम बंभणों मइमं । सावित्ती से भज्जा सत्त सुया तीए संजाया ॥१॥ 

ते वेय-वेयसामा-वेईसर-वेयसारनामाणो । तह वेयगब्भ-सिरिवेयमित्त तह वेयरूवा य ॥२॥ 

धूया वि हु गायत्ती सब्बे सव्बंगवेयपारगया । एवमइकंते केततियम्मि कालम्मि सोक्खेण ॥॥३॥ 

मरणावसाणयाए अह5लज्नया सयलजीवलोगस्स । पढमो सुओ मओ तो सावित्ती सोगमणुपत्ता ॥४॥ 

[ ग्रन्थाग्रमू-१३००० ] 

ऐमेव बीयदिवसे बीओ पुत्तो वि मरणमणुपततो । गाढयरं सावित्ती सोएणं बाहिया हियए ॥५॥ 

एवं तइय-चउत्थय-पंचमपुत्ता कमेण पंचत्तं । संपत्ता सावित्तीए तयणु सोयग्गहों रूगो ॥६॥ 

नयरब्भंतर-रच्छामुद्देसु निच्च॑ परिब्भमंती सा | वाहरइ दारयाणं नामेण सब्ब्रमवि दटटु ॥७॥ 

पुच्छह य सुयपउत्ति दट ठुमचेयण-सचेयणाईं पि। वेयारिज्जइ डिमेहिं डंडिया खंडपावरणा ॥८॥ 

अह अन्नया अपच्छिमजिणेसरो त॑ पुरिं समणुपत्तो । तस्स प्पमावओ ईसि उवसमो तीए संजाओ ॥९॥ 

तीए पडिबोहसमयं नाऊर्ं भुवणसामिणा एगो । पद्धाविओ रिसी अप्पिऊण अंतरपड्ड निययं ॥|१०॥। 

भणिओ य माहणी त॑ पेच्छसि अमुगत्थ एरिससरूवा । सा एवं भणियव्वा भद्दे ! न हु कि परमनाणी ? ॥११॥ 

पुच्छसि पुत्तपउत्ति तो संखोहं गमिस्सए एसा । लज्जिस्सइ अप्पाणं अप्पावरणं निएऊर्ण ॥१२॥ 

तो तुमए दायव्बो तीए अंतरपडो इमो झ त्ति। इय विहिए सा इहईं आगच्छिस्सद तओ रित्रिणा ॥१३॥ 

तह विहिए संजायं सब्बं पि हु सामिणा जहुद्टिट्टं । पत्ता य समवसरणे सावित्तो पणमिया पहुणो ॥१४॥ 

भणिया य भुवणगुरुणा सुधम्मसीले ! कुओ वि ठाणाओ | तुह पुत्ता संपत्ता ? तीयुत्त नो वियाणामि ॥१४५॥ 

पुणरवि तिहुयणवइणा भणिया जाणेसि कत्थह गया ते १। सा जंपइ न वियाणामि सामि | तो भणइ जिणनाहो ॥१६॥ 

तेसि सुह-दुक्खाईं जाणसि ? सा भणइ नो वियाणामि । जंपइ तिहुयणसामी अणत्थयं कि किलूम्मिहसि १ ॥१७॥ 

सा आह मज्ञ मोहो किलेसमुप्पायएु तओ भयवं | जंपइ उज्शिय मोहं तत्तसरूवे मणं कुणसु ॥१८॥ 

जमिह5त्थि वत्थुजायं तमसारं सब्बमेव संसारे । धम्मी उ सासओ इह ता तम्मि समुज्जमं कुणसु ॥१९॥ 

बहुएण वि भद्दे |! सोइएण न वलंति वल्लहा पुत्ता । ता जिणधम्मे उज्जममसु जायए जेण न विओगो ॥२०॥ 

कम्मग्गंठी भिन्नो तीए एवं निसामयंतीए । सम्मत्तं संजाय॑ पडिवन्ना देसविरई वि ॥२१॥ 

बंदिय जिणमणुपत्ता गिहम्मि तं पेच्छिउं पई तुट्टो । पद्वाविओं य तीए पासे सिरिवद्धमाणस्स ॥२२॥ 

तो रहरयणं रणकणिरकणयघंटं समारुद्देकण । पत्तो य समवसरणे पणमिय सा समुवविद्टों ॥२३॥ 

कहिया सद्धम्मकहा पहुणा संजायचरणपरिणामों । सो पव्वइओ पत्तो य मंदिरे सारही सरहो ॥२४॥ 

कृहियं सावित्तीए पहपव्वयणं तओ इसमा तुद्ठा । त॑ं चेव पारितोसियदाणं से देह रहरयणं ।।२५॥। 

तेणुत्त पञ्त्त रहेणमहमवि य पव्वइस्सामि । त॑ निमुणिय तीए वि हु संजाओ चरणपरिणामो ॥२६॥ 

सह सारहिणा सा वि हु पव्वहया पुत्तया दुवे तीए। गिहिधिम्म॑ं पडिवन्ना सद्धि भदणीए जिणपासे ॥२७॥ 

॥ साविध्याख्यानकं समाप्तम ॥११६॥ 
इृदानी मस्त्याण्यानकमारभ्यते । तच्चेद्म--- 
तिहुयणमंगलनिलए नयरे मंगलूउरम्मि नरनाहो । नामेण चंद्सेणो नियकंतिकलाबविजियचंदो ॥१॥ 
नियतेयपहयभाणू भाणू नामेण तस्स बरमंती । तस्स य सरस्सदई नाम पणइणी हरिणसमनयणी ॥२॥ 


डे 


हक 


आश्यानकमणिकोशे 


तह कह वि कुरंगाण व परोप्परं ताण पेम्ममारूढं | जह निक्चित्तिमपेम्माणिमाणि जाया जणपसिद्धी ॥३॥ 
अह अन्नया निसाए निद्दं चहउं सरस्सई सहसा । रुयमाणी पल्लंकाओ उद्विया तो अमच्चेण ॥४॥ 

संभंतेणं भणिया पिए ! किमेयं १ ति जंपइ इमा वि। न हु कि पि तो निबंधेण पुच्छिया साहए एवं ॥५॥ 
दिद्ठों सुविणे तं पिय ! अवराए सम॑ मए पयंपंतो । त॑ं सोऊणं चितह मंती सुविणे वि जइ एसा ॥६॥ 
उन्वहइ महाखेयं तो जइ पश्चक्‍्खमेव मं कह वि । पेच्छह अवराए सम॑ ता पाणे चिय परिच्चयह ॥७॥ 

तो अन्नभारियाए जावज्जीबं पि होउ मह नियमों । तत्तो भणिज्वमाणो वि नेय परिणेह सो अवरं ॥८॥ 

एसेव से पसिद्धी संजाया नरवरिंदपज्बंता । मंति मोत्तु नयरम्मि नरवई अवरसमयम्मि ॥९॥ 

रिउविनयत्थं पत्तो कत्थइ अह तत्थ मंतिमिहुणस्स । पेम्मकहा संजाया जह एगेणं मरंतेणं ॥१०॥ 

मरइ दुइज्ज॑ पि तओ तस्स परिक्खणकए तेण | अलियप्पओयणेणं मंति हकारिउं कडए ॥११॥ 

नयरम्मि अलियवत्ता कारविया जह मओ महामंती । त॑ सोउं तब्भज्जा मया दुहा फुट्टिउं हियय॑ ॥१२॥ 

त॑ निमुणिऊण राया अप्पाणं निंदए गुरुविसाओ । हा ! कत्थ इत्यिवज्कापावमहं नित्थरिस्सामि ? ॥१३॥ 
तीए जहा नियपाणा तणं व चत्ता सुणित्तु पहमरणं । मंती वि पियामरणं सोउं नुणं तहा मरिही ॥१४॥ 

इय चितिउं नरिंदों सहस त्ति गओ अमश्वपासम्मि | भणियं च तेण कि देव ! अणुचियं कयमिहा55गमणं ९ ॥१५॥ 
तो भूवहृणा भणियं इहा55गया गरुयकारणेण वय॑ | कि पि तुम पत्थेमो जह वियरसि भणइ तो मंती ॥१६॥ 
देव मह जीवियं पि हु तुज्का5ड्यत्तं किमेत्थ अवरेण ?। सामी तो अवियप्पं आइसउ पओयणं जेण ॥१७॥ 
तत्तो मंति धरिउ' भुयाए पुहईसरेणिमं भणियं । तुह दइया पंचत्तं पत्ता इमिणा पयारेण ॥१८॥ 

अब्भत्थामो एयं मरियव्बं न हु तए इमं सोउ' । संखुद्धमणो मंती चिंतइ हा हा ! किमेयं ? ति ॥१९॥ 
भणइ य तुहाणुभावो जं फुट्टइ संपययं न मह हियय॑ | किंतु न देवेण अहं भणियव्वों अवरदारकए ॥२०॥ 
अवरं च तीए लोयव्ववहाराई करेमि गंतृण | तो नरबइणा मुक्को संपत्तो निययनयरम्मि ॥२१॥ 
पञ्चइ॒यपुरिससंगह्टियमट्टिनियरं पियाए पूयंतों | तीए ससिक्रिरणनिम्मलूग्रुणनियरं संभरेऊण ॥२२॥ 

रोयावंतो नियपरियणंपि करुणस्सरं रुयइ मंती । सुमरंतो तमणुदिणं मणम्मि मरणं पि अहिलसइ ॥२३॥ 
किंतु निववयणबंधणबद्धी गमिउः पमूयवरिसाइं । अह अन्नया अमच्चो चितह मह होज्ज जद मरणं ॥२४॥ 
तो पणइणीए अट्ठियनियरं न हु कोइ नेह गंगाए। सयमेव य जीवंतो नेमि अहं तत्थ एयाणि ॥२५॥ 

इय चिंतिऊण मंती नीहरिओ राइणो अकहिऊण | वाणारप्तिनयरीए गंगातीरम्मि संपत्तो ॥२६॥ 

तत्तो अमरतरंगिणितीरे दविणं दियाण दाऊण । संभरिऊण सकरुणं पियागुणे रुयइ गुरुसोओ ॥२७॥ 
कंकेल्लिपल्लवुग्वेल्लिरेहिं हत्थेहिं जेहिं गहिया सि । तेहिं चरिय इण्हि विहिवसेण सलिलंजली दिल्लो ॥२८॥ 
कयवेरों व्व कयंतो न सह दइयाए अट्ठिएहिं पि । संगमसुहं ति बहुविहमेव॑ पछवह पणट्सुहो ॥२९॥ 

ता तत्थ समणपत्ता अहिणवजोव्वणमणोहरसरीरा तन्नयररायधूया नामेण सरस्सई कन्ना ॥३०॥ 

कोऊहलेण पुलिणे परिब्भमंतीए तीए सो मंती । दिद्ठो दुहसंतत्तो ससंभमं पुच्छिओ एवं ॥३१॥ 

सुपुरिस ! कि तुह दुक्‍्खं दीणसरं रुयसि ज॑ं ? तयणु मंती । तीए पयासइ सव्बं॑ नियवुत्तंतं तओ कुमरी ॥३२॥ 
संजायजाइसरणा पडिया महिमंडलम्मि मुच्छाए । तो भीओ सहिवरस्गो उबयारे काउमारद्धो ॥३३॥ 

त॑ सोऊण नरिंदो संभंतो झ त्ति तत्थ संपत्तो | संपुच्छिया तओ सा बच्छे ! मुच्छा तुह किमेसा १ ॥३४॥ 
भणियं च तीए एसो भत्ता मह आसि पुव्वजम्मम्मि | अवरोप्परं पि पीई नाम॑ पि सरस्सईहे आसि ॥३५॥ 
कहिय॑ इच्चाह असेसय॑ पि रायस्स तो अमचस्‍्स । सप्पन्चयं समग्मं साहइ सा सो वि संतुट्टों ॥३६॥ 
परिणाविओ य रज्ना गरुयपपमोएण सो महामंती । नियमरणाओ सयलं पि पुच्छिओ तो इमो तीए ॥३७॥ 
कहियम्मि अमग्ेणं चिंतइ एसा अहो ! महासत्तो | पेच्छ जहा किच्छेणं एत्तियकारं ठिओ एसो ॥३८॥ 


कीननणएा 5 


४०, धनधाम्यादिविषयकशोकापार्थकताधिकारे कुलान्दाब्यानकम्‌ ऐे७७ 


तो सविसेसं पेम्म॑ परोप्परं ताण जायमइसरसं । अह अन्नया नरिंदों तस्सेव य भाणुसचिवस्स ॥३९॥ 

दाउं नर्रिदलच्छि पत्तो पंचत्तमह अमश्चनिवों | तीए सह विसयसोक्खं उवभुंजइ रायरूच्छिजुओ ॥४०॥ 
अह अज्नया य देवी दाहजरेणं अईव अभिभूया । पच्चतरखाया वेज्जेहिं सव्बहा तयणु भाणुनिवों ॥४१॥ 
चिंतइ जाव इमाए अमणुन्नं न हु निएमि ताव सय॑ । अहय॑ मरामि न सुणेमि जेण नियपिययमामरणं ॥9२॥ 
इय चिंतिकण भाणू आरुढो सत्तमाए भूमीए | पासायस्स तलाओ उब्बंधह जाब ता सहसा ॥9३॥ 

भणिओ चारणमुणिणा सुपुरिस ! कि कुणसि बालमरणमिणं ? | अप्पवहेणं जायह भवंतरेसु वि महादुकखं ॥०४॥ 
तो भाणुभूमिवहणा भणियं भयवं ! करेमि कि इन्हि । अतरंतो नियपाणे धरिउं दश्याविओगम्मि १ ॥४५॥ 
तो भणइ चारणमुणी धम्मो चिय हरह दुबखदंदोलिं। ता निश्चं पि नरेसर ! कायव्वों सो सुबुद्धीहिं ॥०६॥ 
रागाइरहियदेव॑ पंचमहव्वयसमन्नियं च गुरु । जिणनाहकहियतत्तं संपह् पडिवज्जसु नरिंद ! ॥9७॥ 

तो भूवइणा भत्तीए सविणयं गिण्हिउं जिणामिहियं । धम्मं नीओ य मुणी पासे नियपिययमाए तओ ॥४५८॥ 
सा वि हु चारणमुणिणो चरणे पणमेवि गिण्हह गिहीण। धम्मं तो मुणिचरणाणुभावओ सज्जया जाया ॥४९॥ 
तत्तो पंचपयारे भोए भोत्तण दो वि बहुकालं । अहिसिंचिऊण कुमरं रज्जे सुग्ररूण पासम्मि ॥५०॥ 

पव्वज्जं घेत्तुणं काउं अइदुक्करं तबच्चरणं । काऊण कालमासे काल सम्गं समणुपत्ता ॥५१॥ 


॥ मन्त्रयाख्यानक समाप्तम्‌ ॥१२०।। 


इदानीं श्रमण्याख्यानक्स्यावसर:, तन्च एकाकित्वाधिकारेडह ल्षकाख्यानकेप्युक्तमेव । तदनन्तरं रामाख्यानकस्यावसर:, तदपि 
अप्रतिविधेयविध्यधिकारे यादवाख्यानके व्याख्यातम्‌ | अतो5वसरायातं-- 
कुलानन्दाख्यानकमभिधीयते । तथ्चेदम--- 


ब्नीन->>+निनननननिननीभतभ सन न 


जिनवृम्दमिव प्रकट स्वगुणेः पुरमस्ति भूतलानन्दम्‌ | त॑ परिपालइ सुहमुभयहा वि सया कुछानंदों ॥१॥ 

सवोन्तःपुरसारा निजरूपविनिर्जितस्मरकलत्रा | तिहुयणतिल॒या नामेण पिययमा तस्स नरवइणों ॥२॥ 
जन्मान्तरपुण्यवशोपात्तं पश्चप्रकारविषयसुखम्‌ | उवभुंजइ तीए सम॑ निरंतरं नेहपडिबद्धो ॥३॥ 

सहते तया वियोगं नो नयननिमेषमात्रमप्यसको । तब्भाविओ व्य तच्चेद्रिओ व्व सइ तम्मओ «वब्र निवो ॥४॥ 

भणितश्च मन्त्रिभिससावरिषड्वग वदन्ति विद्वांस: । काम कोहं लोहं गव्वं हरिसं च मां च ॥५॥ 

राज्ञ: परिहरणीयं तस्माद्‌ देव्या सहाल्पममुमधुना । आयरसु देव ! कल्लाणमप्पणो महसि जइ बिल ॥६॥ 

एवमसौ हितकामेमन्त्रिवरें: शिक्षितोडपि मोहबशात्‌ । नो त॑ मन्नर सिकखा मयणाहीणे5हवा विहछा ॥७॥ 

अन्येद्युरसौ राजा विचित्रचित्राभिरामभित्तिधने । पुप्फोवयाररेहिरमगहरमणिकुट्टिमतलूम्मि ||८॥ 

बहुमूल्यवसनविरचितशुचिचत्चच्न्द्रगोपकपवित्रे । ससि-कुंद्भवललं बिरमुत्तासरियासयसमिद्धे ॥९॥ 

सुकुमारहंसतूलीकल्पितपयड्रूपशयनीये । सुरहिविलेवण-तंबोल-पुप्फपडलयपहाणम्मि ॥१०॥ 

प्रज्वलितदीपसपंत्पभाप्रभावावरुप्ततिमिरभरे । देवीए सम॑ पविसह राया वरवासभवणम्मि ॥१ १॥ 

पुष्पप्रहणनिमित्तं यावद्धस्तं करण्डके क्षिपति | ताव सहस त्ति देवी दद्ठा राइल्‍लभुयगेण ॥१२॥ 

स्वामिन्‌ | दष्टा दष्टेति पूतल्कृते परिकरः समस्तो5पि । रज्नो पासे पत्तो जंपंतो कि किमेयं ? ति ॥१३॥ 

उत्कटविषवेगवशात्‌ सम्मील्तिकोचना5भवद्‌ देवी । वयणविणिग्गयफेणा विसंठुलावयवविगियतणू ॥१४॥| 

गारुडिक-वैद्-वातिकमुख्ये: सवैरपि त्यक्तमूर्ति: सा | पेच्छेताण वि तेसिं परिचत्ता जीवियव्वेण ॥१४५॥ 

हा ! हतविधिना मुषिताः [ सर्वे ] देवी मृता मृतेति जनः | हाहारवमुहलमुहो पलवइ दुहसल्लियसरीरो ॥१६॥ 

राजाडईपि स्नेहवशादधिकं सब्जातहृदयसडूडः । आगयमुच्छो सिसिरोवयारसंजायचेयन्नो ॥१७॥ 


१, पूर्वाधसंस्कृतोत्तराधप्राइृतभाषामिभेयं कथा । 


आक्यानकमणिकोशे 


प्रलपति बहुप्रकारं प्रतिवचनं देवि ! देहि मम दयिते ! | कत्थ गया ? संधीरसु दंससु वयणं दुद्त्तत्स ॥१८॥ 

हा देवि ! नयननिर्जितपद्मदरं सरसललितिसस्मेरम्‌ । तुज्क मुहं गयपुल्नो पेच्छिस्स कहसु कश्या हैं ॥१८॥ 

एवं प्रलपन्‌ राजा सचिवेः सन्धीरितो मधुरवचने: । विहिणो मल्लो एयस्स देव ! भुवणे वि नत्यि जओ ॥२०॥ 
अवलूम्बस्व ततो हृदि सुन्दर ! थेये विचारय विचित्रम्‌। विलसियमिमस्स विहिणो कि बहुएण वि पलविएण १ ॥२१॥ 
सम्प्रति देव्या विधिना विधीयतां देव | वह्धिसंस्कारः | गय-मय-पव्बइएसुं सोयं न कुणंति सप्पुरिसा ॥२२॥ 
प्रतिहतममज्नलमिदं सपदि पतिप्यति शिरस्यतो भवताम्‌ | अग्गी वि हु लग्गिस्सइ तुम्हं देहे न देवीए ॥२३॥ 
यस्मादपराधवतो मम रुष्टा प्रेमरोषणादेषा | तम्हा नियपिययममिममहमेव य पत्तियाविस्सं ॥२४॥ 

एवं न ददाति यदा कतुममुष्या: स वहिसंस्कारस । तो संजाया सब्बे वि मंतिणों किमवि सविसाया ॥२५॥ 
एकमपुत्रो मोहेन विनटितोअन्यश्व धरणिपतिरेषः । कह होही रज्जमिमं १ ति गरुयचिता गमंति दिणे ॥२६॥ 

सा तु त्रिभुवनतिलकामूर्तिमुक्ता तथैव तेलेन | तलिऊण तं नियंतो चिट्ृइ राया गहगहिल्‍्ली ।।२७॥ 

तेडपि च तथैव तं शिक्षयन्ति राजानमतिनिपुणवचने: । राया वि देवि ! एए न अच्छिउं देति वसिमम्मि ॥२८॥। 
तदितः स्थानाद्‌ यावो दुजनरहिते कविद्‌ विजनदेशे । तत्थ सुहेणं गंतृण चिट्टिमो सब्बया जेण ॥२९॥ 

इत्युक्त्वा तामुत्क्िप्य मोहतः स्कन्धदेशमारोप्य । गंतृणं वणगहणे त॑ मोत्त' कम्मि वि पएसे ॥३०॥ 
कन्द-फल-मूलभक्षी पश्यज्ञास्ते प्रियां स तत्र सुखम | एवं कयम्मि कइ्या वि कोविओ कहइ को वि नरो ॥।३१॥ 
अहमिममत्यन्तं मूढमानसं मन्त्रिणो महीनाथम्‌ । काउं कमवि पव॑चं करेमि पउठणं सपन्नाए ॥३२॥ 

प्रतिपन्ने तद्गचने तेनाप्यानायिता निपुणमतिका । एगा रमणी रमणीययाइगुणमंदिरिमुदारं ॥३३॥ 

सा कश्चन नरमेक॑ मृतक स्कन्धे तथा समारोप्य । तत्थेव वणे परिभमइ तस्स रज्नो नियंतस्स ॥॥३४॥ 

तेना5पृष्टा सुन्दरि ! का त्वं ? स्कन्धे किमेष पुरुषस्ते ? | तीए भणियं कुलबालिया5हमेसो य में भत्ता ॥३५॥ 
परमेनं मृतकममी नागरका बालिशाः प्रजल्पन्ति | तो तेहिमहं बाढं संतविया एत्थ संपत्ता ॥३६॥ 

राज्ञाउप्यभाणि भद्रे ! दुजेनलोको5यमीह॒शः सबः | अहमबि तस्स भएणं एयम्मि वणे परिवसामि ॥३७॥ 

एनामपि मम दयितां मृतां प्रजल्पन्ति येन मूढधियः: | ता समदुक्खाण&म्हं जुत्तमरन्नम्मि वसिउं जे ॥३८॥ 

एवं च तत्र वसतोः सुखमतिजम्मुः कियन्त्यपि दिनानि । अह अन्नया य तीए भणिओ राया लयंतरिओ ॥३१९॥ 
पश्यासौ तब दयिता किश्विज्जल्पति सहामुना पत्या । मह संतिएण दिद्वा दिणम्मि अवरम्मि वि जमेसा ॥४०॥ 
तच्छुत्वा वचनमसौ मन्दस्नेहो मनागजनि राजा । पेच्छसु अकयन्नुत्त अलोइयं किमवि एड्रेंए ॥४१॥ 
आलापयतो<पीयं ददाति मम नोत्तरं किमपि पापा । एएण संथुएण वि सम॑ पुणो एवमालवइ ॥०२॥ 

अन्येद्यु: कूपादो कापि प्रत्यक्षिपत्‌ तकन्मिथुनम्‌ । सा पच्छा सविसाया आगंतूणं भणइ रायं ॥४३॥ 

पश्य त्वददयिताया: कीहगहो ! अधमचेष्टितं राजन्‌ !। उद्दालिऊण नीओ कत्थइ पाणप्पिओ मज्क ॥३४॥ 

अधुना तु मन्दभाग्या रोदिमि कस्याग्रतः ? श्रये कं वा १ | पेच्छ कहं धुत्तीए दो वि दर वंचिया अम्हे ? ॥४५॥ 
श्रुव्वेतद्‌ राज्ञाउचिन्ति किमनया विहितमित्थमेबेतत्‌ ? । अहवा मह मइमोहों मयाणि दोन्नि वि धुवमिमाणि ॥४६॥ 
न्‌नं मद्बोधाथ [विहितः) केनबिदिति प्रपश्चोडयम्‌ । ता कहमहमिय मूढो जाणंतो वि हु भवसरूवं ॥०७॥ 

रे जीव ! कस्य माता ? कस्य पिता ? कस्य किल कलत्रमपि ? । भिन्नपहा जं सब्वे नियकयफलभोइणो सत्ता ॥०८॥ 
प्रत्यागतचेतन्यः पुनरपि पालयति नरपती राज्यम्‌ | दोन्ह वि थी-पुरिसाणं महापसाओ कओ ताणं॑ ॥४९॥ 

पश्यत मतेरचिन्त्यं माहात्म्यं येन ताहशो विपदः । मुक्को राया जाओ य भायणं रायरूच्छीए ॥५०॥ 


॥ कुलनन्दाययानक समाप्तम्‌ ॥१२१॥ 


यद्वदमीषामभवत्‌ सन्‍्तापपरम्पराकर: शोकः । तह अन्नस्स वि जायइ ता चयह इम॑ विवेयवसा ॥१॥ 
शोककरणमशुभफल्मभिद्दितम्‌, अत एवं विद्तिजिनतत्त्वा: केचन एन॑ न कुवेन्त्येव एतद्‌ दृष्टान्तेनाइ--- 


४०, घनधान्यादिविषयकशोकापाथकताधिकारे भव्यकुटुम्वाल्यानकम्‌ ३७६ 


जिणवयणभावियमई संसारासारयं वियाणंता । 
न करंति मए सोयं॑ भवियकुडुंबं व सुपिए पि ॥५१॥ 
अस्या व्याख्या--जिनवचनेन-आगमोपदेशेन भाविता वासिता मतिर्येषां ते तथोक्ताः 'संसारासारतां” भवनेगुंण्यं विजानन्तः 
अवबुध्यमानाः न कुवेन्ति मृते शोक भव्यकुटुम्बवत्‌ 'सुप्रियेडपि' अतिवल्लभेडपि इत्यक्षरार्थ: ॥५१॥ 
भाषार्थस्त्थाथ्यानकगस्यः । तशथ्वम. 

निरुपद्रवतादिसद्गुणेः, क्वचिदाधिक्यगुणातिशायिनि । बहुधाविधिधान्यसम्भवप्रथिते कर्षकसन्निवेशके ॥१॥ 
बसति प्रियधमनाम्क, प्रवर्ण भव्यकुटुम्बमेककम्‌ । जिनधमंगुणेन भावितं, प्रियसन्तोषसुधातिसुस्थितम ॥२॥ 
अथ तत्र कुट्ुम्बके बृहन्‌ , जनकः सुन्दरनामघेयकः । दयिताउपि मनोरमाभिधा, शचिशीलादिगुणा जनप्रिया ॥३॥ 
तनयोउप्यनयोमेनोरथो, भणितो5थास्य वधह्च सूमिका । गुणयोग्यमिति प्रसिद्धितः, कथितं भव्यकुटुम्बकं जने: ॥४॥ 
प्रियभाषितया विभूषितं, न व केनापि जनेन दृषितम्‌ । स्वकुटुम्बकसंहतौ स्थित, परमात्सय॑वियोगसुस्थितम्‌ ॥५॥ 
परमेतदनिन्धसझ्जतं, जिनधमोचरणे सुनिश्चितम्‌ । तदचिन्त्यकुकमंदोषतो, विभवकवल'''रलसिद्धवत्‌ ॥६॥ 
स्वकुठुम्बकबृत्त्यमावतः, पितृ-पुत्रावनुवासरं हलम्‌ | प्रतिवाहयतो बहिःस्थितौ, किमु कुर्यादथवा न दुर्विष: ? ॥७॥ 
जठरापरिपूरणे पुमानतिमान्यां मुक्वा मनस्विताम्‌ | अवधूय मनःप्रियां हियं, परिहत्य स्वकुलव्यवस्थिताम्‌ |॥८॥ 
कुरुते कुनरेन्द्रसेवनं, तनुते नीचजनेडपि संस्तुतिम्‌ | प्रथयत्यहितेडपि मित्रतां, व्यजति स्वाचरणं सतां मतम्‌ ॥९॥ 
तदमू अपि दौस्थ्यतो जिन, प्रतिपत्नौ कुरुतो हलिक्रियाम्‌ | अथ तत्र कथश्विदृप्यससौ, तनयः प्राप परासुतामहे: ॥१०॥ 
जनको3पि बिबुध्य त॑ मृतं, जिनवाक्यामृ तसुस्थमानसः । हलवाद्यभुवों बहिः सुतं, शभचितो3क्षिपदुच्चके: स्वयम ॥११ 
सुमना उपचक्रमे हलं, खलवे खेटयितु तथैव सः | अथ तेन पथाउस्य सीहकः, स्वजनः प्राप कुतोडपि चाग्रतः ॥१२॥ 
अवलोक्य तमेवमुज्मितं, तनयं सीमनि तस्य ताइशम्‌ | तमपि प्रयतं निजे हले, जनक॑ तस्य तथा विशोककम ॥१३॥ 
तदनु स्वजनः सविस्मयस्तमप्तच्छत्‌ सुतमृत्युकारणम्‌ | स्वजनाय यथाउभवत्‌ तदा, सकल सो5चकथत्‌ तथैव तत्‌ ॥१४॥ 

' अथ ताहगलोकिक वचः, स निशम्य प्रजगाद सुन्दरम्‌ | यदमुं सुतमित्थमत्यजस्तत्‌ तब सुन्दर ! सुन्दर नु किम्‌ १॥१५॥ 
अथ तस्य निशम्य तदू वचः, प्रतिबोधाय जगाद सुन्दरः । मयका किमसुन्दरं कृतं, यदयं भद्र ! परासुरुज्ञित:? ॥१६॥ 
अपरोडपि च कि मसृते करोत्वतिरिक्तेडपि चरोदनाद ऋते । तदपि क्रियमाणमजञ्ञिनां, नितरां स्वाथहरं विचिन्त्यताम्‌ || १७॥ 
अपरं च निशम्यतामिदं, प्रकटे3मुष्य यमस्य वत्मनि | निज्कमभटेगेलस्तितो, बत ! को5प्येति निरेति कश्चन ॥१८॥ 
यदपि प्रथितं मृते जने, मिलिते क्वापि च रुच्यते जने: | अवगच्छ स काकरोलकः, क्रियते तैः पतिते कलेबरे |।१९॥ 
तद॒य॑ सुकृतेन कमंणा, समियाय स्वयमेव मद्गृहे। ? स्वयम्ेव पुनगेतः क्वचित्‌ , तदहो ! कि परिदेवितेन नः ? ॥२०॥ 
अपरं च ममामुना55गतं, कथितं नो निजमायता तथा । गमनं च [न] गच्छता ततो, निरपेक्षस्य सतो5स्य कीहशः ॥२१॥ 
उपरि क्रियते निबन्धनः ? प्रतिबन्धो5पि च ? भद्ग | कथ्यतामू | इह यो किल मन्यते परं, स जनेनापि च मन्यते स्फुटम ।।२२॥ 
अथ वक्षि बलीयसी स्थितिनेन लोकस्य न लड़घ्यते क्वचित्‌ | तव सत्यमिदं बच: परं, मरणे सा5पि निरथथकोदिता॥२३॥ 
उचिता पुनरस्ति जीवत:, परमेषाउपि मया न पारिता । प्रविधातुममुष्य यन्म तो, विषवेगोत्कटतावशाद द्रुतम्‌ ॥२४॥ 
कियतामिति भद्र ! खिद्यतां, स्वजनानां भवतां कृते वृथा १ । भविनों निजकमंवश्यतावशिनः स्वगंगमा भवन्त्यमी ।२५।॥ 
तदलं बहुमाषितेन नो, यद॒तीतं भुवि तन्न शोचयेत्‌ । सुतमृत्युममुं निवेदयेमेम वेश्मनि निजकः स शिक्षितः ॥२६॥ 
अथ तेन निशम्य तद्चो, विदितं तावदयं सुनिष्ठुरः | सुतमातृ-कलत्रयो: पुनश्चरितं कीहगिदं न वेदमघहम्‌ ।।२७॥ 
इति कोतुकपुृ्णमानसः, प्रथम वेश्मनि तस्य सो5विशत्‌ । विहितोचितसक्कि यः क्षणं, सविषादं निजगाद मातरम्‌ |॥२८॥ 
अयि धमनिधे ! मनोरमे !, किमपि त्वं श्रुणु वाक्यमप्रियम्‌ । कथयेति निवेदिते तया, भणितं तेन तवाक्नजों मृतः ॥२९॥ 
कथमित्यविषादमाह सा, भणितं तेन महाहिना क्षितः | अथ सा न्‍्यगदत्‌ सहायकः, सदनुष्ठानविधो स नो 5भवत्‌ ॥३०॥ 


१. नः अस्माकम | 


था हि-- 


आयखश्यानकमणिकोशे 
परमत्र विधो विधीयते, किल कि सीहक ! ? सा तमनत्रवीत्‌ । यदशक्यनिवारणो यमो, जिनराजैर्निरदेशि शासने ॥३१॥ 


न गजैने हयेन पत्तिमिने रथैनेव नयेन विक्रमे: | न धनेश्चिरसश्चितैर्धनेन च मन्त्रेरपि वार्यते यमः ॥३२॥ 
हलभृद्धरि-चक्रवर्तिनः, सुगत-अद्य-पुरन्दरादय: । भुवनत्रयनायका जिना, विधिना धिगू ! निहता ह हाउमुना ॥३३॥ 
पुनरप्यवदत्‌ स बान्धवो, जठरे सुन्दरि ! स त्वया ध्रृतः । प्रणयेन च पालितस्तरां, सरसाहारवशाश्च लालित: ॥३४॥ 
तदियं किमलौकिकी तब, प्रथिता निवरता सुते निजे ?। तदनु प्रियवागू मनोरमा, सदयं सीहकमाह सन्मतिः ॥।३५॥ 
यदि पालन-कुक्षिधारणं, स्वजनस्नेहनिमित्तमुच्यते । विहित॑ च परस्परं तकदू, भविभिः सन्तु समे5प्यमी निजाः ॥३६॥ 
श्रणु सीहक ! शासनस्थितिं, भवकान्तारमनन्तमृच्छतः | समभूत्‌ प्रतिदेहिनं यतः, स्वकृमावों बहुधाडपि देहिन: ॥३७॥ 
तद॒यं भविको विवेकवान्‌ , वद केन प्रतिबन्धमृच्छतु ? | समभावतयैव वतेनं, मुनिवत्‌ सज्अतमज्ञिनां ततः ॥३८॥ 
इति संसरतां तनूमतां, स्वजनः को वद्‌ ? को5थवा परः ? । इति युक्तिवचोभिरीहशेनिजके मौनमुपेयुषि क्षणम्‌ ॥३९॥ 
भणिता च सुतप्रियाउनया,तव भा कथितो5मुना मृत: । तदशक्यनिराक्ृती विधो,क्रियते कि ? कुरु मानसों ध्ृतिम्‌ ॥४०॥ 
अधुना तु गृहीतभोजना, चलिता श्वसुर-वराय यद्यपि । श्वसुरत्य कृतेडशनं नयेरिदमास्तां पतिभक्तमाजनम्‌ ॥9१॥ 
विहिते च तया तथैव तां,निजगादाउथ निज: सुतप्रियाम्‌। पतिमद्य न शोचसेउह्ल ! कि,चलिताउन्यत्र शुचः पदेडपि यत्‌ ॥४२॥ 
जगदे5थ तया पर्ति विदुजिनधम्म' सुगुरु जिनेश्वरम्‌ | अपरे पुनरात्मपोषक़ा:, पतयस्तात ! भवे भवेडभवन्‌ ॥।9३॥ 
यदि वेदिम शुचोडपि सत्फलं, तद॒हं रोदिमि वच्मि विक्लवम्‌ | उपह्मि वपुः पति स्तुवे,नितरामझि नभक्तमप्यद:॥ 9४॥ 
विहिते5पि यदवमस्ति न, प्रकृतं किश्विदपि प्रयोजनम्‌ | प्रथयेच्छुगियं कृता तदा, बत ! कतुध्ुवमज्ञतामलम्‌ ॥४५॥ 
यदि शोकक्ृदानयेन्म्तं, प्रियमाणं विनिवर्तेयेज्जनम्‌ | विद्धातु शुच्॑ न चेदिदं, द्वितयं कि कृतयाउनया बृथा ? ॥४६॥ 
कुपितै: किल कुठ्यते यकद्‌ ,विपदि स्वेन निजं शरीरकम्‌ । बत ! सम्प्रति तेन नृत्यते, प्रकटाडं किल का विदग्घता ै॥०७॥ 
कुधियः कचिद्तिसज्ञता:, किल कुयु: शुचमज्ञकैयेके: । विलसन्ति तदेव तैरमी, मनुजानां धिगिमां विडम्बनाम्‌ ॥४८॥ 
चरणैरिह शोकतो यकेविल्खिद्भिभुवमक्न शोचितम्‌ | मुदितिरिह गम्यते तकेर्विलसद्विभुवि हंसलीलया ॥४९॥ 
गुरुशोकवशेन ताब्यते, छृदयं यत्‌ स्वकरे: सुनिदेयम्‌ । तदपि प्रियहारयष्टिमिः प्रमदेडलूडक्रियते विचेतने: ॥५०॥ 
शुचि निर्भरमुक्तपूत्कृतिव्यथितैर्येन मुखेन रुच्ते | गुरुपबंणि तेन गीयते, किल कीहृश्यपरा विडम्बना ? ॥५१॥ 
नयनेगेलद्श्र॒क॑ जनः, शुशुचे येरिह तैरपत्रप: | सकटाक्षमपाज्ञसश्चरन्नयनत्यंशमयं निरीक्षते ॥५२॥ 
इति बहुविधमूढलोकजं, कियद्समञ्जसमत्र कथ्यते ? | जिनवाक्यविशुद्धचेतसां, पुनरेबंकरणं न सद्गतम्‌ ॥५३॥ 
तदिदं गुणवत्तया श्रियं, प्रथितं भव्यकुटुम्बक॑ जने । इह मोहजयादू बृहत्सुखं, परलोकेडपि च सदगतिं गतम्‌ ॥५४॥ 
प्रशमय्य मनो विवेकतस्तदनेनेव कुवासनामयम्‌ । ग्ृह-पुत्र-कलत्र-सम्पदां, प्रत्येडप्यक्ष | न शोच्यमस्निमि: ॥५५॥ 
॥ इति भव्यकुडुम्बाख्यानकं समाप्तम्‌ ॥१२२॥ 
यद्वद्‌ बभूव भुवि भव्यकुट्धम्बकस्य, सर्वज्शासनवचो5म्ृतभावितस्य । 
बन्धावशोककरणं महते गुणाय, तद्वद्‌ भवेत्‌ तदितरेष्वषि मानवेषु ॥१॥ 


॥इति भ्रीमदाप्नदेयसूरिधिरखितशृत्तायाय्यानकमरणिकोशे जिन[ शासन ]मावितमतिषु शोकाकरणप्रतिपादन- 


परचथ्चत्वारिशो <घिकार: समाप्त इति ॥४७०॥ 
>>>न्‍्5५ दे ८ 


[ ४१. विवेकिजनस्वकृतकर्मोंदयोपतनदुःखाधिसहनाधिकारः ] 


अनन्तरं शोककरणमनर्थंकममिहितम्‌ | अधुना तु न केवलमिदमनथकरम्‌ , कि तहिं ? शारोरमानसदुःखछूपमप्येतत्‌, तद्च 
विवेकिनः स्वकृतफलमिदम्‌ इति मन्वानाः सम्यक्‌ सहन्त इत्येतद्वक्तुकाम आह-- 


सम्म॑ सहंति धीरा कम्मवसेणं समागय दुक्‍्खं | 
पासजिण-वीर-गयप्ुणि-मेयज्ञ सणंकुमार व्व ॥५२॥ 


अस्या व्याख्या--'सम्यग” भावस(रं 'सहन्ते' तितिक्षन्ते 'धीरा:' सात्त्विका: 'कमंक्शन' स्वकृतानभावेन 'समागतं' समायात॑ 
दुःखम्‌ अशमं। टदप्टान्तानाह--पाश्वृ॑जिनश्व--प्रसिद्धः वीरइच-महावीरः: गजमुनिश्व--गजसुकुमार: मेतायेश्च--श्रेणिक- 
राजजामाता सनत्कुमारश्च--चतुथचक्रवर्ती ते तथोक्ता:, तद्गद्त्यक्षराथं: ॥ भावाथंस्त्वास्यानकगम्यः । तानि चामूनि । 


ततञ्ञापि क्रमप्रापं किख्वित्‌-पार्श्वाल्यानकममिधीयते | तच्चेद्म्‌-- 


गुणालए भारहमज्मखंडे, चकाहिवोसारियदुद्ठदंडे । कासी जणो जत्थ सया वि धम्मं, करेइ वा जीवदयाइ रम्मं ॥१॥ 
कासीइ देसो समगुणेहिं सग्गो, जम्मी सिरीमंदिर्मंगिवग्गो | वाणारसी तत्थ पुरी पसिद्धा, सुत्थत्तयाईहिं सया समिद्धा ॥२॥ 
तत्था55सि राया सिरिआससेणो,सुवेग-दप्पुद्धु रआससेणो । तस्सा55सि वम्मा निवपट्टदेवी, जीए न दोसा विलसंति के वी॥३॥ 
सुहाईं तीए सह भुंजमाणो, पालेइ रज्ज॑ असमाहिमाणो । कयाइ वम्मा सुहसेज्जसुत्ता, खेयाइदोसेहिं दढं विउत्ता ॥9॥ 
निएइ निद्दावसवत्तिनाणे, गयाइए चोदस पुन्नठाणे | गंतुण वम्मा मणुइंदपासे, पयासई पावमलप्पणासे ॥५॥ 

तेणावि वुत्तं तुह पुत्तताभो, होही पिए ! पंकयनिम्मलाभो | एमेव होज्जा मणजायतुट्टी, वत्यंचले बंधह सउणगंठी ॥६॥ 
कालेण देवी सिरिवम्ममाया, सुयं अरोया अरुयं पयाया । कओ सुरिदिहिं जिणाभिसेओ, सुरायछे सन्नयदिन्नसेओ ॥७॥ 
माऊए सप्पाणुभवाणुरूवं, समंतओ भग्गभवंधकवं । पासो त्ति पृत्तस्स जयप्पसत्थं, निवेण नाम॑ विहिय॑ जहत्थं ॥८॥ 
कलाकलावे निउणो कुमारो, ख्वेण ओहामियदेव-मारो । पत्तो वयंसेहिं सम॑ भमंतो, जत्थ5च्छद्दे कद्ठतवं तबंतो ॥९॥ 
कंढाभिहाणो समणो तवस्सी, दिद्धिप्पहे दिल्लसहस्सरस्सी । अव्वत्तयं किंचि मणे सरंतो, पंचगितावं तबमायरंतो ॥१०॥ 
तो तेण नाऊण कुमारणणं, वुत्तो किमिएणमसारएणं | अन्नाणकट्टेंण महाणुभावा ? कुद्धों निसामेउमिमं कुभावा ॥११॥ 
पयासिओ फोडिय कट्ठडखोडि, सप्पो गओ सो वि हुकोवकोड्डिं | पासो वि सप्पं तयमद्धदद्धं, काउं नमोक्कारगुणेण सुद्धं ॥ १२॥ 
गओ गिहं सो वि मओ तयाउही,जाओ अहीसो स महासमाही। पासी वि गेहम्मि कुमारभावे,सुणेह कइया वि हु गीयरावे ॥ १३॥ 
कयाह कारावइ नद्टकम्मं, कयाइ आयन्नइ सुद्धधम्म॑ | कयावि कीलावइ हत्थिराए, हए वि वाहेइ समुच्चकाए ॥१४॥ 
कमेण लायन्नगुणेण पुन्नं, पत्तो जुबत्त रमणीयवन्नं | तओ य रज्ना सुकुमारियाओं, विवाहिओ रायकुमारियाओ ॥१५॥ 
पंचप्पयारे रमणीयभोए, सुरो व्व सो भुंजइ चत्तसोए | एत्तो य छोयंतियनामएहिं, विभोहिओ जीयनिवेयएहिं ॥१६५॥ 
देवेहि दाऊण सुवन्नदाणं, किमिच्छियं सव्वजणेडनियाणं । संवच्छरं जाब अदुद्टरभावं, दारिदसंतत्तविकुत्ततावं ॥१७॥ 
मोत्तण सब्वं पि हु रज्जसारं, पव्वज्ञई संजमरूवभारं । कढो मरेऊण पभूयपावो, नियाणदोसेण किलिट्ठभावों ॥१८॥ 
कोहग्गिणा सब्वपलित्तकाओ, आउक्खए अग्गिसुरेसु जाओ । पा|सित्तु पासं कयकाउसग्गं, झाणट्टियं निज्ियमोहबर्गं ॥ १९॥ 
समागओ जाणियपुव्बवेरों, खोभे उकामो परिचत्तमेरों । जिणोवर्रि धारियकूरचित्तो, फुरंतकोवाहियरत्तनेत्तो ॥२०॥ 
विउवब्विया तेण तओ पिसाया, दुह्ावहोदीरियदुद्ठताया । जम व्व जीयंतकरा कराला, मुहेण निज्जंतद्वग्गिजाला ॥२१॥ 
निसायविप्फारियकत्तियाला, समावओ भीसण-सामभाला । घण व्व भिगंजणकालकाया, विज्युच्छडाभासुरमुत्तिभाया ॥ २२॥ 
लल्लकहका भय-मेरेवेहि,अद्टइहासुग्गमहारवेहिं । निक्कंपश्चाणाउ घिटेसगाहो, न खोहिओ तेहिं वि पासनाहो ॥२३॥ 
पुणो वि आपिंगलकेसखंधा, पयंडदाढाहियभीह विधा । ससंभमावेसवसा दुलुंधा, विउव्विया भीसगसिहसंघा ॥२४॥ 
विरूवरूवेहिं तहा3वरेहिं,वग्घाइएहिं पि भयंकरेहि । न खोहिओ जाव जिणो सयाओ,मेरु व्व झाणाओं सुहासयाओ |॥२५॥ 


४२ आखश्यानकमणिकोरशे 


तओ तहिं वित्थरिएहिं देवप्पमावओ सब्वमकंड एवं । विज्ञायदीवं व गिहं घणेहिं, अंधारियं बोमतलं घणेहिं ॥२६॥ 
कढंबुओ सज्जियसक्चावो, धारासरो वासइ रुद्दरावों | पासं जिणंगं पि मणम्मि कूरें, नासाव॑हिं नीरभरेण पूरे ॥२७॥ 
दिट्ठं जिणे निचचलझाणसूरे, मुहं सुनेत्तं गुरुनीरपूरे । पंकेरुहं व5द्धनिमग्गमेव, सुमुद्धफुल्लंधुयजुम्मसेवं ।२८॥ 
जहा जहा मुंचइ वारि देवो, तहा तहा पासजिणो अलेबो । काऊण सज्ञझाणगयं पयत्त अलोइय॑ झायइ कि पि तत्तं ॥ 
त॑ वारिनिस्मायममाह्यस्स, सम्मं सहंतस्स दुहं जिणस्स । पयासियासेसपयंत्थमाणं, जाय॑ सुहं केवलरूवनाणं ॥३०॥ 
एवं कढे नीरभरं मुयंते, क्ाणंबुणा कम्ममलं धुवंते । जिणे गिरिंदे व्व सुनिप्पकंपे, अहो ! अहीसासणमाचकंपे ॥३१॥ 
नाऊणमोहीए जिणोवसम्गं, आगम्म सिम्धं कठमत्थमंगं । निब्भच्छिउं वंदइ नोयराओ, जिणेसरं जायगुणाणुराओ ॥३२॥ 
काउं सरीरं॑ सफणायवत्तं, सिंहासणं सूरकरायवत्तं । निवेसिउं तम्मि जिणिंदपासं, थोउं पवतो गयनेहपासं ॥३३॥ 
कढेण त॑ पास ! कयत्थिओ वि, तम्मि सुहो5हेसि अपत्यिओ वि। 
विणिच्छिउं ने अहवा वि देव !, समीहिय॑ लब्भइ कि मुहेव १ ॥३४॥ 
अणंतरं ओसरणाइकिद्वं, करेंसु सकाइसुरा हु निश्व॑ | एवं जिए बोहिय धम्ममग्गे, खवित्त कम्माणि गओडपवगर्गे ॥३५॥ 
कल्लाणयं मंगलकार॒यं च, अणिद्गृदंदोलिनिवार॒यं च । पासस्स वित्त विउसेहिं धेयं, विसिसओ तन्चरियाओ नेयं ॥३६॥ 
॥ पार्श्वाख्यानकं समाप्तम ॥१२३॥ 
इदानीं धीराज्यानकमाख्यायते, तश्च सम्यग्दुःखाधिसदनाथंमेव समयगन्तव्यम्‌ । तद्था-- 
संयमभरग्रहणाड्रीकारप्रस्तावे मिलितसमस्तचतुर्विधदेवनिकायसचिवसौधमोधिपतिप्रमुखसुरेश्वरसमुदायं॑ नन्दिवधनराजप्रभृति- 
स्वजनसमाजं मन्त्रि-सामन्त-पुरोगपौरप्रकारांश्चा55प्रच्छय विहाराय प्रस्थितेन कमोरआ्रामबहिरुद्यानप्रतिपन्नकायोत्सगेण [यथा] प्रथम- 
प्रारब्धगोपालोपसगरूपम्‌ , तदनन्तरं दिव्यादिचतुर्विधोपसगंसम्पातप्रस्तावे जघन्योपसगमध्ये उत्कृष्ट कटपूतनाजनितसतुहिनपवनमिश्रं 
जल्शीकरशीतरूपम्‌ , मध्यमोपसगमध्ये तृत्कृष्ट प्रकुपितसुराधमसज्ञमकभुक्तकालचक्रसम्पातजनितवेदनाविसहनरूपम्‌ , उत्कृष्टोपसग्ग- 
मध्ये चोस्कृष्ट छम्माणीनामकग्रामवास्तव्यसिद्धार्थवणिम्गृहोपविष्टवेधशिरोमणिखरकामिधानवणिमित्रदृष्टजिनागमाभिहितविधानभिक्षास- 
मयसिद्धार्थगृहप्रविष्टसमस्तलक्षणसमन्वितश्रीमन्महाबीरतनपदिष्टसरोगताश्रवणसज्ञातातिदु:सहमानसकष्टसिद्धा थंव चनप्रोत्साहितखरकवैद् 
सम्यगन्विष्टसमुपलब्धछिन्नमूलकणंगतानिष्टकीलकाकषंणसमयसमुद्भूतमहा वेदनाविसहनरू पम्‌ , तदनन्तरं च समुत्न्नद्व्यामलकेवला- 
वलोकावलोकितलोका5लोकेनापि प्रोत्सपतप्रौदबहुमानपुरस्सरभक्तिभरावनम्रभवनपत्यादित्रिद्शसमन्वितशक्रादिसुरेश्वरविरचिताष्टमहा- 
प्रातिहायरूपपूजोपचारकलितरमणीयप्राकारत्रयसमलूडकतसमवसरणमध्यव्यवस्थितस्वणमणिखचितविचित्रदिव्यरसिहासनावस्थितेनापि स्फु 
रन्महाप्रभावसह्बुयातीतदेवकोटीकलितेनापि.. नानाविघलब्विधुनीशतसन्निपातमहाजलधिकल्पगौतममुनिप्रमुखभ्री्रमणसड्डपरिवृतेनापि 
गोशालकविमुक्तते नोलेश्यापरितापनारूपम्‌ , अपरं च स्वकृतावश्यवेद्यावेद्यवेदनीयवेदना5<विभूतदोब॑ल्या3रोचक-रुधिरातिसारसमन्वि 
तदाधज्वर्समुत्थवेदनानुभवरूपं दुःखं सम्यगधिषोढम्‌ , तथा तदीयबृहच्चरितादवसेयम्‌ ॥ 
॥इति संक्षेपतो वीराख्यानकं समाप्तम्‌ ॥१२४॥ 
साम्मतं गजमुन्याख्यानकमाय्यायते तश्चेद्म-- 
गंगेयनिम्मियावासमणहराए वि धणयविहियाए | बारवईए नयरीए नरवई वासुदेवों त्ति ॥१॥ 
नामेण देवई से जणणी भवणणम्मि अन्नया तीए । पारणयदिणे छट्ठस्स साहुसंघाडया तिन्नि ॥२॥ 
जुगमेत्तनिहियनयणा अंतरिया थोवथोववेलाए । समरूवा संपत्ता सप्पणयं पणमिया तीए ॥३॥ 
पडिलाभिया य ते सिंहकेसरप्पवरमोयगेहिं तओ । अद्द तेसि तइयसंघाडगो इमं पुच्छिओ तीए ॥३॥ 
भयवं ! कि महमोहो मह ? कि दिसिविब्भमों इमो तुम्ह ?। अह सम्गसमाए वि हु पुरीए न हु लब्भए मिक्‍खा । ॥५॥ 
जं हृद् पुणो पुणो वि य समागया तयणु भणह जेट्टमुणी । नो मइ्मोहों तुम्हाण साविए | अत्थि मणयं पि ॥६॥ 
नो वा द्सिब्भमो अम्ह न न वि य भिक्‍खा न लब्भए एत्थं | परमत्थि कारणं त॑ पि तुम्हमक्खिज्जए इणिंह ॥७॥ 


१, नागराज; | 





बनी न ननिनीन लत ++ कप 7 757 


४१. विवेकिजनस्वकृतकर्मोद्योपनतदु:खाधिसदनाधिकारे गजसुकुमालाब्यानकम्‌ शे५३ 


भद्दिलपुरम्मि नागस्स सेट्टिणो सुढसभारियाए सुया । छ च्चेव वयं सिरिनेमिचरणमूलम्मि पव्वइया ॥८॥ 

ते एत्थ परियडंता कुलेसु उच्चावए्सु सब्वे वि | तुह मंदिरम्मि पत्ता समाणरूब त्ति संदेहो ॥९॥ 

हय जंपिऊण मुणिणो विणिग्गया देवई वि चितेह । हरिणो समाणरूवा जइणो सब्बे वि पेच्छ इमे ॥१०॥ 
पुर्बि पयंपियं आसि मज्झ नेमित्तिणण अट्गण्हं । जीवंताणं पुत्ताण होसि जणणी तुम देवि ! ॥११॥ 

ता एए वि हु मन्ने मह पुत्ता ज॑ सिणिज्ञए हिययं । इय चिंतिऊण दिवसे दुहृज्जए जाणमारूढा ॥१२॥ 
पत्ता य समवसरणे जिणेसरं पणमिउं समुबबिद्ठा | पहुणा वि हु तब्भावं साहेउं सा इम॑ं भणिया ॥१३॥ 
देवाणुपिए ! मग्गाणुसारिणी तुह मई समुप्पन्ना । जेणेसा सुयचिता संवित्ता अवितहा चेब ॥१४॥ 

तो देवहए दिद्ठा ते मुणिणो जिणवरस्स पासम्मि | पन्‍्हुयपओहराए पणमिय एवं समुल्नविया |।|१५॥॥ 

मम कुच्छिसमुब्भूयाण पुत्तया ! तुम्हमेरिसं जुत्त । गुरुर्जसिरी सज्ञा अणवज्जा अहव पव्वज्जा ॥१६॥ 
नवरं दूमह हियय॑ ज॑ सच्चवियं न तुम्हमेगं पि। सुहबालविलसियं मंदमम्मणुल्लावरमणीयं ।|१७॥ 

तो जगगुरुणा भणिया जम्मन्तरकम्मविलुसियं तुज्क | जम्हा सबकिरियणाणि सत्त तुमए5बहरियाणि ॥१८॥ 
विलवंतीए तीए पुणो वि करुणाए अप्पियं एक । तस्स फलेणं जाओ पुत्तेहि सम॑ तुह विओगो ।।१८॥ 

इय सोउं तीए पुणो पुणो वि दुचरियगरहणा विहिया । बंदिय नेमिजिणिंद संपत्ता निययपासाए ॥॥२०॥ 
जणणीकमनमणत्थं॑ समागओ कण्हनरवई गोसे । तो साममुहं त॑ पेच्छिकण पुच्छह पणयपुत्ब॑ ॥२१॥ 

कि अंब ! कसिणवयणा ? कि आणाखंडण कुणह को वि ? । तो सा जंपह पुत्तय ! न खंडए कोइ मम आणं ॥२२॥ 
किंतु मह दुक्‍्खमेयं बहुपुत्तप्पसविणी वि होऊण | जाया दुह्मण ठाणं न बालविरूुसियसुहाणमहं ।।२३॥ 
निययुच्छंगे काउं न कारिओ कोइ निययथणपाणं । ऊछूणमुवरि धरिउं न य न्हविओ मंदपुत्नाए ॥२४॥ 
हीरिज्जंतो खेल्लणयदंसणाडंबरेण डिभेहिं । रिंखंतो मणिकुट्टिमगिहंगणे न वि य सश्चविओ ॥२५॥ 

एमेव मम्मणुक्लावमणहरं पहसिरों दसणसुन्नं | आल्लिंगिऊग गाढं न चुंबिओ वय्रगकप्रुम्मि ॥२ ६॥ 

न हु डिभविहियकेलिप्पसंगओ धूलिधूसरसरीरो । आगंतुं मह कंठे विलग्गिओ भर त्ति एमेव ॥२७॥ 

न हु बाल्यसु लहाए राहाडीए महीए बिलुलंतो । काउं कडीए आलिंगिऊण मंभीसिओ बालो ॥२८॥ 

न कया वि हु कुविएणं मन्नुभरुम्मंथरं रुयंतेण | सुकुमालपाणिअमयच्छडाहिं पहया अहमहन्ना ॥२९॥ 

इय मन्नुनिव्भरं जगणिजंपियं निसुणिकण कन्हनिवों । उल्लवह अंब ! मा कुणसु कमवि खेय॑ नियमणम्मि ॥३०॥ 
सव्व पि सोहणमहं करिस्समिह जंपिऊण नीहरिओ । आराहडइ अमरं पुत्तपरिचियं विहियतवचरणों ॥३१॥ 
ता कणयकुंडलाहरणभूसिओ सुरवरो समणुपत्तो । कि कण्ह ! सुमरिओ हं ? इय तेणुत्ते भणइ कण्हों ॥३२॥ 
मह जणणीए पयच्छसु पुत्त तो सुरवरों भणइ होही । नवरं तारुन्ने वि हु पव्वइही इय पयंपेउं ॥३३॥ 
सिग्घं तिरोहियम्मि तियसे तियसालयाओ चविय सुरो | देवीए सुओ जाओ गयसुकुमालो कय॑ नाम॑ ॥३४॥ 
नवजोव्वणमणुपत्तो अणिच्छमाणों वि सयणवग्गेणं | परिणाविओ य धूय॑ दियस्स सो सोमसम्मस्स ॥३५॥ 
अह तत्थडरिट्ठनेमी समोसढो रेवयम्मि उज्जाणे | तस्साभिवंदणत्थं संपत्ता जायवा सो वि ॥३६॥ 

पहुपयपउमं नमिउं उबविद्टो भयवया वि सब्वेसि । कहिया सद्धम्मकहा जणणी सम्गा-उपवग्गाणं ॥३७॥ 
पुव्वभवब्भासाओ धरिज्वमाणो वि बंधुबर्गेण | गयसुकुमालो सिरिनेमिपायमूलम्मि पव्वहओ ॥३८॥ 

गंतुं उद्ामरडाइणीहि मुम्मुक्षपिकफेकारे । वेयाल-भुय-रक्खसविमुक्क अट्टट्नहासम्मि ॥३९॥ 
बहुरुंडमुंडमंडलमज्झे परिभमिरसिवसमूहम्मि । डज्झंतमडयवसविस्सगंधवासियदिसाचक्के ॥४०।॥॥ 
एवंविहमीसावणमसाणमज्भम्मि सो महासत्तो । काउस्सग्गम्मि ठिओ गयसुकुमालो नवतबस्सी ॥४१॥। 
तत्थाउडगएण भवियव्वयाए दिट्टो स सोमसम्मेण | त॑ पेच्छिकण कुबिओ अहो ! सुया मज्क एएण ॥४२॥ 


१. तुम्हाणमे ० प्रतो । 


3५ 


३४५४ आख्यानकर्मणिकोशे 


परिणेऊण विडंबिय परिचत्ता इय विचितिउं तेण | पावेण घडीकंठो ठविओ सीसम्मि से मुणिणो ॥४३॥ 
भरिओ य जलंताणं अंगाराणं पणट्ठकरुणेण । तेहि मुणी डज्झंतो सम्मं अहियासिउं छूगो ॥४४॥ 
मा कुप्पसु जीव ! तुम इमस्स जम्हा निमित्तमित्तमिमो | अवरज्माइ तुह इह कम्मपरिणई पुव्वभवविहिया ॥४५॥॥ 
वयगिगिवे यणाओ (९) सहियाओ अणेगसो तए नरण | इण्हि पुण पीडिस्सइ केत्तियमेत्तं इयरजलणो १ ॥४६॥ 
अज्ज वि य संसणिज्वो होइ इमा सथ्वहा वि रे जीव ! | जो सिद्धिपुरपहम्मि एवं तुह कुणइ साहिज्ज ॥४७।। 
एवं विचिंतयंतस्स तस्स सीसं बहिं दहइ दहणो । मज्झम्मि भवपरंपरसमज्जियं कम्मकट्ठ भरं ॥४८॥ 
जह जह उच्छलइ महावियणा जलणण तस्स तवनिहिणो । तह तह स महासत्तोीं धम्मज्काणं समारुहह ॥४९॥ 
इहभविय-पारभविए जीवे खामेइ खमइ य सय॑ पि | पणमइ कमकमलं भुवणसामिणो नेमिनाहस्स ॥|५०॥ 
आलोयणं पयच्छइ सिद्धाण पवड्ठमाणपरिणामों | एवं अहियासंतस्स तस्स सम्म॑ं जलणवियणं |।५१॥ 
जाय॑ लोयाउलोयप्पयासयं विमलकेवलन्नाणं । तव्वेलं चिय निव्वाणमुत्तमं सो समणुपत्तो ॥५२॥ 
बीयम्मि दिणे सबलो दुह्ा वि दोधडमारुहेऊण । नमणत्थं नेमिजिणस्स निग्गओ कण्हनरनाहो ॥५३॥ 
पत्तो य समवसरणे नमिउं जिणपायपउममुव्िद्टों । भयवं ! गयसुकुमालो कत्थडच्छइ ? पुच्छिए तेण ॥५४।। 
सिद्धिद्वाणे सिट्टो जिणेण कहमेयमल्लवह कण्हो | भणइ जिणो जह तुमए आगच्छंतेण साहिज्ज ॥५५॥ 
करुणारसिएण कयं विप्पस्स जराए विहुरियंगस्स । देवलियाकरणकए सिरेण इट्डा वहंतस्स ॥५६॥ 
तह गयसुकुमाल्स्स वि केणावि कयं तओ भणइ कण्ही । कह नज्जिही स भयवं ! मए ? तओ भणह भुवणगुरू ॥५७॥ 
उब्बधणानिमित्तं निग्गच्छ॑तस्स जस्स त॑ दटटुं । फुडिही सिरं तहेव य मरिही स तए मुणेयव्वो ॥५८॥ 
इय सोरउं कण्हनिवों नियबंधवमरणजायगुरुसोओ। अंसुजलोल्लकवोलो नमिउं नेमि पडिनियत्तो ॥५९॥॥ 
जाव पुरीए पविस्सइ कण्हो ता दिट्टिगोयरं पत्तो । सो सोमसम्मविप्पो फुट्ट से सत्तहा सीस ॥६०॥ 
तो पंचत्तं पत्तो विज्ञाओ बासुदेवनरवहणा | नयरीए भामिओ सो कड्ढावेऊण पाएहिं ॥६१॥ 
खित्तो य पुरीए बहिं एरिसमन्नो वि कुणउ मा पाव॑ं । इय निसुणिऊण गुरुदुक्खसल्लिया जायवा सब्बे ॥६२॥ 
वसुदेवेण विरहिया निकखंता नव दसारनरनाह। । तह नेमिबंधवा सत्त संजुया हरिकुमारेहि ॥६३॥ 
जिणजणणी सिवदेवी तह हरि-बल्भदकन्नयाओ वि । [हि डललल ॥६५॥ 
22000 ४7 जैक जेल व 0०३ 2 नल ४ 5 40 008 0 255 4 / ]। देवइ-रोहिणिरहिया पव्वइया नेमिपासम्मि ॥६५॥ 
कि बहुणा गयसुकुमालसोयसल्लियमणो समग्गो वि। वसुदेवबंधुबग्गो निकखंतो जायसंवेगो ॥६६॥ 
॥ गज़सुकुमालाण्यानक॑ समाप्तम्‌ ॥१२०॥ 

इदानीं मेताययाख्यानक प्रस्तूयते । तश्ेदमू--- 
साकेए साकेए साकेए गुणगणागरे नयरे । साहारे साहारे साहारे सउणसउणाणं ॥१॥ 
नियजसधवलिमनिज्जियसारयचंदावयंसया जस्स । चंदावयंसयासममित्तथणा पुरजणा जस्स ॥२॥ 
सयलकलागमपडिपुत्नरभावनियवंसमहमिययसोहो । संपाडणपक्खदुगुज्अरूत्तअकलंकयाई हिं ॥३॥ 
उप्पायंतो चंदावयंसओं सुहयनिम्मलगुणेहिं। चंदावयंसओ नाम नरवई [राय]सिरिमवह ॥9॥ 
सब्बंते उससाराओ गयवियाराओ सुइसरीराओ । निम्मलगुणघाराओ सिणिद्ध-मिउचिहुरभाराओ ॥५॥ 
महिहरसमुब्भवाओ सुकुमाराओ सिवासयधराओ । गंगा-गठरीओ विव हरस्स दो तस्स दहयाओ ॥६॥ 
पढमा तार्सि नामेण धारिणी धारिणी धरावशणो । बीया वयणविणिज्ञियपडमा पउमावड नाम ॥७॥ 
रूवरविणिज्ियमयणा ससिवयणा कमलपत्तसमनयणा । कुंदकलियाभरयणा दो दो तासि च सुयरयणा ॥८॥ 
नियय॑ हिययपहट्टा समुन्नयाउन्नोन्नसंगपावित्ता ।सिहिणा इव नयणपिया संपक्कसुहा सुबयणा य ॥९॥ 


१, अभ्वबलाद्रकपोलः । २, स्फुटितम्‌ । ३. मरणम्‌ | ४. कषयित्वा | 





४१. विवेकिअनस्वकृतकर्मदियोपनततुःखाधिसदनाधिकारे मेतायाख्यानकम ३५५ 


रत्नो रइसुहसायरसमुल्लसावणगुणा ससहर व्व | कि बहुणा संसांरियसुद्ाण सब्वाण सब्बस्सं ॥१०॥ 
पढमाए मुणिचंदों सागरचंदो य सुंद्रावयवा । गुणचंद-बालचंदा बीयाए विणयकु लभवण्ं ॥११॥ 

हय एवमिमाणि तया तिवग्गसाहणपरणि सुहियाणि | नीसेसपठरसम्मयगुणाणि विलसंति रज्जसिरिं ॥१२॥ 
ज॑ पुण जिणवयणामयभावियहिययाणि ताणि सब्बाणि । एपो पुण विज्नेओ खोरे खलु खंडपक्खेवो ॥१३॥ 
राया उ विसेसेणं कुओ वि कम्मक्खओवसमभावा । इहलोयनिप्पिवासो परलोयसुहेक्क गयचित्तो [|[१४॥ 
अहिगयजीवाउजीवो निश्व॑ चिय साहुपञ्भवासणओ । उबलद्धपुत्न-पावों सम्मं सुहतत्तचितनओं ॥१५॥ 
असहेज्वदेव-दाणव-किंपुरिस-महोरगाइदेवेहि । निग्गंधपवयणाओ अणइक्कमणिज्थिरचित्तो ॥१६॥ 

निग्गंथे पावयणे धणियं निस्‍्संकियाइगुणकलिओ । लछड्धट्टो गहियट्टी विणिच्छियट्री ये समयम्मि ॥|१७॥| 
इय पंचमंगभयवहपंचमगणहरसुहम्ममुणिवहणा । सावयवन्नयवन्नियगुणरयणालंकियसरीरों ॥ १ ८॥ 

परिपालइ रज्जसिरिं रकखइ खत्तेण सिट्ठजणनिवहं । निग्गहद दुद्वलोयं पवयणउच्छप्पणं कुणइ ॥१९॥ 

अह अन्नया य संझारायत्थाणं विसज्जिय नरिंदों | जा वयइ वासभवणं ता तत्थ न का वि सामग्गी |२०॥ 
खण-लरूव-तव-चियाए त्ति ववणमणुसरिय ताव नरनाहों | सनगरमिव साकेय॑ पश्चसखाणं पवन्नों सो ॥२१॥ 
जावेस वासभवण दीवो पजञ्जलइ ता न पारेमि | इय हिययम्मि विगप्पिय का उस्सग्गं कुणह धीरो ॥२२॥ 
मेरु व्व निप्पकंपो कम्मविणिज्जरणमेगमिच्छंतो । नियदेहनिरावेक्खो अगणंतो दंस-मसगाई ॥२३॥ 

इय पासिय पुहइवइं देवी वि न का वि रायपासम्मि | संपत्ता वोलीणो ता पढ़मो जामिणीजामो ॥२४॥ 
दीवो बि पज्जलंतो एयावसरम्मि नेहविरहाओ | विज्ञाइउमारद्धो ता सेज्ञापालियाए इमो ॥२५॥ 

मह सामी उस्सग्गे अच्छिस्सइ दुक्खमंधयारम्मि | इय परिभाविय समईए पूरिओ तेल्डपूरेण ॥२६॥ 

इय तइय-चउत्थेसु पहरेसुं तेलपक्खिवणपुव्व॑ | पञ्ञालिओ पहैबों तओ पमाया निप्तासेसा ॥२७॥ 
उग्गमिओ दिणनाहो पुहईनाहो य रुहिरभरियंगो । जावु€सग्गं पारह ता पडिओ धरणिवीढम्मि ॥२८॥ 
नेहक्खयम्मि जाए दीवों आउक्खयम्मि नरनाहों | भवणप्पयासजणगा समय॑ चिय दो वि विज्ञाया ॥२९॥ 


अवाधि च--- 


प्रतिज्ञाशैलमारुश्, ये भूयो न पतन्त्यथ: । साधयन्ति स्वमथ ते, यथा चन्द्रावतंसकः ॥|३०॥ 

एत्थंतरम्मि पोक्कारियम्मि सहस ति सेज्जवालीए | कि कि ? ति पयंपंती पत्तो सब्वो वि परिवारों ॥३१॥ 

दटठु्णं तयवत्थं चेयन्नविवज्जियं महीनाहं । मुणिचंदकुमरपमुहो लोओ विहलंघलसरीरों ॥३२॥ 

पडिओ धस त्ति धरणीयलम्मि सिसिरोवयारकरणेण । संपावियचेयज्ञो एवं पलवइ बहुपयारं ॥३३॥ 

हा ताय ! ताय! हा हा सुजाय ! हा राय ! वल्लह ! सुनाय ! | हा विहियपसाय ! पसल्नवाय ! संपत्नजसवाय ! ॥३४॥ 
हा धम्मनिलय | हा भुवणतिलय ! हा सरसविलयपरिवार ! | हा पहु ! पसन्नवयणं पसिऊणं देखु पडिवयर्ण ॥३५॥ 
एवं च पलवमाणो कुमारपमुहो जणो स मंतीहिं। सायावहारवयणेहिं सासिओ समयकुसलेहिं ॥३६॥ 
निकारणअवयारुज्जयस्स निक्षिवकुलावयंसस्स । एयर्स कुमर ! चितसु को विम्हरिओ कयंतस्स १ ॥३७॥ 


भणियं च-- 
लक्ष्मीलताकुठारस्य, भोगाम्मोदनमस्व॒त: । विासवनदावाग्नेः, को हि कालत्य विस्दृत: ? ॥३८॥ 
अवरं च-- 


सो नत्थि चिय भुवणम्मि को वि जो खलइ तस्स माहप्पं । सच्छंदचारिणो सब्ववइरिणों हयकयंतस्स ॥३९॥ 
ता कुमर ! एस पावो समवत्ती गिज्ञए जहत्थकखों । पत्नलिओ जरूणो विव कवरूइ गरुए वि कि बहुणा ! ॥४०॥ 


शेशद्‌ 


आश्यानकमणिकोशे 


बलभद विबलभद्द सयलनीसेस विभद्दिय , 
रावणपमुह पयंडजोह अबरे वि गभहिय । 
न वि उव्बरिउ कया वि को वि कुबियह जमरायह | 
पयडपयावह पाणिनिवहु पावह जिम्ब रायह ॥०१॥ 
इय मुणिचंदप्पमु हो परिवारों सासिओ विगयसोओ । जाओ जणयस्स तओ कारविओ अग्गिसकारों ॥2२॥ 
कइ्वयदिवसाणंतरमुत्तो मंतीहिं कुमरमुणिचंदी । रज्जमणुट्टडसु संपह अनायगा जेण भद्द ! वय॑ं ॥४३॥ 
तुह पिडणो रज्जमिमं नायगरहियं विसंटुलं होही । तुममेव रज्जजोगो मज्ञम्मि जज कुमाराण ॥४४॥ 
जेण तुह लहुयभाया उज्जेणीए कुमारभुत्तीण | पउमावइदेवीए अज्ज वि सिसुणो सुया दो वि ॥४५॥ 
कुमरो वि मंतिवयर्णं निसमिय पिउसोयसल्लियसरीरों । चिंतइ निययमईए रज्जमिमं नरयदुहहेऊ ॥४६॥ 
एयम्मि रज्जभारे इहलेयसुहं पि तत्तओ नत्थि | वासंगबहुलयाए नरवइणो जेणिमा चिता ॥४७॥ 
गयसाहणं न सुहियं संपई मह तुरयसाहणमसुत्थं । अंतेउरे न को वि हु दुस्सीलो मज्म ववहरइ ॥०८॥ 
रट्ट पि दु्टचरडाइएहििं संपयमभिद्‌दुयं दूरं । नरया (१) वि कुओ वि हु विरोहओ दुत्थिया अहुणा ॥४९॥ 
देसे दुत्थत्तणओ नअज्ज वि संपज्जए सुहेण करो । चोरा वि हु अणवरयं मुसंति मग्गम्मि सत्थजणं ॥५०॥ 
नियबलगव्वियचित्तो सीमालो मज्क मन्नइ न सेवं । खत्तपडणाइदुत्था कुणन्ति रावं पि नायरया ॥५१॥ 
लंचोवया रलुद्धा सम्मं अहिगारिणो न वट्ंति । अज्ज॑ माणधणाए अंतेउरियाए रूसणयं ॥५२॥ 
एवमणेगमणोगयवियप्पमालाउलस्स नरवइणो । मोत्तुमभिमाणमेगं नत्थि सुहं भणियमेत्थडत्थे ॥५३॥ 
ओऔत्सुक्यमात्रमवसादयति प्रतिष्ठा, क्लिश्नाति लब्धपरिपालनवृत्तिरेव । 
नातिश्रमाय नयनाय यथा श्रमाय, राज्यं स्वहस्तध्ृतदण्डमिवाडडतपत्रम्‌ ॥|५४॥ 


कि बहुणा भणिएणं इह-परलोइयदुह्ण खणिमेयं । चइऊर्ण रज्जसिरिं संजमसिरिमस्सिओ होमि ॥५५॥ 
इय परिभाविय भणिया माया पउमावई कुमारेण । गेण्हसु माए ! रज्जं अणुजाणसु पव्वयामि अहं ॥५६॥ 
तीए भणियं बाला मज्क सुया रज्जपालणासत्ता । वोढुं गयपल्लाणं कुमार ! कि रासहो तरइ १ ॥५७॥ 
इय सुणिउं तीयुत्तं पडिवन्नमकामएण तं॑ रज्ज । मंतीहिं सुहमुहुत्ते विहिओ रज्जाहिसिओ से ॥५८॥ 

जे पिडणो वि न पणया वसीकया ते वि तेण सीमाला । पुन्नप्पमावपत्तं सो पालइ रज्जमणवज्जं ।।५<९॥ 
उवसंतडिब-डमरं दुरीइ-दुब्भिक्खदोसपरिमु्क । दूरीकयपरचक्क अदिद्वतक्करपयारं च ॥६०॥ 

अहिगारिणो विणीया पणया सब्वे वि मंति-सामंता । आणावडिच्छओ से सब्वो वि य सेवयसमूहो ॥६१॥ 
अणुरत्ता पयदओ सिणेहसारो सुंही य सुहिसत्थो । वट्ट३ वसम्मि सब्बो उबरोहवरंगणानिवहो ॥६२॥। 
बंधवकुमुयाणंदे जाए चंदे व्व तम्मि मुणिचंदे । महिवाले स्वे वि हु विस्सरिया पुव्बरायाणो ॥६३॥। 

इय सो मुणिचंदनिवों पयदए चिय विसिद्दगुणभवर्ण । बीय॑ पुल्नपभावा अलुंकिओ रायरूच्छीए ॥६४॥ 
नीहर्‌इ नयरमज्झे कलावमापूरियं विहियवेसो । मयसलिलसित्तगंडयलूगरुयजयवारणारूढो ॥६५॥ 
कमणीयकंतिकामिणिकर यलदो धुव्वमाणसियचमरो । उद्दंडधरियधवलायवत्तपडिहणियरविकिरणो ॥६६॥ 
विविहवरवाहणारूढमं ति-सामंत-सुहडपरियरिओ । पढमाणविविहमागहकलयलरवबहिरियदियंती ॥६७॥ 
इय पहश्वासरसुररायरूच्छिविच्छद्ठसंजणियसोही । आगच्छइ निग्गच्छह पेच्छिज्जंतो पुरजणेण ॥६८॥ 

त॑ पेच्छिय पावमई दुहा वि पठमावई पदुट्टठमणा । पच्छायावपरद्धा मच्छरपच्छाइयविवेया ॥६९॥ 

चिंतइ पावाए मए सुयाणमेवंविहा नरिंद्सिरी । आगच्छंती दंडेण ताडिया कहमहन्नाए ? ॥७०॥ 

संपइ दुलहा एसा मह पुत्ताणं इमम्मि जीवंते | सच्च वियं तीए इमं बुद्धी पण्हीए नारीणं ॥७१॥ 

तो केण उवाएणं एस मए म।रियव्वओ राया १। इयकूरमणा चिट्ठह विकष्पमालाउला तत्तो ॥७२॥ 


४१. विवेकिजनस्थकृतकर्मोद्योपनतदुःखाधिसदनाधिकारे मेतायाखल्यानकम ३५७ 


नी जमिह काउकामो सोडत्सरं तस्स लह्‌इ कइया वि। पयडा एस पसिद्धो जगम्मि ता तीए वि उवाओ ॥७३॥ 

रद्धो मारणकज्जे जम्हा पयईए पत्थिवों एसो । भुक्खालुओ तओ से भोयणजायं क्रिमबि माया ॥७०५॥ 

निश्च॑ पि रायवाडीए निग्गयस्सावि पेसह सिणेहा | अह अन्नया य मायाए मोयगो सिंहकेसरओ ॥७५४५॥ 
सोहणद॒ग्वेहिं कओ दासीहत्थे सुरुंचओ काउं । पदट्ठविओ सा दिद्ठा गच्छंती रायमग्गेणं ।।७६॥ 

पठमावइदेवीए बाहरिउं दासचेडिया पुद्ठा । तुह हत्थम्मि किमेयं ? कृत्थ व संपत्यिया त॑ सि १ ॥७७॥ 

तीए वि निव्वियप्पं एसा जणणि त्ति सन्चयं भणियं | भूवइभोयणकज्जे जामि अहं मोयगो एसो ॥|७८॥ 

नीसेसो वुत्ततो तिवेइओं तयणु चिंतियमिमीए | एसी चेव समत्थो पत्थुयकज्जम्मि मह हेऊ ॥७<॥ 

तत्तो तीए भणियं केरिसगो एस मोयगो भद्दे | । दासीए निस्संक समप्पिओ देवि ! पेच्छ इमं |८०॥ 

तीए वि पुव्बमेव य विसभावियकरयलेण पासेसुं। पागाए परामुसिओं अइसुरही निवइणो जोगो ॥<८१॥ 

उज्जिघिऊण सुदइरं संचारेउं विस नहम्गेहिं। मोयगमज्झे भट्ट ! सिम्धं जाहि त्ति भणिऊणं ।।८२॥। 

दासीए अध्पिओ करयलम्मि तीए विसुद्धहिययाएु। रज्नो पणामिओ चितियं च तेणावि पुत्रवया ॥<३२॥ 

भक्खेमि कहमहमिमं बालेहिमिमेहिं भुक्खिएहि तओ । काउं दहा तयं तेसिमेव पठमावइसुयाणं ॥८४॥ 

दिन्न॑ दलमेगेगं अयाणमाणेण मोयगसरूवं । मुणिचंदनरिदेणं तदवरिमणवज्जहियएणं ॥८५॥ 

ते उण भुंजंता वि हु विसमविसावेसविहुरियसरीरा । वयणविणिग्गयफेणा सम्मीलियलोयणा सहसा ॥८६॥ 
पेच्छंताण वि रायाइयाण पडिया धस त्ति धरणीएण | सिसिरोवयारवसओ वि जा न पाव॑ंति चेयन्न॑ं ॥<८७॥ 

ता नायं निउणमददएण एस निस्संसयं विसवियारों | ता तक्खणमेव सुवन्नपसणजलपाणपभमिईहिं ॥|<<८॥ 

पडणीकया कुमारा वाहरिउं दासचेडिया रज्ना । पुट्टी भद्दे ! को एस ? कहसु जेणेरिसं पावं ॥८९॥ 

जीवियनिव्विल्लेणं विहियमणज्जेण १ तीए संलत्तं | देव ! न याणामि अहं इह कज्जे कमवि परमत्थं ॥£०॥ 

नवरमिमो पउमावइदेवीए मोयगो सहत्थेहिं । परिमर्तिओ घेत्तृणं मज्य सयासाओ मग्गम्मि ॥<१॥ 

अवरेण न केणावि हु दिट्ठो पहु ! एत्तियं वियाणामि । तो नायमवणिवइणा तीए चिय विलसियमिमं ति ॥९२॥ 

ता कयमहममणाए सच्च॑ आहाणयं इमं तीए । जो चिंतवइ विरुद्ध परस्स तं आवह घररुस ॥<३॥ 

हा मण मयंकधम्मो न मारिओ हं ति तीए पावाए | मंतिसमक्खे पच्चारिऊण मोत्तण रज्जसिरिं ॥९४॥ 

निव्वि ज्नकामभोगो मुणिचंदनराहिवों सुकयपुन्नो । अदिट्विवराहाणं वण्सु सूरीण राहाणं ॥<५॥ 

पासे सुहपरिणामो पव्वइओ गहियदुविहमुणिसिक्खो । उग्गतवचरणनिरओ बिहरइ गुरुपायमूलम्मि ॥<६॥ 
अह कइया वि हु सूरीणमंतिण साहुणो विहरमाणा । उज्जेणीओ पत्ता पुट्टा गुरुणा सुहविहारं ॥९७॥ 

तेहिं वि सव्वं कहियं साहुविहाराइयं नवरमेगो । गरुओ उवबद्दवो मुणिवराणमकयप्पडीयारो ॥€८॥ 

राय-पुरोडियकुमरा दुल्ललिया दुरुलिविलसिया दूरं | मुणिवर्गं राउलवायबविनडिया पहु ! कयत्थंति ॥९९॥ 

त॑ निमुणिऊण मुणिचंदमुणिवरो मणयममरिससहाओ । चिंतइ चंदपहु ज्वल्सुचरियचंदावयंसस्स ॥१००॥ 
जाओ वि हु मह भाया कहमेवंविहपमायमायरइ । ता सिक्‍्खवेमि गंतुं मह सत्ती एत्थ वत्थुम्मि ॥१०१॥ 
सत्तीएण संतीए जो दरिसणपरिभवं सहइ सत्थो । सो धम्मं पि न याणइ अहवा दोग्गइगमं महई ॥१०२॥ 
मा जम्मउ सो पुरिसो जाओ वि हु जियड मा बिरं कालं | जिणसासणावमाणं सामत्थे सहईइ जो मूढो ॥१०३॥ 
जो देव-गुरुपराभवमहममई सहइ सत्तिसब्भावे । निस्संदेहं सदंसणे वि तस्सडत्थि संदेहो ॥१०४॥ 

तो गुरुणो मोयाविय गंतुमहं सिक्खवेमि अविणीए | मा वच्च॑ंतु बराया ते वि हु नरयम्मि मूढमणा |१०५॥ 

तो नमिऊणं गुरुणो भणिया जह तुम्ह होइ आएसो । तो तत्थ गंतुमहयं वारेमि मुणीणमुबसग्गं ॥१०६॥ 
गुरूणा वि जुत्तमेयं जं क्रिज्जह पवयणुन्नई धम्मे । एयं धम्मरहस्सं पवयणसारों इमो चेव ||१०७॥ 

तो गुरुणाउणुज्ञाओ पत्तो सो तक्रखणेणमुज्जेणि । संभोइयवसहीए पविसइ साह्वण मज्ञम्मि ॥१०८॥ 


देश८ 


आश्यानकमणिकोशे 


कयसमुचियपडिवत्ती भणिओ साहूहिं भिक्‍्खवेलाए । चिट्दुसु तं वसहीए तुह पाहुन्नं करिस्सामो ॥१०९॥ 

एवं विहिए तेणं भणिया मुणिचंदसाहुणा साहू । भो ! अत्तलुद्धिओ हं तो ठवणकुलाणि साहेह ॥११०॥ 

तो वत्थव्वयसाहूहि खुद्'ुओ से दुदृज्जओ दिल्नो। दंसेउं पडिकुट्टे कुले तओ खुडुओ वलिओ ॥१११॥ 

तत्थेव य रायकुले पत्थुयकज्जप्पसाहणट्टमिमो । भिक्‍्खट्ठाए पविट्ठों तत्थ वि य समुचसद्देणं ॥११२॥ 
जाणावणव्थमेएणमत्तणो धम्मलाभिण सहसा । अंतेउरियासत्थो विणिग्गओं पणमिय मुर्णिंदं ॥११३॥ 

विज्नवह पंजलिउडो भयवं ! मा वयह गरुयसद्वेंण | काऊणमकण्णपुहं सो वि हु गरुययरसहेणं ॥११४॥ 

कि भणह सावियाओ ! तुब्मे अहमुच्चकन्नओ मणय॑ । इय तासि तेण सम, परोप्परं जंपियं सोच्चा ॥११५॥ 
कोउयवसओ कि कि ? ति जंपिरा निव-पुरोहियकुमारा । कलयलरवं कुणंता कुओ वि सहस त्ति संपत्ता ॥११६॥ 
वारंतीण वि तार्सि अंतेडरियाण को वि हु अपुब्बो । आगंतुगपाहुणनो अयाणमाणो इह पबिट्ठा ॥११७॥ 

ता मा महाणुभावं इमं कयत्थह निरत्थयमिमों हु। कण्णयबहिरसरिच्छो ता वच्छा ! गच्छठ जहिच्छ॑ ॥११८॥ 
एवं ते भणिया वि हु अणत्थजणगत्तओं सिसुत्तस्स | दाउं भवणदुवारे भुयग्गलं भणिउमाढत्ता ॥११९॥ 

नच्चसु समणग ! संपइ पूरसु अम्हाण कोउगं गरुयं । तेणुत्त कह कीरह वायणविरहम्मि नट्टवविही ? ॥१२०॥ 

तो भणियमिमेद्दि वयं वाएमो तयणु साहुणा भणियं । जइ एवं लट्वमिमों पठणो हं नश्चियव्रम्मि ॥|१२१॥ 

तो बाइउं पवत्ता तालाराहणमयाणमाणा ते । चुक्के ताले रुसिऊण साहुणा निट्ठुरं भणिया ॥१२२॥ 

एएण मुहेण तुमे मं नच्चाविहह मुक्खसेहरया ! । ताहे रुद्ठा रे मुंड ! देसि गालीउ अम्द्माणं ॥१२३॥ 

मुणिणा वि निजुद्धेणं सब्वाणि वि टालिऊणमंगाणि । मयपाया निच्चेट्ठा काउं मुक्का सयं च पुणो ॥१२४॥ 
निग्गंतुणुज्ञाणे भूभायं पेहिउं निराबाहं | उवविसिय निरुव्विग्गो सज्ञायं काउमाढत्तो ॥१२५॥ 

ते उण कुमारगे पासिऊण पडिए महीए तयवत्थे | पोक्करिण परिवारेण आगओ तत्थ नरनाहो ॥|१२६॥ 

संभंतो संभासइ ते वि न भासंति नेय फंदंति । कट्ठमयपुत्तल्ा इव चिट्ठंति थिरं पलोयंता ॥॥१२७॥ 

तो भणइ आसुरुत्ता केणमिमं पावकम्मुणा विहिय॑ं ? । तो भणियं केणावि हु इमेहिं पहु ! समणगो एगो ॥१२८॥ 
बाढं कयत्थिओ सो कयाइ एवंविहे इमे काउं | सामि ! पलाणो कत्थइ पायमिमं नज्जह महेए ॥१२०॥ 

तो तक्‍्खणेण जोयावियाओ सब्वाओ साहुवसहीओ । जाव न को वि पयंपह तो भणियं तेहिं साहूहिं ॥१३९॥ 
वत्थव्वओं न को वि हु रायउले विसइ तब्भया चेव | नवरं पाहुणगमुणो समागओ आप्ति अमुणंतो ॥१३१॥ 
जहइ कह वि सो पविट्ठी न याणिमो तं ति तो महीवइणा । सब्बायरेण मज्झे निरूविओ वि हु न सो दिद्ठों ॥१३२॥ 
तो केणावि हु निउणं निरूवयंतेण बाहिरुज्वाणे । सज्झायंतो दिद्लो निविइओ राइणो तत्तो ॥१३३॥ 

वाहरिओ [ वि हु ] जा कह वि नेइ सो राइणो सयासम्मि | ता सयमेव य राया संपत्तो साहुपासम्मि ॥१३४॥ 
जा वंदिउ पवत्तोी सहस शच्िय ताव पतच्चमिन्नाओ । चलणेसु निवडिऊर्ण सुइरमिमो रोविउं छगगो ॥१३५॥ 

ताहे विलक्खवयणो लज्जाए अहोमुहो ठिओ जाव । ताब य कित्तिमकोवेण भाउणा फरुसवयणेहिं ॥१३६॥ 
निव्भच्छिऊग भणिओ होउं चंदावयंसनरबइणो । पुत्तो मुणिवग्गे कुणसि मूढ | एवंविहं भत्ति ॥१६७॥ 

जो परिवारं पि नियं ना55णाए धरसि मूढमइविहवों । सो कह नियववसाओ दुद्डाण विणिग्गहं कुणसि १ ॥१३८॥ 
केरिसियं त॑ सावयकुलुब्भवो सासणे जिणिदाणं । सम्मत्तसुद्धिकज्ज पभावणं कुणसि मूढप्पा ? ॥१३९॥ 

एवं बहुप्पयारं सुइरमिमो फरुस-सामवयणेह्दिं । तह कह वि हु सिक््खविओं मुणिणा आसंघयवसेण ॥१४०॥ 
जह जंपिउं पवत्तो पुणरवि एवंविहं पमायमहं । न करिस्सं मुणिवग्गे निरुवमभत्ति च काहामि ॥१४१॥ 

संपई् पसिय पयच्छसु मह मुणिवद ! पुत्तमिक्खमिय वुत्तो । भणह मुणी राहाड़ि मुंचबसु सुयपठणिमाविसए ॥१४२॥ 
अविणयतरुणो फलमणुहवंतु एमेव ते महापावा | इय जा कह वि न मन्नइ रज्नो लल्लि करेंतस्स ॥१४३॥ 

ता पडिऊर्ण थक्ों मुणिणो पाएसु सविणयं निवई । करुणं काऊण तओ भणियं मुणिचंद्तवनिहिणा ॥|१४४॥ 


तत्तो य--- 


१. स्वापत्ये | 


४१. विवेकिजनस्थकृतकर्मोद्योपनतदुःखाधिसहनाधिकारे मेतार्याख्यानकम ३५९, 


पुच्छसु जइ मह पासे कहमवि ते पव्वयंति सुहभावा | तो पठणयामि राय॑ ! न अन्नहा निच्छओ एसो ॥१४५॥ 
मुणिणा वि हु काऊणं वयणं पउणं कुमारया पुद्ठा | पडिवन्नं पव्वयणं तेहिं वि पियजीवियत्तनओ ॥१४६॥ 
तत्तो य कलाकुसलत्तणेण संवाहिऊणमंगाणि । पउणीकाउं दोन्नि वि सुमुहुत्ते देक्खिया विहिणा ॥१४७॥ 
मुणिचंदों वि हु पत्तो अहिणवपव्वइ्यएहिं परियरिओं । राह्ययरियसमीवे पालइ सम्म॑ समणधम्मं ||१४८॥ 

ताणं मज्झे नरनाहनंदणों पुन्नपरिणशवसेण । चितद भव्वं जाय॑ बला वि पव्वाविओ जमहं ॥१४८॥ 

विप्पसुओ वि वियप्पद्ट मणम्मि कहमहमणज्जसुद्देग | नीएणमणेण हृढेण ? विनडिओ जाइमयबसओ ॥१५०॥ 
ते दो वि सुद्ध-कल्ुसियचित्ता पालंति समणपज्जायं । पजञ्जंते मरिऊणं जाया वेमाणिया देवा ॥१५१॥ 

भुंज़ंति तत्थ भोण मणहरलायन्न-रूवकलिया हि । अमरंगणाहिं सद्धिं विविहालंकाररुइराहिं ॥१४२॥ 
अवयरण-जम्म-पव्वयण-नाण-निव्वाणसंभवदिणेसुं । कल्लाणगेसु पंचसु जिणाणमिह मणुयलोयम्मि ॥१५३॥ 
आगच्छंति कुणंति य पूर्य महिमाइयं पमोयवसा । नंदीसरदीवाइसु सासयजिणभवणठाणेसु ॥१५४॥ 
तित्थयरपायमूले सुणति धम्मं जिणिंदपन्नत्त | अन्न॑ पि धम्मकिद्व॑ कुणंति तिस्थुन्नइप्पमुहं ॥१५५॥ 

अह अन्नया कयाई धम्मपियत्तेण तेहिं तित्थयरों । पुट्ठो सुरलोयाओ चुया समाणा मणुयजम्मे ।|१५६॥ 

कि सुलहबोहिया दुलहबोहिया वा वयं भविस्सामो ? | भणियं जिणेण नरनाहपुत्त ! त॑ सुलहजिणबोही ॥१५७॥ 
एसी पुण भवओ भद्द सहचरो सो चुओ चरित्तगुणं | किच्छेणं पाविहिही मणुयभवम्मि वि समायाओ ॥१५८॥ 
इय सोऊणं सुरकोयमइगया ते जिणं पणमिऊरणं । तो नियसुही पुरोहियसुणण भणिओ महाभाग ! ॥१५९॥ 

म॑ पडिब्रोहसु जम्हा जिणेण हं दुलहबोहिओ भविओ | मा हु पमायं काहिसि जइ तुह मह उवबरि पडिबंधो ॥१६०॥ 
इय संकेयं काउं सुरोयाओ चुओ दि्यस्स सुओ । जाईमयदोसेणं गुरुविसयपओसवसओ ये ॥१६१॥ 
रायगिहम्मि पुरवरे पावियपच्चंतमेयधरणीए । गब्भम्मि समुप्पन्नो जाइमयकुकम्मवसयाए ॥ १६२॥ 
तारिसजाइजुओ वि हु पाल्यतारिसविसिट्टचरणो वि । उबबन्नो हीणकुले अहो ! दुरंतो मयविवागों ॥१६३॥ 
तत्थेवउबट्टिया सेट्टिभारिया मेहणीए पियसहिया । सा ड दढनिंदुयत्तेण दूमिय। गमइ दियहाईं ॥१६४॥ 
नवरमिमीए वि हु गब्भसंभवों मेहणीए सह जाओ । तो सेट्टिभारियाए सायरमब्भत्थिया सहिया ॥१६५॥ 
पियसहि ! अहमेएणं कयत्थिया निदुयत्तदोसेण | ता जह कहमवि समगं पसवामों तो नियगजाय॑ ॥१६६॥ 

भद्दे ! देज्वसु मज्झं कह वि हु जीवेज्ज तुज्क पुन्नेणं । तीए वि हु पडिवन्न॑ं नत्थि अविसओ सिणेहस्स ॥१६७॥ 
अड्धृद्रमदिविससमन्निएसु मासेसु नवसु दिवसाणं | कमसी य वइकंतेसु सेट्टिमियाण भज्ञाओं ॥१६८॥ 

सममेव पसूयाओ सेट्ठडिपियाए सुया मया जाया । इयरीए लक्खणधरो निरुवमरूवो सुओ जाओ ॥१६९॥ 

तत्तो जहा न जायइ छक्कन्नमिमाहिं विहियमायाहिं | संचारियाइं तह ताइं दो वि छन्नं संबचाईं ॥१७०॥ 

दूरं रायविरुद्धं सत्थविरुद्धं न ज॑ जणपसिद्धं | त॑ ताहि तया चेट्टियमहो ! हु कुडिलत्तमित्थीणं ॥ १७१॥ 
नायमुवष्टियसेट्टिस्स भारिया सुरकुमारसमरूवं । अक्खयतण पसूया पृत्त ति जणेण नयरम्मि ॥१७२॥ 


बज्जंति तूरनिवहा ग।यंति गु णड्ृगायणसमूहा । नश्चंति रमणिसत्था पविसंति सुहक्खपत्ताईं ॥१७३॥ 
वेसमणसमाणधणो वियरइ सेट्टी पमूयधणनिवहं । वद्धावयहत्थाओ गिण्ह्‌इ सो विविहवत्थाइं ॥१७४।। 
अणवरयविविहवियरि ज्ञमाणसुह भक्ख-भोज्जसुत्थजणो । इय वद्धावणयमहामहसवो सिद्टिणा विहिओ ॥१७५॥ 
सा वि सुयं मेदेण पाडइ पाएसु एस तुह तणओ | नाम॑ पि हु दिल्न॑ तीए संतियं तस्स मेयज्ो ॥१७६॥ 
वडुह सो सेट्ठिगिहे ककाकलावेण देहुवचएण । गयणे सियपक्खे ससहरो व्व निस्सेसजणसुहओ ॥१७७॥ 
अट्टवरिसप्पमाणो लेहायरियस्स पायमूलम्मि | बाहत्तरीककाओ सयलाओ पाढिओ पिडणा ॥१७८॥ 


किया 5 





बै५० 


जओ-- 


आखश्यानकम णिकोशे 


तत्तो य तरुणरमणीहरिणीसंजमणवागुराकरिणि । पत्तो विछासविब्भमगुणमवर्ण तारतारुत्न ॥१७९॥ 

अह विहियविसिट्वविलाससारसिंगारमणहरसरीरो । परिभमह सुवेसवयंसपरिवु डो पुरपहाईसु ॥१८०॥ 

नाऊण तय॑ मेयज्जमोहिणा पुव्वसंगहयदेवा । पडियोहदइ बहुविहसुमिणदंसगाईहिं धमं मम्मि ॥१८१॥ 

परमेसो न गणइ कि पि तारिसं कम्मभारियत्तणओ । जम्मंतरनिव्वत्तियसुगुरुपओसाणुभावेण ॥१८२॥ 

कालेण सरसलायन्नपुत्नतारुन्नगुणमणिखर्णी ओ । अट्ट कुलबालियाओ विहिणा परिणाविओ पिडणा ॥१८१॥ 
सिबियारूढो सह पिययमारहिं परिभमह नयरमज्मम्मि | रूवविणिज्जियमयणो अच्छरसहिओ व्व सुरकुमरों ॥१८४॥ 
त॑ दद्॒णं देवेण चिंतियं एस विसयवामूढों । एवंविहसामग्गीए दुककरं बोहिउं धम्मे ॥१८५॥ 


जाव न दुक्‍्खं पत्तो पियबंधवविरहिओं य नो जाव । जीवो धम्मक्खाणं भावेण न गिण्हए ताव ॥१८६॥ 

ता धम्मबोहणकए पाडेमि कहिं पि आवयावत्ते | इय परिभाविय तज्जणयमेयदेहम्मि अवयरिउं ॥१८७॥ 

छगगो रोविउमेसो सदुक्खमह पासिऊण मेईए | वुत्तो पिययम ! तुमए करिमेवमसमंजसं विहियं ? ॥१८८॥ 
जम्हा मज्ञ सहीए सुयवोवाहो महाविभूईण | त॑ पुण पमोयठाणे वि मज्कमिय सोइउं रूग्गो ॥१८९॥ 

तेणुत्तं अज्ब पिए ! नियाए धूयाए सुमरियमिमेण । सह जायाए जीवेज्ज कह वि जह मज्झ सा घूया ॥१४०॥ 
ता अहमवि मेयाणं भत्तं काउं जहाविहवमेवं । वीवाहं कारितो त॑ मज्क पिए | न संजायं ॥१६१॥ 

ता मज्झमिमेणं माणसेण दुकक्‍्खेण दूृमियमणस्स । सोयावेसवसाओ समागयं रुत्षमेयं ति ॥१८२॥ 

तो तीए पद भणिओ परमत्थमिमं अयाणमाणीए । एसो तुह चेव सुओ सहीए दिल्लो मए सामि ! ॥१<३॥ 

त॑ सोऊणं रुट्रेण ताडिया सा वि रोविउ' छूग्गा | किमियं भो भद्द ! ? जणेण पुच्छिए तेण संलत्त ॥१९४॥ 
पावाए इमाए कय॑ एयं असमंजस मह पियाए । सिद्ठजणनिंदणिज्॑ जओ इमी मज्क तणओ त्ति ॥१९५॥ 

दिन्नो मह द्याए सिणेहओ सेट्टिणीण एयाए | ता नियमंगरुहमिमं गिण्हेस्समहं मह न दोसो ॥१५६॥ 

इय वोत्तणं सहस त्ति पाडिओ गिण्हिकण बाहाए | सिबियाओ समकखं परियणस्स सो खत्थहिययस्स ॥१९७॥ 
जाओ य रंगमज्झे महाविराओ इमं निएऊण । लोओ वि हु पत्तिन्नो को वि कहं पत्थुयत्थम्मि ॥ १९८॥ 

जेण सिणेहों अहिओ इमाण तो संभवेज्ज एयं पि। निब्भच्छिऊण नीओ मेयज्जो तेण वि सगेहं ॥१<८९॥ 
भणिओ रे ! कि लज्जसि कुलक्रमेणा55गएण कम्मेण १ । ता पयडमिमं भणियं मुणसु मणे कुणसु मा खेयं ||२००॥ 
इय वोत्तूं पक्खित्तो कोलियखड्डाए सो विसन्नमणो । अच्छह तीए भिणिभिणियमक्खियाजालकलियाए ॥२०१॥ 
द्ट त॑ तयवत्थं पयडियरूवों पयंपए देवों । भो भद्द ! त॑ वियाणसि मम ? ति त॑ सुणिय मेयज्जो ||२०२॥ 
चिंतह मणम्मि मह एस दिद्टपुव्वों कहिं पि मन्ने हं | इय ईहा-5पोह-गवेस-मग्गणाओ कुणंतस्स ॥२०३॥ 

जाय॑ जाईसरणं नाओ सुरजम्मवहयरों तेण | भणियं च भो महायस ! विहियं मित्तत्तणं तुमए |२०४॥ 

पडणो हं पवइउं परमज्ज वि मज्क विसयपडिबंधो । अइबलिओ जं जुत्तं त॑ सयमुवइससु मह मित्त | ॥२०५॥ 
तो भणियं विबुहेणं विसयपिवासाए अणुबसंताए | वयविग्घकारिणीए न संगय॑ तुज्क वयगहणं ॥२०६॥ 

जइ एवं ता किज्जउ मज्झ पसाओ दुवालससमाओ | विसए हूं भुंजिस्स पच्छा बोहेज्ज नियमेण ||२०७॥| 
पडिवज्बिय त॑ मेयज्जवयणममरोडमराणमावासं । गच्छंतोडतुच्छमई विज्नत्तो सेट्टिपुत्त णं |२० ८॥ 

संपयमेव॑ विशोवियस्स मह केरिसा भणसु भोया १ । ता तह जयसु जहा हं भवामि जणपूयणिज्वगुणो ॥२०९॥ 
तत्तो वयणाणंतरमूरणगो तेण तस्स गेहम्मि | बद्धो भणिओ] य इमो जहेस तुह भह ! भवणम्मि ॥२१०॥ 
रयणाणि अवाणेणं मुयही मणहरगुणाणि अणवरयं | तो ताण भरेऊणं वित्थयथालं पसन्नमुहों ॥२११॥ 

जणओ तुज्झ निमित्त' मग्गिज्वउ सेणियं निय॑ कन्नं | परिणीयाए तीए तुह होहिइ सब्बमवि भव्यं ॥२१२॥ 
जबरं पि हु जं किंचि वि तुज्क पिया कारविस्सह जणेण । मज्क पभावा त॑ पि हु संपज्जिस्सह घुवमिमस्स ॥२१३॥ 


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४१. विवेकिजनस्वकृतकर्मोद्योपनतड॒ःखाधिसहनाधिकारे मेतायाख्यानकम ६१ 


इय भणिऊर्ण सहस त्ति खुरवरों [ सो ] अदंसणीहुओ । ऊरणगो वि हु रयणाणि मुयह रविकंतिरुदराणि ॥२१४॥ 
तत्तो मेयज्जपिया थार रयणाण पूरियं काउं । रायदुवारे चिट्दृह मग्गंतो कन्नय॑ रन्‍नो ।!२१५॥ 

अभयकुमारो पुच्छइ तुज्ञ कुओ एरिसाणि रयणाणि १ । तेणोइयमू रणगो पहदिणमेयाणि वोसिरइ ।॥२१६॥ 
तो भणियमभयकुमरेण भद्द | मेरिसगमूरणयरयणं । न विरायइ तुह गेहे ता आणसु रायअत्थाणे ॥२१७।। 
तेण वि तहेव विहिए रायत्थाणम्मि पयडमूरणओ । मुंचइ अखुईं फुट्टंति जम्मि गंधेण नासाओ ॥२१८॥ 
उत्बेविणहिं तत्तो पुणरवि नीओ गिहम्मि तस्सेव । तत्थ तहेव य वोसिरइ ताणि रयणाणि पवराणि ॥२१९॥ 
तो जाणियमभएणं नृणमिमा का वि देवमाय त्ति। तो भणिओ से जणगो परिक्खणत्थं पणयपुव्व॑ ॥२२०॥ 
भो ! एस मज्क जणओ निश्च॑ चिय जाइ वंदणनिमित्त | सिरिवीरजिणेसरपायपउमजुयलूस्स सुकुमारो ॥२२१॥ 
किच्छेणं पयचारेण चडइ वेभारपव्वयपहम्मि | ता जइ रहमग्गो तत्थ कह वि संजायए सुहओ ॥२२२॥ 

ता तुह सुयरस तुट्टी वियरद नियकन्नगं महीनाहो । इय भणिए संपन्नो पव्वयसिहरम्मि रहमग्गो ॥२२३॥ 
तो निच्छियमभणणं सुरमाया एस विव्भमों नत्थि | काही अबरं पि हु तप्पमावओ एस मायंगो ॥२२४॥ 
तो केण पयारेणं जणाववाओ अनेइ ? हुं नायं । आणावयामि जल॒हिं जेण इमो तस्स वेलाए |२२५॥ 

छत्ते धरिज्ञमाणे नरवइसिंहासणे विहियण्हाणो । होह पवित्तो इय वेयवयणमेचं बुहा बेति ॥२२६॥ 

इय चितिऊण भणिओ मेओ भो ! जह समुद्दमाणेसि । तो तुज्क भद्द ! भणियं वयणमसेसं पि कुणइ निवो ॥२२७॥ 
एवं कए कुओ वि हु जलही रायगिहपरिसरे पत्तो । सो केरिसओ दिद्ठो इंतो नयरे निवाईहिं ? ॥२२८॥ 
महिहरसमुब्भवाणं सरियावहुयाण विलसिररसाणं । सब्बंगं पयडंतो छवणरसं सामलसरीरो ॥२२०॥ 

एस सलुणो सरसो गरुओ गंभीरिमाए गुणनिलओ । इय जस-क्ित्ति जो वहइ पयडडिंडीरपिंडमिसा [२३०॥ 
एगेगमीण-मयरं नाणाविहमीण-मयरसंकिन्नो । सफरोव्वत्तियमिसओ सकडक्खं नियइ जो गयणं ||२३१॥ 
सिरिधर-सु रवरमहिओ विलसिरमयजलकरिंद्सियमुत्ती । सुरयणपरिजुसियपओ सकक्‍ख॑ सको व्व जो सहइ ॥२३२॥ 
महिहरपसंसिओ हं सिरिजणओ हूं अलद्धमज्ञो हं । इय विहियगरुयगव्वो जो गज्जइ गहिरसद्ेण ॥२३३॥ 
मयरसिओ दुरहिगमो जडपयदइत्तं पयासयंतों व्व । गज्जंतो अच्चग्गलमुल्ललियमहल्लकल्लोलो ॥२३४॥ 
बहुसत्ताहाराओ करुणारसपूरियत्तगुणओ य । सप्पुरिसो व्व विराय॑ं सुव्वत्तममु कमज्जाओ ||२३५॥ 
रणरसियसेयसंखो घणरसकरि-तुरयसिरिसमाउत्तो । अणुरूवसंगमकए निवो व्व सेणियनिवं पत्तो ॥२३६॥ 
आलिंगंतो गुरुतरकल्लोलभुयाहिं रायगिहनयरं । नेहेणमप्पसरिसं सप्पायारं ससुरभवर्ण ॥२३७॥ 
जलवित्थारेण मए पायाल-मही-नहाइं रुद्धाइं । इय द॒प्पेण व नहयलमु ल्लंघर हल्लिरजलोहो ॥२३८॥ 
इय-एवंविहरयणायरस्स वेलाजलेण सो न्हविओ । मेयज्जो भूवइपमुहपउरलोएण सप्पणयं |॥२३९॥ 

तत्तो य सुहमुहुत्ते रल्ला परिणाविओ निय॑ कन्नं । विहिओ पुणरवि रायाइएहिं नयरम्मि परममहो ॥२४०॥ 

तो सो सेणियनरवइविदन्ननिरुवमसमुच्चपासाए । सयणीया-55डसण-भोगोवभोग-परिवारपरियरिओ ॥२४१॥ 
पंचविहविसयसुहमुभयहा वि नववहुयवंद्रपरिकलिओ । उवभुजंतो दोगुंदुगो व्व देवो गमइ दियहे ॥२४२॥ 
तत्तो बारस वरिसाणि तस्स नाणापयारकीलाहिं । ललमाणस्स मुहुत्तं व्व सुत्थमणसो अई्याणि ॥२४३॥ 
पुणरवि य मित्तदेवो अवइन्नो तस्स बोहणनिमित्त । पेच्छ अपुव्वा पढिवन्नसूरया का वि सुयणाण ॥२४४॥ 
दटूठुं देवं सिरि रइयरुइरकरकमलसंपुडो सहसा । मेयज्जो सज्ञो पत्थुयत्थकज्अम्मि संजाओ ॥२४५॥ 
एत्थंतरम्मि पपडियनवाओ ताओ नवाबि वहुयाओ । छलियक्खर-सुहयर-लडहवाणिविज्ञत्तिपवणाओ ॥२४६॥ 
उत्तारलगमणरणभमणिरनेउरारावमुहलियद्सिाओ । जंपंति पहु ! पसायं अम्हाण वि एत्तियं कुणसु ॥२४७॥ 
तासि पि हु पडिवज्नं देवेण दयाहुणा तयं वयणं । पणइयणपत्थणाभंगभीरुणो हुंति ज॑ गरुया ॥२४८॥ 

ता तेसिं बारसगं वरिसाण तयं पि दुयमइक्कंतं । जंतं पि हु काल ज॑ न मुणइ सुहिओ सुद्देक्निविसो ॥२०९॥ 


३६२ आखश्यानकमणिकोरे 


तो वयपरिणहवसओ सुरोवरोहाओ भुत्तमोगाणि । चरणखओवसमाओ संजायविसुद्धभावाणि ॥२५०॥। 
गरुईए विभूईए समय पव्वावियाणि नरवइणा । सिरिवीरजिणेसरपायअंतिए ताणि सब्बाणि ॥२५१॥ 
अब्भसियदुविहसिक्खाणि विणय-वेणहयकरणनिरयाणि । गुरुकुलवासे विहरंति विहुयरय-मलजिणाणाए ॥२५२॥ 
मेयज्जो उण मेयज्जपरिणई वयविसुद्धसुहभावो । निरुवमकरुणारसपूरपुत्नजलरासिसारिच्छो ॥२५३॥ 
विहरंतो संपत्तो कयाह पुणरवि य रायगिहनयरे । भिक्‍खट्ठाए पविट्ठो सुवन्नकारस्स गेहम्मि ॥२५४॥ 
सो उण सुवन्नयारों पहदिणमट्ठोत्तरं जवाण सया | सोवलियाण सेणियनरवइणो दिज्नवेयणओ ॥२५५॥ 
परम विस्सासपयं भोयणविसए सया वि अपमत्तो । निव्वत्तइ निरुवमवीरनाहपयपूयणनिमित्त ॥२५६॥ 
तो सो पुंजीकाउ जवे पविट्टो गिह्े सकज्जे ण | वियरसु दइ॒ए ! एयस्स भिक्‍्खुणो भिकखमिह भणिउं ॥२५७॥ 
ते उण घाडेरुहगेहकुंचजीवेण भुक्खिएण जवा । गिलिया पेच्छंतस्स वि मुणिणो निरुवमदयानिहिणो ॥२५८॥ 
तो नीहरिओ वत्थाणि परिहिउं किर जबे समप्पेमि । नरवइणो जिणपुरओ सत्थियपूयानिमित्तमिमो ॥२५९॥ 
अहिगरणीए उवरिम्मि पुंजिए नियह् न हु जबे जाव | सुन्नमणो ता जोयह इओ तओ संभमवसेण ॥२६०॥ 
तो पुट्टो मुणिबसभो भयवं | तं मोत्तुमेगमवरस्स । संपह् न संभवों कहसु ता जबे पयडियपसाओ ॥२६१॥ 
जेण5च्चणियावेला अइजाइ निवो जवपष्पणाभावे । रुट्टो काही भयवं | म॑ नवखंडं अयंडं ति ॥२६२॥ 
एवमिमो भणिओ वि हु विविहपयारेहिं जाब न हु कि पि। जंपह ता रुसिऊर्ण किलिट्ठकम्मेण सो सीसे ॥२६३॥ 
अइनिबिडं बद्धो तेण अंल्लबद्धेण सीसवेढेण । सुक्कते वद्धे वेणाए साहू समभिभूओ ॥२६४॥ 
चिंतइ महाणुभावों कम्मरिवुजयत्थमुज्जमंतस्स | अणुवकयपराणुग्गहकारी तुह जीव ! को वेस ॥२६५॥ 
रे जीव | नरयवासम्मि तुह वसंतस्स नरयवालेहि । छेयण-भेयण-कत्तण-दहणं-5कणपमुहवियणाओ ॥२६६॥ 
अणुभाविज्यंतसरीरयस्स तुह केत्तियं इमं दुक्खं ? | इय समभावो त॑ दुरहियासमहियासए वियणण ॥२६७॥ 
पुणरवि भणिओ अज्ज वि कहसु सरूवं जवाण तमणज्ज !। तह बि हु कुंचदयाए न कह सो कि पि भणियं च ॥२६८॥ 
जो कुंचगावराहे पाणिदया कुंचगं तु ना55इक्खे | जीवियमणपेहं तं भेयज्जरिसि नमंसामि ॥२६९॥ 
निष्फेडियाणि दोन्नि वि सीसावेढेण जस्स अच्छीणि | न य संजमाओ चलिओ मेयज्जो मंदरगिरि व्व ॥२७०॥ 
एवं वेयणनियरं अहियासंतस्स तस्स तवनिहिणो । अप्पुव्वकरणपत्तस्स खबगसेढिं पवन्नस्स ॥२७१॥ 
सासयमणंतमक्खयमणंतरूव॑ निरावरणमेगं । लोया-डछोयपयासं संजाय॑ केवलजन्नाणं |२७२॥ 
आउयखयम्मि समकालमेव सेलेसिभावमणुपत्तो | सो किर महाणुमावो अंतगडो केवली जाओ ॥२७३॥ 
एत्थ॑तरम्मि चेडीए कट्ठद्दारो महीए पक्खित्तो । तग्घायथसकियमाणसेण ते कुंचजीवेण |२७४॥ 
उम्गिल्या हेमजवा त॑ दट्ठुं चितियं कलाएण । घिद्धी | असमंजसकारयस्स मह बुद्धिवियलस्स ॥२७५॥ 
जेणाहं निवजामाउयस्स रिसिणों य घायगो पावो । ता मरियव्वमवस्सं मए5हुणा रायपासाओ ॥२७६॥ 
ता पव्वज्ञामि अहं सकुडुंबो अन्नहा न मोक्‍्खो मे । इय बुद्धीए जाओ सुवन्नयारों समणरूवों ॥२७७॥ 
तं वुत्तंतं नाउं जा पेसइ तस्स निग्गहनिमित्त | सेणियराया पुरिसे ता दिद्लो समणरूवों सो |२८॥ 
नीओ य रायपासे जंपद निव | होउ धम्मलाभो ते | मइविहवेणं राया वि रंजिओ तस्स तणएणं ॥२७९॥ 
भणिओ जह नो सम्मं पालसि तो तुज्झ निग्गहं काह | सो वि हु भएण पाल जावज्जीवं पि विहियवयं ॥२८०॥ 
॥ इति मेतार्याख्यानकं समाप्तम्‌ ॥१२६॥ 

इदानीं सनत्कुमाराख्यानकममिधीयते । तथथा-- 
आराम व्व सुदक्‍्खा जम्मि जणा जलहिणो पएसो व्व । परमावरियमहेला कयसुरमहणा विरायंति ॥१॥ 
निरुवमनियगुणवसओ कुरुजणवयभूसणं भणंतं व । अत्थि वसुहापसिद्धं कुहुजणवयमूसणं नयरं ॥२॥ 


१, आराद्रव््ंण' आद्रंचमंणा | २, काष्ठभारः । 


४१. विवेकिजनस्वकृतकर्मोद्योपनतदुःखाधिसद्नाधिकारे सनत्कुमाराण्यानकम्‌ शदेदे 


सहिययमविसयमेयं नामेणं गयउर॑ समक्खायं | सइ सुहियनायरं पि हु दुहियासयस जुयजणडूं ॥३॥ 
जम्मि य बणिणो पामाणिएहिं सह पयडरायमग्गम्मि | अब्भसियसुहवियक्का विस्ुुद्धमाणा ववहरंति ॥४॥ 
असददओ सईहिं सम॑ कयसुइसीलव्वया विरायंति | सुहयपरलोयविसयम्मि जत्थ जायाणुरायाओ ॥५॥ 
लहुया वि गरुयसरिसा रायसभावन्निया गयवियारा । वद्धियसिणिद्धबंधवधण-घन्ना जत्थ निवरंति ॥६॥ 
जम्मि पुरपरिहसन्निभभुयदंडुदंडकलियकरवाले । काछो वि किला55संकइ सत्तुसमूहम्मि का गणणा ? ॥७॥ 
समरंगणपत्तेणं घुयणुवयारे य जेण गुणनिहिणा। सत्तणं सुयणाण व दिनना कइ्या वि हु न पिट्टी ॥८॥ 
वीसुं पि हु पसरियगुरुपयावचउरंगचंगगुरुसेणो । नामेण विस्ससेणो त॑ परिपालइ जहत्थक्खो ॥९॥ 
सोहग्गाइगुणेणं अप्पडिहयपुन्नपगरिसत्तणओ । देवीकयसन्नेज्का सहदेवी पणइणी तस्स ॥१०॥ 
सा अन्नया पसूया चोदससुमिणेहिं सूइयं सुहय॑ । चक्क॑कुसंकियपयं सणंकुमारं तुरियचर्कि ॥११॥ 
बड़ंतो य कमेणं पत्तो सो अद्ववरिसमाणतणू | सब्बजणाणंदयरो प्तियपक्खे सारयससि व्व ॥१२॥ 
लेहायरियसमीवे मंतिसुएणं महिंद्सीहेण । सहिओ सिणिद्धस॒ुहिणा पढिओ बावत्तरिककाओ ॥१३॥ 
संपत्तो य कमेणं तरुणीहरिणीण वागुराकप्पं । तारुननसमारंमं मयरद्धयरूवरमणीयं ।॥॥१४॥ 
अह अन्नया वसंते संपत्ते तुरयवाहियालीए । अवहरिओ सहस चिय हएण विवरीयसिक्खेण ॥१५॥ 
तो कुमरमणुसरंतो पणमिय राया महिंद्सीहेण । विणिवारिओ सय॑ पुण कुमरन्नेसणकए चलिओ ॥१६॥ 
भमिओ रनने गिरिकाणणेसु सरिया-सरोवराईसु । मित्त गवेसयंतो बहुकालं न उण उबलद्धो ॥१७॥ 
तत्तो निसुणइ सं कारंडबव-कुरर-सारसाईणं । जा तयमिमृहो चलिओ ता सुणइ इमं पढिज्ंतं ॥१८॥ 
जय वीससेणनहयलमयंककुलभवणलूग्गणकखंभ ! । जय तिहुयणनाह ! सणंकुमार ! जय लद्धमाहप्प | ॥१९॥ 
हरिसियहियओ नियमित्तनामसवरणेण जाव संचलिओ । ता विज्ञाहरलूच्छीए परिबुर्ड नियह नियमित्तं ॥२०॥ 
आपएंदनिब्भरंगा परोप्परं जाव तत्थ अच्छंति | पुच्छियकुसलोदंता महिंदसीहेण ता पुट्ठो ॥२१॥ 
कुमरो तुह मित्त | कहं जाया एगागिणो वि रायसिरी १ । तो लज्जंतो नियचरियमक्खिउं भणह बउलमइं ॥२२॥ 
मह निद्दाए घुम्मंति लोयणा कहसु त॑ पिए ! नाउं। विज्ञाए मह चरिय॑ इमस्स भणिए य सुत्तो सो ॥२३॥ 
भणिओ महिदसीहो तीए त॑ ताव निग्गओ तहइया । मित्तन्नेसणकज्जेणेसो पुण मज्झ मणदइओ ॥२१४॥ 
पसरंतजलहिकल्लोलेणं तेणं तरस्सिणा सामी | कामेण व बाणेणं हएण कंतारयं नीओ ॥२५॥ 
तत्थ वि रमणीयाणं उवर्रिं वच्छत्थलीण छोलंतो । आयासिओ य सुपवासिओ य मुच्छाविओ य घणं ॥२६॥ 
तो सत्तच्छयतरुनायगेण जक्खेण जायकरुणेणं । माणससरनीरेणं सिंचिय सत्थीकओ कुमरों ॥२७॥ 
सत्थेण सुरो भणिओ जत्तो एयं समाणियं नीरं । तम्मि सरे मह ण्हायस्स जइ परं सम तणुदाहो ॥२८॥ 
ता तम्मि तुम म॑ नेसु सुहय ! जइ सच्चयं मह हिओ सि । इय भणिए सिम्घं चिय सुरेण नीओ सरे तम्मि ॥२९॥ 
दिट्ूं च तयं कविवन्नणाइयं सरवरं कुमारेण । कयण्हाणो पीयजलो य तम्मिसत्थीहुओ कुमरों ॥३०॥ 
जह पुव्ववइरिणा तम्मि सरवरे जुज््िओडसियक्खेण । जक्खेण सम॑ जुज्ञेण जह जिओ नियबलेण सुरो ॥३१॥ 
जह विज्ञाहरराया संजाओ वित्थरेण त॑ सब्बं | कहियं महिंद्सीहस्स सा वि भणिया इमं तेण ॥३२॥ 
सुयण ! इमो मह मित्तो सामुद्दियलक्खणेईिं सब्बंगं | समणुगओ कि चोज्जं ज॑ं जाओ खेयराहिवई ? ॥३३॥ 
इय निसुणिय बउलमई, भणह महिंदं कुऊहलं मज्क | ता पुरिसलक्खणं कहसु तेण भणियं सुणसु भद्दे ! ॥३४॥ 
वित्थरओ सामुद्दं लक्खपमाणं भणंति मुणिवसभा । संखेवेण सहस्सं सयं व जाब य सिलोगं वा ॥३५॥ 

तत्थ संखेबओ कहं सिलोगो ? 
गतेध॑न्यतरो वर्णों, वणोद्‌ धन्यतरः स्वरः । स्वरादू धन्यतरं सत्त्वं, सवे सत्त्वे प्रतिष्ठितम्‌ ।।३६॥ 


१, ०संजय० २०। २. 'हयेन! अश्वेन | ३. ०त्थरूम्मि छो० २० | ४. कविवर्णनातीतम्‌ | ५, स्वस्थीभूतः । 


श्द्छ 


अपरं च--- 


आखश्यानकमणिकोशे 


लक्खिज्बद जेण सुहं दुकखं व जियाण दिद्ठमेत्ताण | तं लक्खणं ति निसुणसु निरूवियं नाइसंखेवा ॥३७॥ 
रत्त मउय॑ निद्धं पायतलं जस्स होइ पुरिसस्स । न य सेयणं न वंक सो नाहो होह पुहईण ॥३८॥ 
ससि-सूर-वज्ज-चक्क-5कुसंकियं कमतलं सुहं भणियं । रासह-वराह-जंबुय-विगंकिय दुक्खियाण भवे ॥३९॥ 
वट्टे पायंगुट्टे अणुकूला भारिया विणिद्िद्वा । अंगुलिपमाणमेत्ते अंग्रुट्टे भारिया दुइया ॥|४०॥ 

पहिओ पिहुलंगुट्टी विणयम्गेणं च पावए बिरहं । भग्गेण निशच्चदुह्ठिओ इय भणियं लक्खणन्नूहिं ॥०१॥ 
दीहा पएसिणी जस्स जायए सो वसम्मि महिलाणं | स चिय मडहा कलहप्पियस्स पिय-पृत्तविरहों वा ॥9२॥ 
दीहाए मज्िमाए धण-महिलविणासणं कुणइ पुरिसो | तइयाए पुण विज्ञा कणिट्टिया निंदिया जाण ॥४३॥ 
उत्तंगनहा धन्ना पिहुलेहिं नरा सुहाईं पावंति । रुक्खेहिं हुंति दुहिया आयरिससमेहिं रायाणो ॥०४॥ 
तंबेहिं विहवरभोगी पउमेहिं सुह्दी निवो य अरुणेहिं । समणो सिए॒हि जायइ दुस्सीलो पुप्फियनहेहि ॥४५॥ 
अइदीह र-खरजंघा वराहजंघा य कायजंघा य | ते हुंति दुक्खभागी अद्धाणं निश्चपडिवन्ना ॥४६॥ 

जे हंस-वसह-चक्काय-मोर-गयगमणगामिणो पुरिसा । ते हुंति भोगभागी गईहिं सेसाहिं दुक्खत्ता ॥9७॥ 
जाणू जस्स भवे गूढो गुंप्फो वा सुसमाहिओ । सो भवे सुहिओ निशञ्व॑ घडजाणू न सुंदरो ॥४८॥ 

जइ दाहिणेण वलियं लिंगं तो होइ पृत्तवं पुरिसो । अह वामे तो धुया भोगा पुण उज़्जुए हुंति ॥४९॥ 
दाहिणपलंबविसणे पुत्तो वामम्मि होइ पुण धूया । हुंति समे सुय-भोगा दीहर-बट्ढेसु य इमेसु ॥५०॥ 
मंसोवचिया पिहुछा होइ कडी धन्न-पुत्तताभाय | संकड-हुस्साए पुणो होह दरिद्वो विएसी वा ॥५१॥ 
वडुयरं भोगकरं हुस्सं वर्क च होइ विवरीयं । समकुच्छी भोगड्ढो उन्नयकुच्छी वि सिरिकलिओ ॥५२॥ 
वामावद्ट तुंगं अपसत्थं नाहिमंडर् भणियं । गंभीरदाहिणावत्तसंगयं तं॑ पुण पसत्थं ॥५३॥ 

अंसत्थलं विसालं समुन्नयं मंसलूं सुरोमजुयं | विसमहियया द्रिद्या सत्थप्पहया विणस्संति ॥५४॥ 
महिसग्गीवो सुहडो कंबु ग्गीवो नराहिवों होइ । बहुभक्खी गुरुदुक्खों पुरिसो अइदीह-किसगीबो ॥५५॥ 
आजाणुपलंबा अप्परोम पीणा कमेण वद्चधा य | होंति पसत्था बाहू अकम्मकढिणं च हत्थयलं ॥५६॥ 
सरलाओ कोमलाओ करंगुलीओ सुदीहजीयाणं । सण्हा मेहावीणं कम्मयराणं तु थूठाओ ॥५७।॥ 
लहुओट्टी दुहभागी सुभगो पीणोट्ठटओ मुणेयव्वों । भोगी य पलंबोद़ी विसमोट्टो भीरुओ भणिओ ॥५८॥ 
सुद्धा समा पसत्था घणा सिणिद्धा य सिहरिणो दंता । रत्तं तालुं सुहयं कसिणं नीलं च दुहहेऊ ॥५९॥ 
बत्तीसाए नरवई एगत्तीसाइ भोगसुहभागी । तीसाए मज्ञिमगुणो दन्‍्ताणमओ परं असुहो ॥६०॥ 
सारस-हंसाइसरा सुहया वायस-खरस्सरा दुहिया । सरला य सण्हविवरा समुन्नया नासिया धन्ना ॥६१॥ 
आययविउला कन्ना धन्नाणं लोमसा चिराऊणं । मू सयकन्ना मेहाविणो य दुहिया ससयकज्ञा ॥६२॥ 
उत्थल्लदिट्टिणो थोवजीविणो भोगिणो विउलदिद्ठी । पावाण अहोदिट्टी सरल जोएइ उज्जुमई ॥६३॥ 
तिरियं नियंति कूरा धन्ना उण उद्धदिद्विणो हुंति । काणाओ वरं अंधो केकयराओ वरं काणो ॥६४॥ 
विउलं अद्विंदुसमं धघण्णाण नराण होइ भालयलूं । अइविउलं दुहियाणं अइतुच्छ॑ तुच्छजीवीणं ॥६५॥ 
वामावत्तो भमरो अपसत्थो सीसवामपासम्मि । सो दाहिणम्मि पासे होइ सुहो दाहिणावत्तो ॥६६॥ 
भमराण विवज्ञासे भोगा जायंति पच्छिमवयम्मि । छत्तायारं सीसं होइ नरिंदाण अह केसा ॥६७॥ 

निद्धा घणा पसत्था मउया आकुंचिया य ते धन्ना । फुडिया मलिणा रुत़खा दारिदकरा भवे चिहुरा ॥६८॥ 


तिन्नि य गंभीराइं तिन्नि य विउलाइं हुंति धन्नाईं । हुस्साईं चडर सुहुमाइं पंच पंचेव दीहाईं ॥६९॥ 
छ घन्नयाईं रत्ताईं सत्त एएसि विवरणं भणिमो । नाभी-सर-सत्ताइं तिन्नि इमाइं गरभीराईं ॥७०॥ 


१. 'स्वेदनं' प्रस्वेदशाबि | २. “आदशंसमै:' दपंणतुल्येः || ३. ०जीहाणं रं० ! 


तथाहि-- 


भणियं च-- 


४१. विवेकिजनस्वकृतकर्मोदयोपनतद॒ुःखाधिसदहनाधिकारे सनत्कुमाराख्यानकम ३६४ 


वयणं उरं निडाल विउलाईं इमाइं तिन्नि धन्नाणं । लिंग॑ं पिट्ठुं कंठो जंघा चत्तारि हुस्साईं ॥७१॥ 
केस-दसणं-डगुलीपव्ब-नह-तया पंच मुणह सुहमाणि । हणु-नयण-थणंतर-बाहु-नासिया पंच दीह्वाइं ॥७२॥ 
छ चुन्नयाईं नह-हियय-नासिया-कक्ख-कंठ-वयणाईं । नयणंत-ओट्ठ-कर-चरण-जीह-नह-तालु रत्ताइं ७३॥ 
पंचहिं जीवंति सय॑ नउडं भालम्मि चउहिं रेहाहिं | ति-दु-एक्काहिं कमसो सट्टी चालीस तीसा य ॥७४॥ 
इय जा महिंदसीहो तीसे नरलक्खणं कहइ कुसलो । ताबुद्ठिओ कुमारो भणिओ य महिंदसीहेण ॥७५॥ 
सामि ! तुम विरहदुहिओ ताओ अंबा य चिद्दह सदुक्‍्खं । तो गम्मठ नियनयरं इय भणिए गयणमग्गेणं |७६॥ 
सिम्धं चिय संपत्तो कमेण रज्जेडहि्सिंचिओ पिउणा । जाओ य चक्ववट्टी सुहसाहियभरहछक्खंडो ॥3॥ 
अह सक्केणं रूवम्मि वण्णिए तस्स सुरसहामज्झे । दो देवा त॑ वयर्ण असहृहंता गयपुरम्मि |७८॥ 
माहणरूव॑ काउं दूरपहागमणकहियतणुखेया । पडिहारवयणव।रियमज्ञपवेसा पडिक्ख॑ति ॥७९॥ 
पज्ञयणमुहलवयणा मुद्धट्वियकविलकेसपब्भारा । वच्छत्थलविलसिरचंद्धवलजन्नोवइ्यरुदरा ॥८०॥ 
सिंगग्गलमदवजलणगरुयजालाकलावपडहच्छा । पवडंतबंभसुत्तियनिम्मलनिज्भरणरमणीया ॥८१॥ 
वेयज्ञयणमणोहरसउणगणारावमुहलियदियंता । महिहरसद्दायन्नणसमस्सिया सज्झ-विंज्कू व्व |॥८२॥ 
रायाणुन्नाए पवेसिया निव॑ विहियण्हाणनेवच्छे | अणमिसनयणा पेच्छंति रंजिया रायरूवेण ॥८३॥ 

रत्ना भणिया नियरूवसंपयागव्बमुब्वहंतेण | भो ! मह रूव॑ सम्म॑ पेच्छिय गल्छिहह सट्ठाणं ॥८४॥ 

एवं ति भणिय पेच्छंति जाव5लंकारियस्स से रूवं | तो वाहिसंकमे रूवहाणिमवलोइय विसन्ना |<५॥ 
पयडियरूवा कहिऊण वाहिसंकंतिमइगया सग्गं | राया वि हु नियदेहं दटठुं परिभावह मणम्मि ॥८६॥ 
जलजायबुब्बुयाओ वि गयणगयविज्जुविलसियाओ वि। खलमेत्तीओ वि कुसग्गलगाचलजललवाओ वि |८७॥ 
सरयघणाउ वि संझारायाउ वि खरसमीरणाओ वि। संसारियवत्थूणं घिरत्थुमथरिरत्तममिमाण ॥८८॥ 

तम्हा अथिरेण थिरं निश्चमणिच्चेण सुहयमसुहेण । देहेणिमिणा धम्मं क्रिणामि कि बहुवियप्पेण ? ॥८९॥ 
इय पसरियसंवेगो तणं व चइऊण चक्कववद्टिसिरिं | विणयंधरगुरुपासे निक्खंतो सो महासत्तो ॥९०॥ 
निहिणो रयणाणा55भोगिया य अंतेउरं च पलवंतं । चउरंगबलं भमियं पट्टीए तस्स गुणनिहिणो ॥«१॥ 
छम्मासे जाव परं जाओ सिंहावलोयणेणावि । निस्संगसिरोमणिणा अवलोइय ते ण मणयं पि ॥९२॥ 
पारणयदिणे छट्ठस्स छेलियातकसंजुओ लड्धो। चीणयकूरो भुत्तम्मि तम्मि अप्पत्थसेवणओ ॥९३॥ 
आवइपडिय॑ सुयणं व दुज्जणा इव गया बहुं कुविया । ते बाहिउं पयत्ता पयडीहोऊण मुणिनाहं ॥९४॥ 


पढम॑ मणयं सोक्खं कंडुयमाणस्स तयणु दाहदुहं । भज्जंति नहा जीए सा कंट्ू से समुप्पन्ना ॥९५॥ 
असुहच्छी रणरणओ रोया अन्ने वि सयगुणा जम्मि | आहारारुइछूवो संजाओ से महारोगो ॥९६॥ 
उत्तोलिज्ज्‌ह चकखू गरंति नयणाइं संकुडइ दिद्ठी । जम्मि न निद्दालाहो सो जाओ अक्खिरोगो से ॥९७॥ 
अणवरयजठरसंभववायावत्तुब्भवा महापीडा । जम्मि भवे महरिसिणो सो जाओ कुक्खिवाही वि ॥९८॥ 
पबलुद्धसमीरवसुच्छलंतगु रुसासभरियहिययपहो । उक्खणियसब्बगत्तो कासो सो तस्स संजाओ ॥॥<4९॥ 
सन्वरुयाणं पमवो महागओ जीवसत्तनिम्महणो । अइदुसहों तिव्वजरों संजाओ तस्स तवनिहिणो ॥१००॥ 
पूरिज्ममाणहियओ दुव्विसहो गमणखलूणसंजणओ । कासविसेसो सासो वि तस्स तइया समुप्पन्नो ॥१०१॥ 


“कंडू अभत्तसद्धा तिव्वा वियणा य अच्छि-कुच्छीस । कासं जरं च सासं अहियासे सत्त वाससए ॥१०२॥ 
एगेगो वि हु एसो5वरस्स जीवियहरो न संदेहो । सो उण सत्त वि समगं अहियासइ ते महासत्तो ॥१०३॥ 


१. रत्नानि “आभियोगिकाश्व' किक्नरदेवाश्च । 


झदेदे आश्यानकर्माणिकोशे 


वाहिसमूहो सो तारिसो वि परलोयबद्धलक्खम्मि | सज्झाय-झाणवावडमणम्मि असमाणुभावम्मि ॥१०४॥ 

आबाहं वाबाहं व तम्मि न कुणईइ मणागमवि अहवा | आवडिओ वज्जसिलायलूम्मि कि कुणउ सत्थगणो १ ॥१०५ 
सम्ममहियासमाणस्स रोयनियरं विसुद्धलेसस्स । जायाओ तस्स दुकरतवचरणपभावजणियाओं ॥१०६॥ 
आमोसहि-विप्पोसहि-खेलोसहिपभिइओ अणेगाओ | पत्थुयरोयावहरणकरणसमत्थाओ लद्बीओ ॥१०७॥ 

परमेसो न सयं॑ चिय कुणइ चिगिच्छं, न कारवइ भ्रज्नं । निप्पडिकम्मसरीरों परिभावह एरिसं--जीव | ॥१०८॥ 
अणुहवसु सकयमेयं इहइं चिय कज्जकारिणो दंढ्े । अकयं को वि न पावह भगीरही नागवहणं व ॥१०९॥ 
पुणरवि सुरनाहो5संखदेवभडकोडिसंकड़स्‍्थाणे | उब्भडकिरीड-केऊर-कडय-वरकुंडलाहरणो ॥११०॥ 
जम्मन्तरनिरुवमगरुयपुन्नपब्भारवससमुब्भूए । क्षणुभवमाणो पंचप्पयारसुरसंभवे भोए ॥१११॥ 

पेच्छइ पडिपुन्न॑ मणुयलोयवित्थारमोहिणा कुकर्म | तत्थ वि य वाहिविहुरियसरीरमप्पाण काणगयं ॥११२॥ 

तेएण रवि व सणंकुमाररायरिसिमाग्ररेण बहन । भुवणच्चब्भुयतच्चरियरंजिओ भणह गुरुसद्दं ॥११३॥ 

भो भो देवा ! एसो सणंकुमारो निरीहराष्रसिरी । अच्चंतवाहिविहुरियतणू वि न चिगिच्छमायरइ ॥११४॥ 

त॑ सोऊरणं ते चेव पुव्वदेवा दुवे असहृह्णा | विउरुव्विय सव्वं सबरवेज्जरूवं समणुपत्ता ॥११५॥ 

रायरिसि पह वाहीण नामगाहं भमंह्लषि भासंता । खंधावलंबिपुट्लयदग्वकोत्थलयरूवबधरा ॥११६॥ 

तत्तो रिसिणा सज्काय-माणवाधाबकारया एए । इय बुद्धीण भणिया भो ! किमिह निरत्थयं भमह ? ॥११७॥ 
तेहुत्तं तुज्म बयं कुणिमो किरिय्रं गयाभिभूयस्स । मुणिणा वि हु केरिसयं मह किरियं कुणह १ ते भणिया ॥११८॥ 
कि दव्बवाहिकिरियं ? हयाहु मे क म्मभावगयकिरियं  । तेहुत्तं केरिसया दव्वे भावम्मि वा किरिया ९१ ॥११९॥ 
मुणिणा भणियं दुन्नि वि चद्धत्विदहाओ इमाओ भणियाओ । दब्वकिरियाए इणमो चउव्विहत्तं भणंति बुहा ॥१२०॥ 


तथथा--- 
भिषग्‌ द्रव्याण्युपल्थाता, रोगी पादचतुष्टयम्‌ । चिकित्सितस्य निर्दिष्ट, प्रत्येक च चतुगुंणम्‌ ॥१२१॥ 
दक्षो विज्ञातशास्त्रा्ओों, दृष्टकमों शुचिभिषग्‌ | बहुकल्पं बहुगुणं, सम्पन्न योग्यमौषधम्‌ ॥१२२॥ 
विनीतो लोभजितू क्षान्तो बुद्धिमान प्रतिचारक:ः । रोगी त्वाब्यो मिषग्‌ वश्यों ज्ञापकः सत्त्ववानिति ॥१२३॥ 
एयाए दव्ववाही असायकम्मक्खओवसमभावा । दव्वाईए सहकारिकारणे पप्प खयमेहइ ॥१२४॥ 
नवरमणेगंतमभवो एसो5णन्चंतिओ य नायव्वो । जं दव्वाओ अपहाणभावखवणाओ संजाओ ॥१२५॥ 

भणियं च-- 


कायकिरियाए दोसा खविया मंडुकचुत्नसरिस त्ति। भावकिरियाए पुण*"**************** ॥१२६॥ 

हक कक लक हक वाहिदेउणो5सायभावरूवस्स । कम्मस्स खवणओ भावओ य खबणाओ भावखओ ॥१२७॥ 
एगंतिओ य एसो नेओ अच्चंतिओं य भावखओ । पुणरवि य अखवणाओ विसिट्टसुहकारणाओ य ॥१२८॥ 
एयाए पुण वेज्जो सत्थत्थविसारओ सुई सोमो | किरियाकलावकुसलो सत्तहिओ सुहगुरू नेओ ॥१२९॥ 
दव्वाणि नाण-दंसण-चरणाणि रसायणप्पकृप्पाणि । तइओसहसरिसाणि य परिणामसुहाणि नेयाणि ॥१३०॥ 
पडिचारगा उ इह धम्मबंधुणो मोक्खकंखिणो मुणिणो । खंता दंता मुत्ता जिंदिया विणयसंपन्ना ॥१३१॥ 
रोगी पत्थुयसाह गुरुआणाकारगो महासत्तो | इहलोयनिप्पिवासो सिद्धिवहबद्धरागों य ॥१३२॥ 

एयाए भावकिरियाए वट्टमाणा पवज्जियपमाया । परमारोग्गं पावंति सिवसुहं पहयदुहजाला ॥१३३॥ 

ता भो महाणुभावा | एयाए मज्क दव्वकिरियाए। उवरिं न पकखवाओ किमेत्थ भणिएण बहुएण १ ॥१३४॥ 
जह पुण होज्ज5हिलासो एड्टेए दव्ववाहिदलणीए | ता अलरूमिमीए पेच्छह सामत्यं मज्झ लद्बीए ॥११५॥ 

इय वोत्तणं तेसि समकक्‍्खमह निययवयणकुहराओ । घेत्तृ" निटठुहणं वामतज्जणी मद्दिया दूरं १३६॥ 


१, एरिसं चेव २० । २, कर्मभाववदक्रियाम्‌ । 


अवबरं॑ च--- 


४१. विषेकिजनस्वकृतकर्मोंदयो पनतहु:लाधिसदनाधिकारे सनत्कुमाराख्यानकम्‌ ३६७ 


पेच्छंति सड् सोलसवण्णियकणगोवमं तय॑ सव्बं | विम्हहयमणे ते भणइ सबरवेज्जे य रायरिसी ॥१३७॥ 

भो भो | जह एयं निययमंगुलिं काउमहमिह समभत्यो । तह सब्बं पि सरीरं काउं मह अत्थि तबसत्ती ॥१३८॥ 
किंतु इय लद्धिउवजीवणम्मि जायम्मि भावकिरियाए। होह अपत्थासेवणरूवों दोसो जओ भणियं ॥१३९॥ 
जह वाहिओ उ किरियं पवज्बिउं सेवई अपत्थं तु | अपवन्नगाओ अहिय॑ सिम्धं च स पावइ विणासं ॥१४०॥ 
एमेव भावकिरियं पवज्जिउं कम्मवाहिखयहेउं | पच्छा अपत्थसेवी अहियं कम्म॑ं समज्जिणई ॥१४१॥ 


कारणपडिसेवा वि हु सावज्जा निच्छएण करणिज्ञा । बहुसो वियारदत्ता अवारणिजरेसु कज्जेसु ॥१४२॥ 
जइ वि हु समणुन्नाया तह वि हु दोसो न वज्जणे दिद्लो । दढधम्मया हु एवं न य भिक्‍्खनिसेवनिदयया ॥१४३॥ 
ता भो ! न भावकिरियामालिन्नकर्रिं अहं करावेमि | तुब्भेहिं दव्बकिरियं पज्बत्तमहप्पसंगेण || १४४॥ 
चिंतियमिमेहिं सच्च॑ पयंपई सव्वहेव सुरनाहो । ठाणे गुणाणुराओ गरुयाणं मच्छरों को ने ? ॥१४५॥ 
संहरियविज्ववेसा साहावियरूवसुंदरावयवा । मणिर्यणघडियभूसणकलावपहभासु रसरीरा ॥१४६॥ 
ते विजय-वेजयंता देवा सिररहयकरकमलकोसा । रायरिसिं सुहभावा उवद्ठिया त॑ं पसाएउं ॥१४७॥ 
गयणामोयं पिय पयइवित्थयं निम्मर्ूं निरुवलेवं | तारपहानिन्नासियतमपसरा सूर-ससिणो व्व ॥१४०८॥ 
धन्नो सि तुमं कयलक्खणो सि मुणिनाह ! सुकयपुन्नो सि | तुज्क सुलद्धं जम्मणजीवियजणियं सुहं च फलं ॥१४९॥ 
ज॑ं सक्ो देविंदों सुरराया त॑ं सलाहह गुणन्नू | सुरकोडीप॑रियरिओ सोहम्माए सुरसभाए ॥१५०॥ 
त॑ च असदृहमाणा समागया तुह परिक्खणनिमित्तं । ज॑ं भे झाणविघाओ विहिओ तं॑ खमह अम्हाण ॥१५१॥ 
इय मुणिसणंकुमारं खमाविउं लद्धिसंपयाभव्णं । आणंदनिब्भरंगा कुसलमणा थुणिउमाढत्ता |१५२॥ 
जय चत्तकुमार ! सणंकुमार ! वररूवनिज्ियकुमार !। सक्कषपसंसिय ! भयवं ! तुज्क नमो होउ मुणिनाह ! ॥१५३॥ 
जय तणसममन्नियचक्षव्टिछक्खंडवसुहविच्छड्ड ! । अंगीकयतवसंजम ! तुज्क नमो होउ मुणिनाह ! ॥१५४॥ 
जय अंतरंगरिउवग्गसेन्नमाहप्पद्लणदुल्ललिय | | पत्तमहामुणिवन्नण ! तुज्ञ नमो होउ मुणिनाह ! ॥१५५॥ 
जय विविहवाहिसमवायजणियवियणा<विसन्नममणपसर ! । अविचलसत्तमहानिहि ! तुज्ञ नमो होउ मुणिनाह | ॥१५६॥ 
जय अववायविवज्जियदुक्करउस्समपकक्‍्खसेवणओ । पालियपंचमहत्वय ! तुज्क नमो होउ मुणिनाह ! ॥१५७॥ 
जय अम्हवयणवज्बरियवाहिसंकंतिमेत्ततवणाओ । अवगयतत्त ! महामइ ! तुज्म नमो होठ मुणिनाह ! ॥१५८॥ 
जय दुव्वहअद्टारससीलंगसहस्सभरसमुव्वहणे । धोरेयधवलूसमगुण ! तुज्म नमो होठ मुणिनाह ! ॥१५९॥ 
जय विविहमहातवलद्विसिंधुसमवायपायनइनाह | । संहरियमणोविक्किय ! तुज्क नमो होउ मुणिनाह ! ॥१६०॥ 
इय थुणिय मुणियतव्वयमाहप्पकहापवंचणसयण्हा । सुमरंता तग्गुणनियरमाल्यं से वइंसु सुरा ॥१६१॥ 
साहू वि निययमाउयपज्जंतं जाणिऊण सुहलेसी । संवेगभावियप्पा गीयत्थगुरूण पासम्मि ॥१६२॥ 
वियडित्तु नाण-दंसण-चरित्त-तव-वीरियाण विसयम्मि । अइ्यारजायमुच्चारिऊण सम्मं गुरुवयाणि ॥१६३॥ 
खामेऊर्ण सब्वे चउगइसंसारबत्तिणो सत्ते । सुमरंतो अणवरयं हियए पंचण्ह नवकारं ॥१६४॥ 
पडिवज्जिऊण रागाइचरडलुंटिज्जमाणमग्गाणं । सरणम्मि साहुभूए सरणं चउरो5रहंताई ॥१६५॥ 
पतच्चक्खिऊण पयओ चउब्विह्ाहारजायमवि सब्वं | आराहणापडायं घेत्तुमउण्णाणमइदुलूहं ॥१६६॥ 
काल काऊण महासणंकुमारं गओ समाहीए । नियनामगं व कष्पं परिश्चयंतो वि तं चित्त ॥१६७॥ 
॥ सनत्कुमाराख्यानक समाप्तम ॥१२७॥ 


जह सकयकम्मकज्ज॑ पासजिणाईहि सम्ममहिसोढं । अवरेहि वि दुक्खमिमं तह सहियत्वं सुहत्यीहिं ॥१॥ 


१. त्यां श्लाघते गुणशः । २. परिकरित;-- परिवृतः । ३. बर्यंसु २० । 


छ्ददेद्र आश्यानकमणिकोशे शास्रोपसंदार: 


प्रस्ताव एष तव जीव ! पुनः कुतस्तयो, भूयोडपि मूढ ! ? मनसीति विभावयन्तः । 
यद्‌ यत्‌ समापतति कर्मवशादशम, तत्‌ तत्‌ समस्तमपि धीरधियः सहन्ते ॥२॥ 
॥ इति भ्रीमदाम्रदेवसूरिविरचितवृत्तायाख्यानकमणिकोशे विवेकिजनस्थकृतकर्मोद्योपनतठुःखाधिसद्द नो नाम 
एकचत्वारिशो<घिकार: समाप्त इति ॥४१॥ 


>> ५ बेट०८ 


[ शास्रोपसंहारः ] 
हृदानीं शाखकारः शाखवक्त्यतामुपसंहरन्‌ शाखगतपठनादिफल च दिदशेयिषु रिदमाह-- 
अक्खाणयमणिकोसं, एयं जो पढह कुणह जहजोगं | 
देविंद-साहुमहियं, अश्रा सो लद्ृह अपवरग्गं ॥४३॥ 
॥ रृतिरियं सेद्धान्तिकशिरोमणिश्री मन्नेमिचन्द्रसूरेरिति ॥ 





व्याख्या--'आख्यानकमणिकोशं' व्यावर्णितामिधेयम्‌ 'एतं' पूर्वोक्तस्वरूपं “जो पढ़इ” “यः” पुण्यवान्‌ 'पठति” व्यकतं कण्ठे 
धारयति 'करोति' विधत्ते 'यथायोगम्‌! औचित्याराधनेन 'देवेन्द्र-साधुमहितं' सुरपति-मुनिपूजितम्‌, अपवर्गविशेषणमिद्म्‌ , 'अचिरात्‌! 
शीघ्रमेव 'सः” जीवः 'लभते' प्राप्नोति 'अपवग” मोक्षमिति गाथाक्षराथ: ॥ भावाथंस्तु अन्नापि गाथायां देवेन्द्रेति साध्ववस्थायां 
निजनामविशेषणमध्ये विरचितमिति । 
वृत्ति विधाय यदिमां महतीं मया55पत, पुण्य॑ पवित्रितजगल्रयचित्तवृत्ति । 
तेनाशु भव्यनिवहों लभतां भवाब्धो, सद्यानपात्रमिव बन्धुरबोधिवीजम ॥१॥ 


॥ आख्यानकमणिकोशवृत्तिः समाप्ता ॥ 


ही अंधे प्रशस्तिः ॥ 
शानादिस्नवृसतिजेनमात्यक्क्मीजन्माप्रभूमिरभितों बहुसत्वसेव्य: । 
निर्धोतिकर्ममलनिर्महघरमनीर:, क्षोणीरदाश्रितगरिष्ठगरभीरमध्यः ॥ १॥ 
अच्युतप्रबणावासो, मर्यादाउनतिवर्तकः । अस्ति स्वच्छो बृहह्नच्छ:, श्रीमान्‌ नाथ इ्वाम्भसाम्‌ ॥२॥ 
इति नीरघितुल्यगुणे, दयासुधापास्तजन्म-रुगु-मरणे | कंसिदतिशायिनि समये, शिष्टाः | निशमयत यजातम्‌ ॥३॥ 
घुनिविुध[वि]श्तजिनमतमन्दरमधिमध्यमानतन्मध्यात्‌ । स्फूजेन्महाप्रभाव:, प्रादुरभूद रम्यरत्नचयः ॥४॥ 
तथा हि--- 


श्रीदेवद्ध रि! सुमनःसमृद्ध:, समुकृसत्सत्फलपत्रशाखः । कुतोडप्यथो आविरमूदमुष्मात्‌ , सुरावगीतोषनिपारिजातः॥५॥ 
अनेकबिकृतिक्रियाकुटिल्कर्मरूपा मया- 
5पद्दारकरणक्षमः श्रुतिविचारदक्ष: शुचिः । 
प्रवृद्धकरुणामृतस्समुदपादि धन्वन्‍्तरिः, 
श्रियां पदमनागसामजितद्रिरेय: सताम ॥६॥ 
रुचिरचरणयोगाद दुधरैरावतो5भूदनुपममदवारिप्रोक्सत्कीर्तिषण्टः । 
प्रकटितसकलाद़ो मोहसैन्याप्रधृष्यो, विवुधपतिनिषेव्यः श्रीमदानन्दसरिः ॥७॥ 
समुन्नत्याधारः स्वरगतलसल्रक्षणघर:, श्रतिश्रेयानंशिदेधदपरचिह्ञानि नितराम्‌ । 
विनिय॑त्सद्वेती सुविषममहावादिसमरे, स्फुरततेजोदप्यत्तरलनयनोअश्वश्ञ निरगात्‌ ॥८॥ 
श्रीनेमिचन्द्रसूरियेः कर्ता प्रस्तुतप्रकरणस्य । सर्वज्ञागमपरमार्थव्रेदिनामग्रणीः कृतिनाग्‌ ॥९॥ 
अन्यां च सुखावगमां, यः'कुतवानुत्तराध्ययनहृत्तिम्‌ | लघुवीरचरितमथ रत्नचूडचरितं च चतुरमतिः ॥१०॥ 
शश्व॒त्पण्डितमण्डलीकुमुदिनीकान्ताप्रमोदावह:, 
सवज्ञागमदेशनामृतकरेरनिर्वापपन्‌ मेदिनीम्‌ । 
भारवत्सन्मुनितारकेषु नियत सन्नायकत्वे दधत्‌ , 
स श्रीमानुदियाय यो निजकुछन्योमान्नगालढकऊति: ॥११॥ 
सूरिः श्रीजिनचन्द्रथन्द्रों निःशेषजनमनोदय्रितः । सौम्यत्व-कलाकित्वप्रश्ृतिगुणानां स्वकुलभवनम्‌ ॥१२॥ 
तच्छिष्य: प्रथमपदे, श्रीपदवाना55श्नदेवस्ध रिस्भत्‌ । अपरोडपि तत्कनिष्ठ:, श्रीमान्‌ श्रीचन्द्रदरिर्भृत्‌ ॥१३॥ 
इतअ--- 
यो मेदपाटाध्युक्तोउपि घीमान्‌, दयाघनो धार्मिकमध्यवर्ती । 
सत्साधुताधर्मकृतामिलाषः, सुश्रावकर्त्वं परिपाति सम्यक्‌ ॥१४॥ 
मारावलया अल॒कश्रेष्ठिवर्यों, मुक्त्वा स्वीयं धाम द्वेतोः कुतथ्ित्‌ । 
आयातो5साबबुदाभःअदेशे, तत्राप्यासीत्‌ स्वेगुणेः सुप्रसिद्रः ॥१५॥ 
किल्ल--- 
कासहदधाम्नि निज, धम्येँ धाम प्रवर्तितं येन | पोषधशाहा सच्छावकादिधर्मायमत्यर्थव्‌ ॥१६॥ 


१ “आये:” पूज्य: ॥ 
 । 


आश्यानकमजिकोदबुसिप्रशस्तिः । 


आजन्मापि जिनेश्वरस्थ सदने बिम्बे जिनाभ्यचेने 
तीर्थानाममिवन्दने जिनमतब्याडेखने5छढकृतौ । 
श्रीमत्सूरि-मद्दत्तरापद-जिनप्रवाजनादाौ झुर्म, 
धर्माथ व्ययतो धन सफलतां यस्याउगमद धीमतः ॥१७॥ 
स सिद्धनागः ''''सुलब्धजन्मा, सदाकृतिधेर्मविश्वुद्धकर्मा । पुत्रो3भवत्‌ तस्य जनप्रसिद्ध:, पुण्यानुभावाथ सदा समृद्धः ॥१८॥ 
तस्मादपि दौस्थित्यात्‌, कुतोषपि धबलकके समायातः। आस्ते स सिद्धनामा, तत्रापि जने गुणेः अधथितः ॥११९॥ 
अन्य येन कारितमतिरम्य भव्यजनमनोहारि। सीमन्धरनिनबिम्बं॑ रमणीये मोदचैत्यग्हे ॥२०॥ 
त्यागी भोगी देव-गुर्वादिभक्तो; जैने धर्मे प्रेमरागानुरक्तः । वारद्धेक्येडमूदेक उद्योतनाहः, पुत्रस्तस्य त्यक्तदुष्द्रेजिइः ॥२१॥ 
श्रीनेमिचन्द्रसरेबॉक्यात्‌ तदनु स्वशिष्यमणनाथ । उद्योतनसच्छावकविशेषसद्धक्तिबचनाथ ॥२२॥ 
तत्रैव बृहद्नच्छे रनाकरसलिमे प्रसूतेन । प्राकृतमणिकल्पेन, श्र॒त-गुरुबहुमानसहितेन ॥२३॥ 
श्रीपदसब्तनाम्ना, श्रीमज्िनचन्द्रद्ध रिशिष्येण । रचिता5<श्रदेवमुनिपेन दृत्तिरिषा स्ववोषेन ॥२४॥ 
व्याख्याभन्ञप्ताविव, लब्धवरायामिहापि सदडृत्तो । श्रुतिसुखदवरणेरुचिरा, विचित्रगम-भज्नरमणीया ॥२५॥ 
सुब्यक्तमेकचत्वारिशदनूना भवेयुरधिकारा: । तत्र सतानी च विचारश्रता अड्यहृत्ताथ (?) ॥२६॥ 
सत्त्वपि नानारूपेबु पूवेकविभिर्विशिष्टमतिविभवै: । रचितेषु शास्नविवरणकथा प्रबन्वेषु सरसेषु ॥२७॥ 
कौटगिद मत्काव्ये ! तदपि ग्राह्म॑ कृतप्रचुर॒करुणैः | मयि वह्वभमाध्यस्थ्ये, माध्यस्थ्यगुणान्वितेः सद्भिः ॥२८॥ 
उन्दोलक्षणविकर्ं, समयोत्तीणँ च यत्‌ किमपि लिखितम्‌। तब्छोध्य बिदृद्धि,, कृताजल्षिः प्रार्थये भवतः ॥२९॥ 
अन्यज् नेमिचन्द्रा गुणाकराः पाश्वेदेवनामानः । एते त्रयोईपि गणयो विपश्चितों मुख्यनिजशिष्या: ॥३०॥ 
साहाब्य कृतकतो मम केखन-शोधनादिशत्येषु ॥ आधानोद्धरणे चर प्रमादबिकलाः कलाकुशला: ॥३१॥ 
नवत्या युक्तेषु प्रथितयशसो विक्रमनृपा- 
च्तेषु क्रान्तेबु त्रिनयनसमानेषु शरदाम्‌ | 
अजय्ये सौराम्ये जयति जयसिंहस्य नृपते-, 
रियं स्थानीये5गाद धवलकपुरे सिद्धिपद्वीम्‌ ॥३२॥ 
श्रेष्ठिकश्ञोनागस्या55रव्धा वसताववस्थितेः सद्भिः । बसतां सम्यगवसिता वसतावच्छुप्तसत्कायाम्‌ ॥३३॥ 
भुवनानीव चतुदेश धातुर्मम रम्यवर्ण-पदभाज्नि । अक्षरगणनाद ग्रन्थों जातोअनुष्टुप्सद्ताणि ॥३४॥ 
मानसगर्मे स्थित्वा, रक्षणयुगयं सपादनवमासः । आख्यानक्मणिकोशः, सुत हव समपाचि सदबृत्ति: ॥३५॥ 
यावशन्द्रथ सूयेश्च, यावन्मेरुमहीतलम्‌ । स्वर्गा-उपवरगेबत्‌ तावनन्थादेषाउपि मत्कृतिः ॥३६॥ ग्रन्थाग्रमू १४००० ॥ 


- ॥ इति श्रीमदाम्नदेवस्धरिविरचितहत्तादाउ्यानक्मणिकोशह त्ति[ प्रडस्तिः ] समाप्तेति ॥ 
- शिवमस्तु सबेजगत:, परद्वितनिरता भवन्तु भूतगणाः । दोषाः प्रयात्लु नाश, सवेत्र सुखी भवतु छोकः ॥१॥ 





१. भाजि-प्रतौ 


१ 
प्रथम परिशिष्टम्‌ 


आखरूयानकर्मा गकोश-तट्टीकान्तगंतानां विशेषनाम्नामकारादिक्रमेणालुक्रमः 
[# एताटक्फुडिकाडितानि विशेषनामानि मूलग्रन्थगंतानि ब्लेयानि ] 


नाम क्रम! पतन्रम्‌ 
भर 

भहयुत्तय.[ निम्नम्थ-मुनिः ] ७३ 

अउज्यञा [नगरी] ८१,११०,३२२ 


*अकलाणयमणिकोस [ प्रस्तुतम्रन्थः] १,३६८ 


अरगमंदिर [ पर्वतः ] २११ 
अग्गिकुमार [ देवजातिः ] ३१६ 
अग्गिजाला [ ब्राह्मणपत्नी ] ७५६ 
अग्गिमीद [ रथः ] १५,१६ 
अग्गिभृर [ ब्राझ्मणपुन्रः ) ७५६ 
अच्चुय. [ देवलोकः ] २०,७१३,३२५ 
अच्छुपस.. [ श्रेष्टी-टीकाप्रशस्ती]) ३७० 
अजितसूरि [ निगप्रन्थ-आचायेः, 
टीकाफ्रशस्तौ ] ३६९९ 
अजिय [ तीर्थंकरः ] ३२३१ 
अजियजस॒ [ निप्रेन्थ-मुनिः] १७५२-७३ 
अजियसेण [ राजपुत्रः ] २४९ 
अजलउड [ निप्रेन्थ-स्थविरः]. १७४ 
ऊँ )) 35 १६८ 
अज्सुहृत्थी हु १३२३-२५ 
अद्गण [ मह्ठः ] २६१ 
अद्वारसचक्वेह [ आभूषणम्‌-हारः ] ११९ 
अद्डवावय [पर्बतः | : ५५,३२२ 
अर्णगसरा [ राजपुत्री ] ६८ 
भअणंगसेणा [ गणिका ] २६१,२३११ 
अणंत [ तीर्थंकरः ] ३२३ 
अगादिद्वि [ देवः ] ५ 
अणिमंजिया [ नगरी ] १५५ 
अणोलिया [ राजपुत्री १४६-४७ 
अदय [ देक्षः ] ९९ 
32 [ लगरम्‌ ] ९९,९०० 
१७ (राजा) ९९,१०० 


>> 
नाम किम्‌ १ पत्रम्‌ 
*अदहयकुमार [ राजपुत्रो निग्रन्थ -मुनिश्च ] ९७ 
अहय+कुमार, . ,, ९९,१००, 
कुमर १०२-३ 
अहया ( राज्ञी ९९ 
अनिलबेअ ॥ [ विद्याघरपुत्रः: ] ८६ ८७ ८ 
40२8 | [ विद्याधरपुत्र: ] ८६ ८७ ८९ 
अपइब्टाण.. [ नरकः ] ११८ 
अपराजिता [राशी ] ६० 
+अभय [ राजपुत्रोब्माध्यश्व ] ३ 
अभय+कुमार ». ३,१२-१७ २०, 
२३, २०, ३१, ९९ 
१००,१०१, १०३, 
१०७, ११६. ११८, 
१२२७-२९, २२९- 
३०, २३२, २४३, 
३३३२ 
अभया राज्ञी) १४०,१४२-४६ 
अभिनंदण [ तीर्थकरः ] ३२३ 
अमरदत्त. [ श्रणिकपालित- 
राजपुत्रः: ] २०१-७,२१० 
अमियगई [ विद्याधर' ] २११-१२ 
अमियतेय [ निग्नन्ध-आचायः ] ३४१ ३४३ 
, अम्मड-अम्बड [ परित्राजझाः |] ९६९७ 
अयल.[ भ्रष्ठी सार्थवाहः ] ४० ४१,४३ 
हर [ सुभटः ] ८४ 
अयलपुर [ नगरम्‌ ) ५३ 
अर [ तीर्थकरः ] ३२३ 
#अरहलय [ निग्नेन्थ मुनिः ] २७१ 
अरदर्षक-य 5 २७१-७२, 
अरिह० | ३०५,३४७ 
अददभक 
अरिट्िनेमि [तीर्थकर:] १३१४,३५३ 


नाम किम पत्रम्‌ 
अरिदमण [राजा | २६४-४७ 
अरिमदहण »8 १९१ 
अरिहहासी [ भ्रेप्ठिपत्नी]) १४०-०१ 
अरिदिम [ वणिक्‌ ] २१९ 
अरिहमित्त हि २१९ 
अरुणाभ[ विमानम्‌ ] २४० 
अबुद [ पर्बतः, टीकाप्रशस्तौरी ३६९ 
अहृक [श्रष्ठ, ,,  ) १६९ 
अवराश्या [ श्रेष्ठिपत्नी ] १५१ 
अवंतिणी  [राजपुत्री ] १०६ 
अवंतिवद्धण [राजा ] १०६ 
अवंती [ देशः ] १९५,२७८ 
[ नगरी ] १६,१५९, 
१६९,२२७ 
असियक्सख [ यक्षः ] ३६३ 
असोग [ सालाकारः ] १०७ 
असोगचंद [राजा ] २्ऊ३े 
असो गचंद | ( राजपुन्रों राजा च ]३३३-१४ 
कोणिअ 
कूणिअ 


असोगवणिया [ वाटिका ] 
असोयसिरी [राजा | 
अस्सावह्ाार [विद्या ] 
अंगा [ देश: ] 
अंगामंदिर [ पर्वतः ] 
अंजण रे 
अंधगबन्दि [ राजा ] 
ञा 


[ कुद्धम्बी ] 


*आशइच 


३३३०-२४ 
१२४ 

पद छे 

६५ 

१६९ 
२२० 


्छ 


२१८ 


आख्यानकमणिकोश [प्रहहुतग्रन्थः] १,२,१७, 
४६, ६७, ८०,९५, ९७, 
१०३,११,३,१२०,१९४६, 


बढ 


किम ! पतन्नम्‌ 
१२१५,१२९,१ ४६,१४७, 
१६०,१६६,१६८,१७ ५, 
१७७-०८, १८९,१ ८ ८, 


२१८,२२६,२३८,२५१, . 


२४३,२६२,२६७,३७३०० 
७१, २७४, २७६,२८९, 
३०४,३२१, ३ २६,३५४, 
३५०,३६ <,३७० 

आंगणसम्म [ जाह्मण: ] १५३२ 
आंगासरेवई [ देवता ] १५७ 

आनन्दसूरि [ निप्रेन्थ-आचार्यः, 
टीकाप्रशस्तौ ] ३६९ 

आज्रदेवसूरि [ निश्रेन्ध-आचार्यः, 
प्रस्तुतप्रभ्थटीकाकार: ]१७,५६, 
६०,८०,९७५,९७,१ ०३, 
११३,१२०,१२३,१ २५, 
3३3९,१४६-५७, १६०, 
१ ६ ६ १ दै्‌ «,१ ७५,१ 33, 
१७८,१८२,१८८,२१८, 
२२६,२३८,२४१,२४३, 
२६२,२६७, ३२७०-७१, 
२७४,२७६,२८९,३०४, 


३९२१,३२६,३२५४०,३५०, 
३६८--७० 


आयामुद्द [ नगरी ] १०९ 
आदककुभार [ राजपुत्रो, निर्भन्थ- 

मुनिः] ९७,९९,१०३ 
आयेखपुट [निर्मन्थ-स्थविरः]१६८,१७४-७५ 
आवशस्सगविवरण [ जेमागमः ] १८४ 


जावस्सय $ १७१ 
आससेण [राजा] १०७,११५,१५१ 
| 
इलादेवो. [ देवी ] ९१ 
इलापुत्त [ श्रेष्िपुत्रः ] ९१९२ 

9 8) <१ 
इलापुत्र 3 <१,९५ 
इलतावद्चण._ [ नगरम्‌ ] ९१ 
इंदमद [ उह्सवः ] १४२ 

ई 
ईशान [ देवछोकः ] १३३ 


माम 
ईसर 


ई्साण 


उश्गसेण 
. उजबणी 

उर्जित 

उजंणी 


प्रथमं॑ परिशिक्षम 


किम्‌ 
| श्रेष्ठो ] 


[ देवलोकः ] 


जु 
[राजा ] 
[ नगरी ] 
[ पर्बेतः ] 


पत्रम्‌ 
२०३,२०५ 
२६,२६१ 


२४०,३३१ 
१९७५ 
२४०,३१३ 


[ नगरी ] ५,५,१५,१६,१९, 
४२, ४३, १०५, १२४, 
१५१,१५०,१ ६ ३,१७१- 
७२, १९१, २०१-३, 
२०८,२२५,२६१,२७५, 


३५६-५७ 
उत्तरज्सयण [ जेनागमः ] 
उत्तराध्ययनवृत्ति [ ,, , टीकाप्रशस्तौ ] ३६९ ' 


३२५ 


उत्तरापह [ देशः ] २९१ 
उदयण राजा ] १५,१ ६ 
उदाइ [ राजपुन्रः ] २३४ 
उद्योतन [ श्रेष्ठी, टौकाप्रशस्तौ]) ३७० 
उपकोशां [ गणिका ] १८३-८४ 
*उयपकोसा 4 १८३ 
उबिद [ कृष्ण-वासुदेवः ] ७३ 
उसभ [ तीर्थकरः ] ३२३ 
उसहृदत्त | श्रेष्ठो ] १४० 
उसीरावश्[ नगरम्‌ ] २१३ 
उसुवार कि २७५ 
क' [ राजा ] २७५ 
ञ्रु 
ऋषिदता [ तापसपुन्री ] २४०४-४५,२६१ 
प्‌ 
एलउर [ नगरम्‌ ] १०७ 
कक 
कक [ राजा ] १०५ 
कटपूतना [देवी ] ३०२ 
क्‌ट्ठ | ्रेष्ठी ] १७ 
कंडय [ राजा ] ३२९ 
कढ़ [ तापसः ] ३५१-५२ 
#कणगकेड [राजा, अमात्यपुशत्रः] ३२६ 
कणगकेउ- गज्प्नआ ,, ३४३ 


भगाम 


कभमगरह 
कणयरुय 
कणयप्पहा 


कणयमाला [ विद्याधरपेत्नी ] 


किम्‌ ! 


[ राजपुन्नः ] 


*ै2 


( दस्तिनी ] 


पन्नम 
१३ 
३२ 
३० 


७५,३ 


कणयरह-कणग ० [ राजपुत्रः] २४६,२४६ 
२५१,२५४-५८,२६ 
कणयाभरण [राजा ] 


कृष्द्‌ [ इष्ण-वासुदेवः ] ७२-७६ ,७५ 
कन्हृ ४०, ९६, ११२१-२३ 


२६८,३११-१५,३१८ 
२०-३१५३ 

फत्तिपपुर [ नगरम्‌ ] २५,२. 
कनककेतु. [राजा] ३२६,३१४३-४, 
कश्नउज [ नगरम्‌ ] 2] 
कश्ना [ मंदी ] १७! 
कन्दडदेव | राजपुश्रः ] 9 
कप्पय [ अमात्यः ] १८१ 
कमढ [ तापसः ] १३५ 
कमलगुत्त [श्रेष्ठिपुत्रन]. २१०९-१६ 
कमलमेह [ मह्नः ] २९३-९५ 
कमलसेण [राजा ] ११४ 
कम्लामेछा. राजपुन्नी ] २४० 
कपसलावई [राशी ] २७५,२८० 
कम्बल [ बलीवदं:] १७८,१८२ 
कयउश् [ श्रेष्ठिपुन्रः ] २०-२४ 
*कयउन्मय ५५ ११७ 
कम्माल [यक्षः ] ३३४ 
करकंडु [ मातज्ञपालितराजपुत्र: ] २७६-७८ 
के ,, 92 २७६ 
करेणुद्शत [राजा ] ३२९ 
कर्म [[ प्रामः ] १५३ 
कर्षक [ सन्रिवेशः ] ३५९ 
कछावई- वती [ राजपुत्री, राशी ] ३३१६-३८, 
३४००-४३ 

कलिंग [ देंश ] २९१ 
कलिंगसेणा [ गणिका ] २१२ 
कल्याणमाल [राजा ] ५७ 
कह यक्षः ] १५५ 
कबिल | परोडिल! ] १४१९-४२ 


हि 


माम किम्‌ ! पतन्रम्‌ 
कविला [ आह्यणपत्नी ]| १११८-१९ 
2१ [ पुरोदितपतनी ] १४१०४ ३ 
कंचणपुर [ नगरम्‌ ] ११४,२७८ 
कंचिया | [ नगरी | १०४,१०६ 
कंची $ 
कंडरीय [ राजपुत्रों, मम््रतमुनिश्ष ] १७० 
कंपिल् + पुर [ नगरम्‌ ] ४६,३२९ 
कंबल [ बलीवदेंः ] १७८ 
काणा . [ नाविक॒पुत्री ] ७२ 
कामएव- देव [ श्रेष्ठी ] २३८-४० 
“कामदेव ५ २३८ 
कामपडाया [ गणिका ] १३५-३६ 
कामपार [श्रेष्ठिपुश्र] “२५,२८,२९ 
कामरइ [ गणिका ] १३५-३ ६ 
कामलया [ राजपुत्री ] १०६ 
कामन्दी [ नगरी ] १०४,११३ 
कागंवरी [ गुहा ] ३१५ 
काल [ राजपुत्रः ] ३३३ 
कारूसंवर [ विद्याघरः ] ७५-७८ 
कालसूयरिअ- [ श्वरपाकः ] ११६,११८-१९ 
'सोयरिअ 

कालिदास [ कविः ] ८ 
कावेरी [ नदी | २४६ 
; [ नगरी | २४६,२५१, 
5 २५४-५५ 

कासहद [ भ्रामः, टीकाप्रशस्तो]) ३६९ 
कासी [ देशः | २२२,३५१ 
कित्तिधम्म [राजा ] ३०० 
कुजअ [ राजपुन्रः ] ३१७ 
कुडंगेसर. [देवः ] १७२ 
कुणाल [ राजपुत्रः ] १२४ 
कुत्धुम [ प्णिः ] ३१९ 
कुब्बर्‌ [ राजपुतन्रः ] ७५०,५५ 
कुमारनंदी [ श्रेष्ठी ] १८८ 
कुमुइणी  [ राजपुन्री ] १०९ 
कुरु [देश।] २५,२७५,३६२ 
कुरुंयंद [ राजपुत्रो राज व ] २५,२९, 
१५६,२४१ 

कुलचन्द्र [ मिप्रन्थ-केवली ] ५७ 
+#कुलाणंद [ राजपुत्रोी राश च] ३४४ 
कुलानंद ४ ५ हैै०५,३४७-४८ 


विशेषनास्नभामकारशादिकमः 


नाम किम ! पन्रम्‌ 
कुसट [ देशः ] ३० 
कुसुमपुर [ नगरम्‌] ३८,१७०,२६३ 
कुसुमसेहर [राजा ] ३८ 
का (राजपुत्रः] २९७,३०३ 
कुंकण [ देशः ] २०३ 
कुंडबलय [ नगरम्‌ ] ८ 
कुंडिण..[ नगरी ] ४६ 
कुंडिणिपुरी # ७३ 
कुती [ राशी ] २२ 
कृथु [ तीर्थंकर; ] ३२३ 
कुद [ दासः] १४८,१५५-५६ 
#कूलबाल [ भप्र्नतमुनिः ] २७१ 
कूलवाल+अ, रे २७१-७४ 
क, य 

कृतपुण्य [श्रेष्ठिपत्र]). १७,२०,२४ 
केटव [ राजपुत्रः ] ७,८० 
केयइ [ देशः | ३२६ 
केसरा [ श्रेष्ठिपुत्री ] २५-२९ 
केसव [ कृष्ण-वा सुदेवः ] ७१,१२२- 
२३,३१७ 


केसी [ निप्नन्थ-गणधरः ] ३२६,३२९ 
कोणिअ- के | [ राजपुन्नो राजा च] ३२६, 
कृणिअ 


३३१,३३३- 
असो गचंद ३४ 
*कीणिय र ३२६ 
कोत्थुद [मणिः] : १२१ 
कोमुईंदिवस- ईमह [ उत्सव ] १५३ 
*इमहूसव 
«कीमोशइ्या [ मेरी ] ३१२ 
कोशा [ गणिका ] १८३ 
कोसक [ देशः ] २४ 
कोसला | [ नगरी ] ४९,९१ 
कोसलपुरी 
कोसंब [ बनम्‌ ] ३१०,३१९ 
कोसंबी [नगरी] १६,३६,११६, 
११२३, १२५, , 
१६७, २६३२ 
कोसा [ गणिका ] १८३ 
क्षेमपप्री . [ नगरी ]* १३० 
स्तर 
*खम्ग. [ निप्नेन्थ-मुनिः]. १६१ 
ही १६१ 


शै७शे 
नाम किम्‌ ! पन्रम््‌ 
खर [ राक्षसबंशीयः ] ५७,५८,३२५ 
खरक [ वणिक्त ] ३५२ 
लिइपइट्टिय [नगरम्‌]  १७,२०,२१९, 
२७५ 
खीरडिंडीर [ देवः ] ५६ 
खीरडिंडीरा [ देवी ] ५६ 
खेमंकर [ कुटुम्बी ] २०९ 
गँँ 
गठरमुंड [ विद्याधरः ] २११ 
गउरी [ देवी ] ९६ 
गज+सुकुमार [ राजपुत्रो निम्नन्थ- 
मुनिश्च ] ३५१-५२ 
गदृह [ राजपुत्रो राजा च]१४६-४७ 
गन्धप्रिय [ राजपुत्रः ] १८४ 
*गय [ राजपुत्रो निग्नन्थ-मुनिश्व ] ३५१ 
गये [ श्रष्ठी ] मु ३३५,३३७, 
३४००-४१ 
गयठउर “[मगरम्‌] २५,२९,३१४, 
३६३,३६५ 
गयरादण [ राजपुन्नः ३२४ 
गयसुकुमाल [ राजपुश्रो निप्रन्थ- 
मुनिथ] ३७५३-५४ 
गंगदक्त [ राजा ] २६० 
मु | श्रष्ठिपृत्रः ] २६६ 
गंगदसा [| दासी ] १०४ 
गगरुदा हा १०७ 
गंगसेणा [ राजपुन्नी २६० 
गेगा (राज्ञी ] २६० 
कक [नदी] २१९-२०,२७१, 
३२४,३४६ 
गंगाइच | [ कुट्ठम्बी ] २२२१-२५ 
मायाइण 
गंगाउर । [ नगरम्‌ ] २६०-६१ 
गंगठर 
गंघप्पिय. [ राजपुतन्रः ] १८५ 
गंधवई [ नदी ] २२५ 
गंघव्वदशा [ राजपुन्री ] १०४-५ 
गंधव्वसेणा हर २१५ 
गंधार [ देशः ] २८० 
गिरिनयर [ नगरम्‌ ] ५ 
गुड्सत्थ 2 १9४-७५ 


श्जछ 
नाम किम्‌ ! पन्रम्‌ 
गरुणंद [भरष्निपुन्रः ] २६३ 
श्र [ राजपृत्रः ] १५५ 
गुणसइ- ती (अ्रेष्ठिप्री)  २२७,२२८ 
# गुणमहया दा २२७ 
गुणवती १३०,१३४ 
शुणसिल+अ [ चेत्यमू]) १३,९८,११५, 
१२७,२६४ 
ग्रुणाकर [ निप्रन्थ-गणी, 
टौकाप्रशस्तौ ] ३७० 
गोमर [श्रेष्ठी ३०,३१ 
गोयमसामी [ निप्रेन्थ-गणधरः ] १७० 
गोरी [ विद्या ] ७3८ ७९ 
9 [ मातज्ञपत्नी ] २७१ 
गोविंद [ कृष्ण-वा सुदेवः ] १०७ 
गोशालक [ आजीवकसम्प्रदायप्रणेता ] ३५२ 
गोसालकय रे १०३,११५ 
गौतम [ निप्रन्थ-गणघरः ] १,३५२ 
चघं 
घोरसित [ कापालिकः ] २५९१ 
सं 
चठरमइ [ अमाहयः ] २४१ 
१# [ राजपुत्रमित्रम ) २९५-९६ 
चक्र यर [ ब्राह्मणः ] ३६ 
१ )> ३५ 
चक्रचर के ३५३६ 
चण्डचूड..[ कुलपुञ्रकः ] १४८, १५३-५४ 
चण्डरुद्र..[ निग्नन्थ-आचायेः] १६१, 
१६९३-६४ 
चन्दनारया [ निप्रन्थिनी) १५,३६,३८ 
चन्द्रावतंसक [राजा] २३१८,२४१,३५५ 
घमरहारिणी [ यणिका ] १९ 
चवला [ दासी ] ४० 
चंडलूड [ कुलपुन्नकः ] १५३ 
कै 89 १४८ 
१४-१६ 


बंडपजोअ- य | [ राजा ] 
पजञोय 


चंडरदू..[ निप्रेन्थ-आचायः ]१६ १-६४ 
के ,, 32 १६१ 
संडरुद [ दासः ] २०९ 


प्रथम परिशिह्रम्‌ 


नाम किम पश्रम्‌ 
अंडवरडिसय [राजा ] २२१ 
*चंडहुड [ कर्षकः ] २१८ 
चडहड- भड  ,, २११९-२१ 
जंडावर्डिस [राजा ] २३८ 
चड़िया [ देवी ] १५० 
चंडी ११ ११८ 
दुर्गा 
चंदगुत् [ राजा ] १२४ 
*चंदणजा [ निग्रन्थिनी ] ३१५ 
चंदणजा- | [ राजपत्री, निप्रन्थिनी- २४, 
“णकुमारी-  प्रवत्तिनी] ३५-३८, 
०णबाला १६७ 
चदणा 
चेदजसत [राजपुत्रोी राज बच] २८२ 
चंदजसा [ राह्जी ] ५३ 
चदप्पमा [ मदिरा ] १२८ 
चंदपपहूु [ तीथकरः ] ३२३ 
चदमई [| राज्पुत्री ] . ५३ 
चदसेण. [राजा ] ३४५ 
चदाभा ; [राज्ञी ] ७७ 
चदावयस+भ [ राजा] ३५४,३५७-५८ 
चंपयमाला ) [राज्ली) १२८९-९० २९२, 
चंपडमाला १९९ 
चंपा ' [ नगरी ] ३६. ४३ ४४.६५, 
७६ ९६,९८,१४०, 
१८६, १९७-९८, 
२१०,२१७,२३ ८- 
३९, २७७-७८, 
३३४ :. 
चामुड [ देवी ] १३९,१७४ 
चारुदस [ श्रष्ठिपुश्रः] २१०-१२,२१५- 
१६,२७६ 
9१ 95 २७६ 
चित्त [ मातझपुश्रों निम्नन्थ- 
मुनिश्व ] २२१,२७५, ३२२९ 
मे )) १3 २१८ 
चित्त [ अमाध्यः ] ३९१६-२७ 
चित्ततेअ-चेत्त० [ विद्याधरपुत्रः ] ८५ 
*चित्तपिय [ यक्षः ] १६६ 
चित्रपिय के १६७ 
सरपिय 


भाम 


छम्माणी 


जउणदीव 
जकत 
जक्खसिरी 
जक्खिणी 
जणहृण 
जनक 
जन्नदत्त 
जश्नदिन्न 


जक्षवाड 
जन्दकुमार 
जा 


जयवद्धण 
जयवारण 
जयसिरी 
जयसिंह 


जयसेण 
जयसे णा 
अगंतदेग 


किम्‌ पत्रम्‌ 
[ विद्याधरः ] न, 

[ भातापुत्रों निर्प्न्थ- 
मुनि) २९९,९११ 
[ निर्रन्थ-मुनिः ] ५७ 
[ यक्षः ] १६४ 
[ दासौ ] ११६ 
[ दासीपुत्न]) १३१६-१७ 
8% १२५ 
# १९२५-१२ ६- 
'[ ब्राह्मणपतनी ] ३२६ 
११ ३१६ 
[ राशी ] ३२१९-३१ 
[ राजा ] २७३,२७७ 
(राजी) २०,९९,११९, 
२२९, ३३२,३१३१४ 

छ 
[ प्रामः ] १५१ 
ञ्ञ 

[ द्वीपः ] ११४ 
[ निग्रन्थ-मुनिः ] १७२-७३ 
[ ब्राह्मगपहनी ] 9३ 
[ विग्नन्थिनी ] ३१२ 


[ कृष्ण -वासुदेवः ] ३१५, ३१९ 


[ राजा | ६०,६१ 
[ वणिक्‌ ] १५% 
[ ब्राह्मगः ] १२६ 
[ परिब्राजकः ] २१६ 
[ राजगृहपाटक ] ९७. 
[ राजपुन्नः ] ३२३ 
[ भ्रष्ठिपुन्नों निम्रेन्‍्थ- २६ ८-७० 
स्थविरश्व ] 

[ नगरम्‌ |] ३००-१, ३०३ 
[ हस्ती ] २४ 
[श्रेष्ठिपश्नी)_ १५१-५३ 
[ गूजरेश्वरः, 

टीकाग्रशस्तौ ] ३७० 


[ राजपुत्रः ] ३१३५-३०, ३४० 
[ राह्ली ] २१५, 
| श्रेष्निपश्न: ] १६. 


आम किम ! पत्रम्‌ 
जयंती- तिया [ गगरी] २५,१५६,१५९, 
२८९,२९५ २९८ 
जया (राज्ञी ] १०४ 
जराकुमार [ राजपुत्र. ] ३१४,३१९-२० 
जलणप्पद [देतः ] ३१२३-२४ 
जब [ निप्रन्थ-मुनिः] १४६-४७ 
#े ,) 83 १४६ 
जवउर- पुर [ नगरम ] १४६-४७ 
जवणदीव [ द्वीपः ] २१३ 
जसभह[ निप्रन्थ-स्थविरः ] ९५,२६९ 
जसवई [ राज्ञी ] ७२ 
जसा [ पुरोद्वितपत्नी ] २७५ 
जंयतई [ विद्याधरपुत्री, राशी ] ७५५,८ ० 
जैबवंत ( विद्याधरः ] ३४ 
जंबु [ श्रेष्ठिपुन्नों निम्रेन्ध- 
स्थेनिरश्व ] ९७ 
औ )» मर २६८ 
जंबुणाम ३ २६९ 
जबुद्दीद [द्वीपः ] १९७,२६० 
जबू ' [ देबी ] २६९ 
जानकी [ राजपुत्री, राशी] ५७,५७८ 
जालंधर [ परवेतः ] २९१ 
जाला [ राजी ] १६८-६९ 
जिणदत्त- यत्त [ श्रेष्ठी ४०,००५, ६५, 
१९२,१९७-५९ ८ 
ईिणदास हर ७६,७७,१५१, 
१८२,२२५ 
जिणदासी [ श्रेष्ठिपत्नी ] १८२ 
- जिणएसेण.[ निप्रन्ध-आचायः]. ५५ 
जिणाणंद [ ,, -स्थविरः ] १७५२-७३ 
जिनचद [,, आबचायेः, 
टीकाप्रशस्तो ] ३६९-७० 
जियससु [राजा] ४-७,१०९-१०, 
१८६९-८४,१९७, 
२०१,२१०,२३८, 
२६१,३०४,३९२६, 
३३१ 
जियारि $5 १५५,२२५ 
जीवहरण [ प्राप्त: ] १७२ 
जुगबाहु [ राजपुत्रः] १७८-७०९,२८१ 
जुगाइदेव. [ तीयकरः ] ८३ 


विशेषनास्तामकाराधिक्रमः 


क्र 


मातम किम ! 

दे 
य्क्‌ [ ब्राह्मणजातिः ] 
टंकण [ देद्यः ] 

ड्ड 
डमरसिह._ [राजा ] 

ढ़ 
ढण्हणकुमार [ राजपुत्रः ] - 
ढढणकुमर मा 

णं 
णंद-नंद [राजा] 
णोडजाइ [ वन्यजातिः ] 

ते 
तक्खसिला [ नगरी ] 
तापस.  [श्रष्ठी ] 
तामलित्ती [ नगरी ] 
तारापीड [राजा ] 
तारावीढ हर 
तावस [ भ्रष्ठी ] 
तिलअ [ उद्यानम्‌ ] 
तिलयपुर [ नगरम्‌ ] 


तिलयसुन्दरी [ राजपुतन्री, राशी ] 


तिविकम | [ राजकुमारों 
विण्हुकुमार 


- पन्रम्‌ 


४१ 
२१६ 


३६३ 


२६८,२७० 
२६८-६९ 
२६८ 


९) ६४ 
१३७ 


८३,८४,८९ 
२३६२-६३ 
२४४ 

२४ 
१०९-१० 
२६२ 
२६३२ 

१६० 
२०० 
११४ 


निप्रेन्थ-मुनिश्य ] १६८-७० 


तिसला [राश्ली ] २३३ 
तिहुबणतिलिया ,, ३४७ 
तिहुयणाणंद [ राजा ] ६८ 
तिदुग-य [ यक्षः ] २७१ 
तुंबवण [ सक्लिवेशः ] १७० 
तेयलि [ नगरी ] ३४३ 
तेयलिसुअ-तेतलि० [ अमात्यः] ३४३ 
श्रिगुप्त [ निप्रन्थ-मुनिः ] ७५७ 
ब्रिथुवनतिलका [ राशी | ३४८ 
शव 

थाणु [ बणिक्‌ ] २२२५-२५ 
थावर [ दासः ] २२८ 
थूलभह[ अमाल्यपुत्रो, 


- निफ्रनध-स्थविरश्ध) १८३ 


हे 


कं 


३३५ 
नाम किम्‌ ! पतन्रम्‌ 
द्‌ 
दढधम्म [ राजपुत्रः ] ३२४ 
दण्डक * [ अरण्यम्‌ ] ७५७ 
' दस | श्रष्ठिपुत्र: ] ३३५-३०,३४२ 
दत्तक -य॒ [श्रेष्ठी ] १९१-९ ३ 
द्द्र्‌ [ सुभटः ] ८४ 
दुद्तुरवर्टिसय [ विमानम्‌ ] २६५ 
ददुदुरंक [देवजातिः] ११०८,२६५ 
दधिव्राहन [राजा ] ३५,२७६ 
दमधोस [ सुभटः ] ८४ 
दवदंती [ राजपुत्रो, राशी] २०,४६-५६, 

६८,७१ 

मर] 7 ४९ 
दसउर [ नगरम ] १५२ 
दसवेयालिय [ जेनागमः ] ९९ 

दहवयण . [ राक्षसवंज्ञी राजा- 
रावणः ] ३२५ 
दहिवन्न [ राजा ] ५४,५५ 
दहिवाहण 2 ३६,३८,१४०, 
२७७०-७८ 
दतवक्क [ नगरम्‌ ] २७७ 
४३ [ राजा ] २७७ 
दामशन्नअ- ग [ श्रष्ठिपुन्नः ] १४९-५१ 
दामश्नक ४५ १४८,१५१ 
न, मत १४८ 
दामन्नक [ कुलपुञ्रकः] २२७,२३८ 
दिवायर [ ब्राह्मगः ] १७९ 
दीणार [ नाणकम्‌ |] ११६-१७ 
दीपकशिख [ राजपुन्रः ] १०४,१०७ 
दीवयसिद 9 १०४,१०६-७ 
33 93 हु १०४ 
दीवायण [ ऋषिः] ३१४-१८,३२० 
दीवूसव [ उत्सवः ] १०४ 
दीह [राजा ] ३२९,३३१ 
दीद्ृपट्ट [ अमात्यः | १४४६-४७ 
दुकलंतरिसि [ निम्रन्थ-आचायेः] ११३ 


दुर्गचंड [ परावर्तितवयौरनाम ] १२९८-२९ 
दुश्गय [ कुम्मकारः ] १७३ 
दुग्गां | [ देवी ] ११८ 
संडी 


३७६ प्रथम परिशिष्टम 


माम किम ! पत्रमू नाम किम ! पत्रमू गाम किम ! पत्रम्‌ 
दुओहण [राजा ] ७५,८० घणवइ . [मस्ेह्निपुनत्र:]. २०,२५,३०  पूमकेड [देवः ] १४० 
दुष्पसद ५; २५ धणवई  [ श्रेष्ठिप्नी ] १०१ धूमतिह [ विद्याधरः ] २११ 
दुम्मुह. [ दासः ] १६५ धणसार [ शअ्रष्निपुन्नः ] ६५ ग त्त 
दुललहएवी ..[ निप्रन्थिनी ] “१७२. ,, [ श्रष्ठी १३५ नउलबणी [ श्रेष्ठी ] २११९ 
दुवय [राजा ) ४६ धणसिरी [ श्रेष्ठिपत्नी ] १९२ * ,, १) २१८ 
दूषण [ राक्षसवशीयः ] ५७,५८,३२५ धणसेण [राजा ] २४०. ननन्‍द सर ११३,१२० 
देशणी .. [राजपुत्री]) १५७-६०  घणावह. [श्रेष्टठी] १६,३८,६१,६२,६४५ . नन्दिवधन [ राजपुन्रः ] ६८ 
देवई [राशी] ३१८,३१५२-५४  घणीतर [स्नेष्ठिपत्र] २०,२५,१० .. नमि [ राजपुन्रोी राजा, २०६,२७८, 
देवगुल [राजा] ११०-११  धणु [ अमात्यः ] ३३१ निम्रन्थ-मुनिथ ] २८२- ८० 
देवजलत [स्पेप्निपश्नी) १७५२-५२ धघणेसर [स्रष्निपुश्र] '१३५-३६ *» ३ २७६ 
देवदश  [ भ्रेष्ठी ] १०१,१८८ धन [ साथवाहः ] १७. नम्ति [ तीर्थकरः ] ३२१ 
देवदला [ गणिका ] २९-५२,१४५-४६ धनदत्त [ अ्रेष्ठिपुश्र] १३०-३१,१३३१ नमुई [ अमात्यौः]_ १६९-७०, 
देवंंदि [ देशः ] ३१५ घधन्‍न+अ दे ३४,४०६ २३२१-२२, २७० 
देवरेसि [ निग्रेन्थ-मुनिः | ७५९ धनन्‍नभ [आभीषपुन्नः ] ५६ नम्भया [नदी ] ७३ 
देवसाल.[ नगरम्‌ ] ३१५,३४०.. घन्‍नठर[[ प्रामः ] ८. नयचक्क [ जन-दशनश्षात्रम्‌ू] १७२-७३ 
देवसिरी [ भ्रेष्ठिपत्नी ] २००-१ धन्‍न्नप्रअ ( भ्रेष्निपृत्रः ] २६८ नेयसार [श्रेष्ठी ] १७७ 
देवसूरी..[ निम्नन्ध-आचार्यः, घन्तय.. [ आभीएपुत्रः ] १७... नरदत्त हर १३० 
टीका फऋ्रास्तौ ] ३२९ धन्‍न्ता [ कुलपुत्रपत्नी ] . ३० नरविक्रम [ राजपुत्र:] २५१३-९०, २९६, 
देवसेण. [राजा ] २९१३-९० धनन्‍्यक. [ आभीरपुत्रः] १७,३० ' ३९१,३०३-४ 
देवाणंद. [ श्रेष्ठी २०१ धम्म [ तीर्थकरः | रेर३े *े , 'ऊ २८५, 
कदेविंद. [ निप्रेन्थ-मुनिः, धम्मघोस [ निम्नन्थ-आचार्यः] १८,१९, . नरविकम २८९ 
प्रस्तुतमूलभनन्‍्थकारः ] ३६८ ३३,१०३,००,१५५, नरसीद [राजा] १८५,३८९-९०, 
देदहिल. - [ वणिक | ११३१३ मजे 28.30] ; २९१, २९४ 
सः न 22 नेराअ- द्‌ क १८४-८ 
कि [ दासः ] २०,२५, 5 * दम्मर्‌३ | निरन्ध-सुमिः]  ॥३,४४, . सोदास । ६ 
रे 4) न २ १ ९.२ 5 #नराय का १ ८ मर 
कल ४ हे । रा ९ हे हि [ श्रष्ठिप॒त्रः ] २२७ नल [ राजपुन्रो राजा च ] १७,४ ७-५१ 
दोवा [ राज्पुत्री बह धम्मसिरी [| निप्रन्थिनी ] ७२ ५३-५६ 
द्रोण [ दासः ] १७,२४,३०.. “म्मिलाभ [ आभीरः ; ४. [ सुभटः || ८५,८ ६ 
है [राजा ] ६८ भैयरह [राजा] ३,१८४ नेंलगिरे [हस्ती ] १५,१६ 
द्वारकावती [ नगरी ] ३०४. "रणितिलभ [ नगरम्‌ ] 8 * गया आकर ओम 
। ह धरणिद्‌ [ इन्द्र. ] १३५ नवफुक्रशभ डे १०७०८ 
थ् घमरुचि [ निम्नंग्थ-मुनिः ] १३३ उमा १3 १०४ 
+घण [ साथवाहः | १७. घवलक्षक । [ नगरम्‌ , टीकाफ्रशस्तौ] ३७०. देसेण. [राज्पुत्रः २४०-४१९ 
घण [श्रेष्ठी)। ९५,१२६,२२८ धवलकपुर # नंद [ श्रेष्ठी ] ११३ 
भण+अ [सार्थतवाहः] १७५-२०,०६,  पधायइसंड [ द्वीपः ] ४६ # ,. [ नाविकः ] २१८ 
१८०,१९७-९९ धारिणी [राशी ] ९,३६,१६४, + , [ मणिकारः ] * २६२ 
घणअ-य [सेष्रिपुश्रः | २०,२०५,३० १९७,१९९,२२८, नंद [ अमाल्यः ] २८ 
घणदत्त-यत्त ,, २२ २१६,३००,१५४ . ,, [ श्रेष्ठी ] १२० 
बणदेव. [ सार्थवाईइः ] ५३ पुंधुमाा [राज्पुन्नः ७७ [ राजा ] १८१ 


घधणपाक€[ श्रेष्ठी ] २०,२१ घूमकेठ [यक्षः] ७५-७७ हर [ नाविकः ] २१९ 


माम किम ! / पत्रम्‌ 
मंद (भ्रथिकारः ]) २६१,२६५ 
मंदण [ नगरम्‌ ] १०९ 
का [ भरष्ठिपुत्रः ) १०८-९ 
णंदुणवण [उद्याममू]) ३०७,३१६, 
३५१ ३४३ 

नंदा [ बापी ] २६४ 
नंदिषद्धण [ निप्रेन्थ-मुनिः ] ७६ 
मंदिसेण ४ ६९ ३० 
के. 85 9३ २७० 
नंदेसेण [राज्पुन्नः ) ३३३ 
मंदीसर द्वीप] २८०-८१,३५९ 
माग [ श्रेष्ठी ] ३५३ 
नागकुमार [ देवः ] १८२ 
नागदत [राजपुन्न ) , १६२ 
नागश्री [ ब्राह्मणपत्नी ] ४३,४६ 
नागसिरी हर ४३,०४,०९ 
नर १3 | ९ ३ 
नाणगब्भ [ निप्रन्थ-आचार्य:] १०८ 
मर [ अमात्यः ] २०१-३ 
नारअ- द-य [ निप्रन्थ-मुनिः] ४६,५९, 
७२-७४७,७६-- 

७९ ८६ 
नारायण [ क्ृष्ण-वासुदेव: ] ७९ 
निउण [ निग्रन्थ-आचायेः] १४६ 
निकरृण [ सारधिः ] ३३८ 
निग्षिणसम्म | [ ब्राह्मणः ] ४१ 
सुद्धड 

निम्ममत [ तीथंकरः ] ९ 


निलवेअ ]] [ विद्याधरपुशत्रः] ८६,८७,८९ 
अनिलबेग | 


निम्बुइ 
निसढ 


2) 


निसीह 


[ देवी ] ४७,४८ 
[ राज्पुन्नः ) २४० 
[ छुमटः ] ८५ 
[ जनागमः ] १२५ 


नूपुरपण्डिता [ श्रेष्ठिपुश्नी ] १३५,१८८,१९१ 


नेपाल 


नेमि+चंद, 


नह 


[ देशः ] , १४4३ 

[ तीर्थथरः ] ८०,१४०,२६८ 
३१२-१४, ३१७, 
३१९-२१, ३१५ ३- 
५४ 


विदोषनास्तामकारादिकमः 


नाम किम्‌ ! पत्रम्‌ 

नेमिचन्द्र [निप्रेन्थ-गणी, टीकाप्रशस्तौ) ३७० 

नेमिचस्दतूरि [ निमग्नन्थ-आचायः, १, 
प्रस्तुतमूलप्रन्थकार: ] ३६९८-७० 


प्‌ 

पह््टाणगा [ नगरम्‌ ] १०५,२२ १ 

पउम [ राजपुन्रों राआ- 
रामचन्द्र]। ३१२५-२६ 
के .$ बे ३२१ 
पउम [ देशः ] १०९ 
पउमकेसर [ राजपुन्रः ] ३०० 
पउमगुम्म [ विभानम्‌ ] २७५ 
पउठमनाह [राजा ] ४६ 
& [ तीथकरः ] ११८ 
पउमण्पह सह ३२३ 
पठमरह [राजा ] २८०,२८२ 
पउठमसर [ सरः |] १०८ 
पउमसेहर  [ राजपुन्रः | ३२४ 
पठमावई [ नगरी ] १०६-७ 
५ [ राजपुत्री ] १०९ 
»..राज्षी] २७७,२९३,३५३, 

३५४,३५६०-५७ 
पठमिणी..[ मांलांकारपतनी ] ११४ 
पउमुस्तर [ नगरम्‌ ] १३७ 
| [ राजा ] १०९-१२, 
१६८०-६९ 
». ,  राजपुन्रः ] ३२४ 
के )) [ राजा ] १०४ 
पएसि मर ३२६ 
पडुजमुख ) [श्रेष्ठिपत्र]। १३११,१३३ 
पह्चुजास्प 

पथतपुर [ नगरम्‌ ] ३२३१ 
पक्जुश [ राजपुत्र:] ७५-८०,३११ 
पजोय [राजा ] १६७ 
पतदेवया [ देवी ] १०६ 
पद्म [ राजपुत्रो राजा- ३१२- 
रामचन्द्र | २०,३२६ 
पद्मोत्तर [ राजपुत्रो राजा] १०४,१०८,११३ 
पभ्नशी [ विद्या ] ६८,७८-८०, 


२४०,२८० 


३७७ 
माम दम ! पत्रम्‌ 
पमव+सूरि [ निम्नन्ध-स्थविरः ] ९७,९८, 

१६५९ 
परासर [ ऋषि: ] ३१४ 
पल्द्ाअ- य [राजा ] 4६,८७५ 
पसेणइ+य न ९,११५ 
पसश्चचेद.[ राजा, निप्रन्थ- 

मुनिः ] १६४-६६ 
के. 9) गा १६१ 
पहाकर [ ब्राह्मणः ] १७९ 
# ,, 35 १८ 
पद्दाकर [ पुरोहितपुतन्रः ] ३०६ 
पहास [तीर्थम] «4२ 
पहाससूरि [ निप्रेन्ध-आचायः ]. १०७ 
पंचनंदी  [ भ्रष्ठी ] २६,२७, १८ ८- 
८९ 
पंचाल [ देशः ] ३२९ 
पंडिया [ धात्री १४३,१४५-४६ 
पंडु [राजा] ५४६,३१८,३२० 
पंडुमहुरा [नगरी ] ४६,३१८-१९ 
पंडुसेण [ राजपुत्रः ] १६ 
पाडडलय [मालाकारः] २९९,३०० 
पाबलिपुसल [ नगरम्‌] ६१,१२४,१४५, 
२०२,२०६,२० ८, 
२९५९,३००, ३०४, 
३०६ 
पारास॒ [जाहाणः ] २६८ 
पा [ तीथंकरः ] ३५१-५२ 
पाश्ददेव.[ निम्नेन्ध-गणी, 
टीकाप्रशस्तौ ] ३७० 
#पास [ तीथेकरः ] ३५१ 
पास+कुमार, कर १०७-८,१२० , 
जिण, नाह १३५, १८२, २६२, 
३९२३,३२९,३५१- 
५२,३६७ 
पिप्पाअ [ ऋषिपुत्रः ] २१६ 
पियदंसण [ राजा ] २४९ 
पियद्सणा ([ राज्ञी २३८ 
पियमइ [ राजकुमारी )।२४९-५०,२५३ 
पियेकर [ अ्रष्तिपुश्नमित्रम ] २६ 
पिमंकरा [ दासी )] २५-३७,१९७,१३० 


केक 
हक किम! प्र, 
पिय्रंग.. [भाप्नः ] ११३ 
पिल्नेंप्रछया [ दासी ] १३ 
पिह्ठ [ झुभक ]. ६५ 
पुक्शक्क [ राज्युत्रः ] ५६९ 
पूृथकलस / १५ डे ३ 
पुणभर॒  [भ्रेश्निपुत्रः हा 
पुणवसु॒ [ बा ) ६८,६९ 
पुप्फचूल..[ सन्नीतकारः ] १८४ 
9» [ राजा ], ३.२९ 
पुष्फरत॑ [ सुभटः ] ८४ 
पृष्फती [याज्ी] २७,५३,५४ 
पूरिसोत्तम [कृष्ण-यामुदेवः] ७३ 
पुव्यविदेइ: [| क्षेत्रम,] ६८ 
पृष्पक [ विमानम ] ५८,६९१ 
पुंडरिगिणी [ नगरी ] ६८ 
पुंडीय [ राजपुत्रो तिम्नेन्थ- 
मुनिय १७० 
पोइलिा. [ अमाह्यप्नी ]) ३४०३-४५ 
पोतनपुर [ नगरम ] १६१ 
पोगण+पुर 99 ५ ५्‌ ॥। १ ६४:--३६७ 
प्रदेषि [ राजा. ] ३२६ 
प्रधुन्न [ राजपुन्नः ] ६.6 
प्रभगसूरि. [ निम्नन्थ-स्थविरः].._ ९७ 
प्रभाव [ब्राह्मण] १७८-७९,१८१ 
प्रसल्चन्त्र [ राजा, निप्रेन्थ- 
झुकिः |, १६१.,१६५ 
फ 
फलहियमड [ महः ] २६१ 
थ्‌ 
इठल [ मालाकारः ] ११३ 
इडुब- कुछ | ११३०-१४ 
बठछदस. [आइक्षणः ] १५२ 
बठलमई  [राही ] ३६३ 


इढ़+देव,भह [ राजप्ुत्नो कुण- ७१-४)५, 
वासुवेषब्नाता ] २४०,३१ 


३१९४-१५, ३१/श० 
२०,३५४ 
बढ़ाकुट.[ भा २०१ 
बढ़की, किक ] ५३ 


मरथ् पशिशिकार 
भाड़ किए पत्नप्र, 
दंदुद्त [भेश्यिलः] २४०७,९७३, 
२८५,२८५,२८९ 
के ४४ २७६ 
बंधुमई [ कुट्ठम्बिपनी | १००-१ 
# [ श्रष्ठिपुत्नौ ] २४१ 
बंभ [ राजा ] ३२९,३३१ 
बंभदत्त [ चकवर्ती ] २३२९-३१ 
बंभदौषया ) [ तापसछाखा, 
बंभदीविया | निग्नन्थशाखा ये] १७४ 
बंभलोअ- क, [ देवडोक:] ४६, १६९, 
गय २८०,३२१ 
बंअसंति [यक्षः ] १२० 
बभी [ निश्रन्थिनी ]. ९० 
करन [मगरी ] ७२-७०,७०७,७९, 
१२१,२४०,२६ ८, 
२३११-१९, ३१४, 
३१८,३२०,३१९३ 
बालचन्द [ राजबुत् ] १९५ 
बाहुबली कर ८१,८३,८४, 
८६-८९ 
विज्ञायढड- [ नगरम्‌] ११,१३,४१- 
केला ४३,९३ 
विसीषण [ राक्षसंक्षीय:ः |] ५८-५९ 
बिदुसार [ राजा] १२५ 
बुद्धदास ([ श्रष्तिपन्रो श्रेष्ठी च] ६५,६६ 
बुछ्यणंद ३ [ बौद्धपमण/].. १७२९-७३ 
बुद्धदास 
बुद्िसार [ अमात्यः ] १७६ 
बृहदच्छ .. $[ निप्रेन्थगश्छः, 
टौकाफ्रशास्तौ ] ३६९:७७७० 
भा 
भशुकणंद[ कापालिकः | १९५६ 
मकाबई. [ जनागमक ] है२५ 
भाई, [ श्रष्ठी | %७१३ 
अहमत्रा. [निभप्रन्यन्यणधरः ]२०८,२६० 
भदवाहु [पुरोह्ितुत्नो 
भिमन्नम्प-स्पविरिआ | ३०५:०॥ 
भहवई है [ दस्तिदी ]' १५,१३६ 
मदवती 


गाप़, किम पद 
बहा [ सार्वदाइरतलीः) १८३ 
 ,, विष १४४ 
बढ [ श्रेष्ठिफलनी |: २०,३१,३००- 
२५,४७,२३५ 
नि [ राजपुष्री ] २७१ 
भदहिलपुर [ गगरम६॥) ३५३ 
सदूदुलणे [ राज़्युक ). १६४६-४७ 
भद्रा [ सार्थवाहपत्नी ] | १८४ 
अस्त [ मटपुन्रः ] हे 
५३ [ राज्युक्र, रामचन्द्आवा] ५७ 
ऋ £ चक्रवर्ती )) <१,९०,३९६, 
३५१ 
कम रह » <%,३२१०३२,३२६ 
भरह+नाह,ब३, ,, ५१, 4१-८५, 4७- 
'हेस, हेसर ९०, ३२९२-२३ 
भरह [ मठपुन्नः ] ४,५ 
कै गम मै ५ कै 
भरह्‌ [ क्षेत्रम ] १९,३६,४५,४ ९, 
७3३,७६९,९७,१२०, 
१४०,११*९२, २१०, 
२३५,२१५, ३२१२, 
३३१ 
भरुयच्छ  [बगरम्‌ ] ०२,१७२-७५, 
३२४४ 
भबज़पति [ देवजातिः ] ३५२ 
भवंतकर [ निप्नल्द-आचाये: ] , ९६० 
भंडीरवणचेश्य [ चैत्यम्‌ ] १९७ 
भाणु [ श्रेष्ठी)। १९३-१५,९१०, 
| २१७ 
न | अमात्यः ] ३४/९, ३४७ 
8१ [ राजपुन्रः ] २४4५ 
भाणुसिरी.[ भ्रष्टिफी ] १९३ 
सारभूर [ कापादिकः १०६ 
भारह [क्षेत्रन] ३८,१३५,१७०, 


१९७;/११%१ २४८ 
भाव&द्चिका- या | [श्रेष्निपुत्रीप १८५,१९ ३-५५, 
बालवंदिया | - 


बे १ 3, है रद *, डे १ 

श्रिष्ठ, [ पुरोहितः ] २७५ 
के. ,, १ २७४ 
भिगु (आझाणः ] ३४५ 


काल किस ४ फाण्‌ 
भजिमसार | जपुत्रः, श्रेणि-- 
का्परनामा ] + १० 
भीम. [ सुभट ] ८४ 
भीमरह , [राजा] ४७,५१,५३-५५ 
मुबनभी [राशी ] ११२ 
मूतलानन्द[ नगरंम्‌ ] ३४७ 
भूयद्णि [| मात#ः २११ 
मूयंसिंरी. [ जाझ्मणपत्नी ] ४३ 
भृंगु [पुरोहित]. २७५०७६ 
झैसई [ राजा ] ७२ 
म 
मइरा | भ्रष्ठिपृश्नी ] १५,२९ 
संइंसायंर [राजपुत्रमित्रम)ई ९९३ 
मे [ असात्वः ३३६ 
भक्षिकामछ  [ सह्तः ] २६१,६५ 
मगहा [ देदः ६९,७६,९६, 
९९,११७,२६८ 
मगहापुर [ नगरम ] १९, 
#मैस्छमछ. [ मह्तः २४४ 
भश्छियमछ ञ; २६१ 
'मंज्यदेस [ देशः ] २४५ 
मंणअ- ग, य[ ब्राह्मणपुन्रों निप्रेन्थ- 
मुनिशथ्े ] ९८,९६९ 
अणिचूंड[ राजा, निम्नेन्थ-मुनिः] २८०-८१ 
मेणिप् [ राजपुतन्रः ] २८० 
अणिरदू [राजा ] २७८,२८१ 
'अणगोरणा [राजी | २१५ 
संणोरह [ श्रेष्ठिपृन्नः ] १८० 
भेणोहर [ राजपुन्रः ३२४ 
भत्तकोहल [ उद्यानम ] २०१ 
'मशियावथा- वह [ नभरी ] २०४८-४९ 
सत्स्पमक [ भह्ठः ] २४४७ 
मधु [ राजपुत्रो राजा ख] ६८,८० 
#झमीरसा [ श्रेष्ठिपत्नी ] /! ए६ 
'अभोरभा [ कभेकपतनी] ३४९६-५० 
$ [ श्रेष्ठिपल्नी ] ४६,९६५ 
» “भणों० ,,, १४१,१४४०-४५ 
अनोरथ [ कर्षेकपुश्रः ] ३४९ 
अम्मण (राजा ] ५५,९६८ 


विशेषभासतभकत््सद्किमः इ७० 
मोम ७५ किम रे फल... मेंस किम? पत्र 
'मवंणतेरसी [ उत्संवः ] भौधुर [ बंनिंक ] १८४०-८५ 
बंयंणरेहा [राशी] २७८ -४२ भायाहर् | ( कुद्ठम्वी ९१५१-२५ 
# ( राजपुश्नी ] रटछ-८८.... मर 
भथणसेणा है सयादिख ». रे)८,रेरे६,२रै५ 
हे [ राशी ] ३००-१ आाशावह्ठी [ ब्राम+, हीका प्रह्वस्तौ ] ३५६ 
मयमत्र...[निम्नन्थ-आचायः ] ली [ देशः ] कर 
मगरदभ [राजा] अल की ] ब 
+ अर [ निग्नन्थ-स्थविर: - 
भन्+वाद, वादी ,, १६ हु १७३२-७७ निंद ] देवेछोकः ] रै०४ 
+सूरि 'माहुर [ बंणिक्‌ ) १९९ 
भद्नि [ तीर्थंकर! ] के ५) 93 १८४ 
महन्बलह [राजा ] मिगावई [राशीत ३०,१६७ 
मसहसेण..[ छमठः ] ८०,३९१  # ,, हु १६१ 
हे [ राजा ] १५७,१५९, , मित्तवरं [ श्रेष्ठिपुत्री)).. २१२,२१७ 
१६०,२०३ मित्ताणंद [ श्रेष्ठिपुक्त ) २०१-५,२०७-- 
परहाकाल [ देवः ] १५७-५८ ४,२१० 
32 [ कापालिकः ] के )3 ?क ३०४ 
महापठम [ चकबती ] १६८-७०. मिन्नाणन्द रे ३०४,३२१ 
मदाबिदेह [क्षेत्रम]) ७५,२३८.३९९ भिद्दिला | [ नगरी ] २८२-८ ३ 
महावीर [तीर्थंकरः] ३६,६८,११४, महिला हा 
११८, १२७, २३६- सुणिचेद [ निम्रेस्धन्मुमिः]... २२१ 
३७ ३३०,३५१-५४ पर | भ्रष्ठिपृश्रः ) २२८ 
मद्रासगंकुमार [ देवलोकः ] ७». (िजपुत्रः, निग्रेन्थ-मुनि:] २३५५-५९ 
सहिमा [ भ्रेष्ठिफनी ] २२-२४  मुणिसुव्वअ-य [तीथैंकरः] १६९ ३१३ 
९०३४ | [नगरी] २८०,१८२-८३ समुसियार ' श्रेष्ठी ] ३५३ 
| 
'महिंदविक्रम [ विद्याधरराजा ] ४95.%98 मेक ३ 
महिंदसौह [अमात्यपुत्रः] ९३३६५ ५ >, श्ष 
कि [ राजपुत्रो राजा च ] ७५,७७ मूला [ श्रेष्ठिपत्नी ] १३०३६ 
भहुमहण . [इृष्ण-वासुदेवः] ७४,७७,७५,  चगावती-पती[ राशी १६१ 
८०,३१८ मेघ+कुमार [ राजपुत्रः] १२७-२८,९३८ 
मेहुरा [ नगरी] १२०,१८२,१९७  मेताय (मातझंपुश्नो राजा, २२१,३५१, 
संगलठर ['नगरम्‌ ] निप्रन्थ-मुनिथ ] ३५४,३६२ 
संगठा. [राज्ञी] मेदपाट. [ देश, टीकाप्रशस्तो] ३६९ 
संजरी ([दासवत्नी]) १५५ १५७ 'मेयज [ मातज्ञपुत्नो राजा, 
समंजुलावई॑ [ नगरी ] निप्रेन्थ-मुनिथय ] २३५९-६२ 
भागह [ तीर्यम ] # ,, १५१ 
सागहिया [ मणिका ] 'मेंद [पबेतः] “६९ 
माणिभहू [ भेष्ठिपुन्नः ) मेरंप्प॑. [ हस्ती ] २३७ 
के [ अष्ठी ] मेंस [ श्रेष्ठी ] १३१ 


३८० प्रथम परिशिष्रम 
भाम किम्‌ ! पत्रमू नाम किम्‌ पत्रमू नाम किम ! पत्रम्‌ 
#मेह - [ राजपुन्रः ] २२७. रह्दववत्त [पर्वतः ] १७१ रेणुाया. [ आभौरपत्नी ] ५६ 
मेह +कुमा ,,  २३०-३८,३१३  राज्पुरु [ नगरम ] १३१ रेवय [ पवेतः ] ११२ 
मेहकुंड. [ नगरम्‌ ] ७५-७८ राजहंस [ राजपुन्रः ] १४८,१५५,१६० रेवय+ग [ उद्यानम्‌ ] २६८,३१२, ३५३ 
भोदवैत्यगृद॒[ चत्यम्‌ , टीकाप्रशस्ती] ३२७०. राम [ राजपुन्न, कृष्णबासुदेव आता ] ७३, रेवाँ [ गदी ] ९७ 
मोरियवंस [ राजवंदः ] १२५ ७९,३२२,३२५, रोह+अ, के [ नटपुन्रः ) ३-७ 
३४५-४०६ रोहण [पवतः ] १५३ 
[ नि अल । के ,, न ३२१,३४४. रोहिण+अ [ चौरः ] १३२७-२९ 
यव प्रन्थ-मुनिः १४७ दारथपुत्रः *रोहिणअ १२०७५,१२७ 
राम+एव,  [ राजा, १] ४६, है ' 
यशोनाग[ श्रेष्ठी, टीकाप्रशस्तोौ ] ३७० दे [ हर हि रोहिणी, [ भ्ेष्ठिप्ती]) १६,६१-६५ 
चन्द्र, देव ५७०-६१,१३३-३४, 
युगादिज्िन [ तीथंकरः ] १ अर के.) है ४६ 
शः रायगिद [नगरम्‌] ९,११-१०,१६, . 'दिणी ै को ] 08 
रइकेछी बिटः २०६४ २०,३०,८१,९५-१० ०, ४ र्‌ ३१८, ३५४ 
रइविलासा ' सो ] है हे १ ११४,१२६-२०, ११९, 'देडय [नगरम ] *+ 
रइसायर [ श्रेष्ठी ] २४४ १६५,२२९५,२४३,२६४, रौदिणेयक [चौरः] १२५,१२७,१२९ 
रइसुंदरी [राशी ] २४ २६९,३३२,३२५,३५९५, ल 
रत्नचूडचरित [ जनशास्रम्‌ , १६5३ लक्लण | [ राजपुन्नः ३२५ 
रायमई [ राजपुनत्री ] ३१३ लक्षण | 22 ५७,५८,६०,१३३ 
रत्नपुर [ नगरम ] १३१ बजईए  रजपुच ] १५६-६० .. रैंकमण 
रगणउर-पुर ,, _१७६,१४०,१९३ १४८ लच्छिग्गाम [ प्रामः ७१ 
रयणचूड [ राजपुत्री राज बच] ११४ ० बलि नल लकब्छिमई.[ ब्राह्मणपत्नी 
हि रावण  राक्षसवशीयराजा ] ५७,६०, [ ग्रा्मणपत्नी ] ७ 
रगणचूड[ कहा ] [ जेनशाक्रम्‌ ] ११४ _ दशमुख ६१,१३४ रची [देवी ] ९६ 
रयणदीव [द्वीपः ] २४,९२५ राह [ निमप्नेन्‍्ध-आचार्य:] ३५९ म [ राज्ञी १६९ 
रगणणहा [ नरकः रै१४ फंजबल [ राजा ] ५३. "च्छीतिलय [ नगरम्‌ ] २८५ 
रयणभंजरी [ राजपुत्री ] २०३-४, रिट्व॒डर [ नगरम ] १३९ ललिताज़ [ श्रेष्ठिप॒त्र: २६३,२६५,२६७ 
२०६०-१० 
रिट्ठनेमि [ तीर्थकरः ] १२१,३२३ *लछलियंग 22 २६२ 
रगणमाला [राशी ] ११४,१९३ शसह+देव, ५, २०,८२-८५,८७, .. छैलियेंगअ - हे २१६६-६७ 
रयणरह [ राजा ] १८० सामि, नाह, ८९,९०,९८,१००-१, लूलियंगय [ देवः ] २० 
3५७७ | अ्रष्ठ ] ५ शा -हेस, हेसर ११४,१५५ ३२२१-२३ लेंका [ नगरी ] ५७,३२५ 
कर १० रेन३े रिसिदता [तफपसपुत्री]। २५००-५०, छाड. [देशः ] ७२ 
हे हा इक २५६-५८,२६०-६५१  छीछाबई. [टाज्युत्री) . -+ १०५ 
वही [ नगरम्‌ ] २८० के ही २४४ लोभनंदि-लोह ० [ भ्रद्ठी ] २१९,२२५ 
हि फेक बे १ रक्मिणी.[ राज्ुत्री,राशी] ६८,०१.८०.. 'ोदक्चर_[चौरः की 
३५४ ».. ३२६,३२८-२९ के [ बंणिक्‌ २१ बम #छोहजंघध [ छेखाचायेः ] १५ 
रविकान्ता | श ३२६,३२६. रुप्पिणी.[राजुत्रो, राशी] ७२,७३,. अरदकि 5 मी २१८ 
सूर्यकास्ता 3७०७७ १४६ बेब ४) [ परित्राजक: ] १३१९ 
रहनेटर [ नगरम्‌ ] ८६ ५२,२५४-५७,३११, ष 
रहमरण गा २०५,२५२, ३१७,३२० अवइर [ निम्रेन्थ-स्थविरः] १६८ 
२५७५-५६ # ,, डे ६८ वहरजंध [राज |] ३० 
रहमित्त. [अह्मणः ५३,५४. रुप्पी [ राजकुमार, राजा] ७२,७३,०९ वहरसामि [ निम्नन्थ-स्थविरः ] १७०,१७४ 


भाम किम्‌ ' पत्रम्‌ 
बक्कलचीरी [ राज्पुत्रः ] १६४-६५ 
वश्छा . [देक्ष] १५,११६,१२३ 
अऊंगय [ राजपुतन्रः ] ३२४ 
वस़कण [राजा ] ५७ 
यज़जज | ५९ 
बढठर , [ भगरम ] 

अडकर [यक्षः ] १७४ 
बहलि [ ऋषिः ] २१६ 
यद्धणपपुर [ नगरम्‌ ] १५२ 
यद्धमाण कर १३५ 
बद्धमाण+सामि [ तीर्थकरः ] १३,२४,३५,९ ६, 
९८,१०३,२३३,२१९, 

२६४,२३२१३,३४५ 

अनमाला [राशी ] ५७ 
यम्मा ( राशी ] १३५ ३५१ 
चरदत्त | श्रष्ठी ] २७ 
[ निम्नन्थ-मुनिः] ७७,३१२ 
चसरदाम [ तीथम्‌ ] ८३२ 
वरघधणु [ अमात्यपुत्रः ] ३३१ 
यराड्ग [ देशः ] ७२ 
बराहग्गीव [ राजपुत्रः २१५ 
यराहमिहिर [ पुरोहितः ] ३०४-५,३०७ 
वलदि [ नगरी ] १७२-७३ 
वछूहराय [राजा ] १०७ 
यसंतउर- पुर [ नगरम्‌ ] १८,२५,९४,१६१, 
१७७, १८४-८५, 

१८८,१९७,२०१, 

२०८,२२५,२६५ 

यसंततिलया [ गणिका ] २०४ 
बसंतदेव [ श्रेष्निपुन्रः २५-२९ 
यसंतपुर [ ग्रामः ] १०० 
व्ंतसेणा [गणिका ] २१,२३,२१ २, 

२१७ 

न [ श्रेष्ठिपटनी ]० २८५ 
यसुदश [श्पमेष्ठिपुश्न) १३०,१३३, 
२१८५-८६, 

२१८८०८९ 
चसुदेव [ राजपुत्रोी राजा च ] ६८,७०,७१, 
पे ३१८०-१९ 

बसुमन्‍्दा [स्रेष्ठिप्नी ] , १३९ 


उछ - 


क्र 


विशेषनास्तामकारादिक्रमः 


भाम किम्‌ ! पतन्रम्‌ 
वसुमई [ राजपुत्री ] ३६ 
बसुमित्ता.[ ब्राह्मणपुत्री ) १५२ 
वाउभूृह [ ब्राह्मणपुत्रः ] ७६ 
वाडिपुरी [ नगरी ] १०७ 
वाणारसी न्‍ १०८,२१६,९२०- 
२२, २७०, ३४६, 
३५१ 
वाहयपहा [ नरकः ] ३२० 
धांसवदशा [ राजपुतन्री ] १५,१६ 
वासुदेव [ क्ृष्ण-वासुदेवः ] ४६,६८,७३, 
७७५,१२१,२४०, २६८, 
३११,३१३,३१५,३१७, 
३५४ 
बासुपुज॒ [ तीर्थंकरः ] २१०,३२३ 
वासुरूदेवी [ राशी ] २४६ 
विउसभूसण [ राजपुतन्रमिश्रमू ] २९५-९ ६ 
विउसाणंद.[ लछेखाचायः ] ३२९ 
विउसाणंदण [ राजपुन्रमित्रम्‌ ] २९७ 
विकमसेण [राजा ] १०४ 
विकमाइच रे १९१,१९५ 
विचित्र [ निग्नन्य-मुनिः ] ५७ 
विजय [ पवतः ] ७५,७६ 
मर [ विमानम्‌ ] २३८ 
9 [राजा] ३३५,३३०,३४० 
22 [ देवः ] # ३६७ 
विजयधम्म  [ राजा ] १०४-५ 
विजयसिरी ([ श्रेष्टिपुत्री १५१ 
- विजयसेण  [ विद्याधरपुतन्रः ] ७ 
विजयसेहर [ राजपुतन्रः ] २९७ 
विंज्जुमाली [ ऐन्द्रजालिकः ] १११ 
विणयंधर . [ निप्नन्थ-आचायः] ३६५ 
विण्हु [ कृष्ण-वासुद्देवः ] ज्ण 
»  [ राजपुत्रों निभ्रन्थ-मुनिथ ] १६८ 
विण्हु+कुमार । ,, १६८-७० 
>> 
विष्दुद्त [ वणिक्‌ ] १५१ 
बिदेह [क्षेत्रम ]) ३५,१४७,१५३, 
२४० 
विदेदहा [देदाः ] ३८ 
विद्ययाई [ निप्नेन्थ-स्थविरः] १७१ 


े८१ 
माम किम ? पत्रम्‌ 
विन्दुमित्त.[ पुरोहितः ] ३०५ 
विब्ममवई [ राअपुत्री ] १०९ 
विमल [ तीर्थकरः ] ३२३ 
विमलवाहण [६ निपम्नन्थ-मुनि ] ७ 
वियन्भ [देशः ] ५२ 
विरिचि | [ देजः ] ९६ 
दिर्षगन्भ 
विलासवई  [ राजपुन्री ] १०९ 
- विल्ल्रपुर  [ नगरम ] १०७ 
विशल्या [ राजपुत्री ] ६८ 


विष्णु + कुमार[ राजपुत्रों निम्नन्थ-- 
मुनिश्च] १६८,१७० 
विसछ्ा 


[ राजपुत्री ] ६८,६९ 
ऊँ ,, ५ हि ६८ 
विसा [ श्रेष्ठिपुन्नी ] १७५०-५१ 
विसेसय [ ग्रामः ] २२० 
विस्सभूइ [ तापसः ] २४९-५० 
विस्ससेण राजा 
हक । [ राजा ] ३६३ 
विदृल् [ राजपुत्रः ] ३३३ 
विश [ पर्वतः ] २३७ 
*वीर [तीर्थलरः] १,६८,३१५१ 
वीर ».. १,२,३०,३५,३८, 
६८, ९५-९७, ११५, 
१२७,१२९,१ ६५,१६७, 
१७१-७२,१७५,२३२-- 
३५, २३८, २६४-६५, 
२७५,३२३३-३०,३५१- 
५२,३६१-६२ 
वीरचरिक्र [ जनशास्त्रम्‌ू , टीका- 
| प्रशस्ता] ३६९ 
वीरनाह [ तीर्थंकरः ] १०३ 
*वीरमई [ राज्ञी ] ६८ 
वीरमई-ती ,, ५७५,५६,६८,७१ 
« वीरय [ शालापतिः ] १२१ 
वीरसेण [ राजा ] ७७,२९२ 
वीरंगय [ राजञपुतन्नः ] ३२४ 
वृषभ [ श्रेष्ठी ] २६८ 
बृषमजिन [ तीर्थंकरः ] ३२६ 
वृषभध्वज [ राजपुन्रः ] १३२-३४ 
वेइेसरे [ब्राह्मणपुन्रः ] ३४५ 


इ८२ 
नाभ किम्‌ * पत्रम्‌ 
बेगवई [ नंदी ] ११४ 
बेजयंत.. [ देवः ] ३६७ 
वेशा [ नदी ] १७४ 
घेभार [पर्वत!ः]। ४१,११२७,१२९, 
३६१ 
वेय [ ब्राह्मभपुन्रः ] ३४५ 
वेयगन्म हर ३१४५ 
वैयड्ढ [ पर्वतः ] ३४,७७३,७८ 
हे २११,२३६ 
वेयज्भ [ नंगरमू )। ५१,५३,५५,५६ 
वेयमित्त.[ ब्राह्मणपुत्रः ] ३०५ 
वेयरूव हर ३०५ 
वैगसाम ल्‍; ३४५ 
वेयसार गा ३४५ 
का: | श्रेष्ठी २०१ 
[ नगरी ] २७३ 
बर + स्वामी [ निप्रेन्थ-स्थविरः] १६८, 
१७५०-७१ 
व्याख्याप्रज्ञप्ति [ जैनागम:, 
ठीकाफ्रास्ती] ३७० 
दवा 
शड्ज [ राजा ] ३९६,३३४,३४३ 
शतानिक कि १६१ 


शम्बकुमार | [ राक्षसवंशीयः ] ५७,५८ 
सम्बकुमार 
शय्यम्भव [ ब्राह्मणों निप्रन्थ-स्थविरः ] ९७ 


शालिप्राम [ प्रामः ] ३०८ 
हधालिभद्र | श्रेष्ठिपुन्नः | १७,३० 
शौरि [ राजा ] ६८,६%,७१ 
श्रीकान्त - [ श्रेष्टिपुश्न]. १३०,१३४ 
श्रीचन्द्रसूरि [ निप्रन्थ-आचार्यः, 
टीकाप्रशस्तौ ३ ३६९ 
श्रेणिक [ राजा ] ३,९५,२२७, 
३२६ ३२५१ 
शत 
#सउरी [ राजा ] ६८ 
#सगर [ चक्रवर्ती ] ३२१ 
अगर है ३२२ ३२४५-२५ 
सयर 


सभ्य [ निश्नेग्थ-मुनिः ] ७६ 


प्रथम पंशिशिएंग 


मांमि किम पंश्रम्‌ 
संघभामा | (राज्ी] ७५२,७४-७६,७९, 
सभ्या <०,३११,३१३ 
सवाई [ यक्षः ] १९० 
सअसिरी [ कुठुम्विपलनी |] २२०९-१० 
सणंकुभार [ चकत्रती ] २२१ ३६३,३६६ 
# को ३५१ 
सनत्कुमार ».. ३५१,३६२,३६७ 
सप्तच्छऐक [राजा ] १३२ 
सब [बलीवद:ः]. १७८,१८२ 
के ,, ४५ १७८ 
समरकेठ [ राजप॒न्नः ] ३२४ 
समतभद.[ निग्रन्थ-आचायः ] २१८ 
393 [ 43 मुनिः ] रे ;; १ 
समाहिगुत्त 9१ 32 3२ 
*समिय [ ,, स्थविरः ] १६४ 
समियज रा ». १६८,१७४ 
सम्रित 
समुहृविजय [राजा ] ७०,७१,३११-१३ 
समुद्रदत [ श्रेष्ठी] १३०,१४९,१५१, 
२८५ 
सम्प्रति [ राजा ] १२३,१२५ 
सम्भूत [ मातब्पुन्रो, 
निग्रन्थ-मुनिः] २१९,२२१ 
सम्मेयसेल. [ पर्वतः ] १६८ 
सयडाल..[ अमात्यः ] १८३ 
सयपाग [ तलम्‌ ] २३ 
सयाणिय- णीय [ राजा] ३६,११६,१६७ 
सरयसिरी '[ राजपुन्नी ] १२४ , 
सरस््रती. [दिवी] १ 
सरस्सरे ! अमात्यपटनी | ३४५-४६ 
सव्बद्ठ + सिद्ध[ देवलोकः] २०,४४,२१० 
सब्च॒त्य | श्रेष्ठी ] २१२ 
ससिसेहर [ राजा ] २२८,२८५ 
सहदेवी . [राक्ञी ] ३६३ 
संख [ भ्रष्ठी ] १०८ 
है ( राजा] २११,२७०,३३५, 
३२७,३४०-४१ 
र 9 ३२६ 
संखस+उर [नगरम्‌ ] २५,२८,२९, 
३३४,३४५२. 


मोम किम * पं्रम 
संसपाल- वाल [ यक्षः ] २८:१९ 
संगमअ- थ. [ कुलपुत्रः ] ३० 
संगमय [देषः ] ११५ 
सैगय [ राजपुश्रः ] ११४ 
सैंगरपुर [ नगरम्‌ ] ७५ 
संगा [ भ्रष्ठिपश्नी ] २६१ 
संति+ नाह [तीर्थकरः] २९,३०,३२१३ 
संदणपुर [ नगरम्‌ ] २९९,३०३ 
संपर्‌ [ राजा ] १२४-१५ 
के *+ 32) १ १३ 
संपया [ श्रेष्ठिप्मी ] १२८ 
संपुलल . [कण्चुंकी ] ३८ 
संब [ राजपुन्रः]) ८०,२४०,३११, 
३१५ ३१७,३२० 

संभव [ तीर्थकरः ] ३२३ 
संभूइ [ भातंगपुत्रो निम्नेन्‍्थ-मुनिथ्च ] ३२९ 
*सेथूत | २१८ 
संभूय श २२१,२७५ 
संभूयविजय [ निग्रन्थ-स्थविर:]. १८३ 


साकेअ-य [ नगरम्‌] १६७,२२१,.३५४ 


सागर +अ  श्रेष्ठी ४९४,४५ 
सागरचंद [ राजपुश्रः ] २४०,३१५५ 
क हे 4१) ३ रे ८ 
सागरचन्द्र र २४०-४१ 
*सागरदत्त [ श्रेष्ठी ] २६२ 
सागरदत्त-तायर ० ,, ४०,४५,१५०-५१, 
है २६२-६४ 
सामाइभ  [ कुट्ठम्बी ] १०० 
सामि [ वरद्धमानस्वामी तीर्थकरः ] ३३३ 
सायर [ अमात्यपुत्रः ] १९३ 
'सावैभूति. [निम्रन्थ-आचायेः] ६१ 
सालिराम [ ग्रामः ] ३०,६९,७६, 
१२८-२९, २२२ 

सालिभरहू श्थश्रेष्ठिपुश्न]) १७,३०-३५ 
सांवश्थी [ नगरी ] ३२६,३०४५ 
“*सावित्ती [ ब्राह्मणपत्नी ] ३४४ 
सावित्ती है ३४५ 
कर [ पुरोहितपत्नी ] ३०५ 

|; [ देवी | ९६ 
साविश्री.[ ब्राइणमत्मी ३५५ 


नाम किम, पन्रम्‌ 
सिशुजय [पंत ] १५५ 
सिद्ध [ निम्ेन्ध-स्थविरः]. १६८ 
सिद्ध [ नमित्तिकः ] ७ 
सिद्धउत्त [ छेखाचायः ] १९७ 
सिद्धत्य [राजा] ९६,२३३,३२३ 
हर [ सारथिः ] ३१०,३२१ 
सिद्धनाग [ श्रेष्ठी, टीकाप्रशस्तौ ] ३७० 
सिद्धपुस..[ नेमित्तिकः ] ४८ 
घसिदलेण.[ बाक्षणों 
निग्रन्थ-स्थविरथ्ष ] १७१-७२ 
सिद्धसेनदिवाकर' ,, १६८,१७१-७२ 
सिद्धार्थ [ राजा ] १ 
हु [ वणिक्‌ ] ३५२ 
सिध्पनई- सरी | [नदी] २५,५,२०१ 
सिप्पा है 
सियजस [राजा ] १४० 
सिरिउ॒ [नगरम ] २४,१५४ 
सिरिकेंठ. [ देशः ] १५६ 
सिरिकठ | [ देघः ] ९६ 
हर 
सिरिचंद.[ राजपुत्रः ] १५६,१५९ 
सिरिदेवी [देवी ] 4२ 
हे [ श्रष्ठिपुतन्री ) १५२-५३ 
॥ [ राशी ] ३३६ 
सिरिधम्म  [ राजपुत्रः ] १५२-५३ 
। [( राजा ] १६९ 
सिरिपव्वय [ पव॑त्ः ] १०६,२९१ 
सिरिसमई॑  श्रेष्ठिपुन्नी ] १०१ 
छिरिसंगल [ देशः ] ३३४ 
ब्िलागाक़ [ भ्रामः ] ४,५ 
सिव [ वणिक्पुत्रः ] २२५ 
सित्रएवी- देवी | [ राज्ञी | ७१,३१३,३०५४ 
सिवादेवी 
सिवचंदा [ विद्यापरपत्नी ] ७५ 
सिवभहु [ वणिक्युत्रः | २२५ 
सिवमदिर [ नगरम्‌ ] २११ 
सिवा+देवी [राज्ञी ] १५,१६ 
सिसुपाल [राजा ] ७३ 
सिंधु+देवी [देवी ] ८२,३३९ 
सिहकेसरअ- य [मोदकः]. २३,२६४ 
सिंहजस [ राजपुत्रः ] २१५ 


विदोषनाम्खम्कार्क्क्तमः 


नाप्त किम ! पतन्रम्‌ 
सिहऊ+दीव [ द्वीप: ] ६३,२८७-८८ 
श्सीया ( राज्ञी ] ४६ 
सीया-ता ,, ५६,५७,५८,६०, 
६१,३२५-२६ 


सीमंघर+सामि [ तीर्थकरः ] ७६,७९,३७० 


सीयल 99 ३२३३ 
सीलमई [ राजपुत्री]) २९४-९५, 
२९७-३००,३०२-३ 
सीह [ सुभटः ] ८४ 
सीहक [ कर्षेकः ] ३४९ 
सीहगिरि [ राज ] २६१ 
सीहबल १ १६९ 
सीहरह [ सेनानीः ] ८५,८६,८९ 
22 [ राजपुत्र: ] २५८ 
सीहविकम हि ३२४ 
खुकुमा रिका- लिका [ राज्ञी ] १८४,१८६-८७ 
सुकुमा लिया गा १८६-८७ 
के 8 कि १८४ 
सुकुमालिया [ विद्याधरपुश्री ] २११ 
». [ श्रेष्तिपुन्नी ] ४०,४9५ 
खुकक [ देवलोफः ] <द० 
सुप्रीव [ वानरवंक्षोकः ] ५८,६१ 
१३३-३४, 
सुजसा [राक्ी ] २४६ 
सुज्जहास [ खड़मः | २२५ 
खतारा [ राज्षी ] १०९ 
सुत्यिय [निग्रन्थ>आचायः ] १००,२२६ 
खुदशन [श्रेष्ठो]).. ०६ ६५,१३०, 
१४०,१४६ 
*सुद्सण 5 १३० 
सुदंसण ही ११४१-०६ 
9 [ श्रष्ठिपुतन्रः ] १८८ 
कं [ श्रष्ठी ] १९१ 
१ [ नगरम्‌ ] २७८,२८१ 
सुदंसगा [राज्ली ] २८५ 
सुद्धढ | [ ब्राह्मणः | ४१,५४३ 
निश्विणसम्म 
सुधण [ श्रेष्ठिपुश्र]. २०,२५,३० 
सुधणु | श्रेष्ठी ] २२ 


सुधम्म- हम्म [ निग्रन्थ-गणधघरः ]:९७,२६९ 


३४४ 
नाम किम्‌ पन्स़ 
सुनंदा [ श्रेष्निपृश्नी, सही ] ११-१३, 

२०,९९,११९,२२९ 
छुन्दर [ कषेकः ] ३४९ 
सुपाससामि [ तीर्थंकरः ] ३२३ 
सुप्पणपदा [ राक्षसबंशीया ] ३२५ 
सुप्रभा [ निम्रन्थिवी ] ६१ 
सुबुद्धि [ अज्ात्यय ].. २८५,२८८ 
सुभग, [ दासः ] १४०-४१ 
स्सुभहा [ भ्रेष्ठिफ्नी ] १६ 
खुबहा डे ६५७६७ 
72 १3 २१०,२१७ 
93 [ राशी ] ० 
के [ प्ररिक्रजिका ] २१६ 
खुभद्ा.. [श्रेष्ठिप्नी]. ४६,६५, ६७ 
सुमइ [ अमात्यः ] १९३,३०५ 
9० [ तीर्थकरः ] ३२३ 
सुमगल [राजपुत्रः] १३३१-३२ 
सुमिण [ यक्षः ] ७६ 
सुमुद् [ दासः ] १६५ 
सुमेरपद्द [ दस्ती ] २३६ 
सुरद्ठ [ देशः ] २२५,२६१ 
सु॒पिय [ यक्षः ] १९५ 
सुरपिय | कई १६७ 
चित्तपिय 
सुरवरतरंगिणी [ नदी-गजन्ञा ] १०८ 
सुरिद [ श्रेष्ठी ] १९३-९४ 
*सुरूसा [ रथिकपहनी ] ९५ 
सुलसा क़ ९५७५--९ ७ 
गे [ परित्राजिका | २१६,२५१ 
हे [ श्रेष्ठिपटनी ] ३५३ 
सुवश्नजालेसर [ देवः ] १०५ 
सुविहि [ तीथैकरः | ३२३ 
सुवेग [ सुभटः ] ८9 
१» [ दूतः ] ८ 
सुव्वअ-य॒ [ निप्रन्थ-आचायेः] १६९ 
सुव्वया [निप्रन्थिनी] २१८,२८२ 
सुसीमा [ नगरी |] १८५ 
सुसेण [ सेनानौः | ८५-८७ 
सुसेणा [ राजपुन्री १३ 
सुदृत्यथल.€[ भ्रामः ] १५३ 


३८४ 
नाम किम्‌ पन्रम्‌ 
सुदम्भ | [ देवलौकः ] २०,५६,७०,७६, 
सोहम्म ७७,८६,११८-१९, 
१५२,२०९, २३९- 
४०,२८३ »३ ९९ 
सुन्दरपाणि [राजा] २४६,२५१,२५४ 
सुन्दी  [ निग्रन्थिनी ] ९० 
हि [ अन्तःपुरमद्तत्तरा ] ६४ 
५५ [ राज्ञी ] २५, ३८ 
सुंब [ राजकुमारः ] ३२५ 
सुंसमा [ श्रप्ठिपुन्री ] १२६ 
सूमिका [ कर्षेकपुन्रतधूः ] ३४९ 
सरदेव. [ स्थपतिः ] २०३ 
सरियकंत [राजपुन्नः ] ३२६ 
सूरियकंता । [राशी] ३९२६,३१८-२९ 
रविकंता 
सूरियाभ [ देवः ] ३२९ 
१3 [ विमानम्‌ ] ३२९ 
सू्यकान्ता । [ राज्ञी ] ३२६,३२९ 
रविकान्ता 
सेजंभव[ ब्राह्मणो निग्नन्थ- 
स्थविरश्ध ] ९७-९९ 
हक ५ ९७ 
सेड्वक [ ब्राह्मणः ] ९५ 


सेणग-य [ अमात्यपुत्रो 
तापसश्व ] १३३१-३२ 

*सेणिय [ राजा | ९५ 

सेणिय ». १-१४,१६ २०,२४, 
३१,३२९, ३५,९६, ९१९, 
१०३,११४-१५,११ ८, 
१२७-२९, १६५-६६, 
२२९-३०,२३९, २४३, 
३२६४-६५, ३३२२-३४, 
३६०-६२ 


प्रथमं परिशिष्तम्‌ 


नाम किम्‌ ! पन्रम्‌ 
सेदुअ [ ब्राह्मण: ११६ 
के 5 ग ११ ३ 
सेदुव+ क ,, ११३,१२० 
सेयणय [ दृस्ती २३,१२,२३ २ 
सेयविया [नगरी ] १०४,१०७,३२६- 
मु २७ 
सेयस [ तीथैकरः ] ३२३ 
सोदास | विद्याधरः ] ६९ 
सोदास ) | राजा ] १८४-८६ 
नराअ- द 
सोपारय [ नगरम ] २०३,२६१ 
सोम [ ब्राह्मणः ] ४३ 
सोमर्चद [राजा ] १६४ 
सोमदस्त [ ब्राह्मणः ] ४8३ 
सोमदेव हि ७१,७६,१३१५ 
सोमप्पह » १३५-३६,१३८,१४० 
93 95 १३० 
सोमप्रभ ».. १३०,१३५,१४० 
सोमभूद न्‍; ४३ 
सोमसम्म 2 ३५३-५४ 
सोमा [ पुरोद्वितपत्नी ] ३०५ 
सोरष्् [ देशः ] १५५,२६ ८ 
सोरियपुर [ नगरम्‌ ] ७०,३१३ 


सोहम्म | [ देवलोकः ] २०,५६,७०,७६, 


सुहम्म ७७, ८६९, ११८-१९, 
१५२,२०९,२३९-४ ०, 
२८३,३२९ 

सौधम » १३१ 
6. 

हश्थिकप्पपुर [ नगरम्‌ ] ३१८ 


हृत्यिणउर- णाउर- ,, ७६,७७,१०९, 
पुर १६८-६९,२२१,२६५ 


नाम किम्‌ ! पतन्रम्‌ 
हत्यितावसासम [ आश्रमः ] १०३ 
हनूमत्‌ [ बानरबंधीयः ] ७५८ 
हरि [ कृष्ण-वासुदेवः ] ७३-०६, 
७५९,८०,१२१, १ २३, 

२६०,२३५४ 
के *ै/ 3 १२१ 


हरिकेशि- केश [ मातपपुन्रो 
निप्रेन्ध-मुनिश्व ] २७०-७१ 


हरिकेसबल हे २७१ 
हरिकेता [ भातजजातिः ] २७१ 
*हरिकेसि [ मातब्पुत्रो, 
निग्रेन्थ-मुनिथ ]. २७० 
हरिवंश [ जनशाह्मम ] ७१,८०,३२१ 
न [ राजवंशः ] ३१९-२० 
हरिसठर [नगरम्‌] २०१,२९३-९४ 
हरिसीह [ श्रष्लिपुान्रमिन्रम ] २११ 
हरिसेण [राजा] २४८-५०,२५४ 
हलहर  [ राजपुत्नो बलदेवः ] ७४,७६,८० 
ह्लि ७». २१६,३१८,२२० 
हलाउह्‌ 
ह्ल्ल [ राजपुत्रः | ३३२३ 
हंस [ द्वीपः ] ५८ 
हारप्प्ा [सार्थवाहपुत्री]) १९७०-९९ 
हिमबंत.[ पर्वतः ] १०६,१९६ 
हिरश्रोम [ तापसः ] २१९ 
हिरिमत. [ पर्वतः ] २११ 
हुयवहजाल [ नगरम्‌ ] ७५ 
हुंडिय [ राजा-गुप्तलराजा ] ५४७ 
हेमकूड..[ धातुवादी ) १३८ 
हैमरह [राजा ] २०६,२५०५,२५०८ 
हेमदअ [क्षेत्रम ] ५६ 


ध0 -# 


रन 


नर ७ छू -त 


१० 
११ 
१२ 
१३ 


१४ 


भ्न्त:पुरमहत्तरा 
अमात्यास्त- 
त्परिवारथ्व 
आजीवकमत- 
प्रणेता 
आभुषणम्‌ 


आभीरस्त- 
ल्परिवारध्य 


आश्रमः 

ह्न्द्रः 

उत्सवाः 
ऐन्द्रजआालिकः 
कविः 

कण्चुकी 
कुम्भकारः 
कुलपुत्र-कर्ष क- 
कुटम्बिनस्तत्प- 
रिवारश्व 
कृष्णवासुदेव- 
नामानि 


१५ क्षेत्राणि 

१६ खड़गम्‌ 

१७ गणिकाः 

१८ गुफा 

१९ चक्रवर्तिनः 

२० चेत्यानि 

२१ चौरस्तत्पत्नी- 
पुत्नौ च 

२२ तापसपिपुत्री- 
पुत्रौ 


२३ तापसशाखा 
२9 तीर्थानि 
२५ तीथ्थकरा! 
२६ तलम्‌ 

२७ दास-दास्यः 
२८ दूतः 

२९ देवजातयः 
३० देव-देव्यः 
३१ देवलोकाः 
३२ देशाः 


(१) अन्तःपुरमहत्तरा 


सुंदरी 


कणगकेउ 


(२) अमात्यास्तत्परिवारश्व 
अभय+कुमार 


गकेउ 


कप्पय 
चउरमइह 
चित्त 
भूलभह्‌ 
दीहपट्ट 


डरे 


घणु 

नमुई 
नंद 
नाणगब्भ 
पोइला 
बुद्धिसार 
भाणु 


२ 


दितीय॑ परिशिष्टम्‌ 


आख्यानकमणिकोश-तट्टीकान्तगेतविशेषना म्नां विभागशोनुक्रमः 
[ परिशिष्टेस्मिन्‌ प्रथमपरिशिष्टगतविशेषनाजन्नां तत्परिकल्पिता विभागा अधस्तादुछिखिता इति तत्तद्विभागदिदश्षुभश्तत्तदाडझ्लितो 


विभागोअलोकनीय: ] 
न एन 
३३ द्वौपाः ४७ पव॑ताः 
३४ धातुवादी ४८ पुरोद्दित-बआ्राह्मणा- 
३५ धातन्री स्तत्परिवार थ्व 
३६ नगर-नगरी- ४९ बलीवदों 
ग्राम-सशिवेशाः ७० ब्राह्मणजातिः 
३७ नटपुत्रः ५१ भम्रत्रतमुनी 
३८ नदी-वापी- ५२ मेरी 
सरांसि ७५३ मणिः 
कि ५४ मणिकारः 
पक अपकक, ५५ मदिरा 
४१ ४४८४९३०३७४३ ५६ मह्ाः 
“ ५७ पम्ातज़जातिः 
2२ निग्नन्थगच्छः 
९ ५८ म्ातज़जातीया 
४३ निग्नन्थ- निर्धन्थाः 
निर्मन्थिन्यः न्थाः 
ह ५९ प्रातक़जातीयो 
४४ निग्नन्थशाखा राजा 
४५ नेमित्तिकौ ६० प्ातज्ञपालित- 
०६ परिव्राजक-ताप- राजपुत्रः 
सर्षि-भ्रमण- ६१ मातत्नास्तत्पटनी- 
कापालिका: पुत्राः 
६कमउ्रदातरतथारणमपिकिशातावाउपरत्परप अप 
सइसायर सायर 
महिदसीह सुबुद्धि 
वरघचणु खुमइ 
सयडाल सेणग- य 
सरस्सई 


(३) आजीवकमतप्रणेता 


गोशालक 


गोसालक्य 


(४) आभूषणम्‌ (हारः) 


अट्ठारसचकवेह 


६२ भालाकांरा मा- 
लाकारपतनी च 


६३ मोदकः 

६० येंक्षाः 

६५ रथः 

६६ रथिकपत्नी 
६७ राक्षसवंशीयाः 
६८ राजगृहपाटकः 
६९ राजवंशौ 


७० राजानो राश्यों 


राजपुत्र्यों राज- 
पुत्रास्तन्मिन्राणि 


च्च 
७१ लेखाचार्या: 


(उपाध्यायाः )" 


७२ बना-5रण्यपो- 
द्यान-वाटिकाः 

७३ वन्यजातिः 

७४ वानरवंशीयौ 


५ 
3९ 


विटः 
विद्याः 


७७ विदाधरास्त- 


८ 
७९ 
८७ 


4१ 


<२ 
८३ 
८४ 


<+५ 
4६ 


<6& 


त्परिवारथ 
विमानानि 
शालापतिः 
शास्राणि 

( ग्रन्था: ) 
श्रेष्ठि-सार्थवाह- 
वणिजस्तत्परि- 
वारथ्व 

श्रपाकः 
सज्नीतकारः 
सारभी 
खुभटा: 
सेनान्यौ 
स्थपत्तिः 
हस्ति-हस्तिन्यः 


(५) आभीरस्तत्परिवारश्व 
रेणुया 


घधभन्नअ-क, य 
धम्मिलाभ 


(६) आश्रम: 


हत्थितावसासम 


(७) इन्द्रः 


धरणिद 


३८६ 
(८) उत्सवाः 
इृदमद दीवूसव 
कोमुश्दिवस- इमद भयणतेरसी 
“इमइसव 
(९) ऐन्द्रजालिकः 
विज्जुमाली 
(१०) कविः 
कालिदास 
(११) कच्चुको 
- झंपुलअ 
(१२) कुम्भकारः 
दुग्गय 
(१३) कुलपुत्र-कषेक-कुद्म्बिनस्तत्परिवारश्व 
आइच्च मनोरथ 
छेमंकर सायाइच्थ 
गंगाइजअ मायादित्य 
प्वण्ड्चूड सअसिरी 
संडहरड- भड संगमअ- ये 
दामन्नक सामाइय 
धन्षा » सीहक 
बंधुमई सुंदर 
मनोरमा सूमिका 
(१४) कृष्णवासुदेवनामानि 
उर्विंद नारायण 
क्ण्द्‌ पुरिसोत्तम 
कन्हद महुमहण 
केसव वासुदेव 
गोविंद विण्हु 
जणरण द्दरि 
(१५) क्षेत्राणि 
पुम्वविदेह भहाविदेह 
भरह विदेह 
भारह हेमवअ 
(१६) खड्गम्‌ 
सुजहास 


द्वितीय परिष्ठिष्टम 


(१७) गणिका: 
अणंगसेणा कोसा 
उपकोशा चमरद्दारिणी 
उवकोसा देवदत्ता 
कलिंगसेणा मागह्दिया 
कामपडाया रइविलासा 
कामरइ बसंततिलया 
कोशा बसंतसेणा 

(१८) गुफा 
कायंबरी 

(१९) चक्रवर्तिनः 
बंमदत्त महापउम 
भरत | सगर 
भरह+नाहू, वह सण्णकुमार 
- हेस, हेसर सनत्कुमार 

(२०) चैत्यानि 
गुणसिल+अ मोढचेत्यग्रह 
भंडीरवणचेशइय 

(२१) चौरस्तत्पत्नी-पुत्रौ च 
दुग्गचंड रौहिणेयक 
रोहिण+अ लोहक्खुर 

(२२) तापसर्षिपुत्री-पुत्रो 
ऋषिदत्ता रिसिदत्ता , 
पिप्पलाअ 


(२३) तापसशाखा 
बभदीवया- दीविया 


(२४) तीर्थानि 
पहास वरदाम 
मागह्‌ 

(२५) तीर्थकराः 
अजिय उसभ 
अणंत कुंधु 
अभिनंदण चंदप्पद्द 
अर जुगाइदेव 
अरिट्टनेमि धम्म 


नि वद्धमाण+सामि 
निम्ममत्त वासुपुज 
नेमि+चद, नाह बीर+नाह 
पउमनाद बृषभजिन 
पउमप्पह संति+नाह 
पाश्व संभव 
पास सामि 
मह्लि सीमंधर+सामि 
महावीर सुपाससामि 
मुणिसुग्यअ- य सुमइ 
युगादिजिन सुविहि 
रिट्ठनेमि सेयंस 
(२६) तैलम्‌ 

सयपाग 

(२७) दास-दास्यः 
कुंद दुम्मुहद 
गंगदत्ता दोण 
गगरुद्द द्रोण 
चवला पियंकरा 
चेडरुह पियंगुलया 
चिला पुश्नवसु 
चिलाइपुत्त मंजरी 
बिलातीपुतन्र सुभग 
थावर 

(२८) दूतः 

सुवेग 

(२९) देवजातय: 
अग्गिकुमार भवनपति 
ददूदुरंक 

(३०) देव-देव्यः 
अणाहिट्ठि चैडिया 
आगासरेवई चंडी 
इलादेवी चामुंडा 
कटपूतना जलणप्पह 
कुडंगेसर जंबू 
खीरडिंडीर दुर्गा 
खीरडिंडीरा घूमकेउ 
गउरी नागकुमार 


विशेष-, कप 2322 २ ०» 5लुक्मः 
(३५) धात्री 


पंडिया 


(३६) नगर-नगरी-ग्राम-सनिवेशाः 


निव्युई सरस्वती 
प्तदेवया संगमय 
भद्दाकाल सावित्ती 
लछलियंगय हर 
विज सिरिदेवी 
विरिचि सिंधु+देवी 
हिरभ्नगब्भ सुवनशजालेसर 
बेजयंत सूरियाभ 

(३१) देवलोकाः 
अच्चुय सव्वद्ट+सिद्ध 
ईशान सुक्क 
इसाण सुहम्म 
बंभलोअ सोहम्म 
मदासणंकुमा र सौधम 
माहिंद 

(३२) देशाः 
अद्दय पचाल 
अवंती बहली 
अंगा सगहा 
उत्तरापद्द मज्ञदेस 
कलिंग सालव 
कासी मेदपाट 
कुरु लाड 
कुसट्टा वच्छा 
कुंकण वराडग 
केयइ विदेद्दा 
कोसल वियब्भ 
गंधार सिरिकंठ 
टंकण सिरिमसंगल 
देवनदि सुरद्द 
नेपाल सोरद्ठ 
पडठम 

(३३) द्वौपा: 
खउ णदी व नदीसर 
जवणदीव रयणदीव 
जबुद्दीव सिंहल+दीव 
भायइसंड हंस 

(३४) धातुवादी 
हेमकूढ 


अउज्झ्म चंपा 
अणिमंजिया छ्म्माणी 
अद्दय जयवद्धण 
अयलपुर जयंती- तिया 
अवंती जबउर- पुर. 
आयामुही जीवहरण 
इलावद्धण तक्खसिल 
उजयणी तामलित्तो 
उजणी तिलयपुर 
उसीरावत्त तुंबवण 
उसुयार तेयलि 
एलउर द्सउर 
कत्तियपुर दतवक्क 
कन्षउज देवसांल 
कर्मार द्वारकात्रती 
कर्षक घन्नउर 
कंचणप्रुर धरणितिलअ 
कंचिया धवलकक 
कची धवलकपुर 
कपिह्नपुर नंदण 

कायंदी परइ॒ट्ठाण 
कावेरी पउमावई 
कासहद पउमुत्तर 
कुसुमपुर पत्च॑तपुर 
कुंडबलय पंडमहुरा 
कुंडिणा पाडलिपुत्त 
कुंडिणिपुरी पियंगु 
के|सलपुरी पुडरिगिणी 
कोसला पोतनपुर 
कोसंबी पोयण+पुर 
क्षेमपुरी बारवई 
खिइपइट्टिय बिन्नायड-बेन्ना 
गयउर भदहिलपुर 
गेंगउर भरुयच्छ 
गंगाउर भूतलानन्द 
गिरिनयर मगहापुर 
गुरुसत्थ मत्तियावया- बह 


३८७ 
महिला वाणारसी 
महुरा विल्ल्रपुर 
मंगलउर विसेसय 
मजुलावई वेयन्म 
सारावद्ीी वेसाली 
मिहिला शालिग्राम 
मेहकुड संख+उर 
रत्नपुर संगरपुर 
रयणावह संदणपुर 
रहनेउर साकेअ-य 
रहमहण सालिग्गाम 
राजपुर सावत्थी 
रायगिह सिरिउर 
रिट्ठ॑उर सिलागाम 
रोहेडय सिवमंदिर 
लब्छिग्गाम सुदंसण 
लच्छीतिलय सुसीमा 
लंका सुहृत्थल 
वडउर सेयविया 
बद्धणपुर सोपारय 
वद्धमाण सोरियपुर 
वलहि दृत्थिकप्पपुर 
वर्संतउर- पुर हत्थिणाउर- णउर 
वसंतपुर हरिसउर 
वाडिपुरी हुयवहजाल 

(३७) नयपृत्र: 
भरत रोह+अ, क 
भरदह 

(३८) नदी-वापी-सरांसि 

कन्ना रेवा 
कावेरी वेगवई 
गंगा वेन्ना 
गंधव३ सिप्पनई- सरी 
नम्मया सिप्पा 
नेंदा सुरवरतरंगिणी 
पउप्तसर 

(३९) नरकाः 
अपइटब्दाण वालयप्पद्दा 
रयणप्पहा 


३८८ 
(४०) नाणकम्‌ 
दीणार 
(४१) नाविक-नाविकपल्यों 
काणा नंद्‌ 
(9२) निग्रेन्थगष्छः 
बह्द्व्च्छ 
(३३) निग्नेन्थ-निग्नेन्थिन्यः 
अइमुत्तय जसभह 
अजितसूरि जबु+णाम 
अजियजस जिणसेण 
अजखउड जिणाणंद 
अज्सुहत्णी जिनचन्द्र 
अद्यकुमार तिविक्रम 
अमियतेय त्रियुप्त 
अरहन्नक- ये थूलभर 
अद्दननक दुकंबतरिसि 
आनन्दसूरि दुछ़हएवी 
आम्नदेवसूरि देवरिसि 
आयंखपुट देवसूरि 
कुलचन्द देविद 
केसी धम्मघोस 
खमग+रिसि धम्मनंदण 
गज+सुकुमार धम्मरुइ 
गय+सुकुमाल धम्मसिरी 
गुणाकर धमंरुचि 
गोयम्सामि नमि 
गौतम नंदिवद्धण 
चण्डरुद्र नंदिसेण 
वनन्‍्दनार्या नाणगब्भ 
ज्ंडरुइ नारअ- द, य 
चैदणज्जा निउण 
"णकुमारी नेमिचन्द्र 
_णबाला नेमिचन्द्रसूरि 
हि पभवसूरि 
चित्रगुप्त पसन्नचंद 
जक्ख पद्दाससूरि 
जव्खिणी पाब्ेदेव 
अम्मु पुंडरीय 
जब प्रभवसूरि 


द्वितीय परिशिष्टम 


असचचन्द्र 
बसी 

भददजस 
भदबाहु 
भवंतकर 
प्रणअ- ग, य 
सणिचूड़ 
प्यमह् 
मह्त+वाई,वादी 
मुणिचंद 

यव 

राह 
वई्र+सामि 
वरदत्त 
विचित्र 
विणयंधर 
बिण्हुकुभार 
विद्धवाई 
विमलवाहण 


विष्णु+कुमार 
बैर+स्वामि 
शय्यम्भव 
श्री चन्द्रसूरि 
सच 
समंतभह्‌ 
समाहिगुत्त 
समियज 
समित 
संभूयविजय 
सार्वभूति 
सिद्ध+सेण 
सुत्यिय 


सुधम्म- हम्म 


सुप्रभा 
सुब्बअ- य 
सुव्वया 
सुंदरी 
सेजभव 


(9४) निग्रन्थशाखा 


बंभदीवया- दीविया 


(४५) नैमित्तिकौ 


सिद्ध 


(४६) पसख्रि जक-तापसपषिं-श्रमण-का पाल्किा: 


सिद्धपुत्त 


अम्मड भइरवाणंद 
अम्बड भारभूइ 
कढ महाकाल 
कमढ वहुलि 
घोरसिव विस्सभूइ 
जन्नवक सुभदा 
दीवायण सुलसा 
परासर सेणग- य 
बुद्धदास हिरनन्‍नरोम 
बुद्धाणंद 

(४७) पदवेता: 
अगमंदिर अंगामंदिर 
अट्ठावय अंजण 
अबुद उर्जित 


जालंधर 
मेर 
रदह्ावत्त 
रेवय 
विजय 
विश 
वेभार 


वेयडढ 
सम्मेयसेल 
सिस्ुजय 
सिरिपव्वय 
हिमवंत 
हिरिमित 


(४८) पुरोहित-आ्रह्मणास्तत्परिवारण् 


अग्गिजाला 
अरिगभूइ 
आगच्सम्म 
कविल 
कविला , 
चकयर 
चक्रचर 
चुलणी 
जक्खसिरी 
अजनदिन्न 
जसा 
दिवायर 
नागश्री 
नागसिरी 
निग्धिणसम्म 
पहाकर 
पारासर 
प्रभाकर 
बउलदुश 
भददवाहु 
भिगु 
भूयसिरी 


 देण 


प्णअ- ग 
साहव 
रहमित्त 
लक्छिमई 
वराहमिदिर 


कम्बल 


वसुमित्ता 
बाउभूइ 
विन्हुमित्त 
वेईसर 
वेय 
वेयगब्भ 
वेयमित्त 
वेयरूव 
वेयसाम 
वेयसार 
दय्यम्मव 
सावित्ती 
साविश्री 
सिद्धसेण 
सुद्धड 
सेज्ज॑मत्र 
सेडवक 
सेदुअ 
सेदुव+क 
सोम 
सोमदत्त 
सोम देव 
सोमप्पद्द 
सोमप्रभ 
सोमभूइ 
सोमसम्म 
सोमा 


(४९) बलीवर्दो 


सबल 


(५०) ब्राह्मणजातिः 


व्क्क 


(५१) भगम्नव्रतमुनी 
कंडरीय कूलवाल+भ 
(५२) भेरी 
कोमोइ्य 
(५३) मणि, 
ब्छः 
कुत्थुभ कोत्युदद 
(५४) मणिकारः 
सन्द 
(५५) मदिरा 
संदप्पभा 
(५६) मल्लाः 
अद्टण मच्छमहठ 
कमलमेह मब्छियमह् 
फलद्दियमह्ठ मत्स्यमल 
मक्षिकामल् 


(५७) मातम्नजातिः 


हरिकेसा 
(५८) मातद्भजातीया निग्रेन्था: 

चित्त संभूइ 
चित्र संभूत- य 
मेताये हरिकेशि- केश 
मेयज्ज हरिकेसबल 
संभूत हरिकेसि 

(५९) मातन्नजातीयो राजा 
मेताय॑ मेयज्ज 


(६०) मातद्ृडपालितराजपुत्र: 
करकंडु 
(६१) मातद्ञास्तत्पत्नी-पुत्रा: 


गोरी मेयज्ज 

चिक्त सम्भूत 

चित्र हरिकेशि- केश 
बलकुट्ट हरिकेसबल 
भूयदिश्ष हरिकेसि 
मेताय 


विशेषनास्तां विभागशो5लुक्रमः 


, (६२) मालाकारा मालाकारपत्नी च 


असोग पउमिणी 
नवपुष्पक पाइलय 
नवफुछअ- ये बउल- कुल 

(६३) मोदकः 
सिहकेसरअ- ये 

(६४) यक्षाः 
असियकख बभसंति 
कयमाल वडुकर 
कवड्िक्ख-कवढि० सच्चाई 
चित्तपिय संखपाल- बाल 
चित्र प्रिय सुमिण 
तिदुग- ये सुरपिय 
धूमकेउ 

(६५) रथः 

अग्गिमीर 

(६६) रथिकपत्नी 
सुलसा 

(६७) राक्षसवेशीया: 
खर रावण-दशमुख 
दह्दवयण शम्बकुमार 
दूषण सुप्पणहा 
बिभीषण 
(६८) राजगृहपाटकः 

जन्नवाड 

(६९) राजवंशौ 
मोरियवंस हरिवंस 


(७०) राजानो राश्यो राजपुत्र्यों राज- 
पुत्रास्तन्मित्राणि च 


अजिय अदयकुमार 
अणंगसरा अश्या 
अणोलिया अपराजिता 
अश्य अभय+कुमार 


अभया 
अमरदत्त 
अरिदमण 
अरिमहण 
अवंतिणी 
अवंतिवद्धण 
असोगचंद 
कृणिअ-कोणिअ 
असोयसिरि 
अंधगवन्हि 
आद्रककुमार 
आससेण 
उश्गसेण 
उदयण 
उदाइ 
टउसुयार 
कक 

कडय 
कणगकेउ 
कणगज्झअ 
कणगरह 
कणयद्धय 
कणयरह्‌ 
कणयाभरण 
कनककेतु 
कन्हडदेव 
कमलसेण 
कमलामेला 
कमला वई 
फरेणुदत 
कलावई 
कल्याणमाल 
कंडरीय 
कामलया 
काल 
कित्तिधम्म 
कुजअ 
कुणाल 
कुब्बर्‌ 
कुमुश्णी 
कुछचंद 


| 


शे८९ 


कुलाणंद 
कुलानंद 
कुसुमसेहर 
कुंती 

केडव 
कोणिअ- क,कृणिअ | 
असोगरचद 
गज+सुकुमार 
गहह 
गन्धप्रिय 
गयवाहण 
गयसुकुमाल 
गंगदत्त 
गंगसेणा 
गंधप्पिय 
गंधव्वदत्ता 
गंधव्वसेणा 
गुणचंद 
चउरमइ 
चन्द्रावतेसक 
चंडपजोअ-'य, पजोय 
चंडवर्डिसय 
चंडावडिंस 
चदगुक्त 
चैदणकुमारी- णबाला 
चंदणा 
चंदजस 
चंदजसा 
चंदमई 
चंदसेण 
चेदाभा 
चंदावयंस+अ 
चंपइमाला 
चंपयमाला 
चुलणी 
चेडय 

भेल्वणा 

जनक 
जन्दकुमा र 
जयसिह 
जयसेण 


३8९५० 


जयसेणा 
जया 
जराकुमार 
जसवई 
जंबयई 

| जानकी 
,जाला 
जियक्तु 
जुगबाहु 
डमरसिंह 
ढण्ठणकुमार 
ढंढणकुमर 
णंद 
तारापीड 
तारावीढ 
तिलयसुंदरी 
तिविक्षम 
तिसला 
तिहुयणतिलया 
तिहुयणाणंद 
भत्रिभुवनतिलका 
दढ्धम्म 
दधिवाहन 
दवदंती 
दहिवश्न 
दहिवाहण 
दंतवक्क 
दीपकशिख 
दीवयसिह 
दीह 
दुज्जोहण 
दुष्पसद 
दुवय 
देइणी 
देवई 
देवगुत्त 
देवसेण 
दोण 
दोणमेद 
दोवई 

द्रोण 


धणसेण 
धयरद्ठ 
धारिणी 
धुन्धुमार 
नन्दिवर्धन 
नमि 
नरविक्षम 
नरविक्रस 
नरसीह 
नराअ- द, य 
नल 
नहसेण 
नेद्‌ 
नेदिसेण 
नागदत्त 
नारायण 
निसठ 


पउम 
पउठमकेसर 
पउमनादह 
पउमरह 
पउमसेहर 
पउमावई 
पउमुत्तर 
पएसि 
पज्जुन्न 
पजोय 
पक्ष 
पद्मोत्तर 
पल्हाअ- य 
पसेणइ+य 
पसनन्‍्नचद 
पंड 
पडुसेण 
पियदंसण 
पियदसणा 
पियमई 
पुक्खल 
पुन्नकलस 
पुप्फचूल 
पष्फदंती 


द्वितीय परिशिक्षम 


पुरिसोक्तम 
पुडरीय 
प्रदेशि 
प्रदुम्न 
प्रसन्‍नचंद्र 
बउलमई 
बल+देव,भद 
बंभ 
बालचद 
बाहुबली 
बिंदुसार 
भद्ा 
भदुदुलअ 
भरत 
भाणु 
भमिभसार 
भीमरह 
भुवनश्री 
मेसई 
मइसागर 
मणिचूड 
मणिप्पह 
मणिरह 
मणोरमा 
मणोहर 
मधु 
मम्मण 
मयणरेहा 
मयणसेणा 
मयरद्धअ 
महृब्जल 
मदहसेण 
महु 
मगला 
मिगात्रई 
मुणिचंद 
मूलदेव 
मगावती- पती 
मेघ+कुमार 
मेह+कुमार 
रइसंदरी 


रयणचूड़ 
रयणमंजरी 
रयणमाला 
रयणरह 
रयणसार 
रयणसेहर 
रविकता 
रविकान्ता 
राजहंस 
राम ( कृष्णअ्राता ) 
राम+एवं, चन्द्र, देव 
( दाद्वरथी ) 
रायमई 
रायहस 
रिउवन्न 
रुक्मिणो 
रुप्पिणी 
स्प्पी 
रोहिणी 
लक्खण 
लच्छिददर 
लक्षण 
लक्ष्मण 
ल्च्छी 
लीलावई 
वक्कलचीरी 
वजकर्णे 
वज्जड 
वनमाला 
वम्मा 
वराहरगीव 
वल्लहराय 
वसुदेव 
वसुमई 
वासवदत्ता 
वासुलदेव 
विउसभूसण 
विउसाणदण 
विक्षमसेण 
विक्रमाइच 
विजय 
विजयधम्म 


विजयसेद्दर 
विण्हु+कुमार 
विब्भमवई 
विलासवई 
विदिल्या 
विष्णु+कुमार 
विसल्ा. +» 
विस्ससेण 
वीससेण 
विद 
वीरम३- ती 
वीरसेण 
वीरंगय 
वृषभ भवज 
शड् 
शतानिक 
शौरि 

श्रेणिक 
सउरी 


सचभामा 
सच्चा 


सप्तच्छद्‌ 
समरकेउ 
समुदृविजय 
सम्प्रति 
सयाणिय- णीय 
सरयसिरी 
ससिसेहर 
सद्ददेवी 
संख 

संगय 
संपइ 

संब 
सागरचन्द्र 
सागरचद 
सिद्धत्थ 
सिद्धार्थ 
सियजस 


बा 


(७१) लेखाचार्या: 


लोहजंघ 
विउसाणंद 


सिरिचंद 
सिरिदेवी 
सिरिधम्म 
सिवएवी- देवी 
सिवा+देवी 
सिसुपाल 
सिहजस 
सीया- ता 
सीलमई 
सीहगिरि 
सीहबल 
सीहरद 
सीहविक्रम 
सुकुमा रिका- लिका 
सुकुमालिया 
सुजसा 
सुतारा 
सुदसणा 
सुनंदा 
सुभद्दा 
सुमेगल 
सुसेणा 
सुंदरपाणि 
सुंदरी 

सुंब 
सूरियकंत 
सूरियकंता 
सूयकान्ता 
सेणिय 
सोदास 
सोमचद 
दरिसेण 
हलहर 
ह्द्ली 
हलाउह 
ह्ल्ल 

हुंडिय 
हेमरह 
(उपाध्याया:» 
सिद्धउत्त 


(७२) बना-5र्योथ्ान-वाटिकाः 


असोगवणिया नंदण+वर्ण 
कोसंब मफ्तकोइल 
तिलअ रायनदणअ 
द्ण्डक रेवय+ग 

(७३) वन्यजातिः 
शोडुजाइ 

(७४) वानरवंशीयों 
सुप्रीव हनूमत्‌ 

(७५) विद: 
रइकेलि 
(७६) विधा: 
अस्सावहारा पन्‍नत्तो 
गोरी 
(७७) विद्याधरास्ततप्परिवारश् 

अनिलवेअ जंबबंत 
अमियगइ धुमसिदद 
कणयमाला निलवेअ 
कालसंवर महिदविक्रम 
गउरमुंड विजयसेण 
चित्ततेअ-चेत्त' सिवचंदा 
चित्तरह सुकुमालिया 
जेबवई सोदाख 


(७८) विमानानि 


अरुणाभ 
ददुदुरवर्डिसय 
पउमगुम्म 


पुष्पक 
विजय 
सुरियाभ 


(७९) शाहल्लापतिः 


यीरय 


(८०) शाल्राणि (ग्रन्थाः) 


अक्खाणयम णिकोस 
आख्यानकम्रणिकोश 
आवस्सगविवरण 
आयस्सय 


उत्तरज्ञयण 
उत्तराध्ययनरबत्ति 
दसवेयालिय 
नयचक्क 


विशेषनाम्नां घिभागशोडजुक्रमः 


निसीह 

भगवई 
रत्नचूडचरित 
रयणचूड[कहा] 


(८ १) श्रेष्ठि-सार्थवाह-वणिजस्तत्परिवारश् 


अच्छुप्त 
अयल 
अरिहद्ासी 
अरिदृन्न 
अरिहमित्त 
अब्वक 
अवराइया 
इलापुत्त-इलापुत्र 
ई्सर 
उद्योतन 
उसहृदत्त 
कंट्ठ 
कमलगुत्त 
कयउन्न+य 
कामएव- देव 
कामपाल 
कुमा रनदी 
कृतपुण्य 
केसरा 
खरक 

गय 

गंगदत्त 
गुणचंद 
गुणमइ- ती 
गुणमइया 
गुणवती 
गोभद 
चारुदत्त 
जन्नदत्त 
ञम्बु 
जयसिरी 
जयंतदेव 
जबु+णाम 
जिणदत्त- यक्त 
जिणदास 


वीरचरित 
व्याख्या प्रज्ञप्ति 
हरिवंस 


जिणदासी 
तापस 
तावस 
थाणु 

दत्त 
दत्तक- य 
दामन्नअ- क, ग 
देवजसा 
देवदत्त 
देवसिरी 
देवाणद 
देहिल 
घण 
घधणअ- य 
घणदत्त-'यत्त 
घणपाल 
घणवइ 
धणवई 
धणसार 
धणसिरी 
धणावदद 
घणीसर 
धणेसर 
धन 
घनदत्त 
घधन्नौ+अ 
धम्मरुइ 
नउलबणी 
ननन्‍्द 
नयसार 
नयदत्त 
नंद 

नंदण 
नाग 
नूपुरपण्डिता 


पदुअमुख 
पशुजास्य 
पंचनदी 
पियंकर 
पुश्नभह्‌ 
बंधुदत्त 
बंधुमई 
बुद्धदास 
भह्‌ 

भद्दा 

भद्रा 
भाणु 
भाणुसिरी 
भावद्टिका- या | 
बालवडिया 
मदरा 
मणोरह 
मनोरमा 
महिमा 
माणिभद 
माथुर 
माहुर 
मित्तवई 
मित्ताणद 
मुणिचद्‌ 
मुसियार 
मुला 
मेरुप्रभ 
यशोनाग 
रइसायर 
रयणसार 
रददत्त 
ललिताज 
ललियंग+अ 
लोभनदि 
लोहनंदि 
व्रदत्त 
वसंतदेव 


(८२) श्रप 
कालसूयरिअ- सोयरिय 


“इ६१ 


वरंतसेणा 
वसुदत्त 
वसुनन्दा 
विजयसिरी 
विण्ुद्त 
विसा 
वृषम 
वेसमण 
शालिभद्र 
श्रीकान्त 
समुद्रदत्त 
सब्वह्थ 
संख 

संगा 
संपया 
सागर+अ 
सागरदत्त-सायर 
सालिभद्‌ 
सिद्धनाग 
सिद्धार्थ 
सिरिदेवी 
सिरिमई 
सिव 
सिवभद्‌ 
सुकुमालिया 
सुदशन 
सुदेसण 
सुधण 
सुधणु 
सुनंदा 
सुभदा 
सुभद्रा 
सुर्रिद 
सुलसा 
सुसमा 
हरिसीह 
हारपद्ा 


३९०२ 
(८३) सद्जीतकारः 

पुप्फ्चूल 

(८४) सारथी 
निक्षरुण सिद्धत्थ 

(८५) सुभटाः 
अयकब दमघोस 
ददर नल 


निसढ 
पिहु 


पुष्फदंत 
जीप 


सीहरह 


सरदेव 


द्विसीय॑ परिशिष्षम 


सहसेण 
सीद 
सुवेग 


(८६) सेनान्यौ 
सुसेण 
(८७) स्थपतिः 


(८८) हस्ति-हस्तिन्मः 
कणयप्पदा अद्ववती 
अयवारण मेरुप्पह 
नलगिरि सेयणय 


भहवई 


रे 
लुतीय परिशिष्टम्‌ 


आख्यानक्मणिकोशटीकान्तगेतसमस्तदेश्यशब्दानां शब्दकोशोपयोगिप्राकृतशब्दानां चाकारादिक्रमेणालुक्रमः 
[ #एताइक्फुल्िकाड्िता देश्यशब्दा आवचायहेमचन्द्रीयदेशीनाममालायां नोपलम्यन्ते ] 


शब्द पत्र-गाथा 
ञ 

अद्हधा अविधवा ७-७ 
अक्खबड॒लिय अक्षपटलिक १२४-२२ 
अग्गमहिसी महिषिसमृद  ११७-९९ 
अखिष्प अस्एृश्य २२१-२२ 
अच्छुन्न आच्छक्ष, व्याप २६४-१७ 
अज्ञमंत अजेमत्‌ १४२-२३ 
अट्टमइझ(दे०) अव्यवस्थित, १४७-४४ 


हिं० अंटर्सट, अंडबंड 
अड्डाय(दे०) वक, गु० आड़ ११५०-६९ 


अणक्ख(दे०) २९७-२०१ 
अण कखतया अक्षन्नता 3१-८० 
*अणालि- ली दे०) वक्त १३२६-१६, 
२७१-१६ 


*अणुशुण(दे०) निरभिमानिन्‌ २९९-३०२ 
*अणोलिया(दे०) हि० गिल्ली, १४५७-१६ 
गु० सोई २०१-२७४ 


अणोलिया राजपुत्रीनीाम १४६-१ 
अत्थरिय. आस्तृत १८-१७ 
अन्नश्यय अन्यदीय ३२३-३५९ 
आयाणग .. मयपानगोष्ठी २७१-१७ 
अव्भड(दे०) १७६-२०,२७७-२३ 
अउ्भमिद दे०) ११०-९१,१२२-४६, 
१५९-१४५ 

अस्मोगइया(दे०) २९४-१५४ 
अम्ह्ध्धय अस्मदीय ५-५६ 
अयड(दे०) १२-१२८,१३२ 
अलीद अश्किष्ट १०-४९ 
अल आदर २६२-२६४ 
*अवक्सा(दे०) निस्तेजस्व १९०-६५,६८ 
अवशेद्ण . अन्तःपुर ११२-१५६ 
अयल/(दे ०) ३००-३४५ 


>> कस 
शब्द पत्र-गाथा 
*अवसेरी(दे०) चिन्ता ९२-४६ 
असंधुभ अपरिचित ३४८-४२ 
अंधारित अन्धकारयत्‌ू ९-१३ 
था 
आदन्न(टे०) ४५-५८ 
आभमिदृ(दे०' समभिगत. ७८-२४५ 
आरहट्टिय आरघट्टिक १४६-१२ 
आलिगिणी आलिज्िनी, २५८-४३८ 
शरीर प्रमाणाव- 
रछादनवम्रम्‌ 
आर्सघ(दे०) १०२-१०६,३५८-१४० 
आसंधिआ(दे०) विश्वसित ३८-१५ 
आंबलिय(अप०) आवलित. ८४-१० 
आंबली चित्रा, अम्लिका १८०-५८ 
ड 
हड कीट १८३-८ 
ड़ 
डउक्कुरडिया(दे०) ६-५८,२६६-५५ 
उज्तमण(अप०) ११४-१९ 
ड्ध््या अवस्थितिका २०६-४४० 
द्वि ् अंठी, गु० ओटी 


+उडिलुय(दे०) माष, हिं० उरद ६२-३८ 


जउद्ु (उत+डी) हिं० ऊडना. ९२-३३ 
उद्(दे०) जातिविशेष, २२५-पंक्ति ७ 
गु० ओड 
उदुग्गार उठद्घार ४१-११० 
उद्ुमर राज्यस्यान्तःकलह् १३-१५३ 
डउशुमरे०) प्रबल, उत्कृष्ट. ६८-५ 
डड्डामर(दे०) ६८ ५ 
*उड़िय(दे०) ऊष्वीक्ृत ३६-११ 
उच्ायल(दे०) ३३३-६१ 


शब्द पतन्र-गाथा 
उशावलूआदे०) ८७-३ 
*उस्तोलिय( दे०) (१) २४५७-७१ 
+*उद्वदह्या(दे०) उभ्नतिका १४७-१४ 
हिं० गिल्ली, 
गु० भोई 
*जश्षई(दे०)) उन्नति, ,. १४७-१५ 
*उप्फेर(! दे०) (१) १०६-६४ 
उब्विविर(दे ०) २ ६-६ श्‌ 
*उम्मिद्व[दे०) बहिनिंगेतम्‌, १५३-पंक्ति३१ 
गु०उपरेलु 
उयर मध्य १२७०-१४ 
*उल्लाघ(दे०) रोगमुक्त ३३२-२० 
उल्लो य(दे०) ४७-२७,१२८-४ ०, 
२५८-४३५, ३०१- 
३७८ 
उब्यिक्त ४८-३७ 
उब्येधिभ उद्देजित ३६१-२१९ 
उबर(दे०) कुष्ठरोगप्रकार ७२-८,१४ 
प्‌ 
एछुगा एलक ३७-४७ 
ञो 
ओपघसर(े०) २६७०-६० 
ओयर अपवरक ३७-२९ 
ओयरय मर ६२-१२ 
ओर(अप०) अर्वाकू, समीप ८७-६ 
ओरि(अप०)  ,, ८५-१५ 


ओलोबण अवलोकनक, गवाक्ष ३७-२५ 
ओवरग अपवरक ३७-१५ 
ओसगब्ग उपसग १४४-१०६ 
ओसरखंमिय अवसरशुम्मित २६-६३ 
ओइडिय अवयहत ६ ८-६ 


३९४ 

'बाब्द पत्र-गाथा 
क्‌ 
कच्छोट्ट(दे०) १७५७-७७ 
करछोड्य(दे०) ४५-५९ ,८० 
कट्रकारिया दकारिका १९२-३५ 
कड़तलछ शतस्रविशेष: ? ) ८५-१३ 
कडप्प(दे०) ९-२८ 
कणिया दण्ड, गिल्लीके साथ १४७-१५ 
खेलनेका काप्टदैण्ड २०१-२७५ 
कत्थ क्वाथ ११७-१०१ 
कदमिल कदमवत्‌ ५६-३२० 
कन्नुस्सार  कर्णोत्सार ११६-७३ 
कणप्परय कपरक ८१-३ 
कलहयंत॒ कलहयत्‌ १२-१२२ 
कल्ल्ूरिय/(दे०) ३१८-२४ ८ 
कसकिसिर/(दे०) हि" जकडा १८-१९ 
हुआ गु० कसकसेल॑ं 

*कंडारिय(हे०) कुपित २४६-३६ 
कंथिया दे०) यश्टि ६-८२ 
कामोदडि कापोति, गु०कावड १८-१९ 


कारह्रअदे०) मृतभोजन, ४०-६५ 
हिं० मृतभोज, गु० कारज 
कायाइय(हे०) हिं०गु०चालाकी १५०-८९ 


किवाणिया कृपाणिका १५४९-५२ 
कुडय कुटः १८-२४ 
कुढिय(दे०) पदप्रतिकृतिशाता, १२९६-२२ 
गु० पगी 
कुल्ल (दे ०) २०४६-१० 
कुंडिय(दे०) खरण्टित, लिप्त 33--१९४ 
कुंमिया कुम्मिका, ३३२-५, 
गु० कोठी १५,२० 
कूयार कूकार, हि०कूका, ७८-२४२ 
गु० कूकवों 
केकयर केकर ३६४-६४ 
केरविणी . केरविणी ४२-१२९ 
कोटथलय(दे०) ३६६-११६ 
कोसल्ल (दे०) ९९-९,१० ०-३५ 
कोसलिय(दे०) ३०२-४१३ 
सत्र 
खट्टिक्(दे०) १७०९-२२ 
सश्टग(दे०) १८०-४१ 


तूतीय परिशिष्टम 


शब्द्‌ पत्र-गाथा 
सड्इडिय(दे०) शिथिलित. १६२-२७ 
खड़ा(रे०) ३०४४-२३ 
खस्ियण क्षत्रियजन ३९-२३ 
खत्थ खससस्‍थ-आकाशस्थित १४८-१० 
खत्थ(दे०). संतप्त ३६०-१९७ 
खलभलिय(दे०) १२३२-४६ 
खलि खल, हिं० खली, गु०खोछ ४१-९३ 
खलि(दे०) १५३-पंक्ति २१ 
खलिदृडआ(दे०) १५३-पंक्ति २० 


*शल्ी(दे०) रिक्त, हिंग्गुणखाली १७९-४ 
*ससर(दे०) केश, गु०खरबचडु १५८-९५ 


खंपण(दे०) कलऊझू, गु० खांपण, ३९-२३, 
फा० खामी ११९--१७० 
खाडइहिला(दे०) ६-८० 
खिस्स खिंस्‌ १२०-५ 
खुज्जा कुब्जा-दासी ३९५-४०,१६७-२१ 
खुट्टदे०) १४०-१६ 
खुइक्षिय(दे०) १९-४२ 
खुडुय(दे०) १६१-१३ 
खुप्पण(दे०) निमज्जन, गु०खुंपथु ७ ८ 
*स्वोर(दे०.. कलुषित, तुच्छ. ९७-४७ 
खोसल, दे ०) ६९-६ 
ग 

गडुल(दे०) . कदममिश्र १८-३६ 
गणिक्तिया गएणेश्रिका ९६-१२ 
गत्तर गत्वर ३४१-२३६ 
गद(दे०) . गाढ़ १८-३५ 
गलि गलि ६-८९ 
गहवरिअ ग्रहाबृत १९३-०५ 
 गंडघारा(दे०) शकटवर्म . ६-६१ 


*गैंडलछआ(दे०) खण्डक, हि ०टुकडा ४ ०-७९ 
गंढोवल गण्डशैल ८२-४ 
गिली(दे०) ३१६-१६२ 
गुडर(दे ०) २७३८-४९ 
गुणलपणिया ग्रुणलयनिका ३०३-०६१ 

हिं०गु० तंबु 
गुरुद्दरा गुरुभारा, गुविणी २८०-४९ 

*गुलिणी(दे०) लतागृद्द १८-२३ 
*गोठखर(ले०) गोमय, हिं०गोबर १८३-८ 
गोइली(दे०) गोधूमाली ११६-६९ 


दब्द पतन्न-गाथा' 
घ 
घाड़े रह (दे०) ३६२-२५८ 
घुँटभ घुण्टक २३-१०२ 
च 
' बक्कल दे०) १४४-११२ 
सकथ्यक्कियथ चकचकित ८५-१३ 
चचत्तदे०) १०२-१०० 
री (१) २६८-३ 
खहुद्नंदे०) संश्लिष्ट १८-३५ 
खंरा(हे०) ४९-८५ 
ये भ(दे०) २६८-४ 
खाउज्नाय दृश्यता-चाउजाय ४०-८० 
चिपिड निपिट ६९-६ 
खीरी पक्षिविशेष, गु० चीबरी 
चीवंद्ण चेत्यवन्दन.. २७३-१७ 
*खुस्देस अ(दे०) हिं०चुल्हेकी इंट २१२६-१६ 
चुंक क्षिप्‌, गु०भोंकबु १३७-६ 
खूरी(दे०) १०-५१ 
सु 
छदल(दे०) ६२-४५ 
छक्कण्ण षट्कर्ण २२-६७ 
छगण छगण, गोमय, गु०छाण १२-१२३ 
छल्नाल(दे०) ९६-१२ 
छठष्बय(दे०) १५४-४ 
छित्त(दे०) १५३-४९ 
छिक्तर अ(दे०) १४४-१३२ 
छिक्तिरदे०) जीर्णसप ४२-१४४५ 
छिप्प-छेप स्श्श ८८-९ 
छिप्प स्ध्श्य २२१-२२ 
छुरमट्टीदे०/ क्षुररष्टि,. २३२१-१५ 
हिं०गु० हजाम 
छुबल्लुडछल छलछलय ८८-६ 
छो द्विअ(दे०) १७९-१३ 
जञ्ञ 
अगड़ दे०) १२३२-४३ 
अग्गद यदूअइ ३६-२३ 
जअणेर(अप०) ७५-१४५,११०-७४, 
१२७-४ 
जदर दे०) १२८-४० 
अन्नक्ता(दे०) १७-८९ 


शब्द पतन्न-गाथा 
झ 
इझगड़अ(दे०) २८५-२९ 
झलकंत दीप्त ९-१४ 
झलकिर दीप्र ७५-३०७ 
झलक्कििय दीप ८५-१३ 
झलुक्कषिय. दग्ध १५८-९२,९७ 
झल प्रह २०१-२७५ 
झिज्ज क्षि « ११-६९ 
झुटट (दे०) ३०३-४३५ 
झुलुक्षिय(दे०) दग्ध १६४-११ 
। टः 
टप्पर(दे०) ६९-७ 
टार(दे०) ९०-१४ 
*+टिल्ल(दे०) तिलक, हिं०्टीका, २९१७-६३४ 
गु०टीलं 
*टोप्परिया(दे०) कश्लोलिका, १७५५-२५ 
गु०्श्रीफलनी काचली 
टोल अघटित २७३-६ 
टोलपाहाण गण्डशेल २७३-६ 
ड्ड 
डंवरिय. आडम्बरिंत ९-१५,१२८-४० 
इुंध दे०) ११७-८७,१५४-२, 
१५७५-३३ 
इुबडअ(दे०) दृश्यतां-डुंब १५५-२८ 
डाअ(हे०) १४२-२२ 
डोडिणी(दे०) १४२-७१ 
*डो ढिणी(दे०) दृश्यतां-डोडिणी १४२-टि०२ 
ढ़ 
ढडढ़ दे०) हिं>किवाड बंध १९५-६ ३ 
करनेका बाहरी साधन 
ढयर/(दे ०) २३६-२५७ 
ढलिआ(वदे०) २०७-४९५ 
देसखरअ दरे०) ४५-६१ 
दिवायरिय पाषाणाकार १५४-पंक्ति २ 
दिवारिय श १५५-२८ 
ढुक दे०) २९८-२६ ८ 
+दुलिआ(दे०) स्ललित, अवनत, ३३९-१६३ 
हिं०हुर्ला हआ, गु०ढकेलुं 


देश्य-प्राकृतशब्दानामनुकमः 


शब्द पत्र-गाथा 

के , 

णिस्लाणंत निशाणयत्‌_ ५३-२१२ 

णोड्‌ वन्यजाति १३७-८ 
ते 

तकक्‍्कुय(दे०) २.४६-२६ 

सच्यक्षिय बुद्धधर्मानुयायी ६५-५ 

तडिअ भिक्षुविशेष १८-६ 

तरवारि तरबारि ६-६६,४५-४७, 

१०३-१४४ 

सलियातोरण तलिकातोरण, ३२-६४, 


गु०तारियातोरण ३३६-६ ७ 


तलोबेली(दे०). ६२-२८,७५-१३६ 
*तेबालुय(दे०) भाजनविशेष १०५-४५ 
तबार (१) २८६-६१ 
ताबिल तप्त २७२-२९ 
लिद्रा (१). १७८-१४ 
तिरियेंत तिरयत्‌ ११६-५० 
तीरी(दे०) ११०-८७ 
थ 
थद्ट दे०) ९-१६,६२-१८,७४-७९ 
थड(दे०) ८७-५७ ,८८-८ 
थाणग(दे०) २०४-३९७ 
थिमिय/(दे०) १२१-३ 
थिल्ली(दे०) ३१६-१६२ 
*थोत्थर(हे०) शोथस्तर ७२-१३ 
थोभ क्षोभ १०६-८२ 
द्‌ 

दद्र(दे०) १८१-८० 
दसद्चियां चपेटा २३२-२५ 
दंदोली द्न्द्रावलि ३४७-४ ६ 
दीयड दीपक १८-२४ 
*'दीयड(दे०) सपविशेष. २७१-२० 
दीयडय दतिका ३२८-टि०१ 
दीवालिया  दोपालिका २८९-१५२ 
दीहपड सर्प १४४७-१९ 
दीहपड सनामख्यात १४६-२, 
अमात्य १४७५-२० 


१ अष्टमि - चतुददेशी( दिनद्वय व्यतिरिक्त- 
दिनेषु विषविकल: सपः । 


३९/4 

धाब्द पत्र-गाथा 
दुद्जी द्वितीया १३५-१ 
वुगेज्स दुर्भाह्य ४९-९४ 
दुरुलि दुश्देश्श (१) ३५७-९९ 
दुधियाय दुबिजात, कुजात ११८-१११ 
देवपद देवपथ ११६-५० 
देवलिया . देवकुछिका ' ३५४-५६ 
देसि पान्य ४२-१२८ 
देसिकुडी पान्थशाला ४२-१२८ 
*देखियाली(दे०) देशाटन. २८-१०५ 
दोघट्ू(दे०) ९-१६,६२-१८,७३-६९, 
७४-७९, १०३-१३१, 


११०-९१,३४२-२ ८४, 

३५४-५३ 
दोधुब्यमाण दोधूयमान. १३-१४४ 
दोहंडिय द्विखण्डित 399-८७,७६-१४९ 


घ 
घवाड़िय धाबित १८२-१७ 
धसक/(दे०) ३१४-११७ 
घसक्षिय[दे०) १७३-३६ 
धाडीवाह समूहबद्धभारवाहक १८-१९ 
धारिद्व धाश्य २०८ -५२९ 
घोत्तरिय पत्तूरित, मत्त ७१-६९ 

न्‌ 
नउलथय  नकुलक, वस्रादिमययी २२६-१४ 

नाणकस्थगिका, गु०नउली 

नाइसग- य(दे०) १०८-१,२०८-५२७ 
नवल नव्य १९०-७९ 
निराय(हे०) ३०७-९३,३१५-१४८ 
निरारिआ(अप०) ८८-६,७ 
निवलय दृश्यतां- २२५-पंक्ति २९, 
नउलय! २२६६-१७ 
निरुसरिर निःसरणशील २७-७५ 
निद्णि (नि+दो), ग॒ु० निंदवुं-मेंदबु ८-१८ 
नीरंगी-दे०) हिं० घुंध. २९-१४४, 
६४-१० ६ 

प 
पद्रिक्क(दे०। ७३-७० 


'पच्छिया(दे०) दृश्यतां पत्थिया! ११४-९ 
पड़य(दे०) १३०-पंक्ति ५,१३४-२४ 
पत्तिलु विश्वसित ३६०-१९८ 


१५०४६ 
शब्द पन्र-गाथा 
पत्थारी(दे०) ४९-१० १ 
पतर्थिया(दे०) ११४-टि० 
परिणावित॒भ परिणीत ११-९५ 
परिदण(दे०) ४९-८० 
पयलूदरण . पादप्नरोब्झनक ३१-५३ 
पलल्‍डसिर स्लसनशील १८-३५ 
पद्चिशण पान्य ४९-८१ 
पाउल(दहे०) इृष्टनारी- २५७५-२३ 
:. वृन्द (१) २३१-१०० 
पाणहिया उपानहू १३४-५ 
पारी सन्धानादियोग्यं ५६-३२८ 

मृण्मयं भाजनम्‌ , गु० पार 

पाहुडिया प्रामतिका १००-२८ 
पिडसिया पितुःस्वस् ७३-५० 


पियहर पितृगह, गु० पियर १५२-१६ 


पुइ्डलय  दे०) ३६६-११६ 
पुय पुतप्रदेश, मितम्ब १७४-१३ 
प्राइिज (१) ८८-७ 
फ 
फड़स(दे०) खड, हिं०फाक, २९५४-१७३ 
गु० फाड-फाढसा 
फरल १8) ६९-६ 
फारक(दे०) ११०-८५ 
#फिरिक्का(दे०) गन्त्री, शकटिका १८२-१६ 
फुक्का(दे०) १८३-१४ 
व ्ट 
बकर परिद्दास २४८-१०७ 
बप्पदे०) १४७-२६ 
+बलिधेडा दे०) बलात्कार ७८-२४३, 
ल्‍ १४४-१२१ 
बुक्कावण मुश्प्रक्षेप ९४-११० 
बुड्ढ(दे०) २३४-१९५ 


शुरहे०) हिंबुरादा, काष्ठका बेर ७०-१९५ 


लेश्िया दे०) पुत्री ३६-१५ 
बोछण(रे०) ब्रोडन १२२-४९ 
सर 
अंइलञम स्‍स्वनामस्यात १४६-६, 

राजपुत्र १४७-२९,४ ० 
अइलस भद्र १४७०-१८ 


तृतीय परिशिष्षम 


द्दग्द पत्र-गाथा 
*अद्दुलय(दे०) मूषक १४७-१९ 
*मरवसग-य(दे०) हिं०>भरोंसा,२ ३०-१९५, 


गु०भरोंसो-विश्वास २५६-३ ८६ 
भलभलिय भडभडित-अभिशब्दे ८५-१३ 
भलिम(दे०) भद्ग॒त्व,दिं ० गु०भलाई १९५-५३ 


भवडंत आम्यत्‌ _ २५६-३८० 
मंडण(हे०) १२२-४ ६ 
भमंडोल भाण्डकुल, गु० भंडोछ २२-५९ 
अंमारिय भम्भारित १८-१७ 
भआामझ अ्रमणशील, गु०भामटो १३४-२६ 
सिडंत युध्यत्‌ १०-६२ 
मिडिआ(दे०) १५६०-१७ 
समिसयाएदे०) दृश्यता-भिसिया १८८-१७ 
मिखिया(दे०) ९६-१२ 
भूहरि(दे०) तिलकविशेष, १३-१४२ 
गु०भूहड 
भोयविय भोजित ४०-५५ 
सर 


मऊरबंध मयूरबन्ध,रढबन्धविशेष)२८-२९ 


मडप्फर(दे०) १३६-४ 
मड़ा(दे०) २१-४७,७८-२४२,१२३- 
६,१४४-१२६, १४९- 
३३,१५६-८,१९२-७, 
२६८-४,३३५-२१ 
मरहइए(दे०) ७९-२८६,१०४-१५ 
मलयएदे०) ११६-६६ 
महलदे०)  अन्‍न्तःपुरमदत्तर १९०-७९ 
महलछिया  अन्‍्तःपुरमहत्तरा ६४७-१०४ 
मदहियारिया दधिविका- २८६-३८,४५ 
यिका, गु०महियारी 
मंदुल द््रु ७२-६९ 
मुयंगलिया(दे०) १२७-३९ 
मोकल्न(दे०) दृश्यतां-मोकल २८-१२५ 
मोरबंध. दृश्यतां-मऊरबंध १४०-१६ 
र्‌ 
रछ्य कम्बल १४८-१३ 
रबस(अप०) ८१-१ 
रघसल्निय(अप०) रमणीय ८२-३२ 
*शसोयणी(दे०) रसवतीकारिका, २६२०४ 
'गु० रसोयण 


दब्द पत्र गाथा 
रडुसण रण्डत्व १२२-४८ 
राइद्भुयग सपंजातिः. ३४०७-१२ 
राडि(दे०) २८५-२१ 
*राढदे०) शुभ ९०-१६ 


राढाल(दे०) अतिविभूषाप्रिय १९५३-४३ 
राह्महि- डी राटि, हिं० चिल्ला- ३२०-७, 
हट, गु० रांड ३०२-४११४, 
३५३-२८,३५८-१४२ 


रिच्छि ऋक्ष, भल्दक  ५१-१४४ 
रिखंत रिभ्वुत्‌ ३५३-०२५ 
रिंछोली(दे०) ५०-१०३,५१-१४४, 
३२५-११ 
रेसि(अप०) १३७-५,१४०-१७ 
रोल दे०) ७४-१०५,१०७-११ 
रोलंब(दे०) १८-३३ ७४-१०५ 
७६-१५९,१०७-१९ 
रोहदेस रोहितकशक्ष. १९-४० 
रोहिस हु 3२-१९ 
ल 
लल्ढकक(दे०) १८-२९,४१-८ ८, 
८५-१३,२४६-४ ०, 
२३५१-२३ 
लल्ि(दे०). २०७-४८१,३५८-१४३ 
लिछिक्रिणआ लयलयकृत १०-३५ 
*छिल्लिरय(दे०) वस्नचीरी, ४५-५९, 
गु० लीरी, छेरी १५७-५७ 
लिडिया(दे०) लिण्डिका, ६-७७ 
अजादिविश 

छेज्स ठेह्य «१-२ 
लेद्ारिय छेखायाय॑ ४३-१५६ 
लोणिय.._ नकारस्यलश्र॒त्या २९७२-२९ 

नवनीत, म० लोणी 

व्‌ 

बउप्पअ दश्यतां-पओप्पअआ १५१-१०० 
बहु(दे०) ८२-४५ 
*बढ़ (ढे०) मूस ३०६-५५ 
*बरह[(दे०)  रज्जु, गु० वरेढुं ५-५० 
घरिया इृश्यतां-वछवा ११-९८ 
वरोहिय पुरोहित ११२-१५५ 


दाद पत्र-गाथा 
बलघदू (वल+वत्‌ , बल+वतू ) २३९-२१ 
हिं० कुचलना 
यहल्(दे०) १७५३-१७ 
बसा हस्तिनी ४९-१२२ 
याहम वातिक, ह०पागल, १६-२६ ८ 
गु० वायडो 
बाइय वादिन्‌, हिं०गु०मदारी ६२-३४ 
थाड़िया वाटिका ७५१-१३८ 
बाणिगिणी वणिक्पत्नी. ३१-५१ 
गु०वाणियाणी, हिं०बनियाइन 
बायड्य वातदतिका ३२८-५२ 
धार वासर, दिन ९१-१५ 


वारसिय द्वारश्रित, द्वापाल २००-२४६ 
धादहियाली वाहिका,हि०सवारी १०१-६५ 


याहुडिय(दे०) ६८-७ 
विगोविभ विगोषित,. १६१-१३ 
गु० बगोवायेल 

विगुक्त ११ ६४-६०,६८ 
विग्गोषिय हि ११९-१६२ 
विद्वरदे ०) १५५-३३ 
विडरिछत दे०) आदोपित. ३३६-५८ 
बियर, दे०) ९७-४४ 
विटलिय/दे०) २५-२३ 
बेलामास गर्भकाल ११६-६० 
बेल्लइल ४७-२४ ,१२८-४ ०, 

३९००-३४ ३ 


देश्य-प्राकृत शब्दानामनुक्मः 


दाब्द पत्र-गाथा 
सं 

सद्ण्ण सतृष्ण ११७५-१३ 
सच्यमिय सत्यापित, दृष्ट २७०१-२२ 
सत्थाह सार्थवाह १३७-७ 
सन्चास प्रत्रज्या १००-५३ 
समसीती(दे०) १८३-१६ 
सल शल्य), दिंग्गु०सक्ू १९५०-८८ 
ससरकस सरजस्क, १९८-१५७, 

कै परिब्राजकादि १७६ 
संथुभ परिचित ३४८-४१२ 
संभिय सम्मृत २६२-४५ 
संघसिय स्र्स्त २३१-८४ 
सारा स्मारणा, १९-६५ 

हिं० सम्हाल, गु० संभाक 
साव(अप०) सर्वे ८३-५९ 
साहुल(दे०) २०७५-४० ८ 
सिक्कड॒ दे०) २८५-३० 
सिक्किर खण्ड हिं० दुकडा २२-७५ 
*सिक्किरिदे०) छत्र १८-२१ 
#सिलिका शलाका २२-७५ ३२४-७९ 
सिद्दिण(दे०) १२२८-४५ 
सिद॒रादे०) रज्जु, हिं>रस्सी १२२०-२९ 
सिखासियि अतिवेगेन, हि. ८४-११ 
चटचट, गु० सबोसब 

सीमाल सीमापाल ३५६-५१,५९ 


३९७ 

शब्द पत्र - गाया 

सीवाल सीमापाल १६५-५९ 

सुद्ि छि(दे०) १९३-१५ 

सुददेल्ििदे०). २४५२५-१५,२६५-२१, 

२६९-५,२९८-२९९, 

३६१-२४९ 

खूम कृपण, हिं>सूम, गु०सोम २९३-११९ 

सेडिया(दे०) १७३५-३५ 

सेरदह महिष १८-१७,३६, 

५६-३२४ 

सेरदी महिषी ७५६-३१७ 
द्ट 

दकका(दे०) २४६-४०,३५१-२३ 

हडु(दे०) ५३-२१ २ 

इलप्फल(दे०) ४९-७५ 

हइलंत कम्पमान २२-६५ 


दिणदिण देष्‌ , हिं० हिन- ३०१-३७७ 
हिनाना, गु० हणहणवुं 


हिल्लूर(दे०) अन्दोलन ८८-०८ 

हुरुइक्खिय(दे०) डमरुक ११२-१४७ 

हुक (हु।क ). ११११-९४ 
हिं० हुंकार करना 

देइ हेति, श्रहदरण <५-॥१ ३ 


हेडाउड(दे०) हिण्डनव्याप्त, १८०-५६ 

परिभ्रमणशील व्यापारी 
हेर(दे०) २०५-३९९ 
हेवाइय 


हैवाकिक १३४-९ 


2] 
चतुर्थ परिदिष्ठम 
आख्यानक्मणिकोशटीकान्तगेतानि अपश्रृंशभाषानिबद्धानि पधानि 


००__-ज_्म अरमम्पपनाक, 


गह-विस-भूयपणासण अत्थि अणेग नर, अत्थि जि वाहि विणासहिं तकखणि वेज्जबर । 
जाणमि वेज्जु सु सच्बठ सत्थागमु वहइ, नेहगहिलूद चित्तट” जो ओसहु कद्दइ ॥ 
' [ स्नेहे, पत्र २०३ पद्य ३३३ ) 


'खर्कंकुसलक्सणु, भुवणबिलक्खणु, पकखालियबहुपावमल । चडवीसजिणिंदहं, पणयसुर्रिदह, पणमिवि भत्तिए पयकमल ॥ 
अट्ठावयपव्वयसेहराह, भरहेसरकारियजिणत्रराह । जसु जेत्तिउ जिणह पमाणु बन्नु, त पभणहुं निसुणहु देवि कन्नु ॥ 
भणुसई पंच सिरिरिसद्सामि, वरकणयऊंति करिलीलगामि । धणुसय चियारि पंचासअहिय, कणयप्पद्दि अजियजिणिंद कहिय ॥ 
संभवद्द जिर्णिंदद सय चियारि, उञत्तु कणयवन्नद् वियारि । आहुद्डसय३ घणुद्ददं पमाणु, हेमाभह अभिनेदणह जाणु ॥ 
सय तिन्नि सुमश्परमेसरहो, उत्तत्ततगयतणुभासुरहो । निम्मलूपवालजुइसुप्पहरुस, अडढाइय सय पउमप्पदस्स ॥ 
दुई धणुसय आसि सुपाससामि, तवणिज्जवन्नु सिवनयरगापमि । चंदप्पहु जिणवरु चदछाउ, धणुसउ दिवडढु तसु तणउ काउ ॥ 
जिण सुविहि संखतलविमलदेहु, सो धणुसउ एक्कु गुणोहगेहु । जिण धणुद्द नउइ सीयलसनामु, तवणीयवन्नु निम्मद्दियकामु ॥ 
सेयसु सुवन्नसकन्नकति, धणुहृद असीति तसु तणु कहति । रक्तुप्पलरत्तु सुर्दिपुज्जु, सत्तरि धणुद्ृह सिरिवासुपुज्जु ॥ 
जिणु विमलु विमलकदर कणयवन्नु, सो सद्टि धणुद्र सित्रपह पत्रन्‍ननु । पचास धणुह् जिणवरु अगतु, कुलभवरणु सिरिद्दि कलहोयकंतु ॥ 
सिरिधम्मु धम्मधुरधरणघीरु, पणयालधणुह्मज्जुणसरीर । सिरिसंतिजिणह चालीस आसि, जो हेमवन्नु सिवनयरिवासि ॥ 
पणतीस' कुंधुजिण हेमभासु, जिं सासयसित्रपुरि पत्त वास | अरु कणयवन्नु धणुहरह तीस, जसु पणमहि पाय सुरा-इसुरीस ॥ 
नीलप्पलसामल महिनाहु, पणुवीसधणुह् केत्रढसणाहु । मुणिसुव्वउ सुव्वउ साममुत्ति, सो वीसधणुद्द वज्जरिय सुत्ति ॥ 
पन्‍नरसधणुद्द नमिजिणवरासु, तवणीयतणुहु पणयामरासु । घणकज्जलसामल रिट्ठनेमि, दसधणुद्द धम्मवरचक्कनेमि ॥ 
मरगयसवन्नु तित्थयरु पास, नवदृत्थ विणिदुयकम्मपासु । कणयाभु सत्तरयणीपमाणु, सिद्धत्थह नेदणु वद्धमाणु ॥ 
इय निरुवमसासण, भुवणपयासण, जो नर भत्तिए संथवह । चड्वीस वि जिणव्र, सित्रसिरिवहुत्र, सो संसारि न संभमइ ॥ 

[ चतुविशतिजिनानां वर्ण-देहमानगर्भा रुतुतिः, पत्र ३२३ पद्म १९-३३ | 


जय जय पास | जयप्पयास ! पयडियवरसासण |, त्रिविदवादि-उत्सग्गवग्गसंसरगपणासण । 
आससेणनररायजाय ! विजन्नत्रड मद्दापहु !, बहुविदृदुदददुत्थियहं देव ! विशन्नरति सुणि महु ॥ 
अज्जु सलकक्‍्खणु सूरू अज्जु सुन्दर सुविद्याणउं, अज्जु पसत्थु वार अज्जु वासरु सुपद्दाणउं । 
अज्जु नाह | नकछत्त जोगु तिहे करण विसिद्ठउ, दुल्हदंसण भावसार ज॑ तुह महु दिद्ठ ॥ 
[ पाश्चजिनस्तुतिः, पत्र १०७-८ पद्म-२२-२३ ) 


ज्ञायंतिय दीणिम जण॑ति जोव्वणि संपत्तिय, चितासायरि खिवदि तबहिं परमंदिर जंतिय । 
पियपरिचत्त अहुंतपुत्त मणु तात्रद्दिं जणयहं, जम्मदिणि च्िय नयणनीरु ति दिजइ तणयहं ॥ 
[ दुद्वितरि, पत्र १५० पंथ ७० ) 


ताव फुरइ वेरग्गु चित्ति कुललज वि तावहिं, ताव अकज़ह तणिय संक्र गुरुयणभउ तावहिं । 
ताविंदियईं वसाइं जसद्द सिरि हायइ तात्रहि, रमणिहि मणमोहिणिदि वसिड नरु होइ न जावहिं ॥ 
सुकयत्थु वियक्खणु सो सुहिउ, सुगइमगर्गि जो संघडिउ । 

परमोहणमूलियस रिसियंदद, जो बालियहँ न पिडि पडिउ ॥ 


[ कामे, पत्र ९३ पद्म ७९-७२ ॥ 


अपड्रेंशपचानामलुक्मः ३९९ 


निट्ठरखुरपद्दारकंपावियमद्दिहरखोणिमंडलं, उवणियसेसरायगरुरुमणददरु पसरिउ तुरयमंडले । 
सेक-मुसुढि-कुंत-बावक्न-सरासणभ रियसदणा, चोइय चडिय समरदप्पुद्धरकंधर रायनंदणा ॥ 
सुद्दडा परिफुरंतरणदुजजयविक्रमबाहुपंजरा, संचलिय करालकरवालवियारियमत्तकुंजरा । 
कियअनोशन्नवद्दलदलबो लसमा उलभुत्रणकंदरे, दलमब्भिट्ठु समरि उद्धाइय पडिभडसुदृडसुंदरं ॥ 
[ युद्धवर्णनम्‌ , पत्र ४८ पद्म ५७-५८ ] 


खलभदू वि बलभह सयल नीसेस विसद्धिय, रावणपमुद्द पयड जोद्द अबरे वि गभदिय । 
न वि उज्तरिउ कया वि को वि कुवियद्द जमरायह, पयडपयावत्रद्द पाणिनिवहु पावद्द जिम्ब रायद ॥ 
[ छतानते, पत्र ३५६ पद्ष ४१ ] 


खुज्जतचारुतूरर्यं नअतनारिपूरयं, गायंततारगायणं दुकंतसाहुबायर्ण । 
तुप्पिजमाणचट्टयं पढंतभूरिभटयं, आवतअक्खवक्तयं द्दीरंतपुश्रवक्तयं । 
किज्जतबालर कखय॑ पुइृज्जमाणपक्खयं, सुव्वंतविद्धिसद्य संतुद्धपीढमहय । 
ओलग्गमाणसेवयं संधुव्वमाणदेवयं, आतव्रतभुरिपाउ्लं तोसिज्जमाणराउलें ॥ 
सिज्ञझंतभत्त-पाणयं दिज्जंतदीणदाणयं, मुच्ंंतगोशसिबधण किउऊजेतरुद्ठंसंघण्ं । 
बग्गतचारुचारणं संजायलोयसारणं, तुप्पंतसाहुपत्तय लब्भंतभूरिभत्तय । 
इय बहुविद्ृविच्छड्गिग रेंजियसयलजणु, विरूसिरकित्तिकुलंगणनिम्मलकुलभत्रणु + 
नर-नारियण-नरेसरमणद सुदहात्रणउं, विदवमहाभरिमिब्मि किउ वद्धावणउ 0 
[ श्रेष्ठिपुत्नजन्मोत्सववर्णनम्‌ , पत्र २६६ पद्म ३२ ] 


वज्जिरगहिरभणोहरतूरारवमुहऊल, जहिं नवरंगयनिवसणु नारीयणु सयलछ । 
रभसपणआिरसुदरवारविलयनित्रहु, जहिं सथु सम्माणिज्जइ नायरजणु सवहु ॥ 
ठाँवि ठाँवि जहिं गिजइ चचर सवणसुह, मगिग मग्गि मरिंगजर्ि जहिं नरवइपमुद्द । 
भवणि भवणि उब्भिज्जहि जहिं जूवय-मुसऊझ, पइ पइ जि पृदज्जहि सत्था-5डगमकुसलू ॥ 
वदणमालार्ंकिय तोरण जहि सहहिं, वत्था-55हर२ण परोप्पर जहिं नायर लहलहहिं । 
चद्थट्ट जहिं दीसइ तेछचुयंतसिर, वद्धावएणउ त वज्निउ सक्कददि कवण किर १ ॥ 
“जीव नंद नंद य” रव सुव्वहिं जहिं वयण, जहद्ि संतुद्नऊ नरवइ वियरइ रह रयण । 
अभयदाणु जहिं दिज्जइ मणद खुहाव्रणउं, त॑ तहिं हरिर्सि विक्ते निरु वद्धावणउं ॥ 
[ राजकुमार जन्मोत्सववर्णनम्‌ , पत्र २५८ पद्म ४४८-५७२ ] 


खरि हउं मुय वरि हउ स जाय वरि विसहरि खद्धी, वरि उब्भियसलियहिं भिन्न वरि हुयवहि दद्धी । 
यरि उब्जंधिय रुक्खडालि वरि खडहिं घल्लिय, मैं मई दिटूठु सवत्तिजुत्तु पिउ हियडासलक्निय ॥ 
[ सपल्निदुःखे, पत्र ३७ पद्म २७ ] 


सील सुनिम्मल दीहकाल तरुणसणणि पालिउ, झाण-5ज्ञय णिद्ध पावंकु तव-चरणिह्त खालिउ ॥ 
इय हालाहलबिससरिच्छ विसयास नित्रारदिं, उज्जलवन्नु सुवन्नु धम्विउं में फुकई द्वारद्दि ॥ 
अब्भसिंठ वीरपइज्नाण वरु, आवज्जिउ मुणिग्रुणदद गणु ॥ ता संपह उवसमि धरदि मणु, आवइ तुरिउे जर-मरणु ॥ 
[ शीले, पत्र १८३ पद्म १४-१५ ] 


हि 


आख्यानकमणिकोशटीकान्तगतानां वर्णकानामकारादिक्रमेणालुक्रमः 


वर्णनम्‌ पश्राड: गाथाडु: 
अनुरक्त-विरक्तनारी- ६३ ४९-५४ 
वर्णनम्‌ । 
अयोध्यावणनम्‌... ८१ १ 
( अपभ्रद्भाषायाम्‌ ) । 
उजयिनीवणनम्‌ +। १९५ ७३-७६ 


काशीदेशवर्णनम्‌ । २२२ १-५ 


ग्रीष्मवर्णनम्‌ । १६४ ७-११ 
परिणीतराजकुमार- ४९ ७६-८७ 
नगरप्रवेशवर्णनम्‌ । 

म २९५ १८८-२०१ 
पर्वतवर्णनम्‌ १३७७-३८ ८ 
( अपभअंशभाषायाम्‌ ) । 
युद्धवर्णनम्‌ ४८ ५५-५९ 


( अपभ्रंशभाषायाम्‌ ) । 


स्वुतयः 


पञ्चम परिशिष्टम 
उमथयाणा3० हि) 5०००० 

वणनम्‌ पत्राडुः 

युवतीवणनम्‌ । २३२ 

राजकुमारजन्मोत्सव- २५ 
वर्णनम्‌ । 

हे २३१ 

२५८ 


की । 
( अपभ्रृंशभाषायाम्‌ ) । 


राजकुमारीवर्णनम्‌ । ७२-७३ 


राज्षीवर्णनम्‌ । २२९ 
वनवर्षावर्णनम्‌ । १८ 
वर्षा वर्णनम्‌ । १४१ 
हर २०१ 
वसन्तवर्णनम्‌ । २५ 
93 १ रे धर 


( अपभ्रंशभाषायाम्‌ ) । 





द्‌ 


पष्ठं परिशिष्टम्‌ 
आख्यानकमणिकोशटीकान्तगताः स्तुतयः 


चतुर्वि शतिजिनस्तुतिः ( अपभंशभाषायाम्‌ ) । 


जम्बूस्वा मिस्तुतिः । 


पाश्वेस्वाभिस्तुतिः ( अपभ्रंशभाषायाम्‌ ) । 


वर्धमानस्वा मिस्तुतिः । 
99 
*3 
१3 


2) 


गाथाडुः 
११७-२१ 
२१-२४ 


८९-१०३ 
४४४८-५१ 


३७-०१ 
७-१५ 
३०-३९ 
१८-२३ 
२६९९-७२ 
३५-४५ 
३-रे 


पत्राडुः 
३३३ 


२६९-७० 
१०७०८ 
१३-१४ 


२४ 

३४ 
११५ 
२३३ 


बर्णेनम्‌ पन्माडुः 
विक्रमादित्यव्णनम्‌ । १९५ 
शरद्वर्णनम्‌ । ९१-९२ 
श्रेष्ठिपुश्नजन्मोत्सववर्- २६६ 
नम्‌ ( अपभ्रंशभाषायाम्‌ ) । 
श्रेष्ठिपुश्नीवर्णनम्‌ । ३१ 

५; १९ ३-९४ 
समुद्रतवर्णनम्‌ । ३६१ 
सरोवर्णनम्‌ । १०८ 
सार्थवर्णनम । १८ 
स्कन्धावारवर्णनम्‌ । ९, 
स्मशानवर्णनम्‌ । २५२ 
हेमन्तवर्णनम्‌ । १४८ 


गाथाडुः 
१९-३३ 
१८-२९ 
२२-२३ 
१७३१-७२ 
१३६ 
१३७-४५ 
१८-२५ 
११४२-५० 


गाथाडुः 
३८-८७ 
२३-३८ 
१्२ 


२९-३२ 
१३-२७ 
२२९०-३८ 
४-८ 
१५-२१ 
११-१७ 
२४२-४ ६ 

२-१३ 


हि । 


सप्तम परिशिष्टम्‌ 
आखूयानकमणिकोशटीकान्तगेतानां सुभाषितपद्मयानामकाराधलजुक्रमः 
--+- कै-- 
गाथादि विषयः - 
अकायें तथ्यों वा भवतु वितथों वा किमपरं, तथाप्युचेर्धाम्नां दरति महिमानं जनरवः । 
तुलोत्तोर्णस्पापि प्रकटनिदिताशेषतमसो, रवेस्ताइक्‌ तेजो नहि भवति कन्यां गत इति ॥ लोकापवादे 
अकृत्वा परसन्तापमगत्वा खलसज्नतिम्‌ । अनुत्सज्य सतां मार्ग यत्‌ स्वल्पमपि तद्‌ बहु ॥ सदाचारे 
अच्छतु निरंतरनेदगब्भसब्भावसुंदरा सुयणा । सदृवासवडिठया तख्वरा वि दुक्‍खेहि मुच्चंति ॥ वियोगे 
अजात-मृत-मूर्खभ्यो म्ता-5जातौ वरं सुतौ | तौ किश्विच्छोकदौ पित्रोम्‌खेस्त्वत्यन्तशोकदः । मूखपुत्रे 
अडइ बहु, वह्॒‌३ भरं, सहृइ छुटट, पावभायरइ घढ़्टी । कुल-सील-जाइपं्रयठिश!र च लोभदुदुओं चयइ ॥ लोमे 
अणहुता वि हु हुंतीए हुति, हुंता वि जंति जंतीए । ओ | जीए सम नीसेसगुणगणा जयउ सा लच्छी ॥ अर्थ 
अणहुंतो वि हु अम्मा-पिऊग ता दुकब्रमावहद३ तणओ । होऊण विवज्जंतो बहुययरं कुणशइ सो दुक्ख ॥ मूखपुत्रे 
अणुपुंखमावहंता वि अणत्था तस्स बहुकला हुति । सुह-दुक्व॒कच्छपुडओ जस्स कयंतो वहह पकखे ॥ द्वे 


अत्थविणासं नियकुलकलेंकर्ण सयण-मिस्तनासं च । माणमलणं पि पावति पाणिणों जूयवसणेण ॥ 
पात्रति बंधर्ण गोत्तिगोयरं, भाररोव्ण सिरसा । कि जंपिएण बहुणा १ अवि कत्तण्मुत्तमंगस्स ॥ 
कज्जा-5कज्ज न मुणति, नेय5वेक्खंति दुक्ल॒रिंछोडिं । जद मम कएण इमिणा होदि त्ति अगत्थपत्थारी ॥  बृते 


अधणाण धर्ण सील, भूसणरद्दियाण भूसर्ण परम । परदेसे नियगेहं, सयणविमुक्काण नियसयणों ॥ शीले 

अभ्नद परिचितिज्जर सदहरिसकंदुज्जुएण हियएण । परिणमइ अभह चिय कज्ञारंभो विहिवसेण ॥ देवे 
अन्न च दृयकयतो न नियइ दढ्पेम्मपरवसाण दुह् । न गणइ कुड़बभंग, न य चितइ मित्तविच्छोह ॥ 

न य परिभावइ पिइ-माइपभिइयुड्ढ॒त्तणं नवरमेसो । सच्छेदसुहं वियरइ भंजतो मत्तहत्यि व्य ॥ कृतान्ते 

अन्यथव विचिन्त्यन्ते पुरुषेण मनोरथाः । देवा[दा]हितसद्धावाः कार्याणां गतयोडन्यथा ॥ द्वे 
अपरिक्खियकयकज्ज सिद्ध पि न सजणा पसंसंति । सुपरिक्तिय पुणो विहृडिय पि न जणेइ वयणिज्म ॥ 

परीक्षिता-इपरीक्षितकाय 

अपरोडपि च कि रूते करोत्वतिरिक्ते5पि च रोदनादू ऋते । तद॒पि क्रियमाणमजञ्जिनां, नितरां स्त्रार्थदर विचिन्त्यताम्‌ ॥ 

मझतशो कत्यागे 

अपुत्रस्य गतिर्नास्ति स्त्रगों नेव च नव च । तस्मात्‌ पुत्रमुखं दश्वा खुख॑ स्व प्रयास्यति ॥ पुत्रे 


अप्पविसुद्धिनिमित्ते किलम्मसे ता चएसु कोवरिवुं । विमलत्तमहिलसंतो कह मजसि पकिलजलम्मि ? ॥ क्रोधपरिद्ारे 
अप्प व बायर वा परिग्गह परिदरेति धम्मथणा । राईभोयणतरिरई सया वि धम्मत्यथिणा कज़्ा ॥ 
परिग्रह-रात्रिभोजनत्यागे 


अफलस्यापि बृक्षस्य छाया भत्रति शीतला । निगुणो5पि वर बन्धुयः परः पर एत्र सः ॥ बान्धवे 
अभिमाणवजियाण ठाणे ठाणे पराभवहयाण । काउरिसाणं ताण न य इहलोगो न परलोगो ॥ स््रमाने 
अयोग्यस्य गुणाधानं विधातुं नेव पायंते । छाक्षारसेन केनापि कर्पासः किमु रज्यते ? ॥ कुशिष्ये 
अर्थनाशं मनस्ताप॑ गृहे दुश्वरितानि वे । वश्चवन चापमानं च पतिमान्‌ न प्रकाशयेत्‌ ॥ नीतौ 
अलड्भारः श्ठा करनरकपाले परिकरः, प्रशीर्णाजों भज्जी वसु च इृष एको गतवयाः ॥ 

अवस्थेयं स्थाणोरपि भवत्रति यत्रामरगुरोविधौ वके मूर्ष्नि स्थितवति व के पुनरमी 2 ॥ देवे 


अवमाणिया वि जे नियगिहं पि न चयति हीणमाणधणा । अभिमाणगुणविहृणा साणसमाण व्व ते नियमा ॥ स्वमाने 
अवश्यं यौवनस्थेन विकलेनापि जन्तुना । विकार? खलु कतेव्यो नाविकाराय यौवनम्‌ ॥ यौवने 


पन्नमाडुः 


५९ 
२२३ 
२५१ 

९१ 
२६६ 

२८७ 
२२२ 
२६६ 
१५१ 


४९-५० 


२५४ 
३३९ 


३४५९ 
२७५ 
१४२५ 


३२३३ 
३०८ 
२१७ 


३३० 
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गाथायडुः 


३२ 
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१९ 
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३० 
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४०२ प्तमं 'परिशिष्टम 


गाथा विषय 
अवि उ3डूढ चिय फुट्टति माणिणो, न य सहंति अवमाण । अत्थवणम्मि वि रविणों किरणा उड़्ढे चिय फुरंति ॥ स्वमाने 
अवि उब्भडमयरहरो नियभुयदंडेद्दि तीरए तरिउं । न हु पुल्अअवसमजियसुद्दा-इसुद्दो कम्मपरिणामों ॥ देवे 
अवबि करबालकरालियरणंगणे कप्पर्रिति ससरीरं । न सहंति सयणविरइयपराभव॑ पोरिसिक्रसा ॥ स्वमाने 
अवि कालकूडकवलणमसुदं सुदरमायरंति पियमाणा । न उणों मुयति मरणे वि माणमाणिक्धषणमणहं ॥ चर 
अवि कुवियवजपाणिप्पमुक्ककुलिस पि रक्खिउं सक्का । न हु पुष्यभवसमजियसुद्दा-डसुद्दो कम्मपरिणामों ॥ दये 


अति चलरूइ घरणिवीढं रइकेलिविसंदुरस्स फणिवइणों । अभिमाणं माणधणा मणयं पि मुयंति न तहा वि।। स्वमाने 
अवबि चलइ मेरुचूला, गयणाओ दिणमणी वि निवढेज्जा । न वि मुणिवयण्ण भुवणम्मि अच्द्ा होइ कश्या वि।॥ मुनिवचने 


अवि समरसरणमवि देसगभणमवि बंधुमुयणमिच्छंति । माणधयणा न उ नियनिद्धबंधुजणियं पराभत्रणं ॥ _ सस्‍्वमाने 
क्रवि ससुरासुरभुत्रण जिप्पश समरम्मि वीरसत्तेहिं । न हु पुब्वभव्रसमजियसुद्दा-5सुद्दो कम्मपरिंणामों ॥ दबे 
अश्वः दा्ं शास्रं वाणी वीणा नरश्व नारी व । पुरुषविशेषे प्राप्ता भरन्त्ययोग्याल योग्याश्व ॥ संसगें 


अहव इदह-परभवम्मि य परिभवतरुकुसुममं जरी महिला । कामुयजणस्स सुइरं निम्मविया हयपयावश्णा ॥ नारीनिन्दायाम्‌ 
अहवा वि भवावइ्म्मि वह्मा्णं सकम्मुणा जीते । ते नत्थि कि पि विसभं ज॑ं न सद्दावई विही एसा ॥, देवे 
अद्दो ! का काकानामहमहमिका हंसविहगेः ?, सहामर्षः सिंहैरिह द्वि कतमो जम्बुकतुकात्‌  ॥ 


बत स्पर्दा कीरकू कथय कमलेः सेवलततेः , सहासूया सद्धि! ख खलजनस्यापि कतमा ? ॥ दुजने 
अह्दो ! प्रकृतिसादश्यं सडेष्मणो दुजनस्प चर । मधुरेः कोपमायाति कटुकैरुपशाम्यति ॥ है 
अह्दो | संसारजालर्य विपरीतः क्रियाक्रमः । न पर॑ जलजन्तूनां धीवरस्यापि बन्धनम्‌ ॥। संसारस््ररूपे 
आक़न्दितेन बहुनापि च शोचितेन, साद्ध सुरेश्वरगणरपि रोदितेन । 
कोडीकृत॑ हतकृतान्तभटेःस्वबन्धुं, प्रश्यानयेयुरिह केडपि न सद्धियोपि ॥ छृतान्ते 


आगमलमे वयपरिणईए भंगे य धण-विलाससाणं । ईसि असमंजसाण वि हिययाइईं वहति परिणाम ।। सुपरिणामकारणानि 
आयुःक्षयो भवति तस्य दरिद्रता च, नेवान्यजन्मनि भवेत्‌ कुल्जातिलाभः । 
मांसाशिनो हृतमतेविंफलक्रियस्य, स्याभीचकर्मकरणोदरपूरणं च॥ मांसत्यागे 
आयुर्वधेशते लोके तदर्थ च उपोषितः । करोति विरति धन्यों यः सदा निशिभोजने ॥ रात्रौभोजनत्यागे 
आलाणम्मि उ हत्यी, नियए ठाणम्मि घेष्पए अस्सो। हिययम्मि पवरमद्िला, सुयगों सब्भावमेलेग ॥ खुजनावजने 
आवद्गओ वि नित्थरइ आवयं, तरइ जलदिपढडिओ वि। रणसंकडे वि जीवएइ जीरो अणुकूलकम्मवसा ॥  पुष्योदये 
इयरासु वि जुवरश्स न वीतसेयव्यमेत्थ कुडिलासु । विसमविससक्नषिभासुं कि पुण वेसासु विस्सासो ! ॥ वेश्यायाम्‌ 


इह-परलोयविरद्धे अणत्यहेउम्मि को रमेज इहं ? । इय नाउं सविवेया जूयस्स परम्मुद्दा जाया ॥ शत 
इसा-विसाय-मय-मोह-माणम हियाण निदयबु द्वीथ । जायंति कलंकाईं जियाण जं ते किम्रच्छरियं १ ॥ कषाये 
जज्ञसु विसए, परिदरसु दुन्नए, ठवसु नियमण्ण धम्मे । ठाऊण कक्षमूले इट्टं सिद्ठ व पलिएण ॥ पलितोद्रमे 
उज्हंति घर्ण, मुंचेति परिमर्ण, महियलं परिचयंति । मरणे वि मद्दासत्ता न उणो माणं परिहरंति ॥। स्वमाने 
उद्गश सणिये सणियं वंसे संचरइ गाढमणुलग्गों । थेरो व्व सुयणनेहों न वि भज्जइ बिउणओ होइ ॥ सुजनस्नेहे 
उत्तम: सह साझत्ये पण्डितेः सह सदुथा । अलब्धेः सह मिन्नत्व॑ कुर्वाणो नावसीदति ॥ नीठौ 
उद्घेगमद्दातर्ते पातयति पयोधरोश्नमनकाले । सरिदिव तटमनुवर्ष विवर्धभाना सुता पितरम्‌ ॥ दुद्दितरि 
उप्पयठ गयणमरस्गे रुंज़जऊ कसिणत्तणं पयासेउ । तह वि हु गोब्बरईडो न पात्रए भमरचरियाईं ॥ दुजने 
अवयरिए उवयारों जो सो वणियाण होइ ववहारों । अत्रत्यथ जमुत॒यरियं ते पुण गरुया पसंसंति ॥ सुजने 
उवयारसहस्सेण वि तिन्नि न घेप्पंति तिहुयणे सयले । बेसा अविवेयपहू दुज्जणलोओ तह चोत्र ॥ दुजनादौ 


पतन्राडुः 
२१७ 
२०८ 
१७ 
२९८ 
२०८ 
१० 
१५० 
२९८ 
२०९ 
१९४ 
५१ 
२५३ 


१८३ 
१३७७० 


९४ 


३२९६ 


डे ०७3 


१८५६ 
१३१ 
११० 
१८० 
३९ 
०७ 
६६ 
१६४ 
३९ 
९ 
१७९ 
११० 
१८३ 
२५७ 
१८७ 


धुक्कस्स कए नियजीवियस्स बहुयाओ जीवकोडीओ । दुक्‍्खे ठबंति जे केश ताण कि सासय॑ जीयं १ ॥ अहिसायामू ३२७ 


एकस्स खण तित्ती अन्षस्त य तिहुयणं पि अत्यप्तर । एवं कह सारिज्जज खणसोक्खकएण पाणिगणों १ ॥ मर 
एगेण विणा पियसाणुसेण सब्मावनेहरसिएण । जणसंकुला वि पुहवी अव्यो ! रहज्च॑ व पढिहाइ ॥ बिरहे 
एतासु निषृणपुरन्ध्रिषु राक्षसीषु, मायाधनासु च न विश्वसनीयमेव । 
एता हि मुग्धजनमात्मवर्श विधाय, संसारदुःखजलधौ खल पातयन्ति ॥ नारीनिम्दायाम 


$ ) ४ ९५ 
३१४ 


२१८ 


गायाहः 
६४२ 
५१३७ 
५४ 
२८५ 

, +३९६ 
रे 

<३ 
२८६ 
५३८ 
३३ 

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१ 


3 


१६ 
१५ 
६२ 
६५ 
३६ 

१०९ 
४३ 
१६ 
२५ 
१८ 
१० 
६० 

(4 

३९८ 
५६ 
२० 
२६ 

११० 


छुभाषितपानामनुफ्रमः 


गाथा विषय 
एवबा स्थली नवतृणारछुूकुर जालमेतदेषा म्ंगीति हृदि जातम्रदः कुरञ्ञः । 
एतन्न वेजशि स यथाइन्‍्तरितो लताभिरायाति सज्जितकठोरशरः किरातः ॥ कृतान्ते 
ओद्धत्यदोषर द्विता विभवे भवन्ति, दैन्‍्यादपेतमनसों व्यसनेडपि सन्‍्तः । 
पुण्याशयाः स्तिमितनीरधिनीरकल्पाः, सवैश्न सम्पदि विपयद्यपि तुल्यचित्ता: ॥ धीरे 
औत्सुक्यमाश्रमवसादयति प्रतिष्ठा, किलश्नाति लब्धपरिपालनश्रत्तिरेत । 
नातिश्रमाय नयनाय यथा श्रमाय, राज्ये स्वद्दस्तघ्तदण्डमिवातपत्रम्‌ ॥ राज्यश्रीनिन्दायाम्‌ 
कउऊ्जविहू्ण वयणं, धम्मविद्णं च माणुस्स जम्म । निरवच्च च कलत्त तिन्नि वि लोए अणन्याईं । सन्‍्ततौ 
कट्ठट करंति, समरे मरंति जलणं घरेति सीसेणग । न उणो जिणंति कोव॑ पावमिर्ण धम्मवणदहणं ॥ कोधे 
कयकूढकव ढचाडुय रश्कलिया कोढियं पि कामेइ । परिहर३ रइविरत्ता धणहीणं कामएत्र पि ॥ वेश्यायाम्‌ 


करिकन्तववलचित्ता कयंतचित्तं व निग्धिणा महिला । महिला सच्चविरद्दिया अणब्भवज्ञासणों महिला ॥ नारीनिन्दायाम्‌ 
कलसमई कलसे चिय विमलो विमलं परं पि पिच्छति । आत्ताणय व आयरसए उग्र जेणं जणो नियइ ॥ सुजन-दुजनयोः 
कल्पद्रुमः कनिष्ठो5पि कल्पितं राति देहिनाम्‌ । मथ्नाति न महानागान्‌ कनीयानपि केसरी ! ॥ 

, क॒त्याणकारनिरवशगुणैरनल्पं, शश्व॒त्वविश्नपरपावनतीथैकल्पम्‌ । 


धन्यस्य कस्यचिदिदं शुभजन्मभाजः, पुण्पात्मनः सुमुनिदशेनमातरिरस्ति ॥ मुनिदर्शने 
कस-छेय-तावसुद्धी पुब्वा-धतरबाहवज्जिओं धणियं । सचरा-5चरजीवदहिओ धम्मों वि हु विसयनिर्गहणो ॥ धर्म 
कस्स न चुकं खलिय समेइ भतवासमहिवर्सतस्स । पुणरवि तद्द जश्यव्वं जद्दा न महलिज्जए अप्पा ॥  भवस्तररूपे 
कददमधि सुयणो सुयणस्स आवयावणयणम्मि असमत्थी । आवइपडिय दट्ठु अपारयतो अवकमइ ॥ सुजने 


कह वि हु कत्तंतीए संधिज्जइ कि न तुझओ तंतू १ | पाओ य कि न धुव्वइ असुइविलित्तो पमायवसा १ ॥ पश्चात्तापे 
कंदररहिया वग्धी विधघृहया भोयणं विणा महिला । पक त्रिणा वि कलंको महिला वयणिज्जकुलभवर्ण ॥ नारीनिन्दाय।म्‌ 


काव्यशाखविनोदेन कालो गच्छति धीमताम्‌ । व्यसनेन हि मूर्खाणां निद्रया कलहेन च॑ ॥ पण्डित-म्ेयोः 
किर कस्स थिरा रूच्छो ! कस्स जए सासये पिए पेम्मं १ । 
कस्स व निश्चय जीयं ? भण को व ण खंडिओ विहिणा १ ॥ देवे 
कि तीए सिरीए पीवराए १ जा द्वोइ अक्नदेसम्मि । जा य न मित्तेहि सम ज च अमिता न पेच्छेति ॥ लुक्ष्म्याम्‌ 
कि बहुणा सव्वाण वि नर-अमरा-इसुरसुद्दाण संजणणं । सील ता पालिज्जड तमखंड भव्जसत्तेदिं ॥ शीले 


कुधियः क्ाचिदर्तिसड्गताः, किल कुर्युः शुचमश्केयकेः । विलसन्ति तदेव तरमी, मनुजानां घिगिमां विडम्बनाम्‌ ॥ शोके 
कुपितः किल कुटथते यकद्‌ , विपदि स्वेन निज हारीरकम्‌ । 
बत | सम्प्रति तेन ऋत्यते, प्रकटाज् किल का विदम्धता १ ॥ 

कृच्छादू ब्रह्मेन्द्रभूतरजनि परमितः स्थूलभद्रों विकारं, मुश्वत्यश्रण्यजल मणगस्गतिविधौ परय सेज्म्भवो5पि | 


42 


षण्मासान्‌ स्कन्धदेशे शबमवहदसौ हन्त! रामो5पि यस्मादित्थ यश्चित्ररूपो भवतु भुवि नमो भोहराजाय तस्मे ॥ मोहे 


कृतमिद्मिद करिष्ये केवलमतिसरल | किमिति चिन्तयसि १ । तुटिंदलितसकलवाब्छ॑ विलसितमाप चिन्तय विधातुः॥ देवे 
कृदाः काणः खज्ञः श्रवणरदहितः पुस्छविकल:, क्षुधाक्षामो दीनः पिठरककपालार्पितगलः । 


ब्रणेः पूयक्लिनेः कृमिकुडचितेराचिततनुः, झुनीमभ्येति श्वा हृतमपि निहन्त्येत्र मदनः ॥ कामे 
केसरिं वारिउं सका वारणं वा वि भीसणं । नाल बुद्धिसमिद्धा वि वारिउ भवियव्ययं ॥ देवे 
कक विलासाः १ क्‍्य पाण्डित्यं? कक्‍्य बुद्धि: ! क्त्र विदम्धता /। क्‍व देशभाषाविज्ञान ? कक्‍्य देशाचारचारुता 2 ॥ 

यावदूतेसमाकीर्णा नानाइत्तान्तसडकुला । नानेकशः परिश्रान्ता पुरुषेण बसुन्धरा ॥ देशायने 
स्वणदंसियसुरसरिवित्थराइ खणसुम्नरन्नसरिसाईं । एयाइ ताइं कम्मिदयालिणो जीव | ललियाई ॥ देवे 


खणदिद्वनट्वविदवे खणपरियट्टंतविविहसुद्द-दुक्ले । खणसंजोय-विओए नत्थि सुह कि पि संसारे ॥  संसारासारत्वे 
खणभंगुरसंसारियपयत्थसत्थम्मि नायपरमत्था । पडिबंधमणत्थफल कुणंतु कददमेत्थ सविवेया ? ॥ निर्वेदे 
खरपवणपणुन्नकुसरगलग्गजलबिदुसच्छह॑ जीय॑ । तरणिकरतवियतरुखुडियकुसुमसरिस च तारुन्ने ॥ अनिस्यत्वे 


पन्नाछुः 


३१३२ 


३५६ 
२९० 
१६९१ 

३० 
१४२ 
२८८ 
१३२ 


२७६ 
३१४ 
१०६ 
२८७ 
१५६ 


२९५ 


२२३ 
३४३ 
३५० 


३२१ 
३११ 


२२१ 


३०६ 
३०० 
३२० 
३०१ 
३१६ 
३०३ 


ड०३३ 


गाथाझुः 


२७ 


५४ 
२८ 


धरे 
६० 
११८ 
८३ 


८९ 
है 4 
रे 


१६ 
२११ 


५५२ 
४१ 
२८७ 
घट 


और 


३२३४ 


१०७० 


३ 
«२ 


४९-५० 
३५७ 
२९६ 
३९७ 
१८१ 
३९५९ 


४०४ सप्तम॑ परिशिष्टम्‌ 


गाथादि विषयः 


खेलालीढा तुच्छ व्य मच्छिया दुकरंं विमोएउं । महिलासंसम्गीए अप्पाणों पुरिसमेत्तण ॥ नारीनिन्दायाम्‌ 
गत॑ झतमतिक्रान्तं न दोचन्ति विपश्चितः । गत॑ गतसतिक्रान्तमतिक्ान्त मरते मतम्‌ ॥ शोकापहारे 
गते मरते प्रबरजिते क्लीबे च पतिते पतौ । पश्चस्वापत्सु नारीणां पतिरन्यो विधीयते ॥॥ मारीपुनलेग्ने 
गतेर्धन्यतरों वर्णों वर्णाद्‌ धन्यतरः स्वरः । स्व॒राद्‌ धन्यतरं सत्तं सर्वे सच्चे प्रतिष्ठितम ॥ सरवे 
गयकन्नतालतरलं जीवियमबि जाव सथ्वजीवाणं । संझब्भरायसरिसं जोव्वणमदि चंचलसहातर ॥। अनित्यत्वे 
गयणम्मि निरालंबणसवि परिसक्कंति साइसेक्रसा । मारणसिणो न मणयं पि माणभंगं परिसदंति ॥ स्रमाने 
गइ-सूर-चंदचरियं ताराचरियं च राहुचरियं च । जाणंति बुद्धितता महिलाचरिय न याणंति ॥ नारीचरिते 
गंगाए बालया, सायरे जल, द्विमवओ य परिमाणं। जाणंति बुंद्धिमता महिलाचरियं न याणंति ॥ नारीचरिते 
गुणानामेव दोषात्‌ स्यादू धुरि धुर्यों नियुज्यते । असज्ञातकिणस्कन्धः सुखे जीवति गौगलिः ॥ . निगुणफ्रशंसायाम्‌ 
गुरुदारं॑ नरसपुरस्स, सच्चनलिणीवणस्स हिमपडणं । निस्सेसदोसगेहं ता घिद्धीधी ! इसमे वसणं ॥ शूते 
भुरुदुह् तरुणो बीयं सयलअणत्थाण मंदिरं बिउले । कुलकित्तिविणासकरें ता धिद्धीधी! इम॑ वसणं ॥ हर 
भुरुमित्तत्थे पाणा, रूव॑ तारुणये च दइयाएं । विहछद्धरणम्मि ध्णं ज उवउज़इ तये सफल ॥ नीतौ 
गुरुशोकवशेन ताडथते हृदयं यत्‌ स्थकरेः सुनिर्दयम्‌ । तदपि प्रियद्दारयशिमि: प्रमदेडलछछकरियते विचेतनेः ॥ छोके 
घटिकार्ध घटीमात्रं यो नरः कुरुते ब्रतम्‌ । स स्त्र्गी कि पुनयेस्य ब्रत॑ यामचतुश्यम्‌ ॥ राश्रिभोजनतल्यागे 
चणमालाओ व समुकछसंतसुपओदराओ वबड़ढंति । भोहबिस्स महिलाओ गोणसगरलं व पुरिसस्स ॥ ह नारीनिन्दायाम्‌ 
खउठतीसअइसयजुओ अद्ठमद्दापाडिद्देकयसोहो । जियराय-दोस-मोहो एसो देवों सुगइद्देऊ ॥ सुदेवे 
चयइ सिणिद्ध पि जणं कुणइ अकरजज पि दणइ जणयं पि । कि कि न कुणइ सामिणि! परलसों सेवयवराओं ?॥ _ दासत्वे 
चरणेरिद्द शोकतो यकैर्विलिखद्विभुबमज्ञ ! शोचितम्‌ । मुदितेरिह गम्यते तकेर्विलसद्धिभुषि हंसलीलया ॥ . शोके 


चवला मइलणसीला सिणेहपरिपूरिया वि तावेइ । दीवयसिद व्य महिला हरूद्धप्ससरा भय देइ ॥ नारीनिन्दायाम्‌ 
चेदकला-छुरमद्ठी-चो रियरमियाई राइणो मंतो । सुटूठु वि गोविज्त चडदियहे पायर्ड होइ ॥ गोप्यस्थारक्षायाम्‌ 
चेदस्स खओ, न हु तारयाण, रिद्धी वि तस्स, न हु ताण। गरुयाण चडण-पड़णं इयरा पुण निश्चपडिय त्ति ॥ विपदि 


चाएण दरिदृत्त, घाएदि य काण-कुट-मटत्त । पुत्तदहि परिभवं जे गुणेदहि पात्रति ते धन्ना ॥ सुपुग्रे 
चिन्तयति कायजातं मतिमान्‌ मतमन्यथाविधानेन । निदुःखसुखस्तु विधिस्तच्चिन्तितमन्यथा कुरुते ॥ दवे 
चिन्तामर्णि जयदनड् जितो जिनस्य, बिम्ब जरत्तरतृणीग्रितकामघेनु । 
निस्सारकामघटमल्पितकल्पबृक्षं, कल्याणकृत्‌ कृतधियों ह्यवलोकयन्ति ॥ जिनबिम्बे 
चिरविरहियपिंनजणसंगमम्मि जायइ जणस्स ज सोक्ख-। त कहिउ पि न तीरइ संकासं निरुवमसुहस्स ॥ प्रियप्राप्तौ 
चिंतिजश ज न मणे, जुसतिवियारेण जुजइ न जं च । ते पि हयासो एसो स॒ुहमसुहं वा विही कुणइ ॥ देवे 
चितियचितारयणं अहरीकयकामधेणुमाहप्पा । अवहृत्थियकामघडा एक चिय होइ जीवदया ॥ जीवदयायाम्‌ 


छिजउ सीसं, अह द्ोउ बंधर्ण, वयठ सब्बहा लच्छी । पडिवन्नपालणे सुपुरिसाण जं होइ त होठ ॥ प्रतिशापालने 
छिक्त्वा पाशमपास्य कूटरचनां भित्त्वा बलादू वागुरां, प्यन्तोग्रशिखाकलापजटिलान्निगंत्य दावानलात्‌ । 
व्याधानां शरगोचरादपर॒तो वेगेन धावन्‌ झगः, कूपान्तः पतितः करोतु विमुखे कि वा विधौ पौरुषम्‌ १॥ द्वे 


झइ जलइ जलउठ लोए कुसत्थपवणाहओ कसायरगौ । ते चोज्ज जं जिणवयण्रारिसित्तो वि पञखलइ ॥  फरोषे 
जइ पविससि पायालं, लक्कसि गिरिकंदरेस विसमेसु । तह वि हु पु्वकयाओ न मुच्से जीव ! कि बहुणा!॥ देवे 
जइ पथि हु वज्बियसंगो कुलेण चैगो तवेण तणुयगो । तह वि हु एगो परिवडइ, वसह् ता सुगुदकुलवासे ॥ गुरुकुलवासे 
जठरापरिपूरणे पुमानतिमान्यां मुक्‍्वा मनस्वितामू । अवधूय मनःप्रियां हिये परिहत्य स्वकुलव्यवस्थिताम ॥ 
कुरुते कुनरेन्द्रसेवनं, तनुते नीचजने5पि संस्तुतिम्‌ । प्रथयत्यहिते5पि मित्रतां व्यजति स्वाचरणं सतां मतम्‌ ॥ उदरभरणे 


जन्म-जरा-मरणभयेरभिद्रुते व्याधिवेदनाग्रस्ते । जिनवरवचनादन्यतन्न नास्ति शरणं कचिल्लोके ॥ जिनवचने 
जन्मेदे न चिराय भूरिभयदा लक्ष्म्योड्पि नेव स्थिरा, किम्पाकान्तफला निताम्तकटवः कामाः क्षयभ्वंसिनः । 
आयुः शारदमेघचश्चलतरं ज्ञाखा तथा यौवन, हे लछोकाः | कुरुतादरं प्रतिदिन धर्मेड्धविध्यंसिनि ॥ अन्त्यित्वे 


पन्रनाछुः 


२७४ 


२२ 
३६३ 
३१६ 
२९८ 
१९३ 
१९३ 
२८६ 

१० 

० 
१९६ 
३५० 
१३१ 
३३० 
३१४ 
३३८ 
३५० 
१९७४ 
२२१ 
२९९ 
३०७ 
३१० 


१०३ 


३०७ 


डे ०० 
२३७ 


१९६ 


रेी० 
१९१ 


२५३ 
२४४ 


३५९ 
७५९ 


२५९ 


गाथायद्डुः 
ध्े८ 


4२ 
३६ 
१८२ 
२८३ 
० 
५१ 
५६ 


१०७ 
९५१ 
५० 
४६ 
३३ 


१३४ 
४९ 
२९ 
१५ 

३२९ 

१०२ 


९० 


सुभावितपचातामनुक्रमः 


गाथांदि विषयः 
जम्हा ग्रुणाण मूल माणों पुरिसाण धीरचिशाणे । परदेसे द्वि न पात्नति परिभव जेण संजुत्ता ॥ रइमाने 
जह किर वदुद्ध पेच्छ/ मजारी न उण छउठडयं मुद्धा। तह मूढो विसयसुद्ं पेच्छह नो नरयदुकजाई ॥ व्रिषयपरिदारे 
जह किपागतरुफलं मुहृम्मि महुरं कुणंति खजत । तह आवाए सुहया परिणामे दारुणा विसया ॥ ञ 
जह चेव विसमस्रण सब्तिओ को वि दुक्खिओ होइ । तह विसयसल्लिओ व्रि हु भत्रम्मि जीवो वसइ दुहिओ ,, 
जह जह वाएश विही विसरिसभंगेहि निटृठुरं पड॒ह । धीरा पसश्नवयणा नश्वंति तहा तहां चेव ॥ 


पत्राइ:ः 


१७ 
२५९ 
२५९ 
२७५९ 
२९९ 


जद वा मुहम्मि महुरं मारइ हालाहल विसं भुत्त । तह विसया वि हु पावा मारंति जिये भवावट्ट ॥ विषयपरिहारे «२५९ 


ज॑ एश अवसरेणं परिवाडीए सुह व दुकक्‍ल वा । त सहह अदीणम्रणा जाव पसाय वरिही छुणइ ॥ धेय॑ 
ज॑ जेण पावियव्य॑ सह व दुकलत व कम्मनिम्मविय । त॑ सो तहेव पावई कयस्स नासो जओ नत्थि ॥ दबे 


ज॑ पि किर विसयसोक्खं जियाण रम्मत्तगेण पढ़िहाइ । त॑े पि महुविदुकूबयनायाओ तुच्छमणत्थं ॥ विषयपरिदारे 
ज॑ मणरुदए छेया दिद्ठि दूई भणंति मिहुणाणं । ज॑ हिययस्स न रुचइ तत्थ गया कुणउ कि दिट्ठी !॥  स्नेदे 


जाई रू विज तिन्नि वि निवडंतु गिरिगुद्दाविवरे । अत्थो चिय परिवड्ढउ जेण गुणा पायडा हुंति॥ अर्थ 
जाएण जीवलोए दो चेत्र नरेण सिक्खियव्वाइ । कम्मेण जेण जीवश जेण मओ सोम्गई जाइ ॥ सुकृते 
जाण रमणियणभमुदाधणुनिग्गययसियकडक्सभछ्तीहिं । सीलकव्य न भिन्न नमो नमो ताण वीराण ॥ शीले 
जाणंति पियं॑ चिय वोक्तुमुत्तमा अमयमुस्तिणों नूणं । कि अमयाओ अध झरिउं मयलंछणों मुणइ १ ॥ सुजने 
जाव न दुकव पत्तो, पियबंधवविरहदिओं य नो जाव । जीवो धम्मक्खाणं भावेण न गिण्दए ताव ॥ धर्म 


जावउन्न॑ चितिजइ पयत्यजाय असासयमसारं । ताव बरं चिंतिजद धम्मो च्िय सुहयरो बधू ॥ ६ 
जिणपूया मुणिदा्णं एत्तियमेल गिहीण सचरियं । जइ एयाओ भट्ठो ता भट्ठों सब्यकजाओं ॥ देव-पूजा-समुनिदाने 


जिन्नाणं सिन्नाणं भद्टाण महाफल समुद्धरणे । समए चिरंतणाणं दंसियमन्नचयाणं पि ॥ जीर्णचत्योद्धरणे 
जीय जोव्वणमिड्ढी पियसंजोगा य अत्थिरं सब्व॑ । खणदिद्ठनट्वहूव नहृम्मि गंघव्वनगरं व ॥ अनित्यत्वे 
जीवित देहिनां यस्मादनेकापायसडुलम्‌ । कथश्विद्‌ देवयोगः स्यान्नक्तं सोइनशनी भवेत्‌ ॥ रात्रिभोजनत्यागे 


जो अइरावयगंडयलगलियमयरेंदपरिमलग्धविओ । सो वियसियं पि न रमइ पिचुमंदं महुयरजुवाणों ॥ पान्रानुरागे 
जो कयसीयलतीरे नीरे रेवाए मजइ जहिच्छ । सो कि इयरे वियरे गओ गओ देइ दिद्ठि पि? ॥ 
जो गंतुजितनए नए नओ भव्इ वसह वरवच्छे । सो नीलगलो विगलो कि विगयतरुं मरु सरइ१-॥ 
जो घणलयसामलए मलए मयरंदवासिओ वसिओ । सारंगो सारंगो सो कि इयरे धरे रमइ ! ॥ गन 

जो जेण सुद्धधम्मम्मि ठाविओ संजएण गिहिणा वा । सो चेव य तस्स गुरू जायइ सद्धम्मदाणाओ ॥ गुरौ 
जो देश भत्तिनिब्भरचित्तो जिणनाहदीवयं तस्स । जायति सयलकल्लाणयाई सहलाइ पुन्नेण ॥ दीपपूजायाम्‌ 
जो नासियधवर्गंगं गंगे घवलुजल जले लिहइ । गयसोह सो हसो कि सेसनईपयं पियइ १॥ पात्नानुरागे 
जो पोढपुरंघधिरए रओ पकाम पकामकामम्मि । सो कि मोहियमोरे खोरे कामे म्ण कुणइ! ॥ 

जो माणसम्मि वसिओ वियसियसयवत्तमासलामोए । सो कि फुछपलछासे सविलास छप्पओ छित्र३ई १ ॥ 


है 


२१ 


सग्गय | तयाणुरत्तय ! तस्सुक़ठलय ! तग्युणदुद्दत्त ! । तव्विरद्पजनिहणिय ! द्ियय ! तए किद् विणोइस्सं १ ॥ विरहे 
तणरासीहिं व जलणों, जद जलनाहो नईसहस्सेहिं। नो तिप्पश तह जीवो बहुयाहि वि भोयणविहीहिं ॥ रसगणद्धौ 
तवेण उत्तमों जम्मों कंती लायण्णमुत्तत । तवेण ख्वसामिद्धी तवेण सुद्संपया ॥ तपसि 
तबेण वित्थडा कित्ती तबेण सुदृगसर्ण । सुरा वि पज्जुवा्सति तबोगुणरयं सया ॥ 
तबेण हुंति लंद्वीओ सग्गा मोकक्‍्वा तवेण य । त॑ नहत्यि एत्य कहाणं तवाओ जे न जायए ॥ 
तहलालियस्स तहपालियस्स तहसुरहिगंधमहियस्स । खलदेह | तुज्म्त जुसे ? पयं पि नो देसि गतव्वे ॥ देह्ासारत्वे 


2* 


ते कि पि जए पुश्षेहद माणु्स मिलइ गुणमणिमहस्घ । अश्वाहिजशइ जम्मो वि जस्स साहिज्वएण सुहं ॥  सुजने 
से कि पि नत्यि भुवणोयरम्मि पात्र न ज॑ अहिलसंति । पुरिसा विसयपिवासापरव्वसा मुकमजाया ॥ कामे 
ता पमाय॑ पमोत्तृण कायव्यों होई सअबहा । उज्मो चेव धम्मम्मि सब्बतोक्साण कारणे ॥ धर्में 


ता छज़ा ता माणों ता इह-परलोयचितणे बुद्धी । जा न विवेयजियहरा प्रयणस्स सरा पहुप्पंति ॥ कामे 


२५० 
२४५० 
३१६ 


« 0५० 


२१२१९ 
२७६ 
१८४ 
२८८ 
३६० 
२९० 
१२१ 
३९२३ 
३०३ 
१३१ 
९५६ 
९७ 
९७ 
९३ 
२८१ 
१०४ 
९ 
९७ 
९3 


२७ 
२६९ 
ष्‌५ 
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जज 
१७३७७ 
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१९७ 
३१६ 
९५२ 


ड०५ 


गाथायहुः 
६० 
४६६ 
४५९रे 
४६४ 
३३४ 
४६३ 
१६० 
१५१ 
१८४ 
१७४ 
२१ 
२५९ 
२१ 
११९ 
१८६ 
२२ 
१७० 
३९ 


३१० 
३११ 
३१२ 
३२ 
९८ 
१३८ 
१८० 
८ 


०६ सप्तम परिशित्षम 


गाथादि विषयः 


ताबव परो वि हसिजर कीरह मार्ण थिरक्तणं लजा | जा विसमे न पडिजर अत्याहे पेम्मकूषम्मि ॥ कामे 
तिट्ठा ऊजानासो भयबाहुल्लं विरुवभासित्त । पाएण मणुस्साणं दोसा जायंति बुड़ढत्त ॥ . बार्देक्ये 
तेसि घिरत्थु विसयाण पाणिणों जेहि मोदिया संता । रागंधनयणजुयला कज़ा-5कज़ाई न नियंति ॥ कामे 
व्यजेदेक॑ कुलस्यार्थ ग्रामस्यार्थ कुर्ल त्यजेत्‌ । ग्राम जनपदस्यारथं, आत्मार्थ एथियीं त्यजेत्‌ ॥ आत्मप्राधान्ये 
ग्रायश प्रणिसद्वातं, सेतत्र साधुसंदर्तिम । ददु्ब सन्‍्मतौ चित्त, यतध्वं शासनोश्ञतौ ॥ धमकरणे 
थेव॑ थेव॑ धम्सं करेह ता जह 'बहुं न सक्द । पेच्छह महानईओ अबिंदूहिं समुहभूयाओ ॥ धमंकरणे 
थेवा वि हु जीबदग़ा जियाण कह्लाणसंपय॑ कुणर । मणकप्पियं पयच्छइ अहवा तशुया वि कप्पलया ॥ जीवदयायाम्‌ 
द्रहसियं सरसकडक्खियं च वन्नेति पेमसव्वस्सं । मिहुणाणमेगसयणेइब्रत्थाण , लोकबवहारो ॥ स्‍्नेहे 
दृष्ट्राकरालवदनं हरिमप्यजन्ति, मत्त करीन्द्र्माप वीरधियों धरन्ति । 
अल्लोलसडुलमपांपतिमापिबन्ति, दव बृहस्पतिधियांडपि न वारयरित ॥ द्वे 
दिवसस्याष्टमे भागे मन्दीभूते दिवाकरे । नक्तं तद्धि विजानीहि, न नक्त निशिभोजने ॥ रात्रिभो जने 
दुःखरूप यतः स्व देतुथ भवसंसतेः । अतः सवविदाडइख्यातं कुरुध्ष धर्ममजसा ॥ धर्मे 
दुश्नपकारि मदनारि मलापदारि, सद्वारि तीक्ष्णतरवारि मधारिभेदे । 
धर्मोपकारि गुणघारि विपत्तिवारि, संसारजीवविसरा: ! परिपात शीलम्‌ ॥ शीले 
दूर॑ वचचइ पुरिसों तत्थ गओ निव्युईं लहिस्सामि । तत्य बि पुआ्अकयाईं पुव्वगयाइ पडिक्खेति ॥ दवे 
देव-गुरूणं भत्ती हहेव वारेइ सयलदुरियाईं । परलोए य नरा-डमरसुद्दाई संपाडइ जियाण देव-गुर्तों: 
देसे मुयंति जीग्र॑ चयंति पियबंधतं पिं न गर्णति । अभिमाणधणा पुरिसा रजब्भस पि हु सहंति ॥ स्त्रमाने 
दोगज-दुग्गदोहर्गदुकखमेएण पाउणइ जीजो । पावमिम भयजणय ता भव्या | परिहरद्द बइरं ॥ वेरपरिहारे 
घन्ना हु जए जइणों जइणो कंदप्पसप्पदप्पस्स । मरणे वि जाण मुस्ियों न माणमाणिक्षभंडारों ॥ मुनौ 
धम्मत्थिणा य पियजीवियाण जीवाणमवहर्ण कज् । सवगुणाणं मू्ं सथ्च॑ भासंति धम्मपिया ॥ प्रियधर्म 
धम्मेणं चिय अत्या धम्मेणं चेत्र उत्तमा भोगा । धम्मेण सग्ग-मोक्खा सुद्दाइ सव्वाणि धम्मेण ॥ धर्म 
धम्मो अत्थो कामो मोक्‍्सों चत्तारि दहोंति पुरिसत्या । धम्माओ जेण सेसा ता धम्मो तेसि परमतरो ॥ धर्म 


धम्मोी जियाण जणओ धम्मों माया सुओ सुद्दी बंधू । भत्रभमणविनडियाणं जायइ परमत्थओ ताणं॑ ॥ न्‍ 
घम्मी भवंघकूवयपडंतहत्थावलेबणसमाणों । धम्मो दुरंतदालिदृदलणसुंदरनिह्ाणनिभों ॥ 
धम्मोी समग्गगुणजुत्तसग्गसुहगमणसुंदरविमार्ण । धम्मो सासयसिवपुरसंपावणपरमरहरयण्ण ॥ 4६ 
धम्मी समत्यथविस्सासठाणसब्भावर्संगयं मित्त । धम्मो विणीय-आणावडिच्छ-निव्मिचमिश्वसमो ॥ 
धम्मो संसारमहासमुदुनिवडतजाणवत्तं व । धम्मो मीममदाडविनित्यारणसत्थसत्थाहो ॥ हा 
धम्मो स्रिणेद्संगयसुयवच्छलभावसं गया जणणी । धम्मोी सुहयरसिक्खासंपाडणपच्चलों जणओ ॥ 


धारिजइ इतो जलनिद्दी वि कल्लोलभिन्नकुलसेलो । न हु पुव्वजम्मनिम्मियसुहा-इसुह्दो कम्मपरिणामों ॥ कमपरिणामे 
घावेइ रोहणं, तरइ सायरे, भमइ गिरिनिउठंजेसु | मारेइ बधवं पि हु पुरिसो जो होइ धणछद्धों ॥ लोमे 
धीराण कायराण व अणत्थरिछोलिया पडइ देहे । सा सहियव्वा, न सहइ बला वि दइवों सहावेह ॥ दवे 

भ करिंति जे तत्र॑ संजमं चर ते तुछपाणि-पायाणं । पुरिसा समपुरिसाणं अवस्सपेसशणमुविति ॥ तपसि 
न कुलस्‍्स पहाणत्त कारणमिह लहुयकम्मया धम्मे । तो जिणवयणव्रिकहिं कुलाभिमाणो न कायव्वों ॥ कुलाभिमानपरिद्दरे 
म गजने हयेने पसिमिने रथेनेंव नयने विक्रम: । न घनेश्विसश्वितर्धनेन च मन्त्रेरपि वार्यते यमः ॥ . झतान्ते 


न गणइ कुलाभिमाणं न य इहलोगे, न यावि परलोगं । नियकुलकलंककारी नारी चह्नतिया मारी ॥ नारीनिन्दायाम्‌ 
न तहा तचेइ तवणो, न जलियजलणो, न विज्जुनिग्वाओ . जं अवियारियकर्ज विसंवयंत तवइ जंतुं ॥ अविचारितकार्ये 
न ब्रह्मा नेन्दुमौलि: शदाधर-तपनौ नापि नारायणोड्सौ, नाप्यष्टी लोकपालाः सद्द सुरपतिना नापि बुद्धो न चाहंन्‌। 
आहृष्ट कालपाशेजेनमनुदिवर्स नीयमानं वराकं, व्याप्राप्रातं बनानतात्‌ पशुमिय विवश त्रातुमेते न शक्ताः ॥  ऋझतान्ते 


पत्राहुः 
९ 
१३८ 
१९७ 
१५७० 
३११ 


१३७७ 
२३७ 
२०० 


३२१ 


१५२ 
३११ 


६७ 
२५० 
१२१ 
२१७ 
२६७ 


४१ 
२३३ 
१९९ 
३१३ 
२९० 
३१३ 
३१३ 
३१३ 
३१३ 
३१३ 

९५२ 
२८७ 
२७० 


३२ 
२७१ 
३५० 
१४२ 

९४ 


३१० 


गाथाथहूुः 
५९ 

१४ 

१३७ 

4६ 

१०२ 


७ 
२८४ 
१७८ 


१३ 
१०१ 


१५० 
११ 
६४४ 
3७१ 


९४ 
१६९२ 
१९३ 

७९ 

२३ 

८१ 

८४ 

८३ 


४८२ 
५३ 
६७ 
१५२ 


उप 


३२ 
है 33. 
९९ 


ध्हे 


छुमाचितप्चानामलुक्तमः 
' ४०७ 


गाधादि विषय: पत्राड: शॉजागह 
नभस्तक्ततरज्ञिणी अलविलासछोला: जियः, कुरनयनेक्षणश्रमणभहुर॑ गौवनम्‌ । 
विकोछलबलीदला [व]लिचलाचल जीवित॑, समस्तप्रपि गलर॑ जगति जैनघर्म विना ॥ जैनधर्में.. «८ 


१८ 
नयनगेलदश्रुकं जनः, घुशुचे यरिह्द तरपत्रपः | सकटाक्षमपाहसशरशयनश्यंशमयं निरीक्षते ॥ शोके २०७० डे 
नातीव सरलेर्भाष्य गत्वा पश्य वनश्पतीन । सरलास्तत्र छिक्वन्ते कुब्जास्तिष्ठन्ति पादपाः॥ , नीतौ २८६ ७५ 

नानथँमप्लषिनिवदस्य रिपुर्विदृद्धस्तारक्षमुप्रकरवालकरः करोति । 

यारक्षमेतदिद शल्यमनुदुतं सत्‌ , कुर्यादतस्तदलमुद्धरताशु सम्यक ॥ अन्तश्शल्ये २६२ 0 
नारय-तिरियगईओ सत्ता पावति पुण अहम्मेण । ता परिहरिय अहम्म धम्मम्मि रई सया कुणह ॥ धम १९९ १९४ 
नासदर कुलाहिमाणो, लखा परिगलडइ, “पोरिसस पढइ। दूरे गुरुण सेवा नारीवसयाण भणियं च॥ नारीनिन्दायामू ९३ ३० 
नासइ खंती, परिगलइ पोरिसं, रूहु पलायइ विवेगो । सिक्‍त्ता वि .ठाइ न मणे छुहामिभूयाण जीवाणं ॥ क्षघधि १६१ ७ 
निद्राभज्ल॑ कथोरछेद॑ सारथ्यं कयविक्यम्‌ । शक्कोडपि द्वेष्यतां याति यः करोति चतुश्यम्‌ ॥ अरुचिस्थानानि २८६ ३४ 
निष्पंकसुवन्नसमुजला वि सुश्सीलसोरभजुया वि । केयइफडस व्य सुया परोवयाराय निम्मव्रिया ॥ दुद्दितरि २९४ १७३ 
नियकअबद्धचित्ता महिलाइणत्याण कारण परम । घिप्पद न य डुवेणं न यावि सम्माणदाणेणं ॥ नारीनिन्दायामू ३२९ ८० 
नियबंधुणों वि जेणं कुणंति सक्तत्तणं निरवसेसं । वजियकजा-5कजा ता थिद्धीघी | इम वसण्ण ॥ बृते ५० १०६ 
नीयंगमाहि सुपओहराहि उप्पिच्छमंथर गईहिं । महिलाहि निम्नयाहि व गिरि व्य गरुया वि भिजंति ॥ नारीनिन्दायाम्‌ ३३० २२ 
नेहगुणक्लयकारी दीवयकलिय व्य पत्तनिदिया वि । निश्चय सकजलरगा दहणसरूवा जए महिला ॥ ». ३२९ «८२ 
नेहेण दारुरहियम्मि पजरे वसइ सइ सुओ व्य जिओ । कोलियविवज्जिए खोडयम्मि फुडमेस संव्रसह ॥ स्‍नेहे ३२५ १० 
नेहेण नियलरहिओ भत्रचारयमदिरे वसइ जीत्रो । नेहेण दढ खुप्पए जलरदिए कदमे मूढ़ों ॥ ». ६२५ ९ 
नेहों अणत्यहेऊ जियाण, नेहो हु दुग्गइ्निमित्त । नेहो हासद्वाणं, नेहों हु विडबणाहेऊ ॥ ».. रेर५ ८ 
नेहों विवेयवश्री अणामिया दढमणत्थरिंछोडी । नेहेणं चिय परिभमइ जियगणों दुहभत्रावतते ॥ » रे२५ ११ 
पहइ-पुत्तविरहियाणं नारीणं दुसहदुक्व॒कलियाणं । मोत्तूण जणयभवण्णं विस्सामों नत्यि अश्वत्थ ॥ पितृगद्दे. चर १७७ 
पच्छा वि ते पयाया खिप्पं गच्छेति अमरभवणाईं । जेसि पिओ तवो संजमों य खंती य बंभचेर॑ं च ॥ संयमे १०२ ११३ 
पढउ सुय्य, धरउ वयं, कुणउ तवं, चरउ बंभचेराई । तह वि तय सत्य पि हु निरत्थयं कोववसगस्स ॥ क्रोघे १६१ १० 
३१५ १४४ 
पढम नबिय ते जतुं कोहर्गी दहद जतल्य उपज । जत्धुप्पश्नो ते चेत्र इंधर्ण धूमकेउ व्य ॥। क्रोषच ३१५ १३८ 
पमाएणं॑ कुदेवा त्रि पिसाया भूय-किविवेसा | आभिओगत्तणं पसा मणोसंतावताविया ॥ प्रभदे ३१६ १७३ 
पमाएणं कुमाणुस्स-रोगायकेद्दि पीडिया । ऋछरुणा हीणदीणा य भरंति अवश्वा तओ ॥ » ३१६ १७२ 
पमाएणं॑ परायत्ता तुरंगा कुंजराइणो । कसंकुसाइधाए्ि वाहिजति सुदुक्खिया ॥ »५ ३१६ १७१ 
पमाएणं महांघोर॑ पायारं जाव सप्तम । पडंति विसयासत्ता बंभदर्ताशणो जहा ॥ » ३१६ १७० 
पमाएणं महासूरी संपुनसुयकेतरली । दुरन्ता-इणंतकालं तु णंतकाए तु संत्रसे ॥ ». ३१६ १७४ 

पमाओ उ मुर्णिदेहिं भणिओ अट्टभेयओ । अक्लाणं संसओ चेत्र मिच्छत्ताणं तहेव य ॥ 
रागो दोसो मइब्मेसो धम्मम्मि [य] अणायरो । जोगाणं दुष्पणीहा्ं अट्ठृह्दा वज्जियब्वओ 0 प्रमादभेदाः ३१६ १७५-७०६ 
परदेस-निययदेसाण वन्नणं वढ | कुणंति काउरिसा । परदेसो वि सदेसो सक्ताहियपुन्नत्रताणं ॥। सत््वे ३०६ श्५ 
परिगलइश मई, नस्सइ सरस्सई, गलइ वयपरीगामों । कोववसयाण तम्हा परिदहरसु कसायसत्तुमिम ॥ क्रोघे ३१५ १४६ 
परिहरियधरावासो जुगप्पह्दणागमों चरित्तनिही । सम्महंसणसुदरओ उवएसपरो गुरू भणिओ ॥ गुराौ ३१५ ८८ 
परिहासपरंपरपासपरवता नेहवागुरायश्ाा । हरिण ठद् कुसमसरवाहबाणनिहया न के एत्य ? ॥ कामे ४१ ९५ 

पवणखुदियनीरं नीरनाहं धरंति, झरियमयपवाहं वारणं वारयंति । 
खरनखरकरालं केसरि दारयंति, न उण बलजुया वी दिव्वमेत्त जयंति ॥ देवे ३०८ १०७ 


पंचनमोक्कारसमा अंते वर्थषति अस्स दस पाणा | सो जइ न जाइ मोकल अवस्स बेमाणिओ होइ ॥ परिमेष्ठटिनमस्कृतीौ २८० ४० 


४०८ सप्तम॑ परिशिश्टम्‌ 
माथादि विषयः 
पाऊण पाणियं सरकराओ पिद्ठि न देह सिद्दिडिभो । होही जाण कलाओ पयह शच्रिय साहए ताण ॥  औदास्ये 
पाएण इयररमणी वि रज्षए उत्तमे वि न दरिह्‌ । वेसाण पुण बिसेसो नियदेहविदत्तदविणाण ॥ वेश्यायाम्‌ 
पापात्मके गतवति क्षयमन्तराये, पुण्यात्मनो गुण[?सु]कर्मवशान्नरस्य । 
श्री-वेश्म-हेम गृह-पुत्र-कलश्रजात, यद्‌ यरस्य पूर्वविद्वितं भुगि तस्य तत्‌ स्यात्‌ ॥ पुण्योदये 


पासो व्व बंधिउं जे महिला छेत्तु अप्ति व्व पुरिसस्स । सह्वं व सल्लिउ जे विमोहिउ इंदजाल व्य ॥ नारीनिन्दायाम्‌ 


पाहदेएण विरदिओ पहम्मि पहिओ जद्दा भवे दुहिओ । इय धम्मेण विरहिओ परलोयपंहम्मि जियो वि ॥ धर्म 
पिह-माइपमुद््सयणश्तणेण जीवा अणंतवाराओ । स््वे त्रि य संजाया जीवस्स उ एगमेगसरुस ॥ निवदे 
पुण्यानुबन्धजनक शुभभावसारमक्नीकृतस्तनियमग्रह्णं क्मेण । 
स्वर्गा-उपवगफलदायि दिताभिमानाः प्रत्यप्रपापमथनावहमामनन्ति ॥ * नियमपालने 
पुनरपि सददनीयो दुःखपाकस्तवायं, न खलु भत्रति नाशः कमेणां सशच्चितानाम्‌ । 
इति सह गणयित्या यदू्‌ यदायाति सम्यक, सदसदिति विवेकोध्न्यश्न भूयः कुतस्ते १ ॥ कर्मों दया ध्यासे 
पुरिसक्कारपरेदि वि विदिपरिणामो खलिजइ न जम्हा । ता एरिससंसारे मा तम्मसु जीव | मणयं पि ॥  निर्वेदि 
पुंसस्तस्यां प्रशृत्तस्य श्रेयसों जन्मकम्रणः । लेन न्यत्कृतसामर्थ्याः क्षीयन्ले विप्नहेतवः ॥ शुभकमंणि 
पेरिज्जंतो पुल्रक्किएहिं कम्मेदि कहमवि वराओ । स॒हमिच्छंतो दुछ॒हजणाणुराएं जणो पडइ ॥ कामे 
प्रतिशाशेलमारुद्य ये भूयो न पतन्स्‍्यघः । साधयन्ति स्रमर्थ ते यथा चन्द्रावतंसकः ॥ प्रतिशापालने 


प्रस्ताव एप तब जीव ! पुनः कुतस्त्यो, भूयो5पि मूह | ? मनसीति विभावयन्तः । 
यद्‌ यत्‌ समापतति कमवशादशम, तत्‌ तत्‌ समस्तमपि धीरधियः सहन्ते ॥ धर्य 
प्राणप्रियो विनयवानिहलोक एव्र, सर्वशशासनमिद विनयात्‌ प्रवृत्तम । 


कुवैन्ति तीरथपतयो5पि यदेनमेत्रं, सद्धमकल्पतरुमूलमुशन्ति सन्‍्तः ॥ बिनये 
प्राधान्यमल्पर्मपि निश्चयतो जना' | मा भन्यध्वमत्र जिनध्ंविधौ कुऊुस्य । 
यन्नन्दिषेण-हरि केशिमुनी गुणाढ्यौ, भकक्‍त्या त्रिनाडपि कुलमड् ! सुराः स्तुवन्ति ॥ कुलाभिमानपरिद्दारे 


फालेउं करवत्तं व होई सूलं व महिलिया भेत्तुं । पुरिसस्स खुप्पिउ कहमो व्य मच्चु वर मरिउं जे ॥ नारीनिन्दायाम्‌ 


बंधवा सुदिणो सव्वे पिय-माइ-पुत्त-भायरा । पिदह्वणाओ नियत्तति दाऊणं सलिलंजलिं ॥ निर्रेंदे 
बाहिरपाणसरूव परदव्यं परिहरति धम्मरया । जीववहमूलमहम निश्चवमत्ंभ च वज्ति ॥ प्रियधर्मे 
बुद्धिजुनो आलोवइ धम्मद्वाणं उवाहिपरिसुद्ध । जोगत्तमप्पणो वि य अणुबध चेत्र जत्तेण॑ ॥ 
आढ्वइ सम्ममेसो तदहां जहां लाघत्ं न पावेइ । पावेइ ये गुरुगत इह-परलोए सुही होइ ॥ बुद्धिमर्वे 

अख्यच्छकच्छवच्छुच्छलंतमयरं दगुंडियंगह्प । भमरस्स करोरवणे मणयं पि मणो न वीसमइ ॥  पाश्रानुरागे 
भवगिदमज्ञम्मि पमायजलणजलियम्मि मोहनिद्दाए । उद्बबइ जो सुयतं सो तस्स जणों परमबंधू ॥ धमबन्धौ 
मीमम्मि भवे भव्यों वि भमइ काले दुरतमेएण । पावमिम भवजणयें त भव्या! परिदरह् वइर ॥ बवरपरिहारे 
सीसणमसाणपजलियहुयवहं मत्थयम्मि साहसिया । गुग्गुलभारं धार्रिति माणभंग न माणधणा ॥ , स्रमाने 


भुजउ जे वा ते वा परिहिज्उ संंदरं व मलिणं वा । इट्रेंण जत्थ जोगो त॑ चिय रज्ं, किमवरेण ? ॥ इश्योगे 


भुवणब्भंतरवित्थरियजसद्दरा ते जियतु जियलोए । जे परकलत्तविसए विरत्तचित्ता महासत्ता । झीले 

भो भव्वा | जइधम्म॑ काउमसत्ताण मोहवसयाण । पाएण गिहत्थाण जिण-गुरुभक्तीपरो धम्मो ॥ देव-गुर्वोः 

भो भव्या | भीमभवोयद्िम्मि जर-जम्म-मरणसलिलम्मि । दुत्तर-गद्दीर-भीसणमोहमहावत्तदुर्गम्मि ॥ 

पजरूुतमयणवडवानलम्मि दुब्वाररोगभुयगम्मि । विलसंतवसणसावयसहस्ससंरंभविसमम्मि ॥ 

जलहिजलपडियरयणं व दुछहटू पाविऊण मणुयत्त । सिद्धंतससवण-सद्धा-विरियजुर्य जाणवश व ॥ 

मा धम्मकम्मकरणम्मि पावमेव पमायमायरह । जीवाण जमेसो ज्िय परमत्थरिऊ जओ भणियं ॥ प्रमादपरिद्दारे 
मणवल्नदहलोयविओयणम्मि जायइ जणस्स ज॑ दुकखं १ ते कलिउं पि न तीरइ सारिश्छे नारयबुहस्स ॥ वियोगे 


मत्तेभकुम्भदलने भुवि सन्ति शूराः, करप्रचण्डमृगराजबधेडपि दक्षाः । 
सत्यं ब्रवीमि छतिनां पुरतः प्रसह्य, कन्दपंद्पजयिनों बिरला भनुष्याः ॥ 


पन्नराडु 


१८० 


२८९ 
२७४ 
२३३ 


३०७ 


१६० 


हे 
२०९ 


९३ 
३५५ 


३६८ 


२७१ 
२७३९४ 


१७७ 


३३३ 


5६ 
१०० 
२६७ 
२९८ 
३०१ 
१९७ 
१२१ 


३१९६ 
३१४ 


कामे ३३० 


गाशडुः 
५२ 
६दे 


२६ 
१६१ 
उप 


५३९ 


६६ 
| ् 


१)६३ 


पुल 
४१ 
३१ 
६९, 
२८४ 
३८५ 
१३९ 


१६६९०१६५ 
११% 


१९ 


घुमाषितपचानामलुकमः 


गाथादि विषयः 
मम तावन्मतमेतदिदद, किमपि यदस्ति तदस्तु । रमणीभ्यो रमणीयतरभन्यत्‌ किमपि न वस्तु ॥ नारीप्रशंसायाम्‌ 
मयणाइस्तो पुरिसो न गणइ वंसट्विई हणइ किलति । गंजइ अप्पाणं, दलूइ पोरिसं, मलइ माहप्पं ॥ कामे 


मद वायाए बु्तो खूसइ हिययम्मि भंडणे कुणइ | जइ पुण जिओ सि बुअइ तो तूसह मझ्नए अमयं । सुबचने 
सदहिला अयसनिवासों, कवड-कुहेंडाण मंदिर महिला। महिला नरयमहापुरपायडपयवी विणिषहिद्रा ॥ मारीनिन्दायास्‌ 
महिला कुडिलसद्दावा, बंधवकुलमेयकारिणी महिला | महिला निदयदियया, पथ्चक्‍्खा रक्खसी महिझा | ,, 
महिला दुदसयखाणों, सब्भावविवज्जिया सया महिला । महिला नरयदुवारं, गुणगिरिव्जासणी महिका ॥ ,, 
महिला निहयचित्ता, उब्भडविसवह्लरी जए महिरहा । संतावजलणजाला परिभवतरुमंजरी महिला ॥ 
महिला मरणमयंडे, महिला दुश्गेज्ममाणसपयारा | महिला कयंतकत्ती, महिला मूल परिभवाणं ॥ 
महिला सोहवरहिया अरजजुयं बंधर्ण जए महिला । खणरत्त-खणविरत्ता हलिहरागोत्रमा महिला ॥ 

मा जम्मउ सो पुरिसो, जाओ वि हु जियउ मा चिरं कालं। 

जिणसासणावमार्ण सामत्थे सहर जो मूढो ॥ जिनधर्मप्रभावनायाम्‌ 
मात्रा सस्ता दुद्दित्रा वा न विविक्तासनों भवेत्‌ । बलवानिनर्द्रियग्रामः, पण्डितो थ्प्यश्न मुछ्यति ॥ शीलरक्षायाम्‌ 
मायन्हियादि नडिओ जलबुद्धीप जहा भम्इ कोइ । तह जीवों विसयवसों भवगहणे भमइ सुदबुद्धी ॥ विषयपरिदारे 


मे 


22 


गम 


मां स भक्षयिताअमुत्र यस्य मांसमिदह्ााइयहम्‌ । एतन्मांसस्य मांसत्वं प्रवदन्ति मनीषिणः ॥ मांसत्यागे 
मित्तेहि जाव न सुय सुद व दुक्‍्ख व जीवलोयम्मि । सुयणाण हिययलर्ग ताव5च्छई नद्धसल्ल व ॥ मित्रे 
मुद्धाण नाम हिययाइ हरंति हत |, नेवस्छकम्मगुणणेण नियबिणीओ । 
छेया पुणो पयश्यंगिमरंजणिजा, दक्‍्खारसो न महुरिजइ सकराए ॥ वदश्थ्ये 


मुहमहुरा परिणशदारुणा य दीसइ मणोहररा महिंला । किपागफलसरिच्छा महिला मूल अणत्थाणं ॥ नारीनिन्दायाम्‌ 
सगा मृगेः सख्यमनुब्रजन्ति, गावश्व गोभिस्तुरगास्तुरज्ः । 


मूर्खाश्न मूर्खे! सुधियः सुधीभिः, समानशील-व्यसनेषु सख्यम्‌ ॥ सख्ये 
मोदद थधियो दरति कापथमुच्चछिनत्ति, संवेगमुन्ननयति प्रशम तनोति । 

सूतेडनुरागमधिक॑ मुदमादधाति, जनं वचः श्रवणतः किमु यनञ्न धघत्ते ? ॥ जिनवचने 
यः स््रापतेय-गह-पुत्र-कलत्रमूढः, कारं करोति स भवेदिद्द दुःखधाम । 

तस्मात्‌ समाधिव्शगेन विवेकभाजा, मतेंव्यमन्यजन्मन्यमृतस्वहेतोः (१) ॥ समाधिमरणे 
यत्‌ प्राप्तान्‌ श्रिदशसार्थपतित्वमिन्द्रग, पातालराज्यमपि शास्ति यदतन्न शेषः । 

यज्ञक्रतर्तिपदवी परिपाति चक्रो, तत्‌ पाश्नदानजनित फलमामनन्ति ॥ दाने 
यत्‌ सुस्थिता गतरुजो निरषय्देहा आजन्म जन्मनिवहा गमयन्ति कालम्‌ । 

तत्‌ सर्वेमज्जिगणनिर्मेलनस्य [शस्य]श्रेयो विजुम्मितमुदारधियों भणन्ति ॥ अहिसायाम्‌ 


यदपि प्रथितं झते जने, मिलिते क्तापि च रुयते जनेः । अवगच्छ स काकरोलकः, क्रियते तेः पतिते कलेवरे ॥ शोके 
यदि शोककृदानयेन्म्ते, प्नरियमाण विनिवर्तयेजनम्‌ । विदधातु छुच॑ न चेदिदं, द्वितयं कि कृतयाउनया बुथा ॥ ,, 
यदह्॒त्‌ शुभो लवणरूपरसो रसेषु, चिन्तामणिमंणिषु यद्वदिह प्रशस्यः । 


तद॒ब धर्मशुभकमंणि शुद्धभावस्तस्मात्‌ तमेव भजताशुभभावद्ानात्‌ ॥ शुभभावे 
यद्न्मनुष्यनिवहेषु जिनः प्रधानः, स्वर्णाचलों गिरिवरेघु यथा वरेण्यः । 
तारागणेष्वपि यथा शक्षभ्त्‌ प्रशस्यः, सम्यक्स्वमेवमिद्द ध्ंविधों विदम्ति 0 सम्यफ्त्वे 
यस्यासवों अ्रजन्त्यश्न नमस्कारसमांः स चेत्‌ । सोक्ष कथश्विक्नो यायादवइ्यममरों भवेत्‌ ॥ परमेष्ठटिनमस्कृतौ 
युक्तमुन्मुक्तकण्ठेन बने द्वा हेति रोदितुम्‌ । विद्वानपि जनो यश्र मार्गमुत्सज्य गच्छति ॥ अनाचारे 
रखल वि कयात्रासा कसायवसया वयति नरयई । वसिमे वि कयनिवासा जिदृदिया जंति सुरलोयं ॥ कोधे 
रहो नास्ति क्षणों नास्ति मास्ति प्रार्थयिता नरः । तेन नारद | नारीणां सतीत्वमुपजायते ॥  द्रौपदीसत्यवाक्यम्‌ 
रे जीव | कसायहुयासणेण दड़ढे चरित्तपरसारे + भमिद्ििसि भवकंतारे दीणमुद्दों दुत्यिओ य तुम ॥ निर्वेदे 


रे जीव | सुद-दुद्देसे निमित्तमेश् परो जियाणं ति । सकयफले भुंजंतो कीस़ मुद्दा कुप्पसि परस्स १ ॥ ह 


पन्नाडुः 


१९४ 
२०८१ 
३२६५ 
१४२ 
१९४ 
१९१ 
१९१ 


१५४२ 


३५७ 
३३० 
२५९ 
१८६ 
२२४ 


३३ ७० 
१४२ 


१७९ 
१२९ 
२६७ 

१६ 
२३८ 
३४९ 


३५० 


५५ 


१३२ 

श्र 
३१५ 
३३० 
१४५ 
१४५ 


छ०रे, 


गाथायहुः 


३३ 
4८२ 
१० 
५६ 
३० 


१०९ 
१०७ 


५९ 


१०३ 
शक 
२६९१ 
१७३ 
६७ 


३३७ 


२७ 


१९ 
2६ 


<५ 
3९ 
१३९ 


१४८ 
१४७ 


8१० सप्तम परिशिश्म 


गाथादि विषय: 
छक्‍लण-रावणयुद्डा अज वि ज़ुज्येतिमेण नरयम्मि । पावमिमं भयजणयं ता भव्या ! परिहरद्द वइरं ॥ बेरपरिद्वारे 


लक्ष्मीः परोपकाराय, विवेकाय सरस्वती । सन्ततिः स्वर्ग-मोक्षाय भवेद्‌ धन्यस्य कस्यचित्‌ ॥ भाग्यवति 
लक्ष्मीलताकुठारस्प भोगाम्भोदनमस्रतः । विलासवनदाबाभेः को हि कालस्य विस्मृतः १ ॥ छुतान्ते 
लज्यां ग्रणौधजननी जननीमिवार्याम्रत्यन्तशुद्धहदयामनुवर्तमानाः । 
तेजस्विनः सुखमसूनपि सन्त्यजन्ति, सत्यस्थितिव्यसनिनों न पुनः प्रतिज्ञाम ॥ प्रतिज्ञापालने 


छजिजइ जेण जणो मइलिज्जश निग्रकुलक्कमो जेण । कंठट्ठिए वि जीए कुणंति न कया वि त॑ सुयणा ॥ सदाचारे 

लड़्ूण माणुसत्त धम्मा-5धम्मप्फ॑ च नाऊग । सयलसुदसाइणम्मि जत्तो धम्मम्मि कायव्वों ॥ धर्म 

घूजर जत्थ सउ़झो विदेसमडविं समुहमज्से वा। नंदह तहिं तहिं चिय, ता भो ! पुश्न॑ समजिणह ।। पुण्योपाजने 
वरं प्रवेष्टं ज्वलितं हुताशनं, न चापि भम्न चिरसश्चितं ब्रतम्‌ । 


वरं हि मृत्युः सुविद्ुद्धक्मणो, न चापि शीलस्खलितस्य जीवितमू ॥ शीढे 
वर हालाहले पीये बरं भुफ्ते महाविस । वर॑ तालउड खद्धं वर अश्गिपवेसणे ॥ है 
वरं सत्तृहिं संवासों वरं सप्पेद्दि कीलियं । खंणं पि न खमो काउं पमाओ भवचारए ॥ प्रमादपरिद्वारे 
वसणे विसायरहिया संपत्तोए अणुत्तुणा हुंति । मरणे वि अणुव्विग्गा साहससारा य सप्पुरिसा ॥ सत्पुरुषे 
यागरण-छंद-5लकार-कव्व-सिद्धंत-वेयनिठणाणं । सुकुह॒प्पन्नो वि हु पामरो व्व जोयइ मुद्द मुक्लो ॥ . पाण्डित्ये 

विज्जु व्व चवलहियया विसहररमणि व्य कुडिल्गइगमणा । 

बहुनियडि-कूड-कवडाण मदिरिं निदिया महिला ॥ नारीनिन्दायाम्‌ 

विदुरेष्यमपायमात्मना, परतः श्रदृधतेडइथवा बुधः । 

न परोपहिते न च स्वतः, प्रमिमीतेडइनुभवादतेडल्पधीः ॥ बुधा-इबुधयो: 
वियड्ुब्भडभिउडिभिडेतसुहरुकोदंडडंबरे वि रणे । जह अपरिमलियमाणा सुयणा ता किन पजत्त १॥ . स्वमाने 
वियर्सतकमलथणसंडमंडिय भमरमणहरुग्गीय । अभिमाणधणस्स तण्ण व सरवर रायइंसस्स ॥ 
विरहाओ वरं मरणं विरहो दूमश निरेतरे देह । ता सेय मरण्ण त्रिय जेण समप्पंति दुहुखाई ॥ विरहे 
घिलसंतवारविलयालोयणभमर्णं व चचल॑ं पेम्म । अनिलंदोलियलब॒लीदलोवम तारतारुन्न ॥ अनित्यत्वे 
विवयाए निरुव्विग्गो, विहव पत्तो न गव्वमुव्यदइ । लच्छीए न छलिजइ अहद्दो | हु गरुयाण पुरिसवर्य ॥ पौरुषे 
विसयमहा विसमो हियमणाण गिहवासबंधबद्धाण । जायंति कलकाइ जियाण ज ते किमच्छरिय ! ॥ कामस््ररूपे 
विसयमद्दाविसमो हियमणाण मणुयाण निम्विवेयाणं । जिणनाहभणियधम्मों मणय॑ पि मणे न विप्फुरइ । का 
विसयविसमोदियाणं सुधम्ममंदायराण सत्ताणं । अमुणियसारा-इसाराण गलइ हत्थट्विय अमये ॥ हा 
विसयसुदपरवरसाणं कायरपुरिस्ताण निव्विवेयाण । दुक्कवरमिह तवचरणं न कयाइ वि धीरपुरिसाण ॥ का 
घिसया उक्कड़पासी विसया कदुण्जुओं नरयमग्गों । इय मुणिय विसयससंगं धीरा वज्ज॑ते दृरेणं # हे 
विसया किपागफरलं, विसया हालाहलं विस परम्त । विसया विसमं सह, विसया आसीविसभुयंगो ॥ है 
विसयामिसगिद्धमणा सयणविमूढा परिग्गहासला + न मुणंति जिया एंत पि विसमविदिविलसियमर्कडे ॥ ,, 
विसयासत्ता सत्ता विडंबणं ते जयम्मि पायंति । ज॑ कहिउं पि न तीरइ धूलीबुकावणमहं व ॥ 3 

वदग्ध्यमावहति धर्ममति विधत्ते, सोगतां प्रथयति प्रशमं करोति । 

कीति च शुभ्रशरदभ्ररुचि तनोति, साइस्यमुत्तमजनेस्तदतः कुरुघम्‌ ॥ सत्सझे 

वरानुबन्धमभिहन्ति महन्ति [-]सस्‍य, दातारमज्जिनमनज्जजितां मतेडसप्मिन्‌ । 

निःशेषकर्मशमर्क जनक च शुद्धेमिथ्येति दुष्कृतपदानुगभामनन्ति ॥ भिध्यादुष्कते 


ड्ुचि निर्भरमुक्तपूत्ठति व्यथितेयेंन मुखेन रुग्ते। गुरुपवैणि तेन गीयते, किल कीदृश्यपरा विडम्बना ? ॥ श्ोके 
श्रियः प्रयुते लनुते विषेक॑ यशांसि के विपदो निहम्ति । 
संस्कारयोगाश्व॒ पर॑ पुनीते शुद्धा दि बुद्धि! किल कामपघेनुः ॥ सदूवुद्दी 
श्रेयःलभद्धिमधिक॑ विदधाति शश्वत्‌ , स्वास्थ्य मनो नयति झुअयशस्ततनोति । 
स्र्जोष्मावदति मुक्तिसुतं विधघते, कि वा करोति श्र जनाः | जिनवन्दन वबः £ ॥ जिनवन्दत्रे 


पतश्मराहुः 


२६७ 
२९७ 
३५५ 


६० 
९५२ 
२८३९ 
१६० 


१७ ७ 
१९२ 


३१६ 
२९९ 
९५१ 


३२९ 


१७३९ 
१० 
२१७ 
३०१ 
११२ 
३०४ 
६६९ 
३२ 
९४ 
३३ 
९९ 
९४ 
३१२ 
९४ 


१८३२ 


१६९१६ 
३७५० 


१२० 


गायादयहुः 
७१ 
२६ 
३८ 


१ 
दे 
११० 
१६ ३ 


५१ 
३९ 


१३७३-७८ 
३०३ 
१८ 


८९२ 


१८ 
६३ 
६४रे 
३६९५ 
१५३ 
४2७६ 
४२ 
३ 
१०७ 
११३ 
१०९ 
१०८ 
२६ 
११० 


सुमाधितप्यानामनुक्रमः 


गाथादि विषयः 
सह सामत्ये गुरुणो जे परिभवकारयं उविक्लंति। नियजणणिकिलेसकराण को गुणों ताण जायाण॑ ? ॥ गुरुभक्तौ 
स कालः कश्षिदश्नास्ति यत्र नेवीपभुज्यते । हित्वाइकारं ततः काछे यो भुज्ञीत स धर्मवान ॥ रात्रिभोजनश्यागे 


सहृजल्पन्ति राजानः सकृजल्पन्ति साधवः । सहृत्‌ कन्याः प्रदीयन्ते श्रीण्येतानि सकृत्‌ श्रक्तत ॥ नीतौ 
संगु्ण व निर्गुणं वा कजकलाव समायर॑तेण । परिणामों सब्यत्य वि चितेयव्यों चडरमइणा ॥ कार्यपरिणामविचारे 
सब्गसिरीए नियाणं विलसिरनररायसंपयाहेऊ । सिवलच्छिवसीकरणं एक चिय होह जीवदया ॥ जीवदयायाम्‌ 
सश्च चिय ज३ मोक्खत्यमुजओ जिणसु ता कसायरिवू । पश्चक्तं पेच्छेतो कह कूवे निवडलि मिहीण ! ॥ निर्षेदे 
सत्यत्थपंडियस्स वि मज्हेणा5डबड३ कि पि त॑ कझ । ज॑ न जणइ चित्तसुहं घेष्प॑त नेय मुचंत ॥ देवे 

सत्य जना: | वस्समि न पक्षपातो, लोकेषु सप्तस्वपि तथ्यमेतत्‌ । 

नान्यन्मनोद्यारि नितम्बिनीभ्यो, दुःखेकहेतुन च कश्चिदन्यः ॥ नारीसारा-5सारतायाम्‌ 
सत्यं वच्मि प्रियं वच्मि हि6त॑ वच्मि पुनः पुनः । अस्मिन्नसारे संसारे सार॑ सारजलोचना ॥ नारीसारतायाम्‌ 
संत्या लोकश्रृतिरियं जीवन्‌ भद्राणि पश्यति । वासुदेवसहायोदपि यो झतो रत एवं सः ॥ य 
सम्यक तत््॒परिशानाद्‌ विरक्ता भवतो जनाः । क्रियाशक्स्या ह्मविष्नेन गर्छन्ति परमां गतिम्‌ ॥ तत्वशाने 
साम्यक्‌ तत्तोपदेशेन यः सचक्तानामनुप्रहम्‌ » करोति तत्त्वशुन्याना स प्राप्नोत्यविराच्छिवम्‌ ॥ तस्वोपदेशे 
सम्यग्दशननमेल्ये भावनायां भवच्छिदि । गुणवद्वरिवस्यायां सम्पय्मध्यं सदोग्रताः ॥ सल्‍्कारये 

सवथा स्वद्दितमादरणीयं, कि करिष्यति जनो बहुजल्पः १ | 

विद्यते हि म॒ स॒ कश्चिदुपायः, सवलोकपरितुष्टिकरों यः ॥ ह्विते 
सर्वस्यव द्वि शाल्नस्य कमणो वाड्पि कस्यचित्‌। यावत्‌ प्रयोजन नोक्त ताबत्‌ तत्‌ केन गृह्मताम्‌ १॥ शाज्प्राह्मताम 
सर्वाभिरपि नेको5पि तृप्यत्येकाईपि नाखिलः । द्वितीय द्वावपि द्विष्टः कष्टः ख्रीपुसमागमः ॥ कामे 
सव्वगुणसंजुओ वि हु विजाए विणा वर॑ सुओ कन्ना । गब्मे वि वर नासो वंझा भजा वरं होड १॥ मूखपुत्रे 
सव्बे जाया सयणा सब्बे जीवा य परजणा जाया । ता तेसिं सविवेओ उबर को कुणउ पडिबंध? ॥ . निर्वेदि 
सब्वो पुल्वकयाणं कम्मा्णं पावए फलविवागं । अबराहेसु गुणेसु य निमित्तमेत्तं परो होइ १ ॥ ; 
संतगुणविष्पणासे असंतदोसुब्भवे य जे दुकखे । त॑ सोसेश समुदं कि पुण हियये मणुस्साणं ? ॥ मिथ्याकलओे 

संसाखत्यपि समुद्विजते विपद्धधो यो नाम मूठमनसां प्रथमः स नूनम्‌ । 

अम्भोनिधों निपतितेन शरीरभाजा संसज्यतां किमपरें सलिलं विहाय ? ॥ दुःखसहने 
संसारे वसतामिद कुशलं कि प्रच्छयते शरीरम्ताम्‌ १। पतितस्य दहनराशौ दग्धोष्सि न वेति कः प्रश्न: ॥ संसारस्वभावे 
साह्दीणं मोत्तृणं ज॑ं ज॑ जणगरहणिजमहिय च। तं॑ त॑ हद वराओ दुरंतहयमयणवसवत्ती ? ॥ कामे 
सिद्धार्थ सिद्धसम्बन्धं श्रोतुं श्रोता प्रवतते । शास्रादौ तेन वक्तव्यः सम्बन्धः सप्रयोजनः ॥ प्रयोजनवक्तव्ये 
सील सत्ताण अखंडमंडणं, खडर्ण च दुक्खाण । सील सोहरग्गकर॑ विवईणुत्तासग सील ॥ शीले 
सीले सासयविक्त परमपवित्त अकित्तिम॑ मित्त । उत्तमकिसिनिमित्त मुसिसुद्पसाहणपसत्यं ॥ शीले 
सुविया(र]तरलतरुणीकडक्खविक्लेव विब्भमं॑ रूवं । लायन्न पवणाहयलवलीदलचंचलमसार ॥ अनित्यत्वे 
सुदृपु्सस्समूमी निम्मलगुणरयणरोहणगिर्रिदों । भवजलहिजाणवत्तं एक चिय दहोइ जीवदया ॥ जीवदयायाम्‌ 


सेवा वि हु दुलद् चिय मद्राणुभावाण पावनिहलणोी । छायं पि कप्पतरुणो पुश्नविह्ृणा न पावंति ॥ मुनिसेवायाम्‌ 
संद्धान्तिकप्रमुखसत्पुरुषप्रभावेरष्टा भिर प्यपरतीर्थमत॑ निरस्य । 


श्रीसवंबित्प्रवचनो न्वतिमज्मान्यो धन्यः स॒ को$पि कुरुते शिवशमेबीजम्‌ 0 जिनप्रवचनो न्नतौ 
सोच्छुवार्स मरणं, निरप्ति दहनं, नि.शूल्लुले बन्धनं, मिष्पकछु मलिने, विनव नरक संषा भह्यायातना। 
सेवासशनितं जनस्य सुधियों घिक्‌ पारवइयं यतः, पश्चानां सविशेषमेतदपरं षष्ठे महापातकम्‌ ॥ दास्ये 


सो नत्थि जिय भुवणम्मि फो वि जो खलइ तस्स माहप्पं । सच्छेदचारिणों सब्ववश्रिणो हयकयंतस्स ॥ छुताम्ते 
सौभाग्यमावदति जन्म शुभ विधत्ते पुष्णाति पुण्यमसमं दुरितं प्रमा्शि । 
कर्मेन्धनं दद्ति निनतिशम राति कि वा करोति न तपः झुभभावतप्तम ! ॥ तपसि 


पन्नाडुः 


११५ 
१३१ 
१०१ 
३५६ 
२३७ 
१४५ 
१२२ 


१३१ 
१९४ 


१५७ 
२५३ 


५९ 
५८ 
९३ 


३४३ 
२५४ 
३१६ 
२३७ 
३०२ 


१०५ 


३३८ 
३५५ 


5११ 


गायथायहुः 
३४ 

४४ 

८३ 

डै 3 
२८५ 
१५९ 
१४२ 


३७ 
२८ 
१०३ 


१०३ 


१०५ 
१७३७ 
११३ 
७३ 
२६७ 


६१ 


२८६ 
२८३ 
१८३ 
२८६ 
०८ 


१३६ 
३९ 


७१२ सप्तम॑ परिशिक्षम 
गाथादि विषयः 
सौरभ्यभाजिकुसुमादिपदार्थसाथ: सिद्धान्तसिडविधिनोभयथा5पि शझुद्धा: । 
श्रीमज्िन जितमशेषविकारजातं श्रेयस्करे सुकृतिनः परिपूजयन्ति ॥ जिनपूजायाम्‌ 
स्निहान्ति मूठहमनसः स्वजनेष्वमीषां यावन्मतं भवति तावदमी भवन्ति । 
प्रथात्‌ स्वकार्यपरिपूरणमन्तरेण सर्वे अ्जन्ति वध-बन्धन-वरभावम्‌ ॥ निर्वेदे 
स्फूजत्करीन्द्र-हरि-सज्र-कालकूट-व्याला-5नलादि-भवभीमभयापहारि । 
स्‍्वर्गा-5पवगसुखसाधनकल्पद॒क्षः क्षीणाशुभो जयति सत्परमेष्ठिमन्त्रः ॥ परमेष्ठिमन्त्रमादा स्म्ये 
ध्वल्पाक्षरोइ्पि सन्‍्मन्त्रों निगृह्वाति महाप्रहम्‌ । स्वल्पोड्प्यभिकणों दाह्म॑ दहत्येव प्रदीषितः ॥ सुमन्त्रे 
स्व भांस परमांसेन यो व्धेयितुमिच्छति | बृद्धि न लभते सोडपि यन्न यशज्नोपपयते 0 मांसत्यागे 
स्वाध्यायकर्म कृतिनां कृतसिद्धेशमि सदमंसाधनमपाक्ृतपापकर्म । 
सज्ज्ञानका रणमकारणबन्धुमेतद्‌ दुर्ध्यानसिन्धुरसिताझुकुशमाश्रयध्यम्‌ ॥ स्ाध्याये 
छरइ रुये, दलइ दुद, जणइ समाहि, समीहियं कुणए । अवणेइ आवयाओ मुणिसेवा कामभेणु व्य ॥ मुनिसेवायाम्‌ 
इलमसदरि-चक्रवर्तिनः सुगत-अष्य-पुरन्दरादयः । भुवनश्रयनायका जिना विधिना धिग निहता हृहाध्मुना ॥ छतास्ते 
इंतूण परप्पाणे अप्पाणं जो करेइ सप्पाणं । अप्पाण॑ दियदाण्ं कएण नासेइ अप्पाणं ॥ अद्िसायाम्‌ 
हे धार्मिकाः | प्रशमसम्भृतिमुक्तिवश्यान्‌ रागादिशश्रुविसरान्‌ कुदत प्रयल्नात्‌ । 
एवे दि धर्मेपथवर्तिनमप्यकस्मादुन्मागमज्ञिनिवहं नितरां नयन्ति ॥ रागादिजये 
हेयमुवाएगं वा न जाणई विमलबुद्धिपरिहीणो । न य धम्माइपरिक्खं, बुद्धी ता सब्वगुणहेऊ ॥ बुद्ौ 
होहिति केह, विहृडंति केश, काडेण केइ बोढछीणा । हे हियय ! केत्तियाणं संयणाण कए विसूरिद्सि! ॥ निव्वेदे 


पन्माडुः 
११३ 
३४०४ 
१४९६ 
१३२ 
१८६ 
१४७ 
३०२ 
३५० 
१४८ 


२२६ 


३०६ 


गाथाशह्ुुः 


<३ 
१५ 


४२० 
३३ 
२५ 


७३ 


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अक्षम परिशिक्षम 
आखूयानकमणिकोशटीकान्तगंताः सक्तिरूपाः पद्यांशाः 
न+-+-- हि -+त- 
पश्माहुः गाथा यहुः 
अकलंकगुणा जए बिरला ॥ ३०५ २६ 
अजोगर्गाण हँत | कि कुणउ सामगश्णगी ? । १७६९ ३ 
अयो ग्यस्य ग्रुणाधानं विधातुं को5थवा विभुः ? । १३१ ३० 
अलिये पि हु वयणिज्ज गरुयाणं दूमए दिययमद्दियं । २४९ १४५ 
अद्दरीकयकप्पदूदुमसाइष्पा जेण सप्पुरिसा । ३०२ ४१९ 
अद्दवा उक्तमपुरिसा नियंति दोसं पि गुणरूव॑ ॥ ३३७ ८ 
अहवा उत्तमसन्नज्ञयभावओ किन्न कल्लाणं ? । ११ ७६ 
अद्दवा दग्युवयारों पणंगणाणं वसीकरणणं । 9० ६८ 
अद्ववा मुलाओं चेव द्ोइ दुदददाइया नारी ! २०६ २३ 
अहवया वि सदिलियाहि गिरि उत्र गरुया वि मभमिज्ंति । ३३० २१ 
अहवया सख्वबे गुणा वुरूदा । 9९ ९५ 
अद्दो ! का काकानामहमद्सिका हंसविदगेः ? । १८३ द्‌ 
सारूटओोव्यणाणं जुबदेंण पिजो पिओ एको । २५१ १९८ 
आवडिओ बज्वसिलायलम्मि कि कुणउ सत्थगणो । ३६६ १०७५ 
आवज्ति ग्रुणा खल्ल पाएण जणं अमच्छरियं ॥ २४५ छ 
जसिविसेसी कबव्तं, भासा जा होइ सा दहोउ । २९७ २४७९ 
पूउ दिश्वउ बहिरह कनन्‍नजायु । ०३ ऊ 
काजादुवारि मुणिजइ भक्तड, अप्पणि अप्पु न थुणइ महल्लउ । ८७ दि 
कप्पिज्ड कि कइ्या वि कमलिणी ददुदुरस्स सिरिभवर्ण ? । १५८ ८9 
कछ्ाणे को विरोडी 2 सि। ६४ १०४ 
कद वि हु कसंतीए संघधिज्जद कि न तुद्ओ तंवू १ । १५६ १६ 
कः स्वभाव॑ मोक्‍क्तुमीख्रः ? । १३० १७ 
कारणवियरूं कज्ज कुओडहवा हवइ ? पयडमिस । १३४७ १८ 
किउ अगिगद्दोमु निप्फलउ छारि ॥ ८३ र 
किउ अंधद संडणु मुद्दद्द एद < हे 3 
फकिल सिकविसखियस्स न हु कि पि दुकर । थ३ ८९, 
कित्रणद घरि थुत्थुक्रिय अच्छइ, लब्च्छिह्दि तहि कहद्दि को मुद्दु पेच्छइ १ ॥ ८२ ८ 
कि कुद्धध सीहकिसोरबाल निइलइ न गयकुल कमकराल ? । ८3 छ 
कि नासियतमभरु फुरियतेड न पयासइ दीवउ गुरुनिकेउ १ । ८ । 
'किपागद फल भुकख थि वज्जड । « ३ ८ 
कि वा जुज्जदय कायस्स संजरी चारुचूयस्स 2 । १५८ ८9 
कि वा वि हु सरूदिज्जदइ सामिय | सीददी सियारूस्स १ १५८ «५ 
कि वा सबम्पंगसुहा सामि! स॒ुद्ा सहदइ असुरविसरस्स 2 । १५८ <८'- 


कि वा दवेज्ज मिसश्रो जो न समदरइ पावपंकाओ:2 । ३२७ १९, 


डेरड 


अधछम॑ परिशिक्षम 


कि सो हु तसस इट्टो जोशजइ जो न धम्मम्मि ? । 
को अमयपाणतिक्तो कजियमहिलसइ मुक्खो वि? । 
शय-सय-पव्यरएस सोय न कुणंति सप्पुरिसा । 
गुणवंता वि हु कलिणा विच्छाइज्ति सप्पुरिसा । 
गोविजतं पि जओ अकज्जमिद्द नज्जद जयम्मि । 
खाविजंति न मिरिया जह चणया । 

छालीए मुद्दे अहवा कि माइ कुंड? । 
अतियमेत्तो नेहों दुक्वाण गणो वि तक्षिओं चेव । 
जम्दा पवडढमाणा परिणामसुद्दा सुयणमेक्ती । 

जम्दा पस्‌ वि घिप्पइ लोमेणं, कि पुण भणुस्सो १ । 
जारिसिया हवइ गई मई वि मरणम्मि तारिसिया । 
जूयवसणम्मि गिद्धा कि दुक्‍खे जे न पावंति १ । 

जो चितवइ विरुद्ध परस्स त॑ आवइश घरस्स । 

जो जशियस्स अत्थस्स भायणं सो हु तक्तियं लद॒इ । 
ज्ञो जमिह काउकामों सोञ्वस्सं लददृइ कइया वि । 
ले फल जं विदलद्दमुवउज्जद । 

ता नत्यि सा अवत्था कम्मवसा जा न संपडइ । 
तावच्चक्तीवतः कर्णो यावद्‌ भो: | स्त्रामिनों मतौ । 
तेयगुणब्भहियाणं किमसज्स जीवलोयम्मि १ । 
दूकलारसो न महुरिजइ सकराए । 

दसणसाराइं पेम्माइ । १९३-४१, 
दिट्ठों मालवदेसो खद्धा मंड़ा मए इण्दि । 

दिजउ जम्दा वका हु कीलिया वक्षवेहस्स । 
दुःखापन्ने 5थवा साधावसाधुः सुखमश्नते । 

दुवियाय होइ न दुमाया । 

देवायक्तेषु कार्येषु वाच्यता काइनुजीविनाम्‌ू? । , 
घत्तराइहल कवर्णि खज्जइ १। 

घिरत्थु विवरीयमयणस्स । 

धिसि घधिसि विसय अंग्रुसंतावद । 

घिसि घिसि विसय जि कारणु [पावह ] । 

घधिसि घिसि विसय नियाणु जि मारह । 

घिसि धघिसि विसय हेउ संसारदह । 

न अज्नहा होश मुणिभणियं । 

न कषत्यंसभित्ति स्वामल्पस्कन्धे दुमे गजः । 

नशच्वियउं निरत्थउं अंधयारि । 

नत्यि अविसओ सिणेहस्स ॥ 

नत्यि भयं जग्गमाणस्स ।॥ 

न बुकरं कि पि गरुयाणं । 

न हि गामसामियाओ लब्भइ मंडलियसामिसे । 
निव्वडियपयावगुणा कुणंतु जे कि पि तह वि मुदहा । 


है रे 
२७५२ 
३४८ 
१४८ 
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१३४ 

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१८० 
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३०० 
३०६ 

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३१५ 
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१२० 
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गाथायहुः 
१८. 

२१८ 

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१४ 
१४ 
१४ 
१४ 
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१६७: 

१५३ 
९५ 
१८ 
३७- 


सूकक्‍्सिरुपाः पयांशाः 


पत्माहुः 
प्दपणएणं भुक्ता महिलाओ धुव॑ विणस्संति । २५१ 
पजलियउ सिद्दिकणु अप्पयासि, कि न कुणइ तणभरु भासरासि 2? । ८७ 
पणइयणपत्थणाभंगभीरुणो हुति जे गरुया । ३२६१ 
पाओ य कि न धुव्वइ असुइविलिसों परमायवसा ? । १५६ 
पाये पाद्याणो वि हु पइटद्धिओ लद्दइ मादप्पं । ३०५ 
पावए भद जीवंतो एत्थ नरो कइश्या वि । २७ 
पुरिसस्स दुकखद्वेऊ सव्वाव॒त्थास ज नारी । ५१ 
पेच्छइ गिरिम्मि जलणं पजलंतं न उण पायतले ॥ ९४ 
खत स्पर्धा कीहक कथय कमलेः शेवलततेः ! १८३ 
बुद्दी पण्हीए नारीणं । ३५६ 
भग्गो रणम्मि सुदडो पुण भिडिओ कि न छहइई जयल्ूच्छि ? । १५६ 
भक्तारदेवया कुलबहु । १५८ 
भवियव्वयानिओगो न अन्नद्दा तीरए काउं । ११८ 
मुको लेद्दों पडिवाइयव्वओ । १२४ 
रोविडउ अरन्नि पईं निश्विवेठ । ८३ 
लहुयउ चितामणि जणि समरत्थु, चितियउं पणामइ कि न अत्थु १ । ८७ 
खरि निद्धणु उब्बंधिवि मरिउ, मा बंधवघरहि" कुकम्मु करिउ । १३९ 
याहियइ अहव शुट्ठण लोभिओ । ३०३ 
विरूप॑ यदि वा कि नो कुर्यात्‌ प्राणी बुभुक्षितः १ । ३०८ 
विसयासत्त न गुरुयणु माणई । ९० 
विसयासक्त न जिणु परियाणद्दि । ९० 
विसयासक्त विडेंबण पावहिं । ९० 
विसहृ३ वज्पद्दारं अयलो चिय न उण लेटूठुदले । ३२५ 
विहिविलसियस्स नासो न द्दोइ अथिरम्मि संसारे १ ३४२ 
सत्य॑ पि सिरिच्छेए तत्त अक्खिजए । ९८ 
सप्पुरिंसा दुद्दिएसु दयावरा होति । २१३ 
सर्पिः प्रदीयते तप्तं सिक्त शीताम्भसाथवा । ३०९ 
सव्वो वि जणों पाय अहिणव्रवत्थुम्मि कुणगइ अणुरायं, चिरपरिचियमत्रहीरइ । ३७ 
सहामर्ष: सिंहैरिद द्वि कतमो जम्युकतुकात्‌ ? । १८३ 
सहासूया सद्धिः खछ खलजनस्यापि कतमा १ । १८३ 
सा संपय जा सयणद दिज्वइ । ८३ 
सिक्‍खा मयणाद्वीणेदइदवा विहला ॥ ३४०७ 
सीय॑ पि पओ मायंगकूत्रए पियइ कि विप्पो !। ९२ 
सुद्धस्स वर मरणं मा जीय॑ सीलखलियस्स । ३६ 
खुविसुद्धोभयपक्लेदि अहव गरुया विसोहति ९१ 
छत्थत्थकंकणाणं कि कज्ज दष्पणेणददया ! । ११६ 
हुयउ घरह न बारह । १३७ 
डोही जाण कलाओ पयद्‌ चिय सादए ताण । १८० 


€वहु०-+--प्ाईबईव फेडिपेलतत---%- 


बर५ 


गाथायकरुः 

१८५९ 
डे 
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१४ 
१४ 
१४ 
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१२ 
६६ 
५६ 
२० 


6. ९६ 


जय 


७५ 
२ 


२ 


पत्रस्य गाथायामू अशुदं शोधनीयम्‌ 


23 

3) 

१ 
१२ 
ह ॥। 


23 


१३ 


32 


पै.२३ 
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१४ 
२० 


पं. ३० 


३३ 
३७ 
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८९ 
९७ 
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१४ 

१ 
१० 
२३ 
२७ 
३१ 
३८ 
३९ 
४५ 
8८ 
५ 
६१ 
धरे 


«3 


११४ 
१२८ 
१४२ 


१५ 
१६० 


दिट्ठतंसा 
सुसीवर्गो 


दिद्वेतसा' 
सुसीसवग्गो 


कडिला बाला कुडिला वाला 
'कबिलो मठ” 'कविलोयल 


पयपयणा. प_पणया 
'स्थापत्‌। स्थाप्यत। 
]सुओ १ सा । सुओ सो सा 
विय विय 
“याणुसा याण सा 
तोतेण तोत्तेण 
तन्मि तम्मि 
सहिज साहिज' 
भणियं भणिय 

वा व्‌ 
'मुहच्छाओ  मुहछाओं 
बाहिया.. वाहिया 
निसुणिठ निसुणिउ 
पविसियप पविसिय प॑ 
“लड्टय' 'लडड़य' 
वच्छ | बच्छा ! 
कहेइ कहेह 
पेक्छामि पेच्छामि 
“ट्विया ठ्या 
अमभिमान _ अभिमाण 
सुयाण हॉगणा 
अयज्ना अन्नया 
“उत्त “उक्त | 
पभणई पभणइ्‌ 
कीलई * * » कीलइ 
“कुडगोया._ कुड्डा गोवा” 
रञं रज्ज 

'भुजई भुजइ 
लोय स लोयस" 
'भूदरि “*भूहरिभासुर- 
भासुरभुयमम भुयम)म 
मिव पिव 

अदूध॑ अदं 


शुद्धिपत्रकम्‌ 


पश्रस्य गाथायामू अशुद्ध 


१३ 
22 
#2 
१४ 
22 
92 
3 
१५ 
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२४ 
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9 


२५ 


१६० 
१६६ 
१६९ 
१७२ 
१०६ 
१९२ 
१९५ 
२२१ 
२२४ 
२३० 
२३४ 
२४० 
२५२ 
२५४ 
२७२ 
३४ 
३६ 
४२ 
६५९ 
१९ 
३१ 
४५ 
४८ 
४९ 
१ 
3२ 


अं 


3८ 


८ 


)३१६ 


१४५ 


३४ 


कुमार 
नीरहरिओ 


*पणामिज 


जयदु 
पेट र" 
*सब्भाओं 
शवूभंति 
“मंन्दिर 
सगय' 
“बरोबि' 
वत्ते 
'मुक्खिउ 
“मिरि 


निव्वीसंकाए 


मणिय 
आरुढो 
“बवदासु 
गडुल 


खुदुक्सिया 


'३ इह* 
वेलाभासे 
मणय 
इद जा 


'मुदृस्छाओ 


वह 


शोधनीयम्‌ 


कुमरे 
नीहरिओ 
"पणमिर्जा 
जय दु 
'निटदुर" 
'सब्भावों 
*वूयती 
“मन्दिर 
स॒गय' 
बरो वि 
बच्छे 
“मुक्खिविं 
“गिरि 
निव्विसंकाए 
भणियं 
आडूढो 
“यतडासु 
गड्डुल, 
खुड़किया 
३ च इह' 
वेलामासे 
सणयं॑ 
इृदजा' 
'मुहछाओ 
बहु 


विलग्णिकणः विलगिगिऊण 


विय 


बिय 


समग्रा पढिक्तः फल्गु शातव्या 
“हलाइ धण- इलाइधण- 
रिद्धि। उवभुं रिद्धि। उबसु 


पभणासि 
चउण्णह्‌ 
“गहणदव' 


"तरंगिणी 


दांणाई 
पश्िमा 
वरथर्स 


पभणसि 

चउण्द्‌ 
गदहणददणदव” 
“तरंगिणि" 
“दाणाइ 
पडिमा 
परव्यर्स 


पत्रस्य गाथायाम्‌ अशुद्ध॑ 


२५ 
३२६ 


रैरै 


ई्‌ 6 


३७ 
8०५ 
५६ 
धरे 
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९५१ 
4१ 
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११६ 
११७ 
१२४ 
१२६ 
१२८ 


१३१ 
१३५ 
१३७ 
१४५ 
१५३ 
१६१ 


'बहया दु” 
दुश्याहि 
हिययव्म 
सुदय 
विहेयव्यं 
देवा[... हि 
भरग 
“चिट्ठिस 
विशज्ञाय त॑ 
एल्वंत' 
पुएइ 
अवणीय 
सम्मग्गेहि 
सब्वं॑ पि 
द्ट्द्वण 
द्ट्ट्ण 

त्त्‌ 
पजन्त 
वत्तीस 
चेल्लणा 
समुव्वदद 
जाय 
हद" 
मणों 
जायइ 
वासराणि 
सपासाये 
परिमेलइ 
घण 
हायर्णि 
पिगिण्ह 
नाउण 
उज्ट्विउ 
घम्म 
नयपू, 
अजपा' 
खमण 


होधनीयम्‌ 
'वइ्यादु* 
दृश्याहि 
हिययब्भ 
सुहय | 
विदेयव्यं 
देवा[दा]दि” 
भग्ग | 
पैचिहविस्सं 
विभायत' 
एत्यंती 
पुएद्‌ 
अवणीया 
समग्गेहिं 
सय्वे वि 
दटठूण 

तं 

पजत्त 
बत्ती 
प्ेल्लणा 
समुब्वबद्द३ 
जाय [ 
श्ह दे 
मणे 
जोयइ 
वासराणि 
स पासाय॑ 
परिमेल्लइ्‌ 
जा 
इयाणि 
पिता गिण्ह 
नाऊण 
उज्च्चिउं 
बन 
जयपू 
अज पा 


७ 


समण 


पत्रत्य गाधायामू अशुदध शोषनीयम्‌ 
३५ १६७ भामिऊण अंत- भमिऊण अंत- 


१७३ 
29 

१७३४ 

१७३७ 
१९ 
३३ 
२४ 


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३३ 
9 
२१ 
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९७ 
९५१ 
९४ 
१०४ 
११० 
१३५ 
१३७० 
१३९ 
१४५ 
१५७ 
१६० 
१६३ 
१६५ 
१५१ 


ं. २४ 


१८ 


पंतार” 


पुत 

मग्श 
पाडियो 
बहुय' 
प्रश्छिरि* 
बला 
“तरस्मि 
करमे 
बीया स 
दृत्थिणीय 
“तरस्मि 
नव 

दिद्ले 
मणइ 

वी 
"कविछेस' 
प्रमुंचंतो 


पंता-इर्‌ 
पुत्त 
प्ज््म 
पड़िबो 
वहुय' 
प्रस्छरि” 
बला 
'तरम्मि 
कहमे 
“बीयास' 
हृत्थिणीव 
“तरम्मि 
व्व्‌ 

दिट्ठो 

भणह 

बि्‌ 
*कविलकेस 

पमुंच॑तो 

तुद्द 
निद्धणो ह 
बंधि' 
गएण 

कि 

हू 
भुंजतस्स 
जाजीवं 
विसजिओ 
अशुभ 

व्व 
जक्खसिरी 
जीवसओ 
श्च्छति 
जिणिदधम्मो 
मकडियाध 
“कलियढंख" 
पिण्दा 
एयारिस"” 
'रिडिजुत्तो 
तओ 


शांदपत्रकम्‌ 


पत्रस्य गाथायाम्‌ अशुर्द 


१९ 


3 


८३ 
८४ 
4६ 
९४ 
९९ 


पं. २५ 


» ९ 
> ३० 


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१७३ 
२४ 
२६ 
२८ 
२९ 
४८ 
५१ 
५२ 
५४ 
५५ 
७१ 
३९ 


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९८ 
१०३ 
१३७ 
१४३ 
१४९ 
१५४ 
१८५ 
१८७ 
१८९ 
१९० 


सब्बत्य 
विणिग्गओ 
द्ट्ठं 
वहुकाले 
'पोक्स' 
स्वरूमे 
दबइन्ती 
श्रेष्टि 
“देसरत 
द्ट्ं 
संपत्ती 
जाब 
गंब्भ 
पूरिजत 
पाऊब्भुओ 
'णारभे 
वेछ्इल" 
*संबलिजों 
'इज्न्त धु* 
“बिलास' 
“क्मेण 
इंमिणा 

बि 

सेडरगे 
“जन्न" 

ओ कारे' 
पुहप्त्त 
'संचरिय' 
झाइजंत्तो 
कुब्व रेण 
नेयावे 
लब्छि ब्य 


शोधनीयपम््‌ 


सब्वत्य 
विणिग्गओ 
द्ट्ढु 
बहुकाले 
"पोक्ख" 
स्वरूपमें 
दबदन्ती 
श्रेष्ठि" 
'देसस्स 
द्ट्ढु 
संपत्तो 
जाव 
गज्भ 
प्रिजत 
पाउब्भूओ 
'णारंभ॑ 
वेछहल" 
'संवलिओ 
'डज्झन्तधू” 
“विलास 
'क्रमेण 
इमिणा « 
वि 
मंडलरगे 
बजा 
जोकारे” 
“मुहपत्त' 
संवरिय 
झाइजतो 
कुब्ब रेण 
नेय5वे 
लब्छि व्य 
निदूदुर 
बहुल" 
'ड्डियख" 
यु 
जणणिज 
'प्पयाव" 
'बिंदू 
सर्द 


५३ २३१ 
५४ २५२ 
हर] २५०५४ 
्ज्‌ ३०८ 
8९ ३०९ 
५६ ३२० 
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७»... ३२७ 
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५७ पं, ११ 
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३3९ 


पत्रत्य गाथायामू अबुद्ध 


नोलद्ा 
हिडतो 
नलऊध(न)रिदो 
जिणिदाणं 
निसुय॑ 
घरावलए 
“बाबारं 
सकयल्प 
धननाएण 
तण 
गुरुहि 
परिधान 
जटायुः' 
निश्चय 
'स्तवमुदेस्त 
"वेष्णुजिष्णु" 
द्वितीया दा 
त्वम्‌ 
धूली 
लेकायां 
राज्ये वि" 
विभीषण" 
'पद्रव' 
'निकुज' 
मनारुमेय* 
विभीषणा' 
किमन्ये; 
तेनांपि 
“तिरुणीमिः 
सरह्लिय 
'जनकादि 
'स्तदुपमथापि 
जनकादि 
निगते 
तपःसमा 
“मीमादूम' 
तस्याक' 
वबद््जल 


उज्झ्मन्त 
सारण 


१७ 
शोधनीयमू 


नो लड्ा 
हिडतो 
नलघरिदोे 
जिणिदा्ण 
निसुय॑ 
धरावलुए 
बावारे 
स॒कयत्य 
धन्नएण 
तेण 
गुरू 
*भिधान" 
जटायु" 
निश्चिक्ये 
“सब मुदे त* 
“विष्णुजिष्ण* 
द्वितीयाश' 
त्वाम्‌ 
धूलीं 
लंकाया 
राज्ये बि* 
विभीषण 
“पद्रव" 
निकुश 
मनाख्येय" 
विभीषणा' 
किमन्ये: 
'तेनापि 
“तरुणीमिः 
सरःश्रिय" 
जनकादि: 
स्तमुपरमर्थापि 
जनकादिः 
निगंते” 
तपः समा 
भीमादू भँ 
तत्या; के 
'इडवटूजले 
उज्ञझन्त' 


० 5 


४१८ 


पत्रस्य गाथायाम अशुरद्ध शोधनीयम्‌ 


६३ 
६४ 
93 

| 
१९ 
93 
है 
रे 
६७ 
9 
3 
399 
६०८ 
+$8 
फछछ 
है 
3७१ 
9) 
हक 
9३ 
७२ 
28 
रैडै 
७३ 
39 
५ 
हि 
3६ 
है । 
८ 


। 
<१ 
९०७ 
५ 
३९ 
४५ 
१६ 
9८ 
3६ 
८ 
<५ 
4६ 


पं, २९ 


है 28: 


' ४१ 


ज० 
ज 
५८ 
3४ 
<३ 


१३ 

२४ 

५९ 

धरे 
१३४ 
१५०१ 
१५८ 
१६९ 
२२८ 
२३५ 
२०३ 
२४५ 
२७५० 
२५४ 
२६२ 
२६३ 
२६५ 
२७१ 


नीहरीओ 


'कि 


नरिंदेण 
तचरनिय 
पेश्छियति” 
माहिन 
वर को 
सदूचि 
वर्दीहिं 
पभावंति 
*दाप्नदेब 
क््म' 
मम्म भीससु 
नमो 
गरले [| 
तह्संग 
“मिणोय॑ 
सेट्टिणा 
नरेन्द्रेणा” 
अश्षमा 
जाये ! 
भवा 
बुचेतो 
रुप्पिणिस 
करवेत्तणं 
संमप्पेइ 
“नांणी 
सुमिणा 
इयर 
सयाण ज॑ 
वलिबंडाए 
सश्नदूधा 
भणियं 
निसुणिउण 
बारवई 
साहियब्ध 
'पम्माणं 
सन्नेप्न 


नीहरिओ 
कि 

नरिदेण 
तचभिय" 
पेच्छिय ति 
मालि७स्न 


२3 


वुत्ततो 
रुप्पिणि | स॑ 
करवत्तेणं 
समप्पेइ 
“नाणी 
सुमणा' 
इयरिं 
सयाणज 
बलिवंडाए 
सन्नद्धा 
भणिय च॑ 
निसुणिऊण 
बारवई 
साहियब्व 
'पमां 
सप्नेज्मं 


सदीकस्पाव्यानकमणिकोशस्य 


पत्रस्य गाथायामू अशुद्ध शोधनीयम्‌ 


3९ 


८४१ 
१3 
११ 
<२ 
। 


2) 


+० 


८४ 


3? 


23 


२८१ 
२८६ 
२९५ 
२९७ 
३०४ 

पे. २ 

हि 

पं, २६ 

» १३ 

» १६ 

» १८ 

जम, 

» रे) 


99 ३० 


समागओ | समागओ 
बलिउण वलिऊण 
सब्वन्नू सब्यन्नू 
'बलेण॑ “बलेणं॑ 
तुइ तुद्द 
भावस्थ भावनास्व' 
जाय तस्स जायंतस्स 
बिझाडइ विज्लाडइ 
“यबाहु यवाहु 
जिम्ब जिम्व 
परि पस परिपस" 
सहु सहु 


“चक्षि चक्वइ- 'वक्तिचक तइ 

सम” सस्‍्थाने समइ” सम्भा- 
व्यते । 

ते न्‌ 

पूरतु जिजि फूतत्त जि 

जणारह जणेरह 

उप्पहु भत्रहु * ओप्पहु ! 


भत्र हु 
कय भुव कयभुतर 
मुईं वह सु इंवइ 
सेस सेव 
पभणीइ पवी पभणिइपविँ 
भणेवि भणेविणु 
अट्टाणि अत्थाणि 
बाहुबलि भणि बाहुबलि 
इय भो भणइ भो 
दाढिय हुलेवि दाढियहु लेवि 
नयन नयण 
अत्ययलि इृत्थयलि 
'यहोट्ठ “य द्वोह्ठ 
मडभीसण- भेड़ 
सुदृद भीसणसुदृढ 
परियरेड परियारिठ 
'संभार खु “ंभारणु 
सिंवासिविहिं सिंबासिबिह्”ि 
मिलिय मिलिय 
महाबलि महावल 
धम्मविश धम्मधिद 


पत्रस्य गाथायाम्‌ अशुर्द्ध 


८४ पं, ३४७ सकु" 


<५ 


ध 9 
32 


१ 


मैरै 


3 


हे । 


*ैम 


*) 


२ 
९ 


ही 
९ 
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१७३ 
२१ 
२७ 
१ 
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हर] 
१४ 
३२ 


३१ 


१८ 
२४ 


१० 
११ 


२२ 
२५ 
२८ 


३३ 


१२ 
१५ 
१९ 
१७ 


विधि 


रवि आ 


बंधु, 
वुरयरह 
तोसण 
बलई | 
सलंत 
सेवकरा" 
पघणहरु 
अवारिउ 
वुजओ 
_ररहसु* 
“मालउ 
बरु, वहि' 
निरुवज्शे 
उरइई वलु 
उवसप्पि वि 
अरि वा 
मछिह्लिरि 
परिक्षमु 

बहु 

विसि 

चत्त तासु हू 
पल इस 
मत सत्त 
*रण खभ, 
सुहु 

समरि 
पसिद्धि' 
'सिलहि रा" 
दिद्ठि जुज्मि 
[जि] 
रसिखि' 
अभरणि 
एह्ठी 

पाएहु 
पकक्‍्लमि 
विभइए 
बजा 


७ 


शोधनीयम्‌ 


संकु 

विशि 
रवि[--] आ 
बंधुहु, 

वुरयह 

तासण 

बलइई 

रुहंत' 

सेव करा” 
धणुद्दरु 
आवरिंउ 

दुजउ 

'ररसु* 
मालउ, वद 
व हि 

निरु जुज्हे 
ओरइईं चल 
उवसप्पिवि 
अरि अरि वा” 
म छिल्निरि 
परक्षमु 

बहु 

घिसि 

चत्ततासु हू 
घणुद्द्त्थु 
मंतसत्त' 
रणखंभ ! , 
महु 

स मरिय 
सिद्धि” 
सिल5ह्िरा 
दिद्विजुज्शि 
[जी] 
“रसिखि" 
अमर 
णिएही (0) 
पाएसु 
पकक्‍्खम्मि 
विभूरए 


भजा 


७ 


पत्रस्य गाथायामू अछुर्दध शोधनीयम्‌ 


९५१ 


98 


९३ 
4] 
*ै 


39 


९८ 


मै 


१९ 


*१ 


१८ 
२२ 
३ | 
३३ 
३४ 
३७ 
3२ 
६ ७ 
६ 
७५ 
८0० 


शीर्षके 


धरे 
४५ 
४६ 
१६ 
१८ 
१७० 
१४ 
१९ 
२० 


“रस 
तरस्मि 
“सिणी खंधे 
खत्ता 
सिस्सेद्ि 
सरय से 
इणि सि 
सव्बगं पिहु 
“मितय 
बयामि 
बिणा 
विज्ञायडइम्मि 
पिहु 
वियदड्डेण 
भाणिय 
पबिस भुँ 
“बुक्कावर्ण 
दण्हि 
धम्मजणा 
“जाय 
विडंवर्ण 
“कमंणि 
“पपर्णनों 
“मर्व॑ 
“यकमलो 
पयद्टो 
कंकेल्ल्त' 
'केवनाणी 
“हब्मिश्नै 
भरुमच्छ 
वबभ्ा 
“सयनत्ती 
बासिओ 
न एनओ 
'सिलए चे 
योवनम्‌ 
सोणिय 
सद्धम्म 
दियह व 
मिलियन 


*र-कव्व-सि' 
“तरम्मि 
“सिणीखंघे 
खित्ता 
सस्सेह्दि 
सरयसं' 
*इणि ति 
सब्वगं पि हु 
“म्रि तय॑ 
चयामि 
विणा 
बिज्ञायडम्मि 
पि हु 
वियड्ढेण 
भणिय 
'विसभु* 
“बुक्कावण” 
इण्हि 
धम्मधणा 
जाये 
विडंबर्ण 
*कमेणि 
'पर्णनों 
“भवर्ण 
यकमकमलो 
पयट्ठी 
कंकेलित" 
“केवलनाणी 
'रब्मिनन 
भरुयच्छ' 
' बभदट्टा' 
“सयवत्त' 
बासिए 
नए नओ 
'सिलयचे 
यौवनम्‌ 
सेणिय 
सुधम्म 
दियहव' 
मिलियब्वं 


शुद्धिपत्रकम 


पत्रस्य गाथायाम अच्ुदे 


१७० 


2 


| 6 
३७ 
३८ 
श्३् 
६५ 
६९ 
3३ 
५ 
७८ 
९९ 
१०४ 
११६ 
१२१ 
१३२ 
१३५९ 
१४४ 


११४ 
१३२ 
१४४ 
१४७ 


९ 


त्त॑ 

काउ पु 
जहास॑ 
मुच्छामी 
बचह्‌ 

कय पंच 
वंधुम३ 

अवर कु 
बुट्ठि 
पवड्लिओ 
चिट्ट्सु 

'पुन्वं 
कात्यय्वी 
पणमित्त्‌ 
सब्वा 

“वबारि धा 
यत काम 
*सीह 

जह्‌ 

ब्व सआचिविओ 
निसरणों 
तंतीए क 
बार-ल 
जाले स 
नाउ 
*गेयाह 
“गयाह 
गंतूण 
खधे 
'पम्मिइहिं 
दाणाइ 
वियश्रु 
गे" 
्यद्डिय' 
तुज्ञप 
लियचि' 
भमिद्दि 
हुरुदुक्लिय 
"बलि" 

*स णाहो 


0 * 


शोधनीयम्‌ 


ते 
काउं पु 
जहा सं 
मुच्छानिमि 
वचचर्‌ 
कयपंच 
बंधुमई 
अवरकु 
“बु्ठि 
पवड़्िढओ 
चिट्ठस 

पुय्व॑ 
कायब्बो 
पणमित्त 

सब्तरो 
बारिधा” 
“यितकाम' 
“सिद्द 

जह्‌ 

व्व सचचधिओ 
निरसणो 
तंती पका 
वबार-वारल 
"जाहेस* 
नाओ 
“गेयाइ 
“गयाइ 
गंतूण 
'खंधघं 
'परमिईहिं 
दाणाहइ्‌ 
वियडढ 
विदा 
'यड्दिय' 
तुज्झ प॑ 
'लिय चि* 
भमिही 
हुरुडक्खिय 
“बलि 
'सणाहो 


पत्रस्य गाथायामू अथुद्ध 


+२) 


१२५ 


| प्‌ छ 


१२६ 
१२७ 


१४ 
११ 
२८ 
३० 
९ 
१९ 
२४ 
३४७४ 
६९ 
७३ 
4३ 
4६ 
८८ 
९५१ 
११६ 
१४७ 
१५२ 


११ 
१३ 


११ 
३२६ 
२८ 
8३ 
४९ 


६३े 
१६ 


३२ 
३४ 
३५९ 
प० 
४७ 
६८ 
३ ७ 
२ 
३३ 


चिंतेइ 
जतं 
सेदुबक 
बुद्बीए । 
अमरसो' 
मरुचू 
अणहर्जा 
उविव्र्सति 
बंभणी भ० 
विय 
ट्वाविजए 
बडुंते 
मेरिसियं 
हिह्मणा 
नेवज 
चित्त 
कुब्व॑ते 
सुइसमाय 
घम्मः 
“कल 
मदरिद्द वे” 
बक्‍्खेण । 
'सुहाइ 
अमिमे 
पहाण भूया 
एमाए 
वोलण' 
नोसम्म 
सुहृत्यिणा 
*मडलर 
सों 
बिहीणो 
[यउ] 
वत्तो 
मोत्त 
'मरद्धो 
“सामइएणं 
निश्रेत 
चलिया 
“दीवीओ 


४१९ 


शोधनीयम्‌ 


चितेइ 

जत 

सेदुवक 
बुद्धी 
अमयरसो 
मेरुचू 
अणद | अं 
उविक्खति 
बंभगीए भ० 
विय 
ठाविजए 
बड़्ढंते 
*मेरिसयं 
हिद्ठमणा 
नेवेज 
चित्ते 
कुथ्व॑तो 
सुइआय 


"पके 
मद्रिदवे 
बक्‍खों ॥। 
सुहाई 
अमिमे 
पहाणभूया 
एयाए 
बोलण' 
नो सम्म 
सुदृ5त्यिणा 
“पम्रउले 
सो 
*विहीणो 
[य] 
बुफ्तो 
मोचु 
मारदो 
'सामइएण 
निश्रुत 
वलिया 
*दीबिओ 


॥ 


पतन्रस्य गाथायाम अशुर 


१२८ 


१२१९ 
१३० 
१३९ 
)३३ 
१३४ 


१४२ 


३४ 
५८ 
८ 
हे । 
२० 
८५ 
११७ 
। 
१० 
१४ 
२९ 
१७ 
उ 
१८ 
२६ 
२४ 
२६ 
| ७ 
३१ 
२४ 


३१ 
३२ 
ढे 


११ 
१६ 
२७ 
१२ 
१४ 
१९ 
३५ 
३८ 
श्३े 
५३ 
५८ 


५९ 
१३ 
१ 


शोधनीयम 
पेच्छंतत।  पेच्छंतस्स 
चारो चोरों 
'रियर्ती “रियगस 
“बिरचित॑ “विरचित' 
| क्लेश *तीक्लेश 
समा समाः 
श्रेयः कू.. श्रेयःक्' 
न अगधूइस न पयदृह स॑ 
भणसिन्‍्त भणसि न 
बिणा विणा 
कसष्प कसप्प 
पास जिणो पासजिणो 
सबणिय नि. सविणयनि' 
*रयणु *रयण' 
कयवल कयबलु 
सब्वयं सव्वय । 
मेब्वरयं मेयव्ययं 
'चाउदसि. चउदसि' 
साहणि साइणि 
निवडि निवडिवि 
वियाडी ध पाई (१) घ॑ 
वेढिविठिय वेढिवि टिय 
दच्छ जत्त॒ दच्छजुत्तु 
भोनिवि भाभिवि 
पुरिवे: पुरि वे 
सूलियपो.. सूलिय पो 
प्मणिउ पभमणिउ 
सूलमु' सूलामु 
सुददना' सुदशना' 
'रायाणं "रायाण 
“बिच्छोह!' “विच्छोह 
“निब्व “निव्ि' 
वाई चाह 
मयाणं प्णायं 
नीसारीओ  नीसारिओ 
वीणा महिला । विणा मद्दिला 
पंकविणा पंक विणा 
विरहिया वरहिया 
स कबिलो  सकविलो 
डोडिणि ढोडिणि 


सरीकस्याल्यानकम णिकोदस्य 


पत्रस्य गाथायामू अशुद्धं शोधनीयम्‌ 
१४२ टि०२ 


१४३ 
१४४ 


९३७ 
१०६ 
१०८ 
१२१ 
१३४ 
१४७ 
१७९ 

६ 

१३ 

२३ 

४१ 


२९ 
४५ 


१०३ 
१४९ 
१४ 


डोडिणि |-र० डोढिणि |-खं« 


सींस 
“उस्सग्ेहि 
“बिसएहि 
बलिचडाए 
नय अंब 
जीव 

“विय अब 
सदूदुलओ 
धवं 

सुदरे 

सब्वे 
तथचेदम 
विय 

ब्व ज॑ 
“पभइणों 
रहयतेल 
कहमा 

जं 
समष्पेमि 
“निमिश् 
दमन्नगो 
तेण प॑ 
पुन्नष्प' 
इदानी 
तदू वि. 
पिह 
गच्छंतेण 
उन्तंधि 
कहिंवि 
महाणमंसस्स 
वु्तेसो 
आमम्मिय 
संवत्ता 
“नाह रजम्भि 
इयचि 
नरिदं 
“सब्बंग 


देहणी 


विम्दरियेसभो विम्दरियपओ 


सीसं 
“ओसग्गेहि 
"बिसएहि 
बलिवंडाए 
नय अब" 
जीव 
“वियअद्द 
भदलओ 
जव 

सुंदर 
सब्वे 
तथेदम्‌ 
विय 

व्ब ज' 
“परमिइणों 
रहय-तेहक” 
कह भा 
तं 
समप्पेप्ि 
“निमित्त 
दामन्नगो 
तेण वि 
पुत्रप्प 
इदानीं 
तद्धि वि 
पि हु 
गच्छततेणं 
उब्बंधि' 
कि वि 
साहणमंसस्स 
वुत्ततो 
आमम्रिय 
संपत्ता 


नाहरजम्मि 


इय चि 
नरिंद 
“सस्यंग 
देश्णी 


पशन्रस्प गाथायाम्‌ अछ्ुद 


१६१ 
१६२ 


३२ 
४६ 
४९ 
५८ 
२२ 
३० 

ण 
१० 
१९ 
३५ 
११ 
६१ 


« १९ 


२ 
११ 
१७ 
३४ 
३१ 
४२ 
र्‌ 
३९ 
४३ 
१३ 
२० 
२६ 
३३ 
३७ 
२४ 
१५९ 
२१ 
हज 
| ७ 
३८ 
१५ 
१६ 
१७ 
5 
१६ 
१७० 


शोधनीयम 
द्वितीया टिप्पणी फल्गु हेया 
"अन्म' बजस्म 
'पंगरिसिया  पंगरिसया 
मच्छः व मरछरव' 
मामे मा मे 
चितह्‌ चितेइ 
दृढ़ द्ढ 
बल" “बल 
वीरी' पीरी 
टिओ ठि्ओ 
विहु षि हु 
गर्व" रब" 
भूमिए 'भूमीए 
“नुगमो मे नुगमाम' 
ब्याख्या व्याख्या 
*चऊष्प' “चउप्प' 
संवा सम्वा' 
रयण ए रयणीए 
पयच्छेद्दि.. परयच्छेद्ि 
चित चित 
परिमिमो परमिमो 
पि्णिम “परिणाम 
घम्मिओ धम्मिओ 
विसमम्मि वसिमस्मि 
ट्वियस्स ठ्यिस्स 
बुचता -बुचेता 
हेउ-भंग।. हेऊ-भंग' 
नियठाणा नियठोणा 
दुकख से दुक्खस 
श्री सदा ' श्रोमदा” 
गर्म वियाणइ धम्मे वियाणद 
सुक्ख' सक्ख 
विनडेई विनडेइ 
गंते शंतु 
भविय भाविय" 
भंडीरमणे अंडीरवणे 
“बणीए “खणीए 
सिग्धंतो जिमघतो 
तिब्बे तित्यि 
जुबइह कल्े. जुवइकन्ने 


पश्रत्य गाधायाम्‌ भरधुद्ध शोधनीयम 


१८७ ३० 
श्र है 
१८८ पे. ३ 
१८९ ५१ 
१९० ४ 
१९१ १०९ 
१९१२ २६ 
१९३ ४१ 
७ ७ रे 
रा ११ 
१९५ ६० 
११ ६) 
22 हे 
9१ गज 
कि 3४ 
१९७ १२९ 
». १४२ 
२०० २३५ 
#.. २४६ 
२०१ २७४ 
२०३ ३३० 
» ३४५ 
२०४ ३७२ 
9) ३ के ५ 
२०५. ३९९ 
२०६ ४५८ 
का ५९१ 
२१० पे. ३४ 
२१३ पे. ३ 
! ०9 है 
२१९ ,, ३१० 
२२१ ११ 
२२२ ३१३ 
2 22 
२२६ १६ 
२३० ६५ 
२३१ ९४ 
है है ; ९ 
पा १०७३ 


गर्छम्ती धश्छन्ति 
छित्त हि 
“मल्यमू मल्पम्‌ 
'बहुए वहूए 

ओ सामि ओ सो सापम्रि 
'बेहरी "ब्ठरी 
“जालाप' "जाला प* 
तिए तीए 
सोयथधि सोयबि" 
_लियददददिये “लियदियं" 
बालचेडिया बालवडिया 
"गविखत्ती ”गक्खि 
जवखो जक्ज़ो 
द्ट्दु द्ट्ड 
'पुब्व 'पुष्व 
धाओ वाओ 

या य 

नणां नृर्णा 
इयज श्य जे 
वावसिए_ वाव(!र)सिए 
शा खेड्ड _ “याखेड़ 
"ट्वाणे ठाणे 
सेट्विणा? सेट्टिणा" 
स भव सभव' 
रमणीए रयणीए 
हेरिड हेरिउ 
फेकारसु॒ फेकरस 
सेट्टी सेट्टी 

जु जुशय॒ जुजुइय 
बेवि बे वि 
भणए हक 
वि्णिक्संतो विणिक्खंतो 
बधिठ बधिउं 
दिट्ठा दिद्ठा 
चिंतई चितर्‌ 
घल्दे!. छघुल्हें 
बंतमावियपु” 'वंतभाविपु 
“ुब्बमु" _बुब्वगमु' 
*भणो भवणों 
“बरिदो बरिंदो 


पतन्रस्य गाथायाम्‌ अथुद्ध शोधनीयम्‌ 


२३१ 
२३३ 
२३४ 
२३५ 
२३६ 
२३७ 
२३८ 


२५० 


२५१ 
९२५६ 
२५५ 
१) 
२५७ 
२५८ 


क। 


हे 


१२५ 
१५१ 
१८० 
१९१ 
२२९ 
२४५ 
२४७ 
२९१ 
१ 
१५ 
१९ 
१३ 
१५ 
१८ 
१९ 
२० 
२१ 
३४ 


पं, १० 


$» ९, 


४ ३५ 


३८ 
५२ 
६ दे 
७३ 
3४ 


२३० 
३३१ 
३३३९ 
३९२ 
४३६ 
४३७ 
४४५ 


१9 


देबो 


पुच्छ 
नेय॑ 
सुदुक्‍्ख' 
संघष्ठिओ 
जायजू" 
पगद्ठि” 
केग 
एवोब्व 
कितुं 
मेलेंहि 
सुद्बनायं 
वेत्ति 
'पचर्भू 
वेसि 
भव्मंकव्वं 
वेत्ति 
कुड्ड 
“ठाविय 
विवयंताणं 
गृहीणो 
रिसिदत्त 
तरल 
बिलंब" 
लाच्छ 
'तारुश्षमण 
पयढदह 
“मेयस्स 
चक्रस्स 
ध्वय 
र्‌ह्‌ 
विणिस्संति 
सां 
द्द्ठा 
संपतो 
रुष्पिणि' 
उज्झत' 
भूरे भी 
विष्फुरिय 
व्व 


देवो 
पुल 
नेय 
सदुक्ख 
संघट्टिओ 
जाय जू* 
पगिट्ठु 
'मेग(?* 
'ण्रो व्व 
कितु 
मेलेद्दि 
सुट्‌ठु नारय॑ 
य्ति 
“पर्च[मह] भू 
वत्ति 
भव्व कब्त 
व्ति 
कुडडे 
“डाविय 
विवयंताण 
गृहिणो" 
रिसिदत्ता 
"तल 
विलंब" 
“लच्छि 
“तारुश्नपुन्नमण 
पयडइ 
“मेयस्स 
बक्करस्स 
शय 
र्‌इ 
विणस्संति 
सा 
द्ट्ढ 
संपत्तो 
रुप्पिणि' 
डज्ञंत' 
'भूईभ' 
विप्फुरिय" 


व 


पत्रस्य गायायाम्‌ अश्ुद्धं 


२५८ ४४०९ 
२५९ ४७६ 
२६० ४९२ 
श ४९७ 
३६२ पं. १८ 
२६४ २१ 
१» हु 
३६५. ९ 
».. २४ 
२३६६ ४० 
२2 ५ कु 
२६७ ६२ 
२६८ ७ 
२६९ ११ 
3१ ] ५ 
२७० १६ 
२७१ १४ 
302 १ ५ 
२७३ २४ 
| टि के 
२७४ ४६-४७ 
» १. २१ 
२७८ ४३ 
२७९ १४ 
२८० ६९७ 
श* हर त 
२८१ ७६ 
> ०३ 
२८२ १२५ 
२८४ १८८ 
२८६ ५६ 
२८७ ७९ 
कर ८४ 
हे 3४ 
२८९ पं. १६ 
२९० २३२६ 
२९१ ६९ 
२९२ १०५ 
२९३ ११० 


गिजह्‌ 
भवियाणं 
बाणसहरणं 
"सोस" 
व्याख्यार्थ' 
मुन्नइ 
ब्व 


चितिय 
'मूखभ्यों 
पविखत्ता 
मुणि 
वित्राहिओ 
व्व 
'ज्ञियगुरु 
प्रधान" 
उद्दंतरों 
मद 
ण२४॥ 
श्ह्‌ 

व्व 

जह्‌ 

द्ट्ढं 
नट्ठन्मि 
ताहि 


गोगलिः 


ओ सजणों 


एवं वि. 
यदूयस्य 
लु ० 
“चउर॒सि 
पाया रेहिं 
विरियासु 


यु 


४२१ 
शोधनीयम्‌ 


गिजर 
भवियाण 
बाण सहणणे 


छ 


सास 
व्यासार्थ' 
मदर 


महुं 
॥२४॥ 
इ्ढ्द 

५. 

जइ्‌ 
द्ट्डु 


*ओ समुन्नओ 


एवंवि' 
यद्‌ यस्‍्व 
*बउदसि 


पयारेहि 
विरयांसु 


ड२२ 


पश्रस्य गाथायाम्‌ू अशुर्द्ध 


१३० 
१३८ 
१४० 
१६८ 
१८१ 
१९५ 
१९७ 
२१७ 
२२४ 
२२८ 
२८५९ 
२९६ 
9 
३१३ 
३३७ 
श्ष५ 
४३३ 


७७ 


२७८ 


*गहदक्खो 
नियज 
मे सा 
घुणाविओ 
वत्थसु 
करेसि 
महू 

तरे पे 
“मियणि 
पठेमि 

वि विओ 
“लिला 
मद्दि 
जाणिय' 
पयइ च 
पेक्छसु 
'मुब॒ल' 
विगयंती 
नव 

सिर्धं 
यावदूधूत' 
लिप 
वर्णाप 
तावदूबि 
सवेग 
व्व 
द्वः 
व्व 
यानि 
दसयाओ 
निट्दूर 
“मेग त्य 
सोहं 


७ 


शोधनीयम्‌ 
गहणदक्खो' 
निययज 
'मेसा 
धुणाविओ 
वत्थुसु 
करेसि 
मह 
तग पे 
“प्रियार्णि 
पढ़ेमि 
वि हु विओ 
“सिला 
मददी 
जणिय 
पयइचे 
पेच्छसु 
“मुबाल 
विरायंती 
नव 
सिम्घं 
यावदू धूते० 
तिप 
बणा प॑ 
ताबद्‌ वि. 
संवेग' 
य्‌ 
देव 
व 
यानि 
सदधाओ 
निट्ठर 
“मेगत्थ 
सोह 


सटीकस्याख्यानकमणिकोशसर्प 


पश्रस्य गाथायाम्‌ अथुरद 


३१५९ 
है १० 


२८१४ 
३१० 
३१४ 
१५ 
9१ 

१९ 
२५ 
३० 

१ 

.॥ 
२५ 
३५ 
३७ 
धरे 
९१ 
२९ 
-३० 
<रे 
८९ 
१३९ 
१०४१ 
१५८ 
१९६ 
२४३ 
२८२ 


“बंघु" 
श्ह्व 
“उप भ 
ससुरिदेण 
भावहनि 
भत्तीए 
जिणसु” 
मुत्ति 
नीहरि 
“कंछा 
“यक्षओ 
ये सया 
नहु 
अहयंतुपुणो 
मार्रिउ 
भैवदु 
सद्धि 
संठविउ 
विमुंचंतुं 
गिहिंणं 
तडिल्ल 
व्व 

सेंख न 
फिद्टई 
ब्व्भ' 
अद्दक्षया 
महू 
नामेण 
तद्द वि 
पश्चक्ख 
“यणंपि 
ग्फ्द 
एएण से 


शोधनीयम्‌ 


बघु 
अदहृव 
"उणम' 
ससुरिदेण 
भावह नि 
भत्तिए 
जिण सु 
सुत्ति 
नीहपरि 
शक 
'यत्ताआं 
“यसया 
नदु 
अद्यं तु पुणो 
मारिउं 
“बिंदु 
सद्धि 
संठाविउ 
विमुचंतु 
गिण्द्उ 
तडिल 
व्‌ 
संखन 
फिट्टइ 
"वरेभ" 
अद्द अन्षया 
मह 
नामेण 
तह॒वि 
पश्चक्स 
म्रण पि 
शयून्द्‌” 
एएण5सं 


७० 


पत्रस्य गाथायाम्‌ अथुद्ध शोधनीयम्‌ 


३४९ 
३५० 


३५१ 
३५३ 


३५४ 
३५६ 
३५७ 
३६० 


३८४ 
३८५ 
३८६ 
३८८ 
३९५ 
३९५ 
३९६ 


३े 
११ 


२३ 
२७ 


ही 

४७ 
४१ 
७२ 
3६ 
१०८१ 
१९८ 
२४४ 
१९ 
२० 
टि०२ 
१६७ 


१-३४ 
२-२७ 


१-२५ 


टि० 


'घेयकः 'थेयकः 
“तो *चिक्षोँ 
हृ्हा हद 
मेरेवेहि. मभेरवेहि 
जिणंगं पि. जिणं गपि 
अम्द नन वि अम्द न वि 
मा श्मो 
विबल वि बल 
शयकूर श्य कूर 
'एस्थे सुसंंचबओ हत्थे सुसंवुओ 
“देवा देवी 
पत्तिन्नो पत्तिल्लो 
पढ़िवन्न' पडिवर्ल 
तिहुयण... तिहुयण 
परिबुडं परिवुड 
'जाववद  भावगर्दा 
कष्पं कप्पं 
अस्सावहार अस्सावद्दारा 
चदप्पभा चंदप्पभा 
चंदाभा चंदाभा 
चदावयस चंदावयंस 
तिहुयणतिलिया तिहुयणतिलया 
देवसूरी देवसूरि 
राजपुत्रो [ राजपुश्रः 
[ श्रेष्ठिपुश्नो.. [ भ्रेष्टिपृत्रः 
रइकेली रइकेलि 
बेगसाम वेयसाम 

[ अमाह्यपुत्रों [ अमात्यपुत्रः 
१८ गुफा १८ गुद्दा 
वर + सामि वहरसामि 
( दिनदय ( दिनद्वय ) 


१-२४ दृश्यतां- डुब' दृश्यतां-डुब 


३-३२ नकारस्वल 


नकारस्य 


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ुफ्रा$ 4९5५६ 45 छा शा एपज्र 593फ7एशा0व॥389० ॥ 06 4 ०९१पाप्र 3, ५. 7६ जी] 9७ एछा०॥5४९१ जाता ाएएॉट( 2॥॥0 
जाता एक 0 3888509% जाव॥)28 607 06 50 धं॥6, ६ 36335 ज्ञात ०0070६ 0 ६॥06 वुदंग 07:25, 77 45 6१06९0 
एफ ज्ैणां धय 2एाए४०]०५भुं, 

6, 2:बक#/-2488674% [ प्राकृत पेंगले ] ९४7६ ॥] :--( 0९0ए 00६8ए० अं26 ) 

ए४ 4 43 7९069560. 247४ 7 ९णाएगा75 8 टापंधंटबी ००णराएथ०टए०, 5प0ए 0० भाहप88९ भाते ॥606/३ 0 5 
॥779०7भा: 765६., 70 38 ९३६९१ ए७ए छ7 8॥0]23 शाभाए००/ एए३३, 06९7६ ० पक्‍्राप0, 80748735 प्रांग0प ए्रंए४३४. 

4, 2654८47४% [ पासचरिउ ] :--( 00009 (७७४४० 826). 


2482८थ7प ३3 (6 6 0 ऐद्वा3एथ४05009 6 28१ पशाभ्योट००ए गा 57944 शाहप88९. ग3 जछ0्र : 
शाएंट्शोए ९१06१ 2700 ए72॥3400 पा पाती] ७० ?४0०६. ?. ४०95,